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Adultery हवेली

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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HalfbludPrince मुसाफिर.. नए सफर की शुरुआत करने के लिए ढेरो शुभकामनाएं ❤️🎉😍🏋️🏋️
रंगरेज सिंधु की एक अद्भुत पंजाबी बोल आपके व सभी पाठकों के लिए 🤔 😍 💐 🌹

दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये
दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये

जब उसने भी तुम्हें
छोड दिया तो
दिल लगाने आ गये

जब उसने भी तुम्हें
छोड दिया तो
दिल लगाने आ गये

झूठ दी तू पाण्डेया ने
जुबानो निरी खण्डेंया ने
चकोर च लकोवे जेहडा
दाग अंबरा दा चन्नेया ने

दे गये जो गैर तुम्हें
आँसू दिखाने आ गये
दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये

दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये
जब उसने भी तुम्हें
छोड दिया तो
दिल लगाने आ गये

दिल च फरेब तेरे
किने ही हज़ार वे
बोलदा सी झूठ मेनू
किने ही तू वार वे

उमरा दे वादे
किनिया दे नाल करके
किनिया नु चढ़ेया तू
आग विचकार वे

झूठी सी कहानिया
फिर से सुनाने आ गये
दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये

दिल तोड़ खारे केड़ा
मिलदा सकून वे
सिर तेरे जिस्मा दा
चढ़ेया जनून वि..

कल मैं सी आज होर
कलनु कोई होर होनी
तोड़े रंगरेज़ सारे
प्यार दे कनून वे

मिला ना होगा और कोई तो
मन बहलाने आ गये
दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये

दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये
जब उसने भी तुम्हें
छोड दिया तो
दिल लगाने आ गये..

दिल जले हो तुम

चेहरे से मासूम हो
दिल में तो फरेब है
तुमसे की मोहब्बत जो
अब प्यार से परहेज़ है

चैन भी गवाया मैंने
नीन्दो से गुरेज है
बेरंग तेरी जिंदगी
यूं नाम रंगरेज है

हाल कभी ना पुछा तुमने
हक़ जताने आ गये
दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये

दिल जले हो तुम
दिल को जलाने आ गये
जब उसने भी तुम्हें
छोड दिया तो
दिल लगाने आ गये

दर्द मिला आँसूँ मिले
मिली तोह बस बेवफाई मिली
ना जाने कैसा दिल जला था

जितना पास गये
उतनी तन्हाई मिली
आखिरी बार भी आया था

मुझसे मिलने
उस वक़्त भी मिली
तोह बस जुदाई मिली
🏋️🏋️🏋️❤️❤️❤️❤️😘😍👌👌🙏❤️🌹💐
 
Last edited:

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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:congrats: For starting a new story thread fauji bhai :celebconf: :celebconf:

आपकी एक कहानी दिलवाले पढ़ा था। बेहद ही शानदार कहानी थी वो और अब उसी शीर्षक से मिलती जुलती ये कहानी दिलजले शुरू की है आपने। इसके लिए ढेर सारी शुभकामनाएं आपको। आपके द्वारा एक और रहस्य से भरा कथानक और जहन में रच बस जाने वाली कहानी पढ़ने का अवसर जल्दी ही मिल गया ये देख कर बेहद खुशी हुई। बस एक ही गुज़रिश है कि अपने पाठकों को अपनी पिछली कहानी की तरह ज़्यादा उलझा मत दीजिएगा। बहुत से पाठक सवालों के जवाब न पाने की वजह से परेशान से हो जाते हैं, या यूं कहिए कि जवाब तलाशने अथवा चीज़ों को समझने में मुश्किल हो जाती है उन्हें। अतः ऐसी बातों को थोड़ा विस्तार से बताने की कृपा कीजिएगा। :pray:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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#1



आँख खुली तो बदन पसीने से भीगा था , मुह से निकली लार तकिये को भिगोये हुए थी. पास रखे रेडियो पर अभी भी कुमार सानु के गाने बज रहे थे. गानों में धुन कम सुर सुर की आवाज ज्यादा थी जो बता रही थी की सिग्नल ठीक नहीं है . बनियान पहनते हुए मैं उठा और पानी के धोरे की तरफ बढ़ गया . झुक कर मैंने हथेली भरी . पानी को होंठो से लगाया ठन्डे पानी ने लू चलती रात में करार दिया . वापिस से सोने जा ही रहा था की खेतो के दूसरी तरफ मुझे कुछ सुलगता सा दिखाई दिया. मैं उसी तरफ बढ़ा जाकर देखा तो लखन चोकीदार बीडी सुलगाये हुए था , पास में ही देसी का पव्वा रखा था जिसे अभी तक खोला नहीं गया था .

मैं- क्या लखन भाई, इतनी रात को यहाँ खेतो पर नींद नहीं आई क्या

लखन- नींद क्या हमारा तो चैन भी गया यार .

मैं- ऐसा क्या हो गया भाई

लखन- कल रात यार

मैं- क्या हुआ कल रात को

लखन ने पव्वा खोला और कडवे पानी से अपना गला तर किया .

लखन- कल सुबह जब मैं बैंक से चोकिदारी करके आया तो

मैं- तो क्या

लखन - देख तू मेरा अपना है इसलिए तुझे बता रहा हूँ वैसे बात तो बताने लायक नहीं है

लखन ने फिर से पव्वे को मुह से लगाया और इस बार लगभग आधे पव्वे को गटक गया .

लखन- कल मैं चोकिदारी छोड़ कर जल्दी ही घर आ गया . रात के करीब तीन बज रहे होंगे , मैंने देखा की मेरी बीवी पर कोई और चढ़ा हुआ है . दोनों नंगे ऊपर निचे हो रहे थे . लुगाई की दोनों टाँगे ऊपर उठी हुई थी और उसके हाथ आदमी की पीठ पर चल रहे थे .

लखन की ये बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गये. मैंने तो चुदाई की बाते इधर उधार से ही सुनी थी , यहाँ पर तो एक पति खुद अपनी पत्नी की बेवफाई मुझे बता रहा था . थोडा अजीब भी लग रहा था पर चस्का सा जाग उठा .

मैं- तुझे गुस्सा न आया , लट्ठ उठा कर दो दो बार मारता और पूछता और उस आदमी की गांड तोड़ता .

लखन- ना तोड़ सकू भाई .

मैं- क्यों कौन था वो .

लखन- तुझे यकीन न होगा . तू ना मानेगा मेरी बात की मैं सच कह रहा हूँ

मैं- लखन तू भाई है अपना

लखन- जिन्दगी बर्बाद हो गयी यार.

इस बार लखन की आवाज टूटी सी लगी , दर्द था उसमे .

मैं- कौन था वो बता मैं साले की गांड तोड़ दूंगा . पर तूने तेरी लुगाई से सवाल ना किया , ना पूछा की के कमी रह गयी थी .

लखन ने बाकी बची दारु भी पी ली और रोने लगा . मेरे लिए अजीब हालात हो गए थे , अच्छा भला सो रहा था और अब ये चोकीदार पल्ले पड़ गया था .

मैं- रो मत यार . अच्छा एक काम करते है तुझे घर छोड़ आता हूँ सुबह फिर बात करेंगे चल मेरे साथ .

मैंने बैटरी और लट्ठ उठाया , लखन को साथ लेकर उसके घर पहुँच गया .

“किवाड़ खोल भाभी ” मैंने दरवाजे पर दस्तक दी.

“कौन आ मरा इतनी रात को ” अन्दर से किवाड़ खोलने के साथ ही ये आवाज आई .

मुझे देखते ही निर्मला थोडा होश में आई और बोली- माफ़ करना , गलती हो गयी ना मालूम था दरवाजे पर आप हो .

मैं- माफ़ी की जरुरत ना है भाभी .संभाल अपने पति को , ध्यान रखा कर इसका

मैंने कमरे में लखन को बिस्तर पर पटकते हुए कहा . नशे की वजह से उसने करवट ली और सो गया .

मैं- निर्मला भाभी, मैं ना जानता तू सही कर रही है या गलत . पर इसकी पीठ पीछे जो भी कर रही है न इसे मालुम हो चूका है . मैं न जानता जो तू कर रही है तेरी राजी से हैं नाराजी से हैं पर ये तेरा पति है जैसा है ठीक है ना लायक है पर तेरा पति है . मान कर इसका ये है तो तू है .

मैंने निर्मला को नजरो को झुकते हुए देखा .

मैं- नजरे न झुका, माफ़ी मांग लिए इस से इसकी नजरो में उठ .

कच्ची नींद उठ गया था तो आँखे भारी सी हो रही थी अब हिम्मत ना थी वापिस खेत में जाने की . मैने अपने कदम घर की तरफ बढ़ा दिए. आँगन में पड़ी चारपाई पर पड़ा और चद्दर तान ली . सुबह उठने का बिलकुल भी मन नही था पर बाप के तानो से ही मेरे दिन की शुरुआत होती थी .

“रे नालायक हमारी नहीं तो सूरज की ही शर्म कर लिया कर . दोपहर होने को आई तू अब तक सोये जा रहा है ” बाप ने पानी की बाल्टी मुझ पर फेंकी तो मैं उठा . इस घर में ऐसे नाटक रोज ही चलते थे , हमें लगता था की बाप हमारा दुश्मन है , बाप को लगता था की उसकी औलाद ना लायक है .

“चुनाव् सर पर आया हुआ है , लाट साहब की आवारगी ना थम रही , थोड़ी मेहनत कर ले. कल रात भी तू दारु बांटने ना गया ” बाप ने ताना मारा .

मैं- बापू , दारू नोटों से वोट न मिलते कब समझ आएगी ये बात . राज करे तो ऐसे करो की दुनिया दिल से चाहे, आगे सलाम और पीठ पीछे गाली बके ये तो ठीक ना है न .

बापू- रे नालायक , तू क्या जाने राज के चीज होवे है , राजे-महाराजो के ज़माने से हमारा परिवार इस गाँव पर मालिकाना हक़ रखता है , रियासते गए ,सरकारे बदली पर हम न बदले .

मैं जानता था बाप से बहस करने का कोई नतीजा नहीं है . मैं घर से निकल गया .

“फिर चला ना लायक आज शाम दारू बाँटने ना गया तो तेरी खैर नहीं ” बाप के ताने मेरे कानो में पड़े पर किसे परवाह थी . जब से होश संभाला था मैंने मेरे बाप को ही सरपंच देखा था , उस से पहले उसके बाप दादा थे, मेरा बाप ठाकुर रणबीर सिंह. दिन रात मुझमे कमिया निकालना मुझे कोसना पर मैं जानता था की प्यार भी बहुत करता है वो मुझसे, वर्ना जिस रणबीर सिंह की मर्जी के बिना पत्ता तक न हिल पाए गाँव में मैं उसकी बात कैसे काट सकता था . मेरे होश सँभालने के बाद ये दूसरा इलेक्शन था जिसमे वो दारू बाँट रहा था और मेरा मानना था की लोग अगर हमें दिल से अपना नेता मानते है तो फिर दारू, पैसो की क्या जरुरत हमें लोगो के दिल जीतने चाहिए, इलेक्शन लोग ही जीता देंगे.

क्रिकेट खेलते हुए प्यास के मारे बुरा हाल था ऊपर से गर्मियों की ढलती शाम , मैंने गेंद दुसरे खिलाड़ी को दी और पानी पीने के लिए कुंवे पर बनी टंकी की तरफ चल दिया. प्यास से गला इतना सूख गया था की मैंने ये ध्यान न दिया की टंकी पर किसका मटका रखा है मैंने उस आधे भरे मटके को अपने होंठो से लगाया और अपनी प्यास बुझाने लगा.


“हाथ लगाने से पहले देख तो लेता किसका मटका है, तेरी जुर्रत कैसे हुई इसे छूने की, गन्दा कर दिया न इसे ” मेरे कानो में किसी की आवाज आई और मैंने पलट कर देखा. ...............
फोजी भाई नई कहानी की बोहोत बोहोत बधाई,
गजब का अपडेट 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
लखन नै किसको देख लिया उसकी पतनी को पेलते हुए?? कही उसका बाप या चाचा तो नही?? क्यु की आपकी कहानीयो मे ये लोग ही जयादा ठरकी होते है।।।
💯💯💯💯💯💯💯💥💥💥💥💥
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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लिखो, लिखो और लिखो...!!!
अभी कोई रिव्यू नहीं,
कहानी को थोड़ा खुलने दो तब ही कुछ लिखेंगे 🥱
हमारे चंद्रमा का प्रकाश यहाँ पर भी फैला हुआ है 😁😁😁😁
 

parkas

Well-Known Member
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#1



आँख खुली तो बदन पसीने से भीगा था , मुह से निकली लार तकिये को भिगोये हुए थी. पास रखे रेडियो पर अभी भी कुमार सानु के गाने बज रहे थे. गानों में धुन कम सुर सुर की आवाज ज्यादा थी जो बता रही थी की सिग्नल ठीक नहीं है . बनियान पहनते हुए मैं उठा और पानी के धोरे की तरफ बढ़ गया . झुक कर मैंने हथेली भरी . पानी को होंठो से लगाया ठन्डे पानी ने लू चलती रात में करार दिया . वापिस से सोने जा ही रहा था की खेतो के दूसरी तरफ मुझे कुछ सुलगता सा दिखाई दिया. मैं उसी तरफ बढ़ा जाकर देखा तो लखन चोकीदार बीडी सुलगाये हुए था , पास में ही देसी का पव्वा रखा था जिसे अभी तक खोला नहीं गया था .

मैं- क्या लखन भाई, इतनी रात को यहाँ खेतो पर नींद नहीं आई क्या

लखन- नींद क्या हमारा तो चैन भी गया यार .

मैं- ऐसा क्या हो गया भाई

लखन- कल रात यार

मैं- क्या हुआ कल रात को

लखन ने पव्वा खोला और कडवे पानी से अपना गला तर किया .

लखन- कल सुबह जब मैं बैंक से चोकिदारी करके आया तो

मैं- तो क्या

लखन - देख तू मेरा अपना है इसलिए तुझे बता रहा हूँ वैसे बात तो बताने लायक नहीं है

लखन ने फिर से पव्वे को मुह से लगाया और इस बार लगभग आधे पव्वे को गटक गया .

लखन- कल मैं चोकिदारी छोड़ कर जल्दी ही घर आ गया . रात के करीब तीन बज रहे होंगे , मैंने देखा की मेरी बीवी पर कोई और चढ़ा हुआ है . दोनों नंगे ऊपर निचे हो रहे थे . लुगाई की दोनों टाँगे ऊपर उठी हुई थी और उसके हाथ आदमी की पीठ पर चल रहे थे .

लखन की ये बात सुनकर मेरे कान खड़े हो गये. मैंने तो चुदाई की बाते इधर उधार से ही सुनी थी , यहाँ पर तो एक पति खुद अपनी पत्नी की बेवफाई मुझे बता रहा था . थोडा अजीब भी लग रहा था पर चस्का सा जाग उठा .

मैं- तुझे गुस्सा न आया , लट्ठ उठा कर दो दो बार मारता और पूछता और उस आदमी की गांड तोड़ता .

लखन- ना तोड़ सकू भाई .

मैं- क्यों कौन था वो .

लखन- तुझे यकीन न होगा . तू ना मानेगा मेरी बात की मैं सच कह रहा हूँ

मैं- लखन तू भाई है अपना

लखन- जिन्दगी बर्बाद हो गयी यार.

इस बार लखन की आवाज टूटी सी लगी , दर्द था उसमे .

मैं- कौन था वो बता मैं साले की गांड तोड़ दूंगा . पर तूने तेरी लुगाई से सवाल ना किया , ना पूछा की के कमी रह गयी थी .

लखन ने बाकी बची दारु भी पी ली और रोने लगा . मेरे लिए अजीब हालात हो गए थे , अच्छा भला सो रहा था और अब ये चोकीदार पल्ले पड़ गया था .

मैं- रो मत यार . अच्छा एक काम करते है तुझे घर छोड़ आता हूँ सुबह फिर बात करेंगे चल मेरे साथ .

मैंने बैटरी और लट्ठ उठाया , लखन को साथ लेकर उसके घर पहुँच गया .

“किवाड़ खोल भाभी ” मैंने दरवाजे पर दस्तक दी.

“कौन आ मरा इतनी रात को ” अन्दर से किवाड़ खोलने के साथ ही ये आवाज आई .

मुझे देखते ही निर्मला थोडा होश में आई और बोली- माफ़ करना , गलती हो गयी ना मालूम था दरवाजे पर आप हो .

मैं- माफ़ी की जरुरत ना है भाभी .संभाल अपने पति को , ध्यान रखा कर इसका

मैंने कमरे में लखन को बिस्तर पर पटकते हुए कहा . नशे की वजह से उसने करवट ली और सो गया .

मैं- निर्मला भाभी, मैं ना जानता तू सही कर रही है या गलत . पर इसकी पीठ पीछे जो भी कर रही है न इसे मालुम हो चूका है . मैं न जानता जो तू कर रही है तेरी राजी से हैं नाराजी से हैं पर ये तेरा पति है जैसा है ठीक है ना लायक है पर तेरा पति है . मान कर इसका ये है तो तू है .

मैंने निर्मला को नजरो को झुकते हुए देखा .

मैं- नजरे न झुका, माफ़ी मांग लिए इस से इसकी नजरो में उठ .

कच्ची नींद उठ गया था तो आँखे भारी सी हो रही थी अब हिम्मत ना थी वापिस खेत में जाने की . मैने अपने कदम घर की तरफ बढ़ा दिए. आँगन में पड़ी चारपाई पर पड़ा और चद्दर तान ली . सुबह उठने का बिलकुल भी मन नही था पर बाप के तानो से ही मेरे दिन की शुरुआत होती थी .

“रे नालायक हमारी नहीं तो सूरज की ही शर्म कर लिया कर . दोपहर होने को आई तू अब तक सोये जा रहा है ” बाप ने पानी की बाल्टी मुझ पर फेंकी तो मैं उठा . इस घर में ऐसे नाटक रोज ही चलते थे , हमें लगता था की बाप हमारा दुश्मन है , बाप को लगता था की उसकी औलाद ना लायक है .

“चुनाव् सर पर आया हुआ है , लाट साहब की आवारगी ना थम रही , थोड़ी मेहनत कर ले. कल रात भी तू दारु बांटने ना गया ” बाप ने ताना मारा .

मैं- बापू , दारू नोटों से वोट न मिलते कब समझ आएगी ये बात . राज करे तो ऐसे करो की दुनिया दिल से चाहे, आगे सलाम और पीठ पीछे गाली बके ये तो ठीक ना है न .

बापू- रे नालायक , तू क्या जाने राज के चीज होवे है , राजे-महाराजो के ज़माने से हमारा परिवार इस गाँव पर मालिकाना हक़ रखता है , रियासते गए ,सरकारे बदली पर हम न बदले .

मैं जानता था बाप से बहस करने का कोई नतीजा नहीं है . मैं घर से निकल गया .

“फिर चला ना लायक आज शाम दारू बाँटने ना गया तो तेरी खैर नहीं ” बाप के ताने मेरे कानो में पड़े पर किसे परवाह थी . जब से होश संभाला था मैंने मेरे बाप को ही सरपंच देखा था , उस से पहले उसके बाप दादा थे, मेरा बाप ठाकुर रणबीर सिंह. दिन रात मुझमे कमिया निकालना मुझे कोसना पर मैं जानता था की प्यार भी बहुत करता है वो मुझसे, वर्ना जिस रणबीर सिंह की मर्जी के बिना पत्ता तक न हिल पाए गाँव में मैं उसकी बात कैसे काट सकता था . मेरे होश सँभालने के बाद ये दूसरा इलेक्शन था जिसमे वो दारू बाँट रहा था और मेरा मानना था की लोग अगर हमें दिल से अपना नेता मानते है तो फिर दारू, पैसो की क्या जरुरत हमें लोगो के दिल जीतने चाहिए, इलेक्शन लोग ही जीता देंगे.

क्रिकेट खेलते हुए प्यास के मारे बुरा हाल था ऊपर से गर्मियों की ढलती शाम , मैंने गेंद दुसरे खिलाड़ी को दी और पानी पीने के लिए कुंवे पर बनी टंकी की तरफ चल दिया. प्यास से गला इतना सूख गया था की मैंने ये ध्यान न दिया की टंकी पर किसका मटका रखा है मैंने उस आधे भरे मटके को अपने होंठो से लगाया और अपनी प्यास बुझाने लगा.


“हाथ लगाने से पहले देख तो लेता किसका मटका है, तेरी जुर्रत कैसे हुई इसे छूने की, गन्दा कर दिया न इसे ” मेरे कानो में किसी की आवाज आई और मैंने पलट कर देखा. ...............
Nice and lovely update...
 

Froog

Member
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123
नई कहानी नये रायते फैलाते रहो
सच कहूँ लग रहा है पहेली ही अपडेट में कि यह फौजी भाई की लेखनी है
शानदार अपडेट फौजी भाई
 
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