#14
चांदनी ने अलमारी खोली और एक पिस्तौल निचे गिर गयी. मैंने उसे उठा कर देखा विलायती पिस्तौल थी .
मैं- पहले कभी देखा इसे
चांदनी- नहीं , मैंने तो अलमारी यूँ ही खोली थी .
मैंने पिस्तौल को चेक दिया, आठ में से सात गोलिया थी,एक गोली गायब थी .
मैं- ठाकुरों को कैसे मारा गया था
चांदनी- गला दबा कर.
इसका मतलब साफ़ था की ये हथियार वो नहीं था बल्कि इसका होना न होना अब बराबर ही था. कामिनी के कपडे सलीकेदार थे पर उनसे अमीरी नहीं झलकती थी क्या हवेली की एकलौती लड़की पर पैसे खर्च नहीं किये जाते थे .
“कितना सुन्दर है न ये देखो अर्जुन ” चांदनी ने एक डिब्बा खोल लिया था जिसमे मोतियों के हार थे.
मैं- तुम चाहो तो रख सकती हो तुम्हारा ही हक़ है इनपर .
चांदनी- नहीं ,
उसने डिब्बा वापिस से रखा और अलमारी बंद कर दी. जब वो अलमारी बंद कर रही थी तो थोडा सा झुकी वो और मेरी नजर उसकी गोल गांड पर पड़ी. जवानी में कदम रखे ताजा हुस्न का अपना ही जलवा होता है , ऊपर से कसी हुई तंग सलवार में उसके नितम्बो की गोलाई कोई भी देखता तो दाद जरुर देता.
“कुलदीप का कमरा खोलो ” मैंने कहा
चांदनी- अर्जुन, मेरे पास बस इसी कमरे की चाबी है .
ये अजीब बात थी
“बाकि चाबिया कहाँ है फिर ” मैने पूछा
चांदनी- जबसे देखा है हवेली के जायदातर कमरों पर ताला ही देखा है . वैसे भी पिताजी के बाद शायद ही यहाँ पर कोई आया हो. पर मैं कोशिश करुँगी कुछ मिलता है तो बताउंगी
हम लोग सबसे ऊपर की मंजिल पर गए , जहाँ पर एक कमरे का दरवाजा खुला था . ये कमरा थोडा अलग सा था ,इसकी बनावट बेहद शानदार थी लकड़ी की नक्काशी का इतना शानदार काम नहीं हो सकता था वक्त की धुल बेशक अपने पाँव जमाये हुए थी पर फिर भी तारीफ उस कारीगर की जिसने यहाँ अपने कला के जोहर बिखेरे होंगे. ऐसा शानदार पलंग जिसके पायो में सोना लगा था . पर मेरी नजर उस खिड़की पर थी जिस से बाहर का मेन गेट दीखता था .
“जय सिंह कभी हवेली की बात करता है क्या तुमसे ” मैंने कहा
चांदनी- भैया नफरत करते है हवेली से वो मानते है की पिताजी को ये हवेली ही खा गयी.
मै समझता था पिता को खोने का दुःख मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला- ये हवेली अगर मुझे मेरे राज बताएगी तो तुम्हे तुम्हारे पिता का राज भी बताएगी. पर तुम्हे उसके लिए प्रयास करना होगा चांदनी
वो- क्या करना होगा.
मैं- ठाकुर साहब के पास इतनी जायदाद थी , जो काफी हद तक बिक गयी थी . पर फिर भी ठाकुरों ये वर्तमान पीढ़ी यानी की तुम लोग किसी राजा महाराजा जैसा जीवन जी रहे हो पैसा , कहाँ से आता है ये पैसा.
चांदनी- हमारे कुछ होटल है शहर में और शराब की फैक्ट्री आदि है . ब्याज पर भी पैसा दिया जाता है . पिताजी के जाने के बाद जय भैया ने व्यापर को अपने दम पर बहुत आगे कर दिया है .
मैं- हवेली के दो मुख्य नौकर थे भूषण और चंदा, भूषण को हाल ही में मार दिया गया . चंदा ने हवेली छोड़ दी थी . मुझे लगता है की भूषण को मारने वाला नहीं चाहता होगा की वो कुछ भी बताये
चांदनी- पर क्यों , इतने साल बाद ही यो जबकि भूषण सबसे कमजोर शिकार था .
मैं- इतने साल से कोई आया भी तो नहीं हवेली, कोई तो है जो नहीं चाहता की ये हवेली आबाद हो , इसमें हलचल हो . कोई तो है जो इस मनहूसियत को चाहता है .
चांदनी- पर कौन
मैं- मालूम कर लूँगा.
हम दोनों ने काफी वक्त बिताया वहां पर इतना तो तय था की बरसों से कोई आया गया नहीं था वहां पर . चांदनी के जाने के बाद मैं सीधा भूषण की झोपडी में पहुंचा पर शायद मुझसे पहले कोई और भी आकर चला गया था सामान इधर -उधर पड़ा था , कोई तो था ये शक मेरा और पुख्ता हो गया था . कोई तो था जो नजर रखे हुए था . खैर,मेरा पैर एक डिबिया पर पड़ा तो मैंने उसे उठाया उसमे एक पुराणी तस्वीर थी जिसे गौर से देखने पर मैंने पाया की ये तो कामिनी की तस्वीर है ,
“भूषण का कामिनी से क्या लेना देना ” मैंने खुद से सवाल किया और उस तस्वीर को अपनी जेब में रख लिया. इस हवेली से मेरा क्या नाता है ये सोचते सोचते सर में दर्द हो गया . मैंने दूकान से राशन का सामान ख़रीदा और चंदा के घर पहुँच गया .
“इसकी क्या जरुरत थी ” उसने कहा
मैं- इतना तो फर्ज है मेरा
मैंने झोला दिया उसे, जब वो झोला पकड रही थी तो उसका आंचल सरक गया मेरी नजर उसकी छात्तियो पर पड़ी. चंदा को भी भान था पर उसने आंचल की परवाह नहीं की बल्कि पूरा समय लेकर मुझे दीदार करवाया उसके हुस्न के जलवे का . वो चाय बनाने लगी मैं पीछे की तरफ हाथ मुह धोने लगा. मैंने देखा की डोरी पर चंदा की कच्छी सूख रही थी जो चूत वाली जगह से फटी हुई थी . मैंने इधर उधर देखा और उसे हल्का सा सहलाया , कसम से गर्मी के मौसम में मैंने अपने बदन को कांपते हुए महसूस किया.
मैं- ठाकुर की जमीने देखना चाहता हूँ मैं.
चंदा- जिधर तुम्हारी नजर जाये उसी तरफ देख लो सब जमीने उनकी थी किसी ज़माने में
मैं- जानता हूँ ठाकुर साहब ने काफी जमीने बेच दी थी पर थोड़ी बहुत कुछ तो बची ही होंगी न.
चंदा- जो बचा था वो ठाकुर के भतीजे ने हथिया लिया था ठाकुर को परवाह भी नहीं थी , वैसे भी हादसे के बाद वो कर ही क्या लेता उसका होना न होना बराबर ही है . कुछ एकड़ बंजर भूमि बची है चाहो तो देख कर तसल्ली कर सकते हो .
चंदा ने मुझे बताया उस जमीनों के बारे में चाय पीकर मैं उस तरफ चल दिया . करीब आधे घंटे बाद मैं उस जगह पहुंचा तो पाया की वो जमीनों का टुकड़ा देख रेख के आभाव में बर्बाद हो चूका था , पम्प हाउस था , कुवे में पानी था पर जैसा मैंने कहा किसीको परवाह ही नहीं रही होगी. कमरे पर एक पुराने ज़माने का ताला लगा था जंग खाया हुआ . मैंने इधर उधर देखा और जेब से चाबी निकाल कर उस ताले में डाली जैसे ही चाबी को घुमाया........................