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Adultery हवेली

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Raj_sharma

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#2

पलट कर जो देखा बस देखता ही रह गया. ढलती शाम में डूबते सूरज की लाली में मैंने चाँद को देखा . नीला दुपट्टा, पीला सूट कानो में झुमके, हाथो में चांदी के कड़े, पांवो में मुरकी वाली जुतिया . उमस भरी गर्मी में ठंडी हवा का झोंका उतर सा गया सीने में .

“तेरी जुर्रत कैसे हुई मेरे मटके को छूने की , गन्दा कर दिया न इसे ” इस बार उसकी आवाज में तल्खी थोड़ी और बढ़ गयी थी .

मैं- प्यास लगी थी , पानी पिलाना तो धर्म होता है ,समझ ले थोडा पुन्य तेरे भाग में भी था .

“जुबान को लगाम दे ,देख कर बोल किसके सामने खड़ा है ” उसने अपनी आवाज ऊँची की .

मैं- रे लाडली, ऐसी बोली ठीक ना है . अगर मेरे छूने से तेरा मटका ख़राब हो गया तो जा कुम्हार से मेरा नाम ले दिए नया मटका दे देगा तुझे

“”तू मुझे खरीद कर देगा “ उसने कहा

मैंने एक नजर उसके झुमको पर डाली जो बड़ी नजाकत से उसके गाल चूम रहे थे .

मै- तो तू ही बता कैसे मानेगी तू. पानी तो मैंने पी लिया कहे तो मैं भर दू तेरा मटका

उसने मुझे घूर कर देखा और फिर उस मटके को धरती पर दे मारा. गुस्से में हसिनाये और भी हसीन लगती है ये मैंने उस लम्हे में महसूस किया . उफ्फ्फ इतना घमंड, इतना गुरुर भला किस चीज का .मैने गहरी मुस्कान से उसे देखा उसका चेहरा और लाल हो गया . उसने अपना हाथ उठाया मुझे मारने को मैंने कलाई पकड़ ली उसकी.

“ना लाडली ना, ऐसा मत करिए, गाँव में थोड़ी बहुत इज्जत तो मेरी भी है , रही तेरी बात मटके को तोड़ कर तूने बता दिया की क्या है तू, रही जुर्रत की बात तो गुस्ताखिया खून में दौड़ती है मेरी उड़ने को बेताब मेरा मन और ये खुला आसमान ,यहाँ से जाने के बाद याद तो आएगी तुझे मेरी , ” गोरी कलाई को मैंने जोर से मसला तो गुलाबी हो गयी . वो कसमसाई

मैं- तू जिस भी घर की है , वहां उजाला कर दिया होगा तूने . पर मेरी कही एक बात याद रखिये लोगो के दिल जीतना बड़ी बात होती है , ये तुनकमिजाजी तेरी अदा तो हो सकती है पर इसे स्वभाव मत बनाना कभी .

वो- हाथ छोड़ मेरा

मैं- अभी तो पकड़ा भी नहीं लाडली तू छोड़ने की बात करती है .

मैंने हँसते हुए उसकी कलाई छोड़ दी.

वो- देख लुंगी तुझे

मैं- खुशकिस्मती हमारी जो दुबारा दीदार होंगे आपके

गुस्से में तमतमाती हुई वो जाने लगी कुछ दूर जाकर वो मुड़ी और बोली- भूलूंगी नहीं मैं

मैं- अगर हमें भूल गयी तो क्या ख़ाक असर हुआ हमारा लाडली.

मैंने उसे जाते हुए देखा , मैंने सूरज को डूबते हुए देखा . जिस हाथ से से उसकी कलाई पकड़ी थी , उसे हलके से ना जाने क्यों चूम लिया मैंने.

अब खेलने में मन नहीं था मेरा , घर पहुन्चा तो देखा की तैयारिया हो रही थी गाँव में दारु बांटने की , कुछ पेटिया मैंने जीप में पटकी और गाँव की तरफ चल दिया.

हर घर दो दो बोतल पकड़ाते हुए मैंने लखन के घर पर दस्तक दी. निर्मला ने दरवाजा खोला ,

मैं- लखन है क्या

निर्मला- नहीं सुबह ही आएगा वो

मैं- ले आये तो ये दे दियो ,

मैंने एक नजर निर्मला पर डाली, लगती तो कंटाप ही थी , भारी भारी छातिया, थोड़ी सी चौड़ी कमर और गदरायी जांघे . ब्लाउज के दो बटन तो बस छात्तियो के बोझ को इस उम्मीद में थामे हुए थे की कब वो टूटे और उनका काम खत्म हो .

“इतना भी मत देखो हुकुम ” निर्मला ने हँसते हुए कहा तो मैं झेंप गया.

मैं- लखन से कहना मुझे खेत पर मिले

वहां से निकल कर चलते हुए मैं जीप की तरफ बढ़ ही रहा था की मुझे रुक जाना पड़ा

“कितनी भी दारु बाँट ले अर्जुन इस बार सरपंची हाथ ना आने वाली ” अजीत सिंह की आवाज ने मेरे कदमो को रोक लिया .

मैं- राज के लिए पंची सरपंची की जरुरत ना पड़ती अजित सिंह, पर क्या करू बाप का दिल रखने के लिए करना पड़ता है वर्ना इस दारू से हद नफरत है , दारू का नशा गाँव को बर्बाद कर रहा है मुझसे जायदा कौन जानता है . रही बात हार जीत की तो क्या फर्क पड़ता है मेरा बाप जीते या तेरा बाप . बाप तो बाप हो होता है , तेरा बाप जीत जाए तो तेरी ख़ुशी में शामिल हो जायेंगे मेरा बाप जीता तो तू बधाई दे देना. क्या फर्क पड़ता है

अजीत- फर्क तो पड़ता है अर्जुन, तुम लोग समझते हो की सरपंची तुम्हारी जागीर है .

मैं- ये गाँव मेरी जागीर है , यहाँ का हर एक घर मेरा है , हर चूल्हे में पकती रोटी मेरी है , हर बुजुर्ग मेरा अपना है हर जवान मेरा अपना है . मैं इस मिटटी का और ये मिटटी मेरी है .

अजित- तभी तो तेरी कोई हसियत नहीं गाँव में, पैरो की जूतों को तूने सर पर रखा हुआ है , तेरी वजह से ठाकुरों की पहले जैसी बात नहीं रही .

मैं-ये गाँव वाले हमारे टुकडो पर पलने वाले गुलाम नहीं है अजित, ये हमारी जमीन जोतते है अपनी मेहनत करते है तो इनकी मेहनताना इनको पसीना सूख जाने से पहले मिल जाना चाहिए, तेरी बात ऊपर रख ली अगर ये हमारी प्रजा है तो अगर प्रजा दुखी तो क्या ख़ाक राज किया तुमने .

अजित- तू नहीं सुधर सकता


अजित के जाने के बाद मैंने बची खुची दारु बांटी और जीप को खेतो वाले रस्ते पर मोड़ दिया. रेडियो चालु किया , मोटर चला कर पानी हौदी में छोड़ा पेट में मरोड़ सी थी हल्का होने का विचार किये मैं पगडण्डी पर चले जा रहा था की मैंने तभी किसी को पड़े देखा, और जब मैं उसके पास गया तो बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी .
Great Update With Awesome Writing Skills Manish bhai, fir se ek damdar story padhne Ko mil rahi hai uska dhanyawaad 🙏🙏
Dekhna ye Hai ki jo kheta me pada tha wo kon tha? Or wo matke wali jaroor koi thakuro ki ladki hi hogii
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥💯💯💯💯💯💯💯💢💢💢🔥🔥🔥🔥
 

Raj_sharma

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#3

लखन खेतो के डोले पर बेसुध पड़ा था . मैंने उसके गाल थपथपाए पर होश कहा था . मैंने नब्ज़ चेक की मंदी थी . आव देखा न ताव मैंने लखन को कंधे पर उठाया और चिकित्सालय की तरफ दौड़ पड़ा .

“रे डाक्टर , देख इसे जरा क्या हुआ है इसे ” मैंने लखन को मरीजो वाली बेंच पर पटकते हुए कहा .

डॉक्टर ने उसे देखा और बताया की दो तीन मेल की दारू पीने से बेसुध हो गया है , पेट में इन्फेक्शन हो गया है . इलाज कर देंगे . मैंने राहत की साँस ली पर दो पल की राहत थी . मैंने उसी लड़की को अपनी तरफ आते देखा अपनी किसी सहेली संग, हमारी नजरे एक पल को मिली और वो जोर जोर से हंसने लगी , इतना जोर से की कोई उसे देखता तो पागल ही समझता . हँसते हुए वो मेरे पास आई और बोली- टंकी पे तो बहुत बढ़ के बाते कर रहा था और यहाँ देखो , बस यही औकात है तेरी .

उसने इशारा किया तो मैंने खुद को देखा लखन के चक्कर में मैं कच्छे में ही दौड़ा आया था चिकित्सालय में .

“ले रख ले तू भी के याद करेगा किसी दिलदार से पाला पड़ा था ,और हाँ कपडे अच्छे खरीदना ”उसने अपने पर्स से नोटों की गड्डी निकाली और मेरे सीने पर फेंक दी.

कहने को तो ये अपमान था पर पी लिया .

“ये आपने क्या किया आप जानती भी है इनको ” डॉक्टर ने बीच में टोका उसे

“मैं जान पहचान करके गरीबो का भला नहीं करती ” उसने डॉक्टर की बात काट दी. मैंने डॉक्टर को इशारा किया चुप रहने का और पांवो में पड़ी नोटों की गड्डी उठाई .

मैं- तेरी मीठी बोली पर ही हार बैठे है लाडली , नोटों की तो औकात ही क्या

मैंने गड्डी उसके सर से वारी और उसके हाथ में रख दी .

“फेर मिलेंगे लाडली ” मैंने उसकी चुन्नी खींची और उसे तौलिये की तरह कमर से लपेट कर चल दिया. कुछ तो बात थी इस छोरी में , मैंने सोचा की मालूम करेंगे किसके घर का उजाला थी ये . खेत पर पहुंचा तो बापू पहले से ही मोजूद था वहां पर .

मैं- बापू यहाँ

बापू- तू घर ना आया तो मैं ही चला आया . दिन में कहीं भी रहा कर सांझ होते ही घर आ जाया कर .

मैं- चिकित्सालय में देरी हो गयी , चुनाव की दारू लोगो का नाश कर रही है , लखन को दाखिल करवा के आया हूँ .

बापू ने कुछ नहीं कहा

मैं- बापू ये लोग तेरे ही है , इतने सालो से तुझे ही जिताते आये है . इनकी मदद करनी है तो और भी तरीके है दारू ही क्यों

बापू- अभी ना हुआ है तू मुझसे जवाब मांगने वाला . सुना आज अजित सिंह ने रास्ता रोका तेरा .

मैं- रास्ता तो सबका होवे है बापू .

बापू- फ़िक्र है तेरी . तू तो जाने है रंजिश है उनसे, विस्वास ना करिए के बेरा कित वार कर दे.

मैं- चिंता न कर बापू

बापू- कुछ काम से बहार जा रहा हूँ दो तीन दिन में लौट आऊंगा. चुनाव की जिमीदारी तुझे देकर जा रहा हूँ .

मैं- ठीक है .

बापू के जाने के बाद मैंने खाना खाया और चारपाई बिछा कर सोने की कोशिश करने लगा.

“arjunnnnnnnnnnnn ” झटके से मेरी आँख खुल गयी . बदन पसीने से भीगा पड़ा था . तकिया एक बार फिर लार से सना था . उठ कर मैंने मुह धोया और साँसों को संभालने की कोशिश करने लगा. कानो में अभी तक वो चीख गूँज रही थी . अब जी लगना मुश्किल था , मैं घर आया. इतना बड़ा घर , इसका सूनापन इसका सन्नाटा कहने को तो आदत सी थी पर ये रात भी मुश्किल से कटेगी जानता था मैं. संदूक खोली , पुरानी तस्वीरे मेरे कांपते हाथो में थी . न जाने कब आँखों से बूंदे टप टप कागज को भिगोने लगी. दिल में बहुत कुछ था ,जो कहने से रह गया . जो कहना था पर कोई सुनने वाला नहीं था .



सुबह मैं लखन को देखने जा रहा था की मैं देखा अजीत सिंह एक आदमी को मार रहा था

मैं- हाथो को रोक ले अजीत . ये भी इन्सान है दर्द उसको भी होता है .

अजित- ये तेरा मामला नहीं है अर्जुन मत पड़ बीच में . इसने कर्जा लिया है जब इसकी जरुरत थी मैंने इसकी मदद की अब ये चूका नहीं रहा है .

मैं- कब लिया था तूने कर्जा

मैंने उस आदमी से पूछा

आदमी- मैंने नहीं मेरे दादा ने लिया था , मेरे बाप का बुढ़ापा आ गया , आधी उम्र बीत गयी पर कर्जा चुकता ही नहीं हो पा रहा मूल से न जाने कितना ब्याज चूका चुके है पर ठाकुर साहब कहते है की अभी बकाया है .

मैं- मामूली रकम के लिए अगर तीन पीढ़िया बर्बाद हो जाये तो शर्म से डूब मरने की बात है अजित

अजित- मैं वो सब नहीं जानता , तू इसकी तरफदारी मत कर , ये मेरा और इसके बीच का मामला है

मैं- इस गाँव का हर मामला मेरा है

अजित- तो ठीक है फिर अर्जुन इस से कह की इसकी नहर वाली जमीं मेरे नाम कर दे अंगूठा लगा दे कागजो पर

आदमी- ये अन्याय मत करो ठाकुर वो जमीन ही रोजी-रोटी का सहारा है वो गयी तो परिवार भूखा मर जाएगा

“तो फिर आज के आज ही कर्जा चूका दे ” अजित ने ठोकर मारी उस आदमी को .

मैं- अजित अपने हाथ पांवो को लगाम दे, ये मत भूल की ये गाँव जागीर नहीं है तेरी

अजित- जागीर तो तेरी भी नहीं है. अपने गुरुर को काबू में रख . इस बार हवा हमारी तरफ है एक बार सरपंची हाथ आने दे फिर देख लेंगे

मैं- हवाओ के साथ वो बहते है जिनकी रीढ़ नहीं होती अर्जुन हवाओ के रुख को मोड़ देता है . बेशक मैं दिल से चाहता था की इस बार सरपंची तेरा बाप जीते पर अब जब तूने दिल पर ही ले लिया है तोतेरी कसम दिल तोड़ने में मजा बहुत आएगा. और जितनी भी तेरी रकम बनती है घर आ जाना पूरा हिसाब कर दूंगा.

अजित- तूने सोचा भी कैसे की मैं तेरे घर आऊंगा, पैर की जुती गन्दी करनी है क्या मुझे .

मैं-कोई बात नहीं मैं पंहुचा दूंगा तू बड़ा रह ले.

मैंने अजित के कंधे पर हाथ रखा और आगे बढ़ा ही था की अजित का व्यंग्य मेरे कानो में पड़ा , “”मनहूस कही का “ मेरे पैर रुक गए .

मैं- क्या बोला तू फिर से बोल जरा

अजित- तूने सुन लिया न अब निकल यहाँ से सुबह सुबह तुझे देख लिया ना जाने दिन कैसा बीतेगा मेरा .

मैंने अजित का कालर पकड़ लिया . आस पास खड़े तमाम लोग सहम गए . एक पल में उसकी गर्दन मेरे हाथ में थी . पर मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी .

मैं- दुबारा इसे परेशान मत करना , रकम पहुंचा दूंगा मैं .


मैं वहां से आगे बढ़ा ही था की मेरी नजर भीड़ में खड़ी उसी लड़की पर पड़ी जो बस मुझे ही देखे जा रही थी . ......................
Wah kya baat Hai bhai ji ekdum ठेठ अंदाज में, ओर वही बेबाक तेवर, मजा आ गया, ओर सोने पे सुहागा देवनागरी में 😘😘😘😘😘😘😘😘😘
 

Raj_sharma

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भाई साहब एक बात ना जची मनै की नयी कहानी सुरु कर दी ओर बताया भी कोनी,
वो तो भला हो कामदेव भाई साहब का जिनहोने सूचना दी।
🙏🙏
 
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