#१२
जैसे ही मैं अन्दर गया , मैं हैरान हो गया. हर चीज इतने सलीके से रखी गयी थी . कमरे में एक बड़ा शीशा था उसके पास ही एक अलमारी थी , एक बेड जिसकी चादरों पर सलवटे थी . पास की टेबल पर करीने से किताबे रखी हुई थी , एक फूलदान था . मैंने अलमारी खोली , उसमे साड़िया थी, गहने थे . ड्रेसिंग की दराजो में सौ सौ के नोटों की गद्दिया पड़ी थी . जरुरत की हर चीज थी इस कमरे में पर कोई तस्वीर नही थी . पैसो ने मुझे जरा भी हैरान नहीं किया था क्योंकि ठाकुर परिवार रईस था पैसो की क्या ही कद्र रही होगी उनको . मैं बिस्तर पर बैठ गया . सर तकिये पर लगाया की कुछ चुर्मुराने की आवाज से मैंने तकिया हटा कर देखा, एक कागज का टुकड़ा था जिस पर लाल धब्बे थे और कुछ लिखा था
“तुझे भुला कर जिए तो क्या जिए ”
बहुत गौर करने पर मैं समझा की ये धब्बे खून के थे हो न हो ये लाइन खून से ही लिखी गयी थी पर क्यों. क्या कलम खत्म हो गयी थी दुनिया से . पर इतना अगर लिखा गया तो यक़ीनन दीवानगी तो बहुत रही होगी. मैंने उस कागज के टुकड़े को जेब में रख लिया और हवेली से बाहर निकल गया , पहले दिन के लिए इतना ही बहुत था . मैं जंगल के किनारे पहुंचा तो देखा की भूषण की झोपडी का दरवाजा खुला था . मैंने सोचा की मिलता चलू, पर जैसे ही मैंने अन्दर देखा मेरे कदम ठिठक गए, क्योंकि झोपडी में भूषण नहीं नहीं, उसकी लाश पड़ी थी . आँखे बाहर को निकल आई थी . गला घोंट कर मारा गया था उसे. मुझे पूरा यकीन था की ये हत्या थोड़ी देर पहले ही की गयी थी क्योंकि जब मैं यहाँ से गुजरा था तो झोपडी बंद थी . पर कौन , कौन पेल गया इसको . मैंने माथे पर हाथ रखा और वहां से निकल गया. पर मेरे जेहन में एक बात और थी की क्या किसी की नजर थी मुझ पर हवेली में घुसते हुए.
कोई तो था जो इस वक्त का इंतज़ार कर रहा था वर्ना ये सब अचानक से शुरू नहीं होता. कोई तो था जो मौके की तलाश में था पर भूषण को अभी क्यों मारा गया जबकि ये काम कभी भी किया जा सकता था . इस गाँव में कुछ तो ऐसा चल रहा था जिसे जानने के लिए मुझे यहाँ समय बिताना जरुरी था और उसके लिए मुझे किसी का साथ चाहिए था . मैं सीधा चंदा की झोपडी जा पहुंचा. मैंने पाया की वो वहां नहीं थी , पर शायद ये मेरा अंदाजा था , झोपडी के पीछे से गुनगुनाने की आवाज आई तो मैं दबे पाँव उस तरफ चल दिया.
दीन दुनिया से बेखबर उस भरी दोपहर में चंदा पत्थर पर बैठी नहा रही थी , पूर्ण रूप से नग्न चंदा की चिकनी पीठ मेरी तरफ थी और मैं दिल थामे उस दिलकश नजारे को देख रहा था . एडियो को घिसने के बाद वो खड़ी हो गयी और पानी बदन पर गिराने लगी. न जाने क्यों मुझे उन पानी की बूंदों से रश्क होने लगा. जब चंदा अपने घुटनों पर लगी साबुन को रगड़ने के लिए झुकी तो उसका पूरा पिछवाडा मेरी आँखों के सामने आ गया . उफ्फ्फ हुस्न क्या होता है मैंने उस लमहे में जाना .
मध्यम आकार के तरबूजो जैसे उसके नितम्ब और उनके बीच में दबी हुई उसकी काली चूत, जिस पर एक भी बाल का रेशा नहीं था . मेरा तो कलेजा ही मुह को आ गया पर मैं उस नज़ारे को ज्यादा देर तक अपनी आँखों में पनाह नहीं दे पाया क्योंकि उसका नहाना खत्म हो गया था मैं बाहर की तरफ आकर बैठ गया. कुछ देर बाद वो अपने गीले बालो का पानी झाड़ते हुए आई.
“तुम यहाँ ” उसने मुझे देख कर कहा
मैं- तुमसे मिलने का मन हुआ तो चला आया.
चंदा- क्यों मन किया तुम्हारा भला
मैं- किसी ने भूषण का क़त्ल कर दिया है
मेरी बात सुनकर चंदा के चेहरे पर एक रंग आकर चला गया फिर वो धीमी आवाज में बोली- बढ़िया हुआ, उस नीच को तो बहुत पहले मर जाना चाहिए था .
पिछली मुलाकात में ही मैं जान गया था की चंदा कोई खास पसंद नहीं करती थी भूषण को पर आज मैं जान गया की वो नफरत करती थी उस से .
मैं- इतनी नफरत क्यों करती थी तुम उस से
चंदा-उसकी वजह से मुझे हवेली से निकाला गया था .
मैं- क्यों
चंदा- रुपाली ठकुराइन अटूट विश्वास करती थी मुझ पर , जमीं की धूल को उठा कर हवेली ले गयी वो , धीरे धीरे हम दोनों नौकरानी-मालकिन की जगह दोस्त सी हो गयी थी . ये बात उस भूषण को ना पसंद थी न जाने क्यों वो नहीं चाहता था की हवेली में कोई और भी आये. उसने ठाकुर शौर्य सिंह के कान भरने शुरू कर दिए , पर ठाकुर साहब ने उसकी कोई ना सुनी पर एक रात उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुलाया और .........
“और शौर्य सिंह ने तुम्हे रगड़ दिया ” मैंने उसकी बात पूरी की
चंदा कुछ नहीं बोली
मैं- अगर तुम शौर्य सिंह के बिस्तर तक जा पहुंची थी तो भूषण ने तुम्हे हवेली से निकलवा दिया ये बात झूठी साबित हो जाती है चंदा
मेरी बात सुनकर चंदा अपने बाल संवारने भूल गयी और मेरी तरफ देखने लगी.
चंदा- हवस इन लोगो के खून में दौड़ती है अर्जुन . इन लोगो के लिए कोई रिश्ता नाता मायने नहीं रखता इनको अगर कुछ चाहिए तो गर्म जिस्म जिसे ये अपनी मर्जी से जहाँ चाहे रौंद सके. ये बात पुरुषोत्तम के जन्मदिन की है, ठाकुर साहब चाहते थे की जन्म दिन मनाया जाये , जश्न ऐसा हो की सालो तक याद रखा जाये और हुआ भी ऐसा ही. सब काम निपटा कर मैं सोने ही जा रही थी की तभी किसी ने मेरा मुह दबा लिया और एक कोने में खींच लिया .
“कौन हो छोड़ो मुझे ” मैंने कहा पर उसने जैसे सुना ही नहीं उसके हाथ मेरे बदन को मसलने लगे, जिस बेबाकी से मेरे बदन को मसला जा रहा था मैं जान गयी थी की कोई ठाकुर परिवार का ही है , उसने मुझे घुटनों के बल झुकाया और अपना करने लगा पर एक बार से उसका मन नहीं भरा वो मुझे पास के कमरे में ले गया और फिर से चढ़ गया . सुबह जब मेरी आँख खुली तो हवेली में चीख पुकार मची हुई थी .हवेली के दिए बुझ गए थे.
“तुम आज तक नहीं जान पाई की वो कौन था जिसने तुम्हे चोदा उस रात ” मैंने चोदा शब्द पर जान बुझ कर जोर दिया .
चंदा- कैसे जान पाती मुझे लगा की ठाकुर के लडको में से कोई होगा पर वो तो खुद ही मर गए थे, हर किसी के मन में बस यही था की किसने ये काण्ड किया और फिर कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला ठाकुर साहब ने खून की नदिया बहा दी, रुपाली अपने कमरे में कैद होकर रह गयी .
मैं- और कामिनी उसका क्या हुआ
चंदा- कोई नहीं जानता कोई उसके बारे में कुछ कहता है कोई कुछ . रुपाली के जाने के बाद वहां जाने की वजह भी खत्म हो गयी चांदनी के पिता ने कब्ज़ा कर लिया और हवेली को अपने हाल पर छोड़ दिया गया
मैं-बताया था तुमने. वैसे तुमने कभी मालूम नहीं किया की रुपाली ठकुराइन कहाँ रहती है लंदन में
चंदा- मैं कभी शहर तक ना गयी तुम दुसरे देश का जिक्र करते हो
मैं- ऐसा कुछ जो कभी रुपाली ने तुमसे बताया हो .
चंदा- वो बस अपने पति के कातिल को तलाश करना चाहती थी .
मैं- क्या तुम मेरे साथ हवेली चलोगी
चंदा हैरान होकर मुझी देखने लगी.