• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance फ़िर से

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
अपडेट सूची :

दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पहनी पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)


अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40;
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
एक बार तो लगा जैसे edge of tomorrow फ़िल्म जैसा scene हो जाएगा, अजय सब कुछ सही करने के लिए पर्यास करेगा परंतु फिर घूम-घाम कर बात नहीं बन पायेगी और वो फिर उसी रात को जाग जाएगा और सब ठीक करने के लिए नई रणनीति पे काम करेगा। खैर ये सब फ़िल्म में ही हो सकता है इसे लिखने में तो लेखक ही थक जाएगा और पढ़ने वाले भी शायद ऊभ जायें।

उस फिल्म (और ग्राउंडहॉग डे फ़िल्म) से अलग अवधारणा है भाई इस कहानी की।
अजय एक ही दिन को बार बार नहीं जी रहा है - उसकी चेतना उसके अतीत के रूप में चली गई है।
उस चेतना को कुछ बातें याद हैं और कुछ बातें नहीं।
बहुत से लोग भाग्य के चक्कर में पड़ कर अपना कर्म करना बंद कर देते हैं - उनका कुछ नहीं होता।
प्रारब्ध - भाग्य और कर्म - बदला जा सकता है। शायद भाग्य भी। या फिर भाग्य जैसा कुछ होता ही न हो!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
स्टूडेंट का अपनी अध्यापिका से प्यार होना कोई अचरज की बात नही है । लेकिन यह प्यार नही एक क्रश होता है , एक लगाव होता है , एक सम्मोहन होता है जो बाद मे टूट जाता है ।
वैसे स्टूडेंट और टीचर के बीच अक्सर एक ऐसा अपनापन का रिश्ता बन जाता है जिसकी यादें जेहन मे हमेशा के लिए कैद हो जाती है । मै खुद अपने किसी टीचर को भूल नही पाया । इस का कारण उन सभी टीचर का मेरे प्रति खास लगाव और प्रेम ही था । मुझे आज भी याद है जब मेरे विवाह के रिसेप्शन पार्टी मे लगभग सभी टीचर्स आए थे और मुझे अपने आशिर्वाद से अनुग्रहीत किया था ।

इस सब्जेक्ट को राज कपूर साहब ने अपनी फिल्म ' मेरा नाम जोकर ' मे बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया है ।

संजू भाई - ये मसला बहुत पेचीदा है। मुझे खुद भी एक टीचर बहुत पसंद थीं।
बहुत सुन्दर और मृदुल स्वभाव वाली! जवानी के अंकुर फूटे ही थे तब।
लगता था कि यदि शादी हो, तो उनके जैसी ही कोई मिले। हा हा हा!

इस अपडेट मे , अगर थोड़ा-बहुत मजाक की बात करें तो जब टीचर या कोई मैच्योर औरत खुबसूरत है और कुछ परेशानी मे है तो लड़के वगैर निमंत्रण के उनकी मदद करने पहुंच ही जाते है । :D
खैर यह तो मजाक मे कहा पर रियल मे , अजय ने श्रद्धा मैम की मदद कर बहुत ही बढ़िया काम किया ।

अजय का शरीर युवा है लेकिन मन तो तीस वर्षीय ही है!
मदद तो करेगा ही वो!

इधर हमारे हीरो का तो पता नही पर हीरोइन ' रूचि ' की रूचि अवश्य हीरो मे दिखाई देने लगी है । अगर यह रिश्ता परवान चढ़ा तो अजय और रूचि दोनो के लिए अच्छी बात होगी ।

देखते हैं न! :)

बहुत ही खूबसूरत अपडेट अमर भाई ।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई :)
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
अपडेट 34:


अगले दिन तीनों अपने डॉक्टर की रेकमेंडेशन पर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जाते हैं अपना पूरा चेकअप करवाने। जाते समय वो अपने साथ माया को भी ले लेते हैं। अशोक जी किशोर राणा जी को भी सपरिवार साथ में चलने को कहते हैं, लेकिन वो उनको बताते हैं कि वो एक महीने में स्वयं जाने वाले हैं, और वो भी अपना पूरा चेकअप करवाएँगे। शरीर का पूरा चेकअप करवाने में समय लगता है, ख़ास कर तब जब आप एलर्जी के लिए भी टेस्ट करवा रहे हों। लिहाज़ा सब कुछ पूरा होने में लगभग सारा दिन निकल गया। उसके बाद अशोक जी अपने ऑफिस के लिए निकल गए, और अजय और किरण जी माया को राणा साहब के यहाँ छोड़ कर अपने घर आ गए।

जब वो अजय ‘वापस’ आया था, तब से उसने एक अंतर देखा था अपने शरीर में - सेक्स को ले कर प्रबल इच्छा महसूस होती थी उसको। कुछ वर्षों के खट्टे अनुभवों के कारण अजय को स्तम्भन होना ही बंद हो गया था। रागिनी जैसी ज़हरीली औरत के संग, और फिर अकारण ही जेल की सैर ने विपरीत लिंग के लिए होने वाले सहज आकर्षण भाव को लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन वापस किशोरवय होने के बाद अब वो सारे भाव वापस आ गए थे। इस उम्र में यह स्वाभाविक ही है। वयस्क अजय इन बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। अधिकतर समय वो स्वयं को नियंत्रित रखता था, लेकिन ख़ास तौर पर सुबह उठने के बाद जो स्तम्भन उसको महसूस होता, वो बिना किसी प्रयास के शांत नहीं हो पाता था। किसी किशोरवय लड़के के लिए वो प्रयास प्रायः हस्तमैथुन ही होते हैं। तो सुबह उठ कर सबसे पहला काम यही होने लगा। उसके बाद भी दिन में कई बार उसको कठोर स्तम्भन महसूस होता ही रहता - लेकिन उन पर नियंत्रण रखना अपेक्षाकृत आसान था।

लेकिन आज अस्पताल में कई बार ऐसे घटनाक्रम हुए कि घर वापस आ कर अजय को फिर से कठोर स्तम्भन महसूस हो रहा था। घटनाक्रम, जैसे कि अस्पताल में एक महिला नर्स के सामने पूर्ण नग्न होना। वो नर्स कोई ख़ास सुन्दर भी नहीं थी - लेकिन हाँ, उसका शरीर अवश्य ही स्वस्थ आकार लिए हुए था, और अच्छे अनुपात में उसके शरीर के सभी कटाव थे। उसके सामने ही जब अजय का लिंग कठोर होने लगा, तो अजय को बहुत ही लज्जा महसूस हुई। लेकिन नर्स ने मुस्कुरा कर उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और उसको समझाया कि यह एक सामान्य बात है, और वो कुछ ही समय में ‘ठीक’ हो जाएगा।

अब घर वापस आ कर अजय के मन में उस घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी, और निराशाजनक रूप से रागिनी के साथ बिताए हुए अंतरंग समय की यादें भी ताज़ा हो रही थीं।

ये ज़हरीली नागिनें इतनी सुन्दर क्यों होती हैं?

उसको आज भी याद है कि सुहाग सेज पर बैठी हुई उसकी नई-नवेली दुल्हन, रागिनी, कोई शर्माती, सकुचाती लड़की नहीं थी, बल्कि साक्षात् माया-मोहिनी थी, जिसको पहले से ही अंदाज़ा था कि उसका कौन सा लीवर दबाने से वो किस खाने जा कर बैठेगा। गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से सजी सेज पर रागिनी कोई घूँघट वूँघट काढ़े नहीं बैठी थी - उसकी साड़ी का आँचल ख़तरनाक़ तरीके से नीचे कुछ इस तरह से ढलका हुआ था कि उसकी लाल रंग की तंग ब्लाउज में से उसके स्तनों के बीच की सीधी, गहरी, और लम्बी रेखा अजय को साफ़ दिखाई दे रही थी। वो रेखा उसको ऐसे लुभा रही थी, जैसे सुधा से भरा पुष्प मधुमक्खी को लुभाता है! उसकी बड़ी बड़ी, कजरारी आँखें अजय को ही देख रही थीं... उसके होंठों पर क़ातिल मुस्कान थी। कुल मिला कर रागिनी ऐसी लग रही थी कि जैसे वो कोई प्रतिबंधित फल - forbidden fruit - हो! और जो फल प्रतिबंधित होते हैं, उनको खाने का मन भी करता है और उनको खा कर अघाया भी नहीं जा सकता है।

तो अजय ने अपने उस नव-विवाहित फल को अच्छे से खाया! सुहागरात जो शुरू हुई, वो कब सुहाग-सुबह और लगभग सुहाग-दोपहरिया बन गई, उन दोनों को पता ही न चला! पता भी कैसे चलता? रागिनी का हर अंग बड़ी फुर्सत से तराशा हुआ था ईश्वर ने! उसके स्तन ऐसे थे कि लगता था कि अगर उनको थोड़ा दबा कर पिया जाए, तो आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा उनमें से! उसके भरे भरे, रसीले होंठ ऐसे थे जिनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। उसके नितम्ब ऐसे ठोस थे, कि उनको हथेलियों से कुचल मसल कर मुलायम करने का मन होने लगे! और उसकी योनि ऐसी थी कि सृष्टि की हर बूँद से उसको भरने का मन करे।

नवविवाहित रागिनी और अजय ने वो आदि-युगीन खेल पाँच बार खेला, और खेल खेल कर पस्त हो गए। बिस्तर पर अपना खेल शुरू कर के कब दोनों ज़मीन पर आ गिरे, पता ही न चला। पूरी तरह आदिम, पूरी तरह वासना से पूर्ण खेल! एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो कर, एकदम नग्न, दीन दुनिया से बेसुध! सूरज सर पर चढ़ आने को हो आया था, लेकिन दोनों का कोई अता पता ही नहीं था... ऐसे में माँ आई थीं दोनों को जगाने। दोनों को नग्न अवस्था में एक दूसरे से लिपटा हुआ देख कर उनको बहुत संतोष हुआ। होता भी क्यों न - अपने परिवार के खुशहाल भविष्य के लिए उन्होंने क्या क्या सोचा हुआ था! माया की शादी में चूक हो गई थी, लेकिन लगता है कि कम से कम अजय का वैवाहिक जीवन सुख से रहेगा!

थके अलसाए हुए थे दोनों... लेकिन फिर भी, माँ द्वारा जगाये जाने के बाद एक बार फिर से रमण में रत हो गए। उसके बाद दोनों ने साथ में नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गए। लगातार छः सत्रों के सम्भोग के कारण दोनों के ही संवेदनशील अंगों में जलन और मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। रागिनी ने लखनवी चिकनकारी किया हुआ एक सूती शलवार कुर्ता पहना था... उसके अंदर कुछ भी नहीं। यही दशा अजय की भी थी। उसने भी एक ढीला सा सूती पजामा कुर्ता पहना हुआ था... उसके अंदर कुछ नहीं। किसी संस्कारी बहू की तरह रागिनी ने तीन बार माँ के पैर छुए! वो इतनी सी बात पर निहाल हो गईं। अजय भी इतनी सी बात पर लरज गया।

अपनी बहू की तक़लीफ़ किरण जी को समझ में आ गई थी। उन्होंने अजय को शहद की शीशी पकड़ाई और कहा कि बहू के निप्पल पर शहद लगा दे - उसको आराम मिलेगा। अजय को समझा कि शायद माँ ने अभी ही यह काम करने को कहा है। उसने आनन फ़ानन में रागिनी का कुर्ता उतार फेंका और उसके चूचकों पर शहद लगाने लगा। जो स्तन ऐसे हों जिनको देख कर ऐसा लगे कि अगर उनको थोड़ा दबा दिया जाय तो उनमें से आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा, अगर उन पर शहद जैसा मीठा रस लगा रहे हों, तो उनको पिये बिना कैसे रहा जा सकता है? अगले ही पल रागिनी के चूचक अजय के मुँह में मिठास घोलने लगे थे।

‘अरे कुछ देर के लिए रुक जा नालायक,’ माँ ने उसको एक मीठी झिड़की दी थी, ‘कुछ तो सब्र कर ले,’

उनकी इस बात पर तीनों कैसे हँसे थे! रागिनी कैसे माँ के सीने में सिमट गई थी!

केवल एक ही दिन में रागिनी ने अजय को पूरी तरह से अपने मोह-पाश में बाँध लिया था... और माँ को भी! माँ ने ढूँढा था उसको अपने लाडले के लिए... वो बहुत खुश थीं कि अजय को उनकी पसंद की हुई लड़की अच्छी लगी। उधर, अजय स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानने लगा था। न तो उसको अभी पता था कि रागिनी की असलियत क्या है, और न ही माँ को! लेकिन वो एक अलग बात थी।

इस समय समस्या यह थी कि अजय के अनुभव वयस्कों वाले थे और शरीर किशोरों का! पूरी ऊर्जा से लबरेज! दिन के अनुभवों और रागिनी की यादें... इस समय बेहद कठोर स्तम्भन था उसका और बिना उसको शांत किए अजय को चैन नहीं आने वाला था।

कमरे के साथ लगे बाथरूम में जा कर उसने अपनी पैन्ट्स और चड्ढी उतारीं, और अपने लिंग को अपनी हथेली में ले कर वो उसको सहलाने लगा। पहले धीरे धीरे और फिर थोड़ा तेजी से।

किशोरवय होने के अपने अलग ही लाभ होते हैं।

एक लाभ होता है अभूतपूर्व कामुक ऊर्जा! इतने वर्षों के बाद उसके जीवन में फिर से वो समय आया था जहाँ वो फिर से हस्तमैथुन का आनंद ले पा रहा था... इसलिए वो उस आनंद को जल्दी समाप्त नहीं होने देना चाहता था। अपने हाथ की गति को घटाते - बढ़ाते वो उस अद्भुत निस्सीम आनंद को नियंत्रित और देर तक महसूस करने लगा। लेकिन हर बात का अंत होता ही है। करीब पाँच मिनट की इस स्वयं-सेवा के बाद उसको स्खलन होने लगा और वो आँखें बंद किये, सिसकारते हुए उसका आनंद लेता रहा। फिर गहरी साँसे ले कर, स्वयं को संयत कर के उसने अपने हाथ और लिंग को सिंक में साफ़ किया और अपने कमरे में वापस आ गया।

... और कमरे में आते ही रूचि को अपने सामने खड़ा देख कर उसका चेहरा फ़क्क रह गया।

“रु...ची...” अजय हकबका कर थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला, “तुम... तुम यहाँ... क्या कर रही हो?”

“म्म्ममैं...?”

रूचि ने थोड़े समय पहले जो दृश्य देखे थे, वो अभी भी उनके कारण हतप्रभ थी। यह सब उसने आज से पहले बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। अजय को यूँ मॉस्चरबेट करते देखना रोचक भी था और डरावना भी! उत्तेजित लिंग ऐसा दिखता है, यह उसने पहली बार जाना। किताबी या कही-सुनी बात जानना अलग बात होती है, प्रैक्टिकल बात अलग!

अजय इस समय कमर के नीचे नग्न था - शायद वो रूचि की उपस्थिति के कारण उस तथ्य को भूल गया था।

“हाँ तुम... यहाँ? इस समय?”

“तुम्ही ने तो कहा था आज मिलने को,” रूचि ने कहा।

“मैंने?”

“हाँ... तुमने बताया था न कि तुम आज कॉलेज मिस करने वाले हो,” रूचि अब तक थोड़ी संयत हो चली थी - लेकिन बस, थोड़ी ही, “और छुट्टियों से पहले ही सब कुछ ‘कवर’ कर लेना चाहते हो,”

“ओह,” अजय को याद आया, “हाँ! यस, सॉरी! ... सॉरी यार!”

कहते हुए वो अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़ा।

रूचि आश्चर्यचकित थी - जो अंग कुछ ही समय पहले इमामदस्ता की मूसली जैसा कठोर और मोटा था, अब वो किसी बड़े पिल्लू जैसा मुलायम और सिकुड़ा हुआ हो गया था। करिश्माई अंग!

“ले... लेकिन तुम क्या कर रहे थे?”
 
Last edited:

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
अपडेट 35:


“आई ऍम सॉरी, रूचि,” उसने जल्दी से निक्कर पहनते हुए कहा, “दैट यू हैड टू सी दैट,”

“लेकिन वो था क्या?” इस बार रूचि ने ज़ोर दे कर पूछा।

“डोंट यू एवर फ़ील... एक्साइटेड?” अजय ने उल्टा प्रश्न पूछा।

“व्हाट?”

“तुमको कभी एक्साइटमेंट नहीं फ़ील होता? ... सेक्सुअल एक्साइटमेंट,”

“कैसी बातें कर रहे हो?” रूचि ने सकुचाते हुए कहा।

ऐसी बातें कोई किसी से कैसे कहे?

“मुझको होता है...” अजय ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “इसलिए मैं उसको शांत कर रहा था।”

“कैसे?” न जाने रूचि ने क्यों पूछ लिया।

“व्हेन माय पीनस गेट्स हार्ड, आई स्ट्रोक इट... टिल आई इजैकुलेट,”

“इजैकुलेट?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “टिल सीमन कम्स आउट ऑफ़ इट,” उसने समझाते हुए कहा।

यह बात रूचि को पता थी।

“एंड... दैट कॉम्स यू डाउन?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम कैसे करती हो?” अजय ने रूचि से पूछा।

“हट्ट! बेशर्म कहीं के... लड़कियों से ऐसी बातें करता है कोई...”

“क्यों? लड़कियाँ ह्यूमन नहीं होतीं क्या? उनमें कोई फ़ीलिंग्स नहीं होतीं?”

“हाँ हाँ... होती हैं। लेकिन ऐसे नहीं पूछा जाता उनसे कुछ!”

“क्या करती हो फिर तुम?” अजय ने कुरेदा, “हाऊ डू यू कॉम डाउन?”

“अजय... मत पूछो प्लीज़,”

“ओके! सॉरी, रूचि!”

“नहीं सॉरी वाली बात नहीं है अजय! बट इट इस नॉट समथिंग दैट वन आस्क्स अ गर्ल!”

“इसीलिए आई ऍम सॉरी,” अजय ने संजीदगी से कहा, “बोथ फॉर आस्किंग इट एंड आल्सो फॉर व्हाट यू सॉ बिफोर,”

“नहीं अजय,” रूचि बोली, “अच्छा छोड़ो ये सब! आज की क्लासेज़ डिसकस कर लें?”

“ओके!”

“एंड हू नोस...” रूचि ने थोड़ा शरमाते और थोड़ी शरारत से कहा, “आई माइसेल्फ माइट टेल यू आल अबाउट इट समटाइम,”

“ओके!”

रूचि ने कुछ कहा नहीं... बस अनिश्चित सी बैठी रही।

“क्या बात है रूचि? मन में कोई और बात भी है क्या?”

रूचि ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे का भाव बदल गया।

“क्या बात है? कह दो अब...” अजय ने कहा, “ऐसे मन में कुछ न रखो। हम दोनों अच्छे दोस्त हैं न?”

“व्वो... बात दरअसल ये है कि... कल... कल शाम... मैंने... वो... तुमको आंटी का... आंटी जी का...”

अजय ने उसको अबूझ सी नज़र से देखा और फिर मुस्कुराने लगा। इस रहस्योद्घाटन पर लज्जित होने की आवश्यकता नहीं थी। यह कोई अपराध नहीं था। यह तो अजय और माया की ख़ुशकिस्मती थी कि उन दोनों को अपनी माँ की शुद्ध ममता इस उम्र में भी मिल रही थी।

“तो तुमने मुझे माँ का दूधू पीते देख लिया?”

रूचि ने चौंक कर अजय को देखा, फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओके, देन लेट मी टेल यू एवरीथिंग,”

कह कर अजय ने अपनी दोनों माताओं की प्रेग्नेंसी, अपने ताऊ जी और माँ की मृत्यु, और उसके बाद की परिस्थितियों के बारे में बताया। यह भी कि कैसे माया दीदी के कहने पर माँ ने उन दोनों को ही स्तनपान कराना शुरू किया था, जो अभी तक चल रहा था। रूचि यह सब सुन कर आश्चर्यचकित हो गई।

“यार ये अमेज़िंग है न!”

“क्या?”

“यही कि माँ तुम दोनों की इतना प्यार करती हैं,”

रूचि ने नोटिस नहीं किया कि उसने किरण जी को ‘माँ’ कह कर सम्बोधित किया था।

“सभी की माँएँ करती हैं,”

“हाँ... लेकिन इस तरह से नहीं!” रूचि ने कहा।

“रूचि... यार... आई नो कि मेरी फ़ैमिली बाकियों से अलग है। अब देखो न, मेरी दीदी, मेरी सगी दीदी नहीं हैं... लेकिन ओनेस्टली, वो मेरी सगी दीदी से बढ़ कर है।” अजय ने ठहरते हुए बताया, “... और माँ! माँ भी मेरी सगी माँ नहीं हैं। लेकिन अपने बेटे से ज़्यादा वो मुझे प्यार करती हैं।”

“अजय, आई अंडरस्टैंड इट... ट्रस्ट मी!”

“थैंक यू, रूचि!”

रूचि ने गहरी साँस ली और बोली, “चलो, अब काम कर लें?”

“यस मैम,”

अगले तीन घण्टे तक दोनों आज जो पढ़ाया गया था, वो सब डिसकस किया और जो भी काम छुट्टियों में करने को मिले थे, वो सब निबटाए। रूचि चाहती थी कि कमल भी सब कर लेता, लेकिन अजय ने उसको समझा दिया कि वो सुनिश्चित करेगा कि कमल सब काम समय पर निबटा ले। जब दोनों को फुर्सत हुई तब तक शाम हो गई थी।

रूचि ने अपनी रिस्टवॉच को देख कर चौंकते हुए कहा, “अरे यार... ये तो बहुत देर हो गई! माँ परेशान हो रही होंगीं,”

“ओह,” अजय ने भी दीवार घड़ी में समय देख कर कहा, “हाँ... तीन घण्टे हो गए और पता ही नहीं चला,”

“चलती हूँ,”

“ओके,”

रूचि ने जल्दी जल्दी सारा सामान अपने बैग में भरा और सीढ़ियाँ उतरती हुई नीचे आ गई। अजय उसके पीछे पीछे ही चलता हुआ आ गया।

“अरे बेटा,” किरण जी ने जैसे ही रूचि को देखा वो बोलीं, “आ गए दोनों? बहुत देर तक पढ़ाई हुई आज तो!”

“जी आंटी जी, छुट्टियों में जो भी काम करने थे, सब हो गए!”

“अरे बढ़िया है फिर तो!” किरण जी ने कहा, “आओ, कुछ खाना खा लो।”

“नहीं आंटी जी,” रूचि बोली, “पहले ही बहुत देर हो गई है।”

“अरे! उस बात की चिंता न करो। ... मैंने तेरे घर में बात कर ली है। तेरी माँ ने उठाया था फ़ोन।” किरण जी ने बताया, “उनसे कह दिया है कि हम बिटिया को खाना खिला कर ही वापस भेजेंगे!”

“हा हा हा... आंटी जी! आप भी न!”

“क्यों? यहाँ का खाना पसंद नहीं है?”

“यहाँ का सब कुछ पसंद है आंटी जी, सब कुछ!” उसने बुदबुदाते हुए कहा, “सब कुछ!”


**


रूचि को उसके घर छोड़ने अजय और अशोक जी दोनों गए।

अजय अभी भी कार चलाना सीख रहा था, इसलिए अशोक जी उसको अकेले कार चलाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन वो इस बात से खुश थे कि अजय का ड्राइविंग में नियंत्रण और समझ बहुत अच्छी हो गई थी। उसका कारण उनको पता था, लेकिन फिर भी वो खुश ज़रूर थे। बेटा जब पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगता है, तब पिता की चिंता कई गुणा कम हो जाती है और अभिमान कई गुणा बढ़ जाता है।

अजय ने उनको रागिनी के बारे में बताया हुआ था। ऐसे में अजय के जीवन में रूचि के आने की उम्मीद से अब उनको उसके भविष्य के बारे में भी कम चिंता होने लगी थी।

“बेटा,” अशोक जी बोले, “राणा भाई साहब के घर के जैसे ही मेरा भी मन हो रहा है कि हमारे यहाँ भी अच्छा माहौल बने। पूजा पाठ हो... स्वस्थ माहौल हो।”

“बिल्कुल पापा,” अजय बोला, “आप सही कह रहे हैं।”

“और अब इस त्यौहार से बेहतर समय क्या हो सकता है यह शुरू करने का!”

“जी पापा! क्यों न इस बार हवन करवाएँ...”

“हाँ, वो भी... तुमको गाँव गए हुए कितना समय हो गया?”

“पता नहीं पापा... शायद... दस साल?”

“हम्म...”

“क्यों? क्या हुआ पापा?”

“कुछ नहीं। ऐसे ही पूछा,” वो बोले, फिर बात बदलते हुए बोले, “वैसे, आई ऍम हैप्पी कि तुम और रूचि साथ में टाइम बिताते हो...”

“पापा!”

“अरे, क्या हो गया? इतनी अच्छी लड़की है वो!” अशोक जी बोले, “मुझे बहुत अच्छी लगती है वो... भाभी को भी,”

अजय मुस्कुराया।

“तुम दोनों सेम यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई करो।” अशोक जी ने सुझाया, “आई विल पे फ़ॉर ट्यूशन... फॉर बोथ ऑफ़ यू,”

“क्यों पापा?” अजय बोला, “मैं तो स्कॉलरशिप ले कर जाना चाहता हूँ... रूचि भी!”

“फैंटास्टिक! तो अगर फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती है, तो जो डिफरेंस रहेगा, मैं दूँगा!”

“और रूचि के पेरेंट्स क्या कहेंगे? आप किस हक़ से उसकी पढ़ाई का ख़र्च देना चाहते हैं?”

“अरे! क्या गलत है अपनी बहू की पढ़ाई पर ख़र्च करने में?”

“बहू! हा हा हा हा हा! पापा!! आप भी न!”

“हा हा हा... देखो बेटे, बिटिया जाने वाली है, तो मन में अलग तरह के विचार आने लगते हैं न... एक बिटिया जाए, तो दूसरी आये!”

“पापा, लेकिन पैट्रिशिया भाभी तो आ ही रही हैं न,”

“हाँ, बात सही है... लेकिन वो अमेरिका में आ रही है।”

अजय मुस्कुराया।

“कभी कभी प्रशांत से निराशा होती है।”

“डोंट वरी पापा, सब ठीक होगा।”

“नहीं नहीं... वो नहीं। मन करता है न कि वो भी यहाँ होता। साथ में हमारे!”

“हम्म्म... आई नो पापा!” अजय बोला, “लेकिन भैया का भी सोचना चाहिए न? उनकी लाइफ... उनका कैरियर... और फिर अमेरिका एक अच्छा देश है।”

“तुम भी यहाँ नहीं रहना चाहते?”

“नहीं पापा। मैं तो आपके और माँ के पास ही रहना चाहता हूँ। आप दोनों जहाँ होंगे, वहीं मैं भी रहूँगा!”

“और रूचि?”

“मतलब?”

“मतलब, वो कहाँ रहना चाहती है?”

“इतनी बात नहीं हुई है पापा।”

“तुमको पसंद तो है न वो?”

“अच्छी लड़की है वो पापा,” अजय बोला, “लेकिन... उसको ले कर कोई रोमांटिक थॉट्स नहीं हैं...”

“मतलब वो तुमको अट्रैक्ट नहीं करती?”

“अच्छी लगती है पापा, लेकिन... लेकिन न जाने किस बात को ले कर मन में दुविधा है!”

“क्यों?”

“पता नहीं पापा,”

“कोई और पसंद है?”

“पापा!”

“अरे क्या पापा! और तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो। कोई पसंद हो तो बताओ,”

“पसंद तो है,”

“कौन?”

“मेरी टीचर है पापा,”

“डू आई नो हर?”

“शायद मिले हों,” अजय थोड़ा रुक कर बोला, “पापा, आई ऍम नॉट सेइंग कि मुझे उनसे शादी करनी है... लेकिन मुझे वो अच्छी लगती हैं।”

“हाँ हाँ... नाम तो बताओ?”

“शशि... शशि सिंह!”

“शशि... हम्म्म... मैथ्स टीचर न?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“यार,” अशोक जी ने हँसते हुए कहा, “तेरी टीचर से कैसे बात चलाएँ? आई मीन सही तो रहेगी, लेकिन उसको सच भी तो नहीं बता सकते!”

“पापा!”

“हम ये सोच रहे थे कि अपने बेटे के लिए प्यारी सी लड़की लाएँगे... और हमारे बेटे को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म बनानी है!” अशोक जी ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा हा हा!” उनकी बात पर अजय ठहाके मार कर हँसने लगा, “पापा! मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे शशि मैम से शादी करनी है। मैं बस ये कह रहा हूँ कि मुझे उनकी क़्वालिटीज़ वाली लड़की चाहिए!”

“रूचि कैसी है? उसमें कैसी क्वालिटीज़ हैं?”

“आई थिंक शी इस बेटर!”

“देयर यू गो!” अशोक जी बोले, “फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है! ... रूचि में मन लगाओ न!”

अजय ने एक फ़ीकी सी मुस्कान दी।

“नहीं सच में! अगर तुम इंटरेस्टेड हो, तो जैसे माया बिटिया के साथ किया था... मैं और भाभी जा कर रूचि बिटिया के पैरेंट्स से बात कर लेंगे।” अशोक जी ने उत्साह से कहा, “सारी प्रॉब्लम ही ख़तम हो जाएगी!”

**
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
4,233
23,683
159
  • Like
Reactions: parkas

dhparikh

Well-Known Member
10,681
12,315
228
अपडेट 34:


अगले दिन तीनों अपने डॉक्टर की रेकमेंडेशन पर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जाते हैं अपना पूरा चेकअप करवाने। जाते समय वो अपने साथ माया को भी ले लेते हैं। अशोक जी किशोर राणा जी को भी सपरिवार साथ में चलने को कहते हैं, लेकिन वो उनको बताते हैं कि वो एक महीने में स्वयं जाने वाले हैं, और वो भी अपना पूरा चेकअप करवाएँगे। शरीर का पूरा चेकअप करवाने में समय लगता है, ख़ास कर तब जब आप एलर्जी के लिए भी टेस्ट करवा रहे हों। लिहाज़ा सब कुछ पूरा होने में लगभग सारा दिन निकल गया। उसके बाद अशोक जी अपने ऑफिस के लिए निकल गए, और अजय और किरण जी माया को राणा साहब के यहाँ छोड़ कर अपने घर आ गए।

जब वो अजय ‘वापस’ आया था, तब से उसने एक अंतर देखा था अपने शरीर में - सेक्स को ले कर प्रबल इच्छा महसूस होती थी उसको। कुछ वर्षों के खट्टे अनुभवों के कारण अजय को स्तम्भन होना ही बंद हो गया था। रागिनी जैसी ज़हरीली औरत के संग, और फिर अकारण ही जेल की सैर ने विपरीत लिंग के लिए होने वाले सहज आकर्षण भाव को लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन वापस किशोरवय होने के बाद अब वो सारे भाव वापस आ गए थे। इस उम्र में यह स्वाभाविक ही है। वयस्क अजय इन बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। अधिकतर समय वो स्वयं को नियंत्रित रखता था, लेकिन ख़ास तौर पर सुबह उठने के बाद जो स्तम्भन उसको महसूस होता, वो बिना किसी प्रयास के शांत नहीं हो पाता था। किसी किशोरवय लड़के के लिए वो प्रयास प्रायः हस्तमैथुन ही होते हैं। तो सुबह उठ कर सबसे पहला काम यही होने लगा। उसके बाद भी दिन में कई बार उसको कठोर स्तम्भन महसूस होता ही रहता - लेकिन उन पर नियंत्रण रखना अपेक्षाकृत आसान था।

लेकिन आज अस्पताल में कई बार ऐसे घटनाक्रम हुए कि घर वापस आ कर अजय को फिर से कठोर स्तम्भन महसूस हो रहा था। घटनाक्रम, जैसे कि अस्पताल में एक महिला नर्स के सामने पूर्ण नग्न होना। वो नर्स कोई ख़ास सुन्दर भी नहीं थी - लेकिन हाँ, उसका शरीर अवश्य ही स्वस्थ आकार लिए हुए था, और अच्छे अनुपात में उसके शरीर के सभी कटाव थे। उसके सामने ही जब अजय का लिंग कठोर होने लगा, तो अजय को बहुत ही लज्जा महसूस हुई। लेकिन नर्स ने मुस्कुरा कर उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और उसको समझाया कि यह एक सामान्य बात है, और वो कुछ ही समय में ‘ठीक’ हो जाएगा।

अब घर वापस आ कर अजय के मन में उस घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी, और निराशाजनक रूप से रागिनी के साथ बिताए हुए अंतरंग समय की यादें भी ताज़ा हो रही थीं।

ये ज़हरीली नागिनें इतनी सुन्दर क्यों होती हैं?

उसको आज भी याद है कि सुहाग सेज पर बैठी हुई उसकी नई-नवेली दुल्हन, रागिनी, कोई शर्माती, सकुचाती लड़की नहीं थी, बल्कि साक्षात् माया-मोहिनी थी, जिसको पहले से ही अंदाज़ा था कि उसका कौन सा लीवर दबाने से वो किस खाने जा कर बैठेगा। गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से सजी सेज पर रागिनी कोई घूँघट वूँघट काढ़े नहीं बैठी थी - उसकी साड़ी का आँचल ख़तरनाक़ तरीके से नीचे कुछ इस तरह से ढलका हुआ था कि उसकी लाल रंग की तंग ब्लाउज में से उसके स्तनों के बीच की सीधी, गहरी, और लम्बी रेखा अजय को साफ़ दिखाई दे रही थी। वो रेखा उसको ऐसे लुभा रही थी, जैसे सुधा से भरा पुष्प मधुमक्खी को लुभाता है! उसकी बड़ी बड़ी, कजरारी आँखें अजय को ही देख रही थीं... उसके होंठों पर क़ातिल मुस्कान थी। कुल मिला कर रागिनी ऐसी लग रही थी कि जैसे वो कोई प्रतिबंधित फल - forbidden fruit - हो! और जो फल प्रतिबंधित होते हैं, उनको खाने का मन भी करता है और उनको खा कर अघाया भी नहीं जा सकता है।

तो अजय ने अपने उस नव-विवाहित फल को अच्छे से खाया! सुहागरात जो शुरू हुई, वो कब सुहाग-सुबह और लगभग सुहाग-दोपहरिया बन गई, उन दोनों को पता ही न चला! पता भी कैसे चलता? रागिनी का हर अंग बड़ी फुर्सत से तराशा हुआ था ईश्वर ने! उसके स्तन ऐसे थे कि लगता था कि अगर उनको थोड़ा दबा कर पिया जाए, तो आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा उनमें से! उसके भरे भरे, रसीले होंठ ऐसे थे जिनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। उसके नितम्ब ऐसे ठोस थे, कि उनको हथेलियों से कुचल मसल कर मुलायम करने का मन होने लगे! और उसकी योनि ऐसी थी कि सृष्टि की हर बूँद से उसको भरने का मन करे।

नवविवाहित रागिनी और अजय ने वो आदि-युगीन खेल पाँच बार खेला, और खेल खेल कर पस्त हो गए। बिस्तर पर अपना खेल शुरू कर के कब दोनों ज़मीन पर आ गिरे, पता ही न चला। पूरी तरह आदिम, पूरी तरह वासना से पूर्ण खेल! एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो कर, एकदम नग्न, दीन दुनिया से बेसुध! सूरज सर पर चढ़ आने को हो आया था, लेकिन दोनों का कोई अता पता ही नहीं था... ऐसे में माँ आई थीं दोनों को जगाने। दोनों को नग्न अवस्था में एक दूसरे से लिपटा हुआ देख कर उनको बहुत संतोष हुआ। होता भी क्यों न - अपने परिवार के खुशहाल भविष्य के लिए उन्होंने क्या क्या सोचा हुआ था! माया की शादी में चूक हो गई थी, लेकिन लगता है कि कम से कम अजय का वैवाहिक जीवन सुख से रहेगा!

थके अलसाए हुए थे दोनों... लेकिन फिर भी, माँ द्वारा जगाये जाने के बाद एक बार फिर से रमण में रत हो गए। उसके बाद दोनों ने साथ में नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गए। लगातार छः सत्रों के सम्भोग के कारण दोनों के ही संवेदनशील अंगों में जलन और मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। रागिनी ने लखनवी चिकनकारी किया हुआ एक सूती शलवार कुर्ता पहना था... उसके अंदर कुछ भी नहीं। यही दशा अजय की भी थी। उसने भी एक ढीला सा सूती पजामा कुर्ता पहना हुआ था... उसके अंदर कुछ नहीं। किसी संस्कारी बहू की तरह रागिनी ने तीन बार माँ के पैर छुए! वो इतनी सी बात पर निहाल हो गईं। अजय भी इतनी सी बात पर लरज गया।

अपनी बहू की तक़लीफ़ किरण जी को समझ में आ गई थी। उन्होंने अजय को शहद की शीशी पकड़ाई और कहा कि बहू के निप्पल पर शहद लगा दे - उसको आराम मिलेगा। अजय को समझा कि शायद माँ ने अभी ही यह काम करने को कहा है। उसने आनन फ़ानन में रागिनी का कुर्ता उतार फेंका और उसके चूचकों पर शहद लगाने लगा। जो स्तन ऐसे हों जिनको देख कर ऐसा लगे कि अगर उनको थोड़ा दबा दिया जाय तो उनमें से आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा, अगर उन पर शहद जैसा मीठा रस लगा रहे हों, तो उनको पिये बिना कैसे रहा जा सकता है? अगले ही पल रागिनी के चूचक अजय के मुँह में मिठास घोलने लगे थे।

‘अरे कुछ देर के लिए रुक जा नालायक,’ माँ ने उसको एक मीठी झिड़की दी थी, ‘कुछ तो सब्र कर ले,’

उनकी इस बात पर तीनों कैसे हँसे थे! रागिनी कैसे माँ के सीने में सिमट गई थी!

केवल एक ही दिन में रागिनी ने अजय को पूरी तरह से अपने मोह-पाश में बाँध लिया था... और माँ को भी! माँ ने ढूँढा था उसको अपने लाडले के लिए... वो बहुत खुश थीं कि अजय को उनकी पसंद की हुई लड़की अच्छी लगी। उधर, अजय स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानने लगा था। न तो उसको अभी पता था कि रागिनी की असलियत क्या है, और न ही माँ को! लेकिन वो एक अलग बात थी।

इस समय समस्या यह थी कि अजय के अनुभव वयस्कों वाले थे और शरीर किशोरों का! पूरी ऊर्जा से लबरेज! दिन के अनुभवों और रागिनी की यादें... इस समय बेहद कठोर स्तम्भन था उसका और बिना उसको शांत किए अजय को चैन नहीं आने वाला था।

कमरे के साथ लगे बाथरूम में जा कर उसने अपनी पैन्ट्स और चड्ढी उतारीं, और अपने लिंग को अपनी हथेली में ले कर वो उसको सहलाने लगा। पहले धीरे धीरे और फिर थोड़ा तेजी से।

किशोरवय होने के अपने अलग ही लाभ होते हैं।

एक लाभ होता है अभूतपूर्व कामुक ऊर्जा! इतने वर्षों के बाद उसके जीवन में फिर से वो समय आया था जहाँ वो फिर से हस्तमैथुन का आनंद ले पा रहा था... इसलिए वो उस आनंद को जल्दी समाप्त नहीं होने देना चाहता था। अपने हाथ की गति को घटाते - बढ़ाते वो उस अद्भुत निस्सीम आनंद को नियंत्रित और देर तक महसूस करने लगा। लेकिन हर बात का अंत होता ही है। करीब पाँच मिनट की इस स्वयं-सेवा के बाद उसको स्खलन होने लगा और वो आँखें बंद किये, सिसकारते हुए उसका आनंद लेता रहा। फिर गहरी साँसे ले कर, स्वयं को संयत कर के उसने अपने हाथ और लिंग को सिंक में साफ़ किया और अपने कमरे में वापस आ गया।

... और कमरे में आते ही रूचि को अपने सामने खड़ा देख कर उसका चेहरा फ़क्क रह गया।

“रु...ची...” अजय हकबका कर थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला, “तुम... तुम यहाँ... क्या कर रही हो?”

“म्म्ममैं...?”

रूचि ने थोड़े समय पहले जो दृश्य देखे थे, वो अभी भी उनके कारण हतप्रभ थी। यह सब उसने आज से पहले बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। अजय को यूँ मॉस्चरबेट करते देखना रोचक भी था और डरावना भी! उत्तेजित लिंग ऐसा दिखता है, यह उसने पहली बार जाना। किताबी या कही-सुनी बात जानना अलग बात होती है, प्रैक्टिकल बात अलग!

अजय इस समय कमर के नीचे नग्न था - शायद वो रूचि की उपस्थिति के कारण उस तथ्य को भूल गया था।

“हाँ तुम... यहाँ? इस समय?”

“तुम्ही ने तो कहा था आज मिलने को,” रूचि ने कहा।

“मैंने?”

“हाँ... तुमने बताया था न कि तुम आज कॉलेज मिस करने वाले हो,” रूचि अब तक थोड़ी संयत हो चली थी - लेकिन बस, थोड़ी ही, “और छुट्टियों से पहले ही सब कुछ ‘कवर’ कर लेना चाहते हो,”

“ओह,” अजय को याद आया, “हाँ! यस, सॉरी! ... सॉरी यार!”

कहते हुए वो अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़ा।

रूचि आश्चर्यचकित थी - जो अंग कुछ ही समय पहले इमामदस्ता की मूसली जैसा कठोर और मोटा था, अब वो किसी बड़े पिल्लू जैसा मुलायम और सिकुड़ा हुआ हो गया था। करिश्माई अंग!

“ले... लेकिन तुम क्या कर रहे थे?”
Nice update....
 
  • Like
Reactions: avsji

dhparikh

Well-Known Member
10,681
12,315
228
अपडेट 35:


“आई ऍम सॉरी, रूचि,” उसने जल्दी से निक्कर पहनते हुए कहा, “दैट यू हैड टू सी दैट,”

“लेकिन वो था क्या?” इस बार रूचि ने ज़ोर दे कर पूछा।

“डोंट यू एवर फ़ील... एक्साइटेड?” अजय ने उल्टा प्रश्न पूछा।

“व्हाट?”

“तुमको कभी एक्साइटमेंट नहीं फ़ील होता? ... सेक्सुअल एक्साइटमेंट,”

“कैसी बातें कर रहे हो?” रूचि ने सकुचाते हुए कहा।

ऐसी बातें कोई किसी से कैसे कहे?

“मुझको होता है...” अजय ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “इसलिए मैं उसको शांत कर रहा था।”

“कैसे?” न जाने रूचि ने क्यों पूछ लिया।

“व्हेन माय पीनस गेट्स हार्ड, आई स्ट्रोक इट... टिल आई इजैकुलेट,”

“इजैकुलेट?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “टिल सीमन कम्स आउट ऑफ़ इट,” उसने समझाते हुए कहा।

यह बात रूचि को पता थी।

“एंड... दैट कॉम्स यू डाउन?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम कैसे करती हो?” अजय ने रूचि से पूछा।

“हट्ट! बेशर्म कहीं के... लड़कियों से ऐसी बातें करता है कोई...”

“क्यों? लड़कियाँ ह्यूमन नहीं होतीं क्या? उनमें कोई फ़ीलिंग्स नहीं होतीं?”

“हाँ हाँ... होती हैं। लेकिन ऐसे नहीं पूछा जाता उनसे कुछ!”

“क्या करती हो फिर तुम?” अजय ने कुरेदा, “हाऊ डू यू कॉम डाउन?”

“अजय... मत पूछो प्लीज़,”

“ओके! सॉरी, रूचि!”

“नहीं सॉरी वाली बात नहीं है अजय! बट इट इस नॉट समथिंग दैट वन आस्क्स अ गर्ल!”

“इसीलिए आई ऍम सॉरी,” अजय ने संजीदगी से कहा, “बोथ फॉर आस्किंग इट एंड आल्सो फॉर व्हाट यू सॉ बिफोर,”

“नहीं अजय,” रूचि बोली, “अच्छा छोड़ो ये सब! आज की क्लासेज़ डिसकस कर लें?”

“ओके!”

“एंड हू नोस...” रूचि ने थोड़ा शरमाते और थोड़ी शरारत से कहा, “आई माइसेल्फ माइट टेल यू आल अबाउट इट समटाइम,”

“ओके!”

रूचि ने कुछ कहा नहीं... बस अनिश्चित सी बैठी रही।

“क्या बात है रूचि? मन में कोई और बात भी है क्या?”

रूचि ने अभी भी कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके चेहरे का भाव बदल गया।

“क्या बात है? कह दो अब...” अजय ने कहा, “ऐसे मन में कुछ न रखो। हम दोनों अच्छे दोस्त हैं न?”

“व्वो... बात दरअसल ये है कि... कल... कल शाम... मैंने... वो... तुमको आंटी का... आंटी जी का...”

अजय ने उसको अबूझ सी नज़र से देखा और फिर मुस्कुराने लगा। इस रहस्योद्घाटन पर लज्जित होने की आवश्यकता नहीं थी। यह कोई अपराध नहीं था। यह तो अजय और माया की ख़ुशकिस्मती थी कि उन दोनों को अपनी माँ की शुद्ध ममता इस उम्र में भी मिल रही थी।

“तो तुमने मुझे माँ का दूधू पीते देख लिया?”

रूचि ने चौंक कर अजय को देखा, फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“ओके, देन लेट मी टेल यू एवरीथिंग,”

कह कर अजय ने अपनी दोनों माताओं की प्रेग्नेंसी, अपने ताऊ जी और माँ की मृत्यु, और उसके बाद की परिस्थितियों के बारे में बताया। यह भी कि कैसे माया दीदी के कहने पर माँ ने उन दोनों को ही स्तनपान कराना शुरू किया था, जो अभी तक चल रहा था। रूचि यह सब सुन कर आश्चर्यचकित हो गई।

“यार ये अमेज़िंग है न!”

“क्या?”

“यही कि माँ तुम दोनों की इतना प्यार करती हैं,”

रूचि ने नोटिस नहीं किया कि उसने किरण जी को ‘माँ’ कह कर सम्बोधित किया था।

“सभी की माँएँ करती हैं,”

“हाँ... लेकिन इस तरह से नहीं!” रूचि ने कहा।

“रूचि... यार... आई नो कि मेरी फ़ैमिली बाकियों से अलग है। अब देखो न, मेरी दीदी, मेरी सगी दीदी नहीं हैं... लेकिन ओनेस्टली, वो मेरी सगी दीदी से बढ़ कर है।” अजय ने ठहरते हुए बताया, “... और माँ! माँ भी मेरी सगी माँ नहीं हैं। लेकिन अपने बेटे से ज़्यादा वो मुझे प्यार करती हैं।”

“अजय, आई अंडरस्टैंड इट... ट्रस्ट मी!”

“थैंक यू, रूचि!”

रूचि ने गहरी साँस ली और बोली, “चलो, अब काम कर लें?”

“यस मैम,”

अगले तीन घण्टे तक दोनों आज जो पढ़ाया गया था, वो सब डिसकस किया और जो भी काम छुट्टियों में करने को मिले थे, वो सब निबटाए। रूचि चाहती थी कि कमल भी सब कर लेता, लेकिन अजय ने उसको समझा दिया कि वो सुनिश्चित करेगा कि कमल सब काम समय पर निबटा ले। जब दोनों को फुर्सत हुई तब तक शाम हो गई थी।

रूचि ने अपनी रिस्टवॉच को देख कर चौंकते हुए कहा, “अरे यार... ये तो बहुत देर हो गई! माँ परेशान हो रही होंगीं,”

“ओह,” अजय ने भी दीवार घड़ी में समय देख कर कहा, “हाँ... तीन घण्टे हो गए और पता ही नहीं चला,”

“चलती हूँ,”

“ओके,”

रूचि ने जल्दी जल्दी सारा सामान अपने बैग में भरा और सीढ़ियाँ उतरती हुई नीचे आ गई। अजय उसके पीछे पीछे ही चलता हुआ आ गया।

“अरे बेटा,” किरण जी ने जैसे ही रूचि को देखा वो बोलीं, “आ गए दोनों? बहुत देर तक पढ़ाई हुई आज तो!”

“जी आंटी जी, छुट्टियों में जो भी काम करने थे, सब हो गए!”

“अरे बढ़िया है फिर तो!” किरण जी ने कहा, “आओ, कुछ खाना खा लो।”

“नहीं आंटी जी,” रूचि बोली, “पहले ही बहुत देर हो गई है।”

“अरे! उस बात की चिंता न करो। ... मैंने तेरे घर में बात कर ली है। तेरी माँ ने उठाया था फ़ोन।” किरण जी ने बताया, “उनसे कह दिया है कि हम बिटिया को खाना खिला कर ही वापस भेजेंगे!”

“हा हा हा... आंटी जी! आप भी न!”

“क्यों? यहाँ का खाना पसंद नहीं है?”

“यहाँ का सब कुछ पसंद है आंटी जी, सब कुछ!” उसने बुदबुदाते हुए कहा, “सब कुछ!”


**


रूचि को उसके घर छोड़ने अजय और अशोक जी दोनों गए।

अजय अभी भी कार चलाना सीख रहा था, इसलिए अशोक जी उसको अकेले कार चलाने नहीं देना चाहते थे। लेकिन वो इस बात से खुश थे कि अजय का ड्राइविंग में नियंत्रण और समझ बहुत अच्छी हो गई थी। उसका कारण उनको पता था, लेकिन फिर भी वो खुश ज़रूर थे। बेटा जब पुरुषों जैसा व्यवहार करने लगता है, तब पिता की चिंता कई गुणा कम हो जाती है और अभिमान कई गुणा बढ़ जाता है।

अजय ने उनको रागिनी के बारे में बताया हुआ था। ऐसे में अजय के जीवन में रूचि के आने की उम्मीद से अब उनको उसके भविष्य के बारे में भी कम चिंता होने लगी थी।

“बेटा,” अशोक जी बोले, “राणा भाई साहब के घर के जैसे ही मेरा भी मन हो रहा है कि हमारे यहाँ भी अच्छा माहौल बने। पूजा पाठ हो... स्वस्थ माहौल हो।”

“बिल्कुल पापा,” अजय बोला, “आप सही कह रहे हैं।”

“और अब इस त्यौहार से बेहतर समय क्या हो सकता है यह शुरू करने का!”

“जी पापा! क्यों न इस बार हवन करवाएँ...”

“हाँ, वो भी... तुमको गाँव गए हुए कितना समय हो गया?”

“पता नहीं पापा... शायद... दस साल?”

“हम्म...”

“क्यों? क्या हुआ पापा?”

“कुछ नहीं। ऐसे ही पूछा,” वो बोले, फिर बात बदलते हुए बोले, “वैसे, आई ऍम हैप्पी कि तुम और रूचि साथ में टाइम बिताते हो...”

“पापा!”

“अरे, क्या हो गया? इतनी अच्छी लड़की है वो!” अशोक जी बोले, “मुझे बहुत अच्छी लगती है वो... भाभी को भी,”

अजय मुस्कुराया।

“तुम दोनों सेम यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई करो।” अशोक जी ने सुझाया, “आई विल पे फ़ॉर ट्यूशन... फॉर बोथ ऑफ़ यू,”

“क्यों पापा?” अजय बोला, “मैं तो स्कॉलरशिप ले कर जाना चाहता हूँ... रूचि भी!”

“फैंटास्टिक! तो अगर फुल स्कॉलरशिप नहीं मिलती है, तो जो डिफरेंस रहेगा, मैं दूँगा!”

“और रूचि के पेरेंट्स क्या कहेंगे? आप किस हक़ से उसकी पढ़ाई का ख़र्च देना चाहते हैं?”

“अरे! क्या गलत है अपनी बहू की पढ़ाई पर ख़र्च करने में?”

“बहू! हा हा हा हा हा! पापा!! आप भी न!”

“हा हा हा... देखो बेटे, बिटिया जाने वाली है, तो मन में अलग तरह के विचार आने लगते हैं न... एक बिटिया जाए, तो दूसरी आये!”

“पापा, लेकिन पैट्रिशिया भाभी तो आ ही रही हैं न,”

“हाँ, बात सही है... लेकिन वो अमेरिका में आ रही है।”

अजय मुस्कुराया।

“कभी कभी प्रशांत से निराशा होती है।”

“डोंट वरी पापा, सब ठीक होगा।”

“नहीं नहीं... वो नहीं। मन करता है न कि वो भी यहाँ होता। साथ में हमारे!”

“हम्म्म... आई नो पापा!” अजय बोला, “लेकिन भैया का भी सोचना चाहिए न? उनकी लाइफ... उनका कैरियर... और फिर अमेरिका एक अच्छा देश है।”

“तुम भी यहाँ नहीं रहना चाहते?”

“नहीं पापा। मैं तो आपके और माँ के पास ही रहना चाहता हूँ। आप दोनों जहाँ होंगे, वहीं मैं भी रहूँगा!”

“और रूचि?”

“मतलब?”

“मतलब, वो कहाँ रहना चाहती है?”

“इतनी बात नहीं हुई है पापा।”

“तुमको पसंद तो है न वो?”

“अच्छी लड़की है वो पापा,” अजय बोला, “लेकिन... उसको ले कर कोई रोमांटिक थॉट्स नहीं हैं...”

“मतलब वो तुमको अट्रैक्ट नहीं करती?”

“अच्छी लगती है पापा, लेकिन... लेकिन न जाने किस बात को ले कर मन में दुविधा है!”

“क्यों?”

“पता नहीं पापा,”

“कोई और पसंद है?”

“पापा!”

“अरे क्या पापा! और तुम कोई छोटे बच्चे तो नहीं हो। कोई पसंद हो तो बताओ,”

“पसंद तो है,”

“कौन?”

“मेरी टीचर है पापा,”

“डू आई नो हर?”

“शायद मिले हों,” अजय थोड़ा रुक कर बोला, “पापा, आई ऍम नॉट सेइंग कि मुझे उनसे शादी करनी है... लेकिन मुझे वो अच्छी लगती हैं।”

“हाँ हाँ... नाम तो बताओ?”

“शशि... शशि सिंह!”

“शशि... हम्म्म... मैथ्स टीचर न?”

अजय ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“यार,” अशोक जी ने हँसते हुए कहा, “तेरी टीचर से कैसे बात चलाएँ? आई मीन सही तो रहेगी, लेकिन उसको सच भी तो नहीं बता सकते!”

“पापा!”

“हम ये सोच रहे थे कि अपने बेटे के लिए प्यारी सी लड़की लाएँगे... और हमारे बेटे को ‘मेरा नाम जोकर’ फ़िल्म बनानी है!” अशोक जी ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा हा हा!” उनकी बात पर अजय ठहाके मार कर हँसने लगा, “पापा! मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे शशि मैम से शादी करनी है। मैं बस ये कह रहा हूँ कि मुझे उनकी क़्वालिटीज़ वाली लड़की चाहिए!”

“रूचि कैसी है? उसमें कैसी क्वालिटीज़ हैं?”

“आई थिंक शी इस बेटर!”

“देयर यू गो!” अशोक जी बोले, “फिर तो कोई प्रॉब्लम ही नहीं है! ... रूचि में मन लगाओ न!”

अजय ने एक फ़ीकी सी मुस्कान दी।

“नहीं सच में! अगर तुम इंटरेस्टेड हो, तो जैसे माया बिटिया के साथ किया था... मैं और भाभी जा कर रूचि बिटिया के पैरेंट्स से बात कर लेंगे।” अशोक जी ने उत्साह से कहा, “सारी प्रॉब्लम ही ख़तम हो जाएगी!”

**
Nice update....
 
  • Like
Reactions: avsji

parkas

Well-Known Member
28,697
63,158
303
अपडेट 34:


अगले दिन तीनों अपने डॉक्टर की रेकमेंडेशन पर दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जाते हैं अपना पूरा चेकअप करवाने। जाते समय वो अपने साथ माया को भी ले लेते हैं। अशोक जी किशोर राणा जी को भी सपरिवार साथ में चलने को कहते हैं, लेकिन वो उनको बताते हैं कि वो एक महीने में स्वयं जाने वाले हैं, और वो भी अपना पूरा चेकअप करवाएँगे। शरीर का पूरा चेकअप करवाने में समय लगता है, ख़ास कर तब जब आप एलर्जी के लिए भी टेस्ट करवा रहे हों। लिहाज़ा सब कुछ पूरा होने में लगभग सारा दिन निकल गया। उसके बाद अशोक जी अपने ऑफिस के लिए निकल गए, और अजय और किरण जी माया को राणा साहब के यहाँ छोड़ कर अपने घर आ गए।

जब वो अजय ‘वापस’ आया था, तब से उसने एक अंतर देखा था अपने शरीर में - सेक्स को ले कर प्रबल इच्छा महसूस होती थी उसको। कुछ वर्षों के खट्टे अनुभवों के कारण अजय को स्तम्भन होना ही बंद हो गया था। रागिनी जैसी ज़हरीली औरत के संग, और फिर अकारण ही जेल की सैर ने विपरीत लिंग के लिए होने वाले सहज आकर्षण भाव को लगभग समाप्त कर दिया था। लेकिन वापस किशोरवय होने के बाद अब वो सारे भाव वापस आ गए थे। इस उम्र में यह स्वाभाविक ही है। वयस्क अजय इन बातों से अच्छी तरह से वाक़िफ़ था। अधिकतर समय वो स्वयं को नियंत्रित रखता था, लेकिन ख़ास तौर पर सुबह उठने के बाद जो स्तम्भन उसको महसूस होता, वो बिना किसी प्रयास के शांत नहीं हो पाता था। किसी किशोरवय लड़के के लिए वो प्रयास प्रायः हस्तमैथुन ही होते हैं। तो सुबह उठ कर सबसे पहला काम यही होने लगा। उसके बाद भी दिन में कई बार उसको कठोर स्तम्भन महसूस होता ही रहता - लेकिन उन पर नियंत्रण रखना अपेक्षाकृत आसान था।

लेकिन आज अस्पताल में कई बार ऐसे घटनाक्रम हुए कि घर वापस आ कर अजय को फिर से कठोर स्तम्भन महसूस हो रहा था। घटनाक्रम, जैसे कि अस्पताल में एक महिला नर्स के सामने पूर्ण नग्न होना। वो नर्स कोई ख़ास सुन्दर भी नहीं थी - लेकिन हाँ, उसका शरीर अवश्य ही स्वस्थ आकार लिए हुए था, और अच्छे अनुपात में उसके शरीर के सभी कटाव थे। उसके सामने ही जब अजय का लिंग कठोर होने लगा, तो अजय को बहुत ही लज्जा महसूस हुई। लेकिन नर्स ने मुस्कुरा कर उस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया और उसको समझाया कि यह एक सामान्य बात है, और वो कुछ ही समय में ‘ठीक’ हो जाएगा।

अब घर वापस आ कर अजय के मन में उस घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी, और निराशाजनक रूप से रागिनी के साथ बिताए हुए अंतरंग समय की यादें भी ताज़ा हो रही थीं।

ये ज़हरीली नागिनें इतनी सुन्दर क्यों होती हैं?

उसको आज भी याद है कि सुहाग सेज पर बैठी हुई उसकी नई-नवेली दुल्हन, रागिनी, कोई शर्माती, सकुचाती लड़की नहीं थी, बल्कि साक्षात् माया-मोहिनी थी, जिसको पहले से ही अंदाज़ा था कि उसका कौन सा लीवर दबाने से वो किस खाने जा कर बैठेगा। गुलाब के फूलों की पंखुड़ियों से सजी सेज पर रागिनी कोई घूँघट वूँघट काढ़े नहीं बैठी थी - उसकी साड़ी का आँचल ख़तरनाक़ तरीके से नीचे कुछ इस तरह से ढलका हुआ था कि उसकी लाल रंग की तंग ब्लाउज में से उसके स्तनों के बीच की सीधी, गहरी, और लम्बी रेखा अजय को साफ़ दिखाई दे रही थी। वो रेखा उसको ऐसे लुभा रही थी, जैसे सुधा से भरा पुष्प मधुमक्खी को लुभाता है! उसकी बड़ी बड़ी, कजरारी आँखें अजय को ही देख रही थीं... उसके होंठों पर क़ातिल मुस्कान थी। कुल मिला कर रागिनी ऐसी लग रही थी कि जैसे वो कोई प्रतिबंधित फल - forbidden fruit - हो! और जो फल प्रतिबंधित होते हैं, उनको खाने का मन भी करता है और उनको खा कर अघाया भी नहीं जा सकता है।

तो अजय ने अपने उस नव-विवाहित फल को अच्छे से खाया! सुहागरात जो शुरू हुई, वो कब सुहाग-सुबह और लगभग सुहाग-दोपहरिया बन गई, उन दोनों को पता ही न चला! पता भी कैसे चलता? रागिनी का हर अंग बड़ी फुर्सत से तराशा हुआ था ईश्वर ने! उसके स्तन ऐसे थे कि लगता था कि अगर उनको थोड़ा दबा कर पिया जाए, तो आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा उनमें से! उसके भरे भरे, रसीले होंठ ऐसे थे जिनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। उसके नितम्ब ऐसे ठोस थे, कि उनको हथेलियों से कुचल मसल कर मुलायम करने का मन होने लगे! और उसकी योनि ऐसी थी कि सृष्टि की हर बूँद से उसको भरने का मन करे।

नवविवाहित रागिनी और अजय ने वो आदि-युगीन खेल पाँच बार खेला, और खेल खेल कर पस्त हो गए। बिस्तर पर अपना खेल शुरू कर के कब दोनों ज़मीन पर आ गिरे, पता ही न चला। पूरी तरह आदिम, पूरी तरह वासना से पूर्ण खेल! एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो कर, एकदम नग्न, दीन दुनिया से बेसुध! सूरज सर पर चढ़ आने को हो आया था, लेकिन दोनों का कोई अता पता ही नहीं था... ऐसे में माँ आई थीं दोनों को जगाने। दोनों को नग्न अवस्था में एक दूसरे से लिपटा हुआ देख कर उनको बहुत संतोष हुआ। होता भी क्यों न - अपने परिवार के खुशहाल भविष्य के लिए उन्होंने क्या क्या सोचा हुआ था! माया की शादी में चूक हो गई थी, लेकिन लगता है कि कम से कम अजय का वैवाहिक जीवन सुख से रहेगा!

थके अलसाए हुए थे दोनों... लेकिन फिर भी, माँ द्वारा जगाये जाने के बाद एक बार फिर से रमण में रत हो गए। उसके बाद दोनों ने साथ में नहाया और तैयार हो कर नीचे आ गए। लगातार छः सत्रों के सम्भोग के कारण दोनों के ही संवेदनशील अंगों में जलन और मीठी पीड़ा महसूस हो रही थी। रागिनी ने लखनवी चिकनकारी किया हुआ एक सूती शलवार कुर्ता पहना था... उसके अंदर कुछ भी नहीं। यही दशा अजय की भी थी। उसने भी एक ढीला सा सूती पजामा कुर्ता पहना हुआ था... उसके अंदर कुछ नहीं। किसी संस्कारी बहू की तरह रागिनी ने तीन बार माँ के पैर छुए! वो इतनी सी बात पर निहाल हो गईं। अजय भी इतनी सी बात पर लरज गया।

अपनी बहू की तक़लीफ़ किरण जी को समझ में आ गई थी। उन्होंने अजय को शहद की शीशी पकड़ाई और कहा कि बहू के निप्पल पर शहद लगा दे - उसको आराम मिलेगा। अजय को समझा कि शायद माँ ने अभी ही यह काम करने को कहा है। उसने आनन फ़ानन में रागिनी का कुर्ता उतार फेंका और उसके चूचकों पर शहद लगाने लगा। जो स्तन ऐसे हों जिनको देख कर ऐसा लगे कि अगर उनको थोड़ा दबा दिया जाय तो उनमें से आम के रस जैसा मीठा रस निकल पड़ेगा, अगर उन पर शहद जैसा मीठा रस लगा रहे हों, तो उनको पिये बिना कैसे रहा जा सकता है? अगले ही पल रागिनी के चूचक अजय के मुँह में मिठास घोलने लगे थे।

‘अरे कुछ देर के लिए रुक जा नालायक,’ माँ ने उसको एक मीठी झिड़की दी थी, ‘कुछ तो सब्र कर ले,’

उनकी इस बात पर तीनों कैसे हँसे थे! रागिनी कैसे माँ के सीने में सिमट गई थी!

केवल एक ही दिन में रागिनी ने अजय को पूरी तरह से अपने मोह-पाश में बाँध लिया था... और माँ को भी! माँ ने ढूँढा था उसको अपने लाडले के लिए... वो बहुत खुश थीं कि अजय को उनकी पसंद की हुई लड़की अच्छी लगी। उधर, अजय स्वयं को दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान मानने लगा था। न तो उसको अभी पता था कि रागिनी की असलियत क्या है, और न ही माँ को! लेकिन वो एक अलग बात थी।

इस समय समस्या यह थी कि अजय के अनुभव वयस्कों वाले थे और शरीर किशोरों का! पूरी ऊर्जा से लबरेज! दिन के अनुभवों और रागिनी की यादें... इस समय बेहद कठोर स्तम्भन था उसका और बिना उसको शांत किए अजय को चैन नहीं आने वाला था।

कमरे के साथ लगे बाथरूम में जा कर उसने अपनी पैन्ट्स और चड्ढी उतारीं, और अपने लिंग को अपनी हथेली में ले कर वो उसको सहलाने लगा। पहले धीरे धीरे और फिर थोड़ा तेजी से।

किशोरवय होने के अपने अलग ही लाभ होते हैं।

एक लाभ होता है अभूतपूर्व कामुक ऊर्जा! इतने वर्षों के बाद उसके जीवन में फिर से वो समय आया था जहाँ वो फिर से हस्तमैथुन का आनंद ले पा रहा था... इसलिए वो उस आनंद को जल्दी समाप्त नहीं होने देना चाहता था। अपने हाथ की गति को घटाते - बढ़ाते वो उस अद्भुत निस्सीम आनंद को नियंत्रित और देर तक महसूस करने लगा। लेकिन हर बात का अंत होता ही है। करीब पाँच मिनट की इस स्वयं-सेवा के बाद उसको स्खलन होने लगा और वो आँखें बंद किये, सिसकारते हुए उसका आनंद लेता रहा। फिर गहरी साँसे ले कर, स्वयं को संयत कर के उसने अपने हाथ और लिंग को सिंक में साफ़ किया और अपने कमरे में वापस आ गया।

... और कमरे में आते ही रूचि को अपने सामने खड़ा देख कर उसका चेहरा फ़क्क रह गया।

“रु...ची...” अजय हकबका कर थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला, “तुम... तुम यहाँ... क्या कर रही हो?”

“म्म्ममैं...?”

रूचि ने थोड़े समय पहले जो दृश्य देखे थे, वो अभी भी उनके कारण हतप्रभ थी। यह सब उसने आज से पहले बस सुना ही था, कभी देखा नहीं था। अजय को यूँ मॉस्चरबेट करते देखना रोचक भी था और डरावना भी! उत्तेजित लिंग ऐसा दिखता है, यह उसने पहली बार जाना। किताबी या कही-सुनी बात जानना अलग बात होती है, प्रैक्टिकल बात अलग!

अजय इस समय कमर के नीचे नग्न था - शायद वो रूचि की उपस्थिति के कारण उस तथ्य को भूल गया था।

“हाँ तुम... यहाँ? इस समय?”

“तुम्ही ने तो कहा था आज मिलने को,” रूचि ने कहा।

“मैंने?”

“हाँ... तुमने बताया था न कि तुम आज कॉलेज मिस करने वाले हो,” रूचि अब तक थोड़ी संयत हो चली थी - लेकिन बस, थोड़ी ही, “और छुट्टियों से पहले ही सब कुछ ‘कवर’ कर लेना चाहते हो,”

“ओह,” अजय को याद आया, “हाँ! यस, सॉरी! ... सॉरी यार!”

कहते हुए वो अपनी अलमारी की तरफ़ बढ़ा।

रूचि आश्चर्यचकित थी - जो अंग कुछ ही समय पहले इमामदस्ता की मूसली जैसा कठोर और मोटा था, अब वो किसी बड़े पिल्लू जैसा मुलायम और सिकुड़ा हुआ हो गया था। करिश्माई अंग!

“ले... लेकिन तुम क्या कर रहे थे?”
Bahut hi shaandar update diya hai avsji bhai....
Nice and lovely update....
 
  • Like
Reactions: avsji

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,866
37,829
219
बहुत सुंदर
रूचि को लेकर भी तन मन और धन (पढाई का खर्चा) सारे ताने-बाने बुने जाने शुरू हो गये हैं

लेकिन हमारे अज्जू बॉस अभी निर्णय नहीं ले पा रहे
 
Top