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★★★ Xforum's ICC World Cup P&W Contest 2023- Chit Chat & Discussion Thread ★★★

Elon Musk_

Let that sink in!
Supreme
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ये तो गंदी बात है।
किसी का खाता बिना उसकी अनुमति के देखना नहीं चाहिए महोदय।🤣
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Permission hai kya fir ;)
 

manu@84

Well-Known Member
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चुवस वाली बातें है।

सबको कदर होती वरना कोई ऐसे ही जान प्राण नही लगा देता उसको पाने के लिए।

ये सब बस मन को बहलाने वाली बातें है कि कदर नही
चैम्पियन टीम चैम्पियनों की तरह खेली। कोई ड्रामा नहीं, कोई भावनात्मक अतिरेक नहीं, कोई ख़ुशफ़हमी या ग़लतफ़हमी भी नहीं। काम करने आए थे, काम करके चले गए। एक या दो दिन वो इसका जश्न मनाएंगे, फिर काम में लग जाएँगे। सर्वश्रेष्ठ को अपनी महत्ता की घोषणा स्वयं ही नहीं करना होती है, दुनिया उसके लिए बोलती है। बलवान बड़बोला नहीं होता। अभी तक 13 विश्वकप हुए हैं, जिनमें से 6 उन्होंने जीते हैं। हर दूसरे टूर्नामेंट में उनको विश्वकप जीतना ही है। शिखर पर विराजकर ही वो सुकून महसूस करते हैं।

यों यह भारत के राजतिलक का प्रसंग था। घर में टूर्नामेंट हो रहा था। नरेंद्र मोदी स्टेडियम में सवा लाख से ज़्यादा दर्शक भारत की जीत का उत्सव मनाने के लिए मौजूद थे। राजनीति और सिनेमा की दुनिया के चर्चित चेहरे नमूदार हुए थे। टीम दस में से दस मैच जीतकर महाबली की तरह यहाँ आई थी, ऑस्ट्रेलियाइयों ने महफ़िल में ख़लल डाल दिया। उन्होंने कहा, हम आपकी कहानी के सहायक-अभिनेता नहीं हैं, मुख्य भूमिका में हैं। भारत उनके सामने मुक़ाबले में कहीं नहीं पाया गया। पिच धीमी है का नैरेटिव दूसरी पारी में धुल गया, जब ऑस्ट्रेलियाई बैठकख़ाने में तफ़रीह सरीखे इत्मीनान से खेले और चलते-फिरते स्कोर को चेज़ कर लिया। खिताबी मुक़ाबला था, एकतरफ़ा बना दिया। होता भी क्यों ना? इस विश्वकप में खेले गए 48 मैचों में से तक़रीबन 45 क्या ऐसे नहीं थे, जो एकतरफ़ा थे?

ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने घोषणा की थी कि हम सवा लाख दर्शकों को चुप करा देंगे। उन्होंने करा दिया। यह निरी दम्भोक्ति नहीं थी, क्योंकि वो पूरी तैयारी से आए थे। वो यहाँ भारतीय पटकथा को वॉकओवर देने नहीं आए थे। उन्होंने अपनी चमड़ी से बाहर निकलकर प्रेतों की तरह फ़ील्डिंग की, शर्तिया चौके रोके, योजना के अनुसार गेंदें डालीं। उनकी दिलेरी से भारतीय टीम सहम गई। वरना यह कैसे होता कि दस ओवर में 80 रन थे, रोहित शर्मा ने चार चौके और तीन छक्के लगा लिए थे, विराट कोहली ने तीन गेंदों पर लगातार तीन चौके जमाए थे, फिर अगले 30 ओवरों में मात्र दो ही चौके लगते? मुझे याद नहीं आता ऐसा पिछली बार कब हुआ था, जब विश्वविजय की तमन्ना रखने वाली टीम 50 ओवरों के मैच में 30 ओवर में मात्र दो चौके लगाए।

सच यह है कि टीम चोक कर गई। टूर्नामेंट की पहली और सबसे बड़ी परीक्षा थी, उसमें पसर गई। अभी शेर थे, अभी भीगी बिल्ली बन गए। प्रश्न पूछा जा सकता है कि अगर दब के खेलना था तो शुरू से दब के खेलते। शास्त्रीय शैली में पारी को कंस्ट्रक्ट करते। और चढ़ के खेलना था तो बीच के ओवरों में दुम नहीं दबा लेते। कप्तान का प्लान ए कप्तान के आउट होते ही ऐसा लचर प्लान बी नहीं बन जाता है। टीम का प्रदर्शन देख दर्शकों को साँप सूँघ गया, लेकिन टीम को उसके पहले ही सूँघ गया था।

भारत के लिए यह विनम्र होने का अवसर है। सच यह है कि वह अभी दुनिया का सरताज नहीं है, जैसा उसको बताया जाता है। कई सारे मानकों पर वह पीछे है, कई सारों मानकों पर वह अभी शुरुआत ही कर रहा है। क्रिकेट में अवश्य वह शीर्ष के निकट है, पर यह एक खेल है इसका आनंद लेना चाहिए, इसके बहाने अपने राष्ट्रीय गौरव को फुलाना नहीं चाहिए। भारतीय चरित्र में जो अतिनाटकीयता निहित है, उसमें बघारी गईं शेखियाँ पराजय के क्षणों में उपहास्य लगने लगती है। जीत से पहले जीत की घोषणाएँ नहीं की जाती हैं।

चैम्पियन टीम मुबारक़बाद की हक़दार है। ट्रैविस हेड नामक सूरमा शुभकामनाओं का पात्र है। उपविजेता टीम यहाँ तक पहुँची, यह भी कम नहीं, लेकिन खेलों की दुनिया में रजत पदक एक चमचमाती हुई हार सरीखा ही है। यह नश्तर की तरह चुभने वाला तमगा है। वो फिर कोशिश करेंगे, फिर तैयारी करके आएँगे, पर इस बार सर्वश्रेष्ठ ने साबरमती के किनारे विजयगाथा लिखी है। सर्वश्रेष्ठ से परास्त होने में लज्जा नहीं होनी चाहिए।
साभार.......
 

Rusev

Banned
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चैम्पियन टीम चैम्पियनों की तरह खेली। कोई ड्रामा नहीं, कोई भावनात्मक अतिरेक नहीं, कोई ख़ुशफ़हमी या ग़लतफ़हमी भी नहीं। काम करने आए थे, काम करके चले गए। एक या दो दिन वो इसका जश्न मनाएंगे, फिर काम में लग जाएँगे। सर्वश्रेष्ठ को अपनी महत्ता की घोषणा स्वयं ही नहीं करना होती है, दुनिया उसके लिए बोलती है। बलवान बड़बोला नहीं होता। अभी तक 13 विश्वकप हुए हैं, जिनमें से 6 उन्होंने जीते हैं। हर दूसरे टूर्नामेंट में उनको विश्वकप जीतना ही है। शिखर पर विराजकर ही वो सुकून महसूस करते हैं।

यों यह भारत के राजतिलक का प्रसंग था। घर में टूर्नामेंट हो रहा था। नरेंद्र मोदी स्टेडियम में सवा लाख से ज़्यादा दर्शक भारत की जीत का उत्सव मनाने के लिए मौजूद थे। राजनीति और सिनेमा की दुनिया के चर्चित चेहरे नमूदार हुए थे। टीम दस में से दस मैच जीतकर महाबली की तरह यहाँ आई थी, ऑस्ट्रेलियाइयों ने महफ़िल में ख़लल डाल दिया। उन्होंने कहा, हम आपकी कहानी के सहायक-अभिनेता नहीं हैं, मुख्य भूमिका में हैं। भारत उनके सामने मुक़ाबले में कहीं नहीं पाया गया। पिच धीमी है का नैरेटिव दूसरी पारी में धुल गया, जब ऑस्ट्रेलियाई बैठकख़ाने में तफ़रीह सरीखे इत्मीनान से खेले और चलते-फिरते स्कोर को चेज़ कर लिया। खिताबी मुक़ाबला था, एकतरफ़ा बना दिया। होता भी क्यों ना? इस विश्वकप में खेले गए 48 मैचों में से तक़रीबन 45 क्या ऐसे नहीं थे, जो एकतरफ़ा थे?

ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने घोषणा की थी कि हम सवा लाख दर्शकों को चुप करा देंगे। उन्होंने करा दिया। यह निरी दम्भोक्ति नहीं थी, क्योंकि वो पूरी तैयारी से आए थे। वो यहाँ भारतीय पटकथा को वॉकओवर देने नहीं आए थे। उन्होंने अपनी चमड़ी से बाहर निकलकर प्रेतों की तरह फ़ील्डिंग की, शर्तिया चौके रोके, योजना के अनुसार गेंदें डालीं। उनकी दिलेरी से भारतीय टीम सहम गई। वरना यह कैसे होता कि दस ओवर में 80 रन थे, रोहित शर्मा ने चार चौके और तीन छक्के लगा लिए थे, विराट कोहली ने तीन गेंदों पर लगातार तीन चौके जमाए थे, फिर अगले 30 ओवरों में मात्र दो ही चौके लगते? मुझे याद नहीं आता ऐसा पिछली बार कब हुआ था, जब विश्वविजय की तमन्ना रखने वाली टीम 50 ओवरों के मैच में 30 ओवर में मात्र दो चौके लगाए।

सच यह है कि टीम चोक कर गई। टूर्नामेंट की पहली और सबसे बड़ी परीक्षा थी, उसमें पसर गई। अभी शेर थे, अभी भीगी बिल्ली बन गए। प्रश्न पूछा जा सकता है कि अगर दब के खेलना था तो शुरू से दब के खेलते। शास्त्रीय शैली में पारी को कंस्ट्रक्ट करते। और चढ़ के खेलना था तो बीच के ओवरों में दुम नहीं दबा लेते। कप्तान का प्लान ए कप्तान के आउट होते ही ऐसा लचर प्लान बी नहीं बन जाता है। टीम का प्रदर्शन देख दर्शकों को साँप सूँघ गया, लेकिन टीम को उसके पहले ही सूँघ गया था।

भारत के लिए यह विनम्र होने का अवसर है। सच यह है कि वह अभी दुनिया का सरताज नहीं है, जैसा उसको बताया जाता है। कई सारे मानकों पर वह पीछे है, कई सारों मानकों पर वह अभी शुरुआत ही कर रहा है। क्रिकेट में अवश्य वह शीर्ष के निकट है, पर यह एक खेल है इसका आनंद लेना चाहिए, इसके बहाने अपने राष्ट्रीय गौरव को फुलाना नहीं चाहिए। भारतीय चरित्र में जो अतिनाटकीयता निहित है, उसमें बघारी गईं शेखियाँ पराजय के क्षणों में उपहास्य लगने लगती है। जीत से पहले जीत की घोषणाएँ नहीं की जाती हैं।

चैम्पियन टीम मुबारक़बाद की हक़दार है। ट्रैविस हेड नामक सूरमा शुभकामनाओं का पात्र है। उपविजेता टीम यहाँ तक पहुँची, यह भी कम नहीं, लेकिन खेलों की दुनिया में रजत पदक एक चमचमाती हुई हार सरीखा ही है। यह नश्तर की तरह चुभने वाला तमगा है। वो फिर कोशिश करेंगे, फिर तैयारी करके आएँगे, पर इस बार सर्वश्रेष्ठ ने साबरमती के किनारे विजयगाथा लिखी है। सर्वश्रेष्ठ से परास्त होने में लज्जा नहीं होनी चाहिए।
साभार.......
India kabhi nahi jeet sakti
 

manu@84

Well-Known Member
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Adirshi The Immortal सर जी tornament level thread आपने बिना किसी notification के पोस्ट की, और मै उसमे paarticipite नही कर पाया..... कृपया एक अनुरोध है अगर आप मुझे एक चांस दे और कोई अन्य question पूछ कर मुझे भी पॉइंट दे सकते है क्या....???? Otherwise हम तो जीत कर भी हार जायेंगे.... सबसे ज्यादा पॉइंट तो सभी ने यही बटोरे है 🙏🙏
 

Elon Musk_

Let that sink in!
Supreme
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manu@84 bhaiya, pm nahi aaya :waiting:
 

Adirshi

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Adirshi The Immortal सर जी tornament level thread आपने बिना किसी notification के पोस्ट की, और मै उसमे paarticipite नही कर पाया..... कृपया एक अनुरोध है अगर आप मुझे एक चांस दे और कोई अन्य question पूछ कर मुझे भी पॉइंट दे सकते है क्या....???? Otherwise हम तो जीत कर भी हार जायेंगे.... सबसे ज्यादा पॉइंट तो सभी ने यही बटोरे है 🙏🙏
ek hafta open tha bhai wo thread. aur publically visible tha :dazed:
 
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