अगर आप उत्तर रामायण की बात कर रहे हैं तो उसमे राम द्वारा माता सीता तो त्यागने और माता सीता के वनवास को दर्शाया गया है. उत्तर रामायण रमानंद सागर द्वारा प्रस्तुत की गई एक टेलीविज़न श्रृंखला है जिसके प्रेरणा सोत्र महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण', तुलसीदास द्वारा रचित 'रामचरितमानस', कृतिवास द्वारा रचित 'कृतिवास रामायण' और ऐसी कुछ और रचनाये हैं.
अब बात रही की अयोध्या लौटने के बाद माता सीता के साथ क्या हुआ?
यहाँ पर आता है 'उत्तरकाण्ड'. उत्तरकाण्ड को वाल्मीकि जी की रामायण के ७ वे खंड के रूप में दर्शाया गया है, हालांकि ये मूल रामायण का हिस्सा नहीं है जिसके मात्र ६ खंड है. तुलसीदास जी की रामचरितमानस में उत्तरकाण्ड ७ वे खंड के रूप में मौजूद है जिसमे राम द्वारा माता सीता को त्यागने और फिर वनवास जाने का जिक्र नहीं है.
वाल्मीकि ने जिस रामायण की रचना की थी उसका सम्पूर्ण ज्ञान स्वयं नारद मुनि ने वाल्मीकि को दिया था. मूल रामायण में माता सीता के वनवास का जिक्र इसलिए नहीं है क्यूंकि नारद मुनि ने वाल्मीकि को रामायण का जो ज्ञान दिया था वो राम के राज्याभिषेक तक ही सीमित था. इसलिए वाल्मीकि की रामायण राम के राज्याभिषेक पर समाप्त हो गई. इसका ये मतलब नहीं है की इसके आगे कुछ हुआ ही नहीं. राज्याभिषेक के बाद की घटनाओं का उल्लेख सीता ने वाल्मीकि के आश्रम में शरण लेने के बाद की थी और उसके बाद की घटनाएं उनके सामने घटी जिन्हें वाल्मीकि ने लिपि के रूप में गठित किया जिसे 'शेष रामायण' भी कहा जाता है. इस बात का जिक्र बहुत से कवियों ने १२ वीं सदी से लेकर १७ वीं सदी तक अपनी विभिन्न रचनाओं में किया है.
तो आपका कहना की माता सीता के वनवास को लेकर किसी प्रकार का भ्रम फैलाया गया है और ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था वो एक सिमित ज्ञान का फल है.
अब बात करते है की रामायण, राम, सीता, रावन इत्यादि के विषय में लोगो में मतभेद क्यूँ है.
मूल रामायण सिर्फ एक ही है जिसकी रचना वाल्मीकि ने नारद मुनि से ज्ञान ले कर की थी. इसके बाद आने वाली कई सदियों में अलग-अलग कवियों ने मूल रामायण और शेष रामायण को आधारशीला मानकर अपनी रचनाये लिखी. इसमें सबसे ज्यादा प्रसिद्ध जो रचना थी वो १६ वीं सदी की तुलसीदास की रामचरितमानस थी. अगर आप रामचिरतमानस और मूल रामायण की तुलना करे तो आपको बहुत सी विभिन्नताये देखने मिलेंगी. वो इसलिए क्यूंकि रामचरितमानस तुलसीदास द्वारा रामायण का अपना एक अलग संस्करण (version) था. तुलसीदास बहुत बड़े राम भक्त थे और उनकी भक्ति में डूबे तुलसीदास ने जब रामचरितमानस की रचना की तो भगवान राम उनके लिए मर्यादापुर्शोत्तम थे. इसी मर्यादापुर्शोत्तम की झलक राम के रूप में आपको रामचरितमानस में हर जगह देखने मिलेगी. रामायण और राम को लेकर ये उनका अपना विश्लेषण था. इसपर तुलसीदास ने खुद ही कहा है.
"हरी अनंत, हरी कथा अनंता" - [हरी अनंत है और वे अनंत जीव-जंतुओ के अंतर्मन में बसते है. हर जीव-जंतु का हरी को देखने और समझने का अपना अलग तरीका है. इसलिए हरी की कथाएँ भी अनंत है]
रामायण का ऐसा ही विश्लेषण बहुतों ने किया है. सीता, उर्मिला से लेकर रावन तक आपको अलग-अलग कवियों और साहित्यकारों के विश्लेषण मिलेगे. ऐसे ही कुछ विश्लेषणों को पढ़कर लोग उनसे प्रभावित हो जाते है और रामायण के असली उद्देश्य को भूल जाते है और तरह-तरह के सवाल उठाते है. इसलिए मैं कभी विश्लेषण पर बात नहीं करती. मैं हमेशा उद्देश्य पर बात करती हूँ. ज्यादातर लोगों के तर्क विश्लेषण पर आधारित होते है. मेरे तर्क उद्देश्य पर आधारित होते है. अगर अभी मैं आपसे पूछूँ की राम के जन्म का उद्देश्य क्या था तो शायद आपका जवाब भी विश्लेषण पर ही आधारित होगा.
वैसे आपको क्या लगता है? राम का जन्म क्यूँ हुआ था?