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★☆★ XForum | Ultimate Story Contest 2021 ~ Entry Thread ★☆★

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naqsh8521

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वो स्कूल का पहला दिन
दसवीं के बाद मैंने स्कूल बदल लिया था, सब कहते थे कि दसवीं के बाद इसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ना, यहाँ की पढ़ाई सारे स्कूलों से बेहतर है।

मैं काफी अच्छे अंकों से पास हुआ था तो इस स्कूल में मुझे प्रवेश मिल गया।
काफी बड़ा कैंपस था इसका… दो फ़ुटबॉल ग्राउंड और एक बड़ा सा इनडोर बास्केटबॉल एरिया था।

मेरा स्कूल में पहला दिन था, धड़कनें बढ़ी हुई थी मेरी, तभी एक आवाज़ आई- बास्केटबॉल इधर लाना ज़रा !

मैंने जैसे ही पलट कर देखा तो सामने एक लड़की खड़ी थी, शायद मेरी सीनियर थी।

छोटे से लाल और काले रंग की चेक वाले स्कर्ट में और सफ़ेद शर्ट जिसके ऊपर के दो बटन खुले हुए थे।
पसीने की वजह से उसके अन्तः वस्त्रों का रंग भी साफ़ पता चल रहा था, जो कि लाल था।

मैं बॉल लेकर उसके पास गया।

एक बार तो उसने मुझे ऊपर से नीचे तक घूर के देखा फिर पूछा मुझसे- नए हो यहाँ पे?

मैंने हाँ में सर हिला दिया।

फिर से उसने मुझसे पूछा- बास्केटबॉल खेलते हो?

मैंने उत्तर दिया- हाँ, मैं स्कूल लवेल राष्ट्रीय स्तर पे खेल चुका हूँ।

पता नहीं क्यूँ पर मैं नज़रें नहीं मिला पा रहा था उससे।

नहीं… यह किसी शर्म या डर की वजह से नहीं था पर अगर मैं नज़रें मिलाता तो कहीं वो मेरे अन्दर के तूफ़ान को जो इस हुस्न परी के दीदार के वजह से उमड़ा था, उसे कहीं दिख न जाए।

मैं यह सोच ही रहा था कि फिर एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- इतना ही अच्छा खेलते हो तो मुझे हरा के दिखाओ !

मैंने कहा- हार के लड़कियाँ लाल हो जाती हैं और आप जैसी हैं मुझे वैसी ही अच्छी लग रही हैं, अब मैं आपको लाल-पीला नहीं करना चाहता… फिर भी आप चाहती हैं तो मैं खेल लेता हूँ पर केवल आप नहीं आपकी पूरी टीम के साथ… मैं अकेला और आप पाँच ये कैसा रहेगा?

उसने कहा- ओह! तो जनाब आप पाँच को हराना चाहते हैं?

मैंने कहा- नहीं मिस, मैं पांच को एक साथ संभाल सकता हूँ, यह दिखाना चाहता हूँ।

फिर हम बास्केटबॉल कोर्ट पे आ गए।

मैंने अपनी शर्ट उतार दी पर अन्दर मैंने इनरवियर पहना हुआ था, क्योंकि पहले ही दिन मैं गंदे कपड़ों के साथ क्लास रूम में नहीं जाना चाहता था।

वो पांचों लड़कियाँ भी अपनी टाई उतार कर और मेरे सामने आ गई।

कसम से मैं तो इस वक़्त को तस्वीर में कैद कर लेना चाहता था।

वो पाँच सच में हुस्न की परियाँ ही थीं।

मैंने गौर किया कि सभी मेरे एथलेटिक शरीर का बड़े प्यार से मुआयना कर रही थीं।

मैंने टोकते हुए कहा- अगर देख लिया हो आप सबने, तो खेल शुरू किया जाये?

मैं और उनमें से एक बीच में आ गए और गेंद को हवा में उछाल दिया गया।

वो जैसे ही उछली गेंद लेने के लिए मैं उसकी टांगों की ओर देखने लगा गया।

जैसे जैसे स्कर्ट ऊपर होती जा रही थी, मेरे बर्दाश्त की सीमा पार हो रही थी।

मैं नीचे बैठ गया और तसल्ली से उन टांगों का दीदार करने लग गया।

जैसे ही उसने मुझे ऐसा करते देखा, वैसे ही गेंद को छोड़ स्कर्ट पकड़ ली।

मैंने फिर तेजी से गेंद को पकड़ा और अगले ही मिनट पॉइंट स्कोर कर लिया मैंने।

वो सब चिल्लाने लग गई- नहीं यह चीटिंग है, तुमने चालाकी से जीता है इसे।

मैंने कहा- जीत तो कैसे भी मिले, जीत ही है।

मैं तो हारने को तैयार ही था, वो आपने गेंद को छोड़ दिया तो मैं क्या कर सकता हूँ। फिर भी आप कहती हो तो एक और कोशिश कर लो आप!

मैं अपनी साइड में आ गया।

वो गेंद एक दूसरे को पास करती हुई मेरे करीब आ गई।

अब क्या कहूँ यार… मैं किस गेंद को उछलता हुआ देखूँ, यह निर्णय ही नहीं कर पा रहा था।

जैसे ही उसे मेरी नज़रों का एहसास हुआ, उसका ध्यान अपने खुले हुए बटन पर चला गया और गेंद मेरे हाथ में आ गई।

पहली पीछे रह गई, अब गेंद के साथ मैं दूसरी के करीब पहुँचा।

वो मुझसे गेंद छीनने की कोशिश करने लग गई और मैं गेंद अपने चारों तरफ घुमाने लग गया और वो मेरे करीब आती चली गई।

अब तो उसकी साँसों की आवाज़ मैं सुन सकता था।

तभी मैं आगे बढ़ा और अपने होंठों को उसके होंठों के करीब.. एकदम करीब कर दिया।

वो पीछे हट गई और मैं तीसरी के पास पहुँच गया।

यह थोड़ी बोल्ड थी, मेरी हर हरकत नज़र अंदाज कर रही थी।

पर मैं भी कच्चा खिलाड़ी नहीं था, मैंने गेंद को उसकी दोनों टांगों के बीच से पास करने की कोशिश की और खुद हाथों को उसकी टांगों के बीच से आगे कर गेंद को फिर से पकड़ लिया।

यह वही थी जिसकी हसीं टांगों का दीदार तसल्ली से बैठ कर किया था मैंने!

इस बार तो छू कर भी देख लिया मैंने !

वो कुछ समझ पाती कि मैं आगे बढ़ गया।

अब चौथी लड़की थी… बला की खूबसूरती थी इसमें! श्रुति हसन की कल्पना स्कूल ड्रेस में कर लो।

मैं तो चाह रहा था कि गेंद ले ले पर एक बार कस के बांहों में भर लूँ बस उसे।

वो जैसे ही मेरे करीब आई, मैंने गेंद को वहीं उछलता छोड़ शाहरुख़ खान के अंदाज़ में अपनी दोनों बांहों को फैला उसकी ओर बढ़ने लगा।

वो अपनी आँखें बंद कर जोर से चिल्लाई- नहीं…

अब जब लड़की न बोल रही है तो मैं गेंद लेकर आगे बढ़ गया।

अब सबसे आखिर में एक लड़की खड़ी थी।

यह उन सब लड़कियों में सबसे ज्यादा हॉट थी।
कमाल का फिगर था उसका और उस पर यह छोटी छोटी स्कूल ड्रेस तो जैसे कयामत ढा रही थी मुझपे।

पर मैं अब लगभग जीत के करीब था और पॉइंट स्कोर के बहाने मजा लेना चाह रहा था।

पर जैसे ही मैं उसके करीब पहुँचा, उसने अपने शर्ट का एक बटन खोल दिया।

अब मेरे पसीने छूटने लग गए।

मैं जब उसके और करीब पहुँचा तो सोचा इस पर भी वही चुम्मे वाला ट्रिक अजमाता हूँ।

जैसे ही मैं अपने होठों को उसके होठों के करीब ले गया, वो आगे बढ़ी और उसने अपने होठों को मेरे होठों से लगा दिया।

मैंने उसे कस के पकड़ लिया और उसके नाज़ुक होठों का रसपान करने लग गया।

थोड़ी देर में आवाज़ आई- याहू !!! हम जीत गए!!

पर अब तो मेरे सब्र का बाँध जैसे टूट ही गया था, मैं खुद को काबू ही नहीं कर पा रहा था, मेरे हाथ फिसलते हुए उसके सीने तक पहुँच गए।
मैं इतना अधीर हो चुका था कि एक ही झटके में उसकी शर्ट को फाड़ दिया।

तभी एक आवाज़ पड़ी मेरे कानों में…

‘अरे, यहीं पे सब कर लोगे क्या? अभी कोई आ गया तो सब गड़बड़ हो जाएगा! मेरे साथ चलो।’

वैसे भी शायद मेरे गेम ने उन्हें पहले से ही गरम कर दिया था।

वो बाकी चारों मुझे पास के स्टोर रूम तक ले गई और दरवाज़े को अच्छे से बंद कर दिया उन्होंने।

अभी भी मेरे हाथ में एक की फटी हुई शर्ट थी।

अब वो पांचों मेरे सामने खड़ी थी, ऐसा लग रहा था जैसे जन्नत की अप्सराओं से घिरा हूँ मैं।

उनमें से एक मेरे पास आई और कहने लगी- जान, तुझे उस एक गेंद के साथ तो अच्छे से खेलना आता है पर देखती हूँ इन पाँच जोड़ी गेंदों के साथ तू क्या करेगा।

यह कहते हुए उसने अपनी शर्ट के बटन खोल दिये।
अब मेरे सामने वो अमृत कलश झूल रहे थे… अब भला मैं कैसे रूक पाता।

मैंने उन अमृत कलशों को कस के अपने मुख में लिया और उनका रस पीने लग गया।

अब मेरी उत्तेजना अपने चरम पर थी।

तभी बाकी मेरे पास आईं।

दो लड़कियां मेरी दाईं ओर और दो मेरी बाईं ओर से… मेरे इनरवियर को पकड़ लिया और जोर लगा कर फाड़ते हुए उसे मेरे बदन से अलग कर दिया उन्होंने।
उसकी वजह से उन नाखूनों के निशाँ बन आये थे मेरी पीठ पर।

अब तो मैं भी पूरे जोश में आ चुका था।

बारी बारी से सबके कपड़े फाड़ता हुआ सबको नंगी करने लग गया।

दो तो जमीन पे बैठ गई और कहने लगी- देखो, मैं खुद उतार देती हूँ पर प्लीज इन्हें फाड़ो मत।

पर मैं कहाँ सुनने वाला था, उनकी बाकी तीनों को इशारा किया मैंने और फिर हम सब मिल के उनके कपड़ों को उन जिस्मों से आज़ाद कर दिया मैंने।

अब बस मैं ही था उस कमरे में जिसके निचले वस्त्र बचे हुए थे।

अब वो सब मुझे घेर चुकी थी, उन्होंने मेरे पैंट के चीथड़े कर दिए।

अब हम सबके कपड़े उस स्टोर रूम के हर कोने में बिखरे हुए थे।

बस कुछ दिख रहा था तो नंगे जिस्म और अजीब सी मादकता थी उस माहौल में।

एक मेरे पास आई और मुझे पीछे से कस के पकड़ लिया उसने… दो लड़कियों ने मेरे लिंग को मुख में भर के मोर्चा संभाल लिया था।
एक मेरे होठों को चूमने लग गई और एक मेरे नंगे जिस्म को चूमने लग गई।

अब ज्यादा देर मैं खुद को रोक न पाया और छूटने लग गया, मेरे वीर्य के आखिरी कतरे को भी उन्होंने निचोड़ लिया।

मैं जब तक थोड़ा संयमित हो पाता, एकने उन चिथड़ों से एक बिस्तर सा बना दिया वहाँ पर…

मैं लेट गया, उस पे दो लड़कियाँ मेरे अगल बगल लेट गईं और एक मेरे सिर को गोद में लेकर बैठ गई, बाकी दो मेरे लिंग और मेरे जिस्म के सारे निचले हिस्से को चूमने लग गई।

अब फिर से मेरा लिंग उफान पे था पर मैंने इस बार थोड़ा संयम बनाये रखा।

मैंने अब आसन बदल लिया, मैं अपने घुटनों के बल खड़ा हो गया और तीन लड़कियों को घोड़ी वाले आसन में बिठा दिया।

कपड़ों के तीन टुकड़ों को तीनों के गले में फंसाया और उसे एक जगह कर के अपने गले से बाँध लिया।

अब बीच वाली की योनि में मेरा लिंग और अगल बगल वाली की गाण्ड में मेरी दो उंगलियाँ अन्दर बाहर होने लग गई।

बाकी दो लड़कियों ने भी मेरा साथ दिया और अगल बगल वाली लड़कियों की योनि को अपने जीभ से कुरेदने लग गई।

जब जब उनकी चीख थी कम होती मैं उनके गर्दन में फंसे कपड़ों को कसने लग जाता था।

अब तो ऐसा लग रहा था मानो हमारे साथ साथ यह कमरा भी चीख रहा हो।

करीब पाँच मिनट बाद वो तीनों लड़कियाँ एक जोरदार चीख के साथ निढाल हो गई।

मुझे पता था कि थोड़ी ही देर में फिर से चुदने को सब तैयार हो सकती हैं।

तो मैंने ज्यादा देर ना करते हुए बाकी दोनों लड़कियों को एक दूसरे के ऊपर लिटा दिया और नीचे वाली की योनि को अपने लिंग से भर दिया और ऊपर वाली के चूत और गांड में अपनी उंगलियाँ फंसा दी।

माहौल तो वैसे ही अपने चरम पे था सो इस बार इन दोनों के छूटने में ज्यादा देर नहीं हुई।

अब वो पाँचों मेरे सामने निढाल पड़ी थी, मैंने दो दो लड़कियों के बाल पकड़ के उन्हें घुटनों के बल लिया और बारी बारी से उनके मुंह में अपना लिंग अन्दर तक देने लग गया।

एक बार फिर मैं चरम सुख को पा चुका था।

मैं अब उसके पास गया जो मुझे शुरू में कह रही थी कि ‘क्या इन पांच जोड़ी गेंदों के साथ भी मैं खेल सकता हूँ या नहीं?’
मैंने उसके उरोजों को मसलते हुए पूछा- जान, आप मुझे इस गेम में कितने नंबर देंगी?

उसका जवाब तो मुझे आज तक नहीं मिला पर पाठकों से निवेदन है कि मुझे जरूर बतायें वो मुझे इसमें कितने नम्बर देंगे।

अंत में हम सब उसी स्टोर रूम में पड़े हुए ट्रैक सूट पहन वापस आ गए।
 

Rgroy97

Rgroy97
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Shaap ne karwaya milan (Incest)

" Nehi mujhe esi shaap mat do. Meri jindegi nark ban jaegi. Isse to achha mujhe mar dete. Ese paap ko leke har bakt mar mar ke jeene se achha mujhe ek hi pal main mout ke goad main sula deti"


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Kahani suru karte hain ek ese shaap ki jo milan ka mukhya karan ban gaya. Hamesa shaap kast deta hai per ek ese shaap ke kahani batane ja raha hoon jo ek milan ke mukhya karan ban saka.


Madhupuram ek ese gaon janha ye milan ke kisse suru hua tha. Madhupuram main ek 35 saal ke khubsurat aurat aur uske bete rehte hain jiski umer ab 21 saal ke karib pahunch gaya hai.


Ap sab soch rehe honge ki aurat aur uske bete ki umer main itna kam antar kese hain ? To ayie kahani ke ander ghus jate hain iss uter ko pane ke lie aur us shap ke bare main janne ke lie jo milan ka karan bana.


Jis aurat ki ham baat kar rehe hain oh hai Kamini . Jesa naam wesa roop. Jis ko dekh ke har kisi ki kaam basna jagrit ho jae oh hai Kamini. Ek khubsurat bala jis ko pane ke lie sara Madhupur ke mard hi nehi aas paas ke gaon ke mard bhi atur hai. Iss umer main bhi oh ek 20 saal ki ladki se jyada umer ki nehi lagti. 32 ke chhati patli kamar jo 28 ke karib aur 30 ke nitamb . Ek dam nagin kamar hasin niganhe aur uski ankhe jo daru se bhi jyada nasile hain.


Sab se khas baat ye hai ki oh abhi tak shadi suda nehi hai. Aap ke man main ye prasna ugta hoga jo shadi nehi ki hai uske 21 saal ke ladka kese hai .


Jab Kamini 14 saal ki thi tab apne mama mami ke ghar pe rehti thi. Kiun ki uski maa baap koi bhi jinda nehi the. Ek hadse main dono gujar gaye the. Phir ek din uske mama khub daru pi ke kamini ke sath jabardasti ki. Sirf uski kumaritwa nehi loot gayi balki oh garbhbati ban gayi.


Jab oh pet se hui to uske mami ne bahut mari. Jab unko kamini ne sab sach batayi to unhone kamini ko bahut mari aur usko kisi gair ke sath ye sab karke apne pati ke uper arop lagayi hai bolke ghar se nikal di.


Us hadse se Kamini bahut toot chuki thi. Wese to usko marne ka khayal ayi per uske pet main badhne bale bacho ke khtir oh uske lie jeene ka faisa ki.




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Bahut badha bighna ke baad uskk dusre gaon Madhupuram main ek sangstha main rehne ke aur kaam karne ki subidha mili jisse usne apne gujaran ka sahara khoj li thi.

Phir usne achhe kamayi ki aur khud ke lie ek ghar ke bandobast bi kar li. Madhupuram ek gaon hote hue bhi wanha sare subidha the. Sahar jane ki bus har bakt subitha tha.


Phir kuchh din main usne ek bete ko janm di. Jiska naam tha Raghab. Uske bete ke janm ke baad usko dekh ke sari jindegi ke dard bhool jati hai kamini . Uske lie uski bete jaan se bhi badkar hai. Kamini ke sathi usko shadi karne ki salah dete hain . Per oh abhi tak shadi nehi ki. Oh sirf apne bete ko sare pyar dene ki faisla ki thi.


Bhari jawani main bhi apne jajbaat ko kabu karke oh sirf apne bete ko pyar karti thi.


Ab kamini khud ka business start ki thi. Ek atmanirbhar mahila ka udaharan ban chuki thi. Uski roop aur badan ke lobh main najane kitne mard roz apna birjya nast kar lete hain. Per usne kabhi dusre mard ko ankh utha ke dekha tak nehi. Usne pyar kya hota hai ye ehsas kya hota hai abhi tak mehsus bhi nehi ki. Jawani ko mehsus karne se pehle maa ban gayi. Uske baad jeene ke lie sangharsh karti rehi to oh sab mehsus karne ki bakt kaha mili use.


Uske bete Raghab jo ek gabru jawab tha.hatte katte per Kamini jitna gore nehi sanwla tha. Per ek takatwar mard ki sari khoobi usmain tha.


Mard ki khubsurti kon dekhta uski mardangi uski parichay hota hai. Iska ye matlab nehi ki Raghab badsurat tha. Sirf sanwla tha per uski mukh ke roop bahut sunder tha.


Uske mardangi pe sare Madhupuram ke jawan ladki aur bahu uske uper marte hai . Per oh kisiko bhao nehi deta. Dono maa bete kisi aur ko dekhte tak nehi.


kamini kisi aur ko nehi dekhti iska karan to apko pata chal gaya per Raghab kisi aur ko nehi dekhta iske pichhe jaroor koi karan hoga. Han iska karan ye hai ki jab se usne apna jawani ke hosh sambhala hai uske lie sab se khubsurat apne maa Kamini hi lagti hai. Raghab ke nazar se Kamini ek khubsurat aurat hai jiski ankhe nasili hai badan ki baat to alag hai. Uske maa se khubsurat na koi ho sakti hai. Ager koi hoga bhi uske lie Raghab ke dil main koi bhi jagah nehi hai.


Absos ki baat ye ki jis kaam ke devi kamini ko pane ki itni chahat hai oh uski maa nikli. Jo bhi ho uske man ki pyas har bakt badhta rehta hai.


Kamini ko thoda thoda ehsas hoti hai per apne bete ko leke wese oh soch nehi pati isilie ignor karti.

Raghab jab bhi mouka pati hai apne maa ko baho main daboch leti hai aur uske jism ke khusboo aur uske sparsh ko feel karta hai. Kamini sochti hai bete ka maa ke lie pyar hai.


Ab jamana badal chuka tha. Computer ke jamana chal raha tha. Raghab mobile main har bakt Xforum sites pe maa bete ki pyar ki kahani aur unke bich sambandh ke kahani padh ke garam hojata tha. Per uske arman apne tak simit rakhta tha.


Ab Kamini ne business ko ese set karli thi ki usko ab kaam karne ki jaroorat nehi padi. Uske paas bahut paise ho chuke the. Raghab bi +2 pass kar chuka tha. Apne mom ki business ko sambhalne ki socha tha.


Ek din Raghab mayus hoke baitha tha. Kamini ne jake uske paas baith gayi. Boli mere laal ko kya hua. Raghab ne kaha kuchh nehi maa. Kamini ne kahi kaam ke silsile main tumhe jyada maa ki pyar nehi de payi. Raghab ne kahi mujhe maa ki pyar ki jaroorat nehi hai ab.


Kamini kuchh samajh nehi payi. Usne jor deke boli iska kya matlab tujhe maa ki pyar ki jaroorat nehi hai. Tujhe pata hai main kitna pyar karti hoon. Kya kya jhela hoon sirf teri khusi ke lie.


Raghab ne kaha han maa mujhe sab pata hai. Phir kamini ne puchha to tujhe meri pyar main kya khoot laga jo meri pyar nehi chahie.


Raghab ne kaha mujhe apka pyar chahie per maa wala nehi. Ye bolke oh apne room main jake baith gaya. Kamini ke dimag sun ho chuki thi. Oh samjh nehi pa rehi thi ki Raghab kya keh raha hai.


Kamini jake Raghab ke paas main baith gayi. Boli kya bol raha hai. Thik to hai na. Raghab Kamini ko na dekh ke khidki se dekh raha tha. Kamini ne puchhi tera haal to thik hai na.


Raghab ne kuchh nehi kaha. Kamini ne kahi tujhe meri kasam tere dil main jo hai oh main sunna chahti hoon. Raghab ne Kamini ke aur mood ke kaha ye kya bol di apne maa. Ye main bol nehi sakta.


Kamini ne kahi esa kya hai jo bol nehi sakta . Apne dost ke tarah samajh aur bol de. Raghab ne ab apne jajbaat ko kabu nehi kar paya Kamini ko khadi karke ek diwar main satka diya.


Yese achanak hamle se Kamini kuchh samajh nehi payi. Usne Raghab ke ankho main dekhne lagi. Usne aaj apne bete main ek mardangi ka ehsas payi jo apne jindegi main pehli baar thi. Uske mama to rakhyas ke tarah sosan kia tha per pyar oh kisise nehi ki thi ab tak . Kiun ki oh mard jaat se nafrat karti thi us hadse ke baad.


Per aaj kiun apne bete ke baho main ek mard ke ehsas hone laga ye uske samajh main nehi ayi.


Raghab ne kaha kya bataun main tumhe maa. Kya ye bata dun mujhe kisi ladki main koi ruchi nehi hai siwaye apke. Ya ye bata doon mujhe aap maa nehi ab ek aurat nazar ate ho.



images-76 Mujhe apne mamta nehi apse ek aurat ka sukh chahie. Sirf ek bakt se sukh nehi jindegi bhar ka pyar chahie. Mujhe ab aap chahie.

Apke in ankho main doobke apko dekhta rahoon. Apke in hotho ko din raat chumta rahoon . Apke ye nagin jesi kamar ko pakadke sehlata rahoon. Apko oh pyar doon jo aap kabhi nehi payi. Apke har dard ko pyar main badal na chahta hoon.


Kamini apne bete ke ankho main dekh ke kho chuki thi. Uske bete ke har ek pyar bhare lafz uske dil ko chhunke usko pighla rehi thi. Apne khud ke bete ke prati akarsit ho rehi thi. Oh kamjor pad rehi thi.


Raghab ye kehte kehte Kamini ko apne baho main kaske bhar lia tha. Raghab oh pyar bhare uttejana ke sikhar main pahunch chuka tha. Kamini bete ki mardangi baho main kamjor pad rehi thi. Bete ki pyar bhare ehsas se mugdh hoke uske aur dhal rehi thi.


Dono kuchh der apne aap main kho gaye. Phir pata nehi kab dono ke hoth apas main mil gaye. Sare riste bhool ke dono maa bete pyar bhare milan main doob gaye.


Dono ke jism ekdusre ki pyas main pagal ho gaye. Dono premi ekdusre ki prem bandhan main jood gaye.ya to koi chamatkar tha ya koi bandhan ine mila diya esa pratit hua.


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Dono ek dusre ki pyar main inta kho gaye dono ke sambandh bhool gaye. Raghab ne kamini ke saree ki pallu ko gira diya. Uske yoban ko upobhog karne ki chahat pagal bana diya tha. Usne Kamini ke har ek badan ko chum ke apna pyar ka izhar kia.

Raghab ne apna shirt kholdia. Kamini apne bete ki mardangi jism ko chumne lagi. Uske chhati aur gardan main apna pyar lootane lagi . Kamini ko ye hos tak nehi thi kya kar rehi hai. Apne bete ko ek aurat ka sukh de rehi hai.


Raghab ne kamini ke sarir se saree blouse petticoat nikal ke nangi kardia. Uske maa ke yoban bhara badan ko dekh ke pagal ho utha. Uske jism ke har ek ang ko chum chum ke apne itne barsh ke tadap ko mehsus karaya .

Kamini ke badan apne bete ke chumban se uttejana ki taap se tap chuki thi. Uske yoni se aaj pehli baar kaam ras nikak raha tha.

raghab ab kamini ke bra ke hooke kholke apne sarir se alag kardia. Phir uske gore gore kase doodh ko apne munh main bharke bade pyar se chus ne laga. Kamini bas apne bete ki pyar se ahhhhh ummmmh shhhh ki awaz nikal rehi thi. Uski naye ghar thode sunsan jagah se banayi thi koi ane jane ka sawal nehi tha.


Ab Raghab ne apna sara kapde uar diya aur Kamini ke baki ke basra bhi nikal dia. Ab Raghab kamini ke dono janghe ko sarkake uske yoni ke ras ko apne jibh se chatne laga. Is hamle se kamini kamp gayi. Apne bete ki sar ko apne yoni main dabake siskari nikalne lagi. Raghab pyase sher ki tarah chut ka sikar karke uske pani ko chusne main magn tha.


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Kamini ne khud ko aur rok nehi payi apne bete ke mukh main sara kamras apne yoni se nikal di. Dono maa bete apne hos main nehi the.


Raghab ab apna ling ko apne maa ki mukh ke paas rakh diya. Kamini ne apne bete ki ling ko apne munh main leke uska swad main kho gayi. Chus chus ke ling ko chikhna kardi.


Ab ghadi a gayi milan ke. Ek maa - bete ki jism ke milan ke. Raghab apna ling apna maa ki yoni ke mukh main rakh ke ek dhaka diya. Thoda gilepan ke sahare se thoda ling ander gaya per Kamini ki chinkh nikal gayi. Jese kamini ab tak kunwari ho ese ehsas hui.


Kamini ke dard bhare awaz se Raghab kamini ne nangn jism main apna pyar lootana chalu kardia. Jisse Kamini ke ander uttejana ki lahar khil gayi . Ab oh pure ling lene ki josh main agayi. Do char dhake deke aur pyar karte karte sara ling apne maa ki rasile yoni main dal dia.


Raghab ye mehsus kar raha tha ki apne maa ki yoni uske ling ko ander se pakad ke khusi de rehi hai. Dono maa bete milan ke sukh main sare riste bhool gaye. Bas sirf ek mard aurat ko sukh de raha hai aur ek pyasi jawani aurat mard ko apna jawani bakhs di hai esa anubhab kar rehe the.


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Dono jism jese kai janmo ki pyas ko mita rehe the. Kuchh der baad Raghab ne apna birjya apne maa ki yoni ke ander uske kokh bharne ke lie nikal diya sath hi apne bete ki garm birya ke ehsas se Kamini trisri baar jhad gayi. Phir Raghab aur kamini ek dusre ko pakad ke so gaye.


Jab Kamini ko hos ayi to usne apne sar pe hath rakh ke rone lagi. Raghab uthke baith gaya. Usko bhi ye ehsaa nehi tha kya kar raha hai. Kamini rote rote do chhar thapad Raghab ko maar dia. Aur uthke jane wali thi Raghab uska haath pakad lia. Usne kaha mujhe pata nehi main kya kar raha tha. Main sirf apko pyar karta hoon main jindegi bhar karunga.


Tabhi ek akas bani hua. Uper se parmatma ne bola Kamini tumhari ya phir Raghab ki koi galti nehi hai. Ye milan ek Shaap ke wajase hua hai. Koi paap nehi hua hai. Apne ankhe band karke sari ghatnakram ko dekh lo.


Phir dono ne ankhe band karke dekhne lage. Kamini aur Raghab do premi the janm janmantar ke. Dono dev angs the. Dono prithvi main ek baan main sharat karke ghum rehe the. Tabhi unhone dekha ki ek aurat kam basna se ek kamre main jal raha hai . Phir aur ek ladke ne hast maithun kar raha hai jo thoda pagal lag raha tha.


Tabhi us aurat ne apne pati ko bulane laga. Us aurat dekh nehi sakti thi. Uske pati sayad nehi tha wanha. Kamini ko ek sarat sujhi usne Raghab ko kaha ki sayad us aurat ne sambandh banane main atur hai. Yanha koi aur nehi hai. Sayad is pagal se apni pyas bujha rehi hogi. Tabhi to ye pagal hast maithun kar raha hai. Raghab ne us ladke ko pukara. Ladke ne apna ling ander chhupake daud aya. Raghab ne usko pakad ke us aurat ke ghar ke bahar khada kardiya. Kamini ne darwaja kholdia. Us aurat ne kaha ap agaye mujhe aur raha nehi jata. Us pagal ko kuchh samjh nehi araha tha. Usne jake us aurat ke sath milan kardiya.Raghab aur kamini ye drisya dekh ke door ek dusre ko chumne lage. Jab aurat ko ehsas hua ki oh uske bete hai. Hatane ki kosis karne lagi.


Per us pagal ne kaske apne maa ke sath sambandh bana lia. Uske baad usne uthke baith gaya. Us aurat rone lagi. Uski rone ki awaz itni thi ki Kamini aur Raghab doud ke wanha pahunch gaye.


Phir kamini ne puchhi kya hua to us aurat ne bata dia ki ye mera beta hai. Isko kon leke aya jisse ye bhul hui pata nehi. Kamini aur Raghab dono dev angs the. Unhine jhoot nehi bol sakte the.


Phir kamini sari baat bata di. Us aurat ne kahi tumne jo bhi samjh ke mere bete ko mere paas layethe per galti to hua na. Ye main kadapi maaf nehi karungi. Ek andhi bebas maa tumhe shaap deti hoon tum bhi ek din bebas hoke apne bete se milan karoge. Tumhare bete ko apne marzi se milan karne doge.


Kamini ese shaap se hil gayi. Usne uske pair pakad ke rone lagi. Uske rone se us aurat ko daya aya. Phir usne kaha iss paap ke saza to bhugatne honge. Shaap bapas nehi le ja sakta. Mere pagal bete se mujhe sambhog karwaya to tumhe ek pagal darinde se ek bete prapt hogi. Oh beta tumhare premi hoga . Usse pyar bhara milan hoga. Jo milan maa- bete ka hoga. Us janm ke ant tak tum dono maa bete banke din raat milan karoge.


Phir kamini aur Raghab dono ankhe khole. Dono ek dusre ko pehchan chuke the. Riste main maa-bete the per atma se premi . Phir dono ne apna sare jaidad bech ke sahar chale gaye wanha shadi karke pati patni ke tarah maa bete rehne lage. Raghab maa pukarta raha aur apne maa ke yoni ko jee bharke apne kamras re bharne laga.


Ese hi ek shaap ne maa- bete ki milan karwaya.


THE END
 

Wahshi jutt

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Bebo ki chudai truck MN
Temor ki paidash k bad ABI tak bebo ko koi Achi film Nahi mli thi
Mgr ab us k pass ek Achi film thi mgr ajj usy shooting py phnchns tha sari film oty k junglat MN banni thi

Bollywood ki herion Karena kaporr Yani ki hmari bebo tyzi sy gari chla rahi thi oty phnchny k lye
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RAt kafi ho chuki thi mgr bebo ki to set py phnchns tha
achank gari band ho gsi or bebo bhut preshan ho gai
bebo Dil MN Sochny lgi ufffff yar ye gari ko b ABI khrab Hons ths or bebo ab gari sy bhr nikal ai dor door tak ghny jnglat phely Hoy thy js waja sy ab bebo Thora ghbrany b lagi thi
tabhi rod py dor sy usy ek light nazar AI to usy Kuch umeed ki Kiran jagi k shyed aggy tak lift ml jay

or any wali gari ek truck tha jsy Punjab Ka ek budha srdar blwant singh chla rha tha

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blwant singh truck ki light MN ek orat ko rod py lift k lye hath krty Dekha phly to blwant usy chorna Ka Socha mgar jesy jesy truck us k nazdeeq phncha or wo orat saf nazar any lgi to blwant Ka mun khula rah gya es andhri rat MN ek Sunsan sadak py bebo ko Dekh k to blwant breek LGA Di
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BEbo andar sy bhut ghbra rahi thi kio k ek low class admi k sath wo es tra phli dafa wqat guzar rahi thi
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tabhi hlki hlki harsh start ho gai
blwant.....medam ap otty es wqat Kya leny ja rahi ap suba phnch jati
bebo.....wo asal MN suba sy shooting start Hy udher es lye mra phnchns bhut zrori Hy

tabhi barsh tyz ho gsi or tyz hwa ki waja sy ab truck chlna badi mushkil ho gya tha
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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"वापसी की कीमत"
_____________________
यूॅ तो हर प्राणी को एक दिन अपना सब कुछ छोड़ कर इस संसार सागर से जाना ही होता है मगर इस कड़वे सच को जानने समझने के बावजूद हम कभी अपनों के जाने के लिए तो कभी खुद के नुकसान के लिए दुखी हो जाते हैं। आज वक़्त और हालात ने मुझे जिस जगह पर ला कर खड़ा कर दिया था उसकी हर शय का ज़िम्मेदार सिर्फ और सिर्फ मैं था। शमशान में मेरे पिता की धू धू कर के जलती हुई चिता जैसे मुझे अहसास करा रही थी कि अगर मुझे वक़्त से पहले अपनी ग़लतियों का अहसास हो गया होता तो आज मेरे पिता का ये अंजाम नहीं हुआ होता। मेरी आँखों से दुःख और पश्चाताप के आँसू बह रहे थे लेकिन इस वक़्त मेरे आंसुओं को पोंछने वाला यहाँ पर मेरा अपना कोई नहीं था। आस पास कुछ जान पहचान वाले मौजूद तो थे मगर उनके विसाल ह्रदय में मेरे लिए कोई जगह नहीं थी।

शमशान में अपने पिता की जलती चिता के सामने जाने कब तक मैं सोचो के अथाह सागर में डूबा रहा। आस पास जो लोग थे वो जाने कब का वहॉ से जा चुके थे। रेत की मानिंद फिसलता हुआ ये वक़्त मुझे गहरे ख़यालों से निकालने के लिए जैसे आवाज़ें लगा रहा था मगर उसकी वो आवाज़ें मेरे कानों तक पहुंच ही नहीं पा रही थी। तभी सहसा किसी ने मेरे कंधे पर अपने हाॅथ को रख कर हल्का सा दबाया तो मैं सोचो के गहरे समुद्र से बाहर आया और धीरे से गर्दन को बायीं तरफ फेर कर देखा। मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जो इस दुनिया का सबसे खूबसूरत भले ही न रहा हो मगर उससे कम भी नहीं था। दुनिया भर की सादगी और मासूमियत मौजूद थी उस चेहरे में मगर आज से पहले वो चेहरा मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। हाँ इतना ज़रूर था कि उस खूबसूरत चेहरे की मालकिन पर मेरी बुरी नज़र ज़रूर रहती थी। ये अलग बात है कि मैं अपने गंदे इरादों को परवान चढ़ाने में कभी कामयाब नहीं हुआ था।

मैने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो उसने मेरे कंधे से फ़ौरन ही अपना हाॅथ हटा लिया और तेज़ी से दो क़दम पीछे हट गई। उसके इस तरह पीछे हट जाने से मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसने मुझे ये अहसास कराया हो कि मुझे कोई छूत की बीमारी है और सिर्फ मेरे क़रीब रहने से उसे छूत का रोग लग जाएगा। ऐसा वो पहले भी करती थी और उसके ऐसा करने पर मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी भी धधक उठता था मगर इस वक़्त ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था, बल्कि इस वक़्त तो मुझे खुद ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि मुझे सच में ही छूत का रोग है और जो कोई भी मेरे क़रीब आएगा उसे छूत की बीमारी लग जाएगी। अपने आपसे बेहद घृणा सी हुई मुझे। ऐसा लगा जैसे मैं खुद को जला कर ख़ाक में मिला दॅू मगर मेरी बद्किस्मती कि मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकता था।

"अब अगर दुनिया वालों को तुम्हारा ये झूठा नाटक दिखाना हो गया हो तो घर भी चले आओ।" उसने बेहद सर्द लहजे में कहा____"या फिर चले जाओ वहीं जहाँ तुम्हारी अपनी दुनिया है और तुम्हारे अपने हैं। अब तक तो उन्हें खुद ही सम्हालती आई हॅू तो आगे भी सम्हाल ही लूॅगी।"

दुनिया में एक वही थी जो मुझसे इस लहजे में बात कर सकती थी। हालांकि अब से पहले उसके ऐसे लहजे पर मुझे बेहद गुस्सा आता था और मैं उसे जान से मारने के लिए भी दौड़ पड़ता था मगर हर बार वो मेरे माता पिता की वजह से बच जाती थी। उसके अपने माता पिता तीन साल पहले रोड एक्सीडेंट में चल बसे थे। मेरे पिता जी और उसके पिता बहुत ही गहरे मित्र थे और हम दोनों की शादी की बात भी पहले ही पक्की कर चुके थे। उसके माता पिता के गुज़रने के बाद मेरे माता पिता ही उसका हर तरह से ख़याल रख रहे थे। जैसे मैं अपने माता पिता की इकलौती संतान था, वैसे ही वो भी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। उसमे हर वो गुण थे जो एक अच्छी लड़की में होने चाहिए और इधर मुझमे हर वो दुर्गुण था जो एक अच्छे खासे बिगड़े हुए इंसान में होना चाहिए।

"तुम सुन रहे हो या मैं जाऊॅ यहाँ से.?" उसने उखड़े हुए भाव से ये कहा तो जैसे मैं एक बार फिर से सोचो की दुनिया से बाहर आ गया। मैंने नज़र उठा कर उसे देखा। उसकी नील सी झीली गहरी आँखों में अभी भी सवाल था। उसके पूछने पर मैंने धीमी आवाज़ में कहा_____"किस मुह से घर आऊॅ ?"

मेरे ऐसा कहने पर उसके सुर्ख होठों पर बड़ी अजीब सी मुस्कान उभरी। चेहरे पर हिक़ारत के भाव गर्दिश करते नज़र आए और सच तो ये था कि मैं उसकी आँखों से दो पल के लिए भी अपनी आँखें न मिला सका। कदाचित मेरे अंदर अपराध बोझ ही इतना था कि मैं उससे नज़रें नहीं मिला पाया था।

"इंसान जैसा होता है वो दूसरों को भी वैसा ही समझता है।" उसने अजीब भाव से कहा_____"जबकि सच इससे बहुत ही जुदा होता है। तुमने कभी अपने सिवा किसी और के बारे में सोचा ही नहीं...और सोचते भी कैसे?? तुम्हारी नज़र में तो तुम्हारे अलावा सारी दुनिया के लोग ही ग़लत हैं। तुम्हें हमेशा अपने माता पिता ही ग़लत लगे। उन्होंने तुम्हारे भले के लिए जो कुछ भी कहा या जो कुछ भी किया वो सब तुम्हें ग़लत ही लगा। तुम्हारे लिए अगर कोई सही था तो वो थे तुम्हारे दोस्त जो सिर्फ तुम्हारे मन पसंद की बातें करते थे।"

मैं ख़ामोशी से उसकी बातें सुन रहा था। आज मुझे उसकी बातें ज़रा भी नहीं चुभ रही थी बल्कि ये अहसास करा रही थी कि अब से पहले मैं कितना ग़लत था और कितना बुरा इंसान था। आज वो लड़की बेख़ौफ़ हो कर मुझसे ये सब बातें कह रही थी जो आज से पहले मुझे देखते ही डर कर कांपने लगती थी। आज उसे ज़रा सा भी मुझसे डर नहीं लग रहा था, बल्कि अगर ये कहूॅ तो ज़रा भी ग़लत नहीं होगा कि आज मैं खुद उससे डर रहा था।

"ख़ैर छोड़ो।" उसने सहसा गहरी सांस ली____"और हाँ माफ़ करना, मुझे तुमसे ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। तुम खुद ही इतने समझदार हो कि कोई तुम्हें समझाने की औकात ही नहीं रखता। तुम वही करो जो तुम्हें अच्छा लगे। अब जा रही हूॅ मैं।"

"रु रुक जाओ।" मैंने बड़ी मुश्किल से कहा।
"किस लिए??" उसने पलट कर मेरी तरफ देखा।
"मैं मानता हूॅ।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा_____"मैं मानता हूॅ कि अब तक मैंने जो कुछ भी किया वो सब बहुत ही ग़लत था, बल्कि ये कहूॅ तो ज़्यादा बेहतर होगा कि मैंने जो कुछ भी किया वो माफ़ी के लायक ही नहीं है मगर....।"

मेरे रुक जाने पर उसने सवालिया निगाहों से मेरी तरफ देखा। उसके मासूमियत से भरे चेहरे को देख कर एकदम से मेरे जज़्बात मचल उठे। मेरा जी चाहा कि मैं उसे अपने सीने से लगा लूॅ, मगर ऐसा करने की मुझ में हिम्मत नहीं थी। आज से पहले उसके लिए इस तरह के जज़्बात मेरे दिल में कभी नहीं उभरे थे। मैं समझ नहीं पाया कि आज ही ऐसा क्यों हो रहा था?

"मगर मैं ये कह रहा हू कि।" फिर मैंने अपनी तेज़ हो चली धड़कनों को काबू करते हुए कहा_____"क्या तुम मुझसे शादी करोगी? देखो मुझे ग़लत मत समझना। मैं जानता हूॅ कि मेरे जैसे इंसान से कोई भी लड़की शादी नहीं करना चाहेगी। तुम चाहो तो बेझिझक मना कर दो, मगर मैं ये कहना चाहता हूॅ कि क्या हम एक नई शुरुआत नहीं कर सकते? मेरा मतलब है कि एक ऐसी ज़िन्दगी की शुरुआत जिसमे मैं एक अच्छा आदमी बन कर तुम्हारे और अपनी माँ के साथ रहूॅ?"

"तुम एक अच्छा आदमी बनोगे??" उसने इस तरह से कहा जैसे उसने मेरा मज़ाक उड़ाया हो_____"अभिनय बहुत अच्छा कर लेते हो मिस्टर विजय मगर ये हमेशा याद रखना कि तुम्हारे इस अभिनय से मुझ पर कोई असर नहीं होगा। ये सच है कि मैं आज भी तुमसे दिलो जान से प्यार करती हॅू मगर यकीन मानो अपने इस प्यार के लिए तुम्हें पाने की मेरे दिल में ज़रा सी भी हसरत नहीं है।"

मैने कुछ कहना चाहा मगर वो अपनी बातें कहने के बाद एक पल के लिए भी नहीं रुकी और ना ही उसे रोकने की मुझ में हिम्मत हुई। ज़िन्दगी में पहली बार मैं खुद को इतना बेबस और लाचार महसूस कर रहा था मगर मेरी बेबसी और लाचारी में किसी का भी कोई हाॅथ नहीं था बल्कि ये तो मेरे ही बुरे कर्मों का नतीजा था।

विभा जा चुकी थी और मैं अभी भी अपनी जगह पर बुत बना खड़ा था। इस वक़्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे इस संसार में कोई नहीं है। संसार का हर प्राणी जीव जैसे इस संसार से विलुप्त हो गया है और अगर कोई है तो सिर्फ मैं, अकेला और बहुत ही अकेला। मेरे अंदर विचारों का ऐसा भूचाल आ गया कि अब उसे रोकना मेरे अख़्तियार में नहीं था।

<>•<>•<>

मैं विजय शर्मा, अपने माता पिता की इकलौती औलाद और इकलौती ही उम्मीद। मेरे माता पिता ने मुझे बड़े ही लाड प्यार से पाल पोश कर बड़ा किया था। ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेरे माता पिता ने मुझे कभी किसी बात के लिए डॉटा हो। हर माँ बाप अपने बच्चों से बेहद प्यार करते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चे हमेशा खुश रहें। हर माँ बाप अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी औलाद बड़ी हो कर एक ऐसा इंसान बने जो अपने अच्छे कर्मो के द्वारा अपने माता पिता के नाम को रोशन करे। आज सोचता हॅू कि मेरे माता पिता ने मुझे लाड प्यार से पाला तो क्या उन्होंने ग़लत किया था?? मुझे पढ़ा लिखा कर बड़ा किया तो क्या ये ग़लत किया उन्होंने? हरगिज़ नहीं....तो फिर ऐसा क्या हुआ कि आज मैं इतना बुरा बन गया हूॅ?

इंसान जब गहराई से सोचता है तो उसे समझ आता है कि सही और ग़लत क्या है। मुझे अपने माता पिता का भरपूर लाड प्यार मिला मगर मैं बिगड़ गया तो क्या ये उनकी ग़लती थी? मुझे ऐसे दोस्त मिले जो हमेशा मेरे ही मन की करते थे...तो क्या उन्होंने मुझे इस बात के लिए बढ़ावा दिया कि मैं आगे चल कर एक बुरा इंसान बन जाऊॅ? सच तो ये था कि मैं कभी कुछ समझना ही नहीं चाहता था। मेरे मन में जो आया मैं करता गया। मुझे जो अच्छा लगा मैंने हमेशा वही किया। धीरे धीरे मेरी फ़ितरत ऐसी हो गयी कि अगर मेरे माता पिता मुझे किसी चीज़ के लिए मना करते या समझाते तो मैं गुस्सा हो जाता और फिर तो जैसे ये सिलसिला ही चल पड़ा।

मेरे पिता जी एक सरकारी नौकरी में थे और माँ एक घरेलू महिला। दोनों ही मुझ पर अपनी जान छिड़कते थे। पिता जी के दोस्त की बेटी थी विभा जिससे बहुत पहले ही मेरी शादी की बात पक्की हो गयी थी। हम दोनों एक साथ खेल कूद कर बड़े हुए थे। मैं जानता था कि वो मुझसे मन ही मन प्यार करती है मगर मेरे दिल में कभी भी उसके लिए प्यार वाला अहसास नहीं था। हम दोनों बड़े हुए तो मैं अक्सर उससे छेड़ खानी करता और यही कोशिश करता कि उसे भोग सकूॅ या फिर उसके कोमल अंगों को अपने हाथों से सहला सकूँ मगर वो काफी समझदार थी। मेरे इरादे वो फ़ौरन ही भांफ जाती थी और ऐसे हर अवसर पर वो मुझसे दूर चली जाती थी। उसको भोग न पाने की वजह से मैं गुस्सा होता और फिर जाने क्या क्या बोल देता उसे, जिससे मेरे माता पिता मुझ पर गुस्सा करते और जब मेरे माता पिता मुझ पर गुस्सा करते तो मैं ये सोच कर और भी गुस्सा होता कि विभा की वजह से मेरे वो माता पिता मुझ पर गुस्सा करते हैं जिन्होंने कभी मुझे ऊॅची आवाज़ में डॉटा तक नहीं।

विधाता ने शायद मेरे प्रारब्ध को पहले ही लिख दिया था कि एक दिन मुझे ऐसा बन जाना है कि मेरी वजह से मेरा हॅसता खेलता परिवार तिनके की तरह टूट कर बिखर जाएगा। मेरे पिता जी को ब्लड कैंसर हो गया था जिसकी जानकारी मुझे नहीं थी। वो नौकरी से रिटायर हो चुके थे। मेरे घर में दुःख दर्द ने जैसे अपना आशियाना बना लिया था और मैं इस सबसे बेख़बर अपनी ही दुनिया में मस्त था। मेरी दुनिया में सिर्फ मेरे दोस्त ही थे। जिनकी संगत में रह कर मैं अच्छा खासा बिगड़ गया था। कई कई दिनों तक तो मैं अपने घर ही नहीं आता था और अगर आता भी तो तब जब मेरी पॉकेट से पैसे ख़त्म हो जाते। पैसों के लिए मैं मॉ के पास जाता, उस मॉ के पास जिसके बारे में मैं ये बात अच्छी तरह जानता था कि वो अपने लाल को किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं कर सकती। माँ मुझे पैसे देती और साथ ही पैसे देते वक़्त कुछ अच्छी भली बातें भी कहती, जिन्हें उस वक़्त मैं एक कान से सुनता और दूसरे कान से हवा में उड़ा देता था। मुझे इस बात से कोई मतलब ही नहीं होता था कि मेरे घर के हालात कैसे हैं या मेरे माता पिता किस दौर से गुज़र रहे होंगे?

विभा के माता पिता रोड एक्सीडेंट में गुज़र गए थे तो उसकी जिम्मेदारी भी मेरे माता पिता के कंधों पर आ गयी थी। विभा ज़्यादातर मेरे घर में ही रहती थी, हालाँकि उसका घर मेरे घर के बगल से ही था मगर माँ का कहना था कि अकेली जवान लड़की का इतने बड़े घर में अकेले रहना ठीक नहीं है। मुझे जब भी मौका मिलता मैं विभा को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश ज़रूर करता। विभा मेरे इरादों को नाकाम करते हुए बच कर निकल जाती थी मगर वो मेरे माता पिता को मेरी करतूतें नहीं बताती थी। ऐसा शायद इस लिए कि वो नहीं चाहती थी कि मेरी इन करतूतों को जान कर मेरे माता पिता मुझ पर गुस्सा करें। हलांकि मेरे लिए तो वो अच्छा ही करती थी मगर दुर्भाग्य से एक दिन मेरी करतूत का पता मेरी माँ को चल ही गया। उस दिन माँ ने मुझे पहली बार डांटा था। माँ ने डॉटा तो मुझे इसके लिए यकीनन शर्मिंदा होना चाहिए था मगर मैं उनकी डांट से माँ पर कम बल्कि विभा पर और भी ज़्यादा क्रोधित हुआ था।

मैं ऐसे मुकाम पर पहुंच चुका था जहाँ पर किसी की अच्छी नसीहतों का मेरे लिए कोई मतलब नहीं था। मेरे लिए सिर्फ ये मायने रखता था कि मैं जो चाहूॅ वही हो। मेरी चाहत और मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ अगर कोई कुछ भी करता था तो वो मेरे लिए जैसे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता था। मेरे इस रवैये की वजह से हालात ऐसे बन गए कि एक दिन मेरे पिता जी ने मुझे घर से निकल जाने का हुकुम सुना दिया। अपनी अकड़ और गुस्से में मैं घर से एक बार निकला तो फिर कभी लौट कर वापस घर नहीं लौटा। मैं रहा उसी शहर में मगर मेरे ठिकाने बदलते रहे। अपने जीवन निर्वाह के लिए मैं छोटा मोटा काम करता और दोस्तों के साथ मस्त रहता। मेरे दोस्तों ने मुझसे ये कभी नहीं कहा कि मैं ऐसा करके ग़लत करता हूॅ बल्कि वो तो हमेशा यही कहते रहे कि ये कैसे मॉ बाप हैं जिन्होंने एक बार भी मुझे घर वापस आने को नहीं कहा। दोस्तों की ये बातें जैसे मेरे गुस्से और मेरी नफ़रत में और भी ज़्यादा इज़ाफा कर देती थी।

वक्त ऐसे ही गुज़रता रहा और मेरी अकड़ वैसी ही बनी रही। कोई अगर मुझसे पूछे कि मुझमें किस बात की अकड़ थी तो शायद मैं इस सवाल का जवाब देना ही न चाहूॅ। मैंने तो जैसे कसम खा ली थी कि भूखा मर जाऊंगा लेकिन किसी चीज़ के लिए हाथ फ़ैलाने अपने माँ बाप के पास नहीं जाऊॅगा। मेरा गुस्सा और मेरा खोखला ग़ुरूर ही जैसे मेरे लिए सब कुछ था।

उसी शहर में रहता था तो यूॅ ही कभी कभार अपने घर के रास्ते की तरफ भी चला जाता। घर के सामने से गुज़र जाता था मगर उस घर की तरफ जैसे मुझे देखना तक गवारा नहीं था। विभा अगर कभी नज़र आ भी जाती तो मैं उसे अनदेखा कर के निकल जाता था। मैंने कभी ये देखने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसे अवसरों पर विभा की आॅखों में मेरे लिए क्या ख़ास होता था।

पिता जी की चोरी से माँ कभी कभी विभा को मेरे पास भेजती थी मेरा हाल चाल जानने के लिये। विभा मुझे खोजते हुए मेरे पास आती और मुझसे कहती कि घर में माँ मुझे बहुत याद करती है। वो मुझसे ये भी कहती कि मैं अपने माँ बाप को किस बात की सज़ा दे रहा हॅू मगर उसकी ऐसी बातों पर मैं यही कहता कि अब मेरा उस घर में रहने वालों से कोई रिश्ता नहीं है। असल में मुझे गुस्सा इस बात का था कि मेरे बाप ने मुझे घर से निकल जाने को कहा था और फिर उन्होंने एक बार भी मेरे पास आ कर ये नहीं कहा था कि बेटा सब कुछ भुला कर अब घर चल। हालांकि उस वक्त अगर मैं सोचने समझने की हालत में होता तो इस बात पर ज़रूर ग़ौर करता और फिर समझता भी कि घर से निकल जाने की बात कह कर मेरे पिता ने कोई ग़लत काम नहीं किया था। मेरे जैसे कपूत के साथ ऐसी सिचुएशन में दुनिया का हर बाप यही करता मगर लाड प्यार से पला बढ़ा मैं इस बात को सहन ही नहीं कर सका था। ऊपर से मेरा वो खोखला ग़ुरूर मुझे किसी के सामने झुकने की इजाज़त ही नहीं देता था।

अगर सिर्फ इतना ही होता तो शायद बात बन सकती थी मगर फिर ऐसा वक़्त आया कि मैं अपनों की नज़र से गिरता ही चला गया। गुस्से की आग में जलता मैं हद से ज़्यादा नशा करने लगा था। आये दिन शहर में किसी न किसी से झगड़ा हो जाता और पुलिस मुझे पकड़ कर ले जाती। उस वक्त मैं यही सोचा करता था कि मेरा अब कोई नहीं है मगर मैं ग़लत सोचता था क्योंकि थाने से मेरी ज़मानत करवा कर हर बार निकालने वाला कोई और नहीं बल्कि मेरा पिता ही होता था, जिसकी मुझे भनक तक नहीं लगती थी मगर ऐसी सिचुएशन में मेरे अंदर मेरे अपनों के लिए गुस्सा और नफ़रत और भी ज़्यादा बढ़ जाती थी। मैं यही सोचता था कि मैं यहाँ दर दर भटक रहा हॅू और मेरे माता पिता को मेरी कोई फिकर ही नहीं है।

कई बार विभा ने मुझ तक संदेशा पहुॅचाया था कि मेरे पिता जी की तबियत ख़राब रहती है और ऐसे वक़्त में उन्हें अपने बेटे की ज़रूरत है मगर मैं एक बार भी घर जा कर अपने पिता को देखना ज़रूरी नहीं समझा था। ये दुनिया की सच्चाई है कि माँ बाप कभी भी अपनी औलाद का बुरा नहीं सोचते और जीवन भर वो अपनी औलाद की भलाई और ख़ुशी के लिए वो सब कुछ करते हैं जो उनसे हो सकता है मगर मेरे जैसी औलाद ज़रा सी बात का पतंगड़ बना कर उन्हें मरने के लिए छोड़ देती है। मैं यही सोचता था कि मुझे वापस घर लाने के लिए मेरा बाप अपनी तबियत ख़राब होने का बहाना बनाता है, जबकि मैं उसके ऐसे बहानों में फॅस कर घर लौटने वाला हरगिज़ नहीं हूॅ।

कहते हैं कि जो अपनों का नहीं होता वो किसी का भी नहीं हो सकता। गुज़रते वक़्त के साथ मुझे देख कर शायद ये बात मेरे दोस्तों को समझ आ गयी थी। तभी तो एक एक कर के उन सबने मुझसे किनारा कर लिया था। दोस्तों ने साथ छोड़ा तो जैसे दुनिया भर के इंसानों से नफ़रत हो गई मुझे। एक वही तो थे मेरे अपने और उन्होंने ही मेरा साथ छोड़ दिया था। कुछ दिन तो जैसे अज़ाब में गुज़रे थे और लगता था कि सारी दुनिया को आग लगा दूॅ मगर सच तो ये था कि मैं तो खुद को ही जाने कब से आग लगा रहा था।

एक कहावत है कि रस्सी जल गयी मगर बल नहीं गया, यही हाल मेरा था। मैं टूट कर भले ही बिखर गया था मगर मेरी अकड़ में ज़रा सी भी कमी नहीं आई थी। मुझे सब कुछ मंजूर था मगर उस घर में जाना और उस घर के लोगों के सामने झुकना मंजूर नहीं था। ख़ैर, दुनिया का सबसे बड़ा सच ये भी है कि अगर किसी चीज़ का जन्म होता है तो उसको एक दिन ख़त्म भी होना होता है। मेरी अकड़ और मेरे खोखले ग़ुरूर के ख़त्म होने का कभी वक़्त भी आएगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।

आज ही की तो बात है। मैं हमेशा की तरह किराये के कमरे में शराब के नशे में टुन्न लेटा हुआ था कि तभी किसी ने दरवाज़े को ज़ोर ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया। दरवाज़े के पीटेे जाने से मुझे होश आया और मैंने लेटेे लेटेे ही घुड़क कर पूछा कौन मर गया बे? मेरी इस आवाज़ पर बाहर से जो आवाज़ आई उसने मेरे नशे को जैसे छू मंतर कर दिया मगर मैं उठा तब भी नहीं, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरा सामना उस लड़की से हो जिसे अब मैं देखना ही नहीं चाहता मगर उस लड़की ने भी जैसे आज कसम खा ली थी कि वो मुझे अपनी शक्ल दिखा कर ही जाएगी।

मन ही मन हज़ारो गालियाॅ देते हुए मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला। बाहर विभा खड़ी थी। उसका चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था और वो बहुत अजीब भी लग रही थी इस वक़्त। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला तो उसने आगे बढ़ कर मेरे गाल पर इतनी ज़ोर से थप्पड़ मारा कि मैं दरवाज़े के दाऍ पल्ले से जा टकराया। मैंने फ़ौरन ही अगर दरवाज़े के पल्लों को पकड़ न लिया होता तो निश्चय ही मैं लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर जाता। मेरा सारा नशा उसके दमदार थप्पड़ से हिरन हो चुका था किन्तु अगले ही पल मैं इस बात से आग बबूला हो गया कि दो कौड़ी की औकात रखने वाली एक लड़की ने मुझ पर हॉथ उठाया? मैने आग उगलती ऑखों से उसकी तरफ देखा ही था कि...

"क्या समझते हो तुम अपने आपको??" उसने शेरनी की तरह दहाड़ते हुए गुस्से में कहा_____"तुम्हारे लिए किसी की कोई अहमियत है कि नहीं, या फिर तुमने सोच ही लिया है कि तुम्हारे लिए सब मर गए हैं?"

"क्या यही बकवास करने आयी हो यहॉ?" मैंने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए कहा_____"और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हाॅथ उठाने की?"
"मेरा बस चले तो मैं तुम्हारा खून भी कर दूॅ।" उसने पूरी शक्ति से चीखते हुए कहा_____"तुम्हारे लिए जो थोड़ी बहुत इज्ज़त रह गयी थी मेरे दिल में उसे भी आज तुमने ख़त्म कर दी है।"

"तो आयी ही क्यों हो यहॉ?" मैंने लापरवाही से कहा____"जाओ यहाँ से। मुझे भी तुम्हारी शक्ल देखने का कोई शौक नहीं है।"
"मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम इतना नीचे तक गिर जाओगे।" उसकी आवाज़ भर्रा गई और फिर वो एकदम से सुबकने लगी। रोते हुए ही बोली_____"कितनी बार तुम्हें सन्देशा भेजा कि पिता जी की तबियत ख़राब है मगर तुम इतने कठोर हो कि एक बार भी उन्हें देखने घर नहीं आए।"

"मेरी मर्ज़ी।" मैंने अपने हाॅथ झटकते हुए कहा_____"मैं आऊॅ या ना आऊॅ मेरी मर्ज़ी है। ना ही मेरा कोई है और ना ही मेरा किसी से कोई रिश्ता है। अब इससे पहले कि मैं गुस्से से अपना आपा खो दूॅ चली जाओ यहॉ से।"
"हॉ चली जाऊॅगी।" उसने अपनी रुलाई को बड़ी मुश्किल से रोकते हुए कहा____"मैं तो बस ये कहने आई थी कि अगर तुम्हारे दिल में ज़रा सा भी अपने पिता जी के लिए प्रेम बचा है तो जा कर अपने पिता की चिता को आग दे दो। कम से कम उनकी आत्मा को तो शान्ति पहुॅचा दो।"

विभा इतना कहने के बाद फूट फूट कर रोंने लगी थी। इस बार वो अपने आपको सम्हाॅल नहीं पाई थी। पहले तो मुझे समझ न आया मगर जब मेरे कुंद पड़े ज़हन में उसकी बातें घुस गई तो सहसा मेरे मनो मस्तिष्क में जैसे कोई बम्ब फूट गया। बड़ी तेज़ी से मेरे मन में सवाल उभरा____'क्या कह रही है ये?'

"ये क्या कह रही हो तुम?" उससे पूॅछते हुए मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई।
"अपने पिता जी को अपने कंधों पर शमशान ले जाओ।" विभा रोते हुए जैसे चीख ही पड़ी____"और उनका अंतिम संस्कार कर दो। क्या इतना भी नहीं कर सकते उनके लिए?"

इतना कह कर वो रोते हुए पलटी और फिर लगभग दौड़ते हुए वहॉ से चली गई। इधर मैं उसकी बातें सुन कर जैसे सन्नाटे में आ गया था। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकला, बस होंठ काँपते रह गए। दिलो दिमाग में भयंकर तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। अचानक से मेरी आँखों के सामने मेरे पिता जी का चेहरा घूमने लगा। एक एक कर के उनके साथ बिताया हुआ हर लम्हॉ मेरी आँखों के सामने जैसे फ़्लैश होने लगा। कुछ ही पलों में मेरा सिर मुझे अंतरिक्ष में घूमता हुआ महसूस हुआ...और फिर मैं एकदम से हलक फाड़ कर चिल्लाया।

शराब का बचा कुचा नशा वैसे ही गायब हो चुका था जैसे इलेक्ट्रिक बल्ब के जल जाने पर घना अँधेरा ग़ायब हो जाता है। मेरी हालत एकदम से पागलों जैसी हो गई। मैं जिस हालत में था उसी हालत में घर की तरफ दौड़ पड़ा। रास्ते में कहीं भी नहीं रुका। मेरा दिल कर रहा था कि मैं जल्दी से पिता जी के पास पहुंच जाऊॅ। वैसे देखा जाए तो ये बड़ी अजीब बात थी कि आज तक मेरे दिल में उनके लिए गुस्सा और नफ़रत ही भरी हुई थी और मैं जैसे ये कसम खाये बैठा था कि भूखा मर जाऊंगा मगर उस घर में नहीं जाऊंगा और ना ही अपने घर वालों के सामने झुकूॅगा। तो सवाल था कि अब ऐसा क्योँ?? आख़िर अब मैं क्यों जा रहा था और पलक झपकते ही क्यों झुकने को तैयार हो गया था? मेरे पिता ने तो मुझे नहीं बुलाया था, फिर क्यों मैं उनके बारे में ऐसी ख़बर सुन कर घर की तरफ दौड़ पड़ा था? आख़िर क्यों इस ख़बर से मैं अपने पिता के लिए तड़प उठा था?? मेरे पास इन सवालों के जवाब नहीं थे या फिर मैं अब भी इन सवालों के जवाब किसी को देना ही नहीं चाहता था।

घर पहुंचा तो देखा फ़िज़ा में लोगों का करुण क्रंदन गूँज रहा था। घर के बाहर ही धरा पर अर्थी रखी हुई थी। उस अर्थी में मेरे पिता जी कफ़न में लिपटे हुए पड़े थे। मेरी माँ उनके पास ही दहाड़ें मार मार कर रोए जा रही थी। उनके आस पास मौजूद कुछ औरतें भी रो रही थी और कुछ मेरी माँ को सम्हॉलने में लगी हुई थी। पिता जी के एक तरफ विभा भी उनसे लिपटी रोये जा रही थी। मेरे लिए ये मंज़र बहुत ही असहनीय था। मेरा दिल हाहाकार कर उठा। मेरा समूचा अस्तित्व बुरी तरह हिल गया। मेरा जी चाहा कि ये ज़मीन फट जाए और मुझ जैसा पापी उसमें अपना मुह छुपा कर समा जाए।

माॅ की नज़र मुझ पर पड़ी तो वो लड़खड़ाते हुए जल्दी से उठी और फिर गिरते भागते हुए मेरे पास आई। मुझे विज्जू कहते हुए मुझसे किसी बेल की तरह लिपट कर बुरी तरह रोने लगी। मेरा दिल मेरी आत्मा तक थर्रा गई। मैं अपने आपको चाह कर भी सम्हॉल नहीं पाया और माँ से लिपट कर रोने लगा। कुछ ही पलो में जैसे सब कुछ भूल गया मैं। अब मुझमे मैं नहीं रह गया था। मैं तो जैसे छोटे से बच्चे में तब्दील हो गया था जिसका सबसे प्यारा खिलौना उसका पिता उससे छिन गया था।

मुद्दत लगी इस सबसे उबरने में और फिर कुछ लोगों के सहयोग से मैं अपने पिता के जनाज़े को अपने कंधे पर रख कर शमशान की तरफ चल पड़ा। सारे रास्ते मैं आत्म ग्लानि में डूबा रहा और ये सोच सोच कर खुद को कोसता भी रहा कि मैं कितना बुरा हूॅ। मैने अपने पिता को उनके आख़िरी वक्त में अपनी शक्ल तक नहीं दिखाई। उनके दिल में क्या गुज़री होगी और आज तक क्या गुज़रती रही होगी। मैं अपने माता पिता की आँखों का तारा था। उन्होंने मुझे बड़े ही लाड प्यार से पाला था जिसका सिला आज मैंने इस तरह से उन्हें दिया था। क्या इस संसार में कोई मुझसे बड़ा गुनहगार और मुझसे बड़ा पापी होगा?? मैं तो सबकी नज़रों से पहले ही गिर चुका था किन्तु आज ख़ुद अपनी ही नज़रों से गिर गया था।

सारी क्रियाएँ करने के बाद जब मैंने पिता जी की चिता को आग लगाई तो जैसे उस चिता की आग के साथ मेरा वजूद भी जल उठा। मेरा ह्रदय हाहाकार कर उठा। मेरा जी चाहा कि मैं अपने पिता के जलते हुए जिस्म से लिपट जाऊॅ और उन्हीं के साथ मैं भी जल कर ख़ाक हो जाऊॅ। मेरे दिलो दिमाग में भी चिता की आग की तरह एक आग जलने लगी थी जो ये अहसास कराते हुए मुझे जलाये जा रही थी कि कितना बुरा हूॅ मैं। भगवान मुझ जैसी औलाद किसी भी बाप को न दे। आस पास मौजूद लोग धीरे धीरे कर के चले गए और मैं आत्म ग्लानि और पश्चाताप में जलता हुआ वहीं खड़ा रहा।

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विभा के जाने के बाद भी मैं काफी देर तक वहीं बुत बना खड़ा रह गया था। मुझमें अब इतनी हिम्मत नहीं थी कि उस घर में जाऊॅ और अपनी विधवा हो गई माँ को अपनी शक्ल दिखाऊॅ। मैं ये सोच कर काॅप उठता कि मुझे देख कर माँ कहीं ये न कह दे कि क्या मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था?? क्या मैं इसी इंतज़ार में था कि इस घर से मेरे पिता की अर्थी उठे और उसके बाद मैं इस घर की दहलीज़ पर अपने कदम रखूॅ? नहीं नहीं...मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकता। मैं इतना भी गिरा हुआ नहीं हूॅ कि अपने जन्मदाता के बारे में ऐसी सोच रखॅू। अपने ज़हन में उभरते इन ख़यालों से मैं तड़प उठा। बार बार मेरे ज़हन में ये ख़याल आता और मेरी अंतरात्मा तक को झकझोर देता।

आज तक आख़िर किस दुनिया में जी रहा था मैं और क्या सोच कर जी रहा था मैं? आख़िर ऐसा क्या अपराध किया था मेरे माता पिता ने जिसके लिए मैंने उन्हें इतना दुःख दिया था? दुनिया का कोई भी शख़्स मेरे माता पिता की तरफ ऊँगली करके ये नहीं कह सकता था कि उन्होंने मेरे साथ कुछ बुरा किया था, जबकि आज मैं ये शर्त लगा कर कह सकता था कि दुनिया का हर प्राणी जीव सिर्फ मेरी तरफ ही ऊँगली करके ये कहेगा कि मैंने बेवजह ही अपने माता पिता को इतने दुःख दिए और शायद ये भी कि जो कुछ मैंने किया है उसके लिए कोई माफ़ी नहीं हो सकती।

अपराध तो मुझसे हुआ था और बहुत बड़ा अपराध किया था मैंने मगर अब अपना मुह छुपा कर कहीं और चले जाना शायद इससे भी बड़ा अपराध हो जाता। इस लिए भारी मन से मैं घर की तरफ चल पड़ा। मैं अपनी जन्म देने वाली माँ का सामना करने के लिए तैयार था। मैं हर उस चीज़ के लिए तैयार था जो माँ के द्वारा अब मुझे मिलने वाली थी।

क्या यही लिखा था मेरे प्रारब्ध में?? एक वक़्त था कि मैं अपने माता पिता के सामने जाना गवारा नहीं करता था, भले ही चाहे मैं भूखा ही क्यों ना मर जाऊॅ मगर आज ये वक़्त है कि मैं खुद अपने अहंकार को मिटटी में मिला कर अपने पिता को अंतिम विदाई देने आया था और इतना ही नहीं इस सबके बाद अब घर भी जा रहा था। क्या मैं अपने पिता जी की ऐसी ख़बर से झुक गया था या फिर मुझे अहसास हो गया था कि मैंने अब तक जो कुछ भी किया है वो निहायत ही ग़लत था।

घर पहुंचा तो हर तरफ छाई ख़ामोशी ने जैसे मेरा इस्तक़बाल किया। ये वही घर है जहाँ पर मैंने जन्म लिया था। ये वही घर है जहाँ पर मेरे माता पिता ने मुझे बड़े ही लाड प्यार से पाल पोश कर बड़ा किया था और हाँ ये वही घर है जिसकी दहलीज़ पर न आने की जैसे मैंने कसम खा ली थी। पॉच सालों बाद लौट कर घर आया था मगर सवाल है कि____'आख़िर किस कीमत पर??'

घर में भी मरघट जैसा ही सन्नाटा था जो कि ज़ाहिर सी बात है कि ऐसी सिचुएशन में होगा ही। मैं हिम्मत कर के माँ के पास गया। वो कमरे की चौखट पर चुप चाप बैठी हुई थी। जो चेहरा कभी चॉद की तरह चमकता था आज वही चेहरा खुद पर जैसे हज़ारो ग्रहण लगाए हुए था। उस निस्तेज हो चुके चेहरे को देख कर मेरा दिल तड़प कर रह गया। काश! मेरे बस में होता तो संसार की सारी खुशियॉ ला कर उस चेहरे को रौशन कर देता। मैने देखा मॉ की आँखें न जाने किस शून्य को अपलक घूरे जा रही थीं। विभा कहीं नज़र नहीं आई थी मुझे। शायद वो भी घर के किसी कोने में मॉ की तरह ही दुनिया जहान से बेख़बर बैठी होगी। खै़र, मैं आहिस्ता से माँ के पास जा कर उनके करीब ही बैठ गया।

"माॅ।" फिर मैंने उनका एक हॉथ थाम कर उन्हें धीरे से पुकारा।
"हॉ...अरे! आ गया तू?" माँ की जैसे तन्द्रा टूट गई थी_____"मिल आया अपने पिता से? उन्होंने तुझे कुछ कहा तो नहीं न?"
"मुझे कभी माफ़ मत करना माॅ।" मैंने बुरी तरह से तड़प कर माँ से कहा____"मैंने जो कुछ किया है उसके लिए माफ़ी नहीं हो सकती।"

"तू पागल है क्या रे?" माँ ने अजीब भाव से कहा____"किस माफ़ी की बात कर रहा है तू? तेरे पिता जी मुझसे कह कर गए हैं कि मैं उनके बेटे पर किसी भी बात के लिए गुस्सा नहीं करुगी। वो कहते थे कि एक दिन वो ज़रूर वापस आएगा। देख तू आ गया न? उन्हें तो पूरा विश्वास था कि तू वापस आएगा मगर बेटे....क्या इस कीमत पर???"

"बस कर माॅ।" मैं बुरी तरह रोते हुए माँ से लिपट गया। उनकी पागलों जैसी हालत देख कर मेरा कलेजा जैसे छलनी छलनी हुआ जा रहा था। मेरा जी चाहा कि मैं उन्हें ठीक उसी तरह अपने कलेजे से छुपका लॅू जैसे एक ममतामयी माँ अपने छोटे से बच्चे को छुपका लेती है। मैं माँ से लिपट कर रोये जा रहा था और वो मेरे सिर पर स्नेह और प्यार के साथ अपने कोमल हाथ फेरने लगी थी।

कहते हैं कि वक़्त हर ज़ख़्म भर देता है और इंसान की फ़ितरत भी ऐसी होती है कि वो धीरे धीरे बड़ी से बड़ी बात भी भुला देता है या फिर ये कहें कि उसे भुलाना ही पड़ता है। पिता जी ने स्वर्ग में अपना आशियाना बना लिया था और मैने एक नई शुरुआत करते हुए अपने परिवार को सम्हॉल लिया था। मैं एक अच्छा इंसान तथा एक अच्छा बेटा बनने की कोशिश में लग गया था। मॉ ने मुझसे शादी के लिए कहा तो मैने इंकार नहीं किया। एक अच्छे व शुभ मुहूर्त पर विभा से मैने विवाह कर लिया। विभा मुझे इस रूप में देख कर खुश थी और मैने भी प्रण कर लिया था कि उस मासूम को मैं हर वो खुशी दूॅगा जिसके लिए अब तक वो तरसती रही थी। मेरे दिल में उसके लिए मोहब्बत ने जन्म ले लिया था।

एक दिन घर में वकील साहब आए। उन्होंने मुझे एक लिफाफा दिया और फिर वो ये कह कर चले गए कि परसों मैं उनके घर आ कर उनसे मिलूॅ। उनके जाने के बाद मैने उस लिफाफे को खोल कर देखा। लिफाफे के अंदर तह किया हुआ एक कागज़ था। मैने उसे खोल कर देखा। वो खुद के हाथों से लिखा गया कोई ख़त था। मैने उस ख़त को पढ़ना शुरू किया।

मेरे जिगर के टुकड़े विजय,
हो सकता है कि जब तुम्हें मेरा ये ख़त मिले तब मैं इस दुनिया में न रहूॅ मगर यकीन मानो मैं जहॉ भी रहूॅगा मेरा प्यार और आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ रहेगा। मैं तुमसे ये नहीं पूछूॅगा कि तुमने अपने इस घर को क्यों त्याग दिया था, क्योंकि मैं जानता हूॅ कि हर इंसान के जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आते हैं। ख़ैर, एक अच्छा इंसान वो होता है जो किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य और अपनी अच्छाईयों को नहीं छोंड़ता। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है बेटे कि तुम वापस आओगे और मेरे बाद जो सिर्फ तुम पर ही आश्रित होंगे उनका तुम ख़याल रखोगे।
बड़ी आरज़ू थी कि इस संसार से जब भी जाऊॅ तो अपनी ऑखों में अपने जिगर के टुकड़े की सूरत बसा कर जाऊॅ किन्तु शायद ईश्वर को ये मंजूर ही नहीं है। ख़ैर, मैने तुम्हारे लिए बैंक में कुछ पैसे जमा कर रखे थे जो तुम्हें वकील की मेहरबानी से मिल जाऍगे। उन पैसों से तुम कोई अच्छा सा कारोबार कर लेना।
अंत में बस इतना ही कहूॅगा बेटे कि अपनी मॉ का ख़याल रखना और विभा से शादी करके उसे ढेर सारी खुशियॉ देना। उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। वो तुम्हें बहुत चाहती है इस लिए उसकी चाहत और उसकी उम्मीदों का मान रखना। मेरा प्यार व शुभकामनाऍ सदा तुम्हारे साथ रहेंगी।

तुम्हारा पिता
**********

ख़त पढ़ते वक्त मुझे ऐसा लग रहा था जैसे पिता जी मेरे पास ही आ गए थे। ख़त में लिखा एक एक शब्द मेरी आत्मा की गहराईयों तक उतरता चला गया था। एक बार फिर से मैं आत्म ग्लानि व पश्चाताप से जल उठा। ऑखों से ऑसू छलक पड़े। ऊपर की तरफ चेहरा करके मैं ईश्वर से गुहार लगाने लगा कि वो मेरे पिता जी को वापस कर दें, ताकि मैं उनके चरणों मे अपना सिर रख कर उनसे अपने गुनाहों की माफ़ी मॉग सकूॅ।

गुज़रते वक्त के साथ भले ही सब कुछ सामान्य होने लगा था किन्तु मेरे अंदर से ये बात कभी नहीं गई कि मैने क्या किया था। सच तो ये था कि मैं अपने आपको कभी माफ़ ही नहीं कर सकता था। जब भी मैं अकेला होता तो मॉ के द्वारा कही गई एक बात अक्सर ही मुझे सोचों के अथाह सागर में डुबा देती_____'वो कहते थे कि एक दिन वो ज़रूर वापस आएगा। देख तू आ गया न? उन्हे तो पूरा विश्वास था कि तू वापस आएगा मगर बेटे.....क्या इस कीमत पर????'



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Lovely Anand

Love is life
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बदलते रिश्ते और मानसी
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संजीवनी हॉस्पिटल के ट्रॉमा सेंटर में भीड़ लगी हुई थी. दो किशोर लड़कों का एक्सीडेंट हुआ था. उन्हें आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा था. आमिर तो लगभग मरणासन्न स्थिति में था, दूसरा लड़का राहुल भी घायल था पर खतरे से बाहर था. हॉस्पिटल का कुशल स्टाफ इन दोनों किशोरों को स्ट्रेचर पर लाद कर ऑपरेशन थिएटर की तरफ भाग रहा था. कुछ देर की गहमागहमी के पश्चात ऑपरेशन थिएटर का दरवाज़ा बंद हो गया और बाहर लगी लाल लाइट जलने बुझने लगी.

राहुल के पिता मदन हॉस्पिटल पहुंच चुके थे. उन्हें राहुल का मोबाइल और उसका बैग दिया गया जिसमे उसकी पर्सनल डायरी भी थी. राहुल मदन का एकलौता पुत्र था. राहुल की मां की दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने उसे पाल पोस कर बड़ा किया था. मदन राहुल के बचपन में खोये हुये थे, तभी ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खुला और सफेद चादर से ढकी हुई आमिर की लाश बाहर आई. उसके परिवार वाले फूट-फूट कर रो रहे थे. मदन भी अपने आंसू नहीं रोक पा रहे थे. तभी दूसरे स्ट्रेचर पर राहुल भी बाहर आ गया. वह जीवित था और खतरे से बाहर था. मदन के चेहरे पर तो आमिर की मृत्यु का दुख था पर हृदय में राहुल के जीवित होने की खुशी.

प्राइवेट वार्ड में आ जाने के कुछ देर बाद राहुल को होश आ गया. वह कराहते हुए बुद बुदा रहा था.... अमिर….आमिर... मैं तुमसे….. बहुत प्यार करता हूं ... मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगा…… उसने अपनी आंखें एक बार फिर बंद कर लीं.

मदन के लिए यह अप्रत्याशित था..कि.जी अपने पुत्र को जीवित देख कर वो खुश थे परंतु उसके होठों पर आमिर का नाम... और उससे प्यार…. यह आश्चर्य का विषय था.

राहुल की पास रखी हुयी डायरी पर नजर पड़ते ही उन्होंने उसे शुरू कर दिया. जैसे-जैसे वह डायरी पढ़ते गए उनकी आंखों में अजब सी उदासी दिखाई पड़ने लगी. राहुल एक समलैंगिक था, वह आमिर से प्यार करता था. यह बात जानकर उनके होश फाख्ता हो गए.

राहुल एक बेहद ही सुंदर और कोमल मन वाला किशोर था जिसमें कल ही अपने जीवन के 19 वर्ष पूरे किए थे. शरीर की बनावट सांचे में ढली हुई थी. उसकी कद काठी पर हजारों लड़कियां फिदा हो सकतीं थीं पर राहुल का इस तरह आमिर पर आसक्त हो जाना यह अप्रत्याशित था और अविश्वसनीय भी.

पूरी तरह होश में आने के बाद राहुल के आंसू नहीं थम रहे थे. आमिर के जाने का उसके दिल पर गहरा सदमा लगा था. मदन उसे सांत्वना दे रहे थे पर उसके समलैंगिक होने की बात पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे थे.

राहुल के आने वाले जीवन को लेकर मदन चिंतित हो चले थे. क्या वह सामान्य पुरुषों की भाँति जीवन जी पाएगा? या समलैंगिकता उस पर हावी रहेगी? यह प्रश्न भविष्य के अंधेरे में था.

मदन राहुल को वापस सामान्य युवक की तरह देखना चाहते थे पर यह होगा कैसे? वह अपनी उधेड़बुन में खोए हुए थे…तभी उन्हें अपनी सौतेली बहन मानसी का ध्यान आया.

मदन के फोन की घंटी बजी और मानसी का नाम और सुंदर चेहरा फोन पर चमकने लगा यह एक अद्भुत संयोग था.. मदन ने फोन उठा लिया

"मदन भैया, मैं सोमवार को बेंगलुरु आ रही हूं"

"अरे वाह' कैसे?"

"सुमन का एडमिशन कराना है" सुमन मानसी की पुत्री थी.

मदन ने राहुल की दुर्घटना के बारे में मानसी को बता दिया. मानसी कई वर्षों बाद बेंगलुरु आ रही थी. मदन चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मानसी को याद करने लगे.

मदन के पिता मानसी की मां को अपने परिवार में पत्नी स्वरूप ले आए थे जिससे मानसी और उसकी मां को रहने के लिए छत मिल गयी थी तथा मदन के परिवार को घर संभालने में मदद. यह सिर्फ और सिर्फ एक सामाजिक समझौता था इसमें प्रेम या वासना का कोई स्थान नहीं था. शुरुआत में मदन ने मानसी और उसकी मां को स्वीकार नहीं किया परंतु कालांतर में मदन और मानसी करीब आ गए और दो जिस्म एक जान हो गए. उनमें अंतरंग संबंध भी बने पर उनका विवाह न हो सका.

मदन और मानसी दोनों एक दूसरे को बेहद प्यार करते थे. मानसी का विवाह चंडीगढ़ में हुआ था पर अपने विवाह के पश्चात भी मानसी के संबंध मदन के साथ वैसे ही रहे.

मानसी अप्सरा जैसी खूबसूरत थी बल्कि आज भी है आज 40 वर्ष की में भी वह शारीरिक सुंदरता में अपनी उम्र को मात देती है. अपनी युवावस्था में उसने मदन के साथ कामुकता के नए आयाम बनाए थे. मानसी और मदन का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण अद्भुत और अविश्वसनीय था.

मानसी के बेंगलुरु आने से पहले राहुल हॉस्पिटल से वापस घर आ चुका था. मानसी को देखकर मदन खुश हो गए. मानसी की पुत्री सुमन ने उनके पैर छुए. सुमन भी बेहद खूबसूरत और आकर्षक थी.

राहुल को देखकर मानसी बोल पड़ी

"मदन भैया, राहुल तो ठीक आपके जैसा ही दिखाई देता है" मदन मुस्कुरा रहे थे

राहुल ने कहा

"प्रणाम बुआ" मानसी ने अपने कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहलाया तथा प्यार किया. सुमन और राहुल ने भी एक दूसरे को अभिवादन किया आज चार-पांच वर्षों बाद वो मिल रहे थे.

मानसी के पति उसका साथ 5 वर्ष पहले छोड़ चुके थे. मानसी अपने ससुराल वालों और अपनी पुत्री सुमन के साथ चंडीगढ़ में रह रही थी.

मानसी अपनी युवावस्था में अद्भुत कामुक युवती थी वह व्यभिचारिणी नहीं थी परंतु उसने अपने पति और मदन से कामुक संबंध बना कर रखे थे.

अपने पति के जाने के बाद मानसी की कामुकता जैसे सूख गई थी इसके पश्चात उसने मदन के साथ , भी संबंध नहीं बनाए थे.

रात्रि विश्राम के पहले मदन और मानसी छत पर टहल रहे थे. मदन ने राहुल के समलैंगिक होने की बात मानसी को स्पष्ट रूप से बता दी वह भी दुखी हो गई.

उन्हें राहुल को इस समलैंगिकता के दलदल से बाहर निकालने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. मदन ने उसके अन्य दोस्तों से बात कर यह जानकारी प्राप्त कर ली थी कि राहुल की लड़कियों में कोई रुचि नहीं है. कई सारी सुंदर लड़कियां उसके संपर्क में आने की कोशिश करती थीं पर राहुल उन्हें सिरे से खारिज कर देता था. उसका मन आमिर से लग चुका था.

(मैं मानसी)

मदन भैया ने अचानक एक पुरानी बात याद करते हुए कहा ….

"मानसी तुम्हें याद है एक दिव्यपुरुष ने तुम्हें आशीर्वाद दिया था की जब भी तुम किसी कुंवारे पुरुष से संभोग की इच्छा रखते हुए प्रेम करोगी तो तुम्हारी यौनेच्छा कुंवारी कन्या की तरह हो जाएगी और तुम्हारी योनि भी कुवांरी कन्या की योनि की तरह बर्ताव करेगी."

मैं शर्म से पानी पानी हो गई मैनें अपनी नजरें झुका लीं.

"हां मुझे याद तो अवश्य है पर वह बातें विश्वास करने योग्य नहीं थी. वैसे वह बात आपको आज क्यों याद आ रही है?"

मदन भैया संजीदा थे उन्होंने कहा

"मानसी, भगवान ने तुम्हें सुंदरता और कामुकता एक साथ प्रदान की है. उस दिव्यपुरुष का आशीर्वाद भी इस बात की ओर इशारा कर रहा है की तुम राहुल को समलैंगिकता से बाहर निकाल सकती हो. तुम्हें अपनी सुसुप्त कामवासना को एक बार फिर जागृत करना है. यह पावन कार्य राहुल की जिंदगी बचा सकता है."

मदन भैया ने अपनी बात इशारों ही इशारों में कह दी थी.

"पर मदन भैया, वह मेरे पुत्र समान है मैं उसकी बुआ हूं"

"मानसी, क्या तुम सच में मेरी बहन हो?"

"नहीं"

"तो फिर तुम राहुल की बुआ कैसे हुई?" मैं निरुत्तर हो गई.

मुझे उन्हें भैया कहने की आदत शुरू से ही थी. जब मैं उनसे प्यार करने लगी तब भी मेरे संबोधन में बदलाव नहीं आया था. मेरे लाख प्रयासों के बाद मेरे मुख से उनके लिए हमेशा भैया शब्द ही निकलता पर हम दोनों भाई बहन न कभी थे न कभी हो सकते थे. हम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने थे पर हमारे माता पिता के सामाजिक समझौते की वजह से हम दोनों समाज की नजरों में भाई बहन हो गए थे.

इस लिहाज से न राहुल मेरा भतीजा था और न हीं मैं उसकी बुआ. संबंधों की यह जटिलता मुझे समझ तो आ रही थी पर राहुल इससे बिल्कुल अनजान था. वह मुझे अपनी बुआ जैसा ही प्यार करता था और मैं भी उसे अपने वात्सल्य से हमेशा ओतप्रोत रखती थी.

"मानसी कहां खो गई"

"कुछ नहीं " मैं वापस वास्तविकता में लौट आई थी.

"भैया, मैंने राहुल को हमेशा बच्चे जैसा प्यार किया है. मैंने उसे अपनी गोद में खिलाया है. आप से मेरे संबंध जैसे भी रहे हैं पर राहुल हमेशा से मेरे बच्चे जैसा ही रहा है. उसमें और सुमन में मैंने कोई अंतर नहीं समझा है."

"इसीलिए मानसी मेरी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ तुम हो. उसका आकर्षण किसी लड़की की तरफ नहीं हो रहा है. उसका सोया हुआ पुरुषत्त्व जगाने का कार्य आसान नहीं है. इसे कोई अपना ही कर सकता है वह भी पूरी आत्मीयता और धीरज के साथ"

"मम्मी, राहुल को दर्द हो रहा है जल्दी आइये" सुमन की आवाज सुनकर हम दोनों भागते हुए नीचे आ गए.

जब तक भैया दवा लेकर आते मैं राहुल के बालों पर उंगलियां फिराने लगी. राहुल की कद काठी ठीक वैसी ही थी जैसी मदन भैया की युवावस्था में थी.

राहुल अभी मुझे उनकी प्रतिमूर्ति दिखाई दे रहा था. एकदम मासूम चेहरा और गठीला शरीर जो हर लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था. पर राहुल समलैंगिक क्यों हो गया? यह प्रश्न मेरी समझ से बाहर था. एक तरफ मदन भैया मेरे लिए कामुकता के प्रतीक थे जिनके साथ मैने कामकला सीखी थी वहीं दूसरी तरफ राहुल था उनका पुत्र... मुझे उस पर तरस आ रहा था. दवा खाने के बाद राहुल सो गया. मैं और सुमन दोनों ही उसे प्यार भरी नजरों से देख रहे थे वह सचमुच बहुत प्यारा था.

सुमन कॉलेज में दाखिला लेने के पश्चात हॉस्टल में रहने लगी और मैं राहुल का ख्याल रखने लगी. धीरे-धीरे मुझमें और राहुल में आत्मीयता प्रगाढ़ होती गई. राहुल मुझसे खुलकर बातें करने लगा था. उसकी चोट भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी. जांघों के जख्म भर रहे थे.

मुझे राहुल के साथ हंस-हंसकर बातें करते हुए देखकर मदन भैया बहुत खुश होते एक दिन उन्होंने मुझसे कहा..

"मानसी, मैंने तुमसे गलत उम्मीद नहीं की थी. राहुल का तुमसे इस तरह हंस-हंसकर बातें करना इस बात की तरफ इंगित करता है कि तुम उसकी अच्छी दोस्त बन चुकी हो"

मैं उनका इशारा समझ रही थी मैंने कहा

"वह मुझे अभी भी अपनी बुआ ही मानता है मुझे नहीं लगता कि मैं यह कर पाऊंगी"

उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा गई.

"आप निराश मत होइए, जो होगा वह भगवान की मर्जी से ही होगा. पर हां मैं आपके लिए एक बार प्रयास जरूर करूंगी"

उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में ले लिया और मुझे माथे पर चूम लिया

"मानसी मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा" आज हमारे आलिंगन में वासना बिल्कुल भी नहीं थी सिर्फ और सिर्फ प्रेम था.

मैंने अपना आखरी सम्भोग आज से चार-पांच वर्ष पूर्व किया था. सुमन के पिता के जाने के बाद मुझे कामवासना से विरक्ति हो चुकी थी. जो स्वयं कामवासना से विरक्त हो चुका हो उसे एक समलैंगिक के पुरुषत्व को जागृत करना था. यह पत्थर से पानी निकालने जैसा ही कठिन था पर मैंने मदन भैया की खुशी के लिए यह चुनौती स्वीकार कर ली.

राहुल की तीमारदारी के लिए जो लड़का घर आता था उसे मैंने हटा दिया और स्वयं राहुल का ध्यान रखने लगी. राहुल इस बात से असमंजस में रहता था कि वह कैसे मेरे सामने अपने वस्त्र बदले? पर धीरे-धीरे वह सामान्य हो गया.

आज राहुल को स्पंज बाथ देने का दिन था मैंने राहुल से कपड़े उतारने को कहा वह शर्मा रहा था पर मेरे जिद करने पर उसने अपनी टी-शर्ट उतार दी उसके नग्न शरीर को देखकर मुझे मदन भैया की याद आ गई अपनी युवावस्था में हम दोनों ने कई रातें एक दूसरे की बाहों में नग्न होकर गुजारी थीं. राहुल का शरीर ठीक उनके जैसा ही था. मैं अपने ख्वाबों में खोई हुई थी तभी राहुल ने कहा

"बुआ, जल्दी कीजिए ठंड लग रही है"

मैं राहुल के सीने और पीठ को पोंछ रही थी जब मेरी उंगलियां उसके सीने और पीठ से टकराती तो मुझ में एक अजीब सी संवेदना जागृत हो रही थी. मुझे उसे छूने में शर्म आ रही थी. जैसे-जैसे मैं उसके शरीर को छूती गई मेरी शर्म हटती गई. शरीर का ऊपरी भाग पोछने के बाद मैंने उसके पैरों को पोछना शुरू कर दिया जांघों तक पहुंचते-पहुंचते राहुल ने मेरे हाथ पकड़ लिये. मैंने भी आगे बढ़ने की चेष्टा नहीं की.

धीरे-धीरे राहुल मुझसे और खुलता गया. मैं उसके बिस्तर पर लेट जाती वह मुझसे ढेर सारी बातें करता और बातों ही बातों के दौरान हम दोनों के शरीर एक दूसरे से छूते रहते. सामान्यतया वह पीठ के बल लेटा रहता और मैं करवट लेकर. मेरे पैर अनायास ही उसके पैरों पर चले जाते तथा मेरे स्तन उसके सीने से टकराते. कभी-कभी बातचीत के दौरान मैं उसके माथे और गालों को चूम लेती.

यदि प्रेम और वासना की आग दोनों तरफ बराबर लगी हो तो इस अवस्था से संभोग अवस्था की दूरी कुछ मिनटों में ही तय हो जाती पर राहुल में यह आग थी या नहीं यह तो मैं नहीं जानती पर मैं अपनी बुझी हुई कामुकता को जगाने का प्रयास अवश्य कर रही थी.
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मदन भैया ने मुझे राहुल के साथ इस अवस्था में देख लिया था. वो खुश दिखाई पड़ रहे थे. अगले दिन शाम को ऑफिस से आते समय वह मेरे लिए कई सारी नाइटी ले आए जो निश्चय ही मेरी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही उत्तेजक थीं. मैं उनकी मनोदशा समझ रही थी. अपने पुत्र का पुरुषत्व जागृत करने के लिए वह कोई कमी नहीं छोड़ना चाह रहे थे.

राहुल की जांघों पर से पट्टियां हट चुकी थीं. अब पूरी तरह ठीक हो चुका था उसने थोड़ा बहुत चलना फिरना भी शुरू कर दिया था.

राहुल से अब मेरी दोस्ती हो चली थी. मैं उसके बिस्तर पर लेटी रहती और उससे बातें करते करते कभी कभी उसके बिस्तर पर ही सो जाती. हमारे शरीर एक दूसरे से छूते रहते पर उसमें उत्तेजना नाम की चीज नहीं थी. मैं मन ही मन उत्तेजित होने का प्रयास करती पर उसके मासूम चेहरे को देखकर मेरी उत्तेजना जागृत होने से पहले ही शांत हो जाती.

शनिवार का दिन था सुमन हॉस्पिटल से घर आई हुई थी उसने राहुल के लिए फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता भी खरीदा था.
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राहुल और सुमन एक दूसरे से बातें कर रहे थे. उन दोनों को देखकर मेरे मन में अजीब सा ख्याल आया. दोपहर में भी जब राहुल सो रहा था सुमन उसे एकटक निहार रही थी मेरी नजर पड़ते ही वह शर्मा कर अपने कमरे में चली गई. वह जिस प्रेमभाव को छुपा रही थी वह मेरे जीवन का आधार था. सुमन राहुल पर आसक्त हो गई थी पर उसे यह नहीं पता था की उसका यह प्रेम एकतरफा था.

अगले दिन सुमन हॉस्टल जा चुकी थी. राहुल दोपहर में देर तक सोता रहा था. मुझे पता था आज वह देर रात तक नहीं सोएगा. मैंने आज कुछ नया करने की ठान ली थी. मैंने स्नानगृह के आदमकद आईने में स्वयं को पूर्ण नग्न अवस्था में देखकर मुझे अपनी युवावस्था याद आ गई. मदन भैया से मिलने के लिए मैं यूं ही अपने आप को सजाती और संवारती थी. उम्र ने मेरी शारीरिक संरचना में बदलाव तो लाया था पर ज्यादा नहीं.

मेरी रानी (योनि) का मुख घुँघराले केशों के पीछे छुप गया था. वह पिछले तीन-चार वर्षों से एकांकी जीवन व्यतीत कर रही थी. आज कई दिनों पश्चात मेरी उंगलियों के कोमल स्पर्श से वह रोमांचित हो रही थी. मैंने रानी के मुख मंडल पर उग आए बालों को हटाना चाहा. जैसे जैसे मेरी उंगलियां रानी और उसके होंठों को छूतीं वह जागृत हो रही थी. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी कैदी को आज बाहर निकाल कर खुली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया गया हो. रानी के होंठो पर खुशी के आँशु आ रहे थे. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी.

जैसें ही मेरी आँखें बंद होतीं मुझें मदन भैया की युवावस्था याद आ जाती अपनी कल्पना में मैं उनके हष्ट पुष्ट शरीर को देख रही थी पर मुझे बार-बार राहुल का चेहरा दिखाइ दे जाता , राहुल भी ठीक वैसा ही था. मैं उन अनचाहे बालों को हटाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपनी रानी को एक बार फिर प्रेमयुद्ध के लिए तैयार कर रही हूँ. मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी. इस उत्तेजना में किंचित राहुल का भी योगदान था.

राहुल के प्रति मेरा वात्सल्य रस अब प्रेम रस में बदल रहा था. मैं जितना राहुल के बारे में सोचती मेरी उत्तेजना उतनी ही बढ़ती. मेरे पूर्ण विकसित और अपना आकार खोते स्तन अचानक कठोर हो रहे थे. उन्हें छूते हुए मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह उम्मीद से ज्यादा कठोर हो गए हैं. इनमें इतनी कठोरता मैंने पिछले कई सालों में महसूस नहीं की थी. निप्पल भी फूल कर कड़े हो गए थे जैसे वह भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे थे.

मुझे यह क्या हो रहा था? स्तनों को छूने पर मुझे शर्म और लज्जा महसूस हो रही थी. यह इतने दिनों बाद होने वाले स्पर्श का अंतर था या कुछ और? मुझे अचानक दिव्यपुरुष की बात याद आ गई. मुझे ऐसा लगा जैसे शायद उनकी बातों में कुछ सच्चाई अवश्य थी. आज राहुल के प्रति आकर्षण ने मुझमें शर्म और उत्तेजना भर दी थी.

स्नान करने के पश्चात मैं वापस कमरे में आयी और मदन भैया द्वारा लाई खूबसूरत नाइटी पहन ली. मैंने अपने ब्रा और पैंटी का त्याग कर दिया था शायद आज उनकी आवश्यकता नहीं थी. नाइटी ने मेरे शरीर पर एक आवरण जरूर दिया था पर मेरे शरीर के उभारों को छुपा पाने में वह पूरी तरह नाकाम थी. ऐसा लगता था उसका सृजन ही मेरी सुंदरता को जागृत करने के लिए हुआ था. मैंने अपने आप को सजाया सवांरा और आज मन ही मन राहुल के पुरुषत्व को जगाने के लिए चल पड़ी.

खाना खाते समय मदन भैया और राहुल दोनों ही मुझे देख रहे थे. पिता पुत्र की नजरें मुझ पर ही थीं उनके मन मे क्या भाव थे ये तो वही जानते होंगे पर मेरी वासना जागृत थी. मदन भैया की नजरें मेरे चेहरे के भाव आसानी से पढ़ लेतीं थीं. वह खुश दिखाई पड़ रहे थे.

खाना खाने के बाद मदन भैया सोने चले गए और मैं राहुल के बिस्तर पर लेटकर. उससे बातें करने लगी. राहुल ने कहा

"बुआ आज आप बहुत सुंदर लग रही हो"

मैंने उसके गाल पर मीठी सी चपत लगाई और कहा

"नॉटी बॉय, बुआ में सुंदरता ढूंढते हो."

वह मुस्कुराने लगा

"नहीं बुआ मेरा वह मतलब नहीं था.आज आप सच में सुंदर लग रही हो"

मैंने यह बात जान ली थी नारी की सुंदर और सुडौल काया सभी को सुंदर लगती है चाहे वह पुरुष हो या स्त्री या फिर समलैंगिक.

मैंने उसे अपने आलिंगन में ले लिया मेरे कठोर स्तन उसके सीने से सटते गए और मेरे शरीर में एक सनसनी सी फैलती गयी. मेरे स्तनों और कठोर निप्पलों का स्पर्श निश्चय ही उसे भी महसूस हुआ होगा. वह थोड़ा असहज हुआ पर उसने अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. हम फिर बातें करने लगे.

कुछ देर में मैं जम्हाई लेते हुए सोने का नाटक करने लगी. मेरी आंखें बंद थी पर धड़कन तेज. मदन भैया जैसा समझदार पुरुष कामवासना के लिए आतुर स्त्री की यह अवस्था तुरंत पहचान जाता पर राहुल मासूम था.

मैंने अपनी नाइटी को इस प्रकार व्यवस्थित कर लिया था जिससे मेरे स्तनों का ऊपरी भाग स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. मैं राहुल की नजरों को अपने शरीर पर महसूस करना चाह रही थी पर वह अपने मोबाइल में कोई किताब पढ़ने में व्यस्त था.

कुछ देर पश्चात वह उठकर बाथरूम की तरफ गया इस बीच मैंने अपने शरीर पर पड़ी हुई चादर हटा दी. नाइटी को खींचकर मैंने अपनी जांघों तक कर लिया था स्तनों का ऊपरी भाग अब स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा था. कमरे में लाइट जल रही थी मेरी नग्नता उजागर थी.

राहुल बाथरूम से आने के बाद मुझे एकटक देखता रह गया. वह मेरे पास आकर मेरी नाइटी को छू रहा था. कभी वह नाइटी को नीचे खींच कर मेरे घुटनों को ढकने का प्रयास करता कभी वापस उसी अवस्था में ला देता. मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. उसके मन में निश्चय ही दुविधा थी.

अंततः राहुल ने नाइटी को ऊपर तक उठा दिया. मेरी जांघों के जोड़ तक पहुंचते- पहुंचते उसके हाथ रुक गए. इसके आगे जाने की न वह हिम्मत नहीं कर पा रहा था न ही यह संभव था नाइटी मेरे फूल जैसे कोमल नितंबों के भार से दबी हुई थी.

मेरी नग्न और गोरी मखमली जाँघे उसकी आंखों के सामने थीं. वह मुझे बहुत देर तक देखता रहा और फिर आकर मेरे बगल में सो गया. मैं मन ही मन खुश थी. राहुल की मनोदशा मैं समझ पा रही थी. कुछ ही देर में राहुल ने अपना मोबाइल रख दिया और पीठ के बल लेट कर सोने की चेष्टा करने लगा.

मैंने जम्हाई ली और अपने दाहिनी जांघ को उसकी नाभि के ठीक नीचे रख दिया. वह इस अप्रत्याशित कदम से घबरा गया.

"बुआ, ठीक से सो जाइए" उसकी आवाज मेरी कानों तक पहुंची पर मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया. अपितु मैंने अपने स्तनों को उसके सीने से और सटा दिया मेरी दाहिनी बांह अब उसके सीने पर थी. और मेरा चेहरा उसके कंधों से सटा हुआ था.

मैं पूर्ण निद्रा में होने का नाटक कर रही थी. वह पूरी तरह शांत था. उसकी नजरें मेरे स्तनों पर थी जो उसके सीने से सटे हुए थे. हम दोनों कुछ देर इसी अवस्था में रहे राहुल धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था.

मैंने अपनी दाहिनी जांघ को नीचे की तरफ लाया मुझे पहली बार राहुल के लिंग में कुछ तनाव महसूस हुआ. मेरी कोमल जांघों ने उस कठोरता का महसूस कर लिया. जांघों से उसके आकार को महसूस कर पाना कठिन था पर उसका तनाव इस बात का प्रतीक था कि आज मेरी मेहनत रंग लाई थी.

मैं कुछ देर तक अपनी जांघ को उसके लिंग के ऊपर रखी रही और बीच-बीच में अपनी जांघों को ऊपर नीचे कर देती. राहुल के लिंग का तनाव बढ़ता जा रहा था. मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात थी.

कुछ देर इसी अवस्था में रहने के बाद मैंने राहुल के हाथों को अपनी पीठ पर महसूस किया वह मेरी तरफ करवट ले चुका था मैं अब उसकी बाहों में थी मेरे दोनों स्तन उसके सीने से सटे हुए थे और उसके लिंग का तनाव मेरे पेट पर महसूस हो रहा था. मेरी रानी प्रेम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी और मैं मन ही मन में संभोग के आतुर थी.

मुझे पता था मेरी जल्दीबाजी बना बनाया खेल बिगाड़ सकती थी. आज हम दोनों के बीच जितनी आत्मीयता बड़ी थी वह काफी थी. मैं राहुल को अपनी आगोश में लिए हुए सो गयी.

सुबह राहुल मेरे उठने से पहले ही उठ चुका था. उसने मेरी नाइटी व्यवस्थित कर दी थी मेरा पूरा शरीर ढका हुआ था. निश्चय ही यह काम राहुल ने किया था. उसे नारी शरीर की नग्नता और ढके होने का अंतर समझ आ चुका था.

" बुआ उठिए ना, मैं आपके लिए चाय बना कर लाया हूँ." राहुल मुझसे प्यार से बातें कर रहा था. कुछ ही देर में मदन भैया आ गए. मेरा मन कह रहा था कि मैं मदन भैया को अपनी पहली विजय के बारे में बता दूं पर मैंने शांत रहना ही उचित समझा अभी दिल्ली दूर थी.

अगले कुछ दिन मैने राहुल के साथ कोई कामुक गतिविधि नहीं की. मैं उसमें पनप रही उत्तेजना को बढ़ता हुआ देखना चाह रही थी. वह मुझसे प्यार से बातें करता और उसके चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ती. मैंने उसके साथ रात को सोना बंद कर दिया था. उसकी आंखों में आग्रह दिखाई पड़ता पर वह खुलकर नहीं बोल सकता था उसकी अपनी मर्यादा या थी मेरी अपनी.

सुमन आज घर आयी थी. आज राहुल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी. वह दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे जब तक सुमन घर में थी मैं राहुल से दूर ही रही. सुमन जब राहुल के पास रहती उसके चेहरे पर भी एक अलग ही खुशी दिखाई पड़ती. मुझे मन ही मन ऐसा प्रतीत होता जैसे वह राहुल को प्यार करने लगी है. उसे शायद यह आभास भी नहीं था कि राहुल समलैंगिक है. मैंने उन दोनों को एक साथ छोड़ दिया सुमन का साथ राहुल के पुरुषत्व को जगाने में मदद ही करता. वह दोनों जितना करीब आते मेरा कार्य उतना ही आसान होता आखिर सुमन भी मेरी पुत्री थी उतनी ही सुंदर और पूर्ण यौवन से भरी हुई.

अगले दिन सुमन के हॉस्टल जाते ही राहुल फिर उदास हो गया. शाम को उसने मुझसे कहा बुआ आप मेरे पास ही सो जाइएगा. उसका यह खुला आमंत्रण मुझे उत्तेजित कर गया. मैंने मन ही मन आगे बढ़ने की ठान ली.

एक बार फिर मैं उसी तरह सज धज कर राहुल के पास पहुंच गयी. आज पहनी हुई नाइटी का सामने का भाग दो हिस्सों में था जिसे एक पतले पट्टे से बांधा जा सकता था तथा खोलने पर नाइटी सामने से खुल जाती और छुपी हुयी नग्नता उजागर हो जाती.
राहुल मुझे देख कर आश्चर्यचकित था . उसने कहा

"बुआ, आज तो आप तो आप परी जैसी लग रहीं है. यह ड्रेस आप पर बहुत अच्छी लग रही है"

मैंने मुस्कुराते हुए कहा

"आजकल तुम मुझ पर ज्यादा ही ध्यान देते हो" वह भी मुस्कुरा दिया.

हम दोनों बातें करने लगे सुमन के बारे में बातें करने पर उसके चेहरे पर शर्म दिखाई पड़ती. वह सुमन के बारे में बाते करने से कतरा रहा था. कुछ ही देर में मैं एक बार फिर सोने का नाटक करने लगी

एक बार फिर राहुल बाथरूम की तरफ गया उसके वापस आने से पहले मैंने अपनी नाइटी की की बेल्ट खोल दी. नाइटी का सामने वाला हिस्सा मेरे शरीर पर सिर्फ रखा हुआ था. मैरून रंग की नाइटी के बीच से मेरी गोरी और चमकदार त्वचा एक पतली पट्टी के रूप में दिखाई पड़ रही थी. मैने अपनी रानी को अभी भी ढक कर रखा था.

राहुल बाथरूम से वापस आ चुका था. मैं होने वाली कयामत का इंतजार कर रही थी. उसकी निगाहें मेरे नाभि और स्तनों पर घूम रही थी दोनों स्तनों का कोमल उभार नाइटी के बीच से झांक रहे थे और अपने नए प्रेमी को स्पर्श का खुला आमंत्रण दे रहे थे.

राहुल से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने नाइटी को फैलाना शुरू कर दिया जैसे-जैसे वह नाइटी के दोनों भाग को अलग करता गया मेरे स्तन खुललकर बाहर आते गए. शरीर का ऊपरी भाग नग्न हो चुका था राहुल मुझे देखता जा रहा था कुछ ही देर में मेरी जाँघे भी नग्न हो गयीं मेरी योनि को नग्न करने का साहस राहुल नहीं जुटा पाया और कुछ देर मेरी नग्नता का आनद लेकर मन में उत्तेजना लिए हुए मेरे बगल में आकर लेट गया.

उसने चादर ऊपर खींच ली उसकी सांसे तेज चल रही थी. आगे बढ़ने की अब मेरी बारी थी मैंने एक बार फिर अपनी जांघों से उसके लिंग को महसूस किया उसका तनाव आज और भी ज्यादा था. कुछ देर अपनी जांघों से उसे सहलाने के बाद मैंने अपनी हथेलियां उसके लिंग पर रख दीं. मैंने बिना कोई बात किये उसके पजामे का नाड़ा ढीला कर दिया. हम दोनों का शरीर चादर के अंदर था सिर्फ राहुल का सर बाहर था.

मैंने अपनी हथेलियों से उसके लिंग को बाहर निकाल लिया लिंग का आकार मुझे मदन भैया के जैसा ही महसूस हुआ. मेरे हाथों में आते ही उसके लिंग में तनाव बढ़ता गया. मुझे खुशी हुयी मेरी हथेलियों का जादू आज भी कायम था. राहुल की धड़कनें तेज थीं. मेरे कान उसके सीने से सटे हुए उसकी धड़कन सुन रहे थे.

मेरी जाँघें उसकी जांघों पर आ चुकीं थीं. मेरी नग्नता का एहसास उसे हो रहा था. मेरी उंगलियों के कमाल ने राहुल के लिंग को पूर्ण रूप से उत्तेजित कर दिया था. मेरे थोड़े ही प्रयास से राहुल स्खलित हो सकता था. मैंने इस स्थिति को और कामुक बनाना चाहा. मैंने उसके कुरते को अपने हाथों से ऊपर कर उसके सीने को नग्न कर दिया और अपने नग्न स्तनों को उसके सीने से सटा दिया.

मेरी उत्तेजना भी चरम पर पहुंच रही थी. मेरी रानी उसकी नग्न जाँघों से छू रही थी. मेरी वासना उफान पर थी. मेरी रानी लगातार प्रेम रस बहा रही थी. अपने स्तनों की कठोरता और सिहरन महसूस कर मैं स्वयं भी अचंभित थी.

यह में मुझे मेरी किशोरावस्था की याद दिला रहे थे. मैं चाह रही थी कि राहुल स्वयं अपने हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ ले पर राहुल शांत था. कुछ ही देर में राहुल ने मेरी तरफ करवट ली मेरे दोनों स्तन उसके सीने से टकरा रहे थे. उसकी हथेलियां मेरी नंगी पीठ पर घूम रहीं थी.
मेरी उंगलियों ने उसके लिंग को सहलाना जारी रखा कुछ ही देर में मुझे राहुल के लिंग का उछलना महसूस हुआ. मेरे स्तनों पर वीर्य की धार पड़ रही थी राहुल स्खलित हो रहा था. मैंने सफलता प्राप्त कर ली थी राहुल का पुरुषत्व जागृत हो चुका था.

उसने अभी तक मेरे यौनांगों को स्पर्श नहीं किया था पर आज जो हुआ था यह मेरी उम्मीद से ज्यादा था.

अपनी रानी की उत्तेजना मुझसे स्वयं बर्दाश्त नहीं हो रही थी. मैं भी स्खलित होना चाहती थी. मैंने राहुल का एक पैर अपने दोनों जांघों के बीच ले लिया तथा अपनी रानी को उसकी जांघों पर रगड़ने लगी. मेरे कमर की हलचल को राहुल ने महसूस कर लिया वो मुझे आलिंगन से लिए हुए अपनी मजबूत बाहों का दबाव बढ़ता गया. यह एक अद्भुत एहसास था. मेरी सांसे तेज हो गई और मेरी रानी ने कंपन प्रारंभ कर दिये मेरा यह स्खलन अद्भुत था. हम दोनों उसी अवस्था मे सो गए.

मैं बहक रही थी. राहुल का पुरुषत्व जाग्रत करते करते मेरी रानी सम्भोग के लिए आतुर हो चुकी थी. कभी कभी मुझे शर्म भी आती की मैं यह क्या कर रही हूँ? राहुल ने अपना वीर्य स्खलन कर लिया था यह स्पष्ट रूप से इंगित करता था कि उसका पृरुषत्व जागृत हो चुका है. मेरा कार्य हो चुका था पर अब मैं स्वयं अपनी रानी की कामेच्छा के आधीन हो चुकी थी.

मेरे मन में अंतर्द्वंद चल रहा था एक तरफ राहुल जो मेरे बच्चे की उम्र का था जिसके साथ कामुक गतिविधियां सर्वथा अनुचित थीं दूसरी तरफ मेरी रानी संभोग करने के लिएआतुर थी.

अगले तीन-चार दिनों तक में राहुल से दूर ही रही. वह बार-बार मेरे करीब आना चाहता. उसने मुझसे फिर से रात में सोने की गुजारिश की पर मैने टाल दिया.मैं जानती थी की राहुल का पुरुषत्व अब जाग चुका है मेरे और करीब जाने से संभोग का खतरा हो सकता है.

इसी दौरान सुमन के कॉलेज में छुट्टियां थीं. वो घर आयी हुयी थी. राहुल और सुमन के बीच में नजदीकियां बढ़ रहीं थीं. वह दोनों एक दूसरे से खुलकर बातें करते बाहर घूमने जाते और खुशी-खुशी वापस आते. ऐसा लग रहा था जैसे सुमन और राहुल करीब आ चुके थे.

मैंने अपने कामुक प्रसंग को यहीं रोकना उचित समझा. मैने मदन भैया से सब कुछ खुलकर बता दिया. वह अत्यंत खुश हो गए उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया ठीक उसी प्रकार जैसे वह मेरे विवाह से पूर्व मुझे उठाया करते थे आज उनकी बाहों में मुझे फिर से उत्तेजना महसूस हुई थी. वह बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे. उन्होंने कहा

" मानसी, लगता है दिव्यपुरुष की बात के अनुसार राहुल ही वह व्यक्ति है जिसके साथ संभोग करते समय तुम्हारी योनि को एक कुंवारी योनि की तरह बर्ताव करना है? क्या सच में तुममें कुंवारी कन्या की तरह उत्तेजना जागृत हो रही है?

मदन भैया द्वारा याद दिलाई गई बातें सच थीं. जब से मैंने राहुल के साथ कामुक क्रियाकलाप शुरू किए थे मेरे स्तनों की कठोरता और मेरी योनि की संवेदना में अद्भुत वृद्धि हुयी थी. मेरी यह योनि पिछले कई वर्षों से मदन भैया और अपने पति के राजकुमार(लिंग) से अद्भुत प्रेम युद्ध करने के पश्चात स्खलित होती थी पर उस दिन वह राहुल की जांघों से रगड़ खा कर ही स्खलित हो गई थी. यह आश्चर्यजनक और अद्भुत था.

क्या सच में मुझे राहुल से संभोग करना था? क्या उससे संभोग करते समय मुझे कौमार्य भंग होने का सुख और दुख दोनों मिलना बाकी था?. क्या उसके पश्चात मेरी योनि एक नवयौवना की तरह बन जाएगी? यह सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं.

मदन भैया भी शायद वही याद कर रहे थे. इन बातों के दौरान मैंने मदन भैया के राजकुमार में तनाव महसूस किया. मेरी हथेलियों का स्पर्श पाते ही वह पूर्ण रुप से तनाव में आ चुका था. नियत अद्भुत ताना-बाना बुन रही थी.

बाहर दरवाजे की घंटी सुनकर हम दोनों अलग हुए. सुमन घर आ चुकी थी. प्रकृति ने हम चारों के बीच एक अजीब सी स्थिति पैदा कर दी थी.

दोपहर में चंडीगढ़ से फोन आया. मेरी सास की तबियत खराब हो गयी थी. मुझे कल ही चंडीगढ़ वापस जाना था.

यह सुनते ही सभी दुखी हो गये. राहुल के चेहरे पर उदासी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी वह मेरे चंडीगढ़ जाने की खबर से दुखी था. खाना खाने के पश्चात वह मेरे पास आया और आंखों में आंसू लिए हुए बोला

"बुआ मुझे आज अच्छा नहीं लग रहा है क्या मेरी खुशी के लिए आज तुम मेरे पास सो सकती हो?"

उसके आग्रह में वात्सल्य रस था या कामरस यह कहना कठिन था. सुमन घर पर ही थी. सामान्यतः मैं और सुमन एक ही कमरे में सोते थे सुमन की उपस्थिति में उसे छोड़कर राहुल के कमरे में जाना कठिन था.

मैंने टालने के लिए कह दिया

"ठीक है, कोशिश करुंगी"

रात में सुमन मेरे पास सोयी हुई थी. वह खोयी खोयी थी. मैंने उससे पूछा

"तू आज कल खोयी खोयी रहती है क्या बात है?" सुमन के पिता की मृत्यु के बाद मैं और सुमन एक दूसरे के साथी बन गए थे वह मुझसे अपनी बातें खुलकर बताती थी.

"कुछ नहीं माँ"

"बता ना, इसका कारण राहुल है ना?"

वह मुझसे लिपट गयी. उसके चेहरे पर आयी शर्म की लाली ने उसकी मनोस्थिति स्पष्ट कर दी थी. उसने अपना चेहरा मेरे स्तनों में छुपा लिया.

अगली सुबह मेरे जाने का वक्त आ चुका था. मदन भैया मेरा सामान लेकर दरवाजे पर बाहर खड़े थे सुमन और राहुल मेरे पास आए उन दोनों ने मेरे चरण छुए यह एक संयोग था या प्रकृति की लीला दोनों ने मेरे पैर एक साथ छूये. मैंने आशीर्वाद दिया

"दोनों हमेशा खुश रहना और एक दूसरे का ख्याल रखना"

मदन भैया यह दृश्य देख रहे थे.

कुछ देर में उनकी कार एयरपोर्ट की तरफ सरपट दौड़ रही थी. वह मुझसे कुछ पूछना चाहते थे पर असमंजस में थे. मैं बेंगलुरु शहर को निहार रही थी. इस शहर से मेरी कई यादें जुड़ी थी. मैंने इसी शहर में अपना कौमार्य खोया था और कल रात फिर एक बार ….. टायरों के चीखने से मेरी तंद्रा टूटी एयरपोर्ट आ चुका था. मैं मदन भैया की आंखों में देख रही थी उनकी आंखों में अभी भी प्रश्न कायम था. मैंने उनके चरण छुए और एयरपोर्ट के अंदर दाखिल हो गई.

"मैं मदन"

मानसी जा चुकी थी मेरी आंखों में आंसू थे. पिछले कुछ महीनों में मुझे मानसी की आदत पड़ चुकी थी. मानसी ने राहुल में पृरुषत्व जगाने की जो कोशिश की थी वह सराहनीय थी.

ट्रैफिक कम होने के कारण मैं घर जल्दी पहुंच गया. दरवाजे पर पहुंचते ही मुझे सुमन की आवाज आई

"राहुल भैया कपड़े पहन लेने दीजिए फूफा जी आते ही होंगे"

"बस एक बार और दिखा दो राहुल की आवाज आई"

"बाकी रात में" सुमन ने हंसते हुए कहा.

उन दोनों की हंसी ठिठोली की आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी. मैंने घंटी बजा कर उनकी रासलीला पर विराम लगा दिया था. मुझे इस बात की खुशी थी कि राहुल किसी लड़की से अंतरंग हो रहा था. मानसी को मैं दिल से याद कर रहा था.

तभी मोबाइल पर मानसी का मैसेज आया.

(मैं मानसी)

उस रात सुमन का मन पढ़ने के बाद मैंने राहुल को सुमन के लिए मन ही मन स्वीकार कर लिया. मेरे मन मे प्रश्न अभी भी कायम था क्या राहुल सुमन को वैवाहिक सुख देने में सक्षम था? मेरे लिए यह जानना आवश्यक था.

उस रात मैंने साड़ी और ब्लाउज पहना था उत्तेजक नाइटी पहनने का कोई औचित्य नहीं था सुमन घर पर ही थी. उसके सोने के बाद मैं मन में दुविधा लिए राहुल के पास आ गई. मैने कमरे की बत्ती बुझा दी.

बिस्तर पर लेटते ही राहुल ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और रूवासे स्वर में बोला

"बुआ आपने मेरे लिए क्या किया है आपको नहीं पता , आपने अपने स्पर्श से मुझ में उत्तेजना भर दी है.आपके स्पर्श में जादू है. उस दिन मेरा लिंग आपके हाथों पहली बार स्खलित हुआ था. मेरे लिए आप साक्षात देवी हैं जिन्होंने मुझमें विपरीत लिंग के प्रति उत्तेजना दी है." मैं उसकी बातों से खुश हो रही थी उधर उसकी हथेलियां मेरे स्तनों पर घूम रही थीं. मेरे स्तनों की कठोरता चरम पर थी और मुझे किशोरावस्था की याद दिला रही थी. उसके स्पर्श से मेरे शरीर मे सिहरन हो रही थी.

धीरे धीरे मेरी साड़ी मेरे शरीर से अलग होती गयी. वह मुझे प्यार करता रहा और मेरे प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करता रहा. जब भी मैं कुछ बोलने की कोशिश करती वह मेरे होठों को चूमने लगता. वह अपने क्रियाकलाप में कोई विघ्न नहीं चाहता था.

कुछ ही देर में मैं बिस्तर पर पूरी तरह नग्न थी. उसने अपने कपड़े कब उतार लिए यह मैं महसूस भी नहीं कर पायी मैं स्वयं इस अद्भुत उत्तेजना के आधीन थी. उसके आलिंगन में आने पर मुझे उसके लिंग का एहसास अपनी जांघों के बीच हुआ. लिंग पूरी तरह तना हुआ था और संभोग के लिए आतुर था.

हमारा प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था. मेरे स्तनों पर उसकी हथेलियों के स्पर्श ने मेरी रानी को स्खलन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया था. मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था. धीरे-धीरे राहुल मेरी जांघों के बीच आता गया उसके लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाते ही मैं सिहर गयी…
राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने पूछा..
"क्या तुम सुमन से प्यार करते हो?"

"हां बुआ, बहुत ज्यादा"

"फिर यह क्या है?"मैंने उसे चूमते हुए कहा

"आपने मुझे इस लायक बनाया है कि मैं सुमन से प्यार कर सकूं. मैं अपने से प्यार से न्याय कर पाऊंगा या नही इस प्रश्न का उत्तर इस मिलन के बाद शायद आप ही दे सकतीं हैं"

राहुल भी मदन भैया की तरह बातों का धनी था. मैं उसकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गई. जैसे-जैसे मेरे होंठ उसे चूमते गए उसका राजकुमार मेरी योनि में प्रवेश करता गया एक बार फिर मेरे चेहरे पर दर्द के भाव आये पर राहुल मुझे प्यार से सहलाता रहा राहुल का लिंग मेरे गर्भाशय को चूमता हुआ अपने कद और क्षमता का एहसास करा रहा था. मैं तृप्त थी. उसके कमर की गति बढ़ती गयी मुझे मदन भैया के साथ किए पहले सम्भोग की याद आ रही थी. राहल के इस अद्भुत प्यार से मेरी रानी जो आज राजकुमारी (कुवांरी योनि) की तरह वर्ताव कर रही थी शीघ्र ही स्खलित हो गयी.
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राहुल कुछ देर के लिए शांत हो गया. मैं उसे चूम रही थी. मैंने कहा..

"मुझे एक वचन दो"

"बुआ मैं आपका ही हूँ आप जो चाहे मुझसे मांग सकती है"

"मैं तुम्हे सुमन के लिए स्वीकार करती हूँ. मुझे विश्वास है तुम सुमन का ख्याल रखोगे. तुम दोनों एक दूसरे को जी भर कर प्यार करो पर मुझे वचन दो कि तुम सुमन के साथ प्रथम सम्भोग विवाह के पश्चात ही करोगे"

"और आपके साथ" उसके चेहरे पर कामुक मुस्कान थी.

"मैं मुस्कुरा दी" मेरी मुस्कुराहट ने उसे साहस दे दिया वह एक बार फिर सम्भोग रत हो गया कुछ ही देर में हम दोनो स्खलित हो रहे थे. राहुल ने अपने वीर्य से मुझे भिगो दिया मैं बेसुध होकर हांफ रही थी.
तभी मधुर आवाज में अनाउंसमेंट हुई..

"फाइनल कॉल टू चंडीगढ़" मैं अपनी कल रात की यादों से बाहर आ गयी. मैने अपना सामान उठाया और बोर्डिंग के लिए चल पड़ी. जाते समय मैंने मदन भैया को मैसेज किया

"आपकी मानसी ने उस दिव्यपुरुष की भविष्यवाणी को सच कर दिया है. यह सम्भोग एक बार फिर एक कामकला के पारिखी के साथ हुआ है. मैं उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर चुकी हूँ आशा है आप भी इस रिश्ते से खुश होंगे."

मैं अपनी भावनायें तथा जांघो के बीच रिस रहे प्रेमरस को महसूस करते हुए चंडीगढ के लिए उड़ चली.

चंडीगढ़ उतरकर मैने मदन भैया का मैसेज पढ़ा...

"मानसी तुम अद्भुत हो मैं तुम्हें अपनी समधन के रूप में स्वीकार करता हूं उम्मीद करता हूँ कि हम जीवन भर साथ रहेंगे. अब तो तुम्हारी जिम्मेदारियां भी खत्म हो गयी है अब हमेशा के लिए बैंगलोर आ जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में…."

मैं मन ही मन मुस्कुरा रही थी. मेरी सास स्वर्गसिधार चुकी थीं। अब चंडीगढ़ में मेरी सिर्फ यादें बचीं थी जिन्हें संजोये हुए कुछ दिनों बाद मैं बेंगलुरु आ गई. मेरे आने के बाद सुमन हॉस्टल से मदन भैया के घर में आ गई. राहुल और सुमन हम दोनों की प्रतिमूर्ति थे उनका अद्भुत प्रेम हमारी नजरों के नीचे परवान चढ़ रहा था. उनके प्रेम को देखकर मैं और मदन भैया एक बार फिर एक दूसरे के करीब आ गए थे. राहुल से संभोग के उपरांत मेरी योनि और उत्तेजना नवयौवनाओं की तरह हो चुकी थी. मदन भैया के साथ मेरी राते रंगीन हो गई वह आज भी उतने ही कामुक थे.

हमारे रिश्ते बदल चुके थे. हम सभी अपनी अपनी मर्यादाओं में रहते हुए अपने साथीयों के साथ जीवन के सुख भोगने लगे.

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CHULBULI CHANDNI

Genre : Incest, Adultery
Writer : Manik Mittal

Rattan na sirf mera sabse pyara dost tha, balke wo to mere liye bhai se kam nahi tha. Pehli kaksha se hi ham dono saath padhe, ikathe hi khele kude bade hue. Ham dono ki soch aur adaten kafi jyada milti thi.

Hamara yeh rishta hamse hi shuru nahi hua tha, ham dono ke pita ji bhi purane dost the. Ham dono ke ghar bilkul paas paas the. Itne lambe samay tak itna jyada pyar bane rehna bada hi mushkil hota hai par hamare pariwar iski udahran hain. Ham dono ke rishtedar tak jante the ke hamara kya rishta hai.

Main rattan aur mere rishte ke baare mein to bataye ja raha hun par maine abhi tak apne baare mein nahi bataya. Mera naam Chandra Kant hai aur main ek businessman hun. Abhi meri umar 45 saal hai aur zahir hai main shadishuda hun. Meri patni ka naam radha hai aur radha ekdam se gharelu aurat hai.

Ham logon ka jeevan bahut hi sukhmay dhang se beet raha hai. Hame agar koi kami hai to wo yeh hai ke hamare koi aulad nahi hai. Ham log aulad ke liye kahan kahan nahi ghume, jis doctor ko bola gaya ke uska result 100% hai ham har us doctor ke paas gaye, kisi vaid hakim ko nahi chhoda, na hi koi baba fakir ko, yani hamne aulad ke liye har darwaja khatkhataya fir ham yeh soch kar chupchap baith gaye ke shayad hamari kismat mein koi aulad hai hi nahi.

Waise hamare chupchap baithne ka ek aur bhi karan tha ke rattan ke bachon ne kabhi hame yeh mehsus hone hi nahi diya ke hamare koi aulad nahi hai. Unhone hame apne sage maa baap se bhi badhkar pyar diya to hamne to apni zindagi unke pyar mein hi bita di. To hame kabhi koi gila shikwa raha hi nahi ke hamare koi aulad nahi hai.

Rattan bhi 45 saal ka hi hai uski patni ka naam reena hai. Reena bhabhi bhi radha ki tarah hi poori tarah se gharelu rahi hai. Rattan private job karta tha. Maine use kayi baar kaha ke mere saath hi aa jao, mil jul kar vyapar karenge to wo kabhi mana hi nahi. Wo hamesha yahi bolta raha ke kaam kaaj mein doori banaye rakhenge tabhi pyar bana rahega nahi to ham itne door ho jayenge ke yeh dosti bhi jayegi aur main apne bhai jaise dost se door nahi hona chahta.

Rattan chahe utna padha likha nahi tha par samajhdar bahut tha. Shayad zindagi ki thokron ne use samajhdar bana diya tha. Chahe uski amdani kam thi par wo itna to kama hi leta tha ke apne pariwar ka bojh utha sake. Shadi ke ek saal baad hi usko putra rattan ki prapti hui, uska naam ravi rakha gaya. Ab aate hain kahani ki shuruat par.

Ravi ke janm ke teen saal baad rattan ke ghar ek pari ne janm liya, rattan to uska naam apne teeno ke naam ki hi tarah R par rakhna chahta tha par ab maine apna adhikar jamate hue kaha ke nahi iska naam mere naam par chandni rakha jayega.

Bhala yeh kahin ho sakta tha ke rattan ya reena bhabhi meri baat ko taalte, unhone meri baat ka maan rakhte hue beti ka naam chandni hi rakh diya. Halanki ravi se bhi mujhe pyar tha par pata nahi kyun chandni ne mujhe janm lete hi akarshit kar diya tha.

Jab uska janm hua to ek ghatna ghati. Reena bhabhi abhi behosh thi aur rattan uski medicines lene gaya tha. Meri wife paas hi kisi mandir mein matha tekne chali gayi thi. To jab nurse aayi to usne mujhe badhai di, darasal wo mujhe ladki ka pita samajh rahi thi.

Maine saharsh uski baat ko sweekar kiya aur use apni taraf se shagun diya. Main phoole nahi sama raha tha mujhe to yahi mehsus ho raha tha ke jaise main hi baap bana hun. Safai wali, dekhbhal wali nurse sabhi mujhe hi baap samajh rahi thi aur mujhse party mang rahi thi. Maine office ke ek ladke ko bol kar sabke liye samose aur mithai ka intzam kiya.

Ek nurse ne ladki ko meri goad mein lita diya aur kaha ke ab zimmedari sambhalo aur iske kapde dalo. Unhone to ladki ko sirf ek kapde mein lapeta hua tha. To pehli baar chandni ke kapde maine hi daale the. Meri patni pehle hi uske liye bahut hi nanhe nanhe kapde lakar rakhe the. Maine use pink color ka ek frock type pehnaya. Jise pehan kar wo kisi pari se kam nahi lag rahi thi. Mujhe us par kitna pyar aa raha tha main bayan nahi kar sakta.

Itne mein meri patni mandir se wapis aa gayi, maine use khushkhabri di. Wo bhi phoole nahi sama rahi thi. Use yeh dekh ke khushi hui ke maine use kapde pehnaye. Waise uski ankh mein ansu nikal aaye to maine use samjhaya ke yeh bhi to hamari hi bachi hai tab jakar uske chehre par muskan aayi.

Rattan aya uske to pair zameen par nahi lag rahe the. Thodi der baad reena bhabhi ko bhi hosh aa gaya, unko wapis room mein laya gaya. Waise itne mein nurses aur sabko pata chal gaya tha ke main asli baap nahi hun. Is par wo hairan thi ke main asli baap na hote hue bhi asli baap se jyada khush hun.

Tab wo naam rakhne wali baat aayi. Rattan uska naam rashi rakhna chahta tha par mere kehne par uska naam chanda rakha gaya. Bhabhi ne bhi dhire se bola, bhai sahab aapki beti hai, ham kaun hote hain naam rakhne wale.

Kehte hain betiyan chandrama ki kalaon ki tarah din raat badhti hain. Dekhte hi dekhte chandni 4 saal ki ho gayi. Uske chauthe birthday par main uske liye ek cycle aur sabse mehngi wali barbie doll laya. Wo khushi mein jhumti hui aayi aur mujhse lipat gayi. Wo ham dono ko bade papa aur bade mummy keh kar bulati thi. Main rattan se sirf 2 mahine bada tha isliye main bada papa ban gaya….hahahahahaha..chalo yeh bhi mujhe achha lagta tha, chahe wo bada saath lagati thi par mujhe papa to kehti thi.

Wo jabse chhoti thi tabhi se bahut chanchal aur chulbuli thi. Wo itni natkhat thi ke kabhi mera chashma chhupa deti aur kabhi kabhi to sote hue apni auntie ke galon par lipstic laga deti, kabhi main agar jyada der soya rehta to kitchen se ek glass pani ka laati aur mere chehre par udel deti. Yeh main us wakt ki baat nahi kar raha jab wo badi ho gayi thi, main us wakt ki baat kar raha hun jab wo abhi sirf 4-5 saal ki hi thi.

Usne kitna bhi hame preshan kiya ho ham log kabhi bhi uski sharaton se tang nahi aaye balke hame uske aisa karne se anand hi milta tha. Hamne uske liye kitne hi khilono ka intzam kar rakha tha par use khilauno se jyada hamare saath khelna pasand tha.

Ab wo das saal ki ho gayi thi. Maine rattan ko bol kar ravi aur chandni dono ko hi ek achhe english medium school mein daala tha. Mera khuddar dost badi mushkil se is baat ko maan paya tha ke uske dono bachon ki padhai se sambandhit sabhi kharchon ko main uthana chahta tha. Khair ham dono ke bahut kehne aur fir reena bhabhi ke manane se rattan kisi tarah maan gaya tha.

Din ka jyada time chandni hamare saath hi bitati. Aur fir jab wo hamare ghar hoti to naak mein dam karke rakhti. Apne ghar to use kitni hi tarah ki bandishen thi par yahan use koi bhi rokne wala nahi tha.

Wo itni badi ho gayi thi par abhi bhi meri pith par chadh ke jhulne lagti mujhe kehti ke bade papa park leke chalo mujhe apne barabar daudne ko majbur kar deti aur zid karke ice cream leti. Uske liye to jaise rattan kuchh tha hi nahi main hi uska saga baap tha.

Shararti wo number one thi. Kabhi mere pet mein gudgudi kar deti to kabhi mere jute chhupa deti. Kabhi apni badi maa ki chaye mein namak daal deti aur kabhi uski koi chij idhar udhar kar deti, to kabhi uski kamar mein chyonti kaat ke bhaag jati. Kehne ka matlab wo hame poora din tang karti rehti.

Jab bhi main radha ko bulata, sunti ho radha to radha se pehle chandni hi bol padti...aayi ji...aur jab radha mujhe bulati ...sunte ho ji to mere se pehle chandni bol deti ...bolo kya baat hai radha...uski in natkhat baton ki wajah se hamara jeevan bahut hi achhe se beet raha tha,

Wo chahe kitni bhi shararten karti par hame kabhi bhi uski shararton se preshani nahi hui. Balke ham to uski in nadaniyon se maze lete the. Kabhi kabhi reena bhabhi radha se bol deti ke aap dono ke laad pyar ne hi ise bigada hai to radha bolti ke yahi to umar hai bachon ki shararton ki warna to bade hone ke baad dunia bhar ki tensions mein ghir jayenge.

Par haan uska ek routine tha, usne kabhi bhi tuition nahi rakhi thi. Halanki ravi tuition padhta tha par wo kuchh subject apni badi maa se aur kuchh mujhse samajh leti is tarah uska school ka kaam bhi ho jata aur wo extra bhi padh leti. Padhai mein usne kabhi compromise nahi kiya aur na hi maine karne diya.

Uski life mein do log sabse important the, pehla to main offcourse, doosra uska bhai ravi. Ravi chahe kam bolta tha par un dono ke pyar mein koi kami nahi thi. Mere baad chandni apna jyada time apne bhai ravi ke saath hi bitati thi.

Uske saath bhi wo waise hi chhedkhani karti jaisi wo mere aur radha ke saath karti thi. Ravi bhi use itna pyar karta tha ke uski shararton ko wo hamesha andekha kar deta. Wo itni jhalli thi ke use pata nahi tha ke wo 15 varsh ki ho gayi hai aur uska bhai 18 varsh ka hai. Wo uski goad mein jaake baith jaati.

Ravi thoda mature ho gaya tha. Use in sab baton ki samajh thi, use halanki uske goad mein baithne se dikkat hoti par wo use kabhi bhi mana nahi kar pata. Darasal wo ab jawan ho gaya tha to chandni ke touch ki wajah se uske lund mein halchal mach jaati.

Use khud par gussa bhi aata ke wo apni behan ke touch se hi uttejit ho raha tha aur wo bhi itni chhoti behan ke touch par. Par wo kar bhi kya sakta tha behan to thi hi itni chanchal ke uski baat sunti hi nahi thi aur wo uske pyar ki wajah se use bol nahi pata tha.

Din beette gaye chandni badi ho gayi par uske harkaten nahi badli. Ab chandni 18 saal ki ho gayi thi aur ravi 21 ka. Ravi ne graduation kar li thi aur use ek achhi company mein job mil gayi thi. Wo bhi hamara utna hi samman karta tha jitni ke chandni. Job milne ke baad wo sabse pehle mithai ka dibba lekar hamse milne aya.

In logon ka hame is tarah samman dene ki kayi wajahen thi. Ek to inke mummy papa ne inhe bol rakha tha ke hamse pehle yeh tumhare maa baap hain. Doosra in bachon ke man mein hamesha yeh raha ke hamne inhe achhi education lene mein madad ki hai to wo bhi ek wajah thi. Teesra tha hamara in bachon ke liye pyar, hamara apna to koi bacha tha nahi to ham inhe hi apne sage bache maan kar pyar karte the.

Ham dono ne hi use dher saare ashirwad diye aur jeevan ke har kshetra mein safal hone ki kamna ki. Usne bhi pair chhukar hamara poora samman kiya. Jab bache naukari pa jaate hain to fir maa baap ko unki shadi ki chinta satane lagti hai.

Rattan ko hamesha yahi lagta tha ke bachon ke liye government ne jo shadi ki umar tay ki hai yani ladko ke liye 21 saal wo bilkul wajib hai unke anusar ab ravi ki shadi ho jani chahiye to unhone apne rishtedaron ko bol diya ke ravi ke liye koi achhi si ladki dekhi jaye.

Ravi to bechara ekdam gau jaisa tha usne aaj tak maa baap aur yahan tak ke ham dono ki baat ka kabhi virodh nahi kiya tha. Isliye abki baar bhi usne koi virodh nahi kiya.

Jaisa ke maine pehle bataya ke chandni ki umar jarur badhi par uski harkaten nahi wo ab bhi waise hi chulbuli thi jaise bachpan mein ya alhad umar mein.

Waise ab usne bhi jawani ki dehlij par kadam rakh diya tha. Uske sharir mein bhi parivartan aya tha aur kuchh to soch mein bhi. Kyunki yeh wo umar hai jab ladke ladkiyan sex ki baten karne lagte hain aur yahan tak ke kuchh to sex start bhi kar dete hain.

To aajkal chandni ke saath bhi uski saheliyan aisi baten karne lagi thi ke uski sex ke prati utsukta badhti hi ja rahi thi. Use sabse jyada utsukta lip kiss ki thi. Ke lips pe kiss karte wakt kaisa lagta hai. Uski saheliyan jinhone lip kiss kar rakhi thi wo itne utsah se batati thi ke kaise lip kiss karte wakt unka sharir ander tak hil jaata hai.

Unki baten sunkar wo sochne lagti ke kaisa lagega jab wo lip kiss karegi khaskar pehli wali. Uski utsukta itni badh gayi thi ke ab use lag raha tha ke use lip kiss karni hi chahiye. Par kiske saath kare uska to koi bf hi nahi tha.

Halanki chandni achhi kad kathi wali aur sudaul sharir wali ladki thi par itna bold aur frank hone ke bawjud usne ladkon se halesha hi doori bana kar rakhi thi. Uski life mein to bas do hi males the, ek main aur doosra ravi.

Ek din ravi kapde badal raha tha, yeh dono bhai behan ek doosre ke samne kapde badal lete the aur innerwears mein ek doosre ke samne hona inke liye koi nayi baat nahi thi. To ravi apne kapde utar raha tha aur abhi wo sirf underwear aur baniyan mein tha.

Use nahi pata tha ke chandni use ektak dekhe ja rahi thi. Itne dino se uske ander chal raha dwand ab is natije par pahucha tha ke kaun sa wo bhai ke saath sex ki baat soch rahi hai wo to sirf kiss ke baare mein hi to soch rahi hai to uske hisab se yeh koi bahut badi baat nahi thi. To wo bhag kar ravi ke samne gayi jo abh sirf do kapdon mein tha.

Chandni ne ekdam se apne bhai ka chehra pakda aur uske hontho se honth mila diye. Agar chandni ka kad achha tha to uske bhai ka kaun sa kam tha wo usse sirf 2 inch hi bada tha. Ravi ka sharir bhi kafi chust durust tha. Wo kuchh kar hi nahi pa raha tha, jaise bilkul hi jad ho gaya ho, shayad wo ekdam se hue is hamle ko samajh nahi paya tha.

Chandni ne ravi ka sar pakad kar uske muh ko apni or khincha aur uske honthon par apne honth tika diye. Aur jabardasti uske upari honth ko chusna shuru kar diya. Wo abhi bhi kuchh samajh nahi pa raha tha. Use vishvas hi nahi ho pa raha tha ke uski sagi behan uske saath aisa kar sakti hai.

Doosri baat usne aaj tak kisi bhi ladki ko kiss nahi kiya tha, isliye use achha to bahut lag raha tha par wo yeh sab kuchh apni sagi behan ke saath nahi karna chah raha tha isliye ab sthiti ko samajhte hue usne apne aap ko chandni se chhudane ki koshish ki.

Par chandni par to hawas haavy ho chuki thi. Kehte hain ke jab kisi insaan par hawas haavy ho to uska bal duguna ho jata hai wo apne partner se mukabla karne ki sthiti mein nahi rehta.

Chandni ko kiss karte hue abhi sirf ek minute hi hua tha ke ravi ko bhi is kiss mein anand aane laga. Akhir wo bhi to insaan tha aur ek ladka, kab ek bala ki khubsurat jawan ladki use is tarah betahasha kiss kar rahi ho to bhala uska apne upar kabu kaise reh sakta tha. Isliye usne bhi ab kiss mein chandni ka saath dena shuru kar diya tha.

Wo bhi uske honth chusne laga, chandni ko to bahut hi anand aa raha tha apne jeevan ki pehli kiss mein. Par jab uske bhai ne bhi saath dena shuru kiya tab uske sharir mein wo jhunjhuni si uthi jiska jikar uski saheliyan karti rehti thi. Wo ander tak hil gayi thi. Usko aisa sukun mil raha tha ke usne kabhi socha bhi nahi tha.

Halanki use sukun mil raha tha par saath hi saath ek bechaini si bhi uske sharir ke alag alag angon mein wo mehsus kar rahi thi. Uski ankhen laal ho gayi thi, kamukta ki wajah se uske nipple akad kar khade ho gaye the, pet mein ek ajib si halchal aur sabse main baat uski chut se kamras behne laga tha.

Kya itni si kiss poore sharir ko hila kar rakh deti hai, chandni apne man mein soch rahi thi. Usne to sirf yeh socha tha ke lip kiss se uska sharir mein ek kampan si paida hogi par yeh kiss uske tan badan mein aag laga degi yeh usne nahi socha tha.

Ab jab ravi aage badh gaya tha aur usne apni jeebh ko uske muh ke ander ghusa diya tha to chandni ko ab lagne laga ke yeh jo bhi ho raha hai galat ho raha hai, kya wo apne sage bhai ke saath kiss karke kamukta ki charam seema tak pahuchegi, chhii kitni gandi hun main, yeh soch ke use bahut bura laga, usne ekdam se kiss todi aur wahan se bhaag khadi hui.

Ab ravi bechara apna sa muh leke khada reh gaya. Wo pehle to chah hi nahi raha tha apni behan ke saath kiss karna lekin jab kiss thodi aage badhi to use achha laga aur wo usse bhi aage badh gaya. Uska man kar raha tha ke wo use aise hi kiss karta rehta. Par ek do minute mein jab wo masti se bahar nikla to use samajh aaya ke jo bhi hua galat hi hua.

Jab chandni wapis aayi sone ke liye (yahan bata den ke un dono ka ek hi room tha, par bed alag alag the, matlab bed apas mein jude hue nahi the), usne dekha ke ravi apne bed par baitha kuchh soch raha hai. Use apne bhai ko is haal mein dekhkar achha nahi laga. Wo samajh gayi thi ke wo kya soch raha hai. Wo uske samne apne bed par jakar baith gayi aur usse bolne lagi ke wo apne man mein baat na rakhe kyunki jo kuchh bhi hua dono ki marji se hua.

Par ravi ne kaha ke yeh nahi hona chahiye tha. Chandni kahan use jhukne deti usne use samjha hi diya ke unhone kuchh bhi galat nahi kiya. Jo kuchh bhi hua dono ki rajamandi aur bade hi natural tarike se hua.

Chandni ko halanki neend nahi aa rahi thi, uska hath apni chut par gaya usne use sehlana shuru kar diya aur jhadne ke baad hi use neend aayi. Yeh uska pehli baar tha ke usne hast maithun kiya tha.

Us wakt to dono ko kiss karna utna sahi nahi laga tha. Par uske baad na jane kitni baar un dono mein kiss hui. Ab to jab bhi mauka milta wo dono kiss karte. Par wo dono kiss se aage nahi badh paye.

Ravi ki shadi tay ho gayi thi. Ghar mehmano se bhara hua tha. Agle hi din shadi thi to aaj ladies sangeet tha. DJ aur naach gaane ka intzaam ho rakha tha. Wo pal bhi aya jab naach gaana shuru hua. Ladkiyan aur ladke alag alag apne mein mast hokar dance kar rahe the.

Main us wakt sofe par baitha caterer se baat kar raha tha ke tabhi chandni mere paas aayi aur mujhe jabardasti khinchne lagi ke bade papa aao aapko bhi dance karna hai. Bhala main kaise ja sakta tha. Mujhe dher saare kaam jo the. Par usne aaj tak kisi ki suni thi jo aaj sunti.
Wo mujhe khinch kar dance floor par le gayi aur mujhe dance karne ke liye majboor kar diya. Halanki main use bahut samjhane ki koshish kar raha tha ke mere paas dance wance ke liye bilkul bhi time nahi hai par uske aage kabhi meri ek na chalti thi. To maine ab dance karne mein hi apni behtari samjhi.

Par yeh kya wo to mere saath hi dance karna chah rahi thi. Mujhe bhala kya problem hoti uske mere saath dance karne mein. Jaisa taisa main uske saath dance kar raha tha par use to masti chadhi thi. Mujh to wo aise treat kar rahi thi ke jaise main uska boy friend hun.

Aaj pehli baar maine dhang se uski figure notice ki thi. Ki kya wo to khud hi dikh rahi thi kyunki usne dress hi kuchh aisi pehni hui thi ke uske boobs aur uski gand ubhar kar bahar aa rahe the. Top to ekdam transparent type tha ke bra ka rang tak dekha ja sakta tha.

Yeh ladkiya shadiyon mein ban kya jaati hain. Aur fir lower usne aisa pehan rakha tha, itna tight ke uski gand ki darar ka naap bhi le lo chahe, dekh ke muh mein paani aa raha tha. Main kar raha tha ke isko apne aage wale part par ragdun.

Yeh kya soch raha hun main. Wo koi aur nahi meri bachi hai. Main kya pagal hun jo aisi waisi baten soch raha hun. Par fir se mera dhyan uski keemti sampatti par pahuch jaata. Wah kya sharir paya hai meri bachi ne soch ke mere dil ki dhadkane badh gayi kyunki ab wo apne sharir ko mujhse touch karke dance kar rahi thi.

Wo to thi hi beparwah par kya main bhi laparwah ban jaun. Nahi mujhe galat nahi sochna, par mere hi sharir ke ang mera saath nahi de rahe the. Mere lund ne to mere dimag ke saath bagawat ki hi, mere hathon ne bhi kar di kyunki mere hath apne aap hi uske chutdon par chal gaye aur unhe daba diya.

Chandni jo mujhse judkar dance kar rahi thi usn ek baar to sar utha ke meri or hairani se dekha par agle hi pal wo muskura di jaise kuchh hua hi na ho...aur to aur mere kaan mein boli...bade papa meri body bahut achhi hai na..aur mujhe ankh maar di.

Abki baar main hakka bakka reh gaya. Khair hath to maine turant hi hata diye the ke kisi ne dekh liya ke apni beti ke saath yeh sab kya kar raha hai to charon aur thu thu ho jayegi. Ham sabki samajh mein izzat khak ho jayegi. Par yeh pagal ladki kya bole ja rahi hai. Kya use mehsus ho gaya ke main use us nazar se dekh raha tha jisse ek jawan ladki ko dekha jata hai. Ek baar to main ghabra hi gaya. Par uski muskurahat dekh kar mujhe kuchh rahat jarur mil rahi thi.

Ham dono ke couple dance par 4-5 gaane chale aur hamare dance ko logon dwara khub saraha gaya. Chandni bhi khush thi ke uske bade papa ke saath uska naam lekar logon ne unke dance ko itna pasand kiya. Par mujhe thodi glani ho rahi thi. Chandni samajh gayi ke main preshan hun apne kiye ki wajah se.

Wo mujhe bahane se apne room mein le gayi kuchh dikhane ke liye. Jab maine puchha ke kya dikhana hai to khilkhila ke hans padi aur boli, bade papa kuchh dikhana nahi tha kuchh batana tha aur fir se mujhe ankh maar di.

Main soch raha tha ke koi itna beparwah kaise ho sakta hai fir socha ke yeh umar hi aisi hai ke abhi utni jimmedariyan nahi padi isliye shayad yeh aisi hai. Par main ab janne ko utsuk tha ke wo akhir kehna kya chahti hai. Main usse puchha ke use kya batana hai.

Usne jo bataya use sunkar to mere pairon tale se jameen hi nikal gayi. Usne bola ke wo apne sage bhai yani ravi ke saath kiss karti hai aur wo bhi lips par. Itna bol ke wo hans padi. Maine use kaha ke tum hosh mein to ho kya bole ja rahi ho. Shayad tumne yeh sapne mein kiya hoga.

Mere sar par hath rakhke boli bade papa aapki kasam ham sach mein kiss karte hain aur boli ke mujhe bahut maza aata hai unse kiss karke. Main to hairan hi reh gaya. To kya behan beti ke baare mein soch kar kamuk hona aam baat hai. Fir maine socha ke samaj iski katai ijazat nahi deta. Par fir socha ke ham log wo mante hi kahan hain jo samajh karne ko mana karta hai. Maine dekha wo muskura rahi thi mano uske liye yeh baat normal ho.

Uske baad ham dono dost hi ban gaye the. Maine bhi use bata diya tha ke mujhe us din use dekh ke kuchh feelings aa rahi thi. Wo yeh jaan ke bahut khush hui. Halanki wo mere saath itni frank ho gayi thi par meri usko us tarah se touch karne ki kabhi bhi himmat nahi hui.

Halanki wo bahut shaitan thi use pata tha uski assets dekh ke main uttejit hota hun to kabhi kabhi waisa top pehan ke wo mere samne apni chhati taan ke khadi ho jati jisse uske boobs aur bhi bade dikhte to kabhi apni kamar ko jhuka ke apni gand ko ubhar deti mere paas akar. Aur mujhe lalchai nazron se dekhte hue dekh kar khub khilkhila ke hansti aur bhaag jaati.

Par wo itni to samajhdar thi ke aisi harkaten aur baten kabhi bhi radha ke samne na karti hamesha jab wo kahin aur hoti tabhi karti. Shayad use bhi mujhse kuchh chahiye tha par main ise uski nadaniyan hi samajhta raha. Doosri baat main isliye bhi aage na badh saka ke wo akhir thi to doosre ki beti to yeh baat bhi mujhe hamesha rokti rahi.

Yeh do saal mein wo aur bhi khubsurat aur bhi jawan ho gayi thi uske ang bhi ab pehle se jyada ubhar aaye the. Kehne ka matlab wo ekdam badal gayi thi par agar kuchh nahi badla tha to wo tha uska natkhat swabhav.

Rattan aur reena to uski nadaniyon se itne preshan the ke wo use jald se jald apne ghar se dafa karna chahte the yani uski shadi karna chahte the. Badi mushkil se unhone uske graduation karne ka intzar kiya mere kehne se warna wo log to use 18 saal ki umar mein hi byah dete.

Ravi aur chandni is kiss game ki wajah se itne khul gaye the ke jab ravi ki shadi hui thi to suhagraat ke agle din mauka dekh ke chandni ne usse puchh hi liya tha ke kya hua tha, pehle to ravi sharmaya par fir usne sab kuchh detail mein chandni ko bata hi diya. Chandni ne bhi badi utsukta se uski baten suni aur bahut khush hui.

Rattan aur reena to badi shiddat se uske liye var dhundh rahe the. Sab rishtedaron ke pichhe pade hue the yeh dono. Unhe lag raha tha ke yeh itni chulbuli hai ke kisi ke chakkar mein hi na pad jaye, agar aisa ho gaya to kahin muh dikhane ke kabil nahi rahenge. Ab maine unhe rokna chhod diya tha kyunki mujhe pata tha ke ab wo nahi manne wale.

Rattan ne akhir apni manmani kar hi daali. Apni 20 saal ki jawan (lekin man se bachi) ki shadi kar hi daali. Ladka achha tha, ek mnc mein software engineer ki job par tha. Dekhne mein bhi handsome kehne ka matlab chandni ke ekdam layak tha.

Par uski shadi hote hi ham dono ki dunia veeran ho gayi, khaskar meri. Main apne aap ko idhar udhar ke kaamo mein vyast rakhne ki koshish karta par mera man hi nahi lagta tha. Waise har roz chandni ko video call ke jariye dekh leta tha aur wo usi tarah masti mein mujhse dheron shararten karti. Par jo baat insaan ke samne rehne mein hai wo baat video call kahan thi.

Isi tarah kuchh din aur beet gaye. Ek din hame pata chala ke chandni ka husband koi teen mahine ke liye kisi project par france gaya hai. Wo life mein pehli baar udas dikhi. Us din uski chulbulahat pata nahi kahan furrr ho gayi thi. Khair maine use hansane ki nakam koshish ki. Darasal wo dono yahan se koi 100 km door ek bade shahr mein rehte the aur wo dono akele hi rehte the uske saas sasur to hamare hi paas ke city se the to ab use akelapan khaane laga tha. Wo aa bhi nahi sakti thi kyunki wo ab job karne lagi thi.

Par 2-3 din baad hi kuchh aisa hua ke meri to banchhen hi khil gayi. Main ek yoga wali sanstha se juda hua hun. Jis city mein chandni rehti thi wahan par us sanstha ka national level ka karyakram hona tha jo 10 din tak chalna tha. Ab yeh to tay tha ke program uske city mein hoga to mujhe uske yahan hi rukna tha. Maine yeh baat phone karke chandni ko batai to wo khushi ke maare koodne lagi aur boli ke bade papa aaj hi aa jao.

Maine use bola ke main saturday tak aunga, main bahut khush tha to radha bhi mujhe apni beti ke saath pyar ke baare mein aur mere utawalepan ke baare mein bol bol ke preshan karti rahi.

Akhir wo din aa hi gaya jab mujhe apni jaan ko milna tha. Haan meri beti meri jaan hi to thi. Jaise hi main airport par bahar aya to wo pagal ladki airport par hi bhagkar mujhse lipat gayi. Main bhi kahan ruk paya maine bhi use jor se bhinch liya kitna sukun mila mujhe use gale se laga kar. Kamukta se uske ango ko dekhne wala ab uske bachpan wale pyar mein kho gaya tha. Ham dono hi khush the par ankhen ansuon se bhari hui thi yahi to pyar hota hai.
Wo mujhe apne flat mein le gayi aur fir se mere gale lagi aur rone lagi. Aaj jeevan mein pehli baar maine use rote hue dekha. Usne rote rote mujhe bola ke use aur kisi ki yaad nahi aati thi bas meri hi yaad aati thi. Mujhe uski is baat par bahut pyar aaya aur main uske chehre ko kitni der chumta raha.

Fir ham dono hi sambhale aur chandni ne kaha ke main fresh ho jaun kyunki kafi door se aya tha. Main naha dho ke nikla to khane ki achhi achhi khushbuyen aa rahi thi. Main samajh gaya ke mere liye kuchh special ban raha hai. Main underwear aur baniyan mein hi kitchen mein chala gaya to dekha ke chandni uchhal uchhal kar khushi khushi kaam kar rahi thi. Mujhe is haal mein dekh ke use koi tajjub nahi hua kyunki wo aksar mujhe is position mein dekhti rehti thi.

Usne shayad kitchen mein kaam karne ki wajah se kapde change kar liye the ab usne ek capri aur dhila sa ek top pehna hua tha. Wo ab aata gunth rahi thi. Main khushbu sunghta sunghta uske paas aya aur uski gardan ke paas jaake naak se saans ko khincha jis tarah se ham sunghte hain aur dhire se uske kaan mein bola “Kya khushbu hai” darasal yeh ek double meaning baat hai kyunki khushbu to uske badan se bhi khub achhi aa rahi thi.

Usne bhi mujhe kamuk awastha mein dekh ke muskurate hue bola “ naughty papa”. Main usi awastha mein kitni hi der khada raha kyunki uske badan ki bhini bhini khushbu mujhe bahut anand de rahi thi. Par akhir kitni der khadta wahan. Jaane laga par jaise hi main jaane laga usne mudkar mere lips par ek halki si jaise chonch milate hain kiss kar di. Pehli baar uske lips ka sparsh mere lips par hua to main ander tak kamp gaya.

Main aakar sofe par baith gaya. Khana bana ke chandni mere paas aayi aur ham dono ke liye serve karne lagi. Serve karke wo mere se ekdam judkar baith gayi thi. Maine abhi bhi kapde nahi pehne the. Usne ek do chamach mujhe apne hath se khilaye to maine bhi use apne hatho se khila diya. Hamara pyar shuru se hi dekhne layak hai.

Fir aayi baat sone ki. Main soch raha tha ke main alag room mein sounga par wo to mujhe apne bedroom mein le gayi aur apne saath hi leta liya aur mujhe jor se jaffi daal di jaise ke main uska papa nahi pati hun. Maine use masti mein bola kyun damad ji ki yaad aa rahi hai kya wo fir se muskura kar mujhe marte hue boli, “naughty papa” fir se mere lips pe ek kiss kar di. Ab to mera man kar raha tha ke kuchh kar hi dalun par main aisa kaise kar sakta tha akhir to wo meri beti thi. Kuchh der aise hi sochte sochte main so gaya meri beti to pehle se hi so chuki thi.

Subah karyakram ka pehla din tha. Main hamesha hi yoga mein achha raha hun par aaj mera man yog mein lag hi nahi raha tha. Mera to dhyan bas apni beti ke sharir par hi tha. Ab main yeh baat bhi bhul chuka tha ke wo meri beti hai main use ab poori tarah se ek aurat ke roop mein dekh raha tha.

Dopahar baad main ghar pahucha, aaj ravivar tha to wo ghar par hi thi. Mere aate hi mujhse lipat gayi. Main fresh hoke jab innerwears mein bahar aaya to wo samne hi khadi kuchh soch rahi thi. Maine ishare se puchha to usne inkar diya ke kuchh nahi. Fir muskurane lagi.

Aaj yeh kya pehan rakha tha isne, uski patli si top se to sab kuchh dikh raha tha top kya transparant si slip thi aur niche nikker. Main uske samne sharm nahi karta tha to wo bhi sharm nahi karti thi. Main uttejna mein bhar gaya. Aage badha aur use gale se laga ke jor se daba liya apne seene se. Use bhi shayad aaj mehsus hua ke yeh normal jaffi nahi hai, kamukta wali hai.

Meri sansen tej ho gayi thi. Mere hath uski gand par pahuch gaye aur maine halke se use daba diya. Usne mujhe bol hi diya...kya hua...mujhe koi jawab nahi diya ja raha tha. Akhir use kehta bhi kya. Usne meri manah sthiti samajh li thi.

Mera muh uske kandhe par tha aur sansen kamukta ki wajah se bahut hi tez chal rahi thi. Maine uske kaan mein dhire se bol hi diya...tum shadi ke baad bahut hot ho gayi ho chandni.

Uska bhi ab thoda to mere jaisa haal ho gaya tha to boli...sach papa? Waise aapke damad bhi yahi bolte hain ke tum hot ho..main...to kya galat bolte hain. Jab main yeh bol raha tha to meri ek tang uske tang se ragad kha rahi thi, anand poora aa raha tha kyunki ham dono ki hi tange nangi thi. Mera lund to bekabu ho hi chuka tha, shayad chandni ne bhi is baat ko mehsus kar liya hoga.

Par jab baat yahan tak badh gayi to fir se ander se ek awaz uthi aur main usse alag ho gaya aur lagbhag bhagte hue bedroom mein chala gaya. Is dauran maine apne lund ko bithane ki bahut koshish ki par wo nahi mana.

Kuchh der baad chandni bhi aa gayi thi sone ke liye. Wo akar mere bagal mein let gayi thi. Hamari chulbuli chandni aaj ekdam shant si thi. Na jane use kya ho gaya tha, kahin use mujh par gussa to nahi aa raha hoga, main yeh soch hi raha tha ke chandni ne apna muh meri or ghuma liya. Kohni par apna sar rakhke wo meri ankhon mein ankhen daal ke dekh rahi thi.

Mujhe laga ke shayad wo kuchh kehna chah rahi hai. Maine ankhon ke isharon se hi puchha to usne kaha...papa aap chahte kya ho? Uske is prashn ne to mujhe hakka bakka kar diya. Pehle to apne khud ke vyavhar par hairan tha ke maine kya kar dala ab uske prashn ne to mujhe hairan ke saath preshan bhi kar diya tha..maine sarsari taur par keh diya...kuchh nahi.

Uske chehre par wo chirparichit masumiyat aur shararat se bhari muskan aa gayi aur boli...nahi mere papa kuchh to chahte hain mujhse..batao na papa...meri to sanse hi ruk gayi thi. Apni beti se kya kahun ke main usko chodna chahta hun?

Khair mujhe koi jawab na dete dekh chandni ne kuchh aisa kiya jiske ke main kalpana bhi nahi kar sakta tha. Usne mere under wear mein hath dala aur mere tambu jaise khade hue lund ko tham liya aur muthi mein bharkar upar niche karne lagi aur ankh maar ke puchha...kyun papa kaisa lag raha hai...bhala main kya kehta. Par haan itna jarur tha ke main ab hamare baap beti ke rishte ko bhul chuka tha aur main jald hi kuchh karne ja raha tha yeh to tay tha.

Chandni ke komal sparsh se mera lund aisa bekabu hua ke wo ab pani chhodne laga. Chandni boli, papa aapme to control hi nahi hai to mainu kaha ke jab yeh tere jaisi jawan aur hot ladki ka sparsh payega to kabu mein kaise rahega.

Yeh kehkar main ruka nahi aur sidhe chadh gya apni beti ke upar uske honthon se honth bhida diye aur ek hath apni beti ki chut par rakh diya.

Aaaahhh kya karte ho papa, chandni ki to siskarian nikal rahi thi. Maine uski ek na suni aur jhat se usko ekdam us halat mein kar diya jis halat mein use maine janm ke time dekha tha. Usne bhi koi virodh nahi kiya aur mujhse badla le liya aur mujhe vastra viheen kar diya.

Maine uske kaan mein halke se bola, pata hai tumhe sabse pehle maine isi roop mein dekha tha to wo muskurate hue boli ke us wakt mein aur ab ke wakt mein jameen aasmaan ka fark hai papa. Ab to aap mujhe kisi aur hi roop mein dekh rahe ho na. Kyun papa...kehte hue usne badi katil muskan bikher di.

Main to uski muskan se ghayal hi ho gaya tha. Wo bhi ab tak ashwast ho chuki thi ke aaj sab deewaren dhehne waali hain aur kuchh na kuchh jarur hone wala hai. Ab ham dono baap beti nahi ek aurat aur mard the bas. Mere liye bhi aur main nischit taur par keh sakta hun ke uske liye bhi.

Maine pehle uske ek ek ang ko nihara upar se neeche tak, usne bhi mere adhkhade lund ko hasrat bhari nazron se dekha. Maine uska hath pakda aur apne lund pe tika diya. Fir asli khel shuru hua ab ham dono hi madakta mein andhe ho chuke the, fir to uski sucking mera uski poori body se khelna chumna chusna katna.

Pata nahi kya kya hua fir maine khud hi use bade pyar se niche lita ke uski chut ki darar par apna lund tika ke ek jhatka maara to adha lund to pehle jhatke mein uske ander tha. Usne jor ki saans li aur kaha..aaahhhh papa. Maine puchha kaisa lag raha hai beta to usne kaha ke papa bas puchho mat ap apna kaam karte raho bas. Uski siskariyan mere josh ko duguna kar rahi thi.

Aaj mera lund zindagi mein pehli baar itna jyada sakht aur bada hua tha aur woh bhi meri beti ke pyar ki wajah se. Kafi der jab nahi chhuta to maine usse puchha ke wo upar aa sakti hai to usne saharsh sweekar kar liya.

Wo upar aa gayi aur ghapp se mera lund apni chut mein sama liya. Wah kya anand tha ab meri beti mujhe chod rahi thi. Maine uske uchhalte hue boobs apne dono hathon mein tham liye aur unhe bade hi pyar se dabane laga to dekha ke chandni ki ankhon mein masti aur chehre par shararat bhari muskaan thi.

Thodi hi der mein ham dono jhad gaye aur usne neeche jhuk ke bade hi jordar dhang se mere honthon par kiss ki. Meri ankhen band ho gayi aur main abhi abhi hui chudai ke baare mein soch ke anand se bhar gaya. Us raat hamne kul teen baar chudai ki. Main bhi is umar mein apne stamina ko dekh ke hairan tha.

Yeh ek baar nahi hua, baar baar huam jab bhi hamara man karta ham karte, kyunki hame lag raha tha ke ham dono chahte hain to yeh hona hi chahiye. Hame isme koi burai nazar nahi aa rahi thi. Is tarah wo das din kaise beet gaye mujhe pata hi nahi chala.

Hamara baap beti ke roop mein jo rishta tha, ek premi premika ek roop mein yeh rishta aur bhi gehra ho gaya. Is roop mein bhi usne shararten karna nahi chhoda, jaise sucking karte wakt wo mere lund par jor se kaat deti aur mujhe nanga dekh ke kabhi kabhi mujhe neend aane lagti to meri gand mein jor se ungli ghusa deti aur hahahaha karke jor se hans deti.

To is tarah main uske ghar se badi hi mithi yaden lekar vida hua aur ham baad mein bhi milte rahe. Maine apna pyar karna nahi chhoda usne apni shararten nahi chhodi. TO AISI HAI MERI CHULBULI CHANDNI.
===OOO===
 

The_Punisher

Death is wisest of all in labyrinth of darkness
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वह कोण थी
Genre- Romance + Drama
Written by- Hunk09


20210214-065839
Aaj laadsahab badhi jaldi uth gaya roz to jab tak mai 10 baar aa k na uthao tum uthne ka naam bhi nahi lete ho
Roz ki taraha Deepak k din ki shuruwat uske maa k tanno k sath hui
Deepak-kya maa der se uthta hun to bhi tanne aur aaj jaldi utha toh bhi tanne kabhi toh tareef kar liya karo meri
Maa-pehele tareef karne layak kuch karo toh sahi badha aya tareefe karane wala
Deepak ne apni maa k bato par jyada dhyan nahi diya ab toh usko iss baat ki aadat si ho gayi thi o bina kuch bole chupchap table par nasta karne baith gaya
Waise Deepak kal puri raat Sandhya k khayalon me jagta raha usne tay kar liya tha ki aaj chahe jo bhi ho o sandhya ko apne man ki baat bata hi dega
Sandhya Deepak ki college ki friend ya yun kaho ki o uski crush thi
college k pehele hi din se hi o sandhya ki nasheeli ankhon ka deewana ho gaya tha lekin usko khone k dar se usne kabhi apne pyar ka izhaar nhi kiya tha
Lekin ab uske sabar ka bandh toot chuka tha kyun ki college k akhari kuch din hi bache the aur usko sandhya ko kisi bhi haal me khona nahi chahata tha
Jaldi se nasta khatam kar deepak apni bike le kar college ki or chhal pada
College me jaise hi usne apni bike park di usko pichese kisine bulaya
Abhi- are deepak tune suna kya?
Adhi deepak ka purana frnd bole to langotiya yaar
Deepak-kis bareme?
Abhi-are apni sandhya k baare me?
Deepak-abe saale sandhya apni kab se ban gayi be o sirf meri hai meri samja
Abhi-saale ab o teri bhi nahi rahi uski shadi tay ho chuki hai
Deepak-abhi dekh majak mat kar main mazak ma mood me bilkul bhi nahi hun
Abhi-mai mazak nahi kar raha sach me uski shadi tay ho gayi hai aur o bhi apne maths k teacher Mr. joshi k sath
Deepak-ye tu kya bol raha hai agar ye mazak hai to abhi bol de
Abhi-nahi yaar mai sach bol raha hun
Deepak kisi nirjeev chiz ki taraha wahi khada tha jaise o apne saare hosh aur hawas kho baitha ho
Abhi-o dekh sandhya aa rahi hai chahe toh ussi se puch le
Abhi ne deepak ko hosh me late huye bola
Deepak ne apni nazare sandhya ki taraf badhai jaise hi uski nazare sandhya ki nazaronse mili sandhya apni palake jhukaye wahase bina kuch kahe hi nikal gayi aur deepak bas usko apne se dur jata hua dekhta reha gaya
Aur issi k satha deepak ne apna choutha peg bhi khatam kar diya tha 4 saal ho gaye the iss ghatana ko lekin deepak k dil me uski yaade ab bhi taaza thi jaise mano kal ki hi baat ho
Aaj college ki reunion party thi waise to deepak ana nahi chahata tha lekin doston ke kehne par khas kar abhi k deepak man gaya tha lekin usko ye pata nahi tha ki sandhya bhi aya anewali hai agar usko pata hota to o yaha kabhi nahi ata sandhya ko dekh kar jaise uske purane jakham fir se taaza ho gaye the
Party khatam honeko ayi thi sandhya k satha jyada tar log party se ja chuke the par deepak bas peg pe peg khatam kiye ja raha tha
Akhir me abhi ne deepak ko roka
Abhi-bas kar yaar aur kitna piyega ghar nahi jana kya aur abh bul ja usse aur apni jindgi me agey baadh jaise o badh gayi hai
Lekin abhi k baaton ka deepak par koi asar hi nahi ho raha tha par akhir kar party khatam ho gayi thi aur majbooran deepak ko wahase jana pada
Waise toh deepak ne kafi pi rakhi thi par o abhi bhi pure hosh me tha o khud apni car drive karte huye apne ghar ki taraf chal pada
Abhi ne deepak ko bahut samjaya ki o nashe me hai car drive na kare chahe to aaj raat k liye yahi ruk jaye magar o nahi mana
Deepak par bhi abh sharab ka asar dikh raha tha uppar se joron ki barish shuru ho gayi thi hotel Ek hill station pe hone ki wajah se pura rasta sumsan pada tha upar se barish keher dha rahi thi deepak tezi se apne sheher ki aur baadh raha tha
Ek to pehele se hi deepak mood kharab tha uspe barish ne aag me ghee ka kaam kar diya tha aisa nahi tha ki usko barish pasand nahi thi magar barish ki girti har bund usse apne dite huye kal ki yaad dila rahi thi
Deepak apne khayalon me hi car agey badhaye ja raha tha ki tabhi agle mod par usko roshani dikhayi di shayad koi car rukhi thi waha
Deepak ne apane car ki speed kam kar di jaise hi o uss car k pass pahuncha waha ek aurat uske aur badhi to majbooran deepak ko apni car ko rokna pada
Jaise hi deepak ne apni car roki o aurat uske car k window k pass aake boli
Aurat-suniye sir meri car kharab ho chuki hai aur yaha mobile me signal bhi nahi aa raha kya aap mujhe agey tak lift denge please
Bhale hi car me aur bahar ghup andhera tha par ussme bhi deepak un nasheeli ankho ko pehechan gaya tha ji haan o sandhya hi thi jiski car bich sadak me band padi thi
Pehele to deepak k dil me khayal aya ki o usko mana kar k agey badh jaye lekin uska dil iss baat k liye raji nahi tha to usne sandhya ki madad karne ka faisala kiya
Deepak-arey sandhya tum aao na main tumhe tumhare ghar tak chhod deta hun
Sandhya-deepak kya ye tum ho
Bhale purane hi sahi lekin janpehchan wale shaksh ko dekh sandhya ke jaan me jaan ayi
Deepak-haan mai hi hun aao andar aao
Sandhya car k bithar baith gaya aur deepak ne car agey ko badhai
Pehel kuch samay to dono chup hi the phir deepak ne baat ki pehel ki
Deepak-aur batao sandhya kaisa chal raha hai
Sandhya-sab thik hai
Sandhya ne pure niruthsah se jabaab diya
Dono fir se chup ho gaye raat kafi ho chuki thi barish rukne ka naam nahi le rahi thi upar se raste ki halat pehelese hi kafi kharab thi aur barish k wajah se aur bhi jyada kharab ho gayi thi iss bich sandhya bol padi
Samdhya-deepak mujhe lagta hai humko thodi der k liye kahi to rukna chahiye barish bahut tez hai
Waise to deepak sandhya k sath jyada der bitana nahi chahata tha kyun ki ye safar uske liye anchaha safar tha lekin sandhya ki baat bhi sahi thi
Deepak-tum sahi keh rahi ho hume kahi rukna to chahiye lekin kaha ruke
Sandhya-mai ek jagah janti hun jaha hum ruk sakte hai yaha se thodi duri par ek haweli hai jaha koi nahi rehta agar tum chaho tho hum kuch der k liye wahi ruk sakte hai
Deepak ko sandhya ki baat thik lagi
Deepak- thik hai fir wahi chalte hai
Aur deepak ne car haweli ki taraf mod di
Haweli ka gate pehele se hi tutha hua tha to deepakne car sedhe hawali k darwaje tak leke gaya par darwaje par badga tala gaga hua tha
Deepak ne car se utar kar thodi chhanbin ki to usko ek khidki ki kanch toothi hui mili
Fir deepak ne us khidki ko khol diya aur fir dono us khidki k raste haweli k bhitar chale gaye bhale hi haveli kayi salonse band Thi lekin haveli ka kamra aisa lag raha tha mano kisine abhi abhi kamra sajaya ho
Hewali k andhar pura andhera tha deepak ne apne mobile k torch k sahare thodi khojbeen karne par usko ek candle mili jisko usne apne lighter k sahare jala diya
Pura kamara candle ki roshni ja bhar gaya aur uss roshani me usne peheli baar sandhya ko gaur se dekha
Sandhya ka bheega hua badan moombatti ki roshani me mano chamak raha tha uski bheegi hui sadi uske badan se chipki hui hone ki wajah se uske sharir k ubhar saaf tour par nazar aa rahe the gile baalon k sath ko kisi kamseen hasina ki tarah dikh rahi thi deepak na chahte huaye bhi usko baas dekhe ja raha tha
Udhar sandhya ko bhi deepak k ki nazar ka ahsaas ho chuka tha
Sandhya-aise kya dekh rahe ho
Deepak-dekh raha hun ki aaj bhi tum utni hi sundar ho jaise college k dino me hua karti thi baki ab to tum aur bhi sundar ho gayi ho
Sandhya-deepak tum bhi na kuch bhi bol dete ho
Deepak-are sach your r looking very beautiful
Sandhya-ab bas bhi karo aur batao kya chal raha hai life me koi ladki pata li ya abhi bhi single hi ho
Deepak-tumhare siwa meri jindgi me na koi aur ladki thi na koi ayegi
Sandhya-deepak ye tum kya bol rahe ho tum hosh me to ho
Sandhya ne gusse se jabab diya
Deepak-haan sandhya mai sach bol raha hun mere maine tumhe pehele kabhi bataya nahi lekin main tabse tumhe pyar karta hun jabse maine tumhe peheli baar dekha tha aur mai aaj bhi tumse utna hi pyar karta hun
Sandhya-deepak!!! Meri shadi ho chuki hai main kisi aur ki biwi hun tum aise kaise keh sakte ho
Sandhya ne chilla ke jabab diya
Deepak-sach me sandhya mai tumhe bahut pyar karta hu itna ki tum soch bhi nahi sakti
Deepak ki baate sun kar sandhya ka ankho me ansu aa gaye aur o rone lagi
Sandhya ko rota dekh deepak ko apni galati ka ahsaas ho gaya
Deepak-sandhya plz ro mat main tumhe hurt nahi karna chahta tha par tumhe aaj aise dekh meri dil ki baat juban par aa gayi
Deepak k samjane par sandhya thodi si nornal ho gayi
Deepak-sandhya bura na mano to ek baat kahu
Sandhya-hmm kaho
Deepak-tum rote huye bilkul chudail ki tarah dikhti ho
Itna keh kar deepak jor jor se hasne laga
Sandhya-deepak k bachhe aacha mai chudail dikhti hun kya ruko tumhe abhi batati hun
Kuch der tak dono k bhich unhi hasi mazak chalta raha deepak bas sandhya ki chhede ja raha tha jaise o college k dino me karta tha aur jabaab me sandhya uske pith par gusha ya chapet mar rahi thi bato bato me dono ek dusre k kafi kareeb aa gaye the issi beech deepak ki nazar sandhya k nazar se mili aur o uski nasheeli ankho me firse kho gaya jaise koi geheri zeel me dubta hi chala jata hai waise deepak sandhya ki ankhon me khota chala ja raha tha
Sandhya-deepak.. Deepak khahan kho gaye
Sandhya ki awaj sunkar deepak hosh me aya
Deepak-kya kya kaha tumhe?
Sandhya-maine pucha kaha khoye huye ho
Deepak tumhari zeel jaisi ankhon me
Deepak k muh se apni tarif sunkar sandhya ko gussa nahi aya balki unse sharma k apne palake zukali
Sandhya-kuch bhi
Deepak-sachi jab bhi tumhari ankhe dekhta hun isme doob jane ka dil karta hai
Sandhya-oh..... flirting huh?
Deepak-tum chahe jo bhi kaho par jo sach hai o sach hai
Sandhya-acha ye batao aur kya kya acha lagta hai mujhme tumhe 😏
Sandhya ne shararati andaj se pucha
Deepak-sab kuch...😌
Sandhya -aise nahi detail me batao
Ab sandhya ko bhi deepak ki baate achi lagne lagi thi
Deepak-ye tumhare kale ghane reshmi baal ye nasheeli ankhen tumhare surkh gaal
Sandhya-aur
Sharam k wajah se sandhya k gaal aur bhi laal ho gaye the dhere dhere hi sahi lekin deepak ki pyar ka ehsaas sandhya ko bhi ho raha tha
Deepak agey kuch bataonga to tum bura man jao gi
Deepak ne ek smile k sath jawab diya
Sandhya-batao na bura nahi manungi
Sandhya ne baichani bhare andaj me kaha
Deepak-tumhare ye rasile honth dekhte hi inka ras pine ka man karta hai aur tumhare ye do..
Sandhya-bas bas samaj gayi agey kuch bolne ki jaroorat nahi
Sandhya ne deepak k baat ko bichme hi katate huye kaha
Deepak-kya samaj gayi batao jara
Sandhya-chup karo badmash kahin k
Sandhya ab sharam se pani pani ho rahi thi
Deepak-are tum bataogi nahi to mujhe kaise pata chalega tume sahi socha ya galat
Sandhya-tum bilkul pehele jaise hi ho jara bhi nahi badale
Deepak-ye to tumhare pyar ka jadu hai bas
Sandhya-deepak ek baat bolu?
Deepak-haan bolo na kya baat hai
Sandhya-college k dinno me bhi baki ladkiyon ki taraha main bhi tumhe chahati thi lekin tumhe kabhi baata nahi payi
Deepak-fir tumne mujhe kaha kyun nahi aur tumhne joshi sir se shadhi kyun ki
Sandhya-meri kuch majbooriya thi isiliye mujhe na chahte huye bhi unse shadi karni padi lekin aaj itne saalon baad tumhe fir se dekha to ehsaas hua ki main ne jindgi me kya khoya hai
Ye sab baate batate huye sandhya ka chehera mayus ho gaya aur uski ankho me paani ghir aya ye dekh deepak se raha nahi gaya aur o sandhya k kareeb gaya aur sandhya ka galo par k ansu usne apne hanthonse poch diye aur uske surk laal gaalon ko sehela raha tha dono ki nazare ek dusre se mili aur dono ek duje me khone lage
Deepak ne agey badate huye apne honth sandhya k honto par rakh diye aur sandhya ne bhi apni palake mund k deepak k chumbab ko swikruti dedi thi
Kuch der baad dono alag ho gaye lekin ye to bas shurwati thi dono ab dhire dhire agey badhane lage aur aant me dono pyar k anant sagar me dubte chale gaye dono k dil me salo se daba hua pyar aaj iss rup me bahar aa raha tha dono ne apne bhich ki sari deware aaj tod di thi
Aaj dono ek dusre ko tan se hi nahi balki man se bhi bhog rahe the pata nahi kitni der tak dono ek dusre se aise hi ek dusre ki agosh lipte rahe
Subha deepak ki neend phone k ringtone k wajah se khul gayi usne dekha toh abhi ka call tha
Deepak-ha bol abhi itni subha subh kyun phone kiya
Abhi-pehele mujhe ye bata tu hai kahan
Deepak-arre yaar kal barish bahut tez thi to hum ghar jane ki bajay raste me hi ek haveli par ruk gaye
Abhi-acha hua tu wahi ruk gaya kyun ki jis sadak se tu ja raha tha waha jameen dasneki wajah se kayi gadiya khai me gir gayi hain
Deepak-kya baat kar rahe ho aacha hua sandhya ne mujhe yahi rukne ko bola warna pata nahi kya hota
Abhi-kya sandhya tuze pata bhi hai tu kya bol raha hai
Deepak-haan ussine mujhe kaha ki hum yahi rukte hai kyu kya hua?
Abhi-kal raat jo gadhiya khayi me giri usme se ek car sandhya ki bhi thi
Deepak-kya? Matlb kal raat maine......
Deepak k hath se uska phone gir gaya Deepak ne kamre k charo taraf dekha kamara pura bhikhara pada tha kisi purane khandar ki taraha

The End
 

Destiny

Will Change With Time
Prime
3,965
10,671
144
वासना एक अतृप्त दानाव

इस कहानी में आप को पता चलेगा कि जब इंसान पर कामवासना हावी होता है तो उसके सोचने समझने कि शक्ति कितना कमजोर हो जाता हैं

अब कहानी को शुरू करते हैं

काली रात कि अंधेरे को चिरता हुआ दुर विराने में एक दिया टिमटिमाता हुआ देखकर पथिक (अनजान व्यक्ति) के मन में शंका पैदा होता है कि इस विरान जगह इतनी रात को ये जलता हुआ दिया क्यूं टिमटिमा रहा हैं कौन है वहाँ पर और किया कर रहा है चलो चलकर देखना चाहिए तभी उसके मन से ये आवाज आता है कि मैं रोज इस रास्ते से आना जाना करता हूँ कभी ऐसा कुछ भी दिखा तो नहीं फिर आज क्यूं वो दिया क्या कारण है ओर यहाँ तो चारों तरफ खेत ही खेत है फिर वो हल्की रोशनी पथिक थोड़ा डर जाता है फिर एक लम्बी गहरी सांस लेकर अपनी डर पर काबू पाकर आपनी कदम रोशनी की ओर बढ़ता है धीरे धीरे सावधानी से आगे बढता जाता हैं जैसे जैसे आगे बढता जाता हैं वैसे वैसे उसकी दिल कि धड़कन बढता जाता हैं कि क्या हो सकता हैं पथिक जैसे जैसे नजदीक आता जाता हैं वैसे वैसे उसका डर उस पे हावी होने लगता है अचानक उसे आपने हाथ में कोई शक्त चीज महसूस होता है तभी उसे ध्यान आता है कि उसके हाथ में तो एक टार्च लाईट हैं जिसकी रोशनी में वो दूर तक देख सकता हैं तभी वहाँ अपने हाथ को आगे करके टार्च लाईट को जलाकर आगे देखता है तो उसका डर मानो किसी जादूगर की जादू की तरहा छूं हो जाता हैं क्योंकि उसे आपने सामने एक झोपड़ी दिखता है जिसकी खिड़की से एक दिया चमकता हुआ दिखता है जिसे देखकर पथिक को सकून महसूस होता है उसे लगता हैं जैसे उसके बेजान शरीर में फिर से जान लौट आई हो वहाँ थोड़ा जल्दी जल्दी आपने कदम को आगे बढता है ओर कुछ ही दूर चलने के बाद उसे वहाँ घर ओर साफ़ दिखाई देता है जिसे देखकर पथिक मन में सोचता है यहाँ घर तो खेत में चौकीदारी करने के लिए बनाया गया है ओर यहाँ रूककर खेतों की देखभाल किया जाता है तभी पथिक खुद से बात करते हुए कहता चलो यार घर को चलते हैं कितना बड़ा डरपोक हूं जो इस घर में जलती हुई रोशनी को देखकर मैं डार गया यहाँ कहकर जब पथिक आपना कदम दूसरी ओर बढता हैं तभी रात की अंधेरे में सुनसान वादी के सन्नाटे को चिरता हुआ आआआआ आह ऊंस्सससस थोडाडडडड धिररररे की आवाज उसके कानों में पडते ही उसके जिस्म का रोआ रोआ खाडा हो जाता हैं ओर पथिक पत्थर कि मुर्ति बन जाता हैं तभी उसे चुड़ियो कि खन-खन पायल की छन-छन की आवज सुनाई देता है ये सुनकर पथिक खुद से ही कहता है अबे ओ शंहशाह ये हो किया रहा है चल कर देखा जाये (अब तक जिसको पथिक कह रहें थे उसका नाम शंहशाह है) तब शंहशाह खिडकी के पास जाता हैं ओर अन्दर देखता है अंदर एक औरत जिसका उम्र लगभग 28-29 साल होगा चारपाई पे लेटा है और रो रहा है औरत के पैरों के पास एक लड़का खड़ा है जिसका उम्र लगभग 30-20 साल का होगा वो औरत से कूछ कह रहा है
शहंशाह- मन में.... यार ये लोग हैं कौन ओर कर किया रहे हैं औरत रो क्यों रहा है क्या परेशानी हो सकता है चलकर पुछा जाये जैसे ही वहाँ अंदर जाने की सोचता है तभी उसे कूछ ऐसा सुनाई देता है जिसे सूनकर शहंशाह वही रूक जाता हैं ओर उनकी बातें सनने लगता हैं
औरत-- क्या करते हो जी बहुत दर्द हो रहा है आप मेरे पैर छोड़ो जी एक पति को आपने पत्नी के पैर नहीं छुना चाहिए आपने पैर को झटका देकर छुड़ाने की कोशिश करता है तभी उसके मुंह से एक अआहहहहहह ऊइइइइइइइइ माँ कि एक हल्का सा चीख़ निकलता है
लडका-- शिवांगी तुम चुप करो एक तो तुम्हें मेरे वजह से पहलें से तकलीफ हो रही हैं ओर ऐसे झटका देकर आपने दर्द को ओर मता बडाओ वैसे भी हम इस गाँव में किसी को जानते नहीं पता नहीं कहा डाक्टर मिलेगा मुझसे तुम्हारा दर्द ओर नहीं देखा जाता
शिवांगी-- आपको मेरे दर्द की चिंता है वो तो ठीक है लेकिन आपको भी तो चोट लगी है ओर मुझसे भी ज्यादा आपको लगी है दिखाओ तो जारा
शहंशाह--- उनकी बातें सुनकर खुद से ही कहता है ये दोनों तो बहुत परेशान है ओर दोनों को बहुत ज्यादा चोट लगा है मुझे इनकी मदद करनी चाहिए ये सोचकर दरबाजे तक जाता है ओर कहता है कौन है अदंर
लडका और शिवांगी---- दोनों डर जातें हैं ओर एक दूसरे कि तरफ़ देखने लगतें हैं ओर फूसफूसाकर बात करने लगते हैं कि अब इतनी रात को ये कौन हो सकता हैं और दोनों आपने इष्ट देव को याद करने लगते हैं और तभी
शहंशाह -- अरे आप लोग डरिए नहीं मैंने आप लोगो की बातें सुना ली है कि आप दोनों को चोट लगी है ओर आपको भद्दा कि जरूरत है थोडी़ ही दूर मेरा घर है आप दोनों मेरे साथ चलिए
लड़का और शिवंगी-- हम ठीक है और आप का बहुत-बहुत धन्यवाद
शहंशाह-- क्या ठीक है भाभी जी देखो तो आप दोनों को कितना चोट लगा है वैसे आप लोगो को चोट कैसे लगी
लड़का और शिवंगी--- एक दूसरे को देखकर मन ही मन सोचते हैं (अब इनको क्या बताऐ की चलतीं गाड़ी में रोमांच करने का नतीजा है ये वो भी मोटरसाइकिल में) ओर हंसने लगते हैं
शहंशाह-- चलिए ये सब बाद में बताना पहले यहाँ से चले अच्छा भाई साहब आप का नाम क्या है?
लड़का--मेरा नाम शिवशंकर हैं अपका नाम क्या है और थोड़ा मद्द किजिए शिवंगी को उठाने में इनकी पैर में चोट लगी है
शहंशाह-- जी मेरा नाम शहंशाह हैं ओर लोग मुझे शाह कहते हैं शिवशंकर आप छोडिये मैं सफलता हूँ भाभी जी को
शिवशंकर--- ठीक है वैसे आप का घर कितना दूर है
शहंशाह-- येही पास में ही है कहकर शिवंगी को उठाने में सपोर्ट करता है ओर अपने घर कि तरफ चल देता है
शिवांगी को चलने में तोड़ा परेशानी होता है तो वहाँ शहंशाह के कन्धों को मजबूती से पकड़ लेता है और शहंशाह शिवांगी को सम्हालने के लिए अपना हाथ जैसे ही शिवांगी के कमर पर रखता है वैसे ही
दोनों के मुह से आआआआ हाहाहाहाहा की सिसंकारी निकल जाता है जिसे सुनकर
शिवशंकर-- क्या हुआ ठीक तो हो ना शिवांगी
शिवांगी-- कुछ नहीं बोल पाता है और अचम्भित होकर अभी हुयी घटना के बारे में सोचने लगता हैं
हुआ ये था कि जब शिवांगी ने शहंशाह के कंधे को पकड़ने के लिए अपना हाथ पिछे लेकर ऊपर उठाने कि वजह से शिवांगी की बड़ी-बडी़ चुचिओ में से एक चुची शहंशाह के छिने के साइड (आर्मपिट) से दब जाता हैं शिवांगी के चुची के मुलायम और गरम एहसास को महसूस कर जब अपना हाथ शिवांगी के पिछे लेता है इसी हडबडी में शहंशाह के हाथ शिवांगी के मस्त उठे हुए चौड़े गाण्ड पर पहुँच जाता हैं और शिवांगी के गाण्ड को जोर से दबा देता है जिसे दोनों के मुहं से आआआआ हाहाहाहाहा कि सिसंकारी निकल जाता हैं
शिवशंकर-- क्या हुआ शिवांगी कुछ तो बोलो चुप क्यूँ हो
शिवांगी को चुप देखकर शहंशाह बोलता है
शहंशाह-- आरे यार इनके चोट वाले पैर से मेरे पैर का उंगूठा दब गया ये बोल कर चुप हो जाता हैं ओर शिवांगी के गाण्ड को थोडा ओर कस कर दबा देता है
शिवांगी--- आपने होठों को दबाकर अपने सिसंकारी को निकलने से रोक लेता है
शिवशंकर---अच्छा-अच्छा ठीक है कहकर मुस्कुरा देते हैं जैसे अभी-अभी क्या हुआ है
कुछ समय चलने के बाद तीनों एक घर के दरबाजे पर खडा़ होता हैं और शहंशाह आपने बीबी को आवाज देता है
शहंशाह-- रानी ओ रानी कहा हो सो गयीं क्या जल्दी दरवाजा खोलों
रानी-- आपने मोबाइल में कुछ कर रहीं थीं अपने पति के आवाज को सुनकर एक कमुक मुस्कान के साथ बेड से उठकर एक आहाहाहाहाहा की हल्की सी सिसंकारी लेकर मन में सोचता है अब मिलेगी मेरी गर्म चुत को शांति जो दिन भर XFORUM. LIVE पर चुदाई की कहानी पड़-पड़कर गर्म हो गई थी और अब भी गर्म है दौड़कर दरवाजा खोलने जाता हैं तभी फिर से आवाज आती हैं
शहंशाह--- रानी अरे ओ रानी जल्दी दरवाजा खोलों न
रानी-- आज तो लगता हैं ये भी कुछ ज्यादा ही उतावला हो रहा है लगता हैं आज मेरी प्यारी सी मुनिया कि सामत आने वाली है ये भी तो आज मुंह खोलें एक मस्त मूसल के इंतेजार में आपना किमती चासनी टपका रहा है जो मेरे पति को बहुत बहुत पसंद है ये सोचकर तुरंत ही दरवाजा खोल देता है अपने सामने खाड़े अपनी पति की बाहों में दुसरी औरत को देखकर साथ में खाडे मर्द को देखकर तोड़ मायूस होकर पूछता है कि ये कौन है और इनको क्या है हुआ है
शहंशाह-- ये सब बाद में पुछ लेना पहले हमको अदंर आने दो
रानी----निचे आकर शिवांगी को शहंशाह के साथ साहरा दे कर अदंर लेकर आता है
आपने सामने इतनी मद-मस्त कामूक बदन जिसके हार अंग से काम रस टपक रहा है बड़ी-बडी़ गोल-गोल उठी हुई चुची मदमस्त बहार को निकली हुई चौड़ी गाण्ड जो लचकति कमर के साथ दायें-बायें हिलकर देखने वालों के लण्ड खाडा और तन-बदन काम भावना की आग को भड़का दे ऐसी योवन से भरपूर सुंदरी को देख कर
शिवशंकर---- के मुहं से आहाहाहाहाहा के संग क्या माल है यार निकलता है
शहंशाह शिवांगी को बिस्तर पर लेटाकर रानी को बोलता है रानी इनको सम्भालो में डाक्टर को लेकर आता हूँ ये कहकर शहंशाह चला जाता हैं रानी जब तक कुछ पुछता शहंशाह से तब तक वहाँ चला जाता हैं रानी शिवांगी से कुछ पूछने वाला होता है तभी उसकी नजर शिवशंकर कि ओर जाता हैं तो शिवशंकर को अपनी ओर देखता हुआ देखकर आपने मन में सोचता है कैसा ठरकी आदमी है यहाँ इनकी बीबी घायल पडा है और ये मुझे ऐसे देख रहे हैं मानों मेरे भरे हुए गदराऐ जिस्म को अभी दानवों कि तरहा नोच डालें वैसे भि इनसे आपने जिस्म को नुचवाने में बडा़ मजा आयेगा ये गबरू और जवान मर्द है मेरे जिस्म के कोने-कोने में छिपे वासना को मिटा देगा ये सोचकर एक कमुक मुसकान रानी के चहरे पर आ जाता हैं थोडी ही देर में वहाँ मुस्कान गायब हो जाता हैं क्योंकि उसे शिवशंकर के हाथों से खून बहता हुआ दिखता है जिसे देखकर रानी कहता है आपका तो खुन वह रहा है आपको कितना चोट लगा है ये सुनकर शिवशंकर और शिवांगी दोनों होश में आते हैं
ऐसा किया सोच रहे थे दोनों चलो देखतें हैं
शिवशंकर तो रानी के जिस्म में खोया हुआ अपनी ख्वाबों कि दुनिया में एक विस्तार बैठा है रानी से कह रह हैं
शिवशंकर-- हाय मेरे सपनों की रानी तुम्हारा जिस्म लाजबाब हैं आज इसे रगड़ कर रख दुंगा कि तुम सुबह बिस्तर से उठ नहीं पाओगे
रानी---- हाय मेरे कामदेव आप आज मुझे इतना प्यार करो जितना मुझे कभी किसी ने न किया हो मेरे जिस्म को रगड़कर इतना खुश कर दो कि मुझे किसी ओर कि जरूरत न पडे
इसके बाद दोनों काम सागर में ऐसे खो जाते हैं मानों इनपर काम देव और रति का दानव रूप सवार हो गया हो दोनों के होठो एक दूसरे को खां जाना चहता हो कभी शिवशंकर रानी के निचले होठ को चुस और काट रहा है उदर रानी भी उसी जोश और जुनुन से उसके होठ को चुस और काट रहे हैं दोनों के हाथ एक दुसरे के को ऐसे कसकर पकड़े है मानो किसी ने आगर छोडा तो दूसरा भाग जायेगा एक दूसरे के होठों से बह रहें काम रस को चुसते हुए जब उनका शास उनका साथ छोडने लगता हैं तभी इनको कुछ होश आता है और एक दूसरे से अलग होकर शास लेने लागतें हैं और एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगतें हैं अपने सासंद को सही करते हुए एक दूसरे के जिस्म को सहलाने लगतें हैं
रानी--- शिवशंकर के शार्ट के दोनों पल्लो को पकडकर खींच देता है और शिवशंकर के शार्ट के बटन चट-चट-चट-चट-चट कर सारे बटन टूट जाते हैं शिवशंकर के चौडी छाती को देखकर रानी की वासना फिर फूट पडता है वहाँ शिवशंकर के से ऐसे लिपट जाता हैं मानों चंदन के वृक्ष से नाग रानी शिवशंकर के होटों से चुमना और चुसना शुरू करता है और चिन्न गला से होकर शिवशंकर के छाती पर आकर रूकता है रानी के हाथ धीरे धीरे आगे बढता हैं ओर जाकर रूकता है जहाँ शिवशंकर का लण्ड आपने पूरे आकर मे आ चुके हैं और कपडों के बंधन से आजद होना चाहता है
शिवशंकर--- रानी के हाथ को अपने काम दण्ड पर पाकर आहाहाहाहाहा रारारानीईईईईई उसे आजाद करो अब ओर बर्दाश्त नहीं होता कुछ करो मेरी रानीईईईईईई
रानी--- शिवशंकर के मुहं में आगंली रखकर कहता है बर्दाश्त करो जान तभी तो दोनों को आज की इस चुदाई का मजा आयेगा
ये बोलकर रानी आपने हाथ को काम में लगता हैं ओर शिवशंकर के पेंट को उतारने लगता हैं
शिवशंकर-- अपने हाथ को आगें बढाकर रानी के मस्त जवानी से भरपूर चुचिओ को बेदर्दी से दबा देता है जिससे
रानी-- दर्द से करहा उठता है ऊईईईईईईईई माँमममममममम धिरेरेरेरेरेरे मेरे राजजजजजजजा तब तक रानी का हाथ शिवशंकर के लण्ड तक पहुँच जाता हैं लण्ड के गर्माहट को महसूस कर रानी एक बार को शिहर जाता है ओर फिर से लण्ड को पकड़ लेता है ओर सहलाने लगता है
शिवशंकर---- आहाहाहाहाहा रानीनीनीनीनी ओरररररर बर्दाश्ततततततत नहीं होता जल्दी आपने कपड़े उतारो ओर मुझे आपने अंदर समा लो
रानी से अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता हैं रानी फटाफट आपने कपड़े उतार कर शिवशंकर के लण्ड पर टुट पडता है रानी लण्ड की टोपे पर जिव फिरते हुए पूरे लण्ड को आपने मुंह में लेकर चाटना शुरू कर देता है कुछ समय तक रानी लण्ड को ऐसे चटता है जैसे ऐसा कोई चिज उसे पहले कभी न मिली हो लण्ड को चाटते हुए रानी के लार से पूरा लण्ड तर हो जाता हैं अब रानी से ओर बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता हैं रानी अपने पैर को शिवशंकर के दोनों तरफ़ फैला कर निचे झूकता जाता हैं और जब लण्ड ओर चुत एक सिध में आ जाता हैं रानी आपने हाथ को बढाकर लण्ड को आपने चुत के मुहाने से लगाकर आपने कमर को एक तेज झटका देता है ओर लण्ड टोपा सहित अधा अंदर घुस जाते हैं
रानी--- ऊईईईईईईईई माँमममममममम कितना गर्म ओर मोटा लण्ड हैं तुम्हारा इसने तो मेरे चुत को फाड़ कर रख दिया मेरेरेरेरेरे राज्ज्ज्ज्ज्जा
शिवशंकर-----आहाहाहाहाहा रारारारानीईईईईईईई कितनी गरम और टाईट चुत है ऐसा लग रहा है मेरा लण्ड किसी बोतल में अटक गया हो
रानी--- ये सुनकर आपने कमर को एक झटका ओर देता है ये झटका इतना तेज होता है कि शिवशंकर का पूरा 9 इंच का लण्ड चुत में घुस जाता है ओर रानी चीख़ पडता है ऊईईईईईईईईईईईईईईई मांआआआआआआआआआ फाफाफाफाटटटट गयीईईईईईईईई मेरीईईईईईईईईई
चुउउउउउउउत बचाओ मुझे
शिवशंकर------ रानी कि चीख़ सुनकर उसके कमर को पकड़ लेता है ओर तेज-तेज झटके मारने लगता है
रानी------रूक जा मादरचोद मेरी चुत फट जायगी में मर जाऊंगी रूक जा भडवे रूक जा मादरचोद
शिवशंकर----रानी कि बातों को सुनकर और भड़क जाता है ओर अपने झटके को और तेज कर देता है ओर बोलत है रण्डी तेरे जैसे को ऐसे ही चोदना चाहिए मुझे भडवा बोलता है देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ ये कहकर शिवशंकर रानी को पकड़कर एक पलटी मरता है ओर रानी को आपने निचे लेटाकर रानी के टांगों को अपने कंधे पर रखकर रानी के चुची को मसलते हुए रानी को तेज-तेज झटको से चोदने लगता है मानो उसपे कोई दनाव हावी हो गया हो
रानी----कुछ देर तक गला फाड़कर चिकता है ओर सोचा है आज तो पक्का चुदते हुए मर जाउगी जब रानी की चुत लण्ड के बराबर चौड़ा हो जाता है तब रानी को मजा आने लगता हैं ओर रानी सिसकारीया भरते हुए कहता है ओर तेज चोद मादरचोद लण्ड में दम नहीं है क्या भडवे अब दिखा अपना दम
शिवशंकर----ले फिर झेल रण्डी मेरे लण्ड को आज तेरी चुत का भोसडा न बना दिया तो मेरा नाम शिवशंकर नहीं
ऐसे ही एक दूसरे को गाली देकर कभी शिवशंकर ऊपर तो कभी रानी ऊपर मानों कोई हारने को तैयार ही न हो पर एक समय पर
शिवशंकर----आहाहाहाहाहा राण्डीईईईईईईईईई मैं झडडडडडडडडडडने वाला हूँ बता कहा डालू
रानी------ रूको मेरे राज मेरे भडवे मैं भी आने वाली हूँ ओर मेरे अंदर ही झड जा मैं तेरे लण्ड रस से अपने जिस्म को ठण्डा करना चाहता हूँ
शिवशंकर-----ले फिर राण्डी कर ठण्डा आपने जिस्म को ये कहकर शिवशंकर झडने लगता हैं
रानी------शिवशंकर के लण्ड के गरम पानी को अपने अंदर महसूस कर वो भी झडने लगता हैं
झडने के बाद दोनों को ऐसे महसूस होता है मानों उनके जिस्म से किसी ने प्राण ही निकल ली हो
शिवशंकर-----कुछ आवाज सुनकर होश में आता है ओर रानी कि तरफ देखकर मुस्कुराने लगता है अचानक ही उसका चेहरा गम्भीर हो जाता हैं कुछ सोचकर मानों उसकों किसी बात का पछतावा हो रहा है ऐसा किया सोच रहा है चलो देखतें हैं
शिवशंकर खुद को ही गाली दे रहा था कि मैं कितना बड़ा कमिना हु जिन्होंने मेरे और मेरी बीबी की इस मुश्किल वक़्त मे मद्द कि मैं उन्हीं से चुदाई के बारे में सोच रहा हूँ छी धिक्कार है तुझपे शिवशंकर
शिवशंकर को अपने गलती पर पछतावा होता है ओर वो सोचता है कि मुझे माफी मांगनी चाहिए ये सोचकर ही शिवशंकर कुछ कहने वाला होता है तभी
रानी-- किया हुआ भाई आप किस सोच में ढुवे हो आप से कुछ पूछा था ओर आप पता नहीं क्या सोचनें लगा गए
शिवशंकर--- कुछ नहीं भाभी जी माप किजिएगा वो मैं मैं मैं
रानी-- क्या मैं मैं मैं मैं लगा रखा है आप यह आरम से बैठिये आपको भी चोट लगी है वो आते हि होंगे डाॅक्टर जी को लेकर
शिवांगी--- कुछ हद तक आपने पति के सोच को समझ जाता हैं क्योंकि शिवशंकर जैसा रानी के बारे में सोच रहा था वैसा ही शिवांगी शहंशाह के साथ सोच रहा था तभी उसके चहरे पर एक मुस्कान आया था शिवांगी को भी आपने सोच पर ग्लानि होता हैं और उसका चेहरा भी मुरझा जाता है शिवांगी भी अपनी गलती की मापी मंगना चाहता है लेकिन कैसे मंगे येही सोचकर शिवांगी भी रानी से माफी मांगते हुए कहता है कि दीदी माफ कर दिजिएगा हमें हमनें अपको वे वजह परेशान किया (अब सच तो बोल नहीं पा रहें थे तो एक बहाना बनाकर मापी मंग लिया)
रानी----ठीक है अपने कोई गलती नहीं कि है आप परेशान थें ओर आप का मदद करना हमारा फर्ज है
अच्छा छोडिये ये सब ओर ये बताये आप के साथ ये सब हुआ कैसे
शिवशंकर- शिवांगी--- रानी कि बात को सुनकर शर्मा जाता हैं अब उनकों क्या बताऐ कि चलतीं बाईक में इन दोनों का रोमांस इतना आगें बड गया ओर उसका नतीजा अब ये दोनों भुगत रहे हैं
शिवांगी----- थोड़ा झेपकर वो ये गाड़ी कुछ तेज चला रहे थे और सामने एक कुत्ता आ गया उसे बचाने के वजह से गाड़ी का बैलेंस बिगड़ा ओर गिरने से हमें चोट लग गयी
शिवशंकर----- अपने पत्नी कि बातों को सुनकर हा में हा मिलाता हैं
इतने में शहंशाह डाॅक्टर को लेकर आ जाता है डाॅक्टर इन दोनों का इलाज करके चला जाता है
रानी----अब आप दोनों अराम किजिए रात बहुत हो गई है आगर रात में कोई परेशानी हो तो हमें आवाज दे देना ठीक है ना
शिवशंकर------ठीक है भाभी जी आप दोनों भी अब जाकर आराम किजिए

समाप्त


मैं आपनी पहली कहानी आप सब के सामने पेश की है इसे पडकर अपनी राय जरूर दे और कहीं पर गलती हो तो माप करना



धन्यवाद
 
9,994
41,826
218
क़ातिल कौन ?
प्रस्तुतकर्ता - SANJU ( Versha Ritu )

नेहा एक माॅडल थी । पहली बार उसे मैंने अपने दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत के साथ कुछ दिनों पहले एक पार्टी में देखा था । एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल के रिपोर्टर के कारण उसने तत्काल मुझे पहचाना था ।

उसका अचानक यूं मेरे घर आ धमकना मुझे चौंका देने वाला घटना लगा था । वो बेहद भयभीत और आतंकित लग रही थी ।

" क्या बात है ? "- मैंने संजीदगी से पूछा ।
" मुझे आपकी मदद की जरूरत है अपस्यू साहब" - वह कम्पित स्वर में बोली ।
"क्या बात है ?"
"वो लोग मुझे मार देना चाहते हैं ।"
"कौन लोग ?"
"मैं आपको सब कुछ बताउंगी । ये एक लम्बी कहानी है । लेकिन उसमें आपके दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत साहब की दखल जरूरी है । आप प्लीज , आज रात आठ बजे उन्हें साथ लेकर मेरे फ्लैट पर तशरीफ़ लाइए । यह मेरा पता है । "- उसने एक कार्ड मेरे सामने मेज पर रखा ।
" आपको लगता है कि दुशयंत आपकी सहायता कर सकते हैं ।"
" बहुत ज्यादा । वह मेरी जान बचा सकते हैं ।"
" तो आपको दुशयंत के पास जाना चाहिए था न ।"
"मैं उनके पास सीधे नहीं जा सकती थी । वह मुझे गलत समझ सकता था लेकिन आपकी वजह से वो मेरी बात हमदर्दी से सुनेगा और कोई मदद करने की कोशिश करेगा ।"
" आप की पुलिस में कोई जान पहचान नहीं ?"
वह एक क्षण हिचकिचायी फिर बोली -" है । एक सब इंस्पेक्टर मेरा अच्छा दोस्त है ।ए के श्रीवास्तव । शायद आप जानते हों ।"
" उसके पास क्यों नहीं गई ?"
" नहीं जा सकती । मेरी मजबूरी है ।"
"क्या मजबूरी ?"
"शाम को बताउंगी । शाम को विस्तार से बातें होंगी ।"

फिर वो चली गई ।

मैं थाने गया । मालूम हुआ कि दुशयंत अभी गश्ती गाड़ी की ड्यूटी में था । श्रीवास्तव थाने में अपने केबिन में मौजूद था । मुझसे बड़ी मुहब्बत से मिला शायद इसलिए कि मैं उसके अफसर का दोस्त था ।

" कैसे आए ?"- उसने पूछा ।
" एक बात पुछने आया हूं । बशर्ते कि गलत मत समझो ।"
" क्या बात है ?"- वह सशंक स्वर में बोला ।
" तुम नेहा को जानते हो ?"
" नेहा ! वो माॅडल !"
" हां ।"
" जानता हूं । लेकिन दोस्त , उसके चक्कर में मत पड़ना । वह मेरी गर्लफ्रेंड है ।"
" अच्छा ।"
" तुम विक्रांत की मौत पर कोई काम तो नहीं कर रहे हो !"
" ऐसा क्यों लगा तुम्हें ?"
" क्योंकि उसकी मौत में नेहा की टांग फंसी हुई है । लेकिन कहे देता हूं , उसके बारे में कुछ अनाप-शनाप मत दिखा देना ।"

विक्रांत एक अधेड़ावस्था विधूर था । बड़ा बिजनेसमैन था । कुछ दिन पहले किसी ने उसके फ्लैट पर उसे चाकू घोंपकर उसकी हत्या कर दी थी ।

" विक्रांत की हत्या में नेहा की टांग कैसे फंसी हुई है ।"
" तुमने अंकित चौधरी का नाम सुना है ?"
" खूब सुना है । करोड़पति आदमी है । और सुना है उसकी मौजूदा बीवी उससे उम्र में बीस साल छोटी है । वैसे किस्सा क्या है ?"
" सुनने में आया है कि विक्रांत और अंकित गुप्ता की बीवी आशा में आशिकी चल रही थी । अंकित गुप्ता को खबर लग गई । आशा का कहना है कि ईष्या से वशीभूत होकर उसके पति ने विक्रांत का कत्ल कर दिया है । आशा ने उससे तलाक की मांग की थी ताकि वह विक्रांत से शादी कर सके । इसपर अंकित गुप्ता आगबबूला हो गया था । उसने विक्रांत से फोन पर बात की थी और दो हफ्ते पहले दोपहर दो बजे विक्रांत के फ्लैट पर उससे मुलाकात निश्चित की थी । निर्धारित समय पर अंकित विक्रांत के फ्लैट पर पहुंचा । उसने घंटी बजाई लेकिन भीतर से कोई जवाब नहीं मिला । फिर उसे ताले में अटकी चाबी दिखाई दी । उसने चाबी को छुआ तक नहीं , जो कि उसने अक्लमंदी की । लेकिन दरवाजे को धकेलकर खोलने की कोशिश की । दरवाजा नहीं खुला । फिर उसने इमारत से बाहर निकल कर मुझे फोन किया ।"
" तुम्हें क्यों ?"
" क्योंकि मेरा उससे गहरा याराना है । उसने सोचा कि मुझे बुलाने में यह फायदा था कि अगर कोई गड़बड़ हुई तो उसकी कच्ची नहीं होगी । मैं वहां पहुंचा । मैंने चाबी को इस ढंग से घुमाकर ताला खोला कि अगर चाबी पर कोई उंगलियों के निशान हों तो वो नष्ट न हो । मैं भीतर दाखिल हुआ । भीतर से विक्रांत की लाश बरामद हुई । किसी ने उसे चाकू से मार कर उसकी हत्या कर दी थी । फ्लैट की हालत बता रही थी कि हत्या से पहले वहां विक्रांत और हत्यारे में भयंकर हाथापाई हुई थी जिसकी वजह से कमरा अस्त व्यस्त हो गया था । मैंने पुलिस को काॅल किया लेकिन पुलिस के वहां पहुंचने से पहले वहां नेहा पंहूच गई ।"
" वो वहां क्यों आईं थीं ?"
" उसका कहना था कि विक्रांत ने उसे बुलाया था । अपने प्रोडक्ट के माॅडलिंग के लिए । वह कहती है कि उसने उससे पहले कभी विक्रांत को देखा तक नहीं । वह पहली बार वहां आई थी । लेकिन फिर दरवाजे में लगी चाबी पर से उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए थे ।"
मुझे आश्चर्य हुआ ।

" हमारे फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की रिपोर्ट के अनुसार उंगलियों के निशान नेहा के है । इससे साफ जाहिर होता है कि या तो वह फ्लैट में दाखिल हुई थी या उसने दाखिल होने की कोशिश की थी ।"
" चाकू पर से कोई उंगलियों के निशान ?"
" न ! हम इसी उलझन में हैं । अंकित गुप्ता के पास हत्या का उद्देश्य तो है लेकिन उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है । नेहा के खिलाफ सिर्फ ये ही सबूत है कि चाबी पर उसके उंगलियों के निशान पाये गए हैं लेकिन सिर्फ ये बात उसे हत्यारी सिद्ध करने के लिए काफी नहीं है । लगता है यह केस भी अनसुलझे केसों में ही शुमार होने वाला है ।"
" तुम्हारा क्या ख्याल है ?"
" कोई मजबूत ख्याल नहीं है । शुरू मे नेहा पर शक पक्का होने लगा था । शायद विक्रांत से उसका कोई अफेयर चल रहा हो । शायद उसके पास उसके फ्लैट की चाबी हो जो विक्रांत ने उसे दी हो लेकिन साबित कुछ नहीं किया जा सकता है । दुसरी तरफ अंकित गुप्ता की बीवी आशा कबूल करती है कि उसके पास विक्रांत के फ्लैट की चाबी थी । उसका दावा है कि वह चाबी अंकित गुप्ता ने चुरा ली थी । शायद वह अपने पति को अपने आशिक के कत्ल में फंसाकर उससे पीछा छुड़ाने के बारे में सोच रही हो । मतलब बातें तो बहुत है पर सबूत कुछ नहीं ।"

उसके बाद उससे हल्की फुल्की बातें हुई । मैंने उससे अंकित गुप्ता का पता पूछा । उसने बड़े संदिग्ध भाव से मुझे देखते हुए पता बताया ।

मैं अंकित गुप्ता के कोठी पर पंहुचा ।
अंकित गुप्ता घर पर नहीं था लेकिन उसकी जवान बीवी वहां मौजूद थी ।
आशा एक निहायत खुबसूरत लड़की थी । मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि अपने टीबी के लिए उसका इंटरव्यू लेने आया हूं ।
वो साफ साफ अपने पति पर इल्ज़ाम लगा रही थी कि उसके पति ने ही विक्रांत की हत्या की है । वो कलप रही थी कि अभी तक पुलिस ने उसके पति को गिरफ्तार क्यों नहीं किया । उसने मुझे अंकित गुप्ता से छुटकारा दिलाने की मदद मांगी और बदले में मुंहमांगी कीमत देने का वादा किया ।

मैं वहां से अंकित गुप्ता के आफिस गया । वह पचपन साल से उपर एक तंदुरुस्त लेकिन हड़बड़ाया सा आदमी था । उसने इस विषय में मुझसे कोई बात करने से साफ इंकार कर दिया । जरूर दौलत का घमंड था ।

शाम तक दुशयंत से मेरी मुलाकात न हो सकी । निर्धारित समय पर मैं अकेला ही नेहा के फ्लैट पर पहुंचा ।
लेकिन बहुत देर हो चुकी थी ।
वहां पुलिस ही पुलिस दिखाई दे रही थी । मेरा दोस्त इन्स्पेक्टर दुशयंत भी वहां मौजूद था । वहां सब इंस्पेक्टर श्रीवास्तव भी मौजूद था । पता चला कि नेहा अपने फ्लैट में मरी पाई गई थी ।उसकी छाती में एक पतला सा चाकू धंसा हुआ था और उसका अपना हाथ उसकी मूठ के गिर्द लिपटा हुआ था । चाकू की मूठ पर से केवल उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए थे ।
दुशयंत ने एक और बातें बताई ।
उसकी राइटिंग टेबल पर एक अधूरा पत्र पड़ा मिला था ।
पत्र में लिखा था :
अंकित ,
मैं इस बखेड़े से बहुत ही परेशान हूं । मुझे बहुत डर लग रहा है । मैं कुछ अरसे के लिए शहर से दूर जा रही हूं । मैंने आज एक साहब से बात की है जो कि मुझे उम्मीद है मेरी जान को इस सांसत से निकालने में मेरी पुरी मदद करेंगे और...."

पुलिस इसे आत्महत्या करार कर रही थी । चिठ्ठी की बावत उनकी राय थी कि इसका उसकी मौत से कोई रिश्ता नहीं है । एक कारण ये भी था कि चिठ्ठी पर कोई तारीख वगैरह नहीं थी ।

घटनास्थल पर पुलिस की सारी कारवाई समाप्त हो गई थी । वहां सिर्फ मैं , श्रीवास्तव और दुशयंत रह गये ।
उसी दौर में मैंने दुशयंत को नेहा के अपने घर पर आगमन की बात सुनाई । नेहा के अंजाम का फिर जिक्र आरंभ हुआ ।

" तुम्हारा क्या ख्याल है ?"- मुझसे पूछा गया ।
" मेरे ख्याल से यह हत्या का केस है ।"
" हत्या के केस में ख्याल नहीं चलता अपस्यू राजवंशी साहब "- श्रीवास्तव बोला -" सबूत की जरूरत होती है ।"
" श्रीवास्तव ठीक कहता है "- दुशयंत बोला -" हालात आत्महत्या की ओर संकेत कर रहे हैं । लड़की का विक्रांत की हत्या में हाथ था । आज उसकी अंतरात्मा ने उसे कचौटा और उसने आत्महत्या कर ली । हथियार लड़की के हाथ में था । उस पर से केवल उसकी उंगलियों के निशान बरामद हुए हैं ।"
" लेकिन "- मैंने कहना चाहा ।
" थ्योरियों से काम नहीं चलता , तथ्य तलाश करने पड़ते हैं "- श्रीवास्तव बोला ।
" तो करो !"
" लेकिन कोई संकेत तो हो कि हत्यारा कौन है ?"
" संकेत मैं दिए देता हूं ।"
" तुम ! तुम जानते हो कि हत्यारा कौन है ?"
" हां ।"
" कौन है ?"
" तुम ।"
" एक क्षण को श्रीवास्तव के मुंह से बोल न फूटा ।वह मुंह बाए मेरी ओर देखने लगा । फिर उसके चेहरे ने कई रंग बदले । अंत में वह क्रोध से आग बबूला होता दिखाई देने लगा ।
" क्या कह रहे हो !"- दुशयंत बोला -" श्रीवास्तव ! हत्यारा !"
" बाई गाॅड !"- वह कहर भरे स्वर में बोला - क्या बेहूदा मजाक है । मैं तेरी..."
" पहले मेरी बात सुनो फिर फैसला करना ।"
" कहो , क्या कहना चाहते हो ?"- श्रीवास्तव बोला ।
" दुशयंत "- मैं बोला -" तुमने कभी देखा सुना है कि चाकू से आत्महत्या की गई हो ! चाकू तो हत्यारे का हथियार है ।"
" लेकिन जरूरी नहीं कि जो काम कभी नहीं हुआ , वह अब भी न हो "- श्रीवास्तव बोला ।
" मैं शुरूआत से बताता हूं । पहला कत्ल विक्रांत का । केवल एक ही आदमी ऐसा है जिसके पास उसके कत्ल का कोई ठोस उद्देश्य था और वह आदमी है अंकित गुप्ता । वह पूर्व निर्धारित समय पर विक्रांत से मिलने गया । दोनो में तकरार हुई । विक्रांत ने चाकू निकाल लिया । दोनो में हाथापाई हुई , छीना झपटी हुई । अंकित गुप्ता ने उसी का चाकू उससे छीना और उसकी छाती में घोंप दिया । विक्रांत मर गया । अब क्या था ? आप एक करोड़पति आदमी हो और आपने अभी एक कत्ल कर दिया । आप क्या करेंगे ? आप उस बखेड़े से बाहर निकलने के लिए कोई तरकीब सोचेंगे । उस घड़ी में आपको अपने दोस्त ए के श्रीवास्तव का ख्याल आयेगा । आप उसकी फितरत से वाकिफ है कि वह पैसे से खरीदा जा सकता है । आप उसे बुलाते हैं , उसे एक मोटी तगड़ी रकम की आफर देते हैं । वह आफर कबूल करता है और आपको झंझट से निकालने का वादा करता है और वह निकालता भी है ।"
" कैसे ?"
" वह केस में उलझने पैदा करता है । वह इस काम के लिए अपनी गर्लफ्रेंड नेहा का इस्तेमाल करता है । श्रीवास्तव एक पुलिस अधिकारी हैं और कानून को खुब समझता है । वो इस केस में बैनीफिट आफ डाउट ( संदेह लाभ ) वाली परिस्थितियां खड़ा करता है ।"
" कैसे ?"
" इसने घटनास्थल पर अपनी गर्लफ्रेंड नेहा को बुलाया । उसके वहां पंहुचने से पहले उसने अंकित गुप्ता को कहा कि वह अपने घर जाकर अपनी बीवी के पास मौजूद विक्रांत के फ्लैट की चाबी ले आए । फिर वह चाकू से उंगलियों के निशान पोंछ देता है । फिर नेहा वहां पंहुचती है । वे उसकी उंगलियों के निशान चाबी पर बनवाते हैं और चाबी दरवाजे पर छोड़ देते हैं । इसमें सहमति होती है कि पुलिस के सामने दो संदिग्ध व्यक्ति हैं - नेहा और अंकित गुप्ता । लेकिन ठोस सबूत दोनों में से किसी के खिलाफ नहीं ।"
" लेकिन नेहा ऐसा काम करने के लिए कैसे मान गई ?"
" पहले तो इसलिए कि वह श्रीवास्तव की प्रेमिका है । दुसरा प्रलोभन पैसे का हो सकता है ।"
" ये एक तुक्का लगता है ।"
" तुक्का नहीं है । विक्रांत के फ्लैट में ऐसे संकेत मिले थे कि वहां तगड़ी छीना झपटी हुई हो । क्या कोई औरत विक्रांत जैसे तंदरुस्त आदमी से इतना फाइट कर सकती थी ? लेकिन अंकित गुप्ता कर सकता था । वह अधेड़ जरूर है लेकिन शरीर से काफी तंदरुस्त है । और सबसे बड़ा सबूत वह चाबी है जो विक्रांत के मुख्यद्वार के ताले में लगी पाई गई थी ।"
" कैसे ?"
" जो हत्यारा विक्रांत की छाती पर घुसे चाकू पर से उंगलियों के निशान पोंछे जाने की होशियारी दिखा सकता है । वह न तो चाबी पर अपनी उंगलियों के निशान छोड़ सकता है और न ही चाबी को ताले में । चाबी का ताले में पाया जाना ही इस बात का सबूत है कि चाबी वहां ' प्लांट ' की गई थी ।"
" ओह !"- दुशयंत बोला ।
" नेहा भयभीत हो गई थी । वह एकाएक केस में अपने योगदान के बारे में सोच सोचकर आतंकित होने लगी । उसे लगता था कि श्रीवास्तव की बातों में आकर वह भारी गलती कर बैठी है । किसी को बचाने के चक्कर में वह खुद फंस सकती थी ।"
" लेकिन नेहा की हत्या क्यों ?"
" क्योंकि मैं आज श्रीवास्तव से मिला था और उससे इस विषय पर बात हुई थी । वह समझ गया था कि नेहा घबरा गई थी और मदद हासिल करने के लिए गैर लोगों के पास पहुंच गई थी । उसे लगा नेहा के चलते उसकी पोल खुल सकती थी । उसने बड़ी रफ्तार से काम किया । वह यहां पंहुचा । उस वक्त उसने नेहा को एक चिट्ठी लिखते पाया । चिठ्ठी पर निगाह पड़ते ही यह समझ गया कि नेहा का मुंह हमेशा के लिए बंद कर देने के अलावा बचाव का कोई रास्ता नहीं था । इसने वहीं मेज पर रखे हुए एक चाकू से उसकी हत्या कर दी ।"
" लेकिन नेहा का अंकित गुप्ता को चिट्ठी लिखने का क्या मतलब ? उससे नेहा का क्या वास्ता था ? अगर उसने चिट्ठी लिखनी ही थी तो श्रीवास्तव को लिखती !"
" इसी को लिखी है ।"
" क्या मतलब ?"
" श्रीवास्तव "- मैं उसकी ओर घूमा -" तुम्हरा नाम ए के श्रीवास्तव है । यह ए के से क्या बनता है ?"
" अंकित कुमार श्रीवास्तव "- जबाव दुशयंत के मूंह से निकला -" ओह , माई गॉड ।"

श्रीवास्तव और अंकित गुप्ता दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया । पुलिस के सख्ती के आगे नहीं टीक पाए । उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया ।
अगले दिन मैं आशा के घर गया और उसने क्या कीमत चुकाई ! दिल खुश हो गया । दिन भर उसके पहलू में उसके बिस्तर पर उससे कीमत वसुलते रहा ।

समाप्त ।
 

Siraj Patel

The name is enough
Staff member
Sr. Moderator
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354
Title — मेरी बीमारी
Genre
Reality & Comedy

मैं बिलकुल हट्टा कट्टा हूँ। देखने में कोई भला आदमी मुझे रोगी नहीं कह सकता। पर मेरी कहानी किसी भारतीय विधवा से कम करुण नहीं है; यद्यपि मैं विधुर नहीं हूँ। मेरी आयु लगभग पैंतीस साल की है । आज तक कभी बीमार नहीं पड़ा था। लोगो को बीमार देखता था तो मुझे बड़ी इच्छा होती थी की किसी दिन मैं भी बीमार पड़ता तो अच्छा होता। हालाँकि मेरे बीमार होने पर किसी न्यूज़ चैनल में कोई बुलेटिन तो नहीं निकलता लेकिन इतना अवश्य था की मेरे बीमार पड़ने पर हंटले पामर के बिस्कुट - जिन्हे साधारण अवस्था में घर वाले खाने नहीं देते - पर दवा की बात और है - मुझे खाने को मिलते। यु डी कलोन की शीशियां सिर पर कोमल हाथों से बीवी मलती और सबसे बड़ी इच्छा तो यह थी की दोस्त लोग आकर मेरे पास बैठते और गंभीर मुद्रा धारण करके पूछते – “कहिये किसकी दवा हो रही है ? कुछ फायदा है ?”

जब कोई इस प्रकार से रोनी सूरत बना कर ऐसे प्रश्न करता है तब मुझे बड़ा मजा आता है और उस समय मैं आनंद की सीमा के उस पार पहुँच जाता हूँ जब दर्शक लोग उठकर जाना चाहते हैं पर संकोच के मारे जल्दी उठते नहीं । यदि उस समय उनके मन की तस्वीर कोई चित्रकार खींच दे तो मनोविज्ञान के खोजियों के लिए एक अनोखी वस्तु मिल जाये।

हाँ, तो एक दिन मैं कबड्डी खेल कर घर आया, हालाँकि वैसे तो मुझे ज्यादातर क्रिकेट खेलना ही पसंद है किन्तु आज इंडिया चेन्नई टेस्ट में इंग्लैंड के हाथो बुरी तरह से हार गयी थी जिससे मन कुछ उदास था इसलिए क्रिकेट की बजाय कबड्डी खेल लिया। घर आकर कपडे उतारे फिर स्नान किया। शाम को भोजन कर लेने की मेरी आदत है, पर आज मैच में रिफ्रेशमेंट जरा ज्यादा ही खा गया था इसलिए भूख नहीं थी।

"आपके लिए खाना लगा दूँ ?" मेरी पत्नी अनीता ने पूछा।

"आज बाहर से मिठाई खा कर आया हूँ इसलिए ज्यादा भूख नहीं है अभी" मैंने जवाब दिया।

"ज्यादा नहीं तो थोड़ा ही खा लो, वो क्या है न की आज मुझे पिक्चर देखने जाना है तो हो सकता है की मुझे आने में कुछ देर हो जाये" मेरी पत्नी अनीता ने मुझे खाना जल्दी खिलाने के पीछे अपनी सफाई देते हुए कहा।

मैंने फिर इंकार नहीं किया, उस दिन थोड़ा ही खाया। बारह पूरियां थी और एक लीटर दूध, बस इतना ही खा पाया। पूरियां खाने और दूध पी चुकने के बाद पता चला की ज्ञानी भाई के यहाँ से रीवा बाजार का रसगुल्ला आया है, उन्हें फिर से लड़का जो हुआ था। रसगुल्ले छोटे नहीं थे बल्कि बड़े बड़े थे। रस तो होगा ही। संभव है की कल तक कुछ खट्टे हो जाये। ये सोच कर जल्दी से आठ रसगुल्ले फटाफट निगल कर मैंने चारपाई पर धरना दिया।

चारपाई पर लेटते ही मस्त नींद आयी, मेरी श्रीमती जी सिनेमा देख कर कब घर लौटी, इसका कुछ पता ही नहीं चला। लेकिन एकाएक तीन बजे रात को नींद खुली। नाभि के नीचे दाहिनी ओर पेट में लग रहा था की जैसे कोई बड़ी बड़ी सुइयां लेकर कोंच रहा है। परन्तु मुझे इससे कोई भय नहीं लगा क्योंकि ऐसे ही समय के लिए औषधियों का राजा, रोगो का रामबाण, अमृतधारा की एक शीशी सदा मेरे पास रहती है। मैंने तुरंत उसकी कुछ बूँदें पान की। दोबारा दवा पी। फिर तिबारा भी पी डाली। पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा की सार्थकता उसी समय मुझे मालूम हुई। प्रातः काल होते होते शीशी समाप्त हो गयी किन्तु दर्द में किसी प्रकार की कमी नहीं हुई। अंततः प्रातः काल एक डॉक्टर के यहाँ आदमी भेजना पड़ा।

डॉक्टर चूतिया, यहाँ के बड़े नामी डॉक्टर हैं। पहले जब प्रैक्टिस नहीं चलती थी, तब वह लोगो के यहाँ मुफ्त जाते थे। वहां से पता चला की डॉक्टर साहब नौ बजे ऊपर से उतरते हैं। इसके पहले वह कही जा नहीं सकते। लाचार होकर दूसरे डॉक्टर के पास आदमी भेजना पड़ा। दूसरे डॉक्टर साहब सरकारी अस्पताल के सब-असिस्टेंट थे। वे एक साइकिल पर तशरीफ़ लाये। सूट तो वह ऐसा पहने हुए थे की उन्हें देखकर लगता था जैसे कि प्रिंस ऑफ़ वेल्स के वेलेटों में हैं। ऐसे सूट वाले का साइकिल पर आना ठीक वैसा ही मालूम हुआ जैसा कि नेताओं का मोटर छोड़कर पैदल चलना।

मैं अभी अपनी तकलीफ का पूरा हाल भी नहीं कह पाया था कि डॉक्टर साहब बोल पड़े, "जुबान दिखाइए"। प्रेमियों को जो मज़ा प्रेमिकाओं कि ऑंखें देखने में आता है, शायद वही मज़ा किसी डॉक्टर को मरीज़ों की जीभ देखने में।

"घबराने कि कोई बात नहीं है, दवा पीजिये, दो खुराक पीते पीते आपका दर्द वैसे ही गायब हो जायेगा जैसे कि हिंदुस्तान से सोना गायब हो रहा है" डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा।

"यहाँ मैं दर्द से बेचैन हूँ और डॉक्टर साहब को मसखरी सूझ रही है" मैंने मन ही मन मुंह बनाते हुए सोचा।

"अभी अस्पताल खुला नहीं होगा, नहीं तो आपको दवा मंगानी नहीं पड़ती। खैर, नैना फार्मेंसी से दवा मंगवा लीजियेगा, वहां दवाइयां ताज़ा मिलती हैं। और बोतल में पानी गरम करके सेंकिएगा" उन्होंने चलते चलते कहा।

डॉक्टर के जाने के बाद उनकी बताई हुई दवा मंगवा कर मैंने पी। गरम बोतलों से सेंक भी आरम्भ हुई। सेंकते-सेंकते छाले पड़ गए लेकिन दर्द में किसी प्रकार की कमी नहीं आयी।

दोपहर हुई, शाम हुई। पर दर्द में कमी न हुई, हटने का नाम तो दूर। लोग देखने के लिए आने लगे। मेरे घर पर मेला लगने लगा। ऐसे ऐसे लोग आये कि क्या बताऊँ ? पर हाँ, एक विशेषता थी। जो भी आता एक न एक नुस्खा अपने साथ लेता आता था।

किसी ने कहा, अजी, कुछ नहीं हींग पिला दो, किसी ने कहा, चूना खिला दो। खाने के लिए सिवा जूते के और कोई चीज़ बाकी नहीं रह गयी जिसे लोगो ने न बताई हो। यदि भारतीय सरकार को मालूम हो जाये कि देश में इतने डॉक्टर हैं तो निश्चय है कि सारे मेडिकल कॉलेज तोड़ दिए जाएँ। इतने खर्च कि आखिर आवश्यकता कि क्या है ?

कुछ समझदार लोग भी आते थे जो इस बात पर बहस छेड़ देते थे कि किसान आंदोलन सफल होगा कि नहीं, कोरोना बीमारी में कितनी सच्चाई है, अमेरिकन राष्ट्रपति चुनाव के बाद डोनाल्ड ट्रम्प को सजा होगी या नहीं, इत्यादि। मैं इस समय केवल स्मरण शक्ति से काम ले रहा हूँ। तीन दिन बीत गए लेकिन दर्द में कमी नहीं हुई। कभी कभी कम हो जाता था तो बीच बीच में जोरो का हमला हो जाता था, मानों चीन अमेरिका का युद्ध हो रहा हो।

तीसरे दिन तो ऐसा लगने लगा जैसे की मेरा घर क्लब बन गया है। लोग आते तो थे मुझे देखने के लिए, पर चर्चा छिड़ती थी कि इस बार नगर निगम पार्षद चुनाव में कौन जीतेगा, सलमान खान कि अगली फिल्म कैसी है, कोरोना में कितने मर गए, लोग आजकल ब्रुक बांड चाय क्यों नहीं पीते, हिंदी के दैनिक पत्रों में बड़ी अशुद्धियाँ रहती हैं, मेरी गाय ने आज दूध नहीं दिया, कुछ लोग हफ्ते में सातों दिन दाढ़ी क्यों बनवाते हैं, राजा चौहान, एनिग्मा और अमिता ने आज कोई अपडेट दिया या नहीं, casinar ने कौन सी स्टोरी कांटेस्ट में पोस्ट की, आनंदसिंह१२ Xforum में वापस कब लौटेंगे और लौटेंगे या नहीं? अर्थात अमेरिकन राष्ट्रपति और भारतीय सरकार से लेकर xforum की कहानियों तक की आलोचना यहाँ बैठकर लोग करते थे। और यहाँ दर्द की वह दर्दनाक हाकत थी की क्या लिखूं ? मुझे भी कुछ न कुछ बोलना ही पड़ता था। ऊपर से चाय, पान और सिगरेट की चपत अलग लगती थी, ऐसे में भला दर्द में कहाँ से कमी आती ? बीच बीच में लोग दवा की सलाह और डॉक्टर बदलने की सलाह और कौन डॉक्टर किस तरह का है, यह भी बतलाते जाते थे।

आखिर में लोगों ने कहा की तुम कब तक इस तरह पड़े रहोगे, किसी दूसरे की दवा करो। लोगों की सलाह से डॉक्टर चूहानाथ कतरजी को बुलाने की सबकी सलाह हुयी। आप लोग डॉक्टर साहब का नाम सुनकर हँसेंगे, पर यह मेरा दोष नहीं है। डॉक्टर साहब के माँ-बाप का दोष है। यदि मुझे उनका नाम रखना होता तो अवश्य ही कोई साहित्यिक या पौराड़ीक नाम रखता। परन्तु ये यथानाम तथा गुण। उनकी फीस 300 रुपये थी और आने जाने का 100 रुपये अलग। वो लंदन के एफ.आर.सी.यस. थे।

कुछ लोगों का सौंदर्य रात में बढ़ जाता है वैसे ही डॉक्टरों की फीस रात में बढ़ जाती है। खैर, डॉक्टर साहब बुलाये गए। आते ही हमारे हाल पर रहम किया और बोले, "अभी मिनटों में दर्द गायब हो जायेगा, आप थोड़ा पानी गरम करवाइये और जल्दी से यह दवा मंगवाइये।" उन्होंने एक पुर्जे पर अपनी दवा लिखी। पानी गरम हुआ। दो सौ की दवा आयी। डॉक्टर बाबू ने तुरंत एक छोटी सी पिचकारी निकाली, उसमे एक लम्बी सुई लगाईं, पिचकारी में दवा भरी और मेरे पेट में वह सुई कोंच कर दवा डाली।

यह कहना आसान है कि मेरा कलेजा निगाहीं के नेजे के घुस जाने से रेजा रेजा हो गया है, अथवा उनका दिल बरुनी की बर्छियों के हमले से टुकड़े टुकड़े हो गया है, पर अगर सचमुच एक आलपिन भी धंस जाये तो बड़े बड़े प्रेमियों को नानी याद आ जाये, अपनी प्रेमिकाएं भूल जाएँ। डॉक्टर साहब कुछ कहकर और मुझे सांत्वना देकर चले गए। इसके बाद मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। मेरी नींद कब खुली कह नहीं सकता, पर दर्द में कमी हो चली थी और दूसरे दिन प्रातः काल पीड़ा रफूचक्कर हो गई थी।

कोई दो सफ्ताह मुझे पूरा स्वस्थ होने में लगे। इस दौरान बराबर डॉक्टर चूहानाथ कतरजी की दवा पीता रहा। पचास रुपये की शीशी प्रतिदिन आती रही। दवा के स्वाद का क्या कहना, अगर किसी मुर्दे के मुख में डाल दी जाये तो वह भी तिलमिला उठे। पंद्रह दिन के बाद मैं डॉक्टर साहब के घर गया। उन्हें धन्यवाद दिया।

"डॉक्टर साहब, अब तो दवा पीने की कोई जरुरत नहीं होगी ना ?" मैंने उनसे पूंछा।

"यह तो आपकी इच्छा पर है। पर यदि आप काफी एहतियात नहीं करेंगे तो आपको 'अपेंडिसाइटीज़' हो जायेगा। यह कोई मामूली दर्द नहीं था, असल में आपको 'सीलियो सेंट्रिक कोलाइटीज़' हो गया था। और उससे डेवलप कर 'पेरिकार्डियल हाइड्रेटयुलिक स्टैमकॉलिस' हो जाता, फिर ब्रम्हा भी कुछ नहीं कर पाते । ऐसा लगता है की आपकी पत्नी बहुत भाग्यवती हैं, अगर दो-चार घंटे की देर और हो जाती तो उन्हें ज़िंदगी भर रोना पड़ता। वह तो अच्छा हुआ की आपने मुझे बुला लिया। अभी कुछ दिनों तक आप मेरी दवा जारी रखिये। " डॉक्टर साहब ने कहा।

डॉक्टर साहब ने ऐसे ऐसे रोगों के नाम सुनाये की सुनते ही मेरी तबियत फड़क उठी। भला मुझे ऐसे रोग हुए जिनका नाम साधारण आदमी तो क्या, बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग भी नहीं जानते। मालूम नहीं, ये मर्ज सब डॉक्टरों को मालूम हैं या फिर सिर्फ हमारे डॉक्टर चूहानाथ को ही मालूम हैं। खैर, मैंने उनकी दवा आगे कुछ दिन जारी रखी।

अभी एक सप्ताह भी पूरा ना हुआ था की एक दिन दोपहर दो बजे एकाएक फिर से दर्द रुपी फ़ौज ने मेरे शरीर रुपी किले पर हमला कर दिया। डॉक्टर साहब ने जिन जिन भयंकर मर्जों का नाम लिया था, उनका स्वरुप मेरी तड़पती हुई आँखों के सामने नृत्य करने लगा।

मैं सोचने लगा, "लो हो गया हमला उन्ही भयंकर मर्जों में से किसी एक का"

तुरंत डॉक्टर साहब के यहाँ आदमी दौड़ाया गया, ये बोलकर की इंजेक्शन का सामान लेकर जल्दी चलिए। लेकिन भेजा गया आदमी वहां से आदमी बिना मांगी पत्रिका की भांति वापिस लौटकर आ गया और बताया की डॉक्टर साहब कहीं गए हुए हैं। इधर मेरे दर्द की हालत ऐसी थी की जिसका वर्णन यदि सरस्वती भी शॉर्टहैंड से लिखें तो संभवतः समाप्त ना हो। मैं एरोप्लेन के पंखे की तेज़ी के सामान दर्द में तड़पते हुए बिस्तर में करवटे बदल रहा था।

इधर मित्रों और घरवालों की कॉन्फ्रेंस हो रही थी की अब किसको बुलाया जाये, पर 'डिसआर्मामेंट कॉन्फ्रेंस' की भांति कोई किसी की बात नहीं मान रहा था, न ही कोई निश्चय हो पा रहा था। मालूम नहीं, लोगों में क्या बहस हुई, कौन कौन प्रस्ताव फेल हुए, कौन कौन पास। जहाँ मैं पड़ा कराह रहा था, उसी के बगल में लोग बहस कर रहे थे। कभी कभी किसी-किसी की चिल्लाहट सुनाई दे जाती थी। बीमार मैं था, अच्छा-बुरा होना मुझे था, फीस मुझे देनी थी, परन्तु लड़ और लोग रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे की उन्ही में से किसी की जमींदारी कोई जबरदस्ती छीने लिए जा रहा है। अंत में हमारे मकान के बगल में रहने वाले पंडित जी की विजय हुयी और आयुर्वेदाचार्य, रसज्ञ रंजन, चिकित्सा-मार्तण्ड, प्रमेह-गज-पंचानन, पंडित सुखड़ी शास्त्री को बुलाने की बात तय हुई।

आधा घंटा तो बहस में बीता, खैर किसी तरह से कुछ तय हुआ। एक सज्जन उन्हें बुलाने के लिए भेजे गए। लगभग पैंतालीस मिनट बीत गए, परन्तु वहां से न वैद्य जी आये,और न ही भेजे गए सज्जन का ही कुछ पता चला। एक ओर दर्द इनकम टैक्स की तरह बढ़ता ही चला जा रहा था, दूसरी ओर इन लोगों का भी पता नहीं था जिससे बेचैनी बढ़ रही थी । अंत में जो साहब गए थे वे लौटे । उसको खाली हाथ आया देख कर सभी ने पूंछा तो उसने बताया की वैद्यराज सुखड़ा शास्त्री ने पत्रा देखने के बाद कहा की, "अभी बुद्ध क्रांति-वृत्त में शनि की स्थिति है, इकतीस पल नौ विपल में शनि बाहर हो जायेगा और डेढ़ घडी एकादशी का योग है, उसके समाप्त होने पर मैं चलूँगा। "

वैद्य जी को बुलाने गए सज्जन उन्हें एक घंटे बाद आने को कह आये थे। ये सुनकर मेरा कलेजा कबाब हो गया। मगर वे कह आये, अतएव बुलाना भी आवश्यक था। कोई एक घंटे बाद वैद्य जी एक फटफटिया पर तशरीफ़ लाये और आते ही मेरे सामने कुर्सी पर बैठ गए। वे धोती पहने हुए थे और कंधे पर एक सफ़ेद दुपट्टा डाले हुए थे। इसके अतिरिक्त शरीर पर सूत के नाम पर केवल जनेऊ था, जिसका रंग देखकर यह शंका होती थी की वैद्यराज कहीं से कुश्ती लड़कर आ रहे हैं। वैद्य जी ने कुछ और न पूंछा, पहले नाड़ी हाथ में ली, पांच मिनट तक एक हाथ की नाड़ी देखी फिर दूसरे हाथ की।

"वायु का प्रकोप है, यकृत से वायु घूमकर पित्ताशय में प्रवेश कर आंत्र में जा पहुंची है। इससे मंदाभि का प्रादुर्भाव होता है और इसी कारण जब भोज्य पदार्थ प्रतिहत होता है तब शूल का कारण बन जाता है। संभव है की मूत्राशय में अश्मन भी एकत्र हो। " पंडित सुखड़ी शास्त्री ने मेरी नाड़ी देखते हुए कहा।

वैद्य जी मालूम नहीं क्या बक रहे थे, और ये सब सुनकर मेरी तबियत, दर्द और क्रोध से एक दूसरे ही संसार में जा रही थी। आखिर मुझसे न रहा गया तो मैंने अपनी पत्नी अनीता से कहा, "जरा अलमारी में से आप्टे का कोष तो निकाल कर देना। "

यह सुनकर वहां बैठे लोग चकराए। कुछ लोगों को संदेह हुआ की अब मैं अपने होश हवाश में नहीं हूँ। मैंने कहा, "दवा तो बाद में होगी, लेकिन पहले मैं ये तो समझ लू की आखिर मुझे रोग क्या है ?"

पंडित सुखड़ी शास्त्री जी कहने लगे, "अजी साहब, देखिये आजकल के नए डॉक्टरों को रोगों का निदान तो ठीक से मालूम ही नहीं है, इलाज़ क्या ख़ाक करेंगे। अंग्रेजी पढ़े लिखों का वैद्यक शास्त्र पर से विश्वास उठ गया है, परन्तु हमारे यहाँ ऐसी-ऐसी औषधियां हैं कि इंसान को एक बार मृत्युलोक से भी लौटा लें। बस मुहूर्त मिल जाना चाहिए और अच्छा वैद्य मिल जाना चाहिए।"

इसके पश्चात् वैद्य जी चरक,सुश्रुत, रसनिघन्टु, भेषजदीपिका,चिकित्सा-मार्तण्ड के श्लोक सुनाने लगे। और अंत में उन्होंने कहा, "देखिये मैं दवा देता हूँ, अभी आपको लाभ हो जायेगा परन्तु इसके पश्चात् आपको पर्पटी का सेवन करना होगा। क्योंकि आपका शुक्र मंद पड़ गया है। गोमूत्र में आप पर्पटी का सेवन कीजिये, फिर देखिये आपका सारा दर्द पारद के समान उड़ जायेगा और गंधक के समान भस्म हो जायेगा। शास्त्रों में लिखा भी है कि,

गोमूत्रेण समायुक्ता रसपर्पटीकाशिता, मासमात्रप्रयोगेन शूलं सर्वे विनाशयेत। "

मैंने उनकी बात सुनकर थोड़ी गुस्से में कहा, "शुक्र अस्त नहीं हो गया,यही क्या कम है ? पंडित जी, गोमूत्र भर ही क्यों, गोबर भी खिलाइये। शायद आप लोगों के शास्त्र में और कोई भोजन रह ही नहीं गया है। इसी कारण से आप लोगों के दिमाग कि बनावट भी विचित्र है।"

खैर पंडित जी ने दवा दी और कहा कि अदरक के रस में इस औषधि का सेवन करना होगा। खैर साहब, फीस दी गयी, किसी प्रकार वैद्य जी से पिंड छूटा। दो दिन तक उसकी दवा पीता रहा, दर्द कभी-कभी तो अवश्य कम हो जाता था लेकिन दर्द पूरी तरह से नहीं गया। वह सी.आई.डी. कि तरह मेरे पीछे ही पड़ गया था। वैद्य जी के यहाँ जब भी कोई आदमी भेजता तो कभी रविवार के कारण, कभी प्रदोष के कारण तो कभी त्रिदोष के कारण वे ठीक समय से दवा ही नहीं देते थे।

अब वैसी बेचैनी नहीं रह गयी थी लेकिन बलहीन होता गया। खाना पीना भी ठीक मिलता ही न था, लिहाज़ा चारपाई पर पड़ा रहने लगा। दिन में मित्रों कि मंडली आती थी, वह आराम देती थी कम, दिमाग चाटती थी ज्यादा। कभी-कभी दूर के रिश्तेदार भी आते थे और सब लोग डॉक्टरों को गाली देकर और मुझे बिना मांगी सलाह देकर चले जाते थे।

मैं चारपाई पर 'इंटर्न' था। आखिर मैंने सोचा कि क्यों न फिर से डॉक्टर साहब को ही बुलाया जाये। जिस समय मैं ये सोच रहा था, उस समय मेरे पास राजनीतिक पार्टी के एक व्यक्ति बैठे हुए थे। यह सज्जन अभी जेल से रिहा होकर लौटे थे और मुझे देखने के लिए तशरीफ़ लाये थे।

"भाई, आप लोगों को देश का हर समय ध्यान रखना चाहिए। ये डॉक्टर सिवा विलायती दवाओं के ठेकेदार के अलावा और कुछ नहीं होते। इनके कारण ही विलायती दवाएं आती हैं। आप किसी भारतीय हकीम अथवा वैद्य को दिखलाइये।" उन महाशय ने सलाह दी।

ऐसी खोपड़ी वालों से मैं क्या बहस करता ? मैंने मन में सोचा कि, " वैद्य महाराज को तो मैंने देख ही लिया है। शायद कुछ और रुपयों पर ग्रहण लगना बाकी होगा तो चलो हकीम को भी देख ही लेते हैं। "

एक की सलाह से मसीहुअ हिन्द, बुकराते जमां, सुकरातुश्शफा जनाब हकीम आलुए बुखारा साहब के यहाँ आदमी भेजा। वह फ़ौरन तशरीफ़ ले आये। इस ज़माने में भी जब तेज से तेज सवारियों का प्रबंध सभी जगह मौजूद है, वे पैदल ही आ गए।

हकीम साहब आये। यद्यपि मैं अपनी बीमारी का जिक्र और अपनी बेबसी का हाल लिखना चाहता हूँ, लेकिन हकीम साहब की पोशाक और रहन सहन तथा फैशन का जिक्र न करूँ, ऐसा मुझसे न हो सकेगा। सर्दी बहुत तेज़ थी। मध्य प्रदेश में सतना जिले से करीब पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर बसे बिरसिंगपुर में कड़ाके की ठंडी होती है। बिरसिंगपुर अपने भव्य शिव-लिंग मंदिर के लिए लगभग पूरे भारत वर्ष में विख्यात है। अभी यहाँ ऊनी कपडे पहनने का समय ही चल रहा है, परन्तु हकीम साहब चिकन का बंददार कुर्ता पहने हुए थे, सिर पर बनारसी लोटे की तरह टोपी रखी हुयी थी। पाँव में पाजामा ऐसा मालूम होता था जैसे कि चूड़ीदार पाजामा बनने वाला था लेकिन दर्जी ईमानदार था, उसने कपडा चुराया नहीं बल्कि सबका सब लगा दिया। अथवा यह भी हो सकता है कि ढीली मोहरी के लिए कपडा दिया गया हो और दर्जी ने कुछ क़तर ब्योंत की हो और चुस्ती दिखाई हो। जूता कामदार दिल्ली वाला था, मोजा नहीं था, रुमाल इतना बड़ा था कि अगर उसमे कसीदा कढ़ा न होता तो मैं समझता कि यह रुमाल मुंह अथवा हाथ पोंछने के लिए नहीं बल्कि तरकारी बाँधने के लिए है। हकीम साहब कि दाढ़ी के बाल ठुड्डी कि नोंक पर ही इकट्ठे हो गए थे, लगता था कि हज़ामत बनाने का ब्रश है। वे इतने दुबले पतले थे कि उन्हें देखकर लगता था जैसे कि अपनी तंदुरुस्ती उन्होंने अपने मरीज़ों में बाँट दी हो। हकीम साहब में नज़ाकत भी बला कि थी, रहते थे बिरसिंगपुर में मगर कान काटते थे सिरमौर के।

उनके आते ही मैंने सलाम किया, जिसका जवाब उन्होंने मुस्कुराते हुए बड़े अंदाज़ से दिया और बोले, "मिज़ाज़ कैसा है ?"

मैंने कहा, "मर रहा हूँ। बस, आपका ही इंतज़ार था। अब ये ज़िंदगी आपके ही हाथों में है। "

हकीम साहब ने कहा, "या रब ! आप तो ऐसी बातें करते हैं गोया ज़िंदगी से बेजार हो गए हैं। भला ऐसी गुफ्तगू भी कोई करता है। मरें आपके दुश्मन। नब्ज़ तो दिखाइए, खुदाबंदकरीम ने चाहा तो आननफानन में दर्द रफूचक्कर हो जायेगा। "

मैंने कहा, "अब आपकी दुआ है। आपका नाम बिरसिंगपुर में ही नहीं, सतना रीवा तक लुकमान कि तरह मशहूर है। इसीलिए आपको तकलीफ दी गयी है। "

दस मिनट तक हकीम साहब ने नब्ज़ देखी। फिर बोले, "मैं यह नुस्खा लिखे देता हूँ। इसे इस वक़्त आप पीजिये, इंशा अल्लाह जरूर शफा होगी। मैंने बगौर देख लिया, लेकिन आपका मेदा साफ़ नहीं है और सारे फसाद की बुनियाद यही है। "

"तो बुनियाद उखाड़ डालिये, किस दिन के लिए छोड़ रहे हैं ?" मैंने कहा।

"तो आप मुसहिल ले लीजिये। पांच रोज तक मुजिज़ पीना होगा, इसके बाद मुसहिल। इसके बाद मैं एक माज़ून लिख दूंगा। उसमे ज़ोफ़ दिल, ज़ोफ़ दिमाग, ज़ोफ़ जिगर, ज़ोफ़ मेदा, ज़ोफ़ चश्म, हर एक कि रियायत रहेगी। "

मुझसे न रहा गया। मैं बोला, "कई ज़ोफ़ आप छोड़ गए, इसे कौन अच्छा करेगा ?"

"जब तक मैं हूँ, आप कोई फ़िक्र न कीजिये। " हकीम साहब ने कहा।

मेरी पत्नी ने उनके हाथों में फीस रखी। हकीम साहब चलने को तैयार हुए। उठे। उठते-उठते बोले, "जरा एक बात का ख्याल रखियेगा कि आजकल दवाइयां लोग बहुत पुरानी रखते हैं, मेरे यहाँ ताज़ा दवाइयां रहती हैं। "

मैंने उनकी दवा उस दिन पी। वह कटोरा भर दवा जिसकी महक रामघाट के सीवर से कम्पटीशन के लिए तैयार थी, किसी प्रकार गले के नीचे उतारा। दूसरे दिन मुजिज़ आरम्भ हुआ, उसका पीना और भी एक आफत थी। लगता था जैसे कि भरतपुर के किले पर मोर्चा लेना है। मेरी इच्छा हुयी कि उठाकर गिलास फेंक दूँ, पर घरवाले और मेरी पत्नी, जेल के पहरेदारों कि तरह सिर पर सवार रहते थे। चौथे दिन मुसहिल की बारी आयी। एक बड़े से मिट्टी के बंधने से दवा पीने को दी गयी। शायद दो सेर के लगभग रही होगी। एक घूँट गले के नीचे उतरा होगा कि जान बूझकर करवा मैंने गिरा दिया। करवा गिरते ही असफल प्रेमी के ह्रदय कि भांति चूर चूर हो गया और दवा होली के रंग के समान सबकी धोतियों पर जा पड़ी। उस दिन के बाद से हकीम साहब कि दवा मुझे पिलाने का फिर किसी को साहस न हुआ। खेद इतना ही रह गया कि उसी के साथ हकीम साहब वाला माज़ून भी जाता रहा।

दर्द फिर कम हो चला था परन्तु दुर्बलता बढ़ती जा रही थी। कभी कभी दर्द का दौरा अधिक वेग से हो जाता था। अब लोगों को मेरे सम्बन्ध में विशेष चिंता नहीं रहती थी। कहने का मतलब ये है की अब लोग मुझे देखने सुनने कम ही आते थे। सिर्फ मेरे ख़ास दोस्त ही देखने आते रहते थे बीच बीच में। मेरी पत्नी और मेरे घरवालों के साथ साथ अब मुझे भी अपने दर्द के सम्बन्ध में विशेष चिंता होने लगी थी। कोई कहता की सतना जाओ, कोई कहता की रीवा जाओ, कोई कहता की नागपुर जाओ, तो कोई एक्स-रे का नाम लेता था। किसी किसी ने तो राय दी की जल-चिकित्सा कीजिये। एक सज्जन ने कहा, "ये सब कुछ नहीं, आप होमियोपैथी इलाज़ शुरू कीजिये, देखिये कितनी जल्दी लाभ होता है, इन नन्ही नन्ही गोलियों में मालूम नहीं कहाँ का जादू है, भाई जादू का काम करती हैं, जादू का।"

एक नेचर-क्योर वाले ने कहा, "आप गीली मिटटी पेट में लेपकर धूप में बैठिये, एक हफ्ते में दर्द हवा हो जायेगा। " फिर मेरे ससुर जी एक डॉक्टर को ले आये। उन्होंने कहा, "देखिये, आप पढ़े लिखे आदमी हैं, समझदार हैं...."

"समझदार न होता तो भला आपको यहाँ क्यों बुलाता ?" मैं बीच में ही बोल उठा।

"दवा तो नेचर की सहायता करने के लिए होती है। आप कुछ दिनों तक अपना डायट बदल दीजिये। मैंने इसी डायट पर कितने ही रोगियों को अच्छा किया है। मगर हम लोगों की सुनता कौन है। असल में आपमें विटामिन 'एफ' की कमी है। आप नीबू, नारंगी, टमाटर, प्याज, धनिया के रस में सलाद भिगोकर खाया कीजिये। हरी भरी पत्तियां खाया कीजिये। " डॉक्टर महोदय ने कहा।

मैंने पूंछा, "पत्तियां खाने के लिए पेड़ पर चढ़ना होगा। अगर इसकी बजाय घास बतला देते तो अच्छा होता। जमीन पर ही मिल जाएगी। "

इसी प्रकार जो आता इतनी हमदर्दी दिखलाता था कि एक डॉक्टर, हकीम या वैद्य अपने साथ लेता आता था।

खाने के लिए साबूदाना ही मेरे लिए अब न्यामत थी। ठंडा पानी मिल जाता था, यह परमात्मा कि दया थी। तीन बजे एक पंडित जी महाराज आकर एक पोथी में से बड़-बड़ पाठ किया करते थे और मेरा भेजा खाते थे। शाम को एक और पंडित आकर मेरे हाथ में कुछ धूल रख जाते , ये कहकर कि ये महामृत्युंजय का प्रसाद है। इसी बीच में मेरी मौसी मुझे देखने आयी, उन्होंने बड़े प्रेम से देखा।

"मैं तो पहले ही सोच रही थी कि यह कुछ ऊपरी खेल है। " उन्होंने देखकर कहा।

"यह ऊपरी खेल क्या है मौसी जी ?" मैंने पूंछा।

"बेटा, सब कुछ किताब में ही थोड़े लिखा रहता है, यह किसी चुड़ैल का फसाद है " मौसी ने कहा।

"मुझे भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। " मेरी माँ ने भी मौसी कि हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा।

"देखो न इसकी बरौनी कैसी कड़ी हैं, जरूर कोई चुड़ैल लगी है। किसी को दिखा देना चाहिए। " मेरी पत्नी और माँ कि ओर दिखाकर मौसी ने कहा।

"डॉक्टर तो मेरी जान के पीछे ही लग गए हैं, चुड़ैल क्या उनसे भी बढ़कर होगी ?" मैंने कहा।

"तुम लोगों कि बात क्यों नहीं मान लिया करते ? कुछ हो या न हो, एक बार दिखाने में हर्ज़ ही क्या है ? कुछ खाने कि दवा तो देंगे नहीं" सबके चले जाने के बाद मेरी पत्नी ने कहा।

"तुम लोगों को जो कुछ करना है करो, मगर मेरे पास किसी को मत बुलाना। कोई ओझा या भूत का पचड़ा मेरे पास लेकर आया तो चप्पल से उसकी मरम्मत करूंगा। " मैंने कहा।

"अरे, वह कोई ओझा थोड़े ही हैं। एम्.ए. पास हैं। कुछ समझा होगा तभी तो यह काम करते हैं। कितनी स्त्रियां और पुरुष रोज उनके पास जाते हैं, बड़े वैज्ञानिक ढंग से उन्होंने इसका अन्वेषण किया है। " मेरी पत्नी ने मुझे समझाते हुए कहा।

मेरे दर्द में किसी विशेष प्रकार की कमी नहीं हुयी। ओझा से तो किसी प्रकार की आशा क्या करता, पर बीच बीच में दवा भी होती जाती थी। अंत में मेरे साले साहब आये और उन्होंने भी अपनी सलाह देनी शुरू कर दी।

"जीजा जी, यह सब झेलना इसलिए है क्योंकि आप ठीक दवा नहीं करते। होमियोपैथी का इलाज़ शुरू कीजिये, आपका सारा दर्द गंजे आदमी के सिर के बाल कि तरह गायब हो जायेगा। " मेरे साले ने जोर देकर कहा।

"ठीक है भाई, ये भी करके देख लो, क्या फर्क पड़ता है, मुर्दे पर जैसे बीस मन वैसे पचास। ऐसा न हो कि कोई ये कह दे कि फलाना सिस्टम का इलाज़ छूट गया। " मैंने साले साहब की बात का जवाब दिया।

अब सब सोचने लगे कि किस होमियोपैथ को बुलाया जाये। हमारे मकान से कुछ दूरी पर होमियोपैथ डाकिया था। दिन भर चिट्ठी बांटता था, सुबह और शाम को पचास रुपये पुड़िया दवा बांटता था। सैकड़ों मरीज उसके यहाँ जाते थे, बड़ी प्रैक्टिस थी। एक और होमियोपैथ थे, जो सौ रुपये के हिसाब से दिन में पुस्तकों का अनुवाद करते थे और शाम को दो चार सौ रुपये होमियोपैथी से पैदा कर लेते थे। एक मास्टर जी भी थे, जो कहा करते थे "कि सच पूंछो तो जैसी स्टडी होमियोपैथी कि मैंने की है, वैसे किसी ने नहीं की। "

कुछ बहस के बाद एक डॉक्टर का बुलाना निश्चित हुआ, जो कि बंगाली थे। आते ही सिर से पाँव तक मुझे तीन चार बार ऐसे देखा मानों मैं कोई होनोलुलू से पकड़कर लाया गया हूँ और खाट पर लिटा दिया गया हूँ। इसके पश्चात् मेडिकल सनातन धर्म के अनुसार मेरी जीभ देखी।

फिर पूंछा, "दर्द ऊपर से उठता है कि नीचे से, बांयें से कि दाएं से, नोचता है कि कोंचता है, चिकोटता है कि बकोटता है, मरोड़ता है कि खरबोटता है ?"

मैंने कहा कि, "मैंने दर्द की कोई फिल्म तो उतरवाई नहीं है, को कुछ भी होता है, मैंने आपसे कह दिया है। "

डॉक्टर साहब ने फिर कहा, "बिना सिमटाम (सिस्टम) के देखे कोई कैसे दवा देने सकता है ? एक एक दवा का भेरियस (वेरियस) सिमटाम होता है। "

फिर मालूम नहीं कितने सवाल मुझसे पूंछे। इतने सवाल तो आई.सी.यस. 'वाइवावोसी' में भी नहीं पूंछे जाते। उनमे से कुछ प्रश्नो का जिक्र यहाँ कर रहा हूँ।

मुझसे पूंछा, "तुम्हारे बाप के चेहरे का रंग कैसा था, कै बरस से तुमने सपना नहीं देखा, जब चलते हो तब नाक हिलती है या नहीं, किसी स्त्री के सामने खड़े होते हो तब दिल धड़कता है या नहीं, जब सोते हो तब दोनों आँख बंद रहती हैं कि एक, सिर हिलाते हो तो खोपड़ी में खटखट की आवाज़ आती है कि नहीं ?"

मैंने झुंझला कर कहा, "आप एक शॉर्टहैंड राइटर भी साथ लेकर चलते हैं कि नहीं ? इतने सवालों के जवाब देना मेरे लिए असंभव है। "

फिर डॉक्टर बाबू ने पचीसों पुस्तकों का नाम लिया और बोले, "फेरिंगटन यह कहते हैं, नैश यह कहते हैं, क्लार्क के हिसाब से यह दवा होगी। " डॉक्टर साहब पंद्रह बीस किताबें भी साथ लाये थे। आधे घंटे तक उन्हें देखते रहे, तब दवा दी । उनकी दवा से कुछ लाभ तो जरूर हुआ किन्तु पूरा फायदा नहीं हुआ। मैंने अब पक्का कर लिया कि सतना जा कर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाया जाये, जो बात बिरसिंगपुर में नहीं हो सकती वह सतना में हो सकती है। वहां सभी साधन हैं।

सब तयारी हो चुकी थी कि इतने में एक और डॉक्टर को एक मेहरबान लिवा लाये। आते ही वह मुझे देखने लगे, मेरी तकलीफ पूँछी।

फिर बोले, "जरा मुंह तो दिखाइए"

मैंने कहा, "मुंह जीभ, जो चाहे देखिये"

मुंह देखकर वह बड़े जोर से हँसे। उनको ऐसे हँसते देखकर मैं घबराया। ऐसी बेढंगी हंसी तो मैंने सिर्फ रामायण और महाभारत सीरियल में राक्षसों को हँसते हुए ही देखी और सुनी थी। मैं चकित भी था।

डॉक्टर हँसते हुए बोले, "किसी डॉक्टर को ये समझ ही नहीं आया, असल में तुम्हे 'पायरिया' है, उसी का जहर पेट में जा रहा है और ये सब फसाद पैदा कर रहा है।"

मैंने कहा, "तब क्या करूँ ?"

डॉक्टर साहब बोले, "इसमें करना क्या है ? किसी डेंटिस्ट के यहाँ जा कर सब दांत निकलवा दीजिये"

मैंने अपने मन में कहा, "आपको तो यह कहने में कुछ कठिनाई ही नहीं हुई, जैसे कि दांत निकलवाने में कोई तकलीफ ही नहीं होती ?"

खैर, रात भर मैंने सोचा और ये निश्चय किया कि यही डॉक्टर ठीक कहता है। डेंटिस्ट के यहाँ से पूँछवाया। उसने बताया कि, "पांच सौ रुपये एक दांत कि तुड़वाई लगेगी, कुल दांतों के लिए सोलह हज़ार रुपये लगेंगे। मगर मैं आपके लिए पांच सौ रुपये छोड़ दूंगा। इसके अतितिक्त दांत बनवाई बीस हज़ार अलग "

यह सुनकर पेट के दर्द के साथ साथ मेरे सिर में भी चक्कर आने लगा। मगर फिर मैंने सोचा कि जान सलामत है तो सब कुछ सलामत है। इतना और खर्च सही। अपनी पत्नी से मैंने रुपये मांगे क्योंकि मेरे पास जितने भी पैसे थे, वो सब इस इलाज़ में ख़त्म हो चुके थे। क्योंकि मैं जनता हूँ कि पति की जेब काट कर पत्नियां कुछ पैसे लुका छुपा कर रख ही लेती हैं।

पत्नी ने कहा, "तुम्हारी कसम, तुम्हारी माँ कि कसम, मेरे पास जहर खाने तक के लिए भी पैसे नहीं हैं"

अक्सर मैंने ये देखा है कि जब भी बीवियों से पैसे मांगो तो वह एकदम मुकर जाती हैं। कसम भी खाएंगी तो पति की या पति की माँ कि ही खाएंगी लेकिन अपनी या अपनी माँ कि कसम कभी नहीं खाती।

मैंने कहा, "ठीक है, जाने दो, कोई बात नहीं"

पत्नी ने पूंछा, " वैसे किसलिए चाहिए ?"

फिर मैंने सारा हाल कह सुनाया। सुनते ही वह भड़क गयी।

उसने कहा, "तुम्हारी बुद्धि कहीं घास चरने गई है क्या ? आज कोई कहता है कि सारे दांत उखड़वा डालो, कल कोई कहेगा कि सारे बाल उखड़वा डालो, परसों कोई डॉक्टर कहेगा कि नाक नोचवा डालो, आँख निकलवा दो, यह सब फिजूल है। तुम सुबह टहला करो, किसी एक अच्छे डॉक्टर की दवा करो, खाना ठिकाने से खाओ, पंद्रह दिन में ठीक हो जाओगे। मैं सबका इलाज़ भी देख लिया है। "

मैंने कहा, "जब तुम्हे अपनी ही दवा करनी थी तो इतने रुपये क्यों बर्बाद करवाए ?"

कुछ दिन के बाद मैंने समझा की स्त्रियों में भी बुद्धि होती है, विशेषतः बीस वर्ष की आयु के बाद।

.....THE END.....
 
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