अरे वाह भाई, क्या दिल से लिखी हुई कहानी है "फ्लैट नंबर 126"। चलिए, इसके बारे में जरा खुलकर बात करते है..
सबसे पहले बात करूँ इसकी खासियत की...
आपकी कहानी का सेटअप बड़ा ही सजीव और जानी-पहचानी सी दुनिया रचता है। वो कैंपस की गर्मागर्म चाय-समोसे वाली महक, दोस्तों की हँसी-ठिठोली, और पहली नज़र का प्यार.. सब कुछ जैसे आँखों के सामने चलने लगता है। बहुत ही बारीकी से आपने माहौल को पकड़ा है.. वो सुबह की ताजगी, झील-सी आँखें, और गुलाबी गुलाब वाली लड़की का जिक्र.. बहुत काव्यात्मक और दिल को छू जाने वाला अंदाज़।
सुनील का किरदार भी बड़ा प्यारा और रियल है। उसके चुटकुले, उसकी दोस्ती, फिर वो मासूम-सी झिझक और धीरे-धीरे मोहब्बत में डूब जाना.. सब कुछ बहुत ही सहज बहाव में आता है। ऐसा लगता ही नहीं कि कहानी पढ़ रहे हैं, जैसे किसी पुराने दोस्त की लव स्टोरी सुन रहे हों। और भाई, सुनीता के साथ उसका रिश्ता.. बिना ज़्यादा ड्रामेटिक हुए भी काफी गहराई ले आता है।
क्लाइमैक्स से पहले कहानी का टोन बहुत रूमानी और हल्का बना रहता है, जिससे पढ़ने वालों को लगने लगता है कि ये कहानी एक सीधी-सादी लव स्टोरी ही है। अगर आपने थोड़-सा रहस्य बनाए रखा होता या बीच में कोई छोटा-सा ट्विस्ट डाला होता, तो रीडर और भी ज़्यादा बंधा रहता।
और हाँ, कहानी से जो सस्पेंस या उत्सुकता बनती है, उसका पै-ऑफ थोड़ा धीमा हो जाता है। आपके पास एक शानदार मौका था पढ़ने वालों को चौंकाने का.. उसे आपने काफी नर्म अंदाज़ में इस्तेमाल किया है। हो सकता है आगे की किस्त में आपने कुछ बड़ा सोच रखा हो.. यदि ऐसा है तो मैं पढ़ने के लिए अति-उत्सुक हूँ..
लेकिन भाई, सबसे बड़ी बात यह है कि आपने जज़्बातों को पकड़ा है.. और वो भी बिना ओवरडोज दिए। सुनील का पागलपन, उसका कमरा सजाना, फ्लैट नंबर १२६ लिख देना.. ये सब बड़ी ईमानदार भावनाएँ हैं, और इन्हीं से कहानी असली लगती है।
भाई dil_he_dil_main, आपने यह कहानी सीधे दिल से लिखी है, और पढ़ने वाले के दिल तक पहुँचती है। बस अब अगली बार थोड़ी कसावट और थोड़ा तेवर लाकर आप आग लगा सकते हो।
जाते जाते एक बात पूछना चाहूँगा.. क्या यह कहानी यहीं खत्म हो गई या असली राज़ खुलना अभी बाकी है?