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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,010
173
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 23
----------☆☆☆----------




अब तक,,,,,

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


अब आगे,,,,,,



भाभी के कमरे में खड़ा मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि तभी कुसुम एकदम से किसी आंधी तूफ़ान की तरह कमरे में दाखिल हुई जिससे मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ से चल रहीं थी। मैं समझ गया कि ये भागते हुए यहाँ आई है किन्तु क्यों आई है ये मुझे समझ न आया। उसके चेहरे पर और कपड़ों पर रंग लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"आँधी तूफ़ान बनी कहां घूम रही है तू?"
"अपनी सहेलियों के चक्कर में।" उसने अपनी फूली हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"मैं ये तो भूल ही गई कि मैंने अपने सबसे अच्छे भैया को तो रंग लगाया ही नहीं। अभी नीचे भाभी ने जब मुझसे पूछा कि रंग कहां रखा है तो मैंने उन्हें बताया और फिर एकदम से मैंने सोचा कि भाभी रंग के बारे में मुझसे क्यों पूछ रही हैं? वो तो नाराज़ हो कर अपने कमरे में बंद थीं, तब मुझे याद आया और फिर मैंने सोचा कि हो सकता है आप भाभी कमरे में उनसे मिलने गए हों और आपने उनकी नाराज़गी दूर कर दी हो। उसके बाद उन्होंने सोचा होगा कि आज होली का त्यौहार है तो उन्हें अपने देवर को रंग लगाना चाहिए इस लिए वो मुझसे रंग के बारे में पूछ रहीं थी। बस फिर मुझे भी याद आया कि मैंने तो अभी तक आपको रंग लगाया ही नहीं। इस लिए भागते हुए चली आई यहां।"

"इतनी सी बात को कम शब्दों में नहीं बता सकती थी तू?" कुसुम की बात जब पूरी हुई तो मैंने आँखें दिखाते हुए उससे कहा____"इतना घुमा फिरा कर बताने की क्या ज़रूरत थी?"
"अब आप बाकी भाइयों की तरह मुझे डांतिए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इससे पहले कि भाभी यहाँ आ जाएं मुझे आपको रंग लगाना है और आप इसके लिए मना नहीं करेंगे।"

"अच्छा ठीक है।" मैंने कहा____"जल्दी से रंग लगा ले और जा यहाँ से।"
"जल्दी से जाने को क्यों कह रहे हैं मुझे?" कुसुम ने आँखें निकालते हुए कहा____"और हां ये बताइए कि मेरी सहेलियों को रंग लगाया कि नहीं आपने?"

"हां वो थोड़ा सा लगाया मैंने।" उसके एकदम से पूछने पर मैंने थोड़ा नरम भाव से कहा____"लेकिन फिर वो जल्दी ही कमरे से चली गईं थी।"
"ऐसा क्यों?" कुसुम ने सोचने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या उन्होंने आपको रंग नहीं लगाया?"

"मेरे चेहरे पर उन्हीं का लगाया हुआ तो रंग लगा है।" मैंने कहा____"तुझे दिख नहीं रहा क्या?"
"अरे! तो आप भड़क क्यों रहे हैं?" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बनाया____"वैसे मैं जा कर पूछूंगी उन दोनों से कि वो आपके कमरे से इतना जल्दी क्यों चली आईं थी?"

"अरे! इसमें पूछने वाली कौन सी बात है?" मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"उन्हें रंग लगाना था तो लगाया और फिर चली गईं। अब क्या वो सारा दिन मेरे कमरे में ही बैठी रहतीं?"
"हां ये भी सही कहा आपने।" कुसुम ने भोलेपन से कहा____"ख़ैर छोड़िए, मैं जल्दी से आपको रंग लगा देती हूं। आपको पता है अभी मेरी दो सहेलियां और आई हुईं हैं इस लिए मुझे उनके साथ भी रंग खेलना है।"

कुसुम की बात सुन कर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि मैं उससे जितना बतवाऊंगा वो उतना ही बात करती रहेगी। इस लिए मैंने उसे रंग लगाने को कहा तो उसने अपने हाथ में ली हुई पानी से भरी हुई गिलास को एक तरफ रखा और फिर दूसरे हाथ में लिए हुए रंग को उसने पहले वाले हाथ में थोड़ा सा डाला। रंग डालने के बाद उसने गिलास से थोड़ा पानी अपनी हथेली में डाला और फिर उसे दोनों हाथों में मलते हुए मेरी तरफ बढ़ी। मैं चुप चाप खड़ा उसी को देख रहा था। जैसे ही वो मेरे क़रीब आई तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। कुसुम अपने दोनों हाथों को बढ़ा कर मेरे दोनों गालों पर अपने कोमल कोमल हाथों से मुस्कुराते हुए रंग लगाने लगी।

हवेली में मैं किसी से भी रंग नहीं खेलता था किन्तु वो हर साल मुझे ऐसे ही रंग लगाती थी और खुश हो जाती थी। बाकी भाई तो उसे झिड़क देते थे इस लिए वो उनके पास रंग लगाने नहीं जाती थी। होली के दिन रंग खेलना उसे बहुत पसंद था तो मैं भी उसकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लेता था।

"हो गया?" उसने जब अच्छे से मेरे चेहरे पर रंग लगा लिया तो मैंने पूछा____"या अभी और लगाना है?"
"हां हो गया।" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"चलिए अब आप भी मुझे रंग लगाइए और अपना बदला पूरा कीजिए। मुझे अभी अपनी उन सहेलियों को भी रंग लगाना है। कहीं वो दोनों चली न जाएं।"

उसकी बात सुन कर मैंने उसी से रंग लिया और उसके ही जैसे रंग में थोड़ा पानी मिला कर रंग को अपनी हथेली में मला और फिर प्यार से उसके दोनों गालों पर लगा दिया। इस वक़्त वो एकदम से छोटी सी बच्ची बनी हुई थी और मुझे उस पर बेहद प्यार आ रहा था। उसे रंग लगाने के बाद मैंने उसके माथे को चूमा और फिर कहा____"सदा खुश रह और ऐसे ही हंसती मुस्कुराती रह।"

"आप भी हमेशा खुश रहिए।" उसकी आवाज़ सहसा भारी हो गई____"और अपनी इस बहन को ऐसे ही प्यार करते रहिए।"
"ये तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसके चेहरे को एक हाथ से सहलाते हुए कहा___"सारी दुनिया चाहे तुझसे रूठ जाए लेकिन तेरा ये भाई तुझसे कभी नहीं रूठेगा। ख़ैर अब जा और अपनी सहेलियों के साथ रंग खेल।"

मेरे कहने पर कुसुम मुस्कुराती हुई पलटी और फिर अपना रंग और पानी का गिलास ले कर कमरे से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि तभी भाभी कमरे में आ ग‌ईं। उनके एक हाथ में कागज़ में लिपटा हुआ रंग था और दूसरे हाथ में पानी का मग्घा।

"तो लाडली बहन आई थी अपने भाई को रंग लगाने?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा तो मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो जानती हैं उसे। जब आपने उससे रंग के बारे में पूछा तब उसे याद आया कि उसने अभी अपने भाई को रंग लगाया ही नहीं है। इस लिए भागते हुए आई थी यहां।"

"तुम्हें शायद इस बात का इल्म न हो।" भाभी ने थोड़े संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैंने महसूस किया है कि पिछले कुछ महीनों से वो किसी किसी दिन बहुत ही गंभीर दिखती है। मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है उसके इस तरह गंभीर दिखने की। मैंने एक दो बार उससे पूछा भी था किन्तु उसने कुछ बताया नहीं। बस यही कहा कि तबीयत ख़राब है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैंने कहा तो भाभी ने चौंक कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या मतलब? क्या तुम्हें भी इस बात का आभास हुआ है?"
"जिस दिन मैं हवेली आया था।" मैंने कहा____"उसी दिन उससे कुछ बातें की थी मैंने और उसी दिन उसने मुझसे कुछ ऐसी बातें की थी जिन बातों की कम से कम मैं उससे उम्मीद नहीं करता था।"

"ऐसी क्या बातें की थी उसने?" भाभी ने सोचने वाले भाव से पूछा____"और क्या तुमने उससे उस दिन पूछा नहीं था कुछ?"
"उसकी बातें दार्शनिकों वाली थी भाभी।" मैंने कहा____"लेकिन उसकी उन बातों में गहरी बात भी थी जिसने मुझे चौंका दिया था और जब मैंने उससे पूछा तो उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था। उसके जाने के बाद मैंने सोचा था कि उसकी बातों के बारे में अपने तरीके से पता करुंगा लेकिन ऐसा अवसर ही नहीं आया क्योंकि मैं एक बार फिर से गुस्सा हो कर हवेली से चला गया था।"

"इस बारे में तुम्हें ठंडे दिमाग़ से विचार करने की ज़रूरत है वैभव।" भाभी ने कहा____"तुम्हें समझना होगा कि आज कल परिस्थितियां कैसी हो गई हैं लेकिन तुम तो हमेशा गुस्से में ही रहते हो।"

"मेरा ये गुस्सा बेवजह नहीं है भाभी।" मैंने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"बल्कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है।"
"तुम्हारा गुस्सा बेवजह ही है वैभव।" भाभी ने ज़ोर देते हुए कहा____"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतनी बेरुखी से बात करते हो। मैं तो ये सोच कर चकित हो जाती हू कि तुम उनसे ऐसे लहजे में कैसे बात लेते होगे?"

"वैभव सिंह ऐसे ही जियाले का नाम है भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जो किसी से भी नहीं डरता और जिससे भी बात करता है बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर बात करता है। फिर भले ही उसके सामने दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"अभी एक थप्पड़ लगाऊंगी तो सारा जियालापन निकल आएगा तुम्हारा।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बड़े आए बेख़ौफ़ हो कर बात करने वाले। अगर इतने ही बड़े जियाले हो तो अब तक मुझसे दूर क्यों भागते थे?"

"वो...वो तो मैं।" मैंने अटकते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि भाभी ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा____"बस बस बताने की ज़रूरत नहीं है। ख़ैर अब बातों में वक़्त जाया न करवाओ और मुझे अपने देवर को रंग लगाने दो।"

"जी ठीक है भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा तो भाभी ने कागज़ से रंग निकालते हुए कहा____"वैसे इस कमरे में आने से पहले किसके साथ रंग खेल कर आए थे? उस वक़्त मेरे पूछने पर जब तुमने कुसुम का नाम लिया तो मैंने यही समझा था कि तुमने कुसुम के साथ रंग खेला था लेकिन अभी जब कुसुम यहाँ तुम्हें रंग लगाने आई तब समझ आया कि उस वक़्त तुम कुसुम के साथ नहीं बल्कि किसी और के साथ रंग खेल कर आए थे। मैं सही कह रही हूं न?"

"जी भाभी।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा____"पर मैं उस वक़्त आपको बताने ही वाला था लेकिन आपने ही मेरी बात काट दी थी।"
"अच्छा तो चलो अब बता दो।" भाभी ने हाथ में रंग लेने के बाद उसमे पानी मिलाते हुए कहा____"आख़िर किसके साथ रंग खेल कर आए थे?"

"जाने दीजिए न भाभी।" मैंने बात को टालने की गरज़ से कहा____"मैं किसके साथ रंग खेल कर आया था इस बात को जानने की क्या ज़रूरत है?"
"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" भाभी ने अपनी भौंहों को चढ़ाते हुए कहा____"बल्कि मेरा तो ये जानने का हक़ है कि मेरा देवर किसके साथ रंग खेल कर यहाँ आया था? वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है किन्तु मैं तुम्हारे मुँह से जानना चाहती हूं। अब जल्दी से बताओ भी, इतना भाव मत खाओ?"

"वो..मैं अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर में कुसुम भी वहां पहुंच गई थी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"कुसुम के साथ उसकी दो सहेलियां भी थीं। कुसुम ने मुझे बताया कि उसकी वो सहेलियां मुझे रंग लगाना चाहती हैं। कुसुम की बात सुन कर मैंने इसके लिए इंकार नहीं किया।"

"मुझे लग ही रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर हमारे देवर जी लड़की ज़ात से इतना प्रेम जो करते हैं।"
"ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"वो तो बस मैंने उनकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लिया है।"

"अच्छा जी।" भाभी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तुमने उनसे सिर्फ रंग लगवाया? उन्हें रंग नहीं लगाया??"
"वो तो मैंने भी लगाया भाभी।" मैंने इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए कहा तो भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वही तो, भला ऐसा कैसे हो सकता था कि दो सुन्दर लड़कियां हमारे देवर जी के पास उन्हें रंग लगाने आएं और ठाकुर वैभव सिंह उनसे रंग लगवाने के बाद खुद उन्हें भी रंग से सराबोर न करें? ख़ैर चलो अच्छी बात है, कम से कम तुम्हारी रंग खेलने की शुरुआत दो सुन्दर लड़कियों से तो हुई। एक हम ही थे जो कल से मुँह फुलाए यहाँ अपने कमरे में पड़े हुए थे और किसी ने हमारी ख़बर तक नहीं ली।"

भाभी की बातें सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि उन्हें बस देखता ही रहा। उधर भाभी ने रंग को अपने हाथों में अच्छी तरह मला और फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम्हारे चेहरे पर तो पहले से ही रंग लगा हुआ है वैभव, ऐसे में हमारा लगाया हुआ रंग भला कैसे चढ़ेगा?"

"आपका लगाया हुआ रंग तो सबसे ज़्यादा चढ़ेगा भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इसमें आपका ढेर सारा प्यार और स्नेह शामिल है। आपका लगाया हुआ रंग मेरे चेहरे पर ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर भी चढ़ जाएगा।"

"अगर ऐसी बात है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तो ये मेरे लिए सबसे अच्छी बात है वैभव। तुम्हारी इस बात में जो मर्म है वो ये जताता है कि तुम्हारे अंदर अपनी इस भाभी के प्रति इज्ज़त और सम्मान की भावना है और इस बात से मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है।"

ये कह कर भाभी ने बड़े प्यार से मेरे चेहरे पर हल्के हाथों से रंग लगाना शुरू कर दिया। मैं ख़ामोशी से उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को ही देखता जा रहा था। उनकी नज़रें मेरी नज़रों से ही मिली हुईं थी। मुझे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनकी गहरी आँखों में डूबने लगा हूं तो मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और उनकी आँखों से अपनी नज़रें हटा ली।

"मैंने कहा न कि आज के दिन हर ख़ता माफ़ है वैभव।" मुझे नज़रें हटाता देख भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए इस वक़्त अपनी भाभी से किसी भी बात के लिए झिझक या शर्म महसूस न करो। जैसे मैं बेझिझक हो कर अपने देवर को रंग लगा रही हूं वैसे ही तुम भी अपनी भाभी को रंग लगाना।"

"सोच लीजिए फिर।" मैंने फिर से उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"बाद में ये मत कहिएगा कि मैंने कुछ ग़लत कर दिया है।"
"अरे! इसमें ग़लत करने जैसी कौन सी बात है भला?" भाभी ने अपने दोनों हाथ मेरे चेहरे से हटाते हुए कहा____"तुम्हें रंग ही तो लगाना है तो इसमें ग़लत क्या हो जाएगा?"

"मेरे रंग लगाने का तरीका ज़रा अलग है भाभी।" मैंने धड़कते हुए दिल से कहा____"और मेरा वो तरीका आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।"
"अजीब बात है।" भाभी ने मानो उलझ गए भाव से कहा___"क्या रंग लगाने के भी अलग अलग तरीके होते हैं? मैं तो पहली बार सुन रही हूं ऐसा। ख़ैर तुम बताओ कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?"

"मेरा तरीका मत पूछिए भाभी।" मैंने बेचैन भाव से कहा___"अगर मैंने आपको अपने रंग लगाने का तरीका बताया तो आप मेरे बारे में ग़लत सोचने लगेंगी और हो सकता है कि आप मुझ पर गुस्सा भी हो जाएं।"

"तब तो मैं ज़रूर जानना चाहूंगी कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?" भाभी ने मानो ज़िद करते हुए कहा____"चलो अब बताओ मुझे और हां चिंता मत करो, मैं तुम पर गुस्सा नहीं करुंगी।"

"वो भाभी बात ये है कि।" कुछ देर भाभी की तरफ देखते रहने के बाद मैंने धड़कते दिल से कहा____"एक तो मैं रंग खेलता नहीं हूं और अगर किसी लड़की या औरत के साथ रंग खेलता हूं तो मैं अपने तरीके के अनुसार लड़की या औरत के बदन के हर हिस्से पर रंग लगता हूं।"

"क्या????" मेरी बात सुन कर भाभी बुरी तरह उछल पड़ीं, फिर हैरत से आँखें फाड़े बोलीं____"हे भगवान! तो तुम इस तरीके से रंग लगाते हो? तुम तो बड़े ख़राब हो। भला इस तरह कौन किसी को रंग लगाता है?"

"कोई और लगाता हो या न लगाता हो भाभी लेकिन मैं तो ऐसे ही रंग लगता हूं।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"अब जबकि मैंने आपको अपना तरीका बता ही दिया है तो आपको मैं ये भी बता देता हूं कि कुसुम की जिन सहेलियों ने मेरे कमरे में आ कर मुझे रंग लगाया था उनको मैंने अपने इसी तरीके से रंग लगाया है।"

"हे भगवान!" भाभी आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए बोलीं____"तुम तो सच में बहुत गंदे हो। पर उन्होंने तुमसे इस तरीके से रंग कैसे लगवा लिया? क्या उन्हें तुम पर गुस्सा नहीं आया?"

"ग़ुस्सा क्यों आएगा भाभी?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे कमरे में आई ही इसी मकसद से थीं वरना आप ख़ुद सोचिए कि कोई शरीफ लड़की किसी मर्द के कमरे में उसे रंग लगाने क्यों आएगी और अगर आएगी भी तो इस तरीके से रंग लगवाने पर राज़ी कैसे हो जाएगी?"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" भाभी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा___"इसका मतलब कुसुम की वो दोनों सहेलियां एक नंबर की चालू थीं। रुको मैं कुसुम से इस बारे में बात करुँगी और उसे समझाऊंगी कि ऐसी लड़कियों को अपनी सहेली न बनाए जिनका चरित्र इतना गिरा हुआ हो।"

"नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"आप कुसुम से इस बारे में कुछ मत कहना। क्योंकि ऐसे में वो समझ जाएगी कि आपको ये सब बातें मेरे द्वारा पता चली हैं और फिर वो मुझ पर ही नहीं बल्कि अपनी सहेलियों से भी गुस्सा हो जाएगी। आप इस बारे में उससे कुछ मत कहिएगा, मैं खुद ही कुसुम को अपने तरीके से समझा दूंगा।"

"ठीक है, अच्छे से समझा देना उसे।" भाभी ने चिंतित भाव से कहा____"ऐसी लड़कियों को सहेली बनाना उसके लिए उचित नहीं है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उन लड़कियों ने तुमसे इस तरह से रंग लगवा लिया है, लेकिन यकीन इस लिए कर रही हूं क्योंकि जानती हूं कि तुम्हारा जादू उन पर चल गया होगा। भगवान के लिए वैभव ये सब छोड़़ दो। ये सब अच्छी चीज़ें नहीं हैं। इससे हमारे खानदान का और ख़ुद तुम्हारा भी नाम बदनाम होता है।"

"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"कोशिश करुंगा कि आगे से ऐसा न करूं। ख़ैर अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं आपके लिए खाना ले कर आता हूं।"
"अरे! अभी तुम भी तो मुझे रंग लगाओगे।" भाभी ने जैसे मुझे याद दिलाते हुए कहा____"और हां अपने तरीके से मुझे रंग लगाने का सोचना भी मत वरना डंडे से पिटाई करुँगी तुम्हारी। अब चलो जल्दी से रंग लगाओ, उसके बाद ही नहाने जाऊंगी।"

भाभी की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर कागज़ से रंग ले कर मैंने उसमे थोड़ा पानी मिलाया और फिर दोनों हाथों में अच्छे से मलने के बाद मैं आगे बढ़ा। भाभी के सुन्दर चेहरे पर रंग लगाने का सोच कर ही सहसा मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी। भाभी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहीं थी। मैंने भाभी के चेहरे की तरफ अपने हाथ बढ़ाए और फिर हल्के हाथों से उनके बेहद ही कोमल गालों पर रंग लगाने लगा। भाभी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मुझ पर ही गड़ी हुईं थी। उनको रंग लगाते लगाते एकदम से मेरा जी चाहा कि मैं उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों को झुक कर चूम लूं। अपने ज़हन में आए इस ख़याल से मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं किन्तु एकदम से मुझे ख़याल आया कि ये मैं क्या सोच रहा हूं?

मैं एक झटके से भाभी से दूर हुआ। भाभी मुझे अचानक से इस तरह दूर होते देख चौंकी और हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? तुम एकदम से पीछे क्यों हट गए?"
"माफ़ करना भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे? मैं जब भी आपके क़रीब होता हूं तो मैं आपकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।"

ये सब कहते कहते मैं एकदम से हताश सा हो गया था और इससे पहले कि वो मुझसे कुछ कहतीं मैं पलटा और तेज़ी से कमरे से निकल गया। मेरे पीछे भाभी अपनी जगह पर किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में खड़ी रह गईं थी।

भाभी के कमरे से बाहर आ कर मैं सीधा अपने कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में आँधिया सी चल रहीं थी। मेरा दिल एकदम बेचैनी से भर गया था। भाभी से कही हुई अपनी ही बातें सोच सोच कर मैं अंदर ही अंदर एक आग में जलने लगा था। अभी तक तो ये था कि भाभी को मेरे अंदर की इन बातों का पता नहीं था इस लिए मुझे ज़्यादा चिंता नहीं होती थी किन्तु अब तो उन्हें सब पता चल गया था और अभी तो मैं साफ़ शब्दों में उनसे कह कर ही आया था कि मैं उनकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मेरी बातें सुन कर यकीनन वो मेरे बारे में ग़लत ही सोचने लगी होंगी और ये भी ग़लत नहीं कि मेरी बातें सुन कर उन्हें मुझ पर बेहद गुस्सा भी आया होगा। मैं ऐसी ही बातों से तो हमेशा डरता था और यही वजह थी कि मैं हवेली में रुकता नहीं था। मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता था कि इस हवेली की लक्ष्मी सामान बहू अपने देवर की हवस का शिकार हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। मेरी सोच और मेरे मन पर मेरा कोई अख़्तियार नहीं था। अपने सामने मैंने हज़ारों बार यही सोचा था कि अपनी देवी सामान भाभी के बारे में ग़लत नहीं सोचूंगा मगर उनके सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मैं किसी सम्मोहन की तरह उनकी सुंदरता के मोह जाल में फंस जाता था। ये तो शुक्र था कि ऐसी स्थिति में हर बार मैंने खुद को सम्हाल लिया था।

बिस्तर पर लेटा हुआ मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था और जब मुझे किसी भी तरह से चैन न आया तो मैं उठा और कमरे से बाहर चला गया। नीचे आया तो देखा अभी भी आँगन में औरतों की भीड़ थी। हलांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं थी किन्तु चहल पहल अभी भी ज़्यादा ही थी। मैं बिना किसी की तरफ देखे सीधा गुसलखाने में घुस गया और ठंडे पानी से नहाना शुरू कर दिया। काफी देर तक मैं नहाता रहा और फिर सारे गीले कपड़े उतार कर मैंने एक तौलिया लपेट लिया।

गुसलखाने से निकल कर मैं फिर ऊपर अपने कमरे में आया और कपड़े पहन कर फिर से निकल गया। इस बार मेरे मन में हवेली से बाहर जाने का ख़याल था। हवेली से बाहर आया तो देखा बड़े से मैदान में अभी भी काफी लोगों की भीड़ थी और एक तरफ निचली जाति वाले फाग गाने में मस्त थे। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने गर्दन घुमा कर देखा। मेरे पीछे तरफ जगताप चाचा जी खड़े नज़र आए।

"होली मुबारक हो वैभव बेटे।" चाचा जी ने बड़े प्यार से कहा और थाली से अबीर ले कर मेरे माथे पर लगा दिया। मैंने झुक कर उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

"जाओ अपने पिता जी से भी आशीर्वाद ले लो।" चाचा जी ने कहा____"आज के दिन अपने मन में किसी भी प्रकार का मनमुटाव मत रखो। सबसे ख़ुशी ख़ुशी मिलो। जब तक किसी से मिलोगे नहीं तक लोगों के बारे में सही तरह से जानोगे कैसे? अभी तक तुमने अपनी नज़र से दुनियां और दुनियां वालों को देखा है, कभी इस दुनियां को दुनियां वालों की नज़र से भी देखो। हमें पूरा यकीन है कि तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उनके हाथ से थाली ले कर मंच पर चढ़ गया। मंच में सिंघासन पर दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मुझे मंच पर चढ़ता देख उन्होंने मेरी तरफ देखा। उनके अगल बगल शाहूकार मणिशंकर और हरिशंकर बैठे हुए थे, जो अब मेरी तरफ ही देखने लगे थे। यकीनन इस वक़्त मुझे मंच पर आया देख उन दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं होंगी। ख़ैर थाली लिए मैं पिता जी के पास पहुंचा।

"होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं पिता जी।" मैंने बड़े ही सम्मान भाव से कहा और चुटकी में अबीर ले कर उनके माथे पर लगा दिया। मेरी बात सुन कर उन्होंने पहले थाली से चुटकी में अबीर लिया और मेरे माथे पर लगाते हुए बोले___"तुम्हें भी होली का ये पर्व मुबारक हो। ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे और सद्बुद्धि दे।"

अगल बगल बैठे मणिशंकर और हरिशंकर हमारी तरफ ही देख रहे थे और इस वक़्त वो दोनों एकदम शांत ही थे। हलांकि उनकी आंखें हैरत से फटी पड़ी थीं। ख़ैर पिता जी की बात सुन कर मैं झुका और उनके पैरों में अपना सिर रख दिया। ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मैंने उनके पैरों में इस तरह से अपना सिर रख दिया था। मैं खुद नहीं जानता था कि मैंने ऐसा क्यों किया था, बल्कि ये तो जैसे अपने आप ही हो गया था मुझसे। उधर पिता जी ने जब देखा कि मैंने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया है तो उन्होंने मुझे बाजू से पकड़ कर उठाया और कहा____"आयुष्मान भव।"

मैंने देखा इस वक़्त दादा ठाकुर के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक उभर आई थी। कदाचित इस लिए कि मैंने सबके सामने वो किया था जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ख़ैर पिता जी के बाद मैंने मणिशंकर को भी अबीर लगाते हुए होली की मुबारकबाद दी और जब उसके पैरों को छूने लगा तो उसने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और फिर हड़बड़ाए हुए भाव से बोला____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर और हां आपको भी होली का ये त्यौहार मुबारक हो।"

मणिशंकर के बाद मैंने हरिशंकर को भी उसके जैसे ही अबीर लगाया और उसे होली की मुबारकबाद दी तो वो भी अपने बड़े भाई की तरह ही हड़बड़ा गया था। दोनों भाई मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर एकदम से चकित थे और मैं उन्हें चकित ही तो करना चाहता था। ख़ैर उसके बाद मैं पलटा तो देखा मंच के सामने काफी लोगों की नज़रें मुझ पर ही जमी हुई थीं। उन सबकी आँखों में हैरानी के भाव थे।

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" मंच से उतर कर जब मैं आया तो जगताप चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि हम सब भी बहुत खुश हो गए है। ये ऐसी चीज़ें हैं बेटे जो दुश्मन के दिल में भी अपने लिए ख़ास जगह बना देती हैं। हमें उम्मीद है कि हमारा सबसे लाडला भतीजा अब एक अच्छा इंसान बन कर दिखाएगा। हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अच्छे संस्कारों के साथ अच्छे अच्छे काम करते रहो। अब जाओ और अपने बड़े भैया का भी आशीर्वाद ले लो।"

जगताप चाचा जी के कहने पर मैं थाली ले कर उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ बड़े भैया साहूकारों के लड़कों के पास भांग के हल्के नशे में झूमते हुए बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे आया देख साहूकारों के लड़के एकदम से पीछे हट गए। बड़े भैया की नज़र मुझ पर पड़ी तो उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए। उनके पास ही खड़े विभोर और अजीत भी थोड़ा सहम कर पीछे हट गए थे। मैंने थाली से चुटकी में अबीर लिया और बड़े भैया के माथे पर लगाते हुए उन्हें होली की मुबारकबाद दी और फिर झुक कर उनके पैर छुए।

"ये...ये क्या कर रहा है तू?" बड़े भैया भांग के हल्के शुरूर में थे और जब उन्होंने मुझे अपना पैर छूटे देखा तो वो एकदम से बौखलाए हुए लहजे में बोल पड़े थे।
"आपके पैर छू कर।" मैंने बड़े ही आदर भाव से कहा____"आपका आशीर्वाद ले रहा हूं बड़े भैया। क्या अपने इस नालायक भाई को आशीर्वाद नहीं देंगे?"

मेरी बात सुन कर बड़े भैया ग़ौर से मेरी तरफ देखने लगे। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में ये सोच कर एक दर्द सा उठने लगा था कि कुल गुरु ने भैया के बारे में ये भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। अभी मैं गुरु जी की भविष्यवाणी के बारे में सोचते हुए उन्हें देख ही रहा था कि उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया।

"वैभाव, मेरा भाई।" भैया ने मुझे गले से लगाए हुए कांपती हुई आवाज़ में कहा____"तुझे आशीर्वाद में ये भी नहीं कह सकता कि तुझे मेरी उम्र लग जाए। बस यही कहूंगा कि संसार की हर ख़ुशी मिले तुझे।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" उनकी बात सुन कर मैं मन ही मन चौंका था। इसका मतलब उन्हें अपने बारे में पता था। उनके इस तरह कहने से मेरी आँखों में आंसू भर आए, और फिर मैंने दुखी भाव से कहा____"मैंने हमेशा आपको दुःख दिए हैं।"
"आज की इस ख़ुशी में वो सारे दुःख नेस्तनाबूत हो गए वैभव।" बड़े भैया ने मेरी पीठ को सहलाते हुए करुण भाव से कहा____"चल आ जा। आज की इस ख़ुशी में तू भी भांग पी ले। हम दोनो अब खूब धूम मचाएंगे।"

बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग किया। मैंने देखा उनकी आँखों में भी आंसू के कतरे थे जिन्हें उन्होंने अपनी रंगी हुई आस्तीन से पोंछ लिया। चारो तरफ खड़े लोग हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे। साहूकारों के लड़कों का हाल भी वैसा ही था। भैया ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उस जगह ले आए जहां मटकों में भांग का शरबत भरा हुआ रखा था। मटके के पास एक आदमी खड़ा हुआ था जिसे भैया ने इशारा किया तो उसने एक गिलास भांग का शरबत उन्हें दिया। उस गिलास को भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे देते हुए कहा ले वैभव इसे एक ही सांस में पी जा। मैंने मुस्कुराते हुए उनसे वो गिलास ले लिया। अभी मैं गिलास को अपने मुँह से लगाने ही चला था कि तभी वातावरण में चटाक्क्क्क की तेज़ आवाज़ गूँजी। हम सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुछ ही क़दम की दूरी पर जगताप चाचा जी अपने दोनों बेटों के पास खड़े थे। इस वक़्त उनके चेहरे पर गुस्सा नज़र आ रहा था।

"जिस लड़के ने किसी के सामने कभी झुकना पसंद नहीं किया।" चाचा जी गुस्से में दहाड़ते हुए विभोर से कह रहे थे____"आज उसने यहाँ सबके सामने झुक कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और तुम दोनों ने क्या किया? हम उस दिन से तुम दोनों का तमाशा देख रहे हैं जिस दिन वो चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था। तुम दोनों ने तो उससे ना तो कोई बात की और ना ही उसके पैर छुए। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने?"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वो अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए डांट रहे हैं कि उन दोनों ने मेरे पैर नहीं छुए थे। हलांकि उन दोनों की इस धृष्टता के लिए मैं खुद ही उन्हें सबक सिखाना चाहता था किन्तु मौका ही नहीं मिला था मुझे। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि ये काम ख़ुद जगताप चाचा जी ने कर दिया था वरना यदि मैं उन्हें कुछ कहता तो संभव था कि चाचा जी को इस बात पर बुरा लग जाता। हलांकि उनके बुरा लग जाने से मुझे घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ता किन्तु अब सोचता हूं कि जो हुआ अच्छा ही हुआ।

"जगताप क्या हो रहा है ये?" वातावरण में दादा ठाकुर की भारी आवाज़ गूँजी तो हम सबने उनकी तरफ देखा, जबकि उनकी ये बात सुन कर जगताप चाचा जी पलट कर उनसे बोले____"इन दोनों को इनके बुरे आचरण की सज़ा दे रहा हूं बड़े भैया। इन दोनों के अंदर इतनी भी तमीज़ नहीं है कि ये अपने बड़े भाई का सम्मान करें।"
"आज के दिन छोड़ दो उन्हें।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस बारे में अगले दिन बात होगी।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर चाचा जी ख़ामोश हो गए किन्तु पलट कर अपने दोनों बेटों की तरफ भयानक गुस्से से देखा ज़रुर। विभोर और अजीत डरे सहमे से गर्दन झुकाए खड़े थे। ख़ैर जगताप चाचा जी गुस्से में भन्नाए हुए चले गए। उनके जाने के बाद विभोर और अजीत मेरी तरफ आए।

"हमें माफ़ कर दीजिए भइया।" विभोर ने हाथ जोड़ कर और अपना सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा____"हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी है।"
"कोई बात नहीं।" मैंने सपाट भाव से कहा____"सबसे भूल होती है। ख़ैर जाओ और होली का आनंद लो।"

मेरे कहने पर वो दोनों चले गए। वातावरण में फिर से पहले जैसा शोर गूंजने लगा। इधर मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए भांग मिले शरबत को पीना शुरू कर दिया। गिलास खाली हुआ तो भैया ने एक गिलास और थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले____"एक और पी वैभव।"

"बस हो गया भइया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे पता है इसका नशा कैसा होता है। अगर ये चढ़ गई तो मेरे लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"अरे! इतने में नहीं चढ़ेगी वैभव।" भैया ने हंसते हुए कहा____"तुझे पता है इस गौरव ने तो चार गिलास पिया है और देख ले अभी तक होश में है।"

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


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Behtreen update mitr
Holi ke parv per Vaibhav ke sabhi ke sath jo manmutav the mit gaye bhai
Aakhir sahi maayno me ish tayohaar ko karyanvit kiya hai Vaibhav ne sabhi ko ikattha karne ke liye
 

odin chacha

Banned
1,415
3,467
143
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 23
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अब तक,,,,,

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


अब आगे,,,,,,



भाभी के कमरे में खड़ा मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि तभी कुसुम एकदम से किसी आंधी तूफ़ान की तरह कमरे में दाखिल हुई जिससे मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ से चल रहीं थी। मैं समझ गया कि ये भागते हुए यहाँ आई है किन्तु क्यों आई है ये मुझे समझ न आया। उसके चेहरे पर और कपड़ों पर रंग लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"आँधी तूफ़ान बनी कहां घूम रही है तू?"
"अपनी सहेलियों के चक्कर में।" उसने अपनी फूली हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"मैं ये तो भूल ही गई कि मैंने अपने सबसे अच्छे भैया को तो रंग लगाया ही नहीं। अभी नीचे भाभी ने जब मुझसे पूछा कि रंग कहां रखा है तो मैंने उन्हें बताया और फिर एकदम से मैंने सोचा कि भाभी रंग के बारे में मुझसे क्यों पूछ रही हैं? वो तो नाराज़ हो कर अपने कमरे में बंद थीं, तब मुझे याद आया और फिर मैंने सोचा कि हो सकता है आप भाभी कमरे में उनसे मिलने गए हों और आपने उनकी नाराज़गी दूर कर दी हो। उसके बाद उन्होंने सोचा होगा कि आज होली का त्यौहार है तो उन्हें अपने देवर को रंग लगाना चाहिए इस लिए वो मुझसे रंग के बारे में पूछ रहीं थी। बस फिर मुझे भी याद आया कि मैंने तो अभी तक आपको रंग लगाया ही नहीं। इस लिए भागते हुए चली आई यहां।"

"इतनी सी बात को कम शब्दों में नहीं बता सकती थी तू?" कुसुम की बात जब पूरी हुई तो मैंने आँखें दिखाते हुए उससे कहा____"इतना घुमा फिरा कर बताने की क्या ज़रूरत थी?"
"अब आप बाकी भाइयों की तरह मुझे डांतिए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इससे पहले कि भाभी यहाँ आ जाएं मुझे आपको रंग लगाना है और आप इसके लिए मना नहीं करेंगे।"

"अच्छा ठीक है।" मैंने कहा____"जल्दी से रंग लगा ले और जा यहाँ से।"
"जल्दी से जाने को क्यों कह रहे हैं मुझे?" कुसुम ने आँखें निकालते हुए कहा____"और हां ये बताइए कि मेरी सहेलियों को रंग लगाया कि नहीं आपने?"

"हां वो थोड़ा सा लगाया मैंने।" उसके एकदम से पूछने पर मैंने थोड़ा नरम भाव से कहा____"लेकिन फिर वो जल्दी ही कमरे से चली गईं थी।"
"ऐसा क्यों?" कुसुम ने सोचने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या उन्होंने आपको रंग नहीं लगाया?"

"मेरे चेहरे पर उन्हीं का लगाया हुआ तो रंग लगा है।" मैंने कहा____"तुझे दिख नहीं रहा क्या?"
"अरे! तो आप भड़क क्यों रहे हैं?" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बनाया____"वैसे मैं जा कर पूछूंगी उन दोनों से कि वो आपके कमरे से इतना जल्दी क्यों चली आईं थी?"

"अरे! इसमें पूछने वाली कौन सी बात है?" मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"उन्हें रंग लगाना था तो लगाया और फिर चली गईं। अब क्या वो सारा दिन मेरे कमरे में ही बैठी रहतीं?"
"हां ये भी सही कहा आपने।" कुसुम ने भोलेपन से कहा____"ख़ैर छोड़िए, मैं जल्दी से आपको रंग लगा देती हूं। आपको पता है अभी मेरी दो सहेलियां और आई हुईं हैं इस लिए मुझे उनके साथ भी रंग खेलना है।"

कुसुम की बात सुन कर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि मैं उससे जितना बतवाऊंगा वो उतना ही बात करती रहेगी। इस लिए मैंने उसे रंग लगाने को कहा तो उसने अपने हाथ में ली हुई पानी से भरी हुई गिलास को एक तरफ रखा और फिर दूसरे हाथ में लिए हुए रंग को उसने पहले वाले हाथ में थोड़ा सा डाला। रंग डालने के बाद उसने गिलास से थोड़ा पानी अपनी हथेली में डाला और फिर उसे दोनों हाथों में मलते हुए मेरी तरफ बढ़ी। मैं चुप चाप खड़ा उसी को देख रहा था। जैसे ही वो मेरे क़रीब आई तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। कुसुम अपने दोनों हाथों को बढ़ा कर मेरे दोनों गालों पर अपने कोमल कोमल हाथों से मुस्कुराते हुए रंग लगाने लगी।

हवेली में मैं किसी से भी रंग नहीं खेलता था किन्तु वो हर साल मुझे ऐसे ही रंग लगाती थी और खुश हो जाती थी। बाकी भाई तो उसे झिड़क देते थे इस लिए वो उनके पास रंग लगाने नहीं जाती थी। होली के दिन रंग खेलना उसे बहुत पसंद था तो मैं भी उसकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लेता था।

"हो गया?" उसने जब अच्छे से मेरे चेहरे पर रंग लगा लिया तो मैंने पूछा____"या अभी और लगाना है?"
"हां हो गया।" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"चलिए अब आप भी मुझे रंग लगाइए और अपना बदला पूरा कीजिए। मुझे अभी अपनी उन सहेलियों को भी रंग लगाना है। कहीं वो दोनों चली न जाएं।"

उसकी बात सुन कर मैंने उसी से रंग लिया और उसके ही जैसे रंग में थोड़ा पानी मिला कर रंग को अपनी हथेली में मला और फिर प्यार से उसके दोनों गालों पर लगा दिया। इस वक़्त वो एकदम से छोटी सी बच्ची बनी हुई थी और मुझे उस पर बेहद प्यार आ रहा था। उसे रंग लगाने के बाद मैंने उसके माथे को चूमा और फिर कहा____"सदा खुश रह और ऐसे ही हंसती मुस्कुराती रह।"

"आप भी हमेशा खुश रहिए।" उसकी आवाज़ सहसा भारी हो गई____"और अपनी इस बहन को ऐसे ही प्यार करते रहिए।"
"ये तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसके चेहरे को एक हाथ से सहलाते हुए कहा___"सारी दुनिया चाहे तुझसे रूठ जाए लेकिन तेरा ये भाई तुझसे कभी नहीं रूठेगा। ख़ैर अब जा और अपनी सहेलियों के साथ रंग खेल।"

मेरे कहने पर कुसुम मुस्कुराती हुई पलटी और फिर अपना रंग और पानी का गिलास ले कर कमरे से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि तभी भाभी कमरे में आ ग‌ईं। उनके एक हाथ में कागज़ में लिपटा हुआ रंग था और दूसरे हाथ में पानी का मग्घा।

"तो लाडली बहन आई थी अपने भाई को रंग लगाने?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा तो मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो जानती हैं उसे। जब आपने उससे रंग के बारे में पूछा तब उसे याद आया कि उसने अभी अपने भाई को रंग लगाया ही नहीं है। इस लिए भागते हुए आई थी यहां।"

"तुम्हें शायद इस बात का इल्म न हो।" भाभी ने थोड़े संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैंने महसूस किया है कि पिछले कुछ महीनों से वो किसी किसी दिन बहुत ही गंभीर दिखती है। मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है उसके इस तरह गंभीर दिखने की। मैंने एक दो बार उससे पूछा भी था किन्तु उसने कुछ बताया नहीं। बस यही कहा कि तबीयत ख़राब है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैंने कहा तो भाभी ने चौंक कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या मतलब? क्या तुम्हें भी इस बात का आभास हुआ है?"
"जिस दिन मैं हवेली आया था।" मैंने कहा____"उसी दिन उससे कुछ बातें की थी मैंने और उसी दिन उसने मुझसे कुछ ऐसी बातें की थी जिन बातों की कम से कम मैं उससे उम्मीद नहीं करता था।"

"ऐसी क्या बातें की थी उसने?" भाभी ने सोचने वाले भाव से पूछा____"और क्या तुमने उससे उस दिन पूछा नहीं था कुछ?"
"उसकी बातें दार्शनिकों वाली थी भाभी।" मैंने कहा____"लेकिन उसकी उन बातों में गहरी बात भी थी जिसने मुझे चौंका दिया था और जब मैंने उससे पूछा तो उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था। उसके जाने के बाद मैंने सोचा था कि उसकी बातों के बारे में अपने तरीके से पता करुंगा लेकिन ऐसा अवसर ही नहीं आया क्योंकि मैं एक बार फिर से गुस्सा हो कर हवेली से चला गया था।"

"इस बारे में तुम्हें ठंडे दिमाग़ से विचार करने की ज़रूरत है वैभव।" भाभी ने कहा____"तुम्हें समझना होगा कि आज कल परिस्थितियां कैसी हो गई हैं लेकिन तुम तो हमेशा गुस्से में ही रहते हो।"

"मेरा ये गुस्सा बेवजह नहीं है भाभी।" मैंने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"बल्कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है।"
"तुम्हारा गुस्सा बेवजह ही है वैभव।" भाभी ने ज़ोर देते हुए कहा____"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतनी बेरुखी से बात करते हो। मैं तो ये सोच कर चकित हो जाती हू कि तुम उनसे ऐसे लहजे में कैसे बात लेते होगे?"

"वैभव सिंह ऐसे ही जियाले का नाम है भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जो किसी से भी नहीं डरता और जिससे भी बात करता है बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर बात करता है। फिर भले ही उसके सामने दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"अभी एक थप्पड़ लगाऊंगी तो सारा जियालापन निकल आएगा तुम्हारा।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बड़े आए बेख़ौफ़ हो कर बात करने वाले। अगर इतने ही बड़े जियाले हो तो अब तक मुझसे दूर क्यों भागते थे?"

"वो...वो तो मैं।" मैंने अटकते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि भाभी ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा____"बस बस बताने की ज़रूरत नहीं है। ख़ैर अब बातों में वक़्त जाया न करवाओ और मुझे अपने देवर को रंग लगाने दो।"

"जी ठीक है भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा तो भाभी ने कागज़ से रंग निकालते हुए कहा____"वैसे इस कमरे में आने से पहले किसके साथ रंग खेल कर आए थे? उस वक़्त मेरे पूछने पर जब तुमने कुसुम का नाम लिया तो मैंने यही समझा था कि तुमने कुसुम के साथ रंग खेला था लेकिन अभी जब कुसुम यहाँ तुम्हें रंग लगाने आई तब समझ आया कि उस वक़्त तुम कुसुम के साथ नहीं बल्कि किसी और के साथ रंग खेल कर आए थे। मैं सही कह रही हूं न?"

"जी भाभी।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा____"पर मैं उस वक़्त आपको बताने ही वाला था लेकिन आपने ही मेरी बात काट दी थी।"
"अच्छा तो चलो अब बता दो।" भाभी ने हाथ में रंग लेने के बाद उसमे पानी मिलाते हुए कहा____"आख़िर किसके साथ रंग खेल कर आए थे?"

"जाने दीजिए न भाभी।" मैंने बात को टालने की गरज़ से कहा____"मैं किसके साथ रंग खेल कर आया था इस बात को जानने की क्या ज़रूरत है?"
"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" भाभी ने अपनी भौंहों को चढ़ाते हुए कहा____"बल्कि मेरा तो ये जानने का हक़ है कि मेरा देवर किसके साथ रंग खेल कर यहाँ आया था? वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है किन्तु मैं तुम्हारे मुँह से जानना चाहती हूं। अब जल्दी से बताओ भी, इतना भाव मत खाओ?"

"वो..मैं अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर में कुसुम भी वहां पहुंच गई थी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"कुसुम के साथ उसकी दो सहेलियां भी थीं। कुसुम ने मुझे बताया कि उसकी वो सहेलियां मुझे रंग लगाना चाहती हैं। कुसुम की बात सुन कर मैंने इसके लिए इंकार नहीं किया।"

"मुझे लग ही रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर हमारे देवर जी लड़की ज़ात से इतना प्रेम जो करते हैं।"
"ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"वो तो बस मैंने उनकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लिया है।"

"अच्छा जी।" भाभी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तुमने उनसे सिर्फ रंग लगवाया? उन्हें रंग नहीं लगाया??"
"वो तो मैंने भी लगाया भाभी।" मैंने इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए कहा तो भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वही तो, भला ऐसा कैसे हो सकता था कि दो सुन्दर लड़कियां हमारे देवर जी के पास उन्हें रंग लगाने आएं और ठाकुर वैभव सिंह उनसे रंग लगवाने के बाद खुद उन्हें भी रंग से सराबोर न करें? ख़ैर चलो अच्छी बात है, कम से कम तुम्हारी रंग खेलने की शुरुआत दो सुन्दर लड़कियों से तो हुई। एक हम ही थे जो कल से मुँह फुलाए यहाँ अपने कमरे में पड़े हुए थे और किसी ने हमारी ख़बर तक नहीं ली।"

भाभी की बातें सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि उन्हें बस देखता ही रहा। उधर भाभी ने रंग को अपने हाथों में अच्छी तरह मला और फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम्हारे चेहरे पर तो पहले से ही रंग लगा हुआ है वैभव, ऐसे में हमारा लगाया हुआ रंग भला कैसे चढ़ेगा?"

"आपका लगाया हुआ रंग तो सबसे ज़्यादा चढ़ेगा भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इसमें आपका ढेर सारा प्यार और स्नेह शामिल है। आपका लगाया हुआ रंग मेरे चेहरे पर ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर भी चढ़ जाएगा।"

"अगर ऐसी बात है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तो ये मेरे लिए सबसे अच्छी बात है वैभव। तुम्हारी इस बात में जो मर्म है वो ये जताता है कि तुम्हारे अंदर अपनी इस भाभी के प्रति इज्ज़त और सम्मान की भावना है और इस बात से मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है।"

ये कह कर भाभी ने बड़े प्यार से मेरे चेहरे पर हल्के हाथों से रंग लगाना शुरू कर दिया। मैं ख़ामोशी से उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को ही देखता जा रहा था। उनकी नज़रें मेरी नज़रों से ही मिली हुईं थी। मुझे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनकी गहरी आँखों में डूबने लगा हूं तो मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और उनकी आँखों से अपनी नज़रें हटा ली।

"मैंने कहा न कि आज के दिन हर ख़ता माफ़ है वैभव।" मुझे नज़रें हटाता देख भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए इस वक़्त अपनी भाभी से किसी भी बात के लिए झिझक या शर्म महसूस न करो। जैसे मैं बेझिझक हो कर अपने देवर को रंग लगा रही हूं वैसे ही तुम भी अपनी भाभी को रंग लगाना।"

"सोच लीजिए फिर।" मैंने फिर से उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"बाद में ये मत कहिएगा कि मैंने कुछ ग़लत कर दिया है।"
"अरे! इसमें ग़लत करने जैसी कौन सी बात है भला?" भाभी ने अपने दोनों हाथ मेरे चेहरे से हटाते हुए कहा____"तुम्हें रंग ही तो लगाना है तो इसमें ग़लत क्या हो जाएगा?"

"मेरे रंग लगाने का तरीका ज़रा अलग है भाभी।" मैंने धड़कते हुए दिल से कहा____"और मेरा वो तरीका आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।"
"अजीब बात है।" भाभी ने मानो उलझ गए भाव से कहा___"क्या रंग लगाने के भी अलग अलग तरीके होते हैं? मैं तो पहली बार सुन रही हूं ऐसा। ख़ैर तुम बताओ कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?"

"मेरा तरीका मत पूछिए भाभी।" मैंने बेचैन भाव से कहा___"अगर मैंने आपको अपने रंग लगाने का तरीका बताया तो आप मेरे बारे में ग़लत सोचने लगेंगी और हो सकता है कि आप मुझ पर गुस्सा भी हो जाएं।"

"तब तो मैं ज़रूर जानना चाहूंगी कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?" भाभी ने मानो ज़िद करते हुए कहा____"चलो अब बताओ मुझे और हां चिंता मत करो, मैं तुम पर गुस्सा नहीं करुंगी।"

"वो भाभी बात ये है कि।" कुछ देर भाभी की तरफ देखते रहने के बाद मैंने धड़कते दिल से कहा____"एक तो मैं रंग खेलता नहीं हूं और अगर किसी लड़की या औरत के साथ रंग खेलता हूं तो मैं अपने तरीके के अनुसार लड़की या औरत के बदन के हर हिस्से पर रंग लगता हूं।"

"क्या????" मेरी बात सुन कर भाभी बुरी तरह उछल पड़ीं, फिर हैरत से आँखें फाड़े बोलीं____"हे भगवान! तो तुम इस तरीके से रंग लगाते हो? तुम तो बड़े ख़राब हो। भला इस तरह कौन किसी को रंग लगाता है?"

"कोई और लगाता हो या न लगाता हो भाभी लेकिन मैं तो ऐसे ही रंग लगता हूं।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"अब जबकि मैंने आपको अपना तरीका बता ही दिया है तो आपको मैं ये भी बता देता हूं कि कुसुम की जिन सहेलियों ने मेरे कमरे में आ कर मुझे रंग लगाया था उनको मैंने अपने इसी तरीके से रंग लगाया है।"

"हे भगवान!" भाभी आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए बोलीं____"तुम तो सच में बहुत गंदे हो। पर उन्होंने तुमसे इस तरीके से रंग कैसे लगवा लिया? क्या उन्हें तुम पर गुस्सा नहीं आया?"

"ग़ुस्सा क्यों आएगा भाभी?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे कमरे में आई ही इसी मकसद से थीं वरना आप ख़ुद सोचिए कि कोई शरीफ लड़की किसी मर्द के कमरे में उसे रंग लगाने क्यों आएगी और अगर आएगी भी तो इस तरीके से रंग लगवाने पर राज़ी कैसे हो जाएगी?"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" भाभी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा___"इसका मतलब कुसुम की वो दोनों सहेलियां एक नंबर की चालू थीं। रुको मैं कुसुम से इस बारे में बात करुँगी और उसे समझाऊंगी कि ऐसी लड़कियों को अपनी सहेली न बनाए जिनका चरित्र इतना गिरा हुआ हो।"

"नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"आप कुसुम से इस बारे में कुछ मत कहना। क्योंकि ऐसे में वो समझ जाएगी कि आपको ये सब बातें मेरे द्वारा पता चली हैं और फिर वो मुझ पर ही नहीं बल्कि अपनी सहेलियों से भी गुस्सा हो जाएगी। आप इस बारे में उससे कुछ मत कहिएगा, मैं खुद ही कुसुम को अपने तरीके से समझा दूंगा।"

"ठीक है, अच्छे से समझा देना उसे।" भाभी ने चिंतित भाव से कहा____"ऐसी लड़कियों को सहेली बनाना उसके लिए उचित नहीं है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उन लड़कियों ने तुमसे इस तरह से रंग लगवा लिया है, लेकिन यकीन इस लिए कर रही हूं क्योंकि जानती हूं कि तुम्हारा जादू उन पर चल गया होगा। भगवान के लिए वैभव ये सब छोड़़ दो। ये सब अच्छी चीज़ें नहीं हैं। इससे हमारे खानदान का और ख़ुद तुम्हारा भी नाम बदनाम होता है।"

"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"कोशिश करुंगा कि आगे से ऐसा न करूं। ख़ैर अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं आपके लिए खाना ले कर आता हूं।"
"अरे! अभी तुम भी तो मुझे रंग लगाओगे।" भाभी ने जैसे मुझे याद दिलाते हुए कहा____"और हां अपने तरीके से मुझे रंग लगाने का सोचना भी मत वरना डंडे से पिटाई करुँगी तुम्हारी। अब चलो जल्दी से रंग लगाओ, उसके बाद ही नहाने जाऊंगी।"

भाभी की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर कागज़ से रंग ले कर मैंने उसमे थोड़ा पानी मिलाया और फिर दोनों हाथों में अच्छे से मलने के बाद मैं आगे बढ़ा। भाभी के सुन्दर चेहरे पर रंग लगाने का सोच कर ही सहसा मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी। भाभी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहीं थी। मैंने भाभी के चेहरे की तरफ अपने हाथ बढ़ाए और फिर हल्के हाथों से उनके बेहद ही कोमल गालों पर रंग लगाने लगा। भाभी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मुझ पर ही गड़ी हुईं थी। उनको रंग लगाते लगाते एकदम से मेरा जी चाहा कि मैं उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों को झुक कर चूम लूं। अपने ज़हन में आए इस ख़याल से मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं किन्तु एकदम से मुझे ख़याल आया कि ये मैं क्या सोच रहा हूं?

मैं एक झटके से भाभी से दूर हुआ। भाभी मुझे अचानक से इस तरह दूर होते देख चौंकी और हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? तुम एकदम से पीछे क्यों हट गए?"
"माफ़ करना भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे? मैं जब भी आपके क़रीब होता हूं तो मैं आपकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।"

ये सब कहते कहते मैं एकदम से हताश सा हो गया था और इससे पहले कि वो मुझसे कुछ कहतीं मैं पलटा और तेज़ी से कमरे से निकल गया। मेरे पीछे भाभी अपनी जगह पर किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में खड़ी रह गईं थी।

भाभी के कमरे से बाहर आ कर मैं सीधा अपने कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में आँधिया सी चल रहीं थी। मेरा दिल एकदम बेचैनी से भर गया था। भाभी से कही हुई अपनी ही बातें सोच सोच कर मैं अंदर ही अंदर एक आग में जलने लगा था। अभी तक तो ये था कि भाभी को मेरे अंदर की इन बातों का पता नहीं था इस लिए मुझे ज़्यादा चिंता नहीं होती थी किन्तु अब तो उन्हें सब पता चल गया था और अभी तो मैं साफ़ शब्दों में उनसे कह कर ही आया था कि मैं उनकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मेरी बातें सुन कर यकीनन वो मेरे बारे में ग़लत ही सोचने लगी होंगी और ये भी ग़लत नहीं कि मेरी बातें सुन कर उन्हें मुझ पर बेहद गुस्सा भी आया होगा। मैं ऐसी ही बातों से तो हमेशा डरता था और यही वजह थी कि मैं हवेली में रुकता नहीं था। मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता था कि इस हवेली की लक्ष्मी सामान बहू अपने देवर की हवस का शिकार हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। मेरी सोच और मेरे मन पर मेरा कोई अख़्तियार नहीं था। अपने सामने मैंने हज़ारों बार यही सोचा था कि अपनी देवी सामान भाभी के बारे में ग़लत नहीं सोचूंगा मगर उनके सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मैं किसी सम्मोहन की तरह उनकी सुंदरता के मोह जाल में फंस जाता था। ये तो शुक्र था कि ऐसी स्थिति में हर बार मैंने खुद को सम्हाल लिया था।

बिस्तर पर लेटा हुआ मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था और जब मुझे किसी भी तरह से चैन न आया तो मैं उठा और कमरे से बाहर चला गया। नीचे आया तो देखा अभी भी आँगन में औरतों की भीड़ थी। हलांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं थी किन्तु चहल पहल अभी भी ज़्यादा ही थी। मैं बिना किसी की तरफ देखे सीधा गुसलखाने में घुस गया और ठंडे पानी से नहाना शुरू कर दिया। काफी देर तक मैं नहाता रहा और फिर सारे गीले कपड़े उतार कर मैंने एक तौलिया लपेट लिया।

गुसलखाने से निकल कर मैं फिर ऊपर अपने कमरे में आया और कपड़े पहन कर फिर से निकल गया। इस बार मेरे मन में हवेली से बाहर जाने का ख़याल था। हवेली से बाहर आया तो देखा बड़े से मैदान में अभी भी काफी लोगों की भीड़ थी और एक तरफ निचली जाति वाले फाग गाने में मस्त थे। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने गर्दन घुमा कर देखा। मेरे पीछे तरफ जगताप चाचा जी खड़े नज़र आए।

"होली मुबारक हो वैभव बेटे।" चाचा जी ने बड़े प्यार से कहा और थाली से अबीर ले कर मेरे माथे पर लगा दिया। मैंने झुक कर उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

"जाओ अपने पिता जी से भी आशीर्वाद ले लो।" चाचा जी ने कहा____"आज के दिन अपने मन में किसी भी प्रकार का मनमुटाव मत रखो। सबसे ख़ुशी ख़ुशी मिलो। जब तक किसी से मिलोगे नहीं तक लोगों के बारे में सही तरह से जानोगे कैसे? अभी तक तुमने अपनी नज़र से दुनियां और दुनियां वालों को देखा है, कभी इस दुनियां को दुनियां वालों की नज़र से भी देखो। हमें पूरा यकीन है कि तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उनके हाथ से थाली ले कर मंच पर चढ़ गया। मंच में सिंघासन पर दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मुझे मंच पर चढ़ता देख उन्होंने मेरी तरफ देखा। उनके अगल बगल शाहूकार मणिशंकर और हरिशंकर बैठे हुए थे, जो अब मेरी तरफ ही देखने लगे थे। यकीनन इस वक़्त मुझे मंच पर आया देख उन दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं होंगी। ख़ैर थाली लिए मैं पिता जी के पास पहुंचा।

"होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं पिता जी।" मैंने बड़े ही सम्मान भाव से कहा और चुटकी में अबीर ले कर उनके माथे पर लगा दिया। मेरी बात सुन कर उन्होंने पहले थाली से चुटकी में अबीर लिया और मेरे माथे पर लगाते हुए बोले___"तुम्हें भी होली का ये पर्व मुबारक हो। ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे और सद्बुद्धि दे।"

अगल बगल बैठे मणिशंकर और हरिशंकर हमारी तरफ ही देख रहे थे और इस वक़्त वो दोनों एकदम शांत ही थे। हलांकि उनकी आंखें हैरत से फटी पड़ी थीं। ख़ैर पिता जी की बात सुन कर मैं झुका और उनके पैरों में अपना सिर रख दिया। ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मैंने उनके पैरों में इस तरह से अपना सिर रख दिया था। मैं खुद नहीं जानता था कि मैंने ऐसा क्यों किया था, बल्कि ये तो जैसे अपने आप ही हो गया था मुझसे। उधर पिता जी ने जब देखा कि मैंने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया है तो उन्होंने मुझे बाजू से पकड़ कर उठाया और कहा____"आयुष्मान भव।"

मैंने देखा इस वक़्त दादा ठाकुर के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक उभर आई थी। कदाचित इस लिए कि मैंने सबके सामने वो किया था जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ख़ैर पिता जी के बाद मैंने मणिशंकर को भी अबीर लगाते हुए होली की मुबारकबाद दी और जब उसके पैरों को छूने लगा तो उसने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और फिर हड़बड़ाए हुए भाव से बोला____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर और हां आपको भी होली का ये त्यौहार मुबारक हो।"

मणिशंकर के बाद मैंने हरिशंकर को भी उसके जैसे ही अबीर लगाया और उसे होली की मुबारकबाद दी तो वो भी अपने बड़े भाई की तरह ही हड़बड़ा गया था। दोनों भाई मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर एकदम से चकित थे और मैं उन्हें चकित ही तो करना चाहता था। ख़ैर उसके बाद मैं पलटा तो देखा मंच के सामने काफी लोगों की नज़रें मुझ पर ही जमी हुई थीं। उन सबकी आँखों में हैरानी के भाव थे।

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" मंच से उतर कर जब मैं आया तो जगताप चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि हम सब भी बहुत खुश हो गए है। ये ऐसी चीज़ें हैं बेटे जो दुश्मन के दिल में भी अपने लिए ख़ास जगह बना देती हैं। हमें उम्मीद है कि हमारा सबसे लाडला भतीजा अब एक अच्छा इंसान बन कर दिखाएगा। हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अच्छे संस्कारों के साथ अच्छे अच्छे काम करते रहो। अब जाओ और अपने बड़े भैया का भी आशीर्वाद ले लो।"

जगताप चाचा जी के कहने पर मैं थाली ले कर उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ बड़े भैया साहूकारों के लड़कों के पास भांग के हल्के नशे में झूमते हुए बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे आया देख साहूकारों के लड़के एकदम से पीछे हट गए। बड़े भैया की नज़र मुझ पर पड़ी तो उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए। उनके पास ही खड़े विभोर और अजीत भी थोड़ा सहम कर पीछे हट गए थे। मैंने थाली से चुटकी में अबीर लिया और बड़े भैया के माथे पर लगाते हुए उन्हें होली की मुबारकबाद दी और फिर झुक कर उनके पैर छुए।

"ये...ये क्या कर रहा है तू?" बड़े भैया भांग के हल्के शुरूर में थे और जब उन्होंने मुझे अपना पैर छूटे देखा तो वो एकदम से बौखलाए हुए लहजे में बोल पड़े थे।
"आपके पैर छू कर।" मैंने बड़े ही आदर भाव से कहा____"आपका आशीर्वाद ले रहा हूं बड़े भैया। क्या अपने इस नालायक भाई को आशीर्वाद नहीं देंगे?"

मेरी बात सुन कर बड़े भैया ग़ौर से मेरी तरफ देखने लगे। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में ये सोच कर एक दर्द सा उठने लगा था कि कुल गुरु ने भैया के बारे में ये भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। अभी मैं गुरु जी की भविष्यवाणी के बारे में सोचते हुए उन्हें देख ही रहा था कि उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया।

"वैभाव, मेरा भाई।" भैया ने मुझे गले से लगाए हुए कांपती हुई आवाज़ में कहा____"तुझे आशीर्वाद में ये भी नहीं कह सकता कि तुझे मेरी उम्र लग जाए। बस यही कहूंगा कि संसार की हर ख़ुशी मिले तुझे।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" उनकी बात सुन कर मैं मन ही मन चौंका था। इसका मतलब उन्हें अपने बारे में पता था। उनके इस तरह कहने से मेरी आँखों में आंसू भर आए, और फिर मैंने दुखी भाव से कहा____"मैंने हमेशा आपको दुःख दिए हैं।"
"आज की इस ख़ुशी में वो सारे दुःख नेस्तनाबूत हो गए वैभव।" बड़े भैया ने मेरी पीठ को सहलाते हुए करुण भाव से कहा____"चल आ जा। आज की इस ख़ुशी में तू भी भांग पी ले। हम दोनो अब खूब धूम मचाएंगे।"

बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग किया। मैंने देखा उनकी आँखों में भी आंसू के कतरे थे जिन्हें उन्होंने अपनी रंगी हुई आस्तीन से पोंछ लिया। चारो तरफ खड़े लोग हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे। साहूकारों के लड़कों का हाल भी वैसा ही था। भैया ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उस जगह ले आए जहां मटकों में भांग का शरबत भरा हुआ रखा था। मटके के पास एक आदमी खड़ा हुआ था जिसे भैया ने इशारा किया तो उसने एक गिलास भांग का शरबत उन्हें दिया। उस गिलास को भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे देते हुए कहा ले वैभव इसे एक ही सांस में पी जा। मैंने मुस्कुराते हुए उनसे वो गिलास ले लिया। अभी मैं गिलास को अपने मुँह से लगाने ही चला था कि तभी वातावरण में चटाक्क्क्क की तेज़ आवाज़ गूँजी। हम सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुछ ही क़दम की दूरी पर जगताप चाचा जी अपने दोनों बेटों के पास खड़े थे। इस वक़्त उनके चेहरे पर गुस्सा नज़र आ रहा था।

"जिस लड़के ने किसी के सामने कभी झुकना पसंद नहीं किया।" चाचा जी गुस्से में दहाड़ते हुए विभोर से कह रहे थे____"आज उसने यहाँ सबके सामने झुक कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और तुम दोनों ने क्या किया? हम उस दिन से तुम दोनों का तमाशा देख रहे हैं जिस दिन वो चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था। तुम दोनों ने तो उससे ना तो कोई बात की और ना ही उसके पैर छुए। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने?"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वो अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए डांट रहे हैं कि उन दोनों ने मेरे पैर नहीं छुए थे। हलांकि उन दोनों की इस धृष्टता के लिए मैं खुद ही उन्हें सबक सिखाना चाहता था किन्तु मौका ही नहीं मिला था मुझे। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि ये काम ख़ुद जगताप चाचा जी ने कर दिया था वरना यदि मैं उन्हें कुछ कहता तो संभव था कि चाचा जी को इस बात पर बुरा लग जाता। हलांकि उनके बुरा लग जाने से मुझे घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ता किन्तु अब सोचता हूं कि जो हुआ अच्छा ही हुआ।

"जगताप क्या हो रहा है ये?" वातावरण में दादा ठाकुर की भारी आवाज़ गूँजी तो हम सबने उनकी तरफ देखा, जबकि उनकी ये बात सुन कर जगताप चाचा जी पलट कर उनसे बोले____"इन दोनों को इनके बुरे आचरण की सज़ा दे रहा हूं बड़े भैया। इन दोनों के अंदर इतनी भी तमीज़ नहीं है कि ये अपने बड़े भाई का सम्मान करें।"
"आज के दिन छोड़ दो उन्हें।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस बारे में अगले दिन बात होगी।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर चाचा जी ख़ामोश हो गए किन्तु पलट कर अपने दोनों बेटों की तरफ भयानक गुस्से से देखा ज़रुर। विभोर और अजीत डरे सहमे से गर्दन झुकाए खड़े थे। ख़ैर जगताप चाचा जी गुस्से में भन्नाए हुए चले गए। उनके जाने के बाद विभोर और अजीत मेरी तरफ आए।

"हमें माफ़ कर दीजिए भइया।" विभोर ने हाथ जोड़ कर और अपना सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा____"हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी है।"
"कोई बात नहीं।" मैंने सपाट भाव से कहा____"सबसे भूल होती है। ख़ैर जाओ और होली का आनंद लो।"

मेरे कहने पर वो दोनों चले गए। वातावरण में फिर से पहले जैसा शोर गूंजने लगा। इधर मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए भांग मिले शरबत को पीना शुरू कर दिया। गिलास खाली हुआ तो भैया ने एक गिलास और थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले____"एक और पी वैभव।"

"बस हो गया भइया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे पता है इसका नशा कैसा होता है। अगर ये चढ़ गई तो मेरे लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"अरे! इतने में नहीं चढ़ेगी वैभव।" भैया ने हंसते हुए कहा____"तुझे पता है इस गौरव ने तो चार गिलास पिया है और देख ले अभी तक होश में है।"

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


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होली के त्योहार में बैभव का ये बदला हुआ रूप देख कर जैसे गाँव के सभी लोग तथा साहूकर्रों के मुंह खुला रहा गया वैसे ही कुछ हाल हम रीडर्स का भी है,क्यूँ के जो व्यक्ति अपने सामने दूसरों को कुछ नहीं समझता था वो भारी महफ़िल में अपने पिता ,चाचा और बड़े भाई से जैसे मिला कहीं न कहीं ये एक उल्लेखनीय दृश्य रहा इस कहानी में,अपडेट के सुरुआत में हुई बैभव और कुसुम के साथ हुई बातचीत और एक दूसरे को प्यार से रंग लगाना उनके बीच भाई बहन का निश्चल प्रेम दर्शाता है,मगर फिर बीच में कुसुम के आँख नम हो जाना क्या सिर्फ एक दूसरे के प्यार का एक तात्क्षणिक भावना ब्यक्त करने का था या फिर कुछ और है क्यूँ की अगले भाग के भाभी से बातचीत में हमे ये पता चलता है की सिर्फ बैभव को ही नहीं भाभी को भी कुसुम के आए दिन बातचीत में परिवर्तन दिख रहा है,फिर अंतिम भाग में रुपचन्द का भरे महफ़िल से अन्तर्धान रहना भी कहीं इसके साथ कड़ी न जोड़ती हो क्यूँ की बैभव ने एक बार अनुराधा के मामले में रुपचन्द से पटकनी खा चुका है,और कहीं ये भी इस बार ऐसे कोई फिराक में ना हो ये ना तो बैभव या फिर हमारे गले से इतने जल्दी गले से उतरेगा ये बात.. फिर देखते हैं अगले भाग में क्या होता है
 
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 23
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अब तक,,,,,

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


अब आगे,,,,,,



भाभी के कमरे में खड़ा मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि तभी कुसुम एकदम से किसी आंधी तूफ़ान की तरह कमरे में दाखिल हुई जिससे मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ से चल रहीं थी। मैं समझ गया कि ये भागते हुए यहाँ आई है किन्तु क्यों आई है ये मुझे समझ न आया। उसके चेहरे पर और कपड़ों पर रंग लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"आँधी तूफ़ान बनी कहां घूम रही है तू?"
"अपनी सहेलियों के चक्कर में।" उसने अपनी फूली हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"मैं ये तो भूल ही गई कि मैंने अपने सबसे अच्छे भैया को तो रंग लगाया ही नहीं। अभी नीचे भाभी ने जब मुझसे पूछा कि रंग कहां रखा है तो मैंने उन्हें बताया और फिर एकदम से मैंने सोचा कि भाभी रंग के बारे में मुझसे क्यों पूछ रही हैं? वो तो नाराज़ हो कर अपने कमरे में बंद थीं, तब मुझे याद आया और फिर मैंने सोचा कि हो सकता है आप भाभी कमरे में उनसे मिलने गए हों और आपने उनकी नाराज़गी दूर कर दी हो। उसके बाद उन्होंने सोचा होगा कि आज होली का त्यौहार है तो उन्हें अपने देवर को रंग लगाना चाहिए इस लिए वो मुझसे रंग के बारे में पूछ रहीं थी। बस फिर मुझे भी याद आया कि मैंने तो अभी तक आपको रंग लगाया ही नहीं। इस लिए भागते हुए चली आई यहां।"

"इतनी सी बात को कम शब्दों में नहीं बता सकती थी तू?" कुसुम की बात जब पूरी हुई तो मैंने आँखें दिखाते हुए उससे कहा____"इतना घुमा फिरा कर बताने की क्या ज़रूरत थी?"
"अब आप बाकी भाइयों की तरह मुझे डांतिए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इससे पहले कि भाभी यहाँ आ जाएं मुझे आपको रंग लगाना है और आप इसके लिए मना नहीं करेंगे।"

"अच्छा ठीक है।" मैंने कहा____"जल्दी से रंग लगा ले और जा यहाँ से।"
"जल्दी से जाने को क्यों कह रहे हैं मुझे?" कुसुम ने आँखें निकालते हुए कहा____"और हां ये बताइए कि मेरी सहेलियों को रंग लगाया कि नहीं आपने?"

"हां वो थोड़ा सा लगाया मैंने।" उसके एकदम से पूछने पर मैंने थोड़ा नरम भाव से कहा____"लेकिन फिर वो जल्दी ही कमरे से चली गईं थी।"
"ऐसा क्यों?" कुसुम ने सोचने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या उन्होंने आपको रंग नहीं लगाया?"

"मेरे चेहरे पर उन्हीं का लगाया हुआ तो रंग लगा है।" मैंने कहा____"तुझे दिख नहीं रहा क्या?"
"अरे! तो आप भड़क क्यों रहे हैं?" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बनाया____"वैसे मैं जा कर पूछूंगी उन दोनों से कि वो आपके कमरे से इतना जल्दी क्यों चली आईं थी?"

"अरे! इसमें पूछने वाली कौन सी बात है?" मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"उन्हें रंग लगाना था तो लगाया और फिर चली गईं। अब क्या वो सारा दिन मेरे कमरे में ही बैठी रहतीं?"
"हां ये भी सही कहा आपने।" कुसुम ने भोलेपन से कहा____"ख़ैर छोड़िए, मैं जल्दी से आपको रंग लगा देती हूं। आपको पता है अभी मेरी दो सहेलियां और आई हुईं हैं इस लिए मुझे उनके साथ भी रंग खेलना है।"

कुसुम की बात सुन कर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि मैं उससे जितना बतवाऊंगा वो उतना ही बात करती रहेगी। इस लिए मैंने उसे रंग लगाने को कहा तो उसने अपने हाथ में ली हुई पानी से भरी हुई गिलास को एक तरफ रखा और फिर दूसरे हाथ में लिए हुए रंग को उसने पहले वाले हाथ में थोड़ा सा डाला। रंग डालने के बाद उसने गिलास से थोड़ा पानी अपनी हथेली में डाला और फिर उसे दोनों हाथों में मलते हुए मेरी तरफ बढ़ी। मैं चुप चाप खड़ा उसी को देख रहा था। जैसे ही वो मेरे क़रीब आई तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। कुसुम अपने दोनों हाथों को बढ़ा कर मेरे दोनों गालों पर अपने कोमल कोमल हाथों से मुस्कुराते हुए रंग लगाने लगी।

हवेली में मैं किसी से भी रंग नहीं खेलता था किन्तु वो हर साल मुझे ऐसे ही रंग लगाती थी और खुश हो जाती थी। बाकी भाई तो उसे झिड़क देते थे इस लिए वो उनके पास रंग लगाने नहीं जाती थी। होली के दिन रंग खेलना उसे बहुत पसंद था तो मैं भी उसकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लेता था।

"हो गया?" उसने जब अच्छे से मेरे चेहरे पर रंग लगा लिया तो मैंने पूछा____"या अभी और लगाना है?"
"हां हो गया।" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"चलिए अब आप भी मुझे रंग लगाइए और अपना बदला पूरा कीजिए। मुझे अभी अपनी उन सहेलियों को भी रंग लगाना है। कहीं वो दोनों चली न जाएं।"

उसकी बात सुन कर मैंने उसी से रंग लिया और उसके ही जैसे रंग में थोड़ा पानी मिला कर रंग को अपनी हथेली में मला और फिर प्यार से उसके दोनों गालों पर लगा दिया। इस वक़्त वो एकदम से छोटी सी बच्ची बनी हुई थी और मुझे उस पर बेहद प्यार आ रहा था। उसे रंग लगाने के बाद मैंने उसके माथे को चूमा और फिर कहा____"सदा खुश रह और ऐसे ही हंसती मुस्कुराती रह।"

"आप भी हमेशा खुश रहिए।" उसकी आवाज़ सहसा भारी हो गई____"और अपनी इस बहन को ऐसे ही प्यार करते रहिए।"
"ये तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसके चेहरे को एक हाथ से सहलाते हुए कहा___"सारी दुनिया चाहे तुझसे रूठ जाए लेकिन तेरा ये भाई तुझसे कभी नहीं रूठेगा। ख़ैर अब जा और अपनी सहेलियों के साथ रंग खेल।"

मेरे कहने पर कुसुम मुस्कुराती हुई पलटी और फिर अपना रंग और पानी का गिलास ले कर कमरे से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि तभी भाभी कमरे में आ ग‌ईं। उनके एक हाथ में कागज़ में लिपटा हुआ रंग था और दूसरे हाथ में पानी का मग्घा।

"तो लाडली बहन आई थी अपने भाई को रंग लगाने?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा तो मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो जानती हैं उसे। जब आपने उससे रंग के बारे में पूछा तब उसे याद आया कि उसने अभी अपने भाई को रंग लगाया ही नहीं है। इस लिए भागते हुए आई थी यहां।"

"तुम्हें शायद इस बात का इल्म न हो।" भाभी ने थोड़े संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैंने महसूस किया है कि पिछले कुछ महीनों से वो किसी किसी दिन बहुत ही गंभीर दिखती है। मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है उसके इस तरह गंभीर दिखने की। मैंने एक दो बार उससे पूछा भी था किन्तु उसने कुछ बताया नहीं। बस यही कहा कि तबीयत ख़राब है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैंने कहा तो भाभी ने चौंक कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या मतलब? क्या तुम्हें भी इस बात का आभास हुआ है?"
"जिस दिन मैं हवेली आया था।" मैंने कहा____"उसी दिन उससे कुछ बातें की थी मैंने और उसी दिन उसने मुझसे कुछ ऐसी बातें की थी जिन बातों की कम से कम मैं उससे उम्मीद नहीं करता था।"

"ऐसी क्या बातें की थी उसने?" भाभी ने सोचने वाले भाव से पूछा____"और क्या तुमने उससे उस दिन पूछा नहीं था कुछ?"
"उसकी बातें दार्शनिकों वाली थी भाभी।" मैंने कहा____"लेकिन उसकी उन बातों में गहरी बात भी थी जिसने मुझे चौंका दिया था और जब मैंने उससे पूछा तो उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था। उसके जाने के बाद मैंने सोचा था कि उसकी बातों के बारे में अपने तरीके से पता करुंगा लेकिन ऐसा अवसर ही नहीं आया क्योंकि मैं एक बार फिर से गुस्सा हो कर हवेली से चला गया था।"

"इस बारे में तुम्हें ठंडे दिमाग़ से विचार करने की ज़रूरत है वैभव।" भाभी ने कहा____"तुम्हें समझना होगा कि आज कल परिस्थितियां कैसी हो गई हैं लेकिन तुम तो हमेशा गुस्से में ही रहते हो।"

"मेरा ये गुस्सा बेवजह नहीं है भाभी।" मैंने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"बल्कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है।"
"तुम्हारा गुस्सा बेवजह ही है वैभव।" भाभी ने ज़ोर देते हुए कहा____"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतनी बेरुखी से बात करते हो। मैं तो ये सोच कर चकित हो जाती हू कि तुम उनसे ऐसे लहजे में कैसे बात लेते होगे?"

"वैभव सिंह ऐसे ही जियाले का नाम है भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जो किसी से भी नहीं डरता और जिससे भी बात करता है बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर बात करता है। फिर भले ही उसके सामने दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"अभी एक थप्पड़ लगाऊंगी तो सारा जियालापन निकल आएगा तुम्हारा।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बड़े आए बेख़ौफ़ हो कर बात करने वाले। अगर इतने ही बड़े जियाले हो तो अब तक मुझसे दूर क्यों भागते थे?"

"वो...वो तो मैं।" मैंने अटकते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि भाभी ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा____"बस बस बताने की ज़रूरत नहीं है। ख़ैर अब बातों में वक़्त जाया न करवाओ और मुझे अपने देवर को रंग लगाने दो।"

"जी ठीक है भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा तो भाभी ने कागज़ से रंग निकालते हुए कहा____"वैसे इस कमरे में आने से पहले किसके साथ रंग खेल कर आए थे? उस वक़्त मेरे पूछने पर जब तुमने कुसुम का नाम लिया तो मैंने यही समझा था कि तुमने कुसुम के साथ रंग खेला था लेकिन अभी जब कुसुम यहाँ तुम्हें रंग लगाने आई तब समझ आया कि उस वक़्त तुम कुसुम के साथ नहीं बल्कि किसी और के साथ रंग खेल कर आए थे। मैं सही कह रही हूं न?"

"जी भाभी।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा____"पर मैं उस वक़्त आपको बताने ही वाला था लेकिन आपने ही मेरी बात काट दी थी।"
"अच्छा तो चलो अब बता दो।" भाभी ने हाथ में रंग लेने के बाद उसमे पानी मिलाते हुए कहा____"आख़िर किसके साथ रंग खेल कर आए थे?"

"जाने दीजिए न भाभी।" मैंने बात को टालने की गरज़ से कहा____"मैं किसके साथ रंग खेल कर आया था इस बात को जानने की क्या ज़रूरत है?"
"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" भाभी ने अपनी भौंहों को चढ़ाते हुए कहा____"बल्कि मेरा तो ये जानने का हक़ है कि मेरा देवर किसके साथ रंग खेल कर यहाँ आया था? वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है किन्तु मैं तुम्हारे मुँह से जानना चाहती हूं। अब जल्दी से बताओ भी, इतना भाव मत खाओ?"

"वो..मैं अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर में कुसुम भी वहां पहुंच गई थी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"कुसुम के साथ उसकी दो सहेलियां भी थीं। कुसुम ने मुझे बताया कि उसकी वो सहेलियां मुझे रंग लगाना चाहती हैं। कुसुम की बात सुन कर मैंने इसके लिए इंकार नहीं किया।"

"मुझे लग ही रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर हमारे देवर जी लड़की ज़ात से इतना प्रेम जो करते हैं।"
"ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"वो तो बस मैंने उनकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लिया है।"

"अच्छा जी।" भाभी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तुमने उनसे सिर्फ रंग लगवाया? उन्हें रंग नहीं लगाया??"
"वो तो मैंने भी लगाया भाभी।" मैंने इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए कहा तो भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वही तो, भला ऐसा कैसे हो सकता था कि दो सुन्दर लड़कियां हमारे देवर जी के पास उन्हें रंग लगाने आएं और ठाकुर वैभव सिंह उनसे रंग लगवाने के बाद खुद उन्हें भी रंग से सराबोर न करें? ख़ैर चलो अच्छी बात है, कम से कम तुम्हारी रंग खेलने की शुरुआत दो सुन्दर लड़कियों से तो हुई। एक हम ही थे जो कल से मुँह फुलाए यहाँ अपने कमरे में पड़े हुए थे और किसी ने हमारी ख़बर तक नहीं ली।"

भाभी की बातें सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि उन्हें बस देखता ही रहा। उधर भाभी ने रंग को अपने हाथों में अच्छी तरह मला और फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम्हारे चेहरे पर तो पहले से ही रंग लगा हुआ है वैभव, ऐसे में हमारा लगाया हुआ रंग भला कैसे चढ़ेगा?"

"आपका लगाया हुआ रंग तो सबसे ज़्यादा चढ़ेगा भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इसमें आपका ढेर सारा प्यार और स्नेह शामिल है। आपका लगाया हुआ रंग मेरे चेहरे पर ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर भी चढ़ जाएगा।"

"अगर ऐसी बात है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तो ये मेरे लिए सबसे अच्छी बात है वैभव। तुम्हारी इस बात में जो मर्म है वो ये जताता है कि तुम्हारे अंदर अपनी इस भाभी के प्रति इज्ज़त और सम्मान की भावना है और इस बात से मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है।"

ये कह कर भाभी ने बड़े प्यार से मेरे चेहरे पर हल्के हाथों से रंग लगाना शुरू कर दिया। मैं ख़ामोशी से उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को ही देखता जा रहा था। उनकी नज़रें मेरी नज़रों से ही मिली हुईं थी। मुझे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनकी गहरी आँखों में डूबने लगा हूं तो मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और उनकी आँखों से अपनी नज़रें हटा ली।

"मैंने कहा न कि आज के दिन हर ख़ता माफ़ है वैभव।" मुझे नज़रें हटाता देख भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए इस वक़्त अपनी भाभी से किसी भी बात के लिए झिझक या शर्म महसूस न करो। जैसे मैं बेझिझक हो कर अपने देवर को रंग लगा रही हूं वैसे ही तुम भी अपनी भाभी को रंग लगाना।"

"सोच लीजिए फिर।" मैंने फिर से उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"बाद में ये मत कहिएगा कि मैंने कुछ ग़लत कर दिया है।"
"अरे! इसमें ग़लत करने जैसी कौन सी बात है भला?" भाभी ने अपने दोनों हाथ मेरे चेहरे से हटाते हुए कहा____"तुम्हें रंग ही तो लगाना है तो इसमें ग़लत क्या हो जाएगा?"

"मेरे रंग लगाने का तरीका ज़रा अलग है भाभी।" मैंने धड़कते हुए दिल से कहा____"और मेरा वो तरीका आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।"
"अजीब बात है।" भाभी ने मानो उलझ गए भाव से कहा___"क्या रंग लगाने के भी अलग अलग तरीके होते हैं? मैं तो पहली बार सुन रही हूं ऐसा। ख़ैर तुम बताओ कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?"

"मेरा तरीका मत पूछिए भाभी।" मैंने बेचैन भाव से कहा___"अगर मैंने आपको अपने रंग लगाने का तरीका बताया तो आप मेरे बारे में ग़लत सोचने लगेंगी और हो सकता है कि आप मुझ पर गुस्सा भी हो जाएं।"

"तब तो मैं ज़रूर जानना चाहूंगी कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?" भाभी ने मानो ज़िद करते हुए कहा____"चलो अब बताओ मुझे और हां चिंता मत करो, मैं तुम पर गुस्सा नहीं करुंगी।"

"वो भाभी बात ये है कि।" कुछ देर भाभी की तरफ देखते रहने के बाद मैंने धड़कते दिल से कहा____"एक तो मैं रंग खेलता नहीं हूं और अगर किसी लड़की या औरत के साथ रंग खेलता हूं तो मैं अपने तरीके के अनुसार लड़की या औरत के बदन के हर हिस्से पर रंग लगता हूं।"

"क्या????" मेरी बात सुन कर भाभी बुरी तरह उछल पड़ीं, फिर हैरत से आँखें फाड़े बोलीं____"हे भगवान! तो तुम इस तरीके से रंग लगाते हो? तुम तो बड़े ख़राब हो। भला इस तरह कौन किसी को रंग लगाता है?"

"कोई और लगाता हो या न लगाता हो भाभी लेकिन मैं तो ऐसे ही रंग लगता हूं।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"अब जबकि मैंने आपको अपना तरीका बता ही दिया है तो आपको मैं ये भी बता देता हूं कि कुसुम की जिन सहेलियों ने मेरे कमरे में आ कर मुझे रंग लगाया था उनको मैंने अपने इसी तरीके से रंग लगाया है।"

"हे भगवान!" भाभी आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए बोलीं____"तुम तो सच में बहुत गंदे हो। पर उन्होंने तुमसे इस तरीके से रंग कैसे लगवा लिया? क्या उन्हें तुम पर गुस्सा नहीं आया?"

"ग़ुस्सा क्यों आएगा भाभी?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे कमरे में आई ही इसी मकसद से थीं वरना आप ख़ुद सोचिए कि कोई शरीफ लड़की किसी मर्द के कमरे में उसे रंग लगाने क्यों आएगी और अगर आएगी भी तो इस तरीके से रंग लगवाने पर राज़ी कैसे हो जाएगी?"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" भाभी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा___"इसका मतलब कुसुम की वो दोनों सहेलियां एक नंबर की चालू थीं। रुको मैं कुसुम से इस बारे में बात करुँगी और उसे समझाऊंगी कि ऐसी लड़कियों को अपनी सहेली न बनाए जिनका चरित्र इतना गिरा हुआ हो।"

"नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"आप कुसुम से इस बारे में कुछ मत कहना। क्योंकि ऐसे में वो समझ जाएगी कि आपको ये सब बातें मेरे द्वारा पता चली हैं और फिर वो मुझ पर ही नहीं बल्कि अपनी सहेलियों से भी गुस्सा हो जाएगी। आप इस बारे में उससे कुछ मत कहिएगा, मैं खुद ही कुसुम को अपने तरीके से समझा दूंगा।"

"ठीक है, अच्छे से समझा देना उसे।" भाभी ने चिंतित भाव से कहा____"ऐसी लड़कियों को सहेली बनाना उसके लिए उचित नहीं है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उन लड़कियों ने तुमसे इस तरह से रंग लगवा लिया है, लेकिन यकीन इस लिए कर रही हूं क्योंकि जानती हूं कि तुम्हारा जादू उन पर चल गया होगा। भगवान के लिए वैभव ये सब छोड़़ दो। ये सब अच्छी चीज़ें नहीं हैं। इससे हमारे खानदान का और ख़ुद तुम्हारा भी नाम बदनाम होता है।"

"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"कोशिश करुंगा कि आगे से ऐसा न करूं। ख़ैर अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं आपके लिए खाना ले कर आता हूं।"
"अरे! अभी तुम भी तो मुझे रंग लगाओगे।" भाभी ने जैसे मुझे याद दिलाते हुए कहा____"और हां अपने तरीके से मुझे रंग लगाने का सोचना भी मत वरना डंडे से पिटाई करुँगी तुम्हारी। अब चलो जल्दी से रंग लगाओ, उसके बाद ही नहाने जाऊंगी।"

भाभी की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर कागज़ से रंग ले कर मैंने उसमे थोड़ा पानी मिलाया और फिर दोनों हाथों में अच्छे से मलने के बाद मैं आगे बढ़ा। भाभी के सुन्दर चेहरे पर रंग लगाने का सोच कर ही सहसा मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी। भाभी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहीं थी। मैंने भाभी के चेहरे की तरफ अपने हाथ बढ़ाए और फिर हल्के हाथों से उनके बेहद ही कोमल गालों पर रंग लगाने लगा। भाभी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मुझ पर ही गड़ी हुईं थी। उनको रंग लगाते लगाते एकदम से मेरा जी चाहा कि मैं उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों को झुक कर चूम लूं। अपने ज़हन में आए इस ख़याल से मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं किन्तु एकदम से मुझे ख़याल आया कि ये मैं क्या सोच रहा हूं?

मैं एक झटके से भाभी से दूर हुआ। भाभी मुझे अचानक से इस तरह दूर होते देख चौंकी और हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? तुम एकदम से पीछे क्यों हट गए?"
"माफ़ करना भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे? मैं जब भी आपके क़रीब होता हूं तो मैं आपकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।"

ये सब कहते कहते मैं एकदम से हताश सा हो गया था और इससे पहले कि वो मुझसे कुछ कहतीं मैं पलटा और तेज़ी से कमरे से निकल गया। मेरे पीछे भाभी अपनी जगह पर किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में खड़ी रह गईं थी।

भाभी के कमरे से बाहर आ कर मैं सीधा अपने कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में आँधिया सी चल रहीं थी। मेरा दिल एकदम बेचैनी से भर गया था। भाभी से कही हुई अपनी ही बातें सोच सोच कर मैं अंदर ही अंदर एक आग में जलने लगा था। अभी तक तो ये था कि भाभी को मेरे अंदर की इन बातों का पता नहीं था इस लिए मुझे ज़्यादा चिंता नहीं होती थी किन्तु अब तो उन्हें सब पता चल गया था और अभी तो मैं साफ़ शब्दों में उनसे कह कर ही आया था कि मैं उनकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मेरी बातें सुन कर यकीनन वो मेरे बारे में ग़लत ही सोचने लगी होंगी और ये भी ग़लत नहीं कि मेरी बातें सुन कर उन्हें मुझ पर बेहद गुस्सा भी आया होगा। मैं ऐसी ही बातों से तो हमेशा डरता था और यही वजह थी कि मैं हवेली में रुकता नहीं था। मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता था कि इस हवेली की लक्ष्मी सामान बहू अपने देवर की हवस का शिकार हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। मेरी सोच और मेरे मन पर मेरा कोई अख़्तियार नहीं था। अपने सामने मैंने हज़ारों बार यही सोचा था कि अपनी देवी सामान भाभी के बारे में ग़लत नहीं सोचूंगा मगर उनके सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मैं किसी सम्मोहन की तरह उनकी सुंदरता के मोह जाल में फंस जाता था। ये तो शुक्र था कि ऐसी स्थिति में हर बार मैंने खुद को सम्हाल लिया था।

बिस्तर पर लेटा हुआ मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था और जब मुझे किसी भी तरह से चैन न आया तो मैं उठा और कमरे से बाहर चला गया। नीचे आया तो देखा अभी भी आँगन में औरतों की भीड़ थी। हलांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं थी किन्तु चहल पहल अभी भी ज़्यादा ही थी। मैं बिना किसी की तरफ देखे सीधा गुसलखाने में घुस गया और ठंडे पानी से नहाना शुरू कर दिया। काफी देर तक मैं नहाता रहा और फिर सारे गीले कपड़े उतार कर मैंने एक तौलिया लपेट लिया।

गुसलखाने से निकल कर मैं फिर ऊपर अपने कमरे में आया और कपड़े पहन कर फिर से निकल गया। इस बार मेरे मन में हवेली से बाहर जाने का ख़याल था। हवेली से बाहर आया तो देखा बड़े से मैदान में अभी भी काफी लोगों की भीड़ थी और एक तरफ निचली जाति वाले फाग गाने में मस्त थे। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने गर्दन घुमा कर देखा। मेरे पीछे तरफ जगताप चाचा जी खड़े नज़र आए।

"होली मुबारक हो वैभव बेटे।" चाचा जी ने बड़े प्यार से कहा और थाली से अबीर ले कर मेरे माथे पर लगा दिया। मैंने झुक कर उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

"जाओ अपने पिता जी से भी आशीर्वाद ले लो।" चाचा जी ने कहा____"आज के दिन अपने मन में किसी भी प्रकार का मनमुटाव मत रखो। सबसे ख़ुशी ख़ुशी मिलो। जब तक किसी से मिलोगे नहीं तक लोगों के बारे में सही तरह से जानोगे कैसे? अभी तक तुमने अपनी नज़र से दुनियां और दुनियां वालों को देखा है, कभी इस दुनियां को दुनियां वालों की नज़र से भी देखो। हमें पूरा यकीन है कि तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उनके हाथ से थाली ले कर मंच पर चढ़ गया। मंच में सिंघासन पर दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मुझे मंच पर चढ़ता देख उन्होंने मेरी तरफ देखा। उनके अगल बगल शाहूकार मणिशंकर और हरिशंकर बैठे हुए थे, जो अब मेरी तरफ ही देखने लगे थे। यकीनन इस वक़्त मुझे मंच पर आया देख उन दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं होंगी। ख़ैर थाली लिए मैं पिता जी के पास पहुंचा।

"होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं पिता जी।" मैंने बड़े ही सम्मान भाव से कहा और चुटकी में अबीर ले कर उनके माथे पर लगा दिया। मेरी बात सुन कर उन्होंने पहले थाली से चुटकी में अबीर लिया और मेरे माथे पर लगाते हुए बोले___"तुम्हें भी होली का ये पर्व मुबारक हो। ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे और सद्बुद्धि दे।"

अगल बगल बैठे मणिशंकर और हरिशंकर हमारी तरफ ही देख रहे थे और इस वक़्त वो दोनों एकदम शांत ही थे। हलांकि उनकी आंखें हैरत से फटी पड़ी थीं। ख़ैर पिता जी की बात सुन कर मैं झुका और उनके पैरों में अपना सिर रख दिया। ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मैंने उनके पैरों में इस तरह से अपना सिर रख दिया था। मैं खुद नहीं जानता था कि मैंने ऐसा क्यों किया था, बल्कि ये तो जैसे अपने आप ही हो गया था मुझसे। उधर पिता जी ने जब देखा कि मैंने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया है तो उन्होंने मुझे बाजू से पकड़ कर उठाया और कहा____"आयुष्मान भव।"

मैंने देखा इस वक़्त दादा ठाकुर के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक उभर आई थी। कदाचित इस लिए कि मैंने सबके सामने वो किया था जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ख़ैर पिता जी के बाद मैंने मणिशंकर को भी अबीर लगाते हुए होली की मुबारकबाद दी और जब उसके पैरों को छूने लगा तो उसने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और फिर हड़बड़ाए हुए भाव से बोला____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर और हां आपको भी होली का ये त्यौहार मुबारक हो।"

मणिशंकर के बाद मैंने हरिशंकर को भी उसके जैसे ही अबीर लगाया और उसे होली की मुबारकबाद दी तो वो भी अपने बड़े भाई की तरह ही हड़बड़ा गया था। दोनों भाई मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर एकदम से चकित थे और मैं उन्हें चकित ही तो करना चाहता था। ख़ैर उसके बाद मैं पलटा तो देखा मंच के सामने काफी लोगों की नज़रें मुझ पर ही जमी हुई थीं। उन सबकी आँखों में हैरानी के भाव थे।

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" मंच से उतर कर जब मैं आया तो जगताप चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि हम सब भी बहुत खुश हो गए है। ये ऐसी चीज़ें हैं बेटे जो दुश्मन के दिल में भी अपने लिए ख़ास जगह बना देती हैं। हमें उम्मीद है कि हमारा सबसे लाडला भतीजा अब एक अच्छा इंसान बन कर दिखाएगा। हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अच्छे संस्कारों के साथ अच्छे अच्छे काम करते रहो। अब जाओ और अपने बड़े भैया का भी आशीर्वाद ले लो।"

जगताप चाचा जी के कहने पर मैं थाली ले कर उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ बड़े भैया साहूकारों के लड़कों के पास भांग के हल्के नशे में झूमते हुए बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे आया देख साहूकारों के लड़के एकदम से पीछे हट गए। बड़े भैया की नज़र मुझ पर पड़ी तो उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए। उनके पास ही खड़े विभोर और अजीत भी थोड़ा सहम कर पीछे हट गए थे। मैंने थाली से चुटकी में अबीर लिया और बड़े भैया के माथे पर लगाते हुए उन्हें होली की मुबारकबाद दी और फिर झुक कर उनके पैर छुए।

"ये...ये क्या कर रहा है तू?" बड़े भैया भांग के हल्के शुरूर में थे और जब उन्होंने मुझे अपना पैर छूटे देखा तो वो एकदम से बौखलाए हुए लहजे में बोल पड़े थे।
"आपके पैर छू कर।" मैंने बड़े ही आदर भाव से कहा____"आपका आशीर्वाद ले रहा हूं बड़े भैया। क्या अपने इस नालायक भाई को आशीर्वाद नहीं देंगे?"

मेरी बात सुन कर बड़े भैया ग़ौर से मेरी तरफ देखने लगे। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में ये सोच कर एक दर्द सा उठने लगा था कि कुल गुरु ने भैया के बारे में ये भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। अभी मैं गुरु जी की भविष्यवाणी के बारे में सोचते हुए उन्हें देख ही रहा था कि उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया।

"वैभाव, मेरा भाई।" भैया ने मुझे गले से लगाए हुए कांपती हुई आवाज़ में कहा____"तुझे आशीर्वाद में ये भी नहीं कह सकता कि तुझे मेरी उम्र लग जाए। बस यही कहूंगा कि संसार की हर ख़ुशी मिले तुझे।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" उनकी बात सुन कर मैं मन ही मन चौंका था। इसका मतलब उन्हें अपने बारे में पता था। उनके इस तरह कहने से मेरी आँखों में आंसू भर आए, और फिर मैंने दुखी भाव से कहा____"मैंने हमेशा आपको दुःख दिए हैं।"
"आज की इस ख़ुशी में वो सारे दुःख नेस्तनाबूत हो गए वैभव।" बड़े भैया ने मेरी पीठ को सहलाते हुए करुण भाव से कहा____"चल आ जा। आज की इस ख़ुशी में तू भी भांग पी ले। हम दोनो अब खूब धूम मचाएंगे।"

बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग किया। मैंने देखा उनकी आँखों में भी आंसू के कतरे थे जिन्हें उन्होंने अपनी रंगी हुई आस्तीन से पोंछ लिया। चारो तरफ खड़े लोग हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे। साहूकारों के लड़कों का हाल भी वैसा ही था। भैया ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उस जगह ले आए जहां मटकों में भांग का शरबत भरा हुआ रखा था। मटके के पास एक आदमी खड़ा हुआ था जिसे भैया ने इशारा किया तो उसने एक गिलास भांग का शरबत उन्हें दिया। उस गिलास को भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे देते हुए कहा ले वैभव इसे एक ही सांस में पी जा। मैंने मुस्कुराते हुए उनसे वो गिलास ले लिया। अभी मैं गिलास को अपने मुँह से लगाने ही चला था कि तभी वातावरण में चटाक्क्क्क की तेज़ आवाज़ गूँजी। हम सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुछ ही क़दम की दूरी पर जगताप चाचा जी अपने दोनों बेटों के पास खड़े थे। इस वक़्त उनके चेहरे पर गुस्सा नज़र आ रहा था।

"जिस लड़के ने किसी के सामने कभी झुकना पसंद नहीं किया।" चाचा जी गुस्से में दहाड़ते हुए विभोर से कह रहे थे____"आज उसने यहाँ सबके सामने झुक कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और तुम दोनों ने क्या किया? हम उस दिन से तुम दोनों का तमाशा देख रहे हैं जिस दिन वो चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था। तुम दोनों ने तो उससे ना तो कोई बात की और ना ही उसके पैर छुए। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने?"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वो अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए डांट रहे हैं कि उन दोनों ने मेरे पैर नहीं छुए थे। हलांकि उन दोनों की इस धृष्टता के लिए मैं खुद ही उन्हें सबक सिखाना चाहता था किन्तु मौका ही नहीं मिला था मुझे। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि ये काम ख़ुद जगताप चाचा जी ने कर दिया था वरना यदि मैं उन्हें कुछ कहता तो संभव था कि चाचा जी को इस बात पर बुरा लग जाता। हलांकि उनके बुरा लग जाने से मुझे घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ता किन्तु अब सोचता हूं कि जो हुआ अच्छा ही हुआ।

"जगताप क्या हो रहा है ये?" वातावरण में दादा ठाकुर की भारी आवाज़ गूँजी तो हम सबने उनकी तरफ देखा, जबकि उनकी ये बात सुन कर जगताप चाचा जी पलट कर उनसे बोले____"इन दोनों को इनके बुरे आचरण की सज़ा दे रहा हूं बड़े भैया। इन दोनों के अंदर इतनी भी तमीज़ नहीं है कि ये अपने बड़े भाई का सम्मान करें।"
"आज के दिन छोड़ दो उन्हें।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस बारे में अगले दिन बात होगी।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर चाचा जी ख़ामोश हो गए किन्तु पलट कर अपने दोनों बेटों की तरफ भयानक गुस्से से देखा ज़रुर। विभोर और अजीत डरे सहमे से गर्दन झुकाए खड़े थे। ख़ैर जगताप चाचा जी गुस्से में भन्नाए हुए चले गए। उनके जाने के बाद विभोर और अजीत मेरी तरफ आए।

"हमें माफ़ कर दीजिए भइया।" विभोर ने हाथ जोड़ कर और अपना सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा____"हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी है।"
"कोई बात नहीं।" मैंने सपाट भाव से कहा____"सबसे भूल होती है। ख़ैर जाओ और होली का आनंद लो।"

मेरे कहने पर वो दोनों चले गए। वातावरण में फिर से पहले जैसा शोर गूंजने लगा। इधर मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए भांग मिले शरबत को पीना शुरू कर दिया। गिलास खाली हुआ तो भैया ने एक गिलास और थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले____"एक और पी वैभव।"

"बस हो गया भइया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे पता है इसका नशा कैसा होता है। अगर ये चढ़ गई तो मेरे लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"अरे! इतने में नहीं चढ़ेगी वैभव।" भैया ने हंसते हुए कहा____"तुझे पता है इस गौरव ने तो चार गिलास पिया है और देख ले अभी तक होश में है।"

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


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lovely update .
bhabhi jab colour lene gayi tab kusum ko yaad aaya ki usne apne bhai ko rang nahi lagaya 🤣...aur phir daude chali aayi rang lagane ,,jis tarah komal ko vaibhav se pyar milta hai waisa pariwar ka koi bhai nahi karta isliye wo vaibhav se jyada karib hai aur pyar karti hai usse 😍😍..

bhabhi ne rang to lagaya par vaibhav nahi laga paya kyunki bhabhi ko dekhkar wo attract hota hai uski taraf 🤔🤔..

jagtap chacha ko tika lagakar pair chhuye aur phir dada thakur ke aage sidha natmastak ho gaya vaibhav ye dekhkar sabki aankhe fati ki fati reh gayi 🤣🤣..

waise ye sahi baat hai ki holi me dushmani side rakhke sabse pyar se milo ..

bade bhaiya ko bhi apne maut ke baare me pata hai isliye usne vaibhav ko aisa nahi kaha ki meri umar bhi tujhe lag jaaye aur vaibhav ko pata chal gaya ki bhaiya sab jaante hai ..

par kaise pata chala ye abhi ek paheli hai 🤔🤔🤔..

sahukaro ko chaunka diya rang lagakar vaibhav ne 🤣..

jagtap chacha ne sahi kiya ajeet aur vibhor ko thappad maarke ,,,par shayad jagah aur waqt sahi nahi tha ..

aur ye rupchandra jarur kuch galat karne ki firaak me hoga aisa lagta hai 🤔🤔🤔...

aur ye kusum bhi itni serious hoti hai kabhi kabhi iska bhi koi na koi raaz jarur hoga 🤔🤔🤔..

kya kusum ko bhi bade bhaiya ke baare me pata hai 🤔🤔.. yaa kuch aur baat usko pareshan kar rahi hai ...
 
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बहुत ही शानदार अपडेट है । आखिरकार वैभव हवेली में आ ही गया । भाभी को अपनी दिल की बात बताकर अपना दिल हल्का कर लिया ओर दादा ठाकुर और अपने बड़े भाई के पैर छू कर पुरानी बातें भुला कर आगे बढ़ने का सोच लिया
 

aalu

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Haas sala ittna emotional update.. ab kiski gand maaro samajh mein nahin aa raha hain... Eho na keh shakta hoon kee bhang pila diye ho ka.. sala bina bhang piye hi ulta sulta harkat kar raha tha.. batao aise pair kaun parta hain... ab vaibhaw thakur aur sanskari sushil larka kee tarah karega... sahi hain ek do aur glass pila do tab jaa ke ee nanga naach karega... aur rupchand najar kaise aayega.. gand jo achhe se suja diye ho tum uka.... sala ekke baar mein shab sudhar gaye.. yahee gandu tha jo sabko naak mein dum kar ke rakhhe hue tha.. achha hain najdeek rahega tabahi toh gand mein ugnli karne mein aasani hogi... Kusum wala matter e sasura seriously na le raha hain... aur bhaujai ke totte ura ke chala aaya.... Are I love u bola bhi toh ulta ghuma ke.... Bhaiya ko maloom kaise para kee uska jindagi kee dor khatm hone waali hain... aur kisi bhavishywani ke chakkar mein yeh log aise hatash ho ke baith jayege ka... ka pata uuu gandu baba jhootha ho... sala kisi aur tarah se saajish karke koi uka bhi mila liya ho...
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 23
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अब तक,,,,,

"मैं तो ये कह रहा था कि।" मैंने कहा____"अगर बड़े भैया यहाँ आ गए और उन्होंने मुझे आपके साथ रंग खेलते हुए देख लिया तो कहीं वो गुस्सा न हो जाएं।"
"आज वो यहाँ नहीं आएंगे वैभव।" भाभी ने कहा____"आज वो साहूकारों के लड़कों के साथ होली का आनंद ले रहे होंगे। तुम रुको, मैं रंग ले कर बस थोड़ी ही देर में आ जाऊंगी।"

इतना कहने के बाद भाभी मेरी बात सुने बिना ही कमरे से बाहर निकल ग‌ईं। उनके जाने के बाद मैं कमरे में बुत की तरह खड़ा रह गया। आज भाभी के द्वारा मुझे एक ऐसे सच का पता चला था जिसके बारे में मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। मेरे बड़े भैया के बारे में कुल गुरु ने भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये तक़दीर का कैसा खेल था कि वो मेरे भाई को इस तरह दुनियां से उठा लेने वाली थी और एक सुहागन को भरी जवानी में ही विधवा बना देने का इरादा किए बैठी थी मगर मैंने भी सोच लिया था कि मैं ऐसा होने नहीं दूंगा। मैं गुरु जी की इस भविष्यवाणी को ग़लत कर के रहूंगा।


अब आगे,,,,,,



भाभी के कमरे में खड़ा मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि तभी कुसुम एकदम से किसी आंधी तूफ़ान की तरह कमरे में दाखिल हुई जिससे मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ से चल रहीं थी। मैं समझ गया कि ये भागते हुए यहाँ आई है किन्तु क्यों आई है ये मुझे समझ न आया। उसके चेहरे पर और कपड़ों पर रंग लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"आँधी तूफ़ान बनी कहां घूम रही है तू?"
"अपनी सहेलियों के चक्कर में।" उसने अपनी फूली हुई साँसों को काबू करते हुए कहा____"मैं ये तो भूल ही गई कि मैंने अपने सबसे अच्छे भैया को तो रंग लगाया ही नहीं। अभी नीचे भाभी ने जब मुझसे पूछा कि रंग कहां रखा है तो मैंने उन्हें बताया और फिर एकदम से मैंने सोचा कि भाभी रंग के बारे में मुझसे क्यों पूछ रही हैं? वो तो नाराज़ हो कर अपने कमरे में बंद थीं, तब मुझे याद आया और फिर मैंने सोचा कि हो सकता है आप भाभी कमरे में उनसे मिलने गए हों और आपने उनकी नाराज़गी दूर कर दी हो। उसके बाद उन्होंने सोचा होगा कि आज होली का त्यौहार है तो उन्हें अपने देवर को रंग लगाना चाहिए इस लिए वो मुझसे रंग के बारे में पूछ रहीं थी। बस फिर मुझे भी याद आया कि मैंने तो अभी तक आपको रंग लगाया ही नहीं। इस लिए भागते हुए चली आई यहां।"

"इतनी सी बात को कम शब्दों में नहीं बता सकती थी तू?" कुसुम की बात जब पूरी हुई तो मैंने आँखें दिखाते हुए उससे कहा____"इतना घुमा फिरा कर बताने की क्या ज़रूरत थी?"
"अब आप बाकी भाइयों की तरह मुझे डांतिए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इससे पहले कि भाभी यहाँ आ जाएं मुझे आपको रंग लगाना है और आप इसके लिए मना नहीं करेंगे।"

"अच्छा ठीक है।" मैंने कहा____"जल्दी से रंग लगा ले और जा यहाँ से।"
"जल्दी से जाने को क्यों कह रहे हैं मुझे?" कुसुम ने आँखें निकालते हुए कहा____"और हां ये बताइए कि मेरी सहेलियों को रंग लगाया कि नहीं आपने?"

"हां वो थोड़ा सा लगाया मैंने।" उसके एकदम से पूछने पर मैंने थोड़ा नरम भाव से कहा____"लेकिन फिर वो जल्दी ही कमरे से चली गईं थी।"
"ऐसा क्यों?" कुसुम ने सोचने वाले अंदाज़ से पूछा____"क्या उन्होंने आपको रंग नहीं लगाया?"

"मेरे चेहरे पर उन्हीं का लगाया हुआ तो रंग लगा है।" मैंने कहा____"तुझे दिख नहीं रहा क्या?"
"अरे! तो आप भड़क क्यों रहे हैं?" कुसुम ने फिर से बुरा सा मुँह बनाया____"वैसे मैं जा कर पूछूंगी उन दोनों से कि वो आपके कमरे से इतना जल्दी क्यों चली आईं थी?"

"अरे! इसमें पूछने वाली कौन सी बात है?" मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"उन्हें रंग लगाना था तो लगाया और फिर चली गईं। अब क्या वो सारा दिन मेरे कमरे में ही बैठी रहतीं?"
"हां ये भी सही कहा आपने।" कुसुम ने भोलेपन से कहा____"ख़ैर छोड़िए, मैं जल्दी से आपको रंग लगा देती हूं। आपको पता है अभी मेरी दो सहेलियां और आई हुईं हैं इस लिए मुझे उनके साथ भी रंग खेलना है।"

कुसुम की बात सुन कर मैंने इस बार कुछ नहीं कहा। मैं जानता था कि मैं उससे जितना बतवाऊंगा वो उतना ही बात करती रहेगी। इस लिए मैंने उसे रंग लगाने को कहा तो उसने अपने हाथ में ली हुई पानी से भरी हुई गिलास को एक तरफ रखा और फिर दूसरे हाथ में लिए हुए रंग को उसने पहले वाले हाथ में थोड़ा सा डाला। रंग डालने के बाद उसने गिलास से थोड़ा पानी अपनी हथेली में डाला और फिर उसे दोनों हाथों में मलते हुए मेरी तरफ बढ़ी। मैं चुप चाप खड़ा उसी को देख रहा था। जैसे ही वो मेरे क़रीब आई तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। कुसुम अपने दोनों हाथों को बढ़ा कर मेरे दोनों गालों पर अपने कोमल कोमल हाथों से मुस्कुराते हुए रंग लगाने लगी।

हवेली में मैं किसी से भी रंग नहीं खेलता था किन्तु वो हर साल मुझे ऐसे ही रंग लगाती थी और खुश हो जाती थी। बाकी भाई तो उसे झिड़क देते थे इस लिए वो उनके पास रंग लगाने नहीं जाती थी। होली के दिन रंग खेलना उसे बहुत पसंद था तो मैं भी उसकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लेता था।

"हो गया?" उसने जब अच्छे से मेरे चेहरे पर रंग लगा लिया तो मैंने पूछा____"या अभी और लगाना है?"
"हां हो गया।" उसने मुस्कुराते हुए कहा____"चलिए अब आप भी मुझे रंग लगाइए और अपना बदला पूरा कीजिए। मुझे अभी अपनी उन सहेलियों को भी रंग लगाना है। कहीं वो दोनों चली न जाएं।"

उसकी बात सुन कर मैंने उसी से रंग लिया और उसके ही जैसे रंग में थोड़ा पानी मिला कर रंग को अपनी हथेली में मला और फिर प्यार से उसके दोनों गालों पर लगा दिया। इस वक़्त वो एकदम से छोटी सी बच्ची बनी हुई थी और मुझे उस पर बेहद प्यार आ रहा था। उसे रंग लगाने के बाद मैंने उसके माथे को चूमा और फिर कहा____"सदा खुश रह और ऐसे ही हंसती मुस्कुराती रह।"

"आप भी हमेशा खुश रहिए।" उसकी आवाज़ सहसा भारी हो गई____"और अपनी इस बहन को ऐसे ही प्यार करते रहिए।"
"ये तुझे कहने की ज़रूरत नहीं है।" मैंने उसके चेहरे को एक हाथ से सहलाते हुए कहा___"सारी दुनिया चाहे तुझसे रूठ जाए लेकिन तेरा ये भाई तुझसे कभी नहीं रूठेगा। ख़ैर अब जा और अपनी सहेलियों के साथ रंग खेल।"

मेरे कहने पर कुसुम मुस्कुराती हुई पलटी और फिर अपना रंग और पानी का गिलास ले कर कमरे से बाहर चली गई। उसके जाने के बाद मैं कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि तभी भाभी कमरे में आ ग‌ईं। उनके एक हाथ में कागज़ में लिपटा हुआ रंग था और दूसरे हाथ में पानी का मग्घा।

"तो लाडली बहन आई थी अपने भाई को रंग लगाने?" भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा तो मैंने भी मुस्कुराते हुए कहा____"आप तो जानती हैं उसे। जब आपने उससे रंग के बारे में पूछा तब उसे याद आया कि उसने अभी अपने भाई को रंग लगाया ही नहीं है। इस लिए भागते हुए आई थी यहां।"

"तुम्हें शायद इस बात का इल्म न हो।" भाभी ने थोड़े संजीदा भाव से कहा____"लेकिन मैंने महसूस किया है कि पिछले कुछ महीनों से वो किसी किसी दिन बहुत ही गंभीर दिखती है। मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है उसके इस तरह गंभीर दिखने की। मैंने एक दो बार उससे पूछा भी था किन्तु उसने कुछ बताया नहीं। बस यही कहा कि तबीयत ख़राब है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैंने कहा तो भाभी ने चौंक कर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्या मतलब? क्या तुम्हें भी इस बात का आभास हुआ है?"
"जिस दिन मैं हवेली आया था।" मैंने कहा____"उसी दिन उससे कुछ बातें की थी मैंने और उसी दिन उसने मुझसे कुछ ऐसी बातें की थी जिन बातों की कम से कम मैं उससे उम्मीद नहीं करता था।"

"ऐसी क्या बातें की थी उसने?" भाभी ने सोचने वाले भाव से पूछा____"और क्या तुमने उससे उस दिन पूछा नहीं था कुछ?"
"उसकी बातें दार्शनिकों वाली थी भाभी।" मैंने कहा____"लेकिन उसकी उन बातों में गहरी बात भी थी जिसने मुझे चौंका दिया था और जब मैंने उससे पूछा तो उसने बड़ी सफाई से बात को टाल दिया था। उसके जाने के बाद मैंने सोचा था कि उसकी बातों के बारे में अपने तरीके से पता करुंगा लेकिन ऐसा अवसर ही नहीं आया क्योंकि मैं एक बार फिर से गुस्सा हो कर हवेली से चला गया था।"

"इस बारे में तुम्हें ठंडे दिमाग़ से विचार करने की ज़रूरत है वैभव।" भाभी ने कहा____"तुम्हें समझना होगा कि आज कल परिस्थितियां कैसी हो गई हैं लेकिन तुम तो हमेशा गुस्से में ही रहते हो।"

"मेरा ये गुस्सा बेवजह नहीं है भाभी।" मैंने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"बल्कि इसके पीछे एक बड़ी वजह है।"
"तुम्हारा गुस्सा बेवजह ही है वैभव।" भाभी ने ज़ोर देते हुए कहा____"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतनी बेरुखी से बात करते हो। मैं तो ये सोच कर चकित हो जाती हू कि तुम उनसे ऐसे लहजे में कैसे बात लेते होगे?"

"वैभव सिंह ऐसे ही जियाले का नाम है भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जो किसी से भी नहीं डरता और जिससे भी बात करता है बिल्कुल बेख़ौफ़ हो कर बात करता है। फिर भले ही उसके सामने दादा ठाकुर ही क्यों न हों।"

"अभी एक थप्पड़ लगाऊंगी तो सारा जियालापन निकल आएगा तुम्हारा।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बड़े आए बेख़ौफ़ हो कर बात करने वाले। अगर इतने ही बड़े जियाले हो तो अब तक मुझसे दूर क्यों भागते थे?"

"वो...वो तो मैं।" मैंने अटकते हुए कुछ कहना ही चाहा था कि भाभी ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा____"बस बस बताने की ज़रूरत नहीं है। ख़ैर अब बातों में वक़्त जाया न करवाओ और मुझे अपने देवर को रंग लगाने दो।"

"जी ठीक है भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा तो भाभी ने कागज़ से रंग निकालते हुए कहा____"वैसे इस कमरे में आने से पहले किसके साथ रंग खेल कर आए थे? उस वक़्त मेरे पूछने पर जब तुमने कुसुम का नाम लिया तो मैंने यही समझा था कि तुमने कुसुम के साथ रंग खेला था लेकिन अभी जब कुसुम यहाँ तुम्हें रंग लगाने आई तब समझ आया कि उस वक़्त तुम कुसुम के साथ नहीं बल्कि किसी और के साथ रंग खेल कर आए थे। मैं सही कह रही हूं न?"

"जी भाभी।" मैंने नज़रें झुकाते हुए कहा____"पर मैं उस वक़्त आपको बताने ही वाला था लेकिन आपने ही मेरी बात काट दी थी।"
"अच्छा तो चलो अब बता दो।" भाभी ने हाथ में रंग लेने के बाद उसमे पानी मिलाते हुए कहा____"आख़िर किसके साथ रंग खेल कर आए थे?"

"जाने दीजिए न भाभी।" मैंने बात को टालने की गरज़ से कहा____"मैं किसके साथ रंग खेल कर आया था इस बात को जानने की क्या ज़रूरत है?"
"अरे! ज़रूरत क्यों नहीं है?" भाभी ने अपनी भौंहों को चढ़ाते हुए कहा____"बल्कि मेरा तो ये जानने का हक़ है कि मेरा देवर किसके साथ रंग खेल कर यहाँ आया था? वैसे मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा तो है किन्तु मैं तुम्हारे मुँह से जानना चाहती हूं। अब जल्दी से बताओ भी, इतना भाव मत खाओ?"

"वो..मैं अपने कमरे में गया तो कुछ ही देर में कुसुम भी वहां पहुंच गई थी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"कुसुम के साथ उसकी दो सहेलियां भी थीं। कुसुम ने मुझे बताया कि उसकी वो सहेलियां मुझे रंग लगाना चाहती हैं। कुसुम की बात सुन कर मैंने इसके लिए इंकार नहीं किया।"

"मुझे लग ही रहा था कि ऐसी ही कोई बात होगी।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर हमारे देवर जी लड़की ज़ात से इतना प्रेम जो करते हैं।"
"ऐसी कोई बात नहीं है भाभी।" मैंने एकदम से झेंपते हुए कहा____"वो तो बस मैंने उनकी ख़ुशी के लिए रंग लगवा लिया है।"

"अच्छा जी।" भाभी ने आँखें चौड़ी करते हुए कहा____"तुमने उनसे सिर्फ रंग लगवाया? उन्हें रंग नहीं लगाया??"
"वो तो मैंने भी लगाया भाभी।" मैंने इस बार हल्के से मुस्कुराते हुए कहा तो भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"वही तो, भला ऐसा कैसे हो सकता था कि दो सुन्दर लड़कियां हमारे देवर जी के पास उन्हें रंग लगाने आएं और ठाकुर वैभव सिंह उनसे रंग लगवाने के बाद खुद उन्हें भी रंग से सराबोर न करें? ख़ैर चलो अच्छी बात है, कम से कम तुम्हारी रंग खेलने की शुरुआत दो सुन्दर लड़कियों से तो हुई। एक हम ही थे जो कल से मुँह फुलाए यहाँ अपने कमरे में पड़े हुए थे और किसी ने हमारी ख़बर तक नहीं ली।"

भाभी की बातें सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि उन्हें बस देखता ही रहा। उधर भाभी ने रंग को अपने हाथों में अच्छी तरह मला और फिर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"तुम्हारे चेहरे पर तो पहले से ही रंग लगा हुआ है वैभव, ऐसे में हमारा लगाया हुआ रंग भला कैसे चढ़ेगा?"

"आपका लगाया हुआ रंग तो सबसे ज़्यादा चढ़ेगा भाभी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इसमें आपका ढेर सारा प्यार और स्नेह शामिल है। आपका लगाया हुआ रंग मेरे चेहरे पर ही नहीं बल्कि मेरी आत्मा पर भी चढ़ जाएगा।"

"अगर ऐसी बात है।" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा___"तब तो ये मेरे लिए सबसे अच्छी बात है वैभव। तुम्हारी इस बात में जो मर्म है वो ये जताता है कि तुम्हारे अंदर अपनी इस भाभी के प्रति इज्ज़त और सम्मान की भावना है और इस बात से मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हो रही है।"

ये कह कर भाभी ने बड़े प्यार से मेरे चेहरे पर हल्के हाथों से रंग लगाना शुरू कर दिया। मैं ख़ामोशी से उनके मुस्कुराते हुए चेहरे को ही देखता जा रहा था। उनकी नज़रें मेरी नज़रों से ही मिली हुईं थी। मुझे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं उनकी गहरी आँखों में डूबने लगा हूं तो मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाला और उनकी आँखों से अपनी नज़रें हटा ली।

"मैंने कहा न कि आज के दिन हर ख़ता माफ़ है वैभव।" मुझे नज़रें हटाता देख भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस लिए इस वक़्त अपनी भाभी से किसी भी बात के लिए झिझक या शर्म महसूस न करो। जैसे मैं बेझिझक हो कर अपने देवर को रंग लगा रही हूं वैसे ही तुम भी अपनी भाभी को रंग लगाना।"

"सोच लीजिए फिर।" मैंने फिर से उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"बाद में ये मत कहिएगा कि मैंने कुछ ग़लत कर दिया है।"
"अरे! इसमें ग़लत करने जैसी कौन सी बात है भला?" भाभी ने अपने दोनों हाथ मेरे चेहरे से हटाते हुए कहा____"तुम्हें रंग ही तो लगाना है तो इसमें ग़लत क्या हो जाएगा?"

"मेरे रंग लगाने का तरीका ज़रा अलग है भाभी।" मैंने धड़कते हुए दिल से कहा____"और मेरा वो तरीका आपको बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगा।"
"अजीब बात है।" भाभी ने मानो उलझ गए भाव से कहा___"क्या रंग लगाने के भी अलग अलग तरीके होते हैं? मैं तो पहली बार सुन रही हूं ऐसा। ख़ैर तुम बताओ कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?"

"मेरा तरीका मत पूछिए भाभी।" मैंने बेचैन भाव से कहा___"अगर मैंने आपको अपने रंग लगाने का तरीका बताया तो आप मेरे बारे में ग़लत सोचने लगेंगी और हो सकता है कि आप मुझ पर गुस्सा भी हो जाएं।"

"तब तो मैं ज़रूर जानना चाहूंगी कि तुम किस तरीके से रंग लगाते हो?" भाभी ने मानो ज़िद करते हुए कहा____"चलो अब बताओ मुझे और हां चिंता मत करो, मैं तुम पर गुस्सा नहीं करुंगी।"

"वो भाभी बात ये है कि।" कुछ देर भाभी की तरफ देखते रहने के बाद मैंने धड़कते दिल से कहा____"एक तो मैं रंग खेलता नहीं हूं और अगर किसी लड़की या औरत के साथ रंग खेलता हूं तो मैं अपने तरीके के अनुसार लड़की या औरत के बदन के हर हिस्से पर रंग लगता हूं।"

"क्या????" मेरी बात सुन कर भाभी बुरी तरह उछल पड़ीं, फिर हैरत से आँखें फाड़े बोलीं____"हे भगवान! तो तुम इस तरीके से रंग लगाते हो? तुम तो बड़े ख़राब हो। भला इस तरह कौन किसी को रंग लगाता है?"

"कोई और लगाता हो या न लगाता हो भाभी लेकिन मैं तो ऐसे ही रंग लगता हूं।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"अब जबकि मैंने आपको अपना तरीका बता ही दिया है तो आपको मैं ये भी बता देता हूं कि कुसुम की जिन सहेलियों ने मेरे कमरे में आ कर मुझे रंग लगाया था उनको मैंने अपने इसी तरीके से रंग लगाया है।"

"हे भगवान!" भाभी आश्चर्य से आँखें फाड़ते हुए बोलीं____"तुम तो सच में बहुत गंदे हो। पर उन्होंने तुमसे इस तरीके से रंग कैसे लगवा लिया? क्या उन्हें तुम पर गुस्सा नहीं आया?"

"ग़ुस्सा क्यों आएगा भाभी?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"वो तो मेरे कमरे में आई ही इसी मकसद से थीं वरना आप ख़ुद सोचिए कि कोई शरीफ लड़की किसी मर्द के कमरे में उसे रंग लगाने क्यों आएगी और अगर आएगी भी तो इस तरीके से रंग लगवाने पर राज़ी कैसे हो जाएगी?"

"हां ये भी सही कहा तुमने।" भाभी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा___"इसका मतलब कुसुम की वो दोनों सहेलियां एक नंबर की चालू थीं। रुको मैं कुसुम से इस बारे में बात करुँगी और उसे समझाऊंगी कि ऐसी लड़कियों को अपनी सहेली न बनाए जिनका चरित्र इतना गिरा हुआ हो।"

"नहीं भाभी।" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"आप कुसुम से इस बारे में कुछ मत कहना। क्योंकि ऐसे में वो समझ जाएगी कि आपको ये सब बातें मेरे द्वारा पता चली हैं और फिर वो मुझ पर ही नहीं बल्कि अपनी सहेलियों से भी गुस्सा हो जाएगी। आप इस बारे में उससे कुछ मत कहिएगा, मैं खुद ही कुसुम को अपने तरीके से समझा दूंगा।"

"ठीक है, अच्छे से समझा देना उसे।" भाभी ने चिंतित भाव से कहा____"ऐसी लड़कियों को सहेली बनाना उसके लिए उचित नहीं है। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि उन लड़कियों ने तुमसे इस तरह से रंग लगवा लिया है, लेकिन यकीन इस लिए कर रही हूं क्योंकि जानती हूं कि तुम्हारा जादू उन पर चल गया होगा। भगवान के लिए वैभव ये सब छोड़़ दो। ये सब अच्छी चीज़ें नहीं हैं। इससे हमारे खानदान का और ख़ुद तुम्हारा भी नाम बदनाम होता है।"

"ठीक है भाभी।" मैंने कहा____"कोशिश करुंगा कि आगे से ऐसा न करूं। ख़ैर अब आप जाइए और नहा धो लीजिए। मैं आपके लिए खाना ले कर आता हूं।"
"अरे! अभी तुम भी तो मुझे रंग लगाओगे।" भाभी ने जैसे मुझे याद दिलाते हुए कहा____"और हां अपने तरीके से मुझे रंग लगाने का सोचना भी मत वरना डंडे से पिटाई करुँगी तुम्हारी। अब चलो जल्दी से रंग लगाओ, उसके बाद ही नहाने जाऊंगी।"

भाभी की बात सुन कर मैं मुस्कुराया और फिर कागज़ से रंग ले कर मैंने उसमे थोड़ा पानी मिलाया और फिर दोनों हाथों में अच्छे से मलने के बाद मैं आगे बढ़ा। भाभी के सुन्दर चेहरे पर रंग लगाने का सोच कर ही सहसा मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं थी। भाभी मुस्कुराते हुए मुझे ही देख रहीं थी। मैंने भाभी के चेहरे की तरफ अपने हाथ बढ़ाए और फिर हल्के हाथों से उनके बेहद ही कोमल गालों पर रंग लगाने लगा। भाभी की बड़ी बड़ी कजरारी आँखें मुझ पर ही गड़ी हुईं थी। उनको रंग लगाते लगाते एकदम से मेरा जी चाहा कि मैं उनके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों को झुक कर चूम लूं। अपने ज़हन में आए इस ख़याल से मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो गईं किन्तु एकदम से मुझे ख़याल आया कि ये मैं क्या सोच रहा हूं?

मैं एक झटके से भाभी से दूर हुआ। भाभी मुझे अचानक से इस तरह दूर होते देख चौंकी और हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए बोलीं____"क्या हुआ वैभव? तुम एकदम से पीछे क्यों हट गए?"
"माफ़ करना भाभी।" मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा____"पता नहीं क्या हो जाता है मुझे? मैं जब भी आपके क़रीब होता हूं तो मैं आपकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मैं बहुत बुरा इंसान हूं।"

ये सब कहते कहते मैं एकदम से हताश सा हो गया था और इससे पहले कि वो मुझसे कुछ कहतीं मैं पलटा और तेज़ी से कमरे से निकल गया। मेरे पीछे भाभी अपनी जगह पर किंकर्तव्यविमूढ़ सी हालत में खड़ी रह गईं थी।

भाभी के कमरे से बाहर आ कर मैं सीधा अपने कमरे में आया और दरवाज़ा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। इस वक़्त मेरे दिलो दिमाग़ में आँधिया सी चल रहीं थी। मेरा दिल एकदम बेचैनी से भर गया था। भाभी से कही हुई अपनी ही बातें सोच सोच कर मैं अंदर ही अंदर एक आग में जलने लगा था। अभी तक तो ये था कि भाभी को मेरे अंदर की इन बातों का पता नहीं था इस लिए मुझे ज़्यादा चिंता नहीं होती थी किन्तु अब तो उन्हें सब पता चल गया था और अभी तो मैं साफ़ शब्दों में उनसे कह कर ही आया था कि मैं उनकी तरफ आकर्षित होने लगता हूं। मेरी बातें सुन कर यकीनन वो मेरे बारे में ग़लत ही सोचने लगी होंगी और ये भी ग़लत नहीं कि मेरी बातें सुन कर उन्हें मुझ पर बेहद गुस्सा भी आया होगा। मैं ऐसी ही बातों से तो हमेशा डरता था और यही वजह थी कि मैं हवेली में रुकता नहीं था। मैं ये हरगिज़ नहीं चाहता था कि इस हवेली की लक्ष्मी सामान बहू अपने देवर की हवस का शिकार हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो मैं अपने आपको कभी माफ़ नहीं कर पाऊंगा। मेरी सोच और मेरे मन पर मेरा कोई अख़्तियार नहीं था। अपने सामने मैंने हज़ारों बार यही सोचा था कि अपनी देवी सामान भाभी के बारे में ग़लत नहीं सोचूंगा मगर उनके सामने जाते ही पता नहीं क्या हो जाता था मुझे। मैं किसी सम्मोहन की तरह उनकी सुंदरता के मोह जाल में फंस जाता था। ये तो शुक्र था कि ऐसी स्थिति में हर बार मैंने खुद को सम्हाल लिया था।

बिस्तर पर लेटा हुआ मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था और जब मुझे किसी भी तरह से चैन न आया तो मैं उठा और कमरे से बाहर चला गया। नीचे आया तो देखा अभी भी आँगन में औरतों की भीड़ थी। हलांकि अब पहले जैसी भीड़ नहीं थी किन्तु चहल पहल अभी भी ज़्यादा ही थी। मैं बिना किसी की तरफ देखे सीधा गुसलखाने में घुस गया और ठंडे पानी से नहाना शुरू कर दिया। काफी देर तक मैं नहाता रहा और फिर सारे गीले कपड़े उतार कर मैंने एक तौलिया लपेट लिया।

गुसलखाने से निकल कर मैं फिर ऊपर अपने कमरे में आया और कपड़े पहन कर फिर से निकल गया। इस बार मेरे मन में हवेली से बाहर जाने का ख़याल था। हवेली से बाहर आया तो देखा बड़े से मैदान में अभी भी काफी लोगों की भीड़ थी और एक तरफ निचली जाति वाले फाग गाने में मस्त थे। अभी मैं ये सब देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैंने गर्दन घुमा कर देखा। मेरे पीछे तरफ जगताप चाचा जी खड़े नज़र आए।

"होली मुबारक हो वैभव बेटे।" चाचा जी ने बड़े प्यार से कहा और थाली से अबीर ले कर मेरे माथे पर लगा दिया। मैंने झुक कर उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया।

"जाओ अपने पिता जी से भी आशीर्वाद ले लो।" चाचा जी ने कहा____"आज के दिन अपने मन में किसी भी प्रकार का मनमुटाव मत रखो। सबसे ख़ुशी ख़ुशी मिलो। जब तक किसी से मिलोगे नहीं तक लोगों के बारे में सही तरह से जानोगे कैसे? अभी तक तुमने अपनी नज़र से दुनियां और दुनियां वालों को देखा है, कभी इस दुनियां को दुनियां वालों की नज़र से भी देखो। हमें पूरा यकीन है कि तुम्हारा नज़रिया बदल जाएगा।"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैंने ख़ामोशी से सिर हिलाया और उनके हाथ से थाली ले कर मंच पर चढ़ गया। मंच में सिंघासन पर दादा ठाकुर बैठे हुए थे। मुझे मंच पर चढ़ता देख उन्होंने मेरी तरफ देखा। उनके अगल बगल शाहूकार मणिशंकर और हरिशंकर बैठे हुए थे, जो अब मेरी तरफ ही देखने लगे थे। यकीनन इस वक़्त मुझे मंच पर आया देख उन दोनों की धड़कनें तेज़ हो गईं होंगी। ख़ैर थाली लिए मैं पिता जी के पास पहुंचा।

"होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं पिता जी।" मैंने बड़े ही सम्मान भाव से कहा और चुटकी में अबीर ले कर उनके माथे पर लगा दिया। मेरी बात सुन कर उन्होंने पहले थाली से चुटकी में अबीर लिया और मेरे माथे पर लगाते हुए बोले___"तुम्हें भी होली का ये पर्व मुबारक हो। ईश्वर हमेशा तुम्हें खुश रखे और सद्बुद्धि दे।"

अगल बगल बैठे मणिशंकर और हरिशंकर हमारी तरफ ही देख रहे थे और इस वक़्त वो दोनों एकदम शांत ही थे। हलांकि उनकी आंखें हैरत से फटी पड़ी थीं। ख़ैर पिता जी की बात सुन कर मैं झुका और उनके पैरों में अपना सिर रख दिया। ऐसा पहली बार ही हुआ था कि मैंने उनके पैरों में इस तरह से अपना सिर रख दिया था। मैं खुद नहीं जानता था कि मैंने ऐसा क्यों किया था, बल्कि ये तो जैसे अपने आप ही हो गया था मुझसे। उधर पिता जी ने जब देखा कि मैंने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया है तो उन्होंने मुझे बाजू से पकड़ कर उठाया और कहा____"आयुष्मान भव।"

मैंने देखा इस वक़्त दादा ठाकुर के चेहरे पर एक अलग ही तरह की चमक उभर आई थी। कदाचित इस लिए कि मैंने सबके सामने वो किया था जिसकी उन्हें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ख़ैर पिता जी के बाद मैंने मणिशंकर को भी अबीर लगाते हुए होली की मुबारकबाद दी और जब उसके पैरों को छूने लगा तो उसने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और फिर हड़बड़ाए हुए भाव से बोला____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है छोटे ठाकुर और हां आपको भी होली का ये त्यौहार मुबारक हो।"

मणिशंकर के बाद मैंने हरिशंकर को भी उसके जैसे ही अबीर लगाया और उसे होली की मुबारकबाद दी तो वो भी अपने बड़े भाई की तरह ही हड़बड़ा गया था। दोनों भाई मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर एकदम से चकित थे और मैं उन्हें चकित ही तो करना चाहता था। ख़ैर उसके बाद मैं पलटा तो देखा मंच के सामने काफी लोगों की नज़रें मुझ पर ही जमी हुई थीं। उन सबकी आँखों में हैरानी के भाव थे।

"ये बहुत अच्छा किया तुमने।" मंच से उतर कर जब मैं आया तो जगताप चाचा जी ने मुस्कुराते हुए कहा____"और यकीन मानो तुम्हारे ऐसा करने से दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि हम सब भी बहुत खुश हो गए है। ये ऐसी चीज़ें हैं बेटे जो दुश्मन के दिल में भी अपने लिए ख़ास जगह बना देती हैं। हमें उम्मीद है कि हमारा सबसे लाडला भतीजा अब एक अच्छा इंसान बन कर दिखाएगा। हमेशा खुश रहो और ऐसे ही अच्छे संस्कारों के साथ अच्छे अच्छे काम करते रहो। अब जाओ और अपने बड़े भैया का भी आशीर्वाद ले लो।"

जगताप चाचा जी के कहने पर मैं थाली ले कर उस तरफ बढ़ चला जिस तरफ बड़े भैया साहूकारों के लड़कों के पास भांग के हल्के नशे में झूमते हुए बातें कर रहे थे। कुछ ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया। मुझे आया देख साहूकारों के लड़के एकदम से पीछे हट गए। बड़े भैया की नज़र मुझ पर पड़ी तो उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए। उनके पास ही खड़े विभोर और अजीत भी थोड़ा सहम कर पीछे हट गए थे। मैंने थाली से चुटकी में अबीर लिया और बड़े भैया के माथे पर लगाते हुए उन्हें होली की मुबारकबाद दी और फिर झुक कर उनके पैर छुए।

"ये...ये क्या कर रहा है तू?" बड़े भैया भांग के हल्के शुरूर में थे और जब उन्होंने मुझे अपना पैर छूटे देखा तो वो एकदम से बौखलाए हुए लहजे में बोल पड़े थे।
"आपके पैर छू कर।" मैंने बड़े ही आदर भाव से कहा____"आपका आशीर्वाद ले रहा हूं बड़े भैया। क्या अपने इस नालायक भाई को आशीर्वाद नहीं देंगे?"

मेरी बात सुन कर बड़े भैया ग़ौर से मेरी तरफ देखने लगे। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में ये सोच कर एक दर्द सा उठने लगा था कि कुल गुरु ने भैया के बारे में ये भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन काल ज़्यादा समय का नहीं है। अभी मैं गुरु जी की भविष्यवाणी के बारे में सोचते हुए उन्हें देख ही रहा था कि उन्होंने एकदम से मुझे अपने गले से लगा लिया।

"वैभाव, मेरा भाई।" भैया ने मुझे गले से लगाए हुए कांपती हुई आवाज़ में कहा____"तुझे आशीर्वाद में ये भी नहीं कह सकता कि तुझे मेरी उम्र लग जाए। बस यही कहूंगा कि संसार की हर ख़ुशी मिले तुझे।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" उनकी बात सुन कर मैं मन ही मन चौंका था। इसका मतलब उन्हें अपने बारे में पता था। उनके इस तरह कहने से मेरी आँखों में आंसू भर आए, और फिर मैंने दुखी भाव से कहा____"मैंने हमेशा आपको दुःख दिए हैं।"
"आज की इस ख़ुशी में वो सारे दुःख नेस्तनाबूत हो गए वैभव।" बड़े भैया ने मेरी पीठ को सहलाते हुए करुण भाव से कहा____"चल आ जा। आज की इस ख़ुशी में तू भी भांग पी ले। हम दोनो अब खूब धूम मचाएंगे।"

बड़े भैया ने मुझे खुद से अलग किया। मैंने देखा उनकी आँखों में भी आंसू के कतरे थे जिन्हें उन्होंने अपनी रंगी हुई आस्तीन से पोंछ लिया। चारो तरफ खड़े लोग हैरानी से हम दोनों को देख रहे थे। साहूकारों के लड़कों का हाल भी वैसा ही था। भैया ने मेरा हाथ पकड़ा और खींच कर उस जगह ले आए जहां मटकों में भांग का शरबत भरा हुआ रखा था। मटके के पास एक आदमी खड़ा हुआ था जिसे भैया ने इशारा किया तो उसने एक गिलास भांग का शरबत उन्हें दिया। उस गिलास को भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे देते हुए कहा ले वैभव इसे एक ही सांस में पी जा। मैंने मुस्कुराते हुए उनसे वो गिलास ले लिया। अभी मैं गिलास को अपने मुँह से लगाने ही चला था कि तभी वातावरण में चटाक्क्क्क की तेज़ आवाज़ गूँजी। हम सबने चौंक कर आवाज़ की दिशा में देखा। कुछ ही क़दम की दूरी पर जगताप चाचा जी अपने दोनों बेटों के पास खड़े थे। इस वक़्त उनके चेहरे पर गुस्सा नज़र आ रहा था।

"जिस लड़के ने किसी के सामने कभी झुकना पसंद नहीं किया।" चाचा जी गुस्से में दहाड़ते हुए विभोर से कह रहे थे____"आज उसने यहाँ सबके सामने झुक कर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लिया और तुम दोनों ने क्या किया? हम उस दिन से तुम दोनों का तमाशा देख रहे हैं जिस दिन वो चार महीने की सज़ा काट कर हवेली आया था। तुम दोनों ने तो उससे ना तो कोई बात की और ना ही उसके पैर छुए। क्या यही संस्कार दिए हैं हमने?"

जगताप चाचा जी की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वो अपने दोनों बेटों को इस बात के लिए डांट रहे हैं कि उन दोनों ने मेरे पैर नहीं छुए थे। हलांकि उन दोनों की इस धृष्टता के लिए मैं खुद ही उन्हें सबक सिखाना चाहता था किन्तु मौका ही नहीं मिला था मुझे। वैसे एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि ये काम ख़ुद जगताप चाचा जी ने कर दिया था वरना यदि मैं उन्हें कुछ कहता तो संभव था कि चाचा जी को इस बात पर बुरा लग जाता। हलांकि उनके बुरा लग जाने से मुझे घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ता किन्तु अब सोचता हूं कि जो हुआ अच्छा ही हुआ।

"जगताप क्या हो रहा है ये?" वातावरण में दादा ठाकुर की भारी आवाज़ गूँजी तो हम सबने उनकी तरफ देखा, जबकि उनकी ये बात सुन कर जगताप चाचा जी पलट कर उनसे बोले____"इन दोनों को इनके बुरे आचरण की सज़ा दे रहा हूं बड़े भैया। इन दोनों के अंदर इतनी भी तमीज़ नहीं है कि ये अपने बड़े भाई का सम्मान करें।"
"आज के दिन छोड़ दो उन्हें।" दादा ठाकुर ने कहा____"इस बारे में अगले दिन बात होगी।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर चाचा जी ख़ामोश हो गए किन्तु पलट कर अपने दोनों बेटों की तरफ भयानक गुस्से से देखा ज़रुर। विभोर और अजीत डरे सहमे से गर्दन झुकाए खड़े थे। ख़ैर जगताप चाचा जी गुस्से में भन्नाए हुए चले गए। उनके जाने के बाद विभोर और अजीत मेरी तरफ आए।

"हमें माफ़ कर दीजिए भइया।" विभोर ने हाथ जोड़ कर और अपना सिर झुका कर धीमी आवाज़ में कहा____"हमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी है।"
"कोई बात नहीं।" मैंने सपाट भाव से कहा____"सबसे भूल होती है। ख़ैर जाओ और होली का आनंद लो।"

मेरे कहने पर वो दोनों चले गए। वातावरण में फिर से पहले जैसा शोर गूंजने लगा। इधर मैंने बड़े भैया की तरफ देखते हुए भांग मिले शरबत को पीना शुरू कर दिया। गिलास खाली हुआ तो भैया ने एक गिलास और थमा दिया और मुस्कुराते हुए बोले____"एक और पी वैभव।"

"बस हो गया भइया।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे पता है इसका नशा कैसा होता है। अगर ये चढ़ गई तो मेरे लेने के देने पड़ जाएंगे।"
"अरे! इतने में नहीं चढ़ेगी वैभव।" भैया ने हंसते हुए कहा____"तुझे पता है इस गौरव ने तो चार गिलास पिया है और देख ले अभी तक होश में है।"

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


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वाह वाह कया बात है भाई
बोहोत ही सुन्दर अपडेट दिया है आपने
आखिर हीरो हवेली आ ही गया
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hee jabardust update tha ye ! Vaibhav ka badla hua roop sabke samne aaya ...

ab vaibhav ko dil se nahin dimag se sochne ki jarurat hai...
agla update ab kuch jyada mazedaar hone ummeed ban gayi hai

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻🌷🌷🌷
 
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