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Shukriya bhai is khubsurat sameeksha ke liye,,,,होली के त्योहार में बैभव का ये बदला हुआ रूप देख कर जैसे गाँव के सभी लोग तथा साहूकर्रों के मुंह खुला रहा गया वैसे ही कुछ हाल हम रीडर्स का भी है,क्यूँ के जो व्यक्ति अपने सामने दूसरों को कुछ नहीं समझता था वो भारी महफ़िल में अपने पिता ,चाचा और बड़े भाई से जैसे मिला कहीं न कहीं ये एक उल्लेखनीय दृश्य रहा इस कहानी में,अपडेट के सुरुआत में हुई बैभव और कुसुम के साथ हुई बातचीत और एक दूसरे को प्यार से रंग लगाना उनके बीच भाई बहन का निश्चल प्रेम दर्शाता है,मगर फिर बीच में कुसुम के आँख नम हो जाना क्या सिर्फ एक दूसरे के प्यार का एक तात्क्षणिक भावना ब्यक्त करने का था या फिर कुछ और है क्यूँ की अगले भाग के भाभी से बातचीत में हमे ये पता चलता है की सिर्फ बैभव को ही नहीं भाभी को भी कुसुम के आए दिन बातचीत में परिवर्तन दिख रहा है,फिर अंतिम भाग में रुपचन्द का भरे महफ़िल से अन्तर्धान रहना भी कहीं इसके साथ कड़ी न जोड़ती हो क्यूँ की बैभव ने एक बार अनुराधा के मामले में रुपचन्द से पटकनी खा चुका है,और कहीं ये भी इस बार ऐसे कोई फिराक में ना हो ये ना तो बैभव या फिर हमारे गले से इतने जल्दी गले से उतरेगा ये बात.. फिर देखते हैं अगले भाग में क्या होता है

Kusum ke bare me jo sawaal uthe hain unka jawaab uchit samay par zarur milega bhaiya ji. Waise kahani me to abhi aur bhi kayi sawaal hain jinke jawaab dheere dheere milte hi jayenge. Khair agle update dekhiye roopchandra ke bare me kya pata chalta hai,,,,
