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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,684
115,206
354
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 24
----------☆☆☆----------





अब तक,,,,,

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


अब आगे,,,,,



"क्या हुआ वैभव?" मैं इधर उधर देख ही रहा था कि तभी मेरे कानों में बड़े भैया की आवाज़ पड़ी तो मैंने उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा____"तेरा ध्यान किधर है? किसी को खोज रहा है क्या?"

"रूपचंद्र कहीं नज़र नहीं आ रहा भइया।" मैंने फिर से दूर दूर तक नज़र घुमाते हुए कहा____"जब मैं जगताप चाचा जी के साथ बाहर से हवेली आया था तब मैंने उसे आपके साथ ही देखा था किन्तु इस वक़्त वो यहाँ कहीं नज़र नहीं आ रहा।"

"हां कुछ देर पहले तक तो वो यहीं था वैभव।" बड़े भैया ने भी इधर उधर नज़र घूमाते हुए कहा____"पता नहीं अचानक से कहां गायब हो गया है वो? मैंने भी उस पर ध्यान नहीं दिया था। पता नहीं कब वो यहाँ से चला गया या फिर ये हो सकता है कि वो यहीं कहीं हो और हमें नज़र न आ रहा हो।"

"नहीं भइया।" मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा____"वो यहाँ कहीं भी नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि वो यहाँ से जा चुका है।"
"हमारी महफ़िल को छोड़ कर कहां गया होगा वो?" भैया ने जैसे सोचने वाले भाव से कहा____"ख़ैर छोड़ उसे। इतना क्यों सोच रहा है उसके बारे में? चल आ जा एक गिलास और ये शरबत पी ले। तू पिएगा तो एक गिलास मैं भी पी लूंगा।"

"आप पहले ही बहुत पी चुके हैं भइया।" मैंने कहा____"अब आप इसे नहीं पिएँगे। आप जानते हैं न कि इसका नशा कितना ख़तरनाक होता है?"
"अरे इसमें भांग की मात्रा बहुत ही कम मिली हुई है वैभव।" भैया ने भांग के हल्के शुरूर में कहा____"इस लिए तू फ़िक्र मत कर। चल एक एक गिलास और पीते हैं इसे।" कहने के साथ ही बड़े भैया उस आदमी की तरफ पलटे जो मटके के पास खड़ा था____"पूरन, एक एक गिलास और दे हम दोनों को। आज बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी का दिन है।"

बड़े भैया की बात सुन कर पूरन ने मटके से एक एक गिलास भांग का शरबत निकाला और बड़े भैया को पकड़ाया तो भैया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ पलटे और मेरी तरफ एक गिलास बढ़ाते हुए बोले____"मेरी ख़ुशी के लिए एक गिलास और पी ले मेरे भाई।"

भैया की बात सुन कर मैंने उनकी ख़ुशी के लिए उनसे गिलास ले लिया और फिर उनकी तरफ देखते हुए उस भांग मिले शरबत को पीने लगा। मुझे पीता देख बड़े भैया मुस्कुराए और फिर उन्होंने भी अपना गिलास अपने होठों से लगा लिया। भांग का नशा देरी से चढ़ता है लेकिन जब चढ़ता है तो इंसान की हालत ख़राब कर देता है और ये बात मैं अच्छी तरह जानता था। ख़ैर मैंने अपना गिलास खाली किया और खाली गिलास को मटके के पास टेबल पर रख दिया। अभी तो नशे का मुझे कोई आभास नहीं हो रहा था किन्तु भैया ज़रूर शुरूर में थे। ऐसा इस लिए क्योंकि वो पहले से ही भांग का शरबत पी रहे थे।

मैं बड़े भैया के पास ज़रूर खड़ा था किन्तु मेरा ध्यान रूपचन्द्र की ही तरफ था। हलांकि ये बात इतनी अहम् नहीं थी किन्तु मेरी नज़र में इस लिए अहम् थी क्योंकि एक तो अनुराधा के यहाँ मैंने उसे पेला था और दूसरे यहाँ पर जब मैं आया था तब वो बड़े भैया के पास ही था किन्तु अभी वो गायब हो चुका था। मेरे ज़हन में यही सवाल ताण्डव कर रहा था कि जब सब लोग यहाँ पर हैं तो वो यहाँ से इस तरह क्यों चला गया है? मेरा दिल कह रहा था कि उसके यहाँ से इस तरह चले जाने का कोई न कोई कारण ज़रूर है।

मैंने बड़े भैया को यहीं रुकने को कहा और रूपचन्द्र की तलाश में निकल पड़ा। सबसे पहले मैंने उसे हवेली के इस मैदान में ही हर जगह ढूंढ़ा उसके बाद हवेली के अंदर चला गया। हलांकि मुझे यकीन था कि रूपचन्द्र हवेली के अंदर अकेले जाने का साहस नहीं कर सकता किन्तु फिर भी मैं हवेली के अंदर उसे खोजने के लिए गया। काफी देर तक मैं उसे हवेली में हर जगह खोजता रहा लेकिन रूपचन्द्र मुझे कहीं नज़र न आया। इस बीच कुसुम ज़रूर मुझे अपनी सहेलियों के साथ रंग खेलती हुई नज़र आई थी। ख़ैर हवेली से निकल कर मैं बाहर आया और भीड़ में इधर उधर नज़र घुमाते हुए मैं हवेली के हाथी दरवाज़े से बाहर आ गया। अभी मैं दरवाज़े पर आया ही था कि मुझे एकदम से अनुराधा का ख़याल आया। अनुराधा का ख़याल आते ही मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या रूपचन्द्र अनुराधा के पास गया होगा? रूपचंद्र कुत्ते की दुम की तरह था, इस लिए वो यकीनन मुरारी काका के घर जा सकता था, भले ही मैंने उसे वहां जाने से मना किया था। उसने सोचा होगा कि इस वक़्त मैं हवेली में हूं और सबसे मिल जुल रहा हूं तो उसने इसे सुनहरा अवसर समझा होगा।

मैं वापस पलटा और तेज़ी से उस तरफ बढ़ चला जहां पर मेरी मोटर साइकिल खड़ी थी। मोटर साइकिल को चालू कर के मैं तेज़ी से हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ा। बुलेट की तेज़ आवाज़ वातावरण में गूंज उठी थी जिससे काफी लोगों का ध्यान मेरी तरफ आकर्षित हुआ था किन्तु मैं बिना किसी की तरफ देखे निकल गया।

कच्ची सड़क पर मेरी बुलेट दौड़ती चली जा रही थी। साहूकारों के घर से निकल कर मैं कुछ ही देर में मुंशी के घर के सामने से गुज़र गया। मेरे ज़हन में रूपचन्द्र और अनुराधा ही थे जिनके बारे में मैं तरह तरह की बातें सोचते हुए तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था।

मुरारी काका के घर पंहुचा तो देखा वहां पर रूपचन्द्र नहीं था। सरोज काकी अपनी बेटी अनुराधा और बेटे अनूप के साथ बैठी हुईं थी। उनके चेहरे से भी ऐसा ज़ाहिर नहीं हुआ कि रूपचन्द्र यहाँ आया होगा। मुझे आया देख सरोज काकी और अनुराधा थोड़ा हैरान हुए और फिर सामान्य भाव से काकी ने मुझे बैठने को कहा तो मैंने कहा कि नहीं मैं बैठूंगा नहीं बल्कि मैं यहाँ ये बताने आया था कि कल सुबह दो आदमी उसके खेतों की कटाई के लिए आ जाएंगे।

थोड़ी देर काकी से बात करने के बाद मैं वापस घर से बाहर आया और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर फिर से वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रूपचन्द्र अगर यहाँ नहीं आया तो फिर गया कहां? ऐसा लगता था जैसे वो गधे के सींग की तरह गायब हो गया था।

अपने गांव में दाखिल हुआ तो मेरे ज़हन में एक बार बगीचे वाले मकान में भी देख लेने का विचार आया तो मैंने मोटर साइकिल को उस तरफ मोड़ दिया। कुछ ही देर में मैं बगीचे वाले मकान के सामने पहुंच गया। मैंने चारो तरफ घूम घूम कर रूपचन्द्र को खोजा मगर वो कहीं नज़र न आया। मतलब साफ़ था कि वो यहाँ आया ही नहीं था, या फिर अगर आया भी होगा तो वो मेरे यहाँ आने से पहले ही चला गया होगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे अब कहां खोजूं? रूपचंद्र एकदम से मेरे लिए जैसे चिंता का विषय बन गया था।

बगीचे से वापस मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मुंशी के घर के पास आया तो देखा मुंशी के घर का दरवाज़ा बंद था। मेरे मन में विचार आया कि क्यों न रजनी को एक बार पेल लिया जाए, किन्तु अगले ही पल मैंने अपने इस विचार को ज़हन से झटक दिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में सिर्फ रूपचन्द्र ही होना चाहिए था और उसे खोजना मेरा लक्ष्य होना चाहिए था। ये सोच कर मैं मोटर साइकिल को आगे बढ़ने ही वाला था कि तभी मेरे मन में फिर से रजनी को पेलने का विचार आ गया और इस बार तो मैंने ही सोच लिया कि____'मां चुदाए रूपचन्द्र। अब तो रजनी को एक बार पेल के ही उसे खोजने जाऊंगा।'

मैंने मोटर साइकिल को खड़ी किया और दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। मुझे पता था कि इस वक़्त मुंशी अपनी बीवी और अपने बेटे के साथ हवेली में है और रजनी यहाँ अकेली ही है। ख़ैर दरवाज़े के पास पहुंच कर मैंने दरवाज़े की कुण्डी पकड़ी और उसे दरवाज़े पर बजाने ही वाला था कि तभी दरवाज़ा अंदर की तरफ हिलते हुए खिसका तो मैंने कुण्डी को छोड़ कर दरवाज़े को अंदर की तरफ हाथ से धकेला तो वो खुल गया। मतलब दरवाज़ा अंदर से कुण्डी लगा कर बंद नहीं किया गया था। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी किन्तु फिर मैंने इस बात को झटका और मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोल कर चुपके से अंदर दाखिल हो गया।

मैं मन ही मन सोच रहा था कि रजनी के सामने जा कर मैं उसे हैरान कर दूंगा, इस लिए बिना कोई आवाज़ किए मैं अंदर गलियारे से चलते हुए आँगन की दहलीज़ पर आया ही था कि तभी कुछ आवाज़ें मेरे कानों में पड़ीं तो मैं एकदम से रुक गया। मैं आँगन में दाखिल नहीं हुआ था बल्कि दरवाज़े से थोड़ा पीछे ही था इस लिए मैंने सिर्फ आवाज़ें ही सुनी थी और ऐसी आवाज़ें सुनी थी कि मैं एकदम से अपनी जगह पर रुक गया था। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं थी। तभी फिर से मेरे कानों में आवाज़ पड़ी। अंदर आँगन में रजनी थी और उसके साथ कोई और भी था। दोनों की आवाज़ों से साफ़ पता चल रहा था कि वो दोनों आंगन में चुदाई कर रहे है। रजनी चुदवाते हुए मज़े से आहें भर रही थी और उसे चोदने वाला हुंकार भर रहा था। मुझे ये आवाज़ें सुन कर बड़ी हैरानी हुई और फिर मैं ये भी सोचने लगा कि साला मेरे माल पर कौन अपना हाथ साफ़ कर रहा है?

मैंने सिर को थोड़ा सा निकाल कर आँगन की तरफ देखा तो मैं चौंक गया। रजनी ज़मीन पर नंगी लेटी हुई थी और उसकी दोनों टाँगें दोनों तरफ हवा में टंगी हुईं थी। उसके ऊपर एक आदमी था जो उसी के जैसे पूरा नंगा था और यहाँ से मैं साफ़ देख रहा था कि वो ज़ोर ज़ोर से रजनी की चूत में अपनी कमर को हुमच रहा था। आदमी की पीठ मेरी तरफ थी इस लिए मैं उसे पहचान नहीं पाया। रजनी बड़े मज़े से आहें भर रही थी।

"और ज़ोर से चोदो मुझे।" तभी रजनी की सिसियाती हुई आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मुझे दिखाओ कि तुम उससे अच्छा चोदते हो कि नहीं। आअह्ह्ह मेरी चूत के अंदर तक अपना लंड डालो जैसे वो डालता है।"

"साली रंडी।" उस आदमी की ये आवाज़ सुन कर मैं बुरी तरह चौंका। मन ही मन गाली देते हुए कहा अबे ये तो मादरचोद रूपचन्द्र की आवाज़ है। रुपचंद्र की आवाज़ सुन कर मैं एकदम से भौचक्का सा रह गया था। बड़ी तेज़ी से मेरे दिलो दिमाग़ में ये सवाल उभरा कि ये मादरचोद रजनी के साथ कैसे और खुद रजनी उसके साथ ऐसे कैसे चुदवा सकती है? ये सोचते ही मेरा दिमाग भन्ना गया और मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी धधक उठा। मन ही मन कहा मैंने_____'अब तुझे मेरे क़हर से कौन बचाएगा बे रूप के चन्द्र?'

मैं गुस्से में उबलता हुआ उन दोनों की तरफ बढ़ने ही वाला था कि तभी मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से ख़याल उभरा कि नहीं नहीं गुस्से में काम बिगड़ जाएगा। मुझे छुप कर ही ये सब देखते हुए ये जानना चाहिए कि ये दोनों इस हालत में कैसे हैं और रजनी ने मुझे इस तरह से धोखा क्यों दिया? अपने ज़हन में आए इस ख़याल के बारे में सोच कर मैंने आगे बढ़ने का इरादा छोड़ दिया और मन ही मन खुद को समझाया कि_____'इन दोनों की गांड तो मैं बाद में भी मार सकता हूं। पहले सच जानना चाहिए।'

"साली रंडी।" उधर रूपचन्द्र रजनी से कह रहा था____"और कितना ज़ोर से चोदूं तुझे? उस हरामज़ादे से चुदवा चुदवा कर तो तूने पहले से ही अपनी बुर का भोसड़ा बना लिया है।"

"मेरी बुर का भोसड़ा भले ही बन गया है रूपचन्द्र।" रजनी ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद जब वो मुझे चोदता है तो कसम से मैं मस्त हो जाती हूं। इसी लिए कह रही हूं कि अगर तुम में दम है तो उसके जैसा ही चोदो मुझे।"

"उस हरामखोर की मेरे सामने बड़ाई मत कर बुरचोदी।" रूपचंद्र ने खिसियाते हुए और ज़ोर से उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए कहा____"वरना तेरी गांड में लंड घुसेड़ कर तेरी गांड फाड़ दूंगा।"

"रहने दो रूपचंद्र।" रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हारे बस का नहीं है मेरी गांड फाड़ना क्योंकि वो पहले से ही फटी हुई है। मेरी गांड को भी उसी ने फाड़ा है। अच्छा होगा कि तुम अपना पानी निकालो और चलते बनो यहाँ से।"

"साली मादरचोद।" रूपचंद्र ने गुस्से में रजनी को थप्पड़ मारते हुए कहा____"मैंने कहा न कि मेरे सामने उस भोसड़ीवाले की बड़ाई न कर। तुझे एक बार में समझ नहीं आता क्या?"

"आहहह उससे इतना क्यों जलते हो तुम?" रजनी ने दर्द से कराह कर कहा____"कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने तुम्हारी भी गांड फाड़ दी है?"
"वो क्या मेरी गांड फाड़ेगा?" रूपचंद्र ने गुस्से में कहा____"गांड तो मैं उसकी बहन कुसुम की फाड़ूंगा। उसने मेरी बहन रूपा को अपने नीचे सुलाया है न तो मैं भी उसकी बहन को अपने लंड के नीचे सुलाऊंगा।"

"ऐसा सोचना भी मत।" रजनी ने मानो उसे चेताते हुए कहा____"वरना वो तुम्हारे पूरे खानदान की औरतों की गांड फाड़ देगा। अभी तुम ठीक से जानते नहीं हो उसे।"
"वो कुछ नहीं कर पाएगा समझी।" रूपचंद्र ने कहा____"उसे जो कुछ करना था वो कर चुका है। अब करने की बारी मेरी है। उसने मेरे भाई का हाथ तोड़ा और उसने मेरी खुद की बहन को अपने जाल में फंसाया। इस सबका हिसाब अब मैं सूद समेत लूंगा उससे।"

रजनी उसकी बात सुन कर इस बार कुछ न बोली बल्कि उसके द्वारा दिए जा रहे धक्कों से अपनी आँखे बंद कर के चुदाई का मज़ा लेने लगी थी। इधर रूपचन्द्र की बातें सुन कर मेरा खून खौला जा रहा था लेकिन इस वक़्त मैं अपने गुस्से को काबू करने की कोशिश कर रहा था। हर बार मैं ऐसे मौकों पर कूद पड़ता था और साहूकारों के लड़कों की माँ बहन एक कर देता था लेकिन इस बार मैं पहले जैसा काम नहीं करना चाहता था, बल्कि अब मैं देखना चाहता था कि ये हरामी की औलाद क्या क्या करता है। मैं देखना चाहता था कि उसके मन में इसके अलावा अभी और क्या क्या भरा हुआ है?

मैं उसके मुख से ये जान कर थोड़ा हैरान हुआ था कि उसे अपनी बहन के मेरे साथ बने सम्बन्धों का पहले से पता है लेकिन सवाल है कि कैसे पता चला उसे? मैं तो हर बार पूरी सतर्कता से ही उसके घर उसकी बहन के कमरे में जाता था और फिर अपना काम कर के चुप चाप ही चला आता था। फिर कैसे उसे अपनी बहन के इन सम्बन्धों का पता चला? क्या रूपा को भी ये पता है कि उसके और मेरे सम्बन्धों की बात उसके भाई को पता है? मैं तो पहले की भाँती फिर से उसके घर उसकी बहन से मिलने जाने वाला था और रूपा से ये जानने का प्रयास करने वाला था कि उसके परिवार वाले हम ठाकुरों के बारे में आज कल क्या सोचते हैं और क्या कुछ करने वाले हैं? लेकिन रूपचन्द्र की इस बात से अब मैं रूपा से उस तरह नहीं मिल सकता था क्योंकि ज़ाहिर है कि अब वो अपनी बहन पर नज़र रखता होगा और अगर ऐसे में मैं रूपा से मिलने जाऊंगा तो मैं उसके द्वारा पकड़ा जाऊंगा।

रजनी भी साली मुझे धोखा दे रही थी। मुझसे तो चुदवाती ही थी किन्तु इस शाहूकार के लड़के रूपचन्द्र से भी चुदवा रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि रजनी का सम्बन्ध रूपचन्द्र से कैसे हुआ होगा और ये सब कब से चल रहा होगा? आज ये सब देख कर मैं समझ गया था कि रजनी का चरित्र बहुत ही घटिया था और अब वो भरोसे के लायक नहीं थी। रजनी के प्रति अपने अंदर गुस्सा लिए मैं कुछ देर ये सब सोचता रहा और फिर चुप चाप वहां से चला आया। बाहर आ कर मैं अपनी मोटर साइकिल में बैठा और हवेली की तरफ बढ़ चला। रूपचंद्र को आज रजनी के साथ ऐसी हालत में देख कर मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि ये रूपचन्द्र भी साला कम नहीं है। इसने भी ऐसी जगह झंडे गाड़े हैं जिस जगह के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था। रजनी के ऊपर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था और अब मैंने सोच लिया था कि रजनी के साथ क्या करना है।

सूर्य पश्चिम दिशा की तरफ उतरने वाला था और क़रीब एक घंटे में शाम हो जानी थी। हवेली में आया तो देखा मैदान में अब लोगों की भीड़ नहीं थी। कुछ ही लोग अब वहां पर मौजूद थे। मंच पर दादा ठाकुर के साथ शाहूकार और दूसरे गांव के कुछ ठाकुर लोग बैठे हुए थे। बड़े भैया मुझे नज़र न आए तो मैं सीधा हवेली के अंदर ही चला गया। हवेली के अंदर आया तो मुझे भाभी का ख़याल आया और फिर वो सब भी याद आ गया जो कुछ आज मैंने उनसे कहा था। सब कुछ याद आते ही मेरे अंदर एक बोझ सा पैदा हो गया और मैं सोचने लगा कि जब भाभी से मेरा दुबारा सामना होगा तब वो क्या कहेंगी मुझसे?

"तेरा भी कहीं अता पता भी रहता है कि नहीं?" मैं ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों के पास पंहुचा ही था कि पीछे से माँ की आवाज़ सुन कर रुक गया। पलट कर मैंने उनकी तरफ देखा तो वो बोलीं_____"कब से ढूंढ रही हूं तुझे और तेरा कहीं पता ही नहीं है।"

"होली की हार्दिक शुभकामनायें मां।" मैंने माँ के पास आ कर उनके पैरों को छूने के बाद कहा____"मैं तो यहीं था। अभी कुछ देर पहले ही एक ज़रूरी काम से बाहर गया था। कहिए क्या काम है मुझसे?"

"सदा खुश रह।" माँ ने मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"जगताप ने बताया मुझे कि कैसे आज तूने अपने से बड़ों के पैर छू कर उन सबका आशीर्वाद लिया। उसकी बात सुन कर मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन जब उसने ज़ोर दे कर कहा कि तूने सच में ऐसा किया है तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई। बस तभी से तुझे ढूंढ रही थी।"

"भाभी जी ने खाना खाया कि नहीं?" मैंने धड़कते दिल से माँ से पूछा तो माँ ने मुस्कुराते हुए कहा____"हां अभी कुछ देर पहले ही खाया है उसने। कुसुम ने बताया मुझे कि तू गया था उसके कमरे में उसे मनाने के लिए?"

"क्या करता माँ?" मैंने कहा____"वो मेरी वजह से नाराज़ थीं तो मैं ये कैसे चाह सकता था कि मेरी वजह से कोई अन्न जल का त्याग कर के कमरे में बंद हो जाए?"
"ये तूने बहुत अच्छा किया।" माँ ने फिर से मेरा चेहरा सहलाया____"मुझे ख़ुशी है कि तुझे अपनी भाभी की फ़िक्र है और मैं यही कहूंगी कि तू ऐसे ही सबके बारे में सोच और अपने फर्ज़ निभा। जब तू ऐसा करेगा तो सब तुझे अच्छा ही कहेंगे बेटा और सब तुझे प्यार भी करेंगे।"

"कोशिश करुंगा मां।" मैंने कहा____"अच्छा कुसुम कहां है? क्या अभी तक उसका रंग खेलना बंद नहीं हुआ?"
"जगताप उसे डांटता नहीं तो वो खेलती ही रहती।" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी कुछ देर पहले ही गुसलखाने में नहाने गई थी। तुझे उससे कोई काम है क्या?"

"हां उससे कहिएगा कि चाय बना कर मेरे कमरे में ले आए।" मैंने कहा____"सिर भारी भारी सा लग रहा है।"
"वो तो लगेगा ही।" माँ ने कहा____"भाँग वाला शरबत जो पिया है तूने।"

"आपको कैसे पता?" मैंने चौंक कर माँ की तरफ देखा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे सब पता चल गया है। अच्छा अब तू जा और अपने कमरे में आराम कर। मैं कुसुम को बोलती हूं कि वो तेरे लिए चाय बना कर ले जाए।"

मां के ऐसा कहने के बाद मैं सीढ़ियों से ऊपर आ गया। ऊपर बालकनी में आया तो मेरी नज़र भाभी के कमरे की तरफ जाने वाले गलियारे पर पड़ी। गलियारा एकदम सूना था। मैं चुप चाप अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में आ कर मैंने अपनी शर्ट उतारी और पंखा चला कर बिस्तर पर लेट गया।

बिस्तर पर लेता हुआ मैं सोच रहा था कि जिस तरह के हालात बने हुए थे उन हालातों में सिर्फ मैं ही उलझा हुआ था या मेरे अलावा भी कोई उलझा हुआ था? कई सारी बातें थी और कई सारे सवाल थे। मैं जितना उन सवालों के जवाब पाने के लिए आगे बढ़ता था उतना ही उलझ जाता था और फिर से एक नया सवाल मेरे सामने पैदा हो जाता था। मेरे सवाल मुरारी काका की हत्या से शुरू होते थे। मेरे सवालों की संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही थी। मुरारी काका की हत्या किसने की ये सवाल अभी भी अपनी जगह पर बना हुआ था और मैं इस सवाल के लिए अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। हवेली में कुसुम की गहरी बातों का रहस्य अपनी जगह एक सवाल लिए खड़ा था जिसके बारे में जानना मेरे लिए ज़रूरी था। साहूकारों के सिलसिले में एक अलग ही सवाल बना हुआ था कि उन लोगों ने हमसे अपने रिश्ते तो सुधार लिए थे किन्तु इस सबके पीछे उनकी मंशा क्या थी ये जानना भी ज़रूरी था किन्तु अभी तक इस बारे में भी कुछ पता नहीं चल सका था मुझे।

भाभी के बारे में जो सवाल खड़ा हुआ था उसके बारे में आज जो कुछ उनसे पता चला था उसने मुझे हिला कर ही रख दिया था। मुझे यकीन ही नहीं जो रहा था कि मेरे बड़े भैया के बारे में किसी ने ऐसी भविष्यवाणी की है। भाभी के द्वारा ये सब जान कर ये तो समझ आया कि उन्होंने इसी वजह से मुझसे ये कहा था कि बड़े भैया दादा ठाकुर की जगह लेने के लायक नहीं हैं किन्तु अब एक सवाल ये भी था कि भैया को अपने बारे में ये बात कैसे पता है? क्या भाभी ने उन्हें इस बारे में बताया होगा? हो सकता है कि शायद उन्होंने ही बताया हो किन्तु सवाल ये था कि क्या भैया अपने बारे में ये बातें हवेली में हर किसी से छुपा रहे हैं? अगर छुपा रहे हैं तो क्यों?

पिता जी ने उस दिन मुझे जो कुछ बताया था उसका अपना एक अलग ही लफड़ा था। जिसके बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला था। संभव है कि पिता जी ने अपने तरीके से इस बारे में पता लगाया हो लेकिन मुझे तो कुछ भी पता नहीं था ना। क्या इस सिलसिले में मुझे पिता जी से बात करनी चाहिए? क्या उनसे इस बारे में भी बात करनी चाहिए कि मुरारी की हत्या की जांच के लिए जिस दरोगा को उन्होंने कहा था उसने हत्यारे से संबंधित कुछ पता लगाया है या नहीं? दादा ठाकुर से इस बारे में बात करने से मुमकिन है कि वो मुझे यही मशवरा दें कि तुम इस सबसे दूर ही रहो। उस हालत में मैं कुछ नहीं कर सकता था। इसका मतलब मुझे खुद ही इस बारे में पता करना होगा।

उस काले साए का अपना एक अलग ही किस्सा था। इतना तो मैं जान और समझ चुका था कि पहले मिलने वाला वो साया मुझे ख़तरे से सावधान करने आया था और उस दिन उसने दूसरे उन दोनों सायों से मेरी जान भी बचाई थी किन्तु सवाल ये था कि वो साया आख़िर था कौन? आख़िर क्यों उसने मेरे ख़तरे को अपने ऊपर ले लिया था? दूसरे वो साए कौन थे जो मेरे लिए कालदूत बन कर आए थे? क्या उन सायों को मुझे मारने के लिए साहूकारों ने भेजा था? मेरे ज़हन में जब भी उन दोनों सायों का ख़याल आता था तो मैं गहरी सोच में पड़ जाता था और ये भी सोचता था कि मेरे चारो तरफ एक ऐसा ख़तरा मौजूद है जो न जाने किस तरफ से अचानक ही मुझ पर टूट पड़े।

रूपचंद्र का अपना एक अलग ही लफड़ा शुरू हो गया था। आज जिस तरह से मैंने उसे रजनी के साथ देखा था और उसकी बातें सुनी थी उससे ये तो समझ आया कि वो अपनी जाति दुश्मनी के चलते मुझसे बदला लेना चाहता है किन्तु सवाल ये था कि रजनी से उसका सम्बन्ध कैसे बना और कब से उन दोनों के बीच ये सब चल रहा है? रूपचन्द्र कितना शातिर है ये तो मैं देख ही चूका था। सरोज काकी को उसने बड़ी आसानी से इस बात के लिए मजबूर कर दिया था कि वो अपनी बेटी को उसके नीचे सुला दे। वो तो उस दिन किस्मत से मैं वहां पहुंच गया था वरना वो अनुराधा के साथ उस दिन कुछ भी कर सकता था और अनुराधा उसका विरोध नहीं कर सकती थी।

"हे भगवान!" तभी कमरे में कुसुम की आवाज़ गूँजी तो मैं सोचो से बाहर आया जबकि उसने कहा____"मैं जब भी आपके कमरे में आती हूं तो आप कहीं न कहीं खोए हुए ही दिखते हैं। अब अगर मैं आपका एक नया नाम सोचन देव रख दूं तो इस बारे में क्या कहेंगे आप?"

"अरे! आ गई तू?" उसे देखते ही मैंने उठते हुए कहा____"ला पहले चाय दे और बैठ मेरे पास।"
"आज तो रंग खेलने में मज़ा ही आ गया भइया।" कुसुम ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए और मुझे चाय पकड़ाते हुए कहा_____"मैंने आज अपनी सभी सहेलियों को रंग में पूरा का पूरा नहला दिया था। विशाखा तो बेचारी रोने ही लगी थी।"

"हां देखा था मैंने।" चाय का हल्का सा घूंट लेते हुए मैंने कहा____"तू भी उनकी तरह ही रंगी हुई थी और तेरा चेहरा तो एकदम से बंदरिया जैसा लग रहा था।"
"क्या कहा आपने????" कुसुम ने आँखें फैलाते हुए कहा____"मैं आपको बंदरिया जैसी लग रही थी? आप मुझे बंदरिया कैसे कह सकते हैं? जाइए, मुझे आपसे अब बात ही नहीं करना।"

"अरे! मैंने ये थोड़ी न कहा है कि तू बंदरिया है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने तो ये कहा है कि तू बंदरिया जैसी लग रही थी क्योंकि तेरे चेहरे पर लाल लाल रंग लगा हुआ था।"
"अब आप बात को घुमाइए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"बंदरिया जैसी लगने का मतलब यही होता है कि मैं आपको बंदरिया ही लगी। बड़े दुःख की बात है कि मेरे सबसे अच्छे वाले भैया ने मुझे बंदरिया कहा। अब किसके कंधे पर अपना सिर रख कर रोऊं मैं?"

"विभोर और अजीत के कंधे पर सिर रख के रो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो कुसम ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा____"उनका तो नाम ही मत लीजिए। वो मुझे चुप क्या कराएंगे उल्टा मुझे और रुलाएंगे। आप भी अब उनके जैसे ही बनते जा रहे हैं।"

"तेरा ये भाई किसी और के जैसा बनना पसंद नहीं करता।" मैंने कहा____"बल्कि लोग मेरे जैसा बनने की ख़्वाइश रखते हैं।"
"वाह वाह! अपने मुख से अपनी ही बड़ाई।" कुसुम ने नाटकीय भाव से हाथ नचाते हुए कहा____"वैसे मैंने सुना है कि आज आपने सबको आश्चर्य चकित कर दिया था।"

"हम ऐसे ही हैं बहना।" मैंने गर्व से अपनी गर्दन को अकड़ाते हुए कहा____"हम अक्सर ऐसा काम करते हैं जिसे देख कर लोगों की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। इसी लिए तो कह रहा हूं तुझसे कि लोग मेरे जैसा बनने की ख़्वाइश रखते हैं।"

"अब बस भी कीजिए भइया।" कुसुम ने कहा____"आप तो खुद ही अपने आपको चने के झाड़ पर चढ़ाए जा रहे हैं।"
"अच्छा ये बता कि तुझे मैंने जो काम दिया था उसका क्या हुआ?" मैंने बात को बदलते हुए कहा____"तुझे कुछ याद भी है या सब भूल गई है?"

"मुझे सब याद है भइया।" कुसुम ने कहा____"और मैं आपको बताने ही वाली थी लेकिन फिर बताना ही भूल गई, लेकिन आप भी तो यहाँ नहीं थे।"
"अच्छा तो अब बता।" मैंने कहा____"क्या पता किया तूने?"

"बड़े भैया के बारे में।" कुसुम ने थोड़ा संजीदा भाव से कहा____"यही कहूंगी कि वो ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जिसका आपको अंदेशा है, जबकि वो दोनों नमूने कोई न कोई खिचड़ी ज़रूर पका रहे हैं।"
"क्या मतलब?" मैंने आँखें सिकोड़ते हुए कहा____"कैसी खिचड़ी पका रहे हैं वो दोनों?"

"साहुकार के लड़के रूपचन्द्र को तो आप जानते ही होंगे न?" कुसुम ने ये कहा तो मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"हां तो? मेरा मतलब है कि रूपचन्द्र उन दोनों के बीच में कहां से आ गया?"

"पूरी बात तो सुन लिया कीजिए।" कुसुम ने कहा____"बीच में ही टोंक देते हैं आप।"
"अच्छा नहीं टोकूंगा।" मैंने कहा____"आगे बता।"
"रूपचंद्र के छोटे भाई गौरव से उन दोनों की दोस्ती है।" कुसुम ने कहा____"हलाँकि मैंने उन दोनों को गौरव के साथ देखा तो नहीं है लेकिन एक दिन वो अपने कमरे में उसके बारे में बातें ज़रूर कर रहे थे।"

"कैसी बातें कर रहे थे वो?" मैंने उत्सुकता से पूछा।
"यही कि अभी तक तो वो दोनों।" कुसुम ने कहा____"अपने दोस्त गौरव से हवेली से बाहर ही छुप कर मिलते थे लेकिन अब वो उसे हवेली में बुलाया करेंगे। क्योंकि अब हमारे और साहूकारों के रिश्ते सुधर गए हैं।"

"अच्छा और कैसी बातें कर रहे थे वो?" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"क्या मेरे बारे में उन दोनों ने कोई बात नहीं की?"
"अभी तक तो नहीं।" कुसुम ने कहा____"लेकिन आज मैंने देखा था कि वो दोनों बहुत ही गुस्से में बाहर से आए थे और अपने कमरे में चले गए थे। मुझे भी समझ नहीं आया कि वो किस लिए गुस्सा थे? पहले मैंने सोचा कि पता करूं लेकिन फिर सहेलियों की वजह से कहीं जा ही नहीं पाई।"

"हां वो चाचा जी ने विभोर को सबके सामने थप्पड़ मारा था।" मैंने कुसुम को बताते हुए कहा____"शायद इसी लिए वो गुस्से में बाहर से आये थे।"
"पिता जी ने थप्पड़ क्यों मारा था उन्हें?" कुसुम ने हैरानी से पूछा तो मैंने उसे संक्षेप में बता दिया। मेरी बात सुन कर वो बोली_____"अच्छा तभी वो इतने गुस्से में थे।"

"हां और उनका गुस्से में होना।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"ये दर्शाता है कि उन्हें अपनी ग़लती का कोई एहसास नहीं है बल्कि जिस ग़लती की वजह से उन्हें अपने पिता जी से थप्पड़ मिला है उसके लिए वो मुझे जिम्मेदार मानते हैं। ज़ाहिर है इस वजह से उन दोनों के अंदर मेरे प्रति भी गुस्सा और नफ़रत भर गई होगी। तू पता करने की कोशिश कर कि वो दोनों इस हादसे के बाद मेरे बारे में क्या बातें करते हैं?"

"ठीक है भइया।" कुसुम ने कहा____"और कुछ?"
"हां, अगर गौरव या साहूकारों का कोई भी सदस्य हवेली में आए तो तू मुझे फ़ौरन बताएगी। एक और भी है सबसे ज़रूरी बात और वो ये कि तू अपनी सहेलियों के साथ हवेली से बाहर नहीं जाएगी।"

"भला ये क्या बात हुई भैया?" कुसुम ने हैरानी से कहा____"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"
"क्योंकि मुझे अपनी मासूम सी बहन की बहुत ज़्यादा फ़िक्र है।" मैंने कुसुम के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"अगर तेरे साथ ज़रा सा भी कुछ हुआ तो मैं सारी दुनियां को आग लगा दूंगा।"

"भइया।" कहते हुए कुसुम मुझसे लिपट गई। उसकी आँखों में आँसू भर आए थे। मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा____"तुझे जब भी अपनी सहेलियों से मिलना हो तो तू यहाँ की किसी नौकरानी से कह देना। वो तेरी सहेली को हवेली में ही बुला लाएगी।"

"ठीक है भइया।" कुसुम ने मुझसे अलग होते हुए कहा____"जैसा आप कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी।"
"ये सब मैं तेरी भलाई के लिए ही कह रहा हूं बहना।" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"क्योंकि आज कल हालात ठीक नहीं हैं। अच्छा अब तू जा और आराम कर। आज बहुत थक गई होगी न तू?"

मेरे कहने पर कुसुम ने हाँ में सिर हिलाया और फिर वो चाय का खाली प्याला ले कर कमरे से चली गई। उसके जाने के बाद मैं फिर से बिस्तर पर लेट गया। अभी मैं बिस्तर पर लेट कर कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि कुसुम एक बार फिर से मेरे कमरे में दाखिल हुई और मेरे पास आ कर बोली____"आपको एक बात बताना तो मैं भूल ही गई भैया।"

"कौन सी बात?" मेरे माथे पर शिकन उभर आई।
"कल शाम को।" कुसुम ने कहा____"दादा ठाकुर के पास एक आदमी आया था। वो इस गांव का नहीं लगता था।"
"अच्छा कौन था वो आदमी?" मैंने सोचने वाले भाव से पूछा तो कुसुम ने कहा____"दादा ठाकुर उस आदमी को दरोगा जी कह रहे थे।"

"अच्छा, तो वो आदमी दरोगा था।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"ख़ैर, दादा ठाकुर ने क्या बात की उस दरोगा से? क्या तूने सुनी थी उनकी बातें?"
"नहीं सुन पाई भइया।" कुसुम ने निराश भाव से कहा____"क्योंकि मुझे बड़ी माँ ने आवाज़ दे कर बुला लिया था। उसके बाद फिर मौका ही नहीं मिला बैठक में जाने का।"
"चल कोई बात नहीं।" मैंने कहा____"अब तू जा और आराम कर।"

कुसुम के जाने के बाद मैं सोचने लगा कि पिता जी ने उस दरोगा से क्या बातें की होंगी? क्या दरोगा ने मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा लिया होगा? अगर हां तो कौन होगा मुरारी काका का हत्यारा? ऐसे न जाने कितने ही सवाल मेरे ज़हन में एकदम से तांडव करने लगे थे। मेरे अंदर एकदम से ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी कि पिता जी ने दरोगा से आख़िर क्या बातें की होंगी? मैं अब किसी भी हालत में इन सब बातों को जानना चाहता था किन्तु सवाल था कि कैसे? मैंने फ़ैसला किया कि पिता जी से मिल कर इस बारे में ज़रूर बात करुंगा।

मैं ऐसे ही न जाने कब तक सोचो में गुम रहा और फिर मेरी आँख लग गई। मेरी नींद कुसुम के जगाने पर ही टूटी। वो मुझे खाना खाने के लिए बुलाने आई थी। उसे वापस भेज कर मैं उठा कर कमरे से निकल कर नीचे गुसलखाने में चला गया। गुसलखाने में मैंने हाथ मुँह धोया और खाना खाने के लिए उस जगह पर आ गया जहां पर दादा ठाकुर और जगताप चाचा जी बैठे हुए थे। उनके बगल से बड़े भैया बैठे हुए थे। विभोर और अजीत दोनों की ही कुर्सी खाली थी। ख़ैर एक कुर्सी पर आ कर मैं भी बैठ गया। खाना खाते वक़्त कोई भी बात नहीं कर सकता था इस लिए हम सब लोग चुपचाप खाना खाने में ब्यस्त हो ग‌ए।

मैं सिर नीचा किए खाना खाने में मस्त था कि तभी मेरे पैर में कोई चीज़ हल्के से छू गई तो मैंने चौंक कर सिर उठाया। मेरी नज़र बड़े भैया पर पड़ी, उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आँखों से इशारा किया तो मुझे कुछ समझ न आया कि वो किस बात के लिए इशारा कर रहे थे। तभी उन्होंने पिता जी की तरफ देखा तो मैंने भी पिता जी की तरफ देखा। पिता जी खाने का निवाला चबाते हुए मेरी तरफ ही देख रहे थे। जैसे ही मेरी नज़र उनकी नज़र से मिली तो मैंने जल्दी से नज़र हटा ली और सिर झुका कर फिर से खाना शुरू कर दिया। मेरी ये सोच कर धड़कनें तेज़ हो गईं थी कि पिता जी मेरी तरफ ऐसे क्यों देख रहे थे?

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Riitesh02

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☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 24
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अब तक,,,,,

मैंने नज़र घुमा कर शाहूकार के लड़के गौरव की तरफ देखा तो उसने जल्दी से सहम कर अपनी नज़रें नीची कर ली। उसे इस तरह नज़रें नीची करते देख बड़े भैया हंसते हुए मुझसे बोले_____"इनके अंदर तेरी इतनी दहशत भरी हुई है कि ये बेचारे तुझसे नज़रें भी नहीं मिला सकते।" कहने के साथ ही बड़े भैया ने गौरव से कहा____"इधर आ। अब से तुझे मेरे इस छोटे भाई से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब से ये तुम लोगों को कुछ नहीं कहेगा लेकिन ये भी याद रखना कि अगर तुम लोगों ने आगे से इसे कुछ कहा तो फिर उसके जिम्मेदार तुम लोग ख़ुद ही होगे।"

बड़े भैया की बात सुन कर गौरव ने हां में सिर हिलाया और फिर वो हमारे पास आ गया। थोड़ी ही देर में गौरव मेरे सामने सहज महसूस करने लगा। मैं नज़र घुमा घुमा कर उसके भाई रूपचंद्र को खोज रहा था लेकिन वो मुझे कहीं नज़र नहीं आ रहा था। जब मैं जगताप चाचा जी के साथ यहाँ आया था तब मैंने उसे यहीं पर देखा था किन्तु इस वक़्त वो कहीं दिख नहीं रहा था। मेरे मन में ख़याल उभरा कि कहीं वो किसी फ़िराक में तो नहीं है?"


अब आगे,,,,,



"क्या हुआ वैभव?" मैं इधर उधर देख ही रहा था कि तभी मेरे कानों में बड़े भैया की आवाज़ पड़ी तो मैंने उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा____"तेरा ध्यान किधर है? किसी को खोज रहा है क्या?"

"रूपचंद्र कहीं नज़र नहीं आ रहा भइया।" मैंने फिर से दूर दूर तक नज़र घुमाते हुए कहा____"जब मैं जगताप चाचा जी के साथ बाहर से हवेली आया था तब मैंने उसे आपके साथ ही देखा था किन्तु इस वक़्त वो यहाँ कहीं नज़र नहीं आ रहा।"

"हां कुछ देर पहले तक तो वो यहीं था वैभव।" बड़े भैया ने भी इधर उधर नज़र घूमाते हुए कहा____"पता नहीं अचानक से कहां गायब हो गया है वो? मैंने भी उस पर ध्यान नहीं दिया था। पता नहीं कब वो यहाँ से चला गया या फिर ये हो सकता है कि वो यहीं कहीं हो और हमें नज़र न आ रहा हो।"

"नहीं भइया।" मैंने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा____"वो यहाँ कहीं भी नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि वो यहाँ से जा चुका है।"
"हमारी महफ़िल को छोड़ कर कहां गया होगा वो?" भैया ने जैसे सोचने वाले भाव से कहा____"ख़ैर छोड़ उसे। इतना क्यों सोच रहा है उसके बारे में? चल आ जा एक गिलास और ये शरबत पी ले। तू पिएगा तो एक गिलास मैं भी पी लूंगा।"

"आप पहले ही बहुत पी चुके हैं भइया।" मैंने कहा____"अब आप इसे नहीं पिएँगे। आप जानते हैं न कि इसका नशा कितना ख़तरनाक होता है?"
"अरे इसमें भांग की मात्रा बहुत ही कम मिली हुई है वैभव।" भैया ने भांग के हल्के शुरूर में कहा____"इस लिए तू फ़िक्र मत कर। चल एक एक गिलास और पीते हैं इसे।" कहने के साथ ही बड़े भैया उस आदमी की तरफ पलटे जो मटके के पास खड़ा था____"पूरन, एक एक गिलास और दे हम दोनों को। आज बहुत ही ज़्यादा ख़ुशी का दिन है।"

बड़े भैया की बात सुन कर पूरन ने मटके से एक एक गिलास भांग का शरबत निकाला और बड़े भैया को पकड़ाया तो भैया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ पलटे और मेरी तरफ एक गिलास बढ़ाते हुए बोले____"मेरी ख़ुशी के लिए एक गिलास और पी ले मेरे भाई।"

भैया की बात सुन कर मैंने उनकी ख़ुशी के लिए उनसे गिलास ले लिया और फिर उनकी तरफ देखते हुए उस भांग मिले शरबत को पीने लगा। मुझे पीता देख बड़े भैया मुस्कुराए और फिर उन्होंने भी अपना गिलास अपने होठों से लगा लिया। भांग का नशा देरी से चढ़ता है लेकिन जब चढ़ता है तो इंसान की हालत ख़राब कर देता है और ये बात मैं अच्छी तरह जानता था। ख़ैर मैंने अपना गिलास खाली किया और खाली गिलास को मटके के पास टेबल पर रख दिया। अभी तो नशे का मुझे कोई आभास नहीं हो रहा था किन्तु भैया ज़रूर शुरूर में थे। ऐसा इस लिए क्योंकि वो पहले से ही भांग का शरबत पी रहे थे।

मैं बड़े भैया के पास ज़रूर खड़ा था किन्तु मेरा ध्यान रूपचन्द्र की ही तरफ था। हलांकि ये बात इतनी अहम् नहीं थी किन्तु मेरी नज़र में इस लिए अहम् थी क्योंकि एक तो अनुराधा के यहाँ मैंने उसे पेला था और दूसरे यहाँ पर जब मैं आया था तब वो बड़े भैया के पास ही था किन्तु अभी वो गायब हो चुका था। मेरे ज़हन में यही सवाल ताण्डव कर रहा था कि जब सब लोग यहाँ पर हैं तो वो यहाँ से इस तरह क्यों चला गया है? मेरा दिल कह रहा था कि उसके यहाँ से इस तरह चले जाने का कोई न कोई कारण ज़रूर है।

मैंने बड़े भैया को यहीं रुकने को कहा और रूपचन्द्र की तलाश में निकल पड़ा। सबसे पहले मैंने उसे हवेली के इस मैदान में ही हर जगह ढूंढ़ा उसके बाद हवेली के अंदर चला गया। हलांकि मुझे यकीन था कि रूपचन्द्र हवेली के अंदर अकेले जाने का साहस नहीं कर सकता किन्तु फिर भी मैं हवेली के अंदर उसे खोजने के लिए गया। काफी देर तक मैं उसे हवेली में हर जगह खोजता रहा लेकिन रूपचन्द्र मुझे कहीं नज़र न आया। इस बीच कुसुम ज़रूर मुझे अपनी सहेलियों के साथ रंग खेलती हुई नज़र आई थी। ख़ैर हवेली से निकल कर मैं बाहर आया और भीड़ में इधर उधर नज़र घुमाते हुए मैं हवेली के हाथी दरवाज़े से बाहर आ गया। अभी मैं दरवाज़े पर आया ही था कि मुझे एकदम से अनुराधा का ख़याल आया। अनुराधा का ख़याल आते ही मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या रूपचन्द्र अनुराधा के पास गया होगा? रूपचंद्र कुत्ते की दुम की तरह था, इस लिए वो यकीनन मुरारी काका के घर जा सकता था, भले ही मैंने उसे वहां जाने से मना किया था। उसने सोचा होगा कि इस वक़्त मैं हवेली में हूं और सबसे मिल जुल रहा हूं तो उसने इसे सुनहरा अवसर समझा होगा।

मैं वापस पलटा और तेज़ी से उस तरफ बढ़ चला जहां पर मेरी मोटर साइकिल खड़ी थी। मोटर साइकिल को चालू कर के मैं तेज़ी से हाथी दरवाज़े की तरफ बढ़ा। बुलेट की तेज़ आवाज़ वातावरण में गूंज उठी थी जिससे काफी लोगों का ध्यान मेरी तरफ आकर्षित हुआ था किन्तु मैं बिना किसी की तरफ देखे निकल गया।

कच्ची सड़क पर मेरी बुलेट दौड़ती चली जा रही थी। साहूकारों के घर से निकल कर मैं कुछ ही देर में मुंशी के घर के सामने से गुज़र गया। मेरे ज़हन में रूपचन्द्र और अनुराधा ही थे जिनके बारे में मैं तरह तरह की बातें सोचते हुए तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था।

मुरारी काका के घर पंहुचा तो देखा वहां पर रूपचन्द्र नहीं था। सरोज काकी अपनी बेटी अनुराधा और बेटे अनूप के साथ बैठी हुईं थी। उनके चेहरे से भी ऐसा ज़ाहिर नहीं हुआ कि रूपचन्द्र यहाँ आया होगा। मुझे आया देख सरोज काकी और अनुराधा थोड़ा हैरान हुए और फिर सामान्य भाव से काकी ने मुझे बैठने को कहा तो मैंने कहा कि नहीं मैं बैठूंगा नहीं बल्कि मैं यहाँ ये बताने आया था कि कल सुबह दो आदमी उसके खेतों की कटाई के लिए आ जाएंगे।

थोड़ी देर काकी से बात करने के बाद मैं वापस घर से बाहर आया और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर फिर से वापस अपने गांव की तरफ चल पड़ा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रूपचन्द्र अगर यहाँ नहीं आया तो फिर गया कहां? ऐसा लगता था जैसे वो गधे के सींग की तरह गायब हो गया था।

अपने गांव में दाखिल हुआ तो मेरे ज़हन में एक बार बगीचे वाले मकान में भी देख लेने का विचार आया तो मैंने मोटर साइकिल को उस तरफ मोड़ दिया। कुछ ही देर में मैं बगीचे वाले मकान के सामने पहुंच गया। मैंने चारो तरफ घूम घूम कर रूपचन्द्र को खोजा मगर वो कहीं नज़र न आया। मतलब साफ़ था कि वो यहाँ आया ही नहीं था, या फिर अगर आया भी होगा तो वो मेरे यहाँ आने से पहले ही चला गया होगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे अब कहां खोजूं? रूपचंद्र एकदम से मेरे लिए जैसे चिंता का विषय बन गया था।

बगीचे से वापस मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मुंशी के घर के पास आया तो देखा मुंशी के घर का दरवाज़ा बंद था। मेरे मन में विचार आया कि क्यों न रजनी को एक बार पेल लिया जाए, किन्तु अगले ही पल मैंने अपने इस विचार को ज़हन से झटक दिया। इस वक़्त मेरे ज़हन में सिर्फ रूपचन्द्र ही होना चाहिए था और उसे खोजना मेरा लक्ष्य होना चाहिए था। ये सोच कर मैं मोटर साइकिल को आगे बढ़ने ही वाला था कि तभी मेरे मन में फिर से रजनी को पेलने का विचार आ गया और इस बार तो मैंने ही सोच लिया कि____'मां चुदाए रूपचन्द्र। अब तो रजनी को एक बार पेल के ही उसे खोजने जाऊंगा।'

मैंने मोटर साइकिल को खड़ी किया और दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। मुझे पता था कि इस वक़्त मुंशी अपनी बीवी और अपने बेटे के साथ हवेली में है और रजनी यहाँ अकेली ही है। ख़ैर दरवाज़े के पास पहुंच कर मैंने दरवाज़े की कुण्डी पकड़ी और उसे दरवाज़े पर बजाने ही वाला था कि तभी दरवाज़ा अंदर की तरफ हिलते हुए खिसका तो मैंने कुण्डी को छोड़ कर दरवाज़े को अंदर की तरफ हाथ से धकेला तो वो खुल गया। मतलब दरवाज़ा अंदर से कुण्डी लगा कर बंद नहीं किया गया था। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी किन्तु फिर मैंने इस बात को झटका और मुस्कुराते हुए दरवाज़ा खोल कर चुपके से अंदर दाखिल हो गया।

मैं मन ही मन सोच रहा था कि रजनी के सामने जा कर मैं उसे हैरान कर दूंगा, इस लिए बिना कोई आवाज़ किए मैं अंदर गलियारे से चलते हुए आँगन की दहलीज़ पर आया ही था कि तभी कुछ आवाज़ें मेरे कानों में पड़ीं तो मैं एकदम से रुक गया। मैं आँगन में दाखिल नहीं हुआ था बल्कि दरवाज़े से थोड़ा पीछे ही था इस लिए मैंने सिर्फ आवाज़ें ही सुनी थी और ऐसी आवाज़ें सुनी थी कि मैं एकदम से अपनी जगह पर रुक गया था। मेरे दिल की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं थी। तभी फिर से मेरे कानों में आवाज़ पड़ी। अंदर आँगन में रजनी थी और उसके साथ कोई और भी था। दोनों की आवाज़ों से साफ़ पता चल रहा था कि वो दोनों आंगन में चुदाई कर रहे है। रजनी चुदवाते हुए मज़े से आहें भर रही थी और उसे चोदने वाला हुंकार भर रहा था। मुझे ये आवाज़ें सुन कर बड़ी हैरानी हुई और फिर मैं ये भी सोचने लगा कि साला मेरे माल पर कौन अपना हाथ साफ़ कर रहा है?

मैंने सिर को थोड़ा सा निकाल कर आँगन की तरफ देखा तो मैं चौंक गया। रजनी ज़मीन पर नंगी लेटी हुई थी और उसकी दोनों टाँगें दोनों तरफ हवा में टंगी हुईं थी। उसके ऊपर एक आदमी था जो उसी के जैसे पूरा नंगा था और यहाँ से मैं साफ़ देख रहा था कि वो ज़ोर ज़ोर से रजनी की चूत में अपनी कमर को हुमच रहा था। आदमी की पीठ मेरी तरफ थी इस लिए मैं उसे पहचान नहीं पाया। रजनी बड़े मज़े से आहें भर रही थी।

"और ज़ोर से चोदो मुझे।" तभी रजनी की सिसियाती हुई आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मुझे दिखाओ कि तुम उससे अच्छा चोदते हो कि नहीं। आअह्ह्ह मेरी चूत के अंदर तक अपना लंड डालो जैसे वो डालता है।"

"साली रंडी।" उस आदमी की ये आवाज़ सुन कर मैं बुरी तरह चौंका। मन ही मन गाली देते हुए कहा अबे ये तो मादरचोद रूपचन्द्र की आवाज़ है। रुपचंद्र की आवाज़ सुन कर मैं एकदम से भौचक्का सा रह गया था। बड़ी तेज़ी से मेरे दिलो दिमाग़ में ये सवाल उभरा कि ये मादरचोद रजनी के साथ कैसे और खुद रजनी उसके साथ ऐसे कैसे चुदवा सकती है? ये सोचते ही मेरा दिमाग भन्ना गया और मेरे अंदर गुस्से का ज्वालामुखी धधक उठा। मन ही मन कहा मैंने_____'अब तुझे मेरे क़हर से कौन बचाएगा बे रूप के चन्द्र?'

मैं गुस्से में उबलता हुआ उन दोनों की तरफ बढ़ने ही वाला था कि तभी मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से ख़याल उभरा कि नहीं नहीं गुस्से में काम बिगड़ जाएगा। मुझे छुप कर ही ये सब देखते हुए ये जानना चाहिए कि ये दोनों इस हालत में कैसे हैं और रजनी ने मुझे इस तरह से धोखा क्यों दिया? अपने ज़हन में आए इस ख़याल के बारे में सोच कर मैंने आगे बढ़ने का इरादा छोड़ दिया और मन ही मन खुद को समझाया कि_____'इन दोनों की गांड तो मैं बाद में भी मार सकता हूं। पहले सच जानना चाहिए।'

"साली रंडी।" उधर रूपचन्द्र रजनी से कह रहा था____"और कितना ज़ोर से चोदूं तुझे? उस हरामज़ादे से चुदवा चुदवा कर तो तूने पहले से ही अपनी बुर का भोसड़ा बना लिया है।"

"मेरी बुर का भोसड़ा भले ही बन गया है रूपचन्द्र।" रजनी ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद जब वो मुझे चोदता है तो कसम से मैं मस्त हो जाती हूं। इसी लिए कह रही हूं कि अगर तुम में दम है तो उसके जैसा ही चोदो मुझे।"

"उस हरामखोर की मेरे सामने बड़ाई मत कर बुरचोदी।" रूपचंद्र ने खिसियाते हुए और ज़ोर से उसकी चूत में अपना लंड पेलते हुए कहा____"वरना तेरी गांड में लंड घुसेड़ कर तेरी गांड फाड़ दूंगा।"

"रहने दो रूपचंद्र।" रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तुम्हारे बस का नहीं है मेरी गांड फाड़ना क्योंकि वो पहले से ही फटी हुई है। मेरी गांड को भी उसी ने फाड़ा है। अच्छा होगा कि तुम अपना पानी निकालो और चलते बनो यहाँ से।"

"साली मादरचोद।" रूपचंद्र ने गुस्से में रजनी को थप्पड़ मारते हुए कहा____"मैंने कहा न कि मेरे सामने उस भोसड़ीवाले की बड़ाई न कर। तुझे एक बार में समझ नहीं आता क्या?"

"आहहह उससे इतना क्यों जलते हो तुम?" रजनी ने दर्द से कराह कर कहा____"कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने तुम्हारी भी गांड फाड़ दी है?"
"वो क्या मेरी गांड फाड़ेगा?" रूपचंद्र ने गुस्से में कहा____"गांड तो मैं उसकी बहन कुसुम की फाड़ूंगा। उसने मेरी बहन रूपा को अपने नीचे सुलाया है न तो मैं भी उसकी बहन को अपने लंड के नीचे सुलाऊंगा।"

"ऐसा सोचना भी मत।" रजनी ने मानो उसे चेताते हुए कहा____"वरना वो तुम्हारे पूरे खानदान की औरतों की गांड फाड़ देगा। अभी तुम ठीक से जानते नहीं हो उसे।"
"वो कुछ नहीं कर पाएगा समझी।" रूपचंद्र ने कहा____"उसे जो कुछ करना था वो कर चुका है। अब करने की बारी मेरी है। उसने मेरे भाई का हाथ तोड़ा और उसने मेरी खुद की बहन को अपने जाल में फंसाया। इस सबका हिसाब अब मैं सूद समेत लूंगा उससे।"

रजनी उसकी बात सुन कर इस बार कुछ न बोली बल्कि उसके द्वारा दिए जा रहे धक्कों से अपनी आँखे बंद कर के चुदाई का मज़ा लेने लगी थी। इधर रूपचन्द्र की बातें सुन कर मेरा खून खौला जा रहा था लेकिन इस वक़्त मैं अपने गुस्से को काबू करने की कोशिश कर रहा था। हर बार मैं ऐसे मौकों पर कूद पड़ता था और साहूकारों के लड़कों की माँ बहन एक कर देता था लेकिन इस बार मैं पहले जैसा काम नहीं करना चाहता था, बल्कि अब मैं देखना चाहता था कि ये हरामी की औलाद क्या क्या करता है। मैं देखना चाहता था कि उसके मन में इसके अलावा अभी और क्या क्या भरा हुआ है?

मैं उसके मुख से ये जान कर थोड़ा हैरान हुआ था कि उसे अपनी बहन के मेरे साथ बने सम्बन्धों का पहले से पता है लेकिन सवाल है कि कैसे पता चला उसे? मैं तो हर बार पूरी सतर्कता से ही उसके घर उसकी बहन के कमरे में जाता था और फिर अपना काम कर के चुप चाप ही चला आता था। फिर कैसे उसे अपनी बहन के इन सम्बन्धों का पता चला? क्या रूपा को भी ये पता है कि उसके और मेरे सम्बन्धों की बात उसके भाई को पता है? मैं तो पहले की भाँती फिर से उसके घर उसकी बहन से मिलने जाने वाला था और रूपा से ये जानने का प्रयास करने वाला था कि उसके परिवार वाले हम ठाकुरों के बारे में आज कल क्या सोचते हैं और क्या कुछ करने वाले हैं? लेकिन रूपचन्द्र की इस बात से अब मैं रूपा से उस तरह नहीं मिल सकता था क्योंकि ज़ाहिर है कि अब वो अपनी बहन पर नज़र रखता होगा और अगर ऐसे में मैं रूपा से मिलने जाऊंगा तो मैं उसके द्वारा पकड़ा जाऊंगा।

रजनी भी साली मुझे धोखा दे रही थी। मुझसे तो चुदवाती ही थी किन्तु इस शाहूकार के लड़के रूपचन्द्र से भी चुदवा रही थी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि रजनी का सम्बन्ध रूपचन्द्र से कैसे हुआ होगा और ये सब कब से चल रहा होगा? आज ये सब देख कर मैं समझ गया था कि रजनी का चरित्र बहुत ही घटिया था और अब वो भरोसे के लायक नहीं थी। रजनी के प्रति अपने अंदर गुस्सा लिए मैं कुछ देर ये सब सोचता रहा और फिर चुप चाप वहां से चला आया। बाहर आ कर मैं अपनी मोटर साइकिल में बैठा और हवेली की तरफ बढ़ चला। रूपचंद्र को आज रजनी के साथ ऐसी हालत में देख कर मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि ये रूपचन्द्र भी साला कम नहीं है। इसने भी ऐसी जगह झंडे गाड़े हैं जिस जगह के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता था। रजनी के ऊपर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था और अब मैंने सोच लिया था कि रजनी के साथ क्या करना है।

सूर्य पश्चिम दिशा की तरफ उतरने वाला था और क़रीब एक घंटे में शाम हो जानी थी। हवेली में आया तो देखा मैदान में अब लोगों की भीड़ नहीं थी। कुछ ही लोग अब वहां पर मौजूद थे। मंच पर दादा ठाकुर के साथ शाहूकार और दूसरे गांव के कुछ ठाकुर लोग बैठे हुए थे। बड़े भैया मुझे नज़र न आए तो मैं सीधा हवेली के अंदर ही चला गया। हवेली के अंदर आया तो मुझे भाभी का ख़याल आया और फिर वो सब भी याद आ गया जो कुछ आज मैंने उनसे कहा था। सब कुछ याद आते ही मेरे अंदर एक बोझ सा पैदा हो गया और मैं सोचने लगा कि जब भाभी से मेरा दुबारा सामना होगा तब वो क्या कहेंगी मुझसे?

"तेरा भी कहीं अता पता भी रहता है कि नहीं?" मैं ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों के पास पंहुचा ही था कि पीछे से माँ की आवाज़ सुन कर रुक गया। पलट कर मैंने उनकी तरफ देखा तो वो बोलीं_____"कब से ढूंढ रही हूं तुझे और तेरा कहीं पता ही नहीं है।"

"होली की हार्दिक शुभकामनायें मां।" मैंने माँ के पास आ कर उनके पैरों को छूने के बाद कहा____"मैं तो यहीं था। अभी कुछ देर पहले ही एक ज़रूरी काम से बाहर गया था। कहिए क्या काम है मुझसे?"

"सदा खुश रह।" माँ ने मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"जगताप ने बताया मुझे कि कैसे आज तूने अपने से बड़ों के पैर छू कर उन सबका आशीर्वाद लिया। उसकी बात सुन कर मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था लेकिन जब उसने ज़ोर दे कर कहा कि तूने सच में ऐसा किया है तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई। बस तभी से तुझे ढूंढ रही थी।"

"भाभी जी ने खाना खाया कि नहीं?" मैंने धड़कते दिल से माँ से पूछा तो माँ ने मुस्कुराते हुए कहा____"हां अभी कुछ देर पहले ही खाया है उसने। कुसुम ने बताया मुझे कि तू गया था उसके कमरे में उसे मनाने के लिए?"

"क्या करता माँ?" मैंने कहा____"वो मेरी वजह से नाराज़ थीं तो मैं ये कैसे चाह सकता था कि मेरी वजह से कोई अन्न जल का त्याग कर के कमरे में बंद हो जाए?"
"ये तूने बहुत अच्छा किया।" माँ ने फिर से मेरा चेहरा सहलाया____"मुझे ख़ुशी है कि तुझे अपनी भाभी की फ़िक्र है और मैं यही कहूंगी कि तू ऐसे ही सबके बारे में सोच और अपने फर्ज़ निभा। जब तू ऐसा करेगा तो सब तुझे अच्छा ही कहेंगे बेटा और सब तुझे प्यार भी करेंगे।"

"कोशिश करुंगा मां।" मैंने कहा____"अच्छा कुसुम कहां है? क्या अभी तक उसका रंग खेलना बंद नहीं हुआ?"
"जगताप उसे डांटता नहीं तो वो खेलती ही रहती।" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा____"अभी कुछ देर पहले ही गुसलखाने में नहाने गई थी। तुझे उससे कोई काम है क्या?"

"हां उससे कहिएगा कि चाय बना कर मेरे कमरे में ले आए।" मैंने कहा____"सिर भारी भारी सा लग रहा है।"
"वो तो लगेगा ही।" माँ ने कहा____"भाँग वाला शरबत जो पिया है तूने।"

"आपको कैसे पता?" मैंने चौंक कर माँ की तरफ देखा तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे सब पता चल गया है। अच्छा अब तू जा और अपने कमरे में आराम कर। मैं कुसुम को बोलती हूं कि वो तेरे लिए चाय बना कर ले जाए।"

मां के ऐसा कहने के बाद मैं सीढ़ियों से ऊपर आ गया। ऊपर बालकनी में आया तो मेरी नज़र भाभी के कमरे की तरफ जाने वाले गलियारे पर पड़ी। गलियारा एकदम सूना था। मैं चुप चाप अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। कमरे में आ कर मैंने अपनी शर्ट उतारी और पंखा चला कर बिस्तर पर लेट गया।

बिस्तर पर लेता हुआ मैं सोच रहा था कि जिस तरह के हालात बने हुए थे उन हालातों में सिर्फ मैं ही उलझा हुआ था या मेरे अलावा भी कोई उलझा हुआ था? कई सारी बातें थी और कई सारे सवाल थे। मैं जितना उन सवालों के जवाब पाने के लिए आगे बढ़ता था उतना ही उलझ जाता था और फिर से एक नया सवाल मेरे सामने पैदा हो जाता था। मेरे सवाल मुरारी काका की हत्या से शुरू होते थे। मेरे सवालों की संख्या हर दिन बढ़ती ही जा रही थी। मुरारी काका की हत्या किसने की ये सवाल अभी भी अपनी जगह पर बना हुआ था और मैं इस सवाल के लिए अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। हवेली में कुसुम की गहरी बातों का रहस्य अपनी जगह एक सवाल लिए खड़ा था जिसके बारे में जानना मेरे लिए ज़रूरी था। साहूकारों के सिलसिले में एक अलग ही सवाल बना हुआ था कि उन लोगों ने हमसे अपने रिश्ते तो सुधार लिए थे किन्तु इस सबके पीछे उनकी मंशा क्या थी ये जानना भी ज़रूरी था किन्तु अभी तक इस बारे में भी कुछ पता नहीं चल सका था मुझे।

भाभी के बारे में जो सवाल खड़ा हुआ था उसके बारे में आज जो कुछ उनसे पता चला था उसने मुझे हिला कर ही रख दिया था। मुझे यकीन ही नहीं जो रहा था कि मेरे बड़े भैया के बारे में किसी ने ऐसी भविष्यवाणी की है। भाभी के द्वारा ये सब जान कर ये तो समझ आया कि उन्होंने इसी वजह से मुझसे ये कहा था कि बड़े भैया दादा ठाकुर की जगह लेने के लायक नहीं हैं किन्तु अब एक सवाल ये भी था कि भैया को अपने बारे में ये बात कैसे पता है? क्या भाभी ने उन्हें इस बारे में बताया होगा? हो सकता है कि शायद उन्होंने ही बताया हो किन्तु सवाल ये था कि क्या भैया अपने बारे में ये बातें हवेली में हर किसी से छुपा रहे हैं? अगर छुपा रहे हैं तो क्यों?

पिता जी ने उस दिन मुझे जो कुछ बताया था उसका अपना एक अलग ही लफड़ा था। जिसके बारे में अभी तक कुछ पता नहीं चला था। संभव है कि पिता जी ने अपने तरीके से इस बारे में पता लगाया हो लेकिन मुझे तो कुछ भी पता नहीं था ना। क्या इस सिलसिले में मुझे पिता जी से बात करनी चाहिए? क्या उनसे इस बारे में भी बात करनी चाहिए कि मुरारी की हत्या की जांच के लिए जिस दरोगा को उन्होंने कहा था उसने हत्यारे से संबंधित कुछ पता लगाया है या नहीं? दादा ठाकुर से इस बारे में बात करने से मुमकिन है कि वो मुझे यही मशवरा दें कि तुम इस सबसे दूर ही रहो। उस हालत में मैं कुछ नहीं कर सकता था। इसका मतलब मुझे खुद ही इस बारे में पता करना होगा।

उस काले साए का अपना एक अलग ही किस्सा था। इतना तो मैं जान और समझ चुका था कि पहले मिलने वाला वो साया मुझे ख़तरे से सावधान करने आया था और उस दिन उसने दूसरे उन दोनों सायों से मेरी जान भी बचाई थी किन्तु सवाल ये था कि वो साया आख़िर था कौन? आख़िर क्यों उसने मेरे ख़तरे को अपने ऊपर ले लिया था? दूसरे वो साए कौन थे जो मेरे लिए कालदूत बन कर आए थे? क्या उन सायों को मुझे मारने के लिए साहूकारों ने भेजा था? मेरे ज़हन में जब भी उन दोनों सायों का ख़याल आता था तो मैं गहरी सोच में पड़ जाता था और ये भी सोचता था कि मेरे चारो तरफ एक ऐसा ख़तरा मौजूद है जो न जाने किस तरफ से अचानक ही मुझ पर टूट पड़े।

रूपचंद्र का अपना एक अलग ही लफड़ा शुरू हो गया था। आज जिस तरह से मैंने उसे रजनी के साथ देखा था और उसकी बातें सुनी थी उससे ये तो समझ आया कि वो अपनी जाति दुश्मनी के चलते मुझसे बदला लेना चाहता है किन्तु सवाल ये था कि रजनी से उसका सम्बन्ध कैसे बना और कब से उन दोनों के बीच ये सब चल रहा है? रूपचन्द्र कितना शातिर है ये तो मैं देख ही चूका था। सरोज काकी को उसने बड़ी आसानी से इस बात के लिए मजबूर कर दिया था कि वो अपनी बेटी को उसके नीचे सुला दे। वो तो उस दिन किस्मत से मैं वहां पहुंच गया था वरना वो अनुराधा के साथ उस दिन कुछ भी कर सकता था और अनुराधा उसका विरोध नहीं कर सकती थी।

"हे भगवान!" तभी कमरे में कुसुम की आवाज़ गूँजी तो मैं सोचो से बाहर आया जबकि उसने कहा____"मैं जब भी आपके कमरे में आती हूं तो आप कहीं न कहीं खोए हुए ही दिखते हैं। अब अगर मैं आपका एक नया नाम सोचन देव रख दूं तो इस बारे में क्या कहेंगे आप?"

"अरे! आ गई तू?" उसे देखते ही मैंने उठते हुए कहा____"ला पहले चाय दे और बैठ मेरे पास।"
"आज तो रंग खेलने में मज़ा ही आ गया भइया।" कुसुम ने ख़ुशी से मुस्कुराते हुए और मुझे चाय पकड़ाते हुए कहा_____"मैंने आज अपनी सभी सहेलियों को रंग में पूरा का पूरा नहला दिया था। विशाखा तो बेचारी रोने ही लगी थी।"

"हां देखा था मैंने।" चाय का हल्का सा घूंट लेते हुए मैंने कहा____"तू भी उनकी तरह ही रंगी हुई थी और तेरा चेहरा तो एकदम से बंदरिया जैसा लग रहा था।"
"क्या कहा आपने????" कुसुम ने आँखें फैलाते हुए कहा____"मैं आपको बंदरिया जैसी लग रही थी? आप मुझे बंदरिया कैसे कह सकते हैं? जाइए, मुझे आपसे अब बात ही नहीं करना।"

"अरे! मैंने ये थोड़ी न कहा है कि तू बंदरिया है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने तो ये कहा है कि तू बंदरिया जैसी लग रही थी क्योंकि तेरे चेहरे पर लाल लाल रंग लगा हुआ था।"
"अब आप बात को घुमाइए मत।" कुसुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"बंदरिया जैसी लगने का मतलब यही होता है कि मैं आपको बंदरिया ही लगी। बड़े दुःख की बात है कि मेरे सबसे अच्छे वाले भैया ने मुझे बंदरिया कहा। अब किसके कंधे पर अपना सिर रख कर रोऊं मैं?"

"विभोर और अजीत के कंधे पर सिर रख के रो।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो कुसम ने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा____"उनका तो नाम ही मत लीजिए। वो मुझे चुप क्या कराएंगे उल्टा मुझे और रुलाएंगे। आप भी अब उनके जैसे ही बनते जा रहे हैं।"

"तेरा ये भाई किसी और के जैसा बनना पसंद नहीं करता।" मैंने कहा____"बल्कि लोग मेरे जैसा बनने की ख़्वाइश रखते हैं।"
"वाह वाह! अपने मुख से अपनी ही बड़ाई।" कुसुम ने नाटकीय भाव से हाथ नचाते हुए कहा____"वैसे मैंने सुना है कि आज आपने सबको आश्चर्य चकित कर दिया था।"

"हम ऐसे ही हैं बहना।" मैंने गर्व से अपनी गर्दन को अकड़ाते हुए कहा____"हम अक्सर ऐसा काम करते हैं जिसे देख कर लोगों की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। इसी लिए तो कह रहा हूं तुझसे कि लोग मेरे जैसा बनने की ख़्वाइश रखते हैं।"

"अब बस भी कीजिए भइया।" कुसुम ने कहा____"आप तो खुद ही अपने आपको चने के झाड़ पर चढ़ाए जा रहे हैं।"
"अच्छा ये बता कि तुझे मैंने जो काम दिया था उसका क्या हुआ?" मैंने बात को बदलते हुए कहा____"तुझे कुछ याद भी है या सब भूल गई है?"

"मुझे सब याद है भइया।" कुसुम ने कहा____"और मैं आपको बताने ही वाली थी लेकिन फिर बताना ही भूल गई, लेकिन आप भी तो यहाँ नहीं थे।"
"अच्छा तो अब बता।" मैंने कहा____"क्या पता किया तूने?"

"बड़े भैया के बारे में।" कुसुम ने थोड़ा संजीदा भाव से कहा____"यही कहूंगी कि वो ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं जिसका आपको अंदेशा है, जबकि वो दोनों नमूने कोई न कोई खिचड़ी ज़रूर पका रहे हैं।"
"क्या मतलब?" मैंने आँखें सिकोड़ते हुए कहा____"कैसी खिचड़ी पका रहे हैं वो दोनों?"

"साहुकार के लड़के रूपचन्द्र को तो आप जानते ही होंगे न?" कुसुम ने ये कहा तो मैंने मन ही मन चौंकते हुए कहा____"हां तो? मेरा मतलब है कि रूपचन्द्र उन दोनों के बीच में कहां से आ गया?"

"पूरी बात तो सुन लिया कीजिए।" कुसुम ने कहा____"बीच में ही टोंक देते हैं आप।"
"अच्छा नहीं टोकूंगा।" मैंने कहा____"आगे बता।"
"रूपचंद्र के छोटे भाई गौरव से उन दोनों की दोस्ती है।" कुसुम ने कहा____"हलाँकि मैंने उन दोनों को गौरव के साथ देखा तो नहीं है लेकिन एक दिन वो अपने कमरे में उसके बारे में बातें ज़रूर कर रहे थे।"

"कैसी बातें कर रहे थे वो?" मैंने उत्सुकता से पूछा।
"यही कि अभी तक तो वो दोनों।" कुसुम ने कहा____"अपने दोस्त गौरव से हवेली से बाहर ही छुप कर मिलते थे लेकिन अब वो उसे हवेली में बुलाया करेंगे। क्योंकि अब हमारे और साहूकारों के रिश्ते सुधर गए हैं।"

"अच्छा और कैसी बातें कर रहे थे वो?" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"क्या मेरे बारे में उन दोनों ने कोई बात नहीं की?"
"अभी तक तो नहीं।" कुसुम ने कहा____"लेकिन आज मैंने देखा था कि वो दोनों बहुत ही गुस्से में बाहर से आए थे और अपने कमरे में चले गए थे। मुझे भी समझ नहीं आया कि वो किस लिए गुस्सा थे? पहले मैंने सोचा कि पता करूं लेकिन फिर सहेलियों की वजह से कहीं जा ही नहीं पाई।"

"हां वो चाचा जी ने विभोर को सबके सामने थप्पड़ मारा था।" मैंने कुसुम को बताते हुए कहा____"शायद इसी लिए वो गुस्से में बाहर से आये थे।"
"पिता जी ने थप्पड़ क्यों मारा था उन्हें?" कुसुम ने हैरानी से पूछा तो मैंने उसे संक्षेप में बता दिया। मेरी बात सुन कर वो बोली_____"अच्छा तभी वो इतने गुस्से में थे।"

"हां और उनका गुस्से में होना।" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"ये दर्शाता है कि उन्हें अपनी ग़लती का कोई एहसास नहीं है बल्कि जिस ग़लती की वजह से उन्हें अपने पिता जी से थप्पड़ मिला है उसके लिए वो मुझे जिम्मेदार मानते हैं। ज़ाहिर है इस वजह से उन दोनों के अंदर मेरे प्रति भी गुस्सा और नफ़रत भर गई होगी। तू पता करने की कोशिश कर कि वो दोनों इस हादसे के बाद मेरे बारे में क्या बातें करते हैं?"

"ठीक है भइया।" कुसुम ने कहा____"और कुछ?"
"हां, अगर गौरव या साहूकारों का कोई भी सदस्य हवेली में आए तो तू मुझे फ़ौरन बताएगी। एक और भी है सबसे ज़रूरी बात और वो ये कि तू अपनी सहेलियों के साथ हवेली से बाहर नहीं जाएगी।"

"भला ये क्या बात हुई भैया?" कुसुम ने हैरानी से कहा____"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"
"क्योंकि मुझे अपनी मासूम सी बहन की बहुत ज़्यादा फ़िक्र है।" मैंने कुसुम के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"अगर तेरे साथ ज़रा सा भी कुछ हुआ तो मैं सारी दुनियां को आग लगा दूंगा।"

"भइया।" कहते हुए कुसुम मुझसे लिपट गई। उसकी आँखों में आँसू भर आए थे। मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा____"तुझे जब भी अपनी सहेलियों से मिलना हो तो तू यहाँ की किसी नौकरानी से कह देना। वो तेरी सहेली को हवेली में ही बुला लाएगी।"

"ठीक है भइया।" कुसुम ने मुझसे अलग होते हुए कहा____"जैसा आप कहेंगे मैं वैसा ही करूंगी।"
"ये सब मैं तेरी भलाई के लिए ही कह रहा हूं बहना।" मैंने फिक्रमंदी से कहा____"क्योंकि आज कल हालात ठीक नहीं हैं। अच्छा अब तू जा और आराम कर। आज बहुत थक गई होगी न तू?"

मेरे कहने पर कुसुम ने हाँ में सिर हिलाया और फिर वो चाय का खाली प्याला ले कर कमरे से चली गई। उसके जाने के बाद मैं फिर से बिस्तर पर लेट गया। अभी मैं बिस्तर पर लेट कर कुसुम के बारे में सोचने ही लगा था कि कुसुम एक बार फिर से मेरे कमरे में दाखिल हुई और मेरे पास आ कर बोली____"आपको एक बात बताना तो मैं भूल ही गई भैया।"

"कौन सी बात?" मेरे माथे पर शिकन उभर आई।
"कल शाम को।" कुसुम ने कहा____"दादा ठाकुर के पास एक आदमी आया था। वो इस गांव का नहीं लगता था।"
"अच्छा कौन था वो आदमी?" मैंने सोचने वाले भाव से पूछा तो कुसुम ने कहा____"दादा ठाकुर उस आदमी को दरोगा जी कह रहे थे।"

"अच्छा, तो वो आदमी दरोगा था।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"ख़ैर, दादा ठाकुर ने क्या बात की उस दरोगा से? क्या तूने सुनी थी उनकी बातें?"
"नहीं सुन पाई भइया।" कुसुम ने निराश भाव से कहा____"क्योंकि मुझे बड़ी माँ ने आवाज़ दे कर बुला लिया था। उसके बाद फिर मौका ही नहीं मिला बैठक में जाने का।"
"चल कोई बात नहीं।" मैंने कहा____"अब तू जा और आराम कर।"

कुसुम के जाने के बाद मैं सोचने लगा कि पिता जी ने उस दरोगा से क्या बातें की होंगी? क्या दरोगा ने मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा लिया होगा? अगर हां तो कौन होगा मुरारी काका का हत्यारा? ऐसे न जाने कितने ही सवाल मेरे ज़हन में एकदम से तांडव करने लगे थे। मेरे अंदर एकदम से ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई थी कि पिता जी ने दरोगा से आख़िर क्या बातें की होंगी? मैं अब किसी भी हालत में इन सब बातों को जानना चाहता था किन्तु सवाल था कि कैसे? मैंने फ़ैसला किया कि पिता जी से मिल कर इस बारे में ज़रूर बात करुंगा।

मैं ऐसे ही न जाने कब तक सोचो में गुम रहा और फिर मेरी आँख लग गई। मेरी नींद कुसुम के जगाने पर ही टूटी। वो मुझे खाना खाने के लिए बुलाने आई थी। उसे वापस भेज कर मैं उठा कर कमरे से निकल कर नीचे गुसलखाने में चला गया। गुसलखाने में मैंने हाथ मुँह धोया और खाना खाने के लिए उस जगह पर आ गया जहां पर दादा ठाकुर और जगताप चाचा जी बैठे हुए थे। उनके बगल से बड़े भैया बैठे हुए थे। विभोर और अजीत दोनों की ही कुर्सी खाली थी। ख़ैर एक कुर्सी पर आ कर मैं भी बैठ गया। खाना खाते वक़्त कोई भी बात नहीं कर सकता था इस लिए हम सब लोग चुपचाप खाना खाने में ब्यस्त हो ग‌ए।

मैं सिर नीचा किए खाना खाने में मस्त था कि तभी मेरे पैर में कोई चीज़ हल्के से छू गई तो मैंने चौंक कर सिर उठाया। मेरी नज़र बड़े भैया पर पड़ी, उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे आँखों से इशारा किया तो मुझे कुछ समझ न आया कि वो किस बात के लिए इशारा कर रहे थे। तभी उन्होंने पिता जी की तरफ देखा तो मैंने भी पिता जी की तरफ देखा। पिता जी खाने का निवाला चबाते हुए मेरी तरफ ही देख रहे थे। जैसे ही मेरी नज़र उनकी नज़र से मिली तो मैंने जल्दी से नज़र हटा ली और सिर झुका कर फिर से खाना शुरू कर दिया। मेरी ये सोच कर धड़कनें तेज़ हो गईं थी कि पिता जी मेरी तरफ ऐसे क्यों देख रहे थे?


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Bhai apki kahani humara nasha ban gya hai. Jab tak nahi milta talab lagi rehti hai aur jab milta hai toh mann nai bharta 😂😂
Kahani har naye update ke sath nagin ki tarah karwat badal deta hai.
Jab koi apna wafadar dhoka krta hai toh fir sabhi ke wafa pe shaq sa hone lagta hai. Dekhte hai Vaibhav ab kya krega.
 

DARK WOLFKING

Supreme
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32,003
259
nice update ...to rupchandra ko dhundne me bahut bhag daud karni padi ..
aur wo mila bhi aisi jagah jaha baibhav ko ummeed nahi thi milne ki 😁..
rupchandra ko sab pata hai vaibhav ke kaarnamo ke baare me ..
par ye rajni kaise uske jaal me fans gayi aur chudne lagi .

aur wo kamina rupchandra hero ki behan ko fasane ki soch raha hai 😡..
agar vaibhav baat kar rajni se to kya wo bata degi sach rupchandra se chudai ka 🤔..

aur vaibhav har jagah se ghira hua hai dushmano se ..

kusum ne apna kaam karna shuru kar diya tha aur vaibhav ko kuch jaankari bhi de di ..
 

DARK WOLFKING

Supreme
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kahi aisa to nahi ki gaurav ke jariye kusum ko fasane ka plan ho rupchandra ka 🤔..
isliye vibhor aur ajeet se dosti ki ho aur ye dono ki baate ki gaurav haweli me aa sakega ab .


waise vaibhav ke saamne bahut saare sawal hai par jawab abhi pata nahi aur pata lagane ke liye usko haweli me hi rehna hoga .

aur ye rajni wakai ghatiya character ki nikli 😁..
 
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