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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

u.sir.name

Hate girls, except the one reading this.
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189
☆ प्यार का सबूत ☆
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अध्याय - 02

अब तक,,,,

गुस्से में जलते हुए मैं गेहू काटता जा रहा था और रुका भी तब जब सारा गेहू काट डाला मैंने। ये चार महीने मैंने कैसे कैसे कष्ट सहे थे ये सिर्फ मैं और ऊपर बैठा भगवान ही जनता था। ख़ैर गेहू जब कट गया तो मैं उसकी पुल्लियां बना बना कर एक जगह रखने लगा। ये मेरी कठोर मेहनत का नतीजा था कि बंज़र ज़मीन पर मैंने गेहू उगाया था। आज के वक़्त में मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं थी। चार महीने पहले जो कुछ था भी तो उससे ज़रूरी चीज़ें ख़रीद लिया था मैंने और ये एक तरह से अच्छा ही किया था मैंने वरना इस ज़मीन पर ये फसल मैं तो क्या मेरे फ़रिश्ते भी नहीं उगा सकते थे।

अब आगे,,,,,

गेंहू की पुल्लियां बना कर मैंने एक जगह रख दिया था। ज़मीन का ये टुकड़ा ज़्यादा बड़ा नहीं था। मुश्किल से पच्चीस किलो गेहू का बीज डाला था मैंने। घर वालोें के द्वारा भले ही कष्ट मिला था मुझे मगर ऊपर वाला ज़्यादा तो नहीं पर थोड़ी बहुत मेहरबान ज़रूर हुआ था मुझ पर। जिसकी वजह से मैं इस ज़मीन पर फसल उगाने में कामयाब हो पाया था।

आस पास के गांव के लोगों को भी पता चल गया था कि ठाकुर प्रताप सिंह ने अपने छोटे बेटे को गांव से निकाल दिया है और उसका हुक्का पानी बंद करवा दिया है। सबको ये भी पता चल गया था कि गांव के हर ब्यक्ति को शख्ती से कहा गया था कि वो मुझसे किसी भी तरह से ताल्लुक न रखें और ना ही मेरी कोई मदद करें। ये बात जंगल के आग की तरह हर तरफ फ़ैल गई थी जिसकी वजह से दूसरे गांव वाले जो मेरे पिता को मान सम्मान देते थे उन्होंने मुझसे बात करना बंद कर दिया था। हालांकि मेरे पिता जी ने दूसरे गांव वालों को ऐसा करने के लिए नहीं कहा था किन्तु वो इसके बावजूद उनके ऐसे फैसले को अपने ऊपर भी ले लिए थे।

दुनिया बहुत बड़ी है और दुनिया में तरह तरह के लोग पाए जाते हैं जो अपनी मर्ज़ी के भी मालिक होते हैं। कहने का मतलब ये कि दूसरे गांव के कुछ लोग ऐसे भी थे जो चोरी छिपे मेरे पास आ जाया करते थे और मेरी मदद करते थे। उन्हीं में से एक आदमी था मुरारी सिंह।

मुरारी सिंह मेरी ही बिरादरी का था किन्तु उसकी हैसियत मेरे बाप जैसी नहीं थी। अपने खेतों पर वो भी काम करता था और रात में देसी दारु हलक के नीचे उतार कर लम्बा हो जाता था। उसके अपने परिवार में उसकी बीवी और दो बच्चे थे। एक लड़की थी जिसका नाम अनुराधा था और लड़के का नाम अनूप था। उसकी लड़की अनुराधा मेरी ही उम्र की थी। हल्का सांवला रंग जो कि उसकी सुंदरता का ही प्रतीक जान पड़ता था।

मुरारी के ज़ोर देने पर मैं किसी किसी दिन उसके घर चला जाया करता था। वैसे तो मुझ में नशा करने वाला कोई ऐब नहीं था किन्तु मुरारी के साथ मैं भी बीड़ी पी लिया करता था। वो मुझसे देसी दारु पीने को कहता तो मैं साफ़ इंकार कर देता था। बीड़ी भी मैं तभी पीता था जब वो मेरे पास झोपड़े में आता था। उसके घर में मैं जब भी जाता था तो उसकी बीवी अक्सर मेरे बाप के ऐसे फैसले की बातें करती और उसकी बेटी अनुराधा चोर नज़रों से मुझे देखती रहती थी। अगर मैं अपने मन की बात कहूं तो वो यही है कि मुरारी की लड़की मुझे अच्छी लगती थी। हालांकि उसके लिए मेरे दिल में प्यार जैसी कोई भावना नहीं थी बल्कि मुझे तो हमेशा की तरह आज भी ज़िन्दगी के हर मज़े से लेने से ही मतलब है। प्यार व्यार क्या होता है ये मैं समझना ही नहीं चाहता था।

इन चार महीनों में मुझे एक ही औरत ने मज़ा दिया था और वो थी खुद मुरारी की बीवी सरोज किन्तु ये बात उसके पति या उसकी बेटी को पता नहीं थी और मैं भला ये चाह भी कैसे सकता था कि उन्हें इसका पता चले। मुरारी ने मेरी बहुत मदद की थी। मुझे तो पता भी नहीं था कि ज़मीन में कैसे खेती की जाती है।

शुरुआत में तो मैं हर रोज़ उस बंज़र ज़मीन पर उगी घास को ही हटाने का प्रयास करता रहा था। हालांकि मेरे ज़हन में बार बार ये ख़याल भी आता था कि ये सब छोंड़ कर शहर चला जाऊं और फिर कभी लौट के यहाँ न आऊं मगर फिर मैं ये सोचने लगता कि मेरे बाप ने मुझे यहाँ पर ला पटका है तो एक बार मुझे भी उसे दिखाना है कि मैं यहां क्या कर सकता हूं। बस इसी बात के चलते मैंने सोच लिया था कि अब चाहे जो हो जाये किन्तु मैं इस बंज़र ज़मीन पर फसल उगा कर ही दम लूंगा। शुरुआत में मुझे बहुत मुश्किलें हुईं थी। दूसरे गांव जा कर मैं कुछ लोगों से कहता कि मेरी उस ज़मीन पर हल से जुताई कर दें मगर कोई मेरी बात नहीं सुनता था। एक दिन मुरारी कहीं से भटकता हुआ मेरे पास आया और उसने मुझे उस बंज़र ज़मीन पर पसीना बहाते हुए और कुढ़ते हुए देखा तो उसे मुझ पर दया आ गई थी।

मुरारी ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रख कर कहा था छोटे ठाकुर मैं जानता हूं कि आस पास का कोई भी आदमी तुम्हारी मदद करने नहीं आता है क्यों कि वो सब बड़े ठाकुर के तलवे चाटने वाले कुत्ते हैं लेकिन मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करुंगा।

उसी शाम को मुरारी अपने बैल और हल ले कर मेरे पास आ गया और उसने उस बंज़र ज़मीन का सीना चीरना शुरू कर दिया। मैं उसके साथ ही चलते हुए बड़े ग़ौर से देखता जा रहा था कि वो कैसे ज़मीन की जुताई करता है और कैसे हल की मुठिया पकड़ कर बैलों को हांकता है। असल में मैं इस बात से तो खुश हो गया था कि मुरारी मेरी मदद कर रहा था लेकिन मैं ये भी नहीं चाहता था कि उसके इस उपकार की वजह से उस पर किसी तरह की मुसीबत आ जाए। इस लिए मैं बड़े ग़ौर से उसे हल चलाते हुए देखता रहा था। उसके बाद मैंने उससे कहा कि वो मुझे भी हल चलाना सिखाये तो उसने मुझे सिखाया। आख़िर एक दो दिन में मैं पक्का हल चलाने वाला किसान बन गया। उसके बाद मैंने खुद ही अपने हाथ से अपने उस बंज़र खेत को जोतना शुरू कर दिया था।

ज़मीन ज़्यादा ठोस तो नहीं थी किन्तु फिर भी वैसी नहीं बन पाई थी जिससे कि उसमे फसल उगाई जा सके। मुरारी का कहना था कि अगर बारिश हो जाये तो उम्मीद की जा सकती है। मुरारी की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था कि इस ज़मीन को पानी कहां से मिले? भगवान को तो अपनी मर्ज़ी के अनुसार ही बरसना था। इधर ज़मीन की परत निकल जाने से मैं दिन भर मिट्टी के डेलों से घास निकालता रहता। ऐसे ही एक हप्ता गुज़र गया मगर पानी का कहीं से कोई जुगाड़ बनता नहीं दिख रहा था। पानी के बिना सब बेकार ही था। उस दिन तो मैं निराश ही हो गया था जब मुरारी ने ये कहा था कि गेंहू की फसल तभी उगेगी जब उसको भी कम से कम तीन बार पानी दिया जा सके। यहाँ तो पानी मिलना भी भगवान के भरोसे ही था।

एक दिन मैं थका हारा अपने झोपड़े पर गहरी नींद में सो रहा था कि मेरी नींद बादलों की गड़गड़ाहट से टूट गई। झोपड़े के दरवाज़े के पार देखा तो धूप गायब थी और हवा थोड़ी तेज़ चलती नज़र आ रही थी। मैं जल्दी से झोपड़े के बाहर निकला तो देखा आसमान में घने काले बादल छाये हुए थे। हर तरफ काले बादलों की वजह से अँधेरा सा प्रतीत हो रहा था। बादलों के बीच बिजली कौंध जाती थी और फिर तेज़ गड़गड़ाहट होने लगती थी। ये नज़ारा देख कर मैं इस तरह खुश हुआ जैसे विसाल रेगिस्तान में मेरे सूख चुके हलक को तर करने के लिए पानी की एक बूँद नज़र आ गई हो। भगवान ने मुझ पर दया करने का निर्णय किया था। मेरा दिल कर कर रहा था कि मैं इस ख़ुशी में उछलने लगूं।

थोड़ी ही देर में हवा और तेज़ हो गई और फिर आसमान से मोटी मोटी पानी की बूंदें ज़मीन पर टपकने लगीं। हवा थोड़ी तेज़ थी जिससे मेरा झोपड़ा हिलने लगा था। हालांकि मुझे अपने झोपड़े की कोई परवाह नहीं थी। मैं तो बस यही चाहता था कि आज ये बादल इतना बरसें कि संसार के हर जीव की प्यास बुझ जाये और जैसे भगवान ने मेरे मन की बात सुन ली थी। देखते ही देखते तेज़ बारिश शुरू हो गई। बारिश में भीगने से बचने के लिए मैं झोपड़े के अंदर नहीं गया बल्कि अपने उस जुते हुए खेत के बीच में आ कर खड़ा हो गया। दो पल में ही मैं पूरी तरह भीग गया था। बारिश इतनी तेज़ थी कि सब कुछ धुंधला धुंधला सा दिखाई दे रहा था। मैं तो ईश्वर से यही कामना कर रहा था कि अब ये बारिश रुके ही नहीं।

उस दिन रात तक बारिश हुई थी। मेरे जुते हुए खेत में पानी ही पानी दिखने लगा था। मेरी नज़र मेरे झोपड़े पर पड़ी तो मैं बस मुस्कुरा उठा। बारिश और हवा की तेज़ी से वो उलट कर दूर जा कर बिखरा पड़ा था। अब बस चार लकड़ियां ही ज़मीन में गड़ी हुई दिख रही थीं। मुझे अपने झोपड़े के बर्बाद हो जाने का कोई दुःख नहीं था क्यों कि मैं उसे फिर से बना सकता था किन्तु बारिश को मैं फिर से नहीं करवा सकता था। ईश्वर ने जैसे मेरे झोपड़े को बिखेर कर अपने पानी बरसाने का मुझसे मोल ले लिया था।

बारिश जब रुक गई तो रात में मुरारी भागता हुआ मेरे पास आया था। हाथ में लालटेन लिए था वो। मेरे झोपड़े को जब उसने देखा तो मुझसे बोला कि अब रात यहाँ कैसे गुज़ार पाओगे छोटे ठाकुर? उसकी बात पर मैंने कहा कि मुझे रात गुज़ारने की कोई चिंता नहीं है बल्कि मैं तो इस बात से बेहद खुश हूं कि जिस चीज़ की मुझे ज़रूरत थी भगवान ने वो चीज़ मुझे दे दी है।

मुरारी मेरी बात सुन कर बस मुस्कुराने लगा था फिर उसने कहा कि कल वो मेरे लिए एक अच्छा सा झोपड़ा बना देगा किन्तु आज की रात मैं उसके घर पर ही गुज़ारूं। मैं मुरारी की बात सुन कर उसके साथ उसके घर चला गया था। उसके घर पर मैंने खाना खाया और वहीं एक चारपाई पर सो गया था। मुरारी ने कहा था कि आज तो मौसम भी शराबी है इस लिए वो बिना देसी ठर्रा चढ़ाये सोयेगा नहीं और उसने वही किया भी था।

ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं रात में मुरारी के घर पर रुक रहा था। ख़ैर रात में सबके सोने के बाद मुरारी की बीवी चुपके से मेरे पास आई और मुझे हल्की आवाज़ में जगाया उसने। चारो तरफ अँधेरा था और मुझे तुरंत समझ न आया कि मैं कहां हूं। सरोज की आवाज़ जब फिर से मेरे कानों में पड़ी तो मुझे अहसास हुआ कि मैं आज मुरारी के घर पर हूं। ख़ैर सरोज ने मुझसे धीरे से कहा कि आज उसका बहुत मन है इस लिए घर के पीछे चलते हैं और अपना काम कर के चुप चाप लौट आएंगे। सरोज की इस बात से मैंने उससे कहा कि अगर तुम्हारी बेटी को पता चल गया तो वो कहीं हंगामा न खड़ा कर दे इस लिए ये करना ठीक नहीं है मगर सरोज न मानी इस लिए मजबूरन मुझे उसके साथ घर के पीछे जाना ही पड़ा।

घर के पीछे आ कर मैंने सरोज से एक बार फिर कहा कि ये सब यहाँ करना ठीक नहीं है मगर सरोज पर तो जैसे हवश का बुखार चढ़ गया था। उसने ज़मीन में अपने घुटनों के बल बैठ कर मेरे पैंट को खोला और कच्छे से मेरे लिंग को निकाल कर उसे सहलाने लगी। मेरी रंगों में दौड़ते हुए खून में जल्दी ही उबाल आ गया और मेरा लिंग सरोज के सहलाने से तन कर पूरा खड़ा हो गया। सरोज ने फ़ौरन ही मेरे तने हुए लिंग को अपने मुँह में भर लिया और उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ने लगी जिससे मैंने अपने दोनों हाथों से सरोज के सिर को पकड़ा और उसके मुँह में अपने लिंग को अंदर तक घुसाते हुए अपनी कमर को आगे पीछे हिलाने लगा। सरोज जिस तरह से मेरे लिंग को अपने मुंह में डाल कर चूस रही थी उससे पलक झपकते ही मैं मज़े के सातवें आसमान में उड़ने लगा था।

मज़े की इस तरंग की वजह से मेरे ज़हन से अब ये बात निकल चुकी थी कि ये सब करते हुए अगर मुरारी ने या उसकी लड़की अनुराधा ने हमें देख लिया तो क्या होगा। कोई और वक़्त होता और कोई और जगह होती तो मैं सरोज के साथ तरीके से मज़े लेता मगर इस वक़्त बस एक ही तरीका था कि सरोज का घाघरा उठा कर उसकी योनि में अपने लिंग को घुसेड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दूं।

सरोज ने मेरे मना करने के बावजूद मेरे लिंग को जी भर के चूसा और फिर खड़ी हो कर अपने घाघरे को अपने दोनों हाथों से ऊपर उठाने लगी। उसकी चोली में कैद उसके भारी भरकम खरबूजे चोली को फाड़ कर बाहर आने को बेताब हो रहे थे। मुझसे रहा न गया तो मैंने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर उन्हें पकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा जिससे सरोज की सिसकारियां शांत वातावरण में फ़ैल ग‌ईं।

सरोज के खरबूजों को मसलने के बाद मैंने उसे पलटा दिया। वो समझ गई कि अब उसे क्या करना था इस लिए वो अपने घाघरे को कमर तक चढा कर पूरी तरह नीचे झुक गई जिससे उसका पिछवाड़ा मेरे सामने मेरे लिंग के पास आ गया। मैंने लिंग को अपने एक हाथ से पकड़ा और उसकी योनि में सेट कर के कमर को आगे कर दिया। मेरा लिंग उसकी दहकती हुई योनि में अंदर तक समाता चला गया। सरोज ने एक सिसकी ली और अपने सामने की दीवार का सहारा ले लिया ताकि वो आगे की तरफ न जा सके।

ऐसे वक़्त में तरीके से काम करना ठीक नहीं था इस लिए मैंने सरोज की योनि में अपना लिंग उतार कर धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने सरोज की कमर को अच्छे से पकड़ लिया था और तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। मेरे हर धक्के पर थाप थाप की आवाज़ आने लगी तो मैंने धक्के इस अंदाज़ से लगाने शुरू कर दिए कि मेरा जिस्म उसके पिछवाड़े पर न टकराए। उधर झुकी हुई सरोज मज़े से आहें भरने लगी थी। हालांकि उसने अपने एक हाथ से अपना मुँह बंद कर लिया था मगर इसके बावजूद उसके मुख से आवाज़ निकल ही जाती थी। तेज़ तेज़ धक्के लगाते हुए मैं जल्दी से अपना पानी निकाल देना चाहता था मगर ऐसा हो नहीं रहा था। इस वक़्त मेरे लिए मेरी ये खूबी मुसीबत का सबब भी बन सकती थी मगर मैं अब क्या कर सकता था?

सरोज कई दिनों की प्यासी थी इस लिए तेज़ धक्कों की बारिश से वो थोड़ी ही देर में झड़ कर शिथिल पड़ गई मगर मैं वैसे ही लगा रहा। थोड़ी देर में वो फिर से मज़े में आहें भरने लगी। आख़िर मुझे भी आभास होने लगा कि मैं भी अपने चरम पर पहुंचने वाला हूं इस लिए मैंने और तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए मगर तभी सरोज आगे को खिसक गई जिससे मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर आ गया। मुझे उस पर बेहद गुस्सा आया और मैं इस गुस्से में उससे कुछ कहने ही वाला था कि उसने कहा कि झुके झुके उसकी कमर दुखने लगी है तो मैंने उसकी एक टांग को ऊपर उठा कर खड़े खड़े सम्भोग करने के लिए कहा तो उसने वैसा ही किया। एक हाथ से उसने दीवार का सहारा लिया और फिर अपनी एक टांग को हवा में उठाने लगी। मैंने उसकी उस टांग को एक हाथ से पकड़ लिया और फिर आगे बढ़ कर उसकी योनि में अपने लिंग को डाल दिया।

एक बार फिर से तेज़ धक्कों की शुरुआत हो चुकी थी। सरोज की सिसकिया फिर से फ़िज़ा में गूंजने लगी थीं जिसे वो बड़ी मुश्किल से रोंक पा रही थी। कुछ ही देर में सरोज का जिस्म कांपने लगा और वो फिर से झड़ गई। झड़ते ही उसमे खड़े रहने की शक्ति न रही इस लिए मुझे फिर से अपने लिंग को उसकी योनि से बाहर निकालना पड़ा किन्तु इस बार उसने नीचे बैठ कर मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया था और मुझे इशारा किया कि मैं उसके मुँह में ही अपना पानी गिरा दूं। सरोज के इशारे पर मैं शुरू हो गया। कुछ देर मैं उसके मुख में ही धीरे धीरे धक्के लगाता रहा उसके बाद सरोज ने मेरे लिंग को पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया जिससे थोड़ी ही देर में मैं मज़े की चरम सीमा पर पहुंच गया और सरोज के मुख में ही अपना सारा पानी गिरा दिया जिसे उसने सारा का सारा हलक के नीचे उतार लिया। उसके बाद हम जिस तरह दबे पाँव आये थे उसी तरह दबे पाँव घर के अंदर भी चले आए।

अभी मैं अपनी चारपाई पर आ कर चुप चाप लेटा ही था कि अंदर कहीं से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मेरी रूह तक काँप ग‌ई। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि कहीं किसी को हमारे इस कर्म काण्ड का पता तो नहीं चल गया? उस रात यही सोचते सोचते मैं सो गया था। दूसरे दिन मैं उठा तो मेरी नज़र मुरारी की लड़की अनुराधा पर पड़ी। वो मेरी चारपाई के पास ही हाथ में चाय से भरा एक स्टील का छोटा सा गिलास लिए खड़ी थी। मैंने उठ कर उससे चाय का गिलास लिया तो वो चुप चाप चली गई।

मुरारी से मेरी पहचान को इतना समय हो गया था और मैं उसके घर भी आता रहता था किन्तु इतने दिनों में आज तक अनुराधा से मेरी कोई बात नहीं हो पाई थी। वो अपनी माँ से ज़्यादा सुन्दर थी। उसका साँवला चेहरा हमेशा सादगी और मासूमियत से भरा रहता था। मैं जब भी उसे देखता था तो मेरी धड़कनें थम सी जाती थी मगर उससे कुछ बोलने के लिए मेरे पास कोई वजह नहीं होती थी। उसकी ख़ामोशी देख कर मेरी हिम्मत भी जवाब दे जाती थी। हालांकि उसका छोटा भाई अनूप मुझसे बड़े अच्छे से बात करता था और मेरे आने पर वो खुश भी हो जाता था। ऐसा इस लिए क्योंकि मेरे आने से जब उसकी माँ मुझे नमकीन और बिस्कुट नास्ते में देती तो मैं उसे भी खिलाता था।

चाय पीते हुए मैं अनुराधा की तरफ भी देख लेता था। वो रसोई के पास ही बैठी हंसिया से आलू काट रही थी। मेरी नज़र जब भी उस पर पड़ी थी तो मैं उसे अपनी तरफ ही देखते हुए पाया था। हमारी नज़रें जब आपस में टकरा जातीं तो वो फ़ौरन ही अपनी नज़रें झुका लेती थी किन्तु आज ऐसा नहीं था। आज जब हमारी नज़रें मिलती थीं तो वो अजीब सा मुँह बना लेती थी। पहले तो मुझे उसका यूं मुँह बनाना समझ में न आया किन्तु फिर एकदम से मेरे ज़हन में कल रात वाला वाक्या उभर आया और फिर ये भी याद आया कि जब मैं और सरोज अपना काम करके वापस आये थे तो किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई थी।

मेरे दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से ये ख़याल उभरा कि कहीं रात में अनुराधा को हमारे बारे में पता तो नहीं चल गया? मैं चारपाई पर जैसे ही लेटने लगा था वैसे ही किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई थी। हालांकि रात में हर तरफ अँधेरा था और कुछ दिख नहीं रहा था मगर अनुराधा का इस वक़्त मुझे देख कर इस तरह से मुँह बनाना मेरे मन में शंका पैदा करने लगा था जो कि मेरे लिए अच्छी बात हरगिज़ नहीं थी। इन सब बातों को सोचते ही मेरे अंदर घबराहट उभरने लगी और मुझे अनुराधा के सामने इस तरह चारपाई पर बैठना अब मुश्किल लगने लगा। मैंने जल्दी से चाय ख़त्म की और चारपाई से उठ कर खड़ा हो गया। मुरारी मुझे कहीं दिख नहीं रहा था और ना ही उसकी बीवी सरोज मुझे दिख रही थी। मैंने अनुराधा से पूछने का सोचा। ये पहली बार था जब मैं उससे कुछ बोलने वाला था या कुछ पूछने वाला था। मैंने उससे उसके पिता के बारे में पूछा तो उसने कुछ पल मुझे देखा और फिर धीरे से कहा कि वो दिशा मैदान को गए हैं।

"ठीक है फिर।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए संतुलित स्वर में कहा____"उनसे कहना कि मैं चाय पी कर अपने खेत पर चला गया हूं।"
"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूं?" मैं अभी दरवाज़े की तरफ बढ़ा ही था कि पीछे से उसकी आवाज़ सुन कर ठिठक गया और फिर पलट कर धड़कते हुए दिल से उसकी तरफ देखा।

"हां पूछो।" मैंने अपनी बढ़ चुकी धड़कनों को किसी तरह सम्हालते हुए कहा।
"वो कल रात आप और मां।" उसने अटकते हुए लहजे से नज़रें चुराते हुए कहा____"कहां गए थे अँधेरे में?"

उसके पूछने पर मैं समझ गया कि कल रात किसी चीज़ के गिरने से जो आवाज़ हुई थी उसकी वजह अनुराधा ही थी। किन्तु उसके पूछने पर मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या उसने हमें वो सब करते हुए देख लिया होगा? इस ख़्याल के साथ ही मेरी हालत ख़राब होने लगी।

"वो मुझे नींद नहीं आ रही थी।" फिर मैंने आनन फानन में उसे जवाब देते हुए कहा____"इस लिए बाहर गया था किन्तु तुम ये क्यों कह रही हो कि मैं और तुम्हारी माँ कहां गए थे? क्या काकी भी रात में कहीं गईं थी?"

"क्या आपको उनके जाने का पता नहीं है?" उसने अपनी आंखें सिकोड़ते हुए पूछा तो मेरी धड़कनें और भी तेज़ हो ग‌ईं।
"मुझे भला कैसे पता होगा?" मैंने अपने माथे पर उभर आए पसीने को महसूस करते हुए कहा____"अँधेरा बहुत था इस लिए मैंने उन्हें नहीं देखा।"


---------☆☆☆---------
Jabardast update Shubham bhai :good:
Kehte hai na jab sidhi ungli se ghee na nikle tab ungli tedhi karni padti hai....lagta hai aisa hi kuch vaibhav k baap ne kiya hai....isko pehle kitni baar samjhaya tab nhi sudhra aur jaise hi ganv nikala de diya ab sab chiz waise hi kar raha hai jaisa uska baap chahta hai....bhale hi yeh sab woh anjane mein hi kyu na kar rha ho....Aab usne khud mehnat karke banzar zamin par genhu ugai hai.... waise iss ki kismat bhi achi hai jab isko jarurat thi pani ki tab barrish bhi ho gayi...
Bichaara murari jiski usne madad ki kheti karna sikhaya thakur k pharman k khilaf jaa kar usne yeh sab kiya...usi ne pith piche uski biwi ka tabla :sex: bjaya...woh baat alag hai ki murari ki biwi ka pura sahyog tha isme.....lekin dusri tarf alag kand ho gaya...anuradha ko shayad andesha ho gya hai ki vaibhav aur uski maa raat ko kuch to gull khila rahe the....aur usne subh puch k vaibhav ki khatiya bhi khadi kardi.....
Brilliantly written :applause::applause::applause:
Keep writing :writing: ...
Keep posting....
Stay safe....
Stay fit.....
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Friends, time is running very bad these days. For the last few days, my health is very bad, so I have not been able to come here. Due to poor health, I stayed in the hospital for a few days and now I have come home. The situation now is that I am not in a condition to read and write anything.
Anyways, If God wished, I will return soon. Thank you.🙏🙏🙏
 

Fâķîřă

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Apna dhyan rkho , story ka aur aapka hum wait krenge ,
Get well soon
 

aka3829

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Bhagwan apki sehat jaldi theek kare. Aur hume humara dost jaldi wapas chahiye. Waisa hi jaisa pehle tha.
 

Nevil singh

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Ishwer aapko achchhi sehat v nirogi kaaya de
Dost
Shaant rahe
Chintamukt rahe
Khush rahe

Phir milenge chalte chalte
Puran swasthy hoker pure man se vaibhv ki nayya paar lagane ke samay
 

Raj_sharma

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Kaha Ho bhai update dedo yar
 
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