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Bilkul sahi kaha, dada thakur ki mansikta ko badhiya capture kiya hai aapne. Rahi baat vibhor aur ajeet ke sudhar jane ki to ye samay hi batayegaविभोर और अजीत सुधर गए हैं, या केवल नाटक कर रहें हैं, इस अध्याय के पश्चात सर्वप्रथम यही सवाल उभरकर सामने आता है। मैंने जैसा पहले कहा था कि दादा ठाकुर का इन दोनों को क्षमादान देने का दांव बहुत लाभकारी सिद्ध हो सकता है, वैसा ही कुछ होता नजर आ रहा है। आत्मग्लानि से बड़ा कोई अस्त्र नहीं है किसी भी अपराधी को सुधारने के लिए, और फिलहाल तो यही लगता है कि दोनों भाई, इसी आत्मग्लानि के भंवर में फंस चुके हैं। वैभव ने भी अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का प्रयोग करते हुए बड़े ही प्रेम भाव से उन दोनों से वार्ता कि जोकि निश्चित ही उन्हें और भी लज्जित कर रहा होगा।
परंतु जैसा कहा जाता है कि इंसान का ऊपरी आवरण भले ही बदल जाए पर भीतर से, व्यक्ति इतनी आसानी से नहीं बदलता। विभोर और अजीत ने जो कुछ किया, उसके बाद उनका इस प्रकार से हृदय – परिवर्तन होना, संभव नहीं लगता पर हम पहले ही इससे भी बड़ा कायाकल्प इस कहानी में देख चुके हैं। यदि वैभव में आए बदलावों को नजर में रखकर विचार किया जाए तो विभोर और अजीत में आया परिवर्तन सत्य लगता है। परंतु दूसरी ओर ये भी संभव है कि इस घड़ी में उनके समक्ष इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प मौजूद ही नहीं है। उनका खुद का पिता उन्हें दंडित करने के लिए मचल रहा है, ऐसे में शायद यही एक मात्र रास्ता बचा था उनके पास। आशा है कि दोनों सुधरने का ढोंग ना कर रहें हों, अन्यथा भविष्य में वैभव के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
Munshi naam ka praani shuru se hi chaploosi karne jaisi fitrat ka insaan raha hai. Uski aisi fitrat ke chalte sahaj hi ye abhaas hota hai ki ye banda kuch to gadbad zarur hai...par asal me wo aisa hai ki nahi iske liye bhi pramaad chahiye. Yu to har kisi par shak hai...खैर, अब दोनों कुसुम से भी अपने पाप की क्षमा मांगने वाले हैं, बेशक वो समझ ही जाएगी कि इसके पीछे वैभव का ही हाथ है। इंतजार रहेगा कुसुम और वैभव की अगली भेंट का। इस अध्याय के बाद पुनः मुंशी और उसके परिवार पर ध्यान चला गया है, जो कुछ समय के लिए कहानी से गायब से हो गए थे। रूपचंद्र के साथ मिलकर वैभव के रजनी से संभोग करने के बाद, मुंशी के परिवार का एक बार भी जिक्र नहीं हुआ था। मुंशी ने जो कुछ भी वैभव से कहा वो मुझे थोड़ा संदेहजनक प्रतीत हुआ। ऐसा लगा जैसे वो अपना पल्ला झाड़ने का प्रयास कर रहा हो। मेरा मतलब है कि कहीं न कहीं ऐसा लगा जैसे वो कुछ अधिक ही विस्तार से सब कुछ बता रहा हो, ताकि उसपर किसी भी परिस्थिति में वैभव को संदेह ना हो।
Ab is bare me to aane wale samay me hi pata chalega..रजनी के बारे में जो कुछ वैभव ने सोचा उससे मिलते – जुलते ही विचार हैं मेरे। अवश्य कुछ न कुछ तो रहस्मयी है रजनी और रूपचंद्र के बीच बने संबंधों में। अब मुंशी की बेटी कोमल भी वापिस लौट आई है, और जैसा पहले वैभव ने कहा था, अब शायद वही अगला शिकार हो उसका। बहरहाल, मुझे अभी तक मुंशी के परिवार के बारे में पढ़कर यही लगा है कि मुंशी भी उन षड्यंत्रकारियों से मिला हो सकता है। परंतु, सवाल ये है कि क्या मुंशी और उसका बेटा रजनी के चरित्र के विषय में जानते हैं? क्या रजनी अपना अलग ही कोई खेल खेल रही है? शायद एक मुलाकात रजनी से जल्दी ही हो सकती है वैभव की।
Rupa aur Anuradha filhaal do aisi ladkiya hain jinka vaibhav ki fitrat ko kuch kya balki kafi had tak badal dene me yogdan hai...baaki dono se uska kaisa rishta banega ye to wakt hi batayega. Halaaki hamare ek reader mitra ne sawaal kiya hai ki dono me se kaun mukhya naayika hogi to is bare me main khud hi thik se kuch nahi kah sakta. Haan, ek khaaka zarur hai zahen meरूपा से वैभव की बातचीत और उस वार्ता के दौरान वैभव के भाव। अनुराधा से तो प्रेम करने लगा है वैभव, इसमें कोई संदेह नहीं, परंतु उसका रिश्ता,रूपा से क्या है ये अभी तक समझ नहीं आया है। इतना तो स्पष्ट है कि रूपा वैभव के लिए गांव की उन बाकी सभी लड़कियों से अलग है, जिनके साथ वैभव ने संभोग किया है। रूपा और वैभव के अतीत का जितना हिस्सा अभी तक सामने आया है उससे तो यही लगता है कि इस संबंध की शुरुआत में तो रूपा के रूप – सौंदर्य के प्रति केवल एक आकर्षण ही था वैभव के मन में। परंतु, शायद रूपा के द्वारा दिखाए गए प्रेम और समर्पण ने उसकी सोच बदल दी। बहरहाल, मुझे रूपा पर भी संदेह है, कि वो वैभव के विरुद्ध षड्यंत्र में समिल्लित हो सकती है।
Anuradha aur vaibhav ke beech jo kuch hua hai isse aane wale samay me bahut kuch badal sakta hai....ummid karo achha hi hoअनुराधा के साथ हुई घटना से एक बार स्पष्ट है कि चाहे कुछ भी हो, परंतु अभी तक वैभव, अनुराधा का विश्वास नहीं जीत पाया है। जोकि पूर्णतः तर्कसंगत भी है, जैसा उस लड़के का इतिहास रहा है, उसपर अनुराधा जैसी कोमल हृदय वाली कन्या, आसानी से भरोसा नहीं कर सकती। वैसे भी अनुराधा के पास एक और कारण भी तो है इस अविश्वास का, वैभव के उसकी ही मां के साथ बने संबंध। कितनी भी सफाई क्यों न दी जाए वैभव द्वारा, उस विषय की विराटता ही इतनी है कि अनुराधा उसे झुठला नहीं सकती। परंतु, एक बार साफ है कि देर सवेर उसे भी एहसास हो ही जायेगा कि वैभव के समक्ष उसका शर्माना और मुस्कुराना व्यर्थ ही नहीं है, उसका कारण उसके हृदय की गहराइयों में छुपा हुआ है। अब देखना ये है की वैभव द्वारा ली गई सौगंध का क्या असर होगा उसपर।
Shuruaat me uska maksad yahi tha....shaanti aur sukoon lekin ab uski mansikta badal chuki hai. Ab ek khaas maksad hai us makaan me tahkhane jaisi cheez banwane kaसवाल ये भी है कि वैभव का असल मकसद क्या है इस खेत के टुकड़े पर घर बनवाने के पीछे? क्या केवल शांति की इच्छा और उस स्थान से लगाव ही इसका एकमात्र कारण है? तहखाने की बात से एक बार फिर वैभव के चरित्र पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। संभव है कि अभी तक उसकी तासीर नहीं बदली है, जिसका बदलना आसान है भी नहीं। पहली नजर में यही लगता है कि वो तहखाना उसकी अय्याशी का अड्डा हो सकता है, परंतु जिस तहखाने का निर्माण वो इतने गुप्त रूप से करवा रहा है, वहां किसी लड़की/महिला को लेकर जाएगा वो? संभव नहीं लगता, बेशक कोई गहरा विचार चल रहा है वैभव के मन में जिसके कारण ये सब घटनाएं घट रहीं हैं।
Jald hi pata chalegaअब देखना ये है कि ये दोनों लट्ठ थामे खड़े व्यक्ति कौन हैं? हमलावर, या फिर वैभव का कोई शुभचिंतक। देखना होगा की यदि ये हमलावर हैं तो इनका मंतव्य क्या है...
Bahut bahut dhanyawad Death Kiñg bhai is khubsurat aur shandaar sameeksha ke liyeबहुत ही खूबसूरत अध्याय था शुभम भाई। है बार की तरह अनुराधा के साथ हुई वैभव की बातचीत दिल को छू लेने वाली थी। वहीं रूपा के साथ हुई वार्ता भी अच्छी लगी...
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में...