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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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Bahut hi behtareen update he Shubham Bhai,

Vaibhav ki musibate to khatam hone ka naam hi nahi le rahi he, ab ye naya safed kapdo walo aadmi kaun aa gaya, Jagan aur unke sath aisa kise dekh liya mukhbiro ne jo itni chinta ho rahi he Vaibhav ko, shayad jagtap chacha ya fir munshi????
 

ASannd123

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Bro Aaj tak Jitney bhi story pdhi sabhi ( INDEX) Update wali padhi hai aash krta hu ki app next upload/ uploading story ( INDEX) Wali hi hongi


Jra Apki phchan ho tho ( LLL) WALEY Riwter ko update deney ko bolo
 

ASannd123

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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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अध्याय - 51
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अब तक....

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।

अब आगे.....


कुसुम अपने कमरे में पलंग पर लेटी बार बार अपनी आंखें बंद कर के सोने का प्रयास कर रही थी किंतु हर बार बंद पलकों में कुछ ऐसे दृश्य और कुछ ऐसी बातें उभर आतीं कि वो झट से अपनी आंखें खोल देने पर बिवस हो जाती थी। ऐसा सिर्फ़ आज ही नहीं हो रहा था बल्कि ऐसा तो उसके साथ जाने कब से हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से दिन में कभी भी आसानी से उसकी आंख नहीं लगती थी और यही हाल रातों का भी था। पिछले कुछ महीनों से वो जो करने पर मजबूर थी उसकी वजह से वो अंदर ही अंदर बेहद दुखी थी और उस सबकी वजह से उसे एक पल के लिए भी शांति नहीं मिलती थी।

दो दिन पहले तक उसे सिर्फ़ इसी बात का दुख असहनीय पीड़ा देता था कि उसका जो भाई उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है वो उसी को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिलाने पर मजबूर है। हर वक्त उसके ज़हन में बस एक ही ख़्याल आता था कि वो ये जो कुछ भी कर रही है वो निहायत ही ग़लत है। माना कि वो अपनी इज्ज़त और मर्यादा को छुपाने के लिए वो सब कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसे यही लगता था कि उसके इतने अच्छे भाई का जीवन उसके अपने जीवन और उसकी अपनी इज्ज़त मर्यादा से कहीं ज़्यादा अनमोल है। वो अक्सर ये सोच कर अकेले में रोती थी कि वैभव भैया उस पर कितना भरोसा करते हैं, यानि अगर वो चाय में ज़हर मिला कर भी उन्हें पीने को देगी तो वो खुशी से पी लेंगे।अपने भाई के साथ वो हर रोज़ कितना बड़ा विश्वासघात करती है। ये ऐसी बातें थीं जिन्हें सोच सोच कर कुसुम तकिए में अपना मुंह छुपाए घंटों रोती रहती और अपने भाई से अपने किए की माफ़ियां मांगती रहती। कभी कभी उसके मन में एकदम से ख़्याल उभर आता कि अपने भाई से इतना बड़ा विश्वासघात करने के बाद अब उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस ख़्याल के चलते कई बार उसने खुदकुशी करने का मन बनाया लेकिन फिर ये सोच कर वो खुदकुशी भी नहीं कर पाई कि अगर उसने ऐसा किया तो उसका भाई उसे कभी माफ़ नहीं करेगा। उसके यूं मर जाने पर उसके भाई को बहुत दुख होगा और वो भला कैसे ये चाह सकती है कि उसकी वजह से उसके वैभव भैया को ज़रा सा भी कोई दुख हो?

एक समय था जब पूरी हवेली में कुसुम की हंसी और उसकी शरारतें गूंजती थीं। कोई कितना ही उदास क्यों न हो लेकिन कुसुम का सामना होते ही उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान उभर आती थी। विभोर उमर में उससे बड़ा था लेकिन अजीत छोटा था इसके बावजूद वो दोनों भाई उसे सताते रहते थे लेकिन सिर्फ़ वैभव का प्यार और स्नेह ही उसे इतना काफ़ी लगता था जिसकी वजह से वो कभी किसी भी बात पर अपने होठों की मुस्कान और शरारतें करना नहीं छोड़ती थी। वो जानती थी कि वैभव उसका वो भाई है जो उसके लिए दुनिया के कोने कोने से खुशियां खोज कर ला सकता है और ऐसा होता भी था। हवेली में वैभव के रहते किसी की मजाल नहीं होती थी कि कोई कुसुम से ऊंची आवाज़ में बात कर ले। वैभव के रहते कुसुम खुद एक शेरनी बन जाती थी। उसे ऐसा लगने लगता था जैसे हवेली में अब सिर्फ़ उसी का राज हो गया है। अपने बाप की भी ना सुनने वाला वैभव उसकी हर बात सुनता था और उसकी हर ख़्वाइश को पूरा करता था, फिर उसके लिए चाहे उसे खुद दादा ठाकुर से ही क्यों न टकरा जाना पड़े। ये सब देख कर जगताप अक्सर कहता था कि जिस दिन उसकी बेटी ब्याह होने के बाद हवेली से चली जाएगी तब क्या होगा वैभव का? कैसे रह पाएगा वो अपनी लाडली बहन कुसुम के बिना और खुद कुसुम कैसे अपने ससुराल में रह पाएगी अपने वैभव भैया के बिना?

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" जाने किस दृश्य को देख कर सहसा कुसुम की आंखों से आसूं छलक पड़े और वो रूंधे गले से किंतु धीमें स्वर में बोल पड़ी_____"आपकी इस बहन में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो आपके सामने अपनी मजबूरी का सच बता सके। मैं जानती हूं कि आपको शायद बहुत कुछ पता चल गया है लेकिन इसके बावजूद आपने मुझसे कोई गिला शिकवा नहीं किया। उस दिन आप मुझसे जिनके लिए सज़ा मिलने की बात कह रहे थे न, मैं तभी समझ गई थी कि शायद आपको सब पता चल गया है। मैं जानती हूं कि आप उन लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना चाहते थे जिन्होंने आपकी बहन का दिल दुखाया है लेकिन भला मैं ये कैसे ऐसा चाह सकती थी? वो भी तो मेरे भाई ही हैं। भला कैसे कोई बहन अपने भाइयों को सबके सामने इस तरह से जलील होते या सज़ा पाते देख सकती थी? उन्होंने मेरा दिल दुखाया, मेरी आत्मा तक को छलनी किया, इसके बावजूद मैं उन्हें माफ़ कर देना चाहती हूं। मैं उनकी तरह नहीं हूं और मुझे यकीन है कि आप भी मुझसे ऐसी ही उम्मीद करते होंगे।"

पलंग पर तकिए में अपना मुंह छुपाए कुसुम रोते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। रोने से उसकी आंखें सुर्ख पड़ गईं थी और गोरा चेहरा भी। दोपहर में जब सब लोग खाना खा रहे थे तो कुसुम खाना परोसने के लिए रसोई से बाहर नहीं आई थी। अपने से उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी कि वो अपने उस भाई का सामना करे जो भाई उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करता है। एक दो बार वैभव के कमरे में उसे जाना पड़ा था लेकिन वो भी उसकी मजबूरी ही थी।

"शीला ने आपको सब कुछ बता दिया होगा न?" कुसुम के जहन में सहसा बिजली सी कौंधी तो वो बेहद दुखी भाव से बड़बड़ाई____"वो सब भी ना जो मैं किसी भी कीमत पर आपको जानने नहीं देना चाहती थी? आप सोच रहे होंगे न कि आपकी बहन कितनी गंदी है और उसके मन में कैसे कैसे गंदे विचार हैं? नहीं नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत सोचिएगा भैया। आपकी बहन गंदी नहीं है। वो तो उस दिन मेरी सखियां खेल खेल में पता नहीं वो सब क्या करने लगीं थी। सब उनका ही दोष है भैया, मेरा यकीन कीजिए। मुझे नहीं पता था कि वो इतनी गन्दी हैं वरना मैं उनके साथ कोई खेल ही नहीं खेलती।"

कुसुम की आंखें लगातार आंसू बहाए जा रहीं थी। वो खुद से ही बड़बड़ा रही थी किंतु उसे एहसास यही हो रहा था मानों वो अपने भैया वैभव को ही ये सब बता रही हो जिसके चलते उसे बेहद शर्म भी आ रही थी।

"आप अपनी इस बहन से नाराज़ मत होना भैया।" कुसुम के दिल में सहसा एक हूक सी उठी जिसके चलते वो एकदम से फफक कर रो पड़ी____"और ना ही अपनी इस बहन के बारे में ग़लत सोचना। मैं आपकी वही छोटी और मासूम बहन हूं जिसे आप अपनी जान समझते हैं। बस एक बार अपनी इस बहन को माफ़ कर दीजिए न।"

अभी कुसुम ये सब बड़बड़ाते हुए रो ही रही थी कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई जिसके चलते वो बुरी तरह हड़बड़ा गई। पलंग पर झट से वो उठ कर बैठ गई और जल्दी जल्दी अपने आंसू पोंछने लगी। चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए थे। धड़कते दिल से वो कमरे के दरवाज़े को घूरने लगी थी। तभी दस्तक फिर से हुई और साथ ही बाहर से विभोर ने आवाज़ भी दी जिसे सुन कर कुसुम के चेहरे का मानों रंग ही उड़ गया। उससे जवाब में कुछ बोलते न बन पड़ा। बाहर से विभोर ने उसे आवाज़ दे कर दरवाज़ा खोलने के लिए कहा था। कुसुम की सांसें जैसे कुछ पलों के लिए रुक ही गईं थी लेकिन फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और अपने दुपट्टे से जल्दी जल्दी अपने हुलिए को ठीक किया। तत्पश्चात वो पलंग से नीचे उतरी और फिर जा कर उसने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर अपने दोनों भाईयों को खड़े देख उसके चेहरे पर सहसा एक अजीब सी शख़्ती उभर आई।

"हम दोनों तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं कुसुम।" विभोर ने अपनी नज़रें झुका कर दुखी भाव से कहा____"हम जानते हैं कि हमने तुझसे जो काम करवा के अपराध किया है उसके लिए हमें कोई माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए फिर भी अपने गुनाहों के लिए तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं।"

विभोर की ये बातें सुन कर कुसुम को मानों बिजली की तरह झटका लगा। वो हैरत से आंखें फाड़े अपने बड़े भाई विभोर को देखने लगी थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके अपने भाई किसी दिन उससे माफ़ी भी मांग सकते हैं।

"हां दीदी।" विभोर के थोड़ा पीछे खड़ा अजीत भी अपने बड़े भाई के जैसे बोल पड़ा____"हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं। वैभव भैया से ईर्ष्या करने के चलते पता नहीं हम क्या क्या कर बैठे जिसका कभी हमें आभास ही नहीं हुआ। ईर्ष्या और नफ़रत में अंधे हो कर हमने अपनी ही बहन को ऐसे काम के लिए मजबूर किया जो हर तरह से ग़लत था। हमें तो भाई कहलाने का भी हक़ नहीं रहा दीदी। हो सके तो हमें माफ़ कर दीजिए।"

कुसुम को एकदम से ऐसा लगा जैसे वो खुली आंखों से अचानक ही सपना देखने लगी है। उसने तेज़ी से अपने सिर को झटका। उसके लिए अपने भाइयों द्वारा कही गई ये सब बातें किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। उसकी आंखों के सामने क़रीब दो क़दम की दूरी पर उसके दोनों भाई खड़े थे जिनके सिर अपराध बोध के चलते झुके हुए थे। कुसुम को समझ न आया कि वो उन दोनों की बातों पर क्या प्रतिक्रिया दे अथवा क्या जवाब दे?

"माफ़ी मुझसे नहीं।" फिर उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और सपाट लहजे में कहा____"बल्कि उस इंसान से मांगिए जिनके साथ आप दोनों ने मुझसे बुरा करवाया है।"

"वैभव भैया से हमने माफ़ी मांग ली है और उन्होंने हम दोनों को माफ़ भी कर दिया है।" विभोर ने इस बार संजीदा भाव से कहा____"वो बहुत अच्छे हैं, उनका दिल बहुत विशाल है।"

"आपको पता है दीदी।" अजीत ने कहा____"पिता जी तो हमें जान से ही मार देना चाहते थे लेकिन ताऊ जी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उसके बाद ताऊ जी ने भी हमें उस सबके लिए माफ़ कर दिया। हमने भी अब प्रण कर लिया है कि अब से हम दोनों ऐसा काम करेंगे जो हमारे साथ साथ हमारे समूचे खानदान के लिए बेहतर हो।"

"हमें सच में अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है कुसुम।" कुसुम को कुछ न बोलता देख विभोर ने गंभीरता से कहा____"और अपने आपसे घृणा हो रही है। मन करता है किसी सूखे कुएं में कूद कर अपनी जान दे दें।"

"अगर वैभव भैया ने आप दोनों को माफ़ कर दिया है तो समझ लीजिए कि मैंने भी माफ़ कर दिया।" कुसुम ने पहले जैसे ही सपाट लहजे में कहा____"अब आप दोनों जाइए यहां से।"

"तेरा चेहरा और लहजा बता रहा है कि तूने दिल से हमें माफ़ नहीं किया है।" विभोर ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"बस एक बार माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं समझ सकता हूं कि जो कुछ हमने तुझसे करवाया है वो सब भूलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए।"

"मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती।" कुसुम ने इस बार थोड़ा कठोरता से कहा____"ऊपर वाले से बस यही विनती करती हूं कि वो आप दोनों को सद्बुद्धि दे ताकि आज के बाद कभी आप दोनों के मन में ऐसा कुछ भी करने का ख़्याल न आए।"

कहते हुए कुसुम की आंखें अनायास ही छलक पड़ीं। विभोर और अजीत ने उसकी बातें सुन कर एक बार फिर से अपना सिर झुका लिया। कुछ पल दोनों खड़े रहे उसके बाद दोनों ने हाथ जोड़ कर फिर से कुसुम से माफ़ी मांगी और फिर चुप चाप चले गए। उनके जाते ही कुसुम ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद वो भाग कर पलंग पर आई और पहले की ही भांति तकिए में अपना चेहरा छुपा कर सिसकने लगी।

"आपने इतना कुछ हो जाने के बाद भी मेरी बात का मान रखा।" वो फिर से बड़बड़ा उठी____"आप सच में मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मैं आपकी गंदी बहन हूं।"

कहने के साथ ही कुसुम की आंखें एक बार फिर से बरसने लगीं। कमरे में उसके सिसकने की धीमी आवाज़ें गूंजने लगीं थी। इस बार उसे अपने जज़्बातों को सम्हालना भारी मुश्किल लग रहा था।

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"तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" मैंने बुलेट को उन दोनों के पास ही रोक कर कहा____"मैंने मना किया था न कि यूं खुले में कहीं मत घूमना?"

"माफ़ कीजिए छोटे ठाकुर।" उनमें से एक ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम दोनों तो शाम के अंधेरे में ही आपके पास हवेली आते लेकिन जब हमने देखा कि आप इस तरफ ही आ रहे हैं तो हम दोनों भी आपके पीछे आ गए। दूसरी बात ये भी थी कि आपको एक ज़रूरी बात बतानी थी। हमने सोचा कि अंधेरा होने की प्रतीक्षा क्यों करें? जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे तो एक एक बात का पता जल्दी से लगना ज़रूरी है न छोटे ठाकुर।"

"अरे! तुम दोनों की जान से बढ़ कर कोई भी चीज़ ज़रूरी नहीं है।" मैंने उस आदमी से कहा____"मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि मेरी वजह से तुम दोनों पर ज़रा भी कोई आंच आए। ख़ैर, बताओ क्या ख़बर लाए हो?"

मेरे पूछने पर दोनों ने सबसे पहले इधर उधर निगाह घुमाई और फिर ख़बर के बारे में बताना शुरू कर दिया। सारी बातें सुनने के बाद मैं सोच में पड़ गया। अंदेशा तो मुझे था लेकिन ऐसा भी कुछ होगा इसकी ज़रा भी कल्पना नहीं की थी मैंने। ख़ैर, मैंने पैंट की जेब से कुछ पैसे निकाले और उन दोनों को पकड़ाया और ये भी कहा कि अपना ख़्याल सबसे पहले रखें।

एक बार फिर से मेरी बुलेट कच्ची पगडंडी पर दौड़ने लगी। ज़हन में बार बार उन दोनों आदमियों की बातें ही गूंज रहीं थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। ख़ैर, जल्दी ही मैं अपने गांव की आबादी में दाखिल हो गया। सबसे पहले मुंशी चंद्रकांत का ही मकान पड़ता था। मैं जैसे ही मुंशी के घर के सामने आया तो देखा मुंशी की बीवी प्रभा अपने घर के दरवाज़े के बाहर खड़ी गांव की किसी औरत से बातें कर रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दूसरी औरत से नज़र बचा कर हल्के से मुस्कुराई। मेरा फिलहाल उसके घर जाने का कोई इरादा नहीं था इस लिए उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से ही देते हुए मैं आगे निकल गया।

साहूकारों के सामने से होते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली पहुंच गया। बुलेट को एक तरफ खड़ी कर के मैं हवेली के अंदर दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के साथ कुछ लोग बैठे हुए थे जिन्हें मैं पहचानता नहीं था। ज़ाहिर है वो लोग मेरे गांव के नहीं थे। मैंने कुछ पल रुक कर पिता जी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे अंदर जाने का इशारा किया। मैं फ़ौरन ही अंदर चला आया। अंदर आया तो मां से मुलाक़ात हो गई।

"अच्छा हुआ कि तू आ गया।" मां ने कहा____"मैं तेरी ही राह देख रही थी।"
"क्या हुआ मां?" मैं ने फिक्रमंदी से पूछा____"कोई बात हो गई है क्या?"

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मां ने सामान्य भाव से कहा____"असल में तेरी भाभी के मायके से एक संदेशा आया है। तेरी भाभी के भाई को वर्षों बाद संतान के रूप में एक बेटा हुआ है इस लिए उन्होंने संदेशा भेजा है कि हम उनकी बहन को कुछ दिन के लिए वहां भेज दें।"

"ये तो बड़ी खुशी की बात है मां।" मैं कुछ सोच कर मन ही मन खुश हो गया था किंतु प्रत्यक्ष में सामान्य सी खुशी ज़ाहिर करते हुए बोला____"साले साहब को पहली संतान के रूप में बेटा हुआ है तो ज़ाहिर है धूम धड़ाका तो करेंगे ही लेकिन भाभी को लेने वो खुद भी तो आ सकते थे?"

"अब अकेला आदमी क्या क्या करे?" मां ने कहा____"तुझे पता ही है कि तेरी भाभी का एक भाई उसके ब्याह के पहले ही कहीं चला गया था जो कि आज तक लौट कर नहीं आया। समधी जी तो घुटने के बात के चलते ज़्यादा चल फिर नहीं पाते। घर का सारा कार्यभार बेचारे वीरेंद्र के ही कंधों पर है। इसी लिए संदेशा भेजवाया है और तेरे पिता जी से विनती भी की है कि हम ही उनकी बहन रागिनी को वहां पहुंचा दें।"

"तो पिता जी ने क्या कहा?" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा।
"मुझसे कह रहे थे कि तू भेज आएगा अपनी भाभी को।" मां ने कहा____"और साथ में कुछ आदमियों को भी ले जाना। उनका कहना है कि ऐसे वक्त में काम का बोझ ज़्यादा हो जाता है तो मदद के लिए कुछ लोगों का वहां होना बेहद ज़रूरी है।"

"वो सब तो ठीक है मां।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन भाभी को ले कर बड़े भैया भी तो जा सकते हैं, मैं ही क्यों?"
"वो तेरी तरह ढीठ और बेशर्म नहीं है।" मां ने आंखें दिखाते हुए कहा____"आज तक क्या कभी वो उसे अपने साथ ले कर गया है जो अब जाएगा? उसे अपनी बीवी को अपने साथ लाने ले जाने में शर्म आती है और ऐसा होना भी चाहिए। इस लिए तू ही अपनी भाभी को ले कर जाएगा।"

रागिनी भाभी के साथ उनके मायके जाने की बात से में एकदम खुश हो गया था। एक पल में जाने कितने ही खूबसूरत चेहरे आंखों के सामने उजागर हो गए थे लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर मायूस हो गया कि आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें मेरा वहां जाना बिलकुल भी ठीक नहीं है।

"ठीक है मां।" मैंने बुझे मन से कहा___"मैं कल सुबह भाभी को उनके मायके भेज कर वापस आ जाऊंगा।"
"कल नहीं, आज और अभी जाना है तुझे।" मां ने ये कह कर मानों मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा_____"और उसे वहां भेज कर वापस नहीं आ जाना है बल्कि वहां रह कर वीरेंद्र के कामों में उनका हाथ भी बंटाना है। जिस दिन बच्चे का नाम करण होगा उस दिन तेरे पिता जी भी यहां से जाएंगे।"

मां की बातें सुन कर मानो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। कोई और वक्त होता तो यकीनन मैं उनकी इन बातों से बेहद खुश हो गया होता लेकिन आज के वक्त में जो हालात थे उनकी वजह से मेरा इस तरह यहां से चले जाना बिलकुल भी उचित नहीं था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि पिता जी भला ऐसा हुकुम कैसे दे सकते थे? क्या उन्हें हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं था?

"क्या हुआ, कहां खो गया?" मां ने मुझे हकीक़त की दुनिया में लाते हुए कहा____"जा, जा के जल्दी से तैयार हो जा। तब तक मैं देखती हूं कि रागिनी तैयार हुई कि नहीं।"

मैं भारी क़दमों से चलते हुए ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। साला ये क्या चुटियापा हो गया था? मुझे ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि पिता जी मुझे भाभी के मायके में रहने का कैसे कह सकते थे? सहसा मुझे याद आया कि आज जिन दो आदमियों से मैं मिला था उन्होंने मुझे कैसी ख़बर दी थी और अब मैं उस ख़बर के चलते क्या क़दम उठाने वाला था लेकिन अब मेरे यहां से यूं अचानक चले जाने पर सब गड़बड़ हो जाएगा।

मैं अपने कमरे के पास पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खुला हुआ था। ज़ाहिर है कोई मेरे कमरे में मौजूद था। ख़ैर, में कमरे में दाखिल हुआ तो देखा बड़े भैया बैठे हुए थे। मुझे देखते ही वो हल्के से मुस्कुराए और मुझे पलंग पर अपने पास ही बैठने का इशारा किया।

"तेरे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि तू अंदर से काफी परेशान है।" बड़े भैया ने कहा____"शायद तुझे मां के द्वारा पता चल चुका है कि तुझे अपनी भाभी को ले कर उसके मायके जाना है।"

"भाभी को उनके मायके ले कर जाने की बात से मैं परेशान नहीं हूं भैया।" मैंने धीर गंभीर भाव से कहा____"बल्कि इस बात से परेशान हो गया हूं कि मुझे वहां पर एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक रुकना होगा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि हालात ऐसे हर्गिज़ नहीं हैं कि मैं इतने दिनों तक कहीं रुक सकूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि पिता जी ने मां से ऐसा क्यों कहा? क्या उन्हें वक्त और हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं है?"

"हमें अच्छी तरह वक्त और हालात की गंभीरता का एहसास है बर्खुरदार।" दरवाज़े से अचानक आई पिता जी की भारी आवाज़ को सुन कर हम दोनों भाई चौंके और पिता जी को देख कर खड़े हो गए, जबकि पिता जी हमारे क़रीब आते हुए बोले____"हमें अच्छी तरह पता है कि ऐसे वक्त में हमें क्या करना चाहिए।"

मैं और बड़े भैया उनकी बातें सुन कर कुछ न बोले। उधर वो पलंग पर आ कर बैठ गए और हमें भी बैठने का इशारा किया। हम दोनों के बैठ जाने के बाद वो बोले____"सबसे पहली बात तो ये कि हालात चाहे जैसे भी हों लेकिन हमें सभी से अपने रिश्ते सही तरीके से निभाना चाहिए। तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है क्योंकि वहां जो कार्यक्रम होने वाला है उसकी व्यवस्था करना अकेले वीरेंद्र के बस का नहीं है। दस साल बाद वीरेंद्र को ऊपर वाले की दया से संतान के रूप में पहले पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। ज़ाहिर है ये उसके लिए बहुत बड़ी खुशी की बात है और वो अपनी इस खुशी को बड़े उल्लास के साथ मनाना चाहता है और ये हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम उसकी खुशी को किसी भी तरह से फीका न पड़ने दें। यकीन मानो अगर यहां हालात ऐसे न होते तो हम सब आज ही वहां जाते। ख़ैर, तुम्हें यहां की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यहां के जो हालात हैं उन पर हमारी पैनी नज़र है और बड़े से बड़े ख़तरे का सामना करने के लिए हम हर तरह से तैयार हैं।"

"ठीक है पिता जी।" मैं भला अब क्या कहता____"आप कहते हैं तो ऐसा ही करूंगा मैं। ख़ैर, आज मुझे मेरे दो ख़ास आदमियों के द्वारा कुछ खास बातें पता चली हैं।"
"कैसी बातें?" पिता जी के साथ साथ बड़े भैया के भी माथे पर बल पड़ गया था।

"जगन पर किया गया हमारा शक एकदम सही साबित हुआ।" मैंने ख़ास भाव से कहा____"वो एक नंबर का कमीना इंसान निकला।"
"साफ़ साफ़ बताओ।" पिता जी के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभर आए थे____"क्या पता चला है तुम्हें उसके बारे में?"

"मुझे पक्का यकीन तो नहीं था।" मैंने कहा____"लेकिन तांत्रिक की हत्या हो जाने के बाद से संदेह होने लगा था उस पर। उस रात जब हमने आपस में इस सबके बारे में विचार विमर्श किया था तो दूसरे दिन ही मैंने उसकी निगरानी में अपने दो ख़ास आदमियों को लगा दिया था। आज उन्हीं दो आदमियों ने मुझे उससे संबंधित ख़बर दी है। उन दोनों आदमियों के अनुसार पिछली रात जगन साहूकारों के बगीचे में एक ऐसे रहस्यमय आदमी से मिला जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और चेहरा भी सफ़ेद नक़ाब से ढंका हुआ था।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


━━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
अब किसका राज खुला, किसका पत्ता कटने वाला है ... वो कौन था
इधर कुसुम कुछ गलत कदम उठाने वाली है, ऐसा लग रहा है
देखते हैं इन्तेहा~क्या है
 

Lib am

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अब तक....

जिस तरफ मेरे नए बन रहे मकान के लिए रास्ता जा रहा था उस तरफ न जा कर मैं हवेली जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ चला। कच्चा पगडंडी वाला रास्ता था जिसके दोनों तरफ कुछ बड़े बड़े पेड़ थे। मैं जैसे ही उन पेड़ों के थोड़ा पास पहुंचा तो एकदम से दो आदमी उन पेड़ों से निकल कर सड़क के किनारे खड़े हो गए। दोनों के हाथ में मजबूत लट्ठ मौजूद था।

अब आगे.....


कुसुम अपने कमरे में पलंग पर लेटी बार बार अपनी आंखें बंद कर के सोने का प्रयास कर रही थी किंतु हर बार बंद पलकों में कुछ ऐसे दृश्य और कुछ ऐसी बातें उभर आतीं कि वो झट से अपनी आंखें खोल देने पर बिवस हो जाती थी। ऐसा सिर्फ़ आज ही नहीं हो रहा था बल्कि ऐसा तो उसके साथ जाने कब से हो रहा था। पिछले कुछ महीनों से दिन में कभी भी आसानी से उसकी आंख नहीं लगती थी और यही हाल रातों का भी था। पिछले कुछ महीनों से वो जो करने पर मजबूर थी उसकी वजह से वो अंदर ही अंदर बेहद दुखी थी और उस सबकी वजह से उसे एक पल के लिए भी शांति नहीं मिलती थी।

दो दिन पहले तक उसे सिर्फ़ इसी बात का दुख असहनीय पीड़ा देता था कि उसका जो भाई उसे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है वो उसी को चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर पिलाने पर मजबूर है। हर वक्त उसके ज़हन में बस एक ही ख़्याल आता था कि वो ये जो कुछ भी कर रही है वो निहायत ही ग़लत है। माना कि वो अपनी इज्ज़त और मर्यादा को छुपाने के लिए वो सब कर रही थी लेकिन इसके बावजूद उसे यही लगता था कि उसके इतने अच्छे भाई का जीवन उसके अपने जीवन और उसकी अपनी इज्ज़त मर्यादा से कहीं ज़्यादा अनमोल है। वो अक्सर ये सोच कर अकेले में रोती थी कि वैभव भैया उस पर कितना भरोसा करते हैं, यानि अगर वो चाय में ज़हर मिला कर भी उन्हें पीने को देगी तो वो खुशी से पी लेंगे।अपने भाई के साथ वो हर रोज़ कितना बड़ा विश्वासघात करती है। ये ऐसी बातें थीं जिन्हें सोच सोच कर कुसुम तकिए में अपना मुंह छुपाए घंटों रोती रहती और अपने भाई से अपने किए की माफ़ियां मांगती रहती। कभी कभी उसके मन में एकदम से ख़्याल उभर आता कि अपने भाई से इतना बड़ा विश्वासघात करने के बाद अब उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। इस ख़्याल के चलते कई बार उसने खुदकुशी करने का मन बनाया लेकिन फिर ये सोच कर वो खुदकुशी भी नहीं कर पाई कि अगर उसने ऐसा किया तो उसका भाई उसे कभी माफ़ नहीं करेगा। उसके यूं मर जाने पर उसके भाई को बहुत दुख होगा और वो भला कैसे ये चाह सकती है कि उसकी वजह से उसके वैभव भैया को ज़रा सा भी कोई दुख हो?

एक समय था जब पूरी हवेली में कुसुम की हंसी और उसकी शरारतें गूंजती थीं। कोई कितना ही उदास क्यों न हो लेकिन कुसुम का सामना होते ही उस व्यक्ति के होठों पर मुस्कान उभर आती थी। विभोर उमर में उससे बड़ा था लेकिन अजीत छोटा था इसके बावजूद वो दोनों भाई उसे सताते रहते थे लेकिन सिर्फ़ वैभव का प्यार और स्नेह ही उसे इतना काफ़ी लगता था जिसकी वजह से वो कभी किसी भी बात पर अपने होठों की मुस्कान और शरारतें करना नहीं छोड़ती थी। वो जानती थी कि वैभव उसका वो भाई है जो उसके लिए दुनिया के कोने कोने से खुशियां खोज कर ला सकता है और ऐसा होता भी था। हवेली में वैभव के रहते किसी की मजाल नहीं होती थी कि कोई कुसुम से ऊंची आवाज़ में बात कर ले। वैभव के रहते कुसुम खुद एक शेरनी बन जाती थी। उसे ऐसा लगने लगता था जैसे हवेली में अब सिर्फ़ उसी का राज हो गया है। अपने बाप की भी ना सुनने वाला वैभव उसकी हर बात सुनता था और उसकी हर ख़्वाइश को पूरा करता था, फिर उसके लिए चाहे उसे खुद दादा ठाकुर से ही क्यों न टकरा जाना पड़े। ये सब देख कर जगताप अक्सर कहता था कि जिस दिन उसकी बेटी ब्याह होने के बाद हवेली से चली जाएगी तब क्या होगा वैभव का? कैसे रह पाएगा वो अपनी लाडली बहन कुसुम के बिना और खुद कुसुम कैसे अपने ससुराल में रह पाएगी अपने वैभव भैया के बिना?

"मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।" जाने किस दृश्य को देख कर सहसा कुसुम की आंखों से आसूं छलक पड़े और वो रूंधे गले से किंतु धीमें स्वर में बोल पड़ी_____"आपकी इस बहन में इतनी हिम्मत नहीं है कि वो आपके सामने अपनी मजबूरी का सच बता सके। मैं जानती हूं कि आपको शायद बहुत कुछ पता चल गया है लेकिन इसके बावजूद आपने मुझसे कोई गिला शिकवा नहीं किया। उस दिन आप मुझसे जिनके लिए सज़ा मिलने की बात कह रहे थे न, मैं तभी समझ गई थी कि शायद आपको सब पता चल गया है। मैं जानती हूं कि आप उन लोगों को कड़ी से कड़ी सज़ा देना चाहते थे जिन्होंने आपकी बहन का दिल दुखाया है लेकिन भला मैं ये कैसे ऐसा चाह सकती थी? वो भी तो मेरे भाई ही हैं। भला कैसे कोई बहन अपने भाइयों को सबके सामने इस तरह से जलील होते या सज़ा पाते देख सकती थी? उन्होंने मेरा दिल दुखाया, मेरी आत्मा तक को छलनी किया, इसके बावजूद मैं उन्हें माफ़ कर देना चाहती हूं। मैं उनकी तरह नहीं हूं और मुझे यकीन है कि आप भी मुझसे ऐसी ही उम्मीद करते होंगे।"

पलंग पर तकिए में अपना मुंह छुपाए कुसुम रोते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी। रोने से उसकी आंखें सुर्ख पड़ गईं थी और गोरा चेहरा भी। दोपहर में जब सब लोग खाना खा रहे थे तो कुसुम खाना परोसने के लिए रसोई से बाहर नहीं आई थी। अपने से उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती थी कि वो अपने उस भाई का सामना करे जो भाई उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करता है। एक दो बार वैभव के कमरे में उसे जाना पड़ा था लेकिन वो भी उसकी मजबूरी ही थी।

"शीला ने आपको सब कुछ बता दिया होगा न?" कुसुम के जहन में सहसा बिजली सी कौंधी तो वो बेहद दुखी भाव से बड़बड़ाई____"वो सब भी ना जो मैं किसी भी कीमत पर आपको जानने नहीं देना चाहती थी? आप सोच रहे होंगे न कि आपकी बहन कितनी गंदी है और उसके मन में कैसे कैसे गंदे विचार हैं? नहीं नहीं, भगवान के लिए ऐसा मत सोचिएगा भैया। आपकी बहन गंदी नहीं है। वो तो उस दिन मेरी सखियां खेल खेल में पता नहीं वो सब क्या करने लगीं थी। सब उनका ही दोष है भैया, मेरा यकीन कीजिए। मुझे नहीं पता था कि वो इतनी गन्दी हैं वरना मैं उनके साथ कोई खेल ही नहीं खेलती।"

कुसुम की आंखें लगातार आंसू बहाए जा रहीं थी। वो खुद से ही बड़बड़ा रही थी किंतु उसे एहसास यही हो रहा था मानों वो अपने भैया वैभव को ही ये सब बता रही हो जिसके चलते उसे बेहद शर्म भी आ रही थी।

"आप अपनी इस बहन से नाराज़ मत होना भैया।" कुसुम के दिल में सहसा एक हूक सी उठी जिसके चलते वो एकदम से फफक कर रो पड़ी____"और ना ही अपनी इस बहन के बारे में ग़लत सोचना। मैं आपकी वही छोटी और मासूम बहन हूं जिसे आप अपनी जान समझते हैं। बस एक बार अपनी इस बहन को माफ़ कर दीजिए न।"

अभी कुसुम ये सब बड़बड़ाते हुए रो ही रही थी कि तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई जिसके चलते वो बुरी तरह हड़बड़ा गई। पलंग पर झट से वो उठ कर बैठ गई और जल्दी जल्दी अपने आंसू पोंछने लगी। चेहरे पर घबराहट के भाव उभर आए थे। धड़कते दिल से वो कमरे के दरवाज़े को घूरने लगी थी। तभी दस्तक फिर से हुई और साथ ही बाहर से विभोर ने आवाज़ भी दी जिसे सुन कर कुसुम के चेहरे का मानों रंग ही उड़ गया। उससे जवाब में कुछ बोलते न बन पड़ा। बाहर से विभोर ने उसे आवाज़ दे कर दरवाज़ा खोलने के लिए कहा था। कुसुम की सांसें जैसे कुछ पलों के लिए रुक ही गईं थी लेकिन फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हाला और अपने दुपट्टे से जल्दी जल्दी अपने हुलिए को ठीक किया। तत्पश्चात वो पलंग से नीचे उतरी और फिर जा कर उसने दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर अपने दोनों भाईयों को खड़े देख उसके चेहरे पर सहसा एक अजीब सी शख़्ती उभर आई।

"हम दोनों तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं कुसुम।" विभोर ने अपनी नज़रें झुका कर दुखी भाव से कहा____"हम जानते हैं कि हमने तुझसे जो काम करवा के अपराध किया है उसके लिए हमें कोई माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए फिर भी अपने गुनाहों के लिए तुझसे माफ़ी मांगने आए हैं।"

विभोर की ये बातें सुन कर कुसुम को मानों बिजली की तरह झटका लगा। वो हैरत से आंखें फाड़े अपने बड़े भाई विभोर को देखने लगी थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके अपने भाई किसी दिन उससे माफ़ी भी मांग सकते हैं।

"हां दीदी।" विभोर के थोड़ा पीछे खड़ा अजीत भी अपने बड़े भाई के जैसे बोल पड़ा____"हम अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हैं। वैभव भैया से ईर्ष्या करने के चलते पता नहीं हम क्या क्या कर बैठे जिसका कभी हमें आभास ही नहीं हुआ। ईर्ष्या और नफ़रत में अंधे हो कर हमने अपनी ही बहन को ऐसे काम के लिए मजबूर किया जो हर तरह से ग़लत था। हमें तो भाई कहलाने का भी हक़ नहीं रहा दीदी। हो सके तो हमें माफ़ कर दीजिए।"

कुसुम को एकदम से ऐसा लगा जैसे वो खुली आंखों से अचानक ही सपना देखने लगी है। उसने तेज़ी से अपने सिर को झटका। उसके लिए अपने भाइयों द्वारा कही गई ये सब बातें किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। उसकी आंखों के सामने क़रीब दो क़दम की दूरी पर उसके दोनों भाई खड़े थे जिनके सिर अपराध बोध के चलते झुके हुए थे। कुसुम को समझ न आया कि वो उन दोनों की बातों पर क्या प्रतिक्रिया दे अथवा क्या जवाब दे?

"माफ़ी मुझसे नहीं।" फिर उसने किसी तरह खुद को सम्हाला और सपाट लहजे में कहा____"बल्कि उस इंसान से मांगिए जिनके साथ आप दोनों ने मुझसे बुरा करवाया है।"

"वैभव भैया से हमने माफ़ी मांग ली है और उन्होंने हम दोनों को माफ़ भी कर दिया है।" विभोर ने इस बार संजीदा भाव से कहा____"वो बहुत अच्छे हैं, उनका दिल बहुत विशाल है।"

"आपको पता है दीदी।" अजीत ने कहा____"पिता जी तो हमें जान से ही मार देना चाहते थे लेकिन ताऊ जी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उसके बाद ताऊ जी ने भी हमें उस सबके लिए माफ़ कर दिया। हमने भी अब प्रण कर लिया है कि अब से हम दोनों ऐसा काम करेंगे जो हमारे साथ साथ हमारे समूचे खानदान के लिए बेहतर हो।"

"हमें सच में अपने किए पर बहुत पछतावा हो रहा है कुसुम।" कुसुम को कुछ न बोलता देख विभोर ने गंभीरता से कहा____"और अपने आपसे घृणा हो रही है। मन करता है किसी सूखे कुएं में कूद कर अपनी जान दे दें।"

"अगर वैभव भैया ने आप दोनों को माफ़ कर दिया है तो समझ लीजिए कि मैंने भी माफ़ कर दिया।" कुसुम ने पहले जैसे ही सपाट लहजे में कहा____"अब आप दोनों जाइए यहां से।"

"तेरा चेहरा और लहजा बता रहा है कि तूने दिल से हमें माफ़ नहीं किया है।" विभोर ने कुसुम की तरफ देखते हुए कहा____"बस एक बार माफ़ कर दे मेरी बहन। मैं समझ सकता हूं कि जो कुछ हमने तुझसे करवाया है वो सब भूलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए।"

"मैं उस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती।" कुसुम ने इस बार थोड़ा कठोरता से कहा____"ऊपर वाले से बस यही विनती करती हूं कि वो आप दोनों को सद्बुद्धि दे ताकि आज के बाद कभी आप दोनों के मन में ऐसा कुछ भी करने का ख़्याल न आए।"

कहते हुए कुसुम की आंखें अनायास ही छलक पड़ीं। विभोर और अजीत ने उसकी बातें सुन कर एक बार फिर से अपना सिर झुका लिया। कुछ पल दोनों खड़े रहे उसके बाद दोनों ने हाथ जोड़ कर फिर से कुसुम से माफ़ी मांगी और फिर चुप चाप चले गए। उनके जाते ही कुसुम ने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद वो भाग कर पलंग पर आई और पहले की ही भांति तकिए में अपना चेहरा छुपा कर सिसकने लगी।

"आपने इतना कुछ हो जाने के बाद भी मेरी बात का मान रखा।" वो फिर से बड़बड़ा उठी____"आप सच में मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हैं और मैं आपकी गंदी बहन हूं।"

कहने के साथ ही कुसुम की आंखें एक बार फिर से बरसने लगीं। कमरे में उसके सिसकने की धीमी आवाज़ें गूंजने लगीं थी। इस बार उसे अपने जज़्बातों को सम्हालना भारी मुश्किल लग रहा था।

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"तुम दोनों यहां क्या कर रहे हो?" मैंने बुलेट को उन दोनों के पास ही रोक कर कहा____"मैंने मना किया था न कि यूं खुले में कहीं मत घूमना?"

"माफ़ कीजिए छोटे ठाकुर।" उनमें से एक ने हाथ जोड़ते हुए कहा____"हम दोनों तो शाम के अंधेरे में ही आपके पास हवेली आते लेकिन जब हमने देखा कि आप इस तरफ ही आ रहे हैं तो हम दोनों भी आपके पीछे आ गए। दूसरी बात ये भी थी कि आपको एक ज़रूरी बात बतानी थी। हमने सोचा कि अंधेरा होने की प्रतीक्षा क्यों करें? जिस तरह के हालात बने हुए हैं उससे तो एक एक बात का पता जल्दी से लगना ज़रूरी है न छोटे ठाकुर।"

"अरे! तुम दोनों की जान से बढ़ कर कोई भी चीज़ ज़रूरी नहीं है।" मैंने उस आदमी से कहा____"मैं ये हर्गिज़ नहीं चाह सकता कि मेरी वजह से तुम दोनों पर ज़रा भी कोई आंच आए। ख़ैर, बताओ क्या ख़बर लाए हो?"

मेरे पूछने पर दोनों ने सबसे पहले इधर उधर निगाह घुमाई और फिर ख़बर के बारे में बताना शुरू कर दिया। सारी बातें सुनने के बाद मैं सोच में पड़ गया। अंदेशा तो मुझे था लेकिन ऐसा भी कुछ होगा इसकी ज़रा भी कल्पना नहीं की थी मैंने। ख़ैर, मैंने पैंट की जेब से कुछ पैसे निकाले और उन दोनों को पकड़ाया और ये भी कहा कि अपना ख़्याल सबसे पहले रखें।

एक बार फिर से मेरी बुलेट कच्ची पगडंडी पर दौड़ने लगी। ज़हन में बार बार उन दोनों आदमियों की बातें ही गूंज रहीं थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। ख़ैर, जल्दी ही मैं अपने गांव की आबादी में दाखिल हो गया। सबसे पहले मुंशी चंद्रकांत का ही मकान पड़ता था। मैं जैसे ही मुंशी के घर के सामने आया तो देखा मुंशी की बीवी प्रभा अपने घर के दरवाज़े के बाहर खड़ी गांव की किसी औरत से बातें कर रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दूसरी औरत से नज़र बचा कर हल्के से मुस्कुराई। मेरा फिलहाल उसके घर जाने का कोई इरादा नहीं था इस लिए उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से ही देते हुए मैं आगे निकल गया।

साहूकारों के सामने से होते हुए मैं कुछ ही देर में हवेली पहुंच गया। बुलेट को एक तरफ खड़ी कर के मैं हवेली के अंदर दाखिल हो गया। बैठक में पिता जी के साथ कुछ लोग बैठे हुए थे जिन्हें मैं पहचानता नहीं था। ज़ाहिर है वो लोग मेरे गांव के नहीं थे। मैंने कुछ पल रुक कर पिता जी की तरफ देखा तो उन्होंने मुझे अंदर जाने का इशारा किया। मैं फ़ौरन ही अंदर चला आया। अंदर आया तो मां से मुलाक़ात हो गई।

"अच्छा हुआ कि तू आ गया।" मां ने कहा____"मैं तेरी ही राह देख रही थी।"
"क्या हुआ मां?" मैं ने फिक्रमंदी से पूछा____"कोई बात हो गई है क्या?"

"नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" मां ने सामान्य भाव से कहा____"असल में तेरी भाभी के मायके से एक संदेशा आया है। तेरी भाभी के भाई को वर्षों बाद संतान के रूप में एक बेटा हुआ है इस लिए उन्होंने संदेशा भेजा है कि हम उनकी बहन को कुछ दिन के लिए वहां भेज दें।"

"ये तो बड़ी खुशी की बात है मां।" मैं कुछ सोच कर मन ही मन खुश हो गया था किंतु प्रत्यक्ष में सामान्य सी खुशी ज़ाहिर करते हुए बोला____"साले साहब को पहली संतान के रूप में बेटा हुआ है तो ज़ाहिर है धूम धड़ाका तो करेंगे ही लेकिन भाभी को लेने वो खुद भी तो आ सकते थे?"

"अब अकेला आदमी क्या क्या करे?" मां ने कहा____"तुझे पता ही है कि तेरी भाभी का एक भाई उसके ब्याह के पहले ही कहीं चला गया था जो कि आज तक लौट कर नहीं आया। समधी जी तो घुटने के बात के चलते ज़्यादा चल फिर नहीं पाते। घर का सारा कार्यभार बेचारे वीरेंद्र के ही कंधों पर है। इसी लिए संदेशा भेजवाया है और तेरे पिता जी से विनती भी की है कि हम ही उनकी बहन रागिनी को वहां पहुंचा दें।"

"तो पिता जी ने क्या कहा?" मैंने धड़कते दिल के साथ पूछा।
"मुझसे कह रहे थे कि तू भेज आएगा अपनी भाभी को।" मां ने कहा____"और साथ में कुछ आदमियों को भी ले जाना। उनका कहना है कि ऐसे वक्त में काम का बोझ ज़्यादा हो जाता है तो मदद के लिए कुछ लोगों का वहां होना बेहद ज़रूरी है।"

"वो सब तो ठीक है मां।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"लेकिन भाभी को ले कर बड़े भैया भी तो जा सकते हैं, मैं ही क्यों?"
"वो तेरी तरह ढीठ और बेशर्म नहीं है।" मां ने आंखें दिखाते हुए कहा____"आज तक क्या कभी वो उसे अपने साथ ले कर गया है जो अब जाएगा? उसे अपनी बीवी को अपने साथ लाने ले जाने में शर्म आती है और ऐसा होना भी चाहिए। इस लिए तू ही अपनी भाभी को ले कर जाएगा।"

रागिनी भाभी के साथ उनके मायके जाने की बात से में एकदम खुश हो गया था। एक पल में जाने कितने ही खूबसूरत चेहरे आंखों के सामने उजागर हो गए थे लेकिन अगले ही पल मैं ये सोच कर मायूस हो गया कि आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें मेरा वहां जाना बिलकुल भी ठीक नहीं है।

"ठीक है मां।" मैंने बुझे मन से कहा___"मैं कल सुबह भाभी को उनके मायके भेज कर वापस आ जाऊंगा।"
"कल नहीं, आज और अभी जाना है तुझे।" मां ने ये कह कर मानों मेरे सिर पर बम्ब फोड़ा_____"और उसे वहां भेज कर वापस नहीं आ जाना है बल्कि वहां रह कर वीरेंद्र के कामों में उनका हाथ भी बंटाना है। जिस दिन बच्चे का नाम करण होगा उस दिन तेरे पिता जी भी यहां से जाएंगे।"

मां की बातें सुन कर मानो मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई थी। कोई और वक्त होता तो यकीनन मैं उनकी इन बातों से बेहद खुश हो गया होता लेकिन आज के वक्त में जो हालात थे उनकी वजह से मेरा इस तरह यहां से चले जाना बिलकुल भी उचित नहीं था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि पिता जी भला ऐसा हुकुम कैसे दे सकते थे? क्या उन्हें हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं था?

"क्या हुआ, कहां खो गया?" मां ने मुझे हकीक़त की दुनिया में लाते हुए कहा____"जा, जा के जल्दी से तैयार हो जा। तब तक मैं देखती हूं कि रागिनी तैयार हुई कि नहीं।"

मैं भारी क़दमों से चलते हुए ऊपर अपने कमरे की तरफ चल पड़ा। साला ये क्या चुटियापा हो गया था? मुझे ये सोच कर गुस्सा आ रहा था कि पिता जी मुझे भाभी के मायके में रहने का कैसे कह सकते थे? सहसा मुझे याद आया कि आज जिन दो आदमियों से मैं मिला था उन्होंने मुझे कैसी ख़बर दी थी और अब मैं उस ख़बर के चलते क्या क़दम उठाने वाला था लेकिन अब मेरे यहां से यूं अचानक चले जाने पर सब गड़बड़ हो जाएगा।

मैं अपने कमरे के पास पहुंचा तो देखा दरवाज़ा खुला हुआ था। ज़ाहिर है कोई मेरे कमरे में मौजूद था। ख़ैर, में कमरे में दाखिल हुआ तो देखा बड़े भैया बैठे हुए थे। मुझे देखते ही वो हल्के से मुस्कुराए और मुझे पलंग पर अपने पास ही बैठने का इशारा किया।

"तेरे चेहरे के भाव बता रहे हैं कि तू अंदर से काफी परेशान है।" बड़े भैया ने कहा____"शायद तुझे मां के द्वारा पता चल चुका है कि तुझे अपनी भाभी को ले कर उसके मायके जाना है।"

"भाभी को उनके मायके ले कर जाने की बात से मैं परेशान नहीं हूं भैया।" मैंने धीर गंभीर भाव से कहा____"बल्कि इस बात से परेशान हो गया हूं कि मुझे वहां पर एक दिन नहीं बल्कि कई दिनों तक रुकना होगा। आप अच्छी तरह जानते हैं कि हालात ऐसे हर्गिज़ नहीं हैं कि मैं इतने दिनों तक कहीं रुक सकूं। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि पिता जी ने मां से ऐसा क्यों कहा? क्या उन्हें वक्त और हालात की गंभीरता का ज़रा सा भी एहसास नहीं है?"

"हमें अच्छी तरह वक्त और हालात की गंभीरता का एहसास है बर्खुरदार।" दरवाज़े से अचानक आई पिता जी की भारी आवाज़ को सुन कर हम दोनों भाई चौंके और पिता जी को देख कर खड़े हो गए, जबकि पिता जी हमारे क़रीब आते हुए बोले____"हमें अच्छी तरह पता है कि ऐसे वक्त में हमें क्या करना चाहिए।"

मैं और बड़े भैया उनकी बातें सुन कर कुछ न बोले। उधर वो पलंग पर आ कर बैठ गए और हमें भी बैठने का इशारा किया। हम दोनों के बैठ जाने के बाद वो बोले____"सबसे पहली बात तो ये कि हालात चाहे जैसे भी हों लेकिन हमें सभी से अपने रिश्ते सही तरीके से निभाना चाहिए। तुम्हारा चंदनपुर जाना ज़रूरी है क्योंकि वहां जो कार्यक्रम होने वाला है उसकी व्यवस्था करना अकेले वीरेंद्र के बस का नहीं है। दस साल बाद वीरेंद्र को ऊपर वाले की दया से संतान के रूप में पहले पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। ज़ाहिर है ये उसके लिए बहुत बड़ी खुशी की बात है और वो अपनी इस खुशी को बड़े उल्लास के साथ मनाना चाहता है और ये हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम उसकी खुशी को किसी भी तरह से फीका न पड़ने दें। यकीन मानो अगर यहां हालात ऐसे न होते तो हम सब आज ही वहां जाते। ख़ैर, तुम्हें यहां की चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। यहां के जो हालात हैं उन पर हमारी पैनी नज़र है और बड़े से बड़े ख़तरे का सामना करने के लिए हम हर तरह से तैयार हैं।"

"ठीक है पिता जी।" मैं भला अब क्या कहता____"आप कहते हैं तो ऐसा ही करूंगा मैं। ख़ैर, आज मुझे मेरे दो ख़ास आदमियों के द्वारा कुछ खास बातें पता चली हैं।"
"कैसी बातें?" पिता जी के साथ साथ बड़े भैया के भी माथे पर बल पड़ गया था।

"जगन पर किया गया हमारा शक एकदम सही साबित हुआ।" मैंने ख़ास भाव से कहा____"वो एक नंबर का कमीना इंसान निकला।"
"साफ़ साफ़ बताओ।" पिता जी के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभर आए थे____"क्या पता चला है तुम्हें उसके बारे में?"

"मुझे पक्का यकीन तो नहीं था।" मैंने कहा____"लेकिन तांत्रिक की हत्या हो जाने के बाद से संदेह होने लगा था उस पर। उस रात जब हमने आपस में इस सबके बारे में विचार विमर्श किया था तो दूसरे दिन ही मैंने उसकी निगरानी में अपने दो ख़ास आदमियों को लगा दिया था। आज उन्हीं दो आदमियों ने मुझे उससे संबंधित ख़बर दी है। उन दोनों आदमियों के अनुसार पिछली रात जगन साहूकारों के बगीचे में एक ऐसे रहस्यमय आदमी से मिला जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था और चेहरा भी सफ़ेद नक़ाब से ढंका हुआ था।"

"ये क्या कह रहे हो तुम?" बड़े भैया बीच में ही मेरी बात काट कर बोल पड़े____"क्या तुम्हारे उन ख़ास ख़बरियों ने उस सफ़ेदपोश आदमी का पीछा नहीं किया?"
"किया था।" मैंने कहा____"लेकिन उससे पहले ये सुनिए कि बगीचे में सफ़ेदपोश और उस जगन के अलावा और कौन था?"


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चलो कुसुम के दिल से एक बोझ तो हटा और अब उसकी आत्मग्लानि और बढ़ गई की वैभव इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उससे कुछ नही पूछा और विभोर और अजीत को माफ भी कर दिया। मगर शायद अब पूर्ण कुसुम भी वापस आ जाए। कहीं कुसुम की सहेलियों से वो काम करवाना और नौकरानी का उनको पकड़ना भी तो इसी साजिश का ही तो हिस्सा नहीं था?
अब उन दोनो लोगो ने ऐसा क्या बताया कि वैभव परेशान हो गया है। जगन और नकाबपोश के अलावा वहां कही साहुकार या मुंशी तो नही था? बहुत ही सुंदर अपडेट।
 
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