Rocky2602
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Jabardast update☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 14
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अब तक,,,,,
"तो तुम इस वक़्त इस घर में अकेली हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से पूछा____"क्या तुम काकी के साथ गेहू कटवाने नहीं गई?"
"गई थी।" अनुराधा ने कहा____"लेकिन सिर दर्द करने लगा था तो माँ ने मुझे घर जाने को कह दिया। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई हूं।"
अनुराधा इस वक़्त घर में अकेली थी और ये जान कर पता नहीं क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी। मुमकिन था कि मेरे जैसा ही हाल अनुराधा का भी होगा। आज से पहले कभी वो मेरे सामने अपने घर में अकेली नहीं थी। वो बरामदे के पास ही चुप चाप खड़ी थी और अपने दुपट्टे के छोर को पकड़ कर उसे कभी इधर उमेठती तो कभी उधर। मैं उसके मासूमियत से भरे चेहरे को ही निहारे जा रहा था और मेरा ज़हन न जाने क्या क्या सोचने में लगा हुआ था। अभी मैं सोचमे गुम ही था कि अचानक उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और जो कुछ उसने कहा उसने मेरे चेहरे का रंग ही उड़ा दिया।
अब आगे,,,,,
"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" मेरे चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख अनुराधा ने इस बार मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा____"बताइए ना, उस रात आप और माँ एक साथ ही थे ना?"
अनुराधा ने यही बात पूछी थी मुझसे जिससे मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। हलांकि मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था मगर तब तक शायद देर हो चुकी थी और अनुराधा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर समझ गई थी।
"सुना तो मैंने भी था आपके बारे में।" मुझे चुप देख अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मगर जब आप पिता जी के साथ इतने महीने से इस घर में आते जाते रहे और मैंने भी कभी आपको कुछ ग़लत करते नहीं देखा तो मुझे लगा कि मैंने बेकार में ही आपके बारे में तरह तरह की बातें सुनी थी। मैं आपको बहुत अच्छा इंसान समझने लगी थी छोटे ठाकुर मगर उस रात आपने जो किया उससे ये साबित हो गया कि मैंने जो कुछ आपके बारे में सुना था वो सब सच ही तो था। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि जिस इंसान को मैं अच्छा समझती हूं वो असल में एक ऐसा इंसान है जो ना तो कोई रिश्ता देखता है और ना ही उमर। वो ये भी नहीं सोचता कि जिस इंसान ने बुरे वक़्त में उसकी इतनी मदद की थी उसी के घर की औरत को उसने अपनी हवश का शिकार बना लिया है। अगर उस रात मैं अपनी आँखों से वो सब नहीं देखती तो शायद मैं कभी भी कही सुनी बातों पर यकीन नहीं करती मगर सच तो आँखों के सामने ही जैसे निर्वस्त्र हो के खड़ा था।"
अनुराधा की बातों ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था और मुझ में कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं रह गई थी किन्तु ज़हन में ये सवाल ज़रूर चकरा रहा था कि अगर अनुराधा ने उस रात सब कुछ देख ही लिया था तो दूसरे दिन सुबह जब उसने इस बारे में मुझसे बात की थी तो उसने खुल कर सब कुछ मुझे क्यों नहीं बता दिया था? बल्कि उसने तो अपनी बातों से यही ज़ाहिर किया था कि उसने कुछ नहीं देखा है। तभी मेरे मन में ख़याल आया कि अनुराधा ने शायद इस लिए ये सब मुझसे पहले नहीं कहा होगा क्योंकि उसे मुझसे बात करने का सही मौका ही नहीं मिला होगा।
"दूसरे दिन सुबह जब मैंने आपसे इस बारे में पूछा तो आपने मुझसे झूठ कहा कि आपने माँ को नहीं देखा था।" मुझे सोचो में गुम देख अनुराधा ने फिर कहा____"मैं चाहती तो उसी वक़्त आपको सब बता देती कि मैंने आप दोनों की करतूतें अपनी आँखों से देख ली हैं मगर मैं उस वक़्त आपसे ऐसा नहीं कह पाई थी क्योंकि मुझे इस बारे में आपसे बात करने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी।"
"मुझे माफ़ कर दो अनुराधा।" मैं भला अब इसके सिवा क्या कहता____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है।"
"माफी मांग लेने से क्या आपका गुनाह मिट जाएगा छोटे ठाकुर?" अनुराधा ने शख़्त भाव से कहा____"और फिर वो गुनाह सिर्फ आपने ही बस तो नहीं किया था बल्कि मेरी माँ ने भी तो किया था। मैंने देखा था कि कैसे वो अपनी इच्छा से वो सब ख़ुशी ख़ुशी कर रही थी। मुझे तो सोच कर ही घिन आती है कि मेरी अपनी माँ ने ऐसा घिनौना काम अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ किया।"
बोलते बोलते अनुराधा का चेहरा सुर्ख पड़ गया था। मैं पहली बार उस मासूम का ये रूप देख रहा था। हमेशा शांत रहने वाली लड़की आज मुझसे बड़ी ही शख़्ती से बात कर रही थी और इधर मैं किसी से भी न डरने वाला उसकी ऐसी बातें सुन कर अपराधी की भाँति अपनी गर्दन को झुकाए खड़ा रह गया था।
"जगन काका ने ठीक ही कहा था कि आपने ही उनके भाई की हत्या की है।" अनुराधा ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा____"और मुझे भी यही लगता है कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है।"
"नहीं अनुराधा ये झूठ है।" मैंने जैसे हताश भाव से कहा मगर उसने जैसे फटकारते हुए कहा____"अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए छोटे ठाकुर। मेरे दिल में आपके प्रति जो इज्ज़त बनी थी वो उसी दिन मिट गई थी जिस दिन मैंने अपनी आँखों से आपको मेरी माँ के साथ वो घिनौना काम करते देखा था।"
"मैं मानता हूं कि मैंने काकी के साथ वो सब घिनौना काम कर के बहुत बड़ा गुनाह किया है।" मैंने शर्मिंदगी से कहा____"इसके लिए तुम जो चाहो सज़ा दे दो मुझे मगर मेरा यकीन मानो मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। भला मैं अपने फरिश्ता जैसे काका की हत्या क्यों करुंगा?"
"मुझे मूर्ख मत समझिए छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं जो कुछ समझती ही नहीं हूं। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है क्योंकि आपके और माँ के नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में मेरे बाबू को भी पता चल गया रहा होगा और जब उन्होंने आपसे इस बारे में कुछ कहा होगा तो आपने उन्हें जान से मार देने का सोच लिया। इसके लिए आपने उस रात मेरे बाबू को जम कर शराब पिलाई और उन्हें घर ले आए। मैंने देखा था उस रात मेरे बाबू को शराब के नशे में किसी बात का भी होश नहीं था। रात में आपने खाना खाया और चले गए। उसके बाद आपने हमारे सो जाने का इंतज़ार किया और जब आपने सोचा कि हम सब खा पी कर सो गए होंगे तो आप चुपके से यहाँ आए और बाबू को बहला फुसला कर घर के पीछे ले गए और फिर वहां आपने मेरे बाबू की हत्या कर दी।"
अनुराधा की ये बातें सुन कर मैं उसे हैरानी से इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही अनुराधा के सिर पर आगरे का ताजमहल आ कर नाचने लगा हो। अनुराधा ने बड़ी ही कुशलता से मुझे अपने पिता का हत्यारा साबित कर दिया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि भोली भाली सी दिखने वाली इस लड़की का ज़हन इतना कुछ भी सोच सकता है।
"अब चुप क्यों हो गए छोटे ठाकुर?" मुझे ख़ामोश देख अनुराधा ने कठोर भाव से कहा____"क्या ये सोचने लगे हैं कि मैंने आपको बेनक़ाब कर दिया है? मैं चाहती तो उसी दिन ये सब बातें चीख चीख कर सबके सामने कह देती मगर ये सोच कर चुप रही कि मेरे कहने से आपका भला क्या बिगड़ जाएगा? आप तो बड़े लोग हैं। भला हम ग़रीब लोग दादा ठाकुर के बेटे का क्या बिगाड़ लेंगे? इस लिए चुप ही रही और आज सोचती हूं कि सच ही तो सोचा था मैंने। क्योंकि मेरे बाबू की लाश सुबह से दोपहर तक पड़ी रह गई थी मगर जगन काका के रपट लिखाने के बाद भी दरोगा नहीं आया था। आता भी कैसे? दादा ठाकुर ने उसे पैसा खिला कर उसको मेरे बाबू की हत्या की जांच करने से ही मना कर दिया होगा।"
"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है अनुराधा।" मैंने बेबस भाव से कहा____"तुम बेवजह ही जाने क्या क्या सोच रही हो। मैं ये मानता हूं कि मैंने और काकी ने एक साथ नाजायज़ सम्बन्ध बना कर गुनाह किया है और उसके लिए मैं तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं। लेकिन मैं अपने माता पिता की, यहाँ तक कि खुद अपनी क़सम खा कर कहता हूं कि मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। उन्हें मेरे और काकी के सम्बन्धों के बारे में कुछ भी नहीं पता था और जब उन्हें कुछ पता ही नहीं था तो वो मुझसे इस बारे में कैसे कुछ कहते और जब वो कुछ कहते ही नहीं तो मैं उनकी हत्या भला कैसे कर देता? एक पल के अगर ये मान भी लिया जाए कि काका को इन सम्बन्धों का पता था तब भी मैं उनकी हत्या करने जैसा गुनाह नहीं करता। मैं उनके पैरों में गिर कर उनसे अपने गुनाहों के लिए माफ़ी मांगता और उनसे कहता कि वो जो चाहें मुझे सज़ा दे दें। तुम यकीन नहीं करोगी अनुराधा मगर ये सच है कि आज के वक़्त में अगर किसी के लिए मेरे दिल में इज्ज़त और सम्मान की भावना है तो वो हैं मुरारी काका।"
"मुझे आप पर और आपकी बातों पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं हो सकता छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"और हां एक बात और...मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है कि अब से आप यहाँ मत आइएगा। मैं अपने बाबू के हत्यारे को और मेरी माँ के साथ घिनौना काम करने वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहती। अब आप जा सकते हैं।"
"मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं अनुराधा?" मैंने हताश भाव से ये कहा ही था कि अनुराधा ने गुस्से में कहा____"मैंने कहा ना कि अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए?"
"मैंने जो किया है उसको मैं तहे दिल से कबूल कर रहा हूं।" मैंने कहा____"और उसके लिए तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"
"मैं कौन होती हूं आपको सज़ा देने वाली?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"आप बड़े लोग हैं। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"ये सच है कि दूसरा कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" मैंने दो क़दम अनुराधा की तरफ बढ़ कर कहा____"मगर मुरारी काका के घर का हर सदस्य मेरा सब कुछ बिगाड़ सकता है। तुम्हें पूरा हक़ है अनुराधा कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मुझे सज़ा दे दो। मैं तुम्हारी हर सज़ा को ख़ुशी ख़ुशी कबूल कर लूंगा मगर मेरा यकीन करो मैंने मुरारी काका जैसे देवता की हत्या नहीं की है। वो मेरे लिए देवता जैसे ही थे और तुम्हारी तरह मुझे भी उनकी इस तरह हत्या हो जाने से दुःख है।"
पता नहीं मेरी बातों का असर था या कुछ और मगर इस बार अनुराधा कुछ बोली नहीं थी बल्कि मेरी तरफ अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे का गुस्सा गायब होता प्रतीत हो रहा था और फिर से उसके चेहरे पर उसकी मासूमियत नज़र आने लगी थी। उसके चेहरे के बदलते भाव देख कर अभी मैंने राहत की सांस ली ही थी कि तभी अचानक फिर से उसके चेहरे के भाव पहले जैसे होते दिखे।
"आप मुझे बहला नहीं सकते छोटे ठाकुर।" फिर उसने कर्कश भाव से कहा____"मैं गांव की बांकी लड़कियों जैसी नहीं हूं जो आपकी बातों के जाल में फंस जाऊंगी और आपके लिए अपना सब कुछ लुटा दूंगी। ख़बरदार मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मत। अब चले जाइए यहाँ से, मैं दादा ठाकुर के बेटे की सूरत भी नहीं देखना चाहती।"
"तुम्हें मेरा जितना अपमान करना हो कर लो अनुराधा।" मैं सच में उसकी बातों से खुद को बुरा महसूस करने लगा था, इस लिए थोड़ा दुखी भाव से बोला____"अगर तुम्हें मेरा इस तरह से अपमान करने में ही ख़ुशी मिलती है तो यही सही किन्तु एक बात मेरी भी सुन लो। मैं चार महीने पहले तक यकीनन बहुत बुरा था और गांव की हर लड़की या औरत को अपने नीचे लेटाने की ही सोचता था मगर अपने पिता द्वारा गांव से निष्कासित किये जाने पर जब से यहाँ आया हूं तब से मैं वैसा नहीं रहा। मुरारी काका से मुलाक़ात हुई और उनके साथ जब इस घर में आया तो तुम्हे देखा। शुरुआत में तुम्हें देख कर मेरे मन में यही आया था कि तुम्हें भी बांकी लड़कियों की तरह एक दिन अपने जाल में फसाऊंगा मगर मैं ऐसा नहीं कर सका। जानती हो क्यों? क्योंकि जब भी तुम्हें देख कर तुम्हें अपने जाल में फसाने की सोचता था तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती थी और कहती थी कि और कितनी मासूम कलियों को मसल कर उन्हें बर्बाद करोगे ठाकुर वैभव सिंह? अपनी आत्मा की इस आवाज़ पर हर बार मेरे इरादे ख़ाक में मिल जाते थे। उसके बाद तो फिर मैंने इस बारे में सोचना ही बंद कर दिया। तुम खुद ही मुझे बताओ कि क्या मैंने कभी तुम पर ग़लत नज़र डाली है? मैंने तो हमेशा ही अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना किया था मगर तुमसे रूबरू होने के बाद मैं खुद नहीं जानता कि क्यों मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना नहीं किया?"
इतना सब कहने के बाद मैं चुप हो गया और अनुराधा की तरफ देखने लगा। अनुराधा के चेहरे के भाव फिर से मुझे बदलते दिख रहे थे। ये सच था कि मैंने ये सब कह कर कोई डींगे नहीं मारी थी बल्कि अपने अंदर का सच ही कहा था और अब मैं एक सुकून सा महसूस कर रहा था। हलांकि इस बात से मैं अभी भी चिंतित था कि अनुराधा मुझे अपने बाप का हत्यारा समझती है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"इन सब बातों के बाद भी अगर तुम मुझे ग़लत ही समझती हो तो कोई बात नहीं।" अनुराधा जब कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तुम नहीं चाहती तो आज के बाद कभी तुम्हें अपनी सूरत नहीं दिखाऊंगा मगर मैं भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक मुरारी काका के असल हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। जिस दिन मैंने असल हत्यारे को पकड़ लिया उसी दिन उस हत्यारे को ले कर तुम्हारे सामने आऊंगा और ये ठाकुर वैभव सिंह का वादा है तुमसे। चलता हूं अब।"
"रूक जाइए।" कहने के बाद मैं पलटा ही था कि पीछे से अनुराधा की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, जिसे सुन कर मैं ठिठक गया। मुझे रुक गया देख उसने इस बार थोड़े नरम लहजे में कहा____"समय बहुत ख़राब चल रहा है छोटे ठाकुर इस लिए अपना ख़याल रखिएगा।"
अनुराधा की ये बात सुन कर मैं मन ही मन बुरी तरह चौंका और पलट कर हैरानी से उसकी तरफ देखा। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि अनुराधा ऐसा कहेगी। दूसरी चौंकाने वाली बात ये थी कि उसने समय के ख़राब होने की बात क्यों कही थी मुझसे और मुझे अपना ख़याल रखने के लिए क्यों कहा था उसने?
"ये क्या कह रही हो तुम?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"समय ख़राब चल रहा है का क्या मतलब है और ये क्यों कहा कि मैं अपना ख़याल रखूं?"
"मैं जानती हूं कि आपने मेरे बाबू की हत्या नहीं की है।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तो बस ऐसे ही कहा था मगर इसका मतलब ये नहीं है कि मैंने आपको माफ़ कर दिया है। आपने जो घिनौना काम किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं कर सकती। अब रही बात इसकी कि मैंने समय ख़राब चलने की बात और आपको अपना ख़याल रखने की बात क्यों कही तो इसका जवाब ये है कि जो लोग मुसीबत मोल ले कर अकेले ही रास्तों पर चलते हैं उनके लिए ये ज़रूरी ही होता है कि वो अपना ख़याल रखें।"
"मैं कुछ समझा नहीं।" मैंने उलझ गए भाव से कहा____"आख़िर तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"
"इतने नासमझ तो नहीं लगते छोटे ठाकुर जो मेरी इतनी सी बात का मतलब भी ना समझ पाएं।" अनुराधा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"अब जाइए यहाँ से। जगन काका दिन में कई बार यहाँ आ कर हमारा हाल चाल देखते हैं। अगर उन्होंने आपको यहाँ देख लिया तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन वो मेरे बारे में ग़लत ज़रूर सोच बैठेंगे और मैं नहीं चाहती कि पिता सामान मेरे काका मुझे शक की नज़रों से देखने लगें।"
अनुराधा की बातें सुन कर मैं कुछ देर उसके मासूम से चेहरे की तरफ देखता रहा। वो खुद भी मुझे ही देख रही थी। ये अलग बात है कि जल्दी ही उसने अपनी नज़रों को मुझ पर से हटा लिया था। उसके बाद मैं पलटा और घर से बाहर निकल गया। अपने मन में कई तरह के सवाल लिए मैंने बुलेट को स्टार्ट किया और मुरारी काका के गांव की तरफ चल दिया। इस बार मैं मुख्य सड़क से अपने गांव की तरफ जाना चाहता था।
मुरारी काका के गांव से होते हुए मैं मुख्य सड़क पर आ गया था और मेरी बुलेट कच्ची सड़क पर पीछे की तरफ धूल उड़ाते हुए जैसे उड़ी चली जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ खेत थे जिनमे गेहू की पकी हुई फसल खड़ी थी और कुछ दूरी पर कुछ किसान लोग फसल की कटाई में भी लगे हुए थे। मैं अनुराधा की बातें सोचते हुए बुलेट चला रहा था कि तभी सामने कुछ दूर सड़क पर मुझे एक जीप खड़ी हुई दिखी और उस जीप के पास कई सारे लोग भी खड़े हुए दिखे। दूर से ही मैंने उस जीप को पहचान लिया। जीप हमारी ही थी किन्तु मैं ये सोचने लगा कि दोनों गांवों के बीच इस जगह पर हमारी जीप क्यों खड़ी थी? थोड़ा और पास गया तो जीप के ही पास खड़े लोगों के चेहरे साफ़ दिखे तो मैं उन चेहरों को भी पहचान गया।
जीप के पास बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ खड़े थे और उन तीनों के सामने चार दूसरे लड़के खड़े थे। मैं उन चारों लड़कों को पहचान गया। वो चारों साहूकारों के लड़के थे। मैं समझ गया कि मेरे भाइयों के बीच साहूकारों के लड़कों की कोई बात चीत हो रही है। तभी उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी। मैं अब उनके काफी पास आ गया था। मेरी बुलेट जैसे ही उनके पास आ कर रुकी तो उन चारों लड़कों के चेहरे के भाव बदल गए और इधर बड़े भैया और विभोर अजीत के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभर आए।
"क्या हो रहा है यहाँ?" मैंने बुलेट में बैठे बैठे ही शख़्त भाव से उन चारों की तरफ देखते हुए कहा तो वो चारों तो कुछ न बोले किन्तु बड़े भैया बोल पड़े____"तुम्हारी ज़रूरत नहीं है यहां। हम सम्हाल लेंगे इन्हें।"
"क्या इन लोगों ने आपका रास्ता रोका है?" मैंने इस बार थोड़ा और शख़्त भाव से कहा तो बड़े भैया ने इस बार गुस्से में कहा____"मैंने कहा न कि तुम्हारी ज़रूरत नहीं है, हम सम्हाल लेंगे। तुम जाओ यहाँ से।"
"लगता है गांव से निकाले जाने के बाद चार महीना जंगल में रह कर भी छोटे ठाकुर की गर्मी नहीं उत्तरी है।" साहूकारों के उन चारों लड़कों में से एक ने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"किसी ने सच ही कहा है कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।"
उसकी ये बात सुन कर बाकी के तीनों हंसने लगे तो मेरी झांठें सुलग गईं। मेरा चेहरा पलक झपकते ही गुस्से में तमतमा गया। मैं एक झटके से मोटर साइकिल से नीचे उतरा और बिजली की सी तेज़ी से आगे बढ़ कर मैंने एक मुक्का उस बोलने वाले लड़के के चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो दूसरे वाले से टकराया तो दूसरा भी भरभरा कर तीसरे वाले से जा टकराया। इधर मेरे ऐसा करने पर बड़े भैया गुस्से में मुझे रुक जाने को बोले तो मैंने क़हर भरी नज़रों से उनकी तरफ देखा। मुझे गुस्से से अपनी तरफ देखता देख वो एकदम से चुप हो गए और उनके बगल से खड़े विभोर और अजीत सहम गए।
बड़े भैया को गुस्से से देखने के बाद अभी मैं वापस पलटा ही था कि उनमे से एक ने मुझे ज़ोर का धक्का मारा जिससे मैं पीछे फिसलते हुए बुलेट से जा टकराया। उनके द्वारा धक्का दिए जाने से मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। इससे पहले कि उनमे से कोई मुझ पर हमला करता मैंने एक को अपने पास देखा तो ज़ोर से एक लात उसके पेट में लगा दी जिससे वो दर्द से चीखते हुए पीछे की तरफ फिसलता चला गया। मुझे सम्हलने का मौका मिल चुका था इस लिए जैसे ही दूसरे ने मुझे मारने के लिए अपना एक हाथ चलाया तो मैंने गर्दन को दाएं तरफ कर के उसका वो हाथ पकड़ लिया और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से उसकी तरफ अपनी पीठ की और उसके उस हाथ को अपने दाएं कंधे पर रख कर नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। वातावरण में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही दर्दनाक चीख भी गूँज उठी। मैंने उसका हाथ तोड़ दिया था। वो अपना हाथ दूसरे हाथ से पकड़े बुरी तरह दर्द से तड़पने लगा था। उसका ये हाल देख कर बाकी तीनों सकते में आ गए।
"वैभव ये तुमने क्या कर दिया?" पीछे से बड़े भैया की गुस्से में डूबी ये आवाज़ गूँजी तो मैंने पलट उनकी तरफ देखा और कहा____"अब आप जा सकते हैं यहाँ से। अगर आपको मेरी ज़रूरत नहीं थी तो मुझे भी किसी की ज़रूरत नहीं है। इन हिजड़ों के लिए वैभव सिंह अकेला ही काफी है।"
"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि तुमने क्या किया है?" बड़े भैया ने गुस्से में कहा____"तुमने गुस्से में मानिक का हाथ तोड़ दिया है और इसके लिए इसका बाप पंचायत बुला कर तुम्हें सज़ा भी दिलवा सकता है।"
बड़े भैया की बात का अभी मैं जवाब देने ही वाला था कि तभी मेरी नज़र दाएं तरफ पड़ी। उनमे से एक लकड़ी का मोटा सा डंडा लिए मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा था। लकड़ी का वो डंडा जाने कहां से उसके हाथ में आ गया था। शायद सड़क के किनारे खेत पर ही कहीं पड़ा हुआ दिखा होगा उसे। ख़ैर जैसे ही उसने उस लकड़ी के डंडे को घुमा कर मेरी तरफ उसका प्रहार किया तो मैं जल्दी से झुक गया जिससे उसका वॉर मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। प्रहार इतना तेज़ था कि वो खुद भी उसके ज़ोर पर तिरछा हो गया था और इससे पहले कि वो सीधा होता मैंने उछल कर एक लात उसकी पीठ पर मारी जिससे वो भरभरा कर ज़मीन पर जा गिरा। लकड़ी का डंडा उसके हाथ से छूट गया था जिसे मैंने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर उठा लिया। अब मेरे हाथ में लकड़ी का वो मोटा सा डंडा था और आँखों में भयंकर गुस्से की आग।
"रूक जाओ अब, बहुत हो गया।" मुझे डंडा ले कर उनमे से एक की तरफ बढ़ते देख पीछे से बड़े भैया ज़ोर से चिल्लाए____"अब अगर तुमने किसी को मारा तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।"
"इतनी भी कायरता मत दिखाइए बड़े भइया।" मैंने पलट कर शख़्त भाव से कहा____"कि आपके ठाकुर होने पर ही सवाल खड़ा हो जाए।"
"अपनी जुबान को लगाम दो वैभव।" बड़े भैया ने गुस्से से हुंकारते हुए कहा____"ठाकुर का मतलब ये नहीं होता कि बेवजह किसी का हाथ ही तोड़ दिया जाए।"
"तो आपकी नज़र में मैंने बेवजह ही इस हरामज़ादे मानिक का हाथ तोड़ा है?" मैंने गुस्से से हांफते हुए कहा____"वाह भैया वाह! आपको ये नहीं सुनाई दिया कि इसने आपके छोटे भाई को क्या कहा था, उल्टा आप इन लोगों की ही पैरवी करने लगे?"
"उसने जो कहा उसके लिए तुम्हें उसका हाथ तोड़ने की क्या ज़रूरत थी?" बड़े भैया ने शख़्त भाव से कहा____"दूसरे तरीके से भी तो उसे जवाब दे सकते थे तुम?"
"ठाकुर वैभव सिंह को सिर्फ एक ही तरीका आता है बड़े भइया।" मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"और वो ये कि औकात से बाहर वाले अगर अपनी औकात दिखाएं तो उन्हें उसी वक्त उनकी औकात अपने तरीके से दिखा दो। ये हरामज़ादा साला अपनी औकात भूल गया था इस लिए इसे इसकी औकात दिलाना ज़रूरी हो गया था।"
"औकात तो अब मैं तुझे दिखाऊंगा वैभव सिंह।" पीछे से मानिक की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मेरा गुस्सा फिर से आसमान छूने लगा और मैं डंडा लिए उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ा और इससे पहले कि बड़े भैया मुझे रोक पाते मैंने घुमा कर डंडे का वार उसकी टांग पर किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया।
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" डंडा मारने के बाद मैंने गुस्से से कहा____"तू मेरी औकात दिखायेगा मुझे? अपने बाप हरिशंकर से जा कर मेरी औकात पूछ, जो मुझे देखते ही अपना सिर झुका कर मुझे सलाम करने लगता है। साले रंडी की औलाद तू मुझे औकात दिखाएगा? चल उठ बेटीचोद, मैं तुझे तेरे ही घर में तेरी औकात दिखाऊंगा। फिर तू भी देखेगा कि तेरा बाप और तेरा पूरा खानदान कैसे मेरे तलवे चाटने लगेगा। उठ मादरचोद वरना जान से मार दूंगा।"
मैंने एक लात उसके पेट में मारी तो वो फिर से दर्द में बिलबिलाया। उसके साथ आए उसके भाई और चाचा के लड़के सहमे से खड़े हुए थे। उनमे अब हिम्मत ही नहीं थी कि वो मेरा प्रतिकार कर सकें। तभी पीछे से मुझे जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलट कर देखा तो बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ जीप में बैठ कर गांव की तरफ चल पड़े थे। मुझे उनके इस तरह चले जाने से घंटा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
"उठ ना मादरचोद।" मानिक जब न उठा तो मैंने गुस्से में एक लात और उसके पेट में जमा दी____"चल मैं तुझे तेरे ही घर में तेरे ही घर वालों के सामने तेरी औकात दिखाता हूं। तू अपनी आँखों से देखेगा कि जब मैं तुझे तेरी औकात दिखाऊंगा तब तेरे घर वाले कैसे तेरे लिए मुझसे रहम की भीख माँगेंगे।"
"इसे माफ़ कर दीजिये छोटे ठाकुर।"मानिक के चाचा के लड़के ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"अब से हम में से कोई भी आपसे बददमीची से बात नहीं करेगा। भगवान के लिए इसे छोड़ दीजिए।"
"तू इसे अभी के अभी उठा और घर ले चल।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"आज मैं इसे इसके ही घर में इसकी औकात दिखाऊंगा। क्यों रे मादरचोद अब बोलता क्यों नहीं तू? बोल वरना यही डंडा तेरी गांड में डाल दूंगा।"
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" मैंने इस बार जब ज़ोर से उसके पिछवाड़े पर डंडा मारा तो वो दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा था____"अब से ऐसी ग़लती नहीं होगी।"
"क्यों इतनी जल्दी अपनी औकात पहचान गया तू?" मैंने उसके सीने में अपना एक पैर रख कर उस पर दबाव बढ़ाते हुए कहा_____"चल अब बता मेरे भाइयों को बीच सड़क पर क्यों रोक रखा था तूने?"
"हम तो बस उनसे उनका हाल चाल ही पूछ रहे थे।" मानिक ने दर्द से कराहते हुए कहा____"वो क्या है न कि आज होलिका दहन है और फिर कल रंगों की होली भी है। उसी के बारे में चर्चा भी कर रहे थे।"
"आज से पहले तो कभी ऐसे त्योहारों के लिए तुम लोगों ने हमसे चर्चा नहीं की थी।" मैंने उसे घूरते हुए कहा____"फिर आज ये चर्चा क्यों? सच सच बता वरना ये डंडा देख रहा है न? इसे तेरी गांड में घुसाने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाऊंगा मैं।"
"मैं सच ही कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" मानिक ने हकलाते हुए कहा___"हम इसी बारे में चर्चा कर रहे थे। ये सच है कि आज से पहले कभी हमारा खानदान ठाकुर खानदान के साथ ऐसे त्योहारों पर एक साथ नहीं रहा लेकिन इस बार अगर हम एक साथ रहें तो इसमें ग़लत ही क्या है? हमारे घर के बड़े बुजुर्ग भी इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि ठाकुरों से हमें अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए और मिल जुल कर हर त्यौहार में साथ ही रहना चाहिए।"
"कमाल है।" मैंने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"साहूकारों को इतनी अकल कहां से आ गई और ये भी कि वो ये कैसे सोचने लगे कि उन्हें हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए? तू साले मुझे चूतिया समझता है क्या जो मैं तेरी इस बात पर यकीन कर लूंगा?"
"सच यही है छोटे ठाकुर।" मानिक ने कराहते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं हो सकता इस लिए अगर आप चाहें तो मेरे घर जा कर खुद इस बात की तस्दीक कर सकते हैं?"
"वो तो मैं करुंगा ही।" मैंने उसके सीने से अपना पैर खींच कर वापस ज़मीन पर रखते हुए कहा____"और अगर मुझे पता चला कि तेरी ये बातें सिरे से ही झूंठी हैं तो सोच लेना इस गांव से साहूकारों का नामो निशान मिटा दूंगा मैं।"
"बिल्कुल छोटे ठाकुर।" मानिक ने दर्द को सहते हुए कहा____"वैसे इस बारे में मेरे पिता जी ने दादा ठाकुर जी से भी बात की थी। आप चाहें तो दादा ठाकुर जी से खुद भी इस बारे में पूछ सकते हैं।"
मानिक की इस बात से मैं सोच में पड़ गया था। मुझे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि गांव के साहूकार लोग हम ठाकुरों से अपने सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं। जब से मैंने होश सम्हाला था तब से मैं यही देखता आया था कि शाहूकार हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहे हैं। हलांकि मुझे इसकी मूल वजह का पता नहीं था और ना ही मैंने कभी जानने की कोशिश की थी। ख़ैर, मज़ेदार बात ये थी कि मेरे लंड ने साहूकारों के घर में भी अपने झंडे गाड़े थे। मानिक के ताऊ की दूसरे नंबर वाली लड़की को मैं कई बार पेल चुका था।
मैने मानिकचंद्र को छोड़ दिया था और उसे ये हिदायत भी दी कि अब अगर उसने अपनी औकात दिखाई तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा और साथ ही ये भी कहा कि मैं इस सच्चाई का पता खुद लगाऊंगा और अगर ये सच न हुआ तो इसके अंजाम के बारे में भी वो सोच लेगा।
बुलेट स्टार्ट कर के मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मेरे ज़हन में अभी भी मानिक की बातें गूँज रही थी और मन में कई तरह के सवाल उभर रहे थे। अगर मानिकचंद्र की बात सच थी तो यकीनन उसके बाप ने पिता जी से इस बारे में बात की होगी। अब सवाल ये था कि क्या मुझे पिता जी से इस बारे में पूछना चाहिए? एक तरफ तो मैं हवेली के काम काज में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था जबकि दूसरी तरफ ये जानना भी मैं ज़रूरी समझ रहा था। हलांकि सवाल तो ये भी था कि मैं भला इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी समझता था? मुझे तो इससे कोई मतलब नहीं था फिर इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी था मेरे लिए? क्या इस लिए कि मैं ये समझता था कि इस सबका का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं मुरारी की हत्या और मेरी फसल में आग लगने से था?
मेरे ज़हन में पिता जी की बातें गूँज उठी। जिसमे वो कह रहे थे कि कुछ लोग हमारे खिलाफ़ कुछ ऐसा करने की फ़िराक में हैं जिससे हमारा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। अब सवाल ये था कि ऐसे लोग क्या ये शाहूकार ही थे? गांव के साहूकारों ने अचानक ही हमसे अपने सम्बन्ध सुधारने के बारे में क्यों सोचा और सोचा ही नहीं बल्कि इसके लिए वो दादा ठाकुर से बात भी कर चुके हैं? मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या ये किसी तरह की कोई साज़िश है जिसके तार जाने कहां कहां जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं?
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Ju ke paas bhejne se uski sharmo haya door ho jayegi,,,,mere paas bhejkar
Kyo bechari ki jindagi barbaad kar rahe ho ...
दोस्तों, अध्याय - 14 पोस्ट कर दिया है।
अपडेट कैसा लगा इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा।
I admitted.anuradha to us kand ke baad bhi vaibhav ko dekhke muskuraya karti thi,aaj use kya ho gaya ki wo paap kah rahi hai...
Aur yanha bhi maanik
ये बड़े भाई साहब ठाकुर साहब की ही औलाद है न ? लगता तो नहीं है कि इसमें ठाकुरों वाला खून है ! पक्का ये गोद लिया हुआ लगता है और वो भी साहूकारों के किसी परिवार से ।☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 14
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अब तक,,,,,
"तो तुम इस वक़्त इस घर में अकेली हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से पूछा____"क्या तुम काकी के साथ गेहू कटवाने नहीं गई?"
"गई थी।" अनुराधा ने कहा____"लेकिन सिर दर्द करने लगा था तो माँ ने मुझे घर जाने को कह दिया। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई हूं।"
अनुराधा इस वक़्त घर में अकेली थी और ये जान कर पता नहीं क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी। मुमकिन था कि मेरे जैसा ही हाल अनुराधा का भी होगा। आज से पहले कभी वो मेरे सामने अपने घर में अकेली नहीं थी। वो बरामदे के पास ही चुप चाप खड़ी थी और अपने दुपट्टे के छोर को पकड़ कर उसे कभी इधर उमेठती तो कभी उधर। मैं उसके मासूमियत से भरे चेहरे को ही निहारे जा रहा था और मेरा ज़हन न जाने क्या क्या सोचने में लगा हुआ था। अभी मैं सोचमे गुम ही था कि अचानक उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और जो कुछ उसने कहा उसने मेरे चेहरे का रंग ही उड़ा दिया।
अब आगे,,,,,
"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" मेरे चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख अनुराधा ने इस बार मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा____"बताइए ना, उस रात आप और माँ एक साथ ही थे ना?"
अनुराधा ने यही बात पूछी थी मुझसे जिससे मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। हलांकि मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था मगर तब तक शायद देर हो चुकी थी और अनुराधा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर समझ गई थी।
"सुना तो मैंने भी था आपके बारे में।" मुझे चुप देख अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मगर जब आप पिता जी के साथ इतने महीने से इस घर में आते जाते रहे और मैंने भी कभी आपको कुछ ग़लत करते नहीं देखा तो मुझे लगा कि मैंने बेकार में ही आपके बारे में तरह तरह की बातें सुनी थी। मैं आपको बहुत अच्छा इंसान समझने लगी थी छोटे ठाकुर मगर उस रात आपने जो किया उससे ये साबित हो गया कि मैंने जो कुछ आपके बारे में सुना था वो सब सच ही तो था। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि जिस इंसान को मैं अच्छा समझती हूं वो असल में एक ऐसा इंसान है जो ना तो कोई रिश्ता देखता है और ना ही उमर। वो ये भी नहीं सोचता कि जिस इंसान ने बुरे वक़्त में उसकी इतनी मदद की थी उसी के घर की औरत को उसने अपनी हवश का शिकार बना लिया है। अगर उस रात मैं अपनी आँखों से वो सब नहीं देखती तो शायद मैं कभी भी कही सुनी बातों पर यकीन नहीं करती मगर सच तो आँखों के सामने ही जैसे निर्वस्त्र हो के खड़ा था।"
अनुराधा की बातों ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था और मुझ में कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं रह गई थी किन्तु ज़हन में ये सवाल ज़रूर चकरा रहा था कि अगर अनुराधा ने उस रात सब कुछ देख ही लिया था तो दूसरे दिन सुबह जब उसने इस बारे में मुझसे बात की थी तो उसने खुल कर सब कुछ मुझे क्यों नहीं बता दिया था? बल्कि उसने तो अपनी बातों से यही ज़ाहिर किया था कि उसने कुछ नहीं देखा है। तभी मेरे मन में ख़याल आया कि अनुराधा ने शायद इस लिए ये सब मुझसे पहले नहीं कहा होगा क्योंकि उसे मुझसे बात करने का सही मौका ही नहीं मिला होगा।
"दूसरे दिन सुबह जब मैंने आपसे इस बारे में पूछा तो आपने मुझसे झूठ कहा कि आपने माँ को नहीं देखा था।" मुझे सोचो में गुम देख अनुराधा ने फिर कहा____"मैं चाहती तो उसी वक़्त आपको सब बता देती कि मैंने आप दोनों की करतूतें अपनी आँखों से देख ली हैं मगर मैं उस वक़्त आपसे ऐसा नहीं कह पाई थी क्योंकि मुझे इस बारे में आपसे बात करने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी।"
"मुझे माफ़ कर दो अनुराधा।" मैं भला अब इसके सिवा क्या कहता____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है।"
"माफी मांग लेने से क्या आपका गुनाह मिट जाएगा छोटे ठाकुर?" अनुराधा ने शख़्त भाव से कहा____"और फिर वो गुनाह सिर्फ आपने ही बस तो नहीं किया था बल्कि मेरी माँ ने भी तो किया था। मैंने देखा था कि कैसे वो अपनी इच्छा से वो सब ख़ुशी ख़ुशी कर रही थी। मुझे तो सोच कर ही घिन आती है कि मेरी अपनी माँ ने ऐसा घिनौना काम अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ किया।"
बोलते बोलते अनुराधा का चेहरा सुर्ख पड़ गया था। मैं पहली बार उस मासूम का ये रूप देख रहा था। हमेशा शांत रहने वाली लड़की आज मुझसे बड़ी ही शख़्ती से बात कर रही थी और इधर मैं किसी से भी न डरने वाला उसकी ऐसी बातें सुन कर अपराधी की भाँति अपनी गर्दन को झुकाए खड़ा रह गया था।
"जगन काका ने ठीक ही कहा था कि आपने ही उनके भाई की हत्या की है।" अनुराधा ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा____"और मुझे भी यही लगता है कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है।"
"नहीं अनुराधा ये झूठ है।" मैंने जैसे हताश भाव से कहा मगर उसने जैसे फटकारते हुए कहा____"अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए छोटे ठाकुर। मेरे दिल में आपके प्रति जो इज्ज़त बनी थी वो उसी दिन मिट गई थी जिस दिन मैंने अपनी आँखों से आपको मेरी माँ के साथ वो घिनौना काम करते देखा था।"
"मैं मानता हूं कि मैंने काकी के साथ वो सब घिनौना काम कर के बहुत बड़ा गुनाह किया है।" मैंने शर्मिंदगी से कहा____"इसके लिए तुम जो चाहो सज़ा दे दो मुझे मगर मेरा यकीन मानो मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। भला मैं अपने फरिश्ता जैसे काका की हत्या क्यों करुंगा?"
"मुझे मूर्ख मत समझिए छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं जो कुछ समझती ही नहीं हूं। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है क्योंकि आपके और माँ के नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में मेरे बाबू को भी पता चल गया रहा होगा और जब उन्होंने आपसे इस बारे में कुछ कहा होगा तो आपने उन्हें जान से मार देने का सोच लिया। इसके लिए आपने उस रात मेरे बाबू को जम कर शराब पिलाई और उन्हें घर ले आए। मैंने देखा था उस रात मेरे बाबू को शराब के नशे में किसी बात का भी होश नहीं था। रात में आपने खाना खाया और चले गए। उसके बाद आपने हमारे सो जाने का इंतज़ार किया और जब आपने सोचा कि हम सब खा पी कर सो गए होंगे तो आप चुपके से यहाँ आए और बाबू को बहला फुसला कर घर के पीछे ले गए और फिर वहां आपने मेरे बाबू की हत्या कर दी।"
अनुराधा की ये बातें सुन कर मैं उसे हैरानी से इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही अनुराधा के सिर पर आगरे का ताजमहल आ कर नाचने लगा हो। अनुराधा ने बड़ी ही कुशलता से मुझे अपने पिता का हत्यारा साबित कर दिया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि भोली भाली सी दिखने वाली इस लड़की का ज़हन इतना कुछ भी सोच सकता है।
"अब चुप क्यों हो गए छोटे ठाकुर?" मुझे ख़ामोश देख अनुराधा ने कठोर भाव से कहा____"क्या ये सोचने लगे हैं कि मैंने आपको बेनक़ाब कर दिया है? मैं चाहती तो उसी दिन ये सब बातें चीख चीख कर सबके सामने कह देती मगर ये सोच कर चुप रही कि मेरे कहने से आपका भला क्या बिगड़ जाएगा? आप तो बड़े लोग हैं। भला हम ग़रीब लोग दादा ठाकुर के बेटे का क्या बिगाड़ लेंगे? इस लिए चुप ही रही और आज सोचती हूं कि सच ही तो सोचा था मैंने। क्योंकि मेरे बाबू की लाश सुबह से दोपहर तक पड़ी रह गई थी मगर जगन काका के रपट लिखाने के बाद भी दरोगा नहीं आया था। आता भी कैसे? दादा ठाकुर ने उसे पैसा खिला कर उसको मेरे बाबू की हत्या की जांच करने से ही मना कर दिया होगा।"
"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है अनुराधा।" मैंने बेबस भाव से कहा____"तुम बेवजह ही जाने क्या क्या सोच रही हो। मैं ये मानता हूं कि मैंने और काकी ने एक साथ नाजायज़ सम्बन्ध बना कर गुनाह किया है और उसके लिए मैं तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं। लेकिन मैं अपने माता पिता की, यहाँ तक कि खुद अपनी क़सम खा कर कहता हूं कि मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। उन्हें मेरे और काकी के सम्बन्धों के बारे में कुछ भी नहीं पता था और जब उन्हें कुछ पता ही नहीं था तो वो मुझसे इस बारे में कैसे कुछ कहते और जब वो कुछ कहते ही नहीं तो मैं उनकी हत्या भला कैसे कर देता? एक पल के अगर ये मान भी लिया जाए कि काका को इन सम्बन्धों का पता था तब भी मैं उनकी हत्या करने जैसा गुनाह नहीं करता। मैं उनके पैरों में गिर कर उनसे अपने गुनाहों के लिए माफ़ी मांगता और उनसे कहता कि वो जो चाहें मुझे सज़ा दे दें। तुम यकीन नहीं करोगी अनुराधा मगर ये सच है कि आज के वक़्त में अगर किसी के लिए मेरे दिल में इज्ज़त और सम्मान की भावना है तो वो हैं मुरारी काका।"
"मुझे आप पर और आपकी बातों पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं हो सकता छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"और हां एक बात और...मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है कि अब से आप यहाँ मत आइएगा। मैं अपने बाबू के हत्यारे को और मेरी माँ के साथ घिनौना काम करने वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहती। अब आप जा सकते हैं।"
"मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं अनुराधा?" मैंने हताश भाव से ये कहा ही था कि अनुराधा ने गुस्से में कहा____"मैंने कहा ना कि अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए?"
"मैंने जो किया है उसको मैं तहे दिल से कबूल कर रहा हूं।" मैंने कहा____"और उसके लिए तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"
"मैं कौन होती हूं आपको सज़ा देने वाली?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"आप बड़े लोग हैं। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"ये सच है कि दूसरा कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" मैंने दो क़दम अनुराधा की तरफ बढ़ कर कहा____"मगर मुरारी काका के घर का हर सदस्य मेरा सब कुछ बिगाड़ सकता है। तुम्हें पूरा हक़ है अनुराधा कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मुझे सज़ा दे दो। मैं तुम्हारी हर सज़ा को ख़ुशी ख़ुशी कबूल कर लूंगा मगर मेरा यकीन करो मैंने मुरारी काका जैसे देवता की हत्या नहीं की है। वो मेरे लिए देवता जैसे ही थे और तुम्हारी तरह मुझे भी उनकी इस तरह हत्या हो जाने से दुःख है।"
पता नहीं मेरी बातों का असर था या कुछ और मगर इस बार अनुराधा कुछ बोली नहीं थी बल्कि मेरी तरफ अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे का गुस्सा गायब होता प्रतीत हो रहा था और फिर से उसके चेहरे पर उसकी मासूमियत नज़र आने लगी थी। उसके चेहरे के बदलते भाव देख कर अभी मैंने राहत की सांस ली ही थी कि तभी अचानक फिर से उसके चेहरे के भाव पहले जैसे होते दिखे।
"आप मुझे बहला नहीं सकते छोटे ठाकुर।" फिर उसने कर्कश भाव से कहा____"मैं गांव की बांकी लड़कियों जैसी नहीं हूं जो आपकी बातों के जाल में फंस जाऊंगी और आपके लिए अपना सब कुछ लुटा दूंगी। ख़बरदार मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मत। अब चले जाइए यहाँ से, मैं दादा ठाकुर के बेटे की सूरत भी नहीं देखना चाहती।"
"तुम्हें मेरा जितना अपमान करना हो कर लो अनुराधा।" मैं सच में उसकी बातों से खुद को बुरा महसूस करने लगा था, इस लिए थोड़ा दुखी भाव से बोला____"अगर तुम्हें मेरा इस तरह से अपमान करने में ही ख़ुशी मिलती है तो यही सही किन्तु एक बात मेरी भी सुन लो। मैं चार महीने पहले तक यकीनन बहुत बुरा था और गांव की हर लड़की या औरत को अपने नीचे लेटाने की ही सोचता था मगर अपने पिता द्वारा गांव से निष्कासित किये जाने पर जब से यहाँ आया हूं तब से मैं वैसा नहीं रहा। मुरारी काका से मुलाक़ात हुई और उनके साथ जब इस घर में आया तो तुम्हे देखा। शुरुआत में तुम्हें देख कर मेरे मन में यही आया था कि तुम्हें भी बांकी लड़कियों की तरह एक दिन अपने जाल में फसाऊंगा मगर मैं ऐसा नहीं कर सका। जानती हो क्यों? क्योंकि जब भी तुम्हें देख कर तुम्हें अपने जाल में फसाने की सोचता था तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती थी और कहती थी कि और कितनी मासूम कलियों को मसल कर उन्हें बर्बाद करोगे ठाकुर वैभव सिंह? अपनी आत्मा की इस आवाज़ पर हर बार मेरे इरादे ख़ाक में मिल जाते थे। उसके बाद तो फिर मैंने इस बारे में सोचना ही बंद कर दिया। तुम खुद ही मुझे बताओ कि क्या मैंने कभी तुम पर ग़लत नज़र डाली है? मैंने तो हमेशा ही अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना किया था मगर तुमसे रूबरू होने के बाद मैं खुद नहीं जानता कि क्यों मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना नहीं किया?"
इतना सब कहने के बाद मैं चुप हो गया और अनुराधा की तरफ देखने लगा। अनुराधा के चेहरे के भाव फिर से मुझे बदलते दिख रहे थे। ये सच था कि मैंने ये सब कह कर कोई डींगे नहीं मारी थी बल्कि अपने अंदर का सच ही कहा था और अब मैं एक सुकून सा महसूस कर रहा था। हलांकि इस बात से मैं अभी भी चिंतित था कि अनुराधा मुझे अपने बाप का हत्यारा समझती है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"इन सब बातों के बाद भी अगर तुम मुझे ग़लत ही समझती हो तो कोई बात नहीं।" अनुराधा जब कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तुम नहीं चाहती तो आज के बाद कभी तुम्हें अपनी सूरत नहीं दिखाऊंगा मगर मैं भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक मुरारी काका के असल हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। जिस दिन मैंने असल हत्यारे को पकड़ लिया उसी दिन उस हत्यारे को ले कर तुम्हारे सामने आऊंगा और ये ठाकुर वैभव सिंह का वादा है तुमसे। चलता हूं अब।"
"रूक जाइए।" कहने के बाद मैं पलटा ही था कि पीछे से अनुराधा की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, जिसे सुन कर मैं ठिठक गया। मुझे रुक गया देख उसने इस बार थोड़े नरम लहजे में कहा____"समय बहुत ख़राब चल रहा है छोटे ठाकुर इस लिए अपना ख़याल रखिएगा।"
अनुराधा की ये बात सुन कर मैं मन ही मन बुरी तरह चौंका और पलट कर हैरानी से उसकी तरफ देखा। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि अनुराधा ऐसा कहेगी। दूसरी चौंकाने वाली बात ये थी कि उसने समय के ख़राब होने की बात क्यों कही थी मुझसे और मुझे अपना ख़याल रखने के लिए क्यों कहा था उसने?
"ये क्या कह रही हो तुम?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"समय ख़राब चल रहा है का क्या मतलब है और ये क्यों कहा कि मैं अपना ख़याल रखूं?"
"मैं जानती हूं कि आपने मेरे बाबू की हत्या नहीं की है।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तो बस ऐसे ही कहा था मगर इसका मतलब ये नहीं है कि मैंने आपको माफ़ कर दिया है। आपने जो घिनौना काम किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं कर सकती। अब रही बात इसकी कि मैंने समय ख़राब चलने की बात और आपको अपना ख़याल रखने की बात क्यों कही तो इसका जवाब ये है कि जो लोग मुसीबत मोल ले कर अकेले ही रास्तों पर चलते हैं उनके लिए ये ज़रूरी ही होता है कि वो अपना ख़याल रखें।"
"मैं कुछ समझा नहीं।" मैंने उलझ गए भाव से कहा____"आख़िर तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"
"इतने नासमझ तो नहीं लगते छोटे ठाकुर जो मेरी इतनी सी बात का मतलब भी ना समझ पाएं।" अनुराधा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"अब जाइए यहाँ से। जगन काका दिन में कई बार यहाँ आ कर हमारा हाल चाल देखते हैं। अगर उन्होंने आपको यहाँ देख लिया तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन वो मेरे बारे में ग़लत ज़रूर सोच बैठेंगे और मैं नहीं चाहती कि पिता सामान मेरे काका मुझे शक की नज़रों से देखने लगें।"
अनुराधा की बातें सुन कर मैं कुछ देर उसके मासूम से चेहरे की तरफ देखता रहा। वो खुद भी मुझे ही देख रही थी। ये अलग बात है कि जल्दी ही उसने अपनी नज़रों को मुझ पर से हटा लिया था। उसके बाद मैं पलटा और घर से बाहर निकल गया। अपने मन में कई तरह के सवाल लिए मैंने बुलेट को स्टार्ट किया और मुरारी काका के गांव की तरफ चल दिया। इस बार मैं मुख्य सड़क से अपने गांव की तरफ जाना चाहता था।
मुरारी काका के गांव से होते हुए मैं मुख्य सड़क पर आ गया था और मेरी बुलेट कच्ची सड़क पर पीछे की तरफ धूल उड़ाते हुए जैसे उड़ी चली जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ खेत थे जिनमे गेहू की पकी हुई फसल खड़ी थी और कुछ दूरी पर कुछ किसान लोग फसल की कटाई में भी लगे हुए थे। मैं अनुराधा की बातें सोचते हुए बुलेट चला रहा था कि तभी सामने कुछ दूर सड़क पर मुझे एक जीप खड़ी हुई दिखी और उस जीप के पास कई सारे लोग भी खड़े हुए दिखे। दूर से ही मैंने उस जीप को पहचान लिया। जीप हमारी ही थी किन्तु मैं ये सोचने लगा कि दोनों गांवों के बीच इस जगह पर हमारी जीप क्यों खड़ी थी? थोड़ा और पास गया तो जीप के ही पास खड़े लोगों के चेहरे साफ़ दिखे तो मैं उन चेहरों को भी पहचान गया।
जीप के पास बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ खड़े थे और उन तीनों के सामने चार दूसरे लड़के खड़े थे। मैं उन चारों लड़कों को पहचान गया। वो चारों साहूकारों के लड़के थे। मैं समझ गया कि मेरे भाइयों के बीच साहूकारों के लड़कों की कोई बात चीत हो रही है। तभी उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी। मैं अब उनके काफी पास आ गया था। मेरी बुलेट जैसे ही उनके पास आ कर रुकी तो उन चारों लड़कों के चेहरे के भाव बदल गए और इधर बड़े भैया और विभोर अजीत के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभर आए।
"क्या हो रहा है यहाँ?" मैंने बुलेट में बैठे बैठे ही शख़्त भाव से उन चारों की तरफ देखते हुए कहा तो वो चारों तो कुछ न बोले किन्तु बड़े भैया बोल पड़े____"तुम्हारी ज़रूरत नहीं है यहां। हम सम्हाल लेंगे इन्हें।"
"क्या इन लोगों ने आपका रास्ता रोका है?" मैंने इस बार थोड़ा और शख़्त भाव से कहा तो बड़े भैया ने इस बार गुस्से में कहा____"मैंने कहा न कि तुम्हारी ज़रूरत नहीं है, हम सम्हाल लेंगे। तुम जाओ यहाँ से।"
"लगता है गांव से निकाले जाने के बाद चार महीना जंगल में रह कर भी छोटे ठाकुर की गर्मी नहीं उत्तरी है।" साहूकारों के उन चारों लड़कों में से एक ने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"किसी ने सच ही कहा है कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।"
उसकी ये बात सुन कर बाकी के तीनों हंसने लगे तो मेरी झांठें सुलग गईं। मेरा चेहरा पलक झपकते ही गुस्से में तमतमा गया। मैं एक झटके से मोटर साइकिल से नीचे उतरा और बिजली की सी तेज़ी से आगे बढ़ कर मैंने एक मुक्का उस बोलने वाले लड़के के चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो दूसरे वाले से टकराया तो दूसरा भी भरभरा कर तीसरे वाले से जा टकराया। इधर मेरे ऐसा करने पर बड़े भैया गुस्से में मुझे रुक जाने को बोले तो मैंने क़हर भरी नज़रों से उनकी तरफ देखा। मुझे गुस्से से अपनी तरफ देखता देख वो एकदम से चुप हो गए और उनके बगल से खड़े विभोर और अजीत सहम गए।
बड़े भैया को गुस्से से देखने के बाद अभी मैं वापस पलटा ही था कि उनमे से एक ने मुझे ज़ोर का धक्का मारा जिससे मैं पीछे फिसलते हुए बुलेट से जा टकराया। उनके द्वारा धक्का दिए जाने से मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। इससे पहले कि उनमे से कोई मुझ पर हमला करता मैंने एक को अपने पास देखा तो ज़ोर से एक लात उसके पेट में लगा दी जिससे वो दर्द से चीखते हुए पीछे की तरफ फिसलता चला गया। मुझे सम्हलने का मौका मिल चुका था इस लिए जैसे ही दूसरे ने मुझे मारने के लिए अपना एक हाथ चलाया तो मैंने गर्दन को दाएं तरफ कर के उसका वो हाथ पकड़ लिया और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से उसकी तरफ अपनी पीठ की और उसके उस हाथ को अपने दाएं कंधे पर रख कर नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। वातावरण में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही दर्दनाक चीख भी गूँज उठी। मैंने उसका हाथ तोड़ दिया था। वो अपना हाथ दूसरे हाथ से पकड़े बुरी तरह दर्द से तड़पने लगा था। उसका ये हाल देख कर बाकी तीनों सकते में आ गए।
"वैभव ये तुमने क्या कर दिया?" पीछे से बड़े भैया की गुस्से में डूबी ये आवाज़ गूँजी तो मैंने पलट उनकी तरफ देखा और कहा____"अब आप जा सकते हैं यहाँ से। अगर आपको मेरी ज़रूरत नहीं थी तो मुझे भी किसी की ज़रूरत नहीं है। इन हिजड़ों के लिए वैभव सिंह अकेला ही काफी है।"
"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि तुमने क्या किया है?" बड़े भैया ने गुस्से में कहा____"तुमने गुस्से में मानिक का हाथ तोड़ दिया है और इसके लिए इसका बाप पंचायत बुला कर तुम्हें सज़ा भी दिलवा सकता है।"
बड़े भैया की बात का अभी मैं जवाब देने ही वाला था कि तभी मेरी नज़र दाएं तरफ पड़ी। उनमे से एक लकड़ी का मोटा सा डंडा लिए मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा था। लकड़ी का वो डंडा जाने कहां से उसके हाथ में आ गया था। शायद सड़क के किनारे खेत पर ही कहीं पड़ा हुआ दिखा होगा उसे। ख़ैर जैसे ही उसने उस लकड़ी के डंडे को घुमा कर मेरी तरफ उसका प्रहार किया तो मैं जल्दी से झुक गया जिससे उसका वॉर मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। प्रहार इतना तेज़ था कि वो खुद भी उसके ज़ोर पर तिरछा हो गया था और इससे पहले कि वो सीधा होता मैंने उछल कर एक लात उसकी पीठ पर मारी जिससे वो भरभरा कर ज़मीन पर जा गिरा। लकड़ी का डंडा उसके हाथ से छूट गया था जिसे मैंने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर उठा लिया। अब मेरे हाथ में लकड़ी का वो मोटा सा डंडा था और आँखों में भयंकर गुस्से की आग।
"रूक जाओ अब, बहुत हो गया।" मुझे डंडा ले कर उनमे से एक की तरफ बढ़ते देख पीछे से बड़े भैया ज़ोर से चिल्लाए____"अब अगर तुमने किसी को मारा तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।"
"इतनी भी कायरता मत दिखाइए बड़े भइया।" मैंने पलट कर शख़्त भाव से कहा____"कि आपके ठाकुर होने पर ही सवाल खड़ा हो जाए।"
"अपनी जुबान को लगाम दो वैभव।" बड़े भैया ने गुस्से से हुंकारते हुए कहा____"ठाकुर का मतलब ये नहीं होता कि बेवजह किसी का हाथ ही तोड़ दिया जाए।"
"तो आपकी नज़र में मैंने बेवजह ही इस हरामज़ादे मानिक का हाथ तोड़ा है?" मैंने गुस्से से हांफते हुए कहा____"वाह भैया वाह! आपको ये नहीं सुनाई दिया कि इसने आपके छोटे भाई को क्या कहा था, उल्टा आप इन लोगों की ही पैरवी करने लगे?"
"उसने जो कहा उसके लिए तुम्हें उसका हाथ तोड़ने की क्या ज़रूरत थी?" बड़े भैया ने शख़्त भाव से कहा____"दूसरे तरीके से भी तो उसे जवाब दे सकते थे तुम?"
"ठाकुर वैभव सिंह को सिर्फ एक ही तरीका आता है बड़े भइया।" मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"और वो ये कि औकात से बाहर वाले अगर अपनी औकात दिखाएं तो उन्हें उसी वक्त उनकी औकात अपने तरीके से दिखा दो। ये हरामज़ादा साला अपनी औकात भूल गया था इस लिए इसे इसकी औकात दिलाना ज़रूरी हो गया था।"
"औकात तो अब मैं तुझे दिखाऊंगा वैभव सिंह।" पीछे से मानिक की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मेरा गुस्सा फिर से आसमान छूने लगा और मैं डंडा लिए उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ा और इससे पहले कि बड़े भैया मुझे रोक पाते मैंने घुमा कर डंडे का वार उसकी टांग पर किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया।
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" डंडा मारने के बाद मैंने गुस्से से कहा____"तू मेरी औकात दिखायेगा मुझे? अपने बाप हरिशंकर से जा कर मेरी औकात पूछ, जो मुझे देखते ही अपना सिर झुका कर मुझे सलाम करने लगता है। साले रंडी की औलाद तू मुझे औकात दिखाएगा? चल उठ बेटीचोद, मैं तुझे तेरे ही घर में तेरी औकात दिखाऊंगा। फिर तू भी देखेगा कि तेरा बाप और तेरा पूरा खानदान कैसे मेरे तलवे चाटने लगेगा। उठ मादरचोद वरना जान से मार दूंगा।"
मैंने एक लात उसके पेट में मारी तो वो फिर से दर्द में बिलबिलाया। उसके साथ आए उसके भाई और चाचा के लड़के सहमे से खड़े हुए थे। उनमे अब हिम्मत ही नहीं थी कि वो मेरा प्रतिकार कर सकें। तभी पीछे से मुझे जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलट कर देखा तो बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ जीप में बैठ कर गांव की तरफ चल पड़े थे। मुझे उनके इस तरह चले जाने से घंटा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
"उठ ना मादरचोद।" मानिक जब न उठा तो मैंने गुस्से में एक लात और उसके पेट में जमा दी____"चल मैं तुझे तेरे ही घर में तेरे ही घर वालों के सामने तेरी औकात दिखाता हूं। तू अपनी आँखों से देखेगा कि जब मैं तुझे तेरी औकात दिखाऊंगा तब तेरे घर वाले कैसे तेरे लिए मुझसे रहम की भीख माँगेंगे।"
"इसे माफ़ कर दीजिये छोटे ठाकुर।"मानिक के चाचा के लड़के ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"अब से हम में से कोई भी आपसे बददमीची से बात नहीं करेगा। भगवान के लिए इसे छोड़ दीजिए।"
"तू इसे अभी के अभी उठा और घर ले चल।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"आज मैं इसे इसके ही घर में इसकी औकात दिखाऊंगा। क्यों रे मादरचोद अब बोलता क्यों नहीं तू? बोल वरना यही डंडा तेरी गांड में डाल दूंगा।"
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" मैंने इस बार जब ज़ोर से उसके पिछवाड़े पर डंडा मारा तो वो दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा था____"अब से ऐसी ग़लती नहीं होगी।"
"क्यों इतनी जल्दी अपनी औकात पहचान गया तू?" मैंने उसके सीने में अपना एक पैर रख कर उस पर दबाव बढ़ाते हुए कहा_____"चल अब बता मेरे भाइयों को बीच सड़क पर क्यों रोक रखा था तूने?"
"हम तो बस उनसे उनका हाल चाल ही पूछ रहे थे।" मानिक ने दर्द से कराहते हुए कहा____"वो क्या है न कि आज होलिका दहन है और फिर कल रंगों की होली भी है। उसी के बारे में चर्चा भी कर रहे थे।"
"आज से पहले तो कभी ऐसे त्योहारों के लिए तुम लोगों ने हमसे चर्चा नहीं की थी।" मैंने उसे घूरते हुए कहा____"फिर आज ये चर्चा क्यों? सच सच बता वरना ये डंडा देख रहा है न? इसे तेरी गांड में घुसाने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाऊंगा मैं।"
"मैं सच ही कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" मानिक ने हकलाते हुए कहा___"हम इसी बारे में चर्चा कर रहे थे। ये सच है कि आज से पहले कभी हमारा खानदान ठाकुर खानदान के साथ ऐसे त्योहारों पर एक साथ नहीं रहा लेकिन इस बार अगर हम एक साथ रहें तो इसमें ग़लत ही क्या है? हमारे घर के बड़े बुजुर्ग भी इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि ठाकुरों से हमें अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए और मिल जुल कर हर त्यौहार में साथ ही रहना चाहिए।"
"कमाल है।" मैंने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"साहूकारों को इतनी अकल कहां से आ गई और ये भी कि वो ये कैसे सोचने लगे कि उन्हें हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए? तू साले मुझे चूतिया समझता है क्या जो मैं तेरी इस बात पर यकीन कर लूंगा?"
"सच यही है छोटे ठाकुर।" मानिक ने कराहते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं हो सकता इस लिए अगर आप चाहें तो मेरे घर जा कर खुद इस बात की तस्दीक कर सकते हैं?"
"वो तो मैं करुंगा ही।" मैंने उसके सीने से अपना पैर खींच कर वापस ज़मीन पर रखते हुए कहा____"और अगर मुझे पता चला कि तेरी ये बातें सिरे से ही झूंठी हैं तो सोच लेना इस गांव से साहूकारों का नामो निशान मिटा दूंगा मैं।"
"बिल्कुल छोटे ठाकुर।" मानिक ने दर्द को सहते हुए कहा____"वैसे इस बारे में मेरे पिता जी ने दादा ठाकुर जी से भी बात की थी। आप चाहें तो दादा ठाकुर जी से खुद भी इस बारे में पूछ सकते हैं।"
मानिक की इस बात से मैं सोच में पड़ गया था। मुझे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि गांव के साहूकार लोग हम ठाकुरों से अपने सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं। जब से मैंने होश सम्हाला था तब से मैं यही देखता आया था कि शाहूकार हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहे हैं। हलांकि मुझे इसकी मूल वजह का पता नहीं था और ना ही मैंने कभी जानने की कोशिश की थी। ख़ैर, मज़ेदार बात ये थी कि मेरे लंड ने साहूकारों के घर में भी अपने झंडे गाड़े थे। मानिक के ताऊ की दूसरे नंबर वाली लड़की को मैं कई बार पेल चुका था।
मैने मानिकचंद्र को छोड़ दिया था और उसे ये हिदायत भी दी कि अब अगर उसने अपनी औकात दिखाई तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा और साथ ही ये भी कहा कि मैं इस सच्चाई का पता खुद लगाऊंगा और अगर ये सच न हुआ तो इसके अंजाम के बारे में भी वो सोच लेगा।
बुलेट स्टार्ट कर के मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मेरे ज़हन में अभी भी मानिक की बातें गूँज रही थी और मन में कई तरह के सवाल उभर रहे थे। अगर मानिकचंद्र की बात सच थी तो यकीनन उसके बाप ने पिता जी से इस बारे में बात की होगी। अब सवाल ये था कि क्या मुझे पिता जी से इस बारे में पूछना चाहिए? एक तरफ तो मैं हवेली के काम काज में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था जबकि दूसरी तरफ ये जानना भी मैं ज़रूरी समझ रहा था। हलांकि सवाल तो ये भी था कि मैं भला इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी समझता था? मुझे तो इससे कोई मतलब नहीं था फिर इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी था मेरे लिए? क्या इस लिए कि मैं ये समझता था कि इस सबका का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं मुरारी की हत्या और मेरी फसल में आग लगने से था?
मेरे ज़हन में पिता जी की बातें गूँज उठी। जिसमे वो कह रहे थे कि कुछ लोग हमारे खिलाफ़ कुछ ऐसा करने की फ़िराक में हैं जिससे हमारा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। अब सवाल ये था कि ऐसे लोग क्या ये शाहूकार ही थे? गांव के साहूकारों ने अचानक ही हमसे अपने सम्बन्ध सुधारने के बारे में क्यों सोचा और सोचा ही नहीं बल्कि इसके लिए वो दादा ठाकुर से बात भी कर चुके हैं? मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या ये किसी तरह की कोई साज़िश है जिसके तार जाने कहां कहां जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं?
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Bahut mast update tha bhai.☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 14
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अब तक,,,,,
"तो तुम इस वक़्त इस घर में अकेली हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से पूछा____"क्या तुम काकी के साथ गेहू कटवाने नहीं गई?"
"गई थी।" अनुराधा ने कहा____"लेकिन सिर दर्द करने लगा था तो माँ ने मुझे घर जाने को कह दिया। अभी थोड़ी देर पहले ही यहाँ आई हूं।"
अनुराधा इस वक़्त घर में अकेली थी और ये जान कर पता नहीं क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी। मुमकिन था कि मेरे जैसा ही हाल अनुराधा का भी होगा। आज से पहले कभी वो मेरे सामने अपने घर में अकेली नहीं थी। वो बरामदे के पास ही चुप चाप खड़ी थी और अपने दुपट्टे के छोर को पकड़ कर उसे कभी इधर उमेठती तो कभी उधर। मैं उसके मासूमियत से भरे चेहरे को ही निहारे जा रहा था और मेरा ज़हन न जाने क्या क्या सोचने में लगा हुआ था। अभी मैं सोचमे गुम ही था कि अचानक उसकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी और जो कुछ उसने कहा उसने मेरे चेहरे का रंग ही उड़ा दिया।
अब आगे,,,,,
"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" मेरे चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख अनुराधा ने इस बार मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा____"बताइए ना, उस रात आप और माँ एक साथ ही थे ना?"
अनुराधा ने यही बात पूछी थी मुझसे जिससे मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। हलांकि मैंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था मगर तब तक शायद देर हो चुकी थी और अनुराधा मेरे चेहरे के उड़े हुए रंग को देख कर समझ गई थी।
"सुना तो मैंने भी था आपके बारे में।" मुझे चुप देख अनुराधा ने संजीदगी से कहा____"मगर जब आप पिता जी के साथ इतने महीने से इस घर में आते जाते रहे और मैंने भी कभी आपको कुछ ग़लत करते नहीं देखा तो मुझे लगा कि मैंने बेकार में ही आपके बारे में तरह तरह की बातें सुनी थी। मैं आपको बहुत अच्छा इंसान समझने लगी थी छोटे ठाकुर मगर उस रात आपने जो किया उससे ये साबित हो गया कि मैंने जो कुछ आपके बारे में सुना था वो सब सच ही तो था। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि जिस इंसान को मैं अच्छा समझती हूं वो असल में एक ऐसा इंसान है जो ना तो कोई रिश्ता देखता है और ना ही उमर। वो ये भी नहीं सोचता कि जिस इंसान ने बुरे वक़्त में उसकी इतनी मदद की थी उसी के घर की औरत को उसने अपनी हवश का शिकार बना लिया है। अगर उस रात मैं अपनी आँखों से वो सब नहीं देखती तो शायद मैं कभी भी कही सुनी बातों पर यकीन नहीं करती मगर सच तो आँखों के सामने ही जैसे निर्वस्त्र हो के खड़ा था।"
अनुराधा की बातों ने मेरे वजूद को हिला कर रख दिया था और मुझ में कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं रह गई थी किन्तु ज़हन में ये सवाल ज़रूर चकरा रहा था कि अगर अनुराधा ने उस रात सब कुछ देख ही लिया था तो दूसरे दिन सुबह जब उसने इस बारे में मुझसे बात की थी तो उसने खुल कर सब कुछ मुझे क्यों नहीं बता दिया था? बल्कि उसने तो अपनी बातों से यही ज़ाहिर किया था कि उसने कुछ नहीं देखा है। तभी मेरे मन में ख़याल आया कि अनुराधा ने शायद इस लिए ये सब मुझसे पहले नहीं कहा होगा क्योंकि उसे मुझसे बात करने का सही मौका ही नहीं मिला होगा।
"दूसरे दिन सुबह जब मैंने आपसे इस बारे में पूछा तो आपने मुझसे झूठ कहा कि आपने माँ को नहीं देखा था।" मुझे सोचो में गुम देख अनुराधा ने फिर कहा____"मैं चाहती तो उसी वक़्त आपको सब बता देती कि मैंने आप दोनों की करतूतें अपनी आँखों से देख ली हैं मगर मैं उस वक़्त आपसे ऐसा नहीं कह पाई थी क्योंकि मुझे इस बारे में आपसे बात करने में बेहद शर्म महसूस हो रही थी।"
"मुझे माफ़ कर दो अनुराधा।" मैं भला अब इसके सिवा क्या कहता____"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है।"
"माफी मांग लेने से क्या आपका गुनाह मिट जाएगा छोटे ठाकुर?" अनुराधा ने शख़्त भाव से कहा____"और फिर वो गुनाह सिर्फ आपने ही बस तो नहीं किया था बल्कि मेरी माँ ने भी तो किया था। मैंने देखा था कि कैसे वो अपनी इच्छा से वो सब ख़ुशी ख़ुशी कर रही थी। मुझे तो सोच कर ही घिन आती है कि मेरी अपनी माँ ने ऐसा घिनौना काम अपने बेटे की उम्र के लड़के के साथ किया।"
बोलते बोलते अनुराधा का चेहरा सुर्ख पड़ गया था। मैं पहली बार उस मासूम का ये रूप देख रहा था। हमेशा शांत रहने वाली लड़की आज मुझसे बड़ी ही शख़्ती से बात कर रही थी और इधर मैं किसी से भी न डरने वाला उसकी ऐसी बातें सुन कर अपराधी की भाँति अपनी गर्दन को झुकाए खड़ा रह गया था।
"जगन काका ने ठीक ही कहा था कि आपने ही उनके भाई की हत्या की है।" अनुराधा ने ये कहा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा____"और मुझे भी यही लगता है कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है।"
"नहीं अनुराधा ये झूठ है।" मैंने जैसे हताश भाव से कहा मगर उसने जैसे फटकारते हुए कहा____"अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए छोटे ठाकुर। मेरे दिल में आपके प्रति जो इज्ज़त बनी थी वो उसी दिन मिट गई थी जिस दिन मैंने अपनी आँखों से आपको मेरी माँ के साथ वो घिनौना काम करते देखा था।"
"मैं मानता हूं कि मैंने काकी के साथ वो सब घिनौना काम कर के बहुत बड़ा गुनाह किया है।" मैंने शर्मिंदगी से कहा____"इसके लिए तुम जो चाहो सज़ा दे दो मुझे मगर मेरा यकीन मानो मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। भला मैं अपने फरिश्ता जैसे काका की हत्या क्यों करुंगा?"
"मुझे मूर्ख मत समझिए छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं जो कुछ समझती ही नहीं हूं। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आपने ही मेरे बाबू की हत्या की है क्योंकि आपके और माँ के नाजायज़ सम्बन्धों के बारे में मेरे बाबू को भी पता चल गया रहा होगा और जब उन्होंने आपसे इस बारे में कुछ कहा होगा तो आपने उन्हें जान से मार देने का सोच लिया। इसके लिए आपने उस रात मेरे बाबू को जम कर शराब पिलाई और उन्हें घर ले आए। मैंने देखा था उस रात मेरे बाबू को शराब के नशे में किसी बात का भी होश नहीं था। रात में आपने खाना खाया और चले गए। उसके बाद आपने हमारे सो जाने का इंतज़ार किया और जब आपने सोचा कि हम सब खा पी कर सो गए होंगे तो आप चुपके से यहाँ आए और बाबू को बहला फुसला कर घर के पीछे ले गए और फिर वहां आपने मेरे बाबू की हत्या कर दी।"
अनुराधा की ये बातें सुन कर मैं उसे हैरानी से इस तरह देखने लगा था जैसे अचानक ही अनुराधा के सिर पर आगरे का ताजमहल आ कर नाचने लगा हो। अनुराधा ने बड़ी ही कुशलता से मुझे अपने पिता का हत्यारा साबित कर दिया था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि भोली भाली सी दिखने वाली इस लड़की का ज़हन इतना कुछ भी सोच सकता है।
"अब चुप क्यों हो गए छोटे ठाकुर?" मुझे ख़ामोश देख अनुराधा ने कठोर भाव से कहा____"क्या ये सोचने लगे हैं कि मैंने आपको बेनक़ाब कर दिया है? मैं चाहती तो उसी दिन ये सब बातें चीख चीख कर सबके सामने कह देती मगर ये सोच कर चुप रही कि मेरे कहने से आपका भला क्या बिगड़ जाएगा? आप तो बड़े लोग हैं। भला हम ग़रीब लोग दादा ठाकुर के बेटे का क्या बिगाड़ लेंगे? इस लिए चुप ही रही और आज सोचती हूं कि सच ही तो सोचा था मैंने। क्योंकि मेरे बाबू की लाश सुबह से दोपहर तक पड़ी रह गई थी मगर जगन काका के रपट लिखाने के बाद भी दरोगा नहीं आया था। आता भी कैसे? दादा ठाकुर ने उसे पैसा खिला कर उसको मेरे बाबू की हत्या की जांच करने से ही मना कर दिया होगा।"
"ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है अनुराधा।" मैंने बेबस भाव से कहा____"तुम बेवजह ही जाने क्या क्या सोच रही हो। मैं ये मानता हूं कि मैंने और काकी ने एक साथ नाजायज़ सम्बन्ध बना कर गुनाह किया है और उसके लिए मैं तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं। लेकिन मैं अपने माता पिता की, यहाँ तक कि खुद अपनी क़सम खा कर कहता हूं कि मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। उन्हें मेरे और काकी के सम्बन्धों के बारे में कुछ भी नहीं पता था और जब उन्हें कुछ पता ही नहीं था तो वो मुझसे इस बारे में कैसे कुछ कहते और जब वो कुछ कहते ही नहीं तो मैं उनकी हत्या भला कैसे कर देता? एक पल के अगर ये मान भी लिया जाए कि काका को इन सम्बन्धों का पता था तब भी मैं उनकी हत्या करने जैसा गुनाह नहीं करता। मैं उनके पैरों में गिर कर उनसे अपने गुनाहों के लिए माफ़ी मांगता और उनसे कहता कि वो जो चाहें मुझे सज़ा दे दें। तुम यकीन नहीं करोगी अनुराधा मगर ये सच है कि आज के वक़्त में अगर किसी के लिए मेरे दिल में इज्ज़त और सम्मान की भावना है तो वो हैं मुरारी काका।"
"मुझे आप पर और आपकी बातों पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं हो सकता छोटे ठाकुर।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"और हां एक बात और...मेरी आपसे हाथ जोड़ कर विनती है कि अब से आप यहाँ मत आइएगा। मैं अपने बाबू के हत्यारे को और मेरी माँ के साथ घिनौना काम करने वाले की सूरत भी नहीं देखना चाहती। अब आप जा सकते हैं।"
"मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं अनुराधा?" मैंने हताश भाव से ये कहा ही था कि अनुराधा ने गुस्से में कहा____"मैंने कहा ना कि अपनी गन्दी जुबान से मेरा नाम मत लीजिए?"
"मैंने जो किया है उसको मैं तहे दिल से कबूल कर रहा हूं।" मैंने कहा____"और उसके लिए तुम्हारी हर सज़ा भुगतने को भी तैयार हूं।"
"मैं कौन होती हूं आपको सज़ा देने वाली?" अनुराधा ने अजीब भाव से कहा____"आप बड़े लोग हैं। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"
"ये सच है कि दूसरा कोई भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।" मैंने दो क़दम अनुराधा की तरफ बढ़ कर कहा____"मगर मुरारी काका के घर का हर सदस्य मेरा सब कुछ बिगाड़ सकता है। तुम्हें पूरा हक़ है अनुराधा कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मुझे सज़ा दे दो। मैं तुम्हारी हर सज़ा को ख़ुशी ख़ुशी कबूल कर लूंगा मगर मेरा यकीन करो मैंने मुरारी काका जैसे देवता की हत्या नहीं की है। वो मेरे लिए देवता जैसे ही थे और तुम्हारी तरह मुझे भी उनकी इस तरह हत्या हो जाने से दुःख है।"
पता नहीं मेरी बातों का असर था या कुछ और मगर इस बार अनुराधा कुछ बोली नहीं थी बल्कि मेरी तरफ अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे का गुस्सा गायब होता प्रतीत हो रहा था और फिर से उसके चेहरे पर उसकी मासूमियत नज़र आने लगी थी। उसके चेहरे के बदलते भाव देख कर अभी मैंने राहत की सांस ली ही थी कि तभी अचानक फिर से उसके चेहरे के भाव पहले जैसे होते दिखे।
"आप मुझे बहला नहीं सकते छोटे ठाकुर।" फिर उसने कर्कश भाव से कहा____"मैं गांव की बांकी लड़कियों जैसी नहीं हूं जो आपकी बातों के जाल में फंस जाऊंगी और आपके लिए अपना सब कुछ लुटा दूंगी। ख़बरदार मेरे बारे में ऐसा सोचना भी मत। अब चले जाइए यहाँ से, मैं दादा ठाकुर के बेटे की सूरत भी नहीं देखना चाहती।"
"तुम्हें मेरा जितना अपमान करना हो कर लो अनुराधा।" मैं सच में उसकी बातों से खुद को बुरा महसूस करने लगा था, इस लिए थोड़ा दुखी भाव से बोला____"अगर तुम्हें मेरा इस तरह से अपमान करने में ही ख़ुशी मिलती है तो यही सही किन्तु एक बात मेरी भी सुन लो। मैं चार महीने पहले तक यकीनन बहुत बुरा था और गांव की हर लड़की या औरत को अपने नीचे लेटाने की ही सोचता था मगर अपने पिता द्वारा गांव से निष्कासित किये जाने पर जब से यहाँ आया हूं तब से मैं वैसा नहीं रहा। मुरारी काका से मुलाक़ात हुई और उनके साथ जब इस घर में आया तो तुम्हे देखा। शुरुआत में तुम्हें देख कर मेरे मन में यही आया था कि तुम्हें भी बांकी लड़कियों की तरह एक दिन अपने जाल में फसाऊंगा मगर मैं ऐसा नहीं कर सका। जानती हो क्यों? क्योंकि जब भी तुम्हें देख कर तुम्हें अपने जाल में फसाने की सोचता था तो मेरी आत्मा मुझे धिक्कारने लगती थी और कहती थी कि और कितनी मासूम कलियों को मसल कर उन्हें बर्बाद करोगे ठाकुर वैभव सिंह? अपनी आत्मा की इस आवाज़ पर हर बार मेरे इरादे ख़ाक में मिल जाते थे। उसके बाद तो फिर मैंने इस बारे में सोचना ही बंद कर दिया। तुम खुद ही मुझे बताओ कि क्या मैंने कभी तुम पर ग़लत नज़र डाली है? मैंने तो हमेशा ही अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना किया था मगर तुमसे रूबरू होने के बाद मैं खुद नहीं जानता कि क्यों मैंने अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना नहीं किया?"
इतना सब कहने के बाद मैं चुप हो गया और अनुराधा की तरफ देखने लगा। अनुराधा के चेहरे के भाव फिर से मुझे बदलते दिख रहे थे। ये सच था कि मैंने ये सब कह कर कोई डींगे नहीं मारी थी बल्कि अपने अंदर का सच ही कहा था और अब मैं एक सुकून सा महसूस कर रहा था। हलांकि इस बात से मैं अभी भी चिंतित था कि अनुराधा मुझे अपने बाप का हत्यारा समझती है जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
"इन सब बातों के बाद भी अगर तुम मुझे ग़लत ही समझती हो तो कोई बात नहीं।" अनुराधा जब कुछ न बोली तो मैंने कहा____"तुम नहीं चाहती तो आज के बाद कभी तुम्हें अपनी सूरत नहीं दिखाऊंगा मगर मैं भी तब तक चैन से नहीं बैठूंगा जब तक मुरारी काका के असल हत्यारे का पता नहीं लगा लेता। जिस दिन मैंने असल हत्यारे को पकड़ लिया उसी दिन उस हत्यारे को ले कर तुम्हारे सामने आऊंगा और ये ठाकुर वैभव सिंह का वादा है तुमसे। चलता हूं अब।"
"रूक जाइए।" कहने के बाद मैं पलटा ही था कि पीछे से अनुराधा की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, जिसे सुन कर मैं ठिठक गया। मुझे रुक गया देख उसने इस बार थोड़े नरम लहजे में कहा____"समय बहुत ख़राब चल रहा है छोटे ठाकुर इस लिए अपना ख़याल रखिएगा।"
अनुराधा की ये बात सुन कर मैं मन ही मन बुरी तरह चौंका और पलट कर हैरानी से उसकी तरफ देखा। मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि अनुराधा ऐसा कहेगी। दूसरी चौंकाने वाली बात ये थी कि उसने समय के ख़राब होने की बात क्यों कही थी मुझसे और मुझे अपना ख़याल रखने के लिए क्यों कहा था उसने?
"ये क्या कह रही हो तुम?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए कहा____"समय ख़राब चल रहा है का क्या मतलब है और ये क्यों कहा कि मैं अपना ख़याल रखूं?"
"मैं जानती हूं कि आपने मेरे बाबू की हत्या नहीं की है।" अनुराधा ने सपाट लहजे में कहा____"मैंने तो बस ऐसे ही कहा था मगर इसका मतलब ये नहीं है कि मैंने आपको माफ़ कर दिया है। आपने जो घिनौना काम किया है उसके लिए मैं आपको कभी माफ़ नहीं कर सकती। अब रही बात इसकी कि मैंने समय ख़राब चलने की बात और आपको अपना ख़याल रखने की बात क्यों कही तो इसका जवाब ये है कि जो लोग मुसीबत मोल ले कर अकेले ही रास्तों पर चलते हैं उनके लिए ये ज़रूरी ही होता है कि वो अपना ख़याल रखें।"
"मैं कुछ समझा नहीं।" मैंने उलझ गए भाव से कहा____"आख़िर तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"
"इतने नासमझ तो नहीं लगते छोटे ठाकुर जो मेरी इतनी सी बात का मतलब भी ना समझ पाएं।" अनुराधा ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा____"अब जाइए यहाँ से। जगन काका दिन में कई बार यहाँ आ कर हमारा हाल चाल देखते हैं। अगर उन्होंने आपको यहाँ देख लिया तो आपका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन वो मेरे बारे में ग़लत ज़रूर सोच बैठेंगे और मैं नहीं चाहती कि पिता सामान मेरे काका मुझे शक की नज़रों से देखने लगें।"
अनुराधा की बातें सुन कर मैं कुछ देर उसके मासूम से चेहरे की तरफ देखता रहा। वो खुद भी मुझे ही देख रही थी। ये अलग बात है कि जल्दी ही उसने अपनी नज़रों को मुझ पर से हटा लिया था। उसके बाद मैं पलटा और घर से बाहर निकल गया। अपने मन में कई तरह के सवाल लिए मैंने बुलेट को स्टार्ट किया और मुरारी काका के गांव की तरफ चल दिया। इस बार मैं मुख्य सड़क से अपने गांव की तरफ जाना चाहता था।
मुरारी काका के गांव से होते हुए मैं मुख्य सड़क पर आ गया था और मेरी बुलेट कच्ची सड़क पर पीछे की तरफ धूल उड़ाते हुए जैसे उड़ी चली जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ खेत थे जिनमे गेहू की पकी हुई फसल खड़ी थी और कुछ दूरी पर कुछ किसान लोग फसल की कटाई में भी लगे हुए थे। मैं अनुराधा की बातें सोचते हुए बुलेट चला रहा था कि तभी सामने कुछ दूर सड़क पर मुझे एक जीप खड़ी हुई दिखी और उस जीप के पास कई सारे लोग भी खड़े हुए दिखे। दूर से ही मैंने उस जीप को पहचान लिया। जीप हमारी ही थी किन्तु मैं ये सोचने लगा कि दोनों गांवों के बीच इस जगह पर हमारी जीप क्यों खड़ी थी? थोड़ा और पास गया तो जीप के ही पास खड़े लोगों के चेहरे साफ़ दिखे तो मैं उन चेहरों को भी पहचान गया।
जीप के पास बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ खड़े थे और उन तीनों के सामने चार दूसरे लड़के खड़े थे। मैं उन चारों लड़कों को पहचान गया। वो चारों साहूकारों के लड़के थे। मैं समझ गया कि मेरे भाइयों के बीच साहूकारों के लड़कों की कोई बात चीत हो रही है। तभी उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी। मैं अब उनके काफी पास आ गया था। मेरी बुलेट जैसे ही उनके पास आ कर रुकी तो उन चारों लड़कों के चेहरे के भाव बदल गए और इधर बड़े भैया और विभोर अजीत के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभर आए।
"क्या हो रहा है यहाँ?" मैंने बुलेट में बैठे बैठे ही शख़्त भाव से उन चारों की तरफ देखते हुए कहा तो वो चारों तो कुछ न बोले किन्तु बड़े भैया बोल पड़े____"तुम्हारी ज़रूरत नहीं है यहां। हम सम्हाल लेंगे इन्हें।"
"क्या इन लोगों ने आपका रास्ता रोका है?" मैंने इस बार थोड़ा और शख़्त भाव से कहा तो बड़े भैया ने इस बार गुस्से में कहा____"मैंने कहा न कि तुम्हारी ज़रूरत नहीं है, हम सम्हाल लेंगे। तुम जाओ यहाँ से।"
"लगता है गांव से निकाले जाने के बाद चार महीना जंगल में रह कर भी छोटे ठाकुर की गर्मी नहीं उत्तरी है।" साहूकारों के उन चारों लड़कों में से एक ने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"किसी ने सच ही कहा है कि रस्सी जल गई पर बल नहीं गया।"
उसकी ये बात सुन कर बाकी के तीनों हंसने लगे तो मेरी झांठें सुलग गईं। मेरा चेहरा पलक झपकते ही गुस्से में तमतमा गया। मैं एक झटके से मोटर साइकिल से नीचे उतरा और बिजली की सी तेज़ी से आगे बढ़ कर मैंने एक मुक्का उस बोलने वाले लड़के के चेहरे पर जड़ दिया जिससे वो दूसरे वाले से टकराया तो दूसरा भी भरभरा कर तीसरे वाले से जा टकराया। इधर मेरे ऐसा करने पर बड़े भैया गुस्से में मुझे रुक जाने को बोले तो मैंने क़हर भरी नज़रों से उनकी तरफ देखा। मुझे गुस्से से अपनी तरफ देखता देख वो एकदम से चुप हो गए और उनके बगल से खड़े विभोर और अजीत सहम गए।
बड़े भैया को गुस्से से देखने के बाद अभी मैं वापस पलटा ही था कि उनमे से एक ने मुझे ज़ोर का धक्का मारा जिससे मैं पीछे फिसलते हुए बुलेट से जा टकराया। उनके द्वारा धक्का दिए जाने से मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। इससे पहले कि उनमे से कोई मुझ पर हमला करता मैंने एक को अपने पास देखा तो ज़ोर से एक लात उसके पेट में लगा दी जिससे वो दर्द से चीखते हुए पीछे की तरफ फिसलता चला गया। मुझे सम्हलने का मौका मिल चुका था इस लिए जैसे ही दूसरे ने मुझे मारने के लिए अपना एक हाथ चलाया तो मैंने गर्दन को दाएं तरफ कर के उसका वो हाथ पकड़ लिया और इससे पहले कि वो कुछ कर पाता मैंने तेज़ी से उसकी तरफ अपनी पीठ की और उसके उस हाथ को अपने दाएं कंधे पर रख कर नीचे की तरफ ज़ोर का झटका दिया। वातावरण में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही दर्दनाक चीख भी गूँज उठी। मैंने उसका हाथ तोड़ दिया था। वो अपना हाथ दूसरे हाथ से पकड़े बुरी तरह दर्द से तड़पने लगा था। उसका ये हाल देख कर बाकी तीनों सकते में आ गए।
"वैभव ये तुमने क्या कर दिया?" पीछे से बड़े भैया की गुस्से में डूबी ये आवाज़ गूँजी तो मैंने पलट उनकी तरफ देखा और कहा____"अब आप जा सकते हैं यहाँ से। अगर आपको मेरी ज़रूरत नहीं थी तो मुझे भी किसी की ज़रूरत नहीं है। इन हिजड़ों के लिए वैभव सिंह अकेला ही काफी है।"
"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि तुमने क्या किया है?" बड़े भैया ने गुस्से में कहा____"तुमने गुस्से में मानिक का हाथ तोड़ दिया है और इसके लिए इसका बाप पंचायत बुला कर तुम्हें सज़ा भी दिलवा सकता है।"
बड़े भैया की बात का अभी मैं जवाब देने ही वाला था कि तभी मेरी नज़र दाएं तरफ पड़ी। उनमे से एक लकड़ी का मोटा सा डंडा लिए मेरी तरफ तेज़ी से बढ़ा था। लकड़ी का वो डंडा जाने कहां से उसके हाथ में आ गया था। शायद सड़क के किनारे खेत पर ही कहीं पड़ा हुआ दिखा होगा उसे। ख़ैर जैसे ही उसने उस लकड़ी के डंडे को घुमा कर मेरी तरफ उसका प्रहार किया तो मैं जल्दी से झुक गया जिससे उसका वॉर मेरे सिर के ऊपर से निकल गया। प्रहार इतना तेज़ था कि वो खुद भी उसके ज़ोर पर तिरछा हो गया था और इससे पहले कि वो सीधा होता मैंने उछल कर एक लात उसकी पीठ पर मारी जिससे वो भरभरा कर ज़मीन पर जा गिरा। लकड़ी का डंडा उसके हाथ से छूट गया था जिसे मैंने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर उठा लिया। अब मेरे हाथ में लकड़ी का वो मोटा सा डंडा था और आँखों में भयंकर गुस्से की आग।
"रूक जाओ अब, बहुत हो गया।" मुझे डंडा ले कर उनमे से एक की तरफ बढ़ते देख पीछे से बड़े भैया ज़ोर से चिल्लाए____"अब अगर तुमने किसी को मारा तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा।"
"इतनी भी कायरता मत दिखाइए बड़े भइया।" मैंने पलट कर शख़्त भाव से कहा____"कि आपके ठाकुर होने पर ही सवाल खड़ा हो जाए।"
"अपनी जुबान को लगाम दो वैभव।" बड़े भैया ने गुस्से से हुंकारते हुए कहा____"ठाकुर का मतलब ये नहीं होता कि बेवजह किसी का हाथ ही तोड़ दिया जाए।"
"तो आपकी नज़र में मैंने बेवजह ही इस हरामज़ादे मानिक का हाथ तोड़ा है?" मैंने गुस्से से हांफते हुए कहा____"वाह भैया वाह! आपको ये नहीं सुनाई दिया कि इसने आपके छोटे भाई को क्या कहा था, उल्टा आप इन लोगों की ही पैरवी करने लगे?"
"उसने जो कहा उसके लिए तुम्हें उसका हाथ तोड़ने की क्या ज़रूरत थी?" बड़े भैया ने शख़्त भाव से कहा____"दूसरे तरीके से भी तो उसे जवाब दे सकते थे तुम?"
"ठाकुर वैभव सिंह को सिर्फ एक ही तरीका आता है बड़े भइया।" मैंने उनकी आँखों में देखते हुए कहा____"और वो ये कि औकात से बाहर वाले अगर अपनी औकात दिखाएं तो उन्हें उसी वक्त उनकी औकात अपने तरीके से दिखा दो। ये हरामज़ादा साला अपनी औकात भूल गया था इस लिए इसे इसकी औकात दिलाना ज़रूरी हो गया था।"
"औकात तो अब मैं तुझे दिखाऊंगा वैभव सिंह।" पीछे से मानिक की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मेरा गुस्सा फिर से आसमान छूने लगा और मैं डंडा लिए उसकी तरफ तेज़ी से बढ़ा और इससे पहले कि बड़े भैया मुझे रोक पाते मैंने घुमा कर डंडे का वार उसकी टांग पर किया तो वो हलाल होते बकरे की तरह चिल्लाया।
"तेरी माँ को चोदूं मादरचोद।" डंडा मारने के बाद मैंने गुस्से से कहा____"तू मेरी औकात दिखायेगा मुझे? अपने बाप हरिशंकर से जा कर मेरी औकात पूछ, जो मुझे देखते ही अपना सिर झुका कर मुझे सलाम करने लगता है। साले रंडी की औलाद तू मुझे औकात दिखाएगा? चल उठ बेटीचोद, मैं तुझे तेरे ही घर में तेरी औकात दिखाऊंगा। फिर तू भी देखेगा कि तेरा बाप और तेरा पूरा खानदान कैसे मेरे तलवे चाटने लगेगा। उठ मादरचोद वरना जान से मार दूंगा।"
मैंने एक लात उसके पेट में मारी तो वो फिर से दर्द में बिलबिलाया। उसके साथ आए उसके भाई और चाचा के लड़के सहमे से खड़े हुए थे। उनमे अब हिम्मत ही नहीं थी कि वो मेरा प्रतिकार कर सकें। तभी पीछे से मुझे जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने पलट कर देखा तो बड़े भैया विभोर और अजीत के साथ जीप में बैठ कर गांव की तरफ चल पड़े थे। मुझे उनके इस तरह चले जाने से घंटा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था।
"उठ ना मादरचोद।" मानिक जब न उठा तो मैंने गुस्से में एक लात और उसके पेट में जमा दी____"चल मैं तुझे तेरे ही घर में तेरे ही घर वालों के सामने तेरी औकात दिखाता हूं। तू अपनी आँखों से देखेगा कि जब मैं तुझे तेरी औकात दिखाऊंगा तब तेरे घर वाले कैसे तेरे लिए मुझसे रहम की भीख माँगेंगे।"
"इसे माफ़ कर दीजिये छोटे ठाकुर।"मानिक के चाचा के लड़के ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा____"अब से हम में से कोई भी आपसे बददमीची से बात नहीं करेगा। भगवान के लिए इसे छोड़ दीजिए।"
"तू इसे अभी के अभी उठा और घर ले चल।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"आज मैं इसे इसके ही घर में इसकी औकात दिखाऊंगा। क्यों रे मादरचोद अब बोलता क्यों नहीं तू? बोल वरना यही डंडा तेरी गांड में डाल दूंगा।"
"मुझे माफ़ कर दो छोटे ठाकुर।" मैंने इस बार जब ज़ोर से उसके पिछवाड़े पर डंडा मारा तो वो दर्द से कराहते हुए बोल पड़ा था____"अब से ऐसी ग़लती नहीं होगी।"
"क्यों इतनी जल्दी अपनी औकात पहचान गया तू?" मैंने उसके सीने में अपना एक पैर रख कर उस पर दबाव बढ़ाते हुए कहा_____"चल अब बता मेरे भाइयों को बीच सड़क पर क्यों रोक रखा था तूने?"
"हम तो बस उनसे उनका हाल चाल ही पूछ रहे थे।" मानिक ने दर्द से कराहते हुए कहा____"वो क्या है न कि आज होलिका दहन है और फिर कल रंगों की होली भी है। उसी के बारे में चर्चा भी कर रहे थे।"
"आज से पहले तो कभी ऐसे त्योहारों के लिए तुम लोगों ने हमसे चर्चा नहीं की थी।" मैंने उसे घूरते हुए कहा____"फिर आज ये चर्चा क्यों? सच सच बता वरना ये डंडा देख रहा है न? इसे तेरी गांड में घुसाने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगाऊंगा मैं।"
"मैं सच ही कह रहा हूं छोटे ठाकुर।" मानिक ने हकलाते हुए कहा___"हम इसी बारे में चर्चा कर रहे थे। ये सच है कि आज से पहले कभी हमारा खानदान ठाकुर खानदान के साथ ऐसे त्योहारों पर एक साथ नहीं रहा लेकिन इस बार अगर हम एक साथ रहें तो इसमें ग़लत ही क्या है? हमारे घर के बड़े बुजुर्ग भी इस बारे में चर्चा कर रहे थे कि ठाकुरों से हमें अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए और मिल जुल कर हर त्यौहार में साथ ही रहना चाहिए।"
"कमाल है।" मैंने ब्यंग से मुस्कुराते हुए कहा____"साहूकारों को इतनी अकल कहां से आ गई और ये भी कि वो ये कैसे सोचने लगे कि उन्हें हमसे अपने रिश्ते सुधार लेने चाहिए? तू साले मुझे चूतिया समझता है क्या जो मैं तेरी इस बात पर यकीन कर लूंगा?"
"सच यही है छोटे ठाकुर।" मानिक ने कराहते हुए कहा____"मैं जानता हूं कि आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं हो सकता इस लिए अगर आप चाहें तो मेरे घर जा कर खुद इस बात की तस्दीक कर सकते हैं?"
"वो तो मैं करुंगा ही।" मैंने उसके सीने से अपना पैर खींच कर वापस ज़मीन पर रखते हुए कहा____"और अगर मुझे पता चला कि तेरी ये बातें सिरे से ही झूंठी हैं तो सोच लेना इस गांव से साहूकारों का नामो निशान मिटा दूंगा मैं।"
"बिल्कुल छोटे ठाकुर।" मानिक ने दर्द को सहते हुए कहा____"वैसे इस बारे में मेरे पिता जी ने दादा ठाकुर जी से भी बात की थी। आप चाहें तो दादा ठाकुर जी से खुद भी इस बारे में पूछ सकते हैं।"
मानिक की इस बात से मैं सोच में पड़ गया था। मुझे ज़रा भी यकीन नहीं हो रहा था कि गांव के साहूकार लोग हम ठाकुरों से अपने सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं। जब से मैंने होश सम्हाला था तब से मैं यही देखता आया था कि शाहूकार हमेशा से ही हमारे खिलाफ़ रहे हैं। हलांकि मुझे इसकी मूल वजह का पता नहीं था और ना ही मैंने कभी जानने की कोशिश की थी। ख़ैर, मज़ेदार बात ये थी कि मेरे लंड ने साहूकारों के घर में भी अपने झंडे गाड़े थे। मानिक के ताऊ की दूसरे नंबर वाली लड़की को मैं कई बार पेल चुका था।
मैने मानिकचंद्र को छोड़ दिया था और उसे ये हिदायत भी दी कि अब अगर उसने अपनी औकात दिखाई तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा और साथ ही ये भी कहा कि मैं इस सच्चाई का पता खुद लगाऊंगा और अगर ये सच न हुआ तो इसके अंजाम के बारे में भी वो सोच लेगा।
बुलेट स्टार्ट कर के मैं गांव की तरफ चल पड़ा। मेरे ज़हन में अभी भी मानिक की बातें गूँज रही थी और मन में कई तरह के सवाल उभर रहे थे। अगर मानिकचंद्र की बात सच थी तो यकीनन उसके बाप ने पिता जी से इस बारे में बात की होगी। अब सवाल ये था कि क्या मुझे पिता जी से इस बारे में पूछना चाहिए? एक तरफ तो मैं हवेली के काम काज में कोई दिलचस्पी नहीं रखता था जबकि दूसरी तरफ ये जानना भी मैं ज़रूरी समझ रहा था। हलांकि सवाल तो ये भी था कि मैं भला इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी समझता था? मुझे तो इससे कोई मतलब नहीं था फिर इस बारे में जानना क्यों ज़रूरी था मेरे लिए? क्या इस लिए कि मैं ये समझता था कि इस सबका का सम्बन्ध भी कहीं न कहीं मुरारी की हत्या और मेरी फसल में आग लगने से था?
मेरे ज़हन में पिता जी की बातें गूँज उठी। जिसमे वो कह रहे थे कि कुछ लोग हमारे खिलाफ़ कुछ ऐसा करने की फ़िराक में हैं जिससे हमारा वर्चस्व ही ख़त्म हो जाए। अब सवाल ये था कि ऐसे लोग क्या ये शाहूकार ही थे? गांव के साहूकारों ने अचानक ही हमसे अपने सम्बन्ध सुधारने के बारे में क्यों सोचा और सोचा ही नहीं बल्कि इसके लिए वो दादा ठाकुर से बात भी कर चुके हैं? मेरे ज़हन में सवाल उभरा कि क्या ये किसी तरह की कोई साज़िश है जिसके तार जाने कहां कहां जुड़े हुए प्रतीत हो रहे हैं?
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तीसरा भाग
वैभव तो सच में बहुत कमीना इंसान निकला। मुरारी के इतने स्नेह और स्वामिभक्ति के बावजूद भी वो अब अनुराधा के पीछे पड़ा है उसे भोगना चाहता है। और अनुराधा की बात का जवाब न देकर नजर चुराकर भाग जाना अनुराधा की बात को पुख्ता करता है कि उसका शक सही है वैभव पर।
वैभव ने मुरारी के साथ बहुत गलत किया। आखिर बुरे वक्त में एक वही थी जिसने वैभव की मदद की लेकिन वैभव ने मुरारी से अभद्रता की उसका गला तक दबा दिया, वैसे मुरारी ने कोई गलत बात तो नहीं कही थी। भले ही वैभव के माँ बाप ने उसके साथ गलत किया। ऐसा वैभव को लगता है, लेकिन फिर भी वो माँ बाप हैं उनके बारे में अपशब्द कहना बिल्कुल भी न्यायोचित नहीं हैं।
आज वैभव ने भी देसी का मज़ा ले ही लिया और अब तो मुरारी से दोस्ती भी कर ली, देखते हैं ये दोस्ती आगे चलकर क्या गुल खिलाती है।।
बहुत बढ़िया सर जी।