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Mkapil bhai kis baat ki jaldi thi ki aapne update ko quote to kiya lekin bina kuch likhe hi post kar diya. Kripaya is bare me apne kuch vichaar yaha par byakt kar denge to mujh par meharbaani hogi,,,
☆ प्यार का सबूत ☆ अध्याय - 20 ----------☆☆☆----------
अब तक,,,,,, "सच भले ही यही हो अनुराधा।" मैंने अनुराधा की गहरी आँखों में देखते हुए कहा____"लेकिन इस सच को साबित करने के लिए न हमारे पास कोई ठोस प्रमाण है और ना ही शायद पुलिस के दरोगा के पास हो सकता है। पिता जी को भी शायद ये बात पता रही होगी। शक की बिना पर दरोगा भले ही मुझे पकड़ कर ले जाता मगर जब मैं हत्यारा साबित ही नहीं होता तो उसे मुझे छोड़ना ही पड़ता। मैं भले ही साफ़ बच कर थाने से आ जाता किन्तु इस सबके चलते मेरे माथे पर ये दाग़ तो लग ही जाता कि ठाकुर खानदान के एक सदस्य को पुलिस का दरोगा पकड़ कर ले गया था और उसे जेल में भी बंद कर दिया था। दादा ठाकुर यही दाग़ मेरे माथे पर शायद नहीं लगने देना चाहते थे और इसी लिए उन्होंने दरोगा को यहाँ आने से मना कर दिया होगा। हलांकि उन्होंने दरोगा को गुप्त रूप से काका के हत्यारे का पता लगाने के लिए भी कहा था। पता नहीं अब तक उसने हत्यारे का पता लगाया भी होगा या नहीं।"
अभी मैंने ये सब कहा ही था कि तभी पीछे की तरफ जाने वाले दरवाज़े पर दस्तक हुई। दस्तक सुन कर अनुराधा चौंकी और उसने मेरी तरफ देखा। दोपहर हो चुकी थी और आसमान से सूरज की चिलचिलाती हुई धूप बरस रही थी। दरवाज़े के उस पार शायद अनुराधा की माँ थी। अनुराधा बेचैनी से मेरी तरफ देख रही थी। शायद उसे इस बात की चिंता होने लगी थी कि अगर दरवाज़े पर उसकी माँ ही है तो उसने अगर यहाँ पर अपनी बेटी को मेरे साथ अकेले देख लिया तो वो क्या सोचेगी?
अब आगे,,,,,
"छोटे ठाकुर मेरी आपसे एक विनती है।" अनुराधा ने मेरे पास आ कर धीमे स्वर में कहा____"और वो ये कि आप माँ से ये मत कहिएगा कि मुझे आप दोनों के सम्बन्धों के बारे में पता चल गया है। वो क्या है कि मैं नहीं चाहती कि ये बात जान कर माँ मेरे सामने शर्मिंदा महसूस करे और वो मुझसे नज़रें चुराने लगे।"
"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा_____"मैं तो वैसे भी काकी से इस बारे में कोई बात नहीं करने वाला था बल्कि मैं तो अब काकी से ऐसा सम्बन्ध ही नहीं रखूंगा।"
अनुराधा मेरी बात सुन कर कुछ देर तक मुझे देखती रही और फिर जब पीछे दरवाज़े को फिर से खटखटाया गया तो हड़बड़ा कर उसने जा कर दरवाज़ा खोल दिया। दरवाज़ा खुला तो सरोज काकी अंदर आ गई। मुझ पर नज़र पड़ते ही पहले तो वो चौंकी फिर अनुराधा की तरफ देखते हुए बोली____"छोटे ठाकुर कब आए और तूने इन्हें ऐसे ही खड़ा कर रखा है धूप में?"
"मैं बस अभी कुछ देर पहले ही आया हूं काकी।" अनुराधा को हड़बड़ाते देख मैंने काकी से कहा____"अनुराधा से तुम्हारे ही बारे में पूछ रहा था कि तुम आ गई।" "इस चिलचिलाती धूप में तुम यहाँ तक आए बेटा।" सरोज काकी ने हाथ में ली हुई हंसिया को एक कोने में रखते हुए कहा____"अनु बरामदे में खटिया बिछा दे छोटे ठाकुर के बैठने के लिए।"
सरोज काकी की बात सुन कर अनुराधा सिर हिला कर अंदर की तरफ गई और वहां रखी एक खटिया को बरामदे के नीचे ही बिछा दिया। खटिया बिछाने के बाद अनुराधा ने मेरी तरफ देखा तो मैं चल कर बरामदे में गया और खटिया पर बैठ गया।
"अभी कितना रह गया है काकी काटने को?" मैंने बरामदे से आवाज़ लगाते हुए काकी से पूछा____"अगर ज़्यादा हो तो बोलो मैं गांव से कुछ मजदूरों को भेज दूंगा। वो एक ही दिन में सारी फसल काट देंगे। क्यों इतनी धूप में तपती रहती हो खेत में? बीमार पड़ जाओगी ऐसे में।"
"अभी तो दो खेत पड़े हैं बेटा।" सरोज काकी ने अपनी साड़ी से अपने चेहरे का पसीना पोंछते हुए कहा____"जगन ने कहा है कि जैसे ही उसके खेत की फसल कट जाएगी तो वो मेरी भी फसल कटवा देगा। वैसे तो अनुराधा सुबह जाती है मेरे साथ। उसके बाद मैं उसे खाना बनाने के लिए भेज देती हूं। असल में ये धूप में जल्दी ही बीमार पड़ जाती है। इसके बाबू रहते थे तो इतनी परेशानी नहीं होती थी।"
"तुम चिंता मत करो काकी।" मैंने कहा____"मैं कल सुबह ही दो लोगों को तुम्हारी फसल काटने के लिए ले आऊंगा और हां तुम मुझे इसके लिए मना नहीं करोगी। मुरारी काका के बहुत एहसान हैं मुझ पर इस लिए मैं भी उनके लिए कुछ करना चाहता हूं। तुम्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो तुम मुझसे बेझिझक बोल सकती हो।"
"तुमने इतना कह दिया यही बहुत है बेटा।" सरोज काकी ने कहा____"मैं अपने देवर जगन के रहते अगर किसी से मदद मागूंगी तो वो नाराज़ हो जाएग। वैसे भी उसके मन में तुम्हारे प्रति अच्छी भावना नहीं है।"
"मैं जगन काका को अपने तरीके से समझा दूंगा काकी।" मैंने कहा____"मुरारी काका की तरह मैं उन्हें भी मानता हूं। इस लिए अगर वो मुझे कुछ कहेंगे भी तो मैं उन्हें कोई जवाब नहीं दूंगा।"
"तुम बैठो बेटा मैं दो बाल्टी पानी में नहा कर आती हूं जल्दी।" सरोज काकी ने कहने के साथ ही अनुराधा की तरफ देखा____"छोटे ठाकुर भी भूखे होंगे इस लिए इनके लिए खाना लगा दे थाली में। कुछ शिष्टाचार सीख, ये नहीं कि घर आए मेहमान से पानी तक के लिए भी न पूछे।"
"मैंने कोई मेहमान नहीं हूं काकी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं तो इस घर को भी अपना ही घर समझता हूं और तुम अनुराधा पर गुस्सा क्यों कर रही हो। मैं जब आया था तब इसने मुझसे पानी के लिए पूछा भी था और पानी भी पिलाया था।"
"शुकर है।" काकी ने सरोज की तरफ देखते हुए कहा____"इतनी तो अकल आ गई थी इसे। ख़ैर तुम बैठो बेटा। मैं जल्दी से नहा कर आती हूं।"
सरोज काकी बाल्टी और रस्सी ले कर दरवाज़े से निकल गई। उसके जाने के बाद मैंने अनुराधा की तरफ देखा तो वो एकदम से हड़बड़ा गई। उसके इस तरह हड़बड़ा जाने पर मैं मन ही मन ये सोच कर हँसा कि ये तो एकदम से छुई मुई की तरह है।
"आपने माँ से झूठ क्यों बोला?" फिर उसने धीमे स्वर में नज़र झुका के कहा____"कि मैंने आपसे पानी के लिए पूछा था और पानी भी पिलाया था आपको?"
"अगर ऐसा नहीं बोलता तो काकी तुम्हें और भी न जाने क्या क्या सुनाने लगती।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और मैं भला ये कैसे चाह सकता था कि मेरी वजह से काकी तुम्हें कुछ कहे?"
"आप बैठिए मैं आपके लिए पानी ले कर आती हूं।" अनुराधा अपनी मुस्कान को जबरन दबाते हुए बोली और तेज़ी से बरामदे के दूसरे छोर पर रखे मटके की तरफ बढ़ गई। मुरारी काका के देहांत के बाद आज मैंने पहली बार अनुराधा के होठों पर मुस्कान को देखा था। उसके मुस्कुराते ही उसके दोनों गालों पर गड्ढे पड़ गए थे। पता नहीं उसमे ऐसी क्या बात थी कि मैं उसकी तरफ आकर्षित होने लगता था। हलांकि वो गांव की एक आम सी ही लड़की थी। रंग रूप बस हल्का सा ही साँवला था किन्तु सावले रंग में भी उसकी छवि ऐसी थी जो सीधा दिल पर उतर जाती थी। थोड़ी ही देर में वो लोटा और गिलास में पानी ले कर आई और मेरी तरफ गिलास को बढ़ा दिया। वो मेरे एकदम पास ही आ कर खड़ी हो गई थी और मेरी तरफ गिलास बढ़ा दिया था। इतने पास से जब मैंने उसके चेहरे को देखा तो मुझे उसके चेहरे पर हल्की सी लाली छाई हुई नज़र आई। वो लाली उसके शर्म की थी। मुझे अपनी तरफ एकटक देखता देख उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे झलकती हुई नज़र आईं और उसके होठ थरथराते हुए दिखे।
मैंने उसके हाथ से गिलास पकड़ लिया तो वो दो क़दम पीछे हट गई। जैसे उसे डर हो कि अगर वो मेरे इतने क़रीब रहेगी तो उसे मैं खा जाऊंगा।
"वाह! कितना मस्त पानी है ये।" मैंने पानी से भरा पूरा गिलास खाली करने के बाद कहा____"ठंडा ठंडा पानी पेट में गया तो जैसे धधकता हुआ शोला एकदम से शांत हो गया।"
"जी वो घड़े का पानी ऐसे ही ठंडा रहता है।" अनुराधा ने कहा____"आपकी हवेली में तो माटी के ऐसे घड़े नहीं रखते होंगे न?" "अरे! ऐसी बात नहीं है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"हवेली में भी माटी के घड़े होते हैं और सब उसका पानी भी पीते हैं। तुमने ऐसा क्यों कहा कि ऐसे घड़े हवेली में नहीं रखते होंगे?"
"जी वो मुझे लगा कि।" अनुराधा ने हड़बड़ाते हुए कहा___"आप बहुत बड़े लोग हैं इस लिए अपनी हवेली में ऐसे माटी के घड़े नहीं रखते होंगे।" "अगर सच में नहीं रखते।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"तो यकीन मानो मैं यही कहता कि हमारे बड़े होने का क्या फायदा जब हम इतना ठंडा और शीतल जल पी ही नहीं सकते। उस हिसाब से तुम हमसे ज़्यादा बड़ी कहलाती।"
"अच्छा अब आप बैठिए।" अनुराधा ने मुझसे खाली गिलास ले कर कहा____"मैं थाली में खाना लगा देती हूं। अगर माँ ने मुझे आपसे बातें करते हुए देख लिया तो गुस्सा हो जाएगी।"
"तो मैं कह दूंगा काकी से कि मैंने ही तुम्हें बातों में उलझा रखा था।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर उन्हें गुस्सा होना है तो वो सिर्फ तुम पर ही नहीं बल्कि मुझ पर भी हों।"
मेरी ये बात सुन कर अनुराधा के होठों पर फिर से मुस्कान उभर आई किन्तु वो बोली कुछ नहीं बल्कि रसोई की तरफ बढ़ गई। अनुराधा से बात कर के मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था और मेरा दिल कर रहा था कि मैं उससे पहरों बातें ही करता रहूं। शायद वो मेरे दिलो दिमाग़ में रफ़्ता रफ़्ता उतरती जा रही थी।
सरोज काकी नहा कर आई और फिर उसने कमरे में जा कर अपने कपड़े बदले। अनुराधा ने मेरे बैठने के लिए ज़मीन पर एक चादर बिछा दी थी और उसके सामने लकड़ी के पटे के साथ साथ लोटा और गिलास में पानी भी रख दिया था। काकी कमरे से बाहर आई और उसने मुझे खाना खाने के लिए बुलाया तो मैंने खटिया से उठ कर पहले बाल्टी में रखे पानी से अपने हाथ धोए और फिर जा कर बिछी हुई चादर में बैठ गया।
इस घर में मैं पहले भी न जाने कितनी ही बार खाना खा चुका था और अनुराधा के हाथ का बना हुआ खाना कितना स्वादिष्ट होता था ये मैं अच्छी तरह जानता था। हाथ में पानी लगा कर हाथ से पोई हुई रोटियां और भांटा का भरता मुझे सबसे ज़्यादा अच्छा लगने लगा था। हलांकि इस वक्त भांटा का भरता नहीं बना हुआ था। ख़ैर अनुराधा थाली ले कर आई और मेरे सामने ज़मीन पर रख दिया। थाली में चावल दाल और हाथ की पोई हुई रोटियां थी। थाली के एक कोने में कटी हुई प्याज और हरे मिर्च रखे हुए थे। पहले मैं मिर्ची नहीं खाता था किन्तु इस घर का भोजन करने के बाद धीरे धीरे मिर्ची भी खाने लगा था। मुरारी काका तो मिर्ची खाने के मामले में बहुत आगे थे। मैं अक्सर सोचा करता था कि मुरारी काका इतनी मिर्ची खाते हैं तो जब वो संडास जाते होंगे तब क्या उनकी गांड न जलती होगी?
मुझे सच में भूख लगी थी इस लिए पेट भर के खाना खाया। खाने के बाद अब मुझे अच्छा महसूस हो रहा था। हमेशा की तरह आज भी मैंने काकी से कहा कि अनुराधा बहुत अच्छा खाना बनाती है। मेरी बात सुन कर काकी खुश हो गई और अनुराधा के होठों पर भी मुस्कान उभर आई थी। खाने के बाद मैंने काकी से एक बार फिर कहा कि मैं सुबह गांव से दो लोगों को ले कर आऊंगा इस लिए वो कटाई की चिंता न करें। काकी से विदा ले कर मैं उनके घर से बाहर आ गया।
दोपहर तो गुज़र गई थी मगर अभी भी धूप तेज़ थी और अपने गांव तक पैदल जाना जैसे टेंढ़ी खीर ही था। आज अनुराधा से बात कर के मुझे बहुत अच्छा लगा था और मेरे मन से एक बोझ सा हट गया था। रूपचंद्र ने अनुराधा को मजबूर किया था कि वो मुझसे ऐसी बातें करे। हलांकि वैसी बातों से मेरा कुछ बिगड़ने वाला तो नहीं था किन्तु हां अनुराधा की नज़रों में मैं ज़रूर गिर जाने वाला था, बल्कि ये कहना चाहिए कि गिर ही गया था। आज अगर मुझे ये सब पता न चलता तो मैं आगे भी यही सोच कर दुखी ही रहता कि अनुराधा जैसी एक अच्छी लड़की मेरे हाथ से निकल गई और उसकी नज़र में मेरी कोई इज्ज़त नहीं रही।
आज रंगो का त्यौहार था और मेरे मन में अचानक से ही ये ख़याल आया कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं वापस जा कर अनुराधा को रंग गुलाल लगाऊं, मगर फिर मुझे मुरारी काका का ख़याल आ गया। उन्हें गुज़रे हुए अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ था। हमारे यहाँ मान्यता है कि जब कोई इंसान मर जाता है तो उसके घर में सूदक हो जाता है और फिर नौ दिन बाद घर का शुद्धिकरण होता है। परिवार के हर मर्द और हर लड़के शुद्ध के दिन अपने सिर को मुंडवाते हैं। जब तक शुद्ध नहीं हो जाता तब तक दूसरे लोग उस घर के लोगों को नहीं छूते और ना ही उनके घर का भोजन पानी करते हैं। शुद्ध के बाद तेरहवें दिन मरने वाले की तेरवीं होती है और परिवार वाले अपनी क्षमता अनुसार सबको भोजन कराते हैं और तेरह ब्राम्हणों को दान दक्षिणा देते हैं। मुरारी काका के यहाँ शुद्ध हो चुका था और अगर ना भी हुआ होता तब भी मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि मैं इन सब चीज़ों को मानता ही नहीं था। ख़ैर मुरारी काका का ख़याल आ जाने से मैंने अनुराधा को रंग गुलाल लगाने का विचार त्याग दिया और आगे बढ़ चला।
रास्ते में मैं अनुराधा के बारे में ही सोच रहा था। फिर मुझे रूपचन्द्र का ख़याल आया तो मैं सोचने लगा कि कितना हरामी था साला और जाने कब से मेरा पीछा कर रहा था। शुक्र था कि उसने सरोज काकी से मेरे सम्बन्धों की बात मुरारी काका से नहीं बता दी थी वरना मुरारी काका से मैं नज़रें ही नहीं मिला पाता। ख़ैर आज जो कुछ हुआ था और जो कुछ मैंने देखा सुना था उससे ये तो पता चल गया था कि मेरी फसल में आग लगाने वाला रूपचन्द्र ही था किन्तु उसकी बातों से ये भी पता चला था कि मुरारी काका की हत्या उसने नहीं की थी। उसके अनुसार तो उसे खुद नहीं पता था कि मुरारी काका की हत्या किसने की होगी बल्कि जब उसे ये पता चला था कि जगन काका अपने बड़े भाई की हत्या का आरोप मुझ पर लगा रहा था तो उसे इस बात से ख़ुशी ही हुई थी और उसने इस बात का फायदा उठाते हुए वही किया था जो मेरे दुश्मन को मेरे साथ करना चाहिए था। ख़ैर अब सवाल ये था कि मुरारी काका की हत्या अगर रूपचन्द्र ने नहीं की थी तो किसने की होगी?
मैं एक ऐसा इंसान था जिसका हमेशा साहूकारों के लड़कों के साथ झगड़ा हो जाता था और उस झगड़े में साहूकारों के लड़के मेरे द्वारा पेल दिए जाते थे। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि साहूकारों ने मेरे निष्कासित कर दिए जाने का फायदा उठाया हो? उन्होंने मेरे चरित्र के बारे में सोच कर ही मुरारी की हत्या कर दी हो और मुझे उस हत्या में फंसा दिया हो? ऐसा होने की संभावना बहुत थी लेकिन सिर्फ सम्भावनाओं से कुछ नहीं हो सकता था बल्कि किसी भी चीज़ को साबित करने के लिए ठोस प्रमाण चाहिए था। मुरारी काका एक ऐसा इंसान था जो दारू या शराब भले ही पीता था मगर उसकी किसी से ऐसी दुश्मनी हरगिज़ नहीं थी कि कोई उसकी हत्या ही कर दे।
मेरे ज़हन में कई सारे सवाल थे जिनका जवाब मुझे चाहिए था। एक सवाल तो यही था कि पिछली शाम बगीचे में मिलने वाला वो साया कौन था और उसने दूसरे सायों से मेरी रक्षा क्यों की थी? उसे कैसे पता था कि मैं उस वक़्त बगीचे में था? क्या वो शुरू से ही मुझ पर नज़र रखे हुए था? अगर ऐसा था तो फिर उसने ये भी देखा होगा कि बगीचे में मैंने मुंशी की बहू रजनी के साथ सम्भोग किया था। इस ख़याल के उभरते ही मेरे बदन में एक अजीब सी झुरझुरी दौड़ गई। दूसरा सवाल ये था कि वो दूसरे साये कौन थे और उस वक़्त मुझे मारने क्यों आये थे? क्या वो मेरे जानी दुश्मन थे? पहले वाले साए को यकीनन ये पता था कि कोई मेरी जान का दुश्मन है इसी लिए वो उस वक़्त मेरे सामने आया था। अब सवाल ये है कि अगर उस साए को ये सब पता था तो उसने उन दोनों सायों को पकड़ा क्यों नहीं? उसने उनका पता क्यों नहीं लगाया? हलांकि उसने क्या किया होगा इसके बारे में भी फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता था। ख़ैर ऐसे कई सारे सवाल थे और मैंने सोच लिया था कि अब जब वो साया मुझे दुबारा मिलेगा तो मैं उससे ये सारे सवाल ज़रूर करुंगा और उससे इनके जवाब मागूंगा।
अपने गांव की सरहद पर आया तो देखा सड़क के दोनों तरफ खेतों में मजदूर फसल की कटाई में लगे हुए थे। हलांकि आज रंगो का त्यौहार था और हर कोई रंग खेलने में ही ब्यस्त होगा मगर इन मजदूरों के लिए जैसे कोई त्यौहार था ही नहीं। सड़क के दोनों तरफ हमारे ही खेत थे। मैं खेत की तरफ मुड़ कर एक मजदूर की तरफ बढ़ चला। कुछ ही पलों में जब मैं उस मजदूर के पास पंहुचा तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ी। मुझे पहचानते ही वो एकदम से खड़ा हो गया और फिर झुक कर मुझे सलाम किया।
"आज तो रंगो का त्यौहार है न काका?" मैंने उस मजदूर से कहा____"फिर तुम सब यहाँ खेतों की कटाई क्यों कर रहे हो? जाओ सब लोग और त्यौहार का आनंद लो।" "हम सब लोग तो कल के दिन इस त्यौहार को मनाते हैं छोटे ठाकुर।" उस मजदूर ने कहा____"इसी लिए आज हम सब यहाँ खेतों में फसलों की कटाई कर रहे हैं। हलांकि दादा ठाकुर जी हम सबको आज के दिन छुट्टी दे रहे थे लेकिन जब हम लोगों ने उन्हें बताया कि हम लोग कल के दिन त्यौहार मनाएंगे तो वो बोले ठीक है फिर कल के दिन छुट्टी कर लेना।"
मुझे आया देख आस पास के बाकी मजदूर भी मेरे पास आ गए थे और मुझे झुक कर सलाम कर रहे थे। ख़ैर उस मजदूर की ये बात सुन कर मैंने उससे कहा कि ठीक है अगर ऐसी बात है तो फिर लगे रहो। तभी मेरे मन में सरोज काकी के खेतों की कटाई का ख़याल आया तो मैंने सोचा इन्हीं मजदूरों में से किन्हीं दो आदमियों को बोल देता हूं।
"अच्छा काका ये बताओ कि कल के दिन क्या तुम सब छुट्टी लोगे या कुछ लोग कटाई करने भी आएंगे यहाँ?" मैंने उस मजदूर से ये पूछा तो उसने कहा____"नहीं ऐसा तो नहीं है छोटे ठाकुर। कुछ लोग आज भी मनाते हैं ये त्यौहार इस लिए जो आज मनाते हैं वो आज यहाँ नहीं आये हैं बल्कि वो कल यहाँ आएंगे।"
"ठीक है फिर।" मैंने कहा____"मुझे कल के लिए तुमसे दो आदमी चाहिए काका। वो दो आदमी पास वाले गांव के मुरारी काका के खेत की कटाई करेंगे। तुम सबको तो पता चल ही गया होगा कि कुछ दिनों पहले मुरारी काका की किसी ने हत्या कर दी है। इस लिए ऐसे वक़्त में उनके घर वालों की मदद करना हमारा फ़र्ज़ है। पिछले चार महीने जब मैं निष्कासित किए जाने पर गांव से दूर उस बंज़र जगह पर रह रहा था तो मुरारी काका ने मेरी बहुत मदद की थी। इस लिए ऐसे वक़्त में अगर मैं उनकी और उनके परिवार की मदद न करूं तो बहुत ही ग़लत होगा।"
"आपने सही कहा छोटे ठाकुर।" एक दूसरे मजदूर ने कहा____"हर इंसान को एक दूसरे की मदद करनी ही चाहिए। हमें बहुत अच्छा लगा कि आप मुरारी की मदद करना चाहते हैं।"
"आप चिंता मत कीजिए छोटे ठाकुर।" पहले वाले मजदूर ने कहा____"मैं आज ही घर जा कर अपने दोनों बेटों को बोल दूंगा कि वो मुरारी के खेतों पर जा कर उसकी फसल की कटाई करें।"
"ठीक है काका।" मैंने कहा____"उन दोनों से कहना कि वो दोनों कल सुबह सुबह ही वह पहुंच जाएं। मैंने सरोज काकी को बोल दिया है कि मैं दो लोगों को कल सुबह उनकी फसल की कटाई के लिए भेज दूंगा।"
कुछ देर और इधर उधर की बातें करने के बाद मैं उन सभी मजदूरों से विदा ले कर वहां से चल दिया। अब मैं बेफिक्र था क्योंकि मुरारी काका के खेतों की कटाई के लिए मैंने दो लोगों को भेज देने का इंतजाम कर दिया था। कुछ ही देर में मैं मुंशी के घर के पास पहुंच गया। मैं जानता था कि मुंशी अपने बेटे रघुवीर के साथ इस वक़्त हवेली पर ही होगा। आज के दिन हवेली में बड़ा ही ताम झाम होता था। हवेली में भांग घोटी जाती थी और हर कोई भांग पी कर मस्त हो जाता था। उसके बाद हर कोई रंग गुलाल खेलता था और एक तरफ फाग के गीत होते थे जो निचली जाति वाले छोटी छोटी डिग्गियां बजाते हुए बड़ी ख़ुशी से गाते थे।
मुंशी के घर पहुंच कर मैंने दरवाज़े की कुण्डी को पकड़ कर बजाया तो कुछ ही देर में दरवाज़ा खुल गया। मेरे सामने मुंशी की बहू रजनी खड़ी नज़र आई। उसके चेहरे पर रंग गुलाल लगा हुआ था और कुछ रंग उसके कपड़ों पर भी लगा हुआ था। मैं समझ गया कि गांव का ही उसका कोई देवर यहाँ आया होगा और उसने उसके साथ रंग खेला होगा। मुझे देखते ही रजनी के सुर्ख होठों पर दिलकश मुस्कान उभर आई।
"क्या बात है।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"आज तो रजनी भौजी का चेहरा कुछ ज़्यादा ही लाल लाल हुआ नज़र आ रहा है।" "वो तो नज़र आएगा ही।" रजनी ने बड़ी अदा से कहा____"आज हमारे कई देवर हमें रंग लगाने आये थे।"
"ये तो ग़लत बात है भौजी।" मैं भौजी इस लिए कह रहा था क्योंकि मुझे अंदेशा था कि प्रभा काकी अंदर कहीं पास में ही न हो और वो मेरी बातें सुन ले। ख़ैर मैंने आगे कहा_____"तुम पर तो सबसे पहला हक़ मेरा है। आख़िर मैं तुम्हारा सबसे अच्छा वाला देवर जो हूं और तुमने किसी ऐरे गैरे देवर से रंग लगवा लिया। रुको मैं काकी से शिकायत करता हूं इस बात की।"
मेरी बात सुन कर रजनी खिलखिला कर हंसते हुए एक तरफ हट गई तो मैं अंदर दाखिल हो गया। मैं अंदर आया तो रजनी ने दरवाज़ा अंदर से कुण्डी लगा कर बंद कर दिया। दरवाज़ा बंद कर के वो पलटी तो मैंने उसे फ़ौरन ही दबोच लिया मगर फिर जल्दी ही उसे छोड़ भी दिया। उसके कपड़ो में रंग गुलाल लगा हुआ था जो मेरे कपड़ों में लग सकता था और काकी जब मुझे देखती तो वो समझ जाती कि मैं उसकी बहू से लिपटा रहा होऊंगा। हलांकि इसकी संभावना कम ही थी।
"क्या हुआ छोटे ठाकुर?" रजनी ने हैरानी से कहा____"मुझे अपनी बाहों में भरने के बाद इतना जल्दी छोड़ क्यों दिया? अरे! चिंता मत कीजिए माँ जी अंदर नहीं हैं। वो थोड़ी देर पहले ही उनके(रघुवीर) साथ हवेली चली गई हैं। इस वक्त मैं घर पर अकेली ही हूं।"
"ऐसी बात है क्या।" मैंने खुश हो कर उसे फिर से अपनी बाहों में जकड़ लिया____"फिर तो आज तुझे पूरा नंगा कर के तेरे पूरे बदन में रंग लगाऊंगा।" "मैं तो सोच ही रही थी कि काश ऐसे वक़्त में आप यहाँ होते।" रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तो कितना मज़ा आता। ख़ैर लगता है भगवान ने मेरी फ़रियाद सुन ली है तभी तो आप आ गए हैं।"
"चल फिर अंदर।" मैंने रजनी को खुद से अलग करते हुए कहा____"मुझे क्या पता था कि तू इस वक़्त घर में अकेली होगी वरना मैं बहुत पहले ही आ जाता। ख़ैर कोई बात नहीं, अब जल्दी से अंदर चल मेरी जान। तुझे पूरा नंगा कर के पेलूंगा आज।"
मेरी बात सुन कर रजनी मुस्कुराते हुए अंदर की तरफ बढ़ चली। उसके पीछे पीछे मैं भी होठों पर मुस्कान सजाए चल पड़ा था। रजनी मेरे आने से बड़ा खुश हो गई थी और इस वक़्त वो अपने चूतड़ों को मटका मटका कर चल रही थी, जैसे मुझे इशारा कर रही हो कि मैं लपक कर उसके गोल गोल चूतड़ों को अपनी मुट्ठी में ले कर मसलने लगूं। मेरे लंड ने तो उसके चूतड़ों को देख कर ही अपना सिर उठा लिया था।
कुछ ही पलों में हम दोनों अंदर आँगन में आ गए। आँगन में जगह जगह रंग और गुलाल बिखरा पड़ा था। आँगन में एक तरफ खटिया रखी हुई थी। मैं आगे बढ़ कर उस खटिया में बैठ गया।
"चल अब पूरी तरह नंगी हो जा मेरी जान।" फिर मैंने रजनी की तरफ देखते हुए कहा____"आज खिली धूप में मैं तेरे नंगे बदन को देखूंगा और फिर मेरा जो मन करेगा वो करुंगा।" "आज आपके इरादे मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहे छोटे ठाकुर।" रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा तो मैंने कहा____"तुझ जैसी माल को देख कर किसी के भी इरादे ठीक नहीं हो सकते मेरी जान। चल अब देर न कर। जल्दी से अपने कपड़े उतार।"
"आप ही उतार दीजिए न।" रजनी ने अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए मादक भाव से कहा____"फिर मैं आपके कपड़े उतारुंगी।" "साली रांड मुझसे ही सब करवाएगी।" कहने के साथ ही मैं एक झटके से उठा और रजनी की साड़ी के पल्लू को पकड़ कर ज़ोर से खींचा तो रजनी घूमती हुई मेरे क़रीब आ गई।
"इतने उतावले क्यों हो रहे हैं छोटे ठाकुर?" रजनी ने हंसते हुए कहा____"प्यार से मेरे कपड़े उतारिए न।" "मेरी मर्ज़ी।" मैंने पीछे से उसे पकड़ कर उसकी चूचियों को मुट्ठी में भरते हुए कहा____"मैं जैसे चाहे उतारुं। तुझे अगर कोई परेशानी है तो बोल।"
"मुझे भला क्या परेशानी होगी?" रजनी ने अपनी छातियों को मेरे द्वारा ज़ोर से मसलने पर सिसकी लेते हुए कहा____"वैसे मेरी ननद कोमल भी अगर यहाँ होती तो क्या करते आप?" "तो तुझे पता है सब?" मैंने उसके ब्लॉउज के बटन खोलते हुए कहा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"इश्क़ और मुश्क कभी छुपता है क्या? हलांकि पहले मुझे शक नहीं हुआ था मगर फिर एक दिन कोमल को पकड़ ही लिया मैंने।"
"क्यों, कैसे पकड़ लिया था तूने?" मैंने उसके ब्लॉउज को उसके बदन से अलग करते हुए कहा तो उसने कहा____"जब भी आप यहां आते थे तब वो आपको देख कर वैसे ही मुस्कुराने लगती थी जैसे कभी मैं आपको देख कर मुस्कुराने लगती थी। मैं समझ गई कि आपका जादू मेरी भोली भाली ननद रानी पर चल गया है। एक दिन जब घर में कोई नहीं था तो मैंने कोमल से साफ शब्दों में पूछ ही लिया कि उसका आपके साथ क्या चक्कर चल रहा है? मेरी ये बात सुन कर पहले तो वो बुरी तरह घबरा गई थी फिर जब मैंने उसे दिलासा दिया कि मैं उसे इस बारे में कुछ नहीं कहूंगी तो उसने शर्माते हुए मुझे बता ही दिया कि आप उसे बहुत अच्छे लगते हैं।"
"फिर क्या कहा तूने?" मैंने रजनी की नंगी चूचियों को मसलते हुए पूछा तो वो मज़े से सिसकी लेते हुए बोली____"मैंने तो उससे यही कहा कि ज़रा सम्हल कर छोटे ठाकुर के हथियार को पकड़ना। कहीं ऐसा न हो कि उनका हथियार तुम्हारी छोटी सी मुनिया को फाड़ कर भोसड़ा ही बना दे।"
रजनी की ये बात सुन कर मेरे पैंट के अंदर कच्छे में कैद मेरा लंड फनफना कर खड़ा हो गया और कच्छे से बाहर आने के लिए बेताब हो गया। मैंने अपने लंड को रजनी के चूतड़ों में रगड़ते हुए कहा____"अच्छा फिर क्या कहा उसने?"
"वो क्या कहती?" रजनी ने अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर घिसते हुए कहा____"मेरी बात सुन कर बेचारी बुरी तरह शर्मा गई थी। जब मैंने उसे छेड़ा तो उसने लजाते हुए बस इतना ही कहा कि भौजी तुम बहुत गन्दी हो।"
"वैसे कब आ रही है वो?" मैंने रजनी की साड़ी को उसके जिस्म से अलग करते हुए कहा तो उसने कहा____"जल्दी ही आएगी छोटे ठाकुर। लगता है कि आपका मोटा लंड उसकी नाज़ुक सी बुर के अंदर जाने के लिए मरा जा रहा है।" "वो तो अभी भी मरा जा रहा है।" मैंने रजनी के पेटीकोट का नाड़ा खोला तो वो सरक कर ज़मीन पर गिर गया। अब रजनी पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी। मैंने उसके नंगे बदन को देखते हुए कहा____"चल अब जल्दी से मेरे कपड़े भी उतार। आज तो तुझे पूरे आँगन में लोटा लोटा के चोदूंगा।"
मेरी बात सुन कर रजनी मुस्कुराते हुए मेरे कपड़े उतारने लगी। जल्द ही मैं भी उसकी तरह पूरा नंगा हो गया। मेरी टांगों के बीच मेरा लंड पूरी तरह अपने रूप में था और आसमान की तरफ अपना सिर उठाए सावधान की मुद्रा में खड़ा था। रजनी की जब उस पर नज़र पड़ी तो वो झट से नीचे बैठ गई और मेरे लंड को अपने नाज़ुक हाथ में ले कर सहलाने लगी। रजनी के द्वारा लंड सहलाए जाने से अभी मुझे मज़ा आने ही लगा था कि तभी बाहर का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया। दरवाज़ा खटखटाया गया तो हम दोनों बुरी तरह उछल पड़े। रजनी के चेहरे का तो रंग ही उड़ गया। चेहरे पर घबराहट लिए वो मेरी तरफ देखने लगी तो मैंने उसे होश में लाते हुए उससे जल्दी से अपने कपड़े पहनने को कहा और खुद भी जल्दी जल्दी अपने कपड़े पहनने लगा। अचानक रंग में भंग पड़ जाने से मेरा दिमाग़ बुरी तरह भन्ना गया था किन्तु अब मैं कुछ कर भी नहीं सकता था।
जितना जल्दी हो सकता था हम दोनों ने फटाफट अपने अपने कपड़े पहन लिए थे। इस बीच दरवाज़ा दो बार और खटखटाया जा चुका था। रजनी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थी और डर व घबराहट से उसका बुरा हाल हुआ जा रहा था। हालत तो मेरी भी ख़राब हो गई थी किन्तु फिर भी मैं खुद को सम्हाले हुए था। मैं सोचता जा रहा था कि कौन हो सकता है बाहर? दरवाज़े के बाहर यदि प्रभा काकी हुई तब तो मुझे कोई डर या समस्या नहीं होगी, क्योंकि प्रभा काकी को मैं आसानी से इस सबके लिए मना लूंगा। इसके विपरीत अगर मुंशी या उसका बेटा रघुवीर हुआ तब तो हम दोनों के लिए बड़ी समस्या वाली बात हो जानी थी क्योंकि जब वो देखते कि अकेले घर में उनकी बहू या पत्नी के साथ मैं हूं तो वो ज़रूर यही सोचेंगे कि हम कुछ ग़लत ही कर रहे थे। वो दोनों मेरे चरित्र के बारे में अच्छी तरह जानते थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब हमें इस समस्या से कैसे छुटकारा मिले?
रजनी कपड़े पहन कर दरवाज़ा खोलने के लिए बाहर चली गई थी। मैंने उसे समझा दिया था कि वो अपने चेहरे से डर व घबराहट के भावों को मिटा ले वरना उसे देख कर सामने वाला फौरन ही ताड़ लेगा कि अंदर वो कुछ गड़बड़ कर रही थी। रजनी के जाने के बाद मैं कोई ऐसी जगह खोजने लगा था जहां पर मैं खुद को इस तरह से छुपा सकूं कि मुझ पर आने वाले की नज़र न पड़ सके। जल्दी ही मुझे एक जगह नज़र आई। आँगन के दूसरी तरफ एक कमरा था जिसमे घर के पुराने कपड़े और गद्दे रजाई वग़ैरा रखे हुए थे। मैं तेज़ी से उस कमरे की तरफ बढ़ा और दरवाज़ा खोल कर उसके अंदर घुस गया। साला क्या मुसीबत थी? मेरे जैसा इंसान जो किसी के बाप से भी नहीं डरता था वो इस वक़्त ऐसी परिस्थिति में डर के मारे खुद को इस तरह से छुपाये हुए था।
कुछ देर में रजनी वापस आई तो उसके साथ में गांव की एक औरत और एक लड़की थी। मैं दरवाज़े को हल्का सा खोल कर उन तीनों को देख रहा था। आने वाली औरत और वो लड़की रजनी को रंग लगाने आई थी। वो दोनों खुद भी रंग में नहाई हुईं थी।
"मैं तो ये सोचने लगी थी कि तू रघू के साथ अंदर चुदाई में लगी हुई है।" उस औरत ने मुस्कुराते हुए रजनी से कहा____"इसी लिए दरवाज़ा नहीं खोल रही थी।" "आप भी न दीदी।" रजनी ने शर्माने का नाटक करते हुए कहा____"मैंने बताया तो है आपसे कि सब लोग हवेली गए हुए हैं। मैं तो अंदर गंदे पड़े कपड़े समेट रही थी ताकि नहाते समय उन्हें धो डालूं।"
"अच्छा चल छोड़ इस बात को।" उस औरत ने कहा____"ये रानी तुझे रंग लगाने आई है। मुझसे कह रही थी कि रजनी भौजी के घर जा कर उनको रंग लगाऊंगी। अकेले आने से ये सोच कर डर रही थी कि गांव का कोई आवारा लड़का रास्ते में इसे दबोच न ले और इसके कुर्ते के अंदर हाथ डाल इसकी चूचियों को मसलते हुए रंग न लगा दे।"
"कितनी बेशरम हो भौजी।" रानी ने उस औरत की बांह पर हल्के से मारते हुए कहा____"कुछ भी बोल देती हो तुम। किसी की मजाल है जो ऐसे रंग लगा देगा मुझे।" "मजाल की बात मत कर मेरी ननद रानी।" उस औरत ने कहा____"इस गांव में एक ऐसा इंसान है जिसमे इतनी मजाल है कि वो किसी के भी घर में घुस कर किसी की भी लड़की या औरत को चोद सकता है।"
"कहीं तुम दादा ठाकुर के लड़के वैभव की तो बात नहीं कर रही हो?" रानी ने कहा तो वो औरत मुस्कुराते हुए बोली____"लगता है तुम्हें भी पता है उसके बारे में। मैंने सुना है कि उसका लंड बहुत मोटा और लम्बा है। हाए! रजनी काश ऐसा लंड मेरी बुर को भी नसीब हो जाए।"
उस औरत की बात सुन कर जहां रजनी और रानी दोनों ही उस औरत को हैरत से देखने लगीं थी वहीं मैं मन ही मन अपने लंड की तारीफ़ सुन कर खुश हो गया था। वो लड़की रानी न होती तो मैं इसी वक्त कमरे से निकल कर उस औरत के पास जाता और अपना लंड उसके हाथ में देते हुए कहता____'भगवान ने तेरी इच्छा कबूल कर ली है। इस लिए तेरी बुर के लिए हाज़िर है मेरा मोटा तगड़ा लंड।'
"सुन रही हो न भौजी?" रानी ने रजनी से कहा____"मेरी ये भौजी क्या कह रही है।" "हां सुन रही हूं रानी।" रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा____"लगता है दीदी की बुर उस मोटे लंड से चुदने के लिए कुछ ज़्यादा ही तड़प रही है।"
"तू सही कह रही है रजनी।" उस औरत ने मानो आहें भरते हुए कहा____"सच में मेरी बुर उसका मोटा लंड लेने के लिए तड़प रही है। जब से मैंने सुना है कि दादा ठाकुर के उस लड़के का लंड ऐसा ग़ज़बनाक है तब से दिन रात यही सोचती रहती हूं कि क्या सच में उसका लंड ऐसा ही होगा? अगर ऐसा ही है तब तो मेरी भी आंसू बहाती हुई बुर के नसीब में वैसा लंड एक बार तो होना ही चाहिए। अच्छा सुन, तू ये बात किसी से कहना मत वरना लोग पता नहीं मेरे बारे में क्या क्या सोचने लगेंगे। मैंने ये बात सिर्फ तुझे बताया है और वो भी इस लिए कि तेरे घर पर दादा ठाकुर का वो लड़का आता रहता है। इस लिए तुझे भी उसके बारे में ये बात पता होनी चाहिए।"
"मुझे क्यों पता होनी चाहिए दीदी?" रजनी ने हैरान होने का नाटक किया____"भला मुझे इससे क्या लेना देना?" "अरे! मेरी भोली भाली देवरानी।" उस औरत ने मुस्कुराते हुए रजनी से राज़दाराना अंदाज़ में कहा____"तुझे इस लिए पता होनी चाहिए ताकि तू भी उस लड़के के मोटे लंड को अपनी बुर में डलवाने का सोच सके। तू अभी जवान है और सुंदर भी है। मैंने सुना है कि वो तेरी जैसी जवान औरतों को जल्दी ही अपने जाल में फांस लेता है। वो तेरे घर आता ही रहता है इस लिए तू खुद ही उसे अपने रूप जाल में फांस ले और फिर उसके मोटे लंड के मज़े ले। उसके बाद तू मुझे भी उसका वो मोटा लंड दिलवा देना। तेरे साथ साथ मेरा भी भला हो जाएगा रे।"
"हे भगवान! अब बस भी करो भौजी।" रानी ने अपने माथे पर ज़ोर से हाथ मारते हुए कहा____"अगर तुम सच में ये सब करने की फ़िराक में हो न तो सोच लो, मैं भैया को बता दूंगी ये सब।"
"तू क्या बताएगी अपने भैया को?" उस औरत ने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या ये कि उनकी बीवी दादा ठाकुर के उस लड़के का मोटा लंड अपनी बुर में लेने का सोच रही है? अगर ऐसे ही बताएगी तो जा बता दे। उस लड़के के उस मोटे लंड से चुदने के लिए मैं तेरे भैया की गाली और मार भी सह लूंगी।"
कमरे के दरवाज़े पर खड़ा मैं ये सब सुन कर मन ही मन हंस रहा था और ये भी सोच रहा था कि मेरे लंड के चर्चे तो बड़ी दूर दूर तक हैं वाह क्या बात है। ख़ैर उस औरत की ये बात सुन कर रानी नाम की वो लड़की नाराज़ हो गई जिससे वो औरत हंसते हुए बोली कि वो तो ये सब मज़ाक में कह रही थी। उसके बाद तीनों ने एक दूसरे को रंग लगाया और फिर कुछ देर बाद चली गईं। रजनी जब वापस आई तो मैं भी कमरे से निकल कर आँगन में आ गया।
nice update ..saroj kaki ki madad karne ka sochkar sahi kiya vaibhav ne ..
uske bure waqt me sirf murari hi tha jisne kisi ki parwah kiye bagair saath diya ..
rajni ko chod hi dalta par rani aur uski bhauji aa gayi rang lagane ..
bhauji ki bur bhi pyasi hai aur usne vaibhav ke lund ke baare me bhi sun rakha hai ..
par ye rupchandr agar sach keh raha tha ki saroj ko sab batake usne permission li hai anuradha ko bhogne ki to vaibhav ne kuch puchha nahi saroj se is baare me ..
pata to chalta ki sach me saroj se baat ki hai yaa nahi usne yaa bas anuradha se jhooth bolke apna kaam nikal raha tha ..