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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,487
354
sex to theek tha par usko aur badhiya bana sakte ho aap 😁..
padhkar maja aa gaya tha wo sex ..

sirf sex ke baare me kahu to threesome ,anal bhi likh sakte ho aap baaki aapki kahani me thrill ,suspense to padh hi liya hai sabne ..

readers ko sex bhi padhne ka mauka de do ..( ye sirf meri raay hai ,,aapko likhne ke liye force nahi kar raha me 🙏) ..
Dekhte hain kaisa mood banta hai,,,,:dazed:
Kahani me thrill aur suspense na ho to maza kaise aayega,,, :D
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,487
354
Seduction... Slow seduction.
Ajay aur Pratima dono pati patni the . Waisa nahi. Najayaj sambandh kaise slowly slowly parwan chadha wo . Kya kya erotic event hua wo.
Ji bilkul, main samajh gaya aapki baat bhaiya ji. Main puri koshish karuga ki aisa hi ho,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,634
117,487
354
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 04
---------☆☆☆---------



अब तक,,,,,

"अगर तुम यही चाहते हो।" मुरारी ने मुस्कुराते हुए कहा____"तो ठीक है। मुझे तुम्हारी ये शर्त मंजूर है। अब चलो पीना शुरू करो तुम।"
"आज की ये शाम।" मैंने कहा____"हमारी गहरी दोस्ती के नाम।"

"दोस्ती??" मुरारी मेरी बात सुन कर चौंका।
"हां काका।" मैंने कहा____"अब जब हम एक दूसरे से हर तरह की बातें करेंगे तो हमारे बीच दोस्ती का एक और रिश्ता भी तो बन जायेगा ना?"
"ओह! हां समझ गया।" मुरारी धीरे से हँसा और फिर गिलास को उसने अपने अपने होठों से लगा लिया।


अब आगे,,,,,,

शाम पूरी तरह से घिर चुकी थी और हम दोनों देशी शराब का मज़ा ले रहे थे। मैं तो पहली बार ही पी रहा था इस लिए एक ही गिलास में मुझ पर नशे का शुरूर चढ़ गया था मगर मुरारी तो पुराना पियक्कड़ था इस लिए अपनी पूरी बोतल को जल्दी ही डकार गया था। देशी शराब इतनी कड़वी और बदबूदार होगी ये मैंने सोचा भी नहीं था और यही वजह थी कि मैंने मुश्किल से अपना एक गिलास ख़त्म किया था और बाकी बोतल की शराब को मैंने मुरारी को ही पीने के लिए कह दिया था।

"लगता है तुम्हारा एक ही गिलास में काम हो गया वैभव।" मुरारी ने मुस्कुराते हुए कहा____"समझ सकता हूं कि पहली बार में यही हाल होता है। ख़ैर कोई बात नहीं धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी तो पूरी बोतल पी जाया करोगे।"

"पूरी बोतल तो मैं भी पी लेता काका।" मैंने नशे के हल्के शुरूर में बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"मगर ये ससुरी कड़वी ही बहुत है और इसकी दुर्गन्ध से भेजा भन्ना जाता है।"

मेरी बात सुन कर मुरारी ने पहले मेरी वाली बोतल को एक ही सांस में ख़त्म किया और फिर मुस्कुराते हुए नशे में बोला____"शुरु शुरू में इसकी दुर्गन्ध की वजह से ही पीना मुश्किल होता है वैभव लेकिन फिर इसके दुर्गन्ध की आदत हो जाती है।"

मैने देखा मुरारी की आँखें नशे में लाल पड़ गईं थी और उसकी आँखें भी चढ़ी चढ़ी सी दिखने लगीं थी। नशा तो मुझे भी हो गया था किन्तु मैंने एक ही गिलास पिया था। स्टील के गिलास में आधा गिलास ही शराब डाला था मुरारी ने। इस लिए नशा तो हुआ था मुझे लेकिन अभी होशो हवास में था मैं।

"अच्छा काका तुम किस स्वार्थ की बात कर रहे थे उस वक़्त?" मैंने भुने हुए चने को मुँह में डालते हुए पूछा।
"मैंने कब बात की थी भतीजे?" मुरारी ने नशे में पहली बार मुझे भतीजा कह कर सम्बोधित किया।

"क्या काका लगता है चढ़ गई है तुम्हें।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"तभी तो तुम्हें याद नहीं कि तुमने उस वक़्त मुझसे क्या कहा था।"
"अरे! इतने से मुझे नहीं चढ़ती भतीजे।" मुरारी ने मानो शेखी से कहा____अभी तो मैं दो चार बोतल और पी सकता हूं और उसके बाद भी मुझे नहीं चढ़ेगी।"

"नहीं काका तुम्हें चढ़ गई है।" मैंने मुरारी की आँखों में झांकते हुए कहा____"तभी तो तुम्हें याद नहीं है कि तुमने उस वक़्त मुझसे क्या कहा था। जब तुम शुरू में मेरे पास आये थे और मेरी बातों पर तुमने कहा था कि मेरी मदद भी तुमने अपने स्वार्थ की वजह से ही किया है। मैं वही जानना चाहता हूं।"

"लगता है सच में चढ़ गई है मुझे।" मुरारी ने अजीब भाव से अपने सिर को झटकते हुए कहा____"तभी मुझे याद नहीं आ रहा कि मैंने तुमसे ऐसा कब कहा था? कहीं तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो मुझसे?"

"क्या काका मैं भला झूठ क्यों बोलूंगा तुमसे?" मैं उसके बर्ताव पर मुस्कुराये बग़ैर न रह सका था_____"अच्छा छोड़ो उस बात को और ये बताओ कि काकी तुम्हारी क्यों नहीं सुनती है? याद है ना तुमने ये बात भी मुझसे कही थी और जब मैंने तुमसे पूछा तो तुम मुझे उम्र और रिश्ते की बात का हवाला देने लगे थे?"

"हो सकता है कि मैंने कहा होगा भतीजे।" मुरारी ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे परेशान हो गया हो___"साला कुछ याद ही नहीं आ रहा मुझको। लगता है आज ये ससुरी कुछ ज़्यादा ही भेजे में चढ़ गई है।"

"तुम तो कह रहे थे कि दो तीन बोतल और पी सकते हो।" मैंने कहा____"ख़ैर छोडो मैं जानता हूं कि तुम्हें ये बात भी अब याद नहीं होगी। अच्छा हुआ कि मैंने थोड़ा सा ही पिया है वरना तुम्हारी तरह मुझे भी कुछ याद नहीं रहता।"

"मुझे याद आ गया भतीजे।" मुरारी ने एक झटके से कहा____"तुम सच कहे रहे थे। मैंने तुमसे सच में कहा था कि तुम्हारी काकी ससुरी मेरी सुनती ही नहीं है। अब याद आ गया मुझे। देखा मुझे इतनी भी नहीं चढ़ी है।"

"तो फिर बताओ काका।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आख़िर काकी तुम्हारी सुनती क्यों नहीं है?"
"अभी से सठिया गई है बुरचोदी।" मुरारी ने गाली देते हुए कहा____"एक तो वैसे भी बेटीचोद कभी मौका नहीं मिलता और अगर कभी मिलता भी है तो देती नहीं है मादरचोद।"

"वो तुम्हें क्या नहीं देती है काका?" मैं समझ तो गया था मगर मैं जान बूझ कर मुरारी से पूछा रहा था।
"वो अपनी बुर नहीं देती महतारीचोद।" मुरारी जैसे भन्ना गया था____"लेकिन आज तो मैं उसकी बुर ले के ही रहूंगा भतीजे। मैं भी देखता हूं कि आज वो बेटीचोद कैसे अपनी चूत मारने को नहीं देती मुझे। साली को ऐसे रगडू़ंगा कि उसकी बुर का भोसड़ा बना दूंगा।"

"अगर ऐसा करोगे काका।" मैंने मन ही मन हंसते हुए कहा____"तो काकी घर में शोर मचा देगी और फिर सबको पता चल जाएगा कि तुम उसके साथ क्या कर रहे हो।"
"मुझे कोई परवाह नहीं उसकी।" मुरारी ने हाथ को झटकते हुए कहा____"साला दो महीना हो गया। उस बुरचोदी ने अपनी बुर को दिखाया तक नहीं मुझे। आज नहीं छोड़ूंगा उसे। दोनों तरफ से बजाऊंगा मादरचोद को।"

"और अगर तुम्हारी बेटी अनुराधा को पता चल गया तो?" मैंने मुरारी को सचेत करने की गरज़ से कहा____"तब क्या करोगे काका? क्या तुम अपनी बेटी की भी परवाह नहीं करोगे?"
"तो क्या करू वैभव?" मुरारी ने जैसे हताश भाव से कहा____"उस बुरचोदी को भी तो मेरे बारे में सोचना चाहिए। पहले तो बड़ा हचक हचक के चुदवाती थी मुझसे। साली रंडी न घर में छोड़ती थी और ना ही खेतों में। मौका मिला नहीं कि लौड़ा निकाल के भर लेती थी अपनी बुर में।"

मुरारी को सच में देशी शराब का नशा चढ़ गया था और अब उसे इतना भी ज्ञान नहीं रह गया था कि इस वक़्त वो किससे ऐसी बातें कर रहा था। उसकी बातों से मैं जान गया था कि उसकी बीवी सरोज दो महीने से उसे चोदने को नहीं दे रही थी। दो महीने पहले उससे मेरे जिस्मानी सम्बन्ध बने थे और तब से वो मुरारी को अपनी बुर तक नहीं दिखा रही थी। मैं मुरारी की तड़प को समझ सकता था। इस लिए इस वक़्त मैं चाहता था कि वो किसी तरह अपने दिमाग़ से सरोज की बुर का ख़याल निकाल दे और अपने अंदर की इन भावनाओं को थोड़ा शांत करे।

"मैं मानता हूं काका कि काकी को तुम्हारे बारे में भी सोचना चाहिए।" फिर मैंने मुरारी काका से सहानुभूति वाले अंदाज़ में कहा____"आख़िर तुम अभी जवान हो और काकी की छलकती जवानी देख कर तुम्हारा लंड भी खड़ा हो जाता होगा।"

"वही तो यार।" मुरारी काका ने मेरी बात सुन कर झटके से सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन वो बुरचोदी समझती ही नहीं है कुछ। मैंने तो बच्चे होने के बाद उसे पेलना बंद ही कर दिया था मगर उस लंडचटनी को तो बच्चे होने के बाद भी लंड चाहिए था। इस लिए जब भी मौका मिलता था चुदवा लेती थी मुझसे। शुरू शुरू में तो मुझे उस रांड पर बहुत गुस्सा आता था मगर फिर जब उसने मेरा लंड चूसना शुरू किया तो कसम से मज़ा ही आने लगा। बस उसके बाद तो मैं भी उस बुरचोदी को दबा के पेलने लगा था।"

मैं मुरारी काका की बातों को सुन कर मन ही मन हैरान भी हो रहा था और हंस भी रहा था। उधर मुरारी काका ये सब बोलने के बाद अचानक रुक गया और खाली बोतल को मुँह से लगाने लगा। जब खाली बोतल से देशी शराब का एक बूँद भी उसके मुख में न गया तो खिसिया कर उसने उस बोतल को दूर फेंक दिया और दूसरी बोतल को उठा कर मुँह से लगा लिया मगर दूसरी बोतल से भी उसके मुख में एक बूँद शराब न गई तो भन्ना कर उसने उसे भी दूर फेंक दिया।

"महतारीचोद ये दोनों बोतल खाली कैसे हो गईं?" मुरारी काका ने नशे में झूमते हुए जैसे खुद से ही कहा____"घर से जब लाया था तब तो ये दोनों भरी हुईं थी।"
"कैसी बात करते हो काका?" मैंने हंसते हुए कहा____"अभी तुमने ही तो दोनों बोतलों की शराब पी है। क्या ये भी भूल गए तुम?"

"उस बुरचोदी के चक्कर में कुछ याद ही नहीं रहा मुझे।" मुरारी काका ने सिर को झटकते हुए कहा____"वैभव, आज तो मैं उस ससुरी को पेल के रहूंगा चाहे जो हो जाए।"

"दारु के नशे में कोई हंगामा न करना काका।" मैंने मुरारी काका के कंधे पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा____"तुम्हारी बेटी अनुराधा को पता चलेगा तो क्या सोचेगी वो तुम्हारे बारे में।"

"अनुराधा?? मेरी बेटी???" मुरारी काका ने जैसे सोचते हुए कहा____"हां मेरी बेटी अनुराधा। तुम नहीं जानते वैभव, मेरी बेटी अनुराधा मेरे कलेजे का टुकड़ा है। एक वही है जो मेरा ख़याल रखती है, पर एक दिन वो भी मुझे छोड़ कर अपने ससुराल चली जाएगी। अरे! लेकिन वो ससुराल कैसे चली जाएगी भला?? मैं इतना सक्षम भी तो नहीं हूं कि अपनी फूल जैसी कोमल बेटी का ब्याह कर सकूं। वैसे एक जगह उसके ब्याह की बात की थी मैंने। मादरचोदों ने मुट्ठी भर रूपिया मांगा था मुझसे जबकि मेरे पास दहेज़ में देने के लिए तो फूटी कौड़ी भी नहीं है। खेती किसानी में जो मिलता है वो भी कर्ज़ा देने में चला जाता है। नहीं वैभव, मैं अपनी बेटी के हाथ पीले नहीं कर पाऊंगा। मेरी बेटी जीवन भर कंवारी बैठी रह जाएगी।"

मुरारी काका बोलते बोलते इतना भावुक हो गया कि उसकी आवाज़ एकदम से भर्रा गई और आँखों से आँसू छलक कर कच्ची ज़मीन पर गिर पड़े। मुरारी काका भले ही नशे में था किन्तु बातों में वो खो गया था और भावुक हो कर रो पड़ा था। उसकी ये हालत देख कर मुझे भी उसके लिए थोड़ा बुरा महसूस हुआ।

"क्या तुम मेरे लिए कुछ कर सकोगे वैभव?" नशे में झूमते मुरारी ने अचानक ही मेरी तरफ देखते हुए कहा____"अगर मैं तुमसे कुछ मांगू तो क्या तुम दे सकते हो मुझे?"

"क्या हुआ काका?" मैं उसकी इस बात से चौंक पड़ा था____"ये तुम क्या कह रहे हो मुझसे?"
"क्या तुम मेरे कहने पर कुछ कर सकोगे भतीजे?" मुरारी ने लाल सुर्ख आँखों से मुझे देखते हुए कहा____"बेताओ न वैभव, अगर मैं तुमसे ये कहूं कि तुम मेरी बेटी अनुराधा का हाथ हमेशा के लिए थाम लो तो क्या तुम थाम सकते हो? मेरी बेटी में कोई कमी नहीं है। उसका दिल बहुत साफ़ है। उसको घर का हर काम करना आता है। ये ज़रूर है कि वो तुम्हारी तरह किसी बड़े बाप की बेटी नहीं है मगर मेरी बेटी अनुराधा किसी से कम भी नहीं है। क्या तुम मेरी बेटी का हाथ थाम सकते हो वैभव? बताओ न वैभव...!"

मुरारी काका की इन बातों से मैं एकदम हैरान रह गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुरारी काका अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में देने का कैसे सोच सकता है? मैं ये तो जानता था कि दुनिया का हर बाप अपनी बेटी को किसी बड़े घर में ही ब्याहना चाहता है ताकि उसकी बेटी हमेशा खुश रहे मगर अनुराधा के लिए मैं भला कैसे सुयोग्य वर हो सकता था? मुझ में भला ऐसी कौन सी खूबी थी जिसके लिए मुरारी ऐसा चाह रहा था? हलांकि अनुराधा कैसी थी ये मुरारी को बताने की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि मैं खुद जानता था कि वो एक निहायत ही शरीफ लड़की है और ये भी जानता था कि उसमे कोई कमी नहीं है मगर उसके लिए जीवन साथी के रूप में मेरे जैसा औरतबाज़ इंसान बिलकुल भी ठीक नहीं था। जहां तक मेरा सवाल था तो मैं तो शुरू से ही अनुराधा को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता था। ये अलग बात है कि मुरारी के अहसानों के चलते और खुद अनुराधा के साफ चरित्र के चलते मैं उस पर कभी हाथ नहीं डाल पाया था।

"तुम चुप क्यों हो वैभव?" मुझे ख़ामोश देख मुरारी ने मुझे पकड़ कर हिलाते हुए कहा____"कहीं तुम ये तो नहीं सोच रहे कि मेरे जैसा ग़रीब और मामूली इंसान तुम्हारे जैसे बड़े बाप के बेटे से अपनी बेटी का रिश्ता जोड़़ कर अपनी बेटी के लिए महलों के ख़्वाब देख रहा है? अगर ऐसा है तो कोई बात नहीं भतीजे। दरअसल काफी समय से मेरे मन में ये बात थी इस लिए आज तुमसे कह दिया। मैं जानता हूं कि मेरी कोई औका़त नहीं है कि तुम जैसे किसी अमीर लड़के से अपनी बेटी का रिश्ता जोड़ने की बात भी सोचूं।"

"ऐसी कोई बात नहीं है काका।" मैंने इस विषय को बदलने की गरज़ से कहा____"मैं अमीरी ग़रीबी में कोई फर्क नहीं करता और ना ही मुझे ये भेदभाव पसंद है। मैं तो मस्तमौला इंसान हूं जिसके बारे में हर कोई जानता है कि मैं कैसा हूं और किन चीज़ों का रसिया हूं। तुम्हारी बेटी में कोई कमी नहीं है काका मगर ख़ैर छोड़ो ये बात। इस वक़्त तुम सही हालत में नहीं हो। हम कल इस बारे में बात करेंगे।"

मेरी बात सुन कर मुरारी ने मेरी तरफ अपनी लाल सुर्ख आँखों से देखा। उसकी चढ़ी चढ़ी आंखें मेरे चेहरे के भावों का अवलोकन कर रहीं थी और इधर मैं ये सोच रहा था कि क्या उस वक़्त मुरारी काका अपने इसी स्वार्थ की बात कह रहा था? आख़िर उसके ज़हन में ये ख़याल कैसे आ गया कि वो अपनी बेटी का रिश्ता मुझसे करे? उसने ये कैसे सोच लिया था कि मैं इसके लिए राज़ी भी हो जाऊंगा?

मैंने मुरारी को उसके घर ले जाने का सोचा और उससे उठ कर घर चलने को कहा तो वो घर जाने में आना कानी करने लगा। मैंने उसे समझा बुझा कर किसी तरह शांत किया और फिर मैंने एक हाथ में लालटेन लिया और दूसरे हाथ से उसे उठाया।

पूरे रास्ते मुरारी झूमता रहा और नशे में बड़बड़ाता रहा। आख़िर मैं उसे ले कर उसके घर आया। मैंने घर का दरवाज़ा खटखटाया तो अनुराधा ने ही दरवाज़ा खोला। मेरे साथ अपने बापू को उस हालत में देख कर उसने मेरी तरफ सवालिया निगाहों से देखा तो मैंने उसे धीरे से बताया कि उसके बापू ने आज दो बोतल देशी शराब चढ़ा रखी है इस लिए उसे कोई भी ना छेड़े। अनुराधा मेरी बात समझ गई इस लिए चुप चाप एक तरफ हट गई जिससे मैं मुरारी को पकड़े आँगन में आया और एक तरफ रखी चारपाई पर उसे लेटा दिया। तब तक सरोज भी आ गई थी और आ कर उसने भी मुरारी का हाल देखा।

"ये नहीं सुधरने वाले।" सरोज ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा____"इस आदमी को ज़रा भी चिंता नहीं है कि जवान बेटी घर में बैठी है तो उसके ब्याह के बारे में सोचूं। घर में फूटी कौड़ी नहीं है और ये अनाज बेच बेच कर हर रोज़ दारू चढा लेते हैं।" कहने के साथ ही सरोज मेरी तरफ पलटी____"बेटा तुम इनकी संगत में दारू न पीने लगना। ये तुम्हें भी अपने जैसा बना देंगे।"

अनुराधा वहीं पास में ही खड़ी थी इस लिए सरोज मुझे बेटा कह रही थी। सरोज की बात पर मैंने सिर हिला दिया था। ख़ैर उसके बाद सरोज के ही कहने पर मैंने खाना खाया और फिर लालटेन ले कर मैं वापस अपने खेत की तरफ चल पड़ा। सरोज ने मुझे इशारे से रुकने के लिए भी कहा था मगर मैंने मना कर दिया था।

मुरारी के घर से मैं लालटेन लिए अपने खेत की तरफ जा रहा था। मेरे ज़हन में मुरारी की वो बातें ही चल रही थीं और मैं उन बातों को बड़ी गहराई से सोचता भी जा रहा था। आस पास कोई नहीं था। मुरारी का घर तो वैसे भी उसके गांव से हट कर बना हुआ था और मेरा अपना गांव यहाँ से पांच किलो मीटर दूर था। दोनों गांवों के बीच या तो खेत थे या फिर खाली मैदान जिसमे यदा कदा पेड़ पौधे और बड़ी बड़ी झाड़ियां थी। पिछले चार महीने से मैं इस रास्ते से रोज़ाना ही आता जाता था इस लिए अब मुझे रात के अँधेरे में किसी का डर नहीं लगता था। ये रास्ता हमेशा की तरह सुनसान ही रहता था। वैसे दोनों गांवों में आने जाने का रास्ता अलग था जो यहाँ से दाहिनी तरफ था और यहाँ से दूर था।

मैं हाथ में लालटेन लिए सोच में डूबा चला ही जा रहा था कि तभी मैं किसी चीज़ की आवाज़ से एकदम चौंक गया और अपनी जगह पर ठिठक गया। रात के सन्नाटे में मैंने कोई आवाज़ सुनी तो ज़रूर थी किन्तु सोच में डूबा होने की वजह से समझ नहीं पाया था कि आवाज़ किसकी थी और किस तरफ से आई थी? मैंने खड़े खड़े ही लालटेन वाले हाथ को थोड़ा ऊपर उठाया और सामने दूर दूर तक देखने की कोशिश की मगर कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने पलट कर पीछे देखने का सोचा और फिर जैसे ही पलटा तो मानो गज़ब हो गया। किसी ने बड़ा ज़ोर का धक्का दिया मुझे और मैं भरभरा कर कच्ची ज़मीन पर जा गिरा। मेरे हाथ से लालटेन छूट कर थोड़ी दूर लुढ़कती चली गई। शुक्र था कि लालटेन जिस जगह गिरी थी वहां पर घांस उगी हुई थी वरना उसका शीशा टूट जाता और ये भी संभव था कि उसके अंदर मौजूद मिट्टी का तेल बाहर आ जाता जिससे आग उग्र हो जाती।

कच्ची ज़मीन पर मैं पिछवाड़े के बल गिरा था और ठोकर ज़ोर से लगी थी जिससे मेरा पिछवाड़ा पके हुए फोड़े की तरह दर्द किया था। हालांकि मैं जल्दी से ही उठा था और आस पास देखा भी था कि मुझे इतनी ज़ोर से धक्का देने वाला कौन था मगर अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने जल्दी से लालटेन को उठाया और पहले आस पास का मुआयना किया उसके बाद मैं ज़मीन पर लालटेन की रौशनी से देखने लगा। मेरा अनुमान था कि जिस किसी ने भी मुझे इस तरह से धक्का दिया था उसके पैरों के निशान ज़मीन पर ज़रूर होने चाहिये थे।

मैं बड़े ग़ौर से लालटेन की रौशनी में ज़मीन के हर हिस्से पर देखता जा रहा था किन्तु ज़मीन पर निशान तो मुझे तब मिलते जब ज़मीन पर हरी हरी घांस न उगी हुई होती। मैं जिस तरफ से आया था उस रास्ते में बस एक छोटी सी पगडण्डी ही बनी हुई थी जबकि बाकी हर जगह घांस उगी हुई थी। काफी देर तक मैं लालटेन की रौशनी में कोई निशान तलाशने की कोशिश करता रहा मगर मुझे कोई निशान न मिला। थक हार कर मैं अपने झोपड़े की तरफ चल दिया। मेरे ज़हन में ढेर सारे सवाल आ कर तांडव करने लगे थे। रात के अँधेरे में वो कौन था जिसने मुझे इतनी ज़ोर से धक्का दिया था? सवाल तो ये भी था कि उसने मुझे धक्का क्यों मारा था? वैसे अगर वो मुझे कोई नुक्सान पहुंचाना चाहता तो वो बड़ी आसानी से पहुंचा सकता था।

सोचते सोचते मैं झोपड़े में आ गया। झोपड़े के अंदर आ कर मैंने लालटेन को एक जगह रख दिया और फिर झोपड़े के खुले हुए हिस्से को लकड़ी से बनाये दरवाज़े से बंद कर के अंदर से तार में कस दिया ताकि कोई जंगली जानवर अंदर न आ सके। इन चार महीनों में आज तक मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ था और ना ही यहाँ रहते हुए किसी जंगली जानवर से मुझे कोई ख़तरा हुआ था। हालांकि शुरू शुरू में मैं यहाँ अँधेरे में अकेले रहने से डरता था जो कि स्वभाविक बात ही थी मगर अभी जो कुछ हुआ था वो थोड़ा अजीब था और पहली बार ही हुआ था।

झोपड़े के अंदर मैं सूखी घांस के ऊपर एक चादर डाल कर लेटा हुआ था और यही सोच रहा था कि आख़िर वो कौन रहा होगा जिसने मुझे इस तरह से धक्का दिया था? सबसे बड़ा सवाल ये कि धक्का देने के बाद वो गायब कहां हो गया था? क्या वो मुझे किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाने आया था या फिर उसका मकसद कुछ और ही था? मैं उस अनजान ब्यक्ति के बारे में जितना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था और उसी के बारे में सोचते सोचते आख़िर मेरी आँख लग गई। मैं नहीं जानता था कि आने वाली सुबह मेरे लिए कैसी सौगा़त ले कर आने वाली थी।

सुबह मेरी आँख कुछ लोगों के द्वारा शोर शराबा करने की वजह से खुली। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया मगर जब कुछ लोगों की बातें मेरे कानों में पहुंची तो मेरे पैरों के नीचे की ज़मीन ही हिल गई। चार महीनों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मेरे आस पास इतने सारे लोगों का शोर मुझे सुनाई दे रहा था। मैं फ़ौरन ही उठा और लकड़ी के बने उस दरवाज़े को खोल कर झोपड़े से बाहर आ गया।

बाहर आ कर देखा तो क़रीब बीस आदमी हाथों में लट्ठ लिए खड़े थे और ज़ोर ज़ोर से बोल रहे थे। उन आदमियों में से कुछ आदमी मेरे गांव के भी थे और कुछ मुरारी के गांव के। मैं जैसे ही बाहर आया तो उन सबकी नज़र मुझ पर पड़ी और वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़े। कुछ लोगों की आंखों में भयानक गुस्सा मैंने साफ़ देखा।


---------☆☆☆---------
 

firefox420

Well-Known Member
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143
Hahaha bhai aapka review firefox420 bhai ki yaad dila diya. Pata nahi aaj kal kaha gaayab hain wo,,,:dazed:


Thakur ka khoon hai to asar to dikhayega hi. Murari bhala khud ye kyo chahega ki Vaibhav uski biwi ke sath sath uski beti ko bhi thoke,,,, :D
Usko to pata bhi nahi hai ki aaj kal uski biwi use kyo haath nahi lagane deti,,,,:lol:

:lotpot:
Anuradha itni asaani se uske haath nahi aayegi bhai,,,:nope:
Gusse me insaan apna Vivek kho deta hai is liye use achhe bure ka hosh nahi rahta lekin jab dimaag shaant hota hai to use ehsaas hota hai ki usne kya sahi kiya hai aur kya galat. Yaha par gaur karne wali baat ye hai ki Vaibhav ko apni galti ka ehsaas hota hai aur wo Murari se maafi maagta hai. Iska matlab itna bhi bura nahi hai wo,,,,:D
:congrats for the new story ...
 
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