अध्याय - 48
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अब तक....
"ठाकुर साहब, इस बारे में मैं अपने भतीजे का बिलकुल भी पक्ष नहीं लूंगा।" मणि शंकर ने गंभीरता से कहा____"मैं ये भी नहीं कहूंगा कि ये लोग अभी बच्चे हैं क्योंकि बच्चों वाला इन्होंने काम ही नहीं किया है। जो लड़के किसी लड़की अथवा किसी औरत के साथ ऐसे संबंध बनाते फिरते हों वो बच्चे तो हो ही नहीं सकते। इस लिए ना तो मैं अपने भतीजे का पक्ष ले कर ये कहूंगा कि आप इसके अपराधों के लिए इसे क्षमा कर दीजिए और ना ही आपके भतीजों का पक्ष लूंगा। ये सब अपराधी हैं और इनके अपराधों के लिए आप इन्हें जो भी दंड देंगे मुझे स्वीकार होगा।"
मणि शंकर की बात पूरी होते ही एक बार फिर से कमरे में ब्लेड की धार की मानिंद पैना सन्नाटा पसर गया। मैं मणि शंकर के चेहरे को ही अपलक निहारे जा रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि उसकी बातें उसके चेहरे पर मौजूद भावों से समानता रखती हैं अथवा नहीं?
अब आगे....
"हमारे घर के इन बच्चों ने।" पिता जी ने मणि शंकर की तरफ देखते हुए गंभीर भाव से कहा____"और आपके इस भतीजे ने जो कुछ भी किया है वो बहुत ही संगीन अपराध है मणि शंकर जी। अगर बात सिर्फ लड़ाई झगड़े की होती तो इसे नज़रअंदाज़ भी किया जा सकता था लेकिन ऐसे कुत्सित कर्म को भला कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है? एक तरफ हमारे भतीजे हैं जो अपने ही बड़े भाई को नफ़रत की वजह से नामर्द बना देना चाहते थे और दूसरी तरफ आपका भतीजा है जिसने हमारे भतीजों के ऐसे निंदनीय कर्म में उनका साथ दिया। हमें समझ नहीं आ रहा कि अपने ही भाईयों के बीच ऐसी नफ़रत आख़िर कैसे हो गई? आख़िर ऐसा क्या ग़लत कर दिया था वैभव ने जिसके लिए हमारे इन भतीजों ने उसे नामर्द बना देने के लिए इतना कुछ कर डाला?"
पिता जी बोलते हुए कुछ पलों के लिए रुके। उनकी इन बातों पर जवाब के रूप में किसी ने कुछ नहीं कहा जबकि सबकी तरफ बारी बारी से देखते हुए उन्होंने आगे कहा____"और उसके ऐसे काम में आपके भतीजे गौरव ने हर तरह से सहायता की। उसने एक बार भी नहीं सोचा कि ये सब कितना ग़लत है और इसका क्या अंजाम हो सकता है। मित्रता का मतलब सिर्फ़ ये नहीं होता कि मित्र के हर काम में उसकी सहायता की जाए बल्कि सच्चा मित्र तो वो होता है जो अपने मित्र को हमेशा सही रास्ता दिखाए और ग़लत रास्ते पर जाने से या ग़लत काम करने से उसे रोके।"
"शायद मेरी परवरिश में ही कोई कमी रह गई थी बड़े भैया।" जगताप चाचा ने दुखी भाव से कहा____"जिसकी वजह से आज मेरे इन कपूतों ने मुझे ऐसा दिन दिखा कर आपके सामने मुझे शर्मसार कर दिया है। जी करता है ये ज़मीन फटे और मैं उसमें समा जाऊं।"
"धीरज रखो जगताप।" पिता जी ने गंभीरता से कहा____"इनकी वजह से सिर्फ़ तुम ही नहीं बल्कि हम भी शर्मसार हुए हैं। इन्होंने वैभव के साथ जो किया उसे तो हम भुला भी देते लेकिन इन लोगों ने हमारी फूल सी कोमल बेटी के दिल को भी बुरी तरह दुखाया है जिसके लिए इन्हें हम किसी भी कीमत पर माफ़ नहीं कर सकते।" कहने के साथ ही पिता जी मणि शंकर की तरफ पलटे और फिर बोले_____"हम सच्चे दिल से चाहते हैं मणि शंकर जी कि हमारे परिवारों के बीच संबंध अच्छे बने रहें इस लिए आपके भतीजे ने जो कुछ किया है उसका फ़ैसला हम आप पर छोड़ते हैं। हम नहीं चाहते कि हमारे किसी फ़ैसले के बाद आपके मन में ऐसी वैसी कोई ग़लत बात या ग़लत सोच पैदा हो जाए।"
"ये आप कैसी बातें कर रहे हैं ठाकुर साहब?" मणि शंकर ने चौंकते हुए कहा____"भला मेरे मन में ऐसी वैसी बात क्यों आ जाएगी? मैं तो आपसे पहले ही कह चुका हूं कि आप इन लोगों को जो भी दंड देंगे वो मुझे स्वीकार होगा। ऐसा इस लिए क्योंकि मुझे अच्छी तरह एहसास है कि इन लोगों ने कितना ग़लत काम किया है और ऐसे ग़लत काम की कोई माफ़ी नहीं हो सकती। आपकी जगह मैं होता तो मैं भी इनके ऐसे ग़लत काम के लिए इन्हें कभी माफ़ नहीं करता।"
"इसी लिए तो हमने आपको अपने भतीजे का फ़ैसला करने को कहा है।" पिता जी ने कहा____"आप इसे अपने साथ ले जाइए और इसके साथ आपको जो सही लगे कीजिए। हम अपने परिवार के इन बच्चों का फ़ैसला अपने तरीके से करेंगे।"
मणि शंकर अभी कुछ कहना ही चाहता था कि पिता जी ने हाथ उठा कर उसे कुछ न कहने का इशारा किया जिस पर मणि शंकर चुप रह गया। उसके चेहरे पर परेशानी के साथ साथ बेचैनी के भी भाव उभर आए थे। ख़ैर कुछ ही पलों में वो अपने भतीजे गौरव को ले कर कमरे से चला गया। उन दोनों के जाने के बाद कुछ देर तक कमरे में सन्नाटा छाया रहा, तभी...
"हमें माफ़ कर दीजिए ताऊ जी।" विभोर और अजीत एक साथ पिता जी के पैरों में गिर कर रोते हुए बोल पड़े____"हमसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है। हम हमेशा वैभव भैया से ईर्ष्या करते थे और ये ईर्ष्या कब नफ़रत में बदल गई हमें खुद इसका कभी आभास नहीं हो पाया। उसके बाद हम जाने क्या क्या करते चले गए। हमें इस सबके लिए माफ़ कर दीजिए ताऊ जी। आगे से भूल कर भी ऐसा कुछ नहीं करेंगे हम। हमेशा वही करेंगे जो हमारे कुल और खानदान की मान मर्यादा और इज्ज़त के लिए सही होगा।"
"चुप हो जाओ तुम दोनों।" पिता जी ने शांत भाव से कहा____"और चुपचाप हवेली चलो। तुम दोनों के साथ क्या करना है इसका फ़ैसला बाद में होगा।"
उसके बाद हम सब वहां से हवेली की तरफ चल दिए। रात घिर चुकी थी। हमारी सुरक्षा के लिए हमारे काफी सारे आदमी थे। वक्त और हालात की नज़ाकत को देखते हुए रात में हवेली से बाहर अकेले रहना ठीक नहीं था इस लिए इतने सारे लोग हथियारों से लैस हमारे साथ आए थे और अब वापस हवेली की तरफ चल पड़े थे। कुछ ही समय में हम सब हवेली पहुंच गए।
रास्ते में पिता जी ने जगताप चाचा से कह दिया था कि वो इस बारे में हवेली में बाकी किसी से भी कोई ज़िक्र न करें। ख़ैर हवेली पहुंचे तो मां ने स्वाभाविक रूप से विभोर और अजीत के बारे में पूछा क्योंकि वो दोनों सारा दिन हवेली से गायब रहे थे। मां के पूछने पर पिता जी ने बस इतना ही कहा कि दूसरे गांव में अपने किसी मित्र के यहां उसकी शादी में मौज मस्ती कर रहे थे।
रात में खाना पीना हुआ और फिर सब अपने अपने कमरों में सोने के लिए चले गए। कमरे में पलंग पर लेटा मैं इसी सबके बारे में सोच रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पिता जी ने गौरव के बारे में फ़ैसला करने के लिए मणि शंकर को क्यों कहा था और इतनी आसानी से उसे छोड़ क्यों दिया था? विभोर और अजीत के बारे में भी उन्होंने जो कुछ किया था उससे मैं हैरान था और अब सोच में डूबा हुआ था। आख़िर क्या चल रहा था उनके मन में?
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सोचते विचारते पता ही नहीं चला कब मेरी आंख लग गई थी किंतु शायद अभी मैं गहरी नींद में नहीं जा पाया था तभी तो सन्नाटे में हुई आहट से मैं फ़ौरन ही होश में आ गया था। मैंने सन्नाटे में ध्यान से सुनने की कोशिश की तो कुछ ही पलों में मुझे समझ आ गया कि कोई कमरे के दरवाज़े को हल्के से थपथपा रहा है। मेरे ज़हन में बिजली की तरह पिता जी का ख़्याल आया। पिछली रात भी वो ऐसे ही आए थे और हल्के से दरवाज़े को थपथपा रहे थे। मैं फ़ौरन ही पलंग से उठा किंतु फिर एकाएक जाने मुझे क्या सूझा कि मैं एकदम से सतर्क हो गया। मैं ये कैसे भूल सकता था कि आज कल हालात कितने नाज़ुक और ख़तरनाक थे। दरवाज़े के क़रीब पहुंच कर मैंने बहुत ही आहिस्ता से दरवाज़े को खोला और जल्दी ही एक तरफ को हट गया।
बाहर नीम अंधेरे में सच में पिता जी ही खड़े थे किंतु उनके पीछे बड़े भैया को खड़े देख मुझे थोड़ी हैरानी हुई। दरवाज़ा खुलते ही पिता जी अंदर दाखिल हो गए और उनके पीछे बड़े भैया भी। उन दोनों के अंदर आते ही मैंने दरवाज़े को बंद किया और फिर पलंग की तरफ पलटा। पिता जी जा कर पलंग पर बैठ गए थे, जबकि बड़े भैया पलंग के किनारे पर बैठ गए थे। मैं भी चुपचाप जा कर पलंग के दूसरी तरफ किनारे पर ही बैठ गया। मुझे पिता जी के साथ इस वक्त बड़े भैया को देख कर हैरानी ज़रूर हो रही थी लेकिन मैं ये भी समझ रहा था कि अब शायद पिता जी भी चाहते थे कि बड़े भैया को भी उन सभी बातों और हालातों के बारे में अच्छे से पता होना चाहिए जो आज कल हमारे सामने मौजूद हैं।
"हमने तुम्हारे बड़े भाई को वो सब कुछ बता दिया है जो अब तक हुआ है और जिस तरह के हालात हमारे सामने आज कल बने हुए हैं।" पिता जी ने धीमें स्वर में मेरी तरफ देखते हुए कहा____"हमारे पूछने पर इसने भी हमें वो सब बताया जो इसने विभोर और अजीत के साथ रहते हुए किया है। इसके अनुसार इसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि वो दोनों इसकी पीठ पीछे और क्या क्या गुल खिला रहे थे।"
"हां वैभव।" बड़े भैया ने भी धीमें स्वर में किंतु गंभीरता से कहा____"मुझे ये बात बिल्कुल भी पता नहीं थी कि विभोर और अजीत अपनी ही बहन को मजबूर किए हुए थे और उसके हाथों चाय में नामर्द बनाने वाली दवा मिला कर तुझे देते थे। जब से मुझे इस बात के बारे में पता चला है तभी से मैं इस बारे में सोच सोच कर हैरान हूं। मैं ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि वो दोनों ऐसा भी कर सकते थे।"
"सोच तो मैं भी नहीं सकता था भैया।" मैंने भी धीमें स्वर में किंतु गहरी सांस लेते हुए कहा____"लेकिन सच तो यही है कि ऐसा उन्होंने किया है। दोनों ने कबूल किया है कि ऐसा उन्होंने इसी लिए किया है क्योंकि वो मुझसे नफ़रत करते थे। दोनों के अनुसार हवेली में हमेशा सब मेरा ही गुणगान गाते थे जबकि आप सबको पता है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने आज तक भला ऐसा कौन सा काम किया है जिसके लिए हवेली में कभी कोई मेरा गुणगान गाता? मैंने तो हमेशा वही किया है जिसकी वजह से हमेशा ही हमारा और हमारे खानदान का नाम मिट्टी में मिला है। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि उन दोनों के मन में इस तरह की बात आई कैसे? जहां तक मुझे याद है मैंने कभी भी उन दोनों को ना तो कभी डांटा है और ना ही किसी बात के लिए उन्हें नीचा दिखाने का सोचा है। सच तो ये है कि मैं किसी से कोई मतलब ही नहीं रखता था बल्कि अपने में ही मस्त रहता था।"
"जैसा कि तूने कहा कि तू अपने में ही मस्त रहता था।" बड़े भैया ने कहा_____"तो भला तुझे ये कैसे समझ में आएगा कि तेरी कौन सी बात से अथवा तेरे कौन से काम से उनके मन में एक ऐसी ईर्ष्या पैदा हो गई जो आगे चल कर नफ़रत में बदल गई? तू जिस तरह से बिना किसी की परवाह किए अपने जीवन का आनंद ले रहा था उसे देख कर ज़ाहिर है कि उन दोनों के मन में भी तेरी तरह जीवन का आनंद लेने की सोच भर गई होगी। अब क्योंकि वो तेरी तरह बेख़ौफ और निडर हो कर वो सब नहीं कर सकते थे इस लिए वो तुझसे ईर्ष्या करने लगे और उनकी यही ईर्ष्या धीरे धीरे नफ़रत में बदल गई। नफ़रत के चलते उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान ही नहीं रह गया था तभी तो उन दोनों ने वो किया जो कोई सोच भी नहीं सकता था।"
"हम तुम्हारे बड़े भाई की इन बातों से पूरी तरह सहमत हैं।" पिता जी ने अपनी भारी आवाज़ में किंतु धीमें स्वर में कहा____"यकीनन ऐसा ही कुछ हुआ है। वो दोनों जिस उमर से गुज़र रहे हैं उसमें अक्सर इंसान ग़लत रास्ते ही चुन बैठता है।"
"ये सब तो ठीक है पिता जी।" मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आपने गौरव के बारे में खुद कोई फ़ैसला करने की बजाय मणि शंकर को ही उसका फ़ैसला करने को क्यों कहा?"
"इसकी दो वजहें थी।" पिता जी ने ठंडी सांस खींचते हुए कहा____"एक तो यही कि हम समझ गए थे कि गौरव ने अपनी मित्रता के चलते ही उन दोनों का साथ दिया था और उन तीनों के ऐसे काम में किसी चौथे का कोई हाथ नहीं था। किसी चौथे के हाथ से हमारा मतलब है कि ऐसे काम के लिए उन लोगों की मदद ना तो साहूकारों ने की है और ना ही जगताप ने। सदियों बाद हमारे साथ बने अपने अच्छे संबंधों को साहूकार लोग इस तरह से नहीं ख़राब कर सकते थे। जगताप भी ऐसी बचकानी हरकत करने या करवाने का नहीं सोच सकता था, खास कर तब तो बिलकुल भी नहीं जबकि ऐसे काम में उसकी अपनी बेटी का नाम भी शामिल हो। दूसरी वजह ये थी कि अगर साहूकार अपनी जगह सही होंगे तो वो ऐसे काम के लिए गौरव को ज़रूर ऐसी सज़ा देंगे जिससे हमें संतुष्टि मिल सके। यानि गौरव के बारे में किया गया उनका फ़ैसला ये ज़ाहिर कर देगा कि उनके दिल में हमारे प्रति किस तरह के भाव हैं?"
"यानि एक तीर से दो शिकार जैसी बात?" मैंने कहा____"एक तरफ आप ये नहीं चाहते थे कि आपके द्वारा गौरव को सज़ा मिलने से मणि शंकर अथवा उसके अन्य भाईयों के मन में हमारे प्रति कोई मन मुटाव जैसी बात पैदा हो जाए? दूसरी तरफ मणि शंकर को गौरव का फ़ैसला करने की बात कह कर आपने उसके ऊपर एक ऐसा भार डाल दिया है जिसके चलते अब उसे सोच समझ कर अपने भतीजे का फ़ैसला करना पड़ेगा?"
"बिलकुल ठीक समझे।" पिता जी ने कहा____"ख़ैर हमारी स्थिति ऐसी है कि हमारे पास हमारे दुश्मन के बारे में अब ऐसा कोई भी सुराग़ नहीं है जिससे कि हम उस तक किसी तरह पहुंच सकें इस लिए इस सबके बाद भी हमें उनसे अच्छे संबंध ही बनाए रखना होगा। तुम दोनों उनके और उनके बच्चो के साथ वैसा ही ताल मेल बना के रखोगे जैसे अच्छे संबंध बन जाने के बाद शुरू हुआ था। उन्हें ये बिलकुल भी नहीं लगना चाहिए कि गौरव के ऐसा करने की वजह से हम उनके बारे में अब कुछ अलग सोच बना बैठे हैं।"
"आज के हादसे के बाद।" बड़े भैया ने कहा____"जगताप चाचा भी हीन भावना से ग्रसित हो गए होंगे। संभव है कि वो ये भी सोच बैठें कि आज के हादसे के बाद अब हम उन्हें ही अपना वो दुश्मन समझेंगे जो हमारे चारो तरफ षडयंत्र की बिसात बिछाए बैठा है। इस लिए ज़रूरी है कि हमें उनसे भी अच्छा बर्ताव करना होगा।"
"बड़े भैया सही कह रहे हैं पिता जी।" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए संजीदा भाव से कहा____"हालातों के मद्दे नज़र हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि जगताप चाचा ही वो षड्यंत्रकारी हैं जबकि ऐसा था नहीं। साफ़ ज़ाहिर है कि असल षड्यंत्रकर्ता ने अपनी चाल के द्वारा जगताप चाचा को हमारे शक के घेरे में ला कर खड़ा कर दिया है। वो चाहता है कि हमारा आपस में ही मन मुटाव हो जाए और फिर हमारे बीच एक दिन ऐसी स्थिति आ जाए कि गृह युद्ध ही छिड़ जाए।"
"सही कहा तुमने।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए कहा____"हमारे दुश्मन की यकीनन यही चाल है इस लिए हमें अपने अपनों के साथ बहुत ही होशो हवास में और बुद्धिमानी से ताल मेल बना के रखना होगा। ख़ैर जैसा कि हमने कहा हमारे पास दुश्मन के बारे में कोई सुराग़ नहीं है इस लिए अब हमें इस बात का ख़ास तौर से पता करना होगा कि हमारे बीच मौजूद हमारे दुश्मन का ख़बरी कौन है और वो किस तरह से हमारी ख़बरें उस तक पहुंचाता है?"
"अगर ख़बरी हमारे हाथ लग जाए तो शायद उसके द्वारा हम अपने दुश्मन तक पहुंच सकते हैं।" बड़े भैया ने कहा____"वैसे जिन जिन लोगों पर हमें शक है उन पर नज़र रखने के लिए आपने अपने आदमी तो लगा दिए हैं न पिता जी?"
"हमने अपने आदमी गुप्तरूप से उनकी नज़र रखने के लिए लगा तो दिए हैं।" पिता जी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"लेकिन हमें नहीं लगता कि इसके चलते हमें जल्द ही कोई बेहतर नतीजा मिलेगा।"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?" बड़े भैया ने उलझ गए वाले अंदाज़ से कहा____"भला ऐसा करने से हमें कोई नतीजा क्यों नहीं मिलेगा?"
"ये सच है कि हमने दुश्मन के मंसूबों को पूरी तरह से ख़ाक में मिला दिया है।" पिता जी ने हम दोनों भाईयों की तरफ बारी बारी से देखते हुए कहा____"और इसके चलते यकीनन वो बुरी तरह खुंदक खाया हुआ होगा लेकिन हमें यकीन है कि वो अपनी इस खुंदक के चलते फिलहाल ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा जिसके चलते हमें उस तक पहुंचने का कोई मौका या कोई सुराग़ मिल सके।"
"मुझे भी ऐसा ही लगता है पिता जी।" मैंने सोचपूर्ण भाव से सिर हिलाते हुए कहा____"हमारे दुश्मन ने या ये कहें कि षड्यंत्रकर्ता ने अब तक जिस तरीके से अपने काम को अंजाम दिया है उससे यही ज़ाहिर होता है कि वो हद से भी ज़्यादा शातिर और चालाक है। भले ही हमने उसके मंसूबों को नेस्तनाबूत किया है जिसके चलते वो बुरी तरह हमसे खुंदक खा गया होगा लेकिन ऐसी परिस्थिति में भी वो ठंडे दिमाग़ से ही सोचेगा कि खुंदक खा कर अगर उसने कुछ भी हमारे साथ उल्टा सीधा किया तो बहुत हद तक ऐसी संभावना बन जाएगी कि वो हमारी पकड़ में आ जाए। इतना तो अब वो भी समझ ही गया होगा कि हमारे पास फिलहाल ऐसा कोई भी सुराग़ नहीं है जिससे कि हम उस तक पहुंच सकें और अब हम भी इसी फ़िराक में ही होंगे कि हमारा दुश्मन गुस्से में आ कर कुछ उल्टा सीधा करे ताकि हम उसे पकड़ सकें। ज़ाहिर है उसके जैसा शातिर व्यक्ति ऐसी ग़लती कर के हमें कोई भी सुनहरा अवसर नहीं प्रदान करने वाला।"
"यानि अब वो फिलहाल के लिए अपनी तरफ से कोई भी कार्यवाही नहीं करेगा।" बड़े भैया ने मेरी तरफ देखते हुए अपनी संभावना ब्यक्त की____"बल्कि कुछ समय तक वो भी मामले के ठंडा पड़ जाने का इंतज़ार करेगा।"
"बिलकुल।" पिता जी ने कहा____"लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम उसकी तरफ से ये सब सोच कर बेफ़िक्र हो जाएं अथवा अपनी तरफ से उसके बारे में कुछ पता लगाने की कोशिश ही न करें। एक बात अच्छी तरह ध्यान में रखो कि जब तक हमारा दुश्मन और हमारे दुश्मन का सहयोग देने वाला कोई साथी हमारी पकड़ में नहीं आता तब तक हम न तो बेफ़िक्र हो सकते हैं और ना ही बिना किसी सुरक्षा के कहीं आ जा सकते हैं।"
"आप दारोगा से मिले कि नहीं?" मैंने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"वो हमारी नौकरानी रेखा की लाश पोस्टमार्टम के लिए ले कर गया था। उसकी रिपोर्ट से और भी स्पष्ट हो जाएगा कि रेखा की मौत ज़हर खाने के चलते ही हुई थी अथवा उसकी मौत के पीछे कोई और भी कारण था।"
"रेखा ने तो खुद ही ज़हर खा कर खुद खुशी की थी ना?" बड़े भैया ने मेरी तरफ सवालिया भाव से देखते हुए कहा____"फिर तू ये क्यों कह रहा है कि उसकी मौत के पीछे कोई और भी कारण हो सकता है?"
"मेरे ऐसा कहने के पीछे कारण हैं भैया।" मैंने उन्हें समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"सबसे पहले सोचने वाली बात यही है कि रेखा के पास ज़हर आया कहां से? ज़हर एक ऐसी ख़तरनाक चीज़ है जो उसे हवेली में तो मिलने से रही, तो फिर उसके पास कहां से आया वो ज़हर? अगर वो सच में ही खुद खुशी कर के मरना चाहती थी तो उसने हवेली में ही ऐसे तरीके से मरना क्यों पसंद किया? अपने घर में भी तो वो ज़हर खा कर मर सकती थी। दूसरी सोचने वाली बात ये कि आख़िर सुबह के उस वक्त ऐसा क्या हो गया था जिसकी वजह से खुद खुशी करने के लिए वो हवेली के ऐसे कमरे में पहुंच गई जो ज़्यादातर बंद ही रहता था? मेनका चाची के अनुसार हम लोग जब सुबह हवेली से निकल गए थे तभी कुछ देर बाद उसको खोजना शुरू किया गया था। खोजबीन करने में ज़्यादा से ज़्यादा आधा पौन घंटा लग गया होगा। उसके बाद वो एक कमरे में मरी हुई ही मिली थी। अब सवाल ये है कि उस समय जबकि हम लोग भी नहीं थे जिनसे उसे पकड़े जाने का ख़तरा था तो फिर ऐसा क्या हुआ था कि उसके मन में उसी समय खुद खुशी करने का खयाल आ गया था?"
"बात तो तुम्हारी तर्क़ संगत हैं।" पिता जी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"लेकिन ये सब कहने से तुम्हारा मतलब क्या है? आख़िर क्या कहना चाहते हो तुम?"
"मैं स्पष्ट रूप से यही कहना चाहता हूं कि मुझे पूरा यकीन है कि रेखा ने खुद अपनी जान नहीं ली है बल्कि किसी ने उसे ज़हर खाने के लिए मजबूर किया था।" मैंने ये कह कर मानों धमाका सा किया____"उस वक्त हवेली में कोई तो ऐसा था जो रेखा को अब जीवित नहीं रखना चाहता था। माना कि उस वक्त रेखा को हमारे द्वारा पकड़े जाने का डर नहीं था किंतु इसके बावजूद उसे हवेली में नौकरानी बना कर रखने वाला उसे जीवित नहीं रखना चाहता था। शायद वो रेखा को अब और ज़्यादा जीवित रखने का जोख़िम नहीं लेना चाहता था।"
"शायद तुम सही कह रहे हो।" पिता जी ने सोचने वाले भाव से सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अगर सच यही है तो क्या ये बात पोस्टमार्टम करने से से पता चलेगी? हमारा ख़्याल है हर्गिज़ नहीं, ये ऐसी बात नहीं है जो लाश का पोस्टमार्टम करने से पता चले। यानि दारोगा जब आएगा तो वो भी यही कहेगा कि रेखा की मौत ज़हर खाने से हुई है। वो ये नहीं कह सकता कि रेखा ने अपनी मर्ज़ी से ज़हर खाया था या किसी ने उसे ज़हर खाने के लिए मजबूर किया था।"
"बेशक वो दावे के साथ ऐसा नहीं कह सकता।" मैंने कहा____"लेकिन पोस्टमार्टम में ज़हर के अलावा भी शायद कुछ और पता चला हो उसे। जैसे कि अगर किसी ने रेखा को ज़हर खाने के लिए मजबूर किया था तो किस तरीके से किया था? मेरा मतलब है कि क्या किसी ने उसके साथ जोर ज़बरदस्ती की थी अथवा उस पर बल प्रयोग किया था? अगर ऐसा हुआ होगा तो बहुत हद तक संभव है कि रेखा के जिस्म पर मजबूर करने वाले के कोई तो ऐसे निशान ज़रूर ही मिले होंगे जिससे हमें उसके क़ातिल तक पहुंचने में आसानी हो जाए।"
"मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ मिलेगा दारोगा को।" बड़े भैया ने कहा____"और अगर मान भी लिया जाए कि रेखा के साथ किसी ने जोर ज़बरदस्ती की होगी तब भी इससे कुछ भी पता नहीं चलने वाला। ये मत भूलो कि पास के कस्बे में पोस्टमार्टम करने वाला चिकित्सक इतना भी काबिल नहीं है जो इतनी बारीक चीज़ें पकड़ सके। मैंने सुना है कि ये सब बातें बड़े बड़े महानगरों के डॉक्टर ही पता कर पाते हैं। यहां के डॉक्टर तो बस खाना पूर्ति करते हैं और अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और कुछ देर के लिए अगर ये मान भी लें कि यहां के डॉक्टर ने ये सब पता कर लिया तब भी ये कैसे पता चल पाएगा कि रेखा के साथ जोर ज़बरदस्ती करने वाला असल में कौन था? सीधी सी बात है छोटे कि इतना बारीकी से सोचने का भी हमें कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है।"
"हमें भी यही लगता है।" पिता जी ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"ख़ैर, अब सोचने वाली बात ये है कि हवेली में उस वक्त ऐसा कौन रहा होगा जिसने रेखा को ज़हर खा कर मर जाने के लिए मजबूर किया होगा? क्या वो हवेली के बाहर का कोई व्यक्ति था अथवा हवेली के अंदर का ही कोई व्यक्ति था?"
"सुबह के वक्त हवेली में बाहर का कौन व्यक्ति आया था ये तो पता चल सकता है।" मैंने कहा____"लेकिन अगर वो व्यक्ति हवेली के अंदर का ही हुआ तो उसके बारे में पता करना आसान नहीं होगा।"
"हवेली में जो नौकर और नौकरानियां हैं वो भी तो बाहर के ही हैं।" बड़े भैया ने कहा____"क्या उनमें से ही कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है?"
"बेशक हो सकता है।" पिता जी ने कहा____"लेकिन हवेली के जो पुरुष नौकर हैं वो हवेली के अंदर नहीं आते और अगर आते भी हैं तो ज़्यादा से ज़्यादा उन्हें बैठक तक ही आने की इजाज़त है। इस हिसाब से अगर सोचा जाए तो फिर नौकरानियां ही बचती हैं। यानि उन्हीं में से कोई रही होगी जिसने रेखा को ज़हर खाने के लिए मजबूर किया होगा।"
"रेखा और शीला के बाद।" बड़े भैया ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"मौजूदा समय में हवेली पर अभी लगभग छह नौकरानियां हैं, जिनमें से चार तो ऐसी हैं जो कई सालों से पूरी वफादारी के साथ काम करती आई हैं जबकि दो नौकरानियां ऐसी हैं जिन्हें हवेली में काम करते हुए लगभग दो साल हो गए हैं। अब सवाल है कि क्या उन दोनों में से कोई ऐसी हो सकती है जिसने रेखा को ज़हर खाने के लिए मजबूर किया होगा? वैसे मुझे नहीं लगता कि उनमें से किसी ने ऐसा किया होगा। रेखा और शीला ही ऐसी थीं जिन्हें हवेली में आए हुए लगभग आठ महीने हो गए थे। वो दोनों हमारे दुश्मन के ही इशारे पर यहां काम कर रहीं थी और ये बात पूरी तरह से साबित भी हो चुकी है।"
"मामला काफी पेंचीदा है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"इसमें कोई शक नहीं कि हम फिर से घूम फिर कर वहीं पर आ गए हैं जहां पर आगे बढ़ने के लिए हमें कोई रास्ता नहीं दिख रहा है और ये भी हैरानी की ही बात है कि एक बार फिर से हालात हमें जगताप चाचा पर ही शक करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। न चाहते हुए भी मन में ये ख़्याल उभर ही आता है कि कहीं जगताप चाचा ही तो वो षड्यंत्रकारी नहीं हैं?"
"यकीनन।" पिता जी ने कहा_____"लेकिन अक्सर जो दिखता है वो सच नहीं होता और ना ही हमें उस पर ध्यान देना चाहिए जिस पर कोई बार बार हमारा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता हो। कोई भी व्यक्ति जो ऐसा कर रहा होता है वो अपने खिलाफ़ इतने सारे सबूत और इतना सारा शक ज़ाहिर नहीं होने देता। ज़ाहिर है कोई और ही है जो हमारे भाई को बली का बकरा बनाने पर उतारू है और खुद बड़ी होशियारी से सारा खेल खेल रहा है।"
पिता जी ने जो कहा था वो मैं भी समझ रहा था लेकिन ये समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा कर कौन रहा था? आख़िर क्या दुश्मनी थी हमारी उससे? आख़िर ऐसा क्यों था कि उसने सिर्फ़ हम दोनों भाईयों को ही मौत के मुंह तक पहुंचा दिया था जबकि जगताप चाचा के बेटों पर उसने किसी तरह की भी आंच नहीं लगाई थी? ये क्या रहस्य था? क्या वो जगताप चाचा और उनके परिवार को अपना समझता था या फिर ऐसा वो जान बूझ कर रहा था ताकि हम जगताप चाचा पर ही शक करें और उनके अलावा किसी और के बारे में न सोचें? कुछ देर पिता जी और बड़े भैया इसी विषय में बातें करते रहे उसके बाद वो चले गए। उनके जाने के बाद मैंने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और पलंग पर आ कर लेट गया। सोचते विचारते पता ही न चला कब आंख लग गई मेरी।
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Are mitra main kuch bhi galat nahi samajh raha. Aapko jo sahi laga aapne wahi kaha, isme bura manne wali koi baat hi nahi hai. Ye duniya hai mitra, yaha logo ko sirf apna dukh, apni pareshani aur apni hi baat sahi lagti hai...dusra byakti har haal me galat hi hota hai. Well mujhe khushi hogi agar aapka sath bana raha aur kahani ke prati aapke vichaar dekhne ko milte rahe to...Sorry if my words hurted you, aapne mere baat ko glt way me le liya, I love this story, jb thread private thi to mene kitte sare group m pucha h iske related, You misunderstood me