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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.3%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 23.0%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.2%

  • Total voters
    191

MAD DEVIL

Active Member
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WOW wow wow
Bhot khoobbb ky mast story hai bhai mja aagya
Lekin ek bat smj ni aay aakhir Munshi or uske bete ne ky plan bnaya tha jisse Sahookaar or Thakur ki ranjish fir se jo jay
Or fir achnak esa ky hua jisse Munshi ke bete ki hatya hogy aakhir kaise hua ye sb
.
Or kahani me abi tk wo Safed NAQABPOSH kha hai show ni hua hai
.
Ek bat to achi hue jis trh se bi shi aakhir Sahookar or Thakur ne mil ke Roopa ka rishta kra dia Vaibhav se
.
Pr ye ky pagal pnnkr rha hai Vaibhav jbki wo khud ek time pe Roopa ka pyar swookar krne ko tyaar tha to ab Q faltu ki bat soch rha hai jbki use to Anuradha se koi mtlb ni rakhna chahta hai fir bi
.
Esa rha to lgta hai Roopa ko uska pyar kbi ni mil payga
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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अध्याय - 90
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

✮✮✮✮

साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।



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Zabardast update bro, apne toh dhamaka kardiya.......
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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159
अध्याय - 90
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"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

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साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।



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पिछले दो अपडेट बेहद बेहतरीन रहे भाई! बहुत ही बढ़िया।

चंद्रकांत की अलग ही समस्या हो गई है, जो शायद ही किसी ने पहले सोची हो।
उसके बेटे की हत्या का कारण क्या हो सकता है? कौन कर सकता है? कुल मिला कर एक ही शत्रु बचा है, जो किसी पर जाहिर नहीं है। और वो है, सफ़ेदपोश।
लेकिन इतना तो उसको भी मालूम होगा कि बिना किसी सबूत के ठाकुरों पर कोई आँच नहीं आने वाली। और जिस तरह से अभी तक उसने स्वयं को छुपा कर रखा हुआ है, उससे जाहिर होता है कि वो कोई मामूली व्यक्ति नहीं है, बल्कि बहुत ही बड़ा घाघ है। कौन हो सकता है वो? और क्यों?

वैभव के लिए रूपा को माँग कर दादा ठाकुर ने अच्छा किया। वैभव मना नहीं कर सकता उसको। लेकिन अब सब कुछ रूपा पर निर्भर है। वो जानती है कि वैभव उससे प्रेम नहीं करता। लेकिन वैभव जानता है कि वो उससे बहुत प्रेम करती है। क़ायदे से शादी उसी से करनी चाहिए, जो आपसे प्रेम करे। अनुराधा भी करती है प्रेम, लेकिन शायद वैभव को पता नहीं। बहुत ही बढ़िया भाई!

अलग ही स्तर पर चली गई है कहानी! बेहतरीन!
 

Sanjuhsr

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Awesome update, Mahendra Thakur bahut सुलझे हुए इंसान है और उनको परख है कि क्या सच है क्या जूठ, उन्होंने चंदकांत की बातो से समझ लिया की वो सिर्फ बैर में दादा ठाकुर और रूपचंद का नाम जोड़ रहा है,
रघुवीर की हत्या जानकर ने ही की है जिसको उसकी सब किर्यकलापो का पता था, मेरे हिसाब से ये हत्या रजनी की किसी आशिक ने भी की हो सकती है, जोकि दादा ठाकुर और वैभव का दुश्मन हो, रूपचंद के जैसे, रघुवीर को वैभव और उसके चक्कर का मालूम था और उसने फिर से रजनी को किसी और शक्श के साथ देख लिया हो, और रजनी ने ही उसे मरवा दिया हो, अपनी आयाशी के चक्कर में, या सफेद पोश ने मारा हो , रघुवीर को,
गौरीशंकर ने अपने पिता की बात को समझते हुए अपनी गलती मान ली और वैभव की पहली शादी का मार्ग खुल गया है
 
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Bhupinder Singh

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अध्याय - 90
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"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

✮✮✮✮

साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।


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Nice update
 

Sanju@

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अध्याय - 89
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कहने के साथ ही चंद्रमणि ने एक बार सबकी तरफ देखा और फिर दूसरी तरफ को करवट ले ली। गौरी शंकर समझ गया कि उसके पिता को जो कहना था वो कह चुका है। अपने पिता की तरफ देखते हुए उसने गहरी सांस ली और फिर उठ कर कमरे से बाहर आ गया। उसके पीछे बाकी लोग भी आ गए थे।


अब आगे....


खेती बाड़ी के काम में मैं ऐसा उलझा कि फिर मुझे किसी और चीज़ के लिए समय ही नहीं मिला। थका हारा हवेली आता और खा पी कर सो जाता। सुबह नाश्ता कर के फिर से खेतों की तरफ निकल जाता। मेरे अंदर एकदम से जैसे जुनून सा सवार हो गया था। सबसे ज़्यादा इस बात का जुनून कि मुझे अपनी भाभी की नज़रों में एक अच्छा इंसान बनना है और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना है। इसी के चलते जब काम में खुद को समर्पित किया तो जैसे ज़िम्मेदारी अपने आप ही निभाने लग गया था मैं। इस बात का भी बोध था कि अब से सब कुछ मुझे ही सम्हालना है इस लिए अगर ये सब ईमानदारी से नहीं किया तो सब कुछ बर्बाद भी हो सकता है।

पिता जी मेरे इस समर्पित भाव से काफी खुश और प्रभावित थे। वो बीच बीच में मुझसे काम के बारे में पूछते रहते थे। दूसरे गांव के ठाकुर जो पिता जी के मित्र लोग थे वो उनसे मिलने आते रहते थे। दिन ऐसे ही गुज़रने लगे। इस बीच कोई भी ऐसी बात नहीं हुई जिससे हमें किसी तरह का नुकसान हो। इतने दिनों में एक और बात समझ में आई कि काफी दिनों से सफ़ेदपोश का कहीं कोई अता पता नहीं था। ऐसा इस लिए कहा जा सकता है क्योंकि काफी समय से उसकी तरफ से न तो कोई प्रतिक्रिया हुई थी और ना ही हमें उसके कहीं होने का पता चला था। समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों था? अगर सफ़ेदपोश वाकई में मेरी जान का सबसे बड़ा दुश्मन था तो वो इस तरह से ख़ामोश अथवा लापता क्यों था? क्या वो किसी ऐसे मौके की तलाश में था जिसमें वो मुझे एक झटके में ही ख़त्म कर सके? या फिर वो कोई बड़ा खेल खेलने वाला था? ये दो सवाल ऐसे थे जो हमें सोचने पर मजबूर किए हुए थे और इसी के चलते पिता जी अक्सर मुझे सतर्क रहने की भी हिदायत देते रहते थे। मेरी हिफाज़त के लिए हमेशा मेरे चुनिंदा मुलाजिम मेरे आस पास ही रहते थे।

ऐसे ही बीस दिन गुज़र गए। इस बीच रूपा मुझे नज़र नहीं आई थी। जाने क्यों मुझे उसकी फ़िक्र सी होने लगी थी। उसके प्रति बेहद सहानुभूति थी मुझे। दूसरी तरफ अनुराधा से भी मेरी मुलाक़ात नहीं हुई थी क्योंकि मैं अपने नए वाले मकान में गया ही नहीं। मेरा सारा समय खेतों पर ही गुज़र जाता था। हालाकि भुवन से मुझे उसका और उसके घर वालों का हाल चाल पता चल जाता था।
खेतों में धान बो दी गई थी और साथ ही मूंग उड़द बाजरा आदि सब बो दिया गया था। पुराने जो किसान थे उन सबका कहना था कि इस बार ये सब काम करने में आनंद भी आया और समय भी कम लगा।

एक दिन मां ने कहा कि मैं मेनका चाची के मायके चला जाऊं और उन सबको लिवा लाऊं। दूसरे ही दिन मैं चाची के मायके कुंदनपुर निकल गया। मेरी हिफाज़त के लिए पिता जी ने मेरे साथ कुछ आदमियों को भी भेज दिया था।

मैं पहले भी कई बार कुंदनपुर आ चुका था इस लिए सभी मुझे पहचानते थे और साथ ही आस पास के बाकी लोग भी। इस बार मेरे आने पर मेरा कोई खास स्वागत नहीं हुआ। ज़ाहिर है इसकी मुख्य वजह मेरे चाचा की अकस्मात हुई मौत थी जिसके चलते अभी भी सब दुखी थे। बहरहाल सब बड़े ही आत्मीयता से मिले। मेरे साथ आए आदमियों को भी हवेली के दूसरी तरफ बने कमरों में ठहराया गया। हाल चाल के बाद भोजन पानी हुआ, उसके बाद मैं एक कमरे में आराम करने चला गया।

पहले जब मैं चाची के मायके आया करता था तो अलग ही जलवा रहता था मेरा। यहां भी मैंने झंडे गाड़े थे और इसका पता मेरे मामा मामी लोगों को भी था। वो मेरी फितरत से अच्छी तरह वाक़िफ थे। वो ज़्यादा कुछ तो नहीं कहते थे बस यही हिदायत देते थे कि ऐसे काम मत किया करो क्योंकि इससे व्यक्ति के साथ साथ खानदान का भी नाम ख़राब होता है। मैं उनकी बातों को एक कान से सुन कर दूसरे वाले कान से निकाल देता था। अपने बारे में तो बस एक ही कहावत थी कि घोड़ा अगर घास से दोस्ती कर लेगा तो खाएगा क्या?

मैंने दोपहर में ही सबको बता दिया था कि मैं चाची के साथ साथ उनके बच्चों को भी लेने आया हूं इस लिए सुबह जाने को तैयार रहें। छोटे मामा मेरी बदली हुई फितरत से थोड़ा हैरान थे और रात में मज़ाक करते हुए मुझसे पूछा भी कि मुझमें इतना बदलाव कैसे तो मैंने हंस कर उनकी बात को टाल दिया था।

सुबह हमारी रवानगी हुई। नाना नानी और मामा मामी सब दो चार दिन रुकने को बोल रहे थे लेकिन मैंने उन्हें बताया कि रुकना संभव नहीं है क्योंकि हवेली में भी सब अकेले ही हैं और वैसे भी मुझे खेतों पर जाना होता है। ख़ैर उन्हें भी सभी चीज़ों का एहसास था इस लिए सुबह हमारी रवानगी हो गई। चाची सबसे विदा ले रहीं थी। अपनी मां और भाभियों से लिपट कर रो रहीं थी वो। कुसुम का भी यही हाल था। उसके बाद हम सब वहां से चल पड़े। इस बार मेरी वाली जीप पर मेनका चाची और कुसुम थीं जबकि विभोर और अजीत दूसरी जीप में मेरे आदमियों के साथ थे।

एक घंटे बाद हम अपनी हवेली पहुंच गए। सभी के आ जाने से हवेली में एकदम से चहल पहल हो गई। पहले की अपेक्षा अब हवेली में थोड़ी रौनक सी आ गई थी वरना पूरी हवेली सुनसान सी लगती थी। मेनका चाची से मां हाल चाल पूछने लगीं। रागिनी भाभी भी उनके पास आ गईं थी। चाची ने अपना और अपने मायके वालों का हाल चाल बताया और फिर मां के कहने पर वो अपने कमरे में अपना झोला रखने तथा आराम करने चली गईं। रागिनी भाभी रसोई में दोपहर का खाना बनाने में लग गईं। कुछ देर में कुसुम आई तो वो भी रसोई में भाभी की मदद करने लगी।

मैं बैठक में पिता जी के पास बैठ गया था। पिता जी ने मुझसे चाची के मायके वालों का हाल चाल पूछा और ये भी कि सफ़र में कोई परेशानी तो नहीं हुई? उसके बाद उन्होंने बताया कि अगले दिन एक आदमी मेरे ननिहाल माधवगढ़ से आएगा। उस आदमी के साथ उसकी बीवी और उसके दो बच्चे भी होंगे। पिता जी ने बताया कि उन्होंने एक दिन मेरे ननिहाल में नाना जी को अपने एक मुलाजिम द्वारा संदेश भिजवाया था जिसमें उन्होंने नाना जी को लिखा था कि उन्हें अपने हिसाब किताब की देख रेख के लिए एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो भरोसेमंद और सच्चा हो। पिता जी के संदेश पर नाना जी का संदेश आया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि कल तक एक आदमी हमारे पास पहुंच जाएगा जो पिता जी के इस काम को बेहतर तरीके से देखेगा।

"इसका मतलब वो आदमी अपने बीवी बच्चों के साथ यहीं हवेली में रहेगा?" मैंने पिता जी की तरफ देखा____"और साथ ही आपके बही खातों का सारा हिसाब किताब भी देखेगा?"

"वक्त की नज़ाकत को देखते हुए हमने यही फ़ैसला लिया है कि वो व्यक्ति हवेली में ही अपने बीवी बच्चों के साथ रहे।" पिता जी ने कहा____"अगर हम उसके रहने का इंतजाम इस गांव में ही कहीं करेंगे तो बहुत हद तक संभव है कि वो हमारे किसी दुश्मन का शिकार हो सकता है। इसी लिए हमने सोचा है कि जब तक सफ़ेदपोश जैसे रहस्यमय व्यक्ति का ख़तरा समाप्त नहीं हो जाता तब तक हम उस आदमी को हवेली में ही रखेंगे। इससे वो हमारी नज़रों के सामने भी रहेगा और हमें उसकी तथा उसके परिवार की फ़िक्र भी नहीं करनी पड़ेगी।"

"हां ये ठीक किया आपने।" मैंने सिर हिलाया____"वो हवेली में रहेगा तो चंद्रकांत जैसे व्यक्तियों का साया भी उस पर नहीं पड़ सकेगा।"

खाना बन गया तो मां हमें बुलाने बैठक में आईं। मैं और पिता जी उठ कर अंदर की तरफ चल पड़े। आज काफी दिनों बाद हम दोनों के अलावा विभोर और अजीत भी हमारे साथ खाना खाने बैठे थे। खाने के बाद मैं आराम करने के लिए अपने कमरे में चला गया।

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दो हफ़्ते ऐसे ही गुज़र गए। सब कुछ सामान्य चल रहा था। इस बीच विभोर और अजीत भी मेरे साथ खेतों की तरफ घूमने आ जाते थे। वो दोनों अब कुछ हद तक सामान्य नज़र आने लगे थे। मैं भी यही कोशिश करता था कि दोनों को ये महसूस न हो कि पिता का साया हट जाने के बाद वो दोनों अकेले अथवा अनाथ हो गए हैं।

एक दिन सुबह सुबह हम सब नाश्ता कर रहे थे कि तभी बाहर से एक दरबान अंदर आया और उसने पिता जी को जो कुछ बताया उसे सुन कर हम सबके जैसे होश ही उड़ गए। दरबान के अनुसार रात किसी ने चंद्रकांत के बेटे रघुवीर की हत्या कर दी जिसका इल्ज़ाम चंद्रकांत ने साहूकार हरि शंकर के बेटे रूपचंद्र पर लगाया है और ये भी कि इसमें दादा ठाकुर का भी हाथ है।

पूरे गांव में हड़कंप सा मच गया था। जल्दी ही ये ख़बर दूर दूर तक के गांवों में भी फैल गई। पिता जी और मैं दोनों साथ ही अपना अपना नाश्ता छोड़ कर सीधा मुंशी के घर की तरफ चल पड़े। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि किसी ने रघुवीर की हत्या कर दी और उसकी हत्या का इल्ज़ाम रूपचंद्र के साथ साथ हमारे ऊपर भी लगा रहा था चंद्रकांत।

कुछ ही समय में हम मुंशी के घर के बाहर पहुंच गए। मुंशी की बीवी, बहू और बेटी दहाड़ें मार मार कर रोए जा रहीं थी। साहूकारों का घर क्योंकि मुंशी के घर के पास ही था इस लिए उनके घर वाले भी वहीं जमा थे और साथ ही गांव के बहुत सारे लोग भी।

"आख़िर आपने मेरे बेटे को मरवा ही दिया दादा ठाकुर।" चंद्रकांत पिता जी को देखते ही आक्रोश में बोल पड़ा____"आपने अपना बदला ले ही लिया ना। मेरे घर के इकलौते चिराग़ की हत्या करवा के आपके कलेजे को ठंडक मिल गई ना?"

"होश में रह कर बात करो चंद्रकांत।" पिता जी ने सख़्त भाव से कहा____"दुनिया जानती है कि हम इस तरह की गिरी हुई हरकत ख़्वाब में भी नहीं कर सकते। तुम अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम हम पर नहीं लगा सकते।"

"आप मुझे डराने की कोशिश मत कीजिए दादा ठाकुर।" चंद्रकांत ने चिल्लाते हुए कहा____"मैं आपसे डरने वाला नहीं हूं। मैं चीख चीख कर कहूंगा कि आपने ही साहूकार गौरी शंकर के साथ मिल कर मेरे बेटे की हत्या का षड्यंत्र रचा और फिर उसकी हत्या रूपचंद्र के हाथों करवाई है।"

"ये सब कोरी बकवास है।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी अपनी मनगढ़ंत कहानी है ये। सच तो ये है कि हमने ना तो किसी के साथ इस तरह का कोई षडयंत्र रचा है और ना ही तुम्हारे बेटे की हत्या करवाई है।"

"तुम ये कैसे कह सकते हो कि पिता जी ने गौरी शंकर काका के साथ इस तरह का कोई षडयंत्र रचा है और फिर तुम्हारे बेटे की हत्या करवाई है?" इससे पहले कि चंद्रकांत कुछ बोलता मैंने उससे पूछा____"क्या तुम्हारे इस आरोप को गौरी शंकर काका स्वीकार करते हैं? इससे भी पहले तुम ये बताओ कि आख़िर किस आधार पर तुम मेरे पिता जी पर और गौरी शंकर काका के साथ रूपचंद्र पर इस तरह का आरोप लगा रहे हो? क्या तुमने अपनी आंखों से देखा है रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए?"

"मैंने देखा नहीं है लेकिन अच्छी तरह जानता हूं कि ये सब तुम्हारे पिता जी ने और गौरी शंकर जी ने साथ मिल कर किया है?" चंद्रकांत ने भीड़ की तरफ देखते हुए कहा____"और मेरी बहू ने खुद बताया है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे की हत्या की है।"

"क्या तुम्हारी बहू ने रूपचंद्र को रघुवीर की हत्या करते अपनी आंखों से देखा है?" पिता जी ने पूछा।

"देखा नहीं है लेकिन उसे यकीन है कि रूपचंद्र ने ही उसके पति की हत्या की है।" चंद्रकांत इस बार थोड़ा ठंडा सा पड़ते हुए बोला।

"इस यकीन की वजह?" पिता जी ने पूछा।

"मैं बताती हूं दादा ठाकुर।" रजनी एकदम से सामने आ कर बोल पड़ी। इस वक्त उसके सिर पर साड़ी का घूंघट नहीं था। शायद ऐसे वक्त में रोने धोने से उसे घूंघट करने का ख़याल ही नहीं रह गया था, बोली____"कल शाम को जब मैं दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तब इस रूपचंद्र ने अंधेरे में मेरा रास्ता रोक लिया था।"

"क्या ये सच है?" गौरी शंकर बुरी तरह चौंकते हुए रूपचंद्र की तरफ देखा____"क्या सच में तुमने इसका रास्ता रोका था?"

बेचारा रूपचंद्र। उससे कुछ बोला ना गया। शर्म से सिर झुका लिया उसने। मैं तो जानता ही था कि उसके रजनी के साथ नाजायज़ संबंध थे। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो गौरी शंकर की आश्चर्य से आंखें फैल गईं।

"ये क्या बोलेगा।" रजनी किसी शेरनी की तरह गुर्राई____"सच तो ये है कि ये शुरू से ही मुझे मजबूर कर के मेरी इज्ज़त लूटता रहा है। कल भी ये मेरा रास्ता रोक कर मेरी इज्ज़त को लूटना चाहता था मगर मैंने इसे धमकी दी कि अगर इसने मुझे हाथ लगाया तो सारे गांव वालों को चीख चीख कर इसकी करतूत बता दूंगी। मेरी बात सुन कर ये उस वक्त गुस्से से चला गया था लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि इसी ने मेरी उस धमकी का बदला लेने के लिए रात के किसी समय मेरे पति की हत्या की है।"

रजनी की बातें सुन कर इतनी सारी भीड़ के बावजूद सन्नाटा छा गया। उधर गौरी शंकर और उसके घर की औरतें भौचक्की सी देखती रह गईं थी रजनी को। फिर जैसे सभी को होश आया तो सबके चेहरे गुस्से से आग बबूला होते नज़र आए।

"इसने जो कुछ तेरे बारे में बताया क्या वो सब सच है?" गौरी शंकर गुस्से से दहाड़ते हुए रूपचंद्र से पूछा।

"हां।" रूपचंद्र मरी हुई आवाज़ में बोला____"मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने रजनी को मजबूर कर के इसके साथ संबंध बनाए थे लेकिन मैं ये स्वीकार नहीं करता कि मैंने इसके पति की हत्या की है।"

रूपचंद्र की बात सुन कर गौरी शंकर गुस्से से चिल्ला ही पड़ा उस पर। उसने खूब खरी खोटी सुनाई अपने भतीजे को। रूपचंद्र सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा।

"मैं तो समझता था कि इस गांव में एक दादा ठाकुर का लड़का ही है जो दूसरों की बहू बेटियों की इज्ज़त के साथ खेलता है।" फिर वो हताश भाव से बोला____"किंतु मुझे क्या पता था कि इस तरह का एक हैवान मेरे घर में भी मौजूद है। आख़िर क्यों किया तूने ऐसा? बता वरना इसी वक्त तेरा गला दबा कर तेरी जान ले लूंगा।"

"मैं वैभव से नफ़रत करता था।" रूपचंद्र ने सिर उठा कर एक बार मेरी तरफ देखा और फिर खीझते हुए बोला____"इसने मेरी बहन की इज्ज़त ख़राब की थी तो मैं भी इससे बदला लेना चाहता था। इसके लिए मुझे जो सूझा वही किया मैंने।"

रूपचंद्र की बात सुन कर पिता जी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा तो इस बार सिर झुकाने की बारी मेरी थी। इतने सारे लोगों के सामने एक बार फिर से मेरी इज्ज़त का कचरा हो गया था लेकिन अपनी इज्ज़त का कचरा करवाने का काम तो मैंने खुद ही अपने हाथों किया था। अगर मैंने ऐसे काम ही नहीं किए होते तो भला आज ये सब क्यों होता?

"तुमने एक बार फिर से हमारे सिर को लोगों के सामने झुका दिया है।" पिता जी ने अपने गुस्से को किसी तरह जज़्ब करते हुए मुझसे कहा____"हमें आज तक समझ नहीं आया कि ऊपर वाले ने हमें तुम्हारी जैसी औलाद क्यों दी थी? हमने तो कभी किसी की बहू बेटी पर ग़लत दृष्टि नहीं डाली थी फिर क्यों हमारी औलाद ऐसी वाहियात पैदा हुई? आख़िर हमारी परवरिश में कहां कमी रह गई थी?"

"मैं मानता हूं पिता जी कि मेरा अतीत बहुत बुरा रहा है और मैंने बहुत ही ग़लत कर्म किए हैं।" मैंने गंभीरता से कहा____"लेकिन मेरा यकीन कीजिए कि अब मैं ऐसा नहीं हूं। रही बात रूपचंद्र की बहन की इज़्ज़त को ख़राब करने की तो मैंने उसके साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं की थी। उसकी सहमति से ही सब कुछ हुआ था। उसने अपनी सहमति से अपने प्रेम के चलते खुद को मुझे समर्पित किया था। अगर इसके बावजूद आपको लगता है कि मैंने उसकी इज्ज़त ख़राब की है तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं।"

"ये सब नाटक बंद कीजिए ठाकुर साहब।" चंद्रकांत सहसा चीखते हुए बोला____"यहां मेरे बेटे की हत्या की गई है और ये सब आप लोगों की ही वजह से हुआ है। मुझे इंसाफ़ चाहिए और जिसने मेरे बेटे की हत्या की है उसको मौत की सज़ा मिलनी चाहिए।"

"वैसे तो हमारा इस मामले में कोई हाथ नहीं है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"फिर भी तुम्हारे इंसाफ़ के लिए तुम जहां कहोगे हम हाज़िर हो जाएंगे। अब क्योंकि हम मुखिया नहीं हैं इस लिए इस मामले के लिए तुम जिसे चाहे पंच बना सकते हो और पंचायत में इस मामले को रख सकते हो।"

"वो तो मैं करूंगा ही।" चंद्रकांत ने कहा____"ये मत समझिए कि आप बड़े लोग हैं और आपकी पहुंच बहुत ऊपर तक है तो आप अपने किए गए गुनाह से बच जाएंगे। एक घंटे के अंदर पंचायत लगेगी और यहीं पर फ़ैसला होगा।"

चंद्रकांत कहने के साथ ही अपने घर के अंदर गया और थोड़ी देर में बाहर आ कर वो लट्ठ लिए पैदल ही एक तरफ को बढ़ता चला गया। ज़ाहिर है वो पंच लोगों को बुलाने गया था। उसके जाने के बाद भीड़ में खुसुर फुसुर शुरू हो गई।

"ये बात मैं बहुत पहले से जानता था काका कि रूपचंद्र का रजनी के साथ नाजायज़ संबंध है।" मैंने गौरी शंकर की तरफ देखते हुए कहा____"फिर भी उस दिन पंचायत में मैंने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया था। जानते हैं क्यों? क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि आपके भतीजे की गांव समाज में बदनामी हो। मैं तो पहले से ही बदनाम था इस लिए मेरी वजह से रूपचंद्र क्यों बदनाम हो? मैं जानता था कि ये मुझसे बदला लेने के लिए ही ये सब कर रहा था तो मैं भी देखना चाहता था कि ये किस हद तक जाता है? आपको पता है ये किस हद तक गया? इसने दूसरे गांव के मुरारी काका की मासूम बेटी की भी इज्ज़त लूटने को कोशिश की थी। वो तो शुक्र था कि मैं सही वक्त पर वहां पहुंच गया था वरना ये मुझसे बदला लेने के लिए उस निर्दोष लड़की को बर्बाद ही कर देता। चलो मान लिया कि मैं इसका दोषी था और ये मुझसे बदला लेना चाहता था तो इससे पूछिए कि बदला लेने का भला ये कौन सा तरीका था इसका? अरे! इसे अगर मुझसे इतनी ही नफ़रत थी तो सीधे मुझसे बात करता या फिर मुझसे मुक़ाबला करता।"

रूपचंद्र सिर झुकाए खड़ा रहा। वहीं गौरी शंकर अहसाय भाव से देखता रहा मुझे। भीड़ में खड़े लोग अजीब भाव से हम सबको देख रहे थे।

क़रीब एक घंटे बाद हमने देखा कि कुछ जीपें हमारी तरफ चली आ रहीं हैं। जल्दी ही वो जीपें हमारे पास आ कर रुकीं और फिर उन जीपों से एक एक कर के लोग उतरे। ठाकुर महेंद्र सिंह के साथ कुछ और लोग भी थे जो ठाकुर ही थे। पिता जी को देखते ही सबने उनका अभिवादन किया। चंद्रकांत उनके साथ ही जीप में बैठ कर आया था। वो फ़ौरन ही अंदर जा कर कुछ कुर्सियां ले आया और सबको उनमें बैठाया।

✮✮✮✮

"वैसे तो हमें मामले के बारे में चंद्रकांत ने रास्ते में सब कुछ बता दिया है।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने कहा____"फिर भी आप सबके मुख से हम जानना चाहते हैं कि आख़िर ये मामला क्या है?"

"मामला चंद्रकांत के बेटे की हत्या का है ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"इनका आरोप है कि हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर इनके बेटे की हत्या की साज़िश रची और फिर उसकी हत्या करवा दी। जबकि सच ये है कि हमारा रघुवीर की हत्या से दूर दूर तक कोई ताल्लुक़ ही नहीं है। हमें तो पता ही नहीं था इस बारे में । हम हवेली में अपने बच्चों के साथ सुबह नाश्ता कर रहे थे तभी हमारे दरबान ने आ कर हमें इस बारे में बताया। हमें तो यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसा भी कुछ हो गया है। ख़ैर हमने अपना नाश्ता वहीं छोड़ा और भागते हुए यहां चले आए। यहां आए तो चंद्रकांत ने बिना किसी भूमिका के सीधा हम पर अपने बेटे की हत्या करने का आरोप लगा दिया। हमें इस बात पर अत्यंत आश्चर्य हो रहा है कि चंद्रकांत ने ये कैसे सोच लिया कि हम गौरी शंकर के साथ मिल कर कोई साज़िश कर सकते हैं?"

"दादा ठाकुर सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने कहा____"सबसे पहला सवाल तो यही है कि हम भला इनके साथ कैसे मिल सकते हैं जबकि सबको पता है कि ये वही हैं जिन्होंने हमारे परिवार के इतने सारे सदस्यों की हत्या की थी। क्या आप में से कोई ये सोच सकता है कि हम किसी हत्यारे के साथ मिल जाने का सोच सकते हैं और फिर उसके साथ किसी की हत्या करने की साज़िश भी रच सकते हैं? नहीं ठाकुर साहब ये सब चंद्रकांत की अपनी एक मनगढ़ंत कहानी है। ना तो हमने दादा ठाकुर के साथ मिल कर कोई साज़िश रची है और ना ही हमने किसी की हत्या की है। इतना ही नहीं मुझे इस बात का भी यकीन है कि रघुवीर की हत्या में दादा ठाकुर का भी कोई हाथ नहीं हो सकता?"

गौरी शंकर की आख़िर वाली बात सुन कर पिता जी ने हैरानी से गौरी शंकर की तरफ देखा। मुझे भी उसकी इस बात से बड़ा आश्चर्य हुआ।

"देखा ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम से बोल पड़ा____"ये कहते हैं कि ये अपने लोगों के हत्यारे के साथ मिल जाने का कैसे सोच सकते हैं जबकि इस वक्त ये अपने लोगों के हत्यारे का ही पक्ष ले कर कह रहे हैं कि इन्होंने मेरे बेटे की हत्या नहीं को हो सकती। क्या आपको गौरी शंकर जी की बातों में दो तरह ही बातें नहीं समझ आ रहीं?"

"तुम बेवजह ही मुझे दादा ठाकुर के खिलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रहे हो चंद्रकांत।" गौरी शंकर ने कहा____"असल में तुम चाहते हो कि हमारा दादा ठाकुर से कभी सुलह ही न हो। तभी तो तुम कुछ दिन पहले मेरे पास आए थे और मुझे फिर से दादा ठाकुर के खिलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रहे थे।"

"इस बात का क्या मतलब है?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुम्हारी इन बातों का संबंध इस मामले से है?"

"बेशक है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने पुरज़ोर लहजे में कहा____"असल में कुछ दिन पहले दादा ठाकुर मेरे घर आए थे। ये चाहते थे कि सब कुछ भुला कर हम फिर से अपने संबंधों को बेहतर बना लें। मुझे नहीं पता कि चंद्रकांत को इस बात का कैसे पता चला किंतु ये उसी दिन दोपहर को मेरे खेत में मेरे पास पहुंच गए थे। मुझे समझाने लगे कि मैं ऐसे व्यक्ति से अपने संबंध कैसे बना सकता हूं जिसने मेरे भाइयों और बच्चों की एक साथ हत्या की हो? ये चाहते थे कि मैं इस सबके बाद भी दादा ठाकुर को अपना दुश्मन समझूं। जब मैंने इंकार किया तो इन्होंने कहा कि मैं दादा ठाकुर से ख़ौफ खा गया हूं इस लिए उनके ख़िलाफ़ जाने का सोच भी नहीं सकता मगर ये ज़रूर जाएंगे क्योंकि इनकी नज़र में दादा ठाकुर इनके सबसे बड़े दुश्मन हैं। जब तक ये वैभव को जान से नहीं मार डालेंगे तब तक ये चैन से नहीं बैठेंगे।"

"ये सब झूठ है।" चंद्रकांत बुरी तरह बौखला कर एकदम से ही चीख पड़ा____"पता नहीं ये क्या क्या मनगढ़ंत बातें बोले जा रहे हैं ठाकुर साहब। सच तो ये है कि ना तो मैं इनसे मिलने इनके खेत गया था और ना ही इनसे ऐसी बातें की थीं।"

"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"




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कहानी में एक ट्विस्ट आ गया है मुंशी के बेटे रघुवीर की हत्या हो गई है देखा जाए तो जैसे को तैसा वाली कहावत सच हो गई ।दूसरो के लिए गड्ढा खोदोगे तो खुद ही उस गड्ढे में गिरोगे। हमे लगता है ये सफेद नकाबपोश का ही काम है ????
रूपचंद रजनी को पाने के लिए रघुवीर की हत्या नही कर सकता है क्योंकि वह उसके साथ कई बार संबंध बना चुका है पहली बार तो था नहीं। एक बात तो अच्छी हो गई गौरीशंकर ठाकुर साहब से दुश्मनी भुलाकर अपने रिश्ते सुधारना चाहता है
 
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Ajju Landwalia

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"ऊपर वाले के ख़ौफ से डरो चंद्रकांत।" गौरी शंकर उसके सफ़ेद झूठ बोलने पर पहले तो बड़ा हैरान हुआ फिर बोला____"अपने बेटे की मौत के बाद भी तुम्हें एहसाह नहीं हुआ कि हमने और तुमने मिल कर कितना ग़लत किया था दादा ठाकुर के साथ। मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि अपने बदले की आग में अंधे हो कर तुमने खुद ही अपने बेटे की हत्या की है और उसका इल्ज़ाम मेरे भतीजे रूपचंद्र के साथ साथ दादा ठाकुर पर भी लगाया है। अगर वाकई में ये सच है तो तुम्हें अपनी इस नीचता के लिए चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिए।"


अब आगे....


"चंद्रकांत, इस मामले के बारे में ईमानदारी से अपनी बात पंचायत के सामने रखो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने सख़्त भाव से कहा____"अगर तुम झूठ के आधार पर किसी निर्दोष को फंसाने का सोच रहे हो तो समझ लो इसका बहुत ही बुरा ख़ामियाजा तुम्हें भुगतना पड़ सकता है।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मैं गौरी शंकर जी से मिलने इनके खेत पर गया था और इनसे वो सब कहा भी था।" चंद्रकांत ने महेंद्र सिंह की बात पर एकदम से घबरा कर कहा____"किंतु ये सच है कि मैं बेवजह अथवा झूठ के आधार पर किसी को फंसा नहीं रहा हूं। मैं बदले की भावना में इतना भी अंधा नहीं हुआ हूं कि अपने ही हाथों अपने इकलौते बेटे की हत्या करूंगा और फिर उसकी हत्या का इल्ज़ाम इन लोगों पर लगाऊंगा। चलिए मैं मान लेता हूं कि दादा ठाकुर ने मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी लेकिन मैं ये नहीं मान सकता कि रूपचंद्र ने भी मेरे बेटे की हत्या नहीं की होगी।"

"ऐसा तुम किस आधार पर कह रहे हो?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने पूछा____"क्या तुमने अपनी आंखों से रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा है या फिर तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने रूपचंद्र को तुम्हारे बेटे की हत्या करते हुए देखा हो?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत एकदम हताश हो कर बोला____"यही तो मेरा दुर्भाग्य है कि ना तो मैंने ऐसा देखा है और ना ही किसी और ने। किंतु मेरी बहू ने जो कुछ बताया है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि रूपचंद्र ने ही मेरे बेटे रघुवीर की हत्या की है।"

"ऐसा क्या बताया है तुम्हारी बहू ने?" ठाकुर महेंद्र सिंह ने हैरानी से देखते हुए कहा____"अपनी बहू को बुलाओ, हम उसके मुख से ही सुनना चाहेंगे कि उसने तुम्हें ऐसा क्या बताया था जिसके आधार पर तुमने ये मान लिया कि रूपचंद्र ने ही तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

चंद्रकांत ने बेबस भाव से रजनी को इशारे से अपने पास बुलाया। रजनी सिर पर घूंघट डाले आ कर खड़ी हो गई। चेहरा घूंघट के चलते ढंका हुआ था इस लिए ये पता नहीं चल पाया कि इस वक्त उसके चहरे पर किस तरह के भाव थे? बहरहाल महेंद्र सिंह के पूछने पर रजनी ने झिझकते हुए पिछली रात की सारी बात बता दी जिसे सुन कर महेंद्र सिंह के चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए।

"इस बात से कहां साबित होता है कि रूपचंद्र ने ही रघुवीर की हत्या की है?" फिर उन्होंने चंद्रकांत से कहा____"क्या तुम्हारे पास कोई ऐसा गवाह है जिसने अपनी आंखों से रघुवीर की हत्या करते हुए देखा है? पंचायत में बिना किसी सबूत अथवा प्रमाण के तुम किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगा सकते और ना ही किसी को हत्यारा कह सकते हो।"

"मैं मानता हूं ठाकुर साहब कि मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।" चंद्रकांत ने सहसा दुखी भाव से कहा____"लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि मेरे बेटे की किसी ने हत्या की ही नहीं है। इन लोगों के अलावा मेरी किसी से कोई दुश्मनी अथवा बैर नहीं है फिर कोई दूसरा क्यों मेरे बेटे की हत्या करेगा?"

"अगर तुम मानते हो कि किसी दूसरे ने तुम्हारे बेटे की हत्या नहीं की है बल्कि इन लोगों ने ही की है तो इसे साबित करने के लिए तुम पंचायत के सामने सबूत अथवा प्रमाण पेश करो।" ठाकुर महेंद्र सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा____"बिना किसी प्रमाण के किसी को भी हत्यारा नहीं माना जाएगा। हमारा ख़याल है कि इस मामले में तहक़ीकात करने की ज़रूरत है। हम खुद देखना चाहेंगे कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस जगह पर हुई और साथ ही उसे किस तरीके से मारा गया है? तब तक के लिए पंचायत बर्खास्त की जाती है।"

कहने के साथ ही महेंद्र सिंह जी कुर्सी से उठ गए। उनके साथ बाकी लोग भी उठ गए। भीड़ में मौजूद लोग दबी आवाज़ में तरह तरह की बातें करने लगे थे। इधर महेंद्र सिंह के पूछने पर चंद्रकांत ने बताया कि उसे अपने बेटे की लाश कहां और किस हालत में मिली थी?

महेंद्र सिंह के साथ पिता जी, मैं, गौरी शंकर, रूपचंद्र, और खुद चंद्रकांत चल पड़े। जल्दी ही हम उस जगह पर पहुंच गए जहां पर रघुवीर की लाश मिली थी।

चंद्रकांत का घर गांव में दाखिल होते ही सबसे पहले पड़ता था जबकि गांव से बाहर की तरफ जाने पर सबसे आख़िर में। उसके घर से कुछ ही दूरी पर साहूकारों के घर थे। बहरहाल हम सब चंद्रकांत के घर के पीछे पहुंचे। घर के चारो तरफ क़रीब चार फीट ऊंची चार दिवारी थी जो कि लकड़ी की मोटी मोटी बल्लियों द्वारा बनाई गई थी। सामने की तरफ बड़ा सा चौगान था जिसके एक तरफ गाय भैंस बंधी होती थीं। पीछे की तरफ एक कुआं था और साथ ही दूसरी तरफ छोटा सा सब्जी और फलों का बाग़ था।

रघुवीर की लाश जिस जगह मिली थी वो घर के बगल से जो खाली जगह थी वहां पर पड़ी हुई थी। उस जगह पर ढेर सारा खून फैला हुआ था। क़रीब से देखने पर एकदम से ही दुर्गंध का आभास हुआ। वो दुर्गंध पेशाब की थी। ज़ाहिर है उस जगह पर पेशाब किया जाता था। लाश को क्योंकि चंद्रकांत ने सुबह ही वहां से हटा लिया था इस लिए वहां पर सिर्फ खून ही फैला हुआ दिख रहा था जोकि ज़्यादातर सूख गया था और जो बचा था उसके ऊपर मक्खियां भिनभिना रहीं थी।

"हमारा ख़याल है कि हत्या रात में ही किसी पहर की गई थी।" पिता जी ने सहसा महेंद्र सिंह से कहा____"ज़्यादातर खून सूख चुका है जिससे यही ज़ाहिर होता है। हमें लगता है कि रघुवीर रात के किसी पहर पेशाब लगने के चलते घर से बाहर यहां आया होगा। हत्यारा पहले से ही उसकी ताक में यहां कहीं मौजूद रहा होगा और फिर जैसे ही रघुवीर यहां पेशाब करने के लिए आया होगा तो उसने उसकी हत्या कर दी होगी।"

"शायद आप ठीक कह रहे हैं।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"किंतु सबसे बड़ा सवाल ये है कि हत्यारे को ये कैसे पता रहा होगा कि रघुवीर रात के कौन से पहर पेशाब करने घर से बाहर आएगा?"

"हो सकता है कि ये इत्तेफ़ाक ही हुआ हो कि जिस समय हत्यारा यहां पर मौजूद था उसी समय रघुवीर पेशाब लगने के चलते बाहर आया।" पिता जी ने जैसे संभावना ज़ाहिर की____"या फिर हत्यारे ने रघुवीर के हर क्रिया कलाप को पहले से ही अच्छी तरह गौर फरमा लिया रहा होगा। हमारा मतलब है कि उसने पहले ये जांचा परखा होगा कि रघुवीर पेशाब करने के लिए रात के कौन से वक्त पर घर से बाहर निकलता है। कुछ लोगों की ये आदत होती है कि उनकी पेशाब लगने की वजह से अक्सर रात में नींद खुल जाती है और फिर वो बिस्तर से उठ कर पेशाब करने जाते हैं। संभव है कि रघुवीर के साथ भी ऐसा ही होता रहा हो। हत्यारे ने उसकी इसी आदत को गौर किया होगा और फिर उसने एक दिन अपने काम को अंजाम देने का सोच लिया।"

"क्या रघुवीर अक्सर रातों को उठ कर पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता था?" महेंद्र सिंह ने पलट कर चंद्रकांत से पूछा।

"हां ठाकुर साहब।" चंद्रकांत ने स्वीकार किया____"उसकी तो शुरू से ही ऐसी आदत थी। मैं खुद भी रात में एक दो बार पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकलता हूं। मेरा बेटा भी लगभग रोज ही रात में पेशाब करने के लिए उठता था और फिर घर से बाहर आता था।"

"यानि आपका सोचना एकदम सही था।" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा____"वाकई में रघुवीर पेशाब करने के चलते ही बाहर आया। हत्यारा जोकि रघुवीर की इस आदत से परिचित था वो यहां पर उसी की प्रतीक्षा कर रहा था। जैसे ही रघुवीर पेशाब करने के लिए बाहर आया तो उसने उसे एक झटके में मार डाला।"

"तुम्हें कब पता चला कि रघुवीर की हत्या हो गई है?" पिता जी ने चंद्रकांत से पूछा।

"सुबह ही पता चला था।" चंद्रकांत की आवाज़ भारी हो गई____"रात में तो मुझे किसी तरह का आभास ही नहीं हुआ। सुबह जब मैं पेशाब करने के लिए इस जगह पर आया तो अपने बेटे की खून से लथपथ पड़ी लाश को देख कर मेरी जान ही निकल गई थी।"

"यानि हत्यारे ने एक झटके में ही रघुवीर को मार डाला था।" महेंद्र सिंह ने कहा____"हमारा ख़याल है कि रघुवीर को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ होगा कि कोई उसकी हत्या करने के लिए उसके पास ही मौजूद है। उधर हत्यारा भी अच्छी तरह समझता था कि अगर उसने ग़लती से भी रघुवीर को सम्हलने का मौका दिया तो वो शोर मचा देगा जिससे वो पकड़ा जाएगा। ख़ैर चलिए देखते हैं कि हत्यारे ने रघुवीर को किस तरीके से मारा होगा?"

हम सब जल्दी ही घर के सामने आ गए। घर के बाएं तरफ एक लकड़ी के तखत पर रघुवीर की लाश को रख दिया गया था। तखत में भी उसका बचा कुचा खून फैल गया था। बाहर काफी संख्या में भीड़ थी जो लाश को देखने के लिए आतुर हो रही थी किंतु हमारे आदमियों ने उन्हें रोका हुआ था।

रघुवीर के गले पर एक मोटा सा चीरा लगा हुआ था जो कि सामने की तरफ से था और पूरे गले में था। ज़ाहिर है रघुवीर बुरी तरह तड़पा होगा किंतु हत्यारे ने उसे शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं दिया होगा। चंद्रकांत के बयान से तो यही ज़ाहिर होता था क्योंकि उसे भनक तक नहीं लगी थी। भनक तो तब लगती जब रघुवीर कोई आवाज़ कर पाता। यानि हत्यारे ने रघुवीर का गला तो काटा ही किंतु उसके मुख को तब तक दबाए रखा रहा होगा जब तक कि तड़पते हुए रघुवीर की जीवन लीला समाप्त नहीं हो गई होगी।

"काफी बेदर्दी से जान ली है हत्यारे ने।" महेंद्र सिंह ने रघुवीर के गले में दिख रहे मोटे से चीरे को देखते हुए कहा____"ऐसा तो कोई बेरहम व्यक्ति ही कर सकता है।"

"इन लोगों के अलावा इतनी बेरहमी कौन दिखा सकता है ठाकुर साहब?" चंद्रकांत दुखी भाव से बोल पड़ा____"इन लोगों ने ही मेरे बेटे की इस तरह से हत्या की है। इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला मेरे बेटे की हत्या कर के लिया है। मुझे इंसाफ़ चाहिए ठाकुर साहब।"

"अगर हमें तुम्हारे बेटे की हत्या ही करनी होती तो यूं चोरी छुपे नहीं करते।" पिता जी ने इस बार सख़्त भाव से कहा____"बल्कि डंके की चोट पर करते, जिस तरह गौरी शंकर के अपनों की हत्या की थी। हालाकि अब हमें अपने किए गए कर्म पर बेहद अफसोस और दुख है लेकिन सच यही है कि हमने ये सब नहीं किया है। हमने अपने जीवन में पहले कभी किसी के साथ कुछ ग़लत नहीं किया था और ये बात तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता। तुम हमें हमारे बचपन से जानते हो। फिर ये कैसे सोच सकते हो कि हमने तुम्हारे बेटे की हत्या की है?"

"जब तक कोई प्रमाण नहीं मिलता तब तक तुम किसी पर भी अपने बेटे की हत्या का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।" महेंद्र सिंह ने कहा____"बेहतर यही है कि पहले प्रमाण खोजो और फिर पंचायत में इंसाफ़ की मांग करो।"

"मैं भला कहां से प्रमाण खोजूंगा ठाकुर साहब?" चंद्रकांत ने आहत भाव से कहा____"मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब कभी भी मेरे बेटे का हत्यारा नहीं मिलेगा और जब वो मिलेगा ही नहीं तो भला कैसे कोई इंसाफ़ होगा?"

"अगर तुम ठाकुर साहब पर भरोसा करते हो तो इनसे आग्रह करो कि ये तुम्हारे बेटे के हत्यारे का पता लगाएं।" महेंद्र सिंह ने जैसे सुझाव दिया।

"नहीं ठाकुर साहब।" पिता जी ने कहा____"हम ऐसे किसी भी मामले को अपने हाथ में नहीं लेना चाहते। हम ये भी जानते हैं कि चंद्रकांत को हम पर कभी भरोसा नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि चंद्रकांत खुद अपने बेटे के हत्यारे का पता लगाए और फिर अपने बेटे की हत्या का इंसाफ़ मांगे।"

"अगर ऐसी बात है तो यही बेहतर होगा।" महेंद्र सिंह कहने के साथ ही चंद्रकांत से मुखातिब हुए____"ख़ैर हमें ये बताओ कि तुमने ये कैसे सोच लिया कि तुम्हारे बेटे की हत्या ठाकुर साहब ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के की है?"

"सुबह जब मैंने अपने बेटे की खून से लथपथ लाश देखी तो मेरी चीख निकल गई थी।" चंद्रकांत ने दुखी भाव से कहा____"मेरी चीख सुन कर रघुवीर की मां, मेरी बहु और बेटी तीनों ही बाहर भागते हुए आईं थी। जब उन लोगों ने रघू की खून से लथपथ लाश देखी तो उनकी भी हालत ख़राब हो गई। उसके बाद हम सबका रोना धोना शुरू हो गया। इसी बीच मेरी बहू रजनी ने रोते हुए कहा कि ये सब रूपचंद्र ने किया है। उसकी बात सुन कर मैं उछल ही पड़ा था। मेरे पूछने पर उसने बताया कि कैसे पिछले दिन शाम को जब वो दिशा मैदान कर के वापस लौट रही थी तो रास्ते में रूपचंद्र ने उसे रोक लिया था। रूपचंद्र उसकी इज़्ज़त के साथ खेलना चाहता था जिसके लिए उसने उसे सबको बता देने की धमकी दी थी। मेरी बहू के अनुसार उसकी इस धमकी की वजह से रूपचंद्र बहुत गुस्सा हुआ था तो ज़ाहिर है कि इसी गुस्से में उसने मेरे बेटे की हत्या की होगी।"

"तो फिर तुम ये क्यों कह रहे थे कि ये सब दादा ठाकुर ने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के किया है?" महेंद्र सिंह ने कहा____"क्या तुम बेवजह ही इन्हें अपने बेटे की हत्या में जोड़ कर लोगों के बीच इन्हें बदनाम करना चाहते थे?"

"नहीं ठाकुर साहब।" चंद्रकांत हड़बड़ा कर जल्दी से बोला____"असल में कुछ दिन पहले मैंने सुना था कि ये गौरी शंकर जी के घर गए थे सुलह करने और फिर गौरी शंकर जी भी इनकी हवेली गए थे। मुझे लगा ये दोनों आपस में मिल गए हैं। दूसरी बात साहूकारों का विनाश कर के तो इन्होंने अपने भाई और बेटे की हत्या का बदला ले लिया था किंतु मुझसे और मेरे बेटे से नहीं ले सके थे। मुझे यकीन हो गया कि इन्होंने गौरी शंकर के साथ साज़िश कर के मेरे बेटे की हत्या की है। गौरी शंकर जी क्योंकि अब इनके खिलाफ़ जा ही नहीं सकते इस लिए वो इनके पक्ष में ही बोलेंगे। यही सब सोच कर मैंने इन दोनों पर अपने बेटे की हत्या का आरोप लगाया था।"

"ये सब तुम्हारी अपनी सोच है चंद्रकांत।" पिता जी ने कहा____"तुम्हें भले ही हम पर यकीन न हो लेकिन सच तो यही है कि तुम्हारे बेटे की हत्या से हमारा दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तुम लोगों ने हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी उसके लिए हमने गुस्से में आ कर जो कुछ किया उसके लिए हमें अफ़सोस तो है लेकिन हम ये भी समझते हैं कि हमारी जगह कोई भी होता तो यही करता। शुकर मनाओ कि उस दिन हमें ये पता ही नहीं था कि साहूकारों के साथ तुमने भी हमारे भाई और बेटे की हत्या की थी वरना उस दिन तुम बाप बेटे भी हमारे गुस्से का शिकार हो गए होते। ख़ैर जो हुआ सो हुआ किंतु इस मामले में हमारा कोई हाथ नहीं है। बाकी तुम्हें जो ठीक लगे करो।"

चंद्रकांत कुछ न बोला। महेंद्र सिंह ने अपनी तरफ से इस मामले की तह तक जाने का फ़ैसला किया और चंद्रकांत को आश्वासन दिया कि वो उसके बेटे के हत्यारे को जल्द ही खोज लेंगे और उसके साथ इंसाफ़ करेंगे। उसके बाद सबको अपने अपने घर जाने को बोल दिया गया। चंद्रकांत दुखी हृदय से अपने बेटे की लाश के पास आ कर आंसू बहाने लगा।

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साहूकारों के घर के बाहर सड़क के किनारे जो बड़ा सा पेड़ था उसके नीचे बने चबूतरे के पास हम सब आ कर रुके। गौरी शंकर ने रूपचंद्र को भेज कर अपने घर से कुछ कुर्सियां मंगवा ली जिनमें पिता जी, गौरी शंकर, महेंद्र सिंह और उनके साथ आए लोग बैठ गए। जबकि मैं और रूपचंद्र ज़मीन में ही खड़े रहे।

"आपको क्या लगता है ठाकुर साहब?" महेंद्र सिंह ने पिता जी की तरफ देखते हुए पूछा____"चंद्रकांत के बेटे की हत्या किसने की होगी?"

"ये सवाल हमारे ज़हन में भी है मित्र।" पिता जी ने कहा____"हम खुद इस सवाल पर गहराई से विचार मंथन कर रहे हैं किंतु फिलहाल कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।"

"इतना तो आप भी समझते हैं कि दुनिया में कुछ भी बेवजह नहीं होता।" महेंद्र सिंह ने गहरी सांस खींचते हुए कहा____"ज़ाहिर है चंद्रकांत के बेटे की हत्या भी बेवजह नहीं की होगी हत्यारे ने। अब सवाल ये है कि आख़िर वो कौन सी वजह रही होगी जिसके चलते हत्यारे ने रघुवीर को जान से मार डाला? अगर वजह का पता चल जाए तो कदाचित हमें हत्यारे तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी।"

"एक बात और है बड़े भैया।" महेंद्र सिंह के छोटे भाई ने कुछ सोचते हुए कहा____"और वो ये कि क्या चंद्रकांत के बेटे की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ है या उसकी हत्या का मामला इनसे अलग है?"

"कहना क्या चाहते हो ज्ञानेंद्र?" महेंद्र सिंह ने उसकी तरफ देखा।

"मौजूदा समय में इस मामले के बारे में हर कोई यही सोचेगा कि रघुवीर की हत्या का मामला दादा ठाकुर अथवा गौरी शंकर जी से ही जुड़ा हुआ होगा।" ज्ञानेंद्र सिंह ने अपने शब्दों पर ज़ोर देते हुए कहा____"ज़ाहिर है इस सोच के चलते हम उसके हत्यारे को भी इन्हीं दोनों के बीच तलाश करने का सोचेंगे। हो सकता है कि उसकी हत्या किसी और ने ही की हो, ये सोच कर कि उसकी तरफ किसी का ध्यान जा ही नहीं सकेगा। आख़िर चंद्रकांत और उसके बेटे ने कुछ समय पहले दादा ठाकुर के भाई और बेटे की हत्या की थी तो ज़ाहिर है कि सब तो यही सोचेंगे कि इन्होंने ही रघुवीर की हत्या की होगी। उधर असल हत्यारा हमेशा के लिए एक तरह से महफूज़ ही रहेगा।"

"हम ज्ञानेंद्र की इन बातों से सहमत हैं मित्र।" पिता जी ने सिर हिलाते हुए महेंद्र सिंह से कहा____"यकीनन काबीले-गौर बात की है इन्होंने। हमें भी यही लगता है कि रघुवीर का हत्यारा कोई और ही है जिसने मौजूदा समय में हमारी स्थिति का फ़ायदा उठा कर उसकी हत्या की और सबके ज़हन में ये बात बैठा दी कि ऐसा हमने ही किया है अथवा हमने गौरी शंकर के साथ मिल कर उसकी हत्या की साज़िश की है।"

"अब सोचने वाली बात ये है कि ऐसा वो कौन हो सकता है जिसने इस तरह से आपकी मौजूदा स्थिति का फ़ायदा उठा कर तथा रघुवीर की हत्या कर के अपना काम कर गया?" ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा____"मेरे हिसाब से अब हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आपके अथवा गौरी शंकर जी के अलावा रघुवीर के और किस किस से ऐसे संबंध थे जिसके चलते कोई उसकी हत्या तक करने की हद तक चला गया?"

"हम्म्म्म सही कहा तुमने।" महेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ समय पहले तक चंद्रकांत ठाकुर साहब का मुंशी था। उसका बेटा भी इनके लिए वफ़ादार था। हमें यकीन है कि चंद्रकांत ने मुंशीगीरी करने के अलावा भी ऐसे कई काम ठाकुर साहब की चोरी से किए होंगे जो उसके लिए फ़ायदेमंद रहे होंगे। ऐसे में उसके संबंध काफी लोगों से बने हो सकते हैं और उसके साथ साथ उसके बेटे के भी। हमें चंद्रकांत के ऐसे संबंधों के बारे में जांच पड़ताल करनी होगी। चंद्रकांत से भी उसके ऐसे संबंधों के बारे में पूछना होगा।"

"ठीक है आपको जो उचित लगे कीजिए।" पिता जी ने कहा____"अगर कहीं हमारी ज़रूरत महसूस हो तो बेझिझक हमें ख़बर कर दीजिएगा। हम भी चाहते हैं कि रघुवीर का हत्यारा जल्द से जल्द पकड़ा जाए और ये भी पता चल जाए कि उसने रघुवीर की हत्या क्यों की?"

इस संबंध में कुछ और बातें हुईं उसके बाद महेंद्र सिंह अपने छोटे भाई और बाकी लोगों के साथ उठ कर चले गए। मैं और पिता जी भी जाने लगे तो सहसा गौरी शंकर ने पिता जी को रोक लिया।

"मैं आपसे अपने उन अपराधों की माफ़ी मांगना चाहता हूं दादा ठाकुर।" गौरी शंकर ने अपने हाथ जोड़ कर कहा____"जो मैंने अपने भाइयों और चंद्रकांत के साथ मिल कर आपके साथ किया है। बदले की भावना में हम सब इतने अंधे हो चुके थे कि आपकी नेक नीयती और उदारता को जानते हुए भी आपके साथ हमेशा बैर भाव रखा और फिर वो सब कर बैठे। बदले में आपने हमारे साथ जो किया उसके लिए वास्तव में हम खुद ही ज़िम्मेदार हैं। ये आपके विशाल हृदय का ही सबूत है कि इतना कुछ हो जाने के बाद भी आप हमसे रिश्ते सुधार लेने को कह रहे थे जबकि आपकी जगह कोई और होता तो यकीनन वो ख़्वाब में भी ऐसा नहीं सोचता। हमें हमारे अपराधों के लिए माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब। मैं अपने बच्चों की क़सम खा कर कहता हूं कि अब से मैं या मेरे घर का कोई भी सदस्य आपसे या आपके परिवार के किसी भी सदस्य से बैर भाव नहीं रखेगा। अब से हम आपकी छत्रछाया में ही रहेंगे।"

मैं गौरी शंकर की ये बातें सुन कर आश्चर्य चकित हो गया था। मुझे यकीन है कि पिता जी का भी यही हाल रहा होगा। वो उसकी बातें सुन कर काफी देर तक उसकी तरफ देखते रहे थे। दूसरी तरफ रूपचंद्र सामान्य भाव से खड़ा था।

"चलो देर आए दुरुस्त आए।" फिर उन्होंने गंभीरता से कहा____"हालाकि सोचने वाली बात है कि इसके लिए हम दोनों को ही भारी कीमत चुकानी पड़ी है। काश! इस तरह का हृदय परिवर्तन तुम सबका पहले ही हो गया होता तो आज वो लोग भी हमारे साथ होते जिन्हें हमने अपनी दुश्मनी अथवा नफ़रत के चलते भेंट चढ़ा दिया। कल्पना करो गौरी शंकर कि महज इतनी सी बात को तुम लोगों ने दिल से स्वीकार नहीं किया था और नफ़रत के चलते हमारे साथ साथ खुद अपने ही परिवार के लोगों को मिट्टी में मिला डाला। ऐसा क्यों होता है कि इंसान को वक्त रहते सही और ग़लत का एहसास नहीं होता? ख़ैर कोई बात नहीं, शायद हमारे एक होने के लिए हमें इतनी बड़ी कीमत को चुकाना ही लिखा था।"

"आप सही कह रहे हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने संजीदगी से कहा____"हम इंसान वक्त से पहले प्रेम और नफ़रत के परिणामों का एहसास ही नहीं कर पाते। शायद यही हम इंसानों का दुर्भाग्य है।"

"इंसान अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है गौरी शंकर।" पिता जी ने कहा____"हर इंसान के बस में होता है अच्छा और बुरा कर्म करना। हर इंसान अच्छी तरह जान रहा होता है कि वो कैसा कर्म कर रहा है। कभी प्रेम से, कभी नफ़रत से तो कभी स्वार्थ के चलते। ख़ैर छोड़ो, हम चाहते हैं कि हम सब एक नई शुरुआत करें। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते हैं कि हमारे गांव के साहूकारों का इतना सम्पन्न परिवार नफ़रत की वजह से अपने ही हाथों खुद को गर्त में डुबा ले।"

"आप बहुत महान हैं ठाकुर साहब।" गौरी शंकर ने अधीरता से कहा____"हम जैसे बुरी मानसिकता वाले लोगों के लिए भी इतना कुछ सोचते हैं तो ये आपकी महानता ही है। अब मुझे पूरा भरोसा है कि हम जितने भी लोग बचे हैं आपकी छत्रछाया में खुशी से फल फूल जाएंगे।"

"एक बात और।" पिता जी ने कहा____"तुम्हारी भतीजी ने हमारे बेटे की जान बचा कर इसके ऊपर ही नहीं बल्कि हमारे ऊपर भी बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले हमें कुछ पता नहीं था किंतु अब हमें सब कुछ मालूम हो चुका है इस लिए हम उस प्यारी सी बच्ची को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि इस रिश्ते से अब तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी।"

"मुझे कोई समस्या नहीं है ठाकुर साहब।" गौरी शंकर झट से बोल पड़ा____"बल्कि ये तो मेरे और मेरी भतीजी के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि आप उसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं।"

"तो फिर ये तय रहा।" पिता जी ने कहा____"अगले वर्ष हम बारात ले कर तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारी भतीजी को अपनी बहू बना कर ले जाएंगे।"

पिता जी की इस बता को सुन कर गौरी शंकर सहसा घुटनों के बल बैठ गया और फिर अपने सिर को पिता जी के चरणों में रख दिया। ये देख कर पिता जी पहले तो चौंके फिर झुके और उसे दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया। उधर रूपचंद्र तो सामान्य ही दिख रहा था लेकिन इधर मेरी स्थिति थोड़ा अजीब हो गई थी। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि जो बात असंभव थी वो पलक झपकते ही संभव कैसे हो ग‌ई थी? एकाएक ही मेरा सिर अंतरिक्ष में परवाज़ करता महसूस होने लगा था।

"तुम्हारी जगह हमारे पैरों में नहीं।" सहसा पिता जी की आवाज़ से मैं धरातल पर आया____"बल्कि हमारे हृदय में बनने वाली है गौरी शंकर। अगले वर्ष हम दोनों समधी बन जाएंगे।"

"आप जैसा महान इस धरती में कोई नहीं हो सकता दादा ठाकुर।" गौरी शंकर की आंखें नम होती नज़र आईं____"अब जा कर मुझे एहसास हो रहा है कि इसके पहले हम सब कितने ग़लत थे। काश! पहले ही हम सबको सद्बुद्धि आ गई होती। काश! हमने अपने अंदर नफ़रत को इस तरह से पाला न होता।"

कहते कहते गौरी शंकर का गला भर आया और उससे आगे कुछ बोला ना गया। पिता जी ने किसी तरह उसे शांत किया और फिर समझा बुझा कर उसे घर भेज दिया। उसके बाद मैं और पिता जी बग्घी में बैठ कर अपनी हवेली की तरफ बढ़ चले। इधर मेरे दिलो दिमाग़ में एक अलग ही मंथन चलने लगा था।



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Behad shandar update he The_InnoCent Shubham Bhai


Chanderkant ne apne bete raghuvir ki hatya ka iljam dada thakur aur gaurishankar par lagaya khair vo puri tarah se be-buniyad hi laga................lekin sawal ye he ki aakhir raghuvir ki hatya kisne ki.............mujhe shaq he safedposh par......ek wo hi shaksh aisa he jisko chanderkant ki hatya ke aarop me dada thakur ko fasane me fayda hone wala he..............ya fir chanderkant ki family me se bhi koi ho sakta he...........shayda Rajni.........

Gaurishankar ka hriday parivartan der se hua............khair der aaye durust aaye waki kahavat yaha fit baithati he.................Rupa se vaibhav ki shadi ka prastav dada thakur ne bahut hi sahi samay par rakha he.............vaibhav bhi chaunk gaya dada thakur ke is faisle ko dekhkar..............lekin dusri taraf ab murari kaka ki beti aur rupa me se kis ko chune is ka dwand uske man me chalega...............isme se jitega kaun ye to aage chalkar hi pata chalega...........

Keep posting Bhai
 
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