♡ एक नया संसार ♡
अपडेट....... 《 26 》
अब तक,,,,,,,,
"शायद इसी लिए राज।" निधि ने कहीं खोए हुए कहा था। उसे इस बात का आभास ही नहीं था कि वह अपने बड़े भाई को उसके नाम से संबोधित कर ये कहा था। जबकि...
"र राज..???" विराज बुरी तरह चौंका था। उसने निधि को खुद से अलग कर उसके चेहरे की तरफ हैरानी से देखा।
"क क्या हुआ भइया??" निधि चौंकी, उसको कुछ समझ न आया कि उसके भाई ने अचानक उसे खुद से अलग क्यों किया।
"क्या बताऊॅ??" विराज ने अजीब भाव से उसे देखते हुए कहा__"सुना है इश्क़ जब किसी के सर चढ़ जाता है तो उस ब्यक्ति को कुछ ख़याल ही नहीं रह जाता कि वह किससे क्या बोल बैठता है?"
"आप ये क्या कह रहे हैं?" निधि ने उलझन में कहा__"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा?"
"अरे पागल तूने अभी अभी मुझे मेरा नाम लेकर पुकारा है।" विराज ने कहा__"हाय मेरी बहन प्रेम में कैसी बावली और बेशर्म हो गई है कि अब वो अपने बड़े भाई का नाम भी लेने लगी।"
"क क्याऽऽ????" निधि बुरी तरह उछल पड़ी। हैरत और अविश्वास से उसका मुॅह खुला का खुला रह गया। फिर सहसा उसे एहसास हुआ कि उसके भाई ने अभी क्या कहा है। उसका चेहरा लाज और शर्म से लाल सुर्ख पड़ता चला गया। नज़रें फर्स पर गड़ गईं उसकी। छुईमुई सी नज़र आने लगी वह। उसे इस तरह खड़े न रहा गया। कहीं और मुह छुपाने को न मिला तो पुनः वह विराज से छुपक कर उसके सीने में चेहरा छुपा लिया अपना। विराज को ये अजीब तो लगा किन्तु अपनी बहन की इस अदा पर उसे बड़ा प्यार आया। जीवन में पहली बार वह अपनी बहन को इस तरह और इतना शर्माते देखा था।
अब आगे,,,,,,,
विराज अपनी बहन को अभी इस तरह शर्माते देख ही रहा था कि उसकी पैन्ट की पाॅकेट में पड़ा मोबाइल बज उठा। दोनो ही मोबाइल की रिंगटोन सुन कर चौंके।
"आपका मोबाइल भी न।" निधि ने बुरा सा मुह बना कर कहा__"ग़लत समय पर ही बजता है।"
"अरे! ऐसा क्यों कह रही है तू?" विराज ने पाॅकेट से मोबाइल निकालते हुए कहा था।
"अब जाने दीजिए।" निधि विराज से अलग होकर बोली__"आप देखिये, जाने कौन कबाब में हड्डी बन गया है, हाॅ नहीं तो।"
विराज उसकी बात पर मुस्कुराया और मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे नाम को देख तनिक चौंका फिर मुस्कुरा कर काॅल को रिसीव कर कानों से लगा लिया।
".................।" उधर से जाने क्या कहा गया जिसे सुन कर विराज बुरी तरह चौंका।
"ये क्या कह रहे हो तुम?" विराज ने हैरानी से कहा था।
"...............।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"भाई तूने बहुत अच्छी ख़बर दी है।" विराज खुश होकर बोला__"चल ठीक है मैं देख लूॅगा।"
"..............।"
"ओह तो ये बात है।" विराज ने सहसा सपाट भाव से कहा__"चल कोई बात नहीं भाई। देख लेंगे सबको। और हाॅ...सुन, मैने तेरा काम कर दिया है ठीक है न? चल रख फोन।"
"किससे बात कर रहे थे आप?" निधि ने उत्सुकतावश पूछा।
"अपना ही एक आदमी था गुड़िया।" विराज ने कहा__"उसने फोन करके बहुत अच्छी ख़बर सुनाई है। हमें अब इस टूर को यहीं खत्म करना होगा। क्योंकि बहुत ज़रूरी काम से मुझे कहीं जाना है।"
"क्या मुझे नहीं बताएॅगे?" निधि ने तिरछी नज़र से देखते हुए किन्तु इक अदा से कहा__"कि ऐसी क्या ख़बर सुनाई आपके उस आदमी ने जिसकी वजह से आपको अब जल्दी यहाॅ से निकलना होगा??"
"अरे पागल तुझसे भला क्यों कोई बात छुपाऊॅगा मैं?" विराज हॅसा__"चल रास्ते में बताता हूॅ सब कुछ।"
इसके बाद दोनो भाई बहन शिप के पायलट को सूचित कर शिप को वापस लौटने के लिए कह दिया। लगभग आधे घंटे बाद वो समुंदर के किनारे पर पहुॅचे। इस बीच विराज ने निधि को फोन पर हुई बातों के बारे में बता दिया था जिसे सुन कर वह भी खुश हो गई थी।
शिप से बाहर आकर विराज उस जगह निधि को लेकर गया जहाॅ पर उसकी कार पार्क की हुई थी। दोनो कार में बैठ कर घर की तरफ तेज़ी से बढ़ गए थे। इस बीच विराज ने फोन लगा कर किसी से बातें भी की थी।
शाम होने से पहले ही जब दोनो घर के अंदर पहुॅचे तो माॅ गौरी को ड्राइंगरूम में एक तरफ की दीवार पर लगी बड़ी सी एल ई डी टीवी पर सीरियल देखते पाया। गौरी ने जब अपने बच्चों को देखा तो पहले तो वो चौंकी फिर मुस्करा कर बोली__"आ गए तुम दोनो? चलो अच्छा किया जो जल्दी ही आ गए। जाओ दोनो खुद को साफ सुथरा कर लो तब तक मैं चाय बना कर लाती हूॅ।"
निधि और विराज दोनो अपने अपने कमरे की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में दोनो फ्रेस होकर आए और सोफों पर बैठ गए। तभी गौरी हाथ में ट्रे लिए आई और दोनो को चाय दी और खुद भी एक कप चाय लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।
"माॅ चाचा जी आ रहे हैं आज।" विराज ने चाय की एक चुश्की लेकर कहा__"और मुझे जल्द ही रेलवे स्टेशन जाना होगा उन्हें रिसीव करने के लिए।"
"क्या कह रहा है तू......अभय आ रहा है???" गौरी बुरी तरह चौंकी थी, बोली__"पर तुझे कैसे पता इसका?"
"गाॅव के एक दोस्त ने मुझे फोन पर इस बात की सूचना दी है माॅ।" विराज ने सहसा गंभीर होकर कहा__"उसने बताया कि अभय चाचा चुपचाप ही हमसे मिलने के लिए गाॅव से निकले हैं। उसने ये भी बताया कि पिछले दिन हवेली में कोई बातचीत हो गई थी और अभय चाचा बहुत गुस्से में भी थे।"
"ऐसी क्या बातचीत हुई होगी?" गौरी ने मानो खुद से ही सवाल किया था, फिर तुरंत ही बोली__"और क्या बताया तेरे उस दोस्त ने?"
"मुझे तो ऐसा लगता है माॅ कि कोई गंभीर बात है।" विराज ने कहा__"मेरा दोस्त कह रहा था कि बड़े पापा ने अभय चाचा के पीछे अपने आदमियों को लगाया हुआ है। इससे तो यही लगता है कि वो अभय चाचा के द्वारा हम तक पहुॅचना चाहते हैं।"
"ठीक कहता है तू।" गौरी ने कहा__"ऐसा ही होगा। और अगर कोई बात हो गई है तो उससे अभय और उसके बीवी बच्चों पर ख़तरा भी होगा। उन्हें पता नहीं है कि उनका बड़ा भाई कितना बड़ा कमीना है।"
"इसी लिए तो मैं उन्हें लेने जा रहा हूॅ माॅ।" विराज ने कहा__"चाचा जी को तो शायद इस बात का अंदेशा भी न होगा कि उनके पीछे उनके बड़े भाई साहब ने अपने आदमी लगा रखे हैं।"
"अगर ये सच है कि अभय के पीछे तेरे बड़े पापा ने अपने आदमी लगा रखे हैं तो तू कैसे अभय को उन आदमियों की नज़रों से बचा कर लाएगा?" गौरी ने कहा__"तुझे तो पता भी नहीं है कि वहाॅ पर किन जगहों पर वो आदमी मौजूद होकर अभय पर नज़र रखे हुए हैं?"
"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने कहा__"मैं चाचा जी को सुरक्षित वहाॅ से ले आऊॅगा और उन आदमियों को इसकी भनक भी नहीं लगेगी।"
"ठीक है बेटे।" गौरी ने सहसा फिक्रमंद हो कर कहा__"सम्हल कर जाना और अपने चाचा को सुरक्षित लेकर आना।"
"ऐसा ही होगा माॅ।" विराज ने कहा__"आप बिलकुल भी फिक्र मत कीजिए। मैं उन्हें सुरक्षित ही लेकर आऊॅगा।"
ये कह विराज सोफे से उठ कर बाहर की तरफ चला गया। कुछ ही देर में उसकी कार हवा से बातें कर रही थी। लगभग पन्द्रह मिनट बाद उसकी कार मेन रोड से उतर कर एक तरफ को मुड़ गई। कुछ दूर जाने के बाद विराज ने कार को सड़क के किनारे लगा कर उसे बंद कर दिया और बाॅई कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर ज़रा बेचैनी से नज़र डाली। उसके बाद राइट साइड की तरफ बनी हुई सड़क की तरफ देखने लगा। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे किसी के आने का इन्तज़ार कर रहा हो।
कुछ ही देर में उस सड़क से उसे चार आदमी आते हुए दिखे। उन चारो आदमियों में एक की वेशभूसा सामान्य थी किन्तु बाॅकी के तीनों आदमियों के जिस्म पर कुली की पोशाक थी। थोड़ी ही देर बाद वो चारो विराज की कार के ड्राइविंग डोर के पास आकर खड़े हो गए।
"आने में इतना समय क्यों लगा दिया तुम लोगों ने?" विराज ने कहा__"मैने तुम लोगों को फोन पर बोला था न कि मुझे एकदम तैयार होकर यहीं पर मिलना।"
"साहब वो रामू की बेटी की तबियत बहुत ख़राब थी।" एक आदमी ने कहा__"इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया था। उसके पास पैसे नहीं थे तो हम सबने पैसों की ब्यवस्था की फिर उसे अस्पताल ले गए। उसी में समय लग गया साहब।"
"क्या हुआ उसकी बेटी को?" विराज ने चौंकते हुए पूछा था।
"पता नहीं साहब।" उस ब्यक्ति ने कहा__"एक हप्ते से बुखार थी उसे। थोड़ी बहुत गोली दवाई करवाई थी रामू ने। लेकिन आज दोपहर उसकी तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई इस लिए उसे अस्पताल लेकर जाना पड़ गया।"
"चलो कोई बात नहीं।" विराज ने कहा__"रामू को बोलो कि पैसों की चिन्ता न करे। उसकी बेटी के इलाज में जो भी पैसा लगेगा उसे हमारी कंपनी देगी। उसको बोलो कि वो अपनी बेटी का इलाज बेहतर तरीके से करवाए।"
"जी साहब।" उस आदमी ने खुश होकर कहा__"मैं अभी उसे बोलता हूॅ।"
कहने के साथ ही उस आदमी ने अपनी सर्ट की पाॅकेट से एक छोटा सा कीपैड वाला फोन निकाला और उस पर रामू का नम्बर देख उसे लगा दिया। उसने रामू को सारी बात बताई। उसके बाद उसने फोन बंद कर दिया।
विराज ने कार की डैसबोर्ड पर रखा एक लिफाफा उठाया। उसमे से उसने जो चीज़ें निकाली वो कोई फोटोग्राफ्स थे।
"इनमें से एक एक फोटोग्राफ्स तुम चारो अपने पास रखो।" विराज ने कहा__"इस फोटो में जो आदमी है उसे अच्छी तरह देख लो। क्योंकि इस आदमी को बड़ी सावधानी से रेलवे स्टेशन के बाहर लाना है तुम लोगों को।"
"पर साहब इतनी भीड़ में हम उन्हें खोजेंगे कैसे?" एक आदमी ने कहा__"दूसरी बात क्या पता कौन से डिब्बे में होंगे वो?"
"वो जनरल डिब्बे में ही हैं।" विराज ने कहा__"इस लिए तुम लोग सिर्फ जनरल डिब्बे में ही उन्हें खोजोगे। कहीं और खोजने की ज़रूरत नहीं है। बाॅकी तो सब कुछ तुम्हें फोन पर समझा ही दिया था मैने।"
"ठीक है साहब।" दूसरे आदमी ने कहा__"हम सब इस बात का ख़याल रखेंगे कि उनके पीछे लगे हुए उन आदमियों को पता न चल सके कि वो जिनका पीछा कर रहे हैं वो उनकी आॅखों के सामने से कैसे गायब हो गया??"
"वैरी गुड शंकर।" विराज ने कहा__"अभी ट्रेन के आने में समय है। तब तक मैं तुम्हें एक किराए की टैक्सी का इन्तजाम भी कर देता हूॅ। तुम उन्हें रेलवे स्टेशन से बाहर लाओगे, एक आदमी बाहर टैक्सी में बैठा तुम लोगों का इन्तज़ार करेगा। जैसा कि अभी तुम में से एक आदमी को छोंड़ कर बाकी तीनो कुली के वेश में हो इस लिए तुम तीनो में से जिसे भी वो मिलें तो उनके पास जाकर बड़ी सावधानी से सिर्फ वही कहना जो फोन पर समझाया था।"
"ऐसा ही होगा साहब।" एक अन्य आदमी ने कहा__"आप बेफिक्र रहिए।"
"अच्छी बात है।" विराज ने कहा__"चलो बैठो सब, हमें निकलना भी है अब।"
विराज के कहने पर चारो आदमी खुशी से बैठ गए जबकि विराज ने कार को स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया।
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मुम्बई जाने वाली ट्रेन के उस जनरल कोच में भीड़ तो इतनी नहीं थी किन्तु नाम तो जनरल ही था। कोई किसी को भी बैठने के लिए सीट देने को तैयार नहीं था। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ज़बरदस्ती लड़ झगड़ कर अपने बैठने के लिए सीट का जुगाड़ कर ही लेते हैं। यहाॅ प्यार इज्जत या अनुनय विनय करने वाले को कोई सीट नहीं देता और ना ही सीट के ज़रा से भी हिस्से में कोई बैठने देता है। जनरल कोच में तो ऐसा है कि अगर आप गाली गलौच या लड़ना जानते हैं या फिर तुरंत ही किसी भी ब्यक्ति पर हावी हो जाना जानते हैं तो बेहतर है। क्योंकि उससे आपको जल्द ही कहीं न कहीं सीट मिल जाती है बैठने के लिए। लेकिन उसमें भी शर्त ये होती है कि आपके पास अपनी सुरक्षा के लिए अपने साथ कुछ लोगों का बैकप होना ज़रूरी है वरना अगर आप अकेले हैं और अकेले ही तोपसिंह बनने की कोशिश कर रहे हैं तो समझिये आपका बुरी तरह पिट जाना तय है।
अभय सिंह गरम मिज़ाज का आदमी था। उसे कब किस बात पर क्रोध आ जाए ये बात वो खुद ही आज तक जान नहीं पाया था। मगर आज उस पर कोई क्रोध हावी न हुआ था। उसने सीट के लिए किसी से कुछ नहीं कहा था, बल्कि हाॅथ में एक छोटा सा थैला लिए वह दरवाजे के पास ही एक तरफ कभी खड़ा हो जाता तो कभी वहीं पर बैठ जाता। सारी रात ऐसे ही निकल गई थी उसकी।
ट्रेन अपने नियमित समय से चार घंटे लेट थी। ये तो भारतीय रेलवे की कोई नई बात नहीं थी किन्तु इस सबसे यात्रियों को जो परेशानी होती है उसका कोई कुछ नहीं कर सकता, ये एक सबसे बड़ी समस्या है। यद्यपि अभय को समय का आभास ही इतना नहीं हुआ था क्योंकि वो तो अपने परिवार और अपने बीवी बच्चों के बारे में ही सोचता रहा था। रह रह कर उसके मन में ये विचार उठता कि उसने अपनी देवी समान भाभी के साथ अच्छा नहीं किया। उसे अपने भतीजे का भी ख़याल आता कि कैसे वह उसे हमेशा इज्जत व सम्मान देता था। परिवार में वही एक लड़का था जिस पर संस्कार और शिष्टाचार कूट कूट कर भरे हुए थे। उसे अपने इस भतीजे पर बड़ा स्नेह और फक्र भी होता था। उसकी भतीजी निधि उसकी लाडली थी। वह परिवार में सबसे ज्यादा निधि को ही प्यार और स्नेह देता था। सब जानते थे कि अभय गुस्सैल स्वभाव का था किन्तु उसका गुस्सा कपूर की तरह उस वक्त काफूर हो जाता जब उसकी लाडली भतीजी अपनी चंचल व नटखट बातों से उसे पहले तो मनाती फिर खुद ही रूठ जाती उससे। उसका अपनी किसी भी बात के अंत में 'हाॅ नहीं तो' जोड़ देना इतना मधुर और हृदय को छू लेने वाला होता कि अभय का सारा गुस्सा पल में दूर हो जाता और वह अपनी लाडली भतीजी को खूब प्यार करता। परिवार की बाॅकी दो भतीजियाॅ उसके पास नहीं आती थी, क्यों कि वो सब उससे डरती थी।
अभय का दिलो दिमाग़ गुज़री हुई बातों को सोच सोच कर बुरी तरह दुखी होता और उसकी आॅखें भर आतीं। वह अपने मन में कई तरह के संकल्प लेता हुआ खुद के मन को हल्का करने की कोशिश करता रहा था।
आख़िर वह समय भी आ ही गया जब ट्रेन मुम्बई के कुर्ला स्टेशन पर पहुॅची। अभय अपनी सोचों के अथाह समुद्र से बाहर आया और उठ कर गेट की तरफ चल दिया। काफी भीड़ थी अंदर, लोग जल्द से जल्द नीचे उतरने के लिए जैसे मरे जा रहे थे। अभय खुद भी लोगों के बीच धक्के खाते हुए गेट की तरफ आ रहा था। हलाॅकि खड़ा वह गेट के थोड़ा पास ही था किन्तु वह इसका क्या करता कि पीछे से आॅधी तूफान बन कर आते हुए लोग बार बार उसे पीछे धकेल कर खुद आगे निकल जाते थे। वह बेचारा बेज़ुबान सा हो गया था। कदाचित् उसकी मानसिक स्थित उस वक्त ऐसी नहीं थी कि वह लोगों के द्वारा खुद को बार बार पीछे धकेल दिये जाने पर कोई प्रतिक्रिया कर सके।
कुछ देर बाद आख़िर वह गेट के पास पहुॅचा और ट्रेन से नीचे उतर गया। प्लेटफार्म पर आदमी ही आदमी नज़र आए उसे। उसे समझ न आया कि किस तरफ जाए? इतने बड़े मुम्बई शहर में वह अपनी भाभी व उनके दोनो बच्चों को कहाॅ और कैसे ढूॅढ़ेगा? उसका तो खुद का कहीं ठिकाना नहीं था। उसे अब महसूस हुआ कि वो कितना असहाय और थका हुआ लग रहा है। भूख और प्यास ने जैसे उस पर अब अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। वह अपने साथ खाने पीने की कोई चीज़ लेकर नहीं चला था। कल अपने दोस्त के घर से खाकर ही चला था। हलाॅकि इतने बड़े सफर के लिए उसके दोस्त की बीवी ने खाने का एक टिफिन तैयार कर दिया था किन्तु अभय ने जाने क्या सोच कर मना कर दिया था।
ट्रेन से उतर कर अभय ने उसी तरफ चलने के लिए अपने कदम बढ़ाए जिस तरफ सारे लोग जा रहे थे। अभी वह कुछ कदम ही चला था कि एक कुली उसके पास आया और उसके अत्यंत निकट आकर बड़े ही रहस्यमय किन्तु संतुलित स्वर में बोला__"साहब जी! आपके भतीजे विराज जी आपको लाने के लिए हमें भेजे हैं। कृपया आप मेरे साथ जल्दी चलें।"
अभय सिंह को पहले तो कुछ समझ न आया फिर जब उसके विवेक ने काम किया तो कुली की इस बात को समझ कर वह बुरी तरह चौंका। उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव नाच उठे। उसके मुख से हैरत में डूबा हुआ स्वर निकला__"क् कौन हो तुम? और कहाॅ है मेरा भतीजा?"
"साहब जी अभी आप ज्यादा कुछ न बोलिए।" उस कुली ने कहा__"बस मेरे साथ चलिए और अपना ये बैग मुझे दीजिए। और हाॅ, आप चेहरे से ऐसा ही दर्शाइये जैसे आप अपना सामान कुली को देकर उसके साथ बाहर जा रहे हैं। इधर उधर कहीं मत देखिएगा।"
"अरे...ऐसे कैसे भाई?" अभय को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है उसके साथ__"कौन हो तुम और ये सब क्या है?"
"ओह साहब जी समझने की कोशिश कीजिए।" कुली ने चिन्तित स्वर में कहा__"यहाॅ पर ख़तरा है आपके लिए। इस लिए जल्दी से चलिए मेरे साथ। स्टेशन से बाहर आपके भतीजे विराज जी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
अभय के दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसके मन में विचार उठा कि ये आदमी मुझे जानता है और मेरे लिए ही आया है, वरना दूसरे किसी आदमी को ये सब भला कैसे पता होता? दूसरी बात ये विराज का नाम ले रहा है और कह रहा है कि मेरा भतीजा स्टेशन से बाहर मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन ख़तरा किस बात का है यहाॅ??
अभय को पूरा मामला तो समझ न आया किन्तु उसने इतना अवश्य किया कि अपना बैग उस कुली को दे दिया। कुली उसका बैग लेकर तुरंत ही पलटा और स्टेशन के बाहर की तरफ चल दिया। उसके पीछे पीछे अभय भी चल दिया। दिमाग़ में कई तरह के विचारों का अंधड़ सा मचा हुआ था उसके।
स्टेशन से बाहर आकर वो कुली अभय को लिए एक टेक्सी के पास पहुॅचा। टैक्सी के अंदर बैग रख कर कुली ने अभय को टैक्सी के अंदर बैठने को कहा। लेकिन अभय न बैठा, उसने सशंक भाव से देखा कुली की तरफ। तब कुली ने एक तरफ हाॅथ का इशारा किया। अभय ने उस तरफ देखा तो चौंक गया, क्योंकि जिस तरफ कुली ने इशारा किया था उस तरफ उसका भतीजा विराज खड़ा था। विराज ने दूर से ही टैक्सी में बैठ जाने के लिए इशारा किया।
अभय अपने भतीजे को देख खुश हो गया और उसने राहत की सास भी ली। वह जल्द ही टैक्सी में बैठ गया। टैक्सी के अंदर चार आदमी थे। अभय के बैठते ही टैक्सी तुरंत आगे बढ़ गई। अभय को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये सब पहले से ही प्लान बनाया हुआ था। किन्तु उसे ये समझ न आया कि इस सबकी क्या ज़रूरत थी? आख़िर ये क्या चक्कर है?
"तुम सब लोग कौन हो भाई?" टैक्सी के कुछ दूर जाते ही अभय ने पूछा__"और ये सब क्या चक्कर है? मेरा मतलब है कि मुझे इस तरह रहस्यमय तरीके से क्यों ले जाया जा रहा है?"
"साहब जी ये तो हम भी नहीं जानते कि क्या चक्कर है?" कुली बने शंकर ने कहा__"हम तो वही कर रहे हैं जो करने के लिए विराज साहब ने हमे आदेश दिया था।"
अभय ये सुन कर मन ही मन चौंका कि ये विराज को साहब क्यों कह रहा है? किन्तु फिर प्रत्यक्ष में बोला__"ओह, तो अभी हम कहाॅ चल रहे हैं? और मेरा भतीजा विराज कहाॅ गया? वो इस टैक्सी में क्यों नहीं आया?"
"वो अपनी कार में हैं साहब जी।" शंकर ने कहा__"वो हमें आगे एक जगह मिलेंगे।"
"अ अपनी..क..कार में?" अभय लगभग उछल ही पड़ा था। उसे इस बात ने उछाल दिया कि उसके भतीजे के पास कार कहाॅ से आ गई? वह तो खुद भी यही समझ रहा था कि विराज कोई मामूली सा काम करता होगा यहाॅ।
"जी साहब जी।" उधर अभय के मनोभावों से अंजान शंकर ने कहा__"आगे एक जगह पर हमें विराज साहब मिल जाएॅगे। फिर आपको उनके साथ उनकी कार में बैठा कर हम इस टैक्सी को वापस कर देंगे जहाॅ से लाए थे।"
"क्या मतलब?" अभय चौंका, झटके पर झटके खाते हुए पूछा__"कहाॅ से लाए थे इसे? क्या ये टैक्सी तुम्हारी नहीं है?"
"नहीं साहब जी, ये टैक्सी तो हमने किराए पर ली थी।" शंकर ने कहा__"विराज साहब ने ऐसा ही कहा था। बाॅकी सारी बातें वही बताएॅगे आपको।"
अभय उसकी बात सुनकर चुप रह गया। उसे समझ में आ चुका था कि सारी बातें विराज से ही पता चलेंगी। क्योंकि इन्हें ज्यादा कुछ पता नहीं है। शायद विराज ने इन्हें नहीं बताया था। पर ये लोग विराज को साहब क्यों कह रहे हैं? क्या वो इन लोगों का साहब है? अभय का दिमाग़ जैसे जाम सा हो गया था।
अभय को ये बात हजम नहीं हो रही थी। लेकिन उसने फिर कुछ न कहा। टैक्सी तेज़ रफ्तार से कई सारे रास्तों में इधर उधर चलती रही। कुछ ही देर में टैक्सी एक जगह पहुॅच कर रुक गई। टैक्सी के रुकते ही शंकर नीचे उतरा और पीछे का गेट खोल कर अभय को उतरने का संकेत दिया। अभय उसके संकेत पर टैक्सी से उतर आया। अभी वह टैक्सी से उतर कर ज़मीन पर खड़ा ही हुआ था कि तभी।
"प्रणाम चाचा जी।" अभय के उतरते ही एक तरफ से आकर विराज ने अभय के पैर छूकर कहा__"माफ़ कीजिएगा आपको इस तरह यहाॅ लाना पड़ा।"
"अरे राज तुम?? सदा ही खुश रहो।" अभय ने कहा और एकाएक ही भावना में बह कर उसने विराज को अपने गले से लगा लिया, फिर बोला__"आ मेरे गले लग जा मेरा शेर पुत्तर। कदाचित् मेरे दिल को ठंडक मिल जाए।"
अभय की आॅखों में आॅसू छलक आए थे। उसने बड़े ज़ोर से विराज को भींच लिया था। विराज को भी आज अपने चाचा जी के इस तरह गले लगने से बड़ा सुकून मिल रहा था। आज मुद्दतों बाद कोई अपना इस तरह मिला था। शिकवे गिले तो बहुत थे लेकिन सब कुछ भूल गया था विराज। कुछ देर ऐसे ही दोनो गले मिले रहे। फिर अलग हुए। अभय अपने दोनो हाॅथों से विराज का सुंदर सा चेहरा सहला कर उसके शरीर के बाॅकी हिस्सों को देखने लगा।
"कितना दुबला हो गया है मेरा बेटा।" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"पगले अपना ठीक से ख़याल क्यों नहीं रखता है तू? और भ भाभी कैसी हैं...और...और वो मेरी लाडली गुड़िया कैसी है..बता मुझे??"
"सब लोग एकदम ठीक हैं चाचा जी।" विराज ने कहा__"चलिए हम वहीं चलते हैं।"
"हाॅ हाॅ चल राज।" अभय ने तुरंत ही कहा__"मुझे जल्दी से ले चल उनके पास। मुझे भाभी के पास ले चल...मुझे उनसे....।"
वाक्य अधूरा रह गया अभय सिंह का..क्यों कि दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तीब्रता से जज्बातों का उबाल सा आ गया था। जिसकी वजह से उसका गला भारी हो गया और उसके मुख से अल्फाज़ न निकल सके।
विराज अपने साथ अभय को लिए कुछ ही दूरी पर खड़ी अपनी कार के पास पहुॅचा। फिर उसने कार का दूसरी तरफ वाला गेट खोल कर अंदर अभय को बैठाया। इस बीच शंकर ने अभय का बैग विराज की कार के अंदर रख दिया था। विराज खुद ड्राइविंग डोर खोल कर ड्राइविंग शीट पर बैठ गया। खिड़की के पास आ गए शंकर से उसने कहा__"उस टैक्सी को वापस कर देना। और ये पैसे रामू को दे देना, और ये तुम सब के लिए।"
विराज ने कार में ही रखे एक छोटे से ब्रीफकेस को खोल कर उसमे से दो हज़ार के नोटों की एक गड्डी शंकर को पकड़ाया था जो रामू की बेटी के इलाज़ के लिए था बाॅकी अलग से दो सौ के नोटों की एक गड्डी उन चारों के लिए। पैसे लेकर चारो ही खुशी खुशी वहाॅ से चले गए।
विराज ने कार स्टार्ट की और आगे चल दिया। अभय ये सब देख कर हैरान भी था और खुश भी।
"ये सब क्या चक्कर था राज?" अभय ने पूछा__"उन लोगों ने बताया कि ये सब करने के लिए उन्हें तुमने कहा था, लेकिन इस सबकी क्या ज़रूरत थी भला?"
"ऐसा करना ज़रूरी था चाचा जी।" विराज ने ड्राइविंग करते हुए कहा__"क्योंकि आपके पीछे कुछ ऐसे आदमी लगे थे जो आपकी निगरानी के लिए लगाए गए थे, बड़े पापा जी के द्वारा।"
"क क्या मतलब??" अभय बुरी तरह चौंका था, बोला__"बड़े भइया ने अपने आदमी मेरे पीछे लगा रखे थे? लेकिन क्यों और कैसे? और...और तुझे कैसे पता ये सब?"
"मुझे सबका पता रहता है चाचा जी।" विराज ने कहा__"वक्त और हालात ने सब कुछ सिखा दिया है आपके इस बेटे को। कल जब आप गाॅव से चले थे तब आपके वहाॅ से चलने की सूचना मुझे मेरे एक दोस्त ने फोन पर दी थी। उसने बताया था कि हवेली में कुछ बातचीत हो गई थी और आप हम लोगों से मिलने के लिए मुम्बई निकल चुके हैं। उसने ये भी बताया कि आपके पीछे बड़े पापा ने अपने आदमी भी लगा दिये हैं जो यहीं मुम्बई में हमारी खोज में न जाने कब से मौजूद थे।"
"ओह तो भइया ने ऐसा भी कर दिया मेरे पीछे?" अभय का चेहरा एकाएक सुलगता सा प्रतीत हुआ__"खैर कोई बात नहीं, उनसे उम्मींद भी क्या की जा सकती है? ख़ैर, तो तुम्हें इस सबकी जानकारी तुम्हारे दोस्त ने दी थी फोन के माध्यम से?"
"जी चाचा जी।" विराज ने कहा__"मुझे लगा कहीं आप पर किसी प्रकार का कोई ख़तरा न हो इस लिए मैने ऐसा किया। मैं खुद स्टेशन के अंदर नहीं गया क्योंकि संभव है बड़े पापा के आदमियों की नज़र मुझ पर पड़ जाती, उसके बाद उनके लिए हर काम आसान हो जाता। इस लिए मैंने उन सबसे बचने का ये उपाय किया। कुली के वेश में मेरे आदमी आपको सुरक्षित स्टेशन से बाहर ले आएॅगे। उसके बाद आपको टैक्सी में बैठा कर मेरे आदमी शहर में तब तक इधर उधर सड़कों में घूमते जब तक कि उन्हें ये एहसास न हो जाए कि किसी के द्वारा उनका पीछा अब नहीं किया जा रहा है। कहने का मतलब ये कि अगर बड़े पापा के आदमी किसी तरह आपको देख लिये हों और आपका पीछा करने लगे हों तो मेरे आदमी टैक्सी को तेज़ रफ्तार में इधर उधर घुमा कर उन आदमियों को गोली दे देंगे। उसके बाद मेरे आदमी सीधा वहाॅ आ जाते जहाॅ पर मैंने उन्हें अपने पास आने को बोला था। यहाॅ से मैं आपको अपनी कार में बैठा कर ले जाता। बड़े पापा के आदमी ढूॅढ़ते ही रह जाते उस टैक्सी को।"
"ओह तो ये प्लान था तुम्हारा?" अभय ये सोच सोच कर हैरान था कि उसका इतना संस्कारी और भोला भाला भतीजा आज इतना कुछ सोचने लगा है, बोला__"बहुत अच्छा किया तुमने राज। मैं तुम्हारी इस समझदारी से बहुत खुश हूॅ।" अभय कुछ पल रुका और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर दुख के भाव आ गए, बोला__" कितना ग़लत था मैं....अपने क्रोध और अविवेक के कारण कभी नहीं सोच सका कि वास्तव में क्या सही था क्या ग़लत? अपने देवता जैसे विजय भइया और देवी जैसी अपनी गौरी भाभी पर शक किया और उनसे ये भी न जानने की कोशिश की कभी कि उन पर लगाए गए आरोप सच भी हैं या ये सब आरोप किसी साजिश के तहत उन पर थोपे गए थे? राज बेटे, अपने देवी देवता जैसे भईया भाभी के साथ मैने ये अच्छा नहीं किया। भगवान मुझे इस सबके लिए कभी माफ़ नहीं करेगा।"
ये कहने के साथ ही अभय की आवाज़ भर्रा गई। उसका चेहरा दुख और ग्लानिवश बिगड़ गया। उसकी आॅखों से आॅसू बह चले। विराज अपने चाचा जी के इस रूप को देख कर खुद भी दुखी हो गया था। वह जानता था कि उसके चाचा चाची का कहीं कोई दोष नहीं था। उनका अपराध तो सिर्फ इतना था कि उन्हें जो कुछ बताया और दिखाया गया था उसी को उन्होंने सच मान लिया था। अपने क्रोध की वजह से चाचा ने कभी ये जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि सच्चाई वास्तव में क्या थी?
खैर कुछ ही समय में विराज अपने घर पहुॅच गया। एक बड़े से मेन गेट पर दो गार्ड खड़े थे। विराज की कार देखते ही दोनो गार्ड्स ने मेन गेट खोला। उसके बाद विराज ने कार को अंदर की तरफ बढ़ा दिया। लम्बे चौड़े लान से चलते हुए उसकी कार पोर्च में आकर खड़ी हो गई। दोनो चाचा भतीजा अपनी अपनी तरफ का गुट खोल कर नीचे उतरे। अभय की नज़र जब सामने बड़े से बॅगला टाइप घर पर पड़ी तो वह आश्चर्यचकित सा होकर देखने लगा उसे। इधर उधर दृष्टि घुमा कर देखने लगा हर चीज़ों को।
"राज बेटा ये कहाॅ आ गए हम?" अभय ने अजीब भाव से पूॅछा__"ये तो किसी बहुत ही बड़े आदमी का बॅगला लगता है।"
"आपने बिलकुल सही कहा चाचा जी ये किसी बहुत बड़े आदमी का ही बॅगला है लेकिन।" विराज ने कहा__"लेकिन अब ये बॅगला और ये सब प्रापर्टी आपके इस राज बेटे की ही है।"
"क् क्याऽऽ?????" अभय बुरी तरह चौंका था। आश्चर्य और अविश्वास से उसका मुह खुला का खुला रह गया, बोला__"ये ये सब तेरा है?? लेकिन ये सब तेरा कैसे हो गया राज? क्या तू सच कह रहा है?"
"चलिए अंदर चलते हैं।" विराज ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा__" माॅ और गुड़िया आपका इन्तज़ार कर रही हैं।"
अभय विराज की इस बात पर उसके साथ बॅगले के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि कोई तेज़ी से आया और एक झटके से उससे लिपट गया। अभय इस सबसे पहले तो हड़बड़ाया फिर जब उसकी नज़र लिपटने वाले पर पड़ी तो अनायास ही मुस्कुरा उठा वह।
"अरे ये तो मेरी लाडली गुड़िया है।" अभय ने निधि के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा__"राज, ये मेरी गुड़िया है, ये...।"
अभय का गला भर आया, उसके जज्बात उसके काबू में न रहे। उसने निधि को अपने से छुपका लिया और रो पड़ा वह। उसे इस ख़याल ने बुरी तरह रुला दिया कि आज मुद्दतों के बाद उसने अपनी गुड़िया पर अपना प्यार लुटाने को मिला है। इसके पहले तो वह जैसे पत्थर का बन गया था। उसके दिलो दिमाग़ में इन सबके लिए क्रोध और घृणा भर दी गई थी। पहले जब उसकी भाभी और गुड़िया खेतों पर बने मकान के एक कमरे में रहती थीं तो वह किसी किसी दिन जाता था लेकिन फिर जैसे ही उसे उस सबका ख़याल आता वैसे ही उसका मन क्रोध और गुस्से से भर जाता और वह पत्थर का बन कर वापस चला आता। अपनी लाडली को प्यार व स्नेह देने के लिए वह तड़प जाता लेकिन आगे बढ़ने से हमेशा ही खुद को रोंक लेता था वह।
"आप आ गए न चाचू" निधि ने रोते हुए कहा__"मैं जानती थी कि आप मेरे बिना ज्यादा दिन नहीं रह सकेंगे वहाॅ पर। लेकिन आने में इतनी देर क्यों कर दी आपने? जाइये आपसे बात नहीं करना मुझे, हाॅ नहीं तो।"
ये कह कर निधि अपने चाचू से अलग हो गई और रूठ कर एक तरफ को मुह कर लिया। अभय को लगा कि उसका हृदय फट जाएगा। अपनी गुड़िया के मुख से बस यही सुनने के लिए तो तरस गया था वह। 'हाॅ नहीं तो' जाने इन शब्दों में ऐसा क्या था कि सुन कर अभय को लगा कि इन शब्दों को सुनने के बाद इस वक्त अगर उसे मृत्यु भी आ जाए तो उसे कोई ग़म न होगा।
"तू रूठ जाएगी तो मैं समझूॅगा कि मुझसे ये सारा संसार रूठ गया मेरी बच्ची।" अभय ने तड़प कर कहा__"यहाॅ तक कि वो ईश्वर भी। और फिर उसके बाद मेरे लिए एक पल भी जीने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।"
"न नहीं चाचू नहीं।" निधि तुरंत ही अभय से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बह चले। रोते हुए बोली__"प्लीज ऐसा मत कहिए। आप तो मेरे सबसे अच्छे चाचू हैं। मैं आपसे नाराज़ नहीं हूॅ। और हाॅ आज के बाद ऐसा कभी मत बोलियेगा नहीं तो सच में मैं आपसे बात नहीं करूॅगी, हाॅ नहीं तो।"
जाने कितनी ही देर तक अभय अपनी लाडली को स्नेह और प्यार के वशीभूत हुए खुद से छुपकाए रहा। उसके सिर पर प्यार से हाॅथ फेरता रहा। विराज ये सब नम आॅखों से देखता रहा।
"अगर अपनी लाडली भतीजी से मिलना जुलना हो गया हो तो अपनी भाभी से भी मिल लो अभय।" सहसा गौरी की ये आवाज़ गूॅजी थी वहाॅ। वह काफी देर से बॅगले के मुख्य दरवाजे पर खड़ी ये सब देख रही थी। उसकी आॅखों में भी आॅसू थे।
गौरी की इस आवाज़ को सुन कर अभय और निधि एक दूसरे से अलग हुए। अभय ने पलट कर गौरी की तरफ देखा। जो उसी की तरफ करुण भाव से देख रही थी। उसकी आॅखों में अपने लिए वही आदर वही स्नेह देख कर अभय का दिलो दिमाग़ अपराध बोझ से भर गया। उसे खुद पर इतनी शर्म और ग्लानी महसूस हुई कि उसे लगा ये धरती फटे और वह उसमें रसातल तक समाता चला जाए। दिलो दिमाग़ में भावनाओं का तेज़ तूफान चलने लगा। हृदय की गति तीब्र हो गई। उसे अपनी जगह पर खड़े रहना मुश्किल सा प्रतीत होने लगा।
बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला और नयनों में नीर भरे वह तेज़ी से गौरी की तरफ बढ़ा। गौरी के पास पहुॅचते ही वह अपनी देवी समान भाभी के पैरों में लगभग लोट सा गया। उसके जज्बात उसके काबू से बाहर हो गए। फूट फूट कर रो पड़ा वह। मुह से कोई वाक्य नहीं निकल रहे थे उसके।
अपने पुत्र समान देवर को इस तरह बच्चों की तरह रोते देख गौरी का हृदय हाहाकार कर उठा। वह जल्दी से नीचे झुकी और अभय को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर बड़ी मुश्किल से उठाया उसने। अभय उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था। उसका समूचा चेहरा आॅसुओं से तर था।
"अरे ऐसे क्यों रहे हो पागल?" गौरी खुद भी रोते हुए बोली__"चुप हो जाओ। तुम जानते हो कि मैने हमेशा तुम्हें अपने बेटे की तरह समझा है। इस लिए तुम्हें इस तरह रोते हुए नहीं देख सकती। चुप हो जाओ अभय। अब बिलकुल भी नहीं रोना।"
ये कह कर गौरी ने अभय को अपने सीने से लगा लिया। अपनी भाभी की ममता भरी इन बातों से अभय और भी सिसक सिसक कर रो पड़ा। उसकी आत्मा चीख चीख कर जैसे उससे कह रही थी 'देख ले अभय जिस देवी समान भाभी पर तूने शक किया था और उनके ऊपर लगाए गए आरोपों को सच समझ कर उनसे मुह मोड़ लिया था, आज वही देवी समान भाभी तुझे अपने बेटे की तरह प्यार व स्नेह देकर अपने सीने से लगा रखी है। उसके मन में लेश मात्र भी ये ख़याल नहीं है कि तुमने उनके और उनके बच्चों से किस तरह मुह मोड़ लिया था?'
अभय अपनी आत्मा की इन बातों से बहुत ज्यादा दुखी हो गया। उसे खुद से बेहद घृणा सी होने लगी थी।
"मुझे इस प्रकार अपने ममता के आचल में मत छुपाइये भाभी।" अभय गौरी से अलग होकर बोला__"मैं इस लायक नहीं हूॅ। मैं तो वो पापी हूॅ जिसके अपराधों के लिए कोई क्षमा नहीं है। अगर कुछ है तो सिर्फ सज़ा। हाॅ भाभी....मुझे सज़ा दीजिए। मैं आप सबका गुनहगार हूॅ।"
"ये कैसी पागलपन भरी बातें कर रहे हो अभय?" गौरी ने दोनो हाॅथों के बीच अभय का चेहरा लेकर कहा__"किसने कहा तुमसे कि तुमने कोई अपराध किया है? अरे पगले, मैंने तो कभी ये समझा ही नहीं कि तुमने कोई अपराध किया है। और जब मैने ऐसा कुछ समझा ही नहीं तो क्षमा किस बात के लिए? हाॅ ये दुख अवश्य होता था कि जिस अभय को मैं अपने बेटे की तरह मानती थी वह जाने क्यों अपनी भाभी माॅ से अब मिलने नहीं आता? क्या उसकी भाभी माॅ इतनी बुरी बन गई थी कि वो अब मुझसे बात करने की तो बात ही दूर बल्कि नज़र भी ना मिलाए?"
"इसी लिए तो कह रहा हूॅ भाभी।" अभय रो पड़ा__"इसी लिए तो....कि मैं अपराधी हूॅ। मेरा ये अपराध क्षमा के लायक नहीं है। मुझे इसके लिए सज़ा दीजिए।"
"मैंने तुम्हें हमेशा अपना बेटा ही समझा है अभय।" गौरी ने अभय की आॅखों से आॅसू पोंछते हुए कहा__"इस लिए माॅ अपने बेटे की किसी ग़लती को ग़लती नहीं मानती। बल्कि वह तो उसे नादान समझ कर प्यार व स्नेह ही करने लगती है। चलो, अब अंदर चलो।"
गौरी ने ये कह अभय को उसके कंधों से पकड़ कर अंदर की तरफ चल दी। उसके पीछे विराज और निधि भी अपनी अपनी आॅखों से आॅसू पोंछ कर चल दिये।
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"तुम लोग सब के सब एक नम्बर के निकम्मे हो।" उधर हवेली में अजय सिंह फोन पर दहाड़ते हुए कह रहा था__"किसी काम के नहीं हो तुम लोग। पिछले एक महीने से तुम लोग वहाॅ पर केवल मेरे रुपयों पर ऐश फरमा रहे हो। एक अदना सा काम सौंपा था तुम लोगों को और वह भी तुम लोगों से नहीं हुआ। हर बार अपनी नाकामी की दास्तान सुना देते हो तुम लोग।"
"......................।" उधर से कुछ कहा गया।
"कोई ज़रूरत नहीं है।" अजय सिंह गस्से में गरजते हुए बोला__"तुम लोगों के बस का कुछ नहीं है। इस लिए फौरन चले आओ वहाॅ से।"
ये कह कर अजय सिंह ने मारे गुस्से के लैंड लाइन फोन के रिसीवर को केड्रिल पर लगभग पटक सा दिया था। उसके बाद ड्राइंगरूम के फर्स पर बिछे कीमती कालीन को रौंदते हुए आकर वह वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गया।
सामने के सोफे पर बैठी प्रतिमा क्रोध और गुस्से में उबलते अपने पति को एकटक देखती रही। इस वक्त कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी उसमे। जबकि अजय सिंह का चेहरा गुस्से में तमतमाया हुआ लाल सुर्ख पड़ गया था। कुछ पल शून्य में घूरते हुए वह लम्बी लम्बी साॅसें लेता रहा। उसके बाद उसने कोट की जेब से सिगारकेस निकाला और उससे एक सिगार निकाल कर होठों के बीच दबा कर उसे लाइटर से सुलगाया। दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने उसके गाढ़े से धुएॅ को अपने नाक और मुह से निकाला।
"तुझे तो कुत्ते से भी बदतर मौत दूॅगा हरामज़ादे।" सहसा वह दाॅत पीसते हुए कह उठा__"बस एक बार मेरे हाॅथ लग जा तू। उसके बाद देख कि क्या हस्र करता हूॅ तेरा?"
"क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने सहसा मौके की नज़ाक़त को देखकर पूछा__"फोन पर क्या बातें बताई तुम्हारे आदमियों ने?"
"सबके सब हरामज़ादे निकम्मे हैं।" अजय सिंह कुढ़ते हुए बोला__"आने दो सालों को एक लाइन से खड़ा करके गोली मारूॅगा मैं"
"अरे पर बात क्या हुई अजय?" प्रतिमा चौंकी थी__"तुम इतना गुस्से में क्यों पगलाए जा रहे हो?"
"तो क्या करूॅ मैं?" अजय सिंह जैसे बिफर ही पड़ा, बोला__"अपने आदमियों की एक और नाकामी की बात सुन कर क्या मैं कत्थक करने लग जाऊॅ?"
"एक और नाकामी???" प्रतिमा उछल सी पड़ी थी, बोली__"ये क्या कह रहे हो तुम?"
"हाॅ प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"फोन पर मेरे आदमियों ने बताया कि अभय उन्हें गच्चा दे गया।"
"गच्चा दे गया??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"इसका क्या मतलब हुआ?"
"मेरे आदमियों के अनुसार।" अजय सिंह ने कहा__"अभय उन्हें ट्रेन से उतरते हुए दिखा। उसके बाद वह किसी कुली को अपना बैग देकर उसके साथ स्टेशन के बाहर चला गया। बाहर आकर वह एक टैक्सी में बैठा और वहाॅ से आगे बढ़ गया। मेरे आदमी भी उस टैक्सी के पीछे लग गए। लेकिन उसके बाद वो टैक्सी अचानक ही कहीं गायब हो गई। मेरे उन आदमियों ने उस टैक्सी को बहुत ढूॅढ़ा मगर कहीं उसका पता नहीं चल सका।"
"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा__"कहीं ऐसा तो नहीं कि अभय को इस बात का शक़ हो गया हो कि कोई उसका पीछा कर रहा है और उसने टैक्सी वाले से कहा हो कि वह पीछा करने वालों को गच्चा दे दे।"
"हो सकता है।" अजय सिंह ने सोचने वाले भाव से कहा__"मेरे आदमी ने बताया कि अभय के पास जब कुली आया तो उनके बीच पता नहीं क्या बातें हुईं थी जिसकी वजह से अभय के चेहरे पर चौंकने वाले भाव उभरे थे। ऐसा लगा जैसे वह किसी बात पर चौका हो और वह उस कुली के साथ जाने के लिए तैयार न हुआ था। लेकिन फिर बाद में वह आसानी से अपना बैग कुली को दे दिया और चुपचाप उसके पीछे पीछे चल भी दिया था। चलते समय भी उसके चेहरे पर गहन सोच व उलझन के भाव थे।"
"हाॅ तो इसमें इतना विचार करने की क्या बात है भला?" प्रतिमा ने कहा__"ऐसा तो होता ही है कि आम तौर पर कुलियों की बात पर यात्री लोग इतनी आसानी से आते नहीं हैं। दूसरी बात अभय की उस समय की मानसिक स्थित भी ऐसी नहीं रही होगी कि वह इस तरह किसी कुली के साथ कहीं चल दे।"
"हो सकता है कि तुम्हारी बात ठीक हो लेकिन।" अजय सिंह बोला__"लेकिन इसमें भी सोचने वाली बात तो है ही कि कुली ने ऐसा क्या कहा कि सुनकर अभय बुरी तरह चौंका था और फिर बाद में रहस्यमय तरीके से उस कुली के साथ चल दिया था? कहने का मतलब ये कि उसकी हर एक्टीविटी रहस्यमय लगी थी।"
"अगर ऐसा है भी तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?" प्रतिमा ने कहा__"क्योंकि अभय नाम का पंछी तो आपके आदमियों की आॅखों के सामने से गायब ही हो चुका है अब।"
"ये सब मेरे उन हरामज़ादे आदमियों की वजह से ही हुआ है प्रतिमा। खैर छोड़ो ये सब।" अजय सिंह ने गहरी साॅस लेकर कहा__"ये बताओ कि तुमने अपना काम कहाॅ तक पहुॅचाया?"
"अ अपना काम??" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से कहा__"कौन से काम की बात कर रहे हो तुम?"
"तुम अच्छी तरह जानती हो प्रतिमा कि मैं किस काम के बारे में पूछ रहा हूॅ तुमसे?" अजय सिंह का लहजा सहसा पत्थर की तरह कठोर हो गया__"और अगर तुम इस काम में सीरियस नहीं हो तो बता दो मुझे। अपने तरीके से शिकार करना भली भाॅति आता है मुझे।"
"ओह तो तुम उस काम के बारे में पूछ रहे हो?" प्रतिमा को जैसे ख़याल आया__"यार तुम तो जानते हो कि ये करना इतना आसान नहीं है। भला मैं कैसे अपनी बेटी से ये कह सकूॅगी कि बेटी अपने बाप के पास जा और उनके नीचे लेट जा। ताकि तेरे मदमस्त यौवन का तेरा बाप भोग कर सके।"
"अच्छी बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने ठंडे स्वर में कहा__"अब तुम कुछ नहीं करोगी। जो भी करुॅगा अब मैं ही करूॅगा।"
"न नहीं नहीं अजय।" प्रतिमा बुरी तरह घबरा गई, बोली__"तुम खुद से कुछ नहीं करोगे। मैं अतिसीघ्र ही अपनी बेटी को तुम्हारे नीचे सुलाने के लिए तैयार कर लूॅगी।"
"अब तुम्हारी इन बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं है मुझे।" अजय ने कहा__"बहुत देख ली तुम्हारी कोशिशें। तुमने करुणा के बारे में भी यही कहा था और अब अपनी बेटी के लिए भी यही कह रही हो। तुम्हारी कोशिशों का क्या नतीजा निकलता है ये मैं देख चुका हूॅ। इस लिए अब मैं खुद ये काम करूॅगा और तुम मुझे रोंकने की कोशिश नहीं करोगी।"
"पर अजय ये तुम ठीक...।" प्रतिमा का वाक्य बीच में ही रह गया।
"बस प्रतिमा, अब कुछ नहीं सुनना चाहता हूॅ मैं।" अजय सिंह कह उठा__"अब तुम सिर्फ देखो और उसका मज़ा लो।"
प्रतिमा देखती रह गई अजय को। उसका दिल बुरी तरह घबराहट के कारण धड़कने लगा था। चेहरा अनायास ही किसी भय के कारण पीला पड़ गया था उसका। मन ही मन ईश्वर को याद कर उसने अपनी बेटी की सलामती की दुवा की।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,