♡ एक नया संसार ♡
अपडेट..........《 29 》
अब तक,,,,,,,,,,
ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा। इसी बीच मुझे एक बेटी हुई और दस दिन बाद करुणा ने भी एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। राज उस वक्त चार साल का हो गया था। वो दिन भर अपनी उन दोनो बहनों के साथ ही रहता, और उनके साथ ही हॅसता खेलता। शहर से बड़े भइया और दीदी भी आए थे। सबके लिए कपड़े भी लाए थे। हम सब बेहद खुश थे इस सबसे।
इस बीच एक परिवर्तन ये हुआ कि बड़े भइया शहर से हप्ते में एक दो दिन के लिए हवेली आने लगे थे। माॅ बाबू जी से वो बड़े सम्मान से बातें करते और खेतों पर भी जाते। वहाॅ देखते सुनते सब। मैं और करुणा घर के सारे काम करती। उसके बाद मैं खेत चली जाती विजय जी के पास। खेतों में जो मकान बन रहा था वो बन गया था।
इस बीच बच्चे भी बड़े हो रहे थे। राज पाॅच साल का हुआ तो उसका स्कूल में दाखिला करा दिया अभय ने। गर्मियों में जब स्कूल की छुट्टियाॅ होती तो बड़े भइया और दीदी के बच्चे भी शहर से गाॅव हवेली में आ जाते। सब बच्चे एक साथ खेलते और खेतों में जाते। बड़े भइया की बड़ी बेटी रितू अपनी माॅ पर गई थी। वो ज्यादा हम लोगों से घुलती मिलती नहीं थी। शिवा अपने बाप पर ही गया था। वह अपनी चीज़ें किसी को नहीं देता था और दूसरों की चीज़ें लड़ झगड़ कर ले लेता था। राज से अक्सर उसकी लड़ाई हो जाती थी। बच्चे तो नासमझ होते हैं उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान कहाॅ होता है। इस लिए अगर इनकी आपस में कभी लड़ाई होती तो जेठानी जी अक्सर नाराज़ हो जाती थीं। बड़ी मुश्किल से गर्मियों की छुट्टियाॅ कटती और जेठानी जी अपने बच्चों को लेकर शहर चली जातीं।
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अब आगे,,,,,,,,,,,,
प्रतिमा अपने पति के साथ जब अपने कमरे में पहुॅची तो अचानक ही पीछे से अजय ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया साथ ही अपने होठों को उसकी गर्दन पर लगा कर करते हुए अपने दोनो हाथों से प्रतिमा के बड़े बड़े चूॅचों को बुरी तरह मसलने लगा।
"आऽऽऽह धीरे से प्लीज़।" प्रतिमा की दर्द और मज़े में डूबी आह निकल गई थी, बोली___"ज़रा धीरे से आहहहहह मसलो न अजय। मुझे दर्द हो रहा है।"
"ये धीरे से मसलने वाली चीज़ नहीं है मेरी जान।" अजय सिंह ने उसी तरह प्रतिमा के चूॅचों को मसलते हुए कहा__"इन्हें तो आटे की तरह गूॅथा और मसला जाता है। देख लो मैं वही कर रहा हूॅ।"
"वो तो मैं देख ही रही हूॅ।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"पर मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि इस समय तुम ये सब इतने उतावलेपन से क्यों कर रहे हो? आख़िर किस बात का जोश चढ़ गया है तुम्हें?"
"मत पूछो डियर।" अजय सिंह ने खुद आह सी भरते हुए कहा___"इस हवेली में आज एक और चूॅत आ गई है। मेरी छोटी बहन की प्यारी प्यारी सी चूॅत। हाय काश! उसकी उस चूॅत को पेलने का मौका मिल जाए तो कसम से मज़ा आ जाए प्रतिमा।"
"हे भगवान।" प्रतिमा उछल पड़ी__"तो इस वजह से जोश चढ़ा हुआ है तुम्हें? कसम से अजय तुम न कभी नहीं सुधर सकते। तुम्हारे ही नक्शे कदम पर हमारा बेटा भी चल रहा है। मैने हज़ार बार देखा है उसे, उसकी नज़रें अपनी बहनों पर ही नहीं खुद मुझ पर भी गड़ जाती हैं। उसे ये भी ख़याल नहीं कि मैं उसकी माॅ हूॅ। ये सब तुम्हारी वजह से है अजय। तुम खुद उसकी ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करते रहते हो।"
"अरे तो क्या हो गया मेरी जान?" अजय ने प्रतिमा को उठाकर बेड पर लेटा दिया और फिर उसके ऊपर आकर बोला___"नज़रें तो होती ही हैं नज़ारा करने के लिए। तुम तीनो माॅ बेटियाॅ हो ही इतनी हाॅट एण्ड सेक्सी कि हमारे बेटे का भी इमानडोल गया।"
"तुम्हारे बेटे का बस चले तो अपनी माॅ बहनों को भी अपने नीचे लेटा कर पेल दे।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा था।
"तो इसमें दिक्कत क्या है डियर?" अजय ने बेशर्मी से हॅसते हुए कहा__"उसे भी अपनी कुण्ड का अमृत पिला दो। शायद उसकी प्यास और तड़प मिट ही जाए।"
"ओह अजय कुछ तो शर्म करो।" प्रतिमा ने हैरानी से देखा__"भला ऐसा मैं कैसे कर सकती हूॅ? वो मेरा बेटा है, मैने उसे पैदा किया है।"
"तो क्या हुआ मेरी जान?" अजय ने अपना एक हाॅथ सरका कर प्रतिमा की साड़ी को ऊपर कर उसकी नंगी चूॅत को मसलते हुए कहा___"इसी रास्ते से ही पैदा किया ना अपने बेटे को? अब इसी रास्ते का स्वाद भी चखा दो उसे। यकीन मानो मेरी जान उसके बाद तुम्हारा बेटा तुम्हारा गुलाम ना हो जाए तो कहना।"
"उफफफफ अजय तम्हें ज़रा भी एहसास नहीं है कि तुम क्या बकवास किये जा रहे हो?" प्रतिमा ने नाराज़गी भरे लहजे से कहा__"तुम मुझे ऐसा करने के लिए कैसे कह सकते हो? क्या तुम्हें ज़रा सी भी इस बात से तक़लीफ़ नहीं होगी कि हमारा बेटा तुम्हारी चीज़ों का भोग करे? किस मिट्टी के बने हो तुम यार?"
"यार तो कौन सा घिस जाएगी तुम्हारी ये रस से भरी हुई चूत?" अजय ने अपने हाॅथ की दो उॅगलियाॅ प्रतिमा की रिस रही चूत में अंदर तक डाल कर कहा___"एक बार अपने बेटे का हथियार भी तो डलवा कर मज़ा लो। सक्सेना के साथ तो बड़ा मज़ा करती थी तुम। दो दो हथियारों से आगे पीछे से पेलवाती थी तुम। कसम से डियर, अगर ऐसा हो जाए तो मज़ा ही आ जाए। हम दोनो बाप बेटे एक साथ मिल कर तुम्हारी आगे पीछे से ठुकाई करेंगे।"
"आआआहहहहह अजय।" प्रतिमा ने मदहोशी में कहा___"मत करो ऐसी बातें। मुझे कुछ हो रहा है।"
"हाहाहाहा जब ऐसी बातों से ही तुम्हें कुछ होने लगा है तो ज़रा सोचो डार्लिंग।" अजय ने हॅसते हुए कहा___"सोचो डियर तब क्या होगा जब हम दोनो बाप बेटों के हथियार तुम्हारी पेलाई करेंगे?"
"शशशशशशश कुछ करो अजय।" प्रतिमा की हालत ख़राब___"जल्दी से कुछ करो। मेरी चूत में आग जलने लगी है। इसे बुझाओ जल्दी। वरना मैं इस आग में जल जाऊॅगी।"
"क्या करूॅ डियर?" अजय मुस्कुराया था।
"कुछ भी करो।" प्रतिमा ने बेड सीट को दोनो हाथों की मुट्ठियों में भींचते हुए कहा___"पर मेरी इस आग को शान्त करो जल्दी। उफफफ ये आज क्या हो रहा है मुझे??"
"आज बेटे के हथियार की बात चली है ना इस लिए शायद ऐसा हो रहा है तुम्हें।" अजय ने कहा__"पर बेटे का हथियार तो इस वक्त यहाॅ नहीं है मेरी जान। कहो तो फोन करके शहर से बुला लूॅ उसे?"
"उसे तो आने में समय लगेगा अजय।" प्रतिमा ने आहें भरते हुए कहा___"तुम्हें ही इस आग को शान्त करना पड़ेगा। शशश जल्दी मुझे पेलो ना अजय।"
"इसका मतलब तुम्हें अपने बेटे से पेलवाने में अब कोई ऐतराज़ नहीं है।" अजय मुस्कुराया।
"मुझे तुम्हारी किसी बात से कभी कोई ऐतराज हुआ है क्या?" प्रतिमा ने झटके से उठ कर अजय के कपड़े उतारना शुरू कर दिया था, बोली___"मैं तो तुम्हारी हर जायज़ नाजायज़ बात को अब तक मानती ही आ रही हूॅ। अब जल्दी से मुझे आगे पीछे पेलो। बहुत आग लगी हुई है।"
"ठीक है फिर कल हम दोनो शहर चलेंगे और वहीं पर अपने बेटे के साथ थ्रीसम करेंगे।" अजय ने कहा।
"जो तुम्हारी मर्ज़ी लेकिन अभी तो मुझे शान्त करो।" प्रतिमा ने अजय को नंगा कर दिया था।
अजय ने प्रतिमा की दोनो टाॅगों को अपने दोनों कंधों पर रखा और पोजीशन बना कर प्रतिमा पर छाता चला गया। कमरे के अंदर जैसे एकाएक कोई भारी तूफान आ गया था।
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फ्लैशबैक________
उधर मुम्बई में,
कुछ पल रुकने के बाद गौरी ने गहरी साॅस ली उसके बाद फिर से कहा___"ऐसे ही कुछ साल गुज़र गए। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। राज़ अब बड़ा हो गया था। उस समय वह दस जमात में पढ़ रहा था। पढ़ने लिखने में वह शुरू से ही तेज़ था क्योंकि उसकी पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी अभय और करुणा पर थी। विजय जी ने बाबू जी के लिए एक बढ़िया सी कार खरीद दी थी तथा अभय के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल।
अब की बार जब गर्मियों की छुट्टियाॅ हुईं तो फिर से जेठ जेठानी अपने बच्चों के साथ शहर से गाव आए। किन्तु इस बार हालातों में बहुत बड़ा बदलाव हो चुका था।
गौरी की नज़रें सामने एक बड़े से टेबल पर रखे काॅच के एक बड़े से जार में टिकी थी। जिस जार में भरे हुए पानी पर रंग बिरंगी मछलियाॅ तैर रही थी। उसी काॅच के जार में गौरी एकटक देखे जा रही थी। जैसे वहाॅ कोई फिल्म चल रही हो। एक ऐसी फिल्म जो गुज़रे हुए कल का एक हिस्सा थी।
"कल से ही तुम अपने काम में लग जाओ मेरी जान।" अपने कमरे में बेड के एक तरफ बैठे अजय ने प्रतिमा से कहा___"हमें किसी भी कीमत पर उस मजदूर को अपने काबू में करना है।"
"और अगर उसने कोई हंगामा खड़ा कर दिया तो?" प्रतिमा ने तर्क दिया___"तब तो मैं इस घर में किसी को मुह दिखाने के काबिल भी न रह जाऊॅगी।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।" अजय ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"मुझे पता है वो साला इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा। और अगर उसने इस सबमें ज्यादा चूॅ चाॅ की तो उसके इलाज़ के लिए भी फिर प्लान बी अपनाया जाएगा।"
"और प्लान बी क्या है?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए पूछा था।
"प्लान बी ये है कि तुम्हारी उन हरकतों से अगर वह घर में किसी से कुछ कहता है और अगर सारी बात तुम पर ही आती है तो तुम उल्टा उस पर ही इल्ज़ाम लगाना।" अजय सिंह उसे समझा रहा था___"चीख चीख कर सबसे यही कहना कि विजय खुद कई दिन से तुम्हारी इज्जत लूटने के चक्कर में था। बाद में फिर मैं हूॅ ही इन हालातों को अंजाम तक ले जाने के लिए।"
"तुम क्या करोगे उस सूरत में?" प्रतिमा ने पूछा।
"वो सब तुम मुझ पर छोंड़ दो।" अजय ने कहा___"अभी उतना ही करो जितना कहा है। इधर मैं भी अपने काम में लग जाता हूॅ।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"लेकिन अभय और करुणा से सावधान रहना। अभय की तरह करुणा भी ज़रा तेज़ तर्रार है।"
"चिन्ता मत करो।" अजय ने कहा___"सबको देख लूॅगा एक एक करके। पहले इन दोनो से तो निपट लूॅ।"
"ठीक है।" प्रतिमा ने कहा___"आज विजय का खाना लेकर मैं जाऊॅगी। गौरी की तबियत बुखार के चलते परसो से कुछ खराब है। कल तो नैना गई थी विजय को खाना देने। आज मैं जाऊॅगी।"
"ठीक है।" अजय ने कहा__"और हाॅ ब्लाउज बिलकुल बड़े गले वाला पहन कर जाना। बाॅकी तो तुम समझदार ही हो।"
प्रतिमा मुस्कुरा कर बेड से उठी और कमरे से बाहर निकल गई। जबकि अजय के होठों पर एक ज़हरीली मुस्कान तैर उठी। वह उसी बेड पर आराम से लेट कर ऊपर छत में कुंडे पर तेज़ रफ्तार से घूम रहे पंखे की तरफ घूरने लगा था।
प्रतिमा जब किचेन में पहुॅची तो उसकी छोटी ननद नैना विजय के लिए टिफिन तैयार कर रही थी। नैना उस वक्त बाइस तेइस साल की थी। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और बीएस सी करने बाद अब घर में ही रहती थी। उसकी शादी के लिए बाबू जी लड़का तलाश कर रहे थे।
"क्या कर रही हो नैना?" प्रतिमा ने बड़े प्यार से नैना से पूछा था।
"मॅझले भइया के लिए खाने का टिफिन तैयार कर रही हूॅ भाभी।" नैना ने कहा__"मॅझली भाभी की तबियत ठीक नहीं है न इस लिए ये टिफिन मैं ही ले जा रही हूॅ कल से। ख़ैर छोड़िये आप बताइये आप किस काम से किचेन में आई हैं?"
"मैं भी इसी लिए यहाॅ आई थी कि अपने देवर के लिए खाना पहुॅचा दूॅ।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"बेचारी रात दिन जी तोड़ मेहनत करते हैं।"
"हीहीहीही आप तो शहर वाली हैं भाभी आप खेतों पर टिफिन लेकर जाएॅगी तो लोग क्या कहेंगे?" नैना ने हॅसते हुए कहा___"जाने दीजिए भाभी ये आपको शोभा नहीं देगा। टिफिन तैयार हो गया है अब चलती हूॅ मैं। आज तो वैसे भी देर हो गई है। मॅझले भइया के पेट में तो अब तक चेहे भी कूदने लगे होंगे।"
"तो तुम भी मुझे ताना मारने लगी हो?" प्रतिमा ने अपने चेहरे पर दुख के भाव प्रकट करते हुए कहा___"क्या मेरा इतना भी हक़ नहीं बनता कि मैं अपनी इच्छा से इस घर में कुछ कर सकूॅ?"
"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" नैना ने हड़बड़ाते हुए कहा___"भला मैं क्यों आपको ताना मारूॅगी। और बाकी सब भी कहाॅ आपको ताना मारते हैं?"
"सब समझती हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"लोग मेरे सामने मेरे मुख पर नहीं बोलते लेकिन मेरे पीठ पीछे तो सब यही बोलते हैं न। एक मैं हूॅ जो हर बार यहीं सोच कर आती हूॅ कि घर में इस बार सबका हाॅथ बटाऊॅगी और सबसे खूब हॅसूॅगी बोलूॅगी। लेकिन हर बार यहाॅ आने पर मेरी इन सभी इच्छाओं पर ग्रहण लग जाता है।"
"ओह भाभी प्लीज़।" नैना कह उठी__"आप ये सब बेकार ही सोचती हैं। आपके बारे कोई कुछ नहीं बोलता है और ना ही सोचता है ऐसा वैसा।"
"तो फिर क्यों मुझे इन सब कामों को करने से मना कर रही हो तुम?" प्रतिमा ने कहा__"मुझे करने दो ना जिसे करने का मेरा बहुत मन करता है। मैं भी सबकी तरह ये सब काम खशी खुशी करना चाहती हूॅ।"
"पर भाभी आप ये।" नैना का वाक्य अधूरा रह गया।
"देखा, फिर से वही शुरू कर दिया।" प्रतिमा ने कहा__"तुम अभी भी यही समझती हो कि मैं ये सब करूॅगी तो लोग क्या सोचेंगे। अरे हर काम की शुरूआत पर लोग ऐसा ही सोचते हैं। तो क्या हम लोगों की सोच को लेकर कोई काम ही ना करें? दूसरे लोग सोचें या न सोचें किन्तु इस घर के लोग सबसे पहले सोच लेते हैं।"
नैना हैरान परेशान देखती रह गई प्रतिमा को। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी भाभी को क्या कहे।
"मैं तो ये सब इसी लिए कह रही थी भाभी क्योंकि आपको इन सब कामों की आदत नहीं है।" नैना ने कहा__"बाहर जिस्म को जला देने वाली धूप है और गर्मी इतनी कि पूछो ही मत। आप बेवजह इस धूप और गरमी में परेशान हो जाएॅगी।"
"कुछ नहीं होगा मुझे।" प्रतिमा ने कहा__"और क्या अपने देवर के लिए इतना भी नहीं कर सकती मैं?"
"अच्छा ठीक है भाभी।" नैना ने कहा__"पर मैं भी आपके साथ चलूॅगी। आप अकेले इस धूप में परेशान हो जाएॅगी।"
"नहीं नैना।" प्रतिमा ने कहा__"मुझे अकेले ही जाने दो। अकेली जाऊॅगी तो देवर जी को भी लगेगा कि उनकी भाभी को उनकी फिकर है। वरना अगर तुम्हारे साथ जाऊॅगी तो वो यही सोचेंगे कि मैं वहाॅ कोई एहसान जताने आई थी।"
"विजय भइया ऐसे नहीं हैं भाभी।" नैना ने हॅस कर कहा__"वो किसी के भी बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोचते। बल्कि वो तो हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह की तरह एकदम चुप व शान्त रहने वाले हैं।"
"चलो छोड़ो ये सब।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही नैना के हाॅथ से टिफिन ले लिया__"जब तक गौरी अच्छी तरह से ठीक नहीं हो जाती तब तक खेतों में विजय को खाना पहुॅचाने की जिम्मेदारी मेरी है। और तुम्हारी जिम्मेदारी ये है कि तुम रितू और नीलम यहाॅ हैं तब तक उनको पढ़ाओ।"
"ठीक है भाभी जैसा आप कहें।" नैना ने हॅसते हुए कहा__"आप सच में बहुत स्वीट हैं। आई लव यू माई स्वीट ऐण्ड ब्यूटीफुल भाभी।"
"ओह लव यू टू माई स्वीट ननद रानी।" प्रतिमा ने भी मुस्कुराकर कहा__"चलो अब मैं चलती हूॅ।"
इतना कह कर प्रतिमा किचेन से बाहर आ कर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। जबकि नैना अपने कमरे की तरफ मुस्कुराते हुए चली गई। इधर कमरे में आकर प्रतिमा ने टिफिन को बेड के पास दीवार तरफ सटे एक टेबल पर रखा और फिर आलमारी की तरफ बढ़ गई।
"क्या हुआ तुम यहीं हो?" अजय सिंह ने चौंकते हुए कहा था___"अभी तक खेतों पर गई नहीं???"
"तुम तो इस सबको इतना आसान समझते हो जबकि तुम्हें पता होना चाहिए कि कहने और करने में ज़मीन आसमान का फर्क होता है।" प्रतिमा ने आलमारी से एक झीनी सी साड़ी निकालते हुए कहा था।
"वो तो मुझे भी पता है।" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन मेरे कहने का मतलब ये था कि टिफिन तैयार करने में बेवजह इतना समय क्यों लगा दिया तुमने?"
"यार जब मैं किचेन में गई तो वहाॅ पर नैना आलरेडी टिफिन तैयार कर चुकी थी।" प्रतिमा ने कहा___"और वह टिफिन लेकर खेतों पर जाने ही वाली थी। इस लिए मुझे उसे इमोशनली ब्लैकमेल करना पड़ा।"
"क्या मतलब??" अजय सिंह चौंका।
प्रतिमा ने उसे किचेन में नैना और खुद के बीच हुई सारी बातें बता दी। सारी बातें सुनने के बाद अजय सिंह बोला___"ये बिलकुल सही किया तुमने। और अब इसके आगे का भी ऐसा ही परफेक्ट हो तो मज़ा ही आ जाए।"
"ऐसा ही होगा डियर।" प्रतिमा ने अपने जिस्म से पहले वाले कपड़े उतार दिये। अब वह ऊपर मात्र ब्रा में थी जबकि नीचे पेटीकोट था।
"इस ब्रा को भी उतार दो ना डियर।" अजय सिंह मुस्कुराया__"अपने बड़े बड़े तरबूजों के ऊपर सिर्फ ये लोकट वाला ब्लाउज ही पहन कर जाओ। ताकि उस साले मजदूर को नज़ारा करने में आसानी हो।"
"बड़े बेशर्म हो सच में।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा और अपने हाॅथों को पीछे अपनी पीठ पर ले जाकर ब्रा का हुक खोल कर उसे अपने शरीर से अलग कर दिया।
"हाय, इन भारी भरकम तरबूजों पर जब उस मजदूर की दृष्टि पड़ेगी तो यकीनन उस साले की आॅखें फटी की फटी रह जाॅएॅगी।" अजय ने आह सी भरते हुए कहा था___"सारा इमान पल भर में चकनाचूर हो जाएगा उसका।"
"काश! ऐसा ही हो।" प्रतिमा ने ब्लाऊज को पहनते हुए कहा___"अगर बात बन गई तो मुझे भी एक नई चीज़ मिल जाएगी।"
"बिलकुल बात बनेगी डियर।" अजय सिंह ने ज़ोर देकर कहा___"तुम तो उर्वशी या मेनका से भी सुंदर व मालदार हो। भला तुम्हारे सामने वो मजदूर कब तक टिका रहेगा?"
"तुम हर बात पर उसे मजदूर क्यों बोल रहे हो अजय?" प्रतिमा ने कहा___"जबकि वह भी तुम्हारी तरह ठाकुर गजेन्द्र सिंह बघेल की औलाद है और तुम्हारा सगा भाई है।"
"जो भी हो।" अजय सिंह बोला__"है तो एक मजदूर ही ना? अब मजदूर को मजदूर ना कहूॅ तो और क्या कहूॅ?"
"चलो अब मैं जा रहीं हूॅ।" प्रतिमा ने आदमकद आईने में खुद को देखने के बाद कहा__"अब मेरा ड्रेस ठीक है ना?"
"एकदम झक्कास है मेरी जान।" अजय सिंह ने कहा___"इस ड्रेस में तुम्हें देख कर अब तो मुझे ऐसा लग रहा है कि अभी एक बार तुम्हें इसी बेड पर पटक कर पेल दूॅ पर जाने दो।"
प्रतिमा उसकी इस बात पर हॅस पड़ी और फिर टेबल से टिफिन उठा कर कमरे से बाहर जली गई।
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वर्तमान_______
हल्दीपुर पुलिस स्टेशन !
"तो क्या जानकारी मिली तुम्हें?" अपनी कुर्सी पर बैठी रितू ने सामने खड़े हवलदार से पूछा था।
"मैडम जिन लड़के लड़कियों की लिस्ट आपने दी थी।" वह हवलदार कह रहा था जिसकी वर्दी की नेम प्लेट पर उसका नाम राम सिंह लिखा हुआ था, बोला___"उनमें से कुछ तो उसी काॅलेज के हैं जिस काॅलेज में वो पीड़िता यानी विधी चौहान पढ़ती है जबकि बाॅकी के सब बाहरी हैं। मेरा मतलब कि उस काॅलेज के नहीं हैं।"
"बाहर से कौन से लड़के लड़कियाॅ हैं?" रितू ने पूछा था।
"बाहर के तो सब लड़के ही हैं मैडम।" हवलदार रामसिंह ने कहा___"वो भी दो ही हैं। एक तो वही संपत है जो इसी इलाके का एक छोटा मोटा ग़ुडा मवाली है जबकि दूसरा संदीप अग्निहोत्री है, ये दूसरे काॅलेज में बीए लास्ट इयर का छात्र है।"
"ओके बाकी के सब लोगों के बारे में क्या पता चला?" रितू ने पूछा।
"विधी के साथ काॅलेज में पढ़ने वाली जिस लड़की की बर्थडे पार्टी थी उस रात, उसका नाम खुशी जिन्दल है। बड़े बाप की औलाद है। माॅ बाप पूणे में रहते हैं। यहाॅ पर वह अपनी एक आया के साथ रहती है और वो मकान भी उसके बाप ने ही उसे खरीद कर दिया था। ताकि वह अपनी आया के साथ रह कर काॅलेज में पढ़ाई कर सके। पार्टी में दोस्तों के रूप में चार लड़के थे और पाॅच लड़कियाॅ, जिनमे से एक लड़की खुशी जिन्दल की आया की थी। दो लड़के बाहरी थे। सभी लड़कों की डिटेल इस प्रकार है____
1, सूरज चौधरी, 22 साल का विधी के ही कालेज में एम ए का छात्र है। इसके बाप का नाम दिवाकर चौधरी है। ये शहर का पोलिटीसियन है। इसके बारे में सारा शहर जानता है कि ये कैसा आदमी है। इसके कई गैर कानूनी धंधे भी कानून के नाक के नीचे से चलते हैं। सूरज चौधरी अपने बाप की बिगड़ी हुई औलाद है। पता चला है कि इसने कई लड़कियों की ज़िंदिगियाॅ बरबाद की हैं। अपनी सुंदर पर्शनालिटी और पैसों की वजह से कोई भी लड़की इसकी तरफ आकर्षित हो जाती है। ये लड़कियों को प्यार के जाल में फॅसा कर उनकी अश्लील वीडियो बना कर उन्हें हर तरह के काम करने के लिए ब्लैकमेल करता है। विधी चौहान इससे प्यार करती है।
2, अलोक वर्मा, ये भी सूरज के साथ ही पढ़ता है। सूरज का पक्का यार है ये। बाप बहुत साल पहले गंभीर बीमारी से चल बसा था तब से यह अपनी विधवा माॅ के साथ ही रहता है। इसकी माॅ किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती है।
3, किशन श्रीवास्तव, ये भी सूरज के साथ ही कालेज में पढ़ता है। इसके बाप का नाम अवधेश श्रीवास्तव है। ये इसी शहर का एक क्रिमिनल लायर है। इसके दिवाकर चौधरी से बड़े गहरे संबंध हैं। दिवाकर चौधरी के हर ग़ैरकानूनी काम में ये उसकी हर तरह से मदद करता है।
4, रोहित मेहरा, ये भी सूरज के साथ ही उस कालेज में पढ़ता है। इसके बाप ईआ नाम अशोक मेहरा है। ये शहर का बिल्डर है। पैसों की कोई कमी नहीं है इसके पास। सुना है कई ज़मीनों पर इसने अवैध कब्जा किया हुआ है। इसके भी दिवाकर चौधरी और वकील अवधेश श्रीवास्तव से बड़े गहरे संबंध हैं।
5, नीता ब्यास, ये 20 साल की है और विधी के साथ ही उस कालेज में पढ़ती है। ये इन्दौर की रहने वाली है। यहाॅ पर ये अपने मामा जी के यहाॅ रह कर ही पढ़ाई कर रही है।
6, अनीता ब्यास, ये नीता की जुड़वा बहन है तथा ये भी अपनी बहन के साथ ही मामा जी के यहाॅ रहकर पढ़ाई कर रही है।
7, स्नेहा शर्मा, ये 20 साल की है, ये भी विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसका बाप सरकारी बैंक में मैनेजर है।
8, संजना सिंह, ये 20 साल की है, और विधी के साथ ही कालेज में पढ़ती है। इसके बाप का इसी शहर में एक बड़ा सा माॅल है। ये दो भाई बहन है। इसका भाई संजय सिंह इससे छोटा है और अभी इस साल हाई स्कूल में है।
"मैडम ये थे उस कालेज में विधी के साथ एक ग्रुप में रहने वाले लड़के लड़कियाॅ।" रामदीन ने कहा___"मैने अपने तरीके से पता किया है कि विधी के साथ जो घटना घटित हुई उसमें सूरज चौधरी मुख्य आरोपी है। सूरज के साथ ही इस हादसे को अंजाम देने में उसके ये चारों दोस्त और उस बर्थडे गर्ल यानी खुशी जिन्दल का भी बराबर का हाॅथ है। बात दरअसल ये थी कि विधी एक अच्छे घर की और अच्छे संस्कारों वाली लड़की थी। वह खूबसूरत थी। कभी किसी लड़के को भाव नहीं देती थी। आज से दो तीन साल पहले वह किसी विराज सिंह नाम के लड़के से प्यार करती थी जो उसके साथ ही स्कूल में पढ़ता था। वो स्कूल और ये कालेज लगभग पास में ही थे इस लिए सूरज की नज़र इस पर बहुत पहले से ही थी। उसने बड़ी मुश्किल से किसी तरह इससे दोस्ती कर ली थी। उसके बाद ऐसे ही एक दिन इसने अपने जन्मदिन पर अपने सभी दोस्तों को फार्महाउस पर इन्वाइट किया था। विधी को भी उसने खासतौर पर इन्वाइट किया था। विधी जब इसके फार्महाउस पर उस शाम गई तो पार्टी में सब काफी एंज्वाय कर रहे थे। इस बीच सूरज ने विधी को अपनी दोस्ती का वास्ता देकर इसे कोल्ड ड्रिंक पिला दिया। उस कोल्ड ड्रिंक में हल्का ड्रग्स भी मिला हुआ था। विधी ने जब उस कोल्ड ड्रिंक को पिया तो उसे कुछ देर बाद चक्कर से आने लगे। सूरज अपनी चाल में कामयाब हो चुका था, उसने अपनी एक दोस्त जिसका नाम रिया सचदेवा था उससे कह कर विधी को कमरे में ले गई और उसे बेड पर लिटा दिया। विधी को कुछ होश नहीं था। इधर सूरज कमरे में आया और विधी के जिस्म से सारे कपड़े उतार कर और खुद भी पूरी तरह निर्वस्त्र होकर विधी के साथ गंदा काम किया। इस सबकी वीडियो सूरज का ही एक दोस्त अलोक वर्मा बना रहा था। ख़ैर जब विधी को होश आया तो वह अपने घर में अपने ही बेडरूम थी। उसे पिछली शाम का सब कुछ याद आया। उसे इस बात की हैरानी हुई कि वह अपने घर कैसे आई? तब उसकी माॅ ने बताया कि उसकी एक दोस्त जिसका नाम रिया था वह उसे छोंड़ कर गई थी। विधी की माॅ ने उसे इस बात के लिए डाॅटा भी था कि उसने शराब क्यों पी थी? विधी ने कहा वो शराब नहीं बस कोल्ड ड्रिंक ही था शायद किसी ने ग़लती से उसमें कुछशराब मिला दी होगी। ख़ैर ये बात तो चली गई। लेकिन माॅ के जाने के बाद जब विधी बेड से उठकर बाथरूम की तरफ जाने के लिए बेड से नीचे उतरी तो उसकी चीख़ निकलते निकलते रह गई। अपने पैरों पर उससे खड़े ही ना हुआ गया। उसे समझते देर न लगी कि उसके साथ क्या हुआ है। किन्तु अब समझने से भला क्या हो सकता था? वह तो लुट चुकी थी। बरबाद हो चुकी थी। वह इस बात को अपने माॅ बाप से बता भी नहीं सकती थी। अकेले में वह खूब रोती। इस बात कई दिन गुज़र गए। वह स्कूल नहीं गई थी कई दिन से। माॅ से उसने बता दिया था कि उसकी तबियत ठीक नहीं है। फिर एक दिन उसके मोबाइल पर एक अंजान नंबर से एम एम एस आया। जिसे देख कर उसके पैरों तले से ज़मीन निकल गई। उसे सारा संसार अंधकारमय दिखने लगा था। तभी उसी नंबर से काल भी आया। उसने जब उस काल को रिसीव किया तो सामने से सूरज की आवाज़ को सुन कर चौंक गई। वह उसे बड़ी बेशर्मी से कह रहा था कि कैसी लगी हम दोनो की फिल्म? विधी रोती गिड़गिड़ाती रही और पूछती रही कि उसने उसके साथ उसकी दोस्ती के साथ इतना बड़ा छल क्यों किया? आख़िर क्यों उसने उसे इस तरह बरबाद कर दिया? मगर वो तो शिकारी था। खूबसूरत लड़कियों का शिकारी। सूरज ने धमकी देते हुए कहा कि अगले दिन स्कूल आए और उसके साथ उसके फार्महाउस पर चले वरना वह ये एम एम एस उसके बाप के मोबाइल पर भेज देगा। विधी मरती क्या न करती वाली स्थित में आ चुकी थी। बस यहीं से उसकी बरबादी की दास्तां शुरू हो गई। वह हर बार सूरज के द्वारा ब्लैकमेल होती रही। विधी जिस विराज नाम के लड़के से प्यार करती थी उससे उसने संबंध तोड़ लिया था। ऐसे ही दिन महीने साल गुजर गए। विधी पढ़ने में होशियार थी। कालेज में हमेशा वह अपनी ग्रुप की लड़कियों से टाप करती थी। खुशी जिन्दल इस बात से उससे बेहद जलती थी। इस लिए उसने सूरज के साथ मिलकर पिछली रात इस गंभीर हादसे को अंजाम दिया था।"
"मामला तो पूरी तरफ पहले ही साफ था रामदीन।" रितू ने कहा___"मैने दूसरी मुलाक़ात में विधी से इस सबकी सारी सच्चाई जानने की बहुत कोशिश की लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। इस लिए मुझे तुम्हें इस काम में लगाना पड़ा। ख़ैर, यकीनन तुमने शानदार जानकारी हासिल की है।"
"शुक्रिया मैडम।" रामदीन खुश हो गया, बोला___"पर मुझे ये समझ में नहीं आ रहा कि विधी ने आपको इस सबकी सारी बातें क्यों नहीं बताई? जबकि होना तो ये चाहिए था कि उसे अब ऐसे हरामियों के खिलाफ सारा सच उगल कर उन्हें कानून के लेपेटे में डलवा देना चाहिए था।"
"सबकी अपनी कुछ न कुछ मजबूरियाॅ होती हैं रामदीन।" रितू ने गंभीरता से कुछ सोचते हुए कहा___"कुछ ऐसी भी बातें होती हैं जिन्हें किसी भी हाल में कह पाना संभव नहीं हो पाता। या फिर ये सोच कर उसने मुझे कुछ नहीं बताया कि कानून भी भला उन लोगों का क्या कर लेगा? वह जानती है कि जिन लोगों ने उसके साथ ये कुकर्म किया वो बड़े बड़े लोगों की बिगड़ी हुई औलादें हैं। कानून उन तक पहुॅच ही नहीं सकता।"
"तो क्या इस केस की फाइल ऐसे ही बंद कर दी जाएगी मैडम?" रामदीन चौंका___"क्या उस बेचारी लड़की के साथ इंसाफ नहीं हो पाएगा?"
"मैने ऐसा तो नहीं कहा रामदीन।" रितू कुर्सी से उठ कर तथा वहीं पर चहल कदमी करते हुए बोली___"लड़की के साथ इंसाफ ज़रूर होगा। फिर भले ही उसके लिए कोई दूसरा रास्ता ही क्यों ना चुनना पड़े।"
"मैं कुछ समझा नहीं मैडम?" रामदीन ने उलझनपूर्ण भाव से कहा।
"सब समझ जाओगे रामदीन।" रितू के चेहरे पर कठोरता आ गई थी___"बस समय का इंतज़ार करो।"
रामदीन को बिलकुल भी समझ ना आया कि उसकी ये आला अफसर क्या कहे जा रही है? जबकि रितू ने टेबल पर रखी पीकैप को उठा कर उसे सिर पाया ब्यवस्थित किया और फिर लम्बे लम्बे डग भरती हुई थाने से बाहर निकल गई।
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फ्लैशबैक अब आगे______
नैना ने सच ही कहा था कि बाहर तेज़ धूप और भयानक गर्मी में वह परेशान हो जाएगी। प्रतिमा की हालत ख़राब हो चली थी। सिर पर पड़ी तेज़ धूप और गर्मी ने उसका बुरा हाल कर दिया था। आसमान में सफेद बादल छाए थे और हवा भी न के बराबर ही चल रही थी। जिसकी वजह से वह पसीना पसीना हो चली थी।
पतली सी पिंक कलर की साड़ी तथा उसी से मैच करता बड़े गले का ब्लाउज। जिसमें कैद उसकी भारी भरकम चूचियाॅ उसके चलने पर एक लय से ऊपर नीचे थिरक रही थी। ब्लाउज के ऊपरी हिस्से से उसकी सुडौल चूचियों का एक चौथाई हिस्सा स्पष्ट दिख रहा था। गोरे सफ्फाक बदन पर ये लिबास उसकी खूबसूरती और मादकता पर जैसे चार चाॅद लगाए हुए था। प्रतिमा तीन बच्चों की माॅ थी लेकिन मजाल है कि कोई ये ताड़ सके कि ये खूबसूरत बला तीन तीन बच्चों की माॅ है।
ऐसा नहीं था कि वह कभी खेतों पर नहीं गई थी। एक दो बार वह पहले ही कभी गई थी। इस लिए उसे खेतों के रास्ते का पता था। हवेली से एक किलो मीटर की दूरी पर खेत थे। इधर का हिस्सा गाॅव के उत्तर दिशा की तरफ तथा गाॅव से हट कर था।
प्रतिमा जब खेतों पर पहुॅची तो उसने देखा कि हर तरफ सुन्नाटा फैला हुआ है। बहुत से खेतों पर गेहूॅ की फसल पक कर तैयार खड़ी थी और एक तरफ से उसकी कटाई भी चालू थी। हलाॅकि इस वक्त वहाॅ पर कहीं भी कोई मजदूर फसल काटते हुए दिख नहीं रहा था। शायद तेज़ धूप के कारण काम बंद था या फिर सभी मजदूर दोपहर में खाना खाने के लिए खए होंगे।
प्रतिमा की हालत भले ही खराब हो चुकी थी किन्तु जब उसने खेतों पर हर जगह सुनापन देखा तो वह इससे खुश भी हो गई। उसे लगा चलो जिस मकसद से वह यहाॅ आई है वह बेझिझक हो जाएगा। कोई देखने सुनने वाला भी नहीं है यहाॅ। उसने देखा एक तरफ खेतों पर ही बड़ा सा पक्का मकान बना था। मकान के बाहर दो स्वराज कंपनी के ट्रैक्टर व थ्रेशर मशीन खड़ी थी। मकान का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था।
प्रतिमा ने धड़कते दिल से मुख्य दरवाजे के अंदर कदम रखा ही था कि किसी से बड़े ज़ोर से टकराई। उसकी भारी भरकम छातियों में किसी पुरूष का फौलाद जैसा सीना टकराया था। प्रतिमा इस अचानक हुई घटना से बुरी तरह घबरा गई। टक्कर लगते ही वह पीछे की तरफ बड़ी तेज़ी से गिरने ही लगी थी कि सामने नजर आए पुरूस ने बड़ी सीघ्रता से उसका हाॅथ पकड़ कर उसे पीछे गिरने से बचा लिया।
प्रतिमा का दिल बुरी तरह धड़के जा रहा था। ख़ैर सम्हलने के बाद उसकी नज़र सामने खड़े शख्स पड़ी तो चौंक गई। सामने उसका देवर विजय सिंह सिर झुकाए खड़ा था। उसे इस तरह सिर झुकाए देख प्रतिमा को समझ न आया कि ये सिर झुकाए क्यों खड़ा है?
"क्या बात है देवर जी?" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा___"ज़रा देख कर तो चला कीजिए। भला कोई इतनी भी ज़ोर से टक्कर मारता है क्या??"
"माफ़ कर दीजिए भाभी।" विजय सिंह ने सिर झुकाए हुए ही शर्मिंदगी से बोला__"मुझे उम्मीद ही नहीं थी कोई इस तरह सामने से आ जाएगा।"
"चलो कोई बात नहीं विजय।" प्रतिमा ने माहौल को समान्य बनाने की गरज से कहा___"ग़लती सिर्फ तुम्हारी ही बस नहीं है, मेरी भी है क्योंकि मैने भी तो ये आशा नहीं की थी कोई मेरे सामने से इस तरह आ टकराएगा।"
"पर मुझे देख कर बाहर आना चाहिए था न भाभी।" विजय सिंह ने खेद भरे भाव से कहा।
"ओहो विजय।" प्रतिमा ने कहा___"इसमें इतना खेद प्रकट करने की कोई ज़रूरत नहीं है। लेकिन हाॅ एक बात तो कहूॅगी मैं।"
"जी कहिए भाभी।" विजय ने कहा__"अगर आप कोई सज़ा देना चाहती हैं तो ज़रूर दीजिए। ऐसी धृष्ठता के लिए मुझे सज़ा तो मिलनी ही चाहिए।"
"ओफ्फो विजय फिर वही बात।" प्रतिमा हैरान थी कि विजय किस टाइप का इंसान है। क्या दुनियाॅ में कोई इतना भी शरीफ़ हो सकता है? फिर बोली___"मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है विजय। मैं तो बस ये कहने वाली थी कि क्या फौलाद का सीना है तुम्हारा जो मेरी कोमल छातियों का कचूमर बना दिया था?"
"ज जी क्या मतलब?" विजय बुरी तरह चौंका था। सिर उठाकर हैरानी से अपनी भाभी की तरफ देखने लगा था वह।
"इतने भोले ना बनो विजय।" प्रतिमा ने हॅसते हुए कहा___"तुम भी अच्छी तरह समझ गए हो कि मेरे कहने का क्या मतलब था?"
"अरे ये सब बेकार की बातें छोंड़िए भाभी और ये बताइये कि आप यहाॅ इतनी धूप व गर्मी में क्यों आई हैं?" विजय ने बेचैनी से पहलू बदला था___"नैना क्यों नहीं आई? और आपको भी इतना तकल्लुफ करने की क्या ज़रूरत थी भला?"
"क्या तुम्हें मेरा यहाॅ आना अच्छा नहीं लगा विजय?" प्रतिमा ने दुखी भाव का नाटक करके कहा___"क्या मैं यहाॅ नहीं आ सकती?"
"न नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है।" विजय ने हड़बड़ाकर कहा___"मैं बस इस लिए ऐसा कह रहा हूॅ क्योंकि तेज़ धूप और गर्मी बहुत है। ऐसे माहौल की आपको आदत नहीं है ना?"
"देखो विजय तुम भी नैना की तरह मुझे ताना मत मारने लग जाना।" प्रतिमा ने कहा__"तुम सब मुझे ऐसा कह कर दुखी क्यों करते हो? मेरा भी दिल करता है कि मैं भी तुम सबकी तरह ये सब करूॅ। लेकिन तुम सब अपनी इन बातों से मुझे ये सब करने ही नहीं देते। मैं ही पागल हूॅ जो बेकार में इस हवेली के लोगों को अपना मानती हूॅ और चाहती हूॅ कि सब मुझे भी अपना समझें।"
"ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" विजय हैरान परेशान सा बोला___"भला हम सब आपके लिए ऐसा क्यों सोचेंगे? माॅ बाबूजी के बाद आप दोनो ही तो हम सबसे बड़ी हैं इस लिए हम सब यही चाहते हैं आप कुछ ना करें बल्कि आराम से बैठ कर खाइये और हम छोटों को सेवा करने का भाग्य प्रदान करें।"
"बस बस सब समझती हूॅ मैं।" प्रतिमा ने तुनकते हुए कहा__"अब क्या यहीं पर खड़े रहेंगे या अंदर भी चलेंगे? चलिए अंदर और हाॅ हाॅथ मुह धोकर जल्दी से आइये। तब तक मैं थाली लगाती हूॅ।"
"जी ठीक है भाभी।" विजय ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गया। जबकि प्रतिमा अंदर की तरफ बढ़ गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,
दोस्तो आप ये बताइये कि फ्लैशबैक को इसी तरह वर्तमान के साथ लेकर चलूॅ या खाली फ्लैशबैक ही रहने दूॅ???