♡ एक नया संसार ♡
अपडेट.........《 34 》
अब तक,,,,,,,,,,
विजय सिंह के की ऑखों के सामने बार बार वही मंज़र घूम रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अभी भी उसका लंड प्रतिमा के मुह मे हो। इस मंज़र को देखते ही उसके जिस्म को झटका सा लगता और वह ख़यालों की दुनियाॅ से बाहर आ जाता। उसका मन आज बहुत ज्यादा दुखी हो गया था। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसकी सगी भाभी उसके साथ ऐसा घटिया काम कर सकती है। विजय सिंह के मन में सवाल उभरता कि क्या यहीं प्रेम था उसका?
विजय सिंह ये तो समझ गया था कि उसकी भाभी ज़रा खुले विचारों वाली औरत थी। शहर वाली थी इस लिए शहरों जैसा ही रहन सहन था उसका। कुछ दिन से उसकी हरकतें ऐसी थी जिससे साफ पता चलता था कि वह विजय से वास्तव में कैसा प्रेम करती है। किन्तु विजय सिंह को उससे इस हद तक गिर जाने की उम्मीद नहीं थी। विजय सिंह को सोच सोच कर ही उस पर घिन आ रही थी कि कितना घटिया काम कर रही थी वह।
उस दिन विजय सिंह सारा दिन उदास व दुखी रहा। उसका दिल कर रहा था कि वह कहीं बहुत दूर चला जाए। किसी को अपना मुह न दिखाए किन्तु हर बार गौरी और बच्चों का ख़याल आ जाता और फिर जैसे उसके पैरों पर ज़ंजीरें पड़ जातीं।किसी ने सच ही कहा है कि बीवी बच्चे किसी भी इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी होते हैं। जब आप उनके बारे में दिल से सोचते हैं तो बस यही लगता है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर इन पर किसी तरह की कोई पराशानी न हो।
विजय सिंह हमेशा की तरह ही देर से हवेली पहुॅचा। अन्य दिनों की अपेक्षा आज उसका मन किसी भी चीज़ में नहीं लग रहा था। उसने खुद को सामान्य रखने बड़ी कीशिश कर रहा था वो। अपने कमरे में जाकरवह फ्रेश हुआ और बेड पर आकर बैठ गया।
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अब आगे,,,,,,,,,,,
वर्तमान अब आगे________
इंस्पेक्टर रितू उस हास्पिटल में पहुॅची जहाॅ पर रेप पीड़िता विधी को एडमिट किया गया था। विधी की हालत पहले से काफी ठीक थी। रितू के पहुॅचने के पहले ही विधी के परिवार वाले उससे मिल कर गए थे। इस वक्त विधी के पास उसकी माॅ गायत्री थी। गायत्री अपनी बेटी की इस हालत से बेहद दुखी थी।
रितू जब उस कमरे में पहुॅची तो उसने विधी के पास ही एक कुर्सी पर गायत्री को बैठै पाया। रितू ने औपचारिक तौर पर उससे नमस्ते किया और उसे अपने बारे में बताया। रितू के बारे में जानकर गायत्री पहले तो चौंकी फिर सहसा उसके चेहरे पर अजीब से भाव आ गए।
"मेरी बेटी के साथ जो कुछ हुआ है वो तो वापस नहीं लौट सकता बेटी।" गायत्री ने अधीरता से कहा___"ऊपर से इस सबका केस बन जाने से हमारी समाज में बदनामी ही होगी। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम ये केस वेस का चक्कर बंद कर दो। मैं जानती हूॅ कि इस केस में आगे क्या क्या होगा? वो सब बड़े लोग हैं बेटी। वो बड़े से बड़ा वकील अपनी तरफ से खड़ा करेंगे और बड़ी आसानी से केस जीत जाएॅगे। वो कुछ भी कर सकते हैं, वो तो जज को भी खरीद सकते हैं। अदालत के कटघरे में खड़ी मेरी फूल जैसी बेटी से उनका वकील ऐसे ऐसे सवाल करेगा जिसका जवाब देना इसके बस का नहीं होगा। वो सबके सामने मेरी बेटी की इज्ज़त की धज्जियाॅ उड़ाएंगे। ये केस मेरी बेटी के साथ ही एक मज़ाक सा बन कर रह जाएगा। इस लिए मैं तुमसे विनती करती हूॅ बेटी कि ये केस वेस वाला चक्कर छोड़ दो। हमें कोई केस वेस नहीं करना।"
"आप जिस चीज़ की कल्पना कर रही हैं आॅटी जी।" रितू ने विनम्रता से कहा__"मैं उस सबके बारे में पहले ही सोच चुकी हूॅ। मैं जानती हूॅ कि आप जो कह रही हैं वो सोलह आने सच है। यकीनन ऐसा ही होगा मगर, आप चिन्ता मत कीजिए आॅटी। विधी अगर आपकी बेटी है तो ये मेरी भी दोस्त है अब। इसके साथ जो कुछ भी उन लोगों ने घिनौना कर्म किया है उसकी उन्हें ऐसी सज़ा मिलेगी कि हर जन्म में उन्हें ये सज़ा याद रहेगी और वो अपने किसी भी जन्म में किसी की बहन बेटियों के साथ ऐसा करने का सोचेंगे भी नहीं।"
"बात तो वही हुई बेटी।" गायत्री ने कहा__"तुम उन्हें कानूनन इसकी सज़ा दिलवाओगी जबकि मैं जानती हूॅ कि उन लोगों के बाप लोगों के हाॅथ तुम्हारे कानून से भी ज्यादा लम्बे हैं। तुम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाओगी बेटी। उल्टा होगा ये कि इस सबके चक्कर में खुद तुम्हारी ही जान का खतरा पैदा हो जाएगा।"
"मुझे अपनी जान की कोई परवाह नहीं है आॅटी।" रितू ने सहसा मुस्कुराकर कहा__"और मेरी जान इतनी सस्ती भी नहीं है जो यूॅ ही किसी ऐरे गैरे के हाॅथों शिकार हो जाएगी। खैर, मै ये कहना चाहती हूॅ कि उन लोगों को कानूनन सज़ा दिलवाने का फैसला मैने बदल दिया है।"
"क्या मतलब??" गायत्री के साथ साथ बेड पर लेटी विधी भी चौंक पड़ी थी।
"ये तो मुझे भी पता है ऑटी कि वो लोग कितने बड़े खेत की पैदाइस हैं।" रितू ने अजीब भाव से कहा___"कहने का मतलब ये कि कानूनी तौर पर यकीनन मैं उन्हें वैसी सज़ा नहीं दिला सकती जैसी सज़ा के वो लोग हक़दार हैं। इस लिए अब सज़ा अलग तरीके से दी जाएगी उन्हें। बिलकुल वैसी ही सज़ा जैसी सज़ा ऐसे नीच लोगों को देनी चाहिये।"
"तुम क्या कह रही हो बेटी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।" गायत्री का दिमाग़ मानो जाम सा हो गया था।
"ये सब छोंड़िये ऑटी।" रितू ने कहा__"मैं बस आपसे ये कहना चाहती हूॅ कि अगर आपसे कोई इस बारे में कुछ भी पूछे तो आप यही कहियेगा कि हमने कोई केस वगैरा नहीं किया है। ये मत कहियेगा कि मैं आपसे या विधी से मिली थी। यही बात आप विधी के डैड को भी बता दीजिएगा। मेरी तरफ से उनसे कहना कि दिल पर कोई बोझ या मलाल रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। बहुत जल्द कुछ ऐसा उन्हें सुनने को मिलेगा जिससे उनकी आत्मा को असीम तृप्ति का एहसास होगा।"
"तुम क्या करने वाली हो बेटी?" गायत्री का दिल अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था, बोली___"देखो कुछ भी ऐसा वैसा न करना जिससे पुनः मेरी बेटी पर कोई संकट आ जाए।"
"आप बेफिक्र रहिए ऑटी।" रितू ने गायत्री का हाथ पकड़ कर उसे हल्का सा दबाते हुए कहा___"मैं विधी पर अब किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने दूॅगी। मुझे भी उसकी फिक्र है।"
गायत्री कुछ बोल न सकी बस अजीब भाव से रितू को देखती रही। बेड पर लेटी विधी का भी वही हाल था। तभी कमरे में एक नर्स आई। उसने रितू से कहा कि डाक्टर साहब उसे अपने केबिन में बुला रहे हैं। रितू नर्स की बात सुनकर गायत्री से ये कह कर बाहर निकल गई कि वह डाक्टर से मिल कर आती है अभी। कुछ ही देर में रितू डाक्टर के केबिन में उसके सामने टेबल के इस पार रखी कुर्सी पर बैठी थी।
"कहिए डाक्टर साहब।" रितू ने कहा__"किस लिए आपने बुलाया है मुझे?"
"देखो बेटा।" डाक्टर ने गंभीरता से कहा__"तुम मेरी बेटी के समान हो। मैं तुमको तुम्हारे बचपन से जानता हूॅ। ठाकुर साहब से मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं आज भी। मुझे ये जान कर बेहद खुशी हुई है कि तुम आज पुलिस आफिसर बन गई हो। लेकिन, इस केस में जिन लोखों पर तुमने हाॅथ डालने का सोचा है या सोच कर अपना कदम बढ़ा लिया है वो निहायत ही बहुत खतरनाक लोग हैं। इस लिए मैं चाहता हूॅ कि तुम इस केस को यहीं पर छोंड़ दो। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि तुम पर कोई ऑच आए। तुम हमारे ठाकुर साहब की बेटी हो।"
"मैं आपके जज़्बातों की कद्र करती हूॅ डाक्टर अंकल।" रितू ने कहा___"लेकिन आप बेफिक्र रहिए मैने विधी के केस की कोई फाइल बनाई ही नहीं है अब तक। क्योंकि मुझे भी पता है कि जिनके खिलाफ केस बनाना है वो कैसे लोग हैं। इस लिए आप बेफिक्र रहिए।"
"ये तो अच्छी बात है बेटी।" डाक्टर ने खुश होकर कहा__"लेकिन तुम यहाॅ पर फिर आई किस लिए हो? अगर केस नहीं बनाया है तो तुम्हारे यहाॅ पर आने का क्या मतलब है? जबकि होना तो ये चाहिये कि तुम्हें इस सबसे दूर ही रहना चाहिए था।"
"इंसानियत नाम की कोई चीज़ भी होती है डाक्टर अंकल।" रितू ने कहा___"इसी लिए आई हूॅ यहाॅ। वरना यूॅ फारमल ड्रेस में न आती बल्कि पुलिस की वर्दी में आती।"
"चलो ठीक है।" डाक्टर ने कहा__"पर ड्रेस बदल देने से तुम्हारा काम तो नहीं बदल जाएगा न। आख़िर हर रूप में तो तुम पुलिस वाली ही कहलाओगी। अब अगर आरोपी के के आकाओं को पता चल जाए कि तुम यहाॅ हो तो वो तो यही समझेंगे कि तुम केस के सिलसिले में ही यहाॅ आई हो।"
"देखिए अंकल।" रितू ने कहा___"फारमेलिटी तो करनी ही पड़ती है। वरना पुलिस की नौकरी के साथ इंसाफ नहीं हो पाएगा। और इसी फाॅरमेलिटी के तहत अभी मुझे दिवाकर चौधरी से भी मिलने जाना है। मुझे पता है कि वो पुलिस को बहुत तुच्छ ही समझेगा। इस लिए उससे मिल कर मैं भी फौरी तौर पर यही कहूॅगी कि फाॅरमेलिटी तो करनी ही पड़ती है न सर। बाॅकी आप इस बात से बेफिक्र रहें कि आपके बेटे और उसके दोस्तों का कोई केस बनेगा। और केस भी तो तभी बनेगा न जब पीड़िता या उसके घरवाले चाहेंगे। अगर वो लोग ही केस नहीं करना चाहेंगे तो भला कैसे कोई केस बन जाएगा? मेरी इन सब बातों से वो खुश हो जाएगा अंकल। वो यही समझेगा कि उसके रुतबे और डर से पीड़िता या उसके घर वालों ने उसके खिलाफ़ केस करने की हिम्मत ही नहीं कर सके।"
"ओह आई सी।" डाक्टर ने कहा___"मगर मुझे ऐसा क्यों लगता है कि असल चक्कर कुछ और ही है जिसे तुम चलाने वाली हो या फिर चलाना शुरू भी कर दिया है।"
"ये सब छोड़िये आप ये बताइये कि आपने और किस लिए बुलाया था मुझे?" रितू ने पहलू बदल दिया।
"पुलिस की नौकरी में आते ही काफी शार्प दिमाग़ हो जाता है न?" डाक्टर मुस्कुराया फिर सहसा गंभीर होकर बोला___"बात ज़रा सीरियस है बेटी।"
"क्या मतलब?" रितू चौंकी।
"विधी की रिपोर्ट आ चुकी है।" डाक्टर ने कहा___"और रिपोर्ट ऐसी है जिसके बारे में जानकर शायद तुम्हें यकीन न आए।"
"ऐसी क्या बात है रिपोर्ट में?" रितू की पेशानी पर बल पड़े___"ज़रा बताइये तो सही।"
"विधी को ब्लड कैंसर है बेटी।" डाक्टर ने जैसे धमाका किया___"वो भी लास्ट स्टेज में है।"
"क्याऽऽऽ????" रितू बुरी तरह उछल पड़ी___"ये आप क्या कह रहे हैं अंकल?"
"यही सच है बेटी।" डाक्टर ने कहा___"वो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ये बात मैं उसके पैरेन्ट्स को कैसे बताऊॅ? एक तो वैसे भी वो अपनी बेटी की इस हालत से बेहद दुखी हैं दूसरे अगर उन्हें ये पता चल गया कि उनकी बेटी को कैंसर है और वो बस कुछ ही दिनों की मेहमान है तो जाने उन पर इसका क्या असर हो?"
रितू के दिलो दिमाग़ में अभी भी धमाके हो रहे थे। अनायास ही उसकी ऑखें नम हो गई थी। हलाॅकि विधी से उसका कोई रिश्ता नहीं था। उसने तो बस उसे दोस्त कह दिया था ताकि वह आसानी से कुछ बता सके। बाद में उसे ये भी पता चल गया कि ये वही विधी है जिससे विराज प्यार करता था। लेकिन फिर वो दोनो अलग हो गए थे। रितू के मन में एकाएक ही हज़ारों सवाल उभर कर ताण्डव करने लगे थे।
"इसके साथ ही विधी जो दो महीने की प्रेग्नेन्ट है तो उसके पेट में पनप रहे शिशु का भी पतन हो जाएगा।" डाक्टर ने कहा___"यानी एक साथ दो लोगों की जान चली जाएगी।"
"ये तो सचमुच बहुत बड़ी बात है डाक्टर अंकल।" रितू गंभीरता से बोली___"पर सोचने वाली बात है कि इतनी कम उमर में उसे ब्लड कैंसर हो गया।"
"आज कल ऐसा ऐसा सुनने को मिलता बेटा जिसकी आम इंसान तो क्या हम डाक्टर लोग भी कल्पना नहीं कर सकते।" डाक्टर ने कहा___"ख़ैर, मैंने यही बताने के लिए तुम्हें बुलाया था। अभी मुझे मिस्टर चौहान को भी इस बात की सूचना देनी होगी। वो बेचारे तो सुन कर ही गहरे सदमे में आ जाएॅगे।"
"आप सही कह रहे हैं।" रितू ने कहा___"वैसे क्या ये कैंसर वाली बात विधी को पता है??"
"पता नहीं।" डाक्टर ने कहा___"हो भी सकता है और नहीं भी।"
"अच्छा मैं चलती हूॅ अंकल।" रितू ने कुर्सी से उठते हुए कहा___"मुझे विधी से अकेले में कुछ बातें करनी है।"
"ओके बेटा।" डाक्टर ने कहा।
रितू भारी मन से डाक्टर के केबिन से बाहर निकल गई। उसे ये बात हजम ही नहीं हो रही थी कि विधी को लास्ट स्टेज का कैंसर है। उसे विधी के लिए इस सबसे बड़ा दुख सा हो रहा था। उसके मन में कई तरह की बातें चल रही थी। जिनके बारे में उसे विधी ही बता सकती थी। इस लिए वह तेज़ी से उस कमरे की तरफ बढ़ गई।
विधी के कमरे में पहुॅच कर रितू ने गायत्री से बड़े ही विनम्र भाव से कहा कि उसे विधी से अकेले में कुछ बातें करनी है। इस लिए अगर आपको ऐतराज़ न हो तो आप बाहर थोड़ी देर के लिए चले जाइये। गायत्री उसकी ये बात सुन कर कुछ पल तो उसे देखती रही फिर कुर्सी से उठ कर कमरे से बाहर चली गई। रितू ने दरवाजे की कुंडी लगा दी और फिर आ कर वह गायत्री वाली कुर्सी पर ही विधी के बेड के पास ही बैठ गई। विधी उसे बड़े ग़ौर से देख रही थी। रितू भी उसके चेहरे की तरफ देखने लगी।
"तो डाक्टर ने आपको बता दिया कि मुझे लास्ट स्टेज का कैंसर है?" विधी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था।
"तुम्हें कैसे पता कि डाक्टर ने मुझे किस लिए बुलाया था?" रितू मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी उसकी बात से।
"बड़ी सीधी सी बात है।" विधी ने कहा__"जब कोई ब्यक्ति मरीज़ बन कर हास्पिटल में आता है तो उसकी हर तरह की जाॅच होती है। उसके बाद ये जान जाना कौन सी बड़ी बात है कि मुझे असल में क्या है? ये तो मैं जानती थी कि यहाॅ पर मेरी जाॅच हुई होगी और जब उसकी रिपोर्ट आएगी तो डाक्टर को पता चल ही जाएगा कि मुझे लास्ट स्टेज का कैंसर है। इस लिए जब नर्स आपको बुलाने आई तो मुझे अंदाज़ा हो गया कि डाक्टर यकीनन आपको उस रिपोर्ट के बारे में ही बताएगा। इस कमरे में आते वक्त आपके चेहरे पर जो भाव थे वो दर्शा रहे थे कि आप अंदर से कितनी गंभीर हैं मेरे बारे में जान कर। इस लिए आपसे कहा ऐसा।"
"यकीनन काबिले तारीफ़ दिमाग़ है।" रितू ने कहा___"थोड़े से सबूतों पर कैसे कड़ियों को जोड़ना है ये तुमने दिखा दिया। पुलिस विभाग में होती तो जटिल से जटिल केस बड़ी आसानी से सुलझा लेती तुम।"
"आपने तो बेवजह ही तारीफ़ कर दी।" विधी ने कहा___"जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है।"
"तो इस लिए ही तुमने मेरे भाई विराज से बेवफाई की थी?" रितू के मन में सबसे ज्यादा यही सवाल उछल रहा था___"तुमको पहले से पता था कि तुम्हें कैंसर है इस लिए तुमने ये रास्ता अपनाया। है न?"
"वि विरा...ज??" विधी का चेहरा फक्क पड़ गया। लाख कोशिशों के बाद भी उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गई____"क कौन वि..रा..ज? आप किसकी बात कर रही हैं?"
"अब भला झूॅठ बोलने की क्या ज़रूरत है विधी।" रितू ने कहा___"मुझे बहुत अच्छी तरह पता है कि तुम मेरे भाई विराज से आज भी बेपनाह मोहब्बत करती हो। बेवफाई तो तुमने जान बूझ कर की उससे। ताकि वो तुम्हारी उस ज़िंदगी से चला जाए जो बस कुछ ही समय की मेहमान थी। उसे अपने से दूर करने का यही तरीका अपनाया तुमने। जब मेरे डैड ने उसे और उसके परिवार को हवेली से निकाल दिया तब तुम्हें भी मौका मिल गया और तुमने उसी मौके में उससे ऐसी बातें कही कि उसे तुमसे नफरत हो जाए।"
"तो और क्या करती मैं?" विधी के अंदर का बाॅध मानो ज्वारभाॅटा बन कर फूट पड़ा। वह फूट फूट कर रो पड़ी। रोते हुए ही उसने कहा___"मैं उसकी ज़िंदगी में चंद महीनों की मेहमान थी। वो मुझे इतना चाहता था कि वह मेरे बिना जीवन की कल्पना भी नहीं करता था। प्यार तो मैं भी उससे उतना ही करती थी और आज भी करती हूॅ मगर, उस प्यार से क्या हो सकता था भला? हम हमेशा साथ तो नहीं रह सकते थे न। मेरी मौत पर वह टूट जाता। मैने सोचा कि उसके अंदर से अपने प्रति चाहत निकाल दूॅ किसी तरह ताकि वो किसी और के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ने का सोच सके। मुझे जो सही लगा वो मैने किया। मैने अपने आपको पत्थर बना लिया और उससे उस तरह की दो टूक बातें की। उसके अंदर अपने प्रति नफरत पैदा करने के लिए मैने सूरज नाम के लड़के से दोस्ती भी कर ली। मैं जानती थी कि सूरज कैसा लड़का है मगर अब मेरे पास जीवन ही कहाॅ बचा था और ना ही मुझमें जीने की चाह रह गई थी। मुझे ये भी पता है कि मेरे पेट में सूरज का ही पाप है लेकिन मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है क्योंकि इस पाप का भी मेरे साथ ही अंत हो जाएगा। सूरज ने मेरे शरीर को भोगा मगर मेरे दिल में मेरे मन में तो हर जन्म में सिर्फ विराज ही रहेगा।"
"ये सब तो ठीक है।" रितू ने कहा___"लेकिन क्या तुमने ये नहीं सोचा कि तुम्हारे ऐसा करने से विराज किस हद तक टूट कर बिखर जाएगा? तुमने तो ये सोच कर उससे बेवफाई की कि वह किसी और के साथ जीवन में आगे बढ़ जाएगा, लेकिन ये क्यों नहीं सोचा कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो???"
"मैने बहुत कुछ सोचा था रितू दीदी।" विधी ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"ये दिल बड़ा ही अजीब होता है। कोई हज़ारों बार चाहे इसके साथ खिलौने की तरह खेल कर इसे टुकड़ों में बिखेर दे फिर भी ये मोहब्बत करना बंद नहीं करता। इसके अंदर हर रूप में मोहब्बत विद्यमान रहती है फिर चाहे वो नफरत के रूप में ही क्यों न हो। नफरत से पत्थर बन जाओ फिर भी मोहब्बत से पिघल जाओगे। विराज वो कोहिनूर है जिसे हर लड़की मोहब्बत करना चाहेगी और करती भी थी। मोहब्बत एक एहसास है दीदी, पत्थर भी इस एहसास से पिघल जाते हैं। आपको फिर से कब किसी से मोहब्बत हो जाए ये आपको भी पता नहीं चलेगा। मोहब्बत करने वाला पत्थर दिल में भी मोहब्बत का एहसास जगा देता है। बस यही सोच कर मैने ये सब किया था। मुझे पता था उसके जीवन में कोई न कोई ऐसी लड़की ज़रूर आ जाएगी जो अपनी मोहब्बत से उसकी नफरत को मिटा देगी और फिर से उसके टूटे हुए दिल को जोड़ कर उसे मोहब्बत करना सिखा देगी।"
"क्या पता ऐसा हुआ भी है कि नहीं?" रितू ने कहा___"क्या तुमने कभी पता करने की कोशिश की कि विराज किस हाल में है?"
"कोशिश करने का सवाल ही कहाॅ रह गया दीदी?" विधी ने कहा___"मैंने तो ये सब किया ही उससे दूर होने के लिए था। दुबारा उसके पास जाने का या ये पता करने का कि वो किस हाल में है ये सवाल ही नहीं था। क्योंकि मैने बड़ी मुश्किल से वो सब किया था, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं अपने महबूब के उदास चेहरे को दुबारा देख पाती।"
"ख़ैर, ये बताओ कि जब तुमको पता चल गया था कि तुमको कैंसर है तो तुमने अपने माता पिता को क्यों नहीं बताया?" रितू ने पहलू बदलते हुए पूछा___"अगर बता देती तो संभव था कि तुम्हारा इलाज होता और तुम ठीक हो जाती?"
"ऐसा कुछ न होता दीदी।" विधी ने कहा__"क्योंकि मेरे पिता उस हालत में ही नहीं थे कि वो मेरा कैंसर का इलाज करवा पाते। आप तो बस यही जानती हैं कि वो बड़े आदमी हैं मगर ये नहीं जानती हैं कि उस बड़े आदमी के साथ उसके बड़े भाईयों ने कितना बड़ा अत्याचार किया है? दादा जी के मरते वक्त बड़े ताऊ ने धोखे से सारी प्रापर्टी पर उनके हस्ताक्षर करवा लिया। उसके बाद दादा जी की तेरवीं होने के बाद ही अगले दिन ताऊ और उनके दोगले भाई ने मेरे माता पिता को सारी प्रापर्टी से बेदखल कर दिया। अब आप ही बताइये कि कैसे मेरे पापा मेरा इलाज करवा सकते थे?"
रितू को समझ ही न आया कि वह क्या बोले? विधी की कहानी ही ऐसी थी कि वह बेचारी हर तरह से मजबूर थी। उसके ठीक होने का कहीं कोई चाॅस ही नहीं था।
"अगर मैं अपने कैंसर की बात पापा से बताती तो वो बेचारे बेवजह ही परेशान हो जाते।" विधी कह रही थी___"जिसकी कंपनी में लोग काम करते थे और जो खुद कभी किसी का मालिक हुआ करता था वो आज खुद किसी दूसरे की कंपनी में बीस हजार की नौकरी करता है। बीस हज़ार में अपने तीन बच्चों और खुद दोनो प्राणियों का खर्चा चला लेना सोचिये कितना मुश्किल होगा? ऐसे में वो कैसे मेरा इलाज करवा पाते? इससे अच्छा तो यही था दीदी कि मैं मर ही जाऊॅ। दो चार दिन मेरे लिए रो लेंगे उसके बाद फिर से उनका जीवन आगे चल पड़ेगा।"
"इतनी छोटी सी उमर में इतनी बड़ी सोच और इतना बड़ा त्याग किया तुमने।" रितू की ऑखों में ऑसू आ गए___"ये सब कैसे कर लिया तुमने?"
रितू ने झपट कर उसे अपने सीने से छुपका लिया। विधी को उसके गले लगते ही असीम सुख मिला। भावना में बह गई वह। वर्षों से अपने अंदर कैद वेदना को वह रोंक न पाई बाहर निकलने से। वह हिचकियाॅ ले लेकर रोने लगी थी।
"मेरी आपसे एक विनती है दीदी।" फिर विधी ने अलग होकर तथा ऑसू भरी ऑखों से कहा।
"विनती क्यों करती है पागल?" रितू का गला भर आया___"तू बस बोल। क्या कहना है तुझे?"
"मु मुझे एक बार।" विधी की रुलाई फूट गई, लड़खड़ाती आवाज़ में कहा___"मुझे बस ए एक बार वि..विरा...ज से मिलवा दीजिए। मुझे मेरे महबूब से मिलवा दीजिए दीदी। मैं उसकी गुनहगार हूॅ। मुझे उससे अपने किये की माफ़ी माॅगनी है। मैं उसे बताना चाहती हूॅ कि मैं बेवफा नहीं हूॅ। मैं तो आज भी उससे टूट टूट कर प्यार करती हूॅ। उसे बुलवा दीजिए दीदी। मेरी ख़्वाहिश है कि मेरा अगर दम निकले तो उसकी ही बाहों में निकले। मेरे महबूब की बाॅहों में दीदी। आप बुलवाएॅगी न दीदी? मुझे एक बार देखना है उसे। अपनी ऑखों में उसकी तस्वीर बसा कर मरना चाहती हूॅ मैं। अपने महबूब की सुंदर व मासूम सी तस्वीर।"
"बस कर रे।" रितू का हृदय हाहाकार कर उठा___"मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं तेरी ऐसी करुण बातें सुन सकूॅ। मैं तुझसे वादा करती हूॅ कि तेरे महबूब को मैं तेरे पास ज़रूर लाऊॅगी। मैं धरती आसमान एक कर दूॅगी विधि और उसे ढूॅढ़ कर तेरे सामने हाज़िर कर दूॅगी। मैं अभी से उसका पता लगाती हूॅ। तू बस मेरे आने का इंतज़ार करना।"
रितू ने कर्सी से उठ कर बेड पर लेटी विधी के माॅथे को झुक कर चूॅमा और अपने ऑसू पोंछते हुए बाहर निकल गई।
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फ्लैशबैक अब आगे_______
विजय सिंह खाना पीना खा कर अपने कमरे में लेटा हुआ था। उसके दिलो दिमाग़ से आज की घटना हट ही नहीं रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी माॅ समान भाभी उसके साथ इतनी गिरी हुई तथा नीचतापूर्ण हरकत कर सकती है। उसकी ऑखों के सामने वो दृश्य बार बार आ रहा था जब प्रतिमा ने उसके लंड को अपने मुह में लिया हुआ था। विजय सिंह अपनी ऑखों के सामने इस दृश्य के चकराते ही बहुत अजीब सा महसूस करने लग जाता था। उसके मन में अपनी भाभी के प्रति तीब्र घृणा और नफ़रत भरती जा रही थी।
उधर अजय सिंह और प्रतिमा को ये डर भी सता रहा था कि विजय सिंह आज की इस घटना का ज़िक्र कहीं किसी से कर न बैठे। हलाॅकि उसकी फितरत के हिसाब से उन दोनो को यही लग रहा था कि वो इस बारे में किसी से कुछ कहेगा नहीं। पर कहते हैं न कि अपराध का बोध अगर स्वयं को हो तो उसका दिमाग़ एक जगह स्थिर नहीं रह सकता। वही हाल प्रतिमा व अजय सिंह का था। दोनो ने फैसला कर लिया था कि कल ही अपने बच्चों को लेकर शहर चले जाएॅगे। जब ये घटना पुरानी हो जाएगी तो फिर उस हिसाब से देखा जाएगा।
रात को सारे कामों से फुरसत हो कर गौरी ऊपर अपने कमरे में पहुॅची। बच्चे क्योंकि अब बड़े हो गए थे इस लिए वो सब अब अलग कमरों में सोते थे। निधि हमेशा की तरह अपने भइया विराज के साथ ही सोती थी।
गौरी जब कमरे में पहुॅची तो विजय सिंह को बेड पर पड़े हुए किसी गहरी सोच में डूबा हुआ पाया। वो खद भी पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही थी कि विजय सिंह काफी उदास व परेशान सा रहने लगा है। उसके द्वारा पूछने पर भी उसने कुछ न बताया था।
"पिछले कुछ दिनो की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही परेशान नज़र आ रहे हैं आप।" गौरी ने बेड के किनारे पर बैठते हुए किन्तु विजय के चेहरे पर देखते हुए कहा___"मैं जब भी आपसे इस परेशानी की वजह पूछती हूॅ तो आप टाल जाते हैं विजय जी। क्या आप पर मेरा इतना भी हक़ नहीं कि मैं आपके मन की बातें जान सकूॅ?"
"ऐसा क्यों कहती हो गौरी?" विजय ने चौंक कर कहा था___"तुम्हारा तो मुझ पर सारा हक़ है। मेरे दिल में और मेरे मन में भी। लेकिन, कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है। तुम्हारे पूछने पर हर बार मैं टाल देता हूॅ, यकीन मानो मुझे तुम्हारी बातों का जवाब न दे पाने पर बेहद दुख होता है। पर मैं क्या करूॅ गौरी? मैं चाह कर भी वो सब तुम्हें बता नहीं सकता।"
"अगर आप बताना नहीं चाहते हैं विजय जी तो कोई बात नहीं।" गौरी ने गंभीरता से कहा___"मैं तो बस इस लिए जानना चाहती थी कि मैं आपको इस तरह उदास और परेशान नहीं देख सकती। हर वक्त सोचती रहती हूॅ कि आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके चेहरे का वो नूर खो गया है जो इसके पहले दमकता था।"
"समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" विजय ने गहरी साॅस ली___"ये तो बदलता ही रहता है और बदलते हुए इस समय के साथ ही इंसान से जुड़ी हर चीज़ भी बदलने लगती है।"
"आपने कहा कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें अगर ज़ुबान से बाहर निकाल दी जाएॅ तो कयामत आ जाती है।" गौरी ने कुछ सोचते हुए कहा___"मेरे मन में ये जानने की तीब्र उत्सुकता जाग गई है कि ऐसी भला कौन सी बातें हैं जिनके बाहर आ जाने से कयामत आ सकती है? मैं तो आपकी धर्म पत्नी हूॅ, हमारे बीच आज तक किसी का कोई राज़ राज़ नहीं रहा फिर क्या बात है कि आज कोई बात मेरे सामने राज़ ही रख रहे हैं?"
"मैं जानता हूॅ गौरी कि जब तक तुम उस बात को जान नहीं लोगी तब तक तुम्हारे मन को शान्ति नहीं मिलेगी।" विजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"इस लिए मैं तुम्हें वो सब बता ही देता हूॅ लेकिन उससे पहले तुम्हें मुझे एक वचन देना होगा।"
"वचन??" गौरी के माॅथे पर बल पड़ा___"कैसा वचन चाहते हैं आप मुझसे?"
"यही कि जो कुछ मैं तुम्हें बताने वाला हूॅ उस बात को कभी किसी से कहोगी नहीं।" विजय सिंह ने कहा___"वो सारी बात हम दोनो के बीच ही रहेगी। यही वचन चाहिए तुमसे।"
"ठीक है विजय जी।" गौरी ने कहा__"मैं आपको वचन देती हूॅ कि आपके द्वारा कही गई किसी भी बात का ज़िक्र मैं कभी किसी से नहीं करूॅगी।"
गौरी के वचन देने पर विजय सिंह कुछ पल तक उसे देखता रहा फिर एक लम्बी व गहरी साॅस लेकर उसने वो सब कुछ गौरी को बताना शुरू कर दिया। उसने गौरी से कुछ भी नहीं छुपाया। शुरू से लेकर आज तक की सारी राम कहानी उसने गौरी को विस्तार से बता दी। उसके मुख से ये सब बातें सुन कर गौरी की हालत किसी निर्जीव पुतले की मानिन्द हो गई। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे इन सारी बातों पर ज़रा सा भी यकीन न हो रहा हो।
"आज की इस घटना ने तो मुझे अंदर से बुरी तरह हिला कर रख दिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा___"समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूॅ मैं? मैं सोच भी नहीं सकता था कि वो कुलटा औरत मेरे साथ इतनी नीच और घटिया हरकत भी कर सकती थी।"
"ये सब मेरी वजह से हुआ है विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"अगर मैं बीमार ना होती तो कभी भी वो औरत खेतों में आपको खाने का टिफिन देने न जा पाती। आज तो मैं खुद ही आपको खाना लेकर आने वाली थी लेकिन उसने ही मुझे जाने नहीं दिया। कहने लगी कि अभी मुझे और आराम करना चाहिये। भला मैं क्या जानती थी कि उसके मन में क्या खिचड़ी पक रही थी?"
"इसका चरित्र तो निहायत ही घटिया है गौरी।" विजय सिंह ने कहा__"ये बहुत शातिर औरत है। इसी ने मेरे भाई को अपने रूप जाल में फॅसाया रहा होगा। मेरे भइया तो ऐसे नहीं हैं। वो बस इसकी बातों में ही आ जाते हैं।"
"आपके बड़े भाई का चरित्र भी कुछ ठीक नहीं है विजय जी।" गौरी ने कहा___"हो सकता है कि आपको मेरी इस बात से बुरा लगे मगर सच्चाई तो यही है कि आपके बड़े भाई साहब खुद भी आपकी भाभी की तरह ही चरित्रहीन हैं।"
"ये क्या कह रही हो तुम गौरी?" विजय सिंह ने हैरतअंगेज लहजे में कहा___"बड़े भइया के बारे में तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?"
"मैने आज तक आपसे उनके बारे में यही सोच कर नहीं बताया था कि आपको बुरा लगेगा।" गौरी ने कहा___"पर आज जब आपने अपनी भाभी के चरित्र का वर्णन किया तो मैंने भी आपको आपके भाई के चरित्र के बारे में बताने का सोच लिया।"
"आख़िर ऐसा क्या किया है बड़े भइया ने तुम्हारे साथ?" विजय सिंह का लहजा एकाएक ही कठोर हो गया, बोला__"मुझे सबकुछ साफ साफ बताओ गौरी।"
गौरी ने विजय सिंह को शुरू से लेकर अब तक की बात बता दी। सुन कर विजय सिंह ठगा सा बैठा रह गया बेड पर। ऑखों में आश्चर्य के साथ साथ दुख के भाव भी नुमायां हो गए थे।
"पहले मुझे लगा करता था कि ये सब शायद मेरा वहम है।" गौरी धीर गंभीर भाव से कह रही थी___"पर धीरे धीरे मुझे समझ आ गया कि ये वहम नहीं बल्कि सच्चाई है। जेठ जी की नीयत में ही खोट है। वो अपने छोटे भाई की बीवी पर ग़लत नीयत से हाॅथ डालना चाहते हैं।"
"ये सब तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया गौरी?" विजय सिंह ने कहा___"भगवान जानता है कि मैंने कभी भूल से भी अपने बड़े भाई व भाभी का कभी बुरा नहीं सोचा। बल्कि हमेशा उन्हें राम और सीता समझ कर उनका मान सम्मान किया है। मगर मुझे क्या पता है कि ये दोनो राम व सीता जैसे कभी थे ही नहीं। मैं कल ही बाबू जी से इस बारे में बात करूॅगा। ये कोई मामूली बात नहीं है जिसे चुपचाप सहन करते रहें। हमारे आदर सम्मान देने को वो लोग हमारी कमज़ोरी समझते हैं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। माॅ बाबू जी को इस बात का पता तो चलना ही चाहिए कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू कैसी सोच रखते हैं?"
"नहीं विजय जी।" गौरी बुरी तरह घबरा गई थी, बोली___"भगवान के लिए शान्त हो जाइये। आप ये सब माॅ बाबू जी से बिलकुल भी नहीं बताएॅगे। बड़ी मुश्किल से तो उन्हें ऐसा दिन देखने को मिला है जब उनके बड़े बेटे और बहू खुशी खुशी हम सबसे मिल जुल रहे हैं। इस लिए आप ये सब उनसे बताकर उन्हें फिर से दुखी नहीं करेंगे।"
"क्यों न बताऊॅ गौरी?" विजय सिंह ने आवेश में कहा___"ये ऐसी बात नहीं है जो अगले दिन खत्म हो जाएगी बल्कि ऐसी है कि ये आगे चलती ही रहेगी। जब किसी का मन इन बुरी चीज़ों से भर जाता है तो वो ब्यक्ति किसी के लिए फिर अच्छा नहीं सोच सकता। अभी तो ये शुरूआत है गौरी। जब आज ये हाल है तो सोचो आगे कैसे हालात होंगे?"
"सब ठीक हो जाएगा विजय जी।" गौरी ने समझाने वाले भाव से कहा___"आप बस उनसे दूर रहियेगा। माॅ बाबूजी से आप इस सबका ज़िक्र नहीं करेंगे।"
"ज़िक्र तो होगा गौरी।" विजय सिंह ने निर्णायक भाव से कहा___"अब तो रात काफी हो गई है वरना अभी इस बात का ज़िक्र होता। मगर सुबह सबसे पहले इसी बात का ज़िक्र होगा।"
"आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे।" गौरी ने कहा___"आपको हमारे राज की कसम है विजय जी आप माॅ बाबू जी से उनके बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे।"
"मेरे बेटे की कसम देकर तुमने ये ठीक नहीं किया गौरी।" विजय सिंह असहाय भाव से कहा था।
"मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।" गौरी ने नम ऑखों से कहा___"पर आपको भी तो सोचना चाहिए था न। सोचना चाहिये था कि इस सबसे माॅ बाबू जी पर क्या गुज़रेगी जब उन्हें ये पता चलेगा कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बहू क्या करतूत कर रहे हैं?"
विजय सिंह कुछ न बोला बल्कि बेड पर एक तरफ करवॅट लेकर लेट गया। गौरी को समझते देर न लगी कि विजय सिंह उससे नाराज़ हो गया है। आज जीवन में पहली बार ऐसा हुआ था कि विजय सिंह गौरी से नाराज़ हो गया था।
कुछ देर गौरी उसे एकटक देखती रही फिर वह भी उसके बगल में लेट गई। ऑखों में ऑसू थे और मन में बस एक ही बात कि मुझे माफ कर दीजिए विजय जी।
सुबह जब गौरी की नीद खुली तो बगल में विजय सिंह को न पाया उसने। वह समझ गई कि हर दिन की तरह विजय सिंह खेतों पर चले गए हैं। मगर तुरंत ही उसे रात की बायों का ख़याल आया। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसे आशंका हुई कि विजय सिंह कहीं अपनी कसम तोड़ कर माॅ बाबू जी से वो सब बताने तो नहीं चले गए? ये सोच कर गौरी झट से बेड से उठी। अपनी सारी को दुरुस्त करके वह बिना हाॅथ मुॅह धोए ही कमरे से बाहर निकल गई।
नीचे आकर देखा तो सब कुछ सामान्य था। उसे कहीं पर भी कुछ महसूस न हुआ कि जैसे कुछ बात हुई हो। ये देख कर उसने राहत की साॅस ली। मन में खुशी के भाव भी जागृत हो गए, ये सोच कर कि विजय जी ने बेटे की कसम नहीं तोड़ी।
हवेली के मुख्य द्वार की तरफ जाकर उसने बाहर लान में देखा तो चौंक पड़ी। बाहर अजय सिंह प्रतिमा व उसके बच्चे सब कार में बैठ रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वो लोग शहर जा रहे हों। गौरी को समझते देर न लगी कि वो लोग इतना जल्दी क्यों यहाॅ से शहर जा रहे हैं। हर बार तो ऐसा होता था कि जब भी उसके जेठ व जेठानी शहर जाते थे तब वह उनके पाॅव छूकर आशीर्वाद लेती थी। मगर आज उसने ऐसा नहीं किया। बल्कि दरवाजे से तुरंत ही पलट गई वह, ताकि किसी की नज़र न पड़े उस पर। जेठ जेठानी के लिए उसके मन में नफरत व घृणा सी भर गई थी अचानक। वह पलटी और वापस अपने कमरे की तरफ बढ़ गई।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,,