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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

VIKRANT

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159
एक नया संसार
अपडेट........《 58 》

अब तक,,,,,,,

हाॅस्पिटल के सामने कार के रुकते ही मैने जल्दी से गेट खोला और नीलम को सावधानी से निकाल कर अपनी गोंद में लिया और बिना किसी की तरफ देखे हाॅस्पिटल की तरफ लगभग दौड़ते हुए जाने लगा। मेरे पीछे ही बाॅकी सब भी आ रहे थे। कुछ ही देर में मैं नीलम को लिए हाॅस्पिटल के अंदर आ गया। वहाॅ का माहौल देख कर ऐसा लगा जैसे वहाॅ के डाक्टर तथा कर्मचारी हमारा ही इन्तज़ार कर रहे थे। जल्द ही दो आदमी स्ट्रेचर लिये मेरे पास आए। मैने आहिस्ता से नीलम को स्ट्रेचर पर लिटा दिया। मेरे लेटाते ही वो दोनो आदमी स्ट्रेचर को तेज़ी से ठेलते हुए ले जाने लगे। मैं, आदित्य, रितू दीदी व सोनम दीदी भी साथ ही साथ चलने लगे थे। थोड़ी ही देर में वो दोनो आदमी नीलम को स्ट्रेचर सहित ओटी में ले गए। डाक्टर ने हम सबको ओटी के बाहर ही रोंक दिया और खुद अंदर चला गया।

हम चारो वहीं पर खड़े रह गए थे। हम चारों के मन में बस एक ही बात थी कि नीलम को कुछ न हो। अभी हम सब वहाॅ पर खड़े ही थे कि तभी वहाॅ पर एसीपी रमाकान्त शुक्ला भी आ गया। उसने आते ही रितू दीदी से नीलम के बारे में पूछा तो दीदी ने बता दिया कि अभी अभी उसे ओटी में ले जाया गया है। एसीपी ने रितू दीदी से कहा कि उसने समूचे हास्पिटल में अंदर बाहर पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में तैनात कर दिये हैं। इस लिए अब किसी बात का ख़तरा नहीं है। एसीपी की बात सुन कर रितू दीदी ने उसे इसके लिए धन्यवाद किया। कुछ देर बाद एसीपी ये कह कर चला गया कि वो नीलम का हाल चाल लेने फिर आएगा।

एसीपी के जाने के कुछ देर बाद हम चारों वहीं गैलरी पर दीवार से सटी हुई रखी लम्बी चेयर्स पर बैठ गए। कुछ देर बाद मैं उठा और हाॅस्पिटल से बाहर पानी लाने के लिए चला गया। पानी लाकर मैने रितू दीदी व सोनम दीदी को दिया। उसके बाद उसी कुर्सी पर बैठ कर हम सब डाॅक्टर के बाहर आने का इन्तज़ार करने लगे। हम सबके लबों से बस एक ही दुवा निकल रही कि नीलम को कुछ न हो।
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अब आगे,,,,,,,,

उधर हवेली में।
ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठी प्रतिमा अपने मोबाइल से बार बार अपने पति अजय सिंह के मोबाइल पर फोन लगा रही थी किन्तु अजय सिंह का फोन बंद बता रहा था। अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को किसी अनहोनी आशंका होने लगी थी। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन चिंता, परेशानी तथा बेचैनी के भाव उभर आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अजय ने अपना फोन क्यों बंद कर रखा है? वो अजय सिंह से फोन पर बात करके ये जानना चाहती थी कि वो इस वक्त कहाॅ है तथा बाॅकियों के हालात कैसे हैं? मगर अजय सिंह का फोन बंद बताने से प्रतिमा को अब प्रतिपल बेचैनी सी होने लगी थी। उसके मन में तरह तरह के ख़यालों का आवागमन शुरू हो गया था।

उसके सामने ही दूसरे सोफे पर शिवा किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ नज़र आ रहा था। उसे जैसे अपने माॅ बाप की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो तो बस सोनम के ख़यालों में खोया हुआ था। नीलम व सोनम को अब तक तीन से चार घंटे हो गए थे। मगर वो दोनो अब तक वापस नहीं लौटी थी। किन्तु शिवा को जैसे समय का ख़याल ही नहीं था। वो तो बस अपनी ऑखों के सामने नज़र आ रहे सोनम के खूबसूरत चेहरे को ही अपलक देखे जा रहा था। हलाॅकि जब प्रतिमा ने उसे इस बात से अवगत कराया कि वो दोनो यहाॅ से भागने का सोच कर ही गई हो सकती हैं तो शिवा का दिल एकदम से बैठ सा गया था। बाद में प्रतिमा के ही निर्देश पर उसने कुछ नये आदमियों की मजबूत टीम बना कर उनके पीछे लगा दिया था।

"उफ्फ क्या करूॅ इस इंसान का।" सहसा तभी प्रतिमा की खीझी हुई इस आवाज़ से शिवा हकीक़त की दुनियाॅ में आया, जबकि प्रतिमा कह रही थी____"कभी कोई काम ठीक से नहीं कर सकते हैं। ये तो हद हो गई, इतना लापरवाह इंसान मैने आज तक नहीं देखा।"

"क्या हुआ माॅम?" शिवा ने प्रतिमा के एकाएक ही तमतमा गए चेहरे को देखते हुए कहा____"किस लापरवाह इंसान की बात कर रही हैं आप?"
"तुम्हारे बाप की।" प्रतिमा ने आवेश में कहा___"जो कि हद दर्ज़े का लापरवाह और बेवकूफ इंसान है।"

"अरे ये आप क्या कह रही हैं माॅम?" शिवा अपनी माॅ की बातों से बुरी तरह हैरान रह गया।
"सच ही तो कह रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"वरना कौन ऐसा करता है कि इतनी ख़राब सिचुएशन में होकर अपना फोन ही बंद कर दे?"

"क्या मतलब???" शिवा जैसे चकरा सा गया।
"तुम्हारे बाप से फोन द्वारा पूछना चाहती थी कि वहाॅ के हालात कैसे हैं?" प्रतिमा ने कहा___"मगर महाशय का मोबाइल फोन ही ऑफ बता रहा है। अब तुम ही बताओ कि ऐसे हालात में कौन अपना फोन कर बंद करके रखता है?"

"बात तो आपने सही कही माॅम।" शिवा के चेहरे पर एकाएक सोचने वाले भाव उभरे____"ऐसे हालात में कोई भी अपना फोन ऑफ नहीं रख सकता। हाॅ अगर मोबाइल ही डिस्चार्ज़ हो गया हो तो अलग बात है। लेकिन माॅम मुझे यकीन है डैड अपना फोन ऑफ नहीं करेंगे ऐसे वक्त में। ज़रूर कोई बात हो गई होगी।"

"चुप कर तू।" प्रतिमा अंदर ही अंदर जाने क्यों बुरी तरह हिल गई, बोली___"जो मुह में आता है बिना सोचे समझे बोल देता है।"
"ऐसा नहीं है माॅम।" शिवा ने नर्म भाव से कहा___"लेकिन आप खुद सोचिए कि क्या डैड ऐसे वक्त में अपना फोन ऑफ कर सकते हैं, नहीं ना? उन्हें भी पता है कि हालात कितने गंभीर हैं। लेकिन ये भी सच है कि अगर डैड का फोन ऑफ बता रहा है तो ज़रूर कोई ऐसी बात होगी जिसके बारे में फिलहाल हमें कुछ भी पता नहीं है।"

शिवा की इस बात पर प्रतिमा तुरंत कुछ बोल न सकी। उसके चेहरे पर गहन सोचों के भाव ज़रूर उभर आए थे। जैसा सोच रही हो कि क्या सच में ऐसा कुछ हुआ होगा? उधर अपनी माॅम को सोचों में गुम देख कर शिवा पुनः कह उठा____"इस तरह बैठने से कुछ नहीं होगा माॅम। मुझे लगता है कि हमें डैड का पता करना चाहिए। जैसा कि आपने मुझे बताया था कि आज विराज रितू दीदी के साथ नीलम व सोनम को लेने आने वाला है शायद, इसी लिए आपने उनके पीछे अलग से एक मजबूत टीम बना कर मेरे द्वारा भेजवाया था। वहीं दूसरी तरफ से डैड भी अपने साथ कुछ आदमियों को लिए आ रहे हैं। इस बात से यही ज़ाहिर होता है कि अगर विराज सचमुच आ रहा है तो डैड तथा हमारे आदमियों के साथ उसकी भिड़ंत अनिवार्य है। इस भिड़ंत में यकीनन हमारी जीत होगी। यानी कि अंततः विराज रितू दीदी के साथ पकड़ा ही जाएगा। उसके बाद डैड उन सबको फार्महाउस ले जाएॅगे। फार्महाउस पहुॅचने के बाद ही वो हमें फोन करने वाले थे। किन्तु उनके फोन बंद बताने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमने जो उम्मीद की थी वो हुआ ही नहीं
है।"

"नहीं नहीं।" प्रतिमा ने पूरी मजबूती से इंकार में सिर हिलाया, बोली___"ऐसा नहीं हो सकता बेटा। इस बार मैने और तेरे डैड ने उस विराज की सोच से बहुत आगे बढ़ कर प्लान बनाया था। मुझे उसकी सोच का अब अंदाज़ा हो चुका था, इसी लिए तो डबल बैकअप रखा था हमने। एक हमारे आदमियों का दूसरा तेरे डैड के साथ आए आदमियों का। डबल बैकअप के बाद तो जीत हमारी ही होनी निश्चित थी बेटा।"

"काश! ऐसा ही हुआ हो माॅम।" शिवा ने कहा___"उन सबके साथ साथ नीलम व सोनम भी तो पकड़ ली गई होंगी। उफ्फ! कितना भरोसा था मुझे कि सोनम ये गाॅव तथा हमारे खेते घूम कर वापस यहीं आएगी। मगर कदाचित नीलम ने उसे भी सब कुछ बता दिया था तभी तो दोनो एक साथ चली गईं। मगर अब मैं अपने दिल का क्या करूॅ माॅम? ये तो उसी का होकर रह गया है।"

शिवा की इस बात का प्रतिमा अभी कुछ जवाब देने ही वाली थी सहसा तभी ड्राइंग रूम में बड़े वेग से एक आदमी दाखिल हुआ। उसके चेहरे से ही लग रहा था कि वो कहीं से मैराथन दौड़ लगा कर आया है। बुरी तरह हाॅफ रहा था वह। प्रतिमा व शिवा उसे देख कर बुरी तरह चौंक पड़े।

"क्या बात है हैदर?" शिवा ने उसकी तरफ हैरानी से देखते हुए कहा___"तुम इतना हाॅफ क्यों रहे हो? और...और तुम यहाॅ कैसे, तुम तो टीम के साथ ही गए थे न?"
"हाॅ छोटे ठाकुर।" हैदर नाम के उस आदमी ने हाॅ में सिर हिलाते हुए कहा___"गया तो मैं टीम के साथ ही था। मगर,

"मगर क्या???" शिवा उतावलेपन में पूछ बैठा।
"सब कुछ गड़बड़ हो गया छोटे ठाकुर।" हैदर ने दीनहीन दशा में बोला____"ठाकुर साहब ने तो सबको पकड़ ही लिया था और बाज़ी भी हमारे ही हाॅथ में थी। मगर ऐन वक्त पर वहाॅ पुलिस की पूरी फौज आ गई और फिर एसीपी के निर्देश पर सबको हिरासत में ले लिया गया। यहाॅ तक कि ठाकुर साहब को भी वो एसीपी गिरफ्तार करके ले गया है। मैं किसी तरह छुपता छुपाता वहाॅ से निकल कर ये सब बताने के लिए आपके पास आया हूॅ।"

हैदर की बात सुन कर शिवा तथा प्रतिमा दोनो को ही जैसे साॅप सूॅघ गया। दोनो के ही चेहरों की हालत ऐसे हो गई जैसे कपड़े से पानी निचोड़ लेने पर कपड़े की हो जाती है। प्रतिमा को तो ऐसा लगा जैसे दिल का दौरा पड़ जाएगा। उसकी ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। शिवा की नज़र जब प्रतिमा पर पड़ी तो वह अपने सोफे से उठ कर बड़ी तेज़ी से उसके पास आकर उसे सम्हाला। हालत तो उसकी भी ख़राब हो चुकी थी। किन्तु जवान खून था अभी इस लिए हैदर की इस डायनामाइट जैसी बात को हजम कर गया था।

"सब कुछ खत्म हो गया बेटा।" प्रतिमा अपने बेटे की बाहों में सिमटी एकदम से असहाय भाव से बोली___"अब कुछ भी शेष नहीं रहा। तेरी बहन रितू ने अपने महकमे का सहारा ले कर अपने बाप को एक और क्षति पहुॅचा दी। उसने अपने बाप के माथे पर एक और नाकामी की मुहर लगा दी। इस बात से ज़ाहिर होता है कि उसके दिल में अपने माॅ बाप के प्रति ज़रा सी भी जगह नहीं रह गई है।"

"मैं उस कुतिया को ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा माॅम।" शिवा के मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"डैड को जेल भिजवा कर उसने ये अच्छा नहीं किया है। भला उसकी हमसे क्या दुश्मनी है माॅम, दुश्मनी तो विराज से है।"

"मैडम, ठाकुर साहब ने गुस्से में आकर अपनी छोटी बेटी नीलम को गोली भी मार दी है।" सहसा हैदर ने ये कह कर मानो धमाका सा किया____"नीलम की हालत बहुत ही गंभीर है। उसे वो लोग यकीनन हास्पिटल ले गए होंगे।"

"ये क्या कह रहे हो तुम??" प्रतिमा हैदर की ये बात सुन कर सकते में आ गई। चेहरा सफेद फक्क पड़ गया।
"हाॅ मैडम।" हैदर ने कहा___"गुस्से में पागल हुए ठाकुर साहब ने एसीपी का रिवील्वर निकाल कर नीलम पर फायर कर दिया था। गोली नीलम की पीठ पर लगी थी। जहाॅ से खूॅन बहे जा रहा था।"

"हे भगवान!।" प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं___"ये कैसा दिन दिखा रहे हो हमे? एक बाप अपनी ही बेटियों के खून का प्यासा हो चुका है।"
"लेकिन हैदर।" प्रतिमा के रुदन पर ज़रा भी ध्यान दिये बग़ैर शिवा ने पूछा___"डैड ने नीलम पर गोली क्यों चलाई थी?"

हैदर ना शुरू से लेकर अंत तक की सारी राम कहानी संक्षेप में कह सुनाई। उसकी इस राम कहानी में वो सीन भी था जिसमें अजय सिंह ने अपनी ही बेटी नीलम से अश्लील बातें की थी। ये भी कि अंत में कैसे नीलम ने ठाकुर साहब को थप्पड़ मारा था जिसकी वजह से गुस्से में आकर अजय सिंह ने एसीपी का रिवाल्वर छीन कर नीलम पर गोली चलाई थी। सारी बातें सुनने के बाद शिवा तो बस हैरान ही था किन्तु प्रतिमा एकदम से मानो बुत बन गई थी। उसका चेहरा एकदम से तेज़हीन सा हो गया था।

"अब मेरे लिए क्या आदेश है छोटे ठाकर?" हैदर ने कहा।
"तुम जाओ हैदर।" शिवा ने गंभीरता से कहा___"गेस्ट हाउस में आराम करो। हम सोचते हैं कि अब इसके आगे हमें क्या करना है?"

शिवा के कहने पर हैदर वहाॅ से चला गया। उसके जाने के बाद ड्राइंगरूम में मरघट जैसा सन्नाटा छा गया। काफी देर तक माॅ बेटे के बीच यही आलम रहा। जैसे उनमें से किसी को कुछ सूझ ही न रहा हो कि अब क्या बात करें?

"आख़िर जिस चीज़ की नियति बन चुकी थी।" सहसा प्रतिमा ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसका आग़ाज हो ही गया। इस लड़ाई में किसी न किसी को तो शहीद होना ही है। फिर चाहे वो नीलम ही क्यों न हो?"

"आपने बिलकुल सही कहा माॅम।" शिवा ने भी गंभीर भाव से कहा___"किसी न किसी के साथ तो ये होना ही है। मगर एक बात तो मैं भी कहूॅगा, और वो ये कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। मैं जानता हूॅ कि आपको मेरी ये बात नागवार लग सकती है। मगर इसके बावजूद कहूॅगा मैं कि डैड को नीलम पर गोली नहीं चलाना चाहिए था। मैं मानता हूॅ कि मेरी दोनो बहनों ने हमसे बगावत करके ग़लत किया है। उन्हें सोचना चाहिए था कि माॅ बाप कैसे भी हों हैं तो अपने ही। वैसे ही डैड को भी सोचना चाहिए था माॅम। हम उन्हें उनके किये की सज़ा ज़रूर देते मगर इस तरह नहीं कि उनको जान से ही मार दें। ये सब उस विराज की वजह हे हुआ है, उसी ने मेरी दोनो बहनों को बहकाया है। उसी ने उन दोनो का ब्रेनवाश किया है, वरना उनके दिलो दिमाग़ में कम से कम ये सोच तो रहती ही कि माॅ बाप जैसे भी हों, वो अपने ही होते हैं।"

प्रतिमा शिवा की ये बातें सुन कर मन ही मन हैरान थी। शिवा का बदला हुआ ये रवैया उसे हजम नहीं हो रहा था। किन्तु उसे ये भी पता था कि शिवा अपने बाप की टूकाॅपी है। यानी सूरज कभी पश्चिम से उदय नहीं हो सकता।

"क्या बात है।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"आज अपनी बहनों से इतनी हमदर्दी? क्या ये सोनम से हुए इश्क़ का असर है बेटा? जिसने तेरी सोच को इस हद तक बदल दिया है?"
"मुझे खुद पता नहीं है माॅम।" शिवा ने नज़रें चुराते हुए कहा___"मैं सिर्फ इतना समझ रहा हूॅ कि डैड ने नीलम पर गोली चला कर अच्छा नहीं किया। अगर वही गोली वो विराज पर चला देते तो शायद मुझे उनसे कोई शिकायत न रहती।"

"ख़ैर छोंड़।" प्रतिमा ने इस मैटर को ज्यादा न बढ़ाने की गरज़ से कहा___"अब हमें ये सोचना है कि तेरे डैड को पुलिस से कैसे छुड़ाया जाए? उन पर नीलम को जान से मारने की कोशिश का भी केस लग सकता है, और संभव है कि उस एसीपी ने ये केस लगा भी दिया हो उन पर। अतः हमें अब किसी क़ाबिल वकील से मिलना पड़ेगा। ताकि वो उनको जेल से किसी तरह छुड़ा सके।"

"हाॅ ये सच कहा आपने।" शिवा ने कहा___"डैड को जेल से तो छुड़ाना ही पड़ेगा।"
"रुको मैं पता करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा___"मेरी जानकारी में एक क़ाबिल वकील है जो अजय को जेल से छुड़ा सकती है। मेरी एक काॅलेज फ्रैण्ड है। मैने और अनीता ब्यास ने एक साथ ही एलएलबी किया था। उसके बाद उसने वकालत को ही अपना पेशा बना लिया जबकि मैं अजय के साथ घर बसा कर सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर रह गई। हलाॅकि अजय ने मुझे इस बात के लिए कभी भी मना नहीं किया कि मैं वकालत न करूॅ। बल्कि हमने तो साथ में ही इसकी पढ़ाई की थी। अजय तो चाहते थे कि हम दोनो वकील बन जाएॅ। मगर मैने ही इंकार कर दिया था। किन्तु आज सोचती हूॅ कि काश मैं बन ही जाती तो आज अपने अजय को चुटकियों में जेल से छुड़ा लाती।"

"वकालत तो आप आज भी कर सकती हैं माॅम।" शिवा ने कहा___"आपके पास इस सबके राइट्स तो होंगे ही।"
"सब कुछ है बेटा।" प्रतिमा ने कहा___"मगर ये सब अब इतना आसान भी नहीं है। उसके लिए पहले इस सबकी बारीकियों को समझना पड़ता है। कई तरह के केसों का अध्ययन करना पड़ता है। मैं कभी कोर्ट के अंदर वकील का चोंगा पहन कर नहीं गई, इस लिए मुझे इसका तज़ुर्बा भी नहीं है। दूसरी बात अनुभव भी कोई चीज़ होती है। जो कि मुझे नहीं है। हर चीज़ का एक क्रम होता है। अगर आप समय के साथ ही साथ लाइन पर चल रहे हैं तब तो आप सीधी लाइन पर ही बिना किसी रुकावट के चलते रहेंगे पर अगर आपने लाइन को बहुत पहले ही छोंड़ दिया है तो फिर लम्बे समय बाद उसी लाइन पर चलना ज़रा मुश्किल सा हो जाता है। वो फिर तभी अपनी लय पर आएगा जब उसकी नियमित प्रैक्टिस हो। ख़ैर, छोंड़ इस बात को। मैं अनीता को फोन लगा कर उससे बात करती हूॅ। मेरे फ्रैण्ड सर्कल में एक वही है जो अब तक मेरे टच में में है। बाॅकियों का तो कहीं पता ही नहीं है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने मोबाइल को अनलाॅक करके उस पर अनीता ब्यास का नंबर ढूॅढ़ने लगी। जबकि शिवा ये कह कर सोफे से उठा कि वो कुछ देर में आता है अभी।
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केशव जी के जिस आदमी ने फोन पर उस जासूस के बारे में सूचित किया था उसका नाम निरंजन वर्मा था। रितू ने जब केशव जी से कहा कि वो अपने उस आदमी से कहे कि उसे पकड़ने की कोशिश करे और खुद भी वापस जाएॅ वहाॅ तो केशव ने वैसा ही किया था। उन्होंने निरंजन को फोन करके उससे पूछा था कि क्या वो अकेले उस जासूस को पकड़ सकता है तो निरंजन ने कहा कि वो इस बारे में कुछ कह नहीं सकता है। क्योंकि उसने सुना था कि कोई कोई जासूस लड़ने के मामले में भी काफी निपुण होते हैं। इस लिए बेहतर यही होगा कि वो उस पर सिर्फ नज़र रखे और फिर जब वो सब आ जाएॅगे तो उसे जल्द ही घेर लिया जाएगा। केशव जी को भी निरंजन की बात सही लगी। इस लिए वो फुल स्पीड में अपने आदमियों को लिए आ रहे थे।

इधर निरंजन बड़ी सफाई से हरीश राणे पर नज़र रखे हुए था। किन्तु उसे भी पता था कि ये जासूस यहाॅ पर ज्यादा देर तक रुकने वाला नहीं है। उसके पास काले रंग की एक पल्सर बाइक थी। इस वक्त वह बाइक के ही पास नीचे बैठा बाइक में कुछ कर रहा था। निरंजन को समझ नहीं आ रहा था कि वो बाइक के पास इस तरह बैठ कर क्या कर रहा है? निरंजन उससे बस कुछ ही दूरी पर एक पेड़ की ओट में छुप कर खड़ा था और उस पर नज़र रखे हुए था। उसके पास हथियार के रूप में कुछ भी नहीं था। जबकि उसे पूर्ण विश्वास था कि उस जासूस के पास रिवाल्वर ज़रूर होगा। यही वजह थी कि वो खुल कर उसके सामने नहीं जा रहा था।

निरंजन के चेहरे पर प्रतिपल बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्योंकि उसे पता था कि जासूस अगर यहाॅ से चला गया तो फिर उसे ढूॅढ़ पाना मुश्किल होगा। अतः वह बार बार देवी माॅ से प्रार्थना कर रहा था कि केशव जी सारे आदमियों को लेकर जल्दी आ जाएॅ। उसकी नज़र सामने ही थी। जहाॅ पल्सर बाइक के पास नीचे बैठा वो जासूस कुछ कर रहा था। जासूस का चेहरा उसके बगल से दिख रहा था। निरंजन के मन में कई बार ये ख़याल आया था कि वो चुपके से जाए और उस जासूस को दबोच ले मगर अगले ही पल वो उसके पास जाने का अपना ये ख़याल त्याग देता था। क्योंकि बार बार उसे उसके पास रिवाल्वर होने का बोध करा देता था। उसने आस पास देख भी लिया था। पास में कहीं भी उसे कोई डंडे जैसी वस्तु भी न नज़र आई थी जिसे लेकर वो उस जासूस के पास चला जाता।

अभी निरंजन उस जासूस को देख ही रहा था कि तभी वो जासूस उठ कर खड़ा हुआ और अपने दाहिने पैर को बाइक के आगे वाले पहिये पर रिम में रख कर उस पर ज़ोर से दबाव बनाया। ये देख कर निरंजन के मस्तिष्क में झनाका सा हुआ। एकाएक ही उसके दिमाग़ की बत्ती जल उठी। साला इतनी देर से वो समझ नहीं पा रहा था कि ये जासूस बाइक के पास बैठा कर क्या रहा था? अब उसे समझ आया था। दरअसल बाइक का अगला पहिया पंचर था अथवा उसमें हवा कम थी। पहिये पर निरंजन का ध्यान पहली बार गया था। उसने ग़ौर से देखा पहिये पर जहाॅ पर से हवा भरी जाती है वहाॅ पर कोई पतली सी तार या फिर यू कहें कि पतला सा पाइप लगा हुआ था। जिसका दूसरा सिरा इस वक्त उस जासूस के दाहिने हाॅथ में था।

निरंजन को समझ न आया कि अगर बाइक का अगला पहिया पंचर है या उसमे हवा कम है तो वो जासूस यहाॅ पर उसे ठीक कैसे कर लेगा और ये पतला सा पाइप क्यों लगा रखा है उसने पहिये की निब पर? तभी वो जासूस पुनः बैठ गया। इस बार निरंजन ने भी अपनी जगह बदली और फिर ध्यान से देखा उसने। पाइप का दूसरा सिरा उस जासूस ने अपने होठों पर दबाया और फिर निरंजन ने देखा कि जासूस के दोनो गाल फूल गए। ये देख कर निरंजन की हॅसी छूट ही गई होती अगर उसने जल्दी से अपने मुह को अपने हाथों से भींच न लिया होता तो। दरअसल वो जासूस पाइप लगा कर मुह से हवा भर रहा था पहिये पर। बस यही देख कर निरंजन को बड़ी ज़ोर की हॅसी आ गई थी। उसने सोचा कि इसे जासूस किसने बना दिया? भला मुह से भी कोई बाइक के पहिये पर हवा भरता है? ये तो दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य ही है।

निरंजन ने भी सोचा कि बेचारा यहाॅ पर बाइक में हवा भरवाए भी तो कैसे? किन्तु मुख से हवा तो भरने से रही। कहने का मतलब ये कि जासूस की इस क्रिया पर निरंजन उसे बेवकूफ ही समझ रहा था। मगर वो उस वक्त हैरान रह गया जब वो जासूस पुनः उठा और पहले की भाॅति अपना दाहिना पैर रिम में रख दबाव बनाया। उसके चेहरे से ज़ाहिर हुआ कि अब वो संतुष्ट है। उसने झुक कर तुरंत ही पाइप को पहिये के निब से निकाला। निरंजन ने देखा कि निब के पास लगे पाइप के उस छोर पर कोई चीज़ लगी हुई थी। ये देख कर निरंजन का दिमाग़ घूम गया। चकित होकर वह उस जासूस को देखे जा रहा था। अब उसे समझ आया कि वो जासूस यूॅ ही तो नहीं बन गया होगा। ज़रूर उसमें काबीलियत थी।

अभी निरंजन ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसने देखा कि वो जासूस उस पाइप को लिए बाइक के बाएॅ साइड आया और फिर अपनी दाहिनी टाॅग उठा कर बाइक की सीट पर बैठ गया। ये देख कर निरंजन एकदम से हड़बड़ा गया। वो समझ गया कि अब ये जासूस यहाॅ से चला जाएगा। निरंजन को समझ न आया कि वो उसे कैसे यहाॅ से जाने से रोंके? वो खुद निहत्था था वरना वो कोई जोखिम उठाने का सोचता भी। उसे पूरा यकीन था कि उस जासूस के पास पिस्तौल होगी। यही वजह थी कि वो उसके पास खुल कर जा नहीं रहा था। किन्तु अब हालात बदल गए थे। क्योंकि निरंजन की ऑखों के सामने ही वो जासूस बाइक पर बैठ चुका था और अब ये भी तय था कि वो बाइक को स्टार्ट कर यहाॅ से चला ही जाएगा।

निरंजन ने देखा कि बाइक पर बैठा जासूस उस पतले से पाइप को गोल गोल छल्ली की शक्ल देकर समेट रहा था। उसकी पीठ निरंजन की तरफ ही थी। पाइप का दूसरा सिरा जासूस की दाहिनी जाॅघ से थोड़ा ही नीचे झूल रहा था और प्रतिपल ऊपर की तरफ उठता भी जा रहा था। ये देख कर निरंजन के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके चेहरे पर एकाएक ही कुछ सोच कर चमक आ गई। वो फुर्ती से अपनी जगह से हिला और फिर बड़ी सावधानी व सतर्कता से लम्बे लम्बे क़दम बढ़ाते हुए जासूस के पीछे पहुॅच गया।

हरीश राणे को सहसा अपने पीछे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। उसने इस एहसास के तहत ही जल्दी से पीछे मुड़ कर देखना चाहा मगर अगले ही पल जैसे बिजली सी कौंधी। निरंजन ने डर व भय की वजह से बड़ी ही फुर्ती का प्रदर्शन किया था। उसने जासूस के मुड़ने से पहले ही झुक कर जासूस के नीचे जाॅघ के पास झूलते उस पाइप को पकड़ा और फिर तेज़ी से खड़े होकर उसी छोर से दूसरा हाॅथ सरका कर उसने जासूस के सिर से अपनी एक कलाई घुमा कर बड़ी फुर्ती से उस पाइप को जासूस की गर्दन पर कस दिया।

हरीश राणे को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके साथ पलक झपकते ही ऐसा कुछ हो सकता है। वह एकदम से हकबका कर रह गया था। हलाॅकि उसने खुद को बड़ी तेज़ी से सम्हाला था मगर तब तक उसके गले में निरंजन ने उस पाइप को किसी फाॅसी के फंदे की तरह कस दिया था। निरंजन ये सोच कर जी जान लगाए हुए था कि अगर उसने ज़रा सी भी ढील दी तो ये जासूस उसे जान से मार देगा। निरंजन के दिमाग़ में बस एक यही बात थी, बाॅकी उसे किसी बात का कोई होश ही नहीं था। उसे इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं रह गया था कि उसके द्वारा इतनी ताकत से गले में पाइप को कसने से वो जासूस कुछ ही पलों में मर भी सकता है।

उधर राणे जल बिन मछली की तरह छटपटाए जा रहा था। वो अपने दोनो हाथों से अपने गले में फॅसे पाइप को पकड़ने की कोशिश कर रहा था मगर पाइप में निरंजन की पूरी ताकत लगी हुई थी। जिसकी वजह से राणे उसे हिला भी नहीं पा रहा था। देखते ही देखते राणे का बुरा हाल हो गया। उसका गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया। चेहरे पर पसीना और तड़प साफ पता चल रही थी। किसी किसी पल वह खाॅसने भी लगता था। उसकी ऑखों की पुतलियाॅ जैसे बाहर कूद पड़ने को आतुर हो उठी थीं।

राणे की हालत प्रतिपल बिगड़ती जा रही थी। बाइक पर बैठा वह बुरी तरह खुद को झटके भी दे रहा था मगर मजाल है कि निरंजन की पकड़ में ज़रा सा भी ढीलापन आया हो। कहते हैं कि मौत से बचने के लिए इंसान अंत तक हर तरह से प्रयास करता है फिर भले ही उसके प्रयास विफल ही होते रहें। निरंजन के सिर पर जुनून सवार था और वो किसी यमराज की तरह राणे के सिर पर आ खड़ा हुआ था। राणे को एहसास हो गया कि अब वो मरने ही वाला है। उसे अब साॅस लेना भी मुश्किल पड़ रहा था। बुरी तरह छटपटाते हुए राणे ने एकाएक अपने एक हाॅथ को गले में फॅसे पाइप से हटा कर उसी हाॅथ की कुहनी का वार बड़ी तेज़ी से पीछे निरंजन के पेट के हल्का ऊपरी भाग पर किया। उसके इस वार से निरंजन के हलक से पीड़ा भरी कराह निकल गई और उसकी पकड़ तथा उसकी ताकत कमज़ोर पड़ गई। हलाॅकि उसने जल्दी से उस दर्द को बर्दास्त करके पुनः पाइप को कसना चाहा मगर तक मानो देर हो गई। क्योंकि जैसे ही निरंजन ने पुनः ताकत लगाई वैसे ही राणे ने कुहनी का वार जल्दी जल्दी कई बार निरंजन के पेट में कर दिया था। नतीजा ये हुआ कि निरंजन की पकड़ काफी ज्यादा ढीली व कमज़ोर पड़ गई। वह बुरी तरह दर्द व पीड़ा से बिलबिला उठा था।

निरंजन के कमज़ोर पड़ते ही हरीश राणे ने बड़ी तेज़ी से अपने गले से उस पाइप को पकड़ कर खींचा और फिर उसे ऊपर करते हुए सिर से निकाल दिया। हालत तो उसकी अब भी बहुत ख़राब थी। बुरी तरह खाॅस रहा था तथा बुरी तरह गहरी गहरी साॅसें भी ले रहा था। गोरा चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। चेहरे पर ढेर सारा पसीना उभर आया था। गले से पाइप को निकालते ही वह बाइक से खुद को बाएॅ साइड गिरा लिया था तथा साथ ही कई पलटियाॅ भी खा लिया था। मगर तब तक उसकी पसली में निरंजन के बूट की ज़बरदस्त ठोकर लग चुकी थी। निरंजन जानता था कि अगर वह अब भी उसे सम्हलने का मौका दिया तो वो उसके लिए काल बन सकता है। अतः वह मौत के डर से उस पर वार पे वार किये जा रहा था।

हरीश राणे अभी अभी मौत से बच कर निकला था। इस लिए उसे खुद पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ समय चाहिए था मगर निरंजन था कि उस पर प्रहार किये जा रहा था। अचानक ही निरंजन ने देखा कि जासूस ने अपने हाॅथ को पीछे ले जाकर रिवाल्वर निकाल रहा है। ये देख कर निरंजन के समूचे जिस्म में मौत की सिहरन दौड़ गई। जैसे ही राणे ने रिवाल्वर निकाल कर अपने हाॅथ को निरंजन की तरफ उठाना चाहा वैसे ही मौत के डर से निरंजन ने उसकी उस कलाई पर अपनी टाॅग चला दी। नतीजा ये हुआ कि राणे के हाॅथ से रिवाल्वर छूट कर दूर जा गिरा तथा कलाई पर तेज़ ठोकर लगने से वो दर्द से कराह उठा।

निरंजन ने देखा कि रिवाल्वर उसकी पहुॅच में ही है इस लिए वो जल्दी से रिवाल्वर की तरफ लपका मगर तभी वह मुह के बल ज़मीन पर गिरा। गिरते ही उसके मुख से चीख़ निकल गई। राणे ने पलट कर उसका पैर पकड़ कर खींच लिया था जिससे वो अनबैलेंस होकर मुह के बल गिरा था। रिवाल्वर उसकी पहुॅच से लगभग डेढ़ दो हाॅथ ही दूर था। इधर निरंजन का पैर पकड़ कर खींचते ही राणे उसके ऊपर एकदम से आने की कोशिश की तो निरंजन घबरा कर पलट गया। नतीजतन इस बार राणे मुह के बल गिरा। किन्तु उसके एक हाॅथ में निरंजन का पैर अभी भी था।

निरंजन ने अपने पैर को उससे छुड़ाने के लिए ज़ोर से झटका दिया मगर उसका पैर तो न छूटा किन्तु झटकने से उसका पैर राणे की छाती से टकराया। निरंजन आवेश और घबराहट में अपने पैर को झटका देता ही रहा, जिसका नतीजा ये हुए कि बार बार छाती पर उसका पैर ज़ोर से लगने से आख़िर राणे को उसका पैर छोंड़ना ही पड़ा। इधर निरंजन जो कि दोनो हाॅथ पीछे की तरफ ज़मीन पर टिका कर बैठ चुका था वो अपने पाॅव के आज़ाद होते ही तेज़ी से रिवाल्वर की तरफ पलट कर लगभग उस पर कूद सा गया। उसके हाॅथ में रिवाल्वर आ चुका था। अभी वह रिवाल्वर के साथ पलटा ही था कि तभी राणे उसके ऊपर जंप मार कर आ गया।

राणे ने तुरंत ही निरंजन के रिवाल्वर वाले हाॅथ को पकड़ने के लिए अपना एक हाॅथ बढ़या तो निरंजन ने अपने उस हाॅथ को ऊपर अपने सिर के पीछे साइड कर लिया। राणे जैसे ही उसे पकड़ने के लिए उस तरफ झुका वैसे ही निरंजन ने अपना दूसरा हाॅथ छुड़ा कर ज़ोर से एक मुक्का राणे की कनपटी में मारा जिससे राणे उसके ऊपर से दूसरी तरफ पसर गया। इधर राणे के गिरते ही निरंजन लेटे लेटे ही एक साथ तीन चार पलटियाॅ खाता चला गया। जब तक राणे उठ कर उसके पास पहुॅचता तब तक निरंजन उठ कर बैठ चुका था, साथ ही रिवाल्वर वाला हाॅथ भी ऊपर उठा कर उस पर तान चुका था।

"रुक जा मादरजाद।" निरंजन आवेश में जल्दी से चिल्लाया था___"वरना इस रिवाल्वर की सारी गोलियाॅ तेरे सीने में उतार दूॅगा और ये मैं यूॅ ही नहीं कह रहा हूॅ बल्कि सचमुच ऐसा कर भी दूॅगा। क्योंकि तुझे जान से मार देने पर भी मुझे कुछ नहीं वाला। बल्कि इनाम ही मिलेगा मुझे।"

हरीश राणे निरंजन का ये डायलाॅग तथा उसके खतरनाॅक लहजे को देख कर एकदम से अपनी जगह पर गया। उसके चेहरे पर पहली बार डर व भय के चिन्ह नज़र आए। किन्तु उसे ये समझ नहीं आया कि ये आदमी है कौन और उसके पीछे उसकी मौत बन कर कहाॅ से आ गया था? क्या ये विराज व रितू का आदमी है जो उसके पीछे ही लगा हुआ था?

"कौन हो तुम?" हरीश राणे ने सतर्क भाव से पूछा___"और इस तरह मुझ पर जानलेवा हमला करने का क्या मतलब है तुम्हारा?"
"जिस तरह तू मंत्री का कुत्ता बन कर हमारे बाॅस के अज़ीज़ लोगों के पीछे लगा हुआ था।" निरंजन ने लहजे को कठोर बनाते हुए कहा___"उसी तरह मैं भी तेरे पीछे लगा हुआ था। ख़ैर, अब तू पकड़ में आ ही चुका है तो ये भी समझ गया होगा कि अब तेरा क्या हस्र होने वाला है?"

"ओह तो तुम्हें ये ग़लतफहमी है।" हरीश राणे ने बड़े अजीब भाव से कहा____"कि तुमने मुझे पकड़ लिया है?"
"ज्यादा शेखी मत झाड़।" निरंजन उसकी बात पर गड़बड़ा सा गया, फिर बोला___"वरना बता ही चुका हूॅ कि तुझे जान से मार देने पर मुझे कुछ नहीं होगा बल्कि इनाम ही मिलेगा।"

"अच्छा।" हरीश राणे सहसा मुस्कुराया___"तो फिर देर किस बात की है प्यारे? तुम्हारे निशाने पर हूॅ, खत्म कर दो मुझे और जल्दी से अपना इनाम भी हाॅसिल कर लो।"
"लगता है।" निरंजन अंदर ही अंदर हैरान___"कि तुझे मरने की बहुत जल्दी है।"

"क्या करें दोस्त?" राणे ने कहा___"अब जब तुमने कह ही दिया है ऐसा तो फिर देर किस बात की करना? मुझे लगता है कि तुम्हें भी अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अतः मेरी सलाह मानो और जल्दी से मुझे खत्म कर दो।"

निरंजन उसकी इस बात पर समझ न सका कि ये जासूस आख़िर है किस किस्म का ब्यक्ति? मौत सामने खड़ी है और ये ऐसी बातें कर रहा है। इसे ज़रा भी मौत का ख़ौफ नहीं है। जबकि निरंजन तो बस उसे डरा और धमका ही रहा था। ताकि वह कोई बेजा हरकत करने की कोशिश न करे। उसे पता था थोड़ी ही देर में उसके बाॅस यानी कि केशव शर्मा अपने आदमियों सहित यहाॅ पहुॅच ही जाएॅगे। अतः तब तक उसे इस जासूस को रोंके रखना था। मगर उसकी इन ऊल जुलूल बातों ने उसका सिर चकरा कर रख दिया था।

"क्या सोचने लगे प्यारे?" हरीश राणे उसे चुप देख कर कह उठा___"अरे भई चलाओ गोली मुझ पर और खत्म करो मुझे। तुम तो यार लगता है बस डींगे ही मारना जानते हो। जबकि मुझसे अब इन्तज़ार नहीं हो रहा।"
"ओये ज्यादा बकवास न कर समझा।" निरंजन ने उत्तेजित भाव से कहा___"वरना सच में तेरा राम नाम सत्य कर दूॅगा मैं।"

हरीश राणे कोई मामूली इंसान नहीं था। घुटा हुआ जासूस था, उसे समझते देर न लगी कि निरंजन उसे सिर्फ धमका रहा है। अगर उसे जान से मारना ही होता तो इतनी बातें न करता बल्कि कब का उसे यमलोक पहुॅचा दिया होता। अतः उसने पूरी सतर्कता से निरंजन की हर गतिविधी को नोट करते हुए बेख़ौफ निरंजन की तरफ बढ़ने लगा। ये देख कर निरंजन अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया। साथ ही उसके दिमाग़ ने काम करना भी बंद कर दिया। उसे समझ न आया कि ये साला अब उसकी तरफ क्यों बढ़ रहा है?

"ये...ये तू क्या कर रहा है मादरजाद?" बुरी तरह बौखलाते हुए निरंजन हकलाते हुए बोल उठा____"मैं कहता हूॅ रुक जा वरना सच में गोली मार दूॅगा तुझे।"
"मैं भी तो यही चाहता हूॅ प्यारे।" हरीश राणे ने मुस्कुराते हुए कहा___"मगर तुम हो कि मुझे जान से मारते ही नहीं। इस लिए अब मैं खुद ही तुमसे रिवाल्वर लेकर खुद को गोली मार लूॅगा। मुझे समझ आ गया है कि तुमसे रिवाल्वर चलाया नहीं जाएगा।"

"तू...तू पागल है क्या रे?" निरंजन हैरान परेशान सा बोल पड़ा___"देख मेरी तरफ मत आ। वरना अगर मेरा भेजा गरम हो गया न तो तू सच में मेरे हाॅथों मारा जाएगा।"
"नहीं प्यारे।" हरीश राणे बोला___"मुझे पता चल गया है कि अब तुम मुझे गोली नहीं मार सकते। क्योंकि तुम्हें मुझसे अचानक ही बेइंतहां मोहब्बत हो गई है। हाय, ये मोहब्बत भी न बहुत बुरी चीज़ होती है कम्बख़्त।"

"साले।" निरंजन उसकी बातों से बुरी तरह भन्ना गया, बोला___"तुझे एक बार में बात समझ में नहीं आती है क्या? अब अगर एक क़दम भी आगे बढ़ाया तूने तो देख लेना यहीं पर ढेर हुआ नज़र आएगा।"

"ऐसा ग़ज़ब मत करना प्यारे।" राणे चहका___"ऐसा लगता है कि तुम्हारी तरह मुझे भी तुमसे मोहब्बत हो रही है। ओह नहीं नहीं....मुझे किसी से भी मोहब्बत नहीं हो सकती। खास कर उससे तो हर्गिज़ भी नहीं जो खुद ही मेरी तरह औज़ार लिए फिरता हो।"

निरंजन बोला तो कुछ नहीं किन्तु उसे एहसास हुआ कि फालतू की बकवास करते हुए ये जासूस उसके काफी पास आ गया है। अभी निरंजन ये सोच ही रहा था कि अचानक ही मानो बिजली सी कौंधी। हरीश राणे ने हैरतअंगेज़ कारनामा किया था। पलक झपकते ही उसका जिस्म हवा में लहराया और इससे पहले की निरंजन कुछ समझ पाता राणे उसको लिए ज़मीन पर कई पलटियाॅ खाता चला गया। निरंजन के हाॅथ से रिवाल्वर जाने कब छूट गया था। अपने ऊपर हुए इस अप्रत्याशित हमले से निरंजन बुरी तरह बौखला गया था। जब तक उसे कुछ होश आया तब तक देर हो चुकी थी।

पलटियाॅ खाने के बाद राणे सबसे पहले उठा और फिर उसने निरंजन को कुछ भी करने का अवसर नहीं दिया। लात घूॅसों की बरसात सी कर दी उसने। निरंजन की चीख़ें फिज़ा में गूॅजती रही।

"हमने कहा था न प्यारे।" हरीश राणे निरंजन की छाती पर बैठा हुआ बोला___"कि तुमसे रिवाल्वर नहीं चलाया जाएगा। हमने तो ये भी कहा था कि हमें खत्म कर दो मगर नहीं तुम्हें तो हमसे मोहब्बत हो गई थी न। अब भुगतो मेरी जान। पीछे से वार करने वाला कायर बुज़दिल व हिंजड़ा होता है और ये सब बातें तुम में हैं, ये तुमने पहले ही साबित कर दिया था।"

अभी राणे ये सब निरंजन को बोल ही रहा था कि तभी वातावरण में वाहनों के आने का शोर गूॅजा। हरीश राणे ये महसूस करते ही बुरी तरह उछल पड़ा। उसने पलट कर देखा ही था कि निरंजन ने तेज़ी से एक मुक्का उसकी गर्दन के पास जड़ दिया। जिससे एक चीख़ के साथ राणे पलट कर नीचे गिर गया। उसके गिरते ही निरंजन उठा और सबसे पहले उसने राणे की पसली में बूट की ज़ोरदार ठोकर मारी। ठोकर लगते ही राणे दर्द से बिलबिला उठा।

इधर देखते ही देखते चारो तरफ से केशव जी ने तथा उनके आदमियों ने दोनो को घेर लिया। कुछ लोग दौड़ते हुए आए और हरीश राणे को पकड़ लिया। हरीश राणे समझ गया कि अब कुछ नहीं हो सकता। अतः उसने भी समझदारी का परिचय दिया और बिना कोई हील हुज्जत किये उनके द्वारा पकड़ कर ले जाने से चला गया। थोड़ी ही देर में वह केशव जी के आदमियों के बीच जीप में बैठा था। उसके दोनो हाॅथ पीछे की तरफ करके रस्सी से बाॅध दिये गए थे। उसका जो रिवाल्वर लड़ते वक्त निरंजन के हाॅथ से छूट कर गिर गया था उसे निरंजन ने फिर से उठा कर अपने पास रख लिया था। हरीश राणे को लिए वो काफिला वापस रेवती के लिए चल पड़ा था। केशव जी राणे को पकड़ कर बेहद खुश थे। उन्होंने निरंजन को इसके लिए शाबाशी दी तथा ये भी कहा कि उसने वास्तव में बहुत बड़ा काम किया है इस लिए उसे इसके लिए इनाम ज़रूर मिलेगा। निरंजन इनाम की बात से बेहद खुश हो गया था। इतना ही नहीं जासूस को पकड़वाने से उसका सिर गर्व से ऊॅचा हो गया था।
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उधर हास्पिटल में।
हम सब बुझे बुझे से बैठे थे। नीलम के लिए हर कोई चिंतित व परेशान था। हम में से किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि अजय सिंह ऐसा कुछ कर सकता है। वरना ऐसा होता ही नहीं। ख़ैर, लम्बे इन्तज़ार के बाद आख़िर ओटी का दरवाजा खुला और डाॅक्टर बाहर आया। हम सब उसे देख कर एक साथ एक ही झटके से उस लम्बी चेयर से उठ कर खड़े हो गए थे। फिर लगभग एक साथ ही डाॅक्टर की तरफ लपके थे।

"डाॅक्टर साहब।" मैने उतावलेपन से किन्तु बेहद ही अधीर भाव से पूछा___"सब कुछ ठीक तो है न? नीलम ठीक तो है न?"
"डोन्ट वरी यंग मैन।" डाॅक्टर ने कहा___"वो अब ख़तरे से बाहर हैं। शुकर था कि बुलेट उनकी राइट साइड की पीठ पर थोड़ा निचले हिस्से पर लगी थी। अगर लेफ्ट साइड थोड़ा ऊपर लगती तो यकीनन वो गोली उनके दिल को भेद सकती थी। हमने बुलेट निकाल दिया है। अब वो ठीक हैं। थोड़ी देर बाद उन्हें दूसरे कमरे में शिफ्ट कर दिया जाएगा तो आप सब उनसे मिल सकेंगे।"

"ओह थैंक्यू डाॅक्टर।" आदित्य बोल पड़ा___"थैंक्यू सो मच। आपने बहुत बड़े संकट से बचा लिया।"
"थैक्यू तो आप लोगों का भी करना चाहिए।" डाॅक्टर ने कहा___"जो आप वक्त रहते उन्हें यहाॅ लाने में कामयाब हो गए। वरना सचमुच कुछ भी हो सकता था। मुझे फोन पर एसीपी साहब ने इस बारे में बता दिया था और कहा भी था कि जैसे ही आप लोग यहाॅ आए वैसे ही हम उनका तुरंत इलाज़ शुरू कर दें।"

थोड़ी देर डाॅक्टर से और बातचीत हुई उसके बाद वो चला गया। हम सब अब खुश थे कि नीलम अब ठीक है। थोड़ी ही देर में एक नर्स आई उसने बताया कि हम नीलम से मिल सकते हैं। अतः उसके कहने के साथ ही हम सब लगभग दौड़ते हुए नर्स के पीछे पीछे गए और उस कमरे में दाखिल हो गए जिसमें नीलम को शिफ्ट किया गया था।

कमरे में पहुॅचते ही हमने देखा कि हास्पिटल वाले बेड पर नीलम करवॅट के बल लेटी हुई थी। उसका चेहरा दरवाजे की तरफ ही था किन्तु ऑखें बंद थी। हम लोगों के आने की आहट पाते ही उसने अपनी ऑखें खोल दी। जैसे ही उसने हमे देखा उसके चेहरे पर एक साथ कई तरह के भाव आए और फिर सहसा उसके होठों पर फीकी सी मुस्कान फैल गई।

रितू दीदी व सोनम दीदी एक साथ ही उसकी तरफ बढ़ीं और उसके पास खड़ी हो गई। रितू दीदी ने नम ऑखों से उसके माथे से होते हुए सिर पर हाॅथ फेरा और फिर झुक कर उसके माॅथे को चूम लिया। उनके मुख से कोई लफ्ज़ नहीं निकला। कदाचित कुछ कहने की हिम्मत ही न हुई थी उनमें। किन्तु इस क्रिया से ही उन्होंने जता दिया कि उसके ठीक होने पर उन्हें कितनी खुशी हुई है। सोनम दीदी भी नम ऑखों से नीलम को देख रही थी।

"भगवान का लाख लाख शुकर है नील।" सोनम दीदी उसे प्यार से नील कहा करती हैं, बोलीं____"उसने तुझे कुछ नहीं होने दिया वरना जब तुझे गोली लगी थी न तो जैसे हम सबके जिस्मों से प्राण ही निकल गए थे।"

"ये ज़िंदगी उसी गंदे इंसान की दी हुई थी दीदी।" नीलम ने करुण भाव से कहा___"जिसे उसने गोली मार कर अपनी तरफ से अब खत्म कर दिया है। अब ये मेरा दूसरा जन्म है जिसमें अब उसका कोई हक़ नहीं है। बल्कि आप लोगों का है।" कहने के साथ ही नीलम ने रितू दीदी की तरफ देखा फिर बोली___"मुझे आप पर नाज़ है दीदी कि आपने राज का साथ दिया और सच्चाई का साथ दिया। आज आपकी ही वजह से हम सब उस शैतान से बच कर यहाॅ आ गए हैं।"

"साथ तो हमेशा उसी का देना चाहिए नीलम।" रितू दीदी ने कहा___"जिसका साथ देने से हमारे ज़मीर तथा हमारी आत्मा को तक़लीफ न हो बल्कि उन्हें तृप्ति का एहसास हो। माॅ बाप हमेशा वंदनीय होते हैं और वो मेरे लिए भी हमेशा रहेंगे किन्तु वो माॅ बाप जिनकी अच्छी छवि में मन में है ना कि वो जो अपनी ही बहू बेटियों के बारे में ग़लत सोचते हैं। थोड़ा बहुत जो सम्मान बाॅकी था उनके लिए वो आज की इन घटनाओं से पूरी तरह खत्म हो चुका है। अब इस दिल में उनके लिए सिर्फ और सिर्फ नफ़रत व घृणा है। आज अगर तुझे कुछ हो जाता न तो क़सम ऊपर वाले की मैं उस इंसान का वो हाल करती कि दुबारा इस धरती पर पैदा होने से इंकार कर देता।"

"जाने दीजिए दीदी।" नीलम ने कहने के साथ ही मेरी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा कर बोली____"एक तरह से ये अच्छा ही हुआ। इसी बहाने सही मगर मुझे आज अपने इस भाई का अपने लिए इतना सारा प्यार व तड़प तो देखने को मिल गई। मैं महसूस कर रही थी उस वक्त जब मैं इसकी बाहों में असहाय सी पड़ी थी। मेरे कानों में इसकी हर बात सुनाई दे रही थी। मैं सोच रही थी कि एक मेरा वो भाई था जिसने कभी ये नहीं जताया कि वो अपनी बहनों से कितना प्यार करता है और एक ये भाई है जिसे हमने बचपन से जलील करके दुख दिया आज वो मुझे उस हालत में देख कर ऐसे तड़प रहा था जैसे गोली मुझे नहीं बल्कि इसको लगी थी। ये ख़याल बार बार मन में आता है कि इतना प्यार करने वाले भाई से हमने अब तक इतनी घृणा कैसे की थी?"

"ओये बंदरिया।" मैं एकदम से उसके पास आकर बोल पड़ा____"ये क्या बकवास किये जा रही है तू? तुझसे मैं कोई प्यार, व्यार नहीं करता समझी। उस वक्त तो मैं वो सब नाटक कर रहा था।"
"चल ठीक है भाई।" नीलम ने मुस्कुरा कर कहा___"मान लिया कि वो सब तेरा नाटक था मगर सच कहूॅ तो मुझे वो तेरा नाटक भी बहुत भाया राज। मैं चाहती हूॅ कि तू जीवन भर मेरे साथ ऐसा ही नाटक करता रहे।"

"अब तुम दोनो यहीं पर न शुरू हो जाना।" सहसा सोनम दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा___"जाओ जाकर पता करो डाॅक्टर से कि हम इसे यहाॅ से कब तक ले जा सकते हैं?"
"अरे इसकी क्या ज़रूरत है दीदी?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"मैं तो कहता हूॅ कि इसे यहीं पर पड़ी रहने देना चाहिए और हम लोगों को अब घर चलना चाहिए।"

"तू न अब मुझसे पिटेगा सच में।" सोनम दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"अब जा जल्दी यहाॅ से।"
"जो हुकुम आपका।" मैने अदब से सिर झुका कर कहा और फिर कमरे से बाहर चला आया। मेरे पीछे पीछे आदित्य भी मुस्कुराता हुआ चला आया।

"मेरे भाई को इस तरह भगा कर आपने अच्छा नहीं किया दीदी।" सहसा नीलम ने कहा___"जब वो मुझे इस तरह चिढ़ाता है तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगता है। मैं भी उसके जैसा ही बर्ताव करने लगती हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि जिन चीज़ों के लिए वो बचपन से तरसा था वो उन सभी चीज़ों को आज जी भर के जिए। हमारी वजह से अब तक जितना उसका दिल दुखा है अब वो हमारे साथ ऐसी ही नोंक झोंक करके अपने उस दिल को खुश रखे।"

"मुझे पता है नील।" सोनम दीदी ने कहा___"मुझे भी अच्छा लगता है जब वो तुझे इस तरह बंदरिया कह कर चिढ़ाने लगता है। किन्तु मैं उसे ये सब कह कर इस लिए रोंक देती हूॅ कि मुझे भी बड़े होने का इस तरह से फायदा उठाने में मज़ा आता है। मैं ये देख कर खुश हो जाती हूॅ कि कैसे वो अपने से बड़ों की बात सहजता से मान जाता है। अब रितू से ही पूछ ले, ये तो उसके साथ ही रहती है। संभव है कि ये भी मेरी तरह अपने बड़े होने का फायदा उठाती हो। क्यों रितू सच कहा न मैने?"

"सबकी सोच अलग अलग होती है सोनम।" रितू दीदी ने कहा___"तुम दोनो को ऐसा करके खुशी मिलती है जबकि मेरा कुछ और ही हिसाब है। तुम तो जानती ही हो कि मेरा स्वभाव कैसा है?"

"हाॅ जानती हूॅ।" सोनम दीदी ने कहा___"कि तेरा स्वभाव हिटलर वाला है। मगर कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।"

सोनम दीदी की इस बात पर रितू दीदी मुस्कुराई और कुछ पल के लिए कहीं खो सी गईं फिर जैसे उन्होंने तुरंत ही खुद को सम्हाला और ये कह कर बाहर की तरफ चली गईं कि उसे कुछ ज़रूरी फोन काल करना है। रितू दीदी के जाने के बाद सोनम दीदी ने वापस नीलम की तरफ देखा।

"तो आपको भी राज के साथ ऐसा करने में मज़ा आता है?" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा।
"अरे नहीं रे।" सोनम दीदी ने अजीब भाव से कहा___"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो ऐसे ही कह रही थी। ख़ैर छोंड़, अब तू ठीक है न? तुझे पीठ पर पेन तो नहीं हो रहा न अभी?"

"नहीं दीदी।" नीलम ने कहा___"अब अच्छा लग रहा है। बस सीधा लेटने में प्राब्लेम हो रही है।"
"वो तो होगी ही।" सोनम दीदी ने कहा__"अभी नया नया ज़ख्म है। इस लिए तुझे सीधा लेटने में कुछ दिन प्राब्लेम होगी। तुझे भी इस बात का ख़याल रखना होगा और हाॅ राज के साथ ज्यादा उछल कूद मत करने लगना। वरना तेरा ये ज़ख्म फिर से ताज़ा हो जाएगा।"

"ऐसा तो तभी संभव है दीदी।" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा___"जब वो मेरे सामने ही न आए। क्योंकि जैसे ही वो मेरे सामने आएगा। मैं फिर उसे छेंड़ूॅगी और फिर क्या होगा ये तो आप जानती ही हैं।"

"तू नहीं सुधरने वाली।" सोनम दीदी ने हैरानी से देखते हुए कहा___"अरे पागल कुछ दिन तो सबर कर ले।"
"हाय दीदी! कुछ दिन राज से झगड़ा किये बिना कैसे रह पाऊॅगी मैं?" नीलम ने आह सी भरते हुए कहा___"पता नहीं क्यों पर उससे झगड़ा करने का हर पल दिल करता है मेरा। मैं अकेले में सोचा करती हूॅ कि हर वक्त राज को छेंड़ना क्या अच्छी बात है? मगर ये सब सोचने के बावजूद ऐसा हो जाता है। आप ही बताइये मैं क्या करूॅ दीदी?"

सोनम दीदी नीलम की बात सुन कर बस मुस्कुरा कर रह गई। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव आए और चले गए। जबकि उसकी मनोदशा से अंजान नीलम ने इस बार ज़रा गंभीरता से कहा___"एक बात कहूॅ दीदी??"

"हम्म कहो।" सोनम दीदी ने धीरे से कहा।
"काश! राज मेरा भाई न होता।" नीलम ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा।
"ये...ये क्या कह रही हो तुम??" सोनम दीदी उसकी इस बात पर बुरी तरह चौंकी। ऑखों में हैरत के चिन्ह लिए वो बोलीं___"इसके पहले तो कह रही थी कि राज जैसा भाई पा कर तू बहुत खुश है। फिर अब ऐसा क्यों कह रही है?"

"हर लड़की सोचती है कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले जो उससे बहुत ही ज्यादा प्यार करे।" नीलम ने कहीं खोये हुए से कहा___"उसकी केयर करे तथा उसे एक पल के लिए भी खुद से दूर न करे। उसे कभी किसी बात पर दुखी न होने दे। ये सारी खूबियाॅ राज में हैं दीदी। मुझे पता है कि वो अपनी बहनों पर अपनी जान छिड़कता है। मगर उसे देख कर ये ख़याल भी मन में आता है कि काश राज के जैसा ही हमें जीवन साथी मिले। मगर आज के समय में ये संभव नहीं है और अगर मान भी लें कि ऐसे इंसान इस दुनियाॅ में मिल भी सकते हैं तो क्या उनमें से कोई हमारा जीवन साथी बनेगा?"

"तो तू कहना क्या चाहती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सशंक भाव उभरे।
"आपको मेरी बातें यकीनन बुरी अथवा ग़लत लगेंगी दीदी।" नीलम ने उसी गंभीरता से कहा___"मगर ये सच है कि मेरे मन में कभी कभी ये ख़याल आता है कि काश राज मेरा भाई न होता तो मैं उसे ही अपना जीवन साथी बना लेती। राज को देखते ही उस पर निसार हो जाने का दिल करता है दीदी। उसे देख कर मैं भूल जाती हूॅ कि वो मेरा भाई है, और फिर जब ख़याल आता है कि वो मेरा भाई है तो जाने क्यों इस बात से दिल में दर्द होने लगता है? अंदर से एक टीस उभरती है और फिर समूचा जिस्म काॅप कर रह जाता है।"

"तू न कुछ भी बोलती रहती है।" सोनम दीदी ने बुरा सा मुह बनाया। ये अलग बात है कि नीलम की इन बातों से उसके अंदर एक अजीब से एहसास की झुरझरी सी दौड़ गई थी, बोली___"चल अब ज्यादा इस बारे में मत सोच। राज आता ही होगा अभी। तुझे यहाॅ से लेकर भी तो चलना है न।"

"आप मेरी बातों को नज़रअंदाज़ कर रही हैं न?" नीलम ने सोनम दीदी के चेहरे को ग़ौर से देखते हुए कहा___"ऐसा मत कीजिए न दीदी। एक आप ही हैं जिनसे मैं अपने दिल की हर बात कर सकती हूॅ। इस लिए मेरी बात सुन लीजिए और उस पर अपनी राय भी दीजिए कि मैं जो कुछ कह रही हूॅ वो सही है या ग़लत?"

"क्या राय दूॅ मैं?" सोनम दीदी ने नीलम की ऑखों में झाॅकते हुए कहा___"तूने तो सब कुछ कह कर ये ज़ाहिर कर ही दिया है कि तेरे मन में राज के प्रति अब क्या है? अब अगर मैं इस पर ये कहूॅ कि ये सब सोचना भी ग़लत है तो क्या फर्क़ पड़ता है उससे? इतना तो मैं समझ ही सकती हूॅ कि अगर राज के प्रति तेरे मन में ऐसे ख़याल आ चुके हैं तो इसका साफ मतलब है कि कहीं न कहीं तेरे दिल में राज के प्रति भाई वाली फीलिंग के अलावा भी एक अलग फीलिंग्स आ चुकी है। अतः ऐसी फीलिंग्स जब एक बार किसी के दिल में आ जाती हैं तो फिर उसकी सोच भी बदल जाती है। वो उसे ही सही मानता है फिर चाहे भले ही वो सबसे ज्यादा अनैतिक अथवा ग़लत हो।"

"मुझे पता है दीदी।" नीलम की ऑखें एकाएक ही सजल हो उठीं, बोली___"राज के प्रति ऐसी फीलिंग्स रखना ग़लत बात है। मगर ये भी सच है कि अब ये फीलिंग्स मेरे दिल से आसानी से जाएगी नहीं। इस लिए मैने अब एक फैंसला किया है।"

"फ..फैंसला???" सोनम दीदी चौंकी___"कैसा फैंसला?"
"यही कि मैं राज के क़रीब नहीं रहूॅगी।" नीलम ने दृढ़ता से कहा___"बल्कि उससे दूर चली जाऊॅगी। इस लड़ाई के बाद ये सच है कि मेरे माॅ बाप व भाई या तो ज़िन्दगी भर जेल की सलाखों के पीछे कैद हो कर रह जाएॅगे या फिर ऐसे भी हालात बन सकते हैं कि वो सब जान से मारे जाएॅ। तब तो हम दोनो बहनें अनाथ ही हो जाएॅगी। हलाॅकि इसके बाद भी मेरे अपनों में गौरी चाची, अभय चाचा और करुणा चाची आदि सब भी होंगे मगर इनके पास रहने से अक्सर मेरा सामना राज से होता ही रहेगा। उस सूरत में मेरे मन में ना चाहते हुए भी उसके प्रति आकर्शण बढ़ेगा जिसे शायद मैं रोंक भी नहीं पाऊॅगी। इस लिए बेहतर है कि इस सबके बाद मैं आपके साथ मुम्बई में मौसी के पास ही रहूॅ। राज से दूर रहने से कम से कम ये तो होगा कि धीरे धीरे मैं अपने दिल से उसे निकाल पाने में सफल हो सकती हूॅ।"

"इसका मतलब।" सोनम दीदी ने कहा___"ये सच है कि तू अपने ही भाई राज को अब एक प्रेमी की दृष्टि से देखने लगी है और उसके प्रति तेरे अंदर चाहत की भावना प्रतिपल बढ़ती ही जा रही है?"

"शायद यही सच है दीदी।" नीलम ने सहसा आहत भाव से कहा___"राज ने मेरी इज्ज़त की रक्षा जिस तरह से की थी उसके बाद से ही मुझे ये महसूस हुआ था कि राज के बारे में अब तक जो कुछ मैं अपने माॅम डैड के द्वारा पढ़ाए गए पाठ के तहत सोचती थी वो सब सिरे से ही ग़लत था। मेरे अंदर इस बात के एहसास होने के साथ ही राज के प्रति कोमल भावनाओं का उदय हुआ था। उसके बाद मुझे नहीं पता कि मैं उसके बारे में सोचते सोचते कब उसे चाहने लगी? जब उसने अचानक ही काॅलेज आना बंद कर दिया था तब मैं यही सोच कर रोती थी कि वो आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करने लगा है कि अब उसने मेरी वजह से काॅलेज आना भी बंद कर दिया। ये सब सोच सोच कर मुझे अपने आप से घृणा होने लगी थी कि मैने अपने उस भाई का बचपन से दिल दुखाया जिसका कभी कोई दोष था ही नहीं। बल्कि उसके दिल में तो हम दोनों बहनों के लिए वैसा ही प्यार व सम्मान था जैसा उसके दिल में गुड़िया(निधी) के लिए है। उसके बाद जब वो दुबारा मेरी इज्ज़त की रक्षा करते हुए मुझे ट्रेन पर मिला तो एक बार फिर से मेरा अंतर्मन ये सोच कर ज़ार ज़ार रो पड़ा कि उसने एक बार फिर से मेरी इज्ज़त की रक्षा की। यानी उसके दिल में आज भी हम दोनो बहनों के लिए वही प्यार व सम्मान है और चाहता है कि हम दोनों को कभी कोई ऑच तक न आए। बस उसके बाद तो जैसे सब कुछ बदल गया दीदी। जब मैने ये महसूस किया कि वो मुझसे झगड़ा करते हुए फिर से अपने बचपन को जीना चाहता है तो मैंने भी उसकी चाहत में उसका पूरा साथ दिया। मुझे भी उसे खुश देखने में अच्छा लगने लगा। इन्हीं सब बातों के बीच ही शायद ऐसा हुआ है कि मेरे दिल में उसकी अच्छाई और खूबियों को देख कर ऐसी चाहत जागी है। आज जब उसने मुझे अपनी बाहों में समेटे तथा मुझे उस हालत में देख कर पागल हुआ जा रहा था तो मैं उस हालत में भी ये सोच रही थी कि ये इतना अच्छा कैसे हो सकता है? इससे कोई नफ़रत कैसे कर सकता है? बस उसके बाद मैंने पहली बार अपने दिल की आवाज़ को सुना और फिर उसकी हो गई। मुझे पता है कि ये ग़लत है। अगर राज को मेरे दिल की बात पता चल गई तो संभव है कि वो मुझे ग़लत समझ बैठे। वो सोचेगा कि जैसे माॅ बाप थे वैसी ही उसकी औलाद भी है। जो अपने ही सगे रिश्तों के प्रति ऐसी सोच रखती है।"

"अगर यही सब बात है।" सोनम दीदी ने कहा___"और अगर ये भी कि तुम उसकी हो गई हो तो फिर ये अचानक उससे दूर हो जाने का फैंसला क्यों किया तुमने? क्या सिर्फ इस लिए कि राज तुझे ग़लत समझेगा?"

"ये वजह तो है ही दीदी।" नीलम ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा___"किन्तु एक दूसरी महत्वपूर्ण वजह और भी है।"
"दूसरी ऐसी कौन सी वजह हो सकती है?" सोनम दीदी के चेहरे पर सोचों के भाव नुमायां हुए।

"आपने शायद ग़ौर नहीं किया दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"किन्तु मैने बहुत अच्छे से ग़ौर किया है।"
"क्या मतलब??" सोनम दीदी चकरा सी गईं।
"आप और मैं।" नीलम ने कहा___"जिस रितू दीदी को हिटलर समझते हैं, उन्हीं हिटलर दीदी की ऑखों में आज मुझे उस वक्त थोड़ी देर के लिए कुछ खास नज़र आया जब आपने उनसे कहा था कि____'कभी खुद को बदल कर भी देख। संभव है कि कुछ नया नज़र आये।' उस वक्त उनकी ऑखों में पल भर के लिए एक टीस सी नज़र आई थी फिर उन्होंने जल्दी ही खुद को सम्हाल लिया था। कहते हैं कि चोंट के दर्द का एहसास वही कर सकता है जिसे कभी वैसी ह चोंट लगी हो। उस वक्त उनकी ऑखों में जो भाव थे उन भावों ने मुझे बता दिया कि वो दरअसल क्या है?"

"ये तू क्या अनाप शनाप बके जा रही है नील?" सोनम दीदी ने हैरत से कहा___"कहीं तू ये तो नहीं कहना चाहती है कि रितू भी राज से प्यार करती है? ओह माई गाड, ऐसा कैसे हो सकता है? नहीं नहीं...रितू ऐसा नहीं कर सकती नील। वो एक सुलझी हुई तथा समझदार लड़की है। उसे पता है कि ऐसा सोचना भी पाप होता है।"

"प्यार तो हर मायने में पवित्र ही होता है दीदी।" नीलम ने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"फिर चाहे वो किसी से भी हो गया हो। दूसरी बात, जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है न तब सबसे पहले उस इंसान का विवेक शून्य हो जाता है। प्यार में पड़ा हुआ इंसान उसी को सही मानता है जिसे आम इंसान अनैतिक व पाप की संज्ञा देता है। मैने रितू दीदी की ऑखों में उस पवित्र प्यार को देखा है दीदी। मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे संभव हो सकता है? मगर ऑखें कभी ग़लत नहीं होती हैं। ख़ैर मुझे इससे कोई प्राब्लेम नहीं है बल्कि मैं खुश हूॅ कि मेरी जो दीदी लड़कों की ज़ात से नफ़रत करती थी तथा प्यार व्यार को बकवास कहती थीं आज वो खुद राज की चाहत में गिरफ्तार हैं। यकीनन उनकी सोच बदल गई होगी और अब उनके सीने में एक ऐसा दिल धड़कता होगा जो बहुत ही नाज़ुक हो चुका होगा तथा जिसमें किसी के लिए बेपनाह प्यार का सागर हिलोरें लेता होगा। अब जबकि मुझे इस बात का एहसास हो ही चुका है तो क्यों मैं उनकी राह का रोड़ा बनूॅ दीदी? मेरी दीदी के दिल में जीवन में पहली बार किसी के लिए ऐसी भावनाओं का उदय हुआ है। मैने देखा है कि वो सबसे हट कर रहती थी। उनका स्वभाव बहुत शख्त होता था। प्यार की भाषा से बात करना जैसे उन्हें आता ही नहीं था। मैं और शिवा उनसे बहुत डरते थे। यहाॅ तक कि डैड भी उनसे ज्यादा हॅसी मज़ाक नहीं करते थे। अतः अपनी उस दीदी को खूबसूरत प्यार के एहसास के साथ इस खूबसूरती से बदलता देख कर मैं कैसे उनकी खुशियाॅ छीनने का काम कर दूॅगी? नहीं दीदी, मैं अपनी दीदी की उम्मीदों को चकनाचूर नहीं कर सकती। उनकी पाक़ भावनाओं को नहीं कुचल सकती मैं। वरना वो यकीनन इस सबसे टूट कर बिखर जाएॅगी। इस लिए मैने फैंसला कर लिया है कि मैं इस सबके बाद वापस आपके साथ मुम्बई चली जाऊॅगी।"

"तू इतनी गहरी बातें कर सकती है यकीन नहीं होता नील।" सोनम दीदी की आवाज़ भर्रा गई___"तेरा इतना बड़ा दिल होगा मैने सोचा भी नहीं था। अपनी दीदी के लिए इतना बड़ा त्याग करना कोई मामूली बात नहीं है। इसके पहले मैं तेरी बातों से सचमुच तुझे ग़लत समझ बैठी थी किन्तु आख़िर की तेरी इस बात ने मुझे ये एहसास करा दिया कि ये प्यार भले ही अपने भाई से हो गया हो मगर इसमें कोई गंदगी तथा कोई पाप नहीं है।"

अभी सोनम दीदी ने ये कहा ही था कि तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर मैं आदित्य के साथ अंदर आ गया। आते ही मैने अपने अंदाज़ में सबसे पहले नीलम को छेंड़ा जिस पर वह बस मुस्कुरा कर रह गई। उसके बाद मैंने उसे कहा कि डाॅक्टर ने कहा है कि हम तुम्हें ले जा सकते हैं। अतः अब चलो यहाॅ से। ख़ैर थोड़ी ही देर में मैं नीलम को लिए हास्पिटल से बाहर आया और कार की पिछली सीट पर उसे वैसे ही लेकर बैठ गया जैसे आते समय लेकर बैठा था। सोनम दीदी भी मेरे दूसरी साइड बैठ गईं। आदित्य कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा ही था कि रितू दीदी भी आ गईं। रितू दीदी के बैठते ही आदित्य ने कार को आगे बढ़ा दिया।

लगभग पंद्रह मिनट में ही हम रेवती में शेखर के घर के सामने पहुॅच गए। हम सब कार से बाहर आये। नीलम ने कहा कि वो अब ठीक है और खुद अपने पैरों पर चल सकती है। अतः मैने उसे सहारा देकर कार से बाहर ले आया। उसके बाद हम सब घर के अंदर आ गए। अंदर ड्राइंगरूम में नैना बुआ तथा बिंदिया काकी थी। नैना बुआ ने जैसे ही हम सबको देखा वो भाग कर आईं और नीलम को अपने गले से लगाया ही था कि नीलम के मुख से कराह निकल गई। दरअसल नैना बुआ ने नीलम की पीठ के उस हिस्से पर अपनी बाॅह का कसाव कर दिया था गलती से, जहाॅ पर उसे गोली लगी थी।

नीलम की कराह सुन कर नैना बुआ जल्दी से नीलम से अलग हुईं और फिर उससे माफ़ी माॅगने लगीं। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू थे। कदाचित केशव जी यहाॅ आए थे और उन्होंने बुआ को सब कुछ बता दिया था। यही वजह थी कि नैना बुआ नीलम को देख कर भागते हुए आईं थी। ख़ैर, उसके बाद मैं सोनम के साथ नीलम को सहारा देते हुए उसे उसके रूम में ले आया और बेड पर करवॅट के बल आहिस्ता से लेटा दिया। मेरे पीछे पीछे ही बाॅकी सब आ गए थे। बिंदिया काकी की भी ऑखों में ऑसू थे। रितू दीदी थोड़ी पीछे खड़ी हुई थीं, उनकी ऑखें हल्का सुर्ख नज़र आ रही थीं। ऐसा लगता था जैसे वो रोई हों। मैं उन्हें देख कर चौंका और ऑखों के इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ आपको? जवाब में उन्होंने सिर हिला कर बताया कि कुछ नहीं बस ऐसे ही।

इधर नैना बुआ नीलम के पास ही बेड पर बैठ गईं थी और उससे थोड़ी बहुत बातें कर रही थी। साथ ही अपने भाई को बुरा भला भी कहे जा रही थी। मैं कुछ देर तक रूम में रहा और फिर आदित्य के साथ ही बाहर आ गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उधर मंत्री दिवाकर चौधरी के आवास पर।
अजय सिंह इस वक्त उसके पास ही सामने वाले सोफे पर बैठा था। अभी कुछ ही देर पहले चौधरी उसे अपने सोर्स से तथा अपने वकील को लेकर ज़मानत पर छुड़ा कर लाया था। गुनगुन में नया नया आया एसीपी उसे काफी शख्त मिजाज़ लगा था। किन्तु चौधरी का तो ये इलाका ही था अतः वो खुद भी किसी से डरने वाला नहीं था। कहने का मतलब ये कि बड़ी आसानी से वो अजय सिंह को छुड़ा लाया था। इस वक्त अजय सिंह अपना मुह लटकाए बैठा हुआ था। ड्राइंग रूम में इस वक्त वो दोनो ही थे।

"इतनी शातिर दिमाग़ वाली बीवी के रहते हुए भी तुम इतनी बुरी तरह से मात खा गए ठाकुर।" सहसा चौधरी ने अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा___"हैरत की बात है। अच्छा होता कि तुम हमें इस मामले में पहले से बताए होते तो हम इसमें ज़रूर तुम्हारी मदद करते। हमारे दखल पर यहाॅ की पुलिस में इतनी हिम्मत ही नहीं होती कि वहाॅ जा कर तुम सबको गिरफ्तार कर लेती। हम बड़ी आसानी से तुम्हारे उस भतीजे को और तुम्हारी दोनो बेटियों को पकड़ लेते। उसके बाद तो उनका खेल खत्म ही हो जाना था।"

"डबल बैकअप का प्लान भी अपनी जगह कमज़ोर नहीं था चौधरी साहब।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा___"हमने उन सबको लगभग पकड़ ही लिया था। मगर हमारी उम्मीद से परे वहाॅ भारी संख्या में पुलिस फोर्स आ गई और सबकुछ हमारे हाथ से निकल गया।"

"इसमें यकीनन तुम्हारी ग़लती है ठाकुर।" चौधरी ने पुरज़ोर लहजे में कहा___"तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को इस बात पर भी ग़ौर करना चाहिए था कि तुम्हारी बेटी, तुम्हारी बेटी होने के साथ साथ एक पुलिस वाली भी है जो ऐसे हालात पर अपने डिपार्टमेंट से पुलिस फोर्स को भी बुलवा सकती है। उस सूरत में तुम्हें हमसे संपर्क करना चाहिए था। हम इस समस्या का तुरंत समाधान करते। हम मंत्रियों के पास ऐसे हालात में पुलिस फोर्स को मनचाही जगह पर ले जाने का बहुत आसान तरीका आता है। कहने का मतलब ये कि हम आनन फानन में किसी जगह का दौरा करते जहाॅ पर भारी मात्रा में हम पुलिस को अपने पास बुला लेते। पुलिस डिपार्टमेंट को इतना जल्दी इतनी पुलिस फोर्स वहाॅ पर भेजने के लिए सोचना पड़ जाता।"

"मैं मानता हूॅ चौधरी साहब।" अजय सिंह ने नज़रें चुराते हुए कहा___"कि मैने आपको इस बारे में न बता कर भारी ग़लती की है। वरना आज ऐसा नहीं होता। मगर इसमें भी मेरी आपके लिए एक पाक़ भावना ही थी। मैं चाहता था कि ये सब होने के बाद मैं आपके सामने आपके उन दुश्मनों को लाकर आपको सर्प्राइज दूॅगा और यही मेरी दोस्ती व वफ़ादारी का प्रमाण भी होता। मगर अफसोस ऐसा नहीं कर पाया मैं। इसके लिए आप मुझे माफ़ कर दीजिए मंत्री जी। आपने मुझे अपना समझ कर जेल से भी छुड़ा लिया। इसके लिए मैं जीवन भर आपका आभारी और ऋणी रहूॅगा।"

"कोई बात नहीं ठाकुर।" चौधरी ने कहा___"जीवन में हार जीत का खेल तो चलता ही रहता है। इस लिए इसमें ज्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है। इस सबके बाद भी हम उन लोगों को बहुत जल्द पकड़ लेंगे। क्योंकि हमने इस सबके लिए एक जासूस को लगाया हुआ है। आज उसी ने बताया था कि माधोपुर में क्या हो रहा था? उस समय के हालात के अनुसार हमें लगा कि तुम यकीनन उनको पकड़ लोगे और फिर उन्हें हमारे सामने ले आओगे। इसी लिए हमने भी कोई ऐक्शन नहीं लिया। बाद में उस जासूस ने बताया कि वहाॅ पर भारी मात्रा में पुलिस फोर्स आई और तुम सबको पकड़ कर ले भी गई तो हमने सोचा चलो कोई बात नहीं तुम्हें तो हम जेल से छुड़ा ही लेंगे। किन्तु हमने जासूस को ये भी कहा कि ठाकुर की बेटी को गोली लगी है तो वो लोग उसका इलाज कराने हास्पिटल ज़रूर जाएॅगे। उसके बाद वो उस जगह जाएॅगे जहाॅ पर उन लोगों ने अपना ठिकाना बनाया हुआ है। बस उसके ठिकाने का पता चलते ही हम उसे उसके ही ठिकाने पर घेर लेंगे। हम चाहते तो उन लोगों को हास्पिटल में भी घेर सकते थे किन्तु हमने ऐसा नहीं किया। क्योंकि हमें सबसे पहले अपने बच्चों को तलाशना था और ये तभी हो सकता था जब वो लोग हास्पिटल के बाद अपने ठिकाने पर जाते। हमने उस जासूस को इसी का पता लगाने के लिए लगा रखा है। वो हमें बहुत जल्द सूचित करेगा कि उन लोगों का ठिकाना कहाॅ है। उसके बाद हम अपने आदमी लेकर जाएॅगे और उसके ठिकाने पर धावा बोल देंगे।"

"ये तो बहुत ही अच्छा किया है आपने।" अजय सिंह के चेहरे पर एकाएक ही रौनक आ गई___"इसका मतलब ये हुआ कि हम पूरी तरह से हारे नहीं हैं। बल्कि बाज़ी अभी भी हमारे हाॅथ में हैं।"

"बिलकुल।" चौधरी ने मुस्कुरा कर कहा___"बस जासूस के फोन आने की देर है। जैसे ही उसका फोन आया और उसने हमें बताया वैसे ही हम यहाॅ से चल पड़ेंगे।"
"वाह चौधरी साहब।" अजय सिंह के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई___"मानना पड़ेगा आपको। आपने भी ऐसा कारनामा कर रखा है जिसके बारे में वो लोग सोच भी नहीं सकते हैं।"

अजय सिंह की बात पर चौधरी बस मुस्कुरा कर रह गया। कुछ देर उन दोनो के बीच और भी कुछ बातें हुईं उसके बाद अजय सिंह चौधरी से इजाज़त लेकर उसके आवास से अपने गाॅव हल्दीपुर के लिए निकल लिया। चौधरी ने उसे जाने के लिए अपनी एक जीप दे दी थी।
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दोस्तो, आप सबके सामने अपडेट हाज़िर है। आशा करता हूॅ कि आप सबको पसंद आएगा।

आप सबकी प्रतिक्रिया और आपके रिव्यू का इन्तज़ार रहेगा।
Great job bro. Superbb fantastic and mind blowing update. Hamesha ki tarah speechless bro.:applause::applause:

Maine pahle bhi kaha tha ki kuch kahne ke liye mujhe kuch samajh hi nahi aata. Sab kuch to lajawaab hai bro. :biggboss:

Pratima ka reaction bilkul bhi achha nahi laga. Maa ka dil to mom ka hi hota hai jo apne bachche ki takleef par ro padta hai magar is maa ko to koi fark hi nahi pada bro. Neelam ko uske pati ne goli maari ye baat sun kar bhi is maa ko takleef nahi huyi. Aur ye shiva jo abhi kuch time pahle aisa laga ki sudhar jayega isne bhi saabit kar diya ki kutte ki poonchh kabhi seedhi nahi ho sakti.:biggboss:

Neelam bach gayi. Magar sonam se huyi baatcheet me jo kuch usne kaha uska andaja to pahle se hi tha bro. Haan ye new baat hai ki usko mahsoos ho gaya ki uski badi bahan bhi viraj se pyar karti hai aur is liye isne apni bahan ke liye apne pyar ka tyaag karne ka faisla kar liya. Pariwaar ki sabhi bahne viraj ke prem me baawri ho gayi hain ek divya ko chhod kar. Uska to kahi abhi role hi nahi aaya warna uska bhi wahi haal ho sakta tha. Dekhte hain in mohabbat ke maaro ka kya anjaam hota hai.:biggboss:

Ohoo to minister ka jasus pakda gaya. Is niranjan ne to kamaal kar diya bro. Fighting seen jabardast dikhaya aapne. Udhar minister ne ajay singh ko bhi asaani se chhuda liya aur ab khush bhi ho raha hai ki uska jasus use phone karke viraj logo ke thikane ka pata batayega. Is saale ko koi bataao ki bahut jald iski gaand marne wali hai.:biggboss:

Ab dekhna ye hoga ki viraj and ritu aage ka kya program banate hain. But mere khayaal se yaha par minister ko tagda jhatka dena chahiye ya fir iska the end kar dena chahiye. :biggboss:

Let's see whats happens.:biggboss:
Waiting for the next update bro.:biggboss:

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VIKRANT

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जीतू भाई, आप सबने मुझे खुद उलझा कर रख दिया है। मुझे समझ नहीं आता कि मैं किसकी बात मानूॅ????? मैं किसी को नाराज़ या निराश नहीं करना चाहता, किन्तु ये भी सच है कि ऐसा हो भी नहीं सकता है। यानी मैं चाह कर भी सबकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाऊॅगा। ये कैसी बेबसी है भाई, ये कैसी मुश्किल है?????

यहाॅ पर मैं उन सभी दोस्तों से माफ़ी चाहता हूॅ जिन्हें मैं रिप्लाई नहीं दे पाया, क्योंकि सबको रिप्लाई दे कर पेज बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है। अतः मैं यहीं पर आप सबको आपकी बातों का जवाब देना चाहूॅगा।

आप सबने यकीनन बहुत ही बेहतर चुनाव किया तथा उस चुनाव में उसकी वजह भी बेहतरीन बताई। आप सबके विचारों को पढ़ कर यकीन मानिए फिलहाल मैं खुद ही बुरी तरह उलझ गया हूॅ। जैसा कि मैं ऊपर बता चुका हूॅ कि मैं आप में से किसी की भी उम्मीदों को तोड़ना नहीं चाहता हूॅ मगर ये आप भी जानते हैं ऐसा नहीं हो सकता। अतः इन्तज़ार कीजिए समय का। मैं आप सबके विचारों पर मंथन करके अंत में ज़रूर इस बारे में कोई निर्णय आपके सामने हाज़िर करूॅगा।

!! धन्यवाद !!
Ye to hona hi tha bro. But main ye soch raha hu ki itna suljha huwa writer bhi ulajh gaya. Ab ye dekhna dilchashp hoga bro ki is matter par aap kya karte ho.:biggboss::biggboss::biggboss:

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TheBlackBlood

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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब??? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

दोस्तो, मुझे पता है कि आप सब अगले अपडेट का बड़ी शिद्दत से इन्तज़ार कर रहे हैं, और ये भी समझ सकता हूॅ कि अपडेट आने की देरी से आप सबके मन में कहीं न कहीं निराशा व नाराज़गी के भाव भी पैदा हो रहे होंगे। आप सब अपनी जगह यकीनन सही हैं, किन्तु मेरे पास भी समय की मजबूरी है। मैं चाहता तो बहुत हूॅ कि फटाफट अपडेट्स देकर कहानी को जल्दी से समाप्त कर दूॅ मगर मेरे लाख चाहने से भी ऐसा नहीं हो पाता।

ख़ैर, अपडेट लिख रहा हूॅ दोस्तो और ये भी सच है कि समय न मिलने की वजह से अपडेट का अभी थोड़ा सा ही हिस्सा लिख पाया हूॅ। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूॅ कि जल्दी से मेगा अपडेट लिख कर आप सबके सामने हाज़िर कर दूॅ। इस बार का अपडेट पिछले हर अपडेट से जुदा होगा ये आप सब भी समझते होंगे।

आप अपना साथ एवं सहयोग ऐसे ही बनाए रखिए। कल तक मेगा अपडेट आप सबके सामने हाज़िर हो जाएगा।

!! धन्यवाद !!
 
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हैलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब??? आशा करता हूॅ कि आप सब बहुत अच्छे से ही होंगे।

दोस्तो, मुझे पता है कि आप सब अगले अपडेट का बड़ी शिद्दत से इन्तज़ार कर रहे हैं, और ये भी समझ सकता हूॅ कि अपडेट आने की देरी से आप सबके मन में कहीं न कहीं निराशा व नाराज़गी के भाव भी पैदा हो रहे होंगे। आप सब अपनी जगह यकीनन सही हैं, किन्तु मेरे पास भी समय की मजबूरी है। मैं चाहता तो बहुत हूॅ कि फटाफट अपडेट्स देकर कहानी को जल्दी से समाप्त कर दूॅ मगर मेरे लाख चाहने से भी ऐसा नहीं हो पाता।

ख़ैर, अपडेट लिख रहा हूॅ दोस्तो और ये भी सच है कि समय न मिलने की वजह से अपडेट का अभी थोड़ा सा ही हिस्सा लिख पाया हूॅ। मैं पूरी कोशिश कर रहा हूॅ कि जल्दी से मेगा अपडेट लिख कर आप सबके सामने हाज़िर कर दूॅ। इस बार का अपडेट पिछले हर अपडेट से जुदा होगा ये आप सब भी समझते होंगे।

आप अपना साथ एवं सहयोग ऐसे ही बनाए रखिए। कल तक मेगा अपडेट आप सबके सामने हाज़िर हो जाएगा।

!! धन्यवाद !!
Ok bhai
 
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