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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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♡ एक नया संसार ♡

20181222-201837.jpg



♡ एक नया संसार ♡


अपडेट.......{01}

मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। मुम्बई में रहता हूॅ और यहीं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करता हूॅ। कम्पनी में मेरे काम से मेरे आला अधिकारी ही नहीं बल्कि मेरे साथ काम करने वाले भी खुश रहते हैं। सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने की आदत बड़ी मुश्किल से डाली है मैंने। कोई आज तक ताड़ नहीं पाया कि मेरे हॅसते मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे मैंने ग़मों के कैसे कैसे अज़ाब पाल रखे हैं।

अरे मैं कोई शायर नहीं हूं बस कभी कभी दिल पगला सा जाता है तभी शेरो शायरी निकल जाती है बेतुकी और बेमतलब सी। मेरे खानदान में कभी कोई ग़ालिब पैदा नहीं हुआ। मगर मैं..????न न न न

अच्छा ये ग़ज़ल मैंने ख़ुद लिखी है ज़रा ग़ौर फ़रमाइए.....

ज़िन्दगी भी क्या क्या गुल खिलाती है।
कितने ग़म लिए हाॅथ में मुझे बुलाती है।।

कोई हसरत कोई चाहत कोई आरज़ू नहीं,
मेरी नींद हर शब क्यों ख़्वाब सजाती है।।

ख़ुदा जाने किससे जुदा हो गया हूॅ यारो,
किसकी याद है जो मुझे आॅसू दे जाती है।।

मैंने तो हर सू फक़त अपने क़ातिल देखे,
किसकी मोहब्बत मुझे पास बुलाती है।।

हर रोज़ ये बात पूॅछता हूं मौसमे ख़िज़ा से,
किसकी ख़ुशबू सांसों को मॅहका जाती है।।

हा हा हा हा बताया न मैं कोई शायर नहीं हूं यारो, जाने कैसे ये हो जाता है.?? मैं खुद हैरान हूॅ।

छः महीने हो गए हैं मुझे घर से आए हुए। पिछली बार जब गया था तो हर चीज़ को अपने हिसाब से ब्यवस्थित करके ही आया था। कभी कभी मन में ख़याल आता है कि काश मैं कोई सुपर हीरो होता तो कितना अच्छा होता। हर नामुमकिन चीज़ को पल भर में मुमकिन बना देता मगर ये तो मन के सिर्फ खयाल हैं जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं। पिछले दो सालों में इतना कुछ हो गया है कि सोचता हूं तो डर लगता है। मैं वो सब याद नहीं करना चाहता मगर यादों पर मेरा कोई ज़ोर नहीं।

माॅ ने फोन किया था, कह रही थी जल्दी आ जाऊॅ उसके पास। बहुत रो रही थी वह, वैसा ही हाल मेरी छोटी बहेन का भी था। दोनो ही मेरे लिए मेरी जान थी। एक दिल थी तो एक मेरी धड़कन। बात ज़रा गम्भीर थी इस लिए मजबूरन मुझे छुट्टी लेकर आना ही पड़ रहा है। इस वक्त मैं ट्रेन में हूॅ। बड़ी मुश्किल से तत्काल का रिज़र्वेशन टिकट मिला था। सफ़र काफी लम्बा है पर ये सफर कट ही जाएगा किसी तरह।

ट्रेन में खिडकी के पास वाली सीट पर बैठा मैं खिड़की के बाहर का नज़ारा कर रहा था। काम की थकान थी और मैं सीट पर लेट कर आराम भी करना चाहता था, इस लिए ऊपर वाले बर्थ के भाई साहब से हाॅथ जोड़ कर कहा कि आप मेरी जगह आ जाइए। भला आदमी था वह तुरंत ही ऊपर के बर्थ से उतर कर मेरी जगह खिड़की के पास बड़े आराम से बैठ गया। मैं भी जल्दी से उसकी जगह ये सोच कर बैठ गया कि वो भाई साहब मेरी जगह नीचे बैठने से कहीं इंकार न कर दे।

पूरी सीट पर लेटने का मज़ा ही कुछ अलग होता है। बड़ा सुकून सा लगा और मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। आॅख बंद करते ही बंद आॅखों के सामने वही सब दिखना शुरू हो गया जो न देखना मेरे लिए दुनियां का सबसे कठिन कार्य था। इन कुछ सालों में और कुछ दिखना मानो मेरे लिए कोई ख़्वाब सा हो गया था। इन बंद आॅखों के सामने जैसे कोई फीचर फिल्म शुरू से चालू हो जाती है।

चलिए इन सब बातों को छोंड़िए अब मैं आप सबको अपनी बंद आॅखों में चल रही फिल्म का आॅखों देखा हाल बताता हूॅ।

जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूॅ कि मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। अच्छे परिवार से था इस लिए किसी चीज़ का अभाव नहीं था। कद कठी किसी भी एंगल से छः फीट से कम नहीं है। मेरा जिस्म गोरा है तथा नियमित कसरत करने के प्रभाव से एक दम आकर्षक व बलिस्ठ है। मैंने जूड़ो कराटे एवं मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट भी हासिल किया है। ये मेरा शौक था इसी लिए ये सब मैंने सीखा भी था मगर मेरे घर में इसके बारे में कोई नहीं जानता और न ही कभी मैंने उन्हें बताया।

मेरा परिवार काफी बड़ा है, जिसमें दादा दादी, माता पिता बहेन, चाचा चाची, बुआ फूफा, नाना नानी, मामा मामी तथा इन सबके लड़के लड़कियाॅ आदि।

कहने को तो मैं इतने बड़े परिवार का हिस्सा हूं मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। ख़ैर कहानी को आगे बढ़ाने से पहले आप सबको मैं अपने पूरे खानदान वालों का परिचय दे दूॅ।

मेरे दादा दादी का परिवार.....
गजेन्द्र सिंह बघेल (दादा67) एवं इन्द्राणी सिंह बघेल (दादी60)
1, अजय सिंह बघेल (दादा दादी के बड़े बेटे)(50)
2, विजय सिंह बघेल (दादा दादी के दूसरे बेटे)(45)
3, अभय सिंह बघेल (दादा दादी के तीसरे बेटे)(40)
4, सौम्या सिंह बघेल (दादा दादी की बड़ी बेटी)(35)
Kyun na yeh kahani aaj phir se padhi jaaye . phir se kuch purani yaadon ko taza ki jaaye...
5, नैना सिंह बघेल (दादा दादी की सबसे छोटी बेटी)(28)
Ek yahin toh great one thi.. :love: inki samne baaki ke kirdaar chai kam pani the
maana ki sabhi kirdaar ek se badhkar ek the.. apne apme bemisaal the..par kirdaar naina best thi :D
 

Naina

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1, अजय सिंह बघेल का परिवार.....
अजय सिंह बघेल (मेरे बड़े पापा)(50)
प्रतिमा सिंह बघेल (बड़े पापा की पत्नी)(45)
● रितू सिंह बघेल (बड़ी बेटी)(24)
● नीलम सिंह बघेल (दूसरी बेटी)(20)
● शिवा सिंह बघेल (बेटा)(18)

2, विजय सिंह बघेल का परिवार....
विजय सिंह बघेल (मेरे पापा)(45)
गौरी सिंह बघेल (मेरी माॅ)(40)
● विराज सिंह बघेल (राज)....(मैं)(20)
● निधि सिंह बघेल (मेरी छोटी बहेन)(^^)

3, अभय सिंह बघेल का परिवार....
अभय सिंह बघेल (मेरे चाचा)(40)
करुणा सिंह बघेल (मेरी चाची)(37)
● दिव्या सिंह बघेल (मेरे चाचा चाची की बेटी)(^^)
● शगुन सिंह बघेल (मेरे चाचा का बेटा जो दिमाग से डिस्टर्ब है)(^^)

4, सौम्या सिंह बघेल का परिवार.....
सौम्या सिंह बघेल (मेरी बड़ी बुआ35) जो कि शादी के बाद उनका सर नेम बदल गया। अब वो सौम्या सिंह बस हैं।
* राघव सिंह (सौम्या बुआ के पति और मेरे फूफा जी)(38)
● अनिल सिंह (सौम्या बुआ का बेटा)(^^)
● अदिति सिंह (सौम्या बुआ की बेटी)(^^)
Nice intro

5, नैना सिंह बघेल (मेरी छोटी बुआ 28) जो शादी के बाद अब नैना सिंह हैं। इनकी शादी अभी दो साल पहले हुई है। अभी तक कोई औलाद नहीं है इनके। नैना बुआ के पति का नाम आदित्य सिंह(32) है।
Super se bhi upor nice intro... btw inke pati ko chullu bhar pani mei the dubke mar jana chahiye.. hire ki Kimat yeh kya jaane

तो दोस्तों ये था मेरे खानदान वालों का परिचय। मेरे नाना नानी लोगों का परिचय कहानी में आगे दूंगा जहां इन लोगों का पार्ट आएगा।

मेरे दादा जी के पास बहुत सी पुस्तैनी ज़मीन जायदाद थी। दादा जी खुद भी दो भाई थे। दादा जी अपने पिता के दो बेटों में बड़े बेटे थे। उनके दूसरे भाई के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। दादा जी बताया करते थे कि उनका छोटा भाई राघवेन्द्र सिंह बघेल जब 20 वर्ष का था तभी एक दिन घर से कहीं चला गया था। पहले सबने इस पर ज्यादा सोच विचार नहीं किया किन्तु जब वह एक हप्ते के बाद भी वापस घर नहीं आया तो सबने उन्हें ढूॅढ़ना शुरू किया। ये ढूॅढ़ने का सिलसिला लगभग दस वर्षों तक जारी रहा मगर उनका कभी कुछ पता न चला। किसी को ये भी पता न चल सका कि राघवेन्द्र सिंह आख़िर किस वजह से घर छोंड़ कर चला गया है? उनका आज तक कुछ पता न चल सका था। सबने उनके वापस आने की उम्मीद छोंड़ दी। वो एक याद बन कर रह गए सबके लिए।

दादा जी उस जायदाद के अकेले हक़दार रह गए थे। समय गुज़रता गया और जब मेरे दादा जी के बेटे पढ़ लिख कर बड़े हुए तो सबने अपना अपना काम भी सम्हाल लिया। बड़े पापा पढ़ने में बहुत तेज़ थे उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की और सरकारी वकील बन गए। मेरे पिता जी पढ़ने लिखने में हमेशा ही कमज़ोर थे, उनका पढ़ाई में कभी मन ही नहीं लगता था। इस लिए उन्होंने पढ़ाई छोंड़ दी और घर में रह कर इतनी बड़ी जमीन जायदाद को अकेले ही सम्हालने लगे। छोटे चाचा जी बड़े पापा की तरह तो नहीं थे किन्तु पढ़ लिख कर वो भी सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गए।

उस समय गाॅव में शिक्षा का बहुत ज्यादा क्रेज नहीं था। किन्तु इतना कुछ जो हुआ वो सब दादा जी के चलते हुआ था। आगे चल कर सबकी शादियां भी हो गई। बड़े पापा सरकारी वकील थे वो शहर में ही रहते थे, और शहर में ही उन्हें एक लड़की पसंद आ गई जिससे उन्होंने शादी कर ली। हलाॅकि बड़े पापा के इस तरह शादी कर लेने से दादा जी बहुत नाराज़ हुए थे। किन्तु बड़े पापा ने उन्हें अपनी बातों से मना लिया था।

छोटे चाचा जी ने भी वही किया था यानि अपनी पसंद की लड़की से शादी। दादा जी उनसे भी नाराज़ हुए किन्तु फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा। चाचा जी से पहले मेरे पिता जी ने दादा जी की पसंद की लड़की से शादी की। मेरे पिता पढ़े लिखे भले ही नहीं थे लेकिन मेहनती बहुत थे। वो अकेले ही सारी खेती बाड़ी का काम करते थे और इतना ज्यादा ज़मीनों से अनाज की पैदावार होती कि जब उसे शहर ले जा कर बेचते तो उस समय में भी हज़ारो लाखों का मुनाफ़ा होता था।

मेरे पिता जी बहुत ही संतोषी स्वभाव वाले इंसान थे। सबको ले कर चलने वाले ब्यक्ति थे, सब कहते कि विजय बिलकुल अपने बाप की तरह ही है। मेरी माॅ एक बहुत ही सुन्दर लेकिन साधारण सी महिला थीं। वो खुद भी पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन समझदार बहुत थी। मेरे माता पिता के बीच आपस में बड़ा प्रेम था। बड़े पापा बड़े ही लालची और मक्कार टाईप के इंसान थे। वो हर चीज़ में सिर्फ़ अपना फायदा सोचते थे। जबकि छोटे चाचा ऐसे नहीं थे। वो ज्यादा किसी से कोई मतलब नहीं रखते थे। अपने से बड़ों की इज्ज़त करते थे। लेकिन ये भी था कि अगर कोई किसी बात के लिए उनका कान भर दे तो वो उस बात को ही सच मान लेते थे।

बड़े पापा सरकारी वकील तो थे लेकिन उस समय उन्हें इससे ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती थी। वो चाहते थे कि उनके पास ढेर सारा पैसा हो और तरह तरह का ऐसो आराम हो। लेकिन ये सब मिलना इतना आसान न था। दिन रात उनका दिमाग इन्हीं सब चीज़ों में लगा रहता था। एक दिन किसी ने उन्हें खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी। लेकिन बिजनेस शुरू करने के लिए सबसे पहले ढेर सारा पैसा भी चाहिए था। जिसने उन्हे खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी उसन उन्हें बिजनेस के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी दी थी।


कहानी जारी रहेगी,,,
Viraj ke bade papa paise ko piche bhage... soche ki paiso se hi sara sukh subhidhaye kharid sakte hai...lekin uske chalte jaane kitna kuch khoya kya unke paas uska hisab hai... Khair... sabki apni apni soch hai..
Brilliant update with awesome writing skill :applause: :applause:
 

Naina

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बड़े पापा के दिमाग में खुद का बिजनेस शुरू करने का जैसे भूत सवार हो गया था। वो रात दिन इसी के बारे में सोचते। एक रात उन्होंने इस बारे में अपनी बीवी प्रतिमा को भी बताया। बड़ी मां ये जान कर बड़ा खुश हुईं। उन्होंने बड़े पापा को इसके लिए तरीका भी बताया। तरीका ये था कि बड़े पापा को खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए दादा जी से पैसा माॅगना चाहिए। दादा जी के पास उस समय पैसा ही पैसा हो गया था ये अलग बात है कि वो पैसा मेरे पिता जी की जी तोड़ मेहनत का नतीजा था।

अपनी बीवी की ये बात सुन कर बड़े पापा का दिमाग दौड़ने लगा। फिर क्या था दूसरे ही दिन वो शहर से गाॅव दादा जी के पास पहुंच गए और दादा जी से इस बारे में बात की। दादा जी उनकी बात सुन कर नाराज़ भी हुए और पैसा देने से इंकार भी किया। उन्होंने कहा कि तुमने अपनी नौकरी से आज तक हमें कितना रुपया ला कर दिया है? हमने तुम्हें पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि आज तुम शहर में एक सरकारी वकील बन गए तथा अपनी मर्ज़ी से शादी भी कर ली। हमने कुछ नहीं कहा। सोच लिया कि चलो जीवन तुम्हारा है तुम जैसा चाहो जीने का हक़ रखते हो। मगर ये सब क्या है बेटा कि तुम अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं? और खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हो जिसके लिए तुम्हें ढेर सारा पैसा चाहिए?

दादा जी की बातों को सुन कर बड़े पापा अवाक् रह गए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि दादा जी पैसा देने की जगह ये सब सुनाने लगेंगे। कुछ देर बाद बड़े पापा ने उन्हें समझाना शुरू कर दिया। उन्होंने दादा जी को बताया कि वो ये बिजनेस साइड से शुरू कर रहे हैं और वो अपनी नौकरी नहीं छोंड़ रहे। बड़े पापा ने दादा जी को भविष्य के बारे में आगे बढ़ने की बहुत सी बातें समझाईं। दादा जी मान तो गए पर ये जरूर कहा कि ये सब रुपया विजय(मेरे पिता जी) की जी तोड़ मेहनत का नतीजा है। उससे एक बार बात करना पड़ेगा। दादा जी की इस बात से बड़े पापा गुस्सा हो गए बोले कि आप घर के मालिक हैं या विजय? किसी भी चीज़ का फैसला करने का अधिकार सबसे पहले आपका है और आपके बाद मेरा क्योंकि मैं इस घर का सबसे बड़ा बेटा हूं। विजय होता कौन है कि आपको ये कहना पड़े कि आपको और मुझे उससे बात करना पड़ेगा?

बड़े पापा की इन बातों को सुनकर दादा जी भी उनसे गुस्सा हो गए। कहने लगे कि विजय वो इंसान है जिसकी मेहनत के चलते आज इस घर में इतना रुपया पैसा आया है। वो तुम्हारे जैसा ग्रेजुएट होकर सरकरी नौकरी वाला भले ही न बन सका लेकिन तुमसे कम नहीं है वह। तुमने अपनी नौकरी से क्या दिया है कमा कर आज तक ? जबकि विजय ने जिस दिन से पढ़ाई छोंड़ कर ज़मीनों में खेती बाड़ी का काम सम्हाला है उस दिन से इस घर में लक्ष्मी ने अपना डेरा जमाया है। उसी की मेहनत से ये रुपया पैसा हुआ है जिसे तुम माॅगने आए हो समझे ?

दादा जी की गुस्से भरी ये बातें सुन कर बड़े पापा चुप हो गए। उनके दिमाग में अचानक ही ये ख़याल आया कि मेरे इस प्रकार के ब्योहार से सब बिगड़ जाएगा। ये ख़याल आते ही उन्होंने जल्दी से माफी माॅगी दादा जी से और फिर दादा जी के साथ मेरे पिता जी से मिलने खेतों की तरफ बढ़ गए।

खेतों में पहुॅच कर दादा जी ने मेरे पिता जी को पास बुला कर उनसे इस बारे में बात की और कहा कि अजय(बड़े पापा) को खुद का कारोबार शुरू करने के लिए रुपया चाहिए। इस पर पिता जी ने कहा कि वो इन सब चीज़ों के बारे में कुछ नहीं जानते आप जो चाहें करें। आप घर के मुखिया हैं हर फैसला आपको ही करना है। पिता जी की बात सुन कर दादा जी खुश हो गए। उन्हें मेरे पिता जी पर गर्व भी हुआ। जबकि बड़े पापा मन ही मन मेरे पिता को गालियां दे रहे थे।

ख़ैर उसके बाद बड़े पापा ने खुद का कारोबार शुरू कर दिया। जिसके उद्घाटन में सब कोई शामिल हुआ। हलाकि उन्होंने मेरे माता पिता को आने के लिए नहीं कहा था फिर भी मेरे माता पिता खुशी खुशी सबके साथ आ गए थे। दादा जी के पूछने पर बड़े पापा ने बताया था कि एक शेठ की वर्षों से बंद पड़ी कपड़ा मील को उन्होंने सस्ते दामों में ख़रीद लिया है अब इसी को नए सिरे से शुरू करेंगे। दादा जी ने देखा था उस कपड़ा मील को, उसकी हालत ख़राब थी। उसे नया बनाने में काफी पैसा लग सकता था।

चूॅकि दादा जी देख चुके थे इस लिए मील को सही हालत में लाने के लिए जितना पैसा लगता दादा जी देते रहे। करीब छः महीने बाद कपड़ा मिल सही तरीके चलने लगी। ये अलग बात थी उसके लिए ढेर सारा पैसा लगाना पड़ा था।

इधर मेरे पिता जी की मेहनत से काफी अच्छी फसलों की पैदावार होती रही। वो खेती बाड़ी के विषय में हर चीज़ का बारीकी से अध्ययन करते थे। आज के परिवेश के अनुसार जिस चीज़ से ज्यादा मुनाफा होता उसी की फसल उगाते। इसका नतीजा ये हुआ कि दो चार सालों में ही बहुत कुछ बदल गया। मेरे पिता जी ने दादा जी की अनुमति से उस पुराने घर को तुड़वा कर एक बड़ी सी हवेली में परिवर्तित कर दिया।


कहानी जारी रहेगी,,,,,
हलाॅकि दो मंजिला विसाल हवेली को बनवाने में भारी खर्चा लगा। घर में जितना रुपया पैसा था सब खतम हो गया बाॅकि का काम करवाने के लिए और पैसों की ज़रूरत पड़ गई। दादा जी ने बड़े पापा से बात की लेकिन बड़े पापा ने कहा कि उनके पास रुपया नहीं है उनका कारोबार में बहुत नुकसान हो गया है। दादा जी को किसी के द्वारा पता चल गया था कि बड़े पापा का कारोबार अच्छा खासा चल रहा है और उनके पास रुपयों का कोई अभाव नहीं है।

बड़े पापा के इस प्रकार झूॅठ बोलने और पैसा न देने से दादा जी बहुत दुखी हुए। मेरे पिता जी ने उन्हें सम्हाला और कहा कि ब्यर्थ ही बड़े भइया से रुपया माॅगने गए थे। हम कोई दूसरा उपाय ढूंढ़ लेंगे।

छोटे चाचा स्कूल में सरकारी शिक्षक थे। उनकी इतनी सैलरी नहीं थी कि वो कुछ मदद कर सकते। मेरे पिता जी को किसी ने बताया कि बैंक से लोंन में रुपया ले लो बाद में ब्याज के साथ लौटा देना।

उस आदमी की इस बात से मेरे पिता जी खुश हो गए। उन्होंने इस बारे में दादा जी से बात की। दादा जी कहने लगे कि कर्ज़ चाहे जैसा भी हो वह बहुत ख़राब होता है और फिर इतनी बड़ी रकम ब्याज के साथ चुकाना कोई गुड्डा गुड्डी का खेल नहीं है। दादा जी ने कहा कि घर का बाकी का बचा हुआ कार्य बाद में कर लेंगे जब फसल से मुनाफ़ा होगा। मगर मेरे पिता जी ने कहा कि हवेली का काम अधूरा नहीं रहने दूंगा, वो हवेली को पूरी तरह तैयार करके ही मानेंगे। इसके लिए अगर कर्ज़ा होता है तो होता रहे वो ज़मीनों में दोगुनी मेहनत करेंगे और बैंक का कर्ज़ चुका देंगे।

दादा जी मना करते रह गए लेकिन पिता जी न माने। सारी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी होते ही पिता जी को बैंक से लोंन के रूप में रुपया मिल गया। हवेली का बचा हुआ कार्य फिर से शुरू हो गया। मेरे पिता जी पर जैसे कोई जुनून सा सवार था। वो जी तोड़ मेहनत करने लगे थे। जाने कहां कहां से उन्हें जानकारी हासिल हो जाती कि फला फसल से आजकल बड़ा मुनाफ़ा हो रहा है। बस फिर क्या था वो भी वही फसल खेतों में उगाते।

इधर दो महीने के अन्दर हवेली पूरी तरह से तैयार हो गई थी। देखने वालों की आंखें खुली की खुली रह गईं। हवेली को जो भी देखता दिल खोल कर तारीफ़ करता। दादा जी का सिर शान से उठ गया था तथा उनका सीना अपने इस किसान बेटे की मेहनत से निकले इस फल को देख कर खुशी से फूल कर गुब्बारा हुआ जा रहा था।

हवेली के तैयार होने के बाद दादा जी की अनुमति से पिता जी ने एक बड़े से भण्डारे का आयोजन किया जिसमें सम्पूर्ण गाॅव वासियों को भोज का न्यौता दिया गया। शहर से बड़े पापा और बड़ी माॅ भी आईं थीं।

बड़े पापा ने जब हवेली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि उनका घर कभी इस प्रकार की हवेली में परिवर्तित हो जाएगा। किन्तु प्रत्यक्ष में वे हवेली को देख देख कर कहीं न कहीं कोई कमी या फिर ग़लती निकाल ही रहे थे। बड़ी माॅ का हाल भी वैसा ही था।

हवेली को इस प्रकार से बनाया गया था कि भविष्य में किसी भी भाई के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद न खड़ा हो सके। हवेली का क्षेत्रफल काफी बड़ा था। भविष्य में अगर कभी तीनो भाईयों का बॅटवारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और डिजाइन का हिस्सा समान रूप से मिले। हवेली काफी चौड़ी तथा दो मंजिला थी। तीनो भाईयों के हिस्से में बराबर और समान रूप से आनी थी। हवेली के सामने बहुत बड़ा लाॅन था। कहने का मतलब ये कि हवेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मंजिला इमारतों को एक साथ जोड़ दिया गया हो।
haweli banayi to banayi par ek yeh baat samajh mein na aayi ki viraj ke pita ji apne bade bhai ko kahe haweli mein ek extra part banake diya... Kyunki paise toh unke the.. naki unke bade bhai ke.. ulta unke bade bhai to ek number ke kanjush aur selfish insaan the...
Actually gadbadi yahin se suru huyi.. na ajay and family waha aate na vijay aur unke pariwar ke sath yeh sab hota... are us ajay ko to tabhi gaon se hi bhaga dena chahiye tha..
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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92,286
304
अपडेट......... 02


अब तक......

बड़े पापा ने जब हवेली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि उनका घर कभी इस प्रकार की हवेली में परिवर्तित हो जाएगा। किन्तु प्रत्यक्ष में वे हवेली को देख देख कर कहीं न कहीं कोई कमी या फिर ग़लती निकाल ही रहे थे। बड़ी माॅ का हाल भी वैसा ही था।

हवेली को इस प्रकार से बनाया गया था कि भविष्य में किसी भी भाई के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद न खड़ा हो सके। हवेली का क्षेत्रफल काफी बड़ा था। भविष्य में अगर कभी तीनो भाईयों का बॅटवारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और डिजाइन का हिस्सा समान रूप से मिले। हवेली काफी चौड़ी तथा दो मंजिला थी। तीनो भाईयों के हिस्से में बराबर और समान रूप से आनी थी। हवेली के सामने बहुत बड़ा लाॅन था। कहने का मतलब ये कि हवेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मंजिला इमारतों को एक साथ जोड़ दिया गया हो।

अब आगे..........

इसी तरह सबके साथ हॅसी खुशी समय गुज़रता रहा। बड़े पापा और बड़ी माॅ का ब्यौहार दिन प्रतिदिन बदलता जा रहा था। उनका रहन सहन सब कुछ बदल गया था। इस बीच उनको एक बेटी भी हुई जिसका नाम रितु रखा गया, रितु सिंह बघेल। बड़े पापा और बड़ी माॅ अपनी बच्ची को लेकर शहर से घर आईं और दादा दादी जी से आशीर्वाद लिया। उन्होंने एक बढ़िया सी कार भी ख़रीद ली थी, उसी कार से वो दोनों आए थे।

दादा जी बड़े पापा और बड़ी माॅ के इस बदलते रवैये से अंजान नहीं थे किन्तु बोलते कुछ नहीं थे। वो समझ गए थे कि बेटा कारोबारी आदमी हो गया है और उसे अब रुपये पैसे का घमण्ड होने लगा है। दादा जी ये भी महसूस कर रहे थे कि उनके बड़े बेटे और बड़ी बहू का मेरे पिता के प्रति कोई खास बोलचाल नहीं है। जबकि छोटे चाचा जी से उनका संबंध अच्छा था। इसका कारण शायद यह था कि छोटे चाचा भले ही किसी से ज्यादा मतलब नहीं रखते थे लेकिन स्वभाव से बहुत गुस्से वाले थे। वो अन्याय बरदास्त नहीं करते थे बल्कि वो इसके खिलाफ़ लड़ पड़ते थे।

अपने अच्छे खासे चल रहे कारोबार के पैसों से बड़े पापा ने शहर में एक बढ़िया सा घर भी बनवा लिया था जिसके बारे में बहुत बाद में सबको पता चला था। दादा जी बड़े पापा से नाराज़ भी हुए थे इसके लिए। पर बड़े पापा ने उनको अपनी लच्छेदार बातों द्वारा समझा भी लिया था। उन्होंने दादा जी को कहा कि ये घर बच्चों के लिए है जब वो सब बड़े होंगे तो शहर में इसी घर में रह कर यहाॅ अपनी पढ़ाई करेंगे।

समय गुज़रता रहा, और समय के साथ बहुत कुछ बदलता भी रहा। रितु दीदी के पैदा होने के चार साल बाद बड़े पापा को एक और बेटी हुई जबकि उसी समय मैं अपने माता पिता द्वारा पैदा हुआ। मेरे पैदा होने के एक दिन बाद ही बड़े पापा को दूसरी बेटी यानी नीलम पैदा हुई थी। उस समय पूरे खानदान में मैं अकेला ही लड़का था। मेरे पैदा होने पर दादा जी ने बहुत बड़ा उत्सव किया था तथा पूरे गाॅव वालों को भोज करवाया था। हलाॅकि मेरे माता पिता ये सब बिल्कुल नहीं चाहते थे क्यों कि इससे बड़े पापा और बड़ी माॅ के दिल ओ दिमाग में ग़लत धारणा पैदा हो जानी थी। लेकिद दादा जी नहीं माने बल्कि इन सब बातों की परवाह किए बग़ैर वो ये सब करते गए। इसका परिणाम वही हुआ जिसका मेरे माता पिता जी को अंदेशा था। मेरे पैदा होने की खुशी में दादा जी द्वारा किये गए इस उत्सव से बड़े पापा और बड़ी माॅ बहुत नाराज़ हुईं। उन्होंने कहा कि जब उनको बच्चियां पैदा हुई तब ये जश्न क्यों नहीं किया गया? जिसके जवाब में दादा जी ने नाराज़ हो कर कहा कि तुम लोग हमें अपना मानते ही कहाॅ हो? सब कुछ अपनी मर्ज़ी से ही कर लेते हो। कभी किसी चीज़ के लिए हमारी मर्ज़ी हमारी पसंद या हमारी सहमति के बारे में सोचा तुम लोगों ने? तुम लोगों ने अपनी मर्ज़ी से शहर में घर बना लिया और किसी को बताया भी नहीं, अपनी मर्ज़ी या पसंद से गाड़ी खरीद ली और किसी को बताया तक नहीं। इन सब बातों का कोई जवाब है तुम लोगों के पास? क्या सोचते हो तुम लोग कि तुम्हारी ये चीज़ें कहीं हम लोग माॅग न लें? या फिर तुमने ये सोच लिया है कि जो तुमने बनाया है उसमे किसी का कोई हक़ नहीं है?

दादा जी की गुस्से से भरी ये सब बातें सुन कर बड़े पापा और बड़ी माॅ चुप रह गए। उनके मुख से कोई लफ्ज़ नहीं निकला। जबकि दादा जी कहते रहे, तुम लोगों ने खुद ही हम लोगों से खुद को अलग कर लिया है। आज तुम्हारे पास रुपया पैसा आ गया तो खुद को तोप समझने लगे हो। मगर ये भूल गए कि जिस रुपये पैसे के नशे में तुमने हम लोगों को खुद से अलग कर लिया है उस रुपये पैसे की बुनियाद हमारे ही खून पसीने की कमाई के पैसों से तैयार की है तुमने। अब चाहे जितना आसमान में उड़ लो मगर याद रखना ये बात।

कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
दादा जी और भी जाने क्या क्या कहते रहे । बड़े पापा और बड़ी माॅ कुछ न बोले। दूसरे दिन वो लोग वापस शहर चले गए। लेकिन इस बार अपने दिल ओ दिमाग में ज़हर सा भर लिया था उन लोगों ने।

छोटे चाचा और चाची सब जानते थे और उनकी मानसिकता भी समझते थे लेकिन सबसे छोटे होने के कारण वो बीच में कोई हस्ताक्षेप करना उचित नहीं समझते थे। वो मेरे माता पिता की बहुत इज्ज़त करते थे। वो जानते थे कि ये सब कुछ मेरे पिता जी के कठोर मेहनत से बना है। हमारी सम्पन्नता में उनका ही हाॅथ है। मेरी माॅ और पिता बहुत ही शान्त स्वभाव के थे। कभी किसी से कोई वाद विवाद करना मानो उनकी फितरत में ही शामिल न था।

मेरे जन्म के दो साल बाद बड़े पापा और बड़ी माॅ को एक बेटा हुआ था। जिसका नाम शिवा सिंह रखा गया था। उसके जन्म पर जब वो लोग घर आए तो दादा जी ने शिवा के जन्म की खुशी में उसी तरह उत्सव मनाया तथा पूरे गाॅव वालों को भोज करवाया जैसे मेरे जन्म की खुशी में किया था। मगर इस बार का उत्सव पहले के उत्सव की अपेक्षा ज़्यादा ताम झाम वाला था क्योंकि बड़े पापा यही करना या दिखाना चाहते थे। दादा जी इस बात को बखूबी समझते थे।

समय गुज़रता रहा और यूं ही पाॅच साल गुज़र गए। मैं पाॅच साल का हो गया था। सब घर वाले मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे जन्म के चार साल बाद ही मुझे मेरे माता पिता द्वारा एक बहेन मिल गई थी। उसका नाम निधि रखा गया। छोटे चाचा और चाची को भी एक बेटी हो गई थी जो अब एक साल की थी। उसका नाम दिव्या था। दिव्या ऊम्र में मेरी बहेन निधि से मात्र दस दिन छोटी थी। दोनों एक साथ ही रहती। उन दोनों की किलकारियों से पूरी हवेली में रौनक रहती। दिव्या बिल्कुल चाची पर गई थी। एक दम गोरी चिट्टी सी। दिन भर मैं उनके साथ खेलता, वो दोनो मेरा खिलौना थीं। हमेशा उनको अपने पास ही रखता था।

बड़े पापा और बड़ी माॅ मेरी बहेन निधि और चाचा चाची की बेटी दिव्या दोनो के जन्म पर उन्हें देखने आए थे। खास कर छोटे चाचा चाची की बेटी को देखने। सबकी मौजूदगी में उन्होंने मुझे भी अपना प्यार दिया। वो सबके लिए उपहार स्वरूप कपड़े लाए थे। इस बार उनका रवैया तथा वर्ताव पहले की अपेक्षा बहुत अच्छा था। वो सबसे हॅस बोल रहे थे। उनकी बड़ी बेटी रितु जो मुझसे चार साल बड़ी थी वो बिल्कुल अपनी माॅ पर गई थी। उसके स्वभाव में अपनी माॅ की तरह ही अकड़ूपन था जबकि उसकी छोटी बहेन जो मेरी ऊम्र की थी वो उसके विपरीत बिलकुल साधारण थी। ख़ैर दो दिन रुकने के बाद वो लोग वापस शहर चले गए।

मैं पाॅच साल का हो गया था इस लिए मेरा चाचा जी के स्कूल में ही पढ़ाई के लिए नाम लिखवा दिया गया था। मेरा अपने खिलौनों अर्थात् निधि और दिव्या को छोंड़ कर स्कूल जाने का बिलकुल मन नहीं करता था जिसके लिए मेरी पिटाई भी होती थी। छोटे चाचा को उनके गुस्सैल स्वभाव के चलते सब डरते भी थे। मैं भी डरता था उनसे और इसी डर की वजह से मुझे उनके साथ ही स्कूल जाना पड़ता। हलाॅकि चाचा चाची दोनों ही मुझ पर जान छिड़चते थे लेकिन पढ़ाई के मामले में चाचा जी ज़रा स्ट्रिक्ट हो जाते थे।

मेरे माता पिता दोनो ही पढ़े लिखे नहीं थे इस लिए मेरी पढ़ाई की जिम्मेदारी चाचा चाची की थी। चाचा चाची दोनो ही मुझे पढ़ाते थे। इसका परिणाम ये हुआ कि मै पढ़ाई में शुरू से ही तेज़ हो गया था। जब मैं दो साल का था तब मेरी बड़ी बुआ यानी सौम्या सिंह की शादी हुई थी जबकि छोटी बुआ नैना सिंह स्कूल में पढ़ती थीं। मेरी दोनों ही बुआओं का स्वभाव अच्छा था। छोटी बुआ थोड़ी स्ट्रिक्ट थी वो बिलकुल छोटे चाचा जी की तरह थीं। मैं जब पाॅच साल का था तब बड़ी बुआ को एक बेटा यानी अनिल पैदा हुआ था।

पूरे गाॅव वाले हमारी बहुत इज्ज़त करते थे। एक तो गाॅव में सबसे ज्यादा हमारे पास ही ज़मीनें थी दूसरे मेरे पिता जी की मेहनत के चलते घर हवेली बन गया तथा रुपया पैसा हो गया। हमारे घर से दो दो आदमी सरकारी सर्विस में थे। खुद का बहुत बड़ा करोबार भी चल रहा था। उस समय इतना कुछ गाॅव में किसी और के पास न था। दादा जी और मेरे पिता जी का ब्यौहार गाॅव में ही नहीं बल्कि आसपास के गावों में भी बहुत अच्छा था। इस लिए सब लोग हमें इज्ज़त देते थे।

इसी तरह समय गुज़रता रहा। कुछ सालों बाद मेरे छोटे चाचा चाची और बड़ी बुआ को एक एक संतान हुईं। चाचा चाची को एक बेटा यानी शगुन सिंह बघेल और बड़ी बुआ को एक बेटी यानी अदिति सिंह हुई। चाचा चाची का बेटा शगुन बड़ा ही सुन्दर था। उसके जन्म में भी दादा जी ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया तथा पूरे गाॅव वालों को भोज कराया। बड़े पापा और बड़ी माॅ ने भी कोई कसर नहीं छोंड़ी थी खर्चा चरने में। सबने बड़ी बुआ को भी बहुत सारा उपहार दिया था। सब लोग बड़ा खुश थे।

कुछ सालों बाद छोटी बुआ की भी शादी हो गई। वो अपने ससुराल चली गईं। हम सभी बच्चे भी समय के साथ बड़े हो रहे थे।


कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
बड़े पापा और बड़ी माॅ ज्यादातर शहर में ही रहते। वो लोग तभी आते थे गाॅव जब कोई खास कार्यक्रम होता। उनके कारोबार और उनके पैसों से किसी को कोई मतलब नहीं था। मेरे माता पिता के प्रति उनके मन में हमेशा एक द्वेश तथा नफरत जैसी बात कायम रही। हलाॅकि वो इसका कभी दिखावा नहीं करते थे लेकिन सच्चाई कभी किसी पर्दे की गुलाम बन कर नहीं रहती। वो अपना चेहरा किसी न किसी रूप से लोगों को दिखा ही देती है। दादा जी सब जानते और समझते थे लेकिन बोलते नहीं थे कभी।

मेरे माता पिता के मन में बड़े पापा और बड़ी माॅ के प्रति कभी कोई बुरी भावना या ग़लत विचार नहीं रहा बल्कि वो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे। मेरे पिता जी उसी तरह ज़मीनों में खेती करके फसल उगाते थे, अब फर्क ये था कि वो ये सब मजदूरों से करवाते थे। ज़मीनों में बड़े बड़े आमों के बाग़ हो गए थे, साग सब्जियों की भी पैदावार होने लगी थी। खेतों के बीच एक बड़ा सा घर भी बनवा लिया गया था। कहने का मतलब ये कि हर सुविधा हर साधन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलों के साथ हल द्वारा खेतों की जुताई होती थी अब वहाॅ ट्रैक्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो ट्रैक्टर हो गए थे। दादा जी के लिए पिता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल जिससे वे स्कूल जाते थे। दादा दादी बड़े गर्व व शान से रहते थे। मेरे पिता जी से वो बहुत खुश थे।

मगर कौन जानता था कि इस हॅसते खेलते परिवार की खुशियों पर एक दिन एक ऐसा तूफ़ान कहर बन कर बरपेगा कि सब कुछ एक पल में आईने की तरह टूट कर बिखर जाएगा????

अपडेट हाज़िर है दोस्तो, आप सबका सहयोग तथा आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा।
अपडेट........ 《03》

अब तक.....

मेरे माता पिता के मन में बड़े पापा और बड़ी माॅ के प्रति कभी कोई बुरी भावना या ग़लत विचार नहीं रहा बल्कि वो हमेशा उनका आदर तथा सम्मान ही करते थे। मेरे पिता जी उसी तरह ज़मीनों में खेती करके फसल उगाते थे, अब फर्क ये था कि वो ये सब मजदूरों से करवाते थे। ज़मीनों में बड़े बड़े आमों के बाग़ हो गए थे, साग सब्जियों की भी पैदावार होने लगी थी। खेतों के बीच एक बड़ा सा घर भी बनवा लिया गया था। कहने का मतलब ये कि हर सुविधा हर साधन हो गया था। पहले जहाॅ दो दो बैलों के साथ हल द्वारा खेतों की जुताई होती थी अब वहाॅ ट्रैक्टर द्वारा जुताई होने लगी थी। हमारे पास दो दो ट्रैक्टर हो गए थे। दादा जी के लिए पिता जी ने एक कार भी खरीद दी थी तथा छोटे चाचा जी के लिए एक बुलेट मोटर साइकिल जिससे वे स्कूल जाते थे। दादा दादी बड़े गर्व व शान से रहते थे। मेरे पिता जी से वो बहुत खुश थे।

मगर कौन जानता था कि इस हॅसते खेलते परिवार की खुशियों पर एक दिन एक ऐसा तूफ़ान कहर बन कर बरपेगा कि सब कुछ एक पल में आईने की तरह टूट कर बिखर जाएगा????

अब आगे.....

"ओ भाई साहब! क्या आप मेरे इस समान को दरवाज़े तक ले जाने में मेरी मदद कर देंगे ?" सहसा किसी आदमी के इस वाक्य को सुन कर मैं अपने अतीत के गहरे समंदर से बाहर आया। मैंने ऊपर की सीट से खुद को ज़रा सा उठा कर नीचे की तरफ देखा।

एक आदमी ट्रेन के फर्स पर खड़ा मेरी तरफ देख रहा था। उसका दाहिना हाॅथ मेरी सीट के किनारे पर था जबकि बाॅया हाॅथ नीचे फर्स पर रखी एक बोरी पर था। मुझे कुछ बोलता न देख उसने बड़े ही अदब से फिर बोला "भाई साहब प्लेटफारम आने वाला है, ट्रेन बहुत देर नहीं रुकेगी यहाॅ और मेरा सारा सामान यहीं रह जाएगा। पहले ध्यान ही नहीं दिया था वरना सारा सामान पहले ही दरवाजे के पास ले जा कर रख लेता।"

उसकी बात सुन कर मुझे पूरी तरह होश आया। लगभग हड़बड़ा कर मैंने अपने बाएं हाॅथ पर बॅधी घड़ी को देखा। घड़ी में दिख रहे टाइम को देख कर मेरे दिलो दिमाग़ में झनाका सा हुआ। इस समय तो मुझे अपने ही शहर के प्लेटफार्म पर होना चाहिए। मैं जल्दी से नीचे उतरा, तथा अपना बैग भी ऊपर से निकाला।

"क्या ये ट्रेन गुनगुन पहुॅच गई ?" फिर मैंने उस आदमी से तपाक से पूॅछा।
"बस पहुॅचने ही वाली है भाई साहब।" उस आदमी ने कहा "आप कृपा करके जल्दी से मेरा ये सामान दरवाजे तक ले जाने में मेरी मदद कर दीजिए।"

"ठीक है, क्या क्या सामान है आपका?" मैंने पूॅछा।
"चार बोरियाॅ हैं भाई साहब और एक बड़ा सा थैला है।" उसने अपने सभी सामानों पर बारी बारी से हाॅथ रखते हुए बताया।

मैंने एक बोरी को एक हाॅथ से उठाया किन्तु भारी लगा मुझे। मैंने उस बोरी को ठीक से उठाते हुए उससे पूछा कि क्या पत्थर भर रखा है इनमें? वह हॅसते हुए बोला नहीं भाई साहब इनमें सब में गेहूॅ और चावल है। पिछली रबी बरसात न होने से हमारी सारी फसल बरबाद हो गई। अब घर में खाने के लिए कुछ तो चाहिए ही न भाई साहब इस लिए ये सब हमें हमारी ससुराल वालों ने दिया है। ससुराल वालों से ये सब लेना अच्छा तो नहीं लगता लेकिन क्या करें मुसीबत में सब करना पड़ जाता है।"

ट्रेन स्टेशन पर पहुॅच ही चुकी थी लगभग, हम दोनों ने मिल कर सीघ्र ही सारा सामान दरवाजे पर रख चुके थे। थोड़ी ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर पहुचकर रुक गई। वो आदमी जल्दी से उतरा और मैंने ऊपर से एक एक करके उसका सामान उसे पकड़ाता गया। सारा सामान सही सलामत नीचे उतर जाने के बाद मैं भी नीचे उतर गया। वो आदमी हाॅथ जोड़ कर मुझे धन्यवाद करता रहा। मैं मुस्कुरा कर एक तरफ बढ़ गया।

स्टेशन से बाहर आने के बाद मैंने बस स्टैण्ड जाने के लिए एक आॅटो पकड़ा। लगभग बीस मिनट बाद मैं बस स्टैण्ड पहुॅचा। यहाॅ से बस में बैठ कर निकल लिया अपने गाॅव 'हल्दीपुर'।

हल्दीपुर पहुॅचने में बस से दो घण्टे का समय लगता था। बस में मैं सीट की पिछली पुस्त से सिर टिका कर तथा अपनी दोनो आॅखें बंद करके बैठ गया। आॅख बंद करते ही मुझे मेरी माॅ और बहन का चेहरा नज़र आ गया। उन्हें देख कर आॅखें भर आईं। बंद आॅखों में चेहरे तो और भी नज़र आते थे जो मेरे बेहद अज़ीज़ थे लेकिन मैं उनके लिए अब अज़ीज़ न था।

सहसा तभी बस में कोई गाना चालू हुआ। दरअसल ये बस वालों की आदत होती है जैसे ही बस किसी सफर के लिए निकलती है बस का ड्राइवर गाना बजाना शुरू कर देता है ताकि बस में बैठे यात्रियों का मनोरंजन भी होता रहे।



कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
ab galti kar viraj ke pita ne lekin uska khamiyaja bhugatna para pure pariwar ko.. ajay aur uski family parasites se kam nahi.. dusro ke paiso par aish karne wale..

Khair...
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Naina

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अरे! ये ग़ज़ल तो ग़ुलाम अली साहब की है। ग़ुलाम अली साहब मेरी रॅग रॅग में बस गए थे आज कल। आप क़यामत तक सलामत रहें खान साहब आपकी ग़ज़लों ने मुझे एक अलग ही सुकून दिया है वरना दर्द-दिल और दर्दे-ज़िंदगी ने कब का मुझे फना कर दिया होता। फिर आ गया हूॅ उसी शहर उसी गली कूचे में जिसने जाने क्या क्या अता कर दिया है मुझे। उफ्फ़ ये बस का ड्राइवर भी यारो, क्या मेरे दिल का हाल जान गया था जो उसने मुझे सुकून देने के लिए ये ग़ज़ल शुरू करके सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे सुनाने लगा था? अच्छा ही हुआ कुछ पल ही सही सुकून तो मिल जाएगा मुझे। चलो अब कुछ न कहूॅगा, ग़ज़ल सुन लूॅ पहले फिर आगे का हाल सुनाऊॅगा आप सबको।

हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह।
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।।

मेरी मंज़िल है कहाॅ, मेरा ठिकाना है कहाॅ,
सबहो तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाॅ।
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

अपनी आखों में छुपा रखे हैं जुगनूॅ मैंने,
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आॅसू मैंने।
मेरी आखों को भी बरसात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

आज की रात मेरा दर्दे-मोहब्बत सुन ले,
कॅपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले।
आज इज़हारे-ख़यालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

भूलना था तो ये इक़रार किया ही क्यों था?
बेवफ़ा तूने मुझे प्यार किया ही क्यों था ?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में......

अरे! क्यों बंद हो गई ये ग़ज़ल? खान साहब कुछ देर और गाते न...मेरे लिए। हाय, क्या कहूॅ अब किसी को? दिल में इक तूफान मानो इंकलाब ज़िन्दाबाद का नारा सा लगाने लगा था। बहुत सी बातें बहुत सी यादें दिलो दिमाग़ को डसने लगी थी। मैं शायर तो नहीं उस दिन भी कहा था आप सबसे, आज भी कहता हूॅ। ऐसा लगता है जैसे मेरा दिल खुद ही लफ्ज़ों में पिरो कर अपना हाल आप सबको सुनाने लगेगा। मगर अभी नहीं दोस्तो, अपनी खुद की लिखी ग़ज़ल आगे कहीं सुनाऊॅगा।

ख़ैर वक़्त को तो गुज़रना ही था आख़िर, सो गुज़र गया और मैं अपने गाॅव हल्दीपुर पहुॅच गया। ये वही गाॅव है जिसके किसी छोर पर मेरे पिता जी द्वारा बनवाई गई हवेली मौजूद है। मगर मैं,मेरी माॅ और बहन अब उस हवेली में नहीं रहते। मेरे पिता जी तो अब इस दुनियाॅ में हैं ही नहीं। जी हाॅ दोस्तो मेरे पिता जी अब इस जहां में नहीं हैं।

हम तीन लोग यानी मैं मेरी माॅ और बहन अब खेतों के पास बने घर में रहते हैं। मगर बहुत जल्द हम लोगों का अब यहाॅ से भी तबादला होने वाला है।

उस समय शाम होने लगी थी जब मैं अपनी माॅ बहन के पास पहुॅचा। मुझे देख कर दोनो ही मुझसे लिपट गईं और फूट फूट कर रोने लगीं। मैंने थोड़ी देर उन्हें रोने दिया। फिर दोनो को खुद से अलग करके पास ही रखी एक चारपाई पर बैठा दिया। मेरी छोटी बहन निधि ने पास ही रखे एक घड़े से ग्लास में मुझे पानी दिया।

"माॅ, क्या फिर बड़े पापा ने?" अभी मेरी बात पूरी भी न हुई थी कि माॅ ने कहा "बेटा अब हम यहाॅ नहीं रहेंगे। हमें अपने साथ ले चल। हम तेरे साथ मुम्बई में ही रहेंगे। यहाॅ हमारे लिए कुछ नहीं है और न ही कोई हमारा है।"

"माॅ, क्या फिर बड़े पापा ने आपको कुछ कहा है?" मेरे अंदर क्रोध उभरने लगा था।
"सब भाग्य की बातें हैं बेटा।" माॅ ने गंभीरता से कहा "जब तक हमारे भाग्य में दुख तक़लीफें लिखी हैं तब तक ये सब सहना ही पड़ेगा।"

"माॅ चुप बैठने से कुछ नहीं होता।" मैंने कहा "किसी के सामने झुकना अच्छी बात है लेकिन इतना भी नहीं झुकना चाहिये कि हम झुकते झुकते एक दिन टूट ही जाएं। अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ता है माॅ। ये मान मर्यादा की बातें सिर्फ़ हम ही बस क्यों सोचें? वो क्यों नहीं सोचते ये सब?"
"सब एक जैसे अच्छे विचारों वाले नहीं होते बेटा।" माॅ ने कहा "अगर वो ये सब सोचते तो क्या हमें इस तरह यहाॅ रहना पड़ता?"

"यहाॅ भी कहाॅ रहने दे रहे हैं माॅ।"मैं आवेश मे बोला "उन्होंने हमें इस तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया है जैसे कोई दूध पर गिरी मक्खी को निकाल कर फेंक देता है। सारा गाॅव जानता है कि वो हवेली मेरे पिता जी के खून पसीना बहा कर कमाए हुए रुपयों से बनी है। और उनका वो कारोबार भी मेरे पिता जी के रुपयों की बुनियाद पर ही खड़ा है। ये कहाॅ का न्याय है माॅ कि सब कुछ छीन कर हमें दर दर का भिखारी बना दिया जाए?"

"हमें कुछ नहीं चाहिए बेटे।" माॅ ने कहा "मेरे लिए तुम दोनों ही मेरा सब कुछ हो।"
"आपकी वजह से मैं कुछ कर नहीं पाता माॅ।" मैंने हतास भाव से कहा"वरना इन लोगों को इनकी ही ज़ुबान से सबक सिखाता मैं।"

"किसी को कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है बेटे।" माॅ ने कहा "जो जैसा करेगा उसे वैसा ही एक दिन फल भी मिलेगा। ईश्वर सब देखता है।"



कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,
"तो क्या हम हर चीज़ के लिए ईश्वर का इन्तज़ार करते बैठे रहें ?" मैने कहा "ईश्वर ये नहीं कहता कि तुम कोई कर्म ही न करो। अपने हक़ के लिए लड़ना कोई गुनाह नहीं है।"

"भइया कल बड़े पापा ने।" निधि ने अभी अपनी बात भी पूरी न की थी कि माॅ ने उसे चुप करा दिया "तू चुप कर, तुझे बीच में बोलने को किसने कहा था?"
"उसे बोलने दीजिए माॅ।" मैंने कहा मुझे लगा निधि कुछ खास बात कहना चाहती है। "तू बता गुड़िया क्या किया बड़े पापा ने कल ?"

"कुछ नहीं बेटा ये बेकार ही जाने क्या क्या अनाप सनाप बकती रहती है।" माॅ ने जल्दी से खुद ही ये कहा।
"मैं अनाप सनाप नहीं बक रही हूॅ माॅ।" इस बार निधि की आखों में आॅसू और लहजे में आवेश था बोली "कब तक हर बात को सहते रहेंगे हम? कब तक हर बात भइया से छिपाएंगी आप? इस तरह कायर बन कर जीना कहाॅ की समझदारी है?"

"तो तू क्या चाहती है?" माॅ ने गुस्से से कहा "ये कि ऐसी हर बातें तेरे भाई को बताऊं जिससे ये जा कर उनसे लड़ाई झगड़ा करे? बेटा उन लोगों से लड़ने का कोई फायदा नहीं है। उनके पास ताकत है पैसा है हम अकेले कुछ नहीं कर सकते। लड़ाई झगड़े में कभी किसी का भला नहीं हुआ मेरे बच्चों। मैं नहीं चाहती कि किसी वजह से मैं तुम लोगों को खो दूॅ।"

कहने के साथ ही माॅ रोने लगी। मेरा कलेजा हाहाकार कर उठा। माॅ को यूं बेबसी में रोते देख मुझे ऐसा लग रहा था कि सारी दुनिया को आग लगा दूॅ। मेरे माता पिता जैसा दूसरा कोई नहीं था। वो हमेशा दूसरों की खुशी के लिए जीते थे। कभी किसी की तरफ आॅख उठा कर नहीं देखा। कभी किसी को बुरा भला नहीं कहा।

"हम कल ही यहाॅ से कहीं दूर चले जाएंगे बेटा।" माॅ ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा "मुझे किसी से कुछ नहीं चाहिए, दो वक़्त की रोटी कहीं भी रह कर कमा खा लेंगे।"
"ठीक है माॅ।" मैं भला कैसे इंकार करता। "जैसा आप कहेंगी वैसा ही होगा। यहाॅ जो भी आपका और गुड़िया का ज़रूरी सामान हो वो ले लीजिए। हम कल सुबह ही निकलेंगे।"

"वैसे तो कोई ज़रूरी सामान यहाॅ नहीं है बेटा।" माॅ ने कहा "बस पहनने वाले हमारे कपड़े ही हैं।"
"और आपके गहने जेवर वगैरा ?" मैंने पूॅछा।
"गहने जेवर मुझ विधवा औरत के किस काम के बेटा?" माॅ ने कहा।
"भइया कल बड़े पापा और बड़ी मां यहां आईं थी।" निधि ने कहा "वो माॅ के सब जेवर उठा ले गईं और बहुत ही बुरा सुलूक किया हमारे साथ। और पता है भइया वो शिवा मुझे गंदे तरीके से छू रहा था। बड़े पापा भी माॅ को बहुत गंदा बोल रहे थे।"

"क् क्या ?????" मेरा पारा एक पल में चढ़ गया। "उन लोगों की ये ज़ुर्रत कि वो मेरी माॅ और बहन के साथ इस नीचता के साथ पेश आएं? छोड़ूॅगा नहीं उन हरामज़ादों को मैं।"
"न नहीं बेटा नहीं।" माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ कर कहा "उनसे उलझने की कोई ज़रूरत नहीं है। वो बहुत ख़राब लोग हैं, हम कल यहाॅ से चले जाएंगे बेटा बहुत दूर।"

माॅ ने मुझे सख़्ती से पकड़ा हुआ था, जबकि मेरी रॅगों में दौड़ता हुआ लहू उबाल मार रहा था। मुझे लग रहा था कि अभी जाऊं और सबको भूॅन कर रख दूॅ।

"मुझे छोंड़ दीजिए माॅ।" मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा "मैं इन कमीनों को दिखाना चाहता हूं कि मेरी माॅ और बहन पर गंदी हरकत करने का अंजाम क्या होता है?"
"न नहीं बेटा तू कहीं नहीं जाएगा।" माॅ ने कहने के साथ ही मेरा दाहिना हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा और कहा "तुझे मेरी क़सम है बेटा। तू उन लोगों से लड़ने झगड़ने का सोचेगा भी नहीं।"

"मुझे अपनी कसम दे कर कायर और बुज़दिल न बनाइए माॅ।" मैंने झुंझला कर कहा "मेरा ज़मीर मेरी आत्मा मर जाएगी ऐसे में।"
"सब कुछ भूल जा मेरे लाल।" माॅ ने रोते हुए कहा "एक तू ही तो है हम दोनों का सहारा। तुझे कुछ हो गया तो क्या होगा हमारा?"

माॅ ने मुझे समझा बुझा कर शान्त कर दिया। मैं वहीं चारपाई पर आॅखें बंद करके लेट गया। जबकि माॅ वहीं एक तरफ खाना बनाने की तैयारी करने लगी और मेरी बहन निधि मेरे ही पास चारपाई में आ कर बैठ गई।

इस वक़्त जहाॅ हम थे वो खेत वाला घर था। घर तो काफी बड़ा था किन्तु यहाॅ रहने के लिए भी सिर्फ एक कमरा दिया गया था। बांकी हर जगह ताला लगा हुआ था। खेतों में काम करने वाले मजदूर इस वक़्त नहीं थे और अगर होंगे भी तो कहीं नज़र नहीं आए। पता नहीं उन लोगों के साथ भी जाने कैसा वर्ताव करते होंगे ये लोग?


ख़ैर जो रूखा सूखा माॅ ने बनाया था उसी को हम सबने खाया और वहीं सोने के लिए लेट गए। चारपाई एक ही थी इस लिए उसमें एक ही ब्यक्ति लेट सकता था। मैंने चारपाई पर माॅ को लिटा दिया हलाॅकि माॅ नीचे ही ज़मीन पर सोने के लिए ज़ोर दे रही थी पर मैं नहीं माना और मजबूरन माॅ को ही चारपाई पर लेटना पड़ा। नीचे ज़मीन पर मैं और निधि एक चादर बिछा कर लेट गए।


कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
mehlo mein rehne wale aaj aisi jindagi jee rahe hai... aur iski wahaj sirf aur sirf woh ajay aur uski family... itne bhukhe log ki apno ko sath bhi aise suluk kare jaise raah chalte bhikhari ho..
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Naina

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अपडेट...........《 04 》

अब तक....

मेरी आॅखों में नींद का कहीं दूर दूर तक नामो निशान न था। यही हाल सबका था। मुझे रह रह कर गुड़िया की बात याद आ रही थी कि बड़े पापा और उनके बेटे ने मेरी माॅ और बहन के साथ गंदा सुलूक किया। इन सब बातों से मेरा ख़ून खौल रहा था मगर माॅ की क़सम के चलते मैं कुछ कर नहीं सकता था।

मगर मैं ये भी जानता था कि माॅ की ये क़सम मुझे कुछ करने से अब रोंक नहीं सकती थी क्योंकि इन सब चीच़ों से मेरा सब्र टूटने वाला था। मेरे अंदर की आग को अब बाहर आने से कोई रोंक नहीं सकता था। मैं अब एक ऐसा खेल खेलने का मन बना चुका था जिससे सबकी तक़दीर बदल जानी थी।


अब आगे..........

दूसरे दिन लगभग आठ बजे। विराज अपनी माॅ गौरी और बहन निधि को लेकर घर से बाहर निकल कर आया ही था कि सामने से उसे एक मोटर साइकिल आती नजर आई।

"फिर आ गया कमीना।" निधि ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा।
"गुड़िया।" माॅ यानि गौरी ने लगभग डाटते हुए निधि से कहा__"ऐसे गंदे शब्द किसी को भी नहीं बोलना चाहिए और वो तो फिर भी तुम्हारा भाई है।"

"माॅ शिवा भइया ने भाई होने का कौन सा फर्ज़ निभाया है?" निधि ने कहा__"और वो हमें अपना समझते ही कहाॅ हैं? उनके लिए तो हम बाजार की रं....।"
"गुड़िया.....।" गौरी जोर से चीखी थी। अभी वह कुछ और भी कहती कि उससे पहले ही उसने देखा कि सामने से मोटर साईकिल से आता हुआ शिवा पास आ गया था। उसने शख्ती से अपने होंठ भींच लिए।

शिवा ने एक एक नज़र उन सब पर डाली और बहुत ही कमीने ढंग से मुस्कुराते हुए बोला__"अरे भाई भी आ गया। वाह भाई वाह लगता है धंधे का समय हो गया है तुम लोगों का। सुबह सुबह दुकान तो सभी खोलते हैं मगर मुझे जरा ये तो बताओ कि तुम लोगो की दुकान किस जगह खुलेगी? वो दरअसल क्या है न कि मैं सोच रहा हूॅ कि तुम लोगों की दुकान की बोहनी मैं ही कर दूॅ अपने कुछ दोस्तों को साथ लाकर।"

शिवा की बातें ऐसी नहीं थी जिनका मतलब उनमें से कोई समझ न सकता था। विराज का चेहरा गुस्से से आग बबूला हो चुका था। उसकी मुट्ठियाॅ कस गई थीं। ये देख गौरी ने फौरन ही अपने बेटे का हाॅथ पकड़ लिया था। उसे पता था कि विराज ये सब सहन नहीं कर सकता और गुस्से में न जाने क्या कर डाले।

"देखो तो कैसे फड़फड़ा रहा है भाई।" विराज को गुस्से में उबलता देख शिवा ने चहकते हुए कहा__"अरे ठंड रख भाई ठंड रख। तुम्हारे इस धंधे में इसकी कोई जरूरत नहीं है। बल्कि इस धंधे में तो बडे प्यार और धैर्य की ज़रूरत होती है। ज़बान में शहद सी मिठास डालनी होती है जिससे ग्राहक को लुभाया जा सके। ख़ैर छोंड़ो ये बात..सब सीख जाओगे भाई। धीरे धीरे ही सही मगर धंधा करने का तरीका आ ही जाएगा। अच्छा ये तो बता दो यार कि अपनी माॅ बहन को लेकर किस जगह दुकान खोलने वाले हो?"

"आपको ज़रा भी शर्म नहीं आती भइया ऐसी बातें कहते हुए।" निधि ने रुॅधे गले से कहा__"आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि हम आपके अपने हैं और आप अपनों के लिए ही ऐसा बोल रहे हैं?"
"अलेलेलेले।" शिवा ने पुचकारते हुए कहा__"मेरी निधि डार्लिंग ये कैसी बातें कह रही है? मैं तो अपना समझ कर ही ऐसा बोल रहा हूॅ। तुम सबका भला चाहता हूॅ तभी तो चाहता हूॅ कि तुम्हारी दुकान की बोहनी सबसे पहले मैं ही करूॅ।"

इससे पहले कि कोई कुछ और बोल पाता शिवा मोटर साईकिल से नीचे औंधा पड़ा नज़र आया। उसके मुह से खून की धारा बहने लगी थी। किसी को समझ ही नहीं आया कि पलक झपकते ही ये कैसे हो गया। गौरी और निधि हैरत से आंखें फाड़े शिवा को देखने लगी थी। होश तब आया जब फिज़ा में शिवा की चीखें गूॅजने लगी थी। दरअसल शिवा की अश्लीलतापूर्ण बातों से विराज ने गुस्से से अपना आपा खो दिया था और माॅ के हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर शिवा पर टूट पड़ा था। गौरी को तो पता भी नहीं चला था कि विराज ने उसके हाथ से अपना हाथ कब छुड़ाया और कब वह शिवा की तरफ झपटा था?

उधर शिवा की दर्दनाक चीखें वातावरण में गूॅज रही थी। विराज बुरी तरह शिवा की धुनाई कर रहा था। ऐसा नही था कि शिवा कमजोर था बल्कि वह खुद भी तन्दुरुस्त तबियत का था किन्तु विराज मासल आर्ट में ब्लैक बैल्ट होल्डर था। शिवा उसे छू भी नही पा रहा था जबकि विराज उसे जाने किस किस तरह से मारे जा रहा था। गौरी और निधि मुह और आखें फाड़े देखे जा रही थी। निधि की खुशी का तो कोई ठिकाना ही न था। उसने ऐसी मार धाड़ भरी फाइटिंग फिल्मों में ही देखी थी और आज तो उसका अपना सगा बड़ा भाई खुद ही किसी हीरो की तरह फाईटिंग कर रहा था। उसका मन कर रहा था कि वह ये देख कर खुशी से नाचने लगे किन्तु माॅ के रहते उसने अपने जज़्बातों को शख्ती से दबाया हुआ था।

"न नहीं.....।" अचानक ही गौरी चीखी, उसे जैसे होश आया था। दोड़ कर उन दोनो के पास पहुॅची वह और विराज को पकड़ने लगी__"छोंड़ दे बेटा उसे। भगवान के लिए छोंड़ दे। वो मर जाएगा तुझे मेरी कसम छोंड़ दे उसे।"

माॅ की कसम सुनते ही विराज के हाथ पाॅव रुक गए। मगर तब तक शिवा की हालत ख़राब हो चुकी थी। लहूलुहान हो चुका था वह। जिस्म का ऐसा कोई हिस्सा नही बचा था जहाॅ से खून और चोंट न नज़र आ रही हो। अधमरी सी हालत में वह जमीन पर पड़ा था। मुह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी शायद बेहोश हो चुका था वह।

विराज के रुकते ही गौरी ने जाने किस भावना के तहत विराज के दोनो गालों पर थप्पड़ों की बरसात कर दी।

"ये तूने क्या किया, तू इतना क्रूर और निर्दयी कैसे हो गया?" गौरी रोए जा रही थी__"क्या मैंने तुझे यही संस्कार दिए थे कि तू किसी को इस तरह क्रुरता से मारे?"



कहानी जारी रहेगी,,,,,,,,,
"ये इसी लायक था माॅ।" माॅ का मारना जब रुक गया तो विराज कह उठा, उस पर गुस्सा अब भी विद्यमान था बोला__"इसने आपको और मेरी गुड़िया को कितना गंदा बोला था माॅ। किसी के सामने इतना भी नहीं झुक सकता मैं। मेरे सामने कोई आपको और गुड़िया को ऐसी सोच के साथ अपशब्द कहे मैं हर्गिज भी बरदास्त नहीं करूॅगा। मैं ऐसी गंदी जुबान बोलने वाले का किस्सा ही खतम कर दूॅगा।"

"ये तूने ठीक नहीं किया बेटे।" गौरी की आखें नम थी__"उसकी हालत तो देख। ऐसी हालत में उसे जब उसके माॅ बाप देखेंगे तो वो चैन से नहीं बैठेंगे।"
"क्या करेंगे वो?" विराज के लहजे मे पत्थर सी कठोरता थी__"मैं किसी से नहीं डरता। जिसे जो करना है करे अब मैं भी पीछे हटने वाला नहीं हूॅ माॅ और.....और आप भी अब मुझे अपनी कसम देकर रोकेंगी नहीं। हर बार आपकी कसम मुझे कुछ भी करने से रोंक लेती है। आपको ये एहसास भी नहीं है माॅ कि उस हालत में मुझ पर क्या गुज़रती है? मुझे खुद से ही नफरत होने लगती है माॅ। मैं अपने आपसे नज़रें नहीं मिला पाता। मुझे ऐसे बंधन में मत बाॅधा कीजिए माॅ वरना मैं जी नहीं पाऊॅगा।"

"नहीं मेरे बच्चे।" गौरी उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ी__"ऐसा मत कह मैं माॅ हू तेरी। तुझे कुछ हो न जाए इस लिए डर कर तुझे अपनी कसम में बाॅध देती हूॅ। मुझे माफ कर दे मेरे लाल, मैं जानती हूॅ कि मेरा बेटा एक सच्चा मर्द है। मेरी कसम में बॅध कर तेरी मरदानगी व खुद्दारी को चोंट लगती है। मगर, मैं तेरे पिता और अपने सुहाग को खो चुकी हूॅ अब तुझे नहीं खोना चाहती। तू हम दोनो मां बेटी का एक मात्र सहारा है बेटा। इस दुनिया में कोई हमारा नहीं है।"

"मुझे कुछ नहीं होगा माॅ।" विराज ने माॅ के सीने से अलग हो कर तथा अपने दोनों हाथों से मां का मासूम सा चेहरा सहलाते हुए बोला__"इस दुनिया की कोई भी ताकत मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अब समय आ गया है ऐसे बुरे लोगों को उनके किये की सज़ा देने का।"

"ये तू क्या कह रहा है बेटा ?" गौरी के चेहरे पर न समझने वाले भाव उजागर हो उठे__"नही नही, हमें किसी को कोई सज़ा नहीं देना है बेटा। हम यहाॅ अब एक पल भी नहीं रुकेंगे। इससे पहले कि शिवा की हालत के बारे में किसी को कुछ पता चले हमें यहाॅ से निकल जाना चाहिए।"

"माॅ सही कह रही हैं भइया।" निधि ने भी पास आते हुए कहा__"अब हमें यहाॅ एक पल भी नहीं रुकना चाहिए। आप नहीं जानते हैं हम लोगों की पल पल की ख़बर बड़े पापा को होती है और इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें अब तक ये न पता चल गया हो कि यहाॅ क्या हुआ है?"

"हाॅ बेटा चल जल्दी चल यहा से।" गौरी ने घबराते हुए कहा__"उनका कोई भरोसा नहीं है कि वो कब यहा आ जाएं।"
"मैं भी देखना चाहता हूं माॅ कि बड़े पापा क्या कर लेंगे मेरा और आप दोनों का?" विराज ने कहा__"बहुत हो गया अब। वो समझते होंगे कि हम उनसे डरते हैं। आज मैं उन्हें दिखाऊंगा कि मैं कायर और डरपोंक नहीं हूॅ। अब तक इस लिए चुप था क्योंकि आपने मुझे अपनी कसम से बाॅधे रखा था। मगर अब और नही माॅ, मैं कायर और डरपोंक नहीं बन सकता। मेरा ज़मीर मुझे चैन से जीने नहीं देगा। क्या आप चाहती हैं माॅ कि मैं घुट घुट कर जिऊॅ?"

"नहीं मेरे लाल।" गौरी मानो तड़प उठी, बोली__"मैं ये कैसे चाह सकती हूं भला कि मेरे जिगर का टुकड़ा मेरी आॅखों का नूर यूॅ घुट घुट कर जिये वो भी सिर्फ मेरी वजह से? मगर तू तो जानता है बेटा कि मै एक माॅ हूं, दुनिया की कोई भी माॅ ये नहीं चाहती कि उसके लाल के ऊपर किसी भी तरह का कोई संकट आए।"

"फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने कहा__"आपका प्यार और आशीर्वाद इतना कमज़ोर नहीं है जिससे कोई बला मुझे किसी तरह का नुकसान पहुॅचा सके।"
"बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है तू तो।" गौरी ने विराज के चेहरे को अपने दोनो हाथों में लेकर कहा__"लगता है मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है।"

"हाॅ माॅ, भइया अब बहुत बड़े हो गए हैं।" निधि ने मुस्कुराते हुए कहा__"और इतना ही नहीं मेरे भइया किसी सुपर हीरो से कम नहीं हैं। मेरे अच्छे और प्यारे भइया।" कहने के साथ ही निधि विराज की पीठ से चिपक गई।
"ये कितना ही बड़ा हो गया हो गुड़िया।"गौरी ने कहा__"मगर मेरे लिए तो ये आज भी मेरा छोटा सा बच्चा ही है।"

"और मैं?" निधि ने विराज की पीठ से चिपके हुए ही शरारत से कहा।
"तू तो हम सबकी छोटी सी गुड़िया है।" विराज ने कहा और उसे अपनी पीठ से खींच कर गले से लगा लिया। ये देख गौरी की आखें भर आईं।

"ऐसे ही तुम दोनो भाई बहन में स्नेह और प्यार बना रहे मेरे बच्चों।"गौरी ने अपनी छलक आई आखों को अपने आॅचल के छोर से पोंछते हुए कहा__"मगर इस स्नेह और प्यार में अपनी इस अभागन माॅ को न भूल जाना तुम दोनो।"



कहानी जारी रहेगी,,,,,,,
yahan pe viraj ne galti kar di... wo bhi bahot badi.. actually us shiva ko jaan se maar daalna chahiye tha on the spot.. . pehle viraj ush shiva ko wahan jaan se maar deta phir thodi bahot planning kar haweli mein chupke se ghuske ajay, pratima aur unki dono betiyon ko bhi jaan se maar deta toh saara kissa hi khatam ho jata... see.. ab kaise gaon chhod ke jana par rah hai apne maa aur bahan ke sath..
shahar aake ek alag hi twist diya viraj ne.. matlab badla lega par kuch alag tarike se..
Brilliant update with awesome writing skill Shubham ji :applause: :applause:
 

Siraj Patel

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Hello Everyone :hello:

We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC).

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..


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The_InnoCent

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Kyun na yeh kahani aaj phir se padhi jaaye . phir se kuch purani yaadon ko taza ki jaaye...

Ek yahin toh great one thi.. :love: inki samne baaki ke kirdaar chai kam pani the
maana ki sabhi kirdaar ek se badhkar ek the.. apne apme bemisaal the..par kirdaar naina best thi :D
:yikes:
Naina ki vajah se hi fasaad hua aur naina ki vajah se hi story ka next part close hua. Naina bahut buri hai shayad,,,,,:beee:
 

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