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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Naughtyrishabh

Well-Known Member
9,684
29,045
218
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,

भाई सोचा तो मैने भी यही था कि इसे इग्लिश फाॅन्ट में लिखूॅ लेकिन मुझे खुद मज़ा नहीं आता उस तरह में। हिन्दी में लिखने का और पढ़ने का आनन्द ही कुछ और है,,,,,

अपडेट दे दिया है,,,,,,
पेज नंबर 263पर,


बिलकुल सही फरमाया भाई आपने ।
अपनी हिंदी की बात ही निराली है
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,281
304
Shubham ji ye kya tha.... arre jab biraj ki bidhi aur ritu milneki bari ayi... update khatam....ye bilkul achhi baat nahi hai......
waise ye update bhi bohat bahiya tha... jaise ki,, sirf khoon ka rista hi nahi, dil ka rista bhi jindgi me kitni aham hai, waise ye bohat najuk dori se bandhi hoti hai, par Insaan ke upor hai ki woh ise aur majhbut banaye ya ise aur najuk kar de.. ya tod de....... yeaha biraj ne ise itna majhbut banaya ki kabhi tute na... yeh cheej bohat achhe tarike se apne darshaya hai..dost to bohat milenge..... par sachhi dosti nashib walo ko hi milta ya milti hai.... jaise biraj ko Pawan ke rup me..... aur Pawan ko biraj ke rup me... ye bhi bohat hi achhe se explanation di hai apne....
hmm..... par agli update me biraj ko bidhi ke shath, shath uski ritu didi se milwa dijiyega....
Btw brilliant update......
 

Raj

Well-Known Member
4,444
15,224
158
SUPERB AWESOME FANTASTIC MINDBLOWING SHAANDAAR LOVELY INTERESTING AND EMOTIONAL UPDATE BHAI
 

Rowdy

Member
268
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108
एक नया संसार

अपडेट........《 44 》

अब तक,,,,,,,

टैक्सी ड्राइवर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कि वो हमसे पैसा भी नहीं ले रहा था। एक ही बात बोल रहा था कि हम उसे जाने दें। वो हमारी कोई भी बात कभी भी किसी से नहीं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ैर, हम लोगों को उतार कर उसने टैक्सी को वहीं पर किसी तरह बैक करके वापसी के लिए मोड़ा और वहाॅ से चंपत हो गया। मुझे यकीन था कि वो रास्ते में कहीं भी रुकने वाला नहीं था।

पवन के घर के अंदर जैसे ही हम तीनो आए तो पवन ने जल्दी से घर का मुख्य दरवाजा बंद कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पवन सिंह मेरे बचपन का दोस्त था। ग़रीब था और बिना बाप का था। उससे बड़ी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी मुहबोली बहन थी। वो मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इसकी वजह ये थी कि पवन के पास रुपये पैसे की तंगी थी। आजकल लोग दहेज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पवन की माॅ बयालिस साल की विधवा औरत थी। किन्तु स्वभाव से बहुत अच्छी थी। वो मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करती थी।

हम लोग चलते हुए बैठक में पहुॅचे और वहाॅ एक तरफ किनारे पर रखी एक चारपाई पर बैठ गए। जबकि पवन अंदर की तरफ चला गया था। आदित्य इधर उधर बड़े ग़ौर से देख रहा था। कदाचित ये देख रहा था कि यहाॅ गाॅव में कच्चे खपरैलों वाले मकान बने हुए थे। जबकि उसने आज तक ऐसे मकान सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे कभी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उधर अजय सिंह, प्रतिमा और शिवा अपने नये फार्महाउस में पहुॅच चुके थे। तीनों के चेहरे खिले हुए थे। ये सोच कर कि बहुत दिनों बाद कुछ अच्छा सुनने को मिला था उन्हें। जिनकी तलाश में खुद अजय सिंह और उसके आदमी जाने कहाॅ कहाॅ भटक रहे थे वो खुद ही चल कर यहाॅ आया और उसके आदमियों के द्वारा बहुत जल्द उसे पकड़ कर उसके सामने उसे हाज़िर कर दिया जाएगा। उसके बाद वो जैसे चाहेगा वैसे विराज के साथ सुलूक कर सकेगा।

"डैड मैने तो सोच लिया है कि मैं क्या क्या करूॅगा?" फार्महाउस के अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर बैठे शिवा ने कहा___"उस विराज के हाथ लगते ही बाॅकी के जब सब भी हमारे पास आ जाएॅगे तब मैं अपनी मनपसंद चीज़ों का जी भर के मज़ा लूटूॅगा। सबसे पहले तो उस हरामज़ादी करुणा को पेलूॅगा वो भी उसके पति के सामने। उसी की वजह से चाचा ने मुझे कुत्ते की तरह धोया था। इस फार्महाउस पर सब औरतों और उनकी लड़कियों को नंगा करूॅगा मैं।"

"चिंता मत करो बेटे।" अजय सिंह ने शिगार को सुलगाते हुए कहा___"जो कुछ तू सोचे बैठा है न वही सब मैने भी सोचा हुआ है। बहुत तरसाया है इन लोगों ने मुझे। सबसे ज्यादा उस कमीनी गौरी ने। पता नहीं क्यों पर उससे दिल लग गया था बेटा। मैं चाहता था कि वो अपने मन से अपना सब कुछ मुझे सौंप दे, इसी लिए तो कभी उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं की थी मैने। मगर अब नहीं। अब तो बलात्कार होगा बेटे। ऐसा बलात्कार कि दुनियाॅ में उसके बारे में किसी ने ना तो सोचा होगा और ना ही सुना होगा कहीं। इस फार्महाउस में उन दोनो औरतों को और उन दोनो लड़कियों को जन्मजात नंगी करके दौड़ाऊॅगा।"

"अभी दो लड़कियों को आप भूल रहे हैं डैड।" शिवा ने कमीनी मुस्कान के साथ कहा___"आपकी दोनो लड़कियाॅ और मेरी प्यारी प्यारी मगर मदमस्त बहनें।"
"उनका नंबर भी आएगा बेटे।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली___"मगर इन लोगों के बाद। पहले इन लोगों के साथ तो मज़े कर लें। इन सबको इतना बजाएॅगे कि सब की सब साली पनाह माॅग जाएॅगी। उसके बाद इन सबको रंडियों के बाज़ार में ले जाकर मुफ़्त में बेंच देंगे।"

"ये सही सोचा है डैड।" शिवा ने ठहाका लगाते हुए कहा___"रंडियों के बाज़ार में बेंचने से ये सब जीवन भर लोगों को मज़ा देती रहेंगी। लेकिन डैड मेरी बहनों को मत बेंच देना। वो सिर्फ हमारी रंडियाॅ बन कर रहेंगी जीवन भर। हम दोनो ही उनके सब कुछ रहेंगे।"

"सही कहा बेटे।" अजय सिंह ने कहा__"हम अपनी बेटियों को नहीं बेचेंगे। वो तो हमारी ही रंडियाॅ बन कर रहेंगी अपनी माॅ के साथ। क्या कहती हो डार्लिंग?"

अंतिम वाक्य अजय सिंह ने चुपचाप बैठी प्रतिमा को देख कर कहा था। प्रतिमा जो इतनी देर से बाप बेटे की बातें सुन कर मन ही मन हैरान और चकित हो रही थी वो अचानक ही अजय सिंह के इस प्रकार कहने पर चौंक पड़ी थी। तुरंत उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। बल्कि अजीब भाव से वो दोनो बाप बेटों को देखती रह गई थी। ये देख कर अजय सिंह और शिवा दोनो ही ठहाका लगा कर हॅस पड़े थे।

"क्या हुआ प्रतिमा?" अजय सिंह हॅसने के बाद बोला___"किन ख़यालों में गुम हो भई? हमारी बातों पर ध्यान नहीं है क्या तुम्हारा?"
"मैं तुम दोनो की तरह ख़याली पुलाव नहीं बनाती अजय।" प्रतिमा ने खुद को सम्हालते हुए कहा___"मुझे इस सबमें खुशी तब होगी जब ऐसा सचमुच में होता हुआ अपनी ऑखों से देखूॅगी।"

"अरे ज़रूर देखोगी मेरी जान।" अजय सिंह ने हॅसते हुए कहा___"और बहुत जल्द देखोगी। बस कुछ ही देर की बात है। मेरे आदमी उस हराम के पिल्ले को घसीटते हुए लाते ही होंगे। उसके आने के बाद उसके बाॅकी चाहने वालों को भी बहुत जल्द आना पड़ेगा मेरे पास।"

"इसी लिए तो चुपचाप उसके आने के इन्तज़ार में बैठी हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा___"ज़रा फोन करके पता तो करो कि तुम्हारे आदमी उसे लिये कहाॅ तक पहुॅचे हैं अभी? अपने आदमियों से कहो कि ज़रा जल्दी आएॅ यहाॅ।"

"जो हुकुम डार्लिंग।" अजय सिंह ने शिगार को ऐश ट्रे में मसलते हुए कहा___"मैं अभी भीमा को फोन करता हूॅ और उसे बोलता हूॅ कि भाई जल्दी लेकर आ उस हरामज़ादे को।"


कहने के साथ ही अजय सिंह ने अपने कोट की जेब से मोबाइल निकाला और उस पर भीमा का नंबर डायल कर मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर उसे अपने कान में ये वाक्य सुनाई दिया कि___"आपने जिस एयरटेल नंबर पर फोन लगाया है वो इस वक्त उपलब्ध नहीं है या अभी बंद है।"

ये वाक्य सुनते ही अजय सिंह का दिमाग़ घूम गया। उसने काल को कट करके फिर रिडायल कर दिया मगर फिर से उसे कानो में वही वाक्य सुनाई दिया। अजय सिंह कई बार भीमा के नंबर पर फोन लगाया मगर हर बार वही वाक्य सुनने को मिला उसे।

"क्या हुआ डैड?" शिवा जो अजय सिंह की ही तरफ देख रहा था बोल उठा___"क्या भीमा का नंबर नहीं लग रहा?"
"हाॅ बेटे।" अजय सिंह ने सहसा कठोर भाव से कहा___"इन सालों को कभी अकल नहीं आएगी। ऐसे समय में भी साले ने फोन बंद करके रखा हुआ है।"

"तो किसी दूसरे आदमी को फोन लगा कर पता कीजिए डैड।" शिवा ने मानो ज्ञान दिया।
"हाॅ वही कर रहा हूॅ।" अजय सिंह ने नंबरों की लिस्ट में मंगल का नंबर खोज कर उसे डायल करते हुए कहा।

मंगल का नंबर डायल करने के बाद उसने मोबाइल को कान से लगा लिया। मगर इस नंबर पर भी वही वाक्य सुनने को मिला उसे। अब अजय सिंह का भेजा गरम हो गया। फिर जैसे उसने खुद के गुस्से को सम्हाला और अपने किसी अन्य आदमी का नंबर डायल किया। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात वाला। कहने का मतलब ये कि अजय सिंह ने एक एक करके अपने सभी आदमियों का नंबर डायल किया मगर सबक सब नंबर या तो उपलब्ध नहीं थे या फिर बंद थे।

अजय सिंह को इस बात ने हैरान कर दिया और वह सोचने पर मजबूर हो गया कि ऐसा कैसे हो सकता है? ये तो उसे भी पता था कि उसके आदमी इतने लापरवाह हो ही नहीं सकते क्योंकि सब उससे बेहद डरते भी थे। किन्तु इस वक्त सभी के नंबर बंद होने की वजह से उसका माथा ठनका। मन में एक ही विचार आया कि कुछ तो गड़बड़ है। किसी गड़बड़ी के अंदेशे ने अजय सिंह को एकाएक ही चिंता और परेशानी में डाल दिया।

"क्या बात है अजय?" सहसा प्रतिमा उसके चेहरे के बदलते भावों को देखते हुए बोल पड़ी___"ये अचानक तुम्हारे चेहरे पर चिन्ता व परेशानी के भाव कैसे उभर आए?"
"बड़ी हैरत की बात है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा___"मैने एक एक करके अपने सभी आदमियों को फोन लगा कर देख लिया, मगर उनमें से किसी का भी फोन नहीं लग रहा। सबके सब बंद बता रहे हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा ने भी हैरानी से कहा___"एक साथ सबके फोन कैसे बंद हो सकते हैं? कुछ तो बात ज़रूर है। हमें जल्द से जल्द इस सबका पता लगाना चाहिए डैड।"

"शिवा सही कह रहा है अजय।" प्रतिमा ने कहा___"हमारे आदमी इतने लापरवाह नहीं हो सकते कि ऐसे माहौल में वो सब अपना फोन ही बंद कर लें। ज़रूर कोई बात हुई है। वरना अब तक तो उनमें से किसी ने तुम्हें फोन करके ये ज़रूर बताया होता कि उन लोगों ने विराज को अपने कब्जे में ले लिया है और अब वो सीधा यहीं आ रहे हैं। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ अब तक। इसका मतलब साफ है कि कोई गंभीर बात हो गई है।"

"मुझे भी ऐसा ही लगता है।" अजय सिंह ने चिंतित भाव से कहा___"कोई तो बात हुई है। मगर सवाल ये है कि ऐसी क्या बात हो सकती है भला? उन पर किसी प्रकार के संकट के आने का सवाल ही नहीं है क्योंकि वो खुद भी कई सारे एक साथ थे और खुद दूसरों के लिए संकट ही थे।"

"असलियत का पता तो तभी चलेगा अजय जब तुम इस सबका पता करने यहाॅ से जाओगे।" प्रतिमा ने कहा___"यहाॅ पर बातों में समय गवाॅने का कोई मतलब नहीं है।"
"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" शिवा ने कहा__"हमें तुरंत ही इस सबका पता लगाने के लिए यहाॅ से निकलना चाहिए। वरना कहीं ऐसा न हो कि हम जिस सुनहरे मौके की बात कर रहे थे वो हमारे हाॅथ से निकल जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट।" अजय सिंह ने कहा__"चलो चल कर देखते हैं कि क्या बात हो गई है?"
"तुम दोनो जाओ।" प्रतिमा ने कहा__"मैं यहीं पर तुम दोनो का इंतज़ार करूॅगी।"

प्रतिमा की बात खत्म होते ही दोनो बाप बेटे सोफों से उठ कर बाहर की तरफ चल दिये। बाहर आकर अजय सिंह अपनी कार का ड्राइविंग डोर खोल कर उसमें बैठ गया, जबकि शिवा उसके बगल वाली शीट पर बैठ गया। कार को स्टार्ट कर अजय सिंह ने कार को झटके से आगे बढ़ा दिया। उसकी कार ऑधी तूफान बनी सड़कों पर घूमने लगी थी।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर पवन के घर में मैं और आदित्य नहा धो कर फ्रेश हो गए थे और अब हम सब खाना खाने के लिए बैठे हुए थे। पवन ने अपनी माॅ और बहन दोनो की मेरे आने का पहले ही बता दिया था। बस ये नहीं बताया था कि उसने मुझे यहाॅ किस लिए बुलाया था? उनसे यही कहा था कि मैं बस घूमने आया हूॅ।

पवन की माॅ को मैं भी माॅ ही बोलता था शुरू से ही। मेरी नज़र में माॅ से बड़ा और पवित्र रिश्ता कोई नहीं हो सकता था। वो मुझे शुरू से ही बहुत चाहती थी और प्यार व स्नेह देती थीं। पवन की बहन आशा दीदी मुझसे और पवन से उमर में बड़ी थी। उनका स्वभाव पिछले कुछ सालों तक हॅस मुख और चंचल था किन्तु अब वो ज्यादा किसी से बात नहीं करती थी। उनके चेहरे पर हर वक्त गंभीरता विद्यमान रहती थी। इसकी वजह समझना कोई बड़ी बात नहीं थी। हर कोई समझ सकता था कि उनके स्वभाव में ये तब्दीली किस वजह से आई हुई थी।

खाना पीना से फुर्सत होकर हम सब बाहर बैठक में आ गए। मेरे मन में इस वक्त कुछ और ही चल रहा था। इस लिए मैं बैठक से उठ कर अंदर माॅ के पास चला गया। मैने देखा माॅ और आशा दीदी हम लोगों की खाई हुई थालियाॅ ऑगन में एक जगह रख रही थी।

मुझे ऑगन में आया देख माॅ के होठों पर मुस्कान आ गई। आशा दीदी भी मुझे देख कर हल्का सा मुस्कुराई। फिर वो वहीं पर बैठ कर थालियाॅ धोने लगी। जबकि माॅ मेरे पास आ गईं।

"चल आजा मेरे साथ।" माॅ एक तरफ को बढ़ती हुई बोली___"मुझे पता है तुझे मेरी गोंद में सिर रख कर सोना है। कितना समय हो गया मैने भी तुझे वैसा प्यार और स्नेह नहीं दिया। वक्त और हालात ऐसे बदल जाएॅगे ऐसा कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था। बुरे लोगों का एक दिन ज़रूर नाश होता है बेटा। बस थोड़ा समय लग जाता है। अजय सिंह को उसके बुरे कर्मों की सज़ा ईश्वर ज़रूर देगा।"

माॅ ये सब बड़बड़ाती हुई अंदर कमरे मे आ गईं। मैं भी उनके पीछे पीछे आ गया था। कमरे में रखी चारपाई पर माॅ पालथी मार कर बैठ गईं और फिर मेरी तरफ देख कर मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं खुशी से उनके पास गया और चारपाई के नीचे ही उकड़ू बैठ कर अपना सिर उनकी गोंद में रख दिया।

"अरे नीचे क्यों बैठ गया बेटे?" माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा___"ऊपर आजा और फिर ठीक से वैसे ही लेट जा जैसे पहले लेट जाया करता था मेरी गोंद में।"
"नहीं माॅ, मैं ऐसे ही ठीक हूॅ।" मैने सिर उठाकर उनकी तरफ देखते हुए बोला__"मुझे आपसे कुछ बात करनी है माॅ।"

"हाॅ तो कह ना।" माॅ ने मेरे चेहरे को एक हाथ से सहलाया___"तुझे कोई भी बात करने के लिए मुझसे पूछने की क्या ज़रूरत है? ख़ैर, बता क्या बात करना है तुझे?"
"सबसे पहले ये बताइये कि मैं आपका बेटा हूॅ कि नहीं?" मैने माॅ के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा।

"ये कैसा सवाल है बेटा?" माॅ के चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे___"तू तो मेरा ही बेटा है। जैसे पवन मेरा बेटा है वैसे ही तू भी मेरा बेटा है।"
"अगर मैं आपका बेटा हूॅ तो मुझे भी आपका बेटा होने का हर फर्ज़ निभाना चाहिए न?" मैने भोलेपन से कहा था।

"ये तो बेटों की सोच और समझदारी पर निर्भर करता है बेटा।" माॅ ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा___"कि वो अपने माता पिता व परिवार के लिए कैसा विचार रखते हैं? पर हाॅ नियम और संस्कार तो यही कहते हैं कि हर ब्यक्ति को अपना कर्तब्य व फर्ज़ सच्चे दिल से निभाना चाहिए। जैसे माता पिता अपने बच्चों के लिए हर फर्ज़ सच्चे दिल से निभाते हैं।"

"मैं और तो कुछ नहीं जानता माॅ।" मैने कहा___"लेकिन इतना ज़रूर समझता हूॅ कि एक बेटे को हमेशा ऐसा काम करना चाहिए जिससे कि उसके माता पिता को अपने उस बेटे पर गर्व हो। वो अपने बेटे के हर काम से खुश हो जाएॅ। इस लिए माॅ, मैं भी अब वो फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है बेटा।" माॅ ने खुश होते हुए कहा___"तुम्हें ऐसा करना भी चाहिए। मुझे खुशी है कि तूने इतनी मुश्किलों और परेशानियों में भी अपने अच्छे संस्कारों का हनन नहीं होने दिया। तू अब बड़ा हो गया है, इस लिए तुझे अब अपने कर्तब्यों और फर्ज़ों की तरफ ध्यान देना चाहिए। तेरी माॅ और बहन ने बहुत दुख दर्द झेला है बेटा। मैं चाहती हूॅ कि तू उन्हें हमेशा खुश रखे।"

"वो दोनो अब खुश ही हैं माॅ।" मैने कहा__"लेकिन मैं अब अपनी दूसरी माॅ का बेटा होने का भी फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ।"
"क्या मतलब?" माॅ ने मेरी इस बात से हैरान होकर मेरी तरफ देखा___"ये तू क्या कह रहा है बेटा?"

"हाॅ माॅ।" मैने कहा___"आप मेरी दूसरी माॅ ही तो हैं और मैं आपका बेटा हूॅ। इस लिए मैं आपका बेटा होने का फर्ज़ निभाना चाहता हूॅ। आशा दीदी की शादी बड़े धूमधाम से किसी बड़े घर में किसी अच्छे लड़के के साथ करना चाहता हूॅ। आज आशा दीदी के मुरझाए हुए चेहरे को देख कर मुझे कितनी तक़लीफ़ हुई ये मैं ही जानता हूॅ माॅ। कितनी बदल गई हैं वो, हर समय बिंदास और चंचल रहने वाली मेरी आशा दीदी ने आज खुद को गहन उदासी और गंभीरता की चादर में ढॅक कर रख लिया है। मैं उन्हें इस तरह नहीं देख सकता माॅ। वो मेरी सबसे प्यारी बहन हैं। मैं चाहता हूॅ कि उनके चेहरे पर फिर से पहले जैसी चंचलता और खुशियाॅ हों। इस लिए माॅ, मैने फैंसला कर लिया है कि अब मैं वही करूॅगा जो मुझे करना चाहिए।"

"पर बेटा ये सब....।" माॅ ने कुछ कहना चाहा मगर मैने उनकी बात काट कर कहा__"मैं आपकी कोई भी बात नहीं सुनूॅगा माॅ। अगर आप मुझे सच में अपना बेटा मानती हैं तो मुझे मेरा फर्ज़ निभाने से नहीं रोकेंगी।"


मेरी इस बात से माॅ मुझे देखती रह गईं। उनकी ऑखों में ऑसूॅ भर आए थे। मैने उठ कर माॅ को अपने से छुपका लिया और फिर बोला___"आप खुद को दुखी मत कीजिए माॅ। देख लेना, आपका ये बेटा सब कुछ ठीक कर देगा।"

"मुझे खुशी है कि तू मेरा बेटा है।" माॅ ने मुझसे अलग होकर मेरे माथे पर हल्के से चूमते हुए कहा___"लेकिन बेटा तुझे अंदाज़ा नहीं है कि शादी ब्याह में कितना रूपया पैसा खर्च करना पड़ता है। तेरे पास भला इतना रुपया पैसा कहाॅ से आएगा कि तू अपनी दीदी की शादी कर सके?"

"आपके इस बेटे के पास इतना पैसा है माॅ कि वो चाहे तो पूरे हल्दीपुर को खड़े खड़े खरीद ले।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"जिस मिल्कियत को पाने के लिए मेरे बड़े पापा ने हमारे साथ ये सब किया है न उससे कहीं ज्यादा मेरे पास आज के समय में मिल्कियत है।"

"क्या????" माॅ की ऑखें आश्चर्य से फट पड़ी थी, फिर सहसा अविश्वास भरे भाव से बोली___"पर बेटा तेरे पास इतना पैसा कहाॅ से आ गया?"
"सब कुदरत के करिश्मे हैं माॅ।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"भगवान अगर किसी को दुख तक़लीफ़ें देता है तो एक दिन उसे उस दुख तक़लीफ़ से मुक्त भी कर देता है। मेरे अपनों ने मेरे साथ क्या किया ये तो आप जानती हैं माॅ मगर किसी ग़ैर ने अपना बन कर मेरे लिए क्या किया ये आप नहीं जानती हैं। वो ग़ैर मेरे लिए फरिश्ता क्या बल्कि भगवान बन कर आया और आज मुझे हर दुख दर्द से मुक्त कर दिया।"

"ये तू क्या कह रहा है बेटा?" माॅ ने गहन आश्चर्य के साथ कहा___"मेरी समझ में तेरी ये बातें नहीं आ रही।"

मैने माॅ को संक्षेप में सारी कहानी बताई। उन्हें बताया कि मुम्बई में मैं जिस मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था उस कंपनी के मालिक जगदीश ओबराय मुझसे प्रभावित होकर मुझे क्या क्या काम दिया और फिर कैसे उनके दिल में मेरे लिए प्यार और स्नेह जागा। कैसे उन्होंने मुझे अपना बेटा बना लिया और फिर कैसे उन्होंने अपनी सारी प्रापर्टी जो करोड़ों अरबों में थी उसे मेरे नाम कर दिया और आज मैं अपनी माॅ और बहन के साथ उनके ही अलीशान बॅगले में रहता हूॅ। मैने माॅ को ये भी बताया कि कुछ दिन पहले अभय चाचा भी मुझे ढूॅढ़ते हुए वहाॅ पहुॅचे थे। पवन के बताने पर मैं उनको रेलवे स्टेशन से अपने बॅगले में ले गया और अब वो भी मेरे साथ ही वहाॅ पर हैं। सारी बातें सुनने के बाद माॅ मुझे इस तरह देखने लगी थी जैसे मेरे सिर पर अचानक ही उन्हें दिल्ली का कुतुब मीनार खड़ा हुआ नज़र आने लगा हो।

"अब आपका ये बेटा करोड़ क्या बल्कि अरबपति है माॅ।" मैने माॅ को उनके कंधों से पकड़ते हुए कहा___"इस लिए आप इस बात की बिलकुल भी चिंता मत कीजिए कि आशा दीदी की शादी मैं कैसे क पाऊॅगा?"
"भगवान का लाख लाख शुकर है बेटा कि उसने तुझ पर इतनी अनमोल कृपा की।" माॅ ने खुशी से छलक आई अपनी ऑखों को पोंछते हुए कहा___"दिन रात मैं यही सोचती रहती थी कि किस हाल में होगा तू वहाॅ पर और किस तरह तू अपनी माॅ बहन को अपने साथ रखा हुआ होगा? मगर तेरी ये बातें सुन कर मेरे मन का बोझ हल्का हो गया है। मेरा बेटा इतना बड़ा आदमी बन गया है इससे ज्यादा खुशी की बात एक माॅ के लिए क्या हो सकती है?"

"सब आपकी दुवाओं और आशीर्वाद का फल है माॅ।" मैने कहा___"माॅ की दुवाओं में बहुत असर होता है। भगवान माॅ की दुवाओं को कभी विफल नहीं होने दे सकता।"

मेरी ये बात सुनकर माॅ ने मुझे अपने गले से लगा लिया। मेरे सिर पर प्यार से हाॅथ फेरती रहीं वो। फिर मैं उनसे अलग हुआ और बोला___"माॅ मैं दीदी से भी मिल लूॅ। उनके चेहरे पर फिर से मुझे पहले वाली खुशियाॅ देखना देखना है।"

"ठीक है जा मिल ले उससे।" माॅ ने कहा__"तेरे समझाने से शायद वो खुश रहने लगे।"
"वो ज़रूर खुश रहेंगी माॅ।" मैने कहा__"मैं उनके चेहरे पर वही खुशी लाऊॅगा। उनका ये भाई उनकी दामन में हर तरह की खुशियाॅ लाकर डाल देगा।"

मेरी बात सुन कर माॅ की ऑखें भर आईं जिन्हें उन्होंने अपनी सफेद सारी के ऑचल से पोंछ लिया। मैं उनके पास से चल कर कमरे से बाहर आया और आशा दीदी के कमरे की तरफ बढ़ गया। दीदी के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था। मैने दरवाजे पर लगी साॅकल को पकड़ कर बजाया। किन्तु अंदर से कोई प्रतिक्रिया न हुई। मैने बाहर से ही आवाज़ लगाई उन्हें तब जाकर अंदर से दीदी की आवाज़ आई। वो कह रही थी कि आजा राज दरवाजा तो खुला ही है।

मैं अंदर गया तो देखा दीदी चारपाई के किनारे पर बैठी हुई थी। उनका सिर नीचे झुका हुआ था। मैं उनके पास जाकर उनके बगल से बैठ गया और उनके कंधे पर हाॅथ रखा। दीदी ने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा तो मैं चौंक गया। उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। उनकी इस हालत को देख कर मेरा दिल तड़प उठा।

"ये क्या दीदी?" मैने कहा___"मेरी इतनी प्यारी दीदी की ऑखों में इतने सारे ऑसू?"
मेरी बात पूरी भी न हुई थी कि आशा दीदी झपट कर मुझसे लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी।

मुझे उनके इस तरह फूट फूट कर रोने से बड़ा दुख हुआ। लेकिन मैने उन्हें रोने दिया। शायद ये उनके अंदर का गुबार था। जिसका बाहर निकल जाना बेहद ज़रूरी था। मैं उनके सिर पर बड़े प्यार व स्नेह भाव से हाॅथ फेरता रहा।

सहसा मुझे उनके साथ बिताए हुए कुछ खुशियों भरे पल याद आ गए। मैं,पवन और आशा दीदी हमेशा ऊधम मचाते थे इस घर में। माॅ हमारी शैतानियाॅ देख कर खुस्सा करती, हलाॅकि हम तीनों जानते थे कि हम तीनों का ये प्यार देख कर माॅ खुद भी अंदर ही अंदर खुश हुआ करती थी। मगर प्रत्यक्ष में माॅ हमेशा दीदी को डाॅटने लगती। कहती कि वो तो हम दोनो से बड़ी है फिर क्यों हमारे साथ बच्ची बन जाती है। माॅ के डाॅटने से दीदी मुह फुला कर बैठ जाती। उसके बाद मैं और पवन उन्हें मनाने लगते। हम दोनो के पास उन्हें मनाने का बड़ा ही साधारण और खूबसूरत सा तरीका होता था। इस वक्त वही तरीका मेरे ज़हन में आया तो बरबस ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई।

"दुनियाॅ में सबसे सुंदर कौन?" मैने दीदी को अपने से छुपकाए हुए ही प्यार से कहा।
"सिर्फ मैं।" मेरी बात सुनते ही दीदी को पहले तो झटका सा लगा फिर उसी हालत में बोल पड़ी थी।
"दुनियाॅ में सबसे प्यारी कौन?" मैने फिर से कहा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने लरजते स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे चंचल कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने भारी स्वर में कहा।
"दुनियाॅ में सबसे नटखट कौन?" मैने पूछा।
"सिर्फ मैं?" दीदी की आवाज़ लड़खड़ा गई।
"और दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन?" मैने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"सिर्फ मैं।" दीदी ने कहा तो मैं चौंक पड़ा। उन्हें खुद से अलग कर उनके चेहरे की तरफ बड़े ध्यान से देखा मैने।

आशा दीदी का दूध सा गोरा चेहरा ऑसुओं से तर था। नज़रें झुकी हुई थी उनकी। मैं हैरान इस बात पर हुआ था कि मेरे पूछने पर कि "दुनियाॅ में सबसे शैतान कौन" का जवाब भी उन्होंने यही दिया कि "सिर्फ मैं"। जबकि अक्सर यही होता था कि इस सवाल पर वो यही कहती कि शैतना तुम दोनो ही हो। मैं तो मासूम हूॅ। लेकिन आज उन्होंने खुद को ही शैतान कह दिया था।

"ये तो कमाल हो गया दीदी।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"आज आपने खुद को ही कह दिया कि आप ही सबसे शैतान हो। आज आपने ये नहीं कहा कि मैं और पवन ही सबसे ज्यादा शैतान हैं। आप तो मासूम ही हैं।"
"हाॅ तो क्या हुआ?" दीदी ने सहसा तुनक कर कहा___"आज मैं शैतान बन जाती हूॅ। तुम दोनो मासूम बन जाओ।"

मैं उनकी इस बात को सुन कर मुस्कुराया। दीदी ने ये बात बिलकुल वैसे ही अंदाज़ में कही थी जैसा अंदाज़ उनका आज से पहले हुआ करता था। दीदी को भी इस बात का एहसास हुआ और फिर एकाएक ही उनकी रुलाई फूट गई।

"अरे अब क्या हुआ दीदी?" मैने उनको अपने से छुपका कर कहा___"देखो अब रोना नहीं। मुझे बिलकुल पसंद नहीं कि आप मेरी इतनी प्यारी सी दीदी को बात बात पर इस तरह रुला दो। चलो अब जल्दी से रोना बंद करो और अपनी वही मनमोहक मुस्कान और नटखटपना दिखाओ मुझे ताकि मेरे मन को सुकून मिल जाए।"

"अब तू आ गया है न तो अब मैं नहीं रोऊॅगी राज।" आशा दीदी ने कहा___"तुझे पता है मैं तुझे कितना मिस करती थी। हम तीनो का वो बचपन जाने कहाॅ गुम हो गया था? तुम दोनो मेरे खिलौने थे जिनके साथ मैं हॅसती खेलती रहती थी।"

"मैं जानता हूॅ दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा___"मगर आप तो जानती हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। समय के साथ साथ सब कुछ बदल जाता है। ख़ैर, छोंड़िये ये सब और मुझसे वादा कीजिए कि अब से आप हमेशा खुश रहेंगी। अपने चेहरे पर वो उदासी और किसी भी तरह के दुख के भाव नहीं आने देंगी।"

"हम्म।" दीदी ने हाॅ में सिर हिलाया।
"अब बताइये आपको अपने इस भाई से क्या तोहफ़ा चाहिए?" मैने मुस्कुराते हुए पूछा।
"तू आ गया है मेरे पास।" दीदी ने मेरे चेहरे को अपने हाथ से सहला कर कहा___"इससे बड़ा तोहफ़ा मेरे लिए और क्या होगा?"

"पर मैं तो आपके लिए आपकी मनपसंद चीज़ लेकर ही आया हूॅ।" मैने कहा__"अब अगर आपको नहीं चाहिए तो ठीक है मैं उसे किसी और को दे दूॅगा।"
"ख़बरदार अगर किसी और को दिया तो।" दीदी ने ऑखें दिखाते हुए कहा___"ला दे मेरी चीज़ मुझे। वैसे क्या लेकर आया है राज?"

"सोचिये।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"क्या हो सकती है वो चीज़?"
मेरी ये बात सुनकर आशा दीदी सोच में पड़ गईं। मैने देखा कि इस वक्त उनके चेहरे पर वही चंचलता और वही बिंदासपन आ गया था। उनका चेहरा एकदम से अब खिला खिला लग रहा था।

"सोच लिया मैने।" आशा दीदी एकदम से उछलते हुए बोली___"कि तू मेरे लिए कौन सी चीज़ लेकर आया है?"
"अच्छा तो बताइये।" मैने हॅस कर कहा__"ज़रा मैं भी तो जानूॅ कि आपने क्या सोच लिया है?"

"तू न मेरे लिए।" आशा दीदी ने धीरे धीरे और आराम आराम से कहना शुरू किया__"तू न मेरे लिए......एक प्यारी सी, सुंदर सी सोने की घड़ी लेकर आया है। जिसे मैं अपने इस हाॅथ में पहनूॅगी। अब बता बच्चू, मैंने सही कहा न? हाॅ...बोल बोल।"

मैं दीदी की इस बात पर और उनके इस अंदाज़ पर मुस्कुरा उठा। उन्होने जो कहा वो यकीनन सच ही तो था। मैं उनके लिए एक सोने की घड़ी लेकर ही आया था। मुझे याद है जब वो मेरे हाथ की कलाई में एक आम सी घड़ी देखती तो यही कहती कि__"अरे ये तो मामूली सी घड़ी है बेटा, आशा रानी तो अपने हाॅथ में सोने की घड़ी पहनेगी एक दिन। देख लेना। वरना सारी उमर घड़ी ही नहीं पहनेगी। मैं और पवन उनकी इस बात पर अक्सर हॅसने लगते। हमारे हॅसने पर उन्हें लगता कि हम दोनो उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं। इस लिए वो मुह फुला कर एक तरफ बैठ जाती। उसके बाद हम दोनो फिर से उन्हें उसी तरीके से मनाने लगते और वो खुश हो जाती। ऐसी थी आशा दीदी। वो हम लोगों से उमर में तीन चार साल बड़ी थी मगर हमारे साथ वो हमसे भी छोटी बन जाती थी।

ये सब सोच कर सहसा मेरी ऑखों से ऑसू छलक पड़े। आशा दीदी ने मेरी ऑखों से छलके ऑसूॅ को देखा तो। उन्होंने मुझे खुद से छुपका लिया।
"ओये ये क्या है अब?" फिर उन्होंने कहा__"अभी तक तो बड़ा मुजसे कह रहा था कि अब से मैं खुद को न रुलाऊॅ और अब तू क्यों रोने लगा? चल रोना नहीं वरना मैं भी रो दूॅगी।"

"ये तो खुशी के ऑसू हैं दीदी।" मैं उनसे अलग होते हुए बोला___"कुछ यादें ऐसी होती हैं जिनके याद आने से बरबस ही ऑखें छलक पड़ती हैं। ख़ैर, ये लीजिए आपकी घड़ी। देख लीजिए सोने की ही है न?"

"मुझे पता है कि मेरा भाई मेरी कलाई में सोने के अलावा कोई और घड़ी नहीं पहनाएगा।" दीदी ने कहा मुस्कुराकर कहा___"उसे पता है कि मैने क्या प्रण किया था?"
"आपने सही कहा दीदी।" मैने कहा__"मैं आपके प्रण को कैसे भुला सकता हूॅ? जब मैं वहाॅ से चलने वाला था तो मुझे आपकी याद आई और फिर सबकुछ याद आया। इस लिए मैं गया और ज्वैलरी की दुकान से आपके लिए ये घड़ी खरीद लाया।"

मेरी बात से दीदी मुस्कुरा दी और फिर उस पैकिट को खोलने लगी जिसमें मैं उनके लिए घड़ी लेकर आया था। कुछ ही देर में पैकेट खोल कर उन्होने उस घड़ी को निकाल कर देखा। वो सचमुच सोने की ही घड़ी थी। घड़ी देख कर दीदी की ऑखें फिर से भर आईं।

"राज, आज मैं बहुत खुश हूॅ।" फिर उन्होने कहा___"इस लिए नहीं कि तू घड़ी लेकर आया है बल्कि इस लिए कि तू यहाॅ आया और तुझे अपनी दीदी के प्रण का ख़याल था। मुझे खुशी है कि तेरे जैसा लड़का मेरा भाई है।"

"मुझे भी तो खुशी है दीदी।" मैने कहा__"कि आप मेरी सबसे प्यारी बहन हो। आपको मैं गुड़िया(निधी) की तरह ही प्यार करता हूॅ।"
"हाॅ ये मैं जानती हूॅ।" दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"अच्छा राज, इस घड़ी को तू ही पहना दे न मुझे।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी इच्छा।"

मैने उनके हाॅथ से घड़ी ल। दीदी ने अपने बाएॅ हाथ की कलाई मेरी तरफ बढ़ा दी। मैने उनकी खूबसूरत कलाई पर उस घड़ी को डाल कर पहना दी। ये देख कर आशा दीदी खुश हो गई और एकदम से मुझसे लिपट गई।

"कितनी अच्छी लग रही है न राज?" वो खुशी से मानो चहकती हुई बोली___"अच्छा ये बता कि इसके अंदर पानी तो नहीं जाएगा न?"
"नहीं जाएगा दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"ये फुल वाटरप्रूफ है।"
"फिर ठीक है।" दीदी ने मुझसे अलग होकर कहा___"अब न मैं इसे कभी भी अपनी कलाई से नहीं उतारूॅगी।"

"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"जैसी आपकी मर्ज़ी। अच्छा दीदी अब मैं चलता हूॅ और हाॅ याद है न....अब से आप खुद को उदास या दुखी नहीं रखेंगी।"
"हाॅ हाॅ याद है बाबा।" दीदी ने हॅस कर कहा___"और अब तो मेरे भाई ने मेरी पसंद की चीज़ भी दे दी। फिर किस लिए खुद को उदास या दुखी रखना?"

"ये हुई न बात।" मैने दीदी के माथे पर हल्के से चूमा और फिर पलट कर वापस दरवाजे की तरफ चल दिया। अभी मैं दो ही क़दम दरवाजे की तरफ बढ़ा था कि मेरी नज़र दरवाजे पर खड़े पवन और माॅ पर पड़ी। मैं उन्हें देख कर पहले तो चौंका फिर हौले से मुस्कुरा दिया। दरवाजे बाहर आकर मैने दरवाजे के दोनो पाटों को आपस में सटा कर चल दिया।

मेरे पीछे पीछे पवन और माॅ भी आने लगे। माॅ के कमरे में आकर मैं एक जगह बैठ गया।
"तो बहन को खुश कर दिया उसके भाई ने?" माॅ ने ऑखों से अपने ऑसू पोंछते हुए कहा___"आज काफी समय बाद उसे इतना खुश और चहकते हुए देखा है मैने।"

"अब से वो हमेशा खुश ही रहेंगी माॅ।" मैने कहा___"और हाॅ बहुत जल्द मैं उनके लिए एक अच्छा सा रिश्ता तलाश करूॅगा। उनकी शादी एक ऐसे घर में और एक ऐसे लड़के से करूॅगा जो उन्हें दुनियाॅ की हर खुशी देगा।"
"अब मुझे उसकी शादी की चिंता नहीं है बेटे।" माॅ ने कहा___"उसका भाई आ गया है तो अब सब वहीं सम्हालेगा।"

मैने पवन की तरफ देखा वो अपनी ऑखों में ऑसू लिये एक तरफ खड़ा था। मैं उसके पास जाकर उससे बोला___"तूने मुझे बुला कर बहुत अच्छा किया है भाई। मगर आज जो कुछ भी रास्ते में हुआ है उस सबसे बहुत जल्द एक नई मुसीबत सामने आने वाली है। बड़े पापा को पता लगाने में ज्यादा समय नहीं लगेगा कि वो सब किसने किया उनके आदमियों के साथ? वो ये भी पता कर लेंगे कि मैं यहाॅ किसके यहाॅ रुका हुआ हूॅ। इस लिए अब तुम ये भी समझ लो कि इस घर में रहते हुए तुममें से कोई भी सुरक्षित नहीं है।"

"ये तुम क्या कह रहे हो बेटा?" माॅ ने चकित भाव से कहा___"क्या हुआ है आज रास्ते में?"
मैने माॅ को संक्षेप में सबकुछ बता दिया। मेरी बात सुन कर माॅ सकते में आ गई। उनके चेहरे पर एकदम से डर व भय के भाव गर्दिश करते नज़र आने लगे।

"ये तो बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है बेटा।" माॅ ने सहमे हुए लहजे में कहा___"तुमने अजय सिंह के आदमियों को मार कर अच्छा नहीं किया। अजय सिंह इस सबका बदला ज़रूर लेगा।"
"ये तो होना ही था माॅ।" मैने कहा___"आप खुद सोचिए कि अगर मैं और आदित्य ये सब नहीं करते तो उनके आदमी हमें अपने साथ ले जाकर बड़े पापा के हवाले कर देते। उस सूरत में बड़े पापा हमारे साथ क्या करते इसका अंदाज़ा आप नहीं लगा सकती माॅ। वो मुझे बंधक बना कर मुझसे ज़बरदस्ती मेरी माॅ बहन और अभय चाचा को मुम्बई से यहाॅ बुलवा लेते। उसके बाद क्या होता ये आप सोच कर देखिये।"

"राज सही कह रहा है माॅ।" पवन ने कहा__"रास्ते में इसके बड़े पापा के आदमी इसे पकड़ने के लिए ही आए थे और अगर वो लोग इसे पकड़ कर ले जाते तो सचमुच बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता। इस लिए अजय चाचा के आदमियों को मारने के सिवा दूसरा कोई रास्ता ही नहीं था इसके पास।"

"पर इसने अजय सिंह के उतने सारे आदमियों को कैसे खत्म कर दिया?" माॅ के चेहरे पर हैरत के भाव थे।
"आपको नहीं पता माॅ।" पवन कह रहा था___"इसने और आदित्य ने पाॅच मिनट में उन सबका काम तमाम कर दिया था। मैने वो सब अपनी ऑखों से देखा था। मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये वही राज है जो इतना शान्त और भोला भाला हुआ करता था।"

"ये सब छोड़ो।" मैने कहा___"मैं ये कह रहा हूॅ कि बड़े पापा को इस बात का पता बहुत जल्द चल जाएगा कि मैं यहाॅ पवन के घर में रुका हुआ हूॅ। इस लिए वो आप सबको भी अपना दुश्मन समझ लेंगे और आप लोगों के साथ कुछ भी बुरा कर सकते हैं। अतः अब आप लोगों का यहाॅ रहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।"

"बात तो तुम्हारी ठीक ही है भाई।" पवन ने कहा___"लेकिन हम तेरे बड़े पापा के डर से अपना ये घर छोंड़ कर भला कहाॅ जाएॅगे?"
"मुम्बई।" मैने कहा___"हाॅ पवन। अब आप लोगों का यहाॅ रहना खतरे से खाली नहीं है। इस लिए अब आप लोग मेरे साथ मुम्बई चलोगे। तुम्हें पता है, अभय चाचा ने भी मुझे कुरुणा चाची और उनके बच्चों को मुम्बई ले आने को कहा है। क्योंकि उन्हें भी पता है कि करुणा चाची और दिव्या व शगुन सुरक्षित नहीं हैं।"

"लेकिन बेटा।" माॅ ने झिझकते हुए कहा___"हम सब वहाॅ तेरे लिए बोझ बन जाएॅगे। इतने सारे लोग वहाॅ कैसे रह पाएॅगे?"
"ये कह कर आपने मुझे पराया कर दिया माॅ।" मैने दुखी भाव से कहा___"भला आप ऐसा कैसे सोच सकती हैं कि मेरे लिए आप लोग बोझ बन जाएॅगे?"

माॅ को अपनी ग़लती का एहसास हुआ इस लिए उन्होंने मुझे अपने गले से लगा कर कहा___"मेरा वो मतलब नहीं था बेटा। मैं तो बस ये कहना चाहती थी कि वहाॅ पर हम सब इतने सारे लोग कैसे रहेंगे?"
"आप इस बात की फिक्र मत कीजिए माॅ।" मैने कहा___"मुम्बई में जहाॅ मैं रहता हूॅ वो एक बहुत बड़ा बॅगला है। वहाॅ पर सौ आदमी भी रहेंगे न तब भी जगह बच जाएगी।"

"क्या????" माॅ ने हैरानी से कहा___"क्या इतना बड़ा गर है वहाॅ?"
"हाॅ माॅ।" मैने कहा__"इसी लिए तो कह रहा हूॅ कि आप रहने की चिंता मत कीजिए। बस यहाॅ से फौरन चलने की तैयारी कीजिए। आप सब अपना ज़रूरी सामान ले लीजिए, और चलने के लिए तैयार हो जाइये जल्दी।"

"क्या हम आज ही यहाॅ से चल देंगे?" सहसा पवन ने कुछ सोचते हुए कहा था।
"जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी हमें से निकल लेना चाहिए भाई।" मैने कहा__"यहाॅ ज्यादा समय तक रुकना ठीक नहीं है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"पर हम यहाॅ से इतने सारे सामान को लेकर जाएॅगे कैसे?"
"तू किसी भी तरह से किसी ऐसे वाहन का इंतजाम कर जिसमे सारा सामान भी आ जाए और हम सब उसमें आराम से बैठ भी जाएॅ।" मैने कहा___"और ये काम तुझे बहुत जल्द करना है।"

"ठीक है भाई।" पवन ने कहा___"मैं कोशिश करता हूॅ ऐसे किसी वाहन को लाने की।"
ये कह कर पवन कमरे से बाहर चला गया। उसके जाने के बाद मैने माॅ से कहा कि वो भी अपना सब ज़रूरी सामान इकट्ठा करके उसे पैक कर लें। मेरे कहने पर माॅ ने हाॅ में सिर हिलाया और कमरे से बाहर चली गईं। मैं भी बाहर आकर बैठक की तरफ बढ़ गया।
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उधर हास्पिटल में एकाएक ही रितू का मोबाइल बजा। उसने मोबाइल को पाकेट से निकाल कर देखा। स्क्रीन पर पवन लिखा आ रहा था। ये देख कर रितू के होठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वो मोबाइल को लिए विधी के पास से उठ कर बाहर की तरफ आ गई। फिर मोबाइल पर आ रही काल को रिसीव कर कानो से लगा लिया उसने।

"हाॅ भाई बोलो।" फिर उसने कहा__"सब रेडी है न?"
".............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"ये तुम क्या कह रहे हो पवन?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"तुम सब लोग राज के साथ मुम्बई जाने वाले हो?"

"............।" उधर से पवन फिर कुछ कहा।
"हाॅ मुझे पता चल गया उस बारे में।" रितू ने कहा___"मेरे आदमियों ने फोन पर बताया है सब कुछ। ये भी बताया कि उन लोगों ने डैड के आदमियों को ठिकाने लगा दिया है। राज और उसके दोस्त ने सबको खत्म कर दिया था। अगर उन दोनो के बस का न होता तो मेरे वो पुलिस के आदमी उन सबको गोलियों से भून कर रख देते। मेरा उनके लिए यही आदेश था। ख़ैर, सबसे अच्छी बात यही हुई कि तुम लोग सकुशल घर गए। लेकिन खतरा अभी टला नहीं है पवन। डैड अपने आदमियों की खोज ख़बर लेने ज़रूर इधर उधर जाएॅगे। राज ने सही फैसला लिया है तुम लोगों को अपने साथ ले जाने का। मगर उसका क्या होगा जिसके लिए मैने राज की तुम्हारे द्वारा बुलवाया था?"

"............।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"अरे मैं तो चाहती ही हूॅ भाई।" रितू ने ज़ोर दे कर कहा___"तुम एक काम करो, राज की लेकर यहाॅ आ जाओ। मैं तुम लोगों को यहाॅ से सुरक्षित जाने का बंदोबस्त कर दूॅगी।"
"............।" उधर से पवन ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" रितू ने कहा___"तुम उसे लेकर आओ। मैं अभी किसी वाहन का इंतजाम करती हूॅ। तुम किसी भी प्रकार की चिंता मत करो। बस उसे लेकर आ जाओ। यहाॅ मैने उसकी सुरक्षा का सारा इंतजाम किया हुआ है। रास्तों पर भी पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में मौजूद हैं।"

".........।" उधर से पवन ने कुछ कहा।
"तुम बेफिकर रहो भाई।" रितू ने कहा___"उसे कुछ नहीं होने दूॅगी मैं। अपनी जान पर खेलकर भी मैं उसकी हिफाज़त करूॅगी। यहाॅ आने के बाद जो कुछ भी होगा उसकी देखभाल भी मैं कर लूॅगी। तुम बस उसे लेकर आ जाओ। अब इंतज़ार नहीं होता मेरे भाई। जबसे तुमने बताया है कि राज आ गया है तब से उससे मिलने के पागल हुई जा रही हूॅ मैं। दिल तो करता है कि अभी भाग कर तुम्हारे घर आ जाऊॅ और अपने भाई को अपने सीने से लगा कर खूब रोऊॅ। मगर, उससे मिलने का सबसे पहला हक़ विधी का है मेरे भाई। मैने उसे वचन दिया है कि मैं उसके महबूब से उसे मिलाऊॅगी। इस लिए भाई, जल्दी से उसे लेकर आजा। मेरे वचन की लाज रख ले। विधी को उसके महबूब से मिला दे जल्दी।"

".........।" उधर से पवन ने कुच कहा।
"ठीक है भाई जल्दी आना।" रितू ने कहा और फिर फोन कट कर दिया। उसकी ऑखों में ऑसू भर आए थे। फोन को पाॅकेट में डालने के बाद वह वापस गैलरी की तरफ चल पड़ी। रास्ते मे एक तरफ उसे श्री कृष्ण का छोटा सा मंदिर दिखा तो वह उसी तरफ बढ़ गई। मंदिर के पास पहुॅच कर वह घुटनों के बल बैठ गई।

"हे कृष्णा अब सब कुछ आपके ही हवाले है।" रितू ने ऑखों में ऑसू लिए तथा दोनो हाॅथ जोड़े कहा___"सब कुछ ठीक कर देना कान्हा। मेरा भाई जब विधी से मिले तो उसकी हालत को देख कर वो खुद को सम्हाल सके। उसके दिल को मजबूत बनाए रखना कन्हैया। वो अपनी प्रेयसी से मिलने आ रहा है। उसे हर दुख दर्द सहने की शक्ति देना कृष्णा। मेरा भाई भी इस वक्त कृष्ण ही है जो अपनी राधा से मिलने आ रहा है।"

इतना कहने के बाद रितू उठी और कृष्ण की मूर्ती के पास थाली में रखे फूलों से कुछ फूल उठा कर कृष्ण के चरणों में अर्पण कर दिया।

"सब कुछ तुम ही तो करते हो कन्हैया। इस संसार में सब कुछ तुम्हारे ही इशारे से हो रहा है।" रितू ने कहा___"ये भी कि मेरा भाई जिसे टूट कर प्रेम करता है उस लड़की को ब्लड कैंसर के लास्ट स्टेज पर पहुॅचा दिया आपने। ये कैसी लीला है कृष्णा? लोग कहते हैं कि जो कुछ भी तुम करते हो वो सब अच्छे के लिए ही करते हो, तो बताओ मुझे कि ऐसा करके कौन सा अच्छा कर रहे हो तुम? लेकिन ख़ैर कोई बात नहीं। मैं तुमसे यहाॅ इस सबकी शिकायत नहीं कर रही हूॅ। हाॅ इतनी विनती ज़रूर कर रही हूॅ कि मेरे भाई को कभी कुछ न हो। वो यहाॅ आए तो विधी की हालत देख कर वो खुद को सम्हाल सके। बस यही प्रार्थना करती हूॅ तुमसे।"

इतना कहने के बाद रितू अपने ऑसू पोंछते हुए कृष्णा को प्रणाम कर विधी के कमरे की तरफ बढ़ गई। उसका मन बहुत भारी हो गया था। रह रह कर उसके मन में आने वाले वक्त के प्रति घबराहट सी बढ़ती जा रही थी।
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उधर घर में पवन मुझे लिए बाहर आया। मैने देखा कि बाहर एक मोटर साइकिल खड़ी थी। पवन ने मुझसे कहा कि मैं अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लूॅ। मैं उसकी बात सुन कर चौंका। उससे पूछा कि कहाॅ जा रहे हैं हम मगर उसने मुझे कुछ न बताया। बल्कि मोटर साइकिल में बैठ कर से स्टार्ट किया और मुझे पीछे बैठने को कहा। मैं उसकी इस आनन फानन वाली क्रिया से हैरान था। बड़ा अजीब सा ब्यौहार कर रहा था वो।

ख़ैर, उसके बार बार ज़ोर देने पर मैं उसके पीछे मोटर साइकिल पर बैठ गया। आदित्य दरवाजे पर खड़ा हैरानी से ये सब देख रहा था। उसने भी कई बार पवन से पूछा कि वो मुझे लेकर कहाॅ जा रहा है मगर पवन ने कुछ न बताया। बल्कि उससे यही कहा कि वो यहीं रहे, हम थोड़ी देर में आते हैं। आदित्य बेचारा हैरानी से देखता रह गया था उसे। माॅ और आशा दीदी अंदर सामान पैक करने में लगी हुईं थी। उन्हें इस सबका कुछ पता ही नहीं था। आशा दीदी को जब पता चला कि वो सब लोग मेरे साथ मुम्बई चल रहे हैं तो वो बड़ा खुश हुई थी।

इधर मेरे बैठते ही पवन ने मोटर साइकिल को आगे बढ़ा दिया। जहाॅ तक मुझे पता था पवन के पास कोई साइकिल तक नहीं थी, इसका मतलब वो ये मोटर साइकिल किसी जान पहचान वाले से माॅग कर ही लाया था।

"अब तो बता दे मेरे बाप कि हम कहाॅ जा रहे हैं?" रास्ते में मैने ये बात पवन से खीझते हुए कही थी, बोला___"साले तूने इस सवाल पर ऐसे अपना मुह बंद कर रखा है जैसे अगर तू बता देगा तो क़यामत आ जाएगी।"

"ऐसा ही समझ ले तू।" पवन ने कहा__"अब चुपचाप बैठा रह। कितना बोलने लगा है तू आजकल?"
"क्या कहा तूने?" मैने हैरत से देखते हुए उसे पीछे से उसकी पीठ पर हल्के से मुक्का मारा, फिर बोला___"मैं बहुत बोलने लगा हूॅ। हाॅ, और तू जैसे मौनी बाबा ही बन गया है न।"

पवन मेरी इस बात पर मुस्कुरा कर रह गया। मगर सिर्फ एक पल के लिए। अगले ही पल उसके चेहरे पर संजीदगी के भाव नुमायाॅ हो गए। जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो। मैने एक बात नोट की थी कि वो जब से मुझे मिला था तब से मैने उसे संजीदा ही देखा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इसकी क्या वजह थी। मुझे याद आया कि उसने मुझे सीघ्र मुम्बई से आने के लिए कहा था। इसका मतलब ये मुझे उसी काम से लिए जा रहा है। लेकिन आख़िर किस काम से? साला दिमाग़ का दही हो गया मगर मुझे कोई वजह समझ में नहीं आई।

लगभग दस मिनट बाद पवन ने जिस जगह पर मोटर साइकिल रोंकी उस जगह को देख कर मैं चौंका तो ज़रूर मगर मुझे समझ में न आया कि पवन मुझे हास्पिटल लेकर क्यों आया है? सहसा मेरे ज़हन में एक बार फिर करुणा चाची और उनके बच्चों का चेहरा नाच गया। मन में सवाल उभरा कि क्या करुणा चाची या उनके बच्चों में से किसी को कुछ हो गया था जो वो यहाॅ हास्पिटल में शायद एडमिट हैं? मगर इस बात को मुझसे छिपाने की भला क्या ज़रूरत थी?

मोटर साइकिल के खड़े होते ही मैं उतर गया। मेरे बाद पवन भी उतर गया और मोटर साइकिल को स्टैण्ड पर खड़ा कर वो मेरी तरफ देखा और बोला____"तू यहीं रुक मैं आता हूॅ दो मिनट में।"

"अरे अब कहाॅ जा रहा है तू मुझे यहाॅ पर अकेला छोंड़ कर?" मैंने हैरानी से पूछा।
"मैने कहा न यहीं रुक।" पवन ने शख्ती से कहा___"मैं आता हूॅ अभी।"

ये तो हद ही हो गई। पवन ने मुझे शख्ती से रुकने को कहा था। मेरा दिमाग़ घूम गया। ये साला हो क्या रहा है? मैने देखा कि पवन हास्पिटल की सीढ़ियाॅ चढ़ कर ऊपर वाली सीढ़ी के पास जाकर रुक गया। उसके बाद उसने अपने पैन्ट की जेब से मोबाइल निकाल कर उससे किसी को फोन किया। मोबाइल को कान से लगा कर उसने सामने वाले से जाने क्या बात की। एक मिनट भी नहीं लगे उसे बात खत्म करने में। मोबाइल को पुनः जेब के हवाले कर उसने मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी तरफ आने का हाथ से इशारा किया।

उसके इस इशारे पर मैं फिर चौंका। मगर कर भी क्या सकता था? मैं अपने मन में हज़ारों तरह के विचार लिए उसकी तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही देर में सीढ़ियाॅ चढ़ कर उसके पास पहुॅच गया।

"साला इतना ज्यादा सस्पेन्स तो किसी जासूसी उपन्यास में भी मैने नहीं देखा जितना तू क्रियेट कर रखा है।" ऊपर उसके पास पहुॅचते ही मैने कहा उससे___"मेरे दिमाग़ का कचूमर निकाल दिया तूने कसम से। अच्छा है तू किसी जासूसी उपन्यास का राइटर नहीं बन गया। वरना पाठकों के दिमाग़ की नसें ही फट जाती।"

"ज्यादा बकवास न कर।" मेरी बात पर पवन ने भावहीन स्वर में कहा___"और अब चल मेरे साथ।"
"जो हुकुम माई बाप।" मैने अदब से सिर को झुकाते हुए कहा और चल दिया उसके पीछे।

पवन के पीछे चलते हुए मैं हास्पिटल के अंदर की तरफ आ गया। मेरा मन अंजानी आशंका के चलते ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। पता नहीं क्यों पर मैं मन ही मन भगवान से दुवा कर रहा था कि यहा हर कोई ठीक ही हो। ख़ैर, पवन के साथ चलते हुए मैने देखा कि पवन एक कमरे के सामने आकर रुक गया।

कमरे के दरवाजे के पास रुक कर पवन ने कुछ पल कुछ सोचा फिर मेरी तरफ पलट कर कहा___"तू जानना चाहता था न कि मैने तुझे इतना जल्दी यहाॅ आने के लिए क्यों कहा था?"
"वो तो मैं तुझसे कब से पूछ रहा हूॅ?" मैने उससे कहा___"मगर तू बता ही नहीं रहा था।"

"बताने की ज़रूरत नहीं है मेरे यार।" सहसा पवन की आवाज़ भर्रा गई, बोला___"तू इस कमरे में जा और सब कुछ अपनी ऑखों से देख सुन ले। लेकिन उससे पहले तू मुझसे वादा कर कि अंदर सब कुछ देखने सुनने के बाद तू खुद को सम्हाल कर रखेगा।"

"इस बात का क्या मतलब हुआ?" मैंने सहसा चौंकते हुए कहा___"ऐसा क्या है अंदर कि मुझे उसे देख कर खुद को सम्हालना पड़ेगा?"
"अब जा तू।" पवन ने कहने के साथ ही मुह फेर लिया मुझसे, दो चार क़दम चलने के बाद मेरी तरफ पलट कर बोला___"मैं बाहर ही तेरा इन्तज़ार करूॅगा।"

बस इसके बाद वो एक पल के लिए भी नहीं रुका। बल्कि तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए बाहर की तरफ चला गया। मुझे कुछ समझ न आया कि ये सब क्या चल रहा है यहाॅ? पवन जब मेरी नज़रों से ओझल हो गया तो मैं उस कमरे के दरवाजे की तरफ पलटा जिस कमरे के अंदर जाने के लिए पवन ने मुझसे कहा था।

कुछ पल तक मैं उस दरवाजे को घूरता रहा। मेरा दिल अनायास ही बड़ी तेज़ी से धड़कने लगा था। मन में तरह तरह के ख़याल उछल कूद मचाने लगे थे। मैने अपने हाॅथों को दरवाजे की तरफ बढ़ाया। मैने देखा मेरे वो हाॅथ काॅप रहे थे। पता नहीं मगर, इन कुछ ही पलों में मेरी अजीब सी हालत हो गई थी। ख़ैर, मैने दरवाजे पर हाॅथ रख कर उसे अंदर की तरफ आहिस्ता से धकेला तो दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया।

खुल चुके दरवाजे अंदर की तरफ मेरी नज़र पड़ी तो सामने दीवार के पास एक टेबल रखा दिखा मुझे जिस पर कुछ दवाइयाॅ और कुछ पेपर जैसे रखे हुए थे। बाॅकी कुछ न दिखा मुझे। मेरे मन में सवाल उभरा कि इस कमरे में ऐसा क्या है जिसे देखने के लिए कदाचित पवन ने मुझे अंदर जाने को कहा था?

अपने मन में उठे सवाल की खोज के लिए मैंने दरवाजे के अंदर की तरफ अपने क़दम बढ़ाए। दो ही क़दमों में मैं कमरे के अंदर दाखिल हो गया। अंदर आकर मैने इधर उधर देखा तो दाहिनी तरफ एक बेड दिखा जिस पर कोई पड़ा हुआ था। बेड के बगल से ही दो सोफा सेट रखे हुए थे किन्तु उन पर कोई बैठा हुआ नज़र न आया मुझे। बाॅकी पूरा कमरा खाली था। ये देख कर मेरा दिमाग़ हैंग सा हो गया। कुछ समझ न आया कि यहाॅ मुझे क्या दिखाने के लिए पवन ने भेजा है?

बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति पर मेरी नज़र पुनः पड़ी। उसका चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं जान न सका बेड पर कौन पड़ा हुआ है? किन्तु इतना ज़रूर अब समझ आ गया था कि शायद बेड पर पड़े हुए इंसान को देखने के लिए ही मुझे पवन ने यहाॅ भेजा है। अतः मैं धड़कते हुए दिल के साथ बेड की तरफ बढ़ा।

कुछ ही क़दमों में मैं बेड के समीप पहुॅच गया। किन्तु बेड पर पड़े हुए ब्यक्ति का चेहरा दूसरी तरफ था इस लिए मैं इस तरफ से चलते हुए उस तरफ उस ब्यक्ति के चेहरे की तरफ बढ़ गया। मैने महसूस किया कि कमरे हीं नहीं बल्कि पूरे हास्पिटल में सन्नाटा छाया हुआ था। ऐसा सन्नाटा कि अगर कहीं सुई भी गिरे तो उसके गिरने की आवाज़ किसी बम के धमाके से कम न सुनाई दे।

बेड पर पड़े ब्यक्ति के चेहरे की तरफ आकर मेरी नज़र जिस चेहरे पर पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। हैरत और आश्चर्य से मेरी ऑखें फट पड़ीं। किन्तु फिर जैसे एकदम से मुझे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गुज़रा हुआ वो कल घूमने लगा जिसमें मैं था एक विधी नाम की लड़की थी और उस लड़की के साथ शामिल मेरा प्यार था। फिर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी विधी नाम की लड़की का धोखा था, उसकी बेवफाई थी। उसी तस्वीर में मेरा वो रोना था वो चीखना चिल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब चीज़ें मेरी ऑखों के सामने कई बार तेज़ी से घूमती चली गई।

मेरे चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। दुख दर्द और नफ़रत के भाव एक साथ आकर ठहर गए। ऑखों में ऑसूॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर लिया। दिल में एक तेज़ गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में चिंगारियाॅ सी जलने बुझने लगीं।

मेरे दिल की धड़कने और मेरी साॅसें तेज़ तेज़ चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकल रहे थे। किन्तु ये सच है कि कुछ कहने के लिए मेरे होंठ फड़फड़ा रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि या तो मैं खुद को कुछ कर लूॅ या फिर बेड पर ऑखें बंद किये आराम से पड़ी इस लड़की को खत्म कर दूॅ। किन्तु जाने कैसे मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जूझ ही रहा था कि सहसा बेड पर आराम से करवॅट लिए पड़ी उस बला ने अपनी ऑखें खोली जिस बला को मैने टूट टूट कर चाहा था।


दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,

आज के लिए इतना ही। मैं जानता हूॅ कि आप इस आख़िरी सीन से आगे भी पढ़ना चाहेंगे और इस चैप्टर को खत्म हो जाने की आशा करते हैं। किन्तु दोस्तो, यकीन मानिए आज मैने इस अपडेट को तैयार करने में सारा दिन लगा दिया। बीच बीच में मुझे काम की वजह से रुकना भी पड़ा। लेकिन चूॅकि मैने आपसे कहा था कि आज अपडेट ज़रूर दूॅगा इस लिए इतना ही लिख कर आपके सामने हाज़िर कर देना चाहता हूॅ।

अपने अंदर की एक बात आपसे शेयर कर रहा हूॅ, वो ये कि ऐसे सीन लिखने में दिलो दिमाग़ की हालत ख़राब हो जाती है। आज तो इतने में ही हालत ख़राब हो गई मेरी। अभी इसके आगे का आप खुद अंदाज़ा लगाइये कि क्या होगा????

हर बात को और हर चीज़ को बारीकी से लिखना मुझे अच्छा लगता है। अपडेट लिखने से पहले मुझे ये ज़रूर लगा करता है कि यार अब इससे आगे कैसे लिखूॅ?? लेकिन जब लिखना शुरू करता हूॅ तो हर चीज़ खुद ही आसान होती चली जाती है। कदाचित इसका कारण ये हो सकता है कि राइटर उस माहौल में डूब जाता है। उसे लगने लगता है कि ये सब उसके साथ ही हो रहा है।

मुझे ये बात समझ आ गई है दोस्तो कि कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं होती। मेरे लिए हर अपडेट को लिखना किसी चैलेंज से कम नहीं होता मगर आप सबके प्यार और सहयोग से हर चैलेंज को मैंने कबूल किया है और उस पर फतह हाॅसिल की है।

अगले अपडेट में इस चैप्टर को खत्म कर दूॅगा दोस्तो।
Kya shandar update hai bhai maja aa gya
Jabrdast gehrai hai

Waiting for next
 

Jay Sutar

अहं ब्रह्मास्मि
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maja aa gaya bhai update read kar ke...............ab jaldi hi viraj ke saamne sab sach aane wala hai.............ab dekhna yeh hai ke vo ye sab kaise handle karta hai...............kya vo apne sabi logo ko leke yaha se safely nikal paayega...............lets see what happens next.
PEACE:applause:.
 
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