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Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

आप सबको ये कहानी कैसी लग रही है.????

  • लाजवाब है,,,

    Votes: 185 90.7%
  • ठीक ठाक है,,,

    Votes: 11 5.4%
  • बेकार,,,

    Votes: 8 3.9%

  • Total voters
    204
  • Poll closed .

Raj

Well-Known Member
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WAITING BHAI
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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354
एक नया संसार

अपडेट........《 45 》

अब तक,,,,,,,,,

बेड पर पड़े ब्यक्ति के चेहरे की तरफ आकर मेरी नज़र जिस चेहरे पर पड़ी उसे देख कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा। हैरत और आश्चर्य से मेरी ऑखें फट पड़ीं। किन्तु फिर जैसे एकदम से मुझे होश आया और मेरी ऑखों के सामने मेरा गुज़रा हुआ वो कल घूमने लगा जिसमें मैं था एक विधी नाम की लड़की थी और उस लड़की के साथ शामिल मेरा प्यार था। फिर एकाएक ही तस्वीर बदली और उस तस्वीर में उसी विधी नाम की लड़की का धोखा था, उसकी बेवफाई थी। उसी तस्वीर में मेरा वो रोना था वो चीखना चिल्लाना था और नफ़रत मेरी थी। ये सब चीज़ें मेरी ऑखों के सामने कई बार तेज़ी से घूमती चली गई।

मेरे चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। दुख दर्द और नफ़रत के भाव एक साथ आकर ठहर गए। ऑखों में ऑसूॅ भर आए मगर मैने उन्हें शख्ती से ऑखों में ही जज़्ब कर लिया। दिल में एक तेज़ गुबार सा उठा और उस गुबार के साथ ही मेरी ऑखों में चिंगारियाॅ सी जलने बुझने लगीं।

मेरे दिल की धड़कने और मेरी साॅसें तेज़ तेज़ चलने लगी थी। मेरे मुख से कोई अल्फाज़ नहीं निकल रहे थे। किन्तु ये सच है कि कुछ कहने के लिए मेरे होंठ फड़फड़ा रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था कि या तो मैं खुद को कुछ कर लूॅ या फिर बेड पर ऑखें बंद किये आराम से पड़ी इस लड़की को खत्म कर दूॅ। किन्तु जाने कैसे मैं कुछ कर नहीं पा रहा था।

अभी मैं अपनी इस हालत से जूझ ही रहा था कि सहसा बेड पर आराम से करवॅट लिए पड़ी उस बला ने अपनी ऑखें खोली जिस बला को मैने टूट टूट कर चाहा था।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

अब आगे,,,,,,,,,

उथर, अभय चाचा की ससुराल में।
करुणा चाची इस वक्त अपने कमरे में आराम कर रही थी। दोपहर हो चुकी थी। सब लोगों के खाना खा लेने के बाद उन्होंने भी खाया और फिर आराम करने के लिए अपने कमरे में चली गईं। करुणा चाची के मायके वालों का परिचय देने की यहाॅ पर कदाचित कोई ज़रूरत तो नहीं है पर फिर भी पाठकों की जानकारी के लिए दे ही देता हूॅ।

चन्द्रकान्त सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के दादा जी हैं। इनकी उमर इस समय पैंसठ के ऊपर है। ये एक फौजी आदमी हैं। फौज में मेजर थे ये। अब तो ख़ैर सरकारी पेंशन ही मिलती है इन्हें किन्तु खुद भी घर परिवार और ज़मीन जायदाद से सम्पन्न हैं ये।

हेमलता सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की दादी हैं। ये बाॅसठ साल की हैं। चन्द्रकाॅत सिंह और हेमलता सिंह के तीन लड़के और एक लड़की थी।

उदयराज सिंह राजपूत, ये चन्द्रकाॅत सिंह के बड़े बेटे थे जो कुछ साल पहले गंभीर बीमारी के चलते भगवान को प्यारे हो चुके हैं।
सुभद्रा सिंह राजपूत, ये करुणा चाची की माॅ हैं। उमर यही कोई पचास के आस पास। विधवा हैं ये। इनके दो ही बच्चे हैं। सबसे पहले करुणा चाची उसके बाद हेमराज सिंह राजपूत। हेमराज सिंह की भी शादी हो चुकी है और उसके दो बच्चे हैं।

मेघराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के चाचा हैं। इनकी उमर पचास के आस पास है। पढ़े लिखे हैं ये। मगर अपनी सारी ज़मीनों पर खेती बाड़ी का काम करवाते हैं। इनकी पत्नी का नाम सरोज है जो कि पैंतालीस साल की हैं। इनके दो बेटे हैं जो शहर में रह कर पढ़ाई करते हैं।

गिरिराज सिंह राजपूत, ये करुणा चाची के छोटे चाचा हैं। ये पैंतालीस साल के हैं और शहर में ही रहते हैं। शहर में ये एक बड़ी सी प्राइवेट कंपनी में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत हैं। इनकी पत्नी का नाम शैलजा है। इनके दो बच्चे हैं जो शहर में ही रहते हैं अपने माॅ बाप के साथ।

पुष्पा सिंह, ये करुणा चाची की इकलौती बुआ हैं। उमर यही कोई चालीस के आस पास। इनके पति का नाम भरत सिंह है। ये पेशे से सरकारी डाक्टर हैं। पुष्पा बुआ के दो बच्चे हैं। एक बच्चा पढ़ाई करके एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर रहा है जबकि दूसरा बेटा अपने बाप की तरह डाक्टर बनना चाहता है इस लिए डाक्टरी की पढ़ाई कर रहा है।

तो ये था करुणा चाची के मायके वालों का संक्षिप्त परिचय। अब कहानी की तरफ चलते हैं।
करुणा चाची अपने कमरे में बेड पर पड़ी किसी गहरे ख़यालों में गुम थी। कल उनके पास उनके पति अभय का फोन आया था। उन्होंने बताया था कि विराज किसी काम से गाव आया है, इस लिए वो बच्चों को लेकर उसके साथ ही मुम्बई आ जाए। अभय ने करुणा को पहले ही बता दिया था कि वो मुम्बई में विराज के साथ ही रह रहा है। उसने सारी राम कहानी करुणा को बता दिया था।

करुणा अपने पति से असलियत जान कर बहुत हैरान हुई थी और बेहद दुखी भी। उसने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि एक भाई अपने भाई को इस तरह जान से मार सकता है। अपनी जेठानी प्रतिमा के चरित्र का सुन कर उसे लकवा सा मार गया था। उसके मन में प्रतिमा के प्रति घृणा व नफ़रत पैदा हो गई थी। उसे याद आता कि कैसे प्रतिमा उसके पास आकर उससे अश्लील बातें किया करती थी।

करुणा को अब समझ में आया था कि उसकी जेठानी उससे ऐसी अश्लील बातें क्यों किया करती थी। उसका एक ही मकसद होता था कि वो करुणा से ऐसी बातें करके उसके अंदर वासना की आग को भड़का दे ताकि करुणा उस आग में जलते हुए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। करुणा ये सब सोच सोच कर हैरान थी कि उसकी जेठानी उसके साथ क्या करना चाहती थी।

करुणा ने भगवान का लाख लाख शुक्रिया अदा किया कि अच्छा हुआ कि वो अपनी जेठानी की उन बातों से खुद को सम्हाले रखा था। वरना जाने कैसा अनर्थ हो जाता। अभय ने उसे सब कुछ बता दिया था। उसने करुणा को बता दिया था कि उसका भतीजा विराज अब बहुत बड़ा आदमी बन गया है। उसने बताया कि कैसे एक ग़ैर इंसान ने उसे अपना बेटा बना लिया और उसके नाम अपनी अरबों की संपत्ति कर दी। करुणा ये सब जान कर बहुत खुश हुई थी। उसकी ऑखों से ऑसू छलक पड़े थे ये सब जान कर।

अभय ने जब उससे कहा कि वो बच्चों को लेकर विराज के साथ मुम्बई आ जाए तो वो इस बात से बड़ा खुश हुई थी। उसे लग रहा था कि कितना जल्दी वो मुम्बई पहुॅच जाए और बड़ी बहन के समान अपनी जेठानी गौरी से मिले। उससे मिल कर वो अपने बर्ताव के लिए माफ़ी मागना चाहती थी और उससे लिपट कर खूब रोना चाहती थी। जब से उसे अभय के द्वारा सारी सच्चाई का पता चला था तब से वह अकेले में अक्सर ऑसू बहाती रहती थी। उसे अपनी जेठानी गौरी के साथ बिताए हर पल याद आते। उसे याद आता कि कैसे गौरी उसे अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और उससे प्यार करती थी। उसे कोई काम नहीं करने दिया करती थी। वो हमेशा यही कहती कि तुम पढ़ी लिखी हो इस लिए तुम्हारा काम सिर्फ बच्चों को पढ़ाना है। घर के सारे काम वो खुद कर लेगी।

बेड पर
पड़ी करुणा ये सब सोच सोच कर ऑसू बहा ही रही थी कि सहसा उसका मोबाइल बज उठा। वो ख़यालों के अथाह सागर से बाहर आई और सिरहाने रखे मोबाइल को उठाकर उसकी स्क्रीन में फ्लैश कर रहे 'अभय जी' नाम को देखा तो तुरंत ही उसने काल को रिसीव कर मोबाइल को कान से लगा लिया।

"...........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"क्या???" करुणा हल्के से चौंकी____"आज ही निकलना होगा मुझे? मगर बात क्या है जी? आप तो कह रहे थे कि कल जाना है।"
"........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"ये क्या कह रहे हैं आप?" करुणा के चेहरे पर एकाएक ही चिंता के भाव आ गए___"ऐसा कैसे हो सकता है?"

".......।" उधर से अभय कुछ देर तक उससे कुछ कहता रहा।
"ठीक है आप चिंता मत कीजिए।" करुणा ने कहा__"मैं हेमराज के साथ ही बच्चों को लेकर यहाॅ से निकलूॅगी। उसके बाद मैं रेलवे स्टेशन पर विराज से मिल लूॅगी।"

"..........।" उधर से अभय ने फिर कुछ कहा।
"जी ठीक है।" करुणा ने कहा___"मैं अभी माॅ और दादा जी से बात करती हूॅ। सामान कुछ ज्यादा नहीं है। बस एक बैग ही है। बाॅकी जैसा आप कहें।"
"..........।" उधर से अभय ने कुछ कहा।
"हाॅ ठीक है।" करुणा ने सिर हिलाया___"मैं सामान ज्यादा नहीं लूॅगी। आप हेमराज को समझा दीजिएगा।"

उधर से अभय ने कुछ और कहा जिस पर करुणा ने हाॅ कह कर सिर हिलाया उसके बाद काल कट हो गई। काल कट होने के बाद करुणा ने गहरी साॅस ली और फिर बेड से उतर कर कमरे से बाहर आ गई।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इधर हास्पिटल में।
मेरे दिलो दिमाग़ में ऑधी तूफान चल रहा था। मुझ पर नज़र पड़ते ही बेड पर पड़ी विधी के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे वह मुझे देख कर एकदम से स्टेचू में तब्दील हो गई हो। एकटक मेरी तरफ देखे जा रही थी वह। फिर सहसा उसके चेहरे के भाव एकाएक ही बदले। उस चेहरे पर दुख और पीड़ा के भाव उभर आए। पथराई हुई ऑखों ने अपने अंदर से किसी टूटे हुए बाॅध की तरह ऑसुओं को बाहर की तरफ तेज़ प्रवाह से बहाना शुरू कर दिया।

उसके चेहरे के बदले हुए उन भावों को देख कर भी मेरे अंदर की नफ़रत और आक्रोश में कोई कमी नहीं आई। मेरी ऑखों के सामने कोई और ही मंज़र घूम रहा था। गुज़रे हुए कल की तस्वीरें बार बार ऑखों के सामने घूम रही थीं। अभी मैं इन सब तस्वीरों को देख ही रहा था कि तभी बेजान हो चुके विधी के जिस्म में हल्का सा कंपन हुआ और उसके थरथराते हुए होठों से जो लड़खड़ाता हुआ शब्द निकला उसने मुझे दूसरी दुनियाॅ से लाकर इस हकीक़त की दुनियाॅ में पटक दिया।

"र..राऽऽऽज।" बहुत ही करुण भाव से मगर लरज़ता हुआ विधी का ये स्वर मेरे कानो से टकराया। हकीक़त की दुनियाॅ में आते ही मेरी नज़र विधी के चेहरे पर फिर से पड़ी तो इस बार मेरा समूचा अस्तित्व हिल गया। विधी की ऑखों से ऑसू बह रहे थे, उसके चेहरे पर अथाह पीड़ा के भाव थे। ये सब देख कर मेरा हृदय हाहाकार कर उठा। पल भर में मेरे अंदर मौजूद उसके प्रति मेरी नफ़रत घृणा और गुस्सा सब कुछ साबुन के झाग की तरह बैठता चला गया। मेरे टूटे हुए दिल के किसी टुकड़े में दबा उसके लिए बेपनाह प्यार चीख उठा।

मैने देखा कि करवॅट के बल लेटी विधी का एक हाॅथ धीरे से ऊपर की तरफ ऐसे अंदाज़ में उठा जैसे वो मुझे अपने पास बुला रही हो। मेरा समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि अंदर की आत्मा तक में एक झंझावात सा हुआ। मैं किसी सम्मोहन के वशीभूत होकर उसकी तरफ बढ़ चला। इस वक्त जैसे मैं खुद को भूल ही चुका था। कुछ ही पल में मैं विधी के पास उसके उस उठे हुए हाॅथ के पास पहुॅच गया।

"त तुम आ गए राज।" मुझे अपने करीब देखते ही उसने अपने उस उठे हुए हाथ से मेरी बाॅई कलाई को पकड़ते हुए कहा___"मैं तुम्हारे ही आने का यहाॅ इन्तज़ार कर रही थी। मेरी साॅसें सिर्फ तुम्हें ही देखने के लिए बची हुई हैं।"

मेरे मुख से उसकी इन बातों पर कोई लफ्ज़ न निकला। किन्तु मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर बुरी तरह चौंका ज़रूर। हैरानी से उसकी तरफ देखा मैने। मगर फिर अचानक ही जाने क्या हुआ मुझे कि मेरे चेहरे पर फिर से वही नफ़रत और गुस्सा उभर आया। मैने एक झटके से उसके हाॅथ से अपनी कलाई को छुड़ा लिया।

"अब ये कौन सा नया नाटक शुरू किया है तुमने?" मेरे मुख से सहसा गुर्राहट निकली___"और क्या कहा तुमने कि तुम मेरा ही इन्तज़ार कर थी? भला क्यों कर रही थी मेरा इन्तज़ार? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें पता चल गया हो कि इस समय मैं फिर से रुपये पैसे वाला हो गया हूॅ? इस लिए पैसों के लिए फिर से मुझे बुला लिया तुमने। वाह क्या बात है जवाब नहीं है तेरा। अब समझ में आई सारी बात मुझे। मुझे मुम्बई से बुलाने के लिए मेरे ही दोस्त का इस्तेमाल किया तूने। क्या दिमाग़ लगाया है तूने लड़की क्या दिमाग़ लगाया है। मगर तेरे इस दिमाग़ लगाने से अब कुछ नहीं होने वाला। मैं तेरे इस नाटक में फॅसने वाला नहीं हूॅ अब। इतना तो सबक सीख ही लिया है मैने कि तुझ जैसी लड़की से कैसे दूर रहा जाता है। मुश्किल तो था मगर सह लिया है मैने, और अब उस सबसे बहुत दूर निकल गया हूॅ। अब कोई लड़की मुझे अपने रूप जाल में या अपने झूठे प्यार के जाल में नहीं फॅसा सकती। इस लिए लड़की, ये जो तूने नाटक रचा है न उसे यहीं खत्म कर दे। अब कुछ नहीं मिलने वाला यहाॅ। मेरा यार भोला था नासमझ था इस लिए तेरी बातों के जाल में फॅस गया और मुझे यहाॅ बुला लिया। मगर चिंता मत कर मैं अपने यार को सम्हाल लूॅगा।"

मैने ये सब बिना रुके मानो एक ही साॅस में कह दिया था और कहने के बाद उसके पास एक पल भी रुकना गवाॅरा न किया। पलट कर वापस चल दिया, दो क़दम चलने के बाद सहसा मैं रुका और पलट कर बोला___"एक बात कहूॅ। आज भी तुझे उतना ही प्यार करता हूॅ जितना पहले किया करता था मगर बेपनाह प्यार करने के बावजूद अब तुझे पाने की मेरे दिल में ज़रा सी भी हसरत बाॅकी नहीं है।"

ये कह कर मैं तेज़ी से पलट गया। पलट इस लिए गया क्योंकि मैं उस बेवफा को अपनी ऑखों में भर आए ऑसुओं को दिखाना नहीं चाहता था। मेरा दिल अंदर ही अंदर बुरी तरह तड़पने लगा था। मुझे लग रहा था कि मैं हास्पिटल के बाहर दौड़ते हुए जाऊॅ और बीच सड़क पर घुटनों के बल बैठ कर तथा आसमान की तरफ चेहरा करके ज़ोर ज़ोर से चीखूॅ चिल्लाऊॅ और दहाड़ें मार मार कर रोऊॅ। सारी दुनियाॅ मेरा वो रुदन देखे मगर वो न देखे सुने जिसे मैं आज भी टूट कर प्यार करता हूॅ।

"तुम्हारी इन बातों से पता चलता है राज कि तुम आज के समय में मुझसे कितनी नफ़रत करते हो।" सहसा विधी की करुण आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी____"और सच कहूॅ तो ऐसा तुम्हें करना भी चाहिए। मुझे इसके लिए तुमसे कोई शिकायत नहीं है। मैने जो कुछ भी तुम्हारे साथ किया था उसके लिए कोई भी यही करता। मगर, मेरा यकीन करो राज मेरे मन में ना तो पहले ये बात थी और ना ही आज है कि मैने पैसों के लिए ये सब किया।"

"बंद करो अपनी ये बकवास।" मैने पलट कर चीखते हुए कहा था, बोला___"तेरी फितरत को अच्छी तरह जानता हूॅ मैं। आज भी तूने मुझे इसी लिए बुलवाया है क्योंकि तुझे पता चल चुका है कि अब मैं फिर से पैसे वाला हो गया हूॅ। पैसों से प्यार है तुझे, पैसों के लिए तू किसी भी लड़के के दिल के साथ खिलवाड़ कर सकती है। मगर, अब तेरी कोई भी चाल मुझ पर चलने वाली नहीं है समझी? मेरा दिल तो करता है कि इसी वक्त तुझे तेरे किये की सज़ा दूॅ मगर नहीं कर सकता मैं ऐसा। क्योंकि मुझसे तेरी तरह किसी को चोंट पहुॅचाना नहीं आता और ना ही मैं अपने मतलब के लिए तेरे साथ कुछ करना चाहता हूॅ। तुझे अगर मैं कोई दुवा नहीं दे सकता तो बद्दुवा भी नहीं दूॅगा।"

मेरी बातें सुन कर विधी के दिल में कदाचित टीस सी उभरी। उसकी ऑखें बंद हो गई और बंद ऑखों से ऑसुओं की धार बह चली। मगर फिर जैसे उसने खुद को सम्हाला और मेरी तरफ कातर भाव से देखने लगी। उसे इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर एक बार मैं फिर से हिल गया। मेरे दिल में बड़ी ज़ोर की पीड़ा हुई मगर मैने खुद को सम्हाला। आज भी उसके चेहरे की उदासी और ऑखों में ऑसू देख कर मैं तड़प जाता था किन्तु अंदर से कोई चीख कर मुझसे कहने लगता इसने तेरे प्यार की कदर नहीं की। इसने तुझे धोखा दिया था। तेरी सच्ची चाहत को मज़ाक बना कर रख दिया था। बस इस एहसास के साथ ही उसके लिए मेरे अंदर जो तड़प उठ जाती थी वो कहीं गुम सी हो जाती थी।

"तुमने तो मुझे कोई सज़ा नहीं दी राज।" सहसा विधी ने पुनः करुण भाव से कहा___"मगर मेरी ज़िदगी ने मुझे खुद सज़ी दी है। ऐसी सज़ा कि मेरी साॅसें बस चंद दिनों की या फिर चंद पलों की ही मेहमान हैं। किस्मत बड़ी ख़राब चीज़ भी होती है, एक पल में हमसे वो सब कुछ छीन लेती है जिसे हम किसी भी कीमत पर किसी को देना नहीं चाहते। किस्मत पर किसी का ज़ोर नहीं चलता राज। ये मेरी बदकिस्मती ही तो थी कि मैने तुम्हारे साथ वो सब किया। मगर यकीन मानो उस समय जो मुझे समझ में आया मैने वही किया। क्योंकि मुझे कुछ और सूझ ही नहीं रहा था। भला मैं ये कैसे सह सकती थी कि मेरी छोटी सी ज़िदगी के साथ तुम इस हद तक मुझे प्यार करने लगो कि मेरे मरने के बाद तुम खुद को सम्हाल ही न पाओ? उस समय मैने तुम्हें धोखा दिया मगर उस समय के मेरे धोखे ने तुम्हें इतना भी टूट कर बिखरने नहीं दिया कि बाद में तुम सम्हल ही न पाते। मैं मानती हूॅ कि दिल जब किसी के द्वारा टूटता है तो उसका दर्द हमेशा के लिए दिल के किसी कोने में दबा बैठा रहता है। मगर, उस समय के हालात में तुम टूटे तो ज़रूर मगर इस हद तक नहीं बिखरे। वरना आज मेरे सामने इस तरह खड़े नहीं रहते। आज तुम जिस मुकाम पर हो वहाॅ नहीं पहुॅच पाते।"

विधी की बातें सुन कर मुझे कुछ समझ न आया कि ये क्या अनाप शनाप बके जा रही है? मगर उसके लहजे में और उसके भाव में कुछ तो ऐसा था जिसने मुझे कुछ हद तक शान्त सा कर दिया था।

"तो तुम क्या चाहती थी कि मैं टूट कर बिखर जाता और फिर कभी सम्हलता ही नहीं?" मैने तीके भाव से कहा___"अरे मैं तो आज भी उसी हालत में हूॅ। मगर कहते हैं न कि इंसान के जीवन में सिर्फ उसी बस का हक़ नहीं होता बल्कि उसके परिवार वालों का भी होता है। मेरी माॅ मेरी बहन ने मुझे प्यार ही इतना दिया है कि मैं बिखर कर भी नहीं बिखरा। मैने भी सोच लिया कि ऐसी लड़की के लिए क्या रोना जिसने प्यार को कभी समझा ही नहीं? रोना है तो उनके लिए रोओ जो सच में मुझसे प्यार करते हैं।"

"ये तो खुशी की बात है कि तुमने ऐसा सोचा और खुद को सम्हाल लिया।" विधी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा__"मैं भी यही चाहती थी कि तुम उस सबसे खुद को सम्हाल लो और जीवन में आगे बढ़ जाओ। किसी एक के चले जाने से किसी का जीवन रुक नहीं जाता। समझदार इंसान को सबकुछ भूल कर आगे बढ़ जाना चाहिए। वही तुमने किया, इस बात से मैं खुश हूॅ राज। यही तो चाहती थी मैं। यकीन मानो तुम्हें आज इस तरह देख कर मेरे मन का बोझ उतर गया है। मैं तुमसे ये नहीं कहूॅगी कि तुम मुझे उस सबके लिए माफ़ कर दो जो कुछ मैने तुम्हारे साथ किया था। अगर तुम ऐसे ही खुश हो तो भला मैं माफ़ी माॅग कर तुम्हारी उस खुशी को कैसे मिटा सकती हूॅ? अब तुम जाओ राज, जीवन में खूब तरक्की करो और अपनों के साथ साथ खुद को भी खुश रखो। और हाॅ, जीवन में मुझे कभी याद मत करना, क्योंकि मैं याद करने लायक नहीं हूॅ।"

विधी की इन विचित्र बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आज इसे हो क्या गया है? ये तो ऐसी बातें कह रही थी जैसे कोई उपदेशक हो। मेरे दिलो दिमाग़ में तरह तरह की बातें चलने लगी थीं।

"जाते जाते मेरी एक आरज़ू भी पूरी करते जाओ राज।" विधी का वाक्य मेरे कानों से टकराया___"हलाॅकि तुमसे कोई आरज़ू रखने का मुझे कोई हक़ तो नहीं है मगर मैं जानती हूॅ कि तुम मेरी आरज़ू ज़रूर पूरी करोगे।" कहने के बाद विधी कुछ पल के लिए रुकी फिर बोली___"मेरे पास आओ न राज। मैं तुम्हें और तुम्हारे चेहरे को जी भर के देखना चाहती हूॅ। तुम्हारे चेहरे की इस सुंदर तस्वीर को अपनी ऑखों में फिर से बसा लेना चाहती हूॅ। मेरी ये आरज़ू पूरी कर दो राज। इतना तो कर ही सकते हो न तुम?"

विधी की बात सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में धमाका सा हुआ। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। पेट में बड़ी तेजी से जैसे कोई गैस का गोला घूमने लगा था। दिमाग़ एकदम सुन्ना सा पड़ता चला गया। कानों में कहीं दूर से सीटियों की अनवरत आवाज़ गूॅजती महसूस हुई मुझे। पल भर में मेरे ज़हन में जाने कितने ही प्रकार के ख़याल आए और जाने कहाॅ गुम हो गए। बस एक ही ख़याल गुम न हुआ और वो ये था कि विधी ऐसा क्यों चाह रही है?

किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ मैं इस तरह विधी की तरफ बढ़ चला जैसे मुझ पर किसी तरह का सम्मोहन हो गया हो। कुछ ही पल में मैं विधी के करीब उसके चेहरे के पास जा कर खड़ा हो गया। मेरे खड़े होते ही विधी ने किसी तरह खुद को उठाया और बेड की पिछली पुश्त से पीठ टिका लिया। अब वो अधलेटी सी अवस्था में थी। चेहरा ऊपर करके उसने मेरे चेहरे की तरफ देखा। उसकी ऑखों में ऑसुओं का गरम जल तैरता हुआ नज़र आया मुझे। मैने पहली बार उसके चेहरे को बड़े ध्यान से देखा और अगले ही पल बुरी तरह चौंक पड़ा मैं। मुझे विधी के चेहरे पर मुकम्मल खिज़ा दिखाई दी। जो चेहरा हर पल ताजे खिले गुलाब की मानिन्द खिला हुआ रहा करता था आज उस चेहरे पर वीरानियों के सिवा कुछ न था। ऐसा लगता था जैसे वो शदियों से बीमार हो।

उसे इस हालत में देख कर एक बार फिर से मेरा दिल तड़प उठा। जी चाहा कि अभी झपट कर उसे अपने सीने से लगा लूॅ मगर ऐन वक्त पर मुझे उसका धोखा याद आ गया। उसका वो दो टूक जवाब देना याद आ गया। मुझे भिखारी कहना याद आ गया। इन सबके याद आते ही मेरे चेहरे पर कठोरता छाती चली गई। एक बार फिर से मेरे अंदर से नफ़रत और गुस्सा उभर कर आया और मेरे चेहरे तथा ऑखों में आकर ठहर गया।

"मैं तुम्हें दुवा में ये भी नहीं कह सकती कि तुम्हें मेरी उमर लग जाए।" तभी विधी ने छलक आए ऑसुओं के साथ कहा___"बस यही दुवा करती हूॅ कि तुम हमेशा खुश रहो। जीवन में हर कोई तुम्हें दिलो जान से प्यार करे। कभी किसी के द्वारा तुम्हारा दिल न दुखे। खुदा मिलेगा तो उससे पूछूॅगी कि मैने ऐसा क्या गुनाह किया था जो उसने मुझे ऐसी ज़िंदगी बक्शी थी? ख़ैर, अब तुम जाओ राज, मैने तुम्हारी तस्वीर को इस तरह अपनी ऑखों में बसा लिया है कि अब हर जन्म में मुझे सिर्फ तुम ही नज़र आओगे।"

विधी की इस बात से एक बार फिर से मेरे चेहरे पर उभर आए नफ़रत व गुस्से में कमी आ गई। मैंने उसे अजीब भाव से देखा। मेरे अंदर कोई ज़ोर ज़ोर से चीखे जा रहा था कि इसे एक बार अपने सीने से लगा ले राज। मगर मैने अपने अंदर के उस शोर को शख्ती से दबा दिया और पलट कर कमरे के बाहर की तरफ चल दिया। मैने महसूस किया कि मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे हमेशा के लिए दूर हुई जा रही है। मेरे दिल की धड़कने अनायास ही ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगी। मनो मस्तिष्क में बड़ी तेज़ी से कोई तूफान चलने लगा था। अभी मैं दरवाजे के पास ही पहुॅचा था कि.....

"रुक जाओऽऽ।" ये वाक्य एक नई आवाज़ के साथ मेरे कानों से टकराया था। दरवाजे के करीब बढ़ते हुए मेरे क़दम एकाएक ही रुक गए। मैं बिजली की सी तेज़ी से पलटा। कमरे में ही बेड के पास खड़ी जिस शख्सियत पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर मैं हक्का बक्का रह गया। आश्चर्य और अविश्वास से मेरी ऑखें फटी की फटी रह गईं। मुझे अपनी ऑखों पर यकीन नहीं हुआ कि जिस शख्सियत को मेरी ऑखें देख रही हैं वो सच में वही हैं या फिर ये मेरी ऑखों का कोई भ्रम है।

"मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी राज।" सहसा ये नई आवाज़ फिर से मेरे कानों से टकराई___"तुम इस तरह कैसे यहाॅ से जा सकते हो? इतनी बेरुख़ी तो कोई अपने किसी दुश्मन से भी नहीं जाहिर करता जितनी तुम विधी को देख कर ज़ाहिर कर रहे हो।"

इस बार मैं बुरी तरह चौंका। ये तो सच में वही हैं। यानी रितू दीदी। जी हाॅ दोस्तो, ये वही रितू दीदी हैं जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी मुझे भाई नहीं माना और ना ही मुझसे बात करना ज़रूरी समझा। मगर मैं इस बात से हैरान था कि वो यहाॅ कैसे मौजूद हो सकती हैं? जब मैं आया था इस कमरे में तब तो ये यहाॅ नहीं थी, फिर अचानक ये कहाॅ से यहाॅ पर प्रकट हो गईं?

"प्लीज़ दीदी।" तभी बेड पर अधलेटी अवस्था में बैठी विधी ने रितू दीदी से कहा___"कुछ मत कहिए उसे।"
"नहीं विधी।" रितू दीदी ने आवेशयुक्त भाव से कहा__"मुझे बोलने दे अब। माना कि तूने जो किया वो उस समय के हिसाब से ग़लत था मगर इसका मतलब ये नहीं कि बिना किसी बात को जाने समझे ये तुझे इस तरह बोल कर यहाॅ से चला जाए।"

"नहीं दीदी प्लीज़।" विधी ने विनती करते हुए कहा___"ऐसा मत कहिए उसे। मुझे किसी बात की सफाई नहीं देना है उससे। आप जानती हैं कि मैं उसे किसी भी तरह का दुख नहीं देना चाहती अब।"
"क्यों करती है रे ऐसा तू?" रितू दीदी की आवाज़ सहसा भारी हो गई, ऑखों में ऑसू आ गए, बोली___"ऐसा मत कर विधी। वरना ये ज़मीन और वो आसमान फट जाएगा। तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े? फिर क्यों अब इस सबसे मुकर रही हो तू? अब तक तो तड़प ही रही थी न तो अब अपने अंतिम समय में क्यों इस तड़प को लेकर जाना चाहती है? नहीं नहीं, मैं ऐसा हर्गिज़ नहीं होने दूॅगी।"

रितू दीदी की बातें सुन कर मेरे दिलो दिमाग़ में भयंकर विष्फोट हुआ। ऐसा लगा जैसे आसमान से कोई बिजली सीधा मेरे दिल पर गिर पड़ी हो। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई। दिमाग़ में हर बात बड़ी तेज़ी से घूमने लगी। एक एक बात, एक एक दृष्य मेरे ज़हन से टकराने लगे। पवन का मुझे फोन करके यहाॅ अर्जेन्ट बुलाना, मेरे द्वारा वजह पूछने पर उसका अब तक चुप रहना। हास्पिटल के इस कमरे के बाहर से ये कह कर चले जाना कि मैं यहाॅ जो कुछ भी देखूॅ सुनूॅ उसे देख सुन कर खुद को सम्हाले रखूॅ। हास्पिटल के इस कमरे के अंदर विधी का मुझसे मिलना, उसकी वो सब विचित्र बातें और अब रितू दीदी का यहाॅ मौजूद होकर ये सब कहना। ये सब चीज़ें मेरे दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी घूमने लगी थी।

मुझे अब समझ आया कि असल माज़रा क्या है। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू कर दिया और अब मुझे सब कुछ समझ में आने लगा था। दरअसल विधी को कुछ हुआ है जिसके लिए पवन ने मुझे यहाॅ बुलाया था। मगर विधी को ऐसा क्या हो गया है? रितू दीदी ने ये क्या कहा कि____ "तू चाहती थी न कि तू अपने आख़िरी समय में अपने इस महबूब की बाहों में ही दम तोड़े?" हे भगवान! ये क्या कहा रितू दीदी ने?

"नननहींऽऽऽऽ।" अपने ही सोचों में डूबा मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था, पल भर में मेरी ऑखों से ऑसुओं का जैसे कोई बाॅध टूट पड़ा। मैं भागते हुए विधी के पास आया। इधर मेरी चीख से रितू दीदी और विधी भी चौंक पड़ी थी।

मैं भागते हुए विधी के पास आया था, बेड के किनारे पर बैठ कर मैने विधी को उसके दोनो कंधों से पकड़ कर खुद से छुपका लिया और बुरी तरह रो पड़ा। मैं विधी को अपने सीने से बुरी तरह भींचे हुए था। मेरे मुख से कोई बोल नहीं फूट रहा था। मैं बस रोये जा रहा था। मुझे समझ में आ चुका था कि विधी को कुछ ऐसा हो गया है जिससे वो मरने वाली है। ये बात मेरे लिए मेरी जान ले लेने से कम नहीं थी।

"नहीं राज।" विधी मुझसे छुपकी खुद भी रो रही थी, किन्तु उसने खुद को सम्हालते हुए कहा___"इस तरह मत रोओ। मैं अपनी ऑखों के सामने तुम्हें रोते हुए नहीं देख सकती। प्लीज़ चुप हो जाओ न।"
"नहीं नहीं नहीं।" मैंने तड़पते हुए कहा___"तुम मुझे छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी। तुम नहीं जानती कि तुम्हारे लिए कितना तड़पा हूॅ मैं। पर अब और नहीं विधी। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूॅगा।"

"पागल मत बनो राज।" विधी ने मेरे सिर को सहलाते हुए कहा___"खुद को सम्हालो और जीवन में आगे बढ़ो।"
"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने सिसकते हुए कहा___"मैं फिर से तुम्हें खोना नहीं चाहता। मुझे बताओ कि क्या हुआ है तुम्हें? मैं तुम्हारा इलाज़ करवाऊॅगा। दुनियाॅ भर के डाक्टरों को तुम्हारे इलाज़ के लिए पल भर में ले आऊॅगा।"

"अब कुछ नहीं हो सकता राज।" विधी ने सहसा मुझसे अलग होकर मेरे चेहरे को अपनी दोनो हॅथेलियों में लेते हुए कहा___"मैने कहा न कि मेरा सफर खत्म हो चुका है। मुझे ब्लड कैंसर है वो भी लास्ट स्टेज का। मेरी साॅसें किसी भी पल रुक सकती हैं और मैं भगवान के पास चली जाऊॅगी।"

"ननहींऽऽऽ।" विधी की ये बात सुनकर मुझे ज़बरदस्त झटका लगा। ऑखों के सामने अॅधेरा सा छा गया। हर चीज़ जैसे किसी शून्य में डूबती महसूस हुई मुझे। कानों में कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था मुझे। दिल की धड़कने रुक सी गई और मैं एकदम से अचेत सी अवस्था में आ गया।

"राऽऽऽज।" विधी के हलक से चीख निकल गई, वो मेरे चेहरे को थपथपाते हुए बुरी तरह रोने लगी। पास में ही खड़ी रितू दीदी भी दौड़ कर मेरे पास आ गईं। मुझे पीछे से पकड़ते हुए मुझे ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें लगाने लगीं। सब कुछ एकदम से ग़मगीन सा हो गया था। वक्त को एक जगह ठहर जाने में एक पल का भी समय नहीं लगा।

वो दोनो बुरी तरह रोये जा रही थी। रितू दीदी के दिमाग़ ने काम किया। पास ही टेबल पर रखे पानी के ग्लास को उठा कर उससे मेरे चेहरे पर पानी छिड़का उन्होंने। थोड़ी ही देर में मुझे होश आ गया। होश में आते ही मैं विधी से लिपट कर ज़ार ज़ार रोने लगा।

"क्यों विधी क्यों?" मैने बिलखते हुए उससे कहा___"क्यों छुपाया तुमने मुझसे? क्या इसी लिए तुमने मेरे साथ वो सब किया था, ताकि मैं तुमसे दूर चला जाऊॅ? और मैं मूरख ये समझता रहा कि तुमने मेरे साथ कितना ग़लत किया था। कितना बुरा हूॅ मैं, आज तक मैं तुम्हें भला बुरा कहता रहा। तुम्हारे बारे में कितना कुछ बुरा सोचता रहा। मैने कितना बड़ा अपराध किया है विधी। हाय कितना बड़ा पाप किया मैने। मुझे तो भगवान भी कभी माफ़ नहीं करेगा।"

"नहीं राज नहीं।" विधी ने तड़प कर मुझे अपने से छुपका लिया, बोली___"तुमने कोई अपराध नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। तुमने तो बस प्यार ही किया है मुझे, हर रूप में तुमने मुझे प्यार किया है राज। मुझे तुम पर नाज़ है। ईश्वर से यही दुवा करूॅगी कि हर जन्म में मुझे तुम्हारा ही प्यार मिले।"

"अपने आपको सम्हालो राज।" सहसा रितू दीदी ने मुझे पीछे से पकड़े हुए कहा___"ईश्वर इस बात का गवाह है कि तुम दोनो ने कोई पाप नहीं किया है। विधी ने उस समय जो किया उसमें भी उसके मन में सिर्फ यही था कि तुम उससे दूर हो जाओ और एक नये सिरे से जीवन में आगे बढ़ो। तुम खुद सोचो राज कि जो विधी तुम्हें दिलो जान से प्यार करती थी उसने तुम्हें अपने से दूर करने के लिए खुद को कैसे पत्थर दिल बनाया होगा? उसका दिल कितना तड़पा होगा? मगर इसके बाद भी उसने तुम्हें खुद से दूर किया। उस समय का वो दुख आज के इस दुख से भारी नहीं था।"

"लेकिन दीदी इसने मुझसे ये बात छुपाई ही क्यों थी?" मैने रोते हुए कहा___"क्या इसे मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था? मैं इसके इलाज़ के लिए धरती आसमान एक कर देता और इसको इस गंभीर बिमारी से बचा लेता।"

"नहीं राज।" दीदी ने कहा___"तुम उस समय भी कुछ न कर पाते क्योंकि तब तक कैंसर इसके खून में पूरी तरह फैल चुका था। पहले इस बात का इसे पता ही नहीं था और जब पता चला तो डाक्टर ने बताया कि इसके इलाज में ढेर सारा पैसा लगेगा और इसका इलाज हमारे देश में हो पाना भी मुश्किल था। उस समय ना तो तुम इतने सक्षम थे और ना ही इसके माता पिता जो इसका इलाज करवा पाते। इस लिए विधी ने फैंसला किया कि वो तुमसे जितना जल्दी हो सके दूर हो जाए। क्योंकि तब तुम्हें इस बात का भी दुख होता कि तुम इसका इलाज नहीं करवा पाए। सब कुछ हमारे हाॅथ में नहीं होता राज। कुछ ईश्वर का भी दखल होता है।"

"कुछ भी कहिये दीदी।" मैने कहा___"कम से कम मैं अपनी विधी के साथ तो रहता। उसे खुद से अलग करके उसे दुखों के सागर में डूबने तो न देता।"
"नहीं राज तुम इस सबसे दुखी मत हो।" विधी ने कहा___"सब कुछ भूल जाओ। मैं बस ये चाहती हूॅ कि तुम मुझे खुशी खुशी इस दुनियाॅ से अलविदा करो। आज तुम्हारी बाहों में हूॅ तो मेरे सारे दुख दर्द दूर हो गए हैं। मेरी ख्वाहिश थी कि मेरा दम निकले तो सिर्फ मेरे महबूब की बाहों में। तुम्हारी सुंदर छवि को अपनी ऑखों में बसा कर यहाॅ से जाना चाहती थी। इस लिए दीदी से मैने अपनी ये इच्छा बताई और दीदी ने मुझसे वादा किया कि ये तुमको मेरे पास लेकर ज़रूर आएॅगी।"

मैं विधी की इस बात से चौंका। पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा तो रितू दीदी की नज़रें झुक गईं। उनके चेहरे पर एकाएक ही ग्लानि और अपराध बोझ जैसे भाव उभर आए।

"राज, तुम्हारी रितू दीदी अब पहले जैसे नहीं रहीं।" सहसा विधी ने मुझसे कहा___"ये तुमसे बहुत प्यार करती हैं। इन्हें कभी खुद से दूर न करना। इन्होंने जो कुछ किया उसमे इनका कोई दोष नहीं था। इन्होंने तो वही किया था जो इन्हें बचपन से सिखाया गया था। आज हर सच्चाई इनको पता चल चुकी है इस लिए अब ये तुम्हें ही अपना भाई मानती हैं। तुम इन्हें माफ़ कर देना। इनका मुझ पर बहुत बड़ा उपकार है राज। ये मुझे अपनी छोटी बहन जैसा प्यार देती हैं। जब से ये मुझे मिली हैं तब से मुझे यही एहसास होता रहा है जैसे कि तुम मेरे पास ही हो।"

विधी की इन बातों से मुझे झटका सा लगा। मैने एक बार फिर से पलट कर रितू दीदी की तरफ देखा। उनका सिर पूर्व की भाॅति ही झुका हुआ था। मैने अपने दोनो हाॅथों से उनके चेहरे को लेकर उनके चेहरे को ऊपर उठाया। जैसे ही उनका चेहरा ऊपर हुआ तो मुझे उनका ऑसुओं से तर चेहरा दिखा। मेरा कलेजा हिल गया उनका ये हाल देख कर। मैने उन्हें अपने सीने से लगा लिया। मेरे सीने से लगते ही रितू दीदी की रुलाई फूट गई। वो फूट फूट कर रोने लगी थी। जाने कब से उनके अंदर ये गुबार दबा हुआ था और अब वो इस रूप में निकल रहा था।

"ये क्या दीदी?" मैने उनके सिर को प्यार से सहलाते हुए कहा___"चुप हो जाइये दीदी। अरे आप तो मेरी सबसे प्यारी और बहादुर दीदी हैं। चलिये अब चुप हो जाइये।"
"तू इतना अच्छा क्यों है राज?" रितू दीदी का रोना बंद ही नहीं हो रहा था____"तुझे मुझ पर गुस्सा क्यों नहीं आता? मैने तुझे कभी अपना भाई नहीं माना। हमेशा तेरा दिल दुखाया मैने। मुझे वो सब याद है मेरे भाई जो कुछ मैने तेरे साथ किया है। जब जब मुझे वो सब याद आता है तब तब मुझे खुद से घृणा होने लगती है। मुझे ऐसा लगने लगता है कि मैं अपने आपको क्या कर डालूॅ।"

"नहीं दीदी।" मैने उन्हें खुद से अलग करके उनके ऑसुओं को पोंछते हुए कहा___"ऐसा कभी सोचना भी मत। मेरे मन में कभी भी आपके प्रति कोई बुरा ख़याल नहीं आया। कहीं न कहीं मुझे भी इस बात का एहसास था कि आप वही कर रही हैं जो आपको सिखाया जाता था।"

"ये सब तू मेरा दिल रखने के लिए कह रहा है न?" रितू दीदी ने कहा___"जबकि मुझे पता है कि तुझे मेरे उस बर्ताव से कितनी तक़लीफ़ होती थी।"
"हाॅ बुरा तो लगता था दीदी।" मैने कहा___"मगर उस सबके लिए आप पर कभी गुस्सा नहीं आता था। हर बार यही सोचता था कि इस बार आप मुझसे ज़रूर बात करेंगी।"

"और मैं इतनी बुरी थी कि हर बार तेरी उन मासूम सी उम्मीदों को तोड़ देती थी।" रितू ने सिर झुका लिया, बोली___"तू उस सबके लिए मुझे सज़ा दे मेरे भाई। तेरी हर सज़ा को मैं हॅसते हुए कुबूल कर लूॅगी।"
"ठीक है दीदी।" मैने कहा___"आपकी सज़ा यही है कि अब से आप ये सब बिलकुल भी नहीं सोचेंगी और ना ही ये सब सोच कर खुद को रुलाओगी। यही आपकी सज़ा है।"

मेरी ये सज़ा सुन कर रितू दीदी देखती रह गईं मुझे और सहसा फिर से उनकी ऑखों से ऑसू बह चले। वो मुझसे लिपट गईं। वो इस तरह मुझसे लिपटी हुई थी जैसे वो मुझे अपने अंदर समा लेना चाहती हों।

विधी अपना ऑसुओं से तर चेहरा लिए हम दोनो बहन भाई को देख रही थी। उसके होठों पर मुस्कान थी। सहसा तभी उसे ज़ोर का धचका लगा। हम दोनो बहन भाई का ध्यान विधी की तरफ गया। विधी को आए उस ज़ोर के धचके से अचानक ही खाॅसी आने लगी। मैं बुरी तरह चौंका। उधर विधी को लगातार खाॅसी आने लगी थी। मैं ये देख कर बुरी तरह घबरा गया। मेरे साथ साथ रितू दीदी भी घबरा गई। मैने विधी को अपनी बाहों में ले लिया।

"विधी, क्या हुआ तुम्हें?" मैं बदहवाश सा कहता चला गया___"तुम ठीक तो हो न? ये खाॅसी कैसे आने लगी तुम्हें। डाक्टरऽऽऽ.....डा डाक्टर को बुलाओ कोई।"

मैं पागलों की तरह इधर उधर देखने लगा। मेरी नज़र रितू दीदी पर पड़ी तो मैं उन्हें देख कर एकाएक ही रो पड़ा___"दीदी, देखो न विधी को अचानक ये क्या होने लगा है? प्लीज़ दीदी जल्दी से डाक्टर को बुलाइये। जाइये जल्दी.....डाक्टर बुलाइये। मेरी विधी को ये खाॅसी कैसे आने लगी है अचानक?"

मेरी बात सुन कर रितू दीदी को जैसे होश आया। वो बदहवाश सी होकर पहले इधर उधर देखी फिर भागते हुए कमरे से बाहर की तरफ लपकी। इधर मैं लगातार विधी को अपनी बाहों में लिए उसे फुसला रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से जैसे कुंद सा पड़ गया था। उधर विधी को रह रह कर खाॅसी आ रही थी। सहसा तभी उसके मुख से खून निकला। ये देख कर मैं और भी घबरा गया। मैं ज़ोर ज़ोर से डाक्टर डाक्टर चिल्लाने लगा। विधी की हालत प्रतिपल ख़राब होती जा रही थी। उसकी हालत देख कर मेरी जान हलक में आकर फॅस गई थी।

तभी कमरे में भागते हुए डाक्टर नर्सें और रितू दीदी आ गई। उनके पीछे ही विधी के माॅम डैड भी आ गए। उनके चेहरे से ही लग रहा था कि उनकी हालत बहुत ख़राब है। डाक्टर ने आते ही विधी को देखा।

"देखिये इनकी हालत बहुत ख़राब है।" डाक्टर ने विधी को चेक करने के बाद कहा___"ऐसा लगता है कि आज इनका बचना बहुत मुश्किल है।"
"डाऽऽऽऽक्टर।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा था___"ज़ुबान सम्हाल कर बात कर वरना हलक से ज़ुबान खींच कर तेरे हाॅथ में दे दूॅगा समझे? मेरी विधी को कुछ नहीं होगा। इसे कुछ नहीं होने दूॅगा मैं। मैं इसे ठीक कर दूॅगा।"

"बेटीऽऽऽ।" विधी की माॅ भाग कर विधी के पास आई और रोते हुए बोली___"मैं कैसे जी पाऊॅगी अगर तुझे कुछ हो गया तो?"
"ममाॅ।" खाॅसते हुए विधी के मुख से लरजते हुए शब्द निकले___"आज मैं बहुत खुश हूॅ। अपने महबूब की बाहों में हूॅ। कितने अच्छे वक्त पर मेरा दम निकलने वाला है। उस भगवान से शिकायत तो थी मगर अब कोई शिकायत भी नहीं रह गई। उसने मेरी आख़िरी ख्वाहिश को जो पूरी कर दी माॅम। मेरे जाने के बाद डैड का ख़याल रखियेगा।"

"नहीं नहीं।" मैं ज़ार ज़ार रो पड़ा___"तुम्हें कुछ नहीं होगा विधी और अगर कुछ हो गया न तो सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं। सबको जीवन मृत्यु देने वाले उस ईश्वर से नफ़रत करने लगूॅगा मैं।"
"ऐसा मत कहो राज।" विधी ने थरथराते लबों से कहा___"मरना तो एक दिन सबको ही होता है, फर्क सिर्फ इतना है कि कोई जल्दी मर जाता है तो कोई ज़रा देर से। मगर हर कोई मरता ज़रूर है। मेरे लिए इससे बड़ी भला और क्या बात हो सकती है कि मैं अपने जन्म देने वाले माता पिता के सामने और अपने महबूब की बाहों में मरने जा रही हूॅ। मुझे हॅसते हुए विदा करो मेरे साजन। तुम्हारी ये दासी तुम्हारे इन खूबसूरत अधरों की मुस्कान देख कर मरना चाहती है। मुझसे वादा करों मेरे महबूब कि मेरे जाने के बाद तुम खुद को कभी तक़लीफ़ नहीं दोगे। किसी ऐसी लड़की के साथ अपनी दुनियाॅ बसा लोगे जो तुमसे इस विधी से भी ज्यादा प्यार करे।"

"नहीं विधी नहीं।" मैंने रोते हुए झुक कर उसके माथे से अपना माथा सटा लिया___"मत करो ऐसी बातें। तुम मुझे छोंड़ कहीं नहीं जाओगी। मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता।"
"क्या यही प्यार करते हो मुझसे?" विधी ने अटकते हुए स्वर में कहा___"बोलो मेरे देवता। ये कैसा प्यार है तुम्हारा कि तुम अपनी इस दासी की अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं कर रहे?"

"मैं कुछ नहीं जानता विधी।" मैने मजबूती से सिर हिलाते हुए कहा___"मुझे प्यार व्यार कुछ नहीं दिख रहा। मैं सिर्फ इतना जानता हूॅ कि तुम मुझे अकेला छोंड़ कर कहीं नहीं जाओगी बस।"
"अरे मैं तुम्हें छोंड़ कर कहाॅ जा रही हूॅ राज?" विधी ने मेरे चेहरे को सहला कर कहा___"मेरा दिल मेरी आत्मा तो तुममें ही बसी है। तुम मुझे हर वक्त अपने क़रीब ही महसूस करोगे। ये तो जिस्मों की जुदाई है राज, और इस जिस्म का जुदा होना भी तो ज़रूरी है। क्योंकि मेरा ये जिस्म तुम्हारे लायक नहीं रहा। ये बहुत मैला हो चुका है मेरे महबूब। इसका खाक़ में मिल जाना बहुत ज़रूरी हो गया है।"

"दीदी इसे समझाओ न।" मैने पलट कर दीदी की तरफ देखते हुए कहा___"देखिये कैसी बेकार की बातें कर रही है ये। इससे कहिये न दीदी कि ये मुझे छोंड़ कहीं न जाए। इससे कहिये न कि मैं इसके बिना जी नहीं पाऊॅगा।"

मेरी बात सुन कर दीदी कुछ बोलने ही वाली थी कि सहसा इधर विधी को फिर से खाॅसी का धचका लगा। मैने पलट कर विधी को देखा। उसके मुख से खून निकल कर बाहर आ गया था।

"रराऽऽज।" विधी ने उखड़ती हुई साॅसों के साथ कहा___"अब मुझे जाना होगा। मुझे वचन दो मेरे हमदम कि तुम मेरे बाद कभी भी खुद को दुखी नहीं रखोगे। अपनी इस दासी को वचन दो मेरे देवता। मुझे हॅसते हुए विदा करो। और....और एक बार अपनी वो मनमोहक मुस्कान दिखा दो न मुझे। मेरे पास समय नहीं है, मेरे प्राण लेने के लिए देवदूत आ रहे हैं। मैं उन्हें अपनी तरफ आते हुए स्पष्ट देख रही हूॅ।"

"नहींऽऽऽ।" मैं बुरी तरह रो पड़ा___"ऐसा मत कहो। मुझे यूॅ छोंड़ कर मत जाओ प्लीऽऽऽज़। मैं मर जाऊॅगा विधी।"
"हठ न करो मेरे महबूब।" विधी को हिचकियाॅ आने लगी थीं, बोली___"मुझे वचन दो राज। मेरी अंतिम यात्रा को आसान बना दो मेरे देवता।"

मेरे दिलो दिमाग़ ने काम करना मानों बंद कर दिया था। मगर विधी की करुण पुकार ने मुझे बिवश कर दिया। मैंने देखा कि उसका एक हाथ मुझसे वचन लेने के लिए हवा में उठा हुआ था। मैने उसके हाॅथ में अपना हाॅथ रख दिया। मेरे हाॅथ को पकड़ कर उसने हल्के से दबाया। उसके निस्तेज पड़ चुके चेहरे पर हल्का सा नूर दिखा।

"अब अपने अधरों की वो खूबसूरत मुस्कान भी दिखा दो राज।" विधी ने बंद होती पलकों के साथ साथ मगर टूटती हुई साॅसों के साथ कहा___"एक मुद्दत हो गई मैने इन अधरों की उस मनमोहक मुस्कान को नहीं देखा। देर न करो मेरे देवता, जल्दी से दिखा दो वो मुस्कान मुझे।"

ये कैसा सितम था मुझ पर कि इस हाल में भी मुझे वो मुस्कुराने को कह रही थी। भला ये कैसे कर सकता था मैं और भला ये कैसे हो सकता था मुझसे? मगर मेरी जान ने ये रज़ा की थी मुझसे। उसकी आख़िरी ख्वाहिश को पूरा करना मेरा फर्ज़ था, भले ही ये मेरे लिए नामुमकिन था। मैने खुद को बड़ी मुश्किल से सम्हाला। रितू दीदी मेरे पीछे ही मुझे पकड़े बैठी हुई थी। सिरहाने की तरफ विधी के माॅम डैड ऑसुओं से तर चेहरा लिए खड़े थे। कुछ दूरी पर वो डाक्टर और नर्स खड़ी थी। जिनके चेहरों पर इस वक्त दुख के भाव गर्दिश कर रहे थे।

मैने देखा कि मेरी बाहों में पड़ी विधी बड़ी मुश्किल से अपनी ऑखें खोले मुझे ही देखने की कोशिश में लगी थी। मेरे ऑखों से रह रह कर ऑसूॅ बह जाते थे। दिलो दिमाग़ के जज़्बात मेरे बस में नहीं थे। मैने खुद को सम्हालने के लिए और अपने अधरों पर मुस्कान लाने के लिए अपनी ऑखें बंद कर बेकाबूॅ हो चुके जज़्बातों पर काबू पाने की नाकाम सी कोशिश की। उसके बाद ऑखें खोल कर मैने विधी की तरफ देखा, मेरे होठों पर बड़ी मुश्किल से हल्की सी मुस्कान उभरी। मेरी उस मुस्कान को देख कर विधी के सूखे हुए अधरों पर भी हल्की सी मुस्कान उभर आई। और फिर तभी.......

मैने महसूस किया कि उसका जिस्म एकदम से ढीला पड़ गया है। हलाॅकि वो मुझे उसी तरह एकटक देखती हुई हल्का सा मुस्कुरा रही थी। उसके जिस्म में कोई हरकत नहीं हो रही थी। अभी मैं ये सब महसूस ही कर रहा था कि तभी मेरे कानों में विधी की माॅ की ज़ोरदार चीख सुनाई दी। उनकी इस चीख़ से जैसे सबको होश आया और फिर तो जैसे चीखों का और रोने का बाज़ार गर्म हो गया। मुझे मेरे कानों में सबका रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था मगर मेरी निगाहें अपलक विधी के चेहरे पर गड़ी हुई थी। मैं एकदम से शून्य में खोया हुआ था।

हास्पिटल के उस कमरे में मौजूद विधी के माॅम डैड और रितू दीदी बुरी तरह विधी से लिपटे रोये जा रहे थे। सबसे ज्यादा हालत ख़राब विधी की माॅम की थी। उसके डैड मानो सदमें में जा चुके थे। मेरे कानों में सबका रोना चिल्लाना ऐसे सुनाई दे रहा था जैसे किसी अंधकूप में ये सब मौजूद हों।

सहसा रितू दीदी का ध्यान मुझ पर गया। मैं एकटक विधी की खुली हुई ऑखों को और उसके अधरों पर उभरी हल्की सी उस मुस्कान को देखे जा रहा था। मेरा दिलो दिमाग़ एकदम से सुन्न पड़ा हुआ था। रितू दीदी ने मुझे पकड़ कर ज़ोर से हिलाया। किन्तु मुझ पर कुछ भी असर न हुआ। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं थे, ऐसा लग रहा था जैसे मैं ज़िंदा तो हूॅ मगर मेरे अंदर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है।

"राऽऽऽऽज।" रितू दीदी मुझे पकड़ कर झकझोरते हुए चीखी___"होश में आ मेरे भाई। देख विधी हमे छोंड़ कर चली गई रे। तू सुन रहा है न मेरी बात?"
"शान्त हो जाओ दीदी।" मैने धीरे से उनसे कहा___"मेरी विधी मुझे सुकून से देख रही है। उसे देखने दो दीदी। देखिये न दीदी, मेरी विधी के होंठो पर कितनी सुंदर मुस्कान फैली हुई है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए। अरे....आप सब इतना शोर क्यों कर रहे हैं? प्लीज़ चुप हो जाइये। वरना मेरी विधी को अच्छा नहीं लगेगा। उसे सुकून से मुस्कुराने दीजिए।"

रितू दीदी ही नहीं बल्कि विधी के माॅम डैड भी मेरी इस बात से सन्न रह गए। जबकि मैं बड़े प्यार से विधी के चेहरे पर आ गई उसके बालों की लट को एक तरफ हटाते हुए उसे देखे जा रहा था। मैं उसकी उस मुस्कान को देख कर खुद भी मुस्कुरा रहा था।

सहसा पीछे से रितू दीदी मुझसे लिपट गई और बुरी तरह सिसकने लगीं। विधी की माॅ ने मेरे सिर पर प्यार से अपना हाॅथ रखा। वो खुद भी सिसक रही थी।
"बेटा, अपने आपको सम्हालो।" वो बराबर मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए सिसक रही थी___"जाने वाली तो अब चली गई है। वो लौट कर वापस नहीं आएगी। कब तक तुम अपनी इस विधी को इस तरह देखते रहोगे?"

"चुप हो जाइये माॅ।" मैने सिर उठाकर बड़ी मासूमियत से कहा___"कुछ मत बोलिए। देखिए न विधी सुकून से कैसे मुझे देख कर मुस्कुरा रही है। इसे ऐसे ही मुस्कुराने दीजिए माॅ। इसे डिस्टर्ब मत कीजिए।"

मेरी बातों से सब समझ गए थे कि मुझ पर पागलपन सवार हो चुका है। मैं इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा हूॅ कि विधी अब इस दुनियाॅ में नहीं रही। ये देख कर सबकी ऑखों से ऑसू छलकने लगे। विधी के डैड मेरे पास आए और मुझे उन्होंने अपने से छुपका लिया।

"ये कैसा प्यार है बेटा?" फिर वो रुॅधे हुए गले से बोल पड़े___"तुम दोनो का ये प्रेम हमें पहले क्यों नहीं पता चल पाया? तुम्हारे जैसा दामाद मुझे मिलता तो जैसे मुझे सारी दुनियाॅ की दौलत मिल जाती। हे भगवान कितना बेरहम है तू। मेरे मासूम से बच्चों के साथ इतना बड़ा घात किया तुमने? तेरा कलेजा ज़रा भी नहीं काॅपा?"

विधी के डैड खुद को सम्हाल न सके और वो मुझे अपने से छुपकाए बुरी तरह रो पड़े। पास ही में खड़े डाक्टर और नर्स भी हम सबकी हालत देख कर बेहद दुखी नज़र आ रहे थे। ख़ैर, काफी देर तक यही माहौल कायम रहा। हर कोई मुझे समझा रहा था, बहला रहा था मगर मैं बस यही कहता जा रहा था कि___"आप सब शान्त रहिए, मेरी विधी को यूॅ शोर करके डिस्टर्ब मत कीजिए।"

उस वक्त तो मेरा दिमाग़ ही ख़राब हो गया जब सब लोग मुझे विधी से अलग करने लगे। डाक्टर ने एम्बूलेन्स का इंतजाम कर दिया था। इस लिए विधी के डैड अब अपनी बेटी के मृत शरीर को हास्पिटल से ले जाने के लिए मुझे विधी से अलग करने लगे। मैं विधी से अलग नहीं हो रहा था। सब मुझे समझा रहे थे। विधी की माॅ मेरे इस पागलपन से बुरी तरह रोते हुए मुझे अपने से छुपकाये हुए थी। रितू दीदी मुझे छोंड़ ही नहीं रही थी।

आख़िर, सबके समझाने बुझाने के बाद और काफी मसक्कत करने के बाद मैं विधी से अलग हुआ। मगर मैने विधी को हाथ नहीं लगाने दिया किसी को। मैने खुद ही उसे अपनी बाहों में उठा लिया और फिर सबके ज़ोर देने पर कमरे से बाहर की तरफ बढ़ चला। मेरे चेहरे पर दुख दर्द के कोई भाव नहीं थे। मैं अपनी बाहों में विधी को लिए बाहर की तरफ आ गया। विधी की जो ऑखें पहले खुली हुई थी उन ऑखों को उनकी पलकों के साथ विधी के डैड ने अपनी हॅथेली से बंद कर दिया था। किन्तु उसके अधरों पर फैली हुई वो मुस्कान अभी भी वैसी ही कायम थी।

थोड़ी ही देर में हम सब हास्पिटल के बाहर आ गए। हास्पिटल के बाहर एम्बूलेन्स खड़ी थी। बाएॅ साइड मोटर साइकिल खड़ी थी जिसके पास ही खड़ा पवन किसी गहरे ख़यालों में खोया हुआ खड़ा था। हास्पिटल के बाहर आते ही जब कुछ शोर शराबा हुआ तो बरबस ही पवन का ध्यान हमारी तरफ गया। उसने पलट कर देखा हमारी तरफ। मेरी बाहों में विधी को इस हालत में देख कर वह सकते में आ गया। पलक झपकते ही उसकी हालत ख़राब हो गई। अपनी जगह पर खड़ा वो पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गया।

इधर थोड़ी ही देर में मैं विधी को लिए एम्बूलेन्स में सवार हो गया। मेरे साथ ही रितू दीदी, विधी की माॅ और उसके डैड बैठ गए। हम लोगों के बैठते ही एम्बूलेन्स का पिछला दरवाजा बंद ही किया जा रहा था कि सहसा भागते हुए पवन हमारे पास आया। एम्बूलेन्स के अंदर का दृष्य देखते ही उसके होश फाख्ता हो गए। एक स्ट्रेचर की तरह दिखने वाली लम्बी सी पाटरी पर विधी को सफेद कफन में गले तक ढॅका देखते ही पवन की ऑखें छलछला आईं। वो बुरी तरह मुझे देखते हुए रोने लगा। जबकि मैं एकदम शान्त अवस्था में विधी के होठों पर उभरी उस मुस्कान को देखे जा रहा था।

पवन के रोने की आवाज़ जैसे ही मेरे कानों में पड़ी मैने तुरंत पवन की तरफ देखा और उॅगली को अपने होठों पर रख कर उसे चुप रहने का इशारा किया। मेरे चेहरे के आव भाव देख कर पवन का कलेजा फटने को आ गया। वो बिना एक पल गवाॅए एम्बूलेन्स में चढ़ कर मेरे पास आ गया और मुझे शख्ती से पकड़ कर खुद से छुपका लिया। उसकी ऑखों से ऑसू रुक ही नहीं रहे थे।

रितू दीदी ने पवन को समझा बुझा कर चुप कराया और उसे घर जाने को कहा। किन्तु पवन मुझे छोंड़ कर जाने को तैयार ही नहीं हो रहा था। इस लिए रितू दीदी ने उसे समझाया कि उसका घर में रहना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि उसके डैड यानी अजय सिंह का कोई भरोसा नहीं था कि वो क्या कर बैठे। ये तो उसे पता चल ही जाएगा कि राज यहाॅ पर किसके यहाॅ आया है? अगर उसे पता चल गया कि वो पवन के यहाॅ आया है तो उसके घर वालों के लिए ख़तरा हो जाएगा। रितू दीदी के बार बार समझाने पर पवन दुखी मन से एम्बूलेन्स से उतर गया।

पवन के उतरते ही एम्बूलेन्स चल पड़ी। विधी की माॅ अभी भी धीमी आवाज़ में सिसक रही थी। सामने की शीट पर विधी के माॅम डैड बैठे थे और इधर की शीट पर मैं व रितू दीदी। हमारे बीच का पोर्शन जो खाली था उसमें विधी को बड़ी सी स्ट्रेचर रूपी पाटरी पर लिटाया गया था। मैं एकटक उसकी मुस्कान को घूरे जा रहा था। मेरे लिए दुनियाॅ जहान से जैसे कोई मतलब नहीं था।

रितू दीदी को जैसे कुछ याद आया तो उन्होंने पाॅकेट से मोबाइल निकाल कर किसी से कुछ देर कुछ बात की और फिर काल कट करके मोबाइल पुनः अपनी पाॅकेट में डाल लिया। कुछ समय बाद ही एम्बूलेन्स रुकी और थोड़ी ही देर में पिछला गेट खुला तो विधी के माॅम डैड बाहर आ गए। उनके साथ ही रितू दीदी भी एम्बूलेन्स से बाहर आ गई। रितू दीदी ने मेरा हाॅथ पकड़ कर बाहर आने का इशारा किया। मैं बाहर की तरफ अजीब भाव से देखने लगा। सब मुझे ही दुखी भाव से देख रहे थे।

ख़ैर, हास्पिटल से आए दो कर्मचारियों ने उस स्ट्रेचर को बाहर निकाला जिस पर विधी लेटी हुई थी। स्ट्रेचर को बाहर निकाल कर उन्होंने उसे ज़मीन पर रखना ही चाहा था कि मैंने उन्हें पकड़ लिया। जिससे हवा में ही उन लोगों ने स्ट्रेचर को उठाये रखा। मैने विधी को अपनी बाहों में उठा लिया। विधी के माॅम डैड ये देख कर एक बार फिर से रो पड़े।

विधी को लेकर मैं विधी के घर की तरफ बढ़ा तो विधी के माॅम डैड भी आगे आ गए। आस पास के लोगों ने देखा तो कुछ ही समय में वहाॅ भीड़ जमा हो गई। आस पास के जिन लोगों से इनके अच्छे संबंध थे उन लोगों ने ये सब देख कर भारी दुख जताया। लगभग एक घण्टे बाद फिर से विधी को एक लकड़ी की स्ट्रेचर बना कर उसमे लिटाया गया। इन सब कामों के बीच मैं बराबर विधी के पास ही था और मेरे पास रितू दीदी मौजूद रहीं।

उस वक्त दिन के चार बज रहे थे जब मैं विधी के जनाजे को तीन और आदमियों के साथ लिए मरघट में पहुॅचा था। आगे की तरफ मैं और विधी के डैडी अपने अपने कंधे पर जनाजे का एक एक छोर रखा हुआ था। काफी सारे लोग हमारे साथ थे। मेरे चेहरे पर कोई भाव नहीं था। इतना कुछ होने के बाद भी मैं आश्चर्यजनक रूप से एकदम शान्त चित्त था। मरघट में पहुॅच कर हमने विधी के जनाजे को वहीं ज़मीन पर रखा। कुछ औरतें साथ आई हुई थी। उन लोगों ने वहाॅ पर कपड़ों के द्वारा चारो तरफ से पर्दा करके विधी को नहलाया धुलाया और फिर उसे कपड़े पहनाए। इसके बाद उसे लकड़ी की चिता पर लेटा दिया गया।

विधी को चिता में लेटे देख सहसा मुझे ज़ोर का झटका लगा। मेरी ऑखों के सामने पिछली सारी बातें बड़ी तेज़ी से घूमने लगीं। चिता के चारो तरफ सफेद कपड़ों में खड़े लोगों पर मेरी दृष्टि पड़ी। उन सबको देखने के बाद मेरी नज़र चिता पर सफेद कपड़ों में लिपटी विधी पर पड़ी। उसे उस हालत में देखते ही सहसा मेरे अंदर ज़ोर का चक्रवात सा उठा।

"विधीऽऽऽऽऽ।" मैं पूरी शक्ति से चीख पड़ा और भागते हुए चिता के पास पहुॅच गया। सफेद कपड़ों में ऑखें बंद किये लेटी विधी के चेहरे को देख कर मैं उससे लिपट गया और फूट फूट कर रोने लगा। पल भर में मेरी हालत ख़राब हो गई। विधी के चेहरे को दोनो हाॅथों से पकड़े मैं दहाड़ें मार मार कर रोये जा रहा था।

मुझे इस तरह विधी से लिपट कर रोते देख कुछ लोग भागते हुए मेरे पास आए और मुझे विधी के पास से खींच कर दूर ले जाने लगे। मैने उन सबको झटक दिया, वो सब दूर जाकर गिरे। खुद को उनके चंगुल से छुड़ाते ही मैं फिर से भागते हुए विधी के पास आया और फिर से उससे लिपट कर रोने लगा। मुझे इस हालत में ये सब करते देख विधी के डैड और रितू दीदी दौड़ कर मेरे पास आईं और मुझे विधी के पास से दूर ले जाने लगीं।

"खुद को सम्हालो राज।" रितू दीदी बुरी तरह रोते हुए बोली___"ये क्या पागलपन है? तुम ऐसा कैसे कर सकते हो? तुम अपनी विधी को दिये हुए वचन को कैसे तोड़ सकते हो? क्या तुम भूल गए कि अंतिम समय में विधी ने तुमसे क्या वचन लिया था?"

"दीदी विधी मुझे छोंड़ कर कैसे जा सकती है?" मैं उनसे लिपट कर रोते हुए बोला___"उससे कहो कि वो उठ कर मेरे पास आए।"
"अपने आपको सम्हालो बेटा।" सहसा विधी के डैड ने दुखी भाव से कहा___"इस तरह विलाप करने से तुम अपनी विधी की आत्मा को ही दुख दे रहे हो। ज़रा सोचो, वो तुम्हें इस तरह दुखी होकर रोते हुए देख रही होगी तो उस पर क्या गुज़र रही होगी? क्या तुम अपनी विधी को उसके मरने के बाद भी दुखी करना चाहते हो?"

"नहीं हर्गिज़ नहीं पापा जी।" मैंने पूरी ताकत से इंकान में सिर हिलाया___"मैं उसे ज़रा सा भी दुख नहीं दे सकता और ना ही उसे दुखी देख सकता हूॅ।"
"तो फिर ये पागलपन छोंड़ दो बेटे।" विधी के डैड मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोले___"अगर तुम इस तरह दुखी होगे और रोओगे तो विधी को बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा बल्कि उसे बहुत ज्यादा दुख होगा इस सबसे। इस लिए बेटा, अपने अंदर के जज़्बातों को शान्त करने की कोशिश करो और खुशी खुशी अपनी विधी को चिताग्नि दो। हाॅ बेटे, अब तुम्हें ही उसे चिताग्नि देनी है। तुम दोनो का रिश्ता आत्माओं से जुड़ा हुआ है इस लिए उसे चिताग्नि देने का हक़ सिर्फ तुम्हारा ही है। मेरी बेटी भले ही अब इस दुनियाॅ में नहीं है, मगर मेरे लिए तुम ही मेरे दामाद व बेटे रहोगे हमेशा। अब चलो बेटा और अपनी विधी को चिताग्नि दो।"

"अगर आप खुद इस बात को इस तरह कुबूल करके कहते हैं तो ठीक है पापा जी।" मैने दुखी भाव से कहा___"मगर मैं भी उसे यूॅ ही चिताग्नि नहीं दूॅगा। बल्कि उसे पहले सुहागन बना कर अपनी पत्नी बनाऊॅगा। फिर उसे चिताग्नि दूॅगा।"

मेरी ये बातें सुन कर विधी के डैड की ही नहीं बल्कि हर किसी की ऑखों से ऑसू छलक पड़े। विधी के डैड ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। पंडित वहाॅ पर मौजूद था ही इस लिए सबकी सहमति से मैं विधी के पास गया और एक औरत के हाॅथ में मौजूद सिंदूर की डिबिया से अपनी दो चुटकियों में सिंदूर लिया और फिर उसे विधी की सूनी माॅग में भर दिया। मैंने अपने अंदर के जज़्बातों को लाख रोंका मगर मेरे ऑसुओं ने जैसे ऑखों से बगावत कर दी।

रितू दीदी और विधी के डैड दोनो ने मुझे कंधों से पकड़ा। मैने विधी की माॅग में सिंदूर भर कर उसे सुहागन बनाया, फिर उसके माथे को चूम कर पीछे हट गया। शान्त पड़े मरघट में एकाएक ही तेज़ हवा चली और फिर दो मिनट में ही शान्त हो गई। ये कदाचित इशारा था विधी का कि मेरी इस क्रिया से वह कितना खुश हो गई है।

पंडित ने कुछ देर कुछ पूजा करवाई और फिर उसने मुझसे अंतिम संस्कार की सारी विधि करवाई। तत्पश्चात मेरे हाथ में एक मोटा सा डण्डा पकड़ाया जिसके ऊपरी छोर पर मशाल की तरह आग जल रही थी। पंडित के ही निर्देश पर मैने उस मशाल से विधी को चिताग्नि दी।

देखते ही देखते लकड़ी की उस चिता पर आग ने अपना प्रभाव दिखाया और वह उग्र से उग्र होती चली गई। मैं भारी मन से विधी की जलती हुई चिता को देखे जा रहा था। मेरे पास रितू दीदी और विधी के माॅम डैड खड़े थे। कुछ समय बाद वहाॅ पर मौजूद लोग वहाॅ से धीरे धीरे जाने लगे। अंत में सिर्फ हम चार लोग ही रह गए।

विधी के डैड के ज़ोर देने पर ही मैं उनके साथ घर की तरफ वापस चला। मेरे अंदर भयंकर तूफान चल रहा था। मगर मैने शख्ती से उसे दबाया हुआ था। मुझे लग रहा था कि मैं दहाड़ें मार मार कर खूब रोऊॅ। उस ऊपर वाले से चीख चीख कर कहूॅ कि वो मेरी विधी को सही सलामत वापस कर दे मुझे। मगर कदाचित ऐसा होना अब संभव नहीं था। ख़ैर भारी मन के साथ ही हम सब घर आ गए।
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इस सब में शाम हो चुकी थी। रितू दीदी के फोन पर पवन का बार बार काल आ रहा था। इस वक्त मैं और रितू दीदी विधी के घर पर ही थे। घर में कोई न कोई बाहरी आदमी आता और शोग प्रकट करके चला जाता। धीरे धीरे शाम का अॅधेरा भी छाने लगा था। विधी के माॅम डैड ने मुझे और रितू दीदी को भी घर जाने को कहा। हम लोगों का वहाॅ से आने का मन तो नहीं था पर मजबूरी थी। इस लिए रितू दीदी मुझे लेकर वहाॅ से चल दी।

रास्ते में रितू दीदी के मोबाइल पर किसी का काल आया तो उन्होने देखा उसे और काल को पिक कर मोबाइल कान से लगा लिया। कुछ देर तक उन्होंने जाने क्या बात की फिर उन्होंने काल कट कर दी।

हास्पिटल के पास आते ही मैने देखा कि उनके सामने एक पुलिस जिप्सी आकर रुकी। रितू दीदी ने मुझे उस पर बैठने को कहा तो मैं चुपचाप बैठ गया। पुलिस जिप्सी से एक आदमी बाहर निकला। उसने दीदी को सैल्यूट किया।
"अब तुम जाओ रामसिंह।" रितू दीदी ने उससे कहा___"बाॅकी लोगों को भी सूचित कर देना कि सावधान रहेंगे और उन पर नज़र रखे रहेंगे।"
"यह मैडम।" उस आदमी ने कहने के साथ ही पुनः सैल्यूट किया और एक तरफ बढ़ गया।

उस आदमी के जाते ही दीदी जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठीं और उसे यूटर्न देकर एक तरफ को बढ़ा दिया। दीदी के बगल वाली शीट पर मैं चुपचाप बैठा था। मेरी ऑखें शून्य में डूबी हुई थी। मुझे पता ही नहीं चला कि जिप्सी कहाॅ कहाॅ से चलते हुए कब रुक गई थी। चौंका तब जब दीदी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। मैने इधर उधर देखा तो पता चला कि ये तो पवन के घर के सामने जिप्सी पर बैठा हुआ हूॅ मैं।

ये देख कर मैं जिप्सी से बिना कुछ बोले उतर गया और पवन के घर के अंदर की तरफ बढ़ा ही था कि सहसा दीदी ने कहा___"मेरी बात सुनो राज।"

दीदी की इस बात से मैने पलट कर उन्हें देखा। वो जिप्सी से उतर कर मेरे पास ही आ गई। तब तक जिप्सी की आवाज़ सुन कर अंदर से पवन और आदित्य भी आ गए थे। पवन और आदित्य मुझे देखते ही मुझसे लिपट कर रोने लगे। शायद पवन ने आदित्य को सारी कहानी बता दी थी। कुछ देर वो दोनो मुझसे लिपटे रोते रहे। उसके बाद रितू दीदी के कहने पर वो दोनो अलग हुए।

"मैं जानती हूॅ कि इस वक्त तुम लोग कहीं भी जाने की हालत में नहीं हो।" दीदी ने गंभीरता से कहा___"खास कर राज तो बिलकुल भी नहीं। मगर मैं ये भी जानती हूॅ कि तुम लोगों का यहाॅ पर रुकना भी सही नहीं है। इस लिए तुम सब मेरे साथ ऐसी जगह चलो जहाॅ पर तुम लोगों के होने की उम्मीद मेरे डैड कर ही नहीं सकते। हाॅ पवन, तुम सब मेरे फार्महाउस पर चल रहे हो अभी के अभी।"

"शायद आप ठीक कह रही हैं दीदी।" पवन ने बुझे मन से कहा___"मगर इतने सारे सामान के साथ हम सब एकसाथ कैसे वहाॅ जा सकेंगे? और कैसे जा सकेंगे? क्योंकि संभव है कि रास्ते में ही कहीं हमे अजय चाचा या उनके आदमी मिल जाएॅ।"
"उसकी चिंता तुम मत करो भाई।" दीदी ने कहा___"मैने वाहन का इंतजाम कर दिया है। लो वो आ भी गया।"

दीदी के कहने पर पवन ने पलट कर देखा तो सच में एक ऐसा वाहन उसे दिखा जिसे देख कर वो चौंक गया। दरअसल वो वाहन एक एम्बूलेन्स था। मेरी नज़र भी एम्बूलेन्स पर पड़ी तो उसे देख कर अनायास ही मेरा मन भारी हो गया। लाख रोंकने के बावजूद मेरी ऑखों से ऑसू छलक गए। ये देख कर रितू दीदी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया।

"नहीं मेरे भाई।" रितू दीदी ने तड़प कर कहा__"ऐसे मत रो। तू नहीं जानता कि तेरी ऑखों से अगर ऑसू का एक कतरा भी गिरता है तो मेरे दिल में नस्तर सा चल जाता है। मैं जानती हूॅ कि इस सबको भूलना या इससे बाहर निकलना इतना आसान नहीं है तेरे लिए मगर खुद को सम्हालना तो पड़ेगा ही भाई। किसी और के लिए न सही मगर अपनी उस विधी के लिए जिसको तुमने वचन दिया है।"

"कैसे दीदी कैसे?" मेरी रुलाई फूट गई___"कैसे मैं उस सबको भुला दूॅ? मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा कुछ हो गया है।"
"बस कुछ मत बोल मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरी ऑखों से ऑसू पोंछते हुए कहा___"शान्त हो जा। सब कुछ ठीक हो जाएगा। भगवान जब दुख देता है तो उसे सहने की शक्ति भी देता है। तू अपने अंदर उस शक्ति को महसूस कर भाई।"

मैं कुछ न बोला। मेरी इस हालत से पवन और आदित्य की ऑखों से भी ऑसू बहने लगे थे।
"पवन तुमने ये बात चाची और आशा को तो नहीं बताई न?" दीदी ने पवन से पूछा था।

दीदी के पूछने पर पवन ने अपना सिर झुका लिया। दीदी को समझते देर न लगी कि उसने ये बातें सबको बता दी है। अभी दीदी कुछ कहने ही वाली थी कि अंदर से रोने की आवाज़ें आने लगीं जो प्रतिपल तीब्र होती जा रही थी। रितू दीदी तेज़ी से मुझे लिये अंदर की तरफ बढ़ी। उनके पीछे पवन और आदित्य भी बढ़ चले।

अंदर बैठक तक भी न पहुॅचे थे कि रास्ते में ही पवन की माॅ और बहन रोते हुए मिल गईं। शायद उनको पता चल गया था कि मैं आ गया हूॅ। इस लिए दोनो ही रोते हुए बाहर की तरफ भागी चली आ रही थी। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दोनो मुझसे लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं। आशा दीदी की हालत तो बहुत ख़राब थी। वो मुझसे लिपटी बहुत ज्यादा रो रही थी। उन दोनो को देख कर मेरी भी रुलाई फूट पड़ी थी। रितू दीदी ने बड़ी मुश्किल से हम तीनों को चुप कराया। मगर आशा दीदी सिसकती रहीं।

"चाची आप तो समझदार हैं न।" रितू दीदी कह रही थी___"आपको तो समझना चाहिए न कि इस तरह रोने से राज को और भी ज्यादा तक़लीफ़ होगी। ये तो वैसे भी इसी सदमें में डूबा हुआ है। आपको तो इसे सम्हालना चाहिए पर आप दोनो तो खुद रो रो कर इसके दुख को बढ़ा रही हैं।"

रितू दीदी की बात माॅ के समझ में आ गई थी इस लिए उन्होंने जल्दी से अपने ऑसू पोंछ लिए और मुझे अपने से छुपका कर मुझे प्यार दुलार करने लगीं।

"पवन तुम दोनो सामान को जल्दी से उस वाहन पर रखो और जल्द से जल्द यहाॅ से चलने की तैयारी करो।" रितू दीदी ने पवन की तरफ देखते हुए कहा। दीदी के कहने पर पवन और आदित्य दोनो अंदर की तरफ बढ़ गए। कुछ ही देर में जो कुछ भी ज़रूरी सामान पैक कर दिया गया था उसे लाकर बाहर खड़ी एम्बूलेन्स में रख दिया उन दोनो ने।

सामान रख जाने के बाद रितू दीदी ने हम सबको उस एम्बूलेन्स में बैठने को कहा और खुद अकेले जिप्सी में बैठ गईं। घर से बाहर आकर माॅ ने दरवाजे पर ताला लगा दिया और मुझे साथ में लिये एम्बूलेन्स में बैठ गईं। पवन आदित्य और आशा दीदी पहले ही उसमें बैठ चुके थे। हम लोगों के बैठते ही रितू दीदी ने एम्बूलेन्स के ड्राइवर को अपने पीछे आने का इशारा कर दिया।

रितू दीदी के दिमाग़ की दाद देनी होगी, क्योंकि उन्होंने बहुत कुछ सोच कर वाहन के रूप में एम्बूलेन्स को चुना था। उनकी सोच थी कि एम्बूलेन्स में हम लोगों के बैठे होने की उनके डैड कल्पना भी न कर सकेंगे। और ऐसा हुआ भी। रास्ते में कहीं पर भी हमें अजय सिंह या उसका कोई आदमी नहीं मिला। एक जगह मिला भी पर उन लोगों ने एम्बूलेन्स पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। एम्बूलेन्स के सौ मीटर की दूरी पर रितू दीदी की जिप्सी आगे आगे चल रही थी। इतनी दूरी इस लिए ताकि कोई ये भी शक न करे कि एम्बूलेन्स रितू दीदी के साथ ही है।

ऐसे ही हम हल्दीपुर गाॅव से बाहर आ गए और उस नहर के पुल के पास से हम लोग पूर्व दिशा की तरफ मुड़ गए। लगभग बीस मिनट बाद हम सब दीदी के फार्महाउस पर पहुॅच गए। दीदी को ये भी पता चल चुका था कि मेरे साथ करुणा चाची और उनके बच्चों को भी मुम्बई जाना था मगर इस सबके हो जाने से उन्होंने मेरे फोन से करुणा चाची को फोन कर कह दिया था कि मैं आज नहीं जा रहा बल्कि वो अपने भाई के साथ यहीं पर आ जाएॅ कल।

फार्महाउस पर पहुॅच कर दीदी ने एम्बूलेन्स से सारा सामान उतरवा कर अंदर रखवा दिया। एम्बूलेन्स के जाने के बाद हम सब अंदर की तरफ बढ़ चले। अंदर ड्राइंगरूम में ही सोफे पर बैठी नैना बुआ पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं हल्के से चौंका। नैना बुआ मुझे देखते ही सोफे से उठ कर भागते हुए मेरे पास आईं और झटके से मुझे अपने सीने से लगा लिया। उनकी ऑखों में ढेर सारे ऑसू आ गए थे मगर उन्होने उन्हें छलकने नहीं दिया। अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था उन्होंने। शायद दीदी ने उन्हें सबकुछ बता दिया था और समझा भी दिया था कि मुझसे मिल कर वो ज्यादा रोयें नहीं।

ख़ैर, ऐसे माहौल में हम सब बेहद दुखी थे इस लिए उस रात किसी ने अन्न का एक दाना तक अपने मुख में नहीं डाला। रात में मेरे साथ बेड पर मेरे एक तरफ रितू दीदी थीं तो दूसरी तरफ आशा दीदी। सारी रात किसी भी ब्यक्ति को नींद नहीं आई। सबने मुझे अपने अपने तरीके से बहुत समझाया था। तब जाकर मुझे कुछ होश आया था। बेड पर मैं अपनी दोनो बहनों के बीच लेटा ऊपर घूम रहे पंखे को देखता रहा। सारी रात ऐसे ही गुज़र गई। मेरी दोनो बहनें अपने हृदय में मेरे प्रति दुख छुपाए मुझे अपनी अपनी तरफ से छुपकाए यूॅ ही लेटी रह गईं थी। आने वाली सुबह मेरे जीवन में और कैसे दुख दर्द की भूमिका बनाएगी इसके बारे में वक्त के सिवा कोई नहीं जानता था।


दोस्तो, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,

मैं नहीं जानता दोस्तो कि इस अपडेट में मैं वो सब डाल पाया हूॅ या नहीं जिन चीज़ों ने आप सबके दिलो दिमाग़ को हिला कर रख दिया हो। इतना ज़रूर कहूॅगा कि पिछले सभी एक से लेकर 44 अपडेट तक लिखना मेरे लिए इतना मुश्किल काम नहीं लगा था जितना कि इस अपडेट को लिखने में लगा है।

ख़ैर, आप सबकी खूबसूरत प्रतिक्रियाएॅ और शानदार फीडबैक का इन्तज़ार रहेगा।
 
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TheBlackBlood

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Wah bahut khubsurat update bhai. Lekin aapne pawan ki ma aur bahan ka scene kuch jyada hi lamba kar diya. Use agar aap is chepter ko khatam karke bhi dete to acha tha lekin aaj aapko ye chapter khatam hi karna tha aur hume yahi umeed bhu thi. Lekin chalo ab dekte ki kab aap agla update dete ho. Ab me waiti g naji likhunga.
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,

अपडेट दे दिया है,,,,,,
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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बहुत ही खूबसूरत एवं रोमांचक अपडेट भाई
जबरदस्त लेखनी है आप की
इस अपडेट में आप की मेहनत एवं काबिलियत दोनों ही झलक रही है ।
बहुत बहुत शुक्रिया भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,,,,,,

अपडेट दे दिया है,,,,,,
 
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