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Incest ♡ सफर – ज़िंदगी का ♡

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Sauravb

Victory 💯
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भाग – 1
-------

“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Superb starting writer bhai
 

parkas

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Nice and lovely update...
 

Jaguaar

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Awesome Updatee

Pehla update padhke maza aaya. Pehle update mein hi thoda bahot suspense de diya hai.

Kaun hai woh ladki jo Rajasthan ke kaali mandir mein thi. Kyaa wohi hai iss kahani ki heroine yaa phir kuch aur hi khel hai.

Aur yeh wohh teen kaun the aur unse Chauhan khandaan ki kyaa dushmani hai.

Dekhte hai aage kyaa hota hai
 

prkin

Well-Known Member
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Very good start!
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
NiCe update bro waiting for your next update....
 

Zatchx

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Shandar update
 

A.A.G.

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
nice update..!!
 

Naik

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Bahot behtareen
Shaandaar update bhai
 
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