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Incest ♡ सफर – ज़िंदगी का ♡

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ABHISHEK TRIPATHI

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
Awesome update
 

ABHISHEK TRIPATHI

Well-Known Member
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भाग – 2
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चव्हाण परिवार में पूरा दिन खुशी का माहौल था, आरुषि के आगमन से सभी बेहद खुश थे। सौम्या और उसका परिवार, भी यहीं आया हुआ था इसीलिए देर रात तक सभी आपस में बातें करते रहे। पर फिर नींद के ऊपर किसका काबू होता है, सभी अपने – अपने कमरों में आराम करने चल दिए। सर्दियों के दिन थे तो आरुषि अपने कमरे में रजाई ओढ़े लेटी हुई थी, तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। एक छोटे बल्ब की मध्यम से रोशनी में उसने देख लिया के दरवाज़े पर खड़ा शख्स शिवाय ही था और अपने आप ही आरुषि के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वो वैसे ही लेटे हुए सोने का नाटक करने लगी।

शिवाय उसके करीब आया और,

शिवाय : आप सो गई हो दी?

दो तीन बार उसने आरुषि के गाल को थपथपाया पर वो वैसे ही सोने का नाटक करते रही। वो निराश सा होकर पलटा और जैसे ही आगे बढ़ने वाला था आरुषि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

आरुषि : मुझे पता था मेरे भाई को नींद नही आयेगी, तो मैं कैसे सो जाती?

शिवाय मुस्कुराकर आरुषि के साथ ही लेट गया और आरुषि ने भी उसके सीने पर सर रख लिया।

शिवाय : मुझे आपकी बहुत याद आती थी दी।


आरुषि : मुझे भी छोटू।

शिवाय : आपको पता है मैने आपसे कितनी सारी बातें करनी थी पर आप पहले ही चली गई।

आरुषि : बातें, मतलब?

शिवाय : दी मैं आपको बहुत कुछ बताना चाहता हूं, वो सब जो मैने बाकी सबसे छिपाया है आज तक।

आरुषि : सबसे छिपाया है, फिर मुझे क्यों बताना चाहता है?

शिवाय ने आरुषि के हाथ को कसकर पकड़ लिया और,

शिवाय : क्योंकि आप मेरी सबसे प्यारी, सबसे अच्छी दी हो। मैं आपसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं दी, बहुत ज्यादा।

आरुषि ने उसकी कमीज़ को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और कहा,

आरुषि : मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूं शिवु। अब बता क्या बताना चाहता है।

शिवाय : आज नही, कल हम दोनो कहीं घूमने जाएंगे, फिर आपको बताऊंगा।

आरुषि : आज क्यों नही?

शिवाय : क्योंकि आज मुझे सोना है, पूरे 2 साल बाद चैन की नींद आयेगी मुझे।

आरुषि उसकी बात से भाव विभोर सी हो गई और उसे कसकर गले लगा लिया। दोनो ऐसे ही एक दूसरे को जकड़े नींद की वादियों में को गए।

अगली सुबह जब रागिनी जी आरुषि को जगाने आया तो उन्होंने देखा के आरुषि और शिवाय एक दूसरे को गले लगाए सो रहे थे। वो भली भांति जानती थी के दोनो भाई – बहन में शुरू से ही कितना प्यार था और जब आरुषि घर से दूर गई थी उसके बाद से शिवाय कैसे दुखी सा रहने लगा था। उन्हें अपने बच्चों का आपस में प्यार देख कर बहुत खुशी महसूस हुई, उन्होंने दोनो के माथे को एक बार चूमा और फिर उन्हें जगाए बिना ही कमरे से चली गई।

सुबह अपने चेहरे पर पड़ती धूप से शिवाय की आंखें खुली तो उसे अपने ऊपर थोड़ा भार महसूस हुए। उसने गौर किया तो पाया के आरुषि उसके ऊपर लेटी थी। शायद नींद में करवटें बदलते हुए वो उसके ऊपर ही चढ़ गई थी। खिड़की से आती धूप और हल्की सी हवा आ रही थी जोकि सीधे आरुषि के चेहरे पर पड़ रही थी। शिवाय काफी देर तक एक टक उसे देखता रहा और फिर धीमे से उसके गालों को सहलाने लगा। कुछ ही पलों में आरुषि की नींद टूट गई और उसने कसमसाते हुए आंखें खोली। कुछ देर लगी उसे खुद की हालत समझने में और फिर वो धीमे से मुस्कुराने लगी।

आरुषि : तू कब उठा?

शिवाय : बस अभी अभी। आपको नींद तो ठीक आई ना?

आरुषि : बहुत अच्छी, चल अब उठ जा फिर तैयार होकर कहीं घूमने चलेंगे।

शिवाय : हम्म्म.. सिर्फ आप और मैं।

आरुषि ने एक बार हल्के से उसकी नाक को खींचा और फिर अपने कमरे से ही जुड़े हुए बाथरूम में चली गई। शिवाय भी अपने कमरे की तरफ चल दिया।


थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग हॉल में बैठे नाश्ता कर रहे थे। पर अनिरुद्ध यानी शिवाय के पिताजी सुबह – सुबह ही बिज़नेस के सिलसिले में जयपुर निकल गया था।

रामेश्वर जी : बहू अनिरुद्ध कहां है? अब तक आया नही यहां।

रागिनी जी : बाबूजी वो तो सुबह सुबह ही जयपुर निकल गए थे। कोई मीटिंग है उनकी।

रामेश्वर जी : ये अनिरुद्ध पता नही कब सुधरेगा, उसे कोई समझाए के पैसा और कारोबार ही सब कुछ नही होता, परिवार भी कुछ होता है।

तभी शिवाय और आरुषि सीढ़ियों से नीचे उतरे और उन्होंने ये सारी बात सुन ली थी। रागिनी जी का उदास चेहरा देख कर शिवाय ने सीधे जाकर अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया और कहा,

शिवाय : अरे मातु श्री निराश क्यों होती हो। अभी आपका पुत्र आपके पास है, कहिए क्या इच्छा है आपकी?

उसके बोलने के तरीके को सुनकर सभी मुस्कुराने लगे। इसी लिए वो परिवार में सबका चहेता था क्योंकि पल भर में वो रोते को हंसा दिया करता था।

रागिनी जी ने बस मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा और फिर सभी ने शांति से बस नाश्ता पूरा किया। नाश्ते के बाद शिवाय और आरुषि बाहर जाने लगे तो,

रागिनी जी : तुम दोनो कहीं बाहर जा रहे हो क्या?

आरुषि : जी मां, थोड़ा घूमने।

रागिनी जी : ठीक है, लेकिन जल्दी वापिस आ जाना।

शिवाय : हम्म्म।

दोनो बाहर आ गए और शिवाय जैसे ही गाड़ी बाहर निकालने लगा तो,

आरुषि : तेरी बाइक कहां है?

शिवाय : क्यों दी?

आरुषि : मुझे बाइक पर जाना है।

उसने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया, तभी उसे कुछ याद आया,

शिवाय : अच्छा दी आप दो मिनट रुको मैं अभी आता हूं।

वो भागकर अंदर गया और,

शिवाय : चाचू ज़रा सुन ना तो।

रणवीर : हां क्या हुआ शिव?

शिवाय : वो जो मैने काम कहा था वो हो गया क्या?

रणवीर : अरे हां अच्छा याद दिलाया तूने, सॉरी यार थोड़ा काम के चक्कर में भूल गया था। आज पक्का करवा दूंगा।

शिवाय : आज याद से करवा देना हां, और आप जरा बादाम खाया करो याददाश्त कमज़ोर हो गई है आपकी।

इतना कहकर वो बाहर भाग गया और आरुषि के साथ बाइक पर सवार होकर एक तरफ चल दिया।


इधर काव्या अपने कमरे में बैठी थी और उसकी आंखें पूरी तरह लाल थी, मानो वो सारी रात सोई ही ना हो। धीरेन भी उसके पास ही खड़ा था और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। काव्या की आंखों से आंसू बदस्तूर बह रहे थे। तभी,

धीरेन : चुप हो जा काव्या रोने से कुछ नही होगा बेटा।

काव्या : पापा मुझे बचा लो, पापा प्लीज़, अगर, अगर वो.. म.. मैं अपनी जान दे दूंगी पापा...

धीरेन : काव्या क्या बोल रही है तू, अभी तेरा बाप ज़िंदा है।

काव्या : पापा आप कुछ करो ना...

धीरेन : सोच रहा हूं मेरी बच्ची, सोच रहा हूं। तेरी कसम छोडूंगा नही उसे जो भी इस सबके पीछे है। पर मुझे एक बात नही समझ आ रही वो हमसे चाहता क्या है?

अभी वो इतना ही बोला था के उसका फोन बजा, नंबर देख कर उसका खून खौल गया। काव्या भी उसके चेहरे को देख कर बात समझ गई और उसे फोन स्पीकर पर करने को कहा,

धीरेन : कौन है तू कमीने, मर्द है तो सामने आकर बात कर ये छुप कर खेल क्यों खेल रहा है।

फोन : आवाज़ नीचे रख के बात कर। भूल मत के मुझे बस एक मिनट लगेगा और...

उसने बात अधूरी ही छोड़ दी पर ये दोनो उसका मतलब समझ गए थे और धीरेन के तेवर भी नर्म पड़ गए।

धीरेन : तुझे पैसे चाहिए ना, बोल कितने चाहिए, मैं अपना सब कुछ तेरे नाम लिखने को तैयार हूं पर मेरी बेटी को इस सबमें मत ला।

फोन : कितना मजा आता है जब तेरे जैसा आदमी भी डरकर बात करता है। तू क्या मुझे पैसे देगा, मुझे पैसे नहीं कुछ और चाहिए।

धीरेन : बोलो क्या चाहिए तुम्हें?

फोन : चव्हाण खानदान के वंश के हर अंश की मौत!!

धीरेन : क.. क्या बोला तुमने!!

फोन : सही सुना तूने अब मेरी बात ध्यान से सुन, कल गांव में हर साल होने वाली पूजा के लिए रामेश्वर चव्हाण का पूरा परिवार आएगा, तुझे कुछ ऐसा करना है के वो शिवाय वहां ना पहुंच पाए और उन सबके साथ जो कुछ भी होगा तू या तेरा कोई भी आदमी बीच में नही आएगा।

धीरेन : मैं ऐसा कुछ नही करने वाला। वो मेरे लिए मेरे भगवान हैं, तू एक बार मेरे सामने आजा फिर...

फोन : शशशश... चुप बिल्कुल चुप, भूल मत मैं क्या कर सकता हूं... अब तुझे चुन ना है धीरेन... तुझे अपना भगवान चाहिए या तेरी बेटी की इज़्ज़त।

और उधर से फोन पटक दिया गया। इधर धीरेन नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा। वहीं काव्या भी जड़वत सी खड़ी आंसू बहने लगी। तभी धीरेन ने धीरे से कहा,

धीरेन : मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा मेरी बच्ची, कुछ नही...

और इतना कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया और किसीको फोन मिलाने लगा।


शाम का वक्त था, आरुषि और शिवाय यशपुर से बाहर की तरफ मौजूद एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे थे। शिवाय सर झुकाकर बैठा था तभी आरुषि ने खींचकर एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। शिवाय हक्का बक्का सा होकर उसे देखने लगा, वहीं आरुषि की भीगी आंखों में दुख और गुस्सा दोनों ही झलक रहे थे।

शिवाय : द.. दी..

आरुषि : चुप, मत बुला मुझे दी। तूने तो मुझे पराया कर दिया शिवाय, मैं तुझे... हुह्ह्ह...

आज पहली दफा आरुषि ने उसे शिवाय बुलाया था वरना हमेशा छोटू या फिर शिवु कहकर ही पुकारा करती थी। वो भी समझ गया के आरुषि कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गई है।

शिवाय : दी प्लीज़ एक बार...

और तभी एक और थप्पड़ पड़ा उसके गाल पर, वो जानता था के उसे थप्पड़ मारने में उस से ज्यादा दर्द खुद आरुषि को ही हो रहा होगा।

आरुषि : क्यों किया तूने ये सब, अगर, अगर तुझे कुछ हो जाता तो मैं जीते जी मर जाती शिवाय... तुझे मेरी बिल्कुल भी चिंता नहीं है ना।

एक दम से शिवाय ने उसे अपनी बाहों के घेरे में कैद कर लिया, वो पूरी कोशिश कर रही थी वहां से निकलने की पर शिवाय की पकड़ बेहद मज़बूत थी।

शिवाय : आपको पता है ना आप मेरे लिए क्या मायने रखती हो। ना मां को ना ही डैड को, मैने ये सब सिर्फ और सिर्फ आपको बताया, क्यों... बोलो क्यों बताया आपको?

एक दम से आरुषि शांत सी हो गई, शिवाय ने अपनी बात आगे बढ़ाई,

शिवाय : क्योंकि आपकी अहमियत मेरी ज़िंदगी में क्या है में चाहकर भी आपको नही बता सकता। आप मेरे लिए बहुत खास हो दी।

दोनो के मध्य एक खामोशी सी पनप गई, काफी देर तक आरुषि शिवाय के सीने से लगी धीरे धीरे सुबकती रही और फिर,

आरुषि : तू ये सब बंद कर दे प्लीज़, अगर तुझे कुछ हो गया शिवु तो मैं.. मैं..

शिवाय : शशशश.. दी कुछ नहीं होगा मुझे और ना मैं आपको कुछ होने दूंगा। अब प्लीज़ माफ करदो ना अपने छोटे से भाई को।

आरुषि : तू अब मेरा वो छोटू नही रहा रे, तू तो अब बड़ा हो गया है और ज़िम्मेदार भी। सॉरी, मैने तुझपर हाथ उठाया।

शिवाय : वैसे आपके हाथ बहुत मोटे हो गए हैं दी, खाना काम खाया करो...

और वो उठकर वहां से भाग गया। आरुषि भी उसके पीछे भागने लगी और इसी तरह दोनो हंसते मुस्कुराते घर लौट आए पर कोई था जो इनसे जुदा घर छोड़ने की तैयारी में था।


अजमेर के सोनपुर गांव में रात के अंधेरे में एक कच्चे मकान का दरवाजा खुला, एक लड़की जो कोई और नहीं बल्कि वही काली मां के मंदिर वाली थी, वो एक बैग के साथ बाहर निकली। उसके हाथों में उस बैग के सिवा सिर्फ एक तस्वीर थी। उसने एक बार पलटकर घर के अंदर देखा तो वहां केवल उसका बूढ़ा या कहूं के ज़ालिम बाप शराब के नशे में धुत पड़ा था।

उस लड़की की आंखों में आसूं थे, उसने अपनी आंखों को पोंछा और एक बार अपने हाथ में ली उस तस्वीर को देख कर तेज़ कदमों से आगे की तरफ चल दी। रात के अंधेरे में ना जाने वो कब तक चलती ही रही और आखिर में वो उसी मंदिर में पहुंच गई। हालांकि उस मंदिर के कपाट बंद थे पर उसने बाहर से ही मां काली का ध्यान किया और अपनी नई मंजिल की तरफ निकल गई, वो मंजिल जो उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देने वाली थी। वो मंजिल जो उसे एक नया जीवन देने वाली थी, वो निकल चुकी थी अपनी ज़िंदगी के एक नए “सफर” पर!!
Superb update
 

Naughtyrishabh

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भाग – 1
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“हां जगन काका, क्या चल रहा आज – कल??”

एक चाय की दुकान के सामने रुकी एक बुलेट पर से उतरे एक नौजवान लड़के ने कही थी ये बात उस दुकान के मालिक से। जिसके जवाब में,

“अरे! छोटे बाबा आप आज यहां।”

शायद उनकी कही बात उस लड़के को पसंद नही आई और वो उन्हें घूरकर देखने लगा। जिसपर वो बस मुस्कुराने लगे,

जगन काका : मेरा मतलब था “शिवाय” बेटा आज यहां कैसे?

शिवाय : हां अब बनी ना कुछ बात, ये बाबा – वाबा बोलकर मेरी उम्र ना बढ़ाया करो और एक बढ़िया सी चाय दो तो ज़रा।

जगन काका : अभी लो।

चाय पीते हुए शिवाय कुछ सोचों में गम था। उसे यूं देख कर जगन से बिना सवाल किए रहा नही गया।

जगन काका : क्या हुआ बेटा, कुछ परेशान से लग रहे हो।

शिवाय : कुछ नहीं काका बस थोड़ा पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, अच्छा ये लो ये राघव को दे देना।

एक सफेद रंग का लिफ़ाफा उन्हे पकड़ाते हुए शिवाय ने कहा,

जगन काका : इसमें क्या है बेटा?

शिवाय : कुछ नहीं काका, वो राघव बता रहा था एक कोर्स करना चाहता है, उसी के लिए हैं। अच्छा, प्रणाम।

इतने में जगन काका उसकी बात को समझ पाते, शिवाय अपनी बाइक उठाकर निकल चुका था। उन्होंने वो लिफ़ाफा खोला तो उसके अंदर 500–500 के नोटों की एक गड्डी थी। वो कभी उन पैसों को देखते तो कभी उस खाली सड़क को जिधर से शिवाय गया था। तभी उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए। वो हाथ जोड़कर बोले,

जगन काका : भगवान तुम्हारी हर इच्छा पूरी करे बेटा, तुम्हे हमेशा खुश रखे।


यशपुर में ही बनी एक बड़ी सी हवेली के अंदर आज बहुत चहल – पहल हो रही थी। आज इनके घर का एक सदस्य वापिस घर आने वाला था। वहीं हॉल में एक महिला इधर उधर चक्कर काट रही थी और साथ ही बड़बड़ाए जा रही थी – “पता नही कहां रह गया ये शिव, आकर सबसे पहले वो उसे ही ढूंढेगी”।

उनके नज़दीक खड़ी दो और महिलाएं उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी। उन्ही में से एक बोली, “भाभी आ जाएगा वो, यहीं कहीं गया होगा। आप परेशान मत होइए”।

जिसके जवाब में, “अरे परेशान कैसे ना होऊं, तुम दोनो को पता है ना मेरी बच्ची कितने दिनों बाद घर आ रही है और एक वो है की पता नही कहां घूम रहा है”।

तभी घर के बाहर गाड़ी रुकने की आवाज आई। जिसे सुनकर इन तीनों का मन प्रफुल्लित हो उठा। ये लगभग भागते हुए बाहर पहुंची, और इन्ही के साथ घर के बाकी सदस्य भी बाहर निकल आए। वहां खड़ी गाड़ी से पहले एक ड्राइवर निकला और फिर उसने पीछे का दरवाजा खोला, तो एक बला की खूबसूरत लड़की गाड़ी से बाहर आई।

हल्के गुलाबी रंग के चूड़ीदार सलवार – कमीज़ पहने जिसके साथ में उसी से मेल खाता दुपट्टा भी था और साथ ही में उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान भी थी। वो सीधे भागकर उसी महिला के गले लग गई जो कुछ देर पहले चिंतित थी। दोनो की आंखों में आसूं थे, वो महिला बार बार इसके चेहरे पर चुम्बन अंकित किए जा रही थी।

लड़की : मुझे आपकी बहुत याद आई मां।

महिला : मुझे भी तेरी बहुत याद आई मेरी बच्ची, मेरी “आरुषि”।

जी हां ये चव्हाण परिवार ही है।

आरुषि अपनी मां से मिलने के बाद अपने पिता के गले लग गई और उन्होंने भी बहुत प्यार से उसे गले लगा लिया। बारी बारी से सबसे मिलने के बाद वो पाखी के पास पहुंची जो मुस्कुराते हुए भी रो रही थी। उसे देख कर आरुषि की हंसी छूट गई और फिर दोनो बहने एक दूसरे से लिपट गई।

पाखी : आप बहुत बुरी हो दी। मैं आपसे बात नही करूंगी।

आरुषि : अरे मेरी गुड़िया नाराज़ हो गई।

पाखी : हां हो गई नाराज़ आपकी गुड़िया।

ऐसे ही वहां बहुत खुशी का माहौल बन गया पर आरुषि की आंखों में बैचेनी साफ दिख रही थी और उसकी आंखें किसी को ढूंढने में लगी थी। ये उसकी मां ने भी देख और समझ लिया और वो हल्की सी उदास हो गई।

आरुषि : मां, शिवु कहां है?

रागिनी जी : बेटा वो बाहर गया था, अभी आता ही होगा।

आरुषि : वो घर पर नहीं है?

पाखी : देखा आपने दी, आप इतने दिन बाद घर आई हो और भैया को घर आने की फुर्सत नहीं है। जब आयेंगे तब आप अच्छे से खबर लेना उनकी।

यहां पाखी, शिवाय को परेशान करने की अपनी आदत के अनुसार काम पर लग गई थी। वहीं आरुषि का मुंह पूरी तरह से उतर गया। उसे लगा था के शिवाय उसके इंतज़ार में बैठा होगा पर वो घर पर था ही नही। वो पलट के घर के अंदर जाने ही वाली थी के किसीने पीछे से उसकी आंखों पर हाथ रख दिया।

आरुषि ने चौंककर उन हाथों को टटोला तो वो उस स्पर्श को झट से पहचान गई। अगले ही पल वो पलटी और कस कर उस शख्स को अपने गले से लगा लिया। वो कोई और नहीं बल्कि शिवाय ही था। वो भी मुस्कुराते हुए आरुषि के सर को सहलाने लगा। तभी आरुषि ने उसकी कमर पर एक मुक्का जमा दिया।

शिवाय : आह्ह, क्या कर रही हो दी।

आरुषि : कहां था अभी तक? इतनी देर में क्यों आया और तू मेरा इंतज़ार भी नही कर रहा था ना।

शिवाय : ओफ्फो मेरी भोली सी दीदी। मैं आपके लिए एक सरप्राइज़ का इंतेजाम कर रहा था। आप कहां कुछ बेवकूफ लोगों की बातों में आ रही हो।

ये बात उसने पाखी की ओर देख कर कही थी जिसपर उसने भी मुंह बना लिया। वहीं सरप्राइज़ की बात सुनकर आरूषि खुश हो गई।

शिवाय ने उसे एक तरफ इशारा किया जहां खड़े लोगों को देख कर उसकी खुशी देखते ही बनती थी। शिवाय अपनी सौम्या बुआ और उनके परिवार को लेने गया था और यही आरुषि का सरप्राइज़ था। क्योंकि आरुषि और श्रुति की आपस में बहुत बनती थी इसलिए वो दोनो ही खुश हो गई और एक दूसरे के गले लग गई।

सबसे मिलने जुलने के बाद रागिनी ने आरुषि को आराम करने को कहा ताकि उसकी सफर की थकान मिट जाए। वो अपने कमरे की तरफ चल दी, और वहां पहुंचकर उसने देखा के उसका कमरा बिल्कुल उसी तरह था जैसा वो एक साल पहले छोड़कर गई थी। वो जानती थी के उसके कमरे की साफ सफाई किसने की होगी।

तभी पीछे से किसीने उसे गले लगा लिया। ये शिवाय ही था।

शिवाय : आप बहुत बुरी हो दी...

आरुषि : क्यों मैने क्या किया?

शिवाय : आपने क्या किया? मैने मना किया था आपको के आप मत जाओ पर आपको तो मेरी परवाह ही नही है।

ये बोलकर वो जाकर बेड पर बैठ गया। उसकी आंखें नम थी जो आरुषि ने देख लिया और उसका दिल भी पसीज गया।

आरुषि : प्लीज़ ना छोटू, माफ करदे ना। देख मैं इसलिए तुझे बिना बताए गई थी क्योंकि तू मुझे जाने ही नही देता।

शिवाय : बात तो वही है ना, आप मुझसे प्यार नही करती।

आरुषि उसके चेहरे को थामकर बोली,

आरुषि : क्यों तंग कर रहा है मुझे। तू नही चाहता क्या के मैं आगे बढूं और खुद का एक बड़ा नाम बनाऊं।

शिवाय : आपको बस यही आता है ना, हमेशा मुझे इमोशनल करके अपनी बात मनवा लेती हो।

आरुषि : तू है ही इतना प्यारा, जो मेरी सारी बातें मान लेता है। चल अब माफ कर दे ना मुझे।

आरुषि ने अपने कान पकड़ लिए तो शिवाय के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और अपने गुस्सा होने के नाटक को छोड़कर वो आरुषि के गले लगा लिया।

शिवाय : अब आपको कहीं नहीं जाने दूंगा, देखना।

आरुषि : मैं भी अपने प्यारे से भाई को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी।

ऐसे ही कुछ देर दोनो अपने गिले शिकवे दूर करते हैं और फिर शिवाय आरुषि को आराम करने देने का सोचकर अपने कमरे में चल देता है। लेकिन वो अपने मोबाइल में कुछ देखता हुआ चल रहा था और रास्ते में उसकी टक्कर काव्या से हो गई।

शिवाय : हे भगवान ये किसका मुंह देख लिया सुबह – सुबह। पूरा दिन बेकार जाएगा अब तो।

काव्या : तेरा क्या मेरा दिन बेकार जाएगा मोटू।

शिवाय : ए वो नही बोलने का वरना...

काव्या : वरना.. वरना क्या कर लेगा तू हां।

शिवाय : ए हट यहां से तुझसे बात करना ही बेकार है।

और उसे एक तरफ धक्का सा देकर शिवाय आगे बढ़ गया। वहीं वो भी उसे मन में बुरा भला कहते हुए अपने कमरे में चल दी।


इधर राजस्थान के ही एक शहर अजमेर में बसे एक छोटे से गांव सोनपुर के एक सुप्रसिद्ध मंदिर में बैठी थी एक लड़की। वो आंखें बंद किए मां काली की पूजा अर्चना कर रही थी के तभी उसे किसी ने पीछे से आवाज लगाई,

“अरे बेटी अब बस भी कर, तीन घंटे से यहां भूखी प्यासी बैठी है। थक जायेगी।”

लड़की ने आंखें खोली तो पाया के सामने मंदिर के पुजारी जी खड़े थे।

लड़की : मुझे कुछ नहीं होता बाबा। मेरी मां मुझे कुछ होने ही नही देगी।

पुजारी जी : काली मां कुछ होने ना दे पर तेरा बापू तुझे सुनाएगा जरूर। यहां आस पास ढूंढ रहा था तुझे।

लड़की : हे मां, रक्षा करना।

और हड़बड़ती हुई वो वहां से भागते हुए चली गई और पुजारी जी उसे जाते देख कर कुछ सोचने लगे, “हे मां, अब तो इस बच्ची की परीक्षा लेना बंद कर। कितने दुख झेलेगी ये बेचारी। इसकी झोली खुशियों से भर दे मां।"

मंदिर से भागकर वो गांव के दूसरे छोर पर बने एक छोटे से मकान में पहुंची जहां एक बूढ़ा आदमी बैठा शराब पी रहा था। इसे देख कर उसके चेहरे पर गुस्सा भर गया वहीं लड़की घबराने लगी।

आदमी : कहां घूम रही थी तू अब तक।

लड़की : बापू, म.. मंदिर गई थी।

आदमी : और खाना क्या तेरी मां बनावेगी, और रोज रोज मंदिर के बहाने कठे मुंह काला करने जाती है तू मने सब पता है...

लड़की (चिल्लाकर) : बापूपूपूपू...

आदमी : चिल्लाती क्या है तू, एक तेरी वो कमीनी मां, तने मेरे गले बांध गई, एक छोरा तो पैदा कर ना सकी वो। सुन ले छोरी मने तेरे वास्ते रिश्ता देख लिया है...

लड़की : ब.. बापू पर अभी मने और पढ़ना है...

आदमी : बकवास ना कर तू, बहुत पढ़ ली। कहीं कलेक्टर ना लग जावेगी तू। करना तने चूल्हा – चौका ही है। चुप चाप ब्याह करके दफा हो यहां से।

वो लड़की रोते हुए अंदर की तरफ भाग गई। अपने बिस्तर के ऊपर पड़ी एक तस्वीर को देखते हुए उसके आंसू और भी तेज़ हो गए और वो रोते हुए बड़बड़ाने लगी, “मां, तू क्यों छोड़ गई मुझे अकेला। मां मेरे पास आजा, मुझे तेरी बहुत याद आ रही है मां।”

और वो नीचे बैठे फूट – फूट कर रोने लगी। जाने क्या क्या लिखा था उस बेचारी की किस्मत में और कितने दुख बाकी थे उसके जीवन में।


इधर हवेली में आरुषि के आने से सभी बेहद खुश थे। सबसे ज्यादा शिवाय और पाखी। पर कहीं कोई था जो इनकी खुशियों को नजर लगाने का मन बनाए बैठा था और उसकी पूरी तैयारी भी कर चुका था। यशपुर गांव के ही किसी कोने में एक मेज़ के इर्द – गिर्द कुर्सियों पर दो आदमी और एक लड़का बैठे थे और शराब पीते हुए अपनी घिनौनी चाल का ताना – बाना बुन रहे थे।

आदमी 1 : भाईसाहब इस बार तो उस चव्हाण की जड़े हिलाकर ही दम लूंगा मैं।

आदमी 2 : ज़्यादा खुश ना हो छोटे, जब तक वो चव्हाण का पिल्ला जिंदा है तब तक हमारा रास्ता आसान नहीं है।

लड़का : आप चिंता क्यों करते हो ताऊ जी, इस बार उन सबकी बहुत बुरी हालत होने वाली है। इस बार नही बच पाएंगे वो सब।

आदमी 2 : देखो, मैं तो यही कहूंगा के सब कुछ सोच – समझ के करना। क्योंकि अगर हम उस चव्हाण के कुत्ते धीरेन के हत्थे चढ़ गए ना...

आदमी 1 : क्यों डरा रहे हो भाईसाहब वो साला सांड, उसको देख ही जान सूखने लगती है।

आदमी 2 : तभी तो कह रहा हूं, हर कदम फूक – फूक के रखना है हमें ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।

लड़का : आप दोनो बेफिक्र हो जाओ, इस बार वो धीरेन नायक कुछ नहीं कर पाएगा। उसकी कमजोर कड़ी मेरे हाथ में है और उस शिवाय, उस कमीने से अपनी बेइज्जती का बदला भी तो लेना है मुझे।

आदमी 1 : सही कहा तूने बेटा, बहुत पछताएगा वो। उस लड़की के लिए हमसे पंगा लिया था उसने, अब उसी लड़की के ज़रिए उसके पूरे खानदान की इज्जत मिट्टी में ना मिला दी तो हम भी फिर ठाकुर नहीं।

तीनो अपनी चाल की कामयाबी का सोचकर जश्न मनाने लगे इस बात से बेखबर के इन तीनों ने अपने पांव पर कुल्हाड़ी नही बल्कि कुल्हाड़ी पर ही पांव दे मारा था।



पहला भाग थोड़ा छोटा लग सकता है आपको। पर एक बार थोड़ा कहानी की प्रस्तावना बांध जाए फिर अपडेट बड़े आने लगेंगे।
बेहद ही शानदार व जबरदस्त भाग बन्धु.
बहुत खूब सुपर्ब.

आरुषि और शिवाय अच्छे लगे.
परिवार का दृश्य लाजवाब लगा.
लेकिन कौन थी वो लड़की और कौन थे ये जो बुन रहे हैं षडयंत्र....????
 
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Jaguaar

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भाग – 2
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चव्हाण परिवार में पूरा दिन खुशी का माहौल था, आरुषि के आगमन से सभी बेहद खुश थे। सौम्या और उसका परिवार, भी यहीं आया हुआ था इसीलिए देर रात तक सभी आपस में बातें करते रहे। पर फिर नींद के ऊपर किसका काबू होता है, सभी अपने – अपने कमरों में आराम करने चल दिए। सर्दियों के दिन थे तो आरुषि अपने कमरे में रजाई ओढ़े लेटी हुई थी, तभी उसके कमरे का दरवाज़ा खुला। एक छोटे बल्ब की मध्यम से रोशनी में उसने देख लिया के दरवाज़े पर खड़ा शख्स शिवाय ही था और अपने आप ही आरुषि के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। वो वैसे ही लेटे हुए सोने का नाटक करने लगी।

शिवाय उसके करीब आया और,

शिवाय : आप सो गई हो दी?

दो तीन बार उसने आरुषि के गाल को थपथपाया पर वो वैसे ही सोने का नाटक करते रही। वो निराश सा होकर पलटा और जैसे ही आगे बढ़ने वाला था आरुषि ने उसका हाथ पकड़ लिया।

आरुषि : मुझे पता था मेरे भाई को नींद नही आयेगी, तो मैं कैसे सो जाती?

शिवाय मुस्कुराकर आरुषि के साथ ही लेट गया और आरुषि ने भी उसके सीने पर सर रख लिया।

शिवाय : मुझे आपकी बहुत याद आती थी दी।


आरुषि : मुझे भी छोटू।

शिवाय : आपको पता है मैने आपसे कितनी सारी बातें करनी थी पर आप पहले ही चली गई।

आरुषि : बातें, मतलब?

शिवाय : दी मैं आपको बहुत कुछ बताना चाहता हूं, वो सब जो मैने बाकी सबसे छिपाया है आज तक।

आरुषि : सबसे छिपाया है, फिर मुझे क्यों बताना चाहता है?

शिवाय ने आरुषि के हाथ को कसकर पकड़ लिया और,

शिवाय : क्योंकि आप मेरी सबसे प्यारी, सबसे अच्छी दी हो। मैं आपसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं दी, बहुत ज्यादा।

आरुषि ने उसकी कमीज़ को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और कहा,

आरुषि : मैं भी तुझे बहुत प्यार करती हूं शिवु। अब बता क्या बताना चाहता है।

शिवाय : आज नही, कल हम दोनो कहीं घूमने जाएंगे, फिर आपको बताऊंगा।

आरुषि : आज क्यों नही?

शिवाय : क्योंकि आज मुझे सोना है, पूरे 2 साल बाद चैन की नींद आयेगी मुझे।

आरुषि उसकी बात से भाव विभोर सी हो गई और उसे कसकर गले लगा लिया। दोनो ऐसे ही एक दूसरे को जकड़े नींद की वादियों में को गए।

अगली सुबह जब रागिनी जी आरुषि को जगाने आया तो उन्होंने देखा के आरुषि और शिवाय एक दूसरे को गले लगाए सो रहे थे। वो भली भांति जानती थी के दोनो भाई – बहन में शुरू से ही कितना प्यार था और जब आरुषि घर से दूर गई थी उसके बाद से शिवाय कैसे दुखी सा रहने लगा था। उन्हें अपने बच्चों का आपस में प्यार देख कर बहुत खुशी महसूस हुई, उन्होंने दोनो के माथे को एक बार चूमा और फिर उन्हें जगाए बिना ही कमरे से चली गई।

सुबह अपने चेहरे पर पड़ती धूप से शिवाय की आंखें खुली तो उसे अपने ऊपर थोड़ा भार महसूस हुए। उसने गौर किया तो पाया के आरुषि उसके ऊपर लेटी थी। शायद नींद में करवटें बदलते हुए वो उसके ऊपर ही चढ़ गई थी। खिड़की से आती धूप और हल्की सी हवा आ रही थी जोकि सीधे आरुषि के चेहरे पर पड़ रही थी। शिवाय काफी देर तक एक टक उसे देखता रहा और फिर धीमे से उसके गालों को सहलाने लगा। कुछ ही पलों में आरुषि की नींद टूट गई और उसने कसमसाते हुए आंखें खोली। कुछ देर लगी उसे खुद की हालत समझने में और फिर वो धीमे से मुस्कुराने लगी।

आरुषि : तू कब उठा?

शिवाय : बस अभी अभी। आपको नींद तो ठीक आई ना?

आरुषि : बहुत अच्छी, चल अब उठ जा फिर तैयार होकर कहीं घूमने चलेंगे।

शिवाय : हम्म्म.. सिर्फ आप और मैं।

आरुषि ने एक बार हल्के से उसकी नाक को खींचा और फिर अपने कमरे से ही जुड़े हुए बाथरूम में चली गई। शिवाय भी अपने कमरे की तरफ चल दिया।


थोड़ी देर बाद सभी डाइनिंग हॉल में बैठे नाश्ता कर रहे थे। पर अनिरुद्ध यानी शिवाय के पिताजी सुबह – सुबह ही बिज़नेस के सिलसिले में जयपुर निकल गया था।

रामेश्वर जी : बहू अनिरुद्ध कहां है? अब तक आया नही यहां।

रागिनी जी : बाबूजी वो तो सुबह सुबह ही जयपुर निकल गए थे। कोई मीटिंग है उनकी।

रामेश्वर जी : ये अनिरुद्ध पता नही कब सुधरेगा, उसे कोई समझाए के पैसा और कारोबार ही सब कुछ नही होता, परिवार भी कुछ होता है।

तभी शिवाय और आरुषि सीढ़ियों से नीचे उतरे और उन्होंने ये सारी बात सुन ली थी। रागिनी जी का उदास चेहरा देख कर शिवाय ने सीधे जाकर अपनी मां को पीछे से गले लगा लिया और कहा,

शिवाय : अरे मातु श्री निराश क्यों होती हो। अभी आपका पुत्र आपके पास है, कहिए क्या इच्छा है आपकी?

उसके बोलने के तरीके को सुनकर सभी मुस्कुराने लगे। इसी लिए वो परिवार में सबका चहेता था क्योंकि पल भर में वो रोते को हंसा दिया करता था।

रागिनी जी ने बस मुस्कुराकर उसके सर पर हाथ फेरा और फिर सभी ने शांति से बस नाश्ता पूरा किया। नाश्ते के बाद शिवाय और आरुषि बाहर जाने लगे तो,

रागिनी जी : तुम दोनो कहीं बाहर जा रहे हो क्या?

आरुषि : जी मां, थोड़ा घूमने।

रागिनी जी : ठीक है, लेकिन जल्दी वापिस आ जाना।

शिवाय : हम्म्म।

दोनो बाहर आ गए और शिवाय जैसे ही गाड़ी बाहर निकालने लगा तो,

आरुषि : तेरी बाइक कहां है?

शिवाय : क्यों दी?

आरुषि : मुझे बाइक पर जाना है।

उसने मुस्कुराकर हां में सर हिलाया, तभी उसे कुछ याद आया,

शिवाय : अच्छा दी आप दो मिनट रुको मैं अभी आता हूं।

वो भागकर अंदर गया और,

शिवाय : चाचू ज़रा सुन ना तो।

रणवीर : हां क्या हुआ शिव?

शिवाय : वो जो मैने काम कहा था वो हो गया क्या?

रणवीर : अरे हां अच्छा याद दिलाया तूने, सॉरी यार थोड़ा काम के चक्कर में भूल गया था। आज पक्का करवा दूंगा।

शिवाय : आज याद से करवा देना हां, और आप जरा बादाम खाया करो याददाश्त कमज़ोर हो गई है आपकी।

इतना कहकर वो बाहर भाग गया और आरुषि के साथ बाइक पर सवार होकर एक तरफ चल दिया।


इधर काव्या अपने कमरे में बैठी थी और उसकी आंखें पूरी तरह लाल थी, मानो वो सारी रात सोई ही ना हो। धीरेन भी उसके पास ही खड़ा था और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। काव्या की आंखों से आंसू बदस्तूर बह रहे थे। तभी,

धीरेन : चुप हो जा काव्या रोने से कुछ नही होगा बेटा।

काव्या : पापा मुझे बचा लो, पापा प्लीज़, अगर, अगर वो.. म.. मैं अपनी जान दे दूंगी पापा...

धीरेन : काव्या क्या बोल रही है तू, अभी तेरा बाप ज़िंदा है।

काव्या : पापा आप कुछ करो ना...

धीरेन : सोच रहा हूं मेरी बच्ची, सोच रहा हूं। तेरी कसम छोडूंगा नही उसे जो भी इस सबके पीछे है। पर मुझे एक बात नही समझ आ रही वो हमसे चाहता क्या है?

अभी वो इतना ही बोला था के उसका फोन बजा, नंबर देख कर उसका खून खौल गया। काव्या भी उसके चेहरे को देख कर बात समझ गई और उसे फोन स्पीकर पर करने को कहा,

धीरेन : कौन है तू कमीने, मर्द है तो सामने आकर बात कर ये छुप कर खेल क्यों खेल रहा है।

फोन : आवाज़ नीचे रख के बात कर। भूल मत के मुझे बस एक मिनट लगेगा और...

उसने बात अधूरी ही छोड़ दी पर ये दोनो उसका मतलब समझ गए थे और धीरेन के तेवर भी नर्म पड़ गए।

धीरेन : तुझे पैसे चाहिए ना, बोल कितने चाहिए, मैं अपना सब कुछ तेरे नाम लिखने को तैयार हूं पर मेरी बेटी को इस सबमें मत ला।

फोन : कितना मजा आता है जब तेरे जैसा आदमी भी डरकर बात करता है। तू क्या मुझे पैसे देगा, मुझे पैसे नहीं कुछ और चाहिए।

धीरेन : बोलो क्या चाहिए तुम्हें?

फोन : चव्हाण खानदान के वंश के हर अंश की मौत!!

धीरेन : क.. क्या बोला तुमने!!

फोन : सही सुना तूने अब मेरी बात ध्यान से सुन, कल गांव में हर साल होने वाली पूजा के लिए रामेश्वर चव्हाण का पूरा परिवार आएगा, तुझे कुछ ऐसा करना है के वो शिवाय वहां ना पहुंच पाए और उन सबके साथ जो कुछ भी होगा तू या तेरा कोई भी आदमी बीच में नही आएगा।

धीरेन : मैं ऐसा कुछ नही करने वाला। वो मेरे लिए मेरे भगवान हैं, तू एक बार मेरे सामने आजा फिर...

फोन : शशशश... चुप बिल्कुल चुप, भूल मत मैं क्या कर सकता हूं... अब तुझे चुन ना है धीरेन... तुझे अपना भगवान चाहिए या तेरी बेटी की इज़्ज़त।

और उधर से फोन पटक दिया गया। इधर धीरेन नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा। वहीं काव्या भी जड़वत सी खड़ी आंसू बहने लगी। तभी धीरेन ने धीरे से कहा,

धीरेन : मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा मेरी बच्ची, कुछ नही...

और इतना कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया और किसीको फोन मिलाने लगा।


शाम का वक्त था, आरुषि और शिवाय यशपुर से बाहर की तरफ मौजूद एक छोटी सी पहाड़ी पर बैठे थे। शिवाय सर झुकाकर बैठा था तभी आरुषि ने खींचकर एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। शिवाय हक्का बक्का सा होकर उसे देखने लगा, वहीं आरुषि की भीगी आंखों में दुख और गुस्सा दोनों ही झलक रहे थे।

शिवाय : द.. दी..

आरुषि : चुप, मत बुला मुझे दी। तूने तो मुझे पराया कर दिया शिवाय, मैं तुझे... हुह्ह्ह...

आज पहली दफा आरुषि ने उसे शिवाय बुलाया था वरना हमेशा छोटू या फिर शिवु कहकर ही पुकारा करती थी। वो भी समझ गया के आरुषि कुछ ज्यादा ही नाराज़ हो गई है।

शिवाय : दी प्लीज़ एक बार...

और तभी एक और थप्पड़ पड़ा उसके गाल पर, वो जानता था के उसे थप्पड़ मारने में उस से ज्यादा दर्द खुद आरुषि को ही हो रहा होगा।

आरुषि : क्यों किया तूने ये सब, अगर, अगर तुझे कुछ हो जाता तो मैं जीते जी मर जाती शिवाय... तुझे मेरी बिल्कुल भी चिंता नहीं है ना।

एक दम से शिवाय ने उसे अपनी बाहों के घेरे में कैद कर लिया, वो पूरी कोशिश कर रही थी वहां से निकलने की पर शिवाय की पकड़ बेहद मज़बूत थी।

शिवाय : आपको पता है ना आप मेरे लिए क्या मायने रखती हो। ना मां को ना ही डैड को, मैने ये सब सिर्फ और सिर्फ आपको बताया, क्यों... बोलो क्यों बताया आपको?

एक दम से आरुषि शांत सी हो गई, शिवाय ने अपनी बात आगे बढ़ाई,

शिवाय : क्योंकि आपकी अहमियत मेरी ज़िंदगी में क्या है में चाहकर भी आपको नही बता सकता। आप मेरे लिए बहुत खास हो दी।

दोनो के मध्य एक खामोशी सी पनप गई, काफी देर तक आरुषि शिवाय के सीने से लगी धीरे धीरे सुबकती रही और फिर,

आरुषि : तू ये सब बंद कर दे प्लीज़, अगर तुझे कुछ हो गया शिवु तो मैं.. मैं..

शिवाय : शशशश.. दी कुछ नहीं होगा मुझे और ना मैं आपको कुछ होने दूंगा। अब प्लीज़ माफ करदो ना अपने छोटे से भाई को।

आरुषि : तू अब मेरा वो छोटू नही रहा रे, तू तो अब बड़ा हो गया है और ज़िम्मेदार भी। सॉरी, मैने तुझपर हाथ उठाया।

शिवाय : वैसे आपके हाथ बहुत मोटे हो गए हैं दी, खाना काम खाया करो...

और वो उठकर वहां से भाग गया। आरुषि भी उसके पीछे भागने लगी और इसी तरह दोनो हंसते मुस्कुराते घर लौट आए पर कोई था जो इनसे जुदा घर छोड़ने की तैयारी में था।


अजमेर के सोनपुर गांव में रात के अंधेरे में एक कच्चे मकान का दरवाजा खुला, एक लड़की जो कोई और नहीं बल्कि वही काली मां के मंदिर वाली थी, वो एक बैग के साथ बाहर निकली। उसके हाथों में उस बैग के सिवा सिर्फ एक तस्वीर थी। उसने एक बार पलटकर घर के अंदर देखा तो वहां केवल उसका बूढ़ा या कहूं के ज़ालिम बाप शराब के नशे में धुत पड़ा था।

उस लड़की की आंखों में आसूं थे, उसने अपनी आंखों को पोंछा और एक बार अपने हाथ में ली उस तस्वीर को देख कर तेज़ कदमों से आगे की तरफ चल दी। रात के अंधेरे में ना जाने वो कब तक चलती ही रही और आखिर में वो उसी मंदिर में पहुंच गई। हालांकि उस मंदिर के कपाट बंद थे पर उसने बाहर से ही मां काली का ध्यान किया और अपनी नई मंजिल की तरफ निकल गई, वो मंजिल जो उसकी जिंदगी को पूरी तरह बदल देने वाली थी। वो मंजिल जो उसे एक नया जीवन देने वाली थी, वो निकल चुकी थी अपनी ज़िंदगी के एक नए “सफर” पर!!
Superbbh Updateee

Mujhe yeh Shivaay aur Aarushi ke beech ka pyaar normal nhi dikh raha hai. Dono ke beech bhai behen ke pyaar se badh kar kuch hai.

Idher Dhiren ko jisne Puja wale din Chauhan khandaan ka khaatma chup chaap hone dene ko kaha uske paas jarur Kavya ka koi video hai jiske chalte woh blackmail kar raha hai. Par sawala yeh hai uske paas woh Video aaya kaise. Kyaa isme Kavya ki hi laaparwaahi thi yaa phir kuch aur hi baat hai. Aur uss aadmi ne sirf Shivaay kaa naam liya jisse woh waha uss puja se durr rakhne wala hai jisse yeh saaf pata chalta hai unnlogo Shivaay se bahot khatra hai.

Idher Shivaay ne Aarushi ko aisa kyaa bataya jiske chalte usse 2 thappad bhi padh gaye. Aisa kaunsa raaz bataya Shivaay ne.

Ab dekhna yeh hai ke Dhiren kyaa karega. Kyaa woh apni beti ke liye bhagwan ke saath gaddari karega yaa phir woh apni beti ko kurbaan karega yaa phir Shivaay ko batake unnlogo ke plan ki band bajwayegaa.
 

Siraj Patel

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We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

As you all know, in previous week we announced USC and also opened Rules and Queries thread after some time. Before all this, chit-chat thread already opened in Hindi section.

Well, Just want to inform that it is a Short story contest, in this you can post post story under any prefix. with minimum 700 words and maximum 7000 words . That is why, i want to invite you so that you can portray your thoughts using your words into a story which whole xforum would watch. This is a great step for you and for your stories cause USC's stories are read by every reader of Xforum. You are one of the best writers of Xforum, and your story is also going very well. That is why We whole heatedly request you to write a short story For USC. We know that you do not have time to spare but even after that we also know that you are capable of doing everything and bound to no limits.

And the readers who does not want to write they can also participate for the "Best Readers Award" .. You just have to give your reviews on the Posted stories in USC

"Winning Writer's will be awarded with Cash prizes and another awards "and along with that they get a chance to sticky their thread in their section so their thread remains on the top. That is why This is a fantastic chance for you all to make a great image on the mind of all reader and stretch your reach to the mark. This is a golden chance for all of you to portrait your thoughts into words to show us here in USC. So, bring it on and show us all your ideas, show it to the world.

Entry thread will be opened on 7th February, meaning you can start submission of your stories from 7th of feb and that will be opened till 25th of feb. During this you can post your story, so it is better for you to start writing your story in the given time.

And one more thing! Story is to be posted in one post only, cause this is a short story contest that means we can only hope for short stories. So you are not permitted to post your story in many post/parts. If you have any query regarding this, you can contact any staff member.



To chat or ask any doubt on a story, Use this thread — Chit Chat Thread

To Give review on USC's stories, Use this thread — Review Thread

To Chit Chat regarding the contest, Use this thread— Rules & Queries Thread

To post your story, use this thread — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 
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Lib am

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पात्र – परिचय
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ये परिवार राजस्थान के शहर उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर बसे एक बड़े ही विकसित गांव – यशपुर में रहता है। यशपुर अपने इर्द गिर्द बसे 18 गांवों के मध्य में है और उन सबमें से सबसे अधिक विकसित भी। कारण यही परिवार है जो कई पीढ़ियों से यशपुर में बसा है और इनकी प्रथा रही है के दोनों हाथ खोलकर गांव के भले के लिए खर्च करते हैं।

1.) रामेश्वर चव्हाण : आयु : 70 वर्ष। अपने ज़माने के एक बड़े जमींदार। यशपुर और पास के 18 गावों में सभी इन्हे बड़े आदर से “चव्हाण साहब” कहकर पुकारते हैं। हालांकि इनकी उम्र बढ़ चली है पर अभी भी इनके चेहरे पर वो गंभीरता और आवाज़ में कड़कपन कायम है। अपने परिवार से बहुत प्यार करते हैं खासकर अपने बड़े पोते से।

2.) अनुपमा चव्हाण : आयु : 65 वर्ष। एक कुशल गृहणी। अपने परिवार से बेहद प्यार करती हैं। ज्यादा वक्त पूजा – पाठ में लगाती हैं और अक्सर मंदिरों और पूजन स्थलों की यात्रा भी करती रहती हैं।

रामेश्वर और अनुपमा की तीन संताने हैं जिनमें से दो लड़के और एक लड़की है।

3.) अनिरुद्ध चव्हाण : आयु : 46 वर्ष। राजस्थान के एक जाने – माने बिजनेसमैन। इनका टेक्सटाइल यानी कपड़ों का कारोबार है और राजस्थान में इन्हे “टेक्सटाइल किंग” की उपाधि से भी नवाज़ा जाता है। अक्सर काम के सिलसिले में घर से बाहर रहते हैं।

4.) रागिनी चव्हाण : आयु : 44 वर्ष। ये अनिरुद्ध की धर्मपत्नी और चव्हाण परिवार की बड़ी बहू हैं। एक बहुत ही खूबसूरत महिला। इन्हे देख कर कोई नही कह सकता के ये अपने जीवन के 40 बसंत पर कर चुकी हैं। इनका एक महिलाओं और बच्चों से जुड़ा सामाजिक संस्थान है और कई जरूरतमंदों की मदद ये करती रहती हैं। अपने तीनों बच्चों से बहुत प्यार करती हैं।


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अनिरुद्ध – रागिनी के तीन बच्चे हैं। दो लड़कियां और एक लड़का।

5.) आरुषि चव्हाण : आयु : 24 वर्ष। एक बेहद ही खूबसूरत लड़की। दूध से गोरे रंग पर हल्के गुलाबीपन की चादर ओढ़े एक हुस्न की मल्लिका। ये बहुत ही शांत स्वभाव की है और अपने छोटे भाई – बहन से बहुत प्यार करती है। फिल्हाल यशपुर के करीबी शहर से एम.बी.ए. कर रही है।


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6.) शिवाय चव्हाण : आयु : 21 वर्ष। शिवाय यानी घर का सबसे लाडला सदस्य। परिवार का बड़ा पोता होने के चलते सबका लाडला है। खासकर अपने दादा और बड़ी बहन – आरुषि का। सबसे खास बात ये की ये इकलौता ऐसा शख्स है जिसके संग रामेश्वर जी हंसी मज़ाक तक कर लेते हैं। इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन पूरी कर चुका है और कुछ ही दिनों में आगे की पढ़ाई शुरू होने वाली है। बचपन से गांव की मिट्टी में खेला है तो शरीर एक दम पत्थर बन गया है। रामेश्वर जी ने स्वयं इसे कुश्ती खेलना सिखाया है। चेहरे से बेहद मासूम सा दिखता है पर इसके जीवन में कुछ राज़ भी हैं।

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7.) पाखी चव्हाण : आयु : 19 वर्ष। घर की सबसे चुलबुली और सबसे नटखट सदस्य। ये एक नामी कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर रही है। एक कुशल डॉक्टर बनना चाहती है। इसके और शिवाय के बीच अक्सर नोक–झोंक चलती रहती है। पर दोनो में प्यार भी बहुत है। इसके लिए इसकी बड़ी बहन आरुषि ही प्रेरणास्त्रोत है। आखिर आरुषि हर काम में इतनी परफेक्ट जो है।

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8.) रणवीर चव्हाण : आयु : 43 वर्ष। रामेश्वर और अनुपमा के छोटे बेटे। ये पेशे से एक वकील हैं और जयपुर हाई कोर्ट में कार्यरत हैं। ये एक बहुत ही हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के मालिक हैं और सदा दूसरों की मदद करने को तत्पर रहते हैं। शिवाय और रणवीर, चाचा – भतीजा कम और दोस्तों की तरह ज्यादा रहते हैं।

9.) अक्षरा चव्हाण : आयु : 40 वर्ष। बेहद ही सुंदर महिला। ये भी एक गृहणी हैं। वैसे तो इन्होंने कानून अर्थात लॉ की पढ़ाई की थी। ये और रणवीर एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और वहीं एक दूसरे से प्यार कर बैठे। पर बाद में अपने बच्चों को अधिक समय ना दे पाने के कारण इन्होंने वकालत से मुंह मोड़ लिया। हालांकि परिवार के सभी सदस्यों ने इन्हे मना भी किया लेकिन इनकी ममता के आगे उनका कोई तर्क ना टिक पाया।


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रणवीर – अक्षरा के दो बच्चे हैं। एक लड़का और एक लड़की।

10.) तान्या चव्हाण : आयु : 20 वर्ष। तान्या उर्फ तनु। ये पाखी की पार्टनर है, पार्टनर इन क्राइम। दोनो हर शैतानी साथ मिलकर करती हैं। दोनों ही एक दूसरे की पक्की सहेलियां हैं। यहां तक की पाखी और तान्या का कमरा भी एक ही है। फिल्हाल पाखी के साथ ही पढ़ रही है पर उस से एक साल आगे है।


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11.) तुषार चव्हाण : आयु : 18 वर्ष। इस परिवार का सबसे छोटा सदस्य। ये शिवाय का लाडला है। अर्थात वो इसकी हर काम में मदद करता है, चाहे वो पढ़ाई हो या खेल कूद या फिर कभी इसकी लड़ाई या झगड़ा वगेरह हो जाए तब भी। इसी साल कॉलेज जाना आरंभ किया है। पढ़ाई में ठीक ठाक सा ही है, वैसे ये फिल्मी दुनिया में नाम कमाना चाहता है और इसीलिए नृत्य और ड्रामा की क्लासेज भी लेता है।

12.) सौम्या रावत : आयु : 39 वर्ष। रामेश्वर और अनुपमा जी की इकलौती लड़की। ये अपने मां – बाप और दोनों भाइयों की लाडली रही है। ये एक कोचिंग संस्थान चलाती है जो कम शुल्क में बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करता है। अपने आप को पूरी तरह फिट रखा है क्योंकि इन्हे कसरत वगेरह का बहुत शौक है।


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13.) विक्रांत रावत : आयु : 41 वर्ष। सौम्या का पति। ये पुलिस फोर्स में डिप्टी कमिश्नर की कुर्सी पर कार्यरत है। बहुत ही ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ इंसान। इसके लिए इसकी ड्यूटी सबसे पहले आती है और बाकी सब बाद में। शिवाय के जितने भी राज़ हैं ये सबके बारे में जानते हैं।

सौम्या और विक्रांत की केवल एक बेटी हैं

14.) श्रुति रावत : आयु : 19 वर्ष। ये अपने पिता की ही तरह एक पुलिस अधिकारी बनना चाहती है तो कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ उसकी भी तैयारी कर रही है। ये काफी शांत स्वभाव की है। स्कूल – कॉलेज में कभी इसकी कोई दोस्त या सहेली नही रही क्योंकि इसे किसी से ज्यादा मिलना – जुलना पसंद नही। इसके ऐसे स्वभाव का भी एक विशेष कारण है।


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15.) धीरेन नायक : आयु : 46 वर्ष। ये चव्हाण परिवार का अंगरक्षक यानी बॉडीगार्ड है। रामेश्वर और अनुपमा जी ने उसे कभी अनिरुद्ध और रणवीर से अलग नहीं माना और ये भी उनकी उतनी ही इज्जत करता है। इस परिवार के लिए अपनी जान भी दे सकता है।

16.) मैथिली नायक : आयु : 42 वर्ष। धीरेन की पत्नी। इसके बारे में कहानी में पता चलेगा।


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17.) काव्या नायक : आयु : 21 वर्ष। धीरेन और मैथिली की बेटी। इसका और शिवाय का जन्म एक दूसरे से कुछ दिनों बाद ही हुआ था। लेकिन इन दोनो में 36 का आंकड़ा है। दोनो की एक दूसरे से बिल्कुल नही बनती और हमेशा आपस में झगड़ते रहते हैं। ये भी इंजीनियरिंग ही कर रही है पर इसने गेजुएशन शिवाय से अलग कॉलेज से किया था।

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{इनका परिवार इतना ही था। हालांकि रागिनी के मायके का परिचय मैने अभी नही दिया है, उनके बारे में आगे चलकर पता चलेगा। और भी कई किरदार कहानी में आयेंगे और उनका परिचय उसी वक्त मिल जाएगा।}
खूबसूरत पात्र परिचय, उम्मीद है कहानी भी उतनी ही सुंदर होगी।
 
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