प्रोलॉग
~~~~~~×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)
×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...
प्रोलॉग
~~~~~~×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)
×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...
Congrats bhai for your new threadप्रोलॉग
~~~~~~×- हाय..
×- ओ.. हाय..
×- शाम ढल रही है... इस वक़्त तुम... मुझसे क्यूँ मिलना चाहती थी...
×- एक बात करनी थी...
×- कैसी बात...
×- देखो... आम तौर पर... लड़कियाँ कभी पहल नहीं करतीं... पर..
×- पर... पर क्या..
×- ओ हो... बड़ा मजा आ रहा है तुम्हें...
×- मजा... अरे यार... यह कैसी बात कर रही हो... बताओ... क्यूँ बुलाया मुझे..
×- आ आ आह.. इट्स सो डिसगस्टींग... ओके... मैं... मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ...
×- ह्वाट... देखो... मज़ाक की भी हद होती है...
×- यू स्टुपिड... आई एम इन लव विथ यू... मुझे पहल करनी पड़ रही है... और यह... तुमसे कहना पड़ रहा है... तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है...
×- आर यू गॉन मैड... पूरी दुनिया में... तुम्हें कोई नहीं मिला...
×- ओ हैलो... डोंट बी ऐक्ट स्मार्ट... मैं जानती हूँ... तुम भी मुझसे प्यार करते हो... हर लड़की की तरह मैं भी चाहती थी... के तुम पहल करो... मुझसे प्यार का इजहार करो... पर पता नहीं क्यों... तुमसे हो नहीं पा रहा.. तो मैंने तुम्हारा काम आसान कर दिया...
×- देखो... तुम्हें कोई गलत फहमी हो गई है... मैं तुमसे प्यार नहीं करता...
×- (टुटे मन से) प्यार नहीं करते... क्यूँ नहीं करते.. क्या मैं इतनी खराब हूँ...
×- ओह गॉड... खराब तुम नहीं हो... खराब मैं हूँ... मेरी किस्मत है... मैं... मैं किसी से भी प्यार नहीं कर सकता...
×- (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) क्यूँ नहीं कर सकते प्यार..
×- (बेबसी के साथ) मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... बस इतना समझ लो... तकदीर ने मुझे प्यार करने की इजाजत नहीं दी है... (मुड़ जाता है)
×- (पीछे से आकार उसे अपनी तरफ मोड़ती है) अगर प्यार नहीं है... तो सीधे सीधे कहो... मुझसे प्यार नहीं है... यह बहाने क्यूँ बना रहे हो... तकदीर इजाजत नहीं दे रहा है...
×- अच्छा ठीक है... हाँ हाँ हाँ... मुझे तुमसे प्यार नहीं है...
×- (थोड़ी नर्म पड़ कर) क्या किसी और से प्यार करते हो...
×- (तड़प कर) नहीं नहीं नहीं... मैं... किसी से भी प्यार नहीं कर सकता... बस यूँ समझ लो... मेरे हर रिश्ते का एक हद है... एक उम्र है... इससे आगे मैं तुम्हें कुछ नहीं समझा सकता...
×- ठीक है... मुझे बस इतना बताओ... मुझ में क्या कमी है...
×- कमी तुममें नहीं है... मुझमें है... तुम आसमान में पूनम की चांद हो... और मैं अमावस की रात...
×- तो मुझे अपने आसमान में आने दो... मेरी रौशनी से... अपने अमावस की अंधेरे को दूर करो...
×- उसके लिए... अमावस को गुजरना होगा...
×- तो अमावस के गुजर जाने तक मैं इंतजार करुँगी...
×- नहीं... तुम ऐसा कुछ भी मत करो... क्यूँकी यह अमावस कभी खत्म नहीं होगा... बस यूँ समझो... एक सफर में हम तुम मिले... पहले मंजिल मेरी आई... मैं उतर गया... पर तुम्हारा सफर जारी है... क्यूँकी तुम्हारी मंजिल अभी आना बाकी है... इसलिये प्लीज... मुझसे प्यार मत करो...
×- (फीकी हँसी हँसते हुए) मेरी भी मंजिल वही है... जो तुम्हारी मंजिल है... मैं एक लड़की हूँ... इस शहर में... हर एक नज़र को पहचानती हूँ... महसुस करी हूँ... पर तुम अलग हो... पता नहीं.. वह क्या बात है... जो तुम्हें रोक रही है... पर मैंने महसूस किया है... तुम्हारे साँसों में मेरी खुशबु को... तुम्हारे दिल में अपनी धड़कन को... मैं तुम्हें इतने दिनों में इस हद तक जान गई हूँ... जितना मैं खुदको जानती हूँ... तुम मेरे अधूरे एहसास को पूरा करते हो.. तुम मेरे हर पहलू को... मुकम्मल करते हो... मैं तुमसे प्यार करना कैसे छोड़ दूँ... नहीं अब तो तुम्हें हासिल करना है... या फिर मर जाना है... (कह कर वहाँ से चली जाती है)
×- (जाते हुए अपनी आँखों से ओझल होते देख रहा था) अब मैं तुम्हें कैसे बताऊँ... प्यार के पहलू में... मैं तुम्हारा दूसरा पहलू हूँ... बिल्कुल उस सिक्के की तरह... सिक्का तो मुकम्मल होती है... पर दोनों पहलू... एक दूसरे को कभी देख नहीं पाते... एक दूसरे के खिलाफ पीठ कर खड़े होते हैं... मुझे माफ कर दो...
शुक्रिया कश्यप भाई आपका बहुत बहुत शुक्रियाFor starting new story thread....