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शाम ढल चुकी है, रात गहरा रहा है l भुवनेश्वर शहर पता नहीं कब सोता है, चौबीसों घंटे शोरगुल भीड़भाड़ में मसरूफ रहता है l इतना व्यस्त महानगर किसी के पास किसी के तरफ़ मुड़ कर उसे देख कर कुछ पूछने तक का वक़्त नहीं है l ऐसी ही कोलाहल मय शहर में एक बस्ती पात्रपड़ा, जिसके बीचोबीच एक छोटा सा घर है, लक्ष्मी निवास l उस घर के ड्रॉइंग रुम में चार प्राणी, जिनकी आँख दरवाजे पर टिकी हुई है l किसीके आने की राह तक रही है l घर का मालिक अरविंद विद्यापति, उसकी पत्नी लक्ष्मी विद्यापति बड़ी बेटी कल्याणी विद्यापति और छोटी बेटी गीतांजली विद्यापति, चारों परेशान और थोड़े घबराए हुए कभी घड़ी की ओर तो कभी बाहर दरवाजे की ओर देखे जा रहे हैं l अरविंद विद्यापति कमरे में चहल कदम कर रहा था
लक्ष्मी - अब आप कितनी देर तक कमरे में इधर उधर होते रहेंगे l बैठ जाइए ना l
कल्याणी - हाँ पापा, आपकी सेहत ठीक नहीं है l प्लीज पापा बैठ जाइए, टेंशन में आपकी बीपी हाई हो जाएगा...
गीता - हाँ पापा, भैया आ जाएंगे, थोड़ा गुस्सा हो कर ही गए हैं l
चलते चलते अरविंद अचानक खड़ा हो जाता है तो लक्ष्मी आगे बढ़ कर अरविंद को खिंच कर कमरे में पड़ी एक कुर्सी पर बिठाती है l कल्याणी भाग कर अंदर जाती है और एक ग्लास पानी लाकर अरविंद को देती है l अरविंद एक घुट पीकर पानी किनारे रख देता है l
अरविंद - लक्ष्मी,
लक्ष्मी - हाँ
अरविंद - क्या तुम्हारे बेटे को, मुझे कुछ कहना का हक नहीं है l
लक्ष्मी - आप ऐसा क्यों कह रहे हैं, आपका खून है, आपका पूरा हक बनता है l
अरविंद - तो फिर सुबह से गया है, अभी तक क्यूँ नहीं आया l
लक्ष्मी - आ जाएगा,कहाँ जाएगा l
अरविंद - नहीं लक्ष्मी आज मैंने उसे बहुत नाराज कर दिया l
कल्याणी - हाँ पापा, बेचारा खाना खाने बैठा था, आधी थाली छोडकर चला गया l
लक्ष्मी - तू चुप रह, बड़ी आई भाई की वकालत करने l रात भर थाने में था, जिसे घर लाने के लिए तेरे पापा ने लाला के सामने हाथ जोड़े पैर पड़े l दस लाख लेकर थानेदार को दिया तब जाकर थानेदार ने तेरे भाई को छोड़ा l बदले में दो शब्द नहीं कह सकते थे तेरे पापा l
गीता - पर भैया का दोष भी तो कुछ नहीं था l
लक्ष्मी - अपने घर में क्या कम मुसीबतें हैं जो वह दूसरों फटे में घुसने चला था l
घर में कुछ देर के लिए शांति छा जाती है l दीवार पर लगी घड़ी की टिक टिक आवाज़ ही सुनाई दे रही थी l तभी बाहर गेट खुलने की आवाज़ सबके कानों में पड़ती है l
गीता - (खुशी के मारे) मम्मा .. पापा.. भैया आ गए l
कल्याणी - (खुशी व्यक्त करते हुए) देखा मैं ना कहती थी, अंतस आ जाएगा l
कमरे में अंतस प्रवेश करता है l उसके सिर पर और हाथ में पट्टी बंधी हुई थी l उसकी ऐसी हालत देख कर अरविंद को गुस्सा आता है और तमतमा कर खड़ा हो जाता है l
अरविंद - ओ, कल रात की कसर अधूरी रह गई थी क्या, जिसे पूरा करने सुबह से निकल गया था l किससे मार पीट कर आया है, और मुझे कितना पैसे उधार लेने होंगे बोल दे l वैसे तो घर गिरवी पड़ा हुआ है, हम सब किसी सड़क किनारे बिक जाएंगे ताकि तेरी हर करनी की कीमत हम दे सकें l
लक्ष्मी - आप थोड़ी देर के लिए चुप हो जाइए प्लीज l सुबह का गया अभी लौटा है प्लीज़ l
अरविंद चुप हो जाता है और अपने कमरे में चला जाता है l अंतस ड्रॉइंग रुम में एक हिस्से में चादर से बनी अपने कमरे में जाता है कपड़े बदल कर बाथरूम में जाता है और नहा धो कर रात की लिबास पहने बाहर आता है l जब खाने पर आता है तो देखता है नीचे एक ही चटाई लगी है जिसके सामने एक ही थाली लगी हुई थी l उसकी माँ और दो बहनें उसकी थाली लगा कर उसके खाने का इंतजार कर रहे थे l
अंतस - मम्मा , सिर्फ एक ही थाली, पापा और आप लोग
कल्याणी - हम कब इकट्ठे खाए थे अंतस l वैसे भी तू सुबह से भूखा पेट बाहर गया था l तु खा ले, हम सब तेरे बाद खाएंगे l
अंतस - नहीं, आज के बाद हम सब, जब तक साथ हैं तब तक साथ ही खाएंगे l
लक्ष्मी - नहीं बेटा, तू खाना अपनी दीदी और छोटी के साथ खाले l तेरे पापा तो नहीं खाएंगे तेरे साथ, नाराज हैं तुझसे, उनके साथ मैं खाना खा लूँगी l
लक्ष्मी की बात सुनकर अंतस की दोनों बहनें अपनी अपनी थाली लेकर चटाई लगा कर अंतस के अगल बगल में बैठ जाती हैं l
अंतस - नहीं मम्मा, आज के बाद, जब तक हम साथ हैं हमेशा साथ साथ बैठ कर खाना खाएंगे l
लक्ष्मी - क्या तू बाहर से पी कर आया है l ऐसी बहकी बहकी बातेँ क्यूँ कर रहा है l
अंतस - मम्मा, क्या मैं तुम्हें पीया हुआ लग रहा हूँ l बस मैं यह कह रहा हूँ, आज से बल्कि अभी से हम सब मिलकर खाना खाएंगे l
लक्ष्मी - अच्छा, तो जा, आज तू खुद अपने पापा को बुला कर ला, जा l
अंतस अपनी थाली छोडकर उठता है, और अरविंद के कमरे की जाता है l ऐसा पहली बार घर में हो रहा था l अंतस हिम्मत कर के अपने पापा से बात करने उनके कमरे में जा रहा था l उसे बेखौफ जाते देख
गीता - मम्मा,आज भैया को क्या हो गया है l
कल्याणी - तुमने शाम को बाहर देखा था, सूरज किस तरफ से डूबा था l
लक्ष्मी - पता नहीं अब क्या कांड होगा, चलो चलकर देखते हैं
तीनों पीछे पीछे आकर अरविंद के कमरे के सामने खड़े हो जाते हैं l कमरे के अंदर अंतस अरविंद के सामने खड़ा हुआ था l अरविंद यूँ अंतस को अपने सामने देख कर थोड़ा चकीत होते हैं फिर पूछते हैं
अरविंद - क्या हुआ, कुछ कहना सुनना बाकी रह गया क्या l
अंतस - नहीं पापा, मम्मा ने थाली लगा दिया है, आपका इंतजार है, चलिए हम मिल बैठ कर साथ खाना खाते हैं l
अरविंद - साथ खाना खाएं, क्यूँ, जाओ बेटे जाओ, जाकर पेट भर खाना खा लो l तुम खाने पर मेरा इंतजार मत करो l मैं खाने के साथ साथ दिन भर की जिल्लत, अपमान गुस्सा और दुख को भी खा लेता हूँ l जिसे ना तो बांटा जा सकता है, ना ही किसीको बताया जा सकता है l
अंतस अरविंद के सामने पालथी मार कर बैठ जाता है और अरविंद का हाथ अपने हाथ में लेता है l अरविंद को आज अंतस के बरताव पर हैरत होता है l अंतस अरविंद के चेहरे को देख कर
अंतस - पापा, आज के बाद आपको कभी जिल्लत झेलना नहीं पड़ेगा l कभी अपमानित नहीं होना पड़ेगा l आपका हर ग़म, हर दुख मैं अपने सिर ले लूँगा l आइए पापा, हम साथ बैठ कर खाना खाते हैं l
अरविंद - क्या ग़म बांटेगा रे तु l तेरी दीदी घर में ब्याहने के बाद मैके में है, जिसे उसकी पति ने यहाँ छोड रखा है l(बाहर कल्याणी सुन कर अपनी रोना दबा लेती है) जिसके लिए मुझे दिन रात पैसे जुगाड़ने पड़े l पर तुझे छुड़ाने के लिए उन पैसों के साथ साथ लाला से भी उधार लेना पड़ा l
अंतस - मैं जानता हूँ पापा
अरविंद - नहीं, नहीं जानता तू कुछ l बेटा, जवानी में खून में खूब उबाल होता है l बड़ो की बातों में, बंदिशें लगती हैं, इसलिए बड़ो के खिलाफ बच्चें खिलाफत करते हैं l पर यह सब उनके अच्छे के लिए है यह समझते समझते बहुत देर हो जाती है l जब मैं तेरे उम्र का था तब तेरे ही तरह दोस्तों के लिए, अपनों के लिए, दोस्तों के लोगों के बहकावे में आकर मारपीट दंगे फसाद किया करता था l नतीजा यह रहा के मेरे सारे दोस्त, सारे अपने आगे बढ़ गए मगर मैं बहुत पीछे रह गया l मैं तेरे पर गुस्सा इसलिए होता रहता हूँ, जिन वजहों ने मुझे मुझे नाकारा नाकाम बना रखा l आज तुझे उन्हीं हालातों से गुज़रता देख मेरी अपनी नाकामियों का गुस्सा तुझपर उतार देता हूँ l
अंतस - जानता हूँ पापा जानता हूँ l अब मैंने भी दुनिया को पहचान लिया है l कल रात भर जिस दोस्त के लिए पुलिस थाने में रुका था वह मेरे लिए थाने नहीं आया l थाने में आप मेरे लिए रात भर रुके l इसलिए अब मेरे लिए आप जो मायने रखते हैं अब कोई नहीं रखता l चलिए हम सब मिलकर आज खाना खाते हैं l आज आप सबको एक खुश खबर भी देना है इसलिए चलिए l (अंतस खड़े हो कर अरविंद का हाथ खिंचता है)
अरविंद - (अपनी कुर्सी से ना उठ कर) खुशी, ख़बर, कैसी खुशी खबर l
अंतस - पापा, मुझे आज नौकरी मिल गई है l
लक्ष्मी - क्या (कह कर अंदर आती है पीछे पीछे कल्याणी और गीता भी आती हैं) तुझे नौकरी मिली है l
अंतस - हाँ मम्मा बहुत ही अच्छी नौकरी, इतनी अच्छी के हमारे सारे दुख दूर हो जाएंगे l
अरविंद खुशी के मारे उठ खड़ा होता है उसके चेहरे पर खुशी चमकने लगती है पर अचानक उसे संदेह होता है, इसलिए पूछता है
अरविंद - सुबह तू घर से भला चंगा गया था पर अब जब लौटा है हाथ और सिर पर पट्टी बंधा हुआ है l यह कैसी नौकरी मिली है तुझे
अंतस - मैं जानता था आपको यकीन नहीं आयेगा (कह कर अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाल कर अरविंद के हाथ में देता है) यह रहा मेरा एपॉइंटमेंट लेटर l
सबके मुहँ हैरत के मारे खुल जाती है l अरविंद को यकीन नहीं हो रहा था l वह काग़ज़ को बड़े ध्यान से देखता है l हाँ यह एपॉइंटमेंट लेटर ही था l अंतस मय विद्यापति के नाम पर ही है l हैरत और अविश्वास के भाव से अपने बेटे को देखता है
अंतस - हाँ पापा, सुबह आपकी डांट सुनकर मैं घर से निकल गया था l जूठ नहीं बोलूँगा मारपीट के उद्देश्य से ही निकला था पर जोश जोश में सड़क का ध्यान नहीं था इसलिए एक कार से टाकरा गया l उस कार में एक भला मानस बैठा था जिसने मुझे हस्पताल लेजाकर मरहम पट्टी कारवाया l बातों बातों में उसने मुझे अशोका होटल में हो रहे ऐर खारबेल ग्रुप्स के वॉक इन इंटरव्यू में हिस्सा लेने के लिए कहा l मैंने उसकी बात मान कर इंटरव्यू में पार्टिसिपेट किया और
कल्याणी - तुझे नौकरी मिल गई
अंतस - हाँ दीदी
गीता - (चहकते हुए) जॉइनिंग कब है भैया
अंतस - कल ही, फॉर्च्यून टावर में उनके ऑफिस में
लक्ष्मी - इतनी बड़ी खुशी की बात तू हम सबको ऐसे बता रहा है l
अंतस - इसीलिए कह रहा हूँ चलिए हम सब मिलकर एक-दूसरे साथ खाना खाएंगे
सभी परिवार वाले खुशी खुशी हँसी ठिठोली करते हुए रात का खाना खाते हैं l
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अचानक अंतस की नींद टूटती है l शायद आधी रात हो गया था l दो कमरों में एक में उसके माता पिता और दूसरे में उसकी दो बहने सो रहे थे l ड्रॉइंग रुम के एक कोने में सोफ़े कम बेड पर सोया हुआ था l यही उसकी जगह थी इस छोटे से घर में l वह अपनी बिस्तर से उठ कर नाइट बल्ब की रौशनी में पानी पीने के लिए किचेन की ओर जाता है कि उसके माता पिता के बातचीत उसके कानों में पड़ता है तो उसके कदम ठिठक जाते हैं l
लक्ष्मी - (दबी आवाज में) ओ हो, अब सो भी जाओ, आधी रात हो चुका है, वह एपॉइंटमेंट लेटर आपके बेटे का है, पर उस लेटर को दुलार ऐसे रहे हो जैसे वह लेटर आपको मिला है
अरविंद - (दबी आवाज में) अरे अंतस की माँ, तुम जानती भी हो किस कंपनी का यह एपॉइंटमेंट लेटर है ? खारबेल ग्रुप्स कंपनी l पैकेज देखो, सालाना बीस लाख l अरे अंतस की माँ, पूरे पात्रपड़ा में मेरे बेटे के बराबर अब कौन है बोलो तो ज़रा l
लक्ष्मी - अच्छा जी, अब आपका बेटा हो गया l शाम तक तो वह मेरा बेटा था l
अरविंद - चलो ठीक है, हमारा बेटा खुश l
लक्ष्मी - हाँ खुश, अब तो सो जाइए l
अरविंद - अरे अंतस की माँ, ज़रा सोचो, शाम तक हम लोग कितने मायूस थे, हारे हुए लग रहे थे, लूटे हुए थे l फिर अचानक ऐसी खुशी, इतनी खुशी हमारी झोली में आ जाती है l अब यह खुशी कहीं चली ना जाए, खो ना जाए, इसलिए मुझसे सोया नहीं जा रहा है l
लक्ष्मी - बिल्कुल बच्चों जैसी बात कर रहे हैं l काग़ज़ आपके हाथ में है और आप को डर है कि कहीं खुशी चली ना जाए l
अरविंद - हाँ अंतस की माँ, तुम तो जानती हो ना, हमेशा दोस्तों और अपनों के लिए लड़ाई मोल ले कर मैंने अपनी जिंदगी तबाह और बर्बाद कर दिया था l जिनके लिए लड़ा वह लोग मुझे छोड़ कर आगे बढ़ गए मैं पीछे छूट गया l इतना पीछे, के एक प्राईवेट स्कुल में एक शिक्षक ही बनकर रह गया l
लक्ष्मी - अभी क्यूँ आप ऐसी बातेँ कर रहे हैं l
अरविंद - मैं अपनी नाकामियों को अंतस को दोहराते पाया l तुमने देखा नहीं कैसे अपने दोस्त के लिए सड़क छाप गुंडों से लड़ गया पर जब साथ देने का आया, वही दोस्त पुलिस स्टेशन तक नहीं आया अपना बयान तक देने नहीं आया l मैंने सोचा शायद मेरी तरह अंतस की जिंदगी बर्बाद हो गया l पर भगवान से हमारा दुख देखा ना गया, तभी तो बिगड़ने पहले बात बन गई l
लक्ष्मी - पर अंतस की छुड़ाने के लिए आपने उस बदतमीज लाला से दस लाख रुपये उधार भी लिए हैं l
अरविंद - हाँ तो क्या हुआ अंतस की माँ, अब अंतस इतना कमाएगा के हमारे सारे दुख दूर होने वाले हैं l
लक्ष्मी - हाँ हो जायेंगे, अब तो सो जाइए l वह काग़ज़ है आपका बेटा अंतस नहीं जो इतना दुलार रहे हैं l
अरविंद - अरे मेरी सहभगिनी, अर्धांगिनी अब तुम्हें कैसे बताऊँ मैं मेरा बेटा मेरे कंधे की बोझ को किस कदर हल्का कर दिया l ऐसा लग रहा है जैसे मैं उड़ रहा हूँ l
लक्ष्मी - ठीक है, अब आप वह टेबल लैम्प बंद कीजिए कम से कम मुझे तो सोने दीजिए l
अरविंद - अरे भाग्यवान मेरे साथ आज की रात जाग लो, मुझसे आज सोया नहीं जाएगा, सच कहूँ तो आज पीने को बड़ा मन कर रहा था
लक्ष्मी - लो अब यह कसर भी रह गई, और भी कुछ करने का मन है क्या
अरविंद - हाँ है ना, कल मैं अपनी स्कुटर पर बिठा कर अंतस को फॉर्च्यून टावर ले जाऊँगा जॉइनिंग के लिए
लक्ष्मी - है भगवान, बस बहुत हो गया अब आप सोयेंगे या मैं चीख कर सबको जगाऊँ l
अरविंद - ठीक है ठीक है
टेबल लैम्प की स्विच बंद होने की आवाज़ सुनाई देती है l अंतस की आँख भीग गए थे अपने माता पिता की बातें सुन कर l वह मुड़ा ही था कि अपने सामने गीता को खड़े हुए पाता है l इससे पहले अंतस कुछ कहता गीता इशारे से उसे चुप रहने को कहती है l फिर गीता अंतस की हाथ पकड़ कर ड्रॉइंग रुम के सोफ़े पर लेकर आती है, अंतस को बिठा कर खुद भी बैठ जाती है l
गीता - (दबी और धीमी आवाज में) भैया सच सच बताना, यह नौकरी, क्या सच में (रुक जाती है)
अंतस - मेरी नौकरी सच में लगा है, तुझे क्यों मुझ पर शक हो रहा है
गीता - भैया, तुम जब आए हाथ में पट्टी, सिर पर पट्टी l फिर अचानक एपॉइंटमेंट लेटर l मैं यह नहीं जानती, पर इतना जरूर कहूँगी, काश आज की यह खुशियाँ कहीं कोई बुलबुला साबित ना हो
अंतस - तु ऐसी बात क्यूँ कर रही है
गीता - भैया, हम जहाँ रह रहे हैं, वहीं सब हर रोज हमारा मज़ाक बना रहे हैं l दीदी शादी के बाद भी यहाँ है, इसलिए मुहल्ले भर लोगों की सहानुभूति की आड़ में भद्दी नजर गड़ी रहती है l पापा ने लाला के पास घर गिरवी रख दीदी की शादी कारवाई थी l कल जब तुम्हारे लिए पैसे मांगे तो वह कमीना हरामी लाला पैसे देने घर पर आया l पानी पीने के बहाने पापा और मम्मा के सामने दीदी का हाथ पकड़ लिया l हम कितने मजबूर थे भैया उस लाला को कुछ करना तो दूर कह भी नहीं पाए l (अपनी रोना दबा देती है पर अंतस को महसूस हो जाता है इसके अंतस गीता को गले लगा कर)
अंतस - बस छोटी बस l जो भी बुरा हुआ, जितना भी बुरा हुआ बस वह आखरी था l हमारे पिता ने दुनिया से जुझा, लड़ा l अब उनकी लड़ाई मैं अपने सिर ले रहा हूँ l तू देखेगी जिन्होंने हमारा मज़ाक बनाया है, जिन्होंने पापा की अच्छाई का सिला धोखे से दिया है, सब कल से अपना अपना हिसाब देंगे, और यह सब तु कल से देखेगी l
गीता - (अलग हो कर) और दीदी, दीदी का क्या
अंतस - दीदी, दीदी को पूछते ढूंढते देखना जीजाजी आयेंगे, बड़े इज़्ज़त और सम्मान के साथ दीदी को अपने घर लेकर जाएंगे l जहां वह दीदी को रानी की तरह रखेंगे
गीता - सच भैया, इस एक नौकरी पर, तुम्हें इतना भरोसा l
अंतस - हाँ, यही वह नौकरी है जो हमें समाज में हमारा इज़्ज़त दिलाएगा l (गीता और भी कुछ कहना चाहती थी पर अंतस उसे चुप कराता है) श्श्श, जा अब सो जा, कल का सुरज, हमारे परिवार के लिए एक नया सुबह लाने वाला है l अब और कोई गप नहीं जा
शहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
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सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
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रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
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लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
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रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
शहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
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सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
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रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
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लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
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रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
Bhai kahaani to ghum gayi bhut lagta. hai antaas ki koi lambi jaankari hui hai aur ye ramesh kese bich me aa gaya I think do teen update lagenge mujhe samajhne me jaldi do yaar plzz
शहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
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रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
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लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
शहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
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सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
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रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
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लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
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रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l
शहर की एक कोने में, एक छोटा सा बार l उस बार में एक शख्स एक टेबल पर अकेला शराब पी रहा था l तभी एक आदमी बार के अंदर आता है, बिखरे बाल, चेहरे पर हल्की दाढ़ी l ऐसा लग रहा था जैसे कहीं से पीटा हुआ आया था l वह अनजान शख्स अपनी नजर इधर उधर घुमाता है देखता है एक टेबल पर एक आदमी अकेला बैठा हुआ है तो वह उस टेबल के पास आता है और उस बैठे हुए शख्स से पूछता है
अनजान - क्या यह टेबल, खाली है l
शख्स - (कुछ नहीं कहता, उसे घूर कर देखता है)
अनजान - क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ l
शख्स - बैठ जा, मेरे बाप का क्या जाता है l
अनजान - आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - दूध, दिख नहीं रहा है, अंधा है क्या l अबे यह बार है बार, जो एक बार आए वह बार बार आए l
"आह हा हा आहा आहा" वहाँ पर मौजूद शराबियों में से किसीने कहा l
शख्स - तेरी शक्ल बता रहा है, तू मंदिर जाने वालों में से है l यहाँ क्यूँ आया है l
अनजान - आप जिसके लिए आए हैं l
शख्स - मैं इधर अपना मुफ़्त का पैसा उड़ाने आया हूँ l
अनजान - मेरा भी कुछ ऐसा इरादा है l
शख्स - तो जा उड़ा ना, मेरा दिमाग क्यूँ चाट रहा है l
अनजान - मैंने पहले कभी पिया नहीं है, इसलिए आपसे पूछ रहा था कि आप क्या पी रहे हैं l
शख्स - ओ हो हो हो हो, तो पहली बार आया है l (वेटर से) ओए
वेटर - जी सर जी
शख्स - इसके लिए एक नारंगी ला...
अनजान - नहीं सुनो (वेटर से) इस बार की सबसे बढ़िया शराब लेकर आओ, वह भी फूल बॉटल l (वेटर चला जाता है)
शख्स - ओ हो, लगता है बेड़े मालदार हो l
अनजान - नहीं ऐसी बात नहीं है, अगर शराब पीना ही है तो बढ़िया से शुरुआत क्यूँ ना करें l
शख्स - हम्म्म, फूल बॉटल, अकेले पी पाओगे l
अनजान - क्यूँ आप भी तो हैं साथ l नहीं पियेंगे साथ?
शख्स - नहीं ऐसी बात नहीं है, तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो l
अनजान - अभी पहचान कर लेते हैं, मेरा नाम भविष्य है l
शख्स - क्या, यह कैसा नाम है l
भविष्य - इसमे मैं क्या कर सकता हूँ l यह नाम मेरे माँ बाप ने दिया है l और आपका
शख्स - रमेश, रमेश पुरोहित l (इतने में वेटर दो ग्लास और एक बॉटल, दो पानी के बोतल और दो ग्लास रख देता है)
भविष्य - (वेटर से) कुछ चखना भी ले आना l
वेटर - क्या लाऊँ सर
भविष्य - (रमेश की ओर दिखा कर) उनसे पूछो( वेटर रमेश की ओर देखता है)
रमेश - एक चिकन पकौड़ा बोन लेस
वेटर चला जाता है, भविष्य और रमेश आपस में बात बढ़ाते हुए पेग बना कर पीने लगते हैं l कुछ देर बाद रमेश पर नशा हावी होने लगता है l भविष्य भी अपने पेग में कम और रमेश के पेग में ज्यादा शराब डाल रहा था l कुछ देर बाद रमेश टेबल पर सर रख कर सो जाता है l वेटर जब आता है भविष्य बिल चुकाता है और टीप देते हुए वेटर से कहता है
भविष्य - इन्हें बाहर ले जाने में मेरा मदत करोगे l
वेटर - जी जरूर
फिर दोनों रमेश को सहारा दे कर बाहर लाते हैं कि एक कार आकर रुकती है l भविष्य वेटर की मदत से पिछली सीट पर रमेश को सुला देता है और फिर आगे जाकर ड्राइवर के बगल में बैठ जाता है l
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सुबह सुबह नाश्ते पर सभी बैठे हुए हैं l सबके चेहरे पर खुशी देख कर अंतस मन ही मन खुश होता है l सबकी नाश्ता खत्म हो जाता है तो अंतस अपनी नौकरी पर जॉइनिंग के लिए तैयार हो कर आता है तो सामने उसकी माँ थाली में दिया जला कर नजर उतारती है
अंतस - मम्मा, मैं कोई जंग लड़ने नहीं जा रहा l नौकरी जॉइन करने जा रहा हूँ l
लक्ष्मी - जानती हूँ, तू कोई जंग नहीं लड़ने नहीं जा रहा l पर अचानक आयी इस खुशी को किसीकी नजर ना लग जाये l
अरविंद - हाँ, लक्ष्मी जी हाँ, कहीं नजर ना लग जाये, इसलिए अच्छी तरह से नजर उतारो
लक्ष्मी अंतस के माथे पर तिलक लगाती है l अंतस भी अपनी माँ की पैर छू कर आशीर्वाद लेता है l फिर वह बाहर आता है तो देखता है अरविंद अपनी स्कुटर पर उसका इंतजार कर रहा है l
अरविंद - चल आजा बेटा, शुभ काम में देरी नहीं होनी चाहिए
अंतस - पापा आप
अरविंद - देख आज मैं तुझे स्कुटर पर बिठा कर तेरे ऑफिस लिए जाऊँगा l और रास्ते मे जो भी दिखेगा सबके सामने अपनी मूँछ पर ताव देते हुआ जाऊँगा l
अंतस हँस देता है, अरविंद अपनी स्कुटर को स्टार्ट करता है l अंतस उसके पीछे बैठ जाता है l जैसे ही स्कुटर जाने को होता है एक चमचमाती हुई कार उनके सामने रुकती है l गाड़ी से एक आदमी और एक खूबसूरत लड़की उतरते हैं l
आदमी - एस्क्युज मी, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार हैं
अंतस - (स्कुटर से उतर कर) जी, मैं ही हूँ अंतस कुमार विद्यापति
आदमी - हम आपके घर को रेनोवेट करने आए हैं, जैसा कि आपने हमें ऑर्डर किया था l
अंतस - ओ हाँ हाँ, ठीक है, आप घर को अच्छी तरह से देख लीजिए और जहाँ जहाँ जितना हो सके उतना कर दीजिए l
आदमी - जी सर
वह आदमी उस लड़की के साथ अंतस के घर के अंदर जाता है l इतने में कार की ड्राइवर गाड़ी को एक किनारे लगा देता है l अरविंद अपने बेटे अंतस को लेकर स्कुटर में निकल जाता है l
अरविंद - तुमने रेनोवेट के लिए कब कहा l
अंतस - कल ही, जैसे ही नौकरी की कंफर्मेशन मिली, तभी इनको ऑर्डर कर दिया था l
अरविंद - कितने दिन लगेंगे और कितना खर्चा लगेगा l
अंतस - आप उसकी चिंता मत कीजिए, कंपनी क्वार्टर के बदले में यह रेनोवेशन का चार्ज उठा रही है l
अरविंद - अरे वाह, खारबेल ग्रुप्स कंपनी अपने एंप्लोईस का बड़ा ध्यान रखती है l
अंतस इस बात का कोई जवाब नहीं देता, पर अरविंद फॉर्च्यून टावर पहुँचने तक कुछ ना कुछ उल जलूल बातेँ करता रहा l अंतस को अच्छा लग रहा था कि उसका बाप बिल्कुल एक छोटे बच्चे की तरह बेसिर पैर की बातेँ कर रहा था l फॉर्च्यून टावर के पास पहुँचते ही वहाँ पर खड़े सेक्यूरिटी गार्ड अंतस को सलाम ठोकता है और स्कुटर के लिए अंदर की ओर रास्ता दिखाता है l अरविंद स्कुटर को अंदर लेजाकर पार्क कर देता है l
अरविंद - तू इससे पहले भी कभी आया था क्या l
अंतस - नहीं क्यूँ क्या हुआ l
अरविंद - यह गार्ड तुझे ऐसा सॅल्युट दिया जैसे तुझे पहले से ही जानता हो l
अंतस - जिनको नौकरी मिली है, उनकी डिटेल्स और फोटो तक, इन सेक्यूरिटी गार्ड्स के टेबलेट पर दिया गया होगा l इसलिए उसने मुझे सॅल्युट किया l
अरविंद - ओ ओ ओ
अंतस - अब चलें,
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें
दोनों बाप बेटे टावर के अंदर लिफ्ट से सातवें फ्लोर पर जाते हैं l वह फ्लोर खारबेल ग्रुप्स का एच आर सेक्शन था l रिसेप्शन में अंतस अपना काग़ज़ दिखाता है l रिसेप्शनिस्ट कागज लेकर देखती है और अंतस को अंदर जाने के लिए कहती है l जैसे ही अंतस के साथ अरविंद जाने को होता है रिसेप्शनिस्ट उसे रोक कर लॉबी में इंतजार करने के लिए कहती है l अरविंद भी बात मान कर लॉबी में सोफ़े पर बैठ जाता है l कांच की दीवारों के पार से अपने बेटे अंतस को ओझल होते देखता है l तभी उसका ध्यान टूटता है
-एस्क्युज मी सर, क्या आप मिस्टर अंतस कुमार के पिताजी हैं
अरविंद - (एक खूबसूरत लड़की थी) जी जी, यस यस
लड़की एक फुड ट्राली के साथ आई थी l वह तुरंत ही अरविंद के सामने नाश्ता परोस देती है l अरविंद को कुछ समझ में नहीं आता है l वह मन ही मन सोचने लगता है इस कंपनी में क्या हर एंप्लोईस के रिश्तेदारों से ऐसा बर्ताव करते होंगे या फिर उसके बेटे को कोई बड़ी पोजिशन हासिल हो गया है l
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रमेश अपनी आँखे खोलता है l उसे छत नहीं दिख रही थी l वह अपना हाथ चेहरे पर लाने की कोशिश करता है पर उसका हाथ बंधा हुआ था l वह चौंकता है बिस्तर पर उठ बैठता है l अपनी नजर कमरे के अंदर दौड़ाने लगता है l यह किसी हस्पताल की ऑपरेशन थिएटर की तरह लग रहा था l उसके बदन पर उसके अपने कपड़े नहीं थे उल्टा मरीज़ को पहनाने वाले कपड़ों में था l वह सोच में पड़ जाता है कि पिछली रात दारु पी रहा था और पीते पीते टेबल पर ही सिर टीका कर सो गया था l वह अपनी हाथों को खिंचता है पर कोई फायदा नहीं होता l बड़ी मजबूती के साथ बेड से बंधा हुआ था l
रमेश - (चिल्ला कर) कोई है, मुझे कोई सुन पा रहा है, ओ हैलो
"चिल्ला क्यूँ रहा है" कहते हुए भविष्य एक डॉक्टर के साथ कमरे में आता है l
रमेश - तुम, तुमने मुझे यहाँ क्यूँ बाँध रखा है,
भविष्य - तू किसी काम का नहीं है, इसलिए सोचा तेरे पास जो भी काम की चीज़ है वह ले लिया जाए l
रमेश - क्या मतलब है तुम्हारा
भविष्य - देख शराब की टेबल पर कोई अकेला होता है, तो वह अपनी जिंदगी पर बोझ होता है l तुझे कल अकेला देखा इसलिए उठा कर ले आया l
रमेश - क्या बक रहे हो कुछ समझ में नहीं आ रहा l मैं इस हस्पताल में क्या कर रहा हूँ l
डॉक्टर - यह हस्पताल नहीं है l यह मेरा लैब है l
रमेश - लैब, कैसा लैब
भविष्य - हम एक्चुअली ह्यूमन ऑर्गन स्मगल करते हैं, जो लोग यूस लेस होते हैं उनसे यूज फूल ऑर्गन निकाल कर पैसा कमाते हैं l
रमेश - क्या,नहीं तुम लोग मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते l
भविष्य - क्यूँ नहीं कर सकते, तू रात भर से गायब है मगर कोई ढूंढ नहीं रहा मतलब तेरे रहने ना रहने से किसीको कोई फर्क़ नहीं पड़ता l
रमेश - देखो मैं शादी शुदा हूँ, मेरे माँ बाप हैं, पत्नी है प्लीज मुझे जाने दो प्लीज (गिड़गिड़ाने लगता है)
भविष्य - देख आज तो नहीं पर कल तेरे लाश को तेरे घर वालों के पास पहुँचा दूँगा l
रमेश - नहीं
भविष्य - हाँ, क्यूँकी तेरे खून में एल्कोहल बहुत मात्रा में है इसलिए आज तू बच गया (रमेश चिल्लाने लगता है तो भविष्य उसके मुहँ पर सर्जिकल टेप चिपका देता है l रमेश बस गुँ गुँ कर रह जाता है)
भविष्य - हाँ तो डॉक्टर कितना माल मिलेगा l
डॉक्टर - सात लाख
भविष्य - सिर्फ सात लाख, मुझे तो यह करोड़ों का आसामी लगा था l इसकी आँखे निकाली जा सकती है, इसका दिल, फेफड़े, गुर्दा और कलेजा तक निकले जा सकते हैं l
डॉक्टर - अच्छा ठीक है, दस लाख, और ज्यादा नहीं वर्ना तुम इसे ले जा कर दफा हो सकते हो l
भविष्य - भगवान से तो डरो, तुम कमाओ करोड़ों में और हमें लाखों की छींट l
डॉक्टर - देख तेरे से डील नहीं हो पा रहा तो अपना लगेज को लेकर यहाँ से रफू चक्कर हो जा l
भविष्य - ठीक है, मुझे मंजूर है यह डील
दोनों हाथ मिलाते हैं और मुस्कराते हुए बेड पर बँधा रमेश को देखते हैं जिसका आँख डर के मारे फैल गई थी और चेहरा पसीने से तर रहा था l
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लॉबी में बैठे बैठे अरविंद ने कब झपकी ले ली थी उसे पता ही नहीं था l जब उसकी आँखे खुलती हैं तब उसे एहसास होता है कि अंतस उसे हिला हिला कर जगा रहा है l झटपट उठ कर अपनी चारों तरफ देखता है l ऑफिस के सारे स्टाफ़ उसीकी और देख रहे थे l अरविंद मन ही मन में शर्मिंदा होता है l
अंतस - पापा चलें l (यही एक शब्द उसके भीतर जान और स्फूर्ति भर देती है)
अरविंद - हाँ हाँ चलो चलें l
अरविंद उस जगह से जल्दी निकल जाना चाहता था l इसलिए करीब करीब भागते हुए लिफ्ट तक पहुँचता है फिर जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा खुलता है वह जल्दी से लिफ्ट के अंदर घुस जाता है l पीछे पीछे अंतस भी आ जाता है l
अरविंद - पता ही नहीं चला मैं कब सो गया l उन लोगों को बुरा लगा होगा हैं ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं है l मैं जानता हूँ आप कल रात सोये नहीं होंगे l
अरविंद - हाँ कल रात मैं इतना खुस था कि मुझे नींद ही नहीं आई l शीट ऑफिस में तेरा इम्प्रेशन खराब तो नहीं हुआ होगा ना l
अंतस - नहीं पापा, ऐसा कुछ नहीं हुआ है l
दोनों लिफ्ट से बाहर आते हैं l अरविंद अभी भी भागते हुए पार्किंग में जाकर गाड़ी निकालता है l गाड़ी लेकर जब अंतस के पास पहुँचता है तो देखता है अंतस के हाथ में एक लेदर बैग था l
अरविंद - यह तेरे हाथ में बैग कैसा l
अंतस - ऑफिस का है, कुछ कागजात वगैरह हैं l
अरविंद - अच्छा आ बैठ, जल्दी निकलते हैं l
अंतस पीछे बैठ जाता है तो अरविंद गाड़ी घर की ओर ले जाता है l
अरविंद - तेरे अंदर जाने के बाद, मुझे खाना सर्व किया गया l मैंने भी लाज शर्म छोड़ कर ठूंसता गया l पेट भारी हो गया था, इसलिए झपकी आ गई थी l
अंतस - हाँ, समझ सकता हूँ l
अरविंद - क्या सोच रहे होंगे तेरे ऑफिस के स्टाफ l
अंतस - हाँ उन्हें थोड़ी डिस्टर्बेंस हो रहा था l
अरविंद - हाँ मैं समझ सकता हूँ, उनको डिस्टर्ब मेरे खर्राटे किए होंगे हा हा हा हा हा हा
अरविंद के साथ अंतस भी हँसने लगता है l तभी उनकी स्कुटर को ओवर टेक करते हुए एक पुलिस की जीप इन्हें रुकने के लिए इशारा करते हुए थोड़ी दूर रुकती है l पुलिस की जीप उन्हें इस तरह से रोकना अरविंद को जितना हैरान करता है उससे कहीं ज्यादा परेशान करता है l
अरविंद - अरे अब फिर क्या हो गया
अंतस - पता नहीं, चलिए देखते हैं क्या होता है
अरविंद अपना स्कुटर को पुलिस की जीप के पास रोकता है l दोनों स्कुटर से उतरते हैं, अरविंद गाड़ी की कागजात निकाल कर जीप की ओर जाने लगता है l देखता है जीप के अंदर वही दरोगा है जिसने दस लाख रुपये लेकर अंतस को छोड़ा था l
अरविंद - क्या बात है इंस्पेक्टर साहब, अब क्या गलती हो गई
इंस्पेक्टर - परसों मैंने आपसे जो रकम ली थी, उसकी वज़ह, जानते हैं आप
अरविंद - जी, जी नहीं साहब
इंस्पेक्टर - वह रकम मैंने आपसे इसलिए ली थी ताकि जिसने आपके बेटे के खिलाफ केस दर्ज की थी उसे वह रकम दे कर केस वापस ले जाने के लिए समझा सकूँ
अरविंद - जी, जी इंस्पेक्टर साहब
इंस्पेक्टर - (गहरी साँस छोड़ते हुए) पहले उसने पैसे ले लिए थे और केस भी वापस ले लिया था, पर आज सुबह आ कर अपनी गलती मान ली और यह पैसे लौटा दिया (कह कर इंस्पेक्टर काग़ज़ में लिपटे कुछ नोटों की गड्डीयाँ अरविंद के हाथों में थमा देता है) (अरविंद भौचक्का रह जाता है) अगर कुछ ज्यादती मुझसे हुई हो तो मुझे माफ कर दीजियेगा l
इतना कह कर इंस्पेक्टर अपनी जीप के साथ चला जाता है l हाथों में दस लाख रुपयों का बंडल लेकर मुहँ फाड़े इंस्पेक्टर को ओझल होते देख रहा था l वह चौंकता है जब अंतस उसे आवाज देता है
अंतस - पापा,
अरविंद - हाँ, हाँ (घूम कर अंतस के पास आता है) (थोड़ा हकलाते) बेटा अंतस
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - एक चिकोटी काटना
अंतस - क्या
अरविंद - कहीं मैं अभी भी सोया हुआ तो नहीं हूँ l
अंतस - नहीं पापा, आप जागे हुए हैं, आप और मैं स्कुटर पर यहाँ आए हैं और अभी अभी वह पुलिस वाला आपके पैसे लौटा कर गया है l
अरविंद - अच्छा, इसका मतलब मैं जागा हुआ हूँ, हा हा हा हा, मैं जागा हुआ हूँ
अंतस - हाँ पापा
अरविंद - बेटा मुझे यकीन ही नहीं हो रहा, यह इंस्पेक्टर कितना बड़ा रिश्वत खोर है यह पूरी दुनिया जानती है, पर इसने अभी अभी मुझे मेरा पैसा लौटा दिया
अंतस - मैंने कहा था पापा, अब सब ठीक हो जाएगा
अरविंद - हाँ हाँ जैसे ही तेरी नौकरी लगी सब अपने आप सारे बिगड़े काम ठीक हो रहे हैं l (हाथ जोड़ कर आसमान की ओर देखते हुए) है भगवान कास मेरी कल्याणी की भी घर गृहस्थी सँवर जाए
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रमेश भाग रहा था, बड़ी मुश्किल से छुटा था l उसे यह अच्छी तरह से समझ में आ गया था, वह अभी किडनैप हुआ था एक ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग गैंग के हाथों l वह तो उसकी किस्मत ने साथ दिया इसलिए अच्छी तरह से जोर लगाने पर उसके बंधन टूट गए l गनीमत है उसे वहाँ से भागते हुए किसीने नहीं देखा था l भागते भागते रमेश हांफने और थकने लगा था l हांफते हांफते इतना थक गया था कि वह सड़क किनारे एक कल्वर्ट पर बैठ कर अपनी साँसे दुरुस्त करने लगता है l इतने में विपरीत दिशा से एक गाड़ी को आते देखता है वह उसके सामने खड़ा हो जाता है l ड्राइवर ब्रेक लगा कर गाड़ी को रोकता है l वह एक पुलिस की जीप थी, उस जीप से एक इंस्पेक्टर उतर कर गालियाँ देने लगता है
इंस्पेक्टर - अबे आँख के अंधे, तुझे पुलिस की ही गाड़ी मिली थी क्या मरने के लिए l
रमेश - (अपनी साँस को नार्मल करते हुए) क्या आप पुलिस वाले हैं
इंस्पेक्टर - अबे ढक्कन तुझे मैं वर्दी में पोस्ट मैन दिख रहा हूँ
ड्राइवर - (इंस्पेक्टर से) साब जी, यह तो वही लापता बंदा लग रहा है, जिसे हम ढूँढ रहे हैं l
इंस्पेक्टर - क्या (अपनी जेब से एक फोटो निकाल कर देखता है और रमेश से हुलिया मिला कर देखता है) अरे हाँ, यही तो है (रमेश से) अबे तु कहाँ चला गया था, और यह मरीजों वालीं कपड़े में क्यूँ है l
रमेश को यह जान कर चैन आता है कि पुलिस उसे ढूँढ रही थी l रमेश इंस्पेक्टर से उस पर बीते हर एक पल को विस्तार में बताता है l
इंस्पेक्टर - अच्छा तो तु किडनैप हो गया था l
रमेश - जी इंस्पेक्टर साहब l
इंस्पेक्टर - क्या तुझे उनके अड्डे के बारे में पता है l
रमेश - हाँ है
इंस्पेक्टर - कितने लोग थे वहाँ पर?
रमेश - जी मैंने सिर्फ दो लोग ही देखे वहाँ पर l
इंस्पेक्टर - तो ठीक है चलो, लगे हाथ उन्हें गिरफ्तार कर लेते हैं और ह्युमन ऑर्गन ट्रैफिकिंग का भांडा फोड़ देते हैं (ड्राइवर से) हेड क्वार्टर में खबर करो l हमे रमेश मिल गया है और लोकेशन की जानकारी देते हुए एक्स्ट्रा फोर्स को भेजने के लिए कहो
ड्राइवर वायर लेस सेट से हेडक्वार्टर पर खबर करते हुए एक्स्ट्रा फोर्स भेजने के लिए कहता है l रमेश को पीछे बैठने के लिए कह कर इंस्पेक्टर रमेश के साथ उसी जगह पर जाता है जहां पर रमेश बेड पर बंधा हुआ था l
एक सुनसान जगह पर एक आधी तैयार बिल्डिंग में आते हैं रमेश रास्ता दिखाते हुए इंस्पेक्टर को बिल्डिंग के अंदर ले जाता है l इंस्पेक्टर देखता है एक कमरा जहाँ बिल्कुल ऑपरेशन थिएटर की तरह हर सामान से भरपूर था l तभी कमरे में भविष्य और डॉक्टर प्रवेश करते हैं l
भविष्य - अबे कहाँ भाग गया था l
रमेश - इंस्पेक्टर साहब, यही वह बंदा है जिसने मुझे शराब पीला कर बेहोश कर यहाँ ले आया था l यह और यह डॉक्टर दोनों मिलकर यह काम करते हैं l
इंस्पेक्टर - (भविष्य से) क्यूँ बे, मरीजों के हाथ पैर कैसे बाँधा जाता है तुझे नहीं मालूम l यह खोल के तोड़ कर भाग गया l (रमेश अब चौंकता है) यह तो गनीमत समझो रास्ते में मुझे मिल गया, वर्ना
रमेश - (हैरत और डर के मारे अंदाज में) इसका मतलब आप इनके साथी हैं l
इंस्पेक्टर - हाँ
इससे पहले कि रमेश भागने के बारे सोच पाए इंस्पेक्टर हॉलस्टर से गन निकाल कर रमेश पर तान देता है l रमेश को अब मौत साक्षात नजर आ रही थी l