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Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?

  • अच्छा होगा

  • बुरा होगा

  • कुछ फरक नहीं पड़ेगा


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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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#२.क्षीण शरीर

टीवी पर भजन चालू, दरवाजा खुला और कुकर की सीटी की आवाज के साथ खाने की महक आने लगी। घर के अंदर आते ही विद्या के कंधे नीचे उतर गए।

"मां आप क्या कर रही है।" उसी निराश स्वर में वो सैंडल निकाल कर तैयार होने चली गई।

विद्या की आवाज आते ही रेखा ने जीभ दांतों के बीच दबाई। उसके पीछे पायल की आवाज के साथ विद्या अंदर किचेन में पहुंची।

"मांजी, आपको कहा था ना रुकने के लिए?क्या जल्दी थी, मेरे आने पर साथ में बना लेते।" इतना कहकर उसने रेखा के हाथों से बेलन खींच लिया।

रेखा :"बेटी रहने दे। मैं बना लूंगी, तू थक गई होगी।"

विद्या नाराज होते हुए : " अब बचाई ही क्या है?" थोड़ा सा आटा बचा था उससे आखिरी रोटी बनाने लगी।

रेखा : "बेटी नाराज मत हो, लेकिन मैं घर में बैठे-बैठे क्या करती, उब गई थी।"

विद्या : "टीवी देख लेती, आराम करती।"

रेखा :"बेटी लेकिन..." वो आगे कुछ बोल नहीं पाई।
विद्या :"आरव को कैसा लगेगा? उसकी मां से मैं काम करवा रही हु।"

रेखा :"वो ऐसा कभी नहीं सोचता,तुम्हे भी पता है, मुझसे ज्यादा तो वो तुम्हारी सेवा करता.." इतना बोल कर रेखा चुप हो गई, लगभग जैसे सिर पर हाथ रखने वाली थी लेकिन सम्भल गई।

कुछ समय बाद खाना खा कर रेखा अकेली टीवी देख रही थी, विद्या अकेली अपने कमरे में थी,कुछ लिख रही थी।

तभी रेखा ने उसे आवाज लगाई।

"मां क्या हुआ।" विद्या बोली।

रेखाने सोफे पर हाथ झटकते हुए: "बेटी जरा यहां बैठो। कुछ बात करनी थी"
विद्या बिना कोई सवाल किए बैठ गई।

रेखा : "बेटी, मैं सोच रही थी कि मेरे भाई के यहां से हो आऊ।"
रेखांकी की बात पर उनकी तरफ दोबारा नजर डालते हुए विद्यान देखा।

विद्या :"लेकिन आपके जाने पर मेरा क्या होगा?, मैं तो अकेली पड़ जाऊंगी।"

रेखा :"तू चिंता मत कर कोई हल तो निकल ही आएगा कुछ दिनों के लिए, मेरा भाई बहोत दिनों से मुझे बुला रहा है.."
आगे कुछ बोलना चाह रही थी इस बार भी शब्द निकलने से पहले रोक दिए।

विद्या हताश होकर :"ठीक है, मैं मम्मी को कुछ दिन के लिए बुला लूंगी।"

रेखाने इस बार विद्या के सर पर हाथ फेरा। और आगे ये शब्द कहने से खुदको रोक नहीं पाई।
"तुममेरा और इस घर का ख्याल रख रही हो,बड़ा गर्व होता है।"

विद्या की आंखे आंसू से गीली हो गई, उसे खुश थी जो काम वो कर रही थी उसमें वो सफल थी।
रात बितती गई।
विद्या अपनी मां को बुलाने का सोचकर नाराज थी। वहीं रेखा सामाने रखी आरव की तस्वीर की तस्वीर की तरफ देखने लगी, उसे बुरा महसूस हो रहा था कि वो अपने बेटे के बारे में खुले मन से बात तक नहीं कर सकती थी, लेकिन वो विद्या को और दुख नहीं देना चाहती थी।

सुबह का वक्त था, मैं अब शुभम के घर था। दो मंजिला का वो घर जिसमें मुझे, शुभम का कमरा ऊपर होते हुए भी, मुझे हॉल के पास के कमरे रहने को कहा।

सुबह सुबह घर पर किसके बाते चालू हो गई, जिससे मैं उठ गया और शुभम के पिता मनोहर और सुचित्रा को ख़ुसुरपुसुर सुनाई दी।

सुचित्रा :"अजी, आपको नहीं लगता कि शुभम से बात करनी चाहिए।"

मनोहर :"क्या बात करनी है, कोई समस्या होगी तो वो खुद बता देगा।"

सुचित्रा :" हा, लेकिन वो अस्पताल के बाद से ज्यादा बात नहीं कर रहा, क्या बात है हमे पूछना चाहिए ना,अगर कोई तकलीफ होगी तो कैसे पता चलेगी?"

मनोहर :"सुचित्रा अब वो बच्चा नहीं रहा तुम उसकी चिंता करना छोड़ दो, अगर कुछ होगा तो वो बताएगा, उसे उसका उतना समझना चाहिए।"



उसके आगे की बात मैने नहीं सुनी, अब उन्हें कैसे बताऊं कि उनका बेटा अब नहीं रहा।लेकिन वो इस शरीर के होते हुए कैसे मानेंगे। मेरे लिए और भी समस्या थी। मैं इस शरीर में कैसे आया। विद्या और मेरा बच्चा किस हालत में होगा। मेरी मां किस हालत में होगी। लेकिन उसके लिए मुझे बाहर निकलना था, जिसकी अनुमति मुझे नहीं थी।

रोज कोई ना कोई मेहमान आते रहते थे, हर किसी की अलग सलाह, कैसे हुआ एक्सीडेंट? बाइक ठीक से चलाया करो ये वो सब। आराम आराम से और भी ओक गया था।

ऊपर से दस पुश-अप का भी जोर नहीं था। शायद इसमें एक्सीडेंट का कितना हाथ है और शरीर का कितना किसे पता। फिर भी पूरा जोर लगाते हुए कोशिश की, तभी पैरों की पायल सुनाई दी। दोनो मा बेटी मेंसे कोई एक होगा ये सोच ही रहा था।

"ये क्या कर रहे हो?" ये श्वेता की आवाज थी।

मैं लंबी सांस लेते हुए बैठ गया: "दिख नहीं रहा?"

श्वेता : "वो तो दिख रहा है कि तुम व्यायाम कर रहे हो, लेकिन अचानक क्यों पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हे ऐसा कुछ करते हुए।"

मैं :"अब मन कर रहा है, इसीलिए तुम्हे कोई समस्या है?"

श्वेता :"अस्पताल के बाद से कुछ-ना-कुछ करने का मन हो ही रहा है।"

मैं इस लड़की की पंचायत से बचना चाहता था।
मैं खुदको थोड़ा भाग्यवान मानने लगा, अच्छा हुआ कि मा बाप का इकलौता बेटा हु और बदकिस्मत भी क्योंकि अब शायद कब तक इसे झेलना पड़ेगा।
लेकिन अब यही मेरा रास्ता थी।

मैं : "ऊब गया हु घर पर रहकर, बाहर जाने का मन है तो कोई जाने नहीं देता, तो कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा ही।"

इतना कहकर उसकी तरफ आशा की नजर से देखा।

श्वेता :"मेरी तरफ क्या देख रहे हो? मैं कोई मदत नहीं करने वाली। ऊपर से मुझे भी कहा अकेले बाहर घूमने के आजादी है।"

मैं :"ये तो अच्छी बात है।"

श्वेता गुस्सेसे:"क्या?"

मैं : "नहीं... मेरा मतलब है कि हम दोनों साथ में जा सकते है, दोनों का काम हो जाएगा। वैसे तुम कहा जा रही हो?"

श्वेता : "मेरी दोस्त के घर, और तुम्हे उससे क्या? आए बड़े! भाई बनने वाले।"

मैं :"ठीक है तुम्हे जहां भी जाना है मैं छोड़ दूंगा। और वापस आते वक्त मुझे कॉल कर देना।"

श्वेता सोचते हुए :"ठीक है। लेकिन मुझे अगर देर हो गई तो कॉल मत करते रहना, मैं मेरे हिसाब से कॉल करूंगी।"

ये कहा जा रही है, उसका मुझे क्या अपनी थोड़ी बहन है, लेकिन सच में वो क्या था 'आए बड़े! भाई बनने वाले '।

कुछ देर में घर से परवानगी लेकर हम दोनों निकल गए,दोनों साथ होने से किसी को आपत्ति नहीं थी। उसे उसकी सहेली के रूम पर छोड़ दिया। और सीधे अपनी मंजिल पर चल पड़ा।

घर के बाहर खड़ा था, बगीचे में देखने लगा अब तक वहां कोई नहीं था। मेरा मन तो बहुत हो हुआ अंदर जाने का, लेकिन कैसे जाता?कौन मानेगा मेरी बात? मुझे सब नशेड़ी समझेंगे, जो किसीभी घर में घुसकर औरतों का पति होने का दावा करता है। नहीं.. नहीं ये तो नहीं कर सकता। लेकिन बहुत बुरा महसूस हो रहा था। भलेही मेरे अंदर अंधेरा भरा पड़ा हुआ है, लेकिन क्या इतनी बड़ी सजा।

तभी दरवाजे से किसी को बाहर आते देखा, गाड़ी के गेट से थोड़ा दूर ले जा कर वहां से देखने लगा।

विद्याने एक नीली साड़ी पहनी थी, जिसपर जामुनी रंग के फूल थे। वो बाहर आते हुए किसी से बात कर रही थी, शायद उसकी या मेरी मां थी। वो एक पर्स कंधे से ले कर आंगन की तरफ आने लगी।

उसे देखकर अच्छा लगा।उसने गेट खोला तब तक मेरी मां भी बाहर आ गई दरवाजा बंद करने लगी। शायद दोनों कही बाहर जा रही थी, फिर मेरा ध्यान एक स्कूटी पर गया, विद्या तो हमेशा कार इस्तेमाल करती थी और मेरी बाइक ... वो कहा है। मैं इधर उधर देख रहा था तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी, मैं सर नीचे झुकाकर इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे मां की आवाज आई।

"बेटे, इधर आना।" मैं कुछ समझ नहीं पाया, ये क्या हुआ। मैने मां की तरफ देखा। उन्होने इशारा करते हुए बुलाया।

मैं गाड़ी से पहले ही उतरा हुआ था, गाड़ी की चाबी निकालकर उनके पास गया।

"वहां नाली के पास क्या ढूंढ रहे थे।" मैं कुछ बोलता तब तक फिर से वो बोली।

"ये स्कूटी को देखो जरा हम बाहर जा रहे थे।स्टार्ट नहीं हो रही थी।"

विद्या स्कूटी से अलग हुई, मैं उसे पास से देख खुश और दुखी दोनों था। शायद स्कूटी की बैटरी में समस्या थी इसीलिए किक से स्टार्ट करना पड़ा।

मां : "धन्यवाद बेटा।" फिर वो दोनों चली गई, इस बीच विद्या कुछ भी नहीं बोली।

मेरा मन हुआ उनके पीछे जाने का पर मुझे और भी काम थे, मैं वहा से उसी इमारत की तरफ निकला जहा उस दिन मैं मरा था। शायद वहां से कुछ पता चले कि उस दिन क्या हुआ था।

उस के अंदर चढ़ते ही मेरी सांसे फूलने लग गई। सीढ़ियों को पास पहुंचा, मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी, इसका मतलब नीचे कोई तो था।

"मैं ऊपर देखता हु।" इतना ही सुना और वहा पे सीढ़ियों से लगें हुए कमरे की आड़ी दीवार के पीछे छुप गया।मेरी बायी तरफ सीढ़ियां थी।

पैरों की आवाज पर मैं ध्यान देने लगा, और जैसे ही वो मेरे आगे आया।

"धड़"

पीछे से लात मार उसे गिराया और झटसे उसके पीठ पर बैठा। उसने पलटकर कोहनी मेरे पेट पर मार दी,दर्द से झुझ पाता तब तक लात सीधे मुंह पर पड़ी।

उसी सीढ़ियों के पास की दीवार पर गिर गया।तभी किसीके पैरों की आवाज सुनाई दी।
सामनेवाला का घुटना मेरी तरफ आया और मैंने अलग होकर उसे सीढ़ियों की तरफ पूरी ताकत से धकेल दिया।

नीचे से उसकी गिरने की आवाज आने से पहले में उठा, वो वापस उठ पाता तब तक वहां से भाग गया।

मैं बहुत थक गया था। आखिरी बार मैं मेरे घर के सामने खड़ा हुआ सोचने लगा। इस बार किसीको देख तक नहीं पाया। इसीलिए घर के पीछे की और बैठा हुआ था। सोचने लगा उस दिन विमल और मुझे किसने धोखा दिया। अगर मुझमें ताकत होती तो वहा उस शेरा के अड्डे में क्या चल रहा है? पता कर लेता।

तभी कुछ आवाज आई,कोई मेरे घर में पीछे से जा रहा था। मै बिना कुछ सोचे उसके पीछे चला गया।मेरी बाइक घर से दूर थी।
वो इंसान मेरे और विद्या के कमरे में कुछ ढूंढने लगा। मैं खिड़की से पर्दे के पीछे खडा रहा।
कुछ पल में वो मुडा और पर्दे की तरफ देखा। मैने बिना वक्त गवाए वही पर्दा उसके सर पर लपेटकर उसे गिरा दिया। पर्दा पूरी तरह फट चुका था। उसकी छाती पर पैर रख घुटना उसकी गर्दन पर था मुक्के पूरी जान के साथ लगा दिए, परदा लाल होने लगा।
जब तक वो बेहोश नहीं हुआ तब तक मारता रहा। ताकि वो मुझे देख ना पाए। और परदा उसके कंधे पर डाला। तभी आवाज आई।

"बेटी सुना तुमने?"

उस आदमी को नीचे धकेल कर, मैं भी वहां से भाग गया।

विद्या की जान को धोखा है,कौन हो सकता है इन सब के पीछे? 'शेरा के ऊपर कौन होगा?' ये तो पता नहीं था लेकिन कहा से पता लग सकता है ये जरूर पता था, डीएम और कमिश्नर इन दोनों में से कोई तो था जिन्होंने हमारे वहा होने की खबर उन तक पहुंचाई हो और इस मिशन के बारे में हर खबर गलत दी थी
उन से खबर कैसी निकलवाए ये सवाल था, इतना जोर मेरी बाजुओं में नहीं था। लेकिन मैं विद्या को इस तरह खतरे में नहीं रख सकता। वो सब मेरे पीछे क्यों पड़े है बता पाना मुश्किल था।
_______

विद्या अपने कमरे में बैठी अकेली कुछ लिख रही थी।

जानु,
ये अब तक का बीसवां खत ।
आज मुझे डर लग रहा है। तुम कहा हो? तुम हमेशा गुनहगारोंको मिटाना चाहते थे? इन बातों से मैं कभी नहीं डरी, क्योंकि तुम्हारे जीतेजी ये डर महसूस ही नहीं हुआ। तुम हमेशा मेरी रक्षा करते थे भलेही खतरा तुम्हारे पुलिस होने की वजह से था, कभी डर नहीं लगा लेकिन आज तुम्हारे ना होने पर डर लग रहा है। आज हमारे घर पर कोई आया था, पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो गिरने से मर गया ऐसा पुलिस का कहना है। लेकिन जब उसे देखा तो थोड़ा डर गई और सोचने लगी जैसे तुमने कुछ होने से बचा लिया, जैसा तुम हर बार करते थे। लेकिन तुम नहीं हो। ये डर अब मुझे खाए जा रहा है।मैं क्या करु?मैं कमजोर हु, क्षीण हु तुम्हारे बिना।
अकेली हु तो सब लोग कह रहे, की मैं दूसरी शादी कर लू, नए घर में रहने चली जाऊ, लेकिन इस घर को मैं छोड़ नहीं सकती, ये तुम्हारी यादें है।
I love you too.

अपनी डायरी में ये लिखकर विद्या रोने लगी। वो जब भी खत के आखिर का हिस्सा लिखती उसे आरव के आखिरी शब्द याद आते।




........अपनी प्रतिक्रिया और लाइक्स दे, स्टोरी के बारे में आपके क्या ख्याल है और क्या आशा है वो बताना मत भूलिएगा।बने रहिए अगला भाग 4-5 दिन में आयेगा।
बहुत अलग टॉपिक तो है ही, बहुत जबर्दस्त थ्रिलर की भी संभावनायें हैं
आरव के पास अब शुभम् बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं
हॉं अपने परिवार के लिए वो आरव का परिचित बल्कि अहसानमंद होने का हवाला देकर खुलकर सामने आ सकता है
इधर एक बड़ी समस्या आरव के अनजाने दुश्मन की है जो पुलिस प्रशासन में ऊंची जुगाड़ रखता है

इधर शुभम की बहन किस सहेली के घर है जो इतनी देर से फोन भी नहीं किया

अपडेट थोड़े जल्दी देना जिससे कहानी की दिशा समझ में आये और हम ज्यादा सटीक रिव्यू दे सकें
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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इधर शुभम की बहन किस सहेली के घर है जो इतनी देर से फोन भी नहीं किया
आप इतने भोले कब से हो गए 😂😂
 

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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#२.क्षीण शरीर

टीवी पर भजन चालू, दरवाजा खुला और कुकर की सीटी की आवाज के साथ खाने की महक आने लगी। घर के अंदर आते ही विद्या के कंधे नीचे उतर गए।

"मां आप क्या कर रही है।" उसी निराश स्वर में वो सैंडल निकाल कर तैयार होने चली गई।

विद्या की आवाज आते ही रेखा ने जीभ दांतों के बीच दबाई। उसके पीछे पायल की आवाज के साथ विद्या अंदर किचेन में पहुंची।

"मांजी, आपको कहा था ना रुकने के लिए?क्या जल्दी थी, मेरे आने पर साथ में बना लेते।" इतना कहकर उसने रेखा के हाथों से बेलन खींच लिया।

रेखा :"बेटी रहने दे। मैं बना लूंगी, तू थक गई होगी।"

विद्या नाराज होते हुए : " अब बचाई ही क्या है?" थोड़ा सा आटा बचा था उससे आखिरी रोटी बनाने लगी।

रेखा : "बेटी नाराज मत हो, लेकिन मैं घर में बैठे-बैठे क्या करती, उब गई थी।"

विद्या : "टीवी देख लेती, आराम करती।"

रेखा :"बेटी लेकिन..." वो आगे कुछ बोल नहीं पाई।
विद्या :"आरव को कैसा लगेगा? उसकी मां से मैं काम करवा रही हु।"

रेखा :"वो ऐसा कभी नहीं सोचता,तुम्हे भी पता है, मुझसे ज्यादा तो वो तुम्हारी सेवा करता.." इतना बोल कर रेखा चुप हो गई, लगभग जैसे सिर पर हाथ रखने वाली थी लेकिन सम्भल गई।

कुछ समय बाद खाना खा कर रेखा अकेली टीवी देख रही थी, विद्या अकेली अपने कमरे में थी,कुछ लिख रही थी।

तभी रेखा ने उसे आवाज लगाई।

"मां क्या हुआ।" विद्या बोली।

रेखाने सोफे पर हाथ झटकते हुए: "बेटी जरा यहां बैठो। कुछ बात करनी थी"
विद्या बिना कोई सवाल किए बैठ गई।

रेखा : "बेटी, मैं सोच रही थी कि मेरे भाई के यहां से हो आऊ।"
रेखांकी की बात पर उनकी तरफ दोबारा नजर डालते हुए विद्यान देखा।

विद्या :"लेकिन आपके जाने पर मेरा क्या होगा?, मैं तो अकेली पड़ जाऊंगी।"

रेखा :"तू चिंता मत कर कोई हल तो निकल ही आएगा कुछ दिनों के लिए, मेरा भाई बहोत दिनों से मुझे बुला रहा है.."
आगे कुछ बोलना चाह रही थी इस बार भी शब्द निकलने से पहले रोक दिए।

विद्या हताश होकर :"ठीक है, मैं मम्मी को कुछ दिन के लिए बुला लूंगी।"

रेखाने इस बार विद्या के सर पर हाथ फेरा। और आगे ये शब्द कहने से खुदको रोक नहीं पाई।
"तुममेरा और इस घर का ख्याल रख रही हो,बड़ा गर्व होता है।"

विद्या की आंखे आंसू से गीली हो गई, उसे खुश थी जो काम वो कर रही थी उसमें वो सफल थी।
रात बितती गई।
विद्या अपनी मां को बुलाने का सोचकर नाराज थी। वहीं रेखा सामाने रखी आरव की तस्वीर की तस्वीर की तरफ देखने लगी, उसे बुरा महसूस हो रहा था कि वो अपने बेटे के बारे में खुले मन से बात तक नहीं कर सकती थी, लेकिन वो विद्या को और दुख नहीं देना चाहती थी।

सुबह का वक्त था, मैं अब शुभम के घर था। दो मंजिला का वो घर जिसमें मुझे, शुभम का कमरा ऊपर होते हुए भी, मुझे हॉल के पास के कमरे रहने को कहा।

सुबह सुबह घर पर किसके बाते चालू हो गई, जिससे मैं उठ गया और शुभम के पिता मनोहर और सुचित्रा को ख़ुसुरपुसुर सुनाई दी।

सुचित्रा :"अजी, आपको नहीं लगता कि शुभम से बात करनी चाहिए।"

मनोहर :"क्या बात करनी है, कोई समस्या होगी तो वो खुद बता देगा।"

सुचित्रा :" हा, लेकिन वो अस्पताल के बाद से ज्यादा बात नहीं कर रहा, क्या बात है हमे पूछना चाहिए ना,अगर कोई तकलीफ होगी तो कैसे पता चलेगी?"

मनोहर :"सुचित्रा अब वो बच्चा नहीं रहा तुम उसकी चिंता करना छोड़ दो, अगर कुछ होगा तो वो बताएगा, उसे उसका उतना समझना चाहिए।"



उसके आगे की बात मैने नहीं सुनी, अब उन्हें कैसे बताऊं कि उनका बेटा अब नहीं रहा।लेकिन वो इस शरीर के होते हुए कैसे मानेंगे। मेरे लिए और भी समस्या थी। मैं इस शरीर में कैसे आया। विद्या और मेरा बच्चा किस हालत में होगा। मेरी मां किस हालत में होगी। लेकिन उसके लिए मुझे बाहर निकलना था, जिसकी अनुमति मुझे नहीं थी।

रोज कोई ना कोई मेहमान आते रहते थे, हर किसी की अलग सलाह, कैसे हुआ एक्सीडेंट? बाइक ठीक से चलाया करो ये वो सब। आराम आराम से और भी ओक गया था।

ऊपर से दस पुश-अप का भी जोर नहीं था। शायद इसमें एक्सीडेंट का कितना हाथ है और शरीर का कितना किसे पता। फिर भी पूरा जोर लगाते हुए कोशिश की, तभी पैरों की पायल सुनाई दी। दोनो मा बेटी मेंसे कोई एक होगा ये सोच ही रहा था।

"ये क्या कर रहे हो?" ये श्वेता की आवाज थी।

मैं लंबी सांस लेते हुए बैठ गया: "दिख नहीं रहा?"

श्वेता : "वो तो दिख रहा है कि तुम व्यायाम कर रहे हो, लेकिन अचानक क्यों पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हे ऐसा कुछ करते हुए।"

मैं :"अब मन कर रहा है, इसीलिए तुम्हे कोई समस्या है?"

श्वेता :"अस्पताल के बाद से कुछ-ना-कुछ करने का मन हो ही रहा है।"

मैं इस लड़की की पंचायत से बचना चाहता था।
मैं खुदको थोड़ा भाग्यवान मानने लगा, अच्छा हुआ कि मा बाप का इकलौता बेटा हु और बदकिस्मत भी क्योंकि अब शायद कब तक इसे झेलना पड़ेगा।
लेकिन अब यही मेरा रास्ता थी।

मैं : "ऊब गया हु घर पर रहकर, बाहर जाने का मन है तो कोई जाने नहीं देता, तो कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा ही।"

इतना कहकर उसकी तरफ आशा की नजर से देखा।

श्वेता :"मेरी तरफ क्या देख रहे हो? मैं कोई मदत नहीं करने वाली। ऊपर से मुझे भी कहा अकेले बाहर घूमने के आजादी है।"

मैं :"ये तो अच्छी बात है।"

श्वेता गुस्सेसे:"क्या?"

मैं : "नहीं... मेरा मतलब है कि हम दोनों साथ में जा सकते है, दोनों का काम हो जाएगा। वैसे तुम कहा जा रही हो?"

श्वेता : "मेरी दोस्त के घर, और तुम्हे उससे क्या? आए बड़े! भाई बनने वाले।"

मैं :"ठीक है तुम्हे जहां भी जाना है मैं छोड़ दूंगा। और वापस आते वक्त मुझे कॉल कर देना।"

श्वेता सोचते हुए :"ठीक है। लेकिन मुझे अगर देर हो गई तो कॉल मत करते रहना, मैं मेरे हिसाब से कॉल करूंगी।"

ये कहा जा रही है, उसका मुझे क्या अपनी थोड़ी बहन है, लेकिन सच में वो क्या था 'आए बड़े! भाई बनने वाले '।

कुछ देर में घर से परवानगी लेकर हम दोनों निकल गए,दोनों साथ होने से किसी को आपत्ति नहीं थी। उसे उसकी सहेली के रूम पर छोड़ दिया। और सीधे अपनी मंजिल पर चल पड़ा।

घर के बाहर खड़ा था, बगीचे में देखने लगा अब तक वहां कोई नहीं था। मेरा मन तो बहुत हो हुआ अंदर जाने का, लेकिन कैसे जाता?कौन मानेगा मेरी बात? मुझे सब नशेड़ी समझेंगे, जो किसीभी घर में घुसकर औरतों का पति होने का दावा करता है। नहीं.. नहीं ये तो नहीं कर सकता। लेकिन बहुत बुरा महसूस हो रहा था। भलेही मेरे अंदर अंधेरा भरा पड़ा हुआ है, लेकिन क्या इतनी बड़ी सजा।

तभी दरवाजे से किसी को बाहर आते देखा, गाड़ी के गेट से थोड़ा दूर ले जा कर वहां से देखने लगा।

विद्याने एक नीली साड़ी पहनी थी, जिसपर जामुनी रंग के फूल थे। वो बाहर आते हुए किसी से बात कर रही थी, शायद उसकी या मेरी मां थी। वो एक पर्स कंधे से ले कर आंगन की तरफ आने लगी।

उसे देखकर अच्छा लगा।उसने गेट खोला तब तक मेरी मां भी बाहर आ गई दरवाजा बंद करने लगी। शायद दोनों कही बाहर जा रही थी, फिर मेरा ध्यान एक स्कूटी पर गया, विद्या तो हमेशा कार इस्तेमाल करती थी और मेरी बाइक ... वो कहा है। मैं इधर उधर देख रहा था तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी, मैं सर नीचे झुकाकर इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे मां की आवाज आई।

"बेटे, इधर आना।" मैं कुछ समझ नहीं पाया, ये क्या हुआ। मैने मां की तरफ देखा। उन्होने इशारा करते हुए बुलाया।

मैं गाड़ी से पहले ही उतरा हुआ था, गाड़ी की चाबी निकालकर उनके पास गया।

"वहां नाली के पास क्या ढूंढ रहे थे।" मैं कुछ बोलता तब तक फिर से वो बोली।

"ये स्कूटी को देखो जरा हम बाहर जा रहे थे।स्टार्ट नहीं हो रही थी।"

विद्या स्कूटी से अलग हुई, मैं उसे पास से देख खुश और दुखी दोनों था। शायद स्कूटी की बैटरी में समस्या थी इसीलिए किक से स्टार्ट करना पड़ा।

मां : "धन्यवाद बेटा।" फिर वो दोनों चली गई, इस बीच विद्या कुछ भी नहीं बोली।

मेरा मन हुआ उनके पीछे जाने का पर मुझे और भी काम थे, मैं वहा से उसी इमारत की तरफ निकला जहा उस दिन मैं मरा था। शायद वहां से कुछ पता चले कि उस दिन क्या हुआ था।

उस के अंदर चढ़ते ही मेरी सांसे फूलने लग गई। सीढ़ियों को पास पहुंचा, मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी, इसका मतलब नीचे कोई तो था।

"मैं ऊपर देखता हु।" इतना ही सुना और वहा पे सीढ़ियों से लगें हुए कमरे की आड़ी दीवार के पीछे छुप गया।मेरी बायी तरफ सीढ़ियां थी।

पैरों की आवाज पर मैं ध्यान देने लगा, और जैसे ही वो मेरे आगे आया।

"धड़"

पीछे से लात मार उसे गिराया और झटसे उसके पीठ पर बैठा। उसने पलटकर कोहनी मेरे पेट पर मार दी,दर्द से झुझ पाता तब तक लात सीधे मुंह पर पड़ी।

उसी सीढ़ियों के पास की दीवार पर गिर गया।तभी किसीके पैरों की आवाज सुनाई दी।
सामनेवाला का घुटना मेरी तरफ आया और मैंने अलग होकर उसे सीढ़ियों की तरफ पूरी ताकत से धकेल दिया।

नीचे से उसकी गिरने की आवाज आने से पहले में उठा, वो वापस उठ पाता तब तक वहां से भाग गया।

मैं बहुत थक गया था। आखिरी बार मैं मेरे घर के सामने खड़ा हुआ सोचने लगा। इस बार किसीको देख तक नहीं पाया। इसीलिए घर के पीछे की और बैठा हुआ था। सोचने लगा उस दिन विमल और मुझे किसने धोखा दिया। अगर मुझमें ताकत होती तो वहा उस शेरा के अड्डे में क्या चल रहा है? पता कर लेता।

तभी कुछ आवाज आई,कोई मेरे घर में पीछे से जा रहा था। मै बिना कुछ सोचे उसके पीछे चला गया।मेरी बाइक घर से दूर थी।
वो इंसान मेरे और विद्या के कमरे में कुछ ढूंढने लगा। मैं खिड़की से पर्दे के पीछे खडा रहा।
कुछ पल में वो मुडा और पर्दे की तरफ देखा। मैने बिना वक्त गवाए वही पर्दा उसके सर पर लपेटकर उसे गिरा दिया। पर्दा पूरी तरह फट चुका था। उसकी छाती पर पैर रख घुटना उसकी गर्दन पर था मुक्के पूरी जान के साथ लगा दिए, परदा लाल होने लगा।
जब तक वो बेहोश नहीं हुआ तब तक मारता रहा। ताकि वो मुझे देख ना पाए। और परदा उसके कंधे पर डाला। तभी आवाज आई।

"बेटी सुना तुमने?"

उस आदमी को नीचे धकेल कर, मैं भी वहां से भाग गया।

विद्या की जान को धोखा है,कौन हो सकता है इन सब के पीछे? 'शेरा के ऊपर कौन होगा?' ये तो पता नहीं था लेकिन कहा से पता लग सकता है ये जरूर पता था, डीएम और कमिश्नर इन दोनों में से कोई तो था जिन्होंने हमारे वहा होने की खबर उन तक पहुंचाई हो और इस मिशन के बारे में हर खबर गलत दी थी
उन से खबर कैसी निकलवाए ये सवाल था, इतना जोर मेरी बाजुओं में नहीं था। लेकिन मैं विद्या को इस तरह खतरे में नहीं रख सकता। वो सब मेरे पीछे क्यों पड़े है बता पाना मुश्किल था।
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विद्या अपने कमरे में बैठी अकेली कुछ लिख रही थी।

जानु,
ये अब तक का बीसवां खत ।
आज मुझे डर लग रहा है। तुम कहा हो? तुम हमेशा गुनहगारोंको मिटाना चाहते थे? इन बातों से मैं कभी नहीं डरी, क्योंकि तुम्हारे जीतेजी ये डर महसूस ही नहीं हुआ। तुम हमेशा मेरी रक्षा करते थे भलेही खतरा तुम्हारे पुलिस होने की वजह से था, कभी डर नहीं लगा लेकिन आज तुम्हारे ना होने पर डर लग रहा है। आज हमारे घर पर कोई आया था, पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो गिरने से मर गया ऐसा पुलिस का कहना है। लेकिन जब उसे देखा तो थोड़ा डर गई और सोचने लगी जैसे तुमने कुछ होने से बचा लिया, जैसा तुम हर बार करते थे। लेकिन तुम नहीं हो। ये डर अब मुझे खाए जा रहा है।मैं क्या करु?मैं कमजोर हु, क्षीण हु तुम्हारे बिना।
अकेली हु तो सब लोग कह रहे, की मैं दूसरी शादी कर लू, नए घर में रहने चली जाऊ, लेकिन इस घर को मैं छोड़ नहीं सकती, ये तुम्हारी यादें है।
I love you too.

अपनी डायरी में ये लिखकर विद्या रोने लगी। वो जब भी खत के आखिर का हिस्सा लिखती उसे आरव के आखिरी शब्द याद आते।




........अपनी प्रतिक्रिया और लाइक्स दे, स्टोरी के बारे में आपके क्या ख्याल है और क्या आशा है वो बताना मत भूलिएगा।बने रहिए अगला भाग 4-5 दिन में आयेगा।
Shaandar Update 👌
 

mistyvixen

𝙚𝙫𝙖𝙣𝙚𝙨𝙘𝙚~𝙣𝙤𝙩 𝙖𝙣 𝙖𝙪𝙩𝙝𝙤𝙧 𝙭𝘿
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Maine jaisa kaha ki Sex naa ke barabar hai, jo bhi hoga vo kam hoga. Bilkul naa barabr.
Romance ke baat kar rhe the main...aajkal log romance aur xxx mein fark hi bhul gye hai😴 main character ke kise ke saath relationship toh hoge hi
Nice

हीरो को थोड़ा मजबूत बनाओ, और दुश्मन के अड्डे पर सीधा जाने से अच्छा विमल, कमिश्नर के बारे में जानकारी निकलवाए, सब समझ आ जाएगा।

बाकी बहन भाई वाली बात, तो मैं दूर हूं इस बात से।

A big no to incest from my side
Ek aur baat apne story bachane hai toh Riky007 ke suggestions toh kabhi mat lena...record utha ke dekh lena kitne story band karva de inhone 🙂
 

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART 💙
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Nice

हीरो को थोड़ा मजबूत बनाओ, और दुश्मन के अड्डे पर सीधा जाने से अच्छा विमल, कमिश्नर के बारे में जानकारी निकलवाए, सब समझ आ जाएगा।

बाकी बहन भाई वाली बात, तो मैं दूर हूं इस बात से।

A big no to incest from my side
Thanx,
Incest ka अभी सोचा नहीं है,
पर आप उसे इनसेट कह सकते हो कि नहीं इसपर डिपेंड करता है।
बाकी स्टोरी में इंपोर्टन जो चीज नहीं वो शायद से नहीं ही होगी।
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Is story me minimum sex hai. Bahan ke baare me confused hu, unki story romantic ho yaa bass bhai bahan jaisi ye reader par depend karta hai.

Nice

हीरो को थोड़ा मजबूत बनाओ, और दुश्मन के अड्डे पर सीधा जाने से अच्छा विमल, कमिश्नर के बारे में जानकारी निकलवाए, सब समझ आ जाएगा।

बाकी बहन भाई वाली बात, तो मैं दूर हूं इस बात से।

A big no to incest from my side
भाई मैं तो इन्सेस्ट नहीं चाहता, बहन को बहन ही रहने दो और दोनों परिवार को बेटे की कमी मत महसूस होने दो

अगर सेक्स पढ़कर मूड बनाने वाली भीड़ का लालच छोड़कर एक बेहतरीन कहानी बनाना है तो ......

बाकी आपकी कहानी आपको अपने हिसाब से ही लिखनी है
 
Last edited:

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Thanx,
Incest ka अभी सोचा नहीं है,
पर आप उसे इनसेट कह सकते हो कि नहीं इसपर डिपेंड करता है।
बाकी स्टोरी में इंपोर्टन जो चीज नहीं वो शायद से नहीं ही होगी।
भाई मैं विशुद्ध भारतीय परंपरा का पालन करता हूं, बाकी रही स्टोरी में व्यूवर और लाइक की बात, कोई जरूरी नहीं जो बिक रहा है वो क्वालिटी वाला ही हो।

नाले के किनारे बिकने वाला हर आइटम खूब बिकता है, पर उसको खा कर पेट ही खराब होता है।

CC to mistyvixen
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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भाई मैं तो इन्सेस्ट नहीं चाहता, बहन को बहन ही रहने दो और दोनों परिवार को बेटे की कमी मत महसूस होने दो

अगर सेक्स पढ़कर मूड बनाने वाली भीड़ का लालच छोड़कर एक बेहतरीन कहानी बनाना है तो ......

बाकी आपकी कहानी आपको अपने हिसाब से ही लिखनी है
Eggsactly 🙏🏼

अपने हिसाब से ही लिखो भाई। हम दोनो sex skip करके भी कहानी पढ़ लेते हैं।
 

Anatole

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बहुत अलग टॉपिक तो है ही, बहुत जबर्दस्त थ्रिलर की भी संभावनायें हैं
आरव के पास अब शुभम् बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं
शुक्रिया, उसमें ट्विस्ट्स तो है, बाकी समझ हु आयेगा।
हॉं अपने परिवार के लिए वो आरव का परिचित बल्कि अहसानमंद होने का हवाला देकर खुलकर सामने आ सकता है
ये समझा नहीं।
इधर एक बड़ी समस्या आरव के अनजाने दुश्मन की है जो पुलिस प्रशासन में ऊंची जुगाड़ रखता है

इधर शुभम की बहन किस सहेली के घर है जो इतनी देर से फोन भी नहीं किया
अब क्या बोले, फोन आरव ने ही ना उठाया हो।
अपडेट थोड़े जल्दी देना जिससे कहानी की दिशा समझ में आये और हम ज्यादा सटीक रिव्यू दे सकें
जल्दी देने की कोशिश करूंगा देवनागरी लिखने में शुरुवात है बहुत वक्त लग रहा है।
 
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