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Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?


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ayush01111

Well-Known Member
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#२.क्षीण शरीर

टीवी पर भजन चालू, दरवाजा खुला और कुकर की सीटी की आवाज के साथ खाने की महक आने लगी। घर के अंदर आते ही विद्या के कंधे नीचे उतर गए।

"मां आप क्या कर रही है।" उसी निराश स्वर में वो सैंडल निकाल कर तैयार होने चली गई।

विद्या की आवाज आते ही रेखा ने जीभ दांतों के बीच दबाई। उसके पीछे पायल की आवाज के साथ विद्या अंदर किचेन में पहुंची।

"मांजी, आपको कहा था ना रुकने के लिए?क्या जल्दी थी, मेरे आने पर साथ में बना लेते।" इतना कहकर उसने रेखा के हाथों से बेलन खींच लिया।

रेखा :"बेटी रहने दे। मैं बना लूंगी, तू थक गई होगी।"

विद्या नाराज होते हुए : " अब बचाई ही क्या है?" थोड़ा सा आटा बचा था उससे आखिरी रोटी बनाने लगी।

रेखा : "बेटी नाराज मत हो, लेकिन मैं घर में बैठे-बैठे क्या करती, उब गई थी।"

विद्या : "टीवी देख लेती, आराम करती।"

रेखा :"बेटी लेकिन..." वो आगे कुछ बोल नहीं पाई।
विद्या :"आरव को कैसा लगेगा? उसकी मां से मैं काम करवा रही हु।"

रेखा :"वो ऐसा कभी नहीं सोचता,तुम्हे भी पता है, मुझसे ज्यादा तो वो तुम्हारी सेवा करता.." इतना बोल कर रेखा चुप हो गई, लगभग जैसे सिर पर हाथ रखने वाली थी लेकिन सम्भल गई।

कुछ समय बाद खाना खा कर रेखा अकेली टीवी देख रही थी, विद्या अकेली अपने कमरे में थी,कुछ लिख रही थी।

तभी रेखा ने उसे आवाज लगाई।

"मां क्या हुआ।" विद्या बोली।

रेखाने सोफे पर हाथ झटकते हुए: "बेटी जरा यहां बैठो। कुछ बात करनी थी"
विद्या बिना कोई सवाल किए बैठ गई।

रेखा : "बेटी, मैं सोच रही थी कि मेरे भाई के यहां से हो आऊ।"
रेखांकी की बात पर उनकी तरफ दोबारा नजर डालते हुए विद्यान देखा।

विद्या :"लेकिन आपके जाने पर मेरा क्या होगा?, मैं तो अकेली पड़ जाऊंगी।"

रेखा :"तू चिंता मत कर कोई हल तो निकल ही आएगा कुछ दिनों के लिए, मेरा भाई बहोत दिनों से मुझे बुला रहा है.."
आगे कुछ बोलना चाह रही थी इस बार भी शब्द निकलने से पहले रोक दिए।

विद्या हताश होकर :"ठीक है, मैं मम्मी को कुछ दिन के लिए बुला लूंगी।"

रेखाने इस बार विद्या के सर पर हाथ फेरा। और आगे ये शब्द कहने से खुदको रोक नहीं पाई।
"तुममेरा और इस घर का ख्याल रख रही हो,बड़ा गर्व होता है।"

विद्या की आंखे आंसू से गीली हो गई, उसे खुश थी जो काम वो कर रही थी उसमें वो सफल थी।
रात बितती गई।
विद्या अपनी मां को बुलाने का सोचकर नाराज थी। वहीं रेखा सामाने रखी आरव की तस्वीर की तस्वीर की तरफ देखने लगी, उसे बुरा महसूस हो रहा था कि वो अपने बेटे के बारे में खुले मन से बात तक नहीं कर सकती थी, लेकिन वो विद्या को और दुख नहीं देना चाहती थी।

सुबह का वक्त था, मैं अब शुभम के घर था। दो मंजिला का वो घर जिसमें मुझे, शुभम का कमरा ऊपर होते हुए भी, मुझे हॉल के पास के कमरे रहने को कहा।

सुबह सुबह घर पर किसके बाते चालू हो गई, जिससे मैं उठ गया और शुभम के पिता मनोहर और सुचित्रा को ख़ुसुरपुसुर सुनाई दी।

सुचित्रा :"अजी, आपको नहीं लगता कि शुभम से बात करनी चाहिए।"

मनोहर :"क्या बात करनी है, कोई समस्या होगी तो वो खुद बता देगा।"

सुचित्रा :" हा, लेकिन वो अस्पताल के बाद से ज्यादा बात नहीं कर रहा, क्या बात है हमे पूछना चाहिए ना,अगर कोई तकलीफ होगी तो कैसे पता चलेगी?"

मनोहर :"सुचित्रा अब वो बच्चा नहीं रहा तुम उसकी चिंता करना छोड़ दो, अगर कुछ होगा तो वो बताएगा, उसे उसका उतना समझना चाहिए।"



उसके आगे की बात मैने नहीं सुनी, अब उन्हें कैसे बताऊं कि उनका बेटा अब नहीं रहा।लेकिन वो इस शरीर के होते हुए कैसे मानेंगे। मेरे लिए और भी समस्या थी। मैं इस शरीर में कैसे आया। विद्या और मेरा बच्चा किस हालत में होगा। मेरी मां किस हालत में होगी। लेकिन उसके लिए मुझे बाहर निकलना था, जिसकी अनुमति मुझे नहीं थी।

रोज कोई ना कोई मेहमान आते रहते थे, हर किसी की अलग सलाह, कैसे हुआ एक्सीडेंट? बाइक ठीक से चलाया करो ये वो सब। आराम आराम से और भी ओक गया था।

ऊपर से दस पुश-अप का भी जोर नहीं था। शायद इसमें एक्सीडेंट का कितना हाथ है और शरीर का कितना किसे पता। फिर भी पूरा जोर लगाते हुए कोशिश की, तभी पैरों की पायल सुनाई दी। दोनो मा बेटी मेंसे कोई एक होगा ये सोच ही रहा था।

"ये क्या कर रहे हो?" ये श्वेता की आवाज थी।

मैं लंबी सांस लेते हुए बैठ गया: "दिख नहीं रहा?"

श्वेता : "वो तो दिख रहा है कि तुम व्यायाम कर रहे हो, लेकिन अचानक क्यों पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हे ऐसा कुछ करते हुए।"

मैं :"अब मन कर रहा है, इसीलिए तुम्हे कोई समस्या है?"

श्वेता :"अस्पताल के बाद से कुछ-ना-कुछ करने का मन हो ही रहा है।"

मैं इस लड़की की पंचायत से बचना चाहता था।
मैं खुदको थोड़ा भाग्यवान मानने लगा, अच्छा हुआ कि मा बाप का इकलौता बेटा हु और बदकिस्मत भी क्योंकि अब शायद कब तक इसे झेलना पड़ेगा।
लेकिन अब यही मेरा रास्ता थी।

मैं : "ऊब गया हु घर पर रहकर, बाहर जाने का मन है तो कोई जाने नहीं देता, तो कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा ही।"

इतना कहकर उसकी तरफ आशा की नजर से देखा।

श्वेता :"मेरी तरफ क्या देख रहे हो? मैं कोई मदत नहीं करने वाली। ऊपर से मुझे भी कहा अकेले बाहर घूमने के आजादी है।"

मैं :"ये तो अच्छी बात है।"

श्वेता गुस्सेसे:"क्या?"

मैं : "नहीं... मेरा मतलब है कि हम दोनों साथ में जा सकते है, दोनों का काम हो जाएगा। वैसे तुम कहा जा रही हो?"

श्वेता : "मेरी दोस्त के घर, और तुम्हे उससे क्या? आए बड़े! भाई बनने वाले।"

मैं :"ठीक है तुम्हे जहां भी जाना है मैं छोड़ दूंगा। और वापस आते वक्त मुझे कॉल कर देना।"

श्वेता सोचते हुए :"ठीक है। लेकिन मुझे अगर देर हो गई तो कॉल मत करते रहना, मैं मेरे हिसाब से कॉल करूंगी।"

ये कहा जा रही है, उसका मुझे क्या अपनी थोड़ी बहन है, लेकिन सच में वो क्या था 'आए बड़े! भाई बनने वाले '।

कुछ देर में घर से परवानगी लेकर हम दोनों निकल गए,दोनों साथ होने से किसी को आपत्ति नहीं थी। उसे उसकी सहेली के रूम पर छोड़ दिया। और सीधे अपनी मंजिल पर चल पड़ा।

घर के बाहर खड़ा था, बगीचे में देखने लगा अब तक वहां कोई नहीं था। मेरा मन तो बहुत हो हुआ अंदर जाने का, लेकिन कैसे जाता?कौन मानेगा मेरी बात? मुझे सब नशेड़ी समझेंगे, जो किसीभी घर में घुसकर औरतों का पति होने का दावा करता है। नहीं.. नहीं ये तो नहीं कर सकता। लेकिन बहुत बुरा महसूस हो रहा था। भलेही मेरे अंदर अंधेरा भरा पड़ा हुआ है, लेकिन क्या इतनी बड़ी सजा।

तभी दरवाजे से किसी को बाहर आते देखा, गाड़ी के गेट से थोड़ा दूर ले जा कर वहां से देखने लगा।

विद्याने एक नीली साड़ी पहनी थी, जिसपर जामुनी रंग के फूल थे। वो बाहर आते हुए किसी से बात कर रही थी, शायद उसकी या मेरी मां थी। वो एक पर्स कंधे से ले कर आंगन की तरफ आने लगी।

उसे देखकर अच्छा लगा।उसने गेट खोला तब तक मेरी मां भी बाहर आ गई दरवाजा बंद करने लगी। शायद दोनों कही बाहर जा रही थी, फिर मेरा ध्यान एक स्कूटी पर गया, विद्या तो हमेशा कार इस्तेमाल करती थी और मेरी बाइक ... वो कहा है। मैं इधर उधर देख रहा था तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी, मैं सर नीचे झुकाकर इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे मां की आवाज आई।

"बेटे, इधर आना।" मैं कुछ समझ नहीं पाया, ये क्या हुआ। मैने मां की तरफ देखा। उन्होने इशारा करते हुए बुलाया।

मैं गाड़ी से पहले ही उतरा हुआ था, गाड़ी की चाबी निकालकर उनके पास गया।

"वहां नाली के पास क्या ढूंढ रहे थे।" मैं कुछ बोलता तब तक फिर से वो बोली।

"ये स्कूटी को देखो जरा हम बाहर जा रहे थे।स्टार्ट नहीं हो रही थी।"

विद्या स्कूटी से अलग हुई, मैं उसे पास से देख खुश और दुखी दोनों था। शायद स्कूटी की बैटरी में समस्या थी इसीलिए किक से स्टार्ट करना पड़ा।

मां : "धन्यवाद बेटा।" फिर वो दोनों चली गई, इस बीच विद्या कुछ भी नहीं बोली।

मेरा मन हुआ उनके पीछे जाने का पर मुझे और भी काम थे, मैं वहा से उसी इमारत की तरफ निकला जहा उस दिन मैं मरा था। शायद वहां से कुछ पता चले कि उस दिन क्या हुआ था।

उस के अंदर चढ़ते ही मेरी सांसे फूलने लग गई। सीढ़ियों को पास पहुंचा, मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी, इसका मतलब नीचे कोई तो था।

"मैं ऊपर देखता हु।" इतना ही सुना और वहा पे सीढ़ियों से लगें हुए कमरे की आड़ी दीवार के पीछे छुप गया।मेरी बायी तरफ सीढ़ियां थी।

पैरों की आवाज पर मैं ध्यान देने लगा, और जैसे ही वो मेरे आगे आया।

"धड़"

पीछे से लात मार उसे गिराया और झटसे उसके पीठ पर बैठा। उसने पलटकर कोहनी मेरे पेट पर मार दी,दर्द से झुझ पाता तब तक लात सीधे मुंह पर पड़ी।

उसी सीढ़ियों के पास की दीवार पर गिर गया।तभी किसीके पैरों की आवाज सुनाई दी।
सामनेवाला का घुटना मेरी तरफ आया और मैंने अलग होकर उसे सीढ़ियों की तरफ पूरी ताकत से धकेल दिया।

नीचे से उसकी गिरने की आवाज आने से पहले में उठा, वो वापस उठ पाता तब तक वहां से भाग गया।

मैं बहुत थक गया था। आखिरी बार मैं मेरे घर के सामने खड़ा हुआ सोचने लगा। इस बार किसीको देख तक नहीं पाया। इसीलिए घर के पीछे की और बैठा हुआ था। सोचने लगा उस दिन विमल और मुझे किसने धोखा दिया। अगर मुझमें ताकत होती तो वहा उस शेरा के अड्डे में क्या चल रहा है? पता कर लेता।

तभी कुछ आवाज आई,कोई मेरे घर में पीछे से जा रहा था। मै बिना कुछ सोचे उसके पीछे चला गया।मेरी बाइक घर से दूर थी।
वो इंसान मेरे और विद्या के कमरे में कुछ ढूंढने लगा। मैं खिड़की से पर्दे के पीछे खडा रहा।
कुछ पल में वो मुडा और पर्दे की तरफ देखा। मैने बिना वक्त गवाए वही पर्दा उसके सर पर लपेटकर उसे गिरा दिया। पर्दा पूरी तरह फट चुका था। उसकी छाती पर पैर रख घुटना उसकी गर्दन पर था मुक्के पूरी जान के साथ लगा दिए, परदा लाल होने लगा।
जब तक वो बेहोश नहीं हुआ तब तक मारता रहा। ताकि वो मुझे देख ना पाए। और परदा उसके कंधे पर डाला। तभी आवाज आई।

"बेटी सुना तुमने?"

उस आदमी को नीचे धकेल कर, मैं भी वहां से भाग गया।

विद्या की जान को धोखा है,कौन हो सकता है इन सब के पीछे? 'शेरा के ऊपर कौन होगा?' ये तो पता नहीं था लेकिन कहा से पता लग सकता है ये जरूर पता था, डीएम और कमिश्नर इन दोनों में से कोई तो था जिन्होंने हमारे वहा होने की खबर उन तक पहुंचाई हो और इस मिशन के बारे में हर खबर गलत दी थी
उन से खबर कैसी निकलवाए ये सवाल था, इतना जोर मेरी बाजुओं में नहीं था। लेकिन मैं विद्या को इस तरह खतरे में नहीं रख सकता। वो सब मेरे पीछे क्यों पड़े है बता पाना मुश्किल था।
_______

विद्या अपने कमरे में बैठी अकेली कुछ लिख रही थी।

जानु,
ये अब तक का बीसवां खत ।
आज मुझे डर लग रहा है। तुम कहा हो? तुम हमेशा गुनहगारोंको मिटाना चाहते थे? इन बातों से मैं कभी नहीं डरी, क्योंकि तुम्हारे जीतेजी ये डर महसूस ही नहीं हुआ। तुम हमेशा मेरी रक्षा करते थे भलेही खतरा तुम्हारे पुलिस होने की वजह से था, कभी डर नहीं लगा लेकिन आज तुम्हारे ना होने पर डर लग रहा है। आज हमारे घर पर कोई आया था, पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो गिरने से मर गया ऐसा पुलिस का कहना है। लेकिन जब उसे देखा तो थोड़ा डर गई और सोचने लगी जैसे तुमने कुछ होने से बचा लिया, जैसा तुम हर बार करते थे। लेकिन तुम नहीं हो। ये डर अब मुझे खाए जा रहा है।मैं क्या करु?मैं कमजोर हु, क्षीण हु तुम्हारे बिना।
अकेली हु तो सब लोग कह रहे, की मैं दूसरी शादी कर लू, नए घर में रहने चली जाऊ, लेकिन इस घर को मैं छोड़ नहीं सकती, ये तुम्हारी यादें है।
I love you too.

अपनी डायरी में ये लिखकर विद्या रोने लगी। वो जब भी खत के आखिर का हिस्सा लिखती उसे आरव के आखिरी शब्द याद आते।




........अपनी प्रतिक्रिया और लाइक्स दे, स्टोरी के बारे में आपके क्या ख्याल है और क्या आशा है वो बताना मत भूलिएगा।बने रहिए अगला भाग 4-5 दिन में आयेगा।
Kripya kuch kare hum apke intezar Mai hai bhai asha karte hai ap samjhe ge ki hum kya chate hai
 
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Ajju Landwalia

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#२.क्षीण शरीर

टीवी पर भजन चालू, दरवाजा खुला और कुकर की सीटी की आवाज के साथ खाने की महक आने लगी। घर के अंदर आते ही विद्या के कंधे नीचे उतर गए।

"मां आप क्या कर रही है।" उसी निराश स्वर में वो सैंडल निकाल कर तैयार होने चली गई।

विद्या की आवाज आते ही रेखा ने जीभ दांतों के बीच दबाई। उसके पीछे पायल की आवाज के साथ विद्या अंदर किचेन में पहुंची।

"मांजी, आपको कहा था ना रुकने के लिए?क्या जल्दी थी, मेरे आने पर साथ में बना लेते।" इतना कहकर उसने रेखा के हाथों से बेलन खींच लिया।

रेखा :"बेटी रहने दे। मैं बना लूंगी, तू थक गई होगी।"

विद्या नाराज होते हुए : " अब बचाई ही क्या है?" थोड़ा सा आटा बचा था उससे आखिरी रोटी बनाने लगी।

रेखा : "बेटी नाराज मत हो, लेकिन मैं घर में बैठे-बैठे क्या करती, उब गई थी।"

विद्या : "टीवी देख लेती, आराम करती।"

रेखा :"बेटी लेकिन..." वो आगे कुछ बोल नहीं पाई।
विद्या :"आरव को कैसा लगेगा? उसकी मां से मैं काम करवा रही हु।"

रेखा :"वो ऐसा कभी नहीं सोचता,तुम्हे भी पता है, मुझसे ज्यादा तो वो तुम्हारी सेवा करता.." इतना बोल कर रेखा चुप हो गई, लगभग जैसे सिर पर हाथ रखने वाली थी लेकिन सम्भल गई।

कुछ समय बाद खाना खा कर रेखा अकेली टीवी देख रही थी, विद्या अकेली अपने कमरे में थी,कुछ लिख रही थी।

तभी रेखा ने उसे आवाज लगाई।

"मां क्या हुआ।" विद्या बोली।

रेखाने सोफे पर हाथ झटकते हुए: "बेटी जरा यहां बैठो। कुछ बात करनी थी"
विद्या बिना कोई सवाल किए बैठ गई।

रेखा : "बेटी, मैं सोच रही थी कि मेरे भाई के यहां से हो आऊ।"
रेखांकी की बात पर उनकी तरफ दोबारा नजर डालते हुए विद्यान देखा।

विद्या :"लेकिन आपके जाने पर मेरा क्या होगा?, मैं तो अकेली पड़ जाऊंगी।"

रेखा :"तू चिंता मत कर कोई हल तो निकल ही आएगा कुछ दिनों के लिए, मेरा भाई बहोत दिनों से मुझे बुला रहा है.."
आगे कुछ बोलना चाह रही थी इस बार भी शब्द निकलने से पहले रोक दिए।

विद्या हताश होकर :"ठीक है, मैं मम्मी को कुछ दिन के लिए बुला लूंगी।"

रेखाने इस बार विद्या के सर पर हाथ फेरा। और आगे ये शब्द कहने से खुदको रोक नहीं पाई।
"तुममेरा और इस घर का ख्याल रख रही हो,बड़ा गर्व होता है।"

विद्या की आंखे आंसू से गीली हो गई, उसे खुश थी जो काम वो कर रही थी उसमें वो सफल थी।
रात बितती गई।
विद्या अपनी मां को बुलाने का सोचकर नाराज थी। वहीं रेखा सामाने रखी आरव की तस्वीर की तस्वीर की तरफ देखने लगी, उसे बुरा महसूस हो रहा था कि वो अपने बेटे के बारे में खुले मन से बात तक नहीं कर सकती थी, लेकिन वो विद्या को और दुख नहीं देना चाहती थी।

सुबह का वक्त था, मैं अब शुभम के घर था। दो मंजिला का वो घर जिसमें मुझे, शुभम का कमरा ऊपर होते हुए भी, मुझे हॉल के पास के कमरे रहने को कहा।

सुबह सुबह घर पर किसके बाते चालू हो गई, जिससे मैं उठ गया और शुभम के पिता मनोहर और सुचित्रा को ख़ुसुरपुसुर सुनाई दी।

सुचित्रा :"अजी, आपको नहीं लगता कि शुभम से बात करनी चाहिए।"

मनोहर :"क्या बात करनी है, कोई समस्या होगी तो वो खुद बता देगा।"

सुचित्रा :" हा, लेकिन वो अस्पताल के बाद से ज्यादा बात नहीं कर रहा, क्या बात है हमे पूछना चाहिए ना,अगर कोई तकलीफ होगी तो कैसे पता चलेगी?"

मनोहर :"सुचित्रा अब वो बच्चा नहीं रहा तुम उसकी चिंता करना छोड़ दो, अगर कुछ होगा तो वो बताएगा, उसे उसका उतना समझना चाहिए।"



उसके आगे की बात मैने नहीं सुनी, अब उन्हें कैसे बताऊं कि उनका बेटा अब नहीं रहा।लेकिन वो इस शरीर के होते हुए कैसे मानेंगे। मेरे लिए और भी समस्या थी। मैं इस शरीर में कैसे आया। विद्या और मेरा बच्चा किस हालत में होगा। मेरी मां किस हालत में होगी। लेकिन उसके लिए मुझे बाहर निकलना था, जिसकी अनुमति मुझे नहीं थी।

रोज कोई ना कोई मेहमान आते रहते थे, हर किसी की अलग सलाह, कैसे हुआ एक्सीडेंट? बाइक ठीक से चलाया करो ये वो सब। आराम आराम से और भी ओक गया था।

ऊपर से दस पुश-अप का भी जोर नहीं था। शायद इसमें एक्सीडेंट का कितना हाथ है और शरीर का कितना किसे पता। फिर भी पूरा जोर लगाते हुए कोशिश की, तभी पैरों की पायल सुनाई दी। दोनो मा बेटी मेंसे कोई एक होगा ये सोच ही रहा था।

"ये क्या कर रहे हो?" ये श्वेता की आवाज थी।

मैं लंबी सांस लेते हुए बैठ गया: "दिख नहीं रहा?"

श्वेता : "वो तो दिख रहा है कि तुम व्यायाम कर रहे हो, लेकिन अचानक क्यों पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हे ऐसा कुछ करते हुए।"

मैं :"अब मन कर रहा है, इसीलिए तुम्हे कोई समस्या है?"

श्वेता :"अस्पताल के बाद से कुछ-ना-कुछ करने का मन हो ही रहा है।"

मैं इस लड़की की पंचायत से बचना चाहता था।
मैं खुदको थोड़ा भाग्यवान मानने लगा, अच्छा हुआ कि मा बाप का इकलौता बेटा हु और बदकिस्मत भी क्योंकि अब शायद कब तक इसे झेलना पड़ेगा।
लेकिन अब यही मेरा रास्ता थी।

मैं : "ऊब गया हु घर पर रहकर, बाहर जाने का मन है तो कोई जाने नहीं देता, तो कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा ही।"

इतना कहकर उसकी तरफ आशा की नजर से देखा।

श्वेता :"मेरी तरफ क्या देख रहे हो? मैं कोई मदत नहीं करने वाली। ऊपर से मुझे भी कहा अकेले बाहर घूमने के आजादी है।"

मैं :"ये तो अच्छी बात है।"

श्वेता गुस्सेसे:"क्या?"

मैं : "नहीं... मेरा मतलब है कि हम दोनों साथ में जा सकते है, दोनों का काम हो जाएगा। वैसे तुम कहा जा रही हो?"

श्वेता : "मेरी दोस्त के घर, और तुम्हे उससे क्या? आए बड़े! भाई बनने वाले।"

मैं :"ठीक है तुम्हे जहां भी जाना है मैं छोड़ दूंगा। और वापस आते वक्त मुझे कॉल कर देना।"

श्वेता सोचते हुए :"ठीक है। लेकिन मुझे अगर देर हो गई तो कॉल मत करते रहना, मैं मेरे हिसाब से कॉल करूंगी।"

ये कहा जा रही है, उसका मुझे क्या अपनी थोड़ी बहन है, लेकिन सच में वो क्या था 'आए बड़े! भाई बनने वाले '।

कुछ देर में घर से परवानगी लेकर हम दोनों निकल गए,दोनों साथ होने से किसी को आपत्ति नहीं थी। उसे उसकी सहेली के रूम पर छोड़ दिया। और सीधे अपनी मंजिल पर चल पड़ा।

घर के बाहर खड़ा था, बगीचे में देखने लगा अब तक वहां कोई नहीं था। मेरा मन तो बहुत हो हुआ अंदर जाने का, लेकिन कैसे जाता?कौन मानेगा मेरी बात? मुझे सब नशेड़ी समझेंगे, जो किसीभी घर में घुसकर औरतों का पति होने का दावा करता है। नहीं.. नहीं ये तो नहीं कर सकता। लेकिन बहुत बुरा महसूस हो रहा था। भलेही मेरे अंदर अंधेरा भरा पड़ा हुआ है, लेकिन क्या इतनी बड़ी सजा।

तभी दरवाजे से किसी को बाहर आते देखा, गाड़ी के गेट से थोड़ा दूर ले जा कर वहां से देखने लगा।

विद्याने एक नीली साड़ी पहनी थी, जिसपर जामुनी रंग के फूल थे। वो बाहर आते हुए किसी से बात कर रही थी, शायद उसकी या मेरी मां थी। वो एक पर्स कंधे से ले कर आंगन की तरफ आने लगी।

उसे देखकर अच्छा लगा।उसने गेट खोला तब तक मेरी मां भी बाहर आ गई दरवाजा बंद करने लगी। शायद दोनों कही बाहर जा रही थी, फिर मेरा ध्यान एक स्कूटी पर गया, विद्या तो हमेशा कार इस्तेमाल करती थी और मेरी बाइक ... वो कहा है। मैं इधर उधर देख रहा था तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी, मैं सर नीचे झुकाकर इधर उधर देखने लगा। तभी मुझे मां की आवाज आई।

"बेटे, इधर आना।" मैं कुछ समझ नहीं पाया, ये क्या हुआ। मैने मां की तरफ देखा। उन्होने इशारा करते हुए बुलाया।

मैं गाड़ी से पहले ही उतरा हुआ था, गाड़ी की चाबी निकालकर उनके पास गया।

"वहां नाली के पास क्या ढूंढ रहे थे।" मैं कुछ बोलता तब तक फिर से वो बोली।

"ये स्कूटी को देखो जरा हम बाहर जा रहे थे।स्टार्ट नहीं हो रही थी।"

विद्या स्कूटी से अलग हुई, मैं उसे पास से देख खुश और दुखी दोनों था। शायद स्कूटी की बैटरी में समस्या थी इसीलिए किक से स्टार्ट करना पड़ा।

मां : "धन्यवाद बेटा।" फिर वो दोनों चली गई, इस बीच विद्या कुछ भी नहीं बोली।

मेरा मन हुआ उनके पीछे जाने का पर मुझे और भी काम थे, मैं वहा से उसी इमारत की तरफ निकला जहा उस दिन मैं मरा था। शायद वहां से कुछ पता चले कि उस दिन क्या हुआ था।

उस के अंदर चढ़ते ही मेरी सांसे फूलने लग गई। सीढ़ियों को पास पहुंचा, मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी, इसका मतलब नीचे कोई तो था।

"मैं ऊपर देखता हु।" इतना ही सुना और वहा पे सीढ़ियों से लगें हुए कमरे की आड़ी दीवार के पीछे छुप गया।मेरी बायी तरफ सीढ़ियां थी।

पैरों की आवाज पर मैं ध्यान देने लगा, और जैसे ही वो मेरे आगे आया।

"धड़"

पीछे से लात मार उसे गिराया और झटसे उसके पीठ पर बैठा। उसने पलटकर कोहनी मेरे पेट पर मार दी,दर्द से झुझ पाता तब तक लात सीधे मुंह पर पड़ी।

उसी सीढ़ियों के पास की दीवार पर गिर गया।तभी किसीके पैरों की आवाज सुनाई दी।
सामनेवाला का घुटना मेरी तरफ आया और मैंने अलग होकर उसे सीढ़ियों की तरफ पूरी ताकत से धकेल दिया।

नीचे से उसकी गिरने की आवाज आने से पहले में उठा, वो वापस उठ पाता तब तक वहां से भाग गया।

मैं बहुत थक गया था। आखिरी बार मैं मेरे घर के सामने खड़ा हुआ सोचने लगा। इस बार किसीको देख तक नहीं पाया। इसीलिए घर के पीछे की और बैठा हुआ था। सोचने लगा उस दिन विमल और मुझे किसने धोखा दिया। अगर मुझमें ताकत होती तो वहा उस शेरा के अड्डे में क्या चल रहा है? पता कर लेता।

तभी कुछ आवाज आई,कोई मेरे घर में पीछे से जा रहा था। मै बिना कुछ सोचे उसके पीछे चला गया।मेरी बाइक घर से दूर थी।
वो इंसान मेरे और विद्या के कमरे में कुछ ढूंढने लगा। मैं खिड़की से पर्दे के पीछे खडा रहा।
कुछ पल में वो मुडा और पर्दे की तरफ देखा। मैने बिना वक्त गवाए वही पर्दा उसके सर पर लपेटकर उसे गिरा दिया। पर्दा पूरी तरह फट चुका था। उसकी छाती पर पैर रख घुटना उसकी गर्दन पर था मुक्के पूरी जान के साथ लगा दिए, परदा लाल होने लगा।
जब तक वो बेहोश नहीं हुआ तब तक मारता रहा। ताकि वो मुझे देख ना पाए। और परदा उसके कंधे पर डाला। तभी आवाज आई।

"बेटी सुना तुमने?"

उस आदमी को नीचे धकेल कर, मैं भी वहां से भाग गया।

विद्या की जान को धोखा है,कौन हो सकता है इन सब के पीछे? 'शेरा के ऊपर कौन होगा?' ये तो पता नहीं था लेकिन कहा से पता लग सकता है ये जरूर पता था, डीएम और कमिश्नर इन दोनों में से कोई तो था जिन्होंने हमारे वहा होने की खबर उन तक पहुंचाई हो और इस मिशन के बारे में हर खबर गलत दी थी
उन से खबर कैसी निकलवाए ये सवाल था, इतना जोर मेरी बाजुओं में नहीं था। लेकिन मैं विद्या को इस तरह खतरे में नहीं रख सकता। वो सब मेरे पीछे क्यों पड़े है बता पाना मुश्किल था।
_______

विद्या अपने कमरे में बैठी अकेली कुछ लिख रही थी।

जानु,
ये अब तक का बीसवां खत ।
आज मुझे डर लग रहा है। तुम कहा हो? तुम हमेशा गुनहगारोंको मिटाना चाहते थे? इन बातों से मैं कभी नहीं डरी, क्योंकि तुम्हारे जीतेजी ये डर महसूस ही नहीं हुआ। तुम हमेशा मेरी रक्षा करते थे भलेही खतरा तुम्हारे पुलिस होने की वजह से था, कभी डर नहीं लगा लेकिन आज तुम्हारे ना होने पर डर लग रहा है। आज हमारे घर पर कोई आया था, पता नहीं क्या हुआ, लेकिन वो गिरने से मर गया ऐसा पुलिस का कहना है। लेकिन जब उसे देखा तो थोड़ा डर गई और सोचने लगी जैसे तुमने कुछ होने से बचा लिया, जैसा तुम हर बार करते थे। लेकिन तुम नहीं हो। ये डर अब मुझे खाए जा रहा है।मैं क्या करु?मैं कमजोर हु, क्षीण हु तुम्हारे बिना।
अकेली हु तो सब लोग कह रहे, की मैं दूसरी शादी कर लू, नए घर में रहने चली जाऊ, लेकिन इस घर को मैं छोड़ नहीं सकती, ये तुम्हारी यादें है।
I love you too.

अपनी डायरी में ये लिखकर विद्या रोने लगी। वो जब भी खत के आखिर का हिस्सा लिखती उसे आरव के आखिरी शब्द याद आते।




........अपनी प्रतिक्रिया और लाइक्स दे, स्टोरी के बारे में आपके क्या ख्याल है और क्या आशा है वो बताना मत भूलिएगा।बने रहिए अगला भाग 4-5 दिन में आयेगा।

Bahut hi shandar story he Anatole

Ek naya topic chuna he aapne............umeed he story bhi bahut hi badhiya hogi..........

Keep Rocking
 

Achin_Saha18

Don't trust anyone blindly
Supreme
1,402
726
113
#१.नरक या भूलोक?

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

उसी दिन सुबह...

"मेरे शोना को भूख लगी?" अपने पति की तरफ नीली-भूरी आंखों से घूरते हुए विद्या ने कहा. आरव ने मासूमियत में अपना सिर 'हां' में हिलाया।

"आप क्या सिर हिला रहे हैं? मैं मेरे सोना से कह रही हूं।" तिरछा मुंह करते हुए उसने अपना हाथ पेट पर रख दिया।

आरव का मुंह खुला...

विद्या आंखे दूसरी तरफ करते हुए: "अगर भूख लगी है तो खा लीजिए, आपसे कोई पूछने नहीं वाला।"

आरव मुस्कुराते हुए: "मेरा दिल जब तक नहीं मानेगा, तब तक मैं कैसे खा सकता हूं।" विद्या ने कहने वाली थी, 'मैं किसी का दिल नहीं,' लेकिन उसने नहीं कहा और ऊपर एक बार देखके मुंह तिरछा कर लिया।

"अच्छा, अभी के लिए बाय, ये मनाने का खेल वापस आने पर जारी रखेंगे।"

आरव ने फिर विद्या के गालों को चूमा और "I love you, वेदु।" इतना कहने पर जब जवाब नहीं आया तो चेहरा थोड़ा नीचे गिर गया। और थोड़ा निराश होकर वह से चला गया। विद्या उसके जाने पर थोड़ी मुस्कुराई।

उन्हें इन सब में मजा आता था, आरव उस पर जान छिड़कता। 6 फीट का आदमी और सरहद पर लड़ने वाले फौजी की तरह मजबूत शरीर के साथ ही गुस्सा होने के बावजूद वो विद्या के सामने एक बिल्ली की तरह रहता। वो दोनों एक-दूसरे को पाकर खुश थे।

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पुलिस स्टेशन, सोनावला...

"तो कैसी है विद्या की तबियत, गुस्सा ठंडा हुआ कि नहीं?" आरव को थाने आते ही पहला सवाल उसके सीनियर विमल ने पूछा।

आरव मुस्कुराते हुए: "अभी तो कुछ नहीं हुआ। बाकी हमारी मैडम मान गई।"

विमल: "हां, परमिशन मिली है, और कल रात डीएम मैडम से ब्लूप्रिंट भी ले लिया है।"

आरव: "कितने आदमी होंगे सर वहां?"

विमल: "कमिश्नर साहब को उनके इंटरनल सोर्स से 34 बताया गया है।"

आरव: "कमाल है, वो सब इस मिशन के लिए मान गए, खास कर डीएम मैडम।"

विमल: "ऊपर से प्रेशर है उन पर शायद, मिस्टर सालुंखे जैसी हस्ती को बंदी जो बनाया है शेरा ने।"

आरव: "हां, अब पुलिस अमीर और गुंडों की रखैल जो हैं।"

विमल: "लेकिन तुम निराश मत हो, एक दिन इस पूरी गंदगी को हम साफ जरूर करेंगे। तुम्हारे जैसे अफसर के साथ काम कर मुझे भी मजा आता है।"

आरव, विमल की बात पर मुस्कुराया।

विमल (ब्लूप्रिंट पर उंगली रखते हुए): "ये रास्ते से हम जाएंगे, कम से कम कैजुअल्टी के साथ मिस्टर सालुंखे को बचाएंगे।"

आरव ने मुंह बनाते हुए: "हां, उसे तो लाना ही पड़ेगा।"

विमल (आंखें बड़ी करते हुए): "तुमने शायद सुना नहीं, कम से कम, ये मत भूलो हम पुलिस अफसर हैं, हममें और उनमें फर्क है।"

आरव (चेहरा ढीला होते हुए): "यस सर।"

आरव का गुस्सा विमल की तरफ नहीं, उन गुंडों की तरफ था। सभी तैयारी के साथ आरव और विमल एक बड़ी सी इमारत के ऊपर आ गए। उसके करीब एक बड़ी सी सफेद इमारत थी। अंदर से किसी कॉलेज की तरह थी। कुछ गुंडों को ठिकाने लगाकर वो नीचे जाने लगे। आरव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। कुछ तो गड़बड़ जरूर थी। वो सीढ़ियों से निचली मंजिल पर जाने लगे। शेरा गोदाम में था।
*पॉप*

*थड*

*थड*

आरव के साथियों की लाशें गिरने लगीं, एकदम से जैसे 100 बंदूकें किसी ने चला दी हों। पीछे मुड़ने तक एक गोली आरव की पीठ पर लग गई। जल्द से जल्द जितने बचे सिपाही थे वो सीढ़ियों के भीतर छिप गए। बाकी आसपास के कमरों में छुपे हुए थे। सभी लोग डर चुके थे, उन सभी को अब सिर्फ मौत दिख रही थी। इस तरह अचानक से हमला होने पर आरव भी थोड़ा डर गया था।

विमल: "ये कैसे हो सकता है, इतने लोग कैसे? ऐसे तो हम बचे 20 अफसर भी मर जाएंगे।"

आरव (दांत भींचते हुए): "सर, आप अभी भी समझ नहीं पाए, हमें फंसाया गया है। और अब नीचे हमारे साथी भी फंसे हुए हैं।"

विमल गुस्से से: "शिट शिट शिट।"

दोनों फ्रस्टेटेड और गुस्से में थे। नीचे शेरा के 35 नहीं बल्कि 100 से भी ज्यादा आदमी थे और वो भी हथियारों के साथ। विमल बस भगवान से दुआ मांग रहा था कि ये दिन उसका आखिरी न हो।

विमल अपना सिर पछतावे से हिलाते हुए: "अब हमें किसी तरह यहां से निकलना होगा।इतने पुलिस के साथ हम कुछ नहीं कर पाएंगे।"

आरव: "नहीं सर हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। अगर अभी भागे तो आगे हमें ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा, वो भी इतने सारे हरामखोर एक साथ।"

विमल: "तुम पागल हो गए हो क्या? उनमें से आधे भी हम नहीं मार सकते।"

विमल आरव की काबिलियत जानता था, लेकिन परिस्थिति इतनी आसान नहीं थी। आरव ने उसकी एक ना सुनी पूरी जोश और गुस्से के साथ बंदूक में गोलियां भरने लगा।

एक हाथ में बंदूक और एक हाथ में बम लिए आरव खड़ा था। गोलियों की आवाज नीचे गूंज रही थी। बारूद की गंध आ रही थी। एक लंबी सांस लेते हुए, अपने साथ छिपे जवानों की तरफ आरव ने देखा।

उसे आखिरी बार विमल ने निराशाजनक नजरों से कहा, "आज नहीं, किसी और दिन?"

आरव ने जोश के साथ "वो दिन आज ही है।" उसकी आवाज में विश्वास था। तभी सीढ़ियों से आवाज आई, और आरव बिना वक्त गंवाए नीचे उतरने लगा। दो गोलियों की आवाज सुनते ही विमल आरव के पीछे आया, दीवार पर खून के छिटे थे और दो लाशें नीचे गिरी हुई थीं।

बंदूक की आवाज नीचे से बढ़ गई। विमल अपनी सांसों को काबू कर बचे अफसरों के साथ उतरने लगा तभी नीचे धमाका हुआ। इस पर आरवने पीछे विमल की तरफ देखा। जैसे बता रहा हो ये बम उसने फेंका था।

फिर जो विमल ने देखा वो कभी भूल नहीं सकेगा वो एक को मार पाता तब तक 10 लाशें नीचे गिरी हुई थीं। आरव को न तो खून से कोई घिनौना पन नजर आ रहा था और न ही किसी चीज की फिक्र थी। ये कोई लढाई नहीं कोहराम था। सीर क्षणों में फट रहे थे। जैसे उन साधारण इंसानों के बीच आरव एक दैत्य था। आरव की बंदूक जब एक वक्त खाली हुई और सामने से कोई आया तो नीचे पड़ी लाश को एक हाथ से उठाकर किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करने लगा और अपनी बंदूक भरने लगा।

कुछ ही मिनटों में लाशों का ढेर वहां पर बन गया। इस वक्त सभी लोग खून से लथपथ थे, आरव, सभी से तेज होने के बावजुड़ फिर भी उसे ही गोलियां लगी थीं। उसकी जगह कोई और होता तो मारा गया होता। सभी की आंखे फटी हुई थी। वो सब बचे हुए लोग एक साथ नीचे जाने लगे।

कुछ ही पल में सभी गोदाम जैसी जगह पहुंच गए। उस अंधेरे में उन्हें झरने की आवाज आने लगी।

उसी के साथ एक आवाज उनके कानों में पड़ी। "आइए, आइए, लगता है स्वागत में बहुत कमी पड़ गई आपके, 'विमल साहब' ।"

विमल अपनी बंदूक आगे कर इधर-उधर देखते हुए: "शेरा खुद को कानून के हवाले कर दे। तेरा जिंदा बचना अब हमारे हाथों में है।"

तभी वहां पर रोशनी हुई। उस गोदाम के बीचो-बीच एक बड़ा सा गड्ढा था। जहां से पानी के झरने जैसी आवाज आ रही थी।

गोदाम और पूरी इमारत ब्लूप्रिंट में उन्होंने देखी थी उससे बेहद अलग थी, इसलिए आरव ने आंखें बड़ी करके विमल की तरफ देखा। विमल समझ गया कि उनके साथ कोई बड़ा खेल हुआ था। उसका भी चेहरा इस बात से चिंता में चला गया।

उसी के सामने शेरा मिस्टर सालुंखे के पीछे खड़ा था और बंदूक सालुंखे पर तानी हुई थी।

शेरा: "अब क्या राय है विमल साहब आपकी?"

उसका इतना कहना था कि आरव ने बंदूक सीधे मिस्टर सालुंखे के ऊपर तानी, एक वक्त के लिए सालुंखे के साथ शेरा की भी सांसें रुक गईं।

"लगता है, इन जनाब को मरने का बहुत शौक है।"

*धाड़*

आरव ने अपना पूरा शरीर विमल की ओर झोंक दिया और गोली शेरा पर चला दी। शेरा के सर पर गोली लगते ही पानी में गिर गया और उसकी गोली आरव के सीने से जा लगी।

आरव की धड़कने एकदम से धीमी होने लगी, उसे अपना पूरा जीवन उल्टा दिखायी देने लगा, उसके सामने सबसे पहले तस्वीर अपनी पत्नी की आई जो कि गर्भ से थी, बाद में उसकी मां और उसके पिता की।

उसकी धड़कन अब बंद हो गई थी। विमल रोने लगा उसने अपना सबसे करीबी दोस्त जो खोया था।

............

कुछ महीनों बाद।

आरव का नजरिया.....

"मरीज को होश आ रहा है, जाओ डॉक्टर साहब को बुलाओ।" ये आवाज मेरे कानों में पड़ी। कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने हलके से आंखें खोली सामने एक औरत खड़ी जो कि शायद नर्स थी। आंखें पूरी खोल पाता तब तक मेरी फिर से आंखें बंद हो गई।

एक औरत की आवाज बहुत बार आती रही, वो मेरे पास आकर बहुत बार रोई।

धीरे-धीरे अब आसपास का शोर मुझे सुनाई देने लगा। शरीर बेहद हल्का महसूस कर रहा था। दवाइयों की महक आने लगी। तभी मैंने हलके से आंखे खोली।

"शुभम, अब कैसा महसूस कर रहे हो।" सामने खड़ी नर्स ने पूछा। मैं कुछ नहीं बोला, कितने दिनों से अस्पताल में था ये भी नहीं जानता था।

"ठीक है, आपका परिवार बाहर है उनसे मिल लीजिए।" ये बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तभी दरवाजे से एक औरत आई।
"बेटा, मुझे लगा था, मैं तुम्हे हमेशा केलिए खो दूंगी।" इतना कहते हुए वो औरत रोने लगी।
मैं पहचान नहीं पाया कि ये कौन है? और मेरे लिए इतना क्यों रही है। कही इस औरत को गलत फ़ैमी तो नहीं हुई कि मैं इसका बेटा हु। बहुत से सवाल मेरे मन थे और कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। जैसे उसे औरत शायद में जानता हु। लेकिम उस औरत को टोकने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। फिर वो मेरी तरफ उत्सुकता से देख रही थी कि मैं कुछ बोलूं।

मैने पूछा: "विद्या कहा है।"

उसने बारीक आंखों से देखकर कहा :" कौन विद्या बेटा, तू किसकी बात कर रहा है, शायद तू श्वेता की तो बात नहीं कर रहा। तेरी बहन आ रही है, पिताजी भी आयेंगे जल्दी।"

मैं कुछ भी समझ नहीं पाया: "मेरी बहन, मेरे पिता ये क्या बाते कर रही है? आप है कौन?।"

मेरी बात सुनते ही उन्होंने भौवें ऊपर की : "बेटा कैसी बाते कर रहा है तू।"


मैने अपना सर भींच चिल्लाते हुए कहा: "मैं कैसी बाते बाते कर रहा हु मतलब, आप पागलों जैसी बाते कर रही है, विद्या कहा है?, उसे बुलाइए।"

वो औरत एकदम से रोते हुए बाहर की और भाग गई। क्या हो रहा था, मैं समझ नहीं पाया। इसीलिए बैठने की कोशिश करने लगा।
फिर मुझे अजीब सा एहसास हुआ। पूरा शरीर बेहद हल्का महसूस हो रहा था। जब नीचे की और नजर डाली, मैं दुबला हो चुका था, लेकिन सबसे अजीब बात ये थी कि मेरा शरीर पहले से ज्यादा गोरा था।मैंने डर के मारे झटके से उठने की कोशिश की।

"शुभम तुम ये क्या कर रहे हो,अभी तुम पूरी तरह ठीक नहीं हुए हो।" नर्स तेजी से अंदर आने लगी और मुझे संभालते हुए पलंग पर बैठाने की कोशिश करने लगी।

तभी मुझे ध्यान आया, 'शुभम' ये नाम क्यों अपनासा लग रहा है। मुझे अजीब सी बात महसूस हुई, वो औरत तो शुभम की मां है, मैं उसे जानता हु।लेकिन कैसे? ये क्या हो रहा है, कही मैं नरक में तो नहीं हु। मेरे दिमाग में अभी कुछ यादें आने लगी थी। ये मेरी यादें नहीं शुभम की थी। फिर मेरा ध्यान एक स्टील की टेबल पर गया उसमें देखा तो दिमाग एकदम से फटने लगा।ये!!
मेरे सामने अंधेरा छा गया।


"बेटा तुम्हारा नाम बताओगे?" डॉ. ने पूछा।

मैंने हार मानते हुए : "शुभम।"

इतना कहने पर शुभम की मां ने खुशी की सांस ली। जिसका नाम शायद सुचित्रा था। ये मुझे कैसे पता, मत पूछो। पास ही मैं शुभम की बहन श्वेता खड़ी थी, वो शुभम से एक साल बड़ी थी, वो खुश नजर नहीं आ रही थी। शायद
शुभम से उसकी जमती नहीं थी। यादे बहुत धुंधली थी, जैसे किसी सपने की तरह मैं समझ पा रहा था कि वो मेरी नहीं है। और शायद मुझे शुभम के बारे में पता भी नहीं था, ऐसा लग रहा था लेकिन डॉ.जैसे सवाल पूछते गए मुझे वो उत्तर धुंधले तरीके से याद आने लगे।

डॉ. को यकीन हो गया कि मेरी यादाश्त ठीक है, और इतना कहकर सुचित्रा को बाहर बुलाया।
बाहर क्या बताया मुझे नहीं पता लेकिन इन सब से पागल होने लगा, मुझे मेरी मां और विद्या की चिंता होने लगी, विमल शेरा उन सब का क्या हुआ? कही इन सब में उनका तो कुछ लेना देना नहीं। मैं बहुत सोचने लगा, विमल पर शक करने जैसा तो कुछ नहीं था लेकिन मरनेसे पहले उसे ही देखा था। उसे जरूर इस सब के बारे में पता होगा। कही मैं जिंदा तो नहीं और शुभम मेरी शरीर में तो नहीं, ये सब सवाल आते ही मैंने सामने देखा, श्वेता जो शुभम से शायद 2 साल बड़ी थी।

मैने कहा : " श्वेता, अपना फोन देना प्लीज।"

श्वेता ने उठ दबाते हुए कहा:" दीदी, और फोन की क्या जरूरत पड़ गई ऐसी।"

मैं सर खुजाते हुए : सॉरी दीदी, थोड़ा जरूरी काम है।

इतना कहकर फोन उससे खींच लिया।वो कुछ बोल पाती तब तक मैने मेरा नाम सर्च किया, आरव जंगले, तभी मुझे मराठी न्यूज आर्टिकल दिखा जिसमें बताया गया कि आरव जंगले जाने माने उद्योगपति को बचाते हुए शाहिद हो चुके है, जिनकी एक गर्भवती पत्नी है। आर्टिकल 6 महीने पुराना था।

तभी मुझे अहसास हुआ, इसका मतलब कि शायद मेरा बच्चा अब बिना पिता के जन्म लेगा और जब उसे सबसे ज्यादा मेरी जरूरत थी मैं नहीं हु।

ये सोचते ही आंसुओं से आंखे गीली हों गई। और खुदको रोने से रोक नहीं
पाया। तभी मेरे हाथ से श्वेता ने फोन खींच लिया।

"तुम रो क्यों रहे हो? और क्या पढ़ रहे थे।"

मैने कुछ नहीं कहा, अब मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे, लेकिन खुदको शांत कराने लगा।

........

तो इसका मतलब आपने शुरुवात पढ़ ली है। अगर समझने में मुश्किल हुई हो, तो फिक्र मत करो धीरे धीरे सब समझ आएगा। देवनागरी हिंदी में मेरा पहला प्रयोग है, और इस जॉनर में भी, अगला भाग जल्द ही आयेगा, बने रहिए।
Nice Start 👍
 

sunoanuj

Well-Known Member
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बहुत ही शानदार शुरुआत है! और कहानी का प्लॉट भी बहुत अच्छा है!

अगले भाग की प्रतीक्षा में!
 

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART
Prime
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94
#३.जरूरत

मैं जब घर पहुंचा, सन्नाटा छाया हुआ था। चुपके से अंदर जाने लगा। तभी किसी की आहट हुई, बिना देरी किए मैं कमरे में घुस गया और अपनी टीशर्ट निकाल दी, जिसपर खून के छींटे थे। आइने में खुदको देखने लगा। इस चीज की आदत जल्द होने वाली नहीं थी।

तभी कोई दरवाजा ठोकने लगा। वैसे ही स्वेटर पहन कर, मैंने दरवाजा खोला। सामने सुचित्रा थी।

"श्वेता कहा है?" श्वेता, उसके बारे में तो मैं भूल ही गया, उसे तो अब तक घर आ जाना चाहिए था। ये सब मेरी गलती थी, किसी नाबालिक जैसी हरकत, मैं कैसे कर सकता हु।
मेरे चेहरे पर डर का भाव शायद सुचित्रा देख सकती थी।

सुचित्रा गुस्से से :"तुम्हारी इसी हरकत की वजह से, मुझे कितना सुनना पड़ा मालूम है? ये अच्छा हुआ वो जल्दी सो गए, वरना आज मैं भी नहीं बचा पाती तुम्हे।"

मैं बोल पड़ा :"मैं जाकर देखता हु, शायद उसकी सहेली के यहां ही होगी।" इतना कहकर चाबी ढूंढने लगा।

सुचित्रा ने मेरी बात सुन दरवाजे पर हाथ रख मुझे रोकते हुए:"अभी कही जाने की जरूरत नहीं, श्रद्धा के पिताजी आए थे उसके साथ पहुंचाने घरपर। वैसे तुम कहा गए थे, जरासा अच्छा क्या लगने लगा! कि आवारा दोस्तो के साथ घूमने लगे,आदित्य के साथ तो तुम नहीं थे उसकी मां ने बताया कि वो घर पर ही है।" आदित्य, शुभम का अच्छा मित्र था। ये बात शुभम की यादों में थी।

मैं झुके सिर के साथ :"सॉरी,आगे से ऐसा नहीं होगा।"

"अब उससे क्या होगा, ये तो अच्छा हुआ उसे जान पहचान वाले इंसान ने छोड़ दिया, अगर वो अकेली आती और कुछ बुरा जाता तो क्या करते? वैसे भी इस शहर में पुलिस सुरक्षित नहीं औरतें क्या होगी।"

अब मैं इस पर कुछ बोल नहीं पाया, बात सच ही थी, मुझसे गलती हुई। मुझे इस बात का ध्यान रखना चाहिए था। उसे मेरे भरोसे लेकर ही नहीं जाना चाहिए था। मुझपर दूसरी जिम्मेदारी थी लेकिन वो भी तो मेरे भरोसे बाहर आई थीं।

सुचित्रा ने मुझे शांत देखकर अपना गुस्सेका स्वर बदल दिया :"ठीक है,अब उसके बारे में ज्यादा मत सोचो हाथ-मुंह धो लो, मैं खाना लगाती हु।"

मैं ठंडे स्वर में:"उसकी कोई जरूरत नहीं।"

सुचित्रा ने मेरी तरफ गुस्से से घूर कर देखा।

सुचित्रा :"तुम्हारे पिताने ने पगार पर नहीं रखा है मुझे। जो इस तरह से बात करोगे, खाने को बुला रही हु। पूछ नहीं रही हु कि 'मालिक खाना खाओगे आप?', जितना तुम्हारे हिस्से का बचा है खालों।"

मैं हल्का चौंकते हुए : ठीक है।

मुझे नहीं लगा था कि सुचित्रा जी इस तरह की मां होगी। शायद बहुत गुस्से में है।

फिर मैं खाना खाने बैठा,नीचे दो रूम,एक किचेन और एक हॉल था। मैं हॉल में बैठ कर खाना खाने लगा। सुचित्रा जी वही बैठी थी।

"और हा कल सोमवार है, सुबह चुपचाप कॉलेज चले जाना, कोई आना कानी नहीं, आज दिन भर घूमने के बाद तुम कोई कारण भी नहीं बन सकते? चुपचाप चले जाना वरना तुम्हारी कोई खैर नहीं।"

कॉलेज, अरे यार, वहा पर क्या करूंगा? अगर रोज कॉलेज जाऊंगा तो कैसे होगा।

कुछ देर बाद लाइट बंद कर के सुचित्रा ऊपर सोने चली गई।
____



उन नन्हे हाथों डर के मारे मां के पल्लू को पूरी मुट्ठी ने जकड़ लिया। सिगरेट की बु एक डरावना अहसास मन में ला रही थी। मेरे पिता एक साधी शर्ट पहने , पूरी तरह अस्थिर होकर दरवाजे की और देख रहे थे। मां भी बहुत निराश थी।

"रेखा, तुम फिकर मत करो, मैं उन्हें सम्भल लूंगा।" मेरे पिताने कहा।
फिर उन्होंने ने एक लंबी सांस लेकर दरवाजा खोला।
तभी धड़से तीन हट्टे-कट्टे मर्द अंदर घुसे और बिना कुछ सोचे समझे उन्हें थप्पड़ मारने लगे।पिता नीचे गिर गए, वो बिनती करने लगे साथ ही मां भी,मेरा डर और अपने पिता को इस तरह मार खता देख मैं, 8 साल का लड़का रोने लगा।

मां ने चीखते हुए उन्हें रोकने की कोशिश करने लगी। उन्होंने कुछ गालियां के साथ, मेरे पिता को लातों घुसे मारना शुरू कर दिये। चीखे-शोर गूंज रहा था, मां भीख मांगने लगी थी। लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। ऊपर से एक मर्द ने लात मारकर मां को गिरा दिया। मेरे पिताने जिनका चेहरा खून से सन चुका और आंखे पूरी तरह खुल नहीं रही थी। एक लात उनकी गर्दन पर रखी हुई थी। ये सब देख मेरा शरीर काप रहा था, लेकिन मैं कुछ करने के काबिल नहीं था। मुझे कुछ करना चाहिए था, लेकिन कर नहीं पाया।
मेरे पीता कि की आवाज तभी दर्द और आंसू के साथ निकली।

"उन्हें कुछ मत करना, तुम सब का गुनाहगार मैं हु।" इतना कहते ही उनमें से एक बोला।
"साले,उनके साथ क्या होगा ये देखने के लायक तो तुझे नहीं छोडूंगा." और जोर से लात मेरे पिता के मुंह पर दे मारी, और अलग होकर कुछ कहते मुंह पर थूक दिया। इस वक्त मेरे पिता का सिर नीचे झुका हुआ था। वो कुछ करना पाए। वो मुझे और मेरी मां को सुरक्षित नहीं रख पाए जैसा उन्होंने कहा था। मां उन सबके सामने गिर कर मेरे पिता के जान की भीख मांगने लगी।

तभी एक आदमी ने अपनी जेब से बंदूक निकाली। इस वक्त मैं बिना कुछ सोचे मेरे पिता की तरफ भागा,उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे जैसे उन्होंने इन सब को अपनी तकदीर मान ली थी। मैं जोर से चीखने लगा।

मैं बैठ खड़ा हो गया,ध्यान आते ही मेरे गले में चीख वही कैद हो गई। साँस वही रुक गई थी। भौवें पसीना पसीना हो गई।

"शुभम! क्या हुआ?" सामने श्वेता थी, मुझे इस तरह देख चिंता में थी। मैंने आस-पास देखा। वो कुछ पूछती इससे पहले मैं तैयार होने चला गया, मुझे आज कॉलेज भी जाना था।
मेरा मन तो नहीं था लेकिन आज श्वेता को कॉलेज में भी छोड़ना था।
________

विद्या सुबह तैयारी करके अपने काम निकल गई। आरव के जाने के बाद उसे खुदकी जिम्मेदारी निभानी थी और आरव के मां की भी।

वो एक अन्वी फाउंडेशन संस्था में काम करती थी। ये संस्था गरीब मरीजों को मदत करती थी। और विद्या वहां पर कार्यक्रम सहायक थी।

विद्या कार्यालय में काम करने लगी।

"हैलो, विद्या गुड मॉर्निंग।" ये डॉ.चेतन, कार्यक्रम निर्देशक था।

विद्या ने फीकी मुस्कान से साथ गुड मॉर्निंग कहा।

चेतन : "मैंने सुना, कल रात क्या हुआ तुम्हारे घर पर। कुछ पता चला, कौन था?"

विद्या : "नहीं पुलिस कोशिश कर तो रही है। अभी तक कुछ पता नहीं चला।"

चेतन :"अगर कोई जरूरत हो तो बता देना, मैं पुलिस में जानता हु कुछ लोगों को।"

विद्या यह पर लगभग 3 महीने से थी, चेतन विद्या का एक तरह से दोस्त बन गया था।

विद्या "उसकी कोई जरूरत नहीं है, आरव के दोस्त है, जो अभी के लिए मेरी मदत कर रहे है।"

चेतन सर हा में घुमाकर: " अच्छा ठीक है, आगे के प्रयोजन परसो करेंगे, आज तुम आराम ले लो।"

विद्या : " नहीं सर उसकी कोई जरूरत नहीं है, हम देर नहीं कर सकते वैसे भी, मेरा मन घर पर भी नहीं लगेगा अब।"

चेतन : " ठीक है फिर वैसे खुशी तो मिलती है किसी को जिस चीज की जरूरत हो वो मिल जाए। लोगों का सहारा बनने पर। हम परिपूर्ण नहीं हमारी भी गलतियां है।"

विद्या : " थैंक यू,लेकिन जिस तरह आपने मेरी मदत की, मैने भी अपना सब कुछ खोया था अपना बच्चा, पति लेकिन आपलोगो ने मुझे सहारा दिया है। मैं कभी भी फाउंडेशन को अकेला नहीं छोड़ने वाली।"

_____

कॉलेज मैं बैठे बैठे बोर हो रहा था। सभी लौंड़े मौज मस्ती कर रहे थे।मेरी किसी भी चीज की इच्छा नहीं थी। सबलो गो के नाम तो पता थे, उनके बारे में जानकारी भी थी लेकिन वो अपने नहीं लग रहे थे। ऊपर से विद्या की चिंता मुझे बहुत सता रही थी। उसे सभी परेशानी मेरे कारण थी और मुझे कुछ भी पता नहीं था कि कुछ?। वो इंसान क्या ढूंढने आया था? मेरे घर पर,तो ऐसी कोई चीज नहीं थी।

तभी आदित्य नाम का बंदा ब्रेक में मेरे पास आया।

"क्या हुआ शुभम? कुछ फोन नहीं, मुझसे बात भी नहीं कर रहे, कुछ हुआ है क्या?"

मैं इसको क्या जवाब दु? ये सोचते हुए :"कुछ नहीं यार, घर की चिंता है।"

आदित्य : "घर चिंता तो रहती ही है? वैसे घर पर बताया तुमने?" आखिर में एकदम धीरे से बोला।

मैं आदित्य को ना समझ पाया : "क्या?"

आदित्य आंखों से इशारा कर रहा था, फिर उसने थोड़ा गंभीर हो कर, : "इस बार ये हादसे से निपट गया, तुम्हे किसी बड़े की मदत लेनी चाहिए, वो लोग तुम्हे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे।"

मैं सवालिया नजरों से:"कौन लोग?"

आदित्य : "गौतम, और कोण।"

आदित्य ने इतना कहा तभी पीछे से आवाज आई।

"मेरी बात हो रही है?" तो ये गौतम था, आदित्य के पीछे एक बड़ा सा यानी बड़े चर्बी वाला लड़का खड़ा था। मुझे क्या मामला था ये तो नहीं समझ रहा था, लेकिन गौतम के बारे में जिस तरह आदित्य बात कर रहा था, कुछ तो किया था उसने?

"तो क्या शुभम, आज श्याम को आ रहे हो ना?"
गौतम ने कहा।

आदित्य: "वो क्यों आयेगा?"

गौतम आंखे बड़ी करते हुए :"शायद आदित्य तुम जानते नहीं?मैं तो थोड़ी बहुत रैगिंग करके छोड़ देता, लेकिन ये मामला कॉलेज के बाहर जा चुका है, अगर शुभम ने पैसे नहीं दिए तो विजू दादा क्या हाल करेंगे ये तो जानते ही हो।"

विजू दादा नाम सुनते ही याद आया कि शुभम को किसी बारे में सता रहा था उससे ज्यादा कुछ याद नहीं आ रहा था,क्यों पता नहीं, याद तो आ जाना चाहिए था।

आदित्य : "शुभम कोई पैसे नहीं देगा, अगर तुमने शुभम को धमकाने की कोशिश की तो हम मुख्याध्यापक सर को बता देंगे।"

गौतम आदित्य की बात पर मुस्कुराया :"किसे भी बताओ, तुम्हे लगता है हम डर जाएंगे विजू भाई है वो।"

तभी मेरी नजर मेरी बहन पर गई, वो दूर से देख रही थी। आस पास सभी की नजरे हमारी और थी। शायद गौतम ने बहुत ज्यादा ही शुभम को सताया था, लेकिन स्टूडेंट्स को पीटना तो मेरे उसूलों के खिलाफ था।

"ओके, आ जाऊंगा श्याम को, वैसे विजू भाई कहा मिलेंगे?"

मेरी बात पर आदित्य थोड़ा नाराज हुआ,
गौतम इस बात पर चढ़ने लगा :"तू श्याम को हर बार की तरह मिल, ज्यादा सवाल मत पूछ तू उसी लायक है।"

गौतम के जाने के बाद। एक लड़की हमारी तरफ भाग कर आ गई। वो स्वाति थी, शुभम की दूसरी दोस्त, जो हमसे सीनियर थी। उसके साथ एक लड़का और दो लड़किया भी थी।

"क्या कह रहा था वो?"

आदित्य: "कुछ नहीं, वही रोज का शुभम का सताना,बहुत दिनों बाद जो आया है ना,अभी हमे क्लास में जाना है बादमें बात करते है।"

आदित्य ने बात टालते हुए मुझे डांटते हुए दूसरी तरफ ले जाने लगा।

आदित्य : "तुम सच में नहीं जा रहे हो ना।"

मैंने एक बार आदित्य की तरफ देखा:"बिल्कुल नहीं।"

आदित्य ने मेरी बात लंबी सांस ली।

आदित्य : " मुझे लगा था, तुम फिर से उसी तरफ चले जाओगे, लेकिन मुझे तुमपर विश्वास है मुझसे कभी झूठ नहीं कहोगे।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया और कुछ नहीं बोला बात को समझने की कोशिश करने लगा।
याद करने की कोशिश करने लगा।

आदित्य: "अभी सब कुछ नियंत्रण में है ना।"

मैं ना समझते हुए: " क्या?"

आदित्य:
"तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो? ड्रग्स की बात कर रहा हु? वरना श्वेता के सामने तुमसे बात नहीं कर लेता। तुम उसकी इच्छा तो नहीं हो रही ना अब?"


लाइक वगैरह कर दो। अगली अपडेट परसो ही आ रही है संडे को तो इसलिए ये थोड़ा छोटा था।
 
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