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Thriller 10 JUNE KI RAAT ( suspence, triller, mystry)

gauravrani

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पनौती ऑटो से नीचे उतरा ही था कि अचानक शुरू हुई बूंदाबांदी से उसका मन वितृष्णा से भर उठा। उसने एक बार सिर उठाकर आसमान में मंडरा रहे काले-घने बादलों की ओर देखा, फिर जल्दी-जल्दी कदम आगे बढ़ाने लगा। वो नहीं चाहता था कि संजना के साथ मुलाकात होने से पहले उसके कपड़े खराब होते, जो खासतौर से उसने संजना की निगाहों में आने की खातिर ही पहना था। वरना तो हर वक्त वो हाफ पैंट और ढीली-ढाली टी-शर्ट में ही भटकता रहता था। यहां तक कि जीआईपी और साउथ सिटी जैसे बड़े शॉपिंग मॉल्स में भी वो अपने सदाबहार
 

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परिधान में ही पहुंच जाता था। पैरों में जूते तक डालना उसके लिए भारी मशक्कत वाला काम था इसलिए स्लीपर्स में कंफर्ट महसूस करता था। बावजूद इसके अपनी काहीलियत को दरकिनार करके सूट-बूट में सजा वो जैंटलमैन बना हुआ था, तो इसकी अहम वजह थी संजना कुलकर्णी, जो उसकी मां की फरीदाबाद में रहने वाली एक सहेली की बेटी थी। संजना उसकी मां को इतना ज्यादा पसंद थी कि वो उसे अपने निकम्मे-निठल्ले बेटे की शरीक-ए-हयात बनाने का सपना देख रही थी। इसलिए ऑफिस जाते वक्त उसने अपने ‘जिगर के टुकड़े’ को खास हिदायत दी थी, कि वो संजना से मिलने ‘इंसान’ बनकर जाए। उसका पूरा नाम विशाल सक्सेना था, छह फीट से उभरते कद वाला वो खूब हट्टा-कट्टा कड़ियल नौजवान था। जो इत्तेफाक से कभी सेव कर लेता था तो सहज ही किसी बड़ी कम्पनी का इग्जेक्यटिव दिखाई देने लगता था। मगर ऐसा सिर्फ होली-दिवाली ही होता था, वरना तो साल के तीन सौ पैंसठ दिन वो अपने सदाबहार परिधान और अलमस्त रूप में ही नजर आता था। बनाने वाले ने उसके सभी कल-पुर्जे यथा स्थान फिट किये थे। लंबा चेहरा, सुतवां नाक, बड़ी-बड़ी आंखें और कान के नीचे तक पहुंचती कलमें! कुल मिलाकर वो बड़ा ही हैंडसम युवक
 

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था जो किसी खूबसूरत युवती के सपनों का शहजादा हो सकता था। या सोलह सोमवार का व्रत रखने वाली किसी युवती को उसमें अपने भावी पति की छवि दिखाई दे सकती थी। मगर क्या मजाल जो उसने ऐसी बातों की कभी परवाह की हो। उसका नाम भले ही विशाल सक्सेना था मगर दोस्तों में वो ‘पनौती’ के नाम से खूब जाना-पहचाना जाता था। कई दोस्त ऐसे भी थे जिन्होंने उसका असली नाम कभी सुना ही नहीं था, या फिर सुनकर भूल गये थे। उसका नाम विशाल से पनौती में कब तब्दील हो गया, इसका पता तो खुद विशाल सक्सेना को भी नहीं था। अलबत्ता वो नाम उसके व्यक्तित्व से पूरी तरह मैच करता था। वजह? जहां भी उसके कदम पड़ते, बने बनाये काम बिगड़ जाते। जिस काम में हाथ डालता मुसीबतें गले पड़ जातीं। किसी दोस्त की गर्लफ्रैंड से मिलता तो अगले ही दिन वो उसकी एक्स गर्लफ्रैंड बन जाती। किसी शादीशुदा दोस्त के घर में आना-जाना करता तो मियां-बीवी में लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते। किसी की रूठकर मायके गई बीवी को मनाने पहुंचता तो नौबत तलाक तक जा पहुंचती थी।
 

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उसकी मित्र-मंडली में दो ऐसे युवक भी शुमार थे जिनकी नौजवान बीवियां भरी जवानी में खुदा को प्यारी हो गई थीं! जिसका पूरा-पूरा श्रेय वे दोनों पनौती को ही देते थे। मगर मजाल क्या जो उसके चेहरे पर शिकन तक दिखाई दे जाय। लिहाजा मस्तमौला इंसान था। पनौती की वजह से मुसीबत में जा फंसने वाले उसके मित्रों की संख्या भी कोई कम नहीं थी, मगर उनमें से एक भी ऐसा नहीं था, जिसने चोट खाने के बाद उससे नाता तोड़ लिया हो। इस इकलौते मामले में बेशक उसे खुशनसीब माना जा सकता था। क्योंकि दोस्त उसने एकदम पक्के पाये थे - जो हर हाल में - गर्लफ्रैंड को खोकर भी उसके साथ खड़े रहते थे, बीवी तो खैर किसी गिनती में आती ही नहीं थी। ऐसा ही किरदार था विशाल सक्सेना उर्फ पनौती का! बाप बचपन में ही उसे मां के हवाले करके दुनिया से चलता बना था। तब वो दो या तीन साल का रहा होगा। दर-दर की ठोकरें खाते मां-बेटे की जिंदगी में उस वक्त ठहराव आया, जब मां अपनी मेहनत और लगन के बूते पर एक सरकारी स्कूल की टीचर बन गयी। एक बार मुफलिसी का दौर खत्म हुआ तो उसने बड़ी लगन से अपने
 

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इकलौते-लाड़ले बेटे का पालन-पोषण शुरू किया। जो कि आज पच्चीस साल बाद भी मुतवातर जारी था। मां आज भी अपने बेटे के पालन-पोषण में उतनी ही लगन से जुटी हुई थी। ऐसे में ये कम हैरानी की बात नहीं थी कि पनौती ने ना सिर्फ क्रिमिनॉलजी ऐंड पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन में अस्सी फीसदी मार्क्स के साथ पोस्टग्रेज्युएशन किया था बल्कि फरीदाबाद में जिला स्तर पर बॉक्सिंग और निशानेबाजी की दो चैम्पियनशिप भी जीत चुका था। उसके पास ताकत भी थी और अक्ल भी! बस उसे खर्च कर पाना पनौती के वश से बाहर का काम था। सूरत से पढ़ा-लिखा, अक्लमंद शख्स दिखाई देना तो दूर की बात थी, उल्टा उसकी हरकतों और तौर-तरीकों से सहज ही ये पता लग जाता था कि उससे बड़ा अहमक इस दुनिया में ढूंढने से भी नहीं मिलने वाला था। इसलिए उसकी गिनती आज भी बेवकूफों की ही श्रेणी में होती थी। बहरहाल कपड़ों के साथ-साथ आज उसने अपने हुलिए में कुछ और जरूरी बदलाव किये थे, जिनमें से एक अहम काम बालों पर कैंची चलवाना भी था। उसके खिचड़ीनुमा बाल काफी लंबे हो चुके थे जिन्हें कई महीनों बाद आज उसने नाई के पास जाकर बड़े ही स्टाइलिश ढंग से
 

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कटवाया था। क्योंकि मां ने कहा था कि संजना से मिलने ‘इंसान’ बनकर जाना! वो मां को नाराज नहीं करना चाहता था। बहरहाल मौजूदा हुलिया और परिधान उसपर खूब जंच रहा था। वो सचमुच का जैंटलमैन लग रहा था। संजना कुलकर्णी से उसकी मुलाकात फरीदाबाद के क्राउन इंटीरियर माल में लोवर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित ‘हल्दीराम’ रेस्टोरेंट में पांच बजे होने वाली थी। जहन में वक्त का ख्याल आते ही उसने जेब से मोबाइल निकालकर टाईम देखने की कोशिश की तो ये देखकर हैरान रह गया कि उसका मोबाइल ऑफ़ पड़ा था। वह झुंझला उठा। मॉल के गेट पर रूककर उसने मोबाइल ऑन किया तो पता चला कि साढ़े पांच तो हो भी चुके थे। अपनी लेट-लतीफी के लिए मोबाईल को जी भर कर कोसते हुए आखिरकार उसने रेस्टोरेंट के भीतर कदम रखा। संजना को आखिरी बार उसने एक साल पहले देखा था, अलबत्ता उसे पूरी उम्मीद थी कि वो उसे देखते ही पहचान लेगा। उसने एक सरसरी निगाह वहां मौजूद लोगों पर डाली, संजना वहां नहीं थी। वो डाईनिंग हॉल के आखिरी सिरे तक हो आया मगर संजना उसे नहीं दिखाई दी। तब वो
 

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बिलिंग काउंटर से तनिक पहले दाईं ओर की कतार में एक चेयर पर जाकर बैठ गया। उस दौरान उसकी नजरें लगातार गेट पर टिकी रहीं। आधा घंटा गुजर गया! संजना कुलकर्णी के कदम वहां नहीं पड़े। अब उसका धैर्य जवाब देने लगा। एक बार भी उसने ये सोचने की जहमत नहीं उठाई कि वो खुद आधा घंटा लेट वहां पहुंचा था। ऊपर से उसका मोबाइल जाने कब से ऑफ़ पड़ा था। ऐसे में संजना वहां आकर चली गई हो सकती थी। इतना बड़ा अहमक था पनौती! संजना का नंबर उसके मोबाइल में सेव था, वो चाहता तो कॉल करके पता कर सकता था कि वो आकर चली गई थी, अभी रास्ते में थी, या फिर उसने आना ही नहीं था। इतनी सी बात भी उसे नहीं सूझी थी। अलबत्ता इंतजार करना उसे बराबर सूझा था, तभी तो वहां से उठकर चल देने की बजाय, रेस्टोरेंट के गेट को मुतवातर वाच कर रहा था। आधा घंटा और गुजर गया। वो अपनी जगह से उठकर बिलिंग काउंटर पर पहुंचा जहां उसने खाने की एक थाली आर्डर की, फिर डेबिट कार्ड
 

The Immortal

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Hello Everyone :hello:
We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Xforum Staff.

 
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