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Thriller 100 - Encounter !!!! Journey Of An Innocent Girl (Completed)

nain11ster

Prime
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अध्याय 10 :: भाग:- 1


मंगलवार को श्रावण मेला भी समाप्त हो गया. नरेंद्र जी इस बार गांव के निशानची बने और उपविजेता रूपा भाभी. फिर भी फाइनल के दिन सभी भाभी ने मिलकर जो ही हूटिंग की थी, नरेंद्र के कानो से लगभग खून निकाल चुकी थी. फिर भी किसी तरह वो ये प्रतियोगिता जितने मे कामयाब रहे.


मेले का आकर्षण ऑर्केस्ट्रा इस बार भी धांसू ही रहा, उसपर से रसियन बाला ने उसपर क्या चार चांद लगाया था, हर बूढ़ा झूम-झूम कर नाच रहा था.


सावन पूर्णिमा, सावन का आखरी दिन. राखी के त्योहार वाला दिन. सुबह उठकर मै सबसे पहले साक्षी और केशव (मेरे बड़े भैया महेश के दोनो बच्चे) के कमरे में ही गई. दोनो गहरी नींद में थे. मै उनके सिरहाने बैठकर दोनो के सर पर हाथ फेरने लगी.


जैसे ही मैंने साक्षी के सर पर हाथ फेरा, उसने अपनी आंखे खोल ली, और मुझे देखकर नकियाना शुरू कर दी... "अरे, अरे, अरे.. क्या हो गया मेरी नन्ही लाडली को, ऐसे सुबह सुबह रोना"..


साक्षी:- दीदी सोने दो ना..


मै:- हां तो मै कौन सा तुझे जगाने आयी हूं, मै तो बस देखने आयी थी...


साक्षी:- लेकिन मै तो जाग गई ना, अब छोड़ो उसे. दीदी आज सहर ले चलो ना घूमने..


मै:- इतने दिन मेला घूमी सो नहीं हुआ, कुछ दिन रुक जा फिर चलेंगे.. वैसे भी आज तो राखी का त्योहार है ना, तू केशव, कुणाल और किशोर को राखी नहीं बांधेगी…


साक्षी:- सब बेईमान है.. आपको तो ढेर सारे गिफ्ट मिलेंगे, पैसा मिलेगा, मुझे क्या मिलेगा...


मै:- पागल तेरे लिए भी ढेर सारा गिफ्ट ली हूं, और मेरा जो-जो गिफ्ट तुझे पसंद आए ले लेना.. अब खुश..


साक्षी चहकती हुई मुझसे लिपटकर... "मै तो आपका सारा सामान ले लूंगी"..


मै:- हां ठीक है तू ले लेना.. चल पहले मै तुझे तैयार कर देती हूं.. फिर मै तैयार हो जाऊंगी... वैसे भी तेरे लिए बहुत सारी चीज़ें मंगवाई है, तू देखेगी नहीं..


साक्षी:- सच्ची मे दीदी.. चलो ना दिखाओ मुझे..


मै, साक्षी की उत्सुकता समझ सकती थी. उसे मै अपने साथ लेकर अपने कमरे में ले आयी. पहले तो स्नान करवाया, फिर खुद ही उसे कपड़े पहनाने लगी. मै चाहती थी आज बुआ और भतीजी एक जैसे दिखे, इसलिए मै बिल्कुल एक जैसा नया ड्रेस लेकर आयी थी..


लाइट ग्रीन कलर का प्रिंटेड गाउन, जिसका नीचे का घेरा काफी लंबा था और दिखने में काफी खूबसूरत. जब मै साक्षी को ये नया ड्रेस पहना रही थी, तब उसके चेहरे की खुशी देखते बनती थी. कपड़े पहनाने के बाद फिर मैंने उसके बाल बनाए. उसके दोनो हाथ में लाल रंग की चूड़ियां डाली. हल्का मेकअप किया. कान, नाक और गले में जेवर पहनाकर जब मै उसे एक झलक ऊपर से नीचे देखी, तो बस देखती रह गई.. बड़ी प्यारी लग रही थी...


तैयार करने के बाद मै उसकी एक फोटो लेकर बड़ी भाभी के पास ले जाने के लिए जैसे ही अपने कमरे का दरवाजा खोला, उधर से मुख्य द्वार का भी दरवाजा खुल गया और सामने मेरे बड़े मामा, साथ में रूपाली दीदी और उनके साथ मेरे दोनो ममेरे भाई अमित और सुमित थे..


तीनों ही मुझसे बड़े थे, जिसमे से रूपाली दीदी कि शादी कुछ दिन पहले ही तय हुई थी, उससे ज्यादा पता नहीं और दोनो ममेरे भाई की शादी हो चुकी थी.. लेकिन दोनो भाभी अपने बच्चो के साथ मायके गई थी, इसलिए उनका आना नहीं हो पाया था.. हम सबने लगभग एक ही वक्त पर दरवाजा खोला था…


उन लोगो के आखों के सामने पूर्ण रूप से तैयार साक्षी थी, जिसे देखकर रूपाली दीदी भागी-भागी उसके पास आयी और साक्षी को अपने गोद में उठाकर... "अरे बाप रे, ये मेनका की लाडली इतनी बन संवर कर कहां निकली है"


साक्षी:- रूपाली बुआ मै आपसे बात नहीं करूंगी. आपने मुझे ठगा था..


रूपाली अपनी आखें बड़ी करती... "मैंने तुझे कब ठग लिया.. या तू अपने मन से सब कह रही है"…


इधर जबतक घर के सभी सदस्य बाहर निकालकर आपस में सब मेल मिलाप में लगे हुए थे. साक्षी, रूपाली की बातो का जवाब देती... "दीदी, रूपाली बुआ ने फोन पर कहा था ना कि वो होली में आएगी और हम दोनों के साथ पिकनिक पर भी जाएंगी"…


रूपाली:- अरे यार मेनका ये सोभा भाभी ने क्या खाकर इसे पैदा किया, कुछ भी भूलती नहीं है क्या ये?


मै:- दीदी, साक्षी के दिमाग का सिस्टम पुरा अपग्रेडेड है.. कुछ भी इससे आप प्रोमिस कीजिए, तुरंत अपने दिमाग में डाउनलोड करके सेव कर लेती है.. बड़ी खतरनाक चीज है...


हम दोनों जबतक बात कर रहे थे, तबतक हर किसी का ध्यान साक्षी पर जा चुका था और हर कोई उसे अपने गोद में लेकर प्यार कर रहा था. मै और रूपाली दीदी मेरे कमरे में आ गए. लगभग साल भर बाद दोनो बहने मिल रही थी, हालांकि रूपा भाभी वाले कांड मे रूपाली दीदी आयी तो थी, लेकिन फुरसत से बात नहीं हो पाई थी...


मै:- क्या बात है रूपाली दीदी आप तो आजकल फोन करना भी भुल गई..


रूपाली:- बदमाश तो तू ही कहां फोन कर लेती थी..


मै:- मुंह मत खुलवाओ मेरा, एक दो दिन छोड़कर सबसे बातें हो ही जाती है, बस आपसे ही बात नहीं हो पाती.. मुझे भी पता है मिस रूपाली आजकल कहां फोन से चिपकी रहती है...


मेरी बातो पर रूपाली दीदी केवल हंस दी और बात बदलती हुई कहने लगी... "जल्दी तैयार होकर बाहर आ जा, सबको राखी बांधकर हम शॉपिंग करने चलेंगे"..


मै:- हमदोनो अकेले, या सपरिवार..


रूपाली दीदी समझ गई मै किस ओर इशारा कर रही थी, मेरे सर पर एक हाथ मारती... "तू सुबह-सुबह मुझे ही छेड़ रही है. जो बोला वो जल्दी कर"..


रूपाली दीदी को देखकर मै हंसती हुई बाथरूम में घुस गई. फटाफट नहाकर, मै भी बाथरूम से निकली और तैयार होने लगी. मै और साक्षी लगभग एक जैसे तैयार हुए थे. मै जैसे ही बाहर निकली सब लोग मुझे ही देखने लगे...


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साक्षी भागकर मेरे पास खड़ी हो गई और उत्साह से कहने लगी... "आज मै और दीदी सेम-सेम तैयार हुए है." क्या वाकई में मै इतनी सुंदर दिख रही थी कि मां मुझे देखकर काला टिका लगाने पहुंच गई... फिर तो लोगों ने भी ऐसे-ऐसे कमेंट किए की मै सर नीचे करके शर्माए जा रही थी...


रूपाली दीदी तो मानो बिल्कुल मुझसे इंप्रेस ही हो गई. वो मुझे अकेले कमरे में ले जाकर पूछने लगी कि कहीं किसी लड़के के लिए तो मै तैयार नहीं हुई. मै भी हंसती हुई कहने लगी, एक नहीं कई लड़को के लिए तैयार हुई हूं. मै आज अपने भाइयों के लिए तैयार हुई हूं. हम दोनों ही हसने लगे...


पहले मैंने साक्षी से रखी बंधवाया, फिर खुद सबको राखी बांधी, इतने में रूपाली दीदी भी तैयार होकर पहुंच गई. उफ्फ क्या लग रही थी. मै तो भाइयों के लिए तैयार हुई थी लेकिन उनका तैयार होना सारी कहानी बयां कर रही थी.


स्लीवलेस रेड कलर की गाउन, जो पेट से लेकर सीने तक ऐसा फिट था कि बदन का हर कर्व दिखा रही थी, ऊपर से कपड़े का वी गला, जो हल्की गहरी थी, जिसमे हल्की क्लीवेज लाइनिंग दिख रही थी. ऊपर से अगर अपना वो लाल रंग का फैंसी दुपट्टा नहीं डालती तो शायद कहीं उन्हे कपड़े ना बदलने पड़ जाते..


लगभग 10 बजे तक हम दोनों घर के सभी सदस्य को राखी बांधकर फुरसत हो गए थे. तभी रूपाली दीदी मुंह बनाती हुई आकर मेरे पास बैठ गई... "मेनका तू अपने खानदान वालों को जल्दी से राखी बांधकर आ ना"…


मै:- लेकिन मै क्यों जाऊं किसी के पास, बस यहां नकुल का ना होना अखर गया, बाकी जिसे राखी बंधवाने है उन्हे खुद ही होश नहीं... आधे घंटे और राह देखूंगी, फिर चल दूंगी आपके साथ शॉपिंग करने..


मै रूपाली दीदी से बात कर ही रही थी कि तीसरे घर के तीनो भैया पहुंच गए. वही बबलू भैया के घर के लोग थे, जिन्होंने मुझे गाड़ी चलाना सिखाया था. बबलू भैया आते ही मुझे देखते हुए कहने लगे.… "तू किसी से डर जाती तो हमारा अभिमान डर जाता, बहुत ही सधा हुआ जवाब दिया है, अब यहां से तुझे कुछ चिंता करने की जरूरत नहीं है, हम सब देख लेंगे"…


मै, बबलू भैया की आरती उतारकर राखी बांधने के बाद... "जिसके इतने सारे चाहने वाले भाई हो, उसे चिंता करने या किसी से डरने की जरूरत है क्या? वैसे भाभी की डिलीवरी कब है"..


बबलू:- अगले ही महीने है..


बाकी के दोनो भाई बबलू भैया से छोटे थे और बाहर रहकर पढ़ाई करते थे. मैंने ही उन्हे फोन करके कहा था राखी तक आ जाने. वो दोनो भी पहुंचे हुए थे. चौथे और पांचवां घर से कोई नहीं आया था अबतक. हालांकि इस बात को सभी नोटिस कर रहे थे कि जबसे मेरे और फैजान के बीच का केस हुआ था, नीलेश और नंदू का परिवार हमसे कटा हुआ था.


खैर मै 10.30 बजे तक इंतजार करने कर बाद... "मै फ्री हो गई रूपाली दीदी, बताओ कहां चलोगी बिजली गिराने"..


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी दबी सी हंसी निकाली और झूठा गुस्सा दिखती हुई मुझे डांटने लगी. रूपाली दीदी नौकतांकीबाज थी तो मै क्या उनसे कम थी. उन्होंने तो यह बात गोल कर दिया कि उन्हें अपने होनेवाले से मिलने सहर जाना है लेकिन वो ये भुल गई की उन्हे मेरे साथ ही जाना था..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


रूपाली:- मेरी प्यारी बहना, चल तुझे आज मै कान कि बालियां दिलाऊंगी. बस थोड़ा संभल ले..


मै रूपाली दीदी के गले लगती... "वाउ दीदी, सच मे मुझे दिलाने वाली हो या फेक रही हो"..


रूपाली दीदी:- पहले से प्लान है ये तो..


मै:- ओह हो तो अमित और सुमित (मेरे ममेरे भाई के नाम) भैया से मिलने वाला गिफ्ट अपने खाते में डाल रही हो. दीदी बहुत चालू चीज हो आप..


रूपाली:- तो तू कौन सी सीधी है मेनका. ब्लैकमेलर, ठीक है तेरे होने वाले जीजाजी से तुझे एक अच्छी सी ड्रेस दिलवा दूंगी.. अब तो हंस दे बहन..


हम दोनों ही हसने लगे. सुबह साक्षी भी सहर घूमाने बोली थी, सोची केशव और साक्षी भी इसी बहाने घूमकर ले आऊंगी. जाने से पहले मै महेश भैया और मनीष भैया से मिल ली, ताकि रूपाली दीदी को कुछ देना हो तो, मै वहां से खरीद लूं. जब मै उनसे मिलने गई तो सोभा भाभी ने कहा, छोटे छोटे गिफ्ट पर पैसे खर्च ना करे, बल्कि दोनो भाई पैसे मिलाकर कोई जेवर दे दे तो काम भी आ जाएगा...


बड़ी भाभी का प्रस्ताव सबको अच्छा लगा. मनीष भैया ने मां से ये बात कही तो मां ने भी हामी भरते हुए उनके लिए कोई जेवर लेने ही बोल दी. पापा ने मुझे अपने ही खाते से दिलाने देने बोल दी, बाद में वो मुझे वापस कर देते. कुछ देर की मीटिंग के बाद मै और रूपाली दीदी, साक्षी और केशव के साथ सहर के ओर चल दिए.


मै जब गांव के बाजार से कुछ दूर आगे पहुंची, तब मुझे कुछ संका सा हुआ और मैंने कार को पेट्रोल पंप के बगल से मंदिर वाले रास्ते पर ले लिया. मेरा शक सही निकला. 2 कार निश्चित दूरी बनाकर हमारे पीछे आ रही थी. अगला मोड़ काटकर मै कार कोने में लगाकर पीछा कर रही कार के आने का इंतजार करने लगी..

 

nain11ster

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अध्याय 10 :: भाग:- 2





जैसे ही गाड़ी मोड़ पर पहुंची, मै हाथ देकर स्कॉर्पियो को रुकवाई... जैसे ही आगे से एक हथियारबंद आदमी उतरा... "क्यों कपिल भईया, राजवीर अंकल ने कहा है मेरे पीछे रहने"…


कपिल, राजवीर अंकल का मैनेजर था, जो हर वक्त उनके साथ रहता था. मै रेयर व्यू से जब 2 काली स्कॉर्पियो को दूर से पीछा करते देखी, तभी समझ गई कि ये राजवीर अंकल के लोग है. कपिल हंसते हुए... "बाबूजी बोले थे कि मेरी ये बिटिया बहुत होशियार है, उसे प्रोटेक्शन कि जरूरत तो नहीं, लेकिन माहौल को अनदेखा भी नहीं कर सकते"..


मै:- इसलिए तो मै भी चारो ओर नजर डालकर सड़क पर चल रही थी..


कपिल:- देखकर अच्छा लगा कि किसी से जब दुश्मनी चल रही होती है तो तुम चौकन्ना रहती हो, लेकिन आगे जाकर किसी ने रॉड ब्लॉक कर दिया तो..


मै:- कपिल भैया एक लाइसेंसी हमेशा इस कार में रहती है.. इतना वक्त तक तो लोगो को रोका ही जा सकता है, जितने वक्त तक मे मदद आ जाए..


कपिल:- क्या बात है मेनका... मै बाबूजी से तुम्हारे ट्रेनिंग की बात करूंगा.. तुम तो लेडी डॉन बनकर यहां के पॉलिटिक्स में हिस्सा लेकर, सबको हिला सकती हो..


मै:- बस भैया ये कुछ ज्यादा ही हो जाएगा.. वैसे आप साथ चल रहे है तो सुकून है... चलिए चला जाए मुझे वापस भी लौटना है..


वहां से मेरी कार किसी काफिले के सामान निकली.. 1 स्कॉर्पियो आगे, एक स्कॉर्पियो पीछे और बीच में मेरी कार. हमलोग सीधा राजवीर अंकल के मॉल ही पहुंचे. मै जैसे ही पहुंची, राजवीर अंकल मुझे अपने साथ लेकर चल दिए. मै साक्षी और केशव को रूपाली दीदी के पास छोड़कर उनके साथ चल दी..


राजवीर अंकल ने पहले तो माफी मांगा कि वो ऐसे वक्त में खुद नहीं आ सके, क्योंकि कुछ मसले सहर मे चल रहे थे, लेकिन उनकी 2 स्कॉर्पियो लगातार गांव के बाजार में खड़ी है, जबतक कि ये मामला सुलझ ना जाए. फिर उन्होंने मुझसे पुरी बात पूछी, और मैंने पूरी कहानी डिटेल मे समझा दिया।


राजवीर अंकल पुरा मामला मुझसे सुनने के बाद तुरंत ही 22 गांव के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति और जिसके फैसले को काटने की हिम्मत उस पूरे इलाके में नहीं थी, महादेव मिश्रा को कॉल लगा दिया. दोनो मे कुछ औपचारिक बात होने के बाद उन्होंने मेरे विषय में बात किया. मामला उनकी जानकारी मे पहले से था और उन्होंने ये भी कहा कि गांव की इस वीर बेटी से वो खुद मिलने आएंगे.. गुरुवार के दिन मंदिर पर ही पंचायत होगी...


राजवीर अंकल ने फिर उन्हे बताया कि समझिए मै अपनी बेटी के लिए वहां आऊंगा. तभी उधर से कुछ उन्होंने कहा जो बात राजवीर अंकल गोल कर गए, लेकिन उनके चेहरे की मुस्कान और बात करते-करते जब उन्होंने अपने मूंछ पर ताऊ दिया, तभी समझ में आ गया कि इनकी कुछ तो खतरनाक प्लांनिंग हुई है जो उन्होंने मुझे बताया नहीं...


राजवीर अंकल मुझे देखकर हंसते हुए कहने लगे... "तुमने गर्व से छाती चौड़ी कर दी"..


मै:- ऐसा क्या कर दिया मैंने..


राजवीर अंकल:- ब्लड टेस्ट करवाने के लिए तुमने ही कहा था ना..


मै:- 20 लड़के को सामने खड़ा करके मुझसे कहता है हिम्मत तो मेरे खून मे है, फिर उसे और क्या कहती..


राजवीर अंकल:- हाहाहाहा... बिल्कुल सही जवाब.. जाओ आराम से मार्केटिंग करो, गुरुवार को मै मंदिर पर ही मिल जाऊंगा...


लगभग आधे घंटे तक हम दोनों के बीच बातचीत चलती रही, लेकिन जब लौटकर मै रूपाली दीदी के पास पहुंची, वो एक कोने में अपने सर पर हाथ रखकर बैठी थी. मै उनके पास पहुंचकर... "क्या हुआ दीदी, आप ऐसे क्यों बैठी हो.. अब तक शॉपिंग शुरू नहीं किए क्या?"


रूपाली दीदी थोड़ी चिढी सी आवाज में... "तुझे मेरे साथ नहीं आना था तो मत आति, लेकिन ऐसे परेशान करने से क्या मिल गया तुझे. तू आ शॉपिंग करके, मै गांव चली जाऊंगी"..


उनकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई. मुझे हंसते देख वो और ज्यादा चिढ़ गई और छमककर वहां से भागने लगी. किसी तरह उनके हाथ-पाऊं पकड़ कर रोकी. वो रुकी लेकिन नाक पर गुस्सा अब भी था. मुझे लग गया कि ये सब करास्तनी साक्षी की है, उसी ने परेशान किया होगा.


मै सोच ही रही थी कि साक्षी ने ऐसा क्या किया होगा, उतने मे ही स्टोर मैनेजर रूपाली दीदी के पास पहुंचा और बड़े ही कड़क आवाज में कहने लगा... "तुमसे जब बच्चे संभलते नहीं, तो साथ क्यों ले आती हो, पुरा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स डीस्ट्रब है उसकी वजह से. अभी के अभी तुम सब यहां से चले जाओ, नहीं चाहिए ऐसे कस्टमर..."


मै पीछे मुड़ी हुई थी, इसलिए वो स्टोर मैनेजर राजू मुझे नहीं देख पाया और रूपाली दीदी से जो जी में आया बकता चला गया... अब मामला समझ में आया कि वो गुस्से से लाल क्यों है.. उसकी बात खत्म होते ही मै पीछे मुड़ गई... मुझे देखते ही... "मैम आप कब आयी"..


मै:- राजू भैया, आप क्या हर लड़की से ऐसे ही बात करते हैं..


राजू:- नहीं मैम वो बच्चे..


मै एक दम से चिल्लाती हुई पूछी... "जो सवाल किया है आप उसका जवाब दीजिए"..


मेरा गुस्सा देखकर रूपाली दीदी का गुस्सा हवा हो गया... वो मेरा कांधा पकड़कर, मुझे खींचती... "छोड़ जाने दे मेनका, ये बड़े दुकान वाले हैं.. हम कहीं और चलते है"..


मै:- कहीं और क्यों चलना है.. स्टोर है ये या गांव का मछट्टा.. राजू भैया ऐसे आप कस्टमर से बात करते हैं..


राजू:- देखो मुझे यहां हर तरह के कस्टमर देखने पड़ते है, बेहतर होगा मेरे काम के बीच में ना आओ...


इससे पहले कि मै उसे कुछ बोलती, उसके कनपटी के नीचे एक जोरदार थप्पड़ पड़ा... "साला गांव में बेरोजगार पड़ा हुए था, बाबूजी ने तुझे रोजगार दिया और साला तू उन्हीं के धंधे में सेंध लगा रहा है... भाग जा अभी यहां से"..


ये कपिल था जो हमे शुरू से देख रहा था. जैसे ही कपिल ने उसे भगाया, मै रोकती हुई... "नहीं कपिल भईया, नौकरी से मत निकालो, सब आपस के ही लोग हैं. इनके परिवार को परेशानी होगी, तो अंकल को भी परेशानी होगी. इन्हे गोदाम वाले काम मे लगवा दीजिए और स्टोर मैनेजर किसी बेशर्म को बाना दीजिए, जो गली सुनने के बाद भी मुस्कुराकर कहे, सर आपकी परेशानी हम समझते है और उसका निदान अवश्य किया जाएगा"..


रूपाली दीदी के ओर देखकर मै फिर से उनसे माफी मांगी और उनसे कहने लगी, मुझे पता नहीं था, यहां के स्टाफ ने बदतमीजी की है, वरना उसकी क्लास तो मै यूं लगा सकती हूं. रूपाली दीदी मेरी बात और हरकतों से हंस दी. फिर हम दोनो बहने कॉफी पीती हुई इसी विषय पर बात करने लगे कि यह हंगामा कौन सा है जिसके चलते उसके पिताजी और भाइयों को यहां आना पर गया, और इस शॉपिंग मॉल की क्या कहानी है..


मै उन्हे विस्तार से सब समझाती रही और उधर कपिल, साक्षी और केशव को शॉपिंग करवा रहा था. 10 मिनट के छोटे से क्लैरिफिकेशन के बाद उनसे सॉरी बोलती हुई कहने लगी की मेरे वजह से आप जीजू को तो भुल ही गई. हालांकि रूपाली दीदी मना करती रही की अब रहने देते है फिर कभी मिल लेंगे, लेकिन मै ही जिद पकड़कर बैठ गई नहीं मुझे मिलना है...


मन तो मिलने का रूपाली दीदी का भी था, इसलिए थोड़ी सी जबरदस्ती के बाद दीदी ने जीजू को यहीं शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में ही बुलवा लिया. देखा सुनी के बाद ये पहली छुपके मुलाकात थी. वैसे इनकी जगह कोई और होता तो मिलने मे काफी रिस्क था, लेकिन यहां ना तो कोई रूपाली दीदी को पहचानता था और ना ही होने वाले जीजू नितेश को.


वैसे तो उनका पूरा परिवार इसी सहर मे रहता है लेकिन नितेश की पढ़ाई अपने ननिहाल में हुई, इसलिए यहां ज्यादा लोग पहचानते नहीं है. हमारे साथ तकरीबन आधे घंटे समय बिताने के बाद वो रूपाली दीदी को आंखो के इशारे से अकेले में आने के लिए कहने लगे...


मुझे समझते देर न लगी कि इन होने वाले जोड़े के बीच, मै हड्डी बनी हुई हूं. इसलिए मै केशव और साक्षी के पास चली गई. जाते-जाते कहती गई, मै शॉपिंग करवाने जा रही हूं, जीजू को विदा करके फोन करना. मेरे ख्याल से मेरे वहां से निकलते ही, वो दोनो भी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से निकल गए.


केशव और साक्षी की शॉपिंग खत्म हो चुकी थी, दोनो ही पिज़्ज़ा खिलाने की जिद करने लगे. मै उन दोनों को लेकर डोमिनोज पहुंच गई, और जाते-जाते रूपाली दीदी को एसएमएस भी करती चली..


शॉपिंग हो गई थी, पिज़्ज़ा भी हमने खा लिया. मन नहीं लग रहा था तो अपने सहर वाले मकान में भी पहुंच गए. काम लगभग फिनिश होने पर थे, और ना चाहते हुए भी हमे मनीष भैया और रूपा भाभी का छेड़ छाड़ देखने को मिल रही थी, जिसमे केशव ने खलल डाल दिया.


बेचारे भैया और भाभी.. जैसे ही उन्हे पता चला हम यहां आए हैं, वो दोनो हड़बड़ा गए. मनीष भैया इधर-उधर देखते हुए, मुझे पूरे घर के बारे में बता रहे थे. कुछ देर घर देखने के बाद, मै भी उनको छोड़कर वहां से निकल गई. करने दो भाई रोमांस, बिना उसके तो वैसे भी जिंदगी में कोई रोमांच नहीं.. 11.30 बजे सहर पहुंची थी, रूपाली दीदी को 12.30 बजे छोड़ा था, और 4 बजे तक इनका कोई पता नहीं.


झल्ली को दिमाग भी नहीं की घर के लोग मेरे ही प्राण निकाल लेंगे. मै भी केशव और साक्षी को लेकर कुछ देर और घूमती रही. तकरीबन 4.30 बजे रूपाली दीदी का कॉल आया और वो मुझे किसी पते पर पहुंचने के लिए कही. मैंने भी उनको सुना दिया कि मै यहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ नहीं जो कहीं भी बुला रही, चुपचाप कोई आसान पता बाता दो.


तभी नितेश की आवाज उधर से आयी और मै उनके बताए रास्ते पर चलना शुरू कर दी. ये भी ना, मरवा ही देगी. जिस रास्ता वो आने के लिए कह रहे थे, वो हमारे सहर वाले घर के कॉलोनी से होकर जाता था. किसी तरह हिम्मत करके मै उस रास्ते से चली तो गई, लेकिन अब तो रात में ही पता चलता की मनीष भैया या रूपा भाभी ने कार को देखा या नहीं..


मै बताए पते पर पहुंची. मंदिर के पास ही रूपाली दीदी और नितेश खड़े थे. मै एक झलक रूपाली दीदी को देखी और मेरी आखें बड़ी हो गई. मैंने घूमाकर कार उनके पास लगाई और आगे का दरवाजा खोल दिया. नितेश आंखें बड़ी किए मेरे किनारे वाले विंडो पर पहुंचकर.… "आप कार से आयी हो"..


मै:- आप कार को देखकर सदमे मे है या मुझे ड्राइविंग सीट पर देखकर...


नितेश:- आपको ड्राइविंग सीट पर देखकर. जिस उम्र में लाइसेंस नहीं मिलती, आप कार चला रही है. ऊपर से पूरी जिंदगी गांव में ही रही..


मै:- सोच बदलीए होने वाले जीजू, गांव की लड़कियां आज कल ट्रैक्टर चलाकर खेती भी करने लगी है, आप तो कार में देखकर हैरान हो गए. केवल सहर की लड़कियां ही कार चलाती अच्छी दिखती है क्या?


नितेश:- हा हा हा हा.. इंट्रेस्टिंग.. नहीं मेरे कहने का वो मतलब नहीं था.. आत्मनिर्भर होना कोई गलत बात नहीं.. ठीक है आप लोग निकलो. रूपाली घर पहुंचकर कॉल कर लेना...


नितेश से विदा लेकर मै वहां से निकल गई. रास्ते से मैंने कपिल भईया को कॉल लगाकर बता दिया कि मै अपने नए मकान से निकल रही हूं. उन्होंने भी जवाब में कहा कि वो आउटर रॉड पर ही है. कार फिर चल दी रफ्तार मे और आगे बढ़ते ही … "तो आप दोनो के बीच चक्कर क्या है, और कबसे आप लड़के को जानती है"…


रूपाली दीदी... "देखासुनी के बाद ही तो मै जानुंगी, पता नहीं तू क्या पूछ रही है. यदि मेरे चेंज ड्रेस को देखकर ऐसा कह रही है, तो तुम्हारी सोच बहुत निम्न स्तर की है मेनका, बिल्कुल गांव वाली"..


मै:- मैंने तो बस ऐसे ही छेड़ा था, लेकिन आपका गुस्सा होना मेरे अंदर शक पैदा कर रहा है..


रूपाली:- तू कहना क्या चाह रही है वो साफ-साफ बता दे..


मै:- वहां से मेरा बैग निकलो और लिपस्टिक लगा लो.. और सॉरी जो मैंने आपको टोक दिया. मुझे नहीं पता था मेरी बहन इतनी इरिटेट हो जाएगी... गलती मेरी है जो मै किसी के भी लाइफ में घुस जाती हूं...


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी बिल्कुल ख़ामोश हो गई. उन्होंने तुरंत ही अपना लिपस्टिक ठीक किया और मुझसे बात करने लगी. वो तरह-तरह की सफाई मुझसे देती रही और मैंने बस इतना ही कहा कि आप सही कह रही ऐसा ही हुआ है... लेकिन उन्हें भी पता था कि मै उनकी बातो पर रत्ती भर भी यकीन नहीं कर रही.


फिर मैंने कार एक चूड़ी के शॉप पर रोक दी और रूपाली दीदी को हाथ की चूड़ियां बदल लेने कहने लगी, क्योंकि उनके कांच की लाल चूड़ियां कुछ ज्यादा ही कम हो चुकी थी... एक बार फिर वो खुद मे शर्मिंदा सी मेहसूस करने लगी. थोड़ा ढूंढने के बाद ठीक वैसी ही चूड़ियां भी मिल गई.


रूपाली दीदी कुछ बोलने को हुई, लेकिन मैंने उन्हें इशारे मे समझाया की साथ मे साक्षी और केशव बैठे है. पूरे रास्ते हम दोनों के बीच लगभग खामोशी ही रही. जैसे ही मै घर पहुंची, शॉपिंग बैग निकालकर सबके लिए लाए सामान को दिखाने लगी.


मैंने अमित और सुमित भैया के लिए घड़ी और वॉलेट ली थी. दोनो देखकर काफी खुश हो गए. साथ मे मैंने दोनो की बीवी, यानी दोनो भाभियों के लिए मेकअप किट खरीदी थी वो दे दी.. मेरी मामी मेरे सर पर एक हाथ मारती, मां से शिकायती लहजे में कहने लगी… "ये मेनका फालतू में इतने पैसे उड़ा रही है, कोई रोकने वाला नहीं. अमित और सुमित दोनो इससे इतने बड़े है, फिर भी गिफ्ट लेकर आयी है बताओ"…


मै, मामी के गले लगकर उनके गाल को चूमती... "मामी, गिफ्ट नहीं है, अपने पसंद से आप सब के लिए कुछ ली हूं बस इतना ही. इसमें बड़ा-छोटा देखोगी तो मै आपसे बात नहीं करने वाली"..


उधर से बड़ी भाभी और मां दोनो ने ही मेरा समर्थन कर दिया. तभी मां मुझसे पूछने लगी कि जो काम करने कही थी, वो हुआ की नहीं.. तभी मैंने सबके सामने नेकलेस का एक सेट रखती, रूपाली दीदी को आवाज लगा दी... "रूपाली दीदी, यहां आकर देखो तो जरा ये"..


मै तो घर के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी बात भुल भी चुकी थी, लेकिन वो ऐसे गुमसुम पहुंची जैसे चोरी पकड़ी गई हो और सजा के लिए उन्हे बुलाया जा रहा था. हार देखकर वो पूछने लगी कि किसके लिए लिया गया है. जैसे ही मैंने कहा कि मुझे ये मनीष और महेश भैया के ओर से गिफ्ट मिला है, साक्षी फटाक से वो बॉक्स बंद करती.. "दीदी ये मेरा हुआ"..
 
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259
अध्याय 10 :: भाग:- 3



मै तो घर के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी बात भुल भी चुकी थी, लेकिन वो ऐसे गुमसुम पहुंची जैसे चोरी पकड़ी गई हो और सजा के लिए उन्हे बुलाया जा रहा था. हार देखकर वो पूछने लगी कि किसके लिए लिया गया है. जैसे ही मैंने कहा कि मुझे ये मनीष और महेश भैया के ओर से गिफ्ट मिला है, साक्षी फटाक से वो बॉक्स बंद करती.. "दीदी ये मेरा हुआ"..



उसकी उत्सुकता और हड़बड़ी देखकर हम सबकी हंसी छूट गई... मां उसे अपने गोद में बिठाया... "ए लाडो, ये तो तेरी बुआ का गिफ्ट है ना, चल वापस कर"..


साक्षी:- दादी, दीदी ने सुबह ही कहा था कि मेरा जो भी गिफ्ट होगा वो तुम्हारा. दीदी, दादी को बोलो ना आपने मुझे ऐसा कहा था... मै नहीं दूंगी..


मां:- हां लेकिन ये तेरी दीदी का गिफ्ट नहीं है बल्कि तेरी रूपाली बुआ का गिफ्ट है...


जैसे ही साक्षी ने सुना वो जेवर रूपाली दीदी के लिए लिया गया है, मां के गोद से उतरकर रूपाली दीदी के हाथो मे देने लगी, लेकिन बेचारी का हंसता चेहरा उतर गया था. मुझे पहले से पता था ऐसा होगा, इसलिए उसके लिए आर्टिफिशियल स्टोन कि खूबसूरत ज्वेलरी पहले से ले रखी थी. जैसे ही मैंने वो खोलकर साक्षी को दिखाया वो खुश होती.. "दीदी ये तुम्हारा गिफ्ट है क्या?".. जैसे ही मैंने हां में सर हिलाया वापस से उसकी वैसी ही उत्साह और हड़बड़ी थी. सीधा उस ज्वेलरी को पैक की और अपनी दादी के गोद में बैठकर कहने लगी… "ये किसी की भी हो मै नहीं देने वाली"...


उसकी बात सुनकर हम सब हसने लगे. इधर जबतक मामा और मामी, रूपाली दीदी के लिए लाए जेवर की देख रहे थे. कुछ देर देखने के बाद हैरानी से पूछने लगे, ये सब क्या है?


मां:- भैया मेरी बेटी को देखते हो, अपनी भतीजी के लिए कितना कुछ खरीद कर लाती है. बस आज राखी पर मनीष और महेश रूपाली को कुछ देते तो उनका पैसा लेकर और उसमे अपने कुछ पैसे लगाकर, अपनी भतीजी के लिए ले आयी. रूपाली तुझे पसंद तो आया ना.. तेरी शादी के लिए ली हूं...


रूपाली दीदी मां के गले लगती.… "बुआ लेकिन आपने तो कहा था वो सिल्क और बनारसी साड़ी, और कंगन"..


मां:- हां वो याद है मुझे, तू परेशान ना हो वो तेरे फूफा दे देंगे.. ये मेरे तरफ से. बता भी पसंद आया कि नहीं..


रूपाली दीदी:- बहुत ही ज्यादा पसंद आया.. पसंद कैसे नहीं आता, जेवर खरीदी के मामले में मेनका तो बचपन से ही मास्टर रही है. याद है कैसे जिद पकड़ ली थी उस हार के लिए...


रूपाली दीदी वहीं 4 भर वाले हार की बात कर रही थी जिसे खरीदवाने के लिए मैंने खाना पीना छोड़ दिया था. वो मोमेंट याद करके सब हसने लगे. धीरे-धीरे करके सब जमा होने लगे.. मर्दों की महफ़िल अलग सजी और औरतों की महफिल अलग.


बातचीत में वक्त कैसे बिता, किसी को पता भी नहीं चला. रात को खाना खाने के बाद सब लोगो ने जगह पकड़ लिया. रूपाली दीदी मेरे साथ ही सो रही थी. तकरीबन 8.30 बजे हम दोनों कमरे में पहुंचे... "मेनका मै वो आज दिन के लिए"..


मै:- चोरी जब पकड़ी जाती है तो चिढ़ बढ़ ही जाती है दीदी. आपको धैर्य नहीं खोना चाहिए था, क्योंकि चिल्लाने से रास्ते बंद होते है और मुस्कुराने से रस्ते खुलते है..


रूपाली:- तू मुझसे बहुत छोटी है, और वो सब बात जब तू समझ गई, तो मेरा दिमाग ही काम करना बंद कर दिया. मुझे लगा तू मेरे बारे में गलत सोचने लगी है कहीं, बस यही बात मुझे चिढ़ने पर मजबूर कर गई..


मै:- आप शॉपिंग मॉल में भी चिढी थी... वहां भी मै समझ गई थी कि आपको जीजू को बुलाना था, लेकिन साक्षी और केशव के कारण आपको मॉल वाले ने सुनाया और आपने तय किया कि उन्हें यहां नहीं बुलाएंगी..


रूपाली:- हम्मम ! अब क्या हर बात के लिए गिन-गिन कर बदला लेगी?..


मै:- मेरी कोई बहन नहीं, पर आप भी ऐसे चिल्लाओगे तो अखरना लाजमी है दीदी... आपको जब मैंने देखा तो देखकर ही समझ चुकी थी कि क्या हुआ है, इसका ये मतलब नहीं कि मै आपको गलत सही के तराजू में तौलती रहूं. आप उसी के साथ थी जिसके साथ आप जिंदगी भर रहने वाली है. फिर मुझे क्या गलत सोचना चाहिए. हां लेकिन आपको उस हाल में यदि घर के लोग देख लेते फिर.…


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी अपने दोनो कान पकड़कर मुझसे माफ़ी मांगते हुए कहने लगी... "मुझे माफ़ नहीं करेगी क्या?"..


मै:- एक शर्त पर..


रूपाली दीदी:- क्या?


मै:- आप दोनो के बीच इतना कुछ हो गया मतलब ये पहले प्यार मोहब्बत हुआ है बाद में देखासुनी की बात शुरू हुई, मुझे पूरी कहानी जाननी है..


रूपाली दीदी:- नहीं मुझे बताते शर्म आएगी...


मै:- तो फिर आपसे मै रूठ गई.. समझ लो..


रूपाली दीदी:- अच्छा ठीक है, मै सब बताउंगी, पहले जरा उसकी क्लास लगा दूं. बहुत उड़ रहा था वो. कह रहा था किसी को कुछ पता नहीं चलेगा..


मै:- ठीक है दीदी आप आराम से उस कोने में धीरे-धीरे बतिया लो. मै जरा 2-3 वीडियो कॉल कर लूं..


लैपटॉप ऑन की और कॉल सीधा अपने बड़े पापा विनीत मिश्रा के पास लगा दिया. कुछ ही देर में कॉल कनेक्ट हो गया. बड़े पापा ने बात शुरू की और देखते ही देखते पुरा परिवार जुड़ गया. बात करते-करते बड़े पापा थोड़े भावुक हो गए और एक बार सबको देखने और बात करने की इक्छा जाहिर करने लगे.


मै भी बेबस थी क्या जवाब दे देती. ख़ामोश रह गई. फिर कुछ देर तक अपने चचेरे भाई अजीत और सुजीत से बात की. दोनो भाभियों से भी बात हुई. बातों के दौरान पता चला छोटे वाले निमित भैया जो यूएसए मे रहते है वो नेक्स्ट ईयर से दिल्ली में ही सैटल होंगे. कुछ देर बात करने के बाद मै जैसे ही फोन रखने लगी, बड़े पापा रोते-रोते कहने लगे कम से कम तू ही आ जा मिलने..


मै उनका रोना देख नहीं पाई. कुछ आंसू मेरे भी छलक गए. मैंने भी उन्हें आश्वासन दिया कि कोशिश करूंगी आने के लिए.. फिर आगे मै बात नहीं कर पाती, इसलिए कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया.


दूसरा कॉल नकुल के पास गया, जिससे थोड़ी देर बात हुई, और उसके आने का टाइम पूछकर मैंने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया. सबसे आखरी मे मैंने प्राची दीदी को कॉल लगाया. दोनो कुछ देर गप्पे मारते रहे. पहले मेले वाले कांड की बात चली, फिर शॉपिंग मॉल की. थोड़ी देर बात करने के बाद उनसे भी विदा ली और कान मै हेडफोन डालकर, स्लो म्यूज़िक बजाई और अपने बुक्स उलट ली..


मै जब किताब में होती हूं, फिर ध्यान भटकता नहीं. तकरीबन 11.30 बजे रूपाली दीदी मेरे कंधे पर हाथ रखती... "तू अभी और पढ़ेगी क्या?"..


मै, मीठी सी अंगड़ाई लेते... "आप अपनी कहानी सुनाओगी तो पढ़ाई ड्रॉप कर दूंगी"


रूपाली दीदी:- नहीं तू पढ़ाई कर, इस विषय में तो कभी भी बात हो जाएगी..


मै:- कभी भी बात होने मे और रात में लव स्टोरी सुनने में, अलग ही मज़ा है..


रूपाली दीदी मुझे घूरती... "मेनकिया बहुत बेशर्म होते जा रही है, लगता है मुझे जल्दी ही जमाई की खोज करनी होगी"..


मै:- खोज लो, मै कौन सा रोकने जा रही हूं.. पर इस वक्त जब ब्रेक ली हूं, तो एक कहानी हो ही जाए, मज़ा आ जाएगा...


रूपाली दीदी:- इसका मतलब तू नहीं मानेगी..


मै:- सवाल ही पैदा नहीं होता...


रूपाली दीदी:- चल फिर शुरू करते है...


रूपाली दीदी की कहानी जब मै सुनी तो उनके पूरी कहानी को मैंने नाम दे दिया.. कैंसर के बीच पनपा प्यार और रोमांस. मेरी बात सुनकर वो भी हंस दी. दरअसल हुआ कुछ यूं कि रूपाली दीदी कि नानी, टाटा मेमोरियल, जमशेदपुर में आखरी श्वांस गिन रही थी. उन्हे कैंसर हो गया था और वो अपने फाइनल स्टेज मे थी.


जबतक रूपाली दीदी के नाना घर के मुखिया थे, तब तक तो रूपाली दीदी और उनके परिवार का नाता अपने ननिहाल से रहा. लेकिन उनके जाने के बाद रूपाली दीदी के मामा, उनके परिवार को वो इज्जत नहीं दिए, जो स्वागत एक जमाई और बेटी का उसके घर में होना चाहिए था. रूपाली दीदी के मामा को लगता था कि ये लोग गांव के गंवार है.


बहुत लंबे समय से रूपाली दीदी का उनके मामा के यहां आना जाना तो दूर बात चित भी बंद थी, इसलिए ममेरे भाई-बहन से वैसा अटैचमेंट कभी नहीं रहा. फिर तो अंत में फॉर्मेलिटी ही बच जाती है. रूपाली दीदी को अपने ननिहाल में हमेशा बोरियत ही मेहसूस हुई.


बस ये उन्हीं दिनों की घटना है जब रूपाली दीदी अपना बोरियत दूर करने कॉलोनी के पार्क में बैठ जाया करती थी. वहीं उनकी मुलाकात नितेश से हुई थी. पहले तो रूपाली दीदी ने जारा भी इंट्रेस्ट नहीं लिया क्योंकि गांव की कहानी वो भी जानती थी. लेकिन बाद में पता चला वो भी एक ब्राह्मण लड़का है और पुरा नाम था नितेश शर्मा है, तब तो वो भी खुद को रोक नहीं पाई.


रूपाली दीदी भी कम कैलकुलेटिव नहीं थी. लड़के के बात और स्टाइल से तो पहले से फिदा थी, लेकिन सिर्फ पारिवारिक बंदिश के कारण कभी बेचारे को पास नहीं भटकने दिया और जब पता चला कि सेम कास्ट है, फिर तो उसपर अपना पूरा प्यार न्योछावर कर आयी.



नितेश उस वक्त जमशेदपुर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर चुका था और एमडी बनने की तैयारी कर रहा था, इसलिए उसने रूपाली दीदी से 2 साल का वक्त ले लिया. कुछ दिन पहले ही उनका एमडी जैसे ही क्लियर हुआ, वो सबसे पहले अपने सहर पहुंचे, फिर यहां के शादी विवाह करवाने वाले एक लोकल पंडित से मिलकर, मेरे मामा के यहां उस पंडित को अपनी प्रोफाइल लेकर भेजा.


पुरा पता लगाने के बाद मामा और मामी, पापा के साथ लड़का देखने हमारे ही सहर आए. 2 साल से दोनो लड़का और लड़की हर रिश्ते को ठुकराते आ रहे थे, इसलिए दोनो पक्ष वाले बस यही प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह पसंद कर ले. उन्हे थोड़े ना पता था कि यहां तो लड़का और लड़की अपने घर के लोगों का रिश्ता करवा रहे..


रूपाली दीदी ने अपनी पूरी कहानी ऊपर-ऊपर बता गई. सावन और भादो में कोई मुहर्रत नहीं मिला, इसलिए दोनो का एंगाजमेंट दुर्गा पूजा के बाद और शादी बसंत पंचमी के बाद फाल्गुन के किसी भी अच्छी मुहर्रत मे. वैसे तो वो अपने फिजिकल रिलेशन की डिटेल कहानी गोल कर गई, लेकिन मारे शर्म के मेरी हिम्मत भी नहीं हुई की मै ये बात पूछ लू. लेकिन मन में कहीं ना कहीं ये इक्छा जरूर थी कि उनका पहला सेक्स अनुभव कैसा रहा वो जान सकूं..


बहरहाल पौने बारह तक उनकी कहानी चली उसके बाद मै पानी पीकर वापस से अपने स्टडी मे लग गई. सोमवार व्रत के कारन बस थोड़ा सा रूटीन मे तब्दीली आ जाया करती थी, बाकी सब कुछ वैसा ही अपने नियमित समय पर ही चलता है. मै भी ठीक वैसा ही कर रही थी.


3 बजे सोई, 6 बजे जागी, 7 बजे तक अपने हिस्से का काम करके वापस सो गई. अंदर से यही इक्छा थी कि सुबह जब आंख खोलूं तो नकुल घर पहुंचा रहे. मै तकरीबन 10 बजे जागी, लेकिन नकुल तबतक नहीं पहुंचा था. मै उठते ही सबसे पहले मां से उसी के बारे में पूछी.


इंतजार करते-करते 2 बज गए, लेकिन नकुल नहीं पहुंचा था और ना ही उसका कोई फोन लग रहा था. मै नकुल के पापा रघुवीर भैया को 6 बार फोन लगा चुकी थी, लेकिन उन्होंने भी कुछ नहीं बताया. तकरीबन 3 बजे नकुल का कॉल आया कि वो बाजार तक पहुंच गया है. मै उसे बोल ही रही थी कि मै आ रही हूं, लेकिन वो मना करते हुए कहने लगा, नहीं रवि मुझे छोड़ देगा..


मै गली में ही उसके इंतजार में खड़ी थी. जैसे ही वो मेरे सामने आया मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई. जब वो मेरे नजदीक पहुंचा, उसका हाथ पकड़ कर उसके कमरे में ले गई. दोनो बैठकर पहले तो घंटे भर बातें किए. वो मुझे सभी तस्वीर दिखा रहा था, फिर अंत में उसने मुझे टिकट दिखाया... फ्लाइट की टिकट थी जो संगीता ने नकुल के लिए भिजवाया था.


मै टिकट देखकर हसने लगी, वो भी हसने लगा... "दीदी, संगीता दीदी ने कहा है तू बस आ जा, ना हो तो गर्लफ्रेंड के साथ आ जा, वो दोनो के खर्च उठा लेगी, लेकिन कुछ दिन मेरे पास रह. जब कोई घर का साथ रहता है तो उसकी बात ही कुछ और रहती है.


मै:- देखा वो तुझे कितना मानती है..


नकुल:- हां सो तो सही कहा तुमने, लेकिन मै ही उनके साथ गलत करने जा रहा था, और तुम छुपी रुस्तम पूरी बात गोल कर गई. अब मुझे समझ में आ रहा है कि तुम क्यों कहती थी सब नीलेश की शादी में वसूल लेंगे..


मै:- जो जानता है वो सीने में ही दबाकर रख ले.. मुझसे भी मत बताना.. आराम से हम दोनों मज़े लेंगे... आज आया सो कल आ जाता.. तुझे राखी मे बहुत मिस की..


नकुल:- इसलिए मेले में झगड़ा कर ली..


मै:- तू ऐसा सोचता है.. मैंने झगड़ा किया?


नकुल:- नाह, मै बस मज़ाक कर रहा था... मेरे दिल की भड़ास रह गई. जिन 20 लड़को को सीआरपीएफ वालो ने मारा है, उसमे कुछ लड़के मुखिया बख्तियार का आदमी था, जिसने मेरी पिटाई की थी.. काश मै होता तो कुत्तों को अपने हाथो से मारता..


मै:- बुद्धिमानी अपने हाथो से मारने में नहीं है.. कल पंचायत है, तू जारा शांत रहना और मेरे साथ ही रहना..


नकुल:- ठीक है जैसा तुम कहो... अच्छा सुन ना, तुम भी बंगलौर चलो ना..


मै, अपनी आखें बड़ी करती... "तू क्या मुझे गर्लफ्रेंड बनाकर ले जा रहा"..


नकुल:- हट पागल कहीं की.. भांग खाकर तो नहीं आयी है...


मै:- क्यों इतनी बदसूरत हूं मै जो ऐसा कह रहा.. तेरी नीतू से तो सुंदर ही हूं..


नकुल:- मैंने मना किया है ना उसका नाम नहीं लेने.. और आज के बाद दोबारा कभी उस कामिनी के साथ अपनी तुलना की तो फिर देख लेना..


मै:- हां समझ गई, मेरा भतीजा उसके नाम से खफा हो जाता है, कभी नहीं लूंगी उसका नाम. चल अब मै चलती हूं, तू आराम से फ्रेश होकर आराम कर, कल एक्शन डे है..


नकुल:- पंचायत एक्शन के लिए नहीं कंप्रो के लिए होता है.. जुर्माना लगाकर पंच अपनी जेब भर लेंगे. फैसले में उन लोगों को इधर गांव आने से मना कर देंगे बस यही होने वाला है.. ऊपर से वो असगर आलम कल कम से कम 1000 लोगो के साथ तो जरूर आएगा..


मै:- ठीक है वो तो कल ही पता चलेगा, अभी तू आराम कर...


मै बता नहीं सकती कि कितना अच्छा मै मेहसूस कर रही थी, वरना ऐसा लग रहा था कि कोई बात करने वाला ही नहीं बचा. मै जैसे ही घर पहुंची कुछ देर बाद मेरे भी घर में सभा बैठी थी. कुछ नहर के किनारे वाले हमारे रिश्तेदार पहुंचे थे तो कुछ आसपास के गांव में बसे हमारे रिश्तेदार..


पापा सबको पंचायत में पहुंचने के लिए कह रहे थे और वो लोग एक ही बात कहते गए.. हमारे घर की बेटी की बात है, नहीं भी कहते तो भी खबर पहुंच गई थी और हम आते ही..."


सुबह के तकरीबन 7 बजे हमारे गली से गाड़ियों का काफिला मंदिर के लिए निकल चुका था. मुख्य हमलोग थे, इसलिए हमे 7 बजे बुलाया गया था. बाकी लोगों को 7.30 बजे बुलाया गया था. हमारा पुरा परिवार एक ओर बैठा था और दूसरी ओर विधायक असगर आलम और उसका खानदान बैठा हुआ था.


इससे पहले श्रावण मेले के पहले दिन पंचायत लगी थी, तब हमारे गांव के मुखिया चाचा और इस मंदिर वाले गांव के मुखिया प्रवीण मिश्रा मे मिलकर विधायक और उसके लौंडे की बैंड बजाई थी. ओह हां बताना रह गया था, जब मामला गांव और किसी प्रोफेशनल के साथ दोस्ती का हो, तो ऐसे केस में मजबूरन प्रोफेशनल दोस्ती को छोड़नी पड़ती है. वही हुआ था प्रवीण मिश्रा के साथ, जब बात मेले मै हुरदंगी की हुई तो प्रवीण मिश्रा, असगर आलम के खिलाफ खड़ा था... आज का पता नहीं कितने मुखिया उससे भन्नाए थे...


सुनने में आया था कि हमारे ओर के पांचों गांव के मुखिया एक साइड थे. खैर आज तो वैसे भी किसी की जुबान नहीं खुलती, क्योंकि यह पंचायत महादेव मिश्रा ने बुलाया था, जिसके रहमो करम पर ये असगर आलम विधायक बाना हुआ था. ऐसे इस इलाके के 5 विधायक थे, जो महादेव मिश्रा के कारन विधायक थे...

 

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अध्याय 10 :: भाग:- 4




सुबह के 7.30 बजे जैसे ही पंचायत शुरू होने वाली थी, वहां 1000 नहीं बल्कि 5000 विधायक के समर्थक जुट चुके थे, जो असगर आलम के नारे लगा रहे थे. तभी वहां लगे माईक पर महादेव मिश्रा की आवाज गूंजने लगी और सारी आवाजें चुप.… "मेरा नाम यदि भुल गए हो तो याद दिलाता चलूं, महादेव मिश्रा.." .. इतना सुनते ही सब चुप.. फिर माईक पर दूसरी आवाज गूंजी... "जो मुझे नहीं जानते उन्हे मै अपना नाम बताता चलूं, मेरा नाम राजवीर सिंह है और गुरुदेव के कहने पर मै भी इस पंचायत का हिस्सा हूं. बस एक ही बात कहूंगा, दंगे के इरादे से जो भी आए हो, अभी लौट जाओ, 5 मिनट का वक्त है. उसके बाद मै नहीं पूछने वाला."..


जैसे ही बैक टू बैक इस इलाके के 2 दबंगो ने अपनी आवाज बुलंद की, वहां के 5000 की भीड़ अगले 5 मिनट में महज 100 लोगो कि रह गई. 5 मिनट समाप्त होते ही, महादेव मिश्रा.… "असगर आलम दंगे भड़काने के इरादे से तुमने लोग बुलाए थे, ये साबित होता है. तुम्हे अपने पोस्ट का घमंड हो गया है, या तो अभी राजीनामा दो, या मै तुम्हारा सर काटकर इसी पीपल के पेड़ पर टांग दूं"..


विधायक असगर... "गुरुदेव मैंने दंगे भड़काने के लिए किसी को नहीं बुलाया. मै भला पंचायत में लोगो को क्यूं लेकर आऊंगा."


महादेव मिश्रा:- बख्तियार (बाजार की सड़क के उस पार के गांव का मुखिया) सच बताओ..


बख्तियार:- गुरुदेव विधायक के लोग दंगे फसाने आए थे, मै गवाह हूं...


महादेव मिश्रा:- असगर अब क्या कहना है..


असगर आलम:- इसपर अंत में बात करते है गुरुदेव, पहले मुख्य मुद्दे पर काम कर ले. क्योंकि किसी की साजिश को गलत साबित करने के लिए मुझे भी तो वक्त चाहिए होगा...


महादेव मिश्रा:- हम्मम ! ठीक है असगर.. चलो मुख्य मुद्दे पर ही आते है.. तुम्हारा बेटा मेले के पहले दिन हुरदांगी किया. अपने दोस्तों के साथ मिलकर बहू-बेटियो के साथ बदतमीजी की.. जिसके लिए पहले भी पंचायत बुलाई गई थी और हिदायत के साथ छोड़ा गया था..


असगर आलम:- मानता हूं गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- उस पंचायत के बाद तुमने गंगा के यहां डकैती करवा दी..


असगर आलम:- मुझे उस बात का इल्म नहीं था, वो पुरा किया मेरे बड़े बेटे सहजाद का काम था.. ये बात मैंने अनूप जी (मेनका के पिता) से भी कहा था. तब इन्होंने कहा था, उनका बेटा कभी इस इलाके में देखा गया तो मार कर फिकवा देगा. तय बात के अनुसार मैंने 3 गुना भरपाई भी की है...


महादेव मिश्रा:- फिर रविवार की घटना के बारे में क्या कहोगे... एक छोटी सी लड़की को इतने अभद्र शब्द कहे तुम्हारे छोटे बेटे और उसके दोस्तो ने. और मेला प्रबंधन ने जब एक्शन लिया तो तुम्हारे तीनो बेटे ने कहा की मेरा छोटे भाई का चैलेंज, हम एक्सेप्ट करते है..


असगर आलम:- गुरुदेव मेरा छोटा बेटा मुझसे और अपने भाइयों से कुछ ज्यादा ही प्यार करता है. हमारे मोह मे आकर वो बदले की भावना से मेले में चला आया, बाकी उसका गलत इरादा नहीं था. इसे आप आवेश मे लिया गया कदम मान सकते है...


महादेव मिश्रा:- असगर तुम कुछ और कह रहे हो, और तुम्हारे बेटों की मनसा कुछ और ही नजर आती है. जब तुम सबको पता था कि तुम्हारा छोटा बेटा गलत है, फिर तुम्हारे तीनो बेटे ने ऐसा हवा क्यों उड़ाई की गांव के बाजार आकर तो देखे वो लड़की... जवाब तुम्हारा बेटे मे से कोई एक देगा...


लियाकत, असगर का दूसरे नंबर का बेटा.… "सभी पांचों का मेरा नमस्कार. मै अपने भाइयों की हरकत से शर्मिंदा हूं, और ये सत्य है कि मेरे सबसे बड़े भाई सहजाद और मुझसे ठीक छोटा वाला भाई अमजद ने मिलकर ऐसी बात बोली थी. लेकिन बोलने के पीछे की वजह कोई दुश्मनी नहीं, बल्कि अपने भाई की हॉस्पिटल में हालत देखकर ऐसा निकला था. अपने भाइयों के ओर से मै माफी मांगता हूं..


महादेव मिश्रा:- तुम्हारा नाम क्या है?


लियाकत:- जी लियाकत है गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- लियाकत तुमने जो कहा वो सही हो सकता है. गुस्से में शायद तुम्हारे दोनो भाई हमला भी कर सकते थे, लेकिन यह कहां से तर्क संगत है कि आवेश मे आकर, तुम्हारे दोनों भाई, अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव के 2 बेटियो को अपने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी.. फैजान पर 8 लड़की के साथ छेड़खानी और 2 लड़की को गायब करने का आरोप पहले भी साबित हो चुका है. उसकी शादी भी बलात्कार का ही नतीजा था. सिर्फ तुम्हे छोड़कर बाकी तुम्हारे तीनो भाई के कुकर्म माफी लायक नहीं है, सहजाद और अमजद पर भी कई आरोप साबित हो चुके है. वर्तमान की घटना और इतिहास भी देख लो और फिर दो जवाब...


साहजाद:- ए मिश्रा ये कौन सा खेल खेल रहे हो. मदरचोद किसी एक को भी मै नहीं छोड़ने वाला...


असगर ने जैसे ही अपने बेटे को सुना, अपने सर पर हाथ रखकर माथा पीटने लगा. नज़रों के इशारे से उसने अपने दूसरे नंबर के बेटे को देखा, उसने खींचकर अपने बड़े भाई को एक थप्पड़ दिया और अपने साथ आए लोगो को उसे शांत बिठाने के लिए कहने लगा...


लियाकत:- मै पंच के सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं...


महादेव मिश्रा:- हां बोलो..


लियाकत:- हमे पूर्ण मामले का ज्ञान हो चला है.. मै चाहता हूं, इस मामले में मै और मेरे अब्बू दोषियों को सजा देंगे.. खबर आप तक पहुंच जाएगी.. यदि हमारी सजा आपको अच्छी ना लगे, तो अगली पंचायत मे आने से पहले मेरे अब्बू राजीनामा देकर पंचायत मे आएंगे और जो भी आप लोगों का फैसला होगा वो हमे मंजूर होगा...


10 मिनट के पंचायत को विराम दिया गया, ताकि आपस म विचार विमर्श किया जाए. इधर जबतक असगर का दूसरे नंबर का बेटा हमारे परिवार के करीब पहुंचा और मेरे सामने हाथ जोड़कर... "तुम तो वाकई शेरनी की तरह हो, 20-25 लड़को के बीच घिरे होकर भी क्या खूब हिम्मत दिखाई. मै तुमसे वादा करता हूं, उनका फैसला मै खुद करूंगा, भले ही वो मेरे भाई ही क्यों ना है. बस एक छोटी सी विनती है"..


पापा:- क्या?


लियाकत:- जब हम पुरा फैसला कर ले और आपको हमारे फैसले से संतुष्टि हो तो आप सपरिवार हमारे आंगन आए और मेहमान नवाजी स्वीकार करे..


महेश भैया:- हम्मम ! तुम पहले करके बताओ, फिर हम जरूर पहुंचेंगे...

इतने में पंचायत ने मंथन के बाद फैसला दिया... "असगर के दूसरे बेटे लियाकत की बात हम मानते है, आने वाले रविवार से पहले तक, वो सबको सजा दे दे. यदि ऐसा करने में विफल हुए तो रविवार की सभा में ये पंचायत बिना किसी पक्ष को सुने अपना फैसला सुना देगी, जो मान्य होगा. अनूप तुम्हे हमारा फैसला मंजूर है"..


पापा:- जैसा पंचो का फैसला हो, हमे मंजूर है...


वहां से सभा टूटी और हर कोई हैरान था. फैसला उन्हीं पर छोड़ना सही था या गलत ये तो रविवार से पहले पता चल ही जाता लेकिन जब सभा टूट रही थी तब नरेंद्र (अमृता का पति) और सुनील (पुष्पा का पति) को लियाकत से जब बात करते देखी, तब मामला समझ में आया कि वो गांव की 2 बेटी कौन थी.

मुझे असगर के बेटों की बेवकूफी पर हंसी आ गई. आप सोच रहे है की ऐसे मामलों में क्या नतीजा होता है तो, मै आपको बता दूं कि यहां कोई फिल्म नही चल रहा, जिसमे जुल्म करने वाला पहले जीत जाए और बाद में एक हीरो उनके जुल्म का हिसाब एक-एक करके ले.


यहां बात ज्यादा बढ़ती है तो रक्त चरित्र ही देखने मिलता है, फिर दुश्मनी को मिटाने के लिए हर एक दुश्मन को साफ कर दिया जाता है. ठीक वैसे ही जैसे आपने गैंग ऑफ़ वासेपुर फिल्म में देखा होगा. हमारे गांव की ऐसी घटनाओं में तो वो फिल्म मात्र एक ट्रेलर था, क्योंकि सहर में रहने वालों को तो भनक भी नहीं होती कि गांव में क्या चल रहा है.


यहां पहले तो किसी तरह मामले को शांत ही किया जाता है, किन्तु जब मामला हाथ से निकल जाए, तो यहां ना तो पुलिस पहुंचती है और ना ही मीडिया, और ना ही फैसला कोर्ट के भरोसे छोड़ते है. फिर तो कुछ दिनों तक लाशों का खेल चलता है और उसके बाद सालों तक सब शांत.


पंचायत खत्म होने के बाद हम सब लौट आए. पापा और भाईय गांव के कुछ लोगो के साथ जब बात कर रहे थे, तब यही कह रहे थे कि असगर और उसका बेटा लियाकत अपनी छवि अब साफ करने के इरादे से होगा.


एक बार बाप को अपने बेटे से मोह हो सकता है, लेकिन जब इज्जत और राजनैतिक कैरियर दाव पर लगा हो, तो सारा मोह भंग हो जाता है. असगर और लियाकत पर कितना दबाव था, इस बात का अंदाजा सिर्फ इस बातों से लगाया जा सकता था कि शुक्रवार के दिन महादेव मिश्रा को खेत में एक स्पॉट पर बुलाया गया. वहां सहजाद, अमजद और उसके 12 साथियों को काटकर वहीं खेत में गार दिया गया.


फैजान और उसके 20 साथियों का इलाज सहर में हो रहा था, वो भी पुलिस कस्टडी में. शुक्रवार की रात में ही उनका बेल करवाया गया और शनिवार को उनका डिस्चार्ज पेपर बन गया. शनिवार को शाम के 4 बजे खबर आयी की मिनी वैन में सवार 21 यात्री, वैन के डबरा में डूबने के कारन सबकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. मामला का संज्ञान लेने मौके पर डीएम और एसपी पहुंचे.


(डबरा, एक बहुत बड़े और गहरे गड्ढे में जमा पानी को कहते है. जिसके ऊपर आमुमण जल कुंभी उगी रहती है. उसे देखकर गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, किन्तु किसी-किसी डबरे की गहराई इतनी होती है कि उसमे 2-3 बस एक साथ समा जाए)


केवल ड्राइवर अपनी जान बचा पाया, क्योंकि घटना के कुछ वक्त पूर्व ही उन लड़को ने ड्राइवर को रास्ते में उतारकर, खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रहे थे. रात के 8 बजे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट क्लियर बता रही थी कि सब के सब नशे म थे और नशे की हालत में होने के कारण कोई भी अपनी जान बचा नहीं पाया..


ये तो प्रेस और मीडिया की खबर थी, लेकिन सच्चाई क्या थी वो हम सब गांव वाले जानते थे. असगर के कहने पर 2 दिन मे कुल 46 लाश गिरा दी गई थी. जिसमे से 21 लोगो को तो नाटकीय ढंग से डूबा कर मारा गया था. 14 लोग को शुक्रवार को खेत में काटकर फेका गया था और 11 लोगों को लियाकत ने ट्रेस किया था जो उनके भाई सहजाद के साथ मिलकर, पंचायत में दंगा भड़काने पहुंचे थे, जिसमे गांव का मुखिया बख्तियार भी सामिल था.


ये सब लिस्ट महादेव मिश्रा की थी, जिसे उसने लियाकत को सौंपी थी. लियाकत और असगर की मुलाकात, पंचायत से ठीक पहले, बुधवार की रात को, राजवीर अंकल और महादेव मिश्रा से हुई थी. बुधवार की रात ही लियाकत अपने पॉलिटिकल कैरियर को हवा देने और गांव में अपनी स्तिथि को मजबूत करने के लिए, अपने बाप को अपने साथ मिला चुका था.


अंदर ही अंदर वैसे लियाकत की भी अपनी कहानी चल रही थी. दरअसल पुष्पा और अमृता का पति लियाकत का बहुत गहरा मित्र था. वो इतना भन्नाए थे कि वो सबको साफ करने का मन बना चुके थे. चूंकि लियाकत उन दोनों के करीबी मित्र मे से एक था, इसलिए इस मामले की जानकारी लियाकत को भी हो चली थी...


एक ओर ये दोनो थे, तो दूसरे ओर राजवीर अंकल भी सीधा भिड़ंत के इरादे से थे और सबको साफ करने का मन बना चुके थे. इधर मनीष भैया और महेश भैया भी पूरी योजना बना चुके थे, इस सिलसिले में मनीष भैया, अपने मामा ससुर और पूर्व गृह मंत्री से मुलाकात भी कर चुके थे. मनीष और महेश भैया भी पूरी तैयारी में थे.. और इस बात की जानकारी महदेव मिश्रा को हो चली थी.


असगर आलम महादेव मिश्रा का ही चेला था, इसलिए महादेव मिश्रा ने ये गुप्त मीटिंग राखी. उसी मीटिंग में असगर, महादेव मिश्रा के कहने पर अपना पुत्र मोह त्याग दिया था और पंचायत मे क्या करना है, इस बात की योजना एक रात पूर्व ही बन चुकी थी, जिसमे चौंकने की स्तिथि तब बन गई, जब अचानक ही दंगे भड़काने के लिए लोग पहुंच चुके थे... किन्तु जहां महादेव मिश्रा हो ऊपर से राजवीर सिंह भी साथ में, फिर किसी की गुंडई चल सकती थी क्या?


वैसे शुक्रवार और शनिवार को जितने भी मर्डर हुए, वो बिना पंचायत के भी हो सकता था, लेकिन असगर के खराब इमेज को सुधारने और लियाकत को आने वाले लोक सभा इलेक्शन मे लॉन्च की तैयारी के इरादे से, पंचायत का बुलाई गई थी. पंचायत के सारे फैसले पूर्व से सुनिश्चित किए हुए थे, ताकि लियाकत की छवि उभरकर सबके सामने आए..


घिनौने कुकर्म के कारण उपजे माहौल ने ऐसा सामाजिक दबाव बनाया, जिसमे राजनीतिक रंग अपने पूरे उफान पर था और यही राजनीतिक रंग 46 लोगों को काल के गाल में निगल चुकी थी, जिसमे एक गांव का मुखिया भी था. मुखिया के मर्डर को कवर करने के लिए गांव का एक आदमी खुद सरेंडर कर दिया और उसने पुलिस को बताया कि गांव के सड़क और डबरा पर ध्यान ना देने कारन उसके 20 साथी डूबकर मर गए, जिसका दोषी मुखिया बख्तियार था. इसलिए मैंने गुस्से में उसे मार दिया...


उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.
 

nain11ster

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ये श्रावणी मेला तो रवि के ही नाम रहा । दो दो खुबसूरत औरतों के साथ रासलीला ।
पट्ठा बड़ा ही खुशकिस्मत हैं ।

मेनका का चैलेंज.... उसका आत्मविश्वास और सेल्फ कॉन्फिडेंस लेवल बढ़ गया है ।

बहुत बढ़िया अपडेट नैन भाई ।

Ladki hi hai dono 5-6 mahine shadi ko huye hain.. 21, 22 sal ki umr hai.. kahan aap usse aurat banane par tule hai :( .. pushpa aur Amrita ne sun liya na to me too me case kar degi.. :laughing:

Kab tak dubki rahegi bechari... Bahut slow slow to yahan tak lekar aaya hun ... Dekhiye iska ye confidence kahan tak bana rahta hai..
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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अध्याय 10 :: भाग:- 1


मंगलवार को श्रावण मेला भी समाप्त हो गया. नरेंद्र जी इस बार गांव के निशानची बने और उपविजेता रूपा भाभी. फिर भी फाइनल के दिन सभी भाभी ने मिलकर जो ही हूटिंग की थी, नरेंद्र के कानो से लगभग खून निकाल चुकी थी. फिर भी किसी तरह वो ये प्रतियोगिता जितने मे कामयाब रहे.


मेले का आकर्षण ऑर्केस्ट्रा इस बार भी धांसू ही रहा, उसपर से रसियन बाला ने उसपर क्या चार चांद लगाया था, हर बूढ़ा झूम-झूम कर नाच रहा था.


सावन पूर्णिमा, सावन का आखरी दिन. राखी के त्योहार वाला दिन. सुबह उठकर मै सबसे पहले साक्षी और केशव (मेरे बड़े भैया महेश के दोनो बच्चे) के कमरे में ही गई. दोनो गहरी नींद में थे. मै उनके सिरहाने बैठकर दोनो के सर पर हाथ फेरने लगी.


जैसे ही मैंने साक्षी के सर पर हाथ फेरा, उसने अपनी आंखे खोल ली, और मुझे देखकर नकियाना शुरू कर दी... "अरे, अरे, अरे.. क्या हो गया मेरी नन्ही लाडली को, ऐसे सुबह सुबह रोना"..


साक्षी:- दीदी सोने दो ना..


मै:- हां तो मै कौन सा तुझे जगाने आयी हूं, मै तो बस देखने आयी थी...


साक्षी:- लेकिन मै तो जाग गई ना, अब छोड़ो उसे. दीदी आज सहर ले चलो ना घूमने..


मै:- इतने दिन मेला घूमी सो नहीं हुआ, कुछ दिन रुक जा फिर चलेंगे.. वैसे भी आज तो राखी का त्योहार है ना, तू केशव, कुणाल और किशोर को राखी नहीं बांधेगी…


साक्षी:- सब बेईमान है.. आपको तो ढेर सारे गिफ्ट मिलेंगे, पैसा मिलेगा, मुझे क्या मिलेगा...


मै:- पागल तेरे लिए भी ढेर सारा गिफ्ट ली हूं, और मेरा जो-जो गिफ्ट तुझे पसंद आए ले लेना.. अब खुश..


साक्षी चहकती हुई मुझसे लिपटकर... "मै तो आपका सारा सामान ले लूंगी"..


मै:- हां ठीक है तू ले लेना.. चल पहले मै तुझे तैयार कर देती हूं.. फिर मै तैयार हो जाऊंगी... वैसे भी तेरे लिए बहुत सारी चीज़ें मंगवाई है, तू देखेगी नहीं..


साक्षी:- सच्ची मे दीदी.. चलो ना दिखाओ मुझे..


मै, साक्षी की उत्सुकता समझ सकती थी. उसे मै अपने साथ लेकर अपने कमरे में ले आयी. पहले तो स्नान करवाया, फिर खुद ही उसे कपड़े पहनाने लगी. मै चाहती थी आज बुआ और भतीजी एक जैसे दिखे, इसलिए मै बिल्कुल एक जैसा नया ड्रेस लेकर आयी थी..


लाइट ग्रीन कलर का प्रिंटेड गाउन, जिसका नीचे का घेरा काफी लंबा था और दिखने में काफी खूबसूरत. जब मै साक्षी को ये नया ड्रेस पहना रही थी, तब उसके चेहरे की खुशी देखते बनती थी. कपड़े पहनाने के बाद फिर मैंने उसके बाल बनाए. उसके दोनो हाथ में लाल रंग की चूड़ियां डाली. हल्का मेकअप किया. कान, नाक और गले में जेवर पहनाकर जब मै उसे एक झलक ऊपर से नीचे देखी, तो बस देखती रह गई.. बड़ी प्यारी लग रही थी...


तैयार करने के बाद मै उसकी एक फोटो लेकर बड़ी भाभी के पास ले जाने के लिए जैसे ही अपने कमरे का दरवाजा खोला, उधर से मुख्य द्वार का भी दरवाजा खुल गया और सामने मेरे बड़े मामा, साथ में रूपाली दीदी और उनके साथ मेरे दोनो ममेरे भाई अमित और सुमित थे..


तीनों ही मुझसे बड़े थे, जिसमे से रूपाली दीदी कि शादी कुछ दिन पहले ही तय हुई थी, उससे ज्यादा पता नहीं और दोनो ममेरे भाई की शादी हो चुकी थी.. लेकिन दोनो भाभी अपने बच्चो के साथ मायके गई थी, इसलिए उनका आना नहीं हो पाया था.. हम सबने लगभग एक ही वक्त पर दरवाजा खोला था…


उन लोगो के आखों के सामने पूर्ण रूप से तैयार साक्षी थी, जिसे देखकर रूपाली दीदी भागी-भागी उसके पास आयी और साक्षी को अपने गोद में उठाकर... "अरे बाप रे, ये मेनका की लाडली इतनी बन संवर कर कहां निकली है"


साक्षी:- रूपाली बुआ मै आपसे बात नहीं करूंगी. आपने मुझे ठगा था..


रूपाली अपनी आखें बड़ी करती... "मैंने तुझे कब ठग लिया.. या तू अपने मन से सब कह रही है"…


इधर जबतक घर के सभी सदस्य बाहर निकालकर आपस में सब मेल मिलाप में लगे हुए थे. साक्षी, रूपाली की बातो का जवाब देती... "दीदी, रूपाली बुआ ने फोन पर कहा था ना कि वो होली में आएगी और हम दोनों के साथ पिकनिक पर भी जाएंगी"…


रूपाली:- अरे यार मेनका ये सोभा भाभी ने क्या खाकर इसे पैदा किया, कुछ भी भूलती नहीं है क्या ये?


मै:- दीदी, साक्षी के दिमाग का सिस्टम पुरा अपग्रेडेड है.. कुछ भी इससे आप प्रोमिस कीजिए, तुरंत अपने दिमाग में डाउनलोड करके सेव कर लेती है.. बड़ी खतरनाक चीज है...


हम दोनों जबतक बात कर रहे थे, तबतक हर किसी का ध्यान साक्षी पर जा चुका था और हर कोई उसे अपने गोद में लेकर प्यार कर रहा था. मै और रूपाली दीदी मेरे कमरे में आ गए. लगभग साल भर बाद दोनो बहने मिल रही थी, हालांकि रूपा भाभी वाले कांड मे रूपाली दीदी आयी तो थी, लेकिन फुरसत से बात नहीं हो पाई थी...


मै:- क्या बात है रूपाली दीदी आप तो आजकल फोन करना भी भुल गई..


रूपाली:- बदमाश तो तू ही कहां फोन कर लेती थी..


मै:- मुंह मत खुलवाओ मेरा, एक दो दिन छोड़कर सबसे बातें हो ही जाती है, बस आपसे ही बात नहीं हो पाती.. मुझे भी पता है मिस रूपाली आजकल कहां फोन से चिपकी रहती है...


मेरी बातो पर रूपाली दीदी केवल हंस दी और बात बदलती हुई कहने लगी... "जल्दी तैयार होकर बाहर आ जा, सबको राखी बांधकर हम शॉपिंग करने चलेंगे"..


मै:- हमदोनो अकेले, या सपरिवार..


रूपाली दीदी समझ गई मै किस ओर इशारा कर रही थी, मेरे सर पर एक हाथ मारती... "तू सुबह-सुबह मुझे ही छेड़ रही है. जो बोला वो जल्दी कर"..


रूपाली दीदी को देखकर मै हंसती हुई बाथरूम में घुस गई. फटाफट नहाकर, मै भी बाथरूम से निकली और तैयार होने लगी. मै और साक्षी लगभग एक जैसे तैयार हुए थे. मै जैसे ही बाहर निकली सब लोग मुझे ही देखने लगे...



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साक्षी भागकर मेरे पास खड़ी हो गई और उत्साह से कहने लगी... "आज मै और दीदी सेम-सेम तैयार हुए है." क्या वाकई में मै इतनी सुंदर दिख रही थी कि मां मुझे देखकर काला टिका लगाने पहुंच गई... फिर तो लोगों ने भी ऐसे-ऐसे कमेंट किए की मै सर नीचे करके शर्माए जा रही थी...


रूपाली दीदी तो मानो बिल्कुल मुझसे इंप्रेस ही हो गई. वो मुझे अकेले कमरे में ले जाकर पूछने लगी कि कहीं किसी लड़के के लिए तो मै तैयार नहीं हुई. मै भी हंसती हुई कहने लगी, एक नहीं कई लड़को के लिए तैयार हुई हूं. मै आज अपने भाइयों के लिए तैयार हुई हूं. हम दोनों ही हसने लगे...


पहले मैंने साक्षी से रखी बंधवाया, फिर खुद सबको राखी बांधी, इतने में रूपाली दीदी भी तैयार होकर पहुंच गई. उफ्फ क्या लग रही थी. मै तो भाइयों के लिए तैयार हुई थी लेकिन उनका तैयार होना सारी कहानी बयां कर रही थी.


स्लीवलेस रेड कलर की गाउन, जो पेट से लेकर सीने तक ऐसा फिट था कि बदन का हर कर्व दिखा रही थी, ऊपर से कपड़े का वी गला, जो हल्की गहरी थी, जिसमे हल्की क्लीवेज लाइनिंग दिख रही थी. ऊपर से अगर अपना वो लाल रंग का फैंसी दुपट्टा नहीं डालती तो शायद कहीं उन्हे कपड़े ना बदलने पड़ जाते..


लगभग 10 बजे तक हम दोनों घर के सभी सदस्य को राखी बांधकर फुरसत हो गए थे. तभी रूपाली दीदी मुंह बनाती हुई आकर मेरे पास बैठ गई... "मेनका तू अपने खानदान वालों को जल्दी से राखी बांधकर आ ना"…


मै:- लेकिन मै क्यों जाऊं किसी के पास, बस यहां नकुल का ना होना अखर गया, बाकी जिसे राखी बंधवाने है उन्हे खुद ही होश नहीं... आधे घंटे और राह देखूंगी, फिर चल दूंगी आपके साथ शॉपिंग करने..


मै रूपाली दीदी से बात कर ही रही थी कि तीसरे घर के तीनो भैया पहुंच गए. वही बबलू भैया के घर के लोग थे, जिन्होंने मुझे गाड़ी चलाना सिखाया था. बबलू भैया आते ही मुझे देखते हुए कहने लगे.… "तू किसी से डर जाती तो हमारा अभिमान डर जाता, बहुत ही सधा हुआ जवाब दिया है, अब यहां से तुझे कुछ चिंता करने की जरूरत नहीं है, हम सब देख लेंगे"…


मै, बबलू भैया की आरती उतारकर राखी बांधने के बाद... "जिसके इतने सारे चाहने वाले भाई हो, उसे चिंता करने या किसी से डरने की जरूरत है क्या? वैसे भाभी की डिलीवरी कब है"..


बबलू:- अगले ही महीने है..


बाकी के दोनो भाई बबलू भैया से छोटे थे और बाहर रहकर पढ़ाई करते थे. मैंने ही उन्हे फोन करके कहा था राखी तक आ जाने. वो दोनो भी पहुंचे हुए थे. चौथे और पांचवां घर से कोई नहीं आया था अबतक. हालांकि इस बात को सभी नोटिस कर रहे थे कि जबसे मेरे और फैजान के बीच का केस हुआ था, नीलेश और नंदू का परिवार हमसे कटा हुआ था.


खैर मै 10.30 बजे तक इंतजार करने कर बाद... "मै फ्री हो गई रूपाली दीदी, बताओ कहां चलोगी बिजली गिराने"..


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी दबी सी हंसी निकाली और झूठा गुस्सा दिखती हुई मुझे डांटने लगी. रूपाली दीदी नौकतांकीबाज थी तो मै क्या उनसे कम थी. उन्होंने तो यह बात गोल कर दिया कि उन्हें अपने होनेवाले से मिलने सहर जाना है लेकिन वो ये भुल गई की उन्हे मेरे साथ ही जाना था..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


रूपाली:- मेरी प्यारी बहना, चल तुझे आज मै कान कि बालियां दिलाऊंगी. बस थोड़ा संभल ले..


मै रूपाली दीदी के गले लगती... "वाउ दीदी, सच मे मुझे दिलाने वाली हो या फेक रही हो"..


रूपाली दीदी:- पहले से प्लान है ये तो..


मै:- ओह हो तो अमित और सुमित (मेरे ममेरे भाई के नाम) भैया से मिलने वाला गिफ्ट अपने खाते में डाल रही हो. दीदी बहुत चालू चीज हो आप..


रूपाली:- तो तू कौन सी सीधी है मेनका. ब्लैकमेलर, ठीक है तेरे होने वाले जीजाजी से तुझे एक अच्छी सी ड्रेस दिलवा दूंगी.. अब तो हंस दे बहन..


हम दोनों ही हसने लगे. सुबह साक्षी भी सहर घूमाने बोली थी, सोची केशव और साक्षी भी इसी बहाने घूमकर ले आऊंगी. जाने से पहले मै महेश भैया और मनीष भैया से मिल ली, ताकि रूपाली दीदी को कुछ देना हो तो, मै वहां से खरीद लूं. जब मै उनसे मिलने गई तो सोभा भाभी ने कहा, छोटे छोटे गिफ्ट पर पैसे खर्च ना करे, बल्कि दोनो भाई पैसे मिलाकर कोई जेवर दे दे तो काम भी आ जाएगा...


बड़ी भाभी का प्रस्ताव सबको अच्छा लगा. मनीष भैया ने मां से ये बात कही तो मां ने भी हामी भरते हुए उनके लिए कोई जेवर लेने ही बोल दी. पापा ने मुझे अपने ही खाते से दिलाने देने बोल दी, बाद में वो मुझे वापस कर देते. कुछ देर की मीटिंग के बाद मै और रूपाली दीदी, साक्षी और केशव के साथ सहर के ओर चल दिए.


मै जब गांव के बाजार से कुछ दूर आगे पहुंची, तब मुझे कुछ संका सा हुआ और मैंने कार को पेट्रोल पंप के बगल से मंदिर वाले रास्ते पर ले लिया. मेरा शक सही निकला. 2 कार निश्चित दूरी बनाकर हमारे पीछे आ रही थी. अगला मोड़ काटकर मै कार कोने में लगाकर पीछा कर रही कार के आने का इंतजार करने लगी..
:superb: :good: amazing update hai nain bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
aaj to raksha Bandhan par menka ke haath Rupali didi naam ka jackpot bhi lag gaya hai :D
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 
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aman rathore

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अध्याय 10 :: भाग:- 2





जैसे ही गाड़ी मोड़ पर पहुंची, मै हाथ देकर स्कॉर्पियो को रुकवाई... जैसे ही आगे से एक हथियारबंद आदमी उतरा... "क्यों कपिल भईया, राजवीर अंकल ने कहा है मेरे पीछे रहने"…


कपिल, राजवीर अंकल का मैनेजर था, जो हर वक्त उनके साथ रहता था. मै रेयर व्यू से जब 2 काली स्कॉर्पियो को दूर से पीछा करते देखी, तभी समझ गई कि ये राजवीर अंकल के लोग है. कपिल हंसते हुए... "बाबूजी बोले थे कि मेरी ये बिटिया बहुत होशियार है, उसे प्रोटेक्शन कि जरूरत तो नहीं, लेकिन माहौल को अनदेखा भी नहीं कर सकते"..


मै:- इसलिए तो मै भी चारो ओर नजर डालकर सड़क पर चल रही थी..


कपिल:- देखकर अच्छा लगा कि किसी से जब दुश्मनी चल रही होती है तो तुम चौकन्ना रहती हो, लेकिन आगे जाकर किसी ने रॉड ब्लॉक कर दिया तो..


मै:- कपिल भैया एक लाइसेंसी हमेशा इस कार में रहती है.. इतना वक्त तक तो लोगो को रोका ही जा सकता है, जितने वक्त तक मे मदद आ जाए..


कपिल:- क्या बात है मेनका... मै बाबूजी से तुम्हारे ट्रेनिंग की बात करूंगा.. तुम तो लेडी डॉन बनकर यहां के पॉलिटिक्स में हिस्सा लेकर, सबको हिला सकती हो..


मै:- बस भैया ये कुछ ज्यादा ही हो जाएगा.. वैसे आप साथ चल रहे है तो सुकून है... चलिए चला जाए मुझे वापस भी लौटना है..


वहां से मेरी कार किसी काफिले के सामान निकली.. 1 स्कॉर्पियो आगे, एक स्कॉर्पियो पीछे और बीच में मेरी कार. हमलोग सीधा राजवीर अंकल के मॉल ही पहुंचे. मै जैसे ही पहुंची, राजवीर अंकल मुझे अपने साथ लेकर चल दिए. मै साक्षी और केशव को रूपाली दीदी के पास छोड़कर उनके साथ चल दी..


राजवीर अंकल ने पहले तो माफी मांगा कि वो ऐसे वक्त में खुद नहीं आ सके, क्योंकि कुछ मसले सहर मे चल रहे थे, लेकिन उनकी 2 स्कॉर्पियो लगातार गांव के बाजार में खड़ी है, जबतक कि ये मामला सुलझ ना जाए. फिर उन्होंने मुझसे पुरी बात पूछी, और मैंने पूरी कहानी डिटेल मे समझा दिया।


राजवीर अंकल पुरा मामला मुझसे सुनने के बाद तुरंत ही 22 गांव के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति और जिसके फैसले को काटने की हिम्मत उस पूरे इलाके में नहीं थी, महादेव मिश्रा को कॉल लगा दिया. दोनो मे कुछ औपचारिक बात होने के बाद उन्होंने मेरे विषय में बात किया. मामला उनकी जानकारी मे पहले से था और उन्होंने ये भी कहा कि गांव की इस वीर बेटी से वो खुद मिलने आएंगे.. गुरुवार के दिन मंदिर पर ही पंचायत होगी...


राजवीर अंकल ने फिर उन्हे बताया कि समझिए मै अपनी बेटी के लिए वहां आऊंगा. तभी उधर से कुछ उन्होंने कहा जो बात राजवीर अंकल गोल कर गए, लेकिन उनके चेहरे की मुस्कान और बात करते-करते जब उन्होंने अपने मूंछ पर ताऊ दिया, तभी समझ में आ गया कि इनकी कुछ तो खतरनाक प्लांनिंग हुई है जो उन्होंने मुझे बताया नहीं...


राजवीर अंकल मुझे देखकर हंसते हुए कहने लगे... "तुमने गर्व से छाती चौड़ी कर दी"..


मै:- ऐसा क्या कर दिया मैंने..


राजवीर अंकल:- ब्लड टेस्ट करवाने के लिए तुमने ही कहा था ना..


मै:- 20 लड़के को सामने खड़ा करके मुझसे कहता है हिम्मत तो मेरे खून मे है, फिर उसे और क्या कहती..


राजवीर अंकल:- हाहाहाहा... बिल्कुल सही जवाब.. जाओ आराम से मार्केटिंग करो, गुरुवार को मै मंदिर पर ही मिल जाऊंगा...


लगभग आधे घंटे तक हम दोनों के बीच बातचीत चलती रही, लेकिन जब लौटकर मै रूपाली दीदी के पास पहुंची, वो एक कोने में अपने सर पर हाथ रखकर बैठी थी. मै उनके पास पहुंचकर... "क्या हुआ दीदी, आप ऐसे क्यों बैठी हो.. अब तक शॉपिंग शुरू नहीं किए क्या?"


रूपाली दीदी थोड़ी चिढी सी आवाज में... "तुझे मेरे साथ नहीं आना था तो मत आति, लेकिन ऐसे परेशान करने से क्या मिल गया तुझे. तू आ शॉपिंग करके, मै गांव चली जाऊंगी"..


उनकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई. मुझे हंसते देख वो और ज्यादा चिढ़ गई और छमककर वहां से भागने लगी. किसी तरह उनके हाथ-पाऊं पकड़ कर रोकी. वो रुकी लेकिन नाक पर गुस्सा अब भी था. मुझे लग गया कि ये सब करास्तनी साक्षी की है, उसी ने परेशान किया होगा.


मै सोच ही रही थी कि साक्षी ने ऐसा क्या किया होगा, उतने मे ही स्टोर मैनेजर रूपाली दीदी के पास पहुंचा और बड़े ही कड़क आवाज में कहने लगा... "तुमसे जब बच्चे संभलते नहीं, तो साथ क्यों ले आती हो, पुरा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स डीस्ट्रब है उसकी वजह से. अभी के अभी तुम सब यहां से चले जाओ, नहीं चाहिए ऐसे कस्टमर..."


मै पीछे मुड़ी हुई थी, इसलिए वो स्टोर मैनेजर राजू मुझे नहीं देख पाया और रूपाली दीदी से जो जी में आया बकता चला गया... अब मामला समझ में आया कि वो गुस्से से लाल क्यों है.. उसकी बात खत्म होते ही मै पीछे मुड़ गई... मुझे देखते ही... "मैम आप कब आयी"..


मै:- राजू भैया, आप क्या हर लड़की से ऐसे ही बात करते हैं..


राजू:- नहीं मैम वो बच्चे..


मै एक दम से चिल्लाती हुई पूछी... "जो सवाल किया है आप उसका जवाब दीजिए"..


मेरा गुस्सा देखकर रूपाली दीदी का गुस्सा हवा हो गया... वो मेरा कांधा पकड़कर, मुझे खींचती... "छोड़ जाने दे मेनका, ये बड़े दुकान वाले हैं.. हम कहीं और चलते है"..


मै:- कहीं और क्यों चलना है.. स्टोर है ये या गांव का मछट्टा.. राजू भैया ऐसे आप कस्टमर से बात करते हैं..


राजू:- देखो मुझे यहां हर तरह के कस्टमर देखने पड़ते है, बेहतर होगा मेरे काम के बीच में ना आओ...


इससे पहले कि मै उसे कुछ बोलती, उसके कनपटी के नीचे एक जोरदार थप्पड़ पड़ा... "साला गांव में बेरोजगार पड़ा हुए था, बाबूजी ने तुझे रोजगार दिया और साला तू उन्हीं के धंधे में सेंध लगा रहा है... भाग जा अभी यहां से"..


ये कपिल था जो हमे शुरू से देख रहा था. जैसे ही कपिल ने उसे भगाया, मै रोकती हुई... "नहीं कपिल भईया, नौकरी से मत निकालो, सब आपस के ही लोग हैं. इनके परिवार को परेशानी होगी, तो अंकल को भी परेशानी होगी. इन्हे गोदाम वाले काम मे लगवा दीजिए और स्टोर मैनेजर किसी बेशर्म को बाना दीजिए, जो गली सुनने के बाद भी मुस्कुराकर कहे, सर आपकी परेशानी हम समझते है और उसका निदान अवश्य किया जाएगा"..


रूपाली दीदी के ओर देखकर मै फिर से उनसे माफी मांगी और उनसे कहने लगी, मुझे पता नहीं था, यहां के स्टाफ ने बदतमीजी की है, वरना उसकी क्लास तो मै यूं लगा सकती हूं. रूपाली दीदी मेरी बात और हरकतों से हंस दी. फिर हम दोनो बहने कॉफी पीती हुई इसी विषय पर बात करने लगे कि यह हंगामा कौन सा है जिसके चलते उसके पिताजी और भाइयों को यहां आना पर गया, और इस शॉपिंग मॉल की क्या कहानी है..


मै उन्हे विस्तार से सब समझाती रही और उधर कपिल, साक्षी और केशव को शॉपिंग करवा रहा था. 10 मिनट के छोटे से क्लैरिफिकेशन के बाद उनसे सॉरी बोलती हुई कहने लगी की मेरे वजह से आप जीजू को तो भुल ही गई. हालांकि रूपाली दीदी मना करती रही की अब रहने देते है फिर कभी मिल लेंगे, लेकिन मै ही जिद पकड़कर बैठ गई नहीं मुझे मिलना है...


मन तो मिलने का रूपाली दीदी का भी था, इसलिए थोड़ी सी जबरदस्ती के बाद दीदी ने जीजू को यहीं शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में ही बुलवा लिया. देखा सुनी के बाद ये पहली छुपके मुलाकात थी. वैसे इनकी जगह कोई और होता तो मिलने मे काफी रिस्क था, लेकिन यहां ना तो कोई रूपाली दीदी को पहचानता था और ना ही होने वाले जीजू नितेश को.


वैसे तो उनका पूरा परिवार इसी सहर मे रहता है लेकिन नितेश की पढ़ाई अपने ननिहाल में हुई, इसलिए यहां ज्यादा लोग पहचानते नहीं है. हमारे साथ तकरीबन आधे घंटे समय बिताने के बाद वो रूपाली दीदी को आंखो के इशारे से अकेले में आने के लिए कहने लगे...


मुझे समझते देर न लगी कि इन होने वाले जोड़े के बीच, मै हड्डी बनी हुई हूं. इसलिए मै केशव और साक्षी के पास चली गई. जाते-जाते कहती गई, मै शॉपिंग करवाने जा रही हूं, जीजू को विदा करके फोन करना. मेरे ख्याल से मेरे वहां से निकलते ही, वो दोनो भी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स से निकल गए.


केशव और साक्षी की शॉपिंग खत्म हो चुकी थी, दोनो ही पिज़्ज़ा खिलाने की जिद करने लगे. मै उन दोनों को लेकर डोमिनोज पहुंच गई, और जाते-जाते रूपाली दीदी को एसएमएस भी करती चली..


शॉपिंग हो गई थी, पिज़्ज़ा भी हमने खा लिया. मन नहीं लग रहा था तो अपने सहर वाले मकान में भी पहुंच गए. काम लगभग फिनिश होने पर थे, और ना चाहते हुए भी हमे मनीष भैया और रूपा भाभी का छेड़ छाड़ देखने को मिल रही थी, जिसमे केशव ने खलल डाल दिया.


बेचारे भैया और भाभी.. जैसे ही उन्हे पता चला हम यहां आए हैं, वो दोनो हड़बड़ा गए. मनीष भैया इधर-उधर देखते हुए, मुझे पूरे घर के बारे में बता रहे थे. कुछ देर घर देखने के बाद, मै भी उनको छोड़कर वहां से निकल गई. करने दो भाई रोमांस, बिना उसके तो वैसे भी जिंदगी में कोई रोमांच नहीं.. 11.30 बजे सहर पहुंची थी, रूपाली दीदी को 12.30 बजे छोड़ा था, और 4 बजे तक इनका कोई पता नहीं.


झल्ली को दिमाग भी नहीं की घर के लोग मेरे ही प्राण निकाल लेंगे. मै भी केशव और साक्षी को लेकर कुछ देर और घूमती रही. तकरीबन 4.30 बजे रूपाली दीदी का कॉल आया और वो मुझे किसी पते पर पहुंचने के लिए कही. मैंने भी उनको सुना दिया कि मै यहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ नहीं जो कहीं भी बुला रही, चुपचाप कोई आसान पता बाता दो.


तभी नितेश की आवाज उधर से आयी और मै उनके बताए रास्ते पर चलना शुरू कर दी. ये भी ना, मरवा ही देगी. जिस रास्ता वो आने के लिए कह रहे थे, वो हमारे सहर वाले घर के कॉलोनी से होकर जाता था. किसी तरह हिम्मत करके मै उस रास्ते से चली तो गई, लेकिन अब तो रात में ही पता चलता की मनीष भैया या रूपा भाभी ने कार को देखा या नहीं..


मै बताए पते पर पहुंची. मंदिर के पास ही रूपाली दीदी और नितेश खड़े थे. मै एक झलक रूपाली दीदी को देखी और मेरी आखें बड़ी हो गई. मैंने घूमाकर कार उनके पास लगाई और आगे का दरवाजा खोल दिया. नितेश आंखें बड़ी किए मेरे किनारे वाले विंडो पर पहुंचकर.… "आप कार से आयी हो"..


मै:- आप कार को देखकर सदमे मे है या मुझे ड्राइविंग सीट पर देखकर...


नितेश:- आपको ड्राइविंग सीट पर देखकर. जिस उम्र में लाइसेंस नहीं मिलती, आप कार चला रही है. ऊपर से पूरी जिंदगी गांव में ही रही..


मै:- सोच बदलीए होने वाले जीजू, गांव की लड़कियां आज कल ट्रैक्टर चलाकर खेती भी करने लगी है, आप तो कार में देखकर हैरान हो गए. केवल सहर की लड़कियां ही कार चलाती अच्छी दिखती है क्या?


नितेश:- हा हा हा हा.. इंट्रेस्टिंग.. नहीं मेरे कहने का वो मतलब नहीं था.. आत्मनिर्भर होना कोई गलत बात नहीं.. ठीक है आप लोग निकलो. रूपाली घर पहुंचकर कॉल कर लेना...


नितेश से विदा लेकर मै वहां से निकल गई. रास्ते से मैंने कपिल भईया को कॉल लगाकर बता दिया कि मै अपने नए मकान से निकल रही हूं. उन्होंने भी जवाब में कहा कि वो आउटर रॉड पर ही है. कार फिर चल दी रफ्तार मे और आगे बढ़ते ही … "तो आप दोनो के बीच चक्कर क्या है, और कबसे आप लड़के को जानती है"…


रूपाली दीदी... "देखासुनी के बाद ही तो मै जानुंगी, पता नहीं तू क्या पूछ रही है. यदि मेरे चेंज ड्रेस को देखकर ऐसा कह रही है, तो तुम्हारी सोच बहुत निम्न स्तर की है मेनका, बिल्कुल गांव वाली"..


मै:- मैंने तो बस ऐसे ही छेड़ा था, लेकिन आपका गुस्सा होना मेरे अंदर शक पैदा कर रहा है..


रूपाली:- तू कहना क्या चाह रही है वो साफ-साफ बता दे..


मै:- वहां से मेरा बैग निकलो और लिपस्टिक लगा लो.. और सॉरी जो मैंने आपको टोक दिया. मुझे नहीं पता था मेरी बहन इतनी इरिटेट हो जाएगी... गलती मेरी है जो मै किसी के भी लाइफ में घुस जाती हूं...


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी बिल्कुल ख़ामोश हो गई. उन्होंने तुरंत ही अपना लिपस्टिक ठीक किया और मुझसे बात करने लगी. वो तरह-तरह की सफाई मुझसे देती रही और मैंने बस इतना ही कहा कि आप सही कह रही ऐसा ही हुआ है... लेकिन उन्हें भी पता था कि मै उनकी बातो पर रत्ती भर भी यकीन नहीं कर रही.


फिर मैंने कार एक चूड़ी के शॉप पर रोक दी और रूपाली दीदी को हाथ की चूड़ियां बदल लेने कहने लगी, क्योंकि उनके कांच की लाल चूड़ियां कुछ ज्यादा ही कम हो चुकी थी... एक बार फिर वो खुद मे शर्मिंदा सी मेहसूस करने लगी. थोड़ा ढूंढने के बाद ठीक वैसी ही चूड़ियां भी मिल गई.


रूपाली दीदी कुछ बोलने को हुई, लेकिन मैंने उन्हें इशारे मे समझाया की साथ मे साक्षी और केशव बैठे है. पूरे रास्ते हम दोनों के बीच लगभग खामोशी ही रही. जैसे ही मै घर पहुंची, शॉपिंग बैग निकालकर सबके लिए लाए सामान को दिखाने लगी.


मैंने अमित और सुमित भैया के लिए घड़ी और वॉलेट ली थी. दोनो देखकर काफी खुश हो गए. साथ मे मैंने दोनो की बीवी, यानी दोनो भाभियों के लिए मेकअप किट खरीदी थी वो दे दी.. मेरी मामी मेरे सर पर एक हाथ मारती, मां से शिकायती लहजे में कहने लगी… "ये मेनका फालतू में इतने पैसे उड़ा रही है, कोई रोकने वाला नहीं. अमित और सुमित दोनो इससे इतने बड़े है, फिर भी गिफ्ट लेकर आयी है बताओ"…


मै, मामी के गले लगकर उनके गाल को चूमती... "मामी, गिफ्ट नहीं है, अपने पसंद से आप सब के लिए कुछ ली हूं बस इतना ही. इसमें बड़ा-छोटा देखोगी तो मै आपसे बात नहीं करने वाली"..


उधर से बड़ी भाभी और मां दोनो ने ही मेरा समर्थन कर दिया. तभी मां मुझसे पूछने लगी कि जो काम करने कही थी, वो हुआ की नहीं.. तभी मैंने सबके सामने नेकलेस का एक सेट रखती, रूपाली दीदी को आवाज लगा दी... "रूपाली दीदी, यहां आकर देखो तो जरा ये"..


मै तो घर के लोगों के बीच पहुंचकर उनकी बात भुल भी चुकी थी, लेकिन वो ऐसे गुमसुम पहुंची जैसे चोरी पकड़ी गई हो और सजा के लिए उन्हे बुलाया जा रहा था. हार देखकर वो पूछने लगी कि किसके लिए लिया गया है. जैसे ही मैंने कहा कि मुझे ये मनीष और महेश भैया के ओर से गिफ्ट मिला है, साक्षी फटाक से वो बॉक्स बंद करती.. "दीदी ये मेरा हुआ"..
:superb: :good: amazing update hai nain bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
Rajveer uncle ne to apni poori fauz hi menka ki suraksha mein laga rakhi hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai
 
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aman rathore

Enigma ke pankhe
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अध्याय 10 :: भाग:- 4




सुबह के 7.30 बजे जैसे ही पंचायत शुरू होने वाली थी, वहां 1000 नहीं बल्कि 5000 विधायक के समर्थक जुट चुके थे, जो असगर आलम के नारे लगा रहे थे. तभी वहां लगे माईक पर महादेव मिश्रा की आवाज गूंजने लगी और सारी आवाजें चुप.… "मेरा नाम यदि भुल गए हो तो याद दिलाता चलूं, महादेव मिश्रा.." .. इतना सुनते ही सब चुप.. फिर माईक पर दूसरी आवाज गूंजी... "जो मुझे नहीं जानते उन्हे मै अपना नाम बताता चलूं, मेरा नाम राजवीर सिंह है और गुरुदेव के कहने पर मै भी इस पंचायत का हिस्सा हूं. बस एक ही बात कहूंगा, दंगे के इरादे से जो भी आए हो, अभी लौट जाओ, 5 मिनट का वक्त है. उसके बाद मै नहीं पूछने वाला."..


जैसे ही बैक टू बैक इस इलाके के 2 दबंगो ने अपनी आवाज बुलंद की, वहां के 5000 की भीड़ अगले 5 मिनट में महज 100 लोगो कि रह गई. 5 मिनट समाप्त होते ही, महादेव मिश्रा.… "असगर आलम दंगे भड़काने के इरादे से तुमने लोग बुलाए थे, ये साबित होता है. तुम्हे अपने पोस्ट का घमंड हो गया है, या तो अभी राजीनामा दो, या मै तुम्हारा सर काटकर इसी पीपल के पेड़ पर टांग दूं"..


विधायक असगर... "गुरुदेव मैंने दंगे भड़काने के लिए किसी को नहीं बुलाया. मै भला पंचायत में लोगो को क्यूं लेकर आऊंगा."


महादेव मिश्रा:- बख्तियार (बाजार की सड़क के उस पार के गांव का मुखिया) सच बताओ..


बख्तियार:- गुरुदेव विधायक के लोग दंगे फसाने आए थे, मै गवाह हूं...


महादेव मिश्रा:- असगर अब क्या कहना है..


असगर आलम:- इसपर अंत में बात करते है गुरुदेव, पहले मुख्य मुद्दे पर काम कर ले. क्योंकि किसी की साजिश को गलत साबित करने के लिए मुझे भी तो वक्त चाहिए होगा...


महादेव मिश्रा:- हम्मम ! ठीक है असगर.. चलो मुख्य मुद्दे पर ही आते है.. तुम्हारा बेटा मेले के पहले दिन हुरदांगी किया. अपने दोस्तों के साथ मिलकर बहू-बेटियो के साथ बदतमीजी की.. जिसके लिए पहले भी पंचायत बुलाई गई थी और हिदायत के साथ छोड़ा गया था..


असगर आलम:- मानता हूं गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- उस पंचायत के बाद तुमने गंगा के यहां डकैती करवा दी..


असगर आलम:- मुझे उस बात का इल्म नहीं था, वो पुरा किया मेरे बड़े बेटे सहजाद का काम था.. ये बात मैंने अनूप जी (मेनका के पिता) से भी कहा था. तब इन्होंने कहा था, उनका बेटा कभी इस इलाके में देखा गया तो मार कर फिकवा देगा. तय बात के अनुसार मैंने 3 गुना भरपाई भी की है...


महादेव मिश्रा:- फिर रविवार की घटना के बारे में क्या कहोगे... एक छोटी सी लड़की को इतने अभद्र शब्द कहे तुम्हारे छोटे बेटे और उसके दोस्तो ने. और मेला प्रबंधन ने जब एक्शन लिया तो तुम्हारे तीनो बेटे ने कहा की मेरा छोटे भाई का चैलेंज, हम एक्सेप्ट करते है..


असगर आलम:- गुरुदेव मेरा छोटा बेटा मुझसे और अपने भाइयों से कुछ ज्यादा ही प्यार करता है. हमारे मोह मे आकर वो बदले की भावना से मेले में चला आया, बाकी उसका गलत इरादा नहीं था. इसे आप आवेश मे लिया गया कदम मान सकते है...


महादेव मिश्रा:- असगर तुम कुछ और कह रहे हो, और तुम्हारे बेटों की मनसा कुछ और ही नजर आती है. जब तुम सबको पता था कि तुम्हारा छोटा बेटा गलत है, फिर तुम्हारे तीनो बेटे ने ऐसा हवा क्यों उड़ाई की गांव के बाजार आकर तो देखे वो लड़की... जवाब तुम्हारा बेटे मे से कोई एक देगा...


लियाकत, असगर का दूसरे नंबर का बेटा.… "सभी पांचों का मेरा नमस्कार. मै अपने भाइयों की हरकत से शर्मिंदा हूं, और ये सत्य है कि मेरे सबसे बड़े भाई सहजाद और मुझसे ठीक छोटा वाला भाई अमजद ने मिलकर ऐसी बात बोली थी. लेकिन बोलने के पीछे की वजह कोई दुश्मनी नहीं, बल्कि अपने भाई की हॉस्पिटल में हालत देखकर ऐसा निकला था. अपने भाइयों के ओर से मै माफी मांगता हूं..


महादेव मिश्रा:- तुम्हारा नाम क्या है?


लियाकत:- जी लियाकत है गुरुदेव..


महादेव मिश्रा:- लियाकत तुमने जो कहा वो सही हो सकता है. गुस्से में शायद तुम्हारे दोनो भाई हमला भी कर सकते थे, लेकिन यह कहां से तर्क संगत है कि आवेश मे आकर, तुम्हारे दोनों भाई, अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव के 2 बेटियो को अपने हवस का शिकार बनाने की कोशिश की थी.. फैजान पर 8 लड़की के साथ छेड़खानी और 2 लड़की को गायब करने का आरोप पहले भी साबित हो चुका है. उसकी शादी भी बलात्कार का ही नतीजा था. सिर्फ तुम्हे छोड़कर बाकी तुम्हारे तीनो भाई के कुकर्म माफी लायक नहीं है, सहजाद और अमजद पर भी कई आरोप साबित हो चुके है. वर्तमान की घटना और इतिहास भी देख लो और फिर दो जवाब...


साहजाद:- ए मिश्रा ये कौन सा खेल खेल रहे हो. मदरचोद किसी एक को भी मै नहीं छोड़ने वाला...


असगर ने जैसे ही अपने बेटे को सुना, अपने सर पर हाथ रखकर माथा पीटने लगा. नज़रों के इशारे से उसने अपने दूसरे नंबर के बेटे को देखा, उसने खींचकर अपने बड़े भाई को एक थप्पड़ दिया और अपने साथ आए लोगो को उसे शांत बिठाने के लिए कहने लगा...


लियाकत:- मै पंच के सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूं...


महादेव मिश्रा:- हां बोलो..


लियाकत:- हमे पूर्ण मामले का ज्ञान हो चला है.. मै चाहता हूं, इस मामले में मै और मेरे अब्बू दोषियों को सजा देंगे.. खबर आप तक पहुंच जाएगी.. यदि हमारी सजा आपको अच्छी ना लगे, तो अगली पंचायत मे आने से पहले मेरे अब्बू राजीनामा देकर पंचायत मे आएंगे और जो भी आप लोगों का फैसला होगा वो हमे मंजूर होगा...


10 मिनट के पंचायत को विराम दिया गया, ताकि आपस म विचार विमर्श किया जाए. इधर जबतक असगर का दूसरे नंबर का बेटा हमारे परिवार के करीब पहुंचा और मेरे सामने हाथ जोड़कर... "तुम तो वाकई शेरनी की तरह हो, 20-25 लड़को के बीच घिरे होकर भी क्या खूब हिम्मत दिखाई. मै तुमसे वादा करता हूं, उनका फैसला मै खुद करूंगा, भले ही वो मेरे भाई ही क्यों ना है. बस एक छोटी सी विनती है"..


पापा:- क्या?


लियाकत:- जब हम पुरा फैसला कर ले और आपको हमारे फैसले से संतुष्टि हो तो आप सपरिवार हमारे आंगन आए और मेहमान नवाजी स्वीकार करे..


महेश भैया:- हम्मम ! तुम पहले करके बताओ, फिर हम जरूर पहुंचेंगे...

इतने में पंचायत ने मंथन के बाद फैसला दिया... "असगर के दूसरे बेटे लियाकत की बात हम मानते है, आने वाले रविवार से पहले तक, वो सबको सजा दे दे. यदि ऐसा करने में विफल हुए तो रविवार की सभा में ये पंचायत बिना किसी पक्ष को सुने अपना फैसला सुना देगी, जो मान्य होगा. अनूप तुम्हे हमारा फैसला मंजूर है"..


पापा:- जैसा पंचो का फैसला हो, हमे मंजूर है...


वहां से सभा टूटी और हर कोई हैरान था. फैसला उन्हीं पर छोड़ना सही था या गलत ये तो रविवार से पहले पता चल ही जाता लेकिन जब सभा टूट रही थी तब नरेंद्र (अमृता का पति) और सुनील (पुष्पा का पति) को लियाकत से जब बात करते देखी, तब मामला समझ में आया कि वो गांव की 2 बेटी कौन थी.

मुझे असगर के बेटों की बेवकूफी पर हंसी आ गई. आप सोच रहे है की ऐसे मामलों में क्या नतीजा होता है तो, मै आपको बता दूं कि यहां कोई फिल्म नही चल रहा, जिसमे जुल्म करने वाला पहले जीत जाए और बाद में एक हीरो उनके जुल्म का हिसाब एक-एक करके ले.


यहां बात ज्यादा बढ़ती है तो रक्त चरित्र ही देखने मिलता है, फिर दुश्मनी को मिटाने के लिए हर एक दुश्मन को साफ कर दिया जाता है. ठीक वैसे ही जैसे आपने गैंग ऑफ़ वासेपुर फिल्म में देखा होगा. हमारे गांव की ऐसी घटनाओं में तो वो फिल्म मात्र एक ट्रेलर था, क्योंकि सहर में रहने वालों को तो भनक भी नहीं होती कि गांव में क्या चल रहा है.


यहां पहले तो किसी तरह मामले को शांत ही किया जाता है, किन्तु जब मामला हाथ से निकल जाए, तो यहां ना तो पुलिस पहुंचती है और ना ही मीडिया, और ना ही फैसला कोर्ट के भरोसे छोड़ते है. फिर तो कुछ दिनों तक लाशों का खेल चलता है और उसके बाद सालों तक सब शांत.


पंचायत खत्म होने के बाद हम सब लौट आए. पापा और भाईय गांव के कुछ लोगो के साथ जब बात कर रहे थे, तब यही कह रहे थे कि असगर और उसका बेटा लियाकत अपनी छवि अब साफ करने के इरादे से होगा.


एक बार बाप को अपने बेटे से मोह हो सकता है, लेकिन जब इज्जत और राजनैतिक कैरियर दाव पर लगा हो, तो सारा मोह भंग हो जाता है. असगर और लियाकत पर कितना दबाव था, इस बात का अंदाजा सिर्फ इस बातों से लगाया जा सकता था कि शुक्रवार के दिन महादेव मिश्रा को खेत में एक स्पॉट पर बुलाया गया. वहां सहजाद, अमजद और उसके 12 साथियों को काटकर वहीं खेत में गार दिया गया.


फैजान और उसके 20 साथियों का इलाज सहर में हो रहा था, वो भी पुलिस कस्टडी में. शुक्रवार की रात में ही उनका बेल करवाया गया और शनिवार को उनका डिस्चार्ज पेपर बन गया. शनिवार को शाम के 4 बजे खबर आयी की मिनी वैन में सवार 21 यात्री, वैन के डबरा में डूबने के कारन सबकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई. मामला का संज्ञान लेने मौके पर डीएम और एसपी पहुंचे.


(डबरा, एक बहुत बड़े और गहरे गड्ढे में जमा पानी को कहते है. जिसके ऊपर आमुमण जल कुंभी उगी रहती है. उसे देखकर गहराई का अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, किन्तु किसी-किसी डबरे की गहराई इतनी होती है कि उसमे 2-3 बस एक साथ समा जाए)


केवल ड्राइवर अपनी जान बचा पाया, क्योंकि घटना के कुछ वक्त पूर्व ही उन लड़को ने ड्राइवर को रास्ते में उतारकर, खुद ही गाड़ी ड्राइव कर रहे थे. रात के 8 बजे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट क्लियर बता रही थी कि सब के सब नशे म थे और नशे की हालत में होने के कारण कोई भी अपनी जान बचा नहीं पाया..


ये तो प्रेस और मीडिया की खबर थी, लेकिन सच्चाई क्या थी वो हम सब गांव वाले जानते थे. असगर के कहने पर 2 दिन मे कुल 46 लाश गिरा दी गई थी. जिसमे से 21 लोगो को तो नाटकीय ढंग से डूबा कर मारा गया था. 14 लोग को शुक्रवार को खेत में काटकर फेका गया था और 11 लोगों को लियाकत ने ट्रेस किया था जो उनके भाई सहजाद के साथ मिलकर, पंचायत में दंगा भड़काने पहुंचे थे, जिसमे गांव का मुखिया बख्तियार भी सामिल था.


ये सब लिस्ट महादेव मिश्रा की थी, जिसे उसने लियाकत को सौंपी थी. लियाकत और असगर की मुलाकात, पंचायत से ठीक पहले, बुधवार की रात को, राजवीर अंकल और महादेव मिश्रा से हुई थी. बुधवार की रात ही लियाकत अपने पॉलिटिकल कैरियर को हवा देने और गांव में अपनी स्तिथि को मजबूत करने के लिए, अपने बाप को अपने साथ मिला चुका था.


अंदर ही अंदर वैसे लियाकत की भी अपनी कहानी चल रही थी. दरअसल पुष्पा और अमृता का पति लियाकत का बहुत गहरा मित्र था. वो इतना भन्नाए थे कि वो सबको साफ करने का मन बना चुके थे. चूंकि लियाकत उन दोनों के करीबी मित्र मे से एक था, इसलिए इस मामले की जानकारी लियाकत को भी हो चली थी...


एक ओर ये दोनो थे, तो दूसरे ओर राजवीर अंकल भी सीधा भिड़ंत के इरादे से थे और सबको साफ करने का मन बना चुके थे. इधर मनीष भैया और महेश भैया भी पूरी योजना बना चुके थे, इस सिलसिले में मनीष भैया, अपने मामा ससुर और पूर्व गृह मंत्री से मुलाकात भी कर चुके थे. मनीष और महेश भैया भी पूरी तैयारी में थे.. और इस बात की जानकारी महदेव मिश्रा को हो चली थी.


असगर आलम महादेव मिश्रा का ही चेला था, इसलिए महादेव मिश्रा ने ये गुप्त मीटिंग राखी. उसी मीटिंग में असगर, महादेव मिश्रा के कहने पर अपना पुत्र मोह त्याग दिया था और पंचायत मे क्या करना है, इस बात की योजना एक रात पूर्व ही बन चुकी थी, जिसमे चौंकने की स्तिथि तब बन गई, जब अचानक ही दंगे भड़काने के लिए लोग पहुंच चुके थे... किन्तु जहां महादेव मिश्रा हो ऊपर से राजवीर सिंह भी साथ में, फिर किसी की गुंडई चल सकती थी क्या?


वैसे शुक्रवार और शनिवार को जितने भी मर्डर हुए, वो बिना पंचायत के भी हो सकता था, लेकिन असगर के खराब इमेज को सुधारने और लियाकत को आने वाले लोक सभा इलेक्शन मे लॉन्च की तैयारी के इरादे से, पंचायत का बुलाई गई थी. पंचायत के सारे फैसले पूर्व से सुनिश्चित किए हुए थे, ताकि लियाकत की छवि उभरकर सबके सामने आए..


घिनौने कुकर्म के कारण उपजे माहौल ने ऐसा सामाजिक दबाव बनाया, जिसमे राजनीतिक रंग अपने पूरे उफान पर था और यही राजनीतिक रंग 46 लोगों को काल के गाल में निगल चुकी थी, जिसमे एक गांव का मुखिया भी था. मुखिया के मर्डर को कवर करने के लिए गांव का एक आदमी खुद सरेंडर कर दिया और उसने पुलिस को बताया कि गांव के सड़क और डबरा पर ध्यान ना देने कारन उसके 20 साथी डूबकर मर गए, जिसका दोषी मुखिया बख्तियार था. इसलिए मैंने गुस्से में उसे मार दिया...


उफ्फ क्या माहौल बनाया था लियाकत ने. चारो ओर बस जैसे उसी के नाम का डंका बज रहा हो. पूरे मामले का क्रेडिट लियाकत ही लेकर गया था. बात जो भी हो, लेकिन रविवार की सुबह तो रविवार की सुबह थी. मै आज ठीक वैसे ही तैयार हुई थी जैसे मै शवन मेले के पहले दिन तैयार हुई थी.
:superb: :good: :perfect: awesome update hai nain bhai,
Behad hi shandaar, lajawab aur amazing update hai bhai,
Ek menka ne poore ilaake mein hadkamp machwa diya hai,
Ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 

DARK WOLFKING

Supreme
15,567
32,007
259
अध्याय 10 :: भाग:- 1


मंगलवार को श्रावण मेला भी समाप्त हो गया. नरेंद्र जी इस बार गांव के निशानची बने और उपविजेता रूपा भाभी. फिर भी फाइनल के दिन सभी भाभी ने मिलकर जो ही हूटिंग की थी, नरेंद्र के कानो से लगभग खून निकाल चुकी थी. फिर भी किसी तरह वो ये प्रतियोगिता जितने मे कामयाब रहे.


मेले का आकर्षण ऑर्केस्ट्रा इस बार भी धांसू ही रहा, उसपर से रसियन बाला ने उसपर क्या चार चांद लगाया था, हर बूढ़ा झूम-झूम कर नाच रहा था.


सावन पूर्णिमा, सावन का आखरी दिन. राखी के त्योहार वाला दिन. सुबह उठकर मै सबसे पहले साक्षी और केशव (मेरे बड़े भैया महेश के दोनो बच्चे) के कमरे में ही गई. दोनो गहरी नींद में थे. मै उनके सिरहाने बैठकर दोनो के सर पर हाथ फेरने लगी.


जैसे ही मैंने साक्षी के सर पर हाथ फेरा, उसने अपनी आंखे खोल ली, और मुझे देखकर नकियाना शुरू कर दी... "अरे, अरे, अरे.. क्या हो गया मेरी नन्ही लाडली को, ऐसे सुबह सुबह रोना"..


साक्षी:- दीदी सोने दो ना..


मै:- हां तो मै कौन सा तुझे जगाने आयी हूं, मै तो बस देखने आयी थी...


साक्षी:- लेकिन मै तो जाग गई ना, अब छोड़ो उसे. दीदी आज सहर ले चलो ना घूमने..


मै:- इतने दिन मेला घूमी सो नहीं हुआ, कुछ दिन रुक जा फिर चलेंगे.. वैसे भी आज तो राखी का त्योहार है ना, तू केशव, कुणाल और किशोर को राखी नहीं बांधेगी…


साक्षी:- सब बेईमान है.. आपको तो ढेर सारे गिफ्ट मिलेंगे, पैसा मिलेगा, मुझे क्या मिलेगा...


मै:- पागल तेरे लिए भी ढेर सारा गिफ्ट ली हूं, और मेरा जो-जो गिफ्ट तुझे पसंद आए ले लेना.. अब खुश..


साक्षी चहकती हुई मुझसे लिपटकर... "मै तो आपका सारा सामान ले लूंगी"..


मै:- हां ठीक है तू ले लेना.. चल पहले मै तुझे तैयार कर देती हूं.. फिर मै तैयार हो जाऊंगी... वैसे भी तेरे लिए बहुत सारी चीज़ें मंगवाई है, तू देखेगी नहीं..


साक्षी:- सच्ची मे दीदी.. चलो ना दिखाओ मुझे..


मै, साक्षी की उत्सुकता समझ सकती थी. उसे मै अपने साथ लेकर अपने कमरे में ले आयी. पहले तो स्नान करवाया, फिर खुद ही उसे कपड़े पहनाने लगी. मै चाहती थी आज बुआ और भतीजी एक जैसे दिखे, इसलिए मै बिल्कुल एक जैसा नया ड्रेस लेकर आयी थी..


लाइट ग्रीन कलर का प्रिंटेड गाउन, जिसका नीचे का घेरा काफी लंबा था और दिखने में काफी खूबसूरत. जब मै साक्षी को ये नया ड्रेस पहना रही थी, तब उसके चेहरे की खुशी देखते बनती थी. कपड़े पहनाने के बाद फिर मैंने उसके बाल बनाए. उसके दोनो हाथ में लाल रंग की चूड़ियां डाली. हल्का मेकअप किया. कान, नाक और गले में जेवर पहनाकर जब मै उसे एक झलक ऊपर से नीचे देखी, तो बस देखती रह गई.. बड़ी प्यारी लग रही थी...


तैयार करने के बाद मै उसकी एक फोटो लेकर बड़ी भाभी के पास ले जाने के लिए जैसे ही अपने कमरे का दरवाजा खोला, उधर से मुख्य द्वार का भी दरवाजा खुल गया और सामने मेरे बड़े मामा, साथ में रूपाली दीदी और उनके साथ मेरे दोनो ममेरे भाई अमित और सुमित थे..


तीनों ही मुझसे बड़े थे, जिसमे से रूपाली दीदी कि शादी कुछ दिन पहले ही तय हुई थी, उससे ज्यादा पता नहीं और दोनो ममेरे भाई की शादी हो चुकी थी.. लेकिन दोनो भाभी अपने बच्चो के साथ मायके गई थी, इसलिए उनका आना नहीं हो पाया था.. हम सबने लगभग एक ही वक्त पर दरवाजा खोला था…


उन लोगो के आखों के सामने पूर्ण रूप से तैयार साक्षी थी, जिसे देखकर रूपाली दीदी भागी-भागी उसके पास आयी और साक्षी को अपने गोद में उठाकर... "अरे बाप रे, ये मेनका की लाडली इतनी बन संवर कर कहां निकली है"


साक्षी:- रूपाली बुआ मै आपसे बात नहीं करूंगी. आपने मुझे ठगा था..


रूपाली अपनी आखें बड़ी करती... "मैंने तुझे कब ठग लिया.. या तू अपने मन से सब कह रही है"…


इधर जबतक घर के सभी सदस्य बाहर निकालकर आपस में सब मेल मिलाप में लगे हुए थे. साक्षी, रूपाली की बातो का जवाब देती... "दीदी, रूपाली बुआ ने फोन पर कहा था ना कि वो होली में आएगी और हम दोनों के साथ पिकनिक पर भी जाएंगी"…


रूपाली:- अरे यार मेनका ये सोभा भाभी ने क्या खाकर इसे पैदा किया, कुछ भी भूलती नहीं है क्या ये?


मै:- दीदी, साक्षी के दिमाग का सिस्टम पुरा अपग्रेडेड है.. कुछ भी इससे आप प्रोमिस कीजिए, तुरंत अपने दिमाग में डाउनलोड करके सेव कर लेती है.. बड़ी खतरनाक चीज है...


हम दोनों जबतक बात कर रहे थे, तबतक हर किसी का ध्यान साक्षी पर जा चुका था और हर कोई उसे अपने गोद में लेकर प्यार कर रहा था. मै और रूपाली दीदी मेरे कमरे में आ गए. लगभग साल भर बाद दोनो बहने मिल रही थी, हालांकि रूपा भाभी वाले कांड मे रूपाली दीदी आयी तो थी, लेकिन फुरसत से बात नहीं हो पाई थी...


मै:- क्या बात है रूपाली दीदी आप तो आजकल फोन करना भी भुल गई..


रूपाली:- बदमाश तो तू ही कहां फोन कर लेती थी..


मै:- मुंह मत खुलवाओ मेरा, एक दो दिन छोड़कर सबसे बातें हो ही जाती है, बस आपसे ही बात नहीं हो पाती.. मुझे भी पता है मिस रूपाली आजकल कहां फोन से चिपकी रहती है...


मेरी बातो पर रूपाली दीदी केवल हंस दी और बात बदलती हुई कहने लगी... "जल्दी तैयार होकर बाहर आ जा, सबको राखी बांधकर हम शॉपिंग करने चलेंगे"..


मै:- हमदोनो अकेले, या सपरिवार..


रूपाली दीदी समझ गई मै किस ओर इशारा कर रही थी, मेरे सर पर एक हाथ मारती... "तू सुबह-सुबह मुझे ही छेड़ रही है. जो बोला वो जल्दी कर"..


रूपाली दीदी को देखकर मै हंसती हुई बाथरूम में घुस गई. फटाफट नहाकर, मै भी बाथरूम से निकली और तैयार होने लगी. मै और साक्षी लगभग एक जैसे तैयार हुए थे. मै जैसे ही बाहर निकली सब लोग मुझे ही देखने लगे...



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साक्षी भागकर मेरे पास खड़ी हो गई और उत्साह से कहने लगी... "आज मै और दीदी सेम-सेम तैयार हुए है." क्या वाकई में मै इतनी सुंदर दिख रही थी कि मां मुझे देखकर काला टिका लगाने पहुंच गई... फिर तो लोगों ने भी ऐसे-ऐसे कमेंट किए की मै सर नीचे करके शर्माए जा रही थी...


रूपाली दीदी तो मानो बिल्कुल मुझसे इंप्रेस ही हो गई. वो मुझे अकेले कमरे में ले जाकर पूछने लगी कि कहीं किसी लड़के के लिए तो मै तैयार नहीं हुई. मै भी हंसती हुई कहने लगी, एक नहीं कई लड़को के लिए तैयार हुई हूं. मै आज अपने भाइयों के लिए तैयार हुई हूं. हम दोनों ही हसने लगे...


पहले मैंने साक्षी से रखी बंधवाया, फिर खुद सबको राखी बांधी, इतने में रूपाली दीदी भी तैयार होकर पहुंच गई. उफ्फ क्या लग रही थी. मै तो भाइयों के लिए तैयार हुई थी लेकिन उनका तैयार होना सारी कहानी बयां कर रही थी.


स्लीवलेस रेड कलर की गाउन, जो पेट से लेकर सीने तक ऐसा फिट था कि बदन का हर कर्व दिखा रही थी, ऊपर से कपड़े का वी गला, जो हल्की गहरी थी, जिसमे हल्की क्लीवेज लाइनिंग दिख रही थी. ऊपर से अगर अपना वो लाल रंग का फैंसी दुपट्टा नहीं डालती तो शायद कहीं उन्हे कपड़े ना बदलने पड़ जाते..


लगभग 10 बजे तक हम दोनों घर के सभी सदस्य को राखी बांधकर फुरसत हो गए थे. तभी रूपाली दीदी मुंह बनाती हुई आकर मेरे पास बैठ गई... "मेनका तू अपने खानदान वालों को जल्दी से राखी बांधकर आ ना"…


मै:- लेकिन मै क्यों जाऊं किसी के पास, बस यहां नकुल का ना होना अखर गया, बाकी जिसे राखी बंधवाने है उन्हे खुद ही होश नहीं... आधे घंटे और राह देखूंगी, फिर चल दूंगी आपके साथ शॉपिंग करने..


मै रूपाली दीदी से बात कर ही रही थी कि तीसरे घर के तीनो भैया पहुंच गए. वही बबलू भैया के घर के लोग थे, जिन्होंने मुझे गाड़ी चलाना सिखाया था. बबलू भैया आते ही मुझे देखते हुए कहने लगे.… "तू किसी से डर जाती तो हमारा अभिमान डर जाता, बहुत ही सधा हुआ जवाब दिया है, अब यहां से तुझे कुछ चिंता करने की जरूरत नहीं है, हम सब देख लेंगे"…


मै, बबलू भैया की आरती उतारकर राखी बांधने के बाद... "जिसके इतने सारे चाहने वाले भाई हो, उसे चिंता करने या किसी से डरने की जरूरत है क्या? वैसे भाभी की डिलीवरी कब है"..


बबलू:- अगले ही महीने है..


बाकी के दोनो भाई बबलू भैया से छोटे थे और बाहर रहकर पढ़ाई करते थे. मैंने ही उन्हे फोन करके कहा था राखी तक आ जाने. वो दोनो भी पहुंचे हुए थे. चौथे और पांचवां घर से कोई नहीं आया था अबतक. हालांकि इस बात को सभी नोटिस कर रहे थे कि जबसे मेरे और फैजान के बीच का केस हुआ था, नीलेश और नंदू का परिवार हमसे कटा हुआ था.


खैर मै 10.30 बजे तक इंतजार करने कर बाद... "मै फ्री हो गई रूपाली दीदी, बताओ कहां चलोगी बिजली गिराने"..


मेरी बात सुनकर रूपाली दीदी दबी सी हंसी निकाली और झूठा गुस्सा दिखती हुई मुझे डांटने लगी. रूपाली दीदी नौकतांकीबाज थी तो मै क्या उनसे कम थी. उन्होंने तो यह बात गोल कर दिया कि उन्हें अपने होनेवाले से मिलने सहर जाना है लेकिन वो ये भुल गई की उन्हे मेरे साथ ही जाना था..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


फिर दौर शुरू हुआ मस्का पॉलिश का. मै भाव खा रही थी और रूपाली दीदी मुझे सहर चलने के लिए मना रही थी. उनके मिन्नत करना इतना मज़ेदार था कि मै हंसती हुई कहने लगी… "दीदी, मुझसे बैर करके घाटा करवा ली ना, जिस डाल पर बैठते है उसे नहीं काटा करते"..


रूपाली:- मेरी प्यारी बहना, चल तुझे आज मै कान कि बालियां दिलाऊंगी. बस थोड़ा संभल ले..


मै रूपाली दीदी के गले लगती... "वाउ दीदी, सच मे मुझे दिलाने वाली हो या फेक रही हो"..


रूपाली दीदी:- पहले से प्लान है ये तो..


मै:- ओह हो तो अमित और सुमित (मेरे ममेरे भाई के नाम) भैया से मिलने वाला गिफ्ट अपने खाते में डाल रही हो. दीदी बहुत चालू चीज हो आप..


रूपाली:- तो तू कौन सी सीधी है मेनका. ब्लैकमेलर, ठीक है तेरे होने वाले जीजाजी से तुझे एक अच्छी सी ड्रेस दिलवा दूंगी.. अब तो हंस दे बहन..


हम दोनों ही हसने लगे. सुबह साक्षी भी सहर घूमाने बोली थी, सोची केशव और साक्षी भी इसी बहाने घूमकर ले आऊंगी. जाने से पहले मै महेश भैया और मनीष भैया से मिल ली, ताकि रूपाली दीदी को कुछ देना हो तो, मै वहां से खरीद लूं. जब मै उनसे मिलने गई तो सोभा भाभी ने कहा, छोटे छोटे गिफ्ट पर पैसे खर्च ना करे, बल्कि दोनो भाई पैसे मिलाकर कोई जेवर दे दे तो काम भी आ जाएगा...


बड़ी भाभी का प्रस्ताव सबको अच्छा लगा. मनीष भैया ने मां से ये बात कही तो मां ने भी हामी भरते हुए उनके लिए कोई जेवर लेने ही बोल दी. पापा ने मुझे अपने ही खाते से दिलाने देने बोल दी, बाद में वो मुझे वापस कर देते. कुछ देर की मीटिंग के बाद मै और रूपाली दीदी, साक्षी और केशव के साथ सहर के ओर चल दिए.


मै जब गांव के बाजार से कुछ दूर आगे पहुंची, तब मुझे कुछ संका सा हुआ और मैंने कार को पेट्रोल पंप के बगल से मंदिर वाले रास्ते पर ले लिया. मेरा शक सही निकला. 2 कार निश्चित दूरी बनाकर हमारे पीछे आ रही थी. अगला मोड़ काटकर मै कार कोने में लगाकर पीछा कर रही कार के आने का इंतजार करने लगी..
nice update ..raakhi ka tyohar aur menka ne sakshi ko taiyar kiya 😍.sabko raakhi baandhkar ho gayi aur ab menka shopping pe gayi aur waha koi uska pichha kar raha hai 🤔..
lagta hai nilesh aur nandu ki family gussa hai kyunki vidhayak se dushmani le li menka ne ...yaa wo menka ka saath nahi dena chahte yaa vidhayak se shayad koi kaam naa karwa sakte ab isliye ..


waise ek paragraph 2 baar aaya hai jab rupali didi menka ko maska lagane ka aur menka kehti hai jis daal par baitho usko nahi kaatte ..
 
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