Chapter 5
रात के समय
(दीवांक के माँ-बाप दोनों बैड पर बैठे हुए है, दीवांक के पापा मोबाइल चला रहे है और माँ तकिये लेकर बैठी हुई सोच रही है )
(थोड़ा घबराते हुए) दीवांक की माँ अपने पति से "आप से एक बात करनी है दीवांक के बारे में"
(मोबाइल चलाते हुए) दीवांक के पापा “हाँ बोलो"
माँ "आप को नहीं लगता दीवांक कुछ बदल सा गया है, वह बहुत अजीब सा बर्ताव करने लगा है, सीधे मुँह तो बात ही नहीं करता, पता नहीं किस दुनिया में इतना बिजी हैं "
पापा "अच्छा ...और ..."
(अपने पति की तरफ देखते हुए) माँ "ये काफी नहीं है क्या, मैं उसकी इस हरकतों से इतनी टेंशन में हूँ और आप सुन नहीं रहे ....."
पापा "अरे बाबा, तुम बस इतनी सी बात को लेकर चिंतित हो, इस उम्र के बच्चो में यही प्रॉब्लम होती है ऐसे किस्से तो हमेशा सुनने को मिलते है जो भी नए सप्लायर्स आते है उनका भी यही कहना है उनके बच्चे उनकी बात नहीं सुनते और बत्तमीज़ी से बाते करते हैं, तुम चिंता मत करो हर घर की यही कहानियाँ है, जिम्मेदारियाँ बढ़ेगी तो अपने आप ठीक हो जायेगा"
माँ -"लेकिन ....."
( मोबाइल को टेबल पर रखते हुए ) पापा "लेकिन क्या, तुम चिंता मत करो, दीवांक भी ठीक हो जायेगा, चलो अब मैं सोने जा रहा हूँ, तुम भी सो जाओ, गुड नाईट "
(दीवांक की माँ हल्की स्माइल पास करते हुए लेट जाती है लेकिन उनके दिमाग में अभी भी दीवांक की ही चिंता हो रही थी, आरुषि दीवांक से प्यार तो करती थी लेकिन उसके माँ-बाप को उस पर कभी शक भी नहीं होता था क्युकि वो सब से छुपा कर दीवांक से प्यार करती थी, सुबह होते ही दीवांक की माँ दीवांक के पापा को काम पर ले जाने के लिए खाना बनाने लगती है और पैक करके अपने पति को दे देती है उसके बाद वह दीवांक से बात करने जाती है, इस बार दीवांक हॉल में बैठा टीवी पर गाने देख रहा होता है)
माँ को आते देख आवाज़ कम कर देता है)
(सोफे पर बैठते हुए ) माँ - "दीवांक बेटा आपको क्या हो गया है, आप हमसे बात क्यू नहीं करते, मैं आपकी मॉम आपके लिए कुछ भी नहीं"
दीवांक "ओह मॉम आप को क्या हो गया है, आप क्यूँ मेरा मूड ऑफ कर रही हो, मुझे क्या होगा"
माँ "मैं आपका मूड ऑफ कर रही हूँ ना (रुंधे हुए आवाज़ में) गलती मेरी ही है, मुझे अपने बेटे की चिंता हो रही थी तो मैं उससे बात करने आयी हूँ लेकिन मैं तो आपका मूड ऑफ कर रही हूँ न, जाओ आज से मैं आपकी कोई मॉम-वॉम नहीं (दूसरी तरफ फेस घुमा कर आंसू पोंछने लगती हैं )"
(माँ की हाथो को पकड़ते हुए ) दीवांक- "मॉम आप तो दुनिया की सबसे अच्छी मॉम हो, आप को क्या बात करनी है मुझसे (माँ के आंसू पोछते हुए ) बताइये मॉम"
माँ -"आज कल मैं देख रही हूँ आपका घर में मन ही नहीं लगता, घर पर होते हुए भी लगता हैं की आप नहीं हैं, दिन भर पता नहीं कहाँ ग़ुम रहते हैं आप, क्या चल रहा है ये सब "
(माँ के गोद में सिर रखते हुए) दीवांक "मॉम ऐसा कुछ भी नहीं है, ये सब आप का वहम है (थोड़ा सोचते हुए ) बस पता नहीं क्यू ये दुनिया बहुत हसीन लगने लगी है (फिर एक लम्बी गहरी साँस लेता है )"
माँ "आपकी इस दुनिया में माँ-बाप के लिए समय है या नहीं या फिर आप हमें भूल चुके है (इतने में फ़ोन की घंटी बजती है, दीवांक की माँ फ़ोन उठाने के लिए वहा से चली जाती है, मॉम के जाने के बाद दीवांक सीधा छत्त पर जाता है, आरुषि अपने बालकनी में कपड़े डाल रही होती है, दीवांक आरुषि को देखकर रेलिंग के नज़दीक जाता है तभी आरुषि का दोस्त रोहित भी बालकनी में आता है और उससे बाते करने लगता है, ये देख कर दीवांक को जलन होती है, वो नहीं चाहता था के आरुषि से उसके आलावा कोई दूसरा लड़का बातें करे, वो गुस्से से उन दोनों को देख रहा होता हैं वह छत्त के रेलिंग पर जोर से एक पंच मारता है और दूसरी तरफ मुड़ जाता हैं दोनों दीवांक को देखने लगते है फिर दीवांक गुस्से में वहा से चला जाता है)
आरुषि रोहित को एक अच्छा दोस्त मानती थी और एक दोस्त के नाते ही उससे बातें करती थी आरुषि ने जब दीवांक को गुस्से से जाते हुए देखा तो वह समझ जाती है कि उसका रोहित से बाते करना दीवांक को अच्छा नहीं लगा, आरुषि ने रोहित को भी दीवांक के बारे में नहीं बताया था वह कपड़े डाल कर अंदर चली जाती है, आरुषि दीवांक का इंतज़ार करती है लेकिन वह उस दिन छत्त पर दुबारा नहीं आता हैं, आरुषि दीवांक को फ़ोन करती हैं लेकिन वो उसके कॉल्स का भी जवाब नहीं देता हैं तब वो दीवांक के लिए एक लेटर लिखती हैं और उसको छत्त पर आने का इंतज़ार करती हैं |
अगले दिन शाम को दीवांक छत्त पर आता है पहले से ही आरुषि अपने बालकनी में खड़ी होती है दीवांक उसे देख कर अनदेखा करता है और हैडफ़ोन कानो में लगा कर छत्त पर टहलने लग जाता है, आरुषि उससे बाते करने की कोशिश करती है लेकिन दीवांक उसके पास नहीं जाता, आरुषि लेटर को दीवांक के छत्त पर फेंक देती है और अंदर चली जाती है, आरुषि के जाने के बाद दीवांक उस लेटर को उठाता है और निचे लेकर चला जाता है)
उस लेटर में लिखा हुआ था :-
(हाय दीवांक ,तुम मुझसे नाराज़ हो,"लेकिन मेरी गलती क्या है..?",क्यू मुझे सजा दे रहे हो, तुम कल की वजह से नाराज़ हो ना, बट एक बार जान तो लो सच क्या है, कल जो मुझसे बातें कर रहा था वह मेरा फ्रेंड रोहित था, हम एक दूसरे को कई सालो से जानते है, वह बहुत अच्छा इंसान है लेकिन वह बस मेरा फ्रेंड है प्यार तो मैं तुम से ही करती हूँ, आई लव यू दीवांक)
(आरुषि का लेटर पढ़ने के बाद दीवांक के चेहरे पर एक स्माइल आ जाती है, वह दुबारा छत्त पर जाता है पर आरुषि उस समय अपनी बालकनी में नहीं होती है तब दीवांक आरुषि के लिए एक लेटर लिख कर लाता है और छत्त पर उसका इंतज़ार करने लगता है थोड़ी देर बाद जब आरुषि आती है तो दीवांक उसे लेटर दे देता है, अब सब ठीक हो जाता है दोनों पहले की तरह ही एक दूसरे से बातें करने लगते हैं लेकिन दीवांक की मम्मी को दीवांक का बार-बार छत्त पर जाना और निचेआना अच्छा नहीं लगता, वह चुपके से दीवांक के कमरे में जाती है उस समय दीवांक छत्त पर ही होता है दीवांक की माँ बहुत ध्यान से उसके कमरों को देखने लगती है, दीवांक का सामान कमरे में बिखरा पड़ा हुआ था वो उन सब को अपने जगह पर रखती हैं और मन ही मन बड़बड़ाती हैं की दीवांक अपनी चीज़ो को संभाल कर नहीं रखता हैं...खिड़की बंद देख कर वो खिड़की खोलने जाती हैं, खिड़की खोलते ही हवाएं दीवांक के कमरे में आने लगती हैं जिसकी वजह से परदे हिलने लगते हैं, वो देखती हैं कि परदे भी गंदे हो चुके थे इसलिए वो उसे उतारने लगती है, पर्दे उतारते समय उसकी नज़र आरुषि की तस्वीर पर पड़ती है, वो उस तस्वीर को देख लेती हैं जिसे दीवांक ने छुपाया था, दीवांक की माँ वापस पर्दा वही पर लगा देती हैं तभी कमरे की तरफ किसी की आने की आहट आती है वह तुरंत पर्दे को छोड़ देती है और सामान सही ढंग से रखने लगती हैं दीवांक कमरे में आता है)
(गुस्से से) दीवांक "मॉम आप, आप मेरे कमरे में क्या कर रही हैं, मैंने मना किया है न किसी को नहीं आने के लिए, फिर आप क्यू आयी ”
माँ "दीवांक देखो आपका कमरा कितना गन्दा हो रहा है, सारा सामान इधर उधर फैला हुआ हैं, एक भी सामान अपनी जगह नहीं हैं इसलिए मैं इन सब को अपनी जगह पर रख रही थी"
दीवांक -"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, मैं अपना काम खुद कर सकता हूँ, आप जाइये यहाँ से ......."
(दीवांक की माँ वहाँ से चली जाती है, माँ के जाने के तुरंत बाद ही दीवांक अपना दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर लेता है, उस दिन बार-बार दीवांक की माँ के दिमाग में वो तस्वीर खटक रही होती है, वो समझ जाती है वो तस्वीर उनके घर के सामने रह रही लड़की की ही है|
उसी दिन रात को
सभी डिनर करके अपने-अपने कमरे में चले जाते है, दीवांक के मॉम-डैड भी चले जाते है, दीवांक की माँ के दिमाग में अब भी वही तस्वीर खटक रही थी, उनको परेशांन देख कर दीवांक के पापा पूछते है)
दीवांक के पापा "क्या हो गया हैं तुम्हे, इतनी परेशान क्यू हो? "
दीवांक की माँ "मुझे अपने बेटे की चिंता हो रही है, पता नहीं आगे चल कर वह क्या करेगा"
(थोड़ा हसते हुए )पापा "अरे भई डॉक्टरी की पढाई रहा है तो डॉक्टर ही बनेगा, इसमें सोचना क्या है"
(अपने पति की तरफ देखते हुए ) माँ " बनेगा तब डॉक्टर जब वो पढ़ाई करेगा, वो तो अब लड़कियों के चक्कर में पड़ गया है, देखिये उसका कमरा जाकर क्या हालत बना रखी है उसने, आप को भी यही लगेगा जो मुझे लग रहा है, हमारा बेटा हमारे हांथो से निकल चुका है"
पापा "क्या कहना चाहती हो, लड़कियों के चक्कर में"
माँ "हाँ लड़की के चक्कर में, आपको पता हैं दिन में एक घंटा भी नहीं रुकता हैं घर में, आता और चला जाता हैं अब तो पहले की तरह मुझसे बातें भी नहीं करता हैं, पता नहीं क्या हो गया हैं हमारे बच्चे को"
पापा "यह तो बहुत गलत बात हैं, आपसे बात नहीं करता हैं दिवांक.... ,खैर तुम्हे पता हैं मीना जी यही कहानी मेरे दोस्त के घर की हैं, कल रमेश मिला था वो भी अपने बेटे के बारे में इतना खेड़ा कह रहा था क्या कर सकते हैं, माँ-बाप भी तो अपने बच्चो की भलाई के लिए ही कहते हैं सुनना और समझना तो उनको खुद हैं, क्या सही हैं और क्या गलत हैं इनका फैसला तो इनको खुद ही करना हैं, आप चिंता नहीं कीजिये दीवांक भी ठीक हो जायेगा"
माँ "लेकिन हम कब तक ऐसा देखते रहेंगे आप ही कहिये, हम भी तो उनका भला ही चाहते हैं न.......",
(लेटते हुए) पापा "ओह मीना जी, आज कल के बच्चे कहाँ समझते हैं, मैं सुबह दीवांक से बात करता हूँ, तुम टेंशन मत लो..."
माँ "लेकिन आप ज़रूर उससे बात कर लीजियेगा "
पापा "हाँ बाबा कर लूंगा बात "
(दोनों सो जाते हैं, अगले दिन संडे होता हैं, संडे को दीवांक की छुट्टी रहती हैं वो सुबह अपने दोस्तों के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी दीवांक के दरवाज़े पर दस्तक होती है, दीवांक के पापा उससे बातें करने के लिए आते हैं )
पापा "बेटे मैं अंदर आ सकता हूँ "
दीवांक "डैड आप, पूछने की क्या बात है, आइये"
(कमरे में घुसते ही चारो तरफ देखने लगते है )पापा "आज बड़ी मुश्किल से समय मिला है तुमसे बातें करने का, तुम हॉल में आओ वही बात करते है(पीठ पर थपथपाते हुए)"
दीवांक "डैड मैं अभी अपने दोस्तों के साथ जा रहा हूँ, शाम को बात करते हैं"
पापा "बेटे कौन से दोस्तों के साथ जा रहे हो (थोड़ा सोचते हुए) हमें भी मिलवाओ कभी अपने दोस्तों से" ,
दीवांक "क्यू नहीं डैड, आज वह यहाँ नहीं आएंगे लेकिन जब भी आएंगे तो मैं आप से ज़रूर मिलवाऊंगा"
(दीवांक के पापा दीवांक की तरफ देखते है और थोड़ा मुस्कुराते हुए वहाँ से चले जाते हैं और जाकर हॉल में बैठ जाते हैं, दीवांक अपने कमरे को लॉक कर के अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता है, दीवांक को जाते देख उसकी माँ हॉल में आती है)
(अपने पति के बग़ल में बैठते हुए ) माँ "क्या हुआ, दीवांक से बात हुई आपकी?"
पापा "नहीं, उसे दोस्तों के साथ जाना था( थोड़ा चीखते हुए) आपको क्या हो गया है क्यूँ एक ही बात के पीछे पड़ी हो"
मॉम "मैं माँ हूँ उसकी और मुझे उसके भविष्य की चिंता होती है और ये बाते आप को समझ नहीं आएगी (गुस्से से उठ कर चली जाती है)"
(दीवांक के पापा अपनी पत्नी के पीछे-पीछे जाते है और जोर से कहते है) पापा -"दीवांक ने कहा है की वो रात को बात करेगा, अब तो खुश हो ना "
(दीवांक की मॉम अपने कमरे में जाकर बैठ जाती हैं, दीवांक के पापा उसे मनाने के लिए उनके पीछे जाते हैं, वो उन्हें मनाने के लिए बाहर घुमाने ले जाने का वादा करते हैं, ग्यारह बजे वो उनको साउथ सिटी मॉल में शॉपिंग करवाने ले जाते हैं, दीवांक के पापा अपनी गाड़ी निकालते हैं और उन्हें बिठा कर ले जाते हैं, जाते समय उसकी माँ की नज़र आरुषि पर पड़ती हैं वो म्यूजिक क्लास से वापस आ रही होती हैं, वो बहुत ध्यान से उसे देखती हैं लेकिन आरुषि इनको नहीं देख पाती हैं, वो लोग चार बजे ही वापस आ जाते लेकिन दीवांक अभी तक वापस नहीं आया था उसकी मॉम उसको फ़ोन भी करती हैं लेकिन उसका फ़ोन बैटरी ना होने की वजह से बंद हो चुका था, दीवांक रात के लगभग एक बजे घर आता है, उस समय सभी हॉल में ही बैठे होते हैं)दीवांक घर में घुसते ही ) दीवांक "सॉरी मॉम-डैड मैं लेट हो गया मैं अपने दोस्तों के साथ ही था, मेरे फ़ोन की बेटरी लौ हो चुकी है, आप लोग सोये नहीं अभी तक "
माँ "दीवांक आपको हमारी चिंता नहीं होती है क्या, हम सब आपका कब से इंतज़ार कर रहे है, एक कॉल तो कर देते आप, हम सब कितने परेशान हो रहे थे आपको पता भी हैं "
दीवांक "ओह मॉम, मैं अब छोटा बच्चा नहीं रहा, मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ....अभी मैं बहुत थक गया हूँ और मैं सोने जा रहा हूँ आप लोग भी प्लीज जा कर सो जाइये "
डैड “ दीवांक इतनी देर तक हमें बिना बताये तुम्हे बाहर नहीं रहनी चाहिए, तुम कितने भी बड़े हो जाओ लेकिन यह मत भूलना मां-बाप के नज़रो में उनके बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं, दोस्तों के मोबाइल से कॉल कर के तो बता ही सकते थे ना देखो ये तुम्हारी पहली गलती है, आज के बाद तुम कही भी जाओ तो अपनी माँ को सारी इनफार्मेशन देकर जाना, कब से परेशान हो रही है यह बेचारी”
(इतराते हुए ) दीवांक "ओके डैड और कुछ...,मैं अब सोने जा रहा हूँ, गुड नाईट"
(दीवांक अपने कमरे में चला जाता है, उसके बाद दीवांक के मॉम-डैड भी सोने चले जाते है )
सुबह आठ बाजे
सुबह-सुबह दीवांक के पापा दीवांक का इंतज़ार कर रहे थे, दीवांक अभी तक अपने कमरे में सो रहा था, देखते ही देखते दस बज गए दीवांक के पापा अपने ऑफिस में चले जाते है, दीवांक की बहन भी कॉलेज जा चुकी थी, उस समय दीवांक को हॉस्पिटल से फ़ोन आता हैं जहाँ वो इंटर्नशिप कर रहा था, दीवांक उठ जाता है और कॉल रिसीव करता है)
(उबासी लेते हुए) दीवांक "हेलो, दीवांक दिस साइड"
कॉल पर "दीवांक मैं डॉ. भीम बोल रहा हूँ, तुम्हे पता हैं टाइम कितना हो रहा हैं अभी तक सो रहे हो, तबियत तो ठीक हैं ना तुम्हारी "
(हड़बड़ाते हुए ) दीवांक "गुड गुड मॉर्निंग सर, यस सर मैं बिलकुल ठीक हूँ, मैं बस अभी आ रहा हूँ"
कॉल पर "अगर तुम इस तरह से लेट आते रहे न तो मुझे तुम्हारा इंटर्नशिप कैंसिल करना पड़ेगा एक और बात ध्यान से सुनो अगर तुम मेरे दोस्त के बेटे नहीं होते तो तुम्हारे घर डिसमिस लेटर पहुँचती, समझे"
दीवांक "क्या.....नो नो सर मैं आता हूँ ना प्लीज ऐसा मत कीजियेगा "
(दीवांक जल्दी-जल्दी तैयार होने लगता है, आरुषि को देखने के लिए छत्त पर जाता है लेकिन उस समय वो छत्त पर नहीं होती है, दीवांक कुछ देर उसका इंतज़ार करता है लेकिन आरुषि नहीं आती है, दीवांक उदास होकर अपने ट्रेनिंग सेंटर चला जाता हैं बिना अपने कमरे को लॉक किये)
continue........