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Romance Aashiqi - An Un Told Love Story (Completed)

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introduction

आरुषि रॉय

दीवांक शर्मा

आरुषि की फॅमिली

माँ

पापा

दो बहनें

दीवांक की फॅमिली

माँ

पापा

एक बहन

आरुषि के दोस्त - सौम्या और रोहित

असिस्टेंट - रिया

ड्राइवर - मोहन (काका)

दीवांक के दोस्त - मयंक, नंदू , रेहान और जसलीन

सारांश

आरुषि - आरुषि कोलकाता की एक मिडेल क्लास फैमिली से हैं, आरुषि के पापा अपने ज़माने में बहुत अच्छे संगीतकार रहे हैं लेकिन एक मिडेल क्लास फैमिली में इस तरह के शौक को अक्सर दफनाया जाता रहा है, उन्होंने भी ऐसा ही किया, बहुत ही कम उम्र में रिश्तों और ज़िम्मेदारियों में उलझ कर रह गए लेकिन जब आरुषि बड़ी हुई तो उसके अंदर भी उसके पापा के तरह संगीत के शौक पनपने लगे थे, उसके पापा अपने सपनो को आरुषि में महसूस करते थे, वो चाहते थे कि जो वो नहीं कर पाए, वह उनकी बेटी करे इसके लिए वो अपनी बेटी की बहुत मदद करते थे, उन्हें जितनी भी जानकारिया थी संगीत के बारे में वह सब उसे बताने लगे और शहर में आने के बाद उन्होंने उसे एक म्यूजिक अकेडमी में दाखिला भी करवा दिया।

आरुषि का अतीत बहुत बुरा था, सब छोटे ही थे तभी उसके पापा का एक्सीडेंट हो गया था, वह एक्सीडेंट इतना बुरा था की उनका इलाज करवाने के लिए उन्हें अपने घर तक को बेचना पड़ा, आरुषि के पापा के ठीक होने के बाद उन्हें शहर आना पड़ा क्युकि गाँव में इतनी सुविधाएं नहीं थी की वह तुरंत वैसा ही मक़ाम खड़ा कर सके, शहर में ही आरुषि और उसकी दोनों बहने पढ़ती थी, आरुषि के माँ-बाप दोनों नौकरी करते थे, उसके पापा सरकारी स्कूल के शिक्षक थे और माँ नर्स थी।

कई सालो तक तो उन्हें शहर में बहुत दिक्कते हुई दरअसल दिक्कत होने की वजह थी नए जगह पर शिफ्ट होना, लेकिन कुछ सालो में ही सब ठीक हो गया, शहर में वह अपना एक फ़्लैट खरीद लेते है और वही सैटल्ड हो जाते है।

दीवांक - दीवांक एक रिच फैमिली से हैं, आरुषि की तरह उसके लाइफ में ऐसी कोई समस्या नहीं हैं, उसके पापा एक सफल बिजनेस मैन हैं और माँ हाउस वाइफ हैं दीवांक मेडिकल साइंस का स्टूडेंटहैं, पढ़ना उसे बहुत पसंद हैं, दीवांक तब थर्ड ईयर में था जब उसकी मुलाकात आरुषि से हुई थी, आरुषि और उसका घर आमने-सामने हैं, उस समय आरुषि बारवीं क्लास में पढ़ती थी, दीवांक को उसे देखते ही उससे पहली नज़र में प्यार हो गया था, आरुषि भी उसे पसंद करती थी, बहुत मुसीबतो के बाद आरुषि और दीवांक दोनों एक होते है ।

chapter - 1

20 june 2010

शाम का समय

(आरुषि अपने बालकनी में खड़ी होती है और दीवांक अपने छत्त पर टहल रहा होता है, दीवांक की निगाहे बार-बार आरुषि की तरफ जा रही होती है और जब आरुषि की नज़र दीवांक पर पड़ती तो वह उसे अनदेखा करने लगता है, ऐसा लगभग कई दिनों से चल रहा था, दीवांक उसे हमेशा छुप-छुप कर देखता रहता था और जब वो उसे देखती तो दीवांक ऐसा बर्ताव करता जैसे की उसने उसे देखा ही नहीं, लगभग आधे घंटे बाद आरुषि की फ्रेंड सौम्या स्कूल के प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसके घर पर आती है, आरुषि की बहन दरवाज़ा खोलती है)

आरुषि की बहन –“हेलो सौम्या दी, आरुषि जीजी तो अपने कमरे में है, अंदर आइये .... (सोफे की तरफ इशारा करते हुए ) बैठिएं”

(मुस्कुरा कर आरुषि की बहन के गालो को खींचते हुए) सौम्या -"हेलो किऊटिपायी,कैसी हो.....?"

आरुषि की बहन -"मैं ठीक हूँ (सोफे की तरफ इशारा करते हुए ) आप बैठो, मैं जीजी को बुला कर लाती हूँ"

सौम्या - "तुम रहने दो स्वीटी मैं खुद जाती हूँ"

आरुषि की बहन - "ओके, नो प्रॉब्लम”

(आरुषि की बहन सोफे के सामने वाले टेबल पर रखी बुक उठाकर पड़ने लग जाती हैं तबतक सौम्या अपनी जुत्ती उतार कर साइड में रखती हैं और आरुषि से मिलने घर के अंदर चली जाती है)

(कमरे के अंदर जाते हुए) सौम्या –“आरुषि कहा हो तुम, आरुषि........”

(आरुषि बालकनी में ही खड़ी होती हैं लेकिन जब वो सौम्या की आवाज़ सुनती हैं तो अंदर चली जाती है)

(सौम्या के पास जाते हुए) आरुषि ”हाय सौम्या, कैसी हो ?"

(चलते हुए ) सौम्या "मैं तो ठीक हूँ, तु कहाँ खोई रहती है, तेरी बहन ने दरवाज़ा खोला था"

आरुषि "यार मैं बालकनी में खड़ी थी और तेरा प्रोजेक्ट बन गया?"

सौम्या "कहाँ यार, उसी के लिए तो आई हूँ "

आरुषि "आओ चलो अंदर बैठ कर बनाते है"

(सिर हिलाते हुए ) सौम्या "हैं चलो"

(सौम्या कमरे में जाकर बेड पर बैठ जाती है, आरुषि सौम्या के लिए कॉफी बनाती है और दोनों बालकनी के साथ वाले रूम में बैठ कर बातें करने लगते है, आरुषि अपनी दोस्त से दीवांक की तरफ इशारे करते हुए कहती हैं), "यार सौम्या ये जो लड़का सामने वाले छत्त पर खड़ा है ना, बहुत ही अजीब है, जब देखो इधर ही देखता रहता है, पता नहीं इसकी प्रॉब्लम क्या हैं......"

(खिड़की की तरफ देखते हुए) सौम्या “कौन है ये...?”

आरुषि "क्या पता कौन हैं......, सामने वाले घर में रहता होगा क्युकि मैंने तो इसे यही देखा है (दोनों कॉफी की एक-एक घूट लेते है )”

(मज़ाक करते हुए) सौम्या "वैसे है बड़ा हैंडसम, तुझसे कुछ कहा इसने "

आरुषि “हिम्मत नहीं है कुछ कहने की इसकी, हाँ वैसे हैं तो हैंडसम”

(मज़े लेते हुए) सौम्या "ओहो, यानि के तुझे भी ये पसंद है, चल ना इससे बातें करते है"

(कफ टेबल पर रखते हुए) आरुषि “क्या.....तेरा दिमाग ख़राब है, मुझे नहीं करनी इससे बात और तुझे भी

नहीं करनी, समझ आई तुझे (थोड़े गुस्से से कहती है)”

सौम्या "चिल यार, तू तो अभी से ही जेलेस हो रही है (सैड फेस बनाते हुए), ठीक है मैं बात नहीं करुँगी, ओके”

(अफ़सोस करते हुए) आरुषि“ कुछ भी....,मैं क्यू जेलस होउंगी और तेरा अभी से क्या मतलब हैं, "हाँ" तुझे बात करनी है तो तू खुद कर ले लेकिन यहाँ से नहीं, ओके"

सौम्या "अरे बाबा गुस्सा क्यूँ हो रही है, मैं बस मज़ाक कर रही हूँ" (फिर दोनों हॅसने लगते है)

(दोनों मिल कर प्रोजेक्ट बनाने लगते है और फिर कुछ देर बाद सौम्या वहाँ से चली जाती है, अगले दिन दोनों स्कूल में मिलते हैं)

आरुषि को देखते ही सौम्या बोल पड़ती हैं "आशु वो हैंडसम सा हीरो कैसा रहेगा जो तेरे घर के सामने रहता हैं......,मैंने उसे अपनी एक फ्रेंड के लिए पसंद किया हैं"

(क्लास रूम में जाते हुए) आरुषि ” कौन वो चँम्पू....ठीक नहीं रहेगा....वैसे कौन सी फ्रेंड के लिए तूने उसे पसंद किया हैं"

सौम्या "तुझे बड़ी जल्दी हो रही हैं जानने की, क्या बात हैं..... "

आरुषि "ओ हेलो......तू किसी को भी पसंद कर उस चँम्पू लिए मुझे क्या.....एनी वे क्लास रूम आ चुका हैं, अब थोड़ा पढ़ ले मैडम"

सौम्या "अरे आरुषि......सुन न (हाथ पकड़ कर पीछे खींचते हुए) पढाई-वढ़ाई तो चलती रहेगी, पहले बता उस हीरो के बारे में और क्या जानती हो तुम, मुझे तो अपनी फ्रेंड को बताना होगा न "

आरुषि "सौम्या तेरी इस फालतू काम के लिए मेरे पास टाइम नहीं हैं, चल अभी मैथ का पीरियड लगा हैं, कुछ पढ़ लेते हैं.........और हाँ उस चम्पू के लिए मैं इतना ही कहूँगी के वो एक आवारा, निक्कम्मा ....और..और...."

सौम्या "बस,बस...तू उसके बारे में ऐसा नहीं कह सकती......तू तो फ्रेंडशिप होने से पहले ही उसका ब्रेकअप करवा देगी"

(हसते हुए) आरुषि “तुझे ही तो जानना था उसके बारे में ( सामने देखते हुए) ओह शिट, टीचर आ रही, चल भाग"

(दोनों क्लास रूम में जाकर बैठ जाते हैं, और बुक खोल कर पढ़ने लग जाते हैं )


सौम्या बार-बार आरुषि को दीवांक के बारे में पूछ-पूछ कर चिढ़ा रही होती हैं, जब भी सौम्या आरुषि से दीवांक के बारे में पूछती तो वो चिढ जाती और फिर दोनों लड़ने लग जाते हैं, दोनों की दोस्ती ऐसी ही थी, सौम्या को उसे चिढ़ाने में अच्छा लगता था इसलिए वो हर समय मौके की तलाश में रहती थी, लेकिन उस गर्ल्स स्कूल में सब को पता था इन दोनों की दोस्ती कितनी गहरी हैं, दोनों वीक स्टूडेंट्स कि मदद भी करती थी )
 
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Chapter 2

उसी दिन शाम पांच बजे

(आरुषि और सौम्या का टूशन भी एक ही था और क्लास ख़त्म होने के बाद दोनों एक ही साथ वापस भी आते थे लेकिन दोनों का घर दूर-दूर होने की वजह से आधे रास्ते में दोनों को अलग होना पड़ता था, दोनों जब वापस आ रही थी तब सौम्या फिर से आरुषि को छेड़ते हुए पूछती हैं)

सौम्या "वैसे आशु तू चिढ़ती क्यूँ है उससे, इतना अच्छा तो है वो हैंडसम, यू नो मेरा भी एक सपना हैं कोई हैंडसम मुंडा मुझे बार-बार इधर उधर से झांक कर देखता रहे................हायें....और मैं फिर शर्मा कर अपनी पलके झुकाऊं......",

(अफ़सोस करते हुए) आरुषि ”वाह जी वाह....क्या सपने हैं....एक सेकंड, वैसे कौन हैं हैंडसम?"

सौम्या "ओ....मेरे सपने के बारे में कुछ मत कहना, लकी होती हैं वो गर्ल्स जिनके ऐसे सपने होते (नाखूनों पर फूंक मरते हुए) वेल अभी तक तो कोई मिला नहीं हैं इसलिए सिर्फ सपना ही हैं(थकान भरी फूंक मरते हुए)"

आरुषि "(हसते हुए) ओह !...सो सैड".

(झूट मूट के आंसू पोछते हुए) सौम्या "या ..... बता न तू क्यूँ इग्नोर करती हैं उसे "

आरुषि "हें... मैं किसको इग्नोर करती हूँ?"

(फेस दूसरी तरफ घुमाते हुए) सौम्या "अरे वही जो तेरे घर के सामने रहता है” (फिर आरुषि की तरफ देख कर हसने लगती हैं)

आरुषि "ओह गॉड....सौम्या.....बस तुझे कुछ पता लगनी चाहिए फिर तू उस बात को कभी भूल नहीं सकती है ना, वैसे मैं उसे इग्नोर नहीं करती हूँ ओके, वो तो खुद ही मुझे इगनोर करता है जब मैं उसे देखती हूँ तो ......"

(हसते हुए) सौम्या "डरता होगा तुझसे ...."

आरुषि " गॉड …यार मुझे कैसे पता होगा की वह डरता है या नहीं, सौम्या बस तू मुझसे उसी के बारे में पूछती रहियो और कोई काम नहीं है क्या मेरे पास"

(आरुषि को चिढ़ाते हुए) सौम्या "अच्छा ठीक है नहीं पूछूँगी ओके, बस एक बात बता तुझे तो वो हैंडसम लगता है ना तो कही तुझे उससे प्यार तो नहीं हो गया"

(चिढ़ते हुए) आरुषि “सौम्या यार ....प्लीज ....मुझे कभी उससे प्यार नहीं होगा, अब बस बहुत हो गया, अब से कोई सवाल नहीं ख़ास कर उसके बारे में ओके, अब तू बस अपना मुँह बंद करके चलेगी, ओके"

सौम्या "ठीक है ठीक है देखते है तू कब तक खुद को रोकती हो"

आरुषि "देखती ही रहियो, मुझे उससे कभी प्यार नहीं होगा, समझी मिस सौम्या ”

सौम्या “ओह डिअर …लेट्स सी ”

आरुषि “या …लेट्स सी, चल मैं जा रही हूँ मेरा घर आ गया"

सौम्या "यार सुनना, प्रोजेक्ट का क्या करे…..थर्सडे को लास्ट डेट हैं, और तुझे तो पता हैं एचएस की मैम कितनी डेंजरस हैं…..ओह गॉड…..मैं तो इमेजिन भी नहीं कर सकती”

आरुषि “इसी लिए तुझे कहती हूँ फालतू के बातों में टाइम वैस्ट न किया कर ”

सौम्या –ओह हेलो….डोंट बी मॉम टाइप, तुझे पता हैं न अगर मैं एक दिन भी कम बोलती हूँ न तो मेरे पेट में गैस बनने लगती हैं, तू चाहती हैं तेरी फ्रेंड के साथ ऐसा कुछ हो”

(हसते हुए) आरुषि "ओह गॉड….ये भी कोई रीज़न हैं गैस बनने का,चल मैं तुझे अपना प्रोजेक्ट देती हूँ ….लेकिन तू कल लेकर अइयो स्कूल में ..…समझी”

सौम्या –“ओह डिअर …पक्का ..पक्का …पक्का लेकर आउंगी”

आरुषि -“ओके,चल फिर”

(दोनों जैसे ही गली के अंदर जाते हैं वही सामने से दीवांक आ रहा होता हैं आरुषि उसे देखकर चौक जाती है, सौम्या उसे देख कर फिर से आरुषि को छेड़ने लगती हैं)

(धीरे से ) सौम्या "आरुषि...मुझे न बहुत ज़ोर से गाना आ रहा हैं...और अभी मैं रह नहीं सकती"

आरुषि "सौम्या चुप कर....तेरा दिमाग ख़राब हैं"

सौम्या "ओये क्या चुप कर....तू मेरे टैलेंट को दबाना चाहती हैं....नो वे...आई विल सिंग"

आरुषि "ओह रियली... यार तुझे अभी ही गाना आ रहा हैं.....प्लीज् सौम्या (उसका हाथ ज़ोर से दबाते हुए)"

(दीवांक भी आरुषि और उसकी फ्रेंड को देख चुका होता था लेकिन दोनों से आँखे बचाते हुए, साइड से जा रहा होता हैं, तभी सौम्या आरुषि का हाथ छोड़ कर लाउडली गाना गाने लगती हैं)

सौम्या "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे....तोड़ेंगे दम अगर तेरा साथ न छोड़ेंगे "

आरुषि सोचने लगती हैं की कही दीवांक उससे कुछ कहे ना लेकिन वो चुपचाप वहाँ से गुजर जाता है)

दीवांक जब थोड़ा दूर निकल जाता हैं तब आरुषि सौम्या से कहती हैं "ओये तुझे बहुत ज़ोर से यही गाना आ रहा था"

सौम्या "वॉव, कितना हॉट था न (आरुषि को देखते हुए) वेल मेरी फ्रेंड भी इतनी बुरी नहीं दिखती हैं"

आरुषि "सौम्या....तुम कब क्या करती हो तुम्हे पता भी हैं....ओह गॉड तुम थोड़ा अपना मुँह बंद नहीं कर सकती थी क्या उसके सामने गाना जरुरी था"

सौम्या "हाँ तो वो क्या प्राइम मिनिस्टर हैं जो उसके सामने नहीं गा सकती और मैं क्या करूँ वो उसी वक़्त आ गया तो..हुऊँ"

आरुषि "ओह शट उप, मुझे पता हैं....तू ने अब से ऐसा कुछ किया ना तो मैं तेरी बिलकुल भी हेल्प नहीं करने वाली"

सौम्या "(गाना गाते हुए)ओ जानी.....यह क्या कह डाला, लुट गयी मैं, मिट गयी मैं........"

आरुषि "बस बस हाँ....बहुत हुआ, सच बोल रही हूँ मैं ड्रामा क़्वीन.... एक भी प्रोजेक्ट नहीं दिखाउंगी"

सौम्या "ओह नहीं....यार तेरी कसम आज से मैं चूं तक नहीं बोलूंगी ओके बट सिर्फ उसकेसामने (मुँह पर ऊँगली डालते हुए)"

(अपने दरवाज़े पर रुकते हुए) आरुषि "चल ऊपर, असाइनमेंट ले लियो "

(सौम्या ऊँगली मुँह पर रख कर,सर हिला कर हाँ कहती हैं)

(हसते हुए) आरुषि "पागल...." ( फिर सौम्या का हाथ निचे कर देती हैं)

(सौम्या असाइनमेंट लेकर चली जाती हैं, आरुषि भी अपने कामो में बिजी हो जाती हैं, शाम के टाइम जब वो बालकनी में खड़ी होती हैं तब उसी वक़्त सामने से एक कागज़ का टुकड़ा आता हैं जो एक लेटर होता हैं, वो चौंक जाती है और देखने लगती है की ये कागज कहा से आया है, उसकी नज़र सामने वाले घर पर पड़ती है, उस छत्त पर दीवांक खड़ा होता है, दीवांक आरुषि के देखने पर दूसरी तरफ मुड़ जाता है लेकिन आरुषि ये समझ जाती है कि उसी ने फेंका है, दीवांक दुबारा पीछे मुड़ कर देखता है, आरुषि तब भी उसे देख रही होती है, दीवांक फिर आगे मुड़ कर चलने लग जाता है इसबार वह पीछे नहीं मुड़ता, आरुषि उस कागज़ के टुकड़े को उठाती है और उसे लेकर कमरे में चली जाती है और फिर गेट बंद कर लेती है, गेट बंद होने की आवाज़ से दीवांक पीछे मुड़ कर देखता है, वह जल्दी से छत्त के किनारे आकर लेटर को इधर-उधर देखने लगता है, दीवांक को लगता है शायद आरुषि ने उस लेटर को ले लिया होगा, वो एक किनारे बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगता है,आरुषि उस लेटर को खोल कर देखती है)

उसमे लिखा था :-

आरुषि आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो, मैं आप से बात करना चाहता तो हूँ लेकिन मुझे डर लगता है कि कही आप मुझे सामने से चाटे न मार दो इसलिए बहुत हिम्मत कर के मैं यह लेटर लिख रहा हूँ, क्या आप मुझसे दोस्ती करोगी, अगर "हाँ" है तो बस एक स्माइल कर देना, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा )

(दीवांक छत्त पर बैठा उसका इंतज़ार करता रहता हैं लेकिन उस दिन आरुषि वापस अपने बालकनी में नहीं आती है, रात हो जाती है, दीवांक की माँ उसे बुला कर निचे ले जाती है)
 
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Chapter 3


अगले दिन

आरुषि लंच टाइम में अपने स्कूल के गार्डन में बैठी होती हैं, वही पर सौम्या आती हैं)

सौम्या "यार आरुषि तू यहाँ बैठी हैं, नीतू ने बताया था तू क्लास रूम में हैं मैं तुझे वहां देख कर आ रही हूँ, कमीनी कितनी झूठी हैं.....उसको तो मैं छोडूंगी नहीं"

आरुषि "अरे…. मैं क्लास रूम में ही थी, अभी थोड़ी देर पहले आयी हूँ......बैठ जा तू भी"

सौम्या "अच्छा....आज तो बच गयी नीतू की बच्ची .....सुन ना, अभी ना टीचर्स रूम में ना अंजली के साथ एक कांड हो गया हैं, सुनेगी ना तो तुझे भी बड़ी हसी आएगी"

आरुषि "सौम्या प्लीज़, मेरा मन नहीं हैं कुछ भी सुनने का, तूने लंच कर लिया ना मैंने टेबल पर रखा था"

सौम्या "ओये तुझे के हो गया......तू काये को अपसेट हैं बता, क्लास में भी मुँह लटकाये बैठी थी, कहाँ लुट गयी तेरी इज़्ज़त......?"

आरुषि "ओये...कहावते तो अच्छी किया कर"

सौम्या "ओ जानी...वर्ड्स पे नहीं इमोशंस पे जाओ इमोशंस पे, क्या हुआ बताएगी अब…..."

आरुषि "यार मैं अपसेट नहीं कन्फूज़ हूँ, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा की मैं क्या करू "

सौम्या "अरे यार तू बता तो बात क्या है, मैं अभी सॉल्व कर देती हूँ(थोड़ी देर तक आरुषि को देखते हुए) बताएगी अब"

आरुषि "हाँ, आई होप तू कुछ अच्छा सा सजेशन देगी, एक्चुअली कल शाम को जब मैं बालकनी में खड़ी थी तब वो सामने वाले लड़के ने मुझे ये लेटर दिया और उस लेटर में लिखा हैं......"

(लेटर आरुषि के हाथों में ही होता है सौम्या उसके हाथ से जल्दी से लेटर लेकर पढ़ने लगती है, आरुषि उसका चेहरा देखने लगती है)

(लेटर पढ़ कर हसते हुए) सौम्या "ये तो तुझसे फ्रेंडशिप करना चाहता है, बुद्धू ने अपना पहला लेटर कितना डर-डर कर लिखा है (मजाक करते हुए )”

आरुषि "सौम्या तुझे मजाक सूझ रहा है, मैं कितनी टेंशन में हूँ तुझे पता भी है "

सौम्या "अरे यार इसमें टेंशन लेने की क्या बात है, तुझे तो खुश होनी चाहिए उस हैंडसम को तुझसे प्यार हो गया हैं, फिर शादी... देन बच्चे....हाउ स्वीट "

आरुषि "ओये...स्वीट की बच्ची...,तूने तो पूरी फॅमिली प्लानिंग कर दी, तेरा दिमाग तो ठीक हैं ना"

सौम्या "हाँ जी अब हम तो पागल हो गए हैं ....अच्छा तो सिर्फ वही हैं... हुऊँ...लेकिन मैं कह देती हूँ हाँ मैं पागल नहीं मेरा दिमाग ख़राब हैं...हाहाहाहा"

आरुषि "ओफ्फो...यह सब छोड़...कुछ सोलुशन देगी अब"

सौम्या अरे यार.....तू कितना सोचती हैं और वैसे भी उसने तो सिर्फ तुझसे फ्रेंडशिप के लिए ही तो बोला है इसमें इतना क्या सोचना यार, कही तुझे ये तो नहीं लग रहा कि तुझे उससे प्यार हो जायेगा"

(सौम्या की बातों को काटते हुए) आरुषि "शट अप, मुझे उससे कभी प्यार नहीं होगा"

सौम्या-"लेकिन तूने ही तो कहा था ....."

(फिर से सौम्या की बातों को रोकते हुए) आरुषि "ओये सौम्या की बच्ची मुझे भी पता है कि मैंने क्या कहा था, वो बस ठीक ठाक दिखता हैं इसका मतलब यह थोड़ी हैं के मुझे उससे प्यार हो गया हैं....कुछ भी",

सौम्या "एक ही बात हुई ना, अभी ठीक ठाक लग रहा है फिर प्यार भी हो जाएगा"

आरुषि "ओफ्फो.......तुझसे तो कुछ कहना ही बेकार हैं, चल क्लास में चलते हैं"

सौम्या "अरे बैठ ना... गुस्सा क्यूँ हो रही है....तू मुझे जानती तो हैं ना.....वैसे तूने "हाँ "कह दिया है ना"

आरुषि "नहीं यार, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा मैं क्या कहुँ"

सौम्या "कहना क्या है बस एक स्माइल पास करनी है हीहीही डरावनी सी....ओह सॉरी, वैसे तू कितना सोचती है, अगर मैं तेरी जगह होती तो कब का स्माइल कर चुकी होती और सिर्फ

स्माइल ही नहीं और भी बहुत कुछ कर चुकी होती....हाहाहाहा"

आरुषि "हाँ तो तू जाकर कर देना न......स्माइल"

सौम्या "चिल यार, उसको तो तेरे से करनी हैं फ्रेंडशिप मुझसे नहीं वैसे तू कहती क्यू नहीं है "हाँ"

(सोचते हुए) आरुषि "यार....सौम्या ......"

सौम्या "मुझे तो शक हो रहा है कि तुझे उससे प्यार हो गया है"

आरुषि "कुछ भी…..(मुस्कुराते हुए ) ठीक है मैं उसे फ्रेंडशिप के लिए हाँ कह दूंगी, लेकिन सिर्फ फ्रेंडशिप के लिए ...."

सौम्या -"ओहो क्या बात है मेरी सीधी-साधी फ्रेंड कितनी बदलती जा रही है, कही उससे फ़्रैंड्सशिप के बाद तू मुझे तो नहीं भूल जाएगी न"

आरुषि -"सौम्या ...."

सौम्या -" मजाक था भई, एक सेकंड तो तू इसी टेंशन में यहाँ अकेले सुनसान जगह पर बैठी थी"

आरुषि-"तो...तुझे क्या लगा था"
सौम्या - ओये होये होये होये ....तू भी न आशु, तुझे पता हैं आज के ज़माने की लड़कियों का न एक नहीं दो तीन बॉयफ्रैंड्स होते हैं और तुझे तो सिर्फ एक ने फ्रैंडशिप के लिए बोला हैं....उसमे भी"

आरुषि -"ओए डोंट कम्पेयर माय सेल्फ तो एनी अदर गर्ल्स....आयी ऍम द ओनली वन"

सौम्या -"या....आई सी दैट.....चल चलते हैं क्लास रूम में "

(दोनों हसने लगते है और फिर वापस अपने क्लास रूम में चले जाते हैं)
 
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Chapter 4

शाम के छह बजे

(आरुषि अपने बालकनी में एक दिन बाद वापस आती है, दीवांक उसका पहले से ही इंतज़ार कर रहा होता है, आरुषि दीवांक की तरफ देखती है और फिर उसके बाद एक प्यारी सी स्माइल पास करती है, दोनों की दोस्ती की शुरुआत हो जाती है, दिवांक उसे अपना दूसरा लेटर देता हैं, जिसमे सिर्फ "थैंक्स" लिखा होता हैं, आरुषि अपने कमरे में चली जाती हैं और उसके थैंक्स का जवाब लिख कर देती हैं, दीवांक हमेशा आरुषि के लिए लेटर लिख कर रखता था और जब भी आरुषि छत्त पर आती तो वो उसे देता, कुछ दिनों बाद आरुषि दीवांक को अपना नंबर देती हैं और दोनों फ़ोन से बातें करने लगते हैं, दीवांक आरुषि से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था, आरुषि भी उसे पसंद करने लगी थी और फिर कुछ महीनो बाद इनकी ये दोस्ती प्यार में बदल गयी, दोनों छूप-छुपकर घूमने भी जाते थे, आरुषि के ट्वेल्थ ख़त्म होने के बाद ही उसके मॉम और डैड उसे कलकत्ता के बेस्ट म्यूजिक अकैडमी में दाख़िला करवा देते हैं, आरुषि अपनी आगे की पढाई कॉरेस्पोंडेंस से करती हैं दीवांक भी अपना ग्रेजुएशन कम्पलीट कर चुका था अब वो हॉस्पिटल में इंटर्नशिप कर रहा था, वो जानता था के आरुषि को म्यूजिक से लगाव हैं इसलिए वो म्यूजिक सीख रही हैं लेकिन वो यह नहीं जानता था की आरुषि उसे अपना करियर बनाना चाहती हैं, धीरे-धीरे दीवांक की दीवानगी इतनी बढ़ गयी थी के वह आरुषि को देखे बिना एक पल भी नहीं रह सकता था, दीवांक ने अपने कमरे में अपने हाथो से आरुषि की एक बड़ी सी तस्वीर भी बनवाई थी और उस तस्वीर को एक पर्दे से ढक दिया था, उसने उस तस्वीर पर 'आरुषि आई लव यू' लिख रखा था, आरुषि से फ्रेंडशिप होने के बाद दीवांक बहुत बदल चुका था, वो घर में भी किसी से ठीक तरह से बात नहीं करता था और तो और उसका घर में कम छत्त पर ज्यादा ध्यान रहता था, हर समय आरुषि को ही याद करता रहता था, दीवांक की माँ उसका ऐसा बर्ताव देख रह नहीं पाती हैं, एक दिन वह दिवांक से बात करने के लिए उसके कमरे में जाती है, दीवांक का कमरा बंद होता हैं )

दीवांक की माँ "दीवांक दरवाज़ा खोलो मुझे आपसे बात करनी है बेटा"

दीवांक "मॉम मैं अभी बिजी हूँ, बाद में बात करेंगे "

माँ "दीवांक बेटा आपको क्या हो गया है, मुझे आपसे ज़रूरी बात करनी है वो भी अभी, ओपन दी डोर "

दीवांक “मॉम मैं कह रहा हूँ न आप से बाद में बात करूँगा, आप जाओ मैं आता हूँ थोड़ी देर में”

माँ "ठीक है जल्दी आना, मैं हॉल में वेट कर रही हूँ"

दीवांक "ओके मॉम"

(दीवांक की माँ वहाँ से चली जाती है, वह दीवांक का इंतज़ार करती है लेकिन दीवांक उनसे मिलने नहीं जाता हैं, शाम के समय दीवांक अपने कमरे से निकलता है, माँ हॉल में ही बैठी होती है वो उन्हें अनदेखा करते हुए सीधा छत्त पर चला जाता है,आरुषि से दोस्ती होने से पहले दीवांक अपनी माँ से बहुत प्यार करता था और उनकी एक भी बात को टालता नहीं था, दीवांक की ये हरकते उन्हें सोचने पर मज़बूर करती है)

continue......
 
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Chapter 5

रात के समय

(दीवांक के माँ-बाप दोनों बैड पर बैठे हुए है, दीवांक के पापा मोबाइल चला रहे है और माँ तकिये लेकर बैठी हुई सोच रही है )
(थोड़ा घबराते हुए) दीवांक की माँ अपने पति से "आप से एक बात करनी है दीवांक के बारे में"
(मोबाइल चलाते हुए) दीवांक के पापा “हाँ बोलो"
माँ "आप को नहीं लगता दीवांक कुछ बदल सा गया है, वह बहुत अजीब सा बर्ताव करने लगा है, सीधे मुँह तो बात ही नहीं करता, पता नहीं किस दुनिया में इतना बिजी हैं "
पापा "अच्छा ...और ..."
(अपने पति की तरफ देखते हुए) माँ "ये काफी नहीं है क्या, मैं उसकी इस हरकतों से इतनी टेंशन में हूँ और आप सुन नहीं रहे ....."
पापा "अरे बाबा, तुम बस इतनी सी बात को लेकर चिंतित हो, इस उम्र के बच्चो में यही प्रॉब्लम होती है ऐसे किस्से तो हमेशा सुनने को मिलते है जो भी नए सप्लायर्स आते है उनका भी यही कहना है उनके बच्चे उनकी बात नहीं सुनते और बत्तमीज़ी से बाते करते हैं, तुम चिंता मत करो हर घर की यही कहानियाँ है, जिम्मेदारियाँ बढ़ेगी तो अपने आप ठीक हो जायेगा"
माँ -"लेकिन ....."
( मोबाइल को टेबल पर रखते हुए ) पापा "लेकिन क्या, तुम चिंता मत करो, दीवांक भी ठीक हो जायेगा, चलो अब मैं सोने जा रहा हूँ, तुम भी सो जाओ, गुड नाईट "
(दीवांक की माँ हल्की स्माइल पास करते हुए लेट जाती है लेकिन उनके दिमाग में अभी भी दीवांक की ही चिंता हो रही थी, आरुषि दीवांक से प्यार तो करती थी लेकिन उसके माँ-बाप को उस पर कभी शक भी नहीं होता था क्युकि वो सब से छुपा कर दीवांक से प्यार करती थी, सुबह होते ही दीवांक की माँ दीवांक के पापा को काम पर ले जाने के लिए खाना बनाने लगती है और पैक करके अपने पति को दे देती है उसके बाद वह दीवांक से बात करने जाती है, इस बार दीवांक हॉल में बैठा टीवी पर गाने देख रहा होता है)
माँ को आते देख आवाज़ कम कर देता है)
(सोफे पर बैठते हुए ) माँ - "दीवांक बेटा आपको क्या हो गया है, आप हमसे बात क्यू नहीं करते, मैं आपकी मॉम आपके लिए कुछ भी नहीं"
दीवांक "ओह मॉम आप को क्या हो गया है, आप क्यूँ मेरा मूड ऑफ कर रही हो, मुझे क्या होगा"
माँ "मैं आपका मूड ऑफ कर रही हूँ ना (रुंधे हुए आवाज़ में) गलती मेरी ही है, मुझे अपने बेटे की चिंता हो रही थी तो मैं उससे बात करने आयी हूँ लेकिन मैं तो आपका मूड ऑफ कर रही हूँ न, जाओ आज से मैं आपकी कोई मॉम-वॉम नहीं (दूसरी तरफ फेस घुमा कर आंसू पोंछने लगती हैं )"
(माँ की हाथो को पकड़ते हुए ) दीवांक- "मॉम आप तो दुनिया की सबसे अच्छी मॉम हो, आप को क्या बात करनी है मुझसे (माँ के आंसू पोछते हुए ) बताइये मॉम"
माँ -"आज कल मैं देख रही हूँ आपका घर में मन ही नहीं लगता, घर पर होते हुए भी लगता हैं की आप नहीं हैं, दिन भर पता नहीं कहाँ ग़ुम रहते हैं आप, क्या चल रहा है ये सब "
(माँ के गोद में सिर रखते हुए) दीवांक "मॉम ऐसा कुछ भी नहीं है, ये सब आप का वहम है (थोड़ा सोचते हुए ) बस पता नहीं क्यू ये दुनिया बहुत हसीन लगने लगी है (फिर एक लम्बी गहरी साँस लेता है )"
माँ "आपकी इस दुनिया में माँ-बाप के लिए समय है या नहीं या फिर आप हमें भूल चुके है (इतने में फ़ोन की घंटी बजती है, दीवांक की माँ फ़ोन उठाने के लिए वहा से चली जाती है, मॉम के जाने के बाद दीवांक सीधा छत्त पर जाता है, आरुषि अपने बालकनी में कपड़े डाल रही होती है, दीवांक आरुषि को देखकर रेलिंग के नज़दीक जाता है तभी आरुषि का दोस्त रोहित भी बालकनी में आता है और उससे बाते करने लगता है, ये देख कर दीवांक को जलन होती है, वो नहीं चाहता था के आरुषि से उसके आलावा कोई दूसरा लड़का बातें करे, वो गुस्से से उन दोनों को देख रहा होता हैं वह छत्त के रेलिंग पर जोर से एक पंच मारता है और दूसरी तरफ मुड़ जाता हैं दोनों दीवांक को देखने लगते है फिर दीवांक गुस्से में वहा से चला जाता है)
आरुषि रोहित को एक अच्छा दोस्त मानती थी और एक दोस्त के नाते ही उससे बातें करती थी आरुषि ने जब दीवांक को गुस्से से जाते हुए देखा तो वह समझ जाती है कि उसका रोहित से बाते करना दीवांक को अच्छा नहीं लगा, आरुषि ने रोहित को भी दीवांक के बारे में नहीं बताया था वह कपड़े डाल कर अंदर चली जाती है, आरुषि दीवांक का इंतज़ार करती है लेकिन वह उस दिन छत्त पर दुबारा नहीं आता हैं, आरुषि दीवांक को फ़ोन करती हैं लेकिन वो उसके कॉल्स का भी जवाब नहीं देता हैं तब वो दीवांक के लिए एक लेटर लिखती हैं और उसको छत्त पर आने का इंतज़ार करती हैं |
अगले दिन शाम को दीवांक छत्त पर आता है पहले से ही आरुषि अपने बालकनी में खड़ी होती है दीवांक उसे देख कर अनदेखा करता है और हैडफ़ोन कानो में लगा कर छत्त पर टहलने लग जाता है, आरुषि उससे बाते करने की कोशिश करती है लेकिन दीवांक उसके पास नहीं जाता, आरुषि लेटर को दीवांक के छत्त पर फेंक देती है और अंदर चली जाती है, आरुषि के जाने के बाद दीवांक उस लेटर को उठाता है और निचे लेकर चला जाता है)
उस लेटर में लिखा हुआ था :-
(हाय दीवांक ,तुम मुझसे नाराज़ हो,"लेकिन मेरी गलती क्या है..?",क्यू मुझे सजा दे रहे हो, तुम कल की वजह से नाराज़ हो ना, बट एक बार जान तो लो सच क्या है, कल जो मुझसे बातें कर रहा था वह मेरा फ्रेंड रोहित था, हम एक दूसरे को कई सालो से जानते है, वह बहुत अच्छा इंसान है लेकिन वह बस मेरा फ्रेंड है प्यार तो मैं तुम से ही करती हूँ, आई लव यू दीवांक)

(आरुषि का लेटर पढ़ने के बाद दीवांक के चेहरे पर एक स्माइल आ जाती है, वह दुबारा छत्त पर जाता है पर आरुषि उस समय अपनी बालकनी में नहीं होती है तब दीवांक आरुषि के लिए एक लेटर लिख कर लाता है और छत्त पर उसका इंतज़ार करने लगता है थोड़ी देर बाद जब आरुषि आती है तो दीवांक उसे लेटर दे देता है, अब सब ठीक हो जाता है दोनों पहले की तरह ही एक दूसरे से बातें करने लगते हैं लेकिन दीवांक की मम्मी को दीवांक का बार-बार छत्त पर जाना और निचेआना अच्छा नहीं लगता, वह चुपके से दीवांक के कमरे में जाती है उस समय दीवांक छत्त पर ही होता है दीवांक की माँ बहुत ध्यान से उसके कमरों को देखने लगती है, दीवांक का सामान कमरे में बिखरा पड़ा हुआ था वो उन सब को अपने जगह पर रखती हैं और मन ही मन बड़बड़ाती हैं की दीवांक अपनी चीज़ो को संभाल कर नहीं रखता हैं...खिड़की बंद देख कर वो खिड़की खोलने जाती हैं, खिड़की खोलते ही हवाएं दीवांक के कमरे में आने लगती हैं जिसकी वजह से परदे हिलने लगते हैं, वो देखती हैं कि परदे भी गंदे हो चुके थे इसलिए वो उसे उतारने लगती है, पर्दे उतारते समय उसकी नज़र आरुषि की तस्वीर पर पड़ती है, वो उस तस्वीर को देख लेती हैं जिसे दीवांक ने छुपाया था, दीवांक की माँ वापस पर्दा वही पर लगा देती हैं तभी कमरे की तरफ किसी की आने की आहट आती है वह तुरंत पर्दे को छोड़ देती है और सामान सही ढंग से रखने लगती हैं दीवांक कमरे में आता है)
(गुस्से से) दीवांक "मॉम आप, आप मेरे कमरे में क्या कर रही हैं, मैंने मना किया है न किसी को नहीं आने के लिए, फिर आप क्यू आयी ”
माँ "दीवांक देखो आपका कमरा कितना गन्दा हो रहा है, सारा सामान इधर उधर फैला हुआ हैं, एक भी सामान अपनी जगह नहीं हैं इसलिए मैं इन सब को अपनी जगह पर रख रही थी"
दीवांक -"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, मैं अपना काम खुद कर सकता हूँ, आप जाइये यहाँ से ......."
(दीवांक की माँ वहाँ से चली जाती है, माँ के जाने के तुरंत बाद ही दीवांक अपना दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर लेता है, उस दिन बार-बार दीवांक की माँ के दिमाग में वो तस्वीर खटक रही होती है, वो समझ जाती है वो तस्वीर उनके घर के सामने रह रही लड़की की ही है|
उसी दिन रात को
सभी डिनर करके अपने-अपने कमरे में चले जाते है, दीवांक के मॉम-डैड भी चले जाते है, दीवांक की माँ के दिमाग में अब भी वही तस्वीर खटक रही थी, उनको परेशांन देख कर दीवांक के पापा पूछते है)
दीवांक के पापा "क्या हो गया हैं तुम्हे, इतनी परेशान क्यू हो? "
दीवांक की माँ "मुझे अपने बेटे की चिंता हो रही है, पता नहीं आगे चल कर वह क्या करेगा"
(थोड़ा हसते हुए )पापा "अरे भई डॉक्टरी की पढाई रहा है तो डॉक्टर ही बनेगा, इसमें सोचना क्या है"
(अपने पति की तरफ देखते हुए ) माँ " बनेगा तब डॉक्टर जब वो पढ़ाई करेगा, वो तो अब लड़कियों के चक्कर में पड़ गया है, देखिये उसका कमरा जाकर क्या हालत बना रखी है उसने, आप को भी यही लगेगा जो मुझे लग रहा है, हमारा बेटा हमारे हांथो से निकल चुका है"
पापा "क्या कहना चाहती हो, लड़कियों के चक्कर में"
माँ "हाँ लड़की के चक्कर में, आपको पता हैं दिन में एक घंटा भी नहीं रुकता हैं घर में, आता और चला जाता हैं अब तो पहले की तरह मुझसे बातें भी नहीं करता हैं, पता नहीं क्या हो गया हैं हमारे बच्चे को"
पापा "यह तो बहुत गलत बात हैं, आपसे बात नहीं करता हैं दिवांक.... ,खैर तुम्हे पता हैं मीना जी यही कहानी मेरे दोस्त के घर की हैं, कल रमेश मिला था वो भी अपने बेटे के बारे में इतना खेड़ा कह रहा था क्या कर सकते हैं, माँ-बाप भी तो अपने बच्चो की भलाई के लिए ही कहते हैं सुनना और समझना तो उनको खुद हैं, क्या सही हैं और क्या गलत हैं इनका फैसला तो इनको खुद ही करना हैं, आप चिंता नहीं कीजिये दीवांक भी ठीक हो जायेगा"
माँ "लेकिन हम कब तक ऐसा देखते रहेंगे आप ही कहिये, हम भी तो उनका भला ही चाहते हैं न.......",
(लेटते हुए) पापा "ओह मीना जी, आज कल के बच्चे कहाँ समझते हैं, मैं सुबह दीवांक से बात करता हूँ, तुम टेंशन मत लो..."
माँ "लेकिन आप ज़रूर उससे बात कर लीजियेगा "
पापा "हाँ बाबा कर लूंगा बात "
(दोनों सो जाते हैं, अगले दिन संडे होता हैं, संडे को दीवांक की छुट्टी रहती हैं वो सुबह अपने दोस्तों के साथ पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी दीवांक के दरवाज़े पर दस्तक होती है, दीवांक के पापा उससे बातें करने के लिए आते हैं )
पापा "बेटे मैं अंदर आ सकता हूँ "

दीवांक "डैड आप, पूछने की क्या बात है, आइये"
(कमरे में घुसते ही चारो तरफ देखने लगते है )पापा "आज बड़ी मुश्किल से समय मिला है तुमसे बातें करने का, तुम हॉल में आओ वही बात करते है(पीठ पर थपथपाते हुए)"
दीवांक "डैड मैं अभी अपने दोस्तों के साथ जा रहा हूँ, शाम को बात करते हैं"
पापा "बेटे कौन से दोस्तों के साथ जा रहे हो (थोड़ा सोचते हुए) हमें भी मिलवाओ कभी अपने दोस्तों से" ,
दीवांक "क्यू नहीं डैड, आज वह यहाँ नहीं आएंगे लेकिन जब भी आएंगे तो मैं आप से ज़रूर मिलवाऊंगा"
(दीवांक के पापा दीवांक की तरफ देखते है और थोड़ा मुस्कुराते हुए वहाँ से चले जाते हैं और जाकर हॉल में बैठ जाते हैं, दीवांक अपने कमरे को लॉक कर के अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता है, दीवांक को जाते देख उसकी माँ हॉल में आती है)
(अपने पति के बग़ल में बैठते हुए ) माँ "क्या हुआ, दीवांक से बात हुई आपकी?"
पापा "नहीं, उसे दोस्तों के साथ जाना था( थोड़ा चीखते हुए) आपको क्या हो गया है क्यूँ एक ही बात के पीछे पड़ी हो"
मॉम "मैं माँ हूँ उसकी और मुझे उसके भविष्य की चिंता होती है और ये बाते आप को समझ नहीं आएगी (गुस्से से उठ कर चली जाती है)"
(दीवांक के पापा अपनी पत्नी के पीछे-पीछे जाते है और जोर से कहते है) पापा -"दीवांक ने कहा है की वो रात को बात करेगा, अब तो खुश हो ना "
(दीवांक की मॉम अपने कमरे में जाकर बैठ जाती हैं, दीवांक के पापा उसे मनाने के लिए उनके पीछे जाते हैं, वो उन्हें मनाने के लिए बाहर घुमाने ले जाने का वादा करते हैं, ग्यारह बजे वो उनको साउथ सिटी मॉल में शॉपिंग करवाने ले जाते हैं, दीवांक के पापा अपनी गाड़ी निकालते हैं और उन्हें बिठा कर ले जाते हैं, जाते समय उसकी माँ की नज़र आरुषि पर पड़ती हैं वो म्यूजिक क्लास से वापस आ रही होती हैं, वो बहुत ध्यान से उसे देखती हैं लेकिन आरुषि इनको नहीं देख पाती हैं, वो लोग चार बजे ही वापस आ जाते लेकिन दीवांक अभी तक वापस नहीं आया था उसकी मॉम उसको फ़ोन भी करती हैं लेकिन उसका फ़ोन बैटरी ना होने की वजह से बंद हो चुका था, दीवांक रात के लगभग एक बजे घर आता है, उस समय सभी हॉल में ही बैठे होते हैं)दीवांक घर में घुसते ही ) दीवांक "सॉरी मॉम-डैड मैं लेट हो गया मैं अपने दोस्तों के साथ ही था, मेरे फ़ोन की बेटरी लौ हो चुकी है, आप लोग सोये नहीं अभी तक "
माँ "दीवांक आपको हमारी चिंता नहीं होती है क्या, हम सब आपका कब से इंतज़ार कर रहे है, एक कॉल तो कर देते आप, हम सब कितने परेशान हो रहे थे आपको पता भी हैं "
दीवांक "ओह मॉम, मैं अब छोटा बच्चा नहीं रहा, मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ....अभी मैं बहुत थक गया हूँ और मैं सोने जा रहा हूँ आप लोग भी प्लीज जा कर सो जाइये "
डैड “ दीवांक इतनी देर तक हमें बिना बताये तुम्हे बाहर नहीं रहनी चाहिए, तुम कितने भी बड़े हो जाओ लेकिन यह मत भूलना मां-बाप के नज़रो में उनके बच्चे हमेशा छोटे ही रहते हैं, दोस्तों के मोबाइल से कॉल कर के तो बता ही सकते थे ना देखो ये तुम्हारी पहली गलती है, आज के बाद तुम कही भी जाओ तो अपनी माँ को सारी इनफार्मेशन देकर जाना, कब से परेशान हो रही है यह बेचारी”
(इतराते हुए ) दीवांक "ओके डैड और कुछ...,मैं अब सोने जा रहा हूँ, गुड नाईट"
(दीवांक अपने कमरे में चला जाता है, उसके बाद दीवांक के मॉम-डैड भी सोने चले जाते है )

सुबह आठ बाजे
सुबह-सुबह दीवांक के पापा दीवांक का इंतज़ार कर रहे थे, दीवांक अभी तक अपने कमरे में सो रहा था, देखते ही देखते दस बज गए दीवांक के पापा अपने ऑफिस में चले जाते है, दीवांक की बहन भी कॉलेज जा चुकी थी, उस समय दीवांक को हॉस्पिटल से फ़ोन आता हैं जहाँ वो इंटर्नशिप कर रहा था, दीवांक उठ जाता है और कॉल रिसीव करता है)
(उबासी लेते हुए) दीवांक "हेलो, दीवांक दिस साइड"
कॉल पर "दीवांक मैं डॉ. भीम बोल रहा हूँ, तुम्हे पता हैं टाइम कितना हो रहा हैं अभी तक सो रहे हो, तबियत तो ठीक हैं ना तुम्हारी "
(हड़बड़ाते हुए ) दीवांक "गुड गुड मॉर्निंग सर, यस सर मैं बिलकुल ठीक हूँ, मैं बस अभी आ रहा हूँ"
कॉल पर "अगर तुम इस तरह से लेट आते रहे न तो मुझे तुम्हारा इंटर्नशिप कैंसिल करना पड़ेगा एक और बात ध्यान से सुनो अगर तुम मेरे दोस्त के बेटे नहीं होते तो तुम्हारे घर डिसमिस लेटर पहुँचती, समझे"
दीवांक "क्या.....नो नो सर मैं आता हूँ ना प्लीज ऐसा मत कीजियेगा "
(दीवांक जल्दी-जल्दी तैयार होने लगता है, आरुषि को देखने के लिए छत्त पर जाता है लेकिन उस समय वो छत्त पर नहीं होती है, दीवांक कुछ देर उसका इंतज़ार करता है लेकिन आरुषि नहीं आती है, दीवांक उदास होकर अपने ट्रेनिंग सेंटर चला जाता हैं बिना अपने कमरे को लॉक किये)

continue........
 
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Chapter 6


उसी दिन दोपहर २ बजे

(आरुषि अपने म्यूजिक क्लासेस से वापस आ रही थी, दीवांक की माँ अपने दरवाज़े के पास पहले से ही खड़ी थी, आरुषि उन्हें देख कर थोड़ा घबरा जाती हैं और नमस्ते कहते हुए आगे बढ़ने का सोचती हैं लेकिन तभी दीवांक की माँ उसे आवाज़ लगाती है और रोक कर बातें करने लगती हैं )

(दीवांक की माँ को कुछ बोलने से पहले ही आरुषि बोल पड़ती है ) आरुषि "नमस्ते आंटी जी "

(मुस्कुराते हुए ) दीवांक की माँ "नमस्ते-नमस्ते, सब ठीक हैं घर में "

आरुषि "जी आंटी जी "

दीवांक की माँ "अ..,तुम्हारा नाम आरुषि हैं क्या ?"

(मुस्कुराते हुए ) आरुषि "जी, आप कैसे हैं ?"

(बिना हसी के हसते हुए) दीवांक की माँ "हम भी ठीक हैं, आओ बेटा अंदर बैठते हैं तुमसे कुछ बाते भी करनी है"

(थोड़ा डरते हुए ) आरुषि "आंटी जी........क्या बात करनी है आपको मुझसे ?"

दीवांक की माँ "घबराओ मत, आओ तुम्हे कुछ दिखाना है "

(आरुषि उनके साथ घर के अंदर चली जाती हैं, आरुषि थोड़ा डर रही होती है और सोचती है पता नहीं दीवांक की मॉम उसे क्या दिखाना चाहती है, दीवांक की माँ आरुषि को सीधा दीवांक के कमरे में लेकर जाती है )
दीवांक की माँ "इस कमरे को ध्यान से देखो, ये कमरा मेरा बेटा दीवांक का है"
(चारो तरफ देखते हुए )आरुषि "पर आप मुझे यहाँ क्यूँ लेकर आयी हैं, आप मुझे क्या दिखाना चाहती हैं? "
दीवांक की माँ " वेट करो अभी सब पता चल जायेगा (पर्दा उठाते हुए ) यह तस्वीर तुम से काफी मिलती हैं न, ध्यान से देखो"
(आरुषि अपनी फोटो देख कर चौक जाती हैं)
आरुषि -"यह तो मेरी........."

(आरुषि के कुछ बोलने से पहले ही ) दीवांक की माँ "मुझे तो यह तुम्हारी तस्वीर लग रही हैं….क्यूँ सही कह रही हूँ न"
(सिहमते हुए) आरुषि "आंटी जी मैं इसके बारे में नहीं जानती, मेरी यह तस्वीर किसने बनाई मुझे नहीं पता"
दीवांक की माँ "मेरे बेटे दीवांक ने बनाई है ये, उसे पता नहीं क्या हो गया है आजकल बिलकुल बदल चुका है ना घर में किसी से ठीक से बात करता है और ना ही किसी की बातें सुनता है सिर्फ अपनी मनमानी करता रहता है और तो और उसे अपने भविष्य की भी कोई चिंता नहीं, जो चाहिए वो हमने उसे दिया और अब वो हमारे साथ ऐसा बर्ताव करता हैं जैसे हम उसके लिए कुछ भी नहीं"

(सिहमें आवाज़ में ) आरुषि "लेकिन आंटी आप मुझे ये सब क्यू बता रही है"

दीवांक की माँ "कही न कही यह तस्वीर इसकी ज़िम्मेदार हैं, मुझे नहीं पता तुम्हारी उससे बात होती है या नहीं लेकिन मैं एक माँ होने के नाते, मैं तुम से रिक्वेस्ट करती हूँ की अगर वो तुमसे बातें करने की कोशिश करे तो तुम उससे बात मत करना, जब तुम उससे बात नहीं करोगी ना तब वह अपने आप ही ठीक हो जाएगा, मुझे पूरा विश्वाश है की तुम एक माँ की बात को नहीं टालोगी, मुझसे वादा करो की तुम उससे नहीं मिलोगी और नाही उससे बाते करोगी”

(दीवांक की माँ की बाते सुन कर आरुषि के आँखों से आंसू निकलने लगते है )

आरुषि "आंटी .....(आंसू पोछते हुए ) मुझे नहीं पता दीवांक ऐसा क्यूँ कर रहा हैं....... मैं उसे बहुत अच्छा दोस्त मानती हूँ बट मुझे सच में इस सब के बारे में नहीं पता था की वह आप सब के साथ ऐसा बर्ताव करता हैं"

दीवांक की माँ "मैं फिर से तुम से विनती करती हूँ, मेरे बेटे को उसकी हालत पर छोड़ दो प्लीज (हाँथ जोड़ते हुए )"

आरुषि "नहीं आंटी आप ऐसा क्यूँ कर रही है, हाँथ मत जोड़िये प्लीज"

(आरुषि आंसू पोछते हुए वहाँ से चली जाती है, आरुषि जब आंसू पोंछ रही थी तब उसके कान की एक ईयररिंग दीवांक के कमरे में ही गिर जाती है, वो ईयररिंग लुढ़कते हुए बेड के निचे चली जाती है, आरुषि के जाने के बाद दीवांक की माँ उसके कमरे को बंद कर देती है, आरुषि अपने घर पहुँचती है और अपने बेड पर लेट कर फूट-फूट कर रोने लगती है कुछ देर बाद उसकी आँखे लग जाती है और वह वही पर सो जाती है )

Chapter 7

शाम 4 बजे

(लगभग १ घंटे बाद आरुषि का दोस्त रोहित उसके घर पर आता हैं, आरुषि की बहन दरवाज़ा खोलती है और उसे हॉल में बैठने को कहती है और फिर वह आरुषि को बुलाने चली जाती है )

(दरवाज़ा खटकटाते हुए)आरुषि की बहन - "आरुषि दी जल्दी उठो, रोहित भईया आये है उनके लिए चाय बना दो "

(दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ से आरुषि की आँखे खुल जाती है, वह अपने कमरे के बाथरूम में जाकर मुँह-हाँथ धोती है, रोने की वजह से उसकी आँखे भी सूज चुकी होती हैं, वह शीशे में देख कर दीवांक की माँ की बातें याद करने लगती हैं, आरुषि टॉवेल से मुँह पोछते हुए बाहर निकलती है और सीधा हॉल में जाती है )

आरुषि- "हाय रोहित, कैसे हो? अंकल-आंटी कैसे है?"

(रोहित आरुषि को देख कर खड़ा हो जाता है) रोहित- "हाय, मैं बिलकुल ठीक हूँ और मम्मी पापा भी ठीक है, तुम कैसी हो, तबियत तो ठीक हैं न "

(टॉवेल निचे रखते हुए ) आरुषि -"वो एक्चुअली मैं सो ही रही थी इसलिए सिर हैवी हो हैं ......,अकेडमी से आने के बाद आँख लग गयी थी और टाइम का पता ही नहीं चला खैर तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ "

रोहित -"नहीं...,मैंने चाय पीनी छोड़ दी हैं बस अभी एक गिलास पानी पिला दो "

आरुषि-"अच्छा...ओके, मैं अभी लेकर आ रही हूँ "

(रोहित दुबारा बैठ जाता है, आरुषि रोहित के लिए पानी लेकर आती है, रोहित पानी पीकर टेबल पर रखा न्यूज़ पेपर पढ़ने लगता है, आरुषि भी सोफे के एक साइड में बैठ जाती है, आरुषि अपना एक हाथ अपने गालो पर रख कर बैठी होती है)

रोहित -"क्या हुआ आरुषि, बहुत उदास लग रही हो, मम्मी से डांट पड़ी है क्या...?"

(रोहित की तरफ देखते हुए )आरुषि-"नहीं तो मम्मी क्यू डाँटेगी, अभी सो कर उठी हूँ न तो लग रहा होगा, तुम बताओ स्टडी कैसी चल रही हैं? "

रोहित-"फाइनल ईयर चल रहा हैं और अभी एक्साम्स की तैयारी कर रहा हूँ, तुम बताओ तुम्हारे म्यूजिक क्लासेस कैसे चल रहे है?"

(हल्की सी स्माइल पास करते हुए) आरुषि-"म्यूजिक क्लास अच्छी चल रही है, एक सवाल है मेरा क्या तुम आंसर दोगे...?"

साहिल-"हाँ क्यूँ नहीं पूछो तो सही, पता होगा तो ज़रूर दूंगा"

आरुषि-"एक्चुअली बात ये है की मुझे लव के बारे में जाना है"

(हसते हुए) रोहित -"क्या लव के बारे में......."

आरुषि -"हाँ......मुझे यह जानना हैं की एक लड़का एक लड़की से किस हद तक प्यार करता है?, मेरा मतलब यह हैं क़ि अगर किसी लड़के को किसी लड़की से प्यार हो जाये तो वह बिलकुल बदल जाता है क्या अपने माँ बाप के लिए और फिर वह अपने माँ बाप की बातें भी नहीं सुनता है, और तो और वह अपने कमरे में उस लड़की की तस्वीर भी बनाता है, क्या लड़के इस तरह प्यार करते है किसी लड़की से?"

रोहित -"ओह गॉड......, मैंने कौन सी लव पर पीएचडी कर रखी हैं, मेरा इसमें कोई एक्सपीरिएंस नहीं हैं बट जितना देखा हैं, फील किया हैं उसके बिहाल्फ पे बता सकता हूँ "

(हसते हुए) आरुषि " क्यूँ...,तुम्हारी कोई गिर्ल्फ्रैंड नहीं हैं क्या"

रोहित "दिल में हैं एक लड़की बट इतनी हिम्मत नहीं हैं की उसे बता सकूँ"

आरुषि "मुझे उसका नाम बताओ, मैं तुम्हारी हेल्प कर देती हूँ"

रोहित "आ..आरुषि यह सब छोड़ो न......नहीं तो तुम्हारा सवाल रह जायेगा "

आरुषि "जवाब सुने बिना तो तुम्हे जाने भी नहीं दूंगी, बट पहले तुम्हे अपनी गिर्ल्फ्रैंड का नाम बताना होगा"

रोहित "आरुषि...,यह क्या हैं.....(आँखे बचाते हुए) मैंने आज तक उसका नाम नहीं लिया तो तुम्हे कैसे बता दूँ, वेल मुझे काम याद आ गया, जाना होगा"

आरुषि "रोहित मैं तुम्हारी फ्रैंड नहीं हूँ क्या, मुझे बताने में क्या प्रॉब्लम हैं"

रोहित "अच्छा, बट तुम्हे भी बताना होगा"

आरुषि "क्या?"

रोहित "तुम्हारा कोई बॉयफ्रैंड हैं?"

(आरुषि एक दम शांत हो जाती हैं, उसके होठो पर हसी रुक जाती हैं)

(मुस्कुराते हुए ) आरुषि "यह तो गलत हैं न पहले मैंने पूछा था "

रोहित "यह मैटर नहीं करता किसने पहले पूछा हैं, बताना तो तुम्हे भी पड़ेगा"

आरुषि "ओके......लीव दिस टॉपिक, नहीं तो मेरा सवाल रह जाएगा"

रोहित -बट तुम बीच में कुछ नहीं पूछोगी"

आरुषि- ओके बाबा, नहीं पूछूँगी"

रोहित-होप सो....क्या क्वेशचन था... लव ....यू नो आरुषि लव एक ऐसी इनविजिबल फीलिंग है जो हर किसी को देख कर नहीं होती और जिसे भी देख कर ये फिलिंग होती है न बस फिर दिल यही चाहता हैकी वो इंसान हमेशा हमारे सामने रहे और हमारे साथ रहे, और फिर बार-बार हमारा ध्यान उसी इंसान के पास जाता है जिसे देख कर ये फीलिंग होती है, मुझे तो लगता है की यही प्यार है और ऐसा कुछ भी ज़रूरी नहीं है की अगर किसी लड़के को किसी लड़की से प्यार हो जाये तो वो अपने माँ-बाप को भूल जाते है या फिर बदल जाते है उनके लिए और उनकी बात नहीं सुनते, और हाँ तुमने तस्वीर के बारे में भी पूछा है तो उसके लिए मेरा यही मानना है ऐसा तो वो लोग करते है जिसे सिर्फ लड़की को पाने का जूनून होता है क्युकि प्यार करने वालो को किसी तस्वीर बनाने की ज़रूरत नहीं होती हैं बल्कि उनके आँखों में ही उनके लवर्स का चेहरा बस जाता है तस्वीर बनाने वाले लोग सिर्फ प्यार का दिखावा करते है, वैसे तुम्हे क्या हो गया है आरुषि इतने अलग से सवाल क्यूँ पूछ रही हो....?"हॅसते हुए) आरुषि "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, एक्चुअली मैंने एक मैगज़ीन में लव स्टोरी पढ़ी थी तो उसी में ये सब डाउट थे ..(हसते हुए) एक्चुअली ये सच नहीं है, मेरी फ्रेंड्स के साथ इस टॉपिक पर डिस्कशन होगा कल तो मैं पहले से ही इसकी तैयारी कर रही हूँ "

रोहित "मुझे लग रहा था, तुम और वो भी लव स्टोरी वाली मैगज़ीन पढ़ोगी, वैसे काफी अलग टॉपिक नहीं है डिस्कशन करने के लिए"

आरुषि "क्यूँ मै क्यूँ नहीं पढ़ सकती लव स्टोरी वाली मैगज़ीन "

रोहित "नहीं…,पढ़ सकती हो, लेकिन मैंने तो तुम्हे सिर्फ अपने टेक्स्ट बुक्स पढ़ते देखा है(रोहित फिर हसने लगता है )"

आरुषि "वैरी फनी.......मैं जा रही हूँ कुकिंग करने, तुम्हे कुछ खाना है ...?"

रोहित "नहीं मुझे कुछ नहीं खाना, मैं भी जा रहा हूँ, तुम अपने मम्मी-पापा को मेरा नमस्ते कहना, बाय "

आरुषि "ओके बाय, बट रुको तुम्हे थैंक्स तो बोला ही नहीं, थैंक्यू सो मच "

रोहित "ये किस लिए...?"

(हसते हुए )आरुषि "तुम्हारे लेक्चर के लिए "

रोहित "तुम्हे इतना अच्छा लगा मेरा लेक्चर,ओह यू आर वेलकम माय डिअर"

(मज़ाक करते हुए) आरुषि "अच्छा नहीं लगा बल्कि बहुत बकवास था, कोई बोले किसी टॉपिक पर बोलने के लिए तो ध्यान रखना, सामने वाला सो न जाये"

दीवांक "आरुषि.....मै जा रहा हूँ, बाय"

(हसते हुए)आरुषि "रुको-रुको मैंने मज़ाक किया था, सॉरी"

रोहित- "मुझे पता था चल मैं जा रहा हूँ, फिर मिलते है, बाय"

आरुषि -"ओके बाय"

शाम 6 बजे

शाम छह बजे दीवांक हॉस्पिटल से वापस आता हैं, आते ही दीवांक फ्रेश होकर सीधा छत्त पर जाता है, दीवांक की माँ हॉल में बैठी टेलीविज़न देख रही होती हैं और उसकी बहन लैपटॉप चला रही होती है, दीवांक की माँ उसकी हरकतों पर भी ध्यान रख रही थी, दीवांक छत्त पर आरुषि के आने का इंतज़ार करता हैं लेकिन फिर से आरुषि अपने बालकनी में नहीं आती हैं, दिवांक उसको दिन में भी कॉल करता हैं लेकिन आरुषि उसका फ़ोन पिक नहीं करती हैं, लगभग आधे घंटे बाद दीवांक वापस निचे आता है और गुस्से में अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लेता है, कुछ देर बाद उसकी मॉम उसके लिए खाने की चीज़े लेकर जाती है ,

(दरवाजा खटखटाते हुए) माँ "दीवांक बेटा दरवाज़ा खोलिये मैं आपके लिए खाना लायी हूँ,आपका फेवरेट डिश"

दीवांक "मुझे भूख नहीं हैं, आप वापस ले जाइये"

मॉम "बेटा स्पेशली आपके लिए ही बनाया हैं, प्लीज खा लीजिये"

(दरवाज़ा खोलते हुए ) दीवांक "मॉम क्या लायी हैं आप, दे दीजिये, मैं थोड़ी देर बाद खा लूंगा "

माँ "याद से खा लेना"

दीवांक "ओके मॉम"

(दीवांक फिर दरवाज़ा बंद कर लेता है, दिवांक आरुषि को फ़ोन करता हैं लेकिन उसका नंबर बंद होता हैं वो रात के समय आरुषि के लिए एक लेटर लिख कर छत्त पर उसका इंतज़ार करता है, दीवांक घंटो उसका इंतज़ार करता रहता है लेकिन आरुषि अपने बालकनी में वापस नहीं आती है, दीवांक उस लेटर को उसके बालकनी में फेंक देता है और मन ही मन सोचता हैं जब आरुषि आएगी तो लेटर उठा लेगी, लगभग ग्यारह बजे वह अपने कमरे में वापस जाता है और बिना खाये सो जाता है, दीवांक के माँ-बाप जब उससे पूछने जाते हैं तो वह कहता की उसे भूख नहीं है |

अगली सुबह वह फिर छत्त पर जाता हैं, वह जो देखता हैं उसे देख कर शॉक्ड रह जाता हैं, अभी भी उसका लेटर बालकनी में ही पड़ा था, वह जल्दी-जल्दी नाश्ता कर के गली के मोड़ पर खड़ा हो जाता हैं ताकि जब आरुषि अपने कोचिंग के लिए निकले तो वह उससे पूछ सके कि वो उसके लेटर का जवाब क्यूँ नहीं दे रही है )

लगभग दो घंटे तक वो वही पर खड़ा होकर उसका इंतज़ार करता हैं लेकिन आरुषि उस दिन अपने कोचिंग भी नहीं जाती है,आरुषि के कोचिंग जाने का टाइम हो चुका था, दीवांक उसे देखने के लिए बेचैन हो रहा था, दीवांक को लगने लगा शायद आरुषि बीमार होगी इसलिए कोचिंग भी नहीं जा रही है, वह जैसे-तैसे अपने दिल को समझा कर वापस अपने घर आ जाता है, दीवांक उसके लिए फिर से एक लेटर लिखता है और छत्त पर उसका इंतज़ार करने लगता है, आरुषि अपने खिड़की में से दीवांक को देख रही होती है, वो चाह कर भी उसके सामने नहीं आ रही थी क्यूंकि उसने किसी से वादा किया था और वह थी दीवांक की माँ, कुछ देर बाद दीवांक निराश होकर निचे आ जाता हैं और फिर तैयार होकर हॉस्पिटल चला जाता हैं, दीवंक के जाने के बाद आरुषि अपने बेड पर लेट कर फूट-फूट कर रोने लगती हैं |

Continue.........
 

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Chapter 6


उसी दिन दोपहर २ बजे

(आरुषि अपने म्यूजिक क्लासेस से वापस आ रही थी, दीवांक की माँ अपने दरवाज़े के पास पहले से ही खड़ी थी, आरुषि उन्हें देख कर थोड़ा घबरा जाती हैं और नमस्ते कहते हुए आगे बढ़ने का सोचती हैं लेकिन तभी दीवांक की माँ उसे आवाज़ लगाती है और रोक कर बातें करने लगती हैं )

(दीवांक की माँ को कुछ बोलने से पहले ही आरुषि बोल पड़ती है ) आरुषि "नमस्ते आंटी जी "

(मुस्कुराते हुए ) दीवांक की माँ "नमस्ते-नमस्ते, सब ठीक हैं घर में "

आरुषि "जी आंटी जी "

दीवांक की माँ "अ..,तुम्हारा नाम आरुषि हैं क्या ?"

(मुस्कुराते हुए ) आरुषि "जी, आप कैसे हैं ?"

(बिना हसी के हसते हुए) दीवांक की माँ "हम भी ठीक हैं, आओ बेटा अंदर बैठते हैं तुमसे कुछ बाते भी करनी है"

(थोड़ा डरते हुए ) आरुषि "आंटी जी........क्या बात करनी है आपको मुझसे ?"

दीवांक की माँ "घबराओ मत, आओ तुम्हे कुछ दिखाना है "

(आरुषि उनके साथ घर के अंदर चली जाती हैं, आरुषि थोड़ा डर रही होती है और सोचती है पता नहीं दीवांक की मॉम उसे क्या दिखाना चाहती है, दीवांक की माँ आरुषि को सीधा दीवांक के कमरे में लेकर जाती है )
दीवांक की माँ "इस कमरे को ध्यान से देखो, ये कमरा मेरा बेटा दीवांक का है"
(चारो तरफ देखते हुए )आरुषि "पर आप मुझे यहाँ क्यूँ लेकर आयी हैं, आप मुझे क्या दिखाना चाहती हैं? "
दीवांक की माँ " वेट करो अभी सब पता चल जायेगा (पर्दा उठाते हुए ) यह तस्वीर तुम से काफी मिलती हैं न, ध्यान से देखो"
(आरुषि अपनी फोटो देख कर चौक जाती हैं)
आरुषि -"यह तो मेरी........."

(आरुषि के कुछ बोलने से पहले ही ) दीवांक की माँ "मुझे तो यह तुम्हारी तस्वीर लग रही हैं….क्यूँ सही कह रही हूँ न"
(सिहमते हुए) आरुषि "आंटी जी मैं इसके बारे में नहीं जानती, मेरी यह तस्वीर किसने बनाई मुझे नहीं पता"
दीवांक की माँ "मेरे बेटे दीवांक ने बनाई है ये, उसे पता नहीं क्या हो गया है आजकल बिलकुल बदल चुका है ना घर में किसी से ठीक से बात करता है और ना ही किसी की बातें सुनता है सिर्फ अपनी मनमानी करता रहता है और तो और उसे अपने भविष्य की भी कोई चिंता नहीं, जो चाहिए वो हमने उसे दिया और अब वो हमारे साथ ऐसा बर्ताव करता हैं जैसे हम उसके लिए कुछ भी नहीं"

(सिहमें आवाज़ में ) आरुषि "लेकिन आंटी आप मुझे ये सब क्यू बता रही है"

दीवांक की माँ "कही न कही यह तस्वीर इसकी ज़िम्मेदार हैं, मुझे नहीं पता तुम्हारी उससे बात होती है या नहीं लेकिन मैं एक माँ होने के नाते, मैं तुम से रिक्वेस्ट करती हूँ की अगर वो तुमसे बातें करने की कोशिश करे तो तुम उससे बात मत करना, जब तुम उससे बात नहीं करोगी ना तब वह अपने आप ही ठीक हो जाएगा, मुझे पूरा विश्वाश है की तुम एक माँ की बात को नहीं टालोगी, मुझसे वादा करो की तुम उससे नहीं मिलोगी और नाही उससे बाते करोगी”

(दीवांक की माँ की बाते सुन कर आरुषि के आँखों से आंसू निकलने लगते है )

आरुषि "आंटी .....(आंसू पोछते हुए ) मुझे नहीं पता दीवांक ऐसा क्यूँ कर रहा हैं....... मैं उसे बहुत अच्छा दोस्त मानती हूँ बट मुझे सच में इस सब के बारे में नहीं पता था की वह आप सब के साथ ऐसा बर्ताव करता हैं"

दीवांक की माँ "मैं फिर से तुम से विनती करती हूँ, मेरे बेटे को उसकी हालत पर छोड़ दो प्लीज (हाँथ जोड़ते हुए )"

आरुषि "नहीं आंटी आप ऐसा क्यूँ कर रही है, हाँथ मत जोड़िये प्लीज"

(आरुषि आंसू पोछते हुए वहाँ से चली जाती है, आरुषि जब आंसू पोंछ रही थी तब उसके कान की एक ईयररिंग दीवांक के कमरे में ही गिर जाती है, वो ईयररिंग लुढ़कते हुए बेड के निचे चली जाती है, आरुषि के जाने के बाद दीवांक की माँ उसके कमरे को बंद कर देती है, आरुषि अपने घर पहुँचती है और अपने बेड पर लेट कर फूट-फूट कर रोने लगती है कुछ देर बाद उसकी आँखे लग जाती है और वह वही पर सो जाती है )
 

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Chapter 7

शाम 4 बजे

(लगभग १ घंटे बाद आरुषि का दोस्त रोहित उसके घर पर आता हैं, आरुषि की बहन दरवाज़ा खोलती है और उसे हॉल में बैठने को कहती है और फिर वह आरुषि को बुलाने चली जाती है )

(दरवाज़ा खटकटाते हुए)आरुषि की बहन - "आरुषि दी जल्दी उठो, रोहित भईया आये है उनके लिए चाय बना दो "

(दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ से आरुषि की आँखे खुल जाती है, वह अपने कमरे के बाथरूम में जाकर मुँह-हाँथ धोती है, रोने की वजह से उसकी आँखे भी सूज चुकी होती हैं, वह शीशे में देख कर दीवांक की माँ की बातें याद करने लगती हैं, आरुषि टॉवेल से मुँह पोछते हुए बाहर निकलती है और सीधा हॉल में जाती है )

आरुषि- "हाय रोहित, कैसे हो? अंकल-आंटी कैसे है?"

(रोहित आरुषि को देख कर खड़ा हो जाता है) रोहित- "हाय, मैं बिलकुल ठीक हूँ और मम्मी पापा भी ठीक है, तुम कैसी हो, तबियत तो ठीक हैं न "

(टॉवेल निचे रखते हुए ) आरुषि -"वो एक्चुअली मैं सो ही रही थी इसलिए सिर हैवी हो रहा हैं ......,अकेडमी से आने के बाद आँख लग गयी थी और टाइम का पता ही नहीं चला खैर तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ "

रोहित -"नहीं...,मैंने चाय पीनी छोड़ दी हैं बस अभी एक गिलास पानी पिला दो "

आरुषि-"अच्छा...ओके, मैं अभी लेकर आ रही हूँ "

(रोहित दुबारा बैठ जाता है, आरुषि रोहित के लिए पानी लेकर आती है, रोहित पानी पीकर टेबल पर रखा न्यूज़ पेपर पढ़ने लगता है, आरुषि भी सोफे के एक साइड में बैठ जाती है, आरुषि अपना एक हाथ अपने गालो पर रख कर बैठी होती है)

रोहित -"क्या हुआ आरुषि, बहुत उदास लग रही हो, मम्मी से डांट पड़ी है क्या...?"

(रोहित की तरफ देखते हुए )आरुषि-"नहीं तो मम्मी क्यू डाँटेगी, अभी सो कर उठी हूँ न तो लग रहा होगा, तुम बताओ स्टडी कैसी चल रही हैं? "

रोहित-"फाइनल ईयर चल रहा हैं और अभी एक्साम्स की तैयारी कर रहा हूँ, तुम बताओ तुम्हारे म्यूजिक क्लासेस कैसे चल रहे है?"

(हल्की सी स्माइल पास करते हुए) आरुषि-"म्यूजिक क्लास अच्छी चल रही है, एक सवाल है मेरा क्या तुम आंसर दोगे...?"

साहिल-"हाँ क्यूँ नहीं पूछो तो सही, पता होगा तो ज़रूर दूंगा"

आरुषि-"एक्चुअली बात ये है की मुझे लव के बारे में जाना है"

(हसते हुए) रोहित -"क्या लव के बारे में......."

आरुषि -"हाँ......मुझे यह जानना हैं की एक लड़का एक लड़की से किस हद तक प्यार करता है?, मेरा मतलब यह हैं क़ि अगर किसी लड़के को किसी लड़की से प्यार हो जाये तो वह बिलकुल बदल जाता है क्या अपने माँ बाप के लिए और फिर वह अपने माँ बाप की बातें भी नहीं सुनता है, और तो और वह अपने कमरे में उस लड़की की तस्वीर भी बनाता है, क्या लड़के इस तरह प्यार करते है किसी लड़की से?"

रोहित -"ओह गॉड......, मैंने कौन सी लव पर पीएचडी कर रखी हैं, मेरा इसमें कोई एक्सपीरिएंस नहीं हैं बट जितना देखा हैं, फील किया हैं उसके बिहाल्फ पे बता सकता हूँ "

(हसते हुए) आरुषि " क्यूँ...,तुम्हारी कोई गिर्ल्फ्रैंड नहीं हैं क्या"

रोहित "दिल में हैं एक लड़की बट इतनी हिम्मत नहीं हैं की उसे बता सकूँ"

आरुषि "मुझे उसका नाम बताओ, मैं तुम्हारी हेल्प कर देती हूँ"

रोहित "आ..आरुषि यह सब छोड़ो न......नहीं तो तुम्हारा सवाल रह जायेगा "

आरुषि "जवाब सुने बिना तो तुम्हे जाने भी नहीं दूंगी, बट पहले तुम्हे अपनी गिर्ल्फ्रैंड का नाम बताना होगा"

रोहित "आरुषि...,यह क्या हैं.....(आँखे बचाते हुए) मैंने आज तक उसका नाम नहीं लिया तो तुम्हे कैसे बता दूँ, वेल मुझे काम याद आ गया, जाना होगा"

आरुषि "रोहित मैं तुम्हारी फ्रैंड नहीं हूँ क्या, मुझे बताने में क्या प्रॉब्लम हैं"

रोहित "अच्छा, बट तुम्हे भी बताना होगा"

आरुषि "क्या?"

रोहित "तुम्हारा कोई बॉयफ्रैंड हैं?"

(आरुषि एक दम शांत हो जाती हैं, उसके होठो पर हसी रुक जाती हैं)

(मुस्कुराते हुए ) आरुषि "यह तो गलत हैं न पहले मैंने पूछा था "

रोहित "यह मैटर नहीं करता किसने पहले पूछा हैं, बताना तो तुम्हे भी पड़ेगा"

आरुषि "ओके......लीव दिस टॉपिक, नहीं तो मेरा सवाल रह जाएगा"

रोहित -बट तुम बीच में कुछ नहीं पूछोगी"

आरुषि- ओके बाबा, नहीं पूछूँगी"

रोहित-होप सो....क्या क्वेशचन था... लव ....यू नो आरुषि लव एक ऐसी इनविजिबल फीलिंग है जो हर किसी को देख कर नहीं होती और जिसे भी देख कर ये फिलिंग होती है न बस फिर दिल यही चाहता हैकी वो इंसान हमेशा हमारे सामने रहे और हमारे साथ रहे, और फिर बार-बार हमारा ध्यान उसी इंसान के पास जाता है जिसे देख कर ये फीलिंग होती है, मुझे तो लगता है की यही प्यार है और ऐसा कुछ भी ज़रूरी नहीं है की अगर किसी लड़के को किसी लड़की से प्यार हो जाये तो वो अपने माँ-बाप को भूल जाते है या फिर बदल जाते है उनके लिए और उनकी बात नहीं सुनते, और हाँ तुमने तस्वीर के बारे में भी पूछा है तो उसके लिए मेरा यही मानना है ऐसा तो ऐसा तो वो लोग करते है जिसे सिर्फ लड़की को पाने का जूनून होता है क्युकि प्यार करने वालो को किसी तस्वीर बनाने की ज़रूरत नहीं होती हैं बल्कि उनके आँखों में ही उनके लवर्स का चेहरा बस जाता है तस्वीर बनाने वाले लोग सिर्फ प्यार का दिखावा करते है, वैसे तुम्हे क्या हो गया है आरुषि इतने अलग से सवाल क्यूँ पूछ रही हो....?"

(हॅसते हुए) आरुषि "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, एक्चुअली मैंने एक मैगज़ीन में लव स्टोरी पढ़ी थी तो उसी में ये सब डाउट थे ..(हसते हुए) एक्चुअली ये सच नहीं है, मेरी फ्रेंड्स के साथ इस टॉपिक पर डिस्कशन होगा कल तो मैं पहले से ही इसकी तैयारी कर रही हूँ "

रोहित "मुझे लग रहा था, तुम और वो भी लव स्टोरी वाली मैगज़ीन पढ़ोगी, वैसे काफी अलग टॉपिक नहीं है डिस्कशन करने के लिए"

आरुषि "क्यूँ मै क्यूँ नहीं पढ़ सकती लव स्टोरी वाली मैगज़ीन "

रोहित "नहीं…,पढ़ सकती हो, लेकिन मैंने तो तुम्हे सिर्फ अपने टेक्स्ट बुक्स पढ़ते देखा है(रोहित फिर हसने लगता है )"

आरुषि "वैरी फनी.......मैं जा रही हूँ कुकिंग करने, तुम्हे कुछ खाना है ...?"

रोहित "नहीं मुझे कुछ नहीं खाना, मैं भी जा रहा हूँ, तुम अपने मम्मी-पापा को मेरा नमस्ते कहना, बाय "

आरुषि "ओके बाय, बट रुको तुम्हे थैंक्स तो बोला ही नहीं, थैंक्यू सो मच "

रोहित "ये किस लिए...?"

(हसते हुए )आरुषि "तुम्हारे लेक्चर के लिए "

रोहित "तुम्हे इतना अच्छा लगा मेरा लेक्चर,ओह यू आर वेलकम माय डिअर"

(मज़ाक करते हुए) आरुषि "अच्छा नहीं लगा बल्कि बहुत बकवास था, कोई बोले किसी टॉपिक पर बोलने के लिए तो ध्यान रखना, सामने वाला सो न जाये"

दीवांक "आरुषि.....मै जा रहा हूँ, बाय"

(हसते हुए)आरुषि "रुको-रुको मैंने मज़ाक किया था, सॉरी"

रोहित- "मुझे पता था चल मैं जा रहा हूँ, फिर मिलते है, बाय"

आरुषि -"ओके बाय"

शाम 6 बजे

शाम छह बजे दीवांक हॉस्पिटल से वापस आता हैं, आते ही दीवांक फ्रेश होकर सीधा छत्त पर जाता है, दीवांक की माँ हॉल में बैठी टेलीविज़न देख रही होती हैं और उसकी बहन लैपटॉप चला रही होती है, दीवांक की माँ उसकी हरकतों पर भी ध्यान रख रही थी, दीवांक छत्त पर आरुषि के आने का इंतज़ार करता हैं लेकिन फिर से आरुषि अपने बालकनी में नहीं आती हैं, दिवांक उसको दिन में भी कॉल करता हैं लेकिन आरुषि उसका फ़ोन पिक नहीं करती हैं, लगभग आधे घंटे बाद दीवांक वापस निचे आता है और गुस्से में अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लेता है, कुछ देर बाद उसकी मॉम उसके लिए खाने की चीज़े लेकर जाती है ,

(दरवाजा खटखटाते हुए) माँ "दीवांक बेटा दरवाज़ा खोलिये मैं आपके लिए खाना लायी हूँ,आपका फेवरेट डिश"

दीवांक "मुझे भूख नहीं हैं, आप वापस ले जाइये"

मॉम "बेटा स्पेशली आपके लिए ही बनाया हैं, प्लीज खा लीजिये"

(दरवाज़ा खोलते हुए ) दीवांक "मॉम क्या लायी हैं आप, दे दीजिये, मैं थोड़ी देर बाद खा लूंगा "

माँ "याद से खा लेना"

दीवांक "ओके मॉम"

(दीवांक फिर दरवाज़ा बंद कर लेता है, दिवांक आरुषि को फ़ोन करता हैं लेकिन उसका नंबर बंद होता हैं वो रात के समय आरुषि के लिए एक लेटर लिख कर छत्त पर उसका इंतज़ार करता है, दीवांक घंटो उसका इंतज़ार करता रहता है लेकिन आरुषि अपने बालकनी में वापस नहीं आती है, दीवांक उस लेटर को उसके बालकनी में फेंक देता है और मन ही मन सोचता हैं जब आरुषि आएगी तो लेटर उठा लेगी, लगभग ग्यारह बजे वह अपने कमरे में वापस जाता है और बिना खाये सो जाता है, दीवांक के माँ-बाप जब उससे पूछने जाते हैं तो वह कहता की उसे भूख नहीं है |

अगली सुबह वह फिर छत्त पर जाता हैं, वह जो देखता हैं उसे देख कर शॉक्ड रह जाता हैं, अभी भी उसका लेटर बालकनी में ही पड़ा था, वह जल्दी-जल्दी नाश्ता कर के गली के मोड़ पर खड़ा हो जाता हैं ताकि जब आरुषि अपने कोचिंग के लिए निकले तो वह उससे पूछ सके कि वो उसके लेटर का जवाब क्यूँ नहीं दे रही है )

लगभग दो घंटे तक वो वही पर खड़ा होकर उसका इंतज़ार करता हैं लेकिन आरुषि उस दिन अपने कोचिंग भी नहीं जाती है,आरुषि के कोचिंग जाने का टाइम हो चुका था, दीवांक उसे देखने के लिए बेचैन हो रहा था, दीवांक को लगने लगा शायद आरुषि बीमार होगी इसलिए कोचिंग भी नहीं जा रही है, वह जैसे-तैसे अपने दिल को समझा कर वापस अपने घर आ जाता है, दीवांक उसके लिए फिर से एक लेटर लिखता है और छत्त पर उसका इंतज़ार करने लगता है, आरुषि अपने खिड़की में से दीवांक को देख रही होती है, वो चाह कर भी उसके सामने नहीं आ रही थी क्यूंकि उसने किसी से वादा किया था और वह थी दीवांक की माँ, कुछ देर बाद दीवांक निराश होकर निचे आ जाता हैं और फिर तैयार होकर हॉस्पिटल चला जाता हैं, दीवंक के जाने के बाद आरुषि अपने बेड पर लेट कर फूट-फूट कर रोने लगती हैं |

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Chapter 8


उसी दिन शाम को,

(आरुषि की फ्रेंड्स उसके घर पर आती है और उसे साथ में मार्किट चलने के लिए ज़िद करने लगती है, आरुषि अपनी फ्रेंड्स को मना करती हैं लेकिन फिर भी वो सब उसे लेकर मार्किट चले जातें है, आरुषि बिलकुल उदास मन से साथ जा रही होती हैं, उसे दीवांक के बारे में सोच-सोच कर बहुत बुरा लग रहा था, आरुषि जैसे ही गली से निकलती हैं तभी उसी समय दीवांक भी किसी काम से अपने घर से निकलता है, आरुषि ने फ्रॉक सूट पहना था, दीवांक को बस उसका दुपट्टा दिखता है और वह समझ जाता है कि वह आरुषि ही है, वह ख़ुश होकर उसके पीछे जाता है ताकि उससे बात कर सके, आरुषि की फ्रेंड्स के साथ सौम्या भी थी, आरुषि को उदास देखकर उससे पूछने लगती है)

सौम्या "आरुषि तुझे क्या हो गया हैं, (अपने फ्रेंड्स को देखते हुए ) यार हम इसे ज़बरदस्ती लेकर आ गए है इसलिए ये हमसे नाराज़ है "

आरुषि "नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे पता था मैं कितना भी मना कर लूँ तुम लोग लास्ट में मुझे मना ही लेते, बस ऐसे ही....."

आरुषि की फ्रेंड्स "बस ऐसे ही, चल झूट नहीं बोल, हमे पता है तेरी उससे लड़ाई हो गयी है न तभी तो वो तुझे मनाने के लिए तेरे पीछे-पीछे आ रहा है"

(चौंकते हुए) आरुषि "क्या, वो हमारे पीछे है, ओ शिट यार कोई भी उससे बात नहीं करना प्लीज......और ना ही कोई कमैंट्स पास करना...प्लीज़...प्लीज़"

सौम्या "आरुषि तु भी ना, देख तेरा दीवाना तेरे पीछे-पीछे आ रहा है और तू है की इतना भाव खा रही है, काश हमें भी कोई इतना चाहने वाला होता......."

(घबराते हुए ) आरुषि "यार सौम्या, मैं बाद में सब कुछ तुम लोगो को बता दूंगी लेकिन अभी प्लीज़ सब मेरी बात मान जाओ यार, प्लीज…..",

सौम्या "यार क्या हो गया आरुषि इतना अच्छा तो मौका मिला हैं इससे मज़ाक करने का और तू हैं की ....., ओके गाइस कोई भी हमारे जीजू से बात नहीं करेगा (सभी हॅसने लगते है) अब ठीक है ...."

आरुषि - "सौम्या .....थैंक्स, चलो अब सब, कुछ खरीदते है,

(दीवांक उन सब के पीछे ही आ रहा था, मार्किट में जाने के बाद आरुषि अपनी फ्रेंड्स का साथ छोड़ देती है ताकि दीवांक उसे न देख सके और वापस चला जाए, भीड़ की वहज से दीवांक पीछे ही रह जाता है, जब वह आरुषि को उसकी फ्रेंड्स के साथ नहीं देखता तो वह उसे मार्किट में हर जगह ढूंढने लगता है दरअसल आरुषि एक शॉप के पीछे छुप जाती है और खुद दीवांक पर नज़र रख रही होती है, दीवांक उसे ढूंढने के लिए हर शॉप में जाकर देखने लगता है एक शॉप पर उसे आरुषि की फ्रेंड्स दिखती है वो उन मे से सिर्फ सौम्या को जनता था )

(सौम्या के पास जाते हुए) दीवांक "सौम्या, आरुषि कहाँ है.....? वो आप सब के साथ ही आयी थी ना, कहाँ चली गयी, कुछ बताया उसने ? मैंने उसे पुरे मार्किट में ढूंढ लिया, बट......"

सौम्या "हाय दीवांक, आरुषि तो हमारे साथ ही थी लेकिन वो गयी कहाँ......,(अपनी फ्रेंड्स की तरफ देखते हुए ) गाइस तुम लोगो ने आरुषि को देखा है क्या, कहाँ चली गई इतनी जल्दी?"

फ्रेंड्स "नहीं यार, अभी तक तो हमारे साथ ही थी लेकिन इतनी जल्दी कहाँ चली गयी, उसके पास एक फ़ोन था, कॉल कर के देख..."

सौम्या "हाँ वो घर का फ़ोन लेकर आयी थी, मैं अभी कॉल करती हूँ"

(सौम्या आरुषि को कॉल लगाने लगती है, दीवांक भी वही पर खड़ा होता है, आरुषि शॉप के पीछे से सब कुछ देख रही होती है, उसका फ़ोन साइलेंट पर होता है, आरुषि फ़ोन उठती हैं)

सौम्या "हेलो आरुषि, कहाँ है तू...?,बिना बताये कहाँ चली गयी"

आरुषि "सौम्या मैं घर पर हूँ, एक्चुअली मेरी बुआ मिल गयी थी मार्किट में तो मैं उनके साथ वापस आ गयी, सॉरी यार तुम लोगो को बताया नहीं"

सौम्या -"क्या....?, तू घर पर है हम सब यहाँ पर तुझे ढूंढ रहे है, तूने हमें बताया क्यू नहीं, हम सब इतनी देर से परेशान हो रहे है, एक बार कॉल तो कर देती अच्छा सुन दीवांक भी यही पर है ...."

आरुषि- "यार मैं बताने वाली........."

(दीवांक, सौम्या के हाथो से फ़ोन ले लेता हैं)

दीवांक "हेलो आरुषि, तुम मुझसे बात क्यू नहीं कर रही हो, मैंने तुम्हे कई बार कॉल किया बट तुम्हारा नंबर बंद आ रहा हैं, तुम्हे पता हैं मैंने तुम्हारे लिए कई सारे लेटर्स भी लिखा है लेकिन तुमने एक का भी जवाब नहीं दिया, मैं काफी देर से परेशान हो रहा हूँ तुम से बात करने के लिए.....,कुछ जवाब दो आरुषि "

(दीवांक की आवाज़ सुन कर आरुषि के आंसू निकलने लगते है, बहुत हिम्मत कर के वो बोलती है) आरुषि -"सौम्या को फ़ोन दो प्लीज....."

दीवांक "नहीं पहले तुम्हें मेरी बातो का जवाब देना होगा"

आरुषि "दीवांक प्लीज........"

दीवांक "आरुषि आई लव यू " देखो अगर तुमने अभी जवाब नहीं दिया तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करूँगा...."

(आरुषि फ़ूट-फ़ूट कर रोने लगती हैं और फ़ोन कट कर देती है)

दीवांक "हैल्लो....हैल्लो आरुषि, हैल्लो .....(दीवांक दुबारा उसे करता हैं लेकिन आरुषि फ़ोन का स्विच ऑफ कर देती हैं, दीवांक सौम्या की तरफ देखते हुए कहता हैं ) फ़ोन काट दिया उसने, उसे क्या हुआ हैं तुम लोग जानती हो पूछोगी ना प्लीज .....(रिक्वेस्ट करते हुए )"उसे क्या हुआ हैं...........सौम्या तुम उससे पूछना उसे हुआ क्या है, उसने ऐसा कभी नहीं किया आज से पहले, तुम उससे उसकेघर तो पूछ कर बताउंगी"

(सौम्या के फ़ोन में अपना नंबर डॉयल करते हुए) दीवांक "ये लो मेरा नंबर तुम मुझे पक्का पूछ कर बताना, मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा "

सौम्या "ओके...... गाइस जल्दी-जल्दी शॉपिंग कर लो आज ही घर पहुंचना है हमें, बाय दीवांक ...."

(चलते हुए ) दीवांक "मैं कल तुम्हारे कॉल का इंतज़ार करूँगा"

(दीवांक वापस अपने घर चला जाता है, कुछ देर बाद आरुषि अपना आंसू पोंछकर अपने फ्रेंड्स के पास जाती है और सौम्या के गले लग कर रोने लगती है )

(चौकते हुए ) सौम्या "आरुषि तू तो घर पर थी ना, यहाँ कैसे आयी और तू रो क्यू रही है?"

(आंसू पोछते हुए) आरुषि "नहीं यार मैं यही थी....., दीवांक के जाने का वेट कर रही थी, चलो कुछ खरीदते है "

सौम्या "यार तू रो क्यूँ रही है, देख जल्दी बता हमें बहुत घबराहट हो रही है"

(थोड़ा मुस्कुराते हुए ) आरुषि "कुछ नहीं यार, मैं दीवांक की वजह से (इशारे करते हुए )उस शॉप के पीछे छुपी थी, अब वो जा चुका है, चलो हम सब शॉपिंग करते है",

सौम्या "आरुषि तेरा दिमाग तो ठीक है ना, बेचारा दीवांक इतना परेशान हो रहा था और तू उससे छुप रही थी, ये सब क्या है आरुषि?"

आरुषि "सौम्या....चलो छोड़ो उन बातो को, मुझे अब उस बारे में बात नहीं करनी गाइस चलो न कुछ खरीदते है ....."

सौम्या "नहीं आरुषि तुझे बताना होगा, देख दीवांक भी बहुत परेशान हो रहा था"

आरुषि "सौम्या प्लीज ज़िद ना कर, देख मैं तुझे सब कुछ बता दूंगी लेकिन बाद में, अभी तुम लोग शॉपिंग कर लो, मेरी वजह से तुम लोगो का टाइम लॉस हो गया हैं, सॉरी यार "

सौम्या "नहीं कोई बात नहीं, तुझे तो पता है ना हमारी आदते, अब बिना सुने हम यहाँ से कही नहीं जायेंगे"

(रोते हुए ) आरुषि "यार तुम लोगो को लग रहा हैं की मैं ये सब जान बूझ कर, कर रही हूँ, नहीं मैं बबिलकुल टूट चुकी हूँ, बहुत मुश्किल से खुद को संभाला है, दीवांक के साथ मैं जान बूझ कर लुक्का-छुप्पी का खेल नहीं खेल रही, बल्कि मैंने किसी से वादा किया है......."

फ्रेंड्स "वादा, किससे ...?"

आरुषि "दीवांक की माँ से (आरुषि उन सब को सारी बाते बताने लगती है )

सौम्या "ओ कमोन आरुषि, तू उसकी माँ की बातो में आकर उसके बेटे को ही सजा दे रही है जिससे तू खुद भी प्यार करती है ,यार कौन सी माँ चाहती है की उसके बच्चों का अफेयर चले, लेकिन फिर भी लोग प्यार करते है ना, यार तू क्यूँ कर रही हैं यह सब ....."

आरुषि - "बात सिर्फ उसकी माँ की नहीं है, बल्कि उसके फ्यूचर की भी है, यार वो मेरी वजह से अपना सब कुछ बर्बाद कर रहा है, उसकी माँ ने बहुत उम्मीद से मुझसे वादा करवाया है और मैं उनकी बातो को नहीं टाल सकती क्यूंकि जितना एक माँ अपने बच्चे से प्यार करती है ना उतना कोई भी नहीं कर सकता, बस कुछ दिनों की बात है फिर दीवांक भी मुझसे नफरत करने लगेगा ...."

सौम्या "देख आरुषि तेरी बात भी ठीक है लेकिन क्या तू खुद भी रह सकती है उसके बिना?"

आरुषि "मेरे लिए उसकी ख़ुशी से बढ़ कर कुछ नहीं है, अगर हमारा प्यार सच्चा है तो हम दुबारा ज़रूर मिलेंगे....."

(हसते हुए )सौम्या "आरुषि तू सच में बहुत महान है, इतनी बड़ी क़ुरबानी...ओ माय गॉड "

(मुस्कुराते हुए) आरुषि "यार सॉरी, तुम लोगो का मेरी वजह से टाइम ख़राब हो गया...,मैंने इसी लिए कहा था मुझे नहीं जाना मार्केट, लेकिन तुम लोग मेरी सुनती कहा हो"

(मज़े लेते हुए) सौम्या "अच्छा हुआ तुझे लेकर आ गए नहीं तो हमें पता कैसे चलता तू इतनी महान है, आरुषि मुझे दीवांक ने अपना नंबर दिया है और उसने बोला है तुझसे पूछने के लिए कि तू उससे बात क्यू नहीं करना चाहती और फिर मुझे उसे कॉल करके बताना होगा अब तू बता मैं उसे क्या बोलूंगी?"

(थोड़ा सोचते हुए) आरुषि "सौम्या तू उसे बोल दियो मुझे अब कभी भी उससे बात नहीं करनी और मुझे उसकी शक़्ल कभी नहीं देखनी, प्लीज ऐसा ही बोलना ....."फ्रेंड्स "आरुषि तू गलत कर रही है यार, कोई और सोलुशन भी तो हो सकता है ना क्या किसी का दिल तोड़ना अच्छी बात है और वो भी ऐसे इंसान की जो सच में इतना प्यार करता हैं ...?"

आरुषि "कौन किस से कितना प्यार करता है ये तो वक़्त ही बता देगा और अगर हमारा प्यार सच्चा होगा तो हम दुबारा मिलेंगे न"

सौम्या "आरुषि, मैं तो ऊपर वाले से यही दुआ करुँगी की तुम दोनों कभी अलग ही न हो, गाइस अब हमें घर चलना चाहिए, हम बहुत लेट हो चुके है, आरुषि तू अपना ख्याल रखना"

आरुषि "तुम लोग जैसे दोस्त हो तो मुझे कुछ हो सकता हैं क्या, हाँ चलो सब अब घर चलते हैं"

(सभी अपने-अपने घर चले जाते है )
 
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