Upcoming psycho Kavita par kam kar rahi hu.Devi ji ko shakshat pranam
Mene aap ki story ke kuchu episode padhe the. Bas us se apni story ke start karne par bahot madas miliDevi ji ko shakshat pranam
Readers – bhai fonts thoda chota rakho please maja nahi aa raha haiNo Fonts chota nahi hoga bro.
Devi ji aap aage bado hum aapke sath haiMene aap ki story ke kuchu episode padhe the. Bas us se apni story ke start karne par bahot madas mili
Horror story ke elava ShairyUpcoming psycho Kavita par kam kar rahi hu.
Awesome updateUPDATE 3
अगले दिन गांव की पंचायत में
ये क्या बात हुई मुखिया जी, किं ठाकुराइन ने हमे हमारा खेत देने से इंकार कर रही है। हम खाएंगे क्या? एक हमारा खेत ही तो था। जिसके सहारे हम सब गांव वाले अपना पेट पालते है। अब अगर ठाकुराइन ने वो भी ले लिया तो , हम क्या करेंगे ?"
गांव में बैठी पंचायत के बीच एक 45 साल का आदमी खड़ा होकर बोल रहा था। पंचायत में भीड़ काफी ज्यादा थी। सब लोग की नज़रे मुखिया जी पर ही अटकी था।
मुनीम – ये मुखिया क्या बोलेगा? मुखिया थोड़ी ना तुम लोग को कर्ज दिया है, चना खिला के!! अरे कर्ज तो तुम लोग ने ठकुराइन से लिया था। तो फैसला भी ठकुराइन ही करेंगी ना। चना खिला के और ठाकुराइन ने फैसला कर लिया है। की अब वो जमीन उनकी हुई, जिनपर वो एक कॉलेज बनवाना चाहती है....समझे तुम लोग....चना खिला के
पर मुनीम जी, ठाकुराइन ने तो हम सब गांव वालों से ऐसा कुछ नही कहा था"
आदमी – तुम लोगो को ये सब बात बताना जरूरी नहीं, समझती ठकुराइन
इस अनजान आवाज़ ने गांव वालों का ध्यान केंद्रित किया, और जैसे ही अपनी अपनी नज़रे घुमा कर देखें, तो पाया की ठाकुर रमन सिंह खड़ा था। ठाकुर को देखते ही सब गांव वाले अपने अपने हाथ जोड़ते हुए गिड़ गिड़ाने लगे..
पर मालिक हम तो, भूखे मार जायेंगे। हमारे बच्चे का क्या होगा? क्या खिलाएंगे हम उन्हे? जरा सोचिए मालिक।??"
तू चिंता मत कर सत्या,, हम किसी के साथ अन्याय नहीं होने देंगे। हमने तुम सब के बारे में पहले से ही सोच रखा था।"
ठाकुर के मु से ये शब्द सुनकर, गांव वालों के चहरे पर एक आशा की किरण उभरने लगीं थी की तभी
रमन – आज से तुम सब लोग, हमारे खेतो, बाग बगीचे और स्कूलों काम करोगे। मैं तुमसे वादा करता हूं,की दो वक्त की रोटी हर दिन तुम सब के थाली में पड़ोसी हुई मिलेगी।"
गांव वालो ये सुन कर सन्न्न रह गए, उन्हे लगा था की , ठाकुर रमन सिंह उन्हे इनकी जमीन लौटने आया है, मगर ये तो कुछ और ही था। ठाकुर की बात सुनकर वहा गुस्से में लोग तिलमिला पड़े l और अपने सर बंधी पगड़ी को अपने गांठने खोलकर एक झटके में नीचे फेंकते हुए बोला...
सत्या --"शाबाश! ठाकुर, दो वक्त के रोटी बदले हमसे गुलामिं करवान चाहते हो, मगर याद रखना ठाकुर, सत्या ना आज तक कभी किसी की गुलामी की हैं.... ना आगे करेगा।"
सत्या की बात सुनकर, ठाकुर रमन सिंह हंसते हुए बोला.
रमन – भाई, मैं तो बस गांव की भलाई के बारे में सोच रहा था, भला हम क्यों गुलाम पालने लगे? जैसी तुम लोगी की मर्जी, अगर तुम लोग को अपनी जमीन चाहिए, तो लाओ ब्याज सहित पैसा, और छुड़वा लो अपनी जमीन लेकिन सिर्फ तीन महीने, सिर्फ तीन महीने के समय देता हूं...उसके बाद जमीन हमारी। चलता हूं मुखिया जी...राम राम"
ये बोलकर ठाकुर रमन, अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से चला जाता हैं....
गांव वाले अभि भी अपना हाथ जोड़े खड़े थे, फर्क सिर्फ इतना था की, अब उन सब की आंखे भी बेबसी और लाचारी के वजह से नम थी.....
गांव के लोग काफ़ी दुखी थे, उन्हे ये अंदाजा भी ना था की ठाकुराइन ऐसा भी कर सकती है!!
इधर हवेली में , संध्या अपने कमरे में गुम सूम सी बैठी थीं, शरीर में जान तो थी, पर देख कर ऐसा लग रहा था मानो कोई निर्जीव सी वस्तु है, आपने बेटे के गम में सदमा खाई हुई संध्या, बेड पर बैठी हुई अपने हाथों में अपने बेटे की तस्वीर लिए उसे एकटक निहार जा रही थी।
संध्या की आंखों से लगातार आंसू छलकते जा रहे थे, वो इस तरह से अपने बेटे की तस्वीर देख रही थीं मानो उसका बेटा उसके सामने ही बैठा हो। संध्या अभय की तस्वीर देखते - देखते अचानक संध्या को कुछ दिन पहले की वो रात याद आ गई जब उसका बेटा अभय बोल रहा था
अभय – मां आज मेरे साथ सोजा तू
संध्या – देख अभय आज मुझे काफी कम है बही खाता जांचना है खेतो का और अब तू बड़ा हो रहा है अकेले सोया कर
अभय – कल कर लेना तू मां आज मेरे साथ सोजा मन है तेरे साथ सोने का
संध्या – जिद मत कर अभय और कोन सा तू मेरी बात मानता है जब देखो बस शैतानी करता रहता है क्या लगती हो मैं तेरी
अभय –(मुस्कुरा के बोलता है)
कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे
क्यों तू बंधे मन से
मन के धागे
बस चले ना क्यों मेरा तेरे आगे
कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे
अभय संध्या के गले लग के
छोर कर ना तू कभी दूर अब जाना तुझको कसम है
साथ रहना जो भी है तू झूठ या सच है
या भरम है
अपना बनाने का जतन
कर ही चुके अब तो
बहियां पकड़ कर आज चल मैं दू बता सबको
कौन मेरा
मेरा क्या तू लागे
क्यों तू बंधे मन से मन के धागे
उस लम्हे को याद करके संध्या अभय की तस्वीर को अपने सीने से लगाकर जोर जोर से रोने लगती है। संध्या की रोने की आवाज उसके कमरे से बाहर तक जा रही थी।
जिसे सुनकर मालती, ललिता भागते हुए उसके कमरे में आ गईं। और बेड पर बैठते हुऐ, संध्या को सम्हालने लगती हैं।
हालत तो मालती और ललिता की भी ठीक नहीं थी, अभय के जाने के बाद सब को ये हवेली सुनी सुनी सी लग रही थी,
मालती ने संध्या के आंसुओ को पोछते हुऐ, समझते हुए बोली.
मालती --"मैं आपकी हालत समझ सकती हूं दीदी, मगर अब जो चला गया वो भला लौट कर कैसे आएगा? ज़िद छोड़ दो दीदी, और चलो कुछ खा लो।
मालती की बात का संध्या पर कुछ असर न हुआ, वो तो बस अभय का तस्वीर सीने से लगाए बस रोए जा रही थीं। मालती से भी बर्दाश्त नहीं हुआ और उसकी आंखो से भी पानी छलक पड़ते हैं। लेकिन फिर भी मालती और ललिता ने संध्या को बहुत समझने की कोशिश की, पर संध्या तो सिर्फ़ सुन रही थीं, और जवाब में उसके पास सिर्फ़ आंसू थे और कुछ नहीं।।
तभी एक हांथ संध्या के कंधे पर पड़ा और साथ ही साथ एक आवाज भी....
अमन – चुप हो जाओ बड़ी मां, तुम ऐसे मत रोया करो, मुझे अच्छा नहीं लगता, क्या मैं तुम्हारा बेटा नहीं हूं, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती??"
आवाज कानों में जाते ही, संध्या अपने भीगी पलकें उठाती हैं, तो पाई सामने अमन खड़ा था जो इस वक्त उसके कंधो पर हांथ रखे उसे दिलासा दे रहा था। अमन को देखते ही संध्या, जोर जोर से रोते हुऐ उसे अपनी बाहों में भर लेती हैं....
संध्या --"अब तो बस तू ही सहारा हैं, वो तो मुझसे नाराज़ हो कर ना जाने कहां चला गया हैं!!?"
अमन --"तो फ़िर चुप हो जाओ, और चलो खान खा लो, नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा, तुम्हे पता हैं मैं भी कल से भूंखा हूं।"
अमन की बात सुनकर , संध्या एक बार फिर अमन को अपने सीने से लगा लेती हैं। उसके बाद ललिता दो थाली मे खाना लेकर आती हैं, संध्या से एक भी निवाला अंदर नहीं जा रहा था , पर अमन का चेहरा देखते हुऐ वो खाना खाने लगती हैं....
Laila oh LailaNice update
Saya 2 khatam hone vali hai. Isi lie advance taiyari. Puri story likhne ke bad hi start karungi. Erotic story hai.Devi ji aap aage bado hum aapke sath hai
Aapki upcoming story ka tahe dil se intjaar hai Devi ji
Jaldi aataa ho aapke thread me bhi
Raj_sharma bhai ne kabhi bataya nahi yaha per Desi item bhi hai
Kon sa juml ker dia aap perमुझको मेरे हाल पर छोड़ कर जाने से पहले आगाह कर दिया होता दिल लगाने से पहले हम एक दिल और भी खुदा से मांग लेते फिर ये दर्द नहीं सहते टूट जाने से पहले।।