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Family Introduction
UPDATE 1 | UPDATE 2 | UPDATE 3 | UPDATE 4 | UPDATE 5 | UPDATE 6 | UPDATE 7 | UPDATE 8 | UPDATE 9 | UPDATE 10 |
UPDATE 11 | UPDATE 12 | UPDATE 13 | UPDATE 14 | UPDATE 15 | UPDATE 16 | UPDATE 20 |
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Mast update guruji thanks
नए साल का पहला जाम आपके नाम
HAPPY NEW YEAR FRIENDS....
UPDATE 53
ललिता – (कमरे में आते हुए) क्या बाते चल रही है दोनो में....
अभय –(ललिता को कमरे में आते देख के) कुछ नहीं चाची मै पूछ रहा था मा से अपने बारे में बताएं कुछ लेकिन देखो बताने से पहले ही जाने क्यों आंसू आ गए इनके आखों में भला ऐसा भी होता है क्या बात बात में आखों में आसू आ जाते है ईनके....
ललिता –(अभय के सिर में हाथ फेर के) दस साल तक तेरे बिना कैसे रही है दीदी या तो दीदी जानती है या सिर्फ हवेली के लोग उसी बात को याद करके आसू तो आएंगे लल्ला....
अभय – अब तो आ गया हूँ ना मै चाची अब क्या डरना मै कौन सा कही जाने वाला हु अब....
ललिता – (मुस्कुरा के) बाते बनाने में तू एक कदम आगे है लल्ला (संध्या से) बता दो दीदी कब तक अपने मन में दबा के रखोगे बात को बता दो आप लल्ला को जानने का हक है पूरा....
इसके बाद संध्या ने अपना बीता कल बताना शुरू किया जैसे मनन ठाकुर से मुलाकात प्रेम होना शादी होना फिर हवेली आना अपनी सास सुनैना ठाकुर से मिलना साथ ही कमल ठाकुर और सुनंदा ठाकुर के बारे में बताना साथ उनके बेटे अर्जुन के लिए बताना और फिर ठाकुर रतन के गुजरने से लेके सुनैना ठाकुर के अचानक गायब हो जाने की बात बताना साथ मनन ठाकुर के गुजरने की बात बता के रोने लगना जिसे देख....
अभय –(संध्या के आसू अपने हाथ से पोछ के) रो मत तू जाने क्यों तुझे रोता देख मेरा दिल दुखने लगता है....
संध्या – (रोते हुए अभय को गले लगा के) मुझसे मार खाते वक्त भी तू कभी कुछ नहीं बोलता था कभी अपनी सफाई नहीं देता था ताकि मेरा दिल न दुखे और मै अभागन जाने क्यों तुझपे हाथ उठा देती थी हर बार....
बोल के संध्या रो रही थी जिसे ललिता चुप कराने लगती है जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) ये तो तेरा हक है तो मैं कैसे तेरा हक छीन लेता भला....
संध्या – (रोते हुए) काश मैने तुझसे पूछा होता तेरे से तो शायद तू हमे छोड़ के कभी नहीं जाता....
अभय – मै हवेली छोड़ के चला गया था लेकिन क्यों क्या सिर्फ तेरी मार के कारण तो नहीं हो सकता है फिर क्यों चला गया था मैं तुझे छोड़ के और कहा....
अभय का सवाल सुन संध्या के मू से शब्द नहीं निकल पा रहे थे जिसे देख ललिता ने संध्या के हाथ पे अपना हाथ रख के बोली....
ललिता – मै बताती हु लल्ला....
संध्या – (रोते हुए ललिता का हाथ दबा के) ललिता....
ललिता – बताने दो दीदी जरूरी है अभय का जानना सच को....
अभय – ऐसी क्या बात है चाची जो मां आपको रोक रही है....
ललिता – लल्ला ये जो कुछ भी हुआ सब मेरी वजह से हुआ था तेरी मां तो सिर्फ मदद कर रही थी हमारी....
अभय –(चौक के) हमारी मतलब....
ललिता – हा लल्ला हमारी मतलब मेरी और रमन की तेरे चाचा हम दोनो का घर बसा रहे इसीलिए दीदी हमारी मदद कर रही थी लेकिन उसके बदले कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था....
अभय – चाची अब पहेली मत बुझाओ आप बात क्या हुई थी बताओ आप....
ललिता – मेरा और रमन का रिश्ता कमजोर होता जा रहा था जिसका पता हवेली में किसी को नहीं था काफी वक्त से ये बंद कमरे में चल रहा था एक दिन मैं और रमन कमरे में बात करते हुए झगड़ने लगे और तभी दीदी कमरे में आ गई जिसे देख....
संध्या – (चौक के) क्या बात है रमन , ललिता तुम दोनो इस तरह झगड़ क्यों रहे हो....
रमन – कुछ नहीं भाभी इसका दिमाग खराब हो गया है जरा जरा सी बात पर झगड़ना करने की आदत हो गई है इसकी....
बोल के रमन कमरे से बाहर चला गया जिसके बाद....
संध्या – (ललिता से) क्या बात है ललिता किस लिए झगड़ रहे थे तुम दोनो हुआ क्या है....
संध्या के पूछने पर ललिता ने काफी टालने की कोशिश की आखिरी में हर कर....
ललिता – इनकी कमजोरी के कारण दीदी काफी दिन से मैं जब भी इनके साथ आगे बढ़ने को कोशिश करती हूँ जाने क्यों....
बोल के चुप हो गई ललिता जिसे देख....
संध्या – बोल न चुप क्यों हो गई तू हुआ क्या बता तो....
ललिता –(रोते हुए) दीदी जाने क्यों बिस्तर में आते ही ये मेरे साथ कुछ नहीं करते मै जब भी पूछती तो बोलते नहीं हो पा रहा है मुझसे....
बोल के ललिता रोने लगी तब संध्या उसके सिर में हाथ फेरने लगी जिसके बाद....
ललिता –(रोते हुए) दीदी अब आप ही बताओ क्या करू मैं क्या अपनी इच्छा और शरीर की प्यास को कैसे रोकूं मै और जाने क्यों इनसे कुछ हो नहीं पा रहा है मैने बोला इलाज करा लो अपना डॉक्टर से तो मुझे साफ मना कर देते है अब क्या करू मैं दीदी....
संध्या – (कुछ सोच के) तू चिंता मत कर मैं कल बात करूंगी रमन से तू अभी आराम कर....
और फिर अगले दिन गांव में खेती का काम रमन देख रहा था तब संध्या खेत की तरफ आ गई रमन को एक तरफ बुला के उससे खेत के काम के बारे में बात करने लगी और तभी बीच में संध्या ने रमन से बात छेड़ दी....
संध्या – (रमन से) क्यों झगड़ा कर रहा है तू ललिता से रमन....
रमन – (गुस्से में) तो आखिर उसने आपको बता दिया सारी बात....
संध्या – (समझाते हुए) देख रमन उसने जो कहा इसमें कोई गलत नहीं है बीवी है तेरी अपने पति से नहीं बोलेगी तो किससे बोलेगी देख रमन अगर कोई दिक्कत है तो उसका इलाज भी होता है तेरे इस तरह झगड़ने से भला क्या हासिल होगा तुझे या ललिता को....
रमन – भाभी बात ऐसी नहीं है....
संध्या – अगर बात ऐसी नहीं है तो क्या बात है....
रमन – भाभी सच तो ये है कि मैं जाने क्यों आपको इस तरह अकेला देख मुझे अच्छा नहीं लगता जब से मनन गया है तब से आपकी हसी जैसे कही खो सी गई है मैं सिर्फ आपको खुश देखना चाहता हु....
संध्या – (हैरान होके) तू कहना क्या चाहता है....
रमन – भाभी मै आपसे प्यार करने लगा हु आपके चेहरे पर पहले जैसी खुशी देखना चाहता हु....
संध्या – तू होश में तो है रमन जनता है तू क्या बोले जा रहा है....
रमन – हा भाभी मै पूरे होश में हूँ जब भी आपको इस तरह देखता हु मेरा दिल बेचैन हो जाता है दिन रात बस आपके बारे में सोचता हूँ....
संध्या – (गुस्से में) देख रमन तूने अभी तो बोल दिया ये बात दोबारा मै नहीं सुनना चाहती ये सब बात....
बोल के संध्या जाने लगी तभी रमन ने संध्या का हाथ पकड़ के....
रमन – (आंख में आसू लिए) भाभी मेरा प्यार झूठा नहीं सच्चे दिल से आपको चाहता हु मै आपको , एक बार मेरी तरफ देखो भाभी और बोल दो क्या मुझमें आपको मनन नहीं दिखता क्या मेरी आंखों में आपको मनन की तरह वो प्यार नजर नहीं आता....
संध्या – (आंख में हल्की नमी के साथ) देख रमन ऐसी बात बोल के मुझे कमजोर मत कर मनन के जाने के बाद बड़ी मुश्किल से संभाला है मैने अभय और अपने आप को (अपने आसू पोछ) मै यहां सिर्फ तेरे और ललिता के बारे में बात करने आई थी और अगर तू सच में मुझे खुश देखना चाहता है तो अच्छा रहेगा तू सिर्फ ललिता पर ध्यान दे मेरी वजह से अपनी और ललिता की जिंदगी बर्बाद मत कर....
बोल के संध्या निकल गई हवेली की तरफ हवेली में आते ही....
ललिता – (संध्या से) दीदी आपकी बात हुई रमन से....
संध्या – हा बात हुई मेरी....
ललिता – इलाज कराने को मान गए वो....
संध्या – ललिता ऐसी कोई बात नहीं है....
फिर रमन के साथ हुई सारी बात बता के....
संध्या – फिलहाल मैने उसे समझा दिया है अब तू भी इस बात को आगे मत बढ़ाना मै नहीं चाहती मेरे वजह से तुम दोनो की जिंदगी में कोई दिक्कत आए....
ललिता – (अभय से) उसके बाद मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा लेकिन शायद ऐसा सोचना वहम था मेरा क्योंकि रमन को समझाने पर भी उसमें कोई भी फर्क नहीं आया बल्कि रमन उसके बाद से किसी न किसी बहाने से दीदी के साथ कभी खेती, कभी मजदूरों की मजदूरी को लेके चर्चा करता था जिसमें अच्छा खासा वक्त रमन बिताने लगा था दीदी के साथ कई बार दीदी ने उसे बीच में इस बारे में बात छेड़ी लेकिन रमन काम की बात आगे कर के टाल देता था और फिर इस बीच रमन ने एक खेल खेलना शुरू किया....
अभय – कौन सा खेल और किसके साथ चाची....
ललिता – (अभय से) तेरे साथ खेल खेलना शुरू किया था रमन ने....
अभय – मेरे साथ मै कुछ समझा नहीं....
ललिता – रमन हर बार कुछ न कुछ कांड करता जिस वजह से तुझे मार खाने को मिलती दीदी (संध्या) से जब इससे भी उसका मन नहीं भरा तो अमन को भी इसमें शामिल कर लिया जिस वजह से हर रोज किसी न किसी शिकायत से दीदी (संध्या) को गुस्सा आजाता जिस वजह से दीदी तुझे डांटती, मारती ये सब करके रमन तेरे अन्दर नफरत भरने लगा था दीदी (संध्या) के लिए जिस वजह से तू नफरत करने लगे दीदी से और फिर आई वो मनहूस रात जिसके बाद सब कुछ बदल गया....
अभय – (चौक के) मतलब क्या हुआ था उस रात को....
ललिता – (बात को याद करते हुए) मुझे ज्यादा कुछ खास याद नहीं लेकिन इतना याद है उस रात हम सब खाना साथ में खा रहे थे तब दीदी ने रमन और मुझे खाने के बाद अपने कमरे में आने को बोला था ताकि रमन से खेती के खाता बही बनाने के बारे में बात करने के बाद हम दोनों की समस्या दूर हुई या नहीं उस बारे में बात करे , खाने के बाद आखिर में मैने दूध पीने के बाद अपने कमरे में आई कपड़े बदलने जिसके बाद जाने क्यों मेरी आंखे भारी होने लगी और अपने बेड में लेट गई फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता जब मैं जागी तब मै कमरे में थी उठ के कमरे का दरवाजा खोल के देखा तब रमन दीदी (संध्या) के कमरे से बाहर निकल रहा था तब मेरे पास आते ही मुस्कुरा के दरवाजा बंद कर मेरा हाथ पकड़ के बिस्तर में ले आया इस बात से मै बहुत खुश हो गई बेड में आते ही....
रमन – (ललिता की सारी खोलते हुए) आज मेरी मुराद पूरी हुई....
ललिता – अच्छा ऐसी क्या बात है मुझे भी बताओ....
रमन – (मुस्कुरा के) अभी अभी मै भोग लगा के आ रहा हूँ संध्या का सच में क्या मस्त मॉल है मजा आ गया....
ललिता – (आंख बड़ी करते हुए) ये क्या बकवास कर रहे हो तुम....
रमन – बकवास नहीं सच बोल रहा हूँ मैं बहुत वक्त से तमन्ना थी जो आज पूरी हो गई मेरी और जल्द ही ये तमन्ना हर रोज पूरी करूंगा मैं....
ललिता – तुम झूठ बोल रहे हो दीदी एसा हरगिज नहीं कर सकती है कभी भी....
रमन – (मुस्कुराते हुए) तेरे मानने या ना मानने से सच बदल नहीं जाएगा जल्द ही तुझे ये नजारा देखने को भी मिलेगा जब मैं संध्या को तेरे सामने इसी बिस्तर में मसलू गा हर रोज....
ललिता – (गुस्से में) तुम सच में गिरे हुए इंसान हो रमन अपनी भाभी के साथ छी शर्म नहीं आई तुम्हे ये सब करते क्या सोच रही होगी तुम्हारे बारे में और तुम....
रमन –(मुस्कुरा के) इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है तुम्हे , जानती है मुझे मनन समझ के मेरी बाहों में समाई हुई थी उसे लग रहा था कि मैं मनन हूँ सब कुछ भूल के बस मुझमें समा गई थी संध्या (बोल के हस्ते हुए ललिता से) वैसे भी भूलों मत वो अकेली है और कितने दिन तक अपने शरीर की प्यास को रोक के रखेगी वो है तो एक मामूली औरत ही ना आखिर , बस तू देखती जा कुछ ही दिनों के बाद संध्या और मैं एक कमरे में सोया करेंगे और उसके कुछ महीनों के बाद मेरे नाम से पेट फूला के घूमेगी....
ललिता –(गुस्से में रमन को बेड से धक्का देते हुए) हरामजादे अपनी हवस को प्यार का नाम दे रहा था तू दीदी (संध्या) की बात सुन एक पल मुझे लगा शायद दीदी (संध्या) को इस तरह देख मेरी तरह तुझे भी बुरा लगता होगा शायद इसीलिए तू अनजाने में प्यार कर बैठा दीदी (संध्या) से लेकिन नहीं तू सिर्फ हवस का पुजारी है प्यार का मतलब तक पता नहीं तुझे इससे पहले तू फिर कोई चाल चले दीदी (संध्या) के साथ मैं तेरे इस सपने को चकना चूर कर दूंगी तेरी सारी सच्चाई बता दूंगी दीदी को....
रमन – (गुस्से में ललिता की गर्दन पकड़ के) अगर गलती से भी तू मेरे बीच में आई तो याद रखना संध्या को मैं किसी ना किसी तरह कभी ना कभी पा लूंगा लेकिन तुझसे जिंदगी भर के लिए रिश्ता तोड़ दूंगा मै और बच्चों को दूर कर दूंगा वो अलग इसीलिए गलती से भी मेरे बीच में आने की सोचना भी मत समझी....
बोल के रमन , ललिता की गर्दन छोड़ के कमरे से निकल गया रमन के जाते ही ललिता खांसते हुए लंबी सास लेके रोने लगी थी....
ललिता – (रोते हुए अभय से) उस दिन सिर्फ अपने बच्चों के खातिर मै चुप रही काश एक बार हिम्मत जुटा कर मैने दीदी को सारा सच बता दिया होता तो शायद इतने साल तक रमन ने जो किया गांव वालों के साथ वो कभी ना होता....
अभय –(ललिता की सारी बात सुनने के बाद उसके आंसू पोछते हुए) मत रो चाची जो हो गया सो हो गया उन बातों के लिए रोने से क्या फायदा अब....
अभय की बात सुन हल्का मुस्कुरा के ललिता ने प्यार से अभय के गाल पर हाथ फेरा जिसके बाद....
अभय – (संध्या से) उस रात तूने रमन को खेती के खाता बही की बात के लिए बुलाया था कमरे में तब क्या हुआ था ऐसा जिस वजह से तू रमन को बाबा (मनन) समझ बैठी....
संध्या – उस रात खाने के वक्त मेरा मन नहीं कर रहा था खाने का बस आधी रोटी खाने के बाद मै तेरे कमरे में आई थी देखने लेकिन तू सोया हुआ था तुझे इस तरह भूखा सोता देख उस रात मुझे बहुत दुख हो रहा था क्योंकि मैने दिन में तुझे बहुत मार मारी थी जिस वजह से तू खाना खाने नहीं आया था अगले दिन तेरा जनम दिन था तब मैने सोच लिया था चाहे कुछ भी हो जाएं अब कभी तेरे पर हाथ नहीं उठाऊंगी सुबह हवेली को दुल्हन की तरह तैयार करवा के धूम धाम से तेरा जनम दिन मनाऊंगी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था....
अभय – (संध्या के कंधे पर हाथ रख के) क्या हुआ था उस रात को ऐसा....
संध्या – (दूसरी तरफ अपना मू करके) अपने कमरे में आने के बाद दूध पीते हुए खाता बही देख रही थी थोड़ी देर के बाद रमन अकेले आया कमरे में तब हम खाता बही खोल के उसीकी बात करने लगे तब मैं रमन से उसके और ललिता के बारे में बात छेड़ दी जिसके बाद....
रमन – (मेरा हाथ पकड़ के) भाभी उस दिन के बाद मैने बहुत कोशिश की लेकिन मैं नहीं भूल पा रहा आपको , भाभी मै सच्चे दिल से प्यार करता हु आपको बिल्कुल वैसे ही जैसे मनन करता था मैं आपके बिना नहीं रह सकता हूँ भाभी....
संध्या – देखो रमन मैने पहले भी कहा और फिर से....
रमन – (बात को काट के बीच में) एक बार मेरी आखों में देख के बोल दो भाभी क्या इसमें आपको मनन की तरह प्यार नजर नहीं आता , क्या मुझमें आपको मनन नजर नहीं आता....
रमन की बात सुन जाने ऐसा क्या हो गया मुझे मै रमन को देखने लगी गोर से ऐसा लगा मेरे सामने मनन मेरा हाथ पकड़े बैठे है मुस्कुराते हुए और मै सब कुछ भूल के उसके गले लग गई मनन बोलते बोलते जाने कब हम बेड में आ गए इतना आगे बढ़ गए हम जिसका कोई होश नहीं था मुझे लेकिन जब होश आया मुझे तब रमन को अपने साथ पाया तब रमन भाभी बोल के मेरे ऊपर....
बोल के संध्या रोने लगी जिसे देख अभय ने कंधे पे हाथ रख अपनी तरफ संध्या को घुमाया जिसके बाद संध्या रोते हुए बिना अभय को देखे उसके गले लग के रो रही थी जिसके बाद अभय प्यार से संध्या के सिर पर हाथ फेरता रहा थोड़ी देर बाद संध्या का रोना कम हुआ तब गले से अलग कर अभय ने पानी पिलाया संध्या को जिसके बाद....
अभय – (संध्या के आसू पोछते हुए) जब ये सब हुआ तब तूने क्या किया....
संध्या – (सिसकते हुए) जब मुझे होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी अपने आप पर काबू रख मैने रमन को कमरे से जाने को बोल दिया मै नहीं चाहती थी किसी को कुछ पता चले वर्ना क्या जवाब देती हवेली में सबको की मै अपने कमरे में देवर के साथ अकेले क्या कर रही थी इतनी देर रात को , बात आगे ना बड़े इसीलिए मैने चुप रहना बेहतर समझा....
बोल के संध्या चुप हो गई....
अभय – क्या हुआ चुप क्यों हो गई तू फिर क्या हुआ मेरे जनम दिन पर....
संध्या – (रोते हुए) अगले दिन निकलते ही हमारी सारी खुशियों को मेरी ही नजर लग गई....
अभय – क्या , मै कुछ समझा नहीं हुआ क्या ऐसा....
ललिता –(रोती हुई संध्या के कंधे पर हाथ रख अभय से) जिस रात ये सब हुआ तू उसी रात हवेली छोड़ के चल गया था....
अभय – लेकिन क्यों....
संध्या – (रोते हुए अभय के गले लग के) क्योंकि तूने उस रात मुझे रमन के साथ देख लिया था बेड पर....
अपनी बात बोल के संध्या सीने पे अपना सिर रख अभय के रोए जा रही थी जिसे अभय उसके सिर पर हाथ फेर चुप कराने में लगा था जिसके बाद....
संध्या – (रोते हुए अभय से) मैने जानबूझ के ये सब नहीं किया था तेरी कसम मुझे नहीं पता ये सब कैसे हो गया....
ललिता – दीदी सच बोल रही है लल्ला ये सब रमन का किया धरा है तेरे बाबा के गुजरने के बाद से ही रमन की गंदी नजर दीदी (संध्या) पर पड़ी हुई थी झूठे प्यार की बाते कर दीदी (संध्या) को पाने में लगा हुआ था....
अभय – (संध्या के आसू पोछ के) मत रो तू जो हो गया उसपर रोके क्या फायदा अच्छा ये बता मै हवेली छोड़ के कहा चला गया था....
फिर संध्या ने अभय को शालिनी और चांदनी के बारे में बात बताई कैसे उनसे मिला उनके साथ रहना शालिनी को मां मानना और चांदनी को दीदी कैसे स्कूल में शनाया से मिलना उसके बाद कैसे अभय गांव वापस आया फिर क्या हुआ ये सारी बात बताने लगी संध्या जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) तभी जाने क्यों शालिनी जी को मां बोलने का मन होता है मुझे....
अभय के मू से ये बात सुन संध्या का चेहरा एक पल के लिए मुरझा गया जिसके बाद....
ललिता – (अभय और संध्या से) अच्छा मै चलती हूँ रात काफी हो गई है सो जाओ आप लोग सुबह मिलते है....
बोल के ललिता जाने लगी कमरे के दरवाजे तक ही आई थी कि तभी....
अभय – चाची....
ललिता – (पलट के) क्या लल्ला....
अभय – जिस रात ये सब हुआ उस रात आपकी आंखे अचानक से भारी कैसे हो गई इस बारे में आपने कभी सोचा (संध्या से) उसी रात तेरे साथ जो हुआ कैसे हुआ तुझे भी नहीं पता है क्या इस बारे में तूने कभी पता लगाया....
ललिता – तू क्या बोलना चाहता है लल्ला....
अभय – (ललिता और संध्या से) खाना खाने के बाद आप दोनो को दूध किसने दिया था....
संध्या और ललिता एक साथ – मालती ने....
अभय – तो अपने कभी चाची से जानने की कोशिश नहीं की इस बारे में....
अभय की बात सुन संध्या और ललिता जैसे जम से गए दोनो एक दूसरे को देख के दिल दिमाग में अपने आप से एक ही सवाल कर रहे थे क्या उस रात मालती ने दूध में कुछ मिला के उनको दिया था लेकिन क्यों और किस लिए दोनो को इस तरह खामोश देख....
अभय – (संध्या और ललिता से) इस सवाल का जवाब तो सिर्फ मालती चाची दे सकती है....
ललिता – (गुस्से में) अभी जाके मैं पूछती हू मालती से क्यों किया उसने ऐसा हमारे साथ....
अभय – (ललिता का हाथ पकड़ के) और आपको लगता है मालती चाची इसका जवाब तुरंत दे देगी आपको कभी नहीं चाची अगर सच में उन्होंने ये किया है तो किसी ना किसी बहाने बात को ताल देगी क्योंकि कई साल बीत चुके है इस बात को....
संध्या – तू कहना क्या चाहता है....
अभय – मालती चाची से बात जरूर होगी लेकिन अभी नहीं जब हवेली में सिर्फ हम लोग हो और कोई नहीं....
ललिता – ठीक है लल्ला (मुस्कुरा के) चल काफी रात हो चुकी है आराम से सो जा कल सुबह मिलते है....
बोल के ललिता कमरे से चली गई उसके जाते ही अभय ने दरवाजा बंद कर संध्या के पास आके बेड में लेट गया....
अभय – (संध्या को बेड में लेटाते हुए) अब ज्यादा मत सोच तू इस बारे आर कर....
संध्या – (अभय को देखते हुए) तू नाराज तो नहीं है ना फिर से....
अभय – (मुस्कुरा के संध्या के गाल पर हाथ फेरते हुए) मै क्यों नाराज होने लगा तेरे से और वैसे भी इस खूबसूरत चेहरे को देख कोई कैसे नाराज हो सकता है भला....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू बाते बहुत बना लेता है
अभय – (मुस्कुरा के) अब तो साथ हूँ तेरे फिर इन आखों में ये नमी क्यों....
संध्या – डर लगता है कही फिर से दूर हो जाएं मुझसे....
अभय – (मुस्कुरा के)
हसोंगी तो जीत जाओगी
रोगी तो दिल दुखाओगी
चाहे पास रहूं ना रहूं
हमेशा अपने साथ पाओगी....
संध्या – (मुस्कुरा के) ये शायरी कहा से सिखा तूने....
अभय – (मुस्कुरा के) सीखी नहीं पढ़ी थी मेरे कमरे में एक डायरी मिली थी मुझे उसमें लिखी थी....
संध्या – डायरी कौन से डायरी....
अभय – पता नहीं उसमें नाम लिखा था राज का खजाना....
संध्या – (मुस्कुरा के) हा तेरा ही दोस्त राज की डायरी है वो उसने तुझे दी थी बचपन से वही तो तेरे पक्के दोस्त रहे है राज , राजू और लल्ला....
अभय – (मुस्कुरा के) तो अब से तू भी बन जा दोस्त मेरी....
संध्या – मै दोस्त बन जाऊ लेकिन मैं....
अभय – (बीच में बात काट के) बस अब ज्यादा मत सोच इस बारे में दोस्त बन जा मै चाहता हूँ तेरा दोस्त बन के तुझे हमेशा खुश रखूं ताकि बात बात पर तेरी आंखों में नमी ना आए....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू साथ है तो इन आखों में कभी नमी नहीं आएगी....
अभय – और दोस्त बन जाएगी तो खुशी कभी जाएगी नहीं तेरी इन आखों से....
इस बात से दोनो मुस्कुरा के गले लग के सो गए दोनो....
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जारी रहेगा
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So Sorry Friends Meri Marriage ke karan aapko itna wait karna pada update ke leye lekin kya karta aap samj sakte ho Marriage se pehle or uske bad time kitna milta hai aap samj sakte ho
Well ye malti ka kya chakkar hai dekhte hain Malti kya jawab deti hai???
नए साल का पहला जाम आपके नाम
HAPPY NEW YEAR FRIENDS....
UPDATE 53
ललिता – (कमरे में आते हुए) क्या बाते चल रही है दोनो में....
अभय –(ललिता को कमरे में आते देख के) कुछ नहीं चाची मै पूछ रहा था मा से अपने बारे में बताएं कुछ लेकिन देखो बताने से पहले ही जाने क्यों आंसू आ गए इनके आखों में भला ऐसा भी होता है क्या बात बात में आखों में आसू आ जाते है ईनके....
ललिता –(अभय के सिर में हाथ फेर के) दस साल तक तेरे बिना कैसे रही है दीदी या तो दीदी जानती है या सिर्फ हवेली के लोग उसी बात को याद करके आसू तो आएंगे लल्ला....
अभय – अब तो आ गया हूँ ना मै चाची अब क्या डरना मै कौन सा कही जाने वाला हु अब....
ललिता – (मुस्कुरा के) बाते बनाने में तू एक कदम आगे है लल्ला (संध्या से) बता दो दीदी कब तक अपने मन में दबा के रखोगे बात को बता दो आप लल्ला को जानने का हक है पूरा....
इसके बाद संध्या ने अपना बीता कल बताना शुरू किया जैसे मनन ठाकुर से मुलाकात प्रेम होना शादी होना फिर हवेली आना अपनी सास सुनैना ठाकुर से मिलना साथ ही कमल ठाकुर और सुनंदा ठाकुर के बारे में बताना साथ उनके बेटे अर्जुन के लिए बताना और फिर ठाकुर रतन के गुजरने से लेके सुनैना ठाकुर के अचानक गायब हो जाने की बात बताना साथ मनन ठाकुर के गुजरने की बात बता के रोने लगना जिसे देख....
अभय –(संध्या के आसू अपने हाथ से पोछ के) रो मत तू जाने क्यों तुझे रोता देख मेरा दिल दुखने लगता है....
संध्या – (रोते हुए अभय को गले लगा के) मुझसे मार खाते वक्त भी तू कभी कुछ नहीं बोलता था कभी अपनी सफाई नहीं देता था ताकि मेरा दिल न दुखे और मै अभागन जाने क्यों तुझपे हाथ उठा देती थी हर बार....
बोल के संध्या रो रही थी जिसे ललिता चुप कराने लगती है जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) ये तो तेरा हक है तो मैं कैसे तेरा हक छीन लेता भला....
संध्या – (रोते हुए) काश मैने तुझसे पूछा होता तेरे से तो शायद तू हमे छोड़ के कभी नहीं जाता....
अभय – मै हवेली छोड़ के चला गया था लेकिन क्यों क्या सिर्फ तेरी मार के कारण तो नहीं हो सकता है फिर क्यों चला गया था मैं तुझे छोड़ के और कहा....
अभय का सवाल सुन संध्या के मू से शब्द नहीं निकल पा रहे थे जिसे देख ललिता ने संध्या के हाथ पे अपना हाथ रख के बोली....
ललिता – मै बताती हु लल्ला....
संध्या – (रोते हुए ललिता का हाथ दबा के) ललिता....
ललिता – बताने दो दीदी जरूरी है अभय का जानना सच को....
अभय – ऐसी क्या बात है चाची जो मां आपको रोक रही है....
ललिता – लल्ला ये जो कुछ भी हुआ सब मेरी वजह से हुआ था तेरी मां तो सिर्फ मदद कर रही थी हमारी....
अभय –(चौक के) हमारी मतलब....
ललिता – हा लल्ला हमारी मतलब मेरी और रमन की तेरे चाचा हम दोनो का घर बसा रहे इसीलिए दीदी हमारी मदद कर रही थी लेकिन उसके बदले कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था....
अभय – चाची अब पहेली मत बुझाओ आप बात क्या हुई थी बताओ आप....
ललिता – मेरा और रमन का रिश्ता कमजोर होता जा रहा था जिसका पता हवेली में किसी को नहीं था काफी वक्त से ये बंद कमरे में चल रहा था एक दिन मैं और रमन कमरे में बात करते हुए झगड़ने लगे और तभी दीदी कमरे में आ गई जिसे देख....
संध्या – (चौक के) क्या बात है रमन , ललिता तुम दोनो इस तरह झगड़ क्यों रहे हो....
रमन – कुछ नहीं भाभी इसका दिमाग खराब हो गया है जरा जरा सी बात पर झगड़ना करने की आदत हो गई है इसकी....
बोल के रमन कमरे से बाहर चला गया जिसके बाद....
संध्या – (ललिता से) क्या बात है ललिता किस लिए झगड़ रहे थे तुम दोनो हुआ क्या है....
संध्या के पूछने पर ललिता ने काफी टालने की कोशिश की आखिरी में हर कर....
ललिता – इनकी कमजोरी के कारण दीदी काफी दिन से मैं जब भी इनके साथ आगे बढ़ने को कोशिश करती हूँ जाने क्यों....
बोल के चुप हो गई ललिता जिसे देख....
संध्या – बोल न चुप क्यों हो गई तू हुआ क्या बता तो....
ललिता –(रोते हुए) दीदी जाने क्यों बिस्तर में आते ही ये मेरे साथ कुछ नहीं करते मै जब भी पूछती तो बोलते नहीं हो पा रहा है मुझसे....
बोल के ललिता रोने लगी तब संध्या उसके सिर में हाथ फेरने लगी जिसके बाद....
ललिता –(रोते हुए) दीदी अब आप ही बताओ क्या करू मैं क्या अपनी इच्छा और शरीर की प्यास को कैसे रोकूं मै और जाने क्यों इनसे कुछ हो नहीं पा रहा है मैने बोला इलाज करा लो अपना डॉक्टर से तो मुझे साफ मना कर देते है अब क्या करू मैं दीदी....
संध्या – (कुछ सोच के) तू चिंता मत कर मैं कल बात करूंगी रमन से तू अभी आराम कर....
और फिर अगले दिन गांव में खेती का काम रमन देख रहा था तब संध्या खेत की तरफ आ गई रमन को एक तरफ बुला के उससे खेत के काम के बारे में बात करने लगी और तभी बीच में संध्या ने रमन से बात छेड़ दी....
संध्या – (रमन से) क्यों झगड़ा कर रहा है तू ललिता से रमन....
रमन – (गुस्से में) तो आखिर उसने आपको बता दिया सारी बात....
संध्या – (समझाते हुए) देख रमन उसने जो कहा इसमें कोई गलत नहीं है बीवी है तेरी अपने पति से नहीं बोलेगी तो किससे बोलेगी देख रमन अगर कोई दिक्कत है तो उसका इलाज भी होता है तेरे इस तरह झगड़ने से भला क्या हासिल होगा तुझे या ललिता को....
रमन – भाभी बात ऐसी नहीं है....
संध्या – अगर बात ऐसी नहीं है तो क्या बात है....
रमन – भाभी सच तो ये है कि मैं जाने क्यों आपको इस तरह अकेला देख मुझे अच्छा नहीं लगता जब से मनन गया है तब से आपकी हसी जैसे कही खो सी गई है मैं सिर्फ आपको खुश देखना चाहता हु....
संध्या – (हैरान होके) तू कहना क्या चाहता है....
रमन – भाभी मै आपसे प्यार करने लगा हु आपके चेहरे पर पहले जैसी खुशी देखना चाहता हु....
संध्या – तू होश में तो है रमन जनता है तू क्या बोले जा रहा है....
रमन – हा भाभी मै पूरे होश में हूँ जब भी आपको इस तरह देखता हु मेरा दिल बेचैन हो जाता है दिन रात बस आपके बारे में सोचता हूँ....
संध्या – (गुस्से में) देख रमन तूने अभी तो बोल दिया ये बात दोबारा मै नहीं सुनना चाहती ये सब बात....
बोल के संध्या जाने लगी तभी रमन ने संध्या का हाथ पकड़ के....
रमन – (आंख में आसू लिए) भाभी मेरा प्यार झूठा नहीं सच्चे दिल से आपको चाहता हु मै आपको , एक बार मेरी तरफ देखो भाभी और बोल दो क्या मुझमें आपको मनन नहीं दिखता क्या मेरी आंखों में आपको मनन की तरह वो प्यार नजर नहीं आता....
संध्या – (आंख में हल्की नमी के साथ) देख रमन ऐसी बात बोल के मुझे कमजोर मत कर मनन के जाने के बाद बड़ी मुश्किल से संभाला है मैने अभय और अपने आप को (अपने आसू पोछ) मै यहां सिर्फ तेरे और ललिता के बारे में बात करने आई थी और अगर तू सच में मुझे खुश देखना चाहता है तो अच्छा रहेगा तू सिर्फ ललिता पर ध्यान दे मेरी वजह से अपनी और ललिता की जिंदगी बर्बाद मत कर....
बोल के संध्या निकल गई हवेली की तरफ हवेली में आते ही....
ललिता – (संध्या से) दीदी आपकी बात हुई रमन से....
संध्या – हा बात हुई मेरी....
ललिता – इलाज कराने को मान गए वो....
संध्या – ललिता ऐसी कोई बात नहीं है....
फिर रमन के साथ हुई सारी बात बता के....
संध्या – फिलहाल मैने उसे समझा दिया है अब तू भी इस बात को आगे मत बढ़ाना मै नहीं चाहती मेरे वजह से तुम दोनो की जिंदगी में कोई दिक्कत आए....
ललिता – (अभय से) उसके बाद मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा लेकिन शायद ऐसा सोचना वहम था मेरा क्योंकि रमन को समझाने पर भी उसमें कोई भी फर्क नहीं आया बल्कि रमन उसके बाद से किसी न किसी बहाने से दीदी के साथ कभी खेती, कभी मजदूरों की मजदूरी को लेके चर्चा करता था जिसमें अच्छा खासा वक्त रमन बिताने लगा था दीदी के साथ कई बार दीदी ने उसे बीच में इस बारे में बात छेड़ी लेकिन रमन काम की बात आगे कर के टाल देता था और फिर इस बीच रमन ने एक खेल खेलना शुरू किया....
अभय – कौन सा खेल और किसके साथ चाची....
ललिता – (अभय से) तेरे साथ खेल खेलना शुरू किया था रमन ने....
अभय – मेरे साथ मै कुछ समझा नहीं....
ललिता – रमन हर बार कुछ न कुछ कांड करता जिस वजह से तुझे मार खाने को मिलती दीदी (संध्या) से जब इससे भी उसका मन नहीं भरा तो अमन को भी इसमें शामिल कर लिया जिस वजह से हर रोज किसी न किसी शिकायत से दीदी (संध्या) को गुस्सा आजाता जिस वजह से दीदी तुझे डांटती, मारती ये सब करके रमन तेरे अन्दर नफरत भरने लगा था दीदी (संध्या) के लिए जिस वजह से तू नफरत करने लगे दीदी से और फिर आई वो मनहूस रात जिसके बाद सब कुछ बदल गया....
अभय – (चौक के) मतलब क्या हुआ था उस रात को....
ललिता – (बात को याद करते हुए) मुझे ज्यादा कुछ खास याद नहीं लेकिन इतना याद है उस रात हम सब खाना साथ में खा रहे थे तब दीदी ने रमन और मुझे खाने के बाद अपने कमरे में आने को बोला था ताकि रमन से खेती के खाता बही बनाने के बारे में बात करने के बाद हम दोनों की समस्या दूर हुई या नहीं उस बारे में बात करे , खाने के बाद आखिर में मैने दूध पीने के बाद अपने कमरे में आई कपड़े बदलने जिसके बाद जाने क्यों मेरी आंखे भारी होने लगी और अपने बेड में लेट गई फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता जब मैं जागी तब मै कमरे में थी उठ के कमरे का दरवाजा खोल के देखा तब रमन दीदी (संध्या) के कमरे से बाहर निकल रहा था तब मेरे पास आते ही मुस्कुरा के दरवाजा बंद कर मेरा हाथ पकड़ के बिस्तर में ले आया इस बात से मै बहुत खुश हो गई बेड में आते ही....
रमन – (ललिता की सारी खोलते हुए) आज मेरी मुराद पूरी हुई....
ललिता – अच्छा ऐसी क्या बात है मुझे भी बताओ....
रमन – (मुस्कुरा के) अभी अभी मै भोग लगा के आ रहा हूँ संध्या का सच में क्या मस्त मॉल है मजा आ गया....
ललिता – (आंख बड़ी करते हुए) ये क्या बकवास कर रहे हो तुम....
रमन – बकवास नहीं सच बोल रहा हूँ मैं बहुत वक्त से तमन्ना थी जो आज पूरी हो गई मेरी और जल्द ही ये तमन्ना हर रोज पूरी करूंगा मैं....
ललिता – तुम झूठ बोल रहे हो दीदी एसा हरगिज नहीं कर सकती है कभी भी....
रमन – (मुस्कुराते हुए) तेरे मानने या ना मानने से सच बदल नहीं जाएगा जल्द ही तुझे ये नजारा देखने को भी मिलेगा जब मैं संध्या को तेरे सामने इसी बिस्तर में मसलू गा हर रोज....
ललिता – (गुस्से में) तुम सच में गिरे हुए इंसान हो रमन अपनी भाभी के साथ छी शर्म नहीं आई तुम्हे ये सब करते क्या सोच रही होगी तुम्हारे बारे में और तुम....
रमन –(मुस्कुरा के) इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है तुम्हे , जानती है मुझे मनन समझ के मेरी बाहों में समाई हुई थी उसे लग रहा था कि मैं मनन हूँ सब कुछ भूल के बस मुझमें समा गई थी संध्या (बोल के हस्ते हुए ललिता से) वैसे भी भूलों मत वो अकेली है और कितने दिन तक अपने शरीर की प्यास को रोक के रखेगी वो है तो एक मामूली औरत ही ना आखिर , बस तू देखती जा कुछ ही दिनों के बाद संध्या और मैं एक कमरे में सोया करेंगे और उसके कुछ महीनों के बाद मेरे नाम से पेट फूला के घूमेगी....
ललिता –(गुस्से में रमन को बेड से धक्का देते हुए) हरामजादे अपनी हवस को प्यार का नाम दे रहा था तू दीदी (संध्या) की बात सुन एक पल मुझे लगा शायद दीदी (संध्या) को इस तरह देख मेरी तरह तुझे भी बुरा लगता होगा शायद इसीलिए तू अनजाने में प्यार कर बैठा दीदी (संध्या) से लेकिन नहीं तू सिर्फ हवस का पुजारी है प्यार का मतलब तक पता नहीं तुझे इससे पहले तू फिर कोई चाल चले दीदी (संध्या) के साथ मैं तेरे इस सपने को चकना चूर कर दूंगी तेरी सारी सच्चाई बता दूंगी दीदी को....
रमन – (गुस्से में ललिता की गर्दन पकड़ के) अगर गलती से भी तू मेरे बीच में आई तो याद रखना संध्या को मैं किसी ना किसी तरह कभी ना कभी पा लूंगा लेकिन तुझसे जिंदगी भर के लिए रिश्ता तोड़ दूंगा मै और बच्चों को दूर कर दूंगा वो अलग इसीलिए गलती से भी मेरे बीच में आने की सोचना भी मत समझी....
बोल के रमन , ललिता की गर्दन छोड़ के कमरे से निकल गया रमन के जाते ही ललिता खांसते हुए लंबी सास लेके रोने लगी थी....
ललिता – (रोते हुए अभय से) उस दिन सिर्फ अपने बच्चों के खातिर मै चुप रही काश एक बार हिम्मत जुटा कर मैने दीदी को सारा सच बता दिया होता तो शायद इतने साल तक रमन ने जो किया गांव वालों के साथ वो कभी ना होता....
अभय –(ललिता की सारी बात सुनने के बाद उसके आंसू पोछते हुए) मत रो चाची जो हो गया सो हो गया उन बातों के लिए रोने से क्या फायदा अब....
अभय की बात सुन हल्का मुस्कुरा के ललिता ने प्यार से अभय के गाल पर हाथ फेरा जिसके बाद....
अभय – (संध्या से) उस रात तूने रमन को खेती के खाता बही की बात के लिए बुलाया था कमरे में तब क्या हुआ था ऐसा जिस वजह से तू रमन को बाबा (मनन) समझ बैठी....
संध्या – उस रात खाने के वक्त मेरा मन नहीं कर रहा था खाने का बस आधी रोटी खाने के बाद मै तेरे कमरे में आई थी देखने लेकिन तू सोया हुआ था तुझे इस तरह भूखा सोता देख उस रात मुझे बहुत दुख हो रहा था क्योंकि मैने दिन में तुझे बहुत मार मारी थी जिस वजह से तू खाना खाने नहीं आया था अगले दिन तेरा जनम दिन था तब मैने सोच लिया था चाहे कुछ भी हो जाएं अब कभी तेरे पर हाथ नहीं उठाऊंगी सुबह हवेली को दुल्हन की तरह तैयार करवा के धूम धाम से तेरा जनम दिन मनाऊंगी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था....
अभय – (संध्या के कंधे पर हाथ रख के) क्या हुआ था उस रात को ऐसा....
संध्या – (दूसरी तरफ अपना मू करके) अपने कमरे में आने के बाद दूध पीते हुए खाता बही देख रही थी थोड़ी देर के बाद रमन अकेले आया कमरे में तब हम खाता बही खोल के उसीकी बात करने लगे तब मैं रमन से उसके और ललिता के बारे में बात छेड़ दी जिसके बाद....
रमन – (मेरा हाथ पकड़ के) भाभी उस दिन के बाद मैने बहुत कोशिश की लेकिन मैं नहीं भूल पा रहा आपको , भाभी मै सच्चे दिल से प्यार करता हु आपको बिल्कुल वैसे ही जैसे मनन करता था मैं आपके बिना नहीं रह सकता हूँ भाभी....
संध्या – देखो रमन मैने पहले भी कहा और फिर से....
रमन – (बात को काट के बीच में) एक बार मेरी आखों में देख के बोल दो भाभी क्या इसमें आपको मनन की तरह प्यार नजर नहीं आता , क्या मुझमें आपको मनन नजर नहीं आता....
रमन की बात सुन जाने ऐसा क्या हो गया मुझे मै रमन को देखने लगी गोर से ऐसा लगा मेरे सामने मनन मेरा हाथ पकड़े बैठे है मुस्कुराते हुए और मै सब कुछ भूल के उसके गले लग गई मनन बोलते बोलते जाने कब हम बेड में आ गए इतना आगे बढ़ गए हम जिसका कोई होश नहीं था मुझे लेकिन जब होश आया मुझे तब रमन को अपने साथ पाया तब रमन भाभी बोल के मेरे ऊपर....
बोल के संध्या रोने लगी जिसे देख अभय ने कंधे पे हाथ रख अपनी तरफ संध्या को घुमाया जिसके बाद संध्या रोते हुए बिना अभय को देखे उसके गले लग के रो रही थी जिसके बाद अभय प्यार से संध्या के सिर पर हाथ फेरता रहा थोड़ी देर बाद संध्या का रोना कम हुआ तब गले से अलग कर अभय ने पानी पिलाया संध्या को जिसके बाद....
अभय – (संध्या के आसू पोछते हुए) जब ये सब हुआ तब तूने क्या किया....
संध्या – (सिसकते हुए) जब मुझे होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी अपने आप पर काबू रख मैने रमन को कमरे से जाने को बोल दिया मै नहीं चाहती थी किसी को कुछ पता चले वर्ना क्या जवाब देती हवेली में सबको की मै अपने कमरे में देवर के साथ अकेले क्या कर रही थी इतनी देर रात को , बात आगे ना बड़े इसीलिए मैने चुप रहना बेहतर समझा....
बोल के संध्या चुप हो गई....
अभय – क्या हुआ चुप क्यों हो गई तू फिर क्या हुआ मेरे जनम दिन पर....
संध्या – (रोते हुए) अगले दिन निकलते ही हमारी सारी खुशियों को मेरी ही नजर लग गई....
अभय – क्या , मै कुछ समझा नहीं हुआ क्या ऐसा....
ललिता –(रोती हुई संध्या के कंधे पर हाथ रख अभय से) जिस रात ये सब हुआ तू उसी रात हवेली छोड़ के चल गया था....
अभय – लेकिन क्यों....
संध्या – (रोते हुए अभय के गले लग के) क्योंकि तूने उस रात मुझे रमन के साथ देख लिया था बेड पर....
अपनी बात बोल के संध्या सीने पे अपना सिर रख अभय के रोए जा रही थी जिसे अभय उसके सिर पर हाथ फेर चुप कराने में लगा था जिसके बाद....
संध्या – (रोते हुए अभय से) मैने जानबूझ के ये सब नहीं किया था तेरी कसम मुझे नहीं पता ये सब कैसे हो गया....
ललिता – दीदी सच बोल रही है लल्ला ये सब रमन का किया धरा है तेरे बाबा के गुजरने के बाद से ही रमन की गंदी नजर दीदी (संध्या) पर पड़ी हुई थी झूठे प्यार की बाते कर दीदी (संध्या) को पाने में लगा हुआ था....
अभय – (संध्या के आसू पोछ के) मत रो तू जो हो गया उसपर रोके क्या फायदा अच्छा ये बता मै हवेली छोड़ के कहा चला गया था....
फिर संध्या ने अभय को शालिनी और चांदनी के बारे में बात बताई कैसे उनसे मिला उनके साथ रहना शालिनी को मां मानना और चांदनी को दीदी कैसे स्कूल में शनाया से मिलना उसके बाद कैसे अभय गांव वापस आया फिर क्या हुआ ये सारी बात बताने लगी संध्या जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) तभी जाने क्यों शालिनी जी को मां बोलने का मन होता है मुझे....
अभय के मू से ये बात सुन संध्या का चेहरा एक पल के लिए मुरझा गया जिसके बाद....
ललिता – (अभय और संध्या से) अच्छा मै चलती हूँ रात काफी हो गई है सो जाओ आप लोग सुबह मिलते है....
बोल के ललिता जाने लगी कमरे के दरवाजे तक ही आई थी कि तभी....
अभय – चाची....
ललिता – (पलट के) क्या लल्ला....
अभय – जिस रात ये सब हुआ उस रात आपकी आंखे अचानक से भारी कैसे हो गई इस बारे में आपने कभी सोचा (संध्या से) उसी रात तेरे साथ जो हुआ कैसे हुआ तुझे भी नहीं पता है क्या इस बारे में तूने कभी पता लगाया....
ललिता – तू क्या बोलना चाहता है लल्ला....
अभय – (ललिता और संध्या से) खाना खाने के बाद आप दोनो को दूध किसने दिया था....
संध्या और ललिता एक साथ – मालती ने....
अभय – तो अपने कभी चाची से जानने की कोशिश नहीं की इस बारे में....
अभय की बात सुन संध्या और ललिता जैसे जम से गए दोनो एक दूसरे को देख के दिल दिमाग में अपने आप से एक ही सवाल कर रहे थे क्या उस रात मालती ने दूध में कुछ मिला के उनको दिया था लेकिन क्यों और किस लिए दोनो को इस तरह खामोश देख....
अभय – (संध्या और ललिता से) इस सवाल का जवाब तो सिर्फ मालती चाची दे सकती है....
ललिता – (गुस्से में) अभी जाके मैं पूछती हू मालती से क्यों किया उसने ऐसा हमारे साथ....
अभय – (ललिता का हाथ पकड़ के) और आपको लगता है मालती चाची इसका जवाब तुरंत दे देगी आपको कभी नहीं चाची अगर सच में उन्होंने ये किया है तो किसी ना किसी बहाने बात को ताल देगी क्योंकि कई साल बीत चुके है इस बात को....
संध्या – तू कहना क्या चाहता है....
अभय – मालती चाची से बात जरूर होगी लेकिन अभी नहीं जब हवेली में सिर्फ हम लोग हो और कोई नहीं....
ललिता – ठीक है लल्ला (मुस्कुरा के) चल काफी रात हो चुकी है आराम से सो जा कल सुबह मिलते है....
बोल के ललिता कमरे से चली गई उसके जाते ही अभय ने दरवाजा बंद कर संध्या के पास आके बेड में लेट गया....
अभय – (संध्या को बेड में लेटाते हुए) अब ज्यादा मत सोच तू इस बारे आर कर....
संध्या – (अभय को देखते हुए) तू नाराज तो नहीं है ना फिर से....
अभय – (मुस्कुरा के संध्या के गाल पर हाथ फेरते हुए) मै क्यों नाराज होने लगा तेरे से और वैसे भी इस खूबसूरत चेहरे को देख कोई कैसे नाराज हो सकता है भला....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू बाते बहुत बना लेता है
अभय – (मुस्कुरा के) अब तो साथ हूँ तेरे फिर इन आखों में ये नमी क्यों....
संध्या – डर लगता है कही फिर से दूर हो जाएं मुझसे....
अभय – (मुस्कुरा के)
हसोंगी तो जीत जाओगी
रोगी तो दिल दुखाओगी
चाहे पास रहूं ना रहूं
हमेशा अपने साथ पाओगी....
संध्या – (मुस्कुरा के) ये शायरी कहा से सिखा तूने....
अभय – (मुस्कुरा के) सीखी नहीं पढ़ी थी मेरे कमरे में एक डायरी मिली थी मुझे उसमें लिखी थी....
संध्या – डायरी कौन से डायरी....
अभय – पता नहीं उसमें नाम लिखा था राज का खजाना....
संध्या – (मुस्कुरा के) हा तेरा ही दोस्त राज की डायरी है वो उसने तुझे दी थी बचपन से वही तो तेरे पक्के दोस्त रहे है राज , राजू और लल्ला....
अभय – (मुस्कुरा के) तो अब से तू भी बन जा दोस्त मेरी....
संध्या – मै दोस्त बन जाऊ लेकिन मैं....
अभय – (बीच में बात काट के) बस अब ज्यादा मत सोच इस बारे में दोस्त बन जा मै चाहता हूँ तेरा दोस्त बन के तुझे हमेशा खुश रखूं ताकि बात बात पर तेरी आंखों में नमी ना आए....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू साथ है तो इन आखों में कभी नमी नहीं आएगी....
अभय – और दोस्त बन जाएगी तो खुशी कभी जाएगी नहीं तेरी इन आखों से....
इस बात से दोनो मुस्कुरा के गले लग के सो गए दोनो....
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जारी रहेगा
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So Sorry Friends Meri Marriage ke karan aapko itna wait karna pada update ke leye lekin kya karta aap samj sakte ho Marriage se pehle or uske bad time kitna milta hai aap samj sakte ho
Super dhamakedar update Bhai
नए साल का पहला जाम आपके नाम
HAPPY NEW YEAR FRIENDS....
UPDATE 53
ललिता – (कमरे में आते हुए) क्या बाते चल रही है दोनो में....
अभय –(ललिता को कमरे में आते देख के) कुछ नहीं चाची मै पूछ रहा था मा से अपने बारे में बताएं कुछ लेकिन देखो बताने से पहले ही जाने क्यों आंसू आ गए इनके आखों में भला ऐसा भी होता है क्या बात बात में आखों में आसू आ जाते है ईनके....
ललिता –(अभय के सिर में हाथ फेर के) दस साल तक तेरे बिना कैसे रही है दीदी या तो दीदी जानती है या सिर्फ हवेली के लोग उसी बात को याद करके आसू तो आएंगे लल्ला....
अभय – अब तो आ गया हूँ ना मै चाची अब क्या डरना मै कौन सा कही जाने वाला हु अब....
ललिता – (मुस्कुरा के) बाते बनाने में तू एक कदम आगे है लल्ला (संध्या से) बता दो दीदी कब तक अपने मन में दबा के रखोगे बात को बता दो आप लल्ला को जानने का हक है पूरा....
इसके बाद संध्या ने अपना बीता कल बताना शुरू किया जैसे मनन ठाकुर से मुलाकात प्रेम होना शादी होना फिर हवेली आना अपनी सास सुनैना ठाकुर से मिलना साथ ही कमल ठाकुर और सुनंदा ठाकुर के बारे में बताना साथ उनके बेटे अर्जुन के लिए बताना और फिर ठाकुर रतन के गुजरने से लेके सुनैना ठाकुर के अचानक गायब हो जाने की बात बताना साथ मनन ठाकुर के गुजरने की बात बता के रोने लगना जिसे देख....
अभय –(संध्या के आसू अपने हाथ से पोछ के) रो मत तू जाने क्यों तुझे रोता देख मेरा दिल दुखने लगता है....
संध्या – (रोते हुए अभय को गले लगा के) मुझसे मार खाते वक्त भी तू कभी कुछ नहीं बोलता था कभी अपनी सफाई नहीं देता था ताकि मेरा दिल न दुखे और मै अभागन जाने क्यों तुझपे हाथ उठा देती थी हर बार....
बोल के संध्या रो रही थी जिसे ललिता चुप कराने लगती है जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) ये तो तेरा हक है तो मैं कैसे तेरा हक छीन लेता भला....
संध्या – (रोते हुए) काश मैने तुझसे पूछा होता तेरे से तो शायद तू हमे छोड़ के कभी नहीं जाता....
अभय – मै हवेली छोड़ के चला गया था लेकिन क्यों क्या सिर्फ तेरी मार के कारण तो नहीं हो सकता है फिर क्यों चला गया था मैं तुझे छोड़ के और कहा....
अभय का सवाल सुन संध्या के मू से शब्द नहीं निकल पा रहे थे जिसे देख ललिता ने संध्या के हाथ पे अपना हाथ रख के बोली....
ललिता – मै बताती हु लल्ला....
संध्या – (रोते हुए ललिता का हाथ दबा के) ललिता....
ललिता – बताने दो दीदी जरूरी है अभय का जानना सच को....
अभय – ऐसी क्या बात है चाची जो मां आपको रोक रही है....
ललिता – लल्ला ये जो कुछ भी हुआ सब मेरी वजह से हुआ था तेरी मां तो सिर्फ मदद कर रही थी हमारी....
अभय –(चौक के) हमारी मतलब....
ललिता – हा लल्ला हमारी मतलब मेरी और रमन की तेरे चाचा हम दोनो का घर बसा रहे इसीलिए दीदी हमारी मदद कर रही थी लेकिन उसके बदले कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए था....
अभय – चाची अब पहेली मत बुझाओ आप बात क्या हुई थी बताओ आप....
ललिता – मेरा और रमन का रिश्ता कमजोर होता जा रहा था जिसका पता हवेली में किसी को नहीं था काफी वक्त से ये बंद कमरे में चल रहा था एक दिन मैं और रमन कमरे में बात करते हुए झगड़ने लगे और तभी दीदी कमरे में आ गई जिसे देख....
संध्या – (चौक के) क्या बात है रमन , ललिता तुम दोनो इस तरह झगड़ क्यों रहे हो....
रमन – कुछ नहीं भाभी इसका दिमाग खराब हो गया है जरा जरा सी बात पर झगड़ना करने की आदत हो गई है इसकी....
बोल के रमन कमरे से बाहर चला गया जिसके बाद....
संध्या – (ललिता से) क्या बात है ललिता किस लिए झगड़ रहे थे तुम दोनो हुआ क्या है....
संध्या के पूछने पर ललिता ने काफी टालने की कोशिश की आखिरी में हर कर....
ललिता – इनकी कमजोरी के कारण दीदी काफी दिन से मैं जब भी इनके साथ आगे बढ़ने को कोशिश करती हूँ जाने क्यों....
बोल के चुप हो गई ललिता जिसे देख....
संध्या – बोल न चुप क्यों हो गई तू हुआ क्या बता तो....
ललिता –(रोते हुए) दीदी जाने क्यों बिस्तर में आते ही ये मेरे साथ कुछ नहीं करते मै जब भी पूछती तो बोलते नहीं हो पा रहा है मुझसे....
बोल के ललिता रोने लगी तब संध्या उसके सिर में हाथ फेरने लगी जिसके बाद....
ललिता –(रोते हुए) दीदी अब आप ही बताओ क्या करू मैं क्या अपनी इच्छा और शरीर की प्यास को कैसे रोकूं मै और जाने क्यों इनसे कुछ हो नहीं पा रहा है मैने बोला इलाज करा लो अपना डॉक्टर से तो मुझे साफ मना कर देते है अब क्या करू मैं दीदी....
संध्या – (कुछ सोच के) तू चिंता मत कर मैं कल बात करूंगी रमन से तू अभी आराम कर....
और फिर अगले दिन गांव में खेती का काम रमन देख रहा था तब संध्या खेत की तरफ आ गई रमन को एक तरफ बुला के उससे खेत के काम के बारे में बात करने लगी और तभी बीच में संध्या ने रमन से बात छेड़ दी....
संध्या – (रमन से) क्यों झगड़ा कर रहा है तू ललिता से रमन....
रमन – (गुस्से में) तो आखिर उसने आपको बता दिया सारी बात....
संध्या – (समझाते हुए) देख रमन उसने जो कहा इसमें कोई गलत नहीं है बीवी है तेरी अपने पति से नहीं बोलेगी तो किससे बोलेगी देख रमन अगर कोई दिक्कत है तो उसका इलाज भी होता है तेरे इस तरह झगड़ने से भला क्या हासिल होगा तुझे या ललिता को....
रमन – भाभी बात ऐसी नहीं है....
संध्या – अगर बात ऐसी नहीं है तो क्या बात है....
रमन – भाभी सच तो ये है कि मैं जाने क्यों आपको इस तरह अकेला देख मुझे अच्छा नहीं लगता जब से मनन गया है तब से आपकी हसी जैसे कही खो सी गई है मैं सिर्फ आपको खुश देखना चाहता हु....
संध्या – (हैरान होके) तू कहना क्या चाहता है....
रमन – भाभी मै आपसे प्यार करने लगा हु आपके चेहरे पर पहले जैसी खुशी देखना चाहता हु....
संध्या – तू होश में तो है रमन जनता है तू क्या बोले जा रहा है....
रमन – हा भाभी मै पूरे होश में हूँ जब भी आपको इस तरह देखता हु मेरा दिल बेचैन हो जाता है दिन रात बस आपके बारे में सोचता हूँ....
संध्या – (गुस्से में) देख रमन तूने अभी तो बोल दिया ये बात दोबारा मै नहीं सुनना चाहती ये सब बात....
बोल के संध्या जाने लगी तभी रमन ने संध्या का हाथ पकड़ के....
रमन – (आंख में आसू लिए) भाभी मेरा प्यार झूठा नहीं सच्चे दिल से आपको चाहता हु मै आपको , एक बार मेरी तरफ देखो भाभी और बोल दो क्या मुझमें आपको मनन नहीं दिखता क्या मेरी आंखों में आपको मनन की तरह वो प्यार नजर नहीं आता....
संध्या – (आंख में हल्की नमी के साथ) देख रमन ऐसी बात बोल के मुझे कमजोर मत कर मनन के जाने के बाद बड़ी मुश्किल से संभाला है मैने अभय और अपने आप को (अपने आसू पोछ) मै यहां सिर्फ तेरे और ललिता के बारे में बात करने आई थी और अगर तू सच में मुझे खुश देखना चाहता है तो अच्छा रहेगा तू सिर्फ ललिता पर ध्यान दे मेरी वजह से अपनी और ललिता की जिंदगी बर्बाद मत कर....
बोल के संध्या निकल गई हवेली की तरफ हवेली में आते ही....
ललिता – (संध्या से) दीदी आपकी बात हुई रमन से....
संध्या – हा बात हुई मेरी....
ललिता – इलाज कराने को मान गए वो....
संध्या – ललिता ऐसी कोई बात नहीं है....
फिर रमन के साथ हुई सारी बात बता के....
संध्या – फिलहाल मैने उसे समझा दिया है अब तू भी इस बात को आगे मत बढ़ाना मै नहीं चाहती मेरे वजह से तुम दोनो की जिंदगी में कोई दिक्कत आए....
ललिता – (अभय से) उसके बाद मुझे लगा सब ठीक हो जाएगा लेकिन शायद ऐसा सोचना वहम था मेरा क्योंकि रमन को समझाने पर भी उसमें कोई भी फर्क नहीं आया बल्कि रमन उसके बाद से किसी न किसी बहाने से दीदी के साथ कभी खेती, कभी मजदूरों की मजदूरी को लेके चर्चा करता था जिसमें अच्छा खासा वक्त रमन बिताने लगा था दीदी के साथ कई बार दीदी ने उसे बीच में इस बारे में बात छेड़ी लेकिन रमन काम की बात आगे कर के टाल देता था और फिर इस बीच रमन ने एक खेल खेलना शुरू किया....
अभय – कौन सा खेल और किसके साथ चाची....
ललिता – (अभय से) तेरे साथ खेल खेलना शुरू किया था रमन ने....
अभय – मेरे साथ मै कुछ समझा नहीं....
ललिता – रमन हर बार कुछ न कुछ कांड करता जिस वजह से तुझे मार खाने को मिलती दीदी (संध्या) से जब इससे भी उसका मन नहीं भरा तो अमन को भी इसमें शामिल कर लिया जिस वजह से हर रोज किसी न किसी शिकायत से दीदी (संध्या) को गुस्सा आजाता जिस वजह से दीदी तुझे डांटती, मारती ये सब करके रमन तेरे अन्दर नफरत भरने लगा था दीदी (संध्या) के लिए जिस वजह से तू नफरत करने लगे दीदी से और फिर आई वो मनहूस रात जिसके बाद सब कुछ बदल गया....
अभय – (चौक के) मतलब क्या हुआ था उस रात को....
ललिता – (बात को याद करते हुए) मुझे ज्यादा कुछ खास याद नहीं लेकिन इतना याद है उस रात हम सब खाना साथ में खा रहे थे तब दीदी ने रमन और मुझे खाने के बाद अपने कमरे में आने को बोला था ताकि रमन से खेती के खाता बही बनाने के बारे में बात करने के बाद हम दोनों की समस्या दूर हुई या नहीं उस बारे में बात करे , खाने के बाद आखिर में मैने दूध पीने के बाद अपने कमरे में आई कपड़े बदलने जिसके बाद जाने क्यों मेरी आंखे भारी होने लगी और अपने बेड में लेट गई फिर क्या हुआ मुझे नहीं पता जब मैं जागी तब मै कमरे में थी उठ के कमरे का दरवाजा खोल के देखा तब रमन दीदी (संध्या) के कमरे से बाहर निकल रहा था तब मेरे पास आते ही मुस्कुरा के दरवाजा बंद कर मेरा हाथ पकड़ के बिस्तर में ले आया इस बात से मै बहुत खुश हो गई बेड में आते ही....
रमन – (ललिता की सारी खोलते हुए) आज मेरी मुराद पूरी हुई....
ललिता – अच्छा ऐसी क्या बात है मुझे भी बताओ....
रमन – (मुस्कुरा के) अभी अभी मै भोग लगा के आ रहा हूँ संध्या का सच में क्या मस्त मॉल है मजा आ गया....
ललिता – (आंख बड़ी करते हुए) ये क्या बकवास कर रहे हो तुम....
रमन – बकवास नहीं सच बोल रहा हूँ मैं बहुत वक्त से तमन्ना थी जो आज पूरी हो गई मेरी और जल्द ही ये तमन्ना हर रोज पूरी करूंगा मैं....
ललिता – तुम झूठ बोल रहे हो दीदी एसा हरगिज नहीं कर सकती है कभी भी....
रमन – (मुस्कुराते हुए) तेरे मानने या ना मानने से सच बदल नहीं जाएगा जल्द ही तुझे ये नजारा देखने को भी मिलेगा जब मैं संध्या को तेरे सामने इसी बिस्तर में मसलू गा हर रोज....
ललिता – (गुस्से में) तुम सच में गिरे हुए इंसान हो रमन अपनी भाभी के साथ छी शर्म नहीं आई तुम्हे ये सब करते क्या सोच रही होगी तुम्हारे बारे में और तुम....
रमन –(मुस्कुरा के) इसमें ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है तुम्हे , जानती है मुझे मनन समझ के मेरी बाहों में समाई हुई थी उसे लग रहा था कि मैं मनन हूँ सब कुछ भूल के बस मुझमें समा गई थी संध्या (बोल के हस्ते हुए ललिता से) वैसे भी भूलों मत वो अकेली है और कितने दिन तक अपने शरीर की प्यास को रोक के रखेगी वो है तो एक मामूली औरत ही ना आखिर , बस तू देखती जा कुछ ही दिनों के बाद संध्या और मैं एक कमरे में सोया करेंगे और उसके कुछ महीनों के बाद मेरे नाम से पेट फूला के घूमेगी....
ललिता –(गुस्से में रमन को बेड से धक्का देते हुए) हरामजादे अपनी हवस को प्यार का नाम दे रहा था तू दीदी (संध्या) की बात सुन एक पल मुझे लगा शायद दीदी (संध्या) को इस तरह देख मेरी तरह तुझे भी बुरा लगता होगा शायद इसीलिए तू अनजाने में प्यार कर बैठा दीदी (संध्या) से लेकिन नहीं तू सिर्फ हवस का पुजारी है प्यार का मतलब तक पता नहीं तुझे इससे पहले तू फिर कोई चाल चले दीदी (संध्या) के साथ मैं तेरे इस सपने को चकना चूर कर दूंगी तेरी सारी सच्चाई बता दूंगी दीदी को....
रमन – (गुस्से में ललिता की गर्दन पकड़ के) अगर गलती से भी तू मेरे बीच में आई तो याद रखना संध्या को मैं किसी ना किसी तरह कभी ना कभी पा लूंगा लेकिन तुझसे जिंदगी भर के लिए रिश्ता तोड़ दूंगा मै और बच्चों को दूर कर दूंगा वो अलग इसीलिए गलती से भी मेरे बीच में आने की सोचना भी मत समझी....
बोल के रमन , ललिता की गर्दन छोड़ के कमरे से निकल गया रमन के जाते ही ललिता खांसते हुए लंबी सास लेके रोने लगी थी....
ललिता – (रोते हुए अभय से) उस दिन सिर्फ अपने बच्चों के खातिर मै चुप रही काश एक बार हिम्मत जुटा कर मैने दीदी को सारा सच बता दिया होता तो शायद इतने साल तक रमन ने जो किया गांव वालों के साथ वो कभी ना होता....
अभय –(ललिता की सारी बात सुनने के बाद उसके आंसू पोछते हुए) मत रो चाची जो हो गया सो हो गया उन बातों के लिए रोने से क्या फायदा अब....
अभय की बात सुन हल्का मुस्कुरा के ललिता ने प्यार से अभय के गाल पर हाथ फेरा जिसके बाद....
अभय – (संध्या से) उस रात तूने रमन को खेती के खाता बही की बात के लिए बुलाया था कमरे में तब क्या हुआ था ऐसा जिस वजह से तू रमन को बाबा (मनन) समझ बैठी....
संध्या – उस रात खाने के वक्त मेरा मन नहीं कर रहा था खाने का बस आधी रोटी खाने के बाद मै तेरे कमरे में आई थी देखने लेकिन तू सोया हुआ था तुझे इस तरह भूखा सोता देख उस रात मुझे बहुत दुख हो रहा था क्योंकि मैने दिन में तुझे बहुत मार मारी थी जिस वजह से तू खाना खाने नहीं आया था अगले दिन तेरा जनम दिन था तब मैने सोच लिया था चाहे कुछ भी हो जाएं अब कभी तेरे पर हाथ नहीं उठाऊंगी सुबह हवेली को दुल्हन की तरह तैयार करवा के धूम धाम से तेरा जनम दिन मनाऊंगी लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था....
अभय – (संध्या के कंधे पर हाथ रख के) क्या हुआ था उस रात को ऐसा....
संध्या – (दूसरी तरफ अपना मू करके) अपने कमरे में आने के बाद दूध पीते हुए खाता बही देख रही थी थोड़ी देर के बाद रमन अकेले आया कमरे में तब हम खाता बही खोल के उसीकी बात करने लगे तब मैं रमन से उसके और ललिता के बारे में बात छेड़ दी जिसके बाद....
रमन – (मेरा हाथ पकड़ के) भाभी उस दिन के बाद मैने बहुत कोशिश की लेकिन मैं नहीं भूल पा रहा आपको , भाभी मै सच्चे दिल से प्यार करता हु आपको बिल्कुल वैसे ही जैसे मनन करता था मैं आपके बिना नहीं रह सकता हूँ भाभी....
संध्या – देखो रमन मैने पहले भी कहा और फिर से....
रमन – (बात को काट के बीच में) एक बार मेरी आखों में देख के बोल दो भाभी क्या इसमें आपको मनन की तरह प्यार नजर नहीं आता , क्या मुझमें आपको मनन नजर नहीं आता....
रमन की बात सुन जाने ऐसा क्या हो गया मुझे मै रमन को देखने लगी गोर से ऐसा लगा मेरे सामने मनन मेरा हाथ पकड़े बैठे है मुस्कुराते हुए और मै सब कुछ भूल के उसके गले लग गई मनन बोलते बोलते जाने कब हम बेड में आ गए इतना आगे बढ़ गए हम जिसका कोई होश नहीं था मुझे लेकिन जब होश आया मुझे तब रमन को अपने साथ पाया तब रमन भाभी बोल के मेरे ऊपर....
बोल के संध्या रोने लगी जिसे देख अभय ने कंधे पे हाथ रख अपनी तरफ संध्या को घुमाया जिसके बाद संध्या रोते हुए बिना अभय को देखे उसके गले लग के रो रही थी जिसके बाद अभय प्यार से संध्या के सिर पर हाथ फेरता रहा थोड़ी देर बाद संध्या का रोना कम हुआ तब गले से अलग कर अभय ने पानी पिलाया संध्या को जिसके बाद....
अभय – (संध्या के आसू पोछते हुए) जब ये सब हुआ तब तूने क्या किया....
संध्या – (सिसकते हुए) जब मुझे होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी अपने आप पर काबू रख मैने रमन को कमरे से जाने को बोल दिया मै नहीं चाहती थी किसी को कुछ पता चले वर्ना क्या जवाब देती हवेली में सबको की मै अपने कमरे में देवर के साथ अकेले क्या कर रही थी इतनी देर रात को , बात आगे ना बड़े इसीलिए मैने चुप रहना बेहतर समझा....
बोल के संध्या चुप हो गई....
अभय – क्या हुआ चुप क्यों हो गई तू फिर क्या हुआ मेरे जनम दिन पर....
संध्या – (रोते हुए) अगले दिन निकलते ही हमारी सारी खुशियों को मेरी ही नजर लग गई....
अभय – क्या , मै कुछ समझा नहीं हुआ क्या ऐसा....
ललिता –(रोती हुई संध्या के कंधे पर हाथ रख अभय से) जिस रात ये सब हुआ तू उसी रात हवेली छोड़ के चल गया था....
अभय – लेकिन क्यों....
संध्या – (रोते हुए अभय के गले लग के) क्योंकि तूने उस रात मुझे रमन के साथ देख लिया था बेड पर....
अपनी बात बोल के संध्या सीने पे अपना सिर रख अभय के रोए जा रही थी जिसे अभय उसके सिर पर हाथ फेर चुप कराने में लगा था जिसके बाद....
संध्या – (रोते हुए अभय से) मैने जानबूझ के ये सब नहीं किया था तेरी कसम मुझे नहीं पता ये सब कैसे हो गया....
ललिता – दीदी सच बोल रही है लल्ला ये सब रमन का किया धरा है तेरे बाबा के गुजरने के बाद से ही रमन की गंदी नजर दीदी (संध्या) पर पड़ी हुई थी झूठे प्यार की बाते कर दीदी (संध्या) को पाने में लगा हुआ था....
अभय – (संध्या के आसू पोछ के) मत रो तू जो हो गया उसपर रोके क्या फायदा अच्छा ये बता मै हवेली छोड़ के कहा चला गया था....
फिर संध्या ने अभय को शालिनी और चांदनी के बारे में बात बताई कैसे उनसे मिला उनके साथ रहना शालिनी को मां मानना और चांदनी को दीदी कैसे स्कूल में शनाया से मिलना उसके बाद कैसे अभय गांव वापस आया फिर क्या हुआ ये सारी बात बताने लगी संध्या जिसके बाद....
अभय – (मुस्कुरा के) तभी जाने क्यों शालिनी जी को मां बोलने का मन होता है मुझे....
अभय के मू से ये बात सुन संध्या का चेहरा एक पल के लिए मुरझा गया जिसके बाद....
ललिता – (अभय और संध्या से) अच्छा मै चलती हूँ रात काफी हो गई है सो जाओ आप लोग सुबह मिलते है....
बोल के ललिता जाने लगी कमरे के दरवाजे तक ही आई थी कि तभी....
अभय – चाची....
ललिता – (पलट के) क्या लल्ला....
अभय – जिस रात ये सब हुआ उस रात आपकी आंखे अचानक से भारी कैसे हो गई इस बारे में आपने कभी सोचा (संध्या से) उसी रात तेरे साथ जो हुआ कैसे हुआ तुझे भी नहीं पता है क्या इस बारे में तूने कभी पता लगाया....
ललिता – तू क्या बोलना चाहता है लल्ला....
अभय – (ललिता और संध्या से) खाना खाने के बाद आप दोनो को दूध किसने दिया था....
संध्या और ललिता एक साथ – मालती ने....
अभय – तो अपने कभी चाची से जानने की कोशिश नहीं की इस बारे में....
अभय की बात सुन संध्या और ललिता जैसे जम से गए दोनो एक दूसरे को देख के दिल दिमाग में अपने आप से एक ही सवाल कर रहे थे क्या उस रात मालती ने दूध में कुछ मिला के उनको दिया था लेकिन क्यों और किस लिए दोनो को इस तरह खामोश देख....
अभय – (संध्या और ललिता से) इस सवाल का जवाब तो सिर्फ मालती चाची दे सकती है....
ललिता – (गुस्से में) अभी जाके मैं पूछती हू मालती से क्यों किया उसने ऐसा हमारे साथ....
अभय – (ललिता का हाथ पकड़ के) और आपको लगता है मालती चाची इसका जवाब तुरंत दे देगी आपको कभी नहीं चाची अगर सच में उन्होंने ये किया है तो किसी ना किसी बहाने बात को ताल देगी क्योंकि कई साल बीत चुके है इस बात को....
संध्या – तू कहना क्या चाहता है....
अभय – मालती चाची से बात जरूर होगी लेकिन अभी नहीं जब हवेली में सिर्फ हम लोग हो और कोई नहीं....
ललिता – ठीक है लल्ला (मुस्कुरा के) चल काफी रात हो चुकी है आराम से सो जा कल सुबह मिलते है....
बोल के ललिता कमरे से चली गई उसके जाते ही अभय ने दरवाजा बंद कर संध्या के पास आके बेड में लेट गया....
अभय – (संध्या को बेड में लेटाते हुए) अब ज्यादा मत सोच तू इस बारे आर कर....
संध्या – (अभय को देखते हुए) तू नाराज तो नहीं है ना फिर से....
अभय – (मुस्कुरा के संध्या के गाल पर हाथ फेरते हुए) मै क्यों नाराज होने लगा तेरे से और वैसे भी इस खूबसूरत चेहरे को देख कोई कैसे नाराज हो सकता है भला....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू बाते बहुत बना लेता है
अभय – (मुस्कुरा के) अब तो साथ हूँ तेरे फिर इन आखों में ये नमी क्यों....
संध्या – डर लगता है कही फिर से दूर हो जाएं मुझसे....
अभय – (मुस्कुरा के)
हसोंगी तो जीत जाओगी
रोगी तो दिल दुखाओगी
चाहे पास रहूं ना रहूं
हमेशा अपने साथ पाओगी....
संध्या – (मुस्कुरा के) ये शायरी कहा से सिखा तूने....
अभय – (मुस्कुरा के) सीखी नहीं पढ़ी थी मेरे कमरे में एक डायरी मिली थी मुझे उसमें लिखी थी....
संध्या – डायरी कौन से डायरी....
अभय – पता नहीं उसमें नाम लिखा था राज का खजाना....
संध्या – (मुस्कुरा के) हा तेरा ही दोस्त राज की डायरी है वो उसने तुझे दी थी बचपन से वही तो तेरे पक्के दोस्त रहे है राज , राजू और लल्ला....
अभय – (मुस्कुरा के) तो अब से तू भी बन जा दोस्त मेरी....
संध्या – मै दोस्त बन जाऊ लेकिन मैं....
अभय – (बीच में बात काट के) बस अब ज्यादा मत सोच इस बारे में दोस्त बन जा मै चाहता हूँ तेरा दोस्त बन के तुझे हमेशा खुश रखूं ताकि बात बात पर तेरी आंखों में नमी ना आए....
संध्या – (मुस्कुरा के) तू साथ है तो इन आखों में कभी नमी नहीं आएगी....
अभय – और दोस्त बन जाएगी तो खुशी कभी जाएगी नहीं तेरी इन आखों से....
इस बात से दोनो मुस्कुरा के गले लग के सो गए दोनो....
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जारी रहेगा
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So Sorry Friends Meri Marriage ke karan aapko itna wait karna pada update ke leye lekin kya karta aap samj sakte ho Marriage se pehle or uske bad time kitna milta hai aap samj sakte ho