Thank you sooo much VengefulDevelopment bhaiBahut badhiya bde bhai
Story bahut acchi hai bhai bas bhai jaldi update dete rehna
Thank you
Try krte rhe bhai jab tak mai update ki tyaari karta ho.to fir kon hai bhai ...Sayed raj sarma
UPDATE 10
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।
गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...
संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी
उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास
ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो
संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...
कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...
ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?
संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।
ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।
संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?
संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??
मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।
रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??
ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...
रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!
ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।
रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....
संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।
संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।
संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।
रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।
संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते
इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली
संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।
संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने
सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
लीजिए, ये चाय पी लीजिए...
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।
अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है
मेरा नाम रमिया है।
अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?
रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।
अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।
रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...
अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।
रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?
अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?
रमिया -- जी बाबू जी।
अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?
रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।
अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?
अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?
अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।
रमिया – क्या.....
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।
अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?
रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।
रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?
रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया
अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?
रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।
अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?
रमिया -- जी बाबू साहब
अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...
अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?
रमिया -- पायल...
अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?
अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..
रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है
रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...
अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।
अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...
अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...
रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?
अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?
अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...
रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।
रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...
अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?
रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...
रमिया -- मैने क्या कहा...?
अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?
कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...
रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)
अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू
रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी
अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी
रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है
अभय –ठीक है मिलता हू बाद में
बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा
शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह
अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था
शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है
अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है
शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई
अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप
शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब
अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप
शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है
अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे
अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया
सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै
इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी
रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए
अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी
रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी
अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू
रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...
अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है
इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे
संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?
रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।
संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा
संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...
रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?
रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....
संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?
रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।
रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...
संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा
रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए
संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही
रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है
संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।
सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई
संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।
ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।
कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...
संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है
अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।
अमन की बात सुनकर संध्या बोली...
संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।
ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।
संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।
कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।
संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......
रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?
संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।
संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।
संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...
रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।
रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...
संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन
संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...
रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।
बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....
संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..
रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।
संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।
इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...
संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई
जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला
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जारी रहेगा
Bilkul bhai suru me maine halka halka edit kia tha jitna mujhe jaroori laga thaAwesome update.
Now this time kafi changes kiye hai original story se. Kai new scenes the. Ab story ki sahi shuruaat hoti najar aa rahi hai.
Intro jhakas diya ju ne. Bahut se naye character introduce hue.
Kahani ka scope badha hai ab sirf maa bete ki relation se hatke Kai mysterious ke around kahani ghumegi.
In secrets se Sandhya ko bhi khatra hai aur Abhay ko bhi.
Vo party me jo ladki thi jo abhay ki photo dekhkar hairan hui thi vo jarur Chandani hogi.
Badhiya likh rahe ho. Sandhya aur Raman ki baat me Sandhya kamjor nahi padi.
Keep updating keep posting.
Waah bhai kya mast update tha is poore update me raman ki to faad ke rakh di payal ke baare me jaankar abhay ko dukh hua aur Aman ke liye gussa....asli story to ab suru Hui hai...bahut hi jabardast update bhaiUPDATE 10
अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।
संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान सिर्फ अभय पर था। उसके दिल में जो दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। साथ उसके दिल को आज यकीन होगया की ये लड़का कोई और नहीं उसका बेटा अभय है। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को कर रहा था। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गई थी। संध्या के उपर आज वो इल्जाम लगा , जो उसने किया ही नहीं। और यही बात उसके दिमाग में बार बार चल रही थी।
संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...
मुनीम -- मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।
गांव वालो की बीच आज जो हुआ उसके चलते संध्या का पारा बड़ा हुआ था उपर से अपने सामने मुनीम को देख और उसकी बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को लात मरते हुए बोली...
संध्या -- हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई हवेली आने की बोला था मैने तुझे वापस मत आना और क्या कहा तूने मैने बोला था तुझे अपने बेटे को तपती धूप में पेड़ पे बांधने के लिए (तभी संध्या ने अपने लठहरो आवाज दे के बोली) तोड़ दो इस मुनीम के हाथ पैर वर्ना तुम सबके हाथ पैर तुड़वा दूंगी
उस वक्त ललिता आ गयी संध्या के पास
ललिता –(संध्या का हाथ पकड़ के)शांत हो जाओ दीदी आप (लठहरो से बोली) रुक जाओ इसको हवेली के बाहर छोर दो
संध्या –(गुस्से में) बच गया तू अब आखरी बार बोल रही हू मुनीम तुझे चला जा यहां से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बोल रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मैं क्या कर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। चले जाओ यहां से...
कहते हुए संध्या गुस्से में हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी ललिता पास आ कर बोली...
ललिता -- क्या हुआ दीदी? आप बहुत गुस्से में लग रही है?
संध्या -- ठीक कह रही है तू। और मेरी इस गुस्से का कारण तेरा ही मरद है।
ललिता -- मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।
संध्या -- क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील मेहसुस कर रही थी।
संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...
ललिता -- गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?
संध्या --(हैरानी से) क्या मतलब??
मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।
इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।
संध्या -- ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।
रमन -- मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??
ललिता -- अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?
ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे का रंग उड़ गया था। और चौंकते हुए बोला...
रमन -- अ...अ...अभय...यहां पर ये कैसे हो सकता है!!!
ललिता -- हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।
रमन -- (ललिता की बात सुनके रमन को कुछ राहत मिली) ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है कब का मर चुका है वो जंगल में लाश मिली थी उसकी भूल....
संध्या –(रमन की बात बीच में काटते हुए चिल्ला के बोली) यहीं है वो , कही नही गया है वो, आज आया है मेरा अभय मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।
संध्या की जोर डर आवाज सुन के रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...
रमन -- ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।
संध्या -- अजनबी नही है वो रमन वो मेरा बेटा अभय है समझे तुम और अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।
रमन -- जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने ना जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मै अरे मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वालो ने अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।
संध्या –(ताली बजा के हस्ते हुए) वाह रमन वाह एक्टिंग करना तो कोई तुमसे सीखे एक तरफ तुम मुझसे बोल रहे हो माफी मांगोगे तुम गांव वालो से तो क्या होगा उससे मैं बताऊं इस बार गांव वाले ये बोलोगे की ठकुराइन का नाम बना रहे इसलिए रमन को भेजा ताकी गांव वालो के सामने सारा इल्जाम अपने सिर लेले अगर एसा करना होता तुम्हे रमन तो यू गांव वालो के बीच तुम्हे पसीने नही आते
इतना बोल के पलट के जाने लगी की तभी वापस पलट के संध्या बोली
संध्या – और एक बात अच्छे से समझ लो अपने अभय के लिए मैं एक शब्द बरदाश नही करूगी चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे मैं अपने अभय को वापस जरूर लाऊगी। अब जाके सो जाओ रात बहुत हो चुकी है।
संध्या बोल के चली गई लेकिन अपने पीछे छोड़ गई रमन और ललिता को जिनके मु खुले के खुले रह गए थे संध्या की बात से दोनो बिना कुछ बोले चल गए अपने कमरे में सोने
सुबह के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...
लीजिए, ये चाय पी लीजिए...
अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा गोरे रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...
अभय -- तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?
कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...
जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। आप अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।
अभय -- hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है
मेरा नाम रमिया है।
अभय उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...
अभय -- तो तुम इसी गांव की हो?
रमिया -- नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।
अभय -- कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?
अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...
रमिया -- इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।
रमिया की बाते अभय गौर से सुनते हुए बोला...
अभय -- मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?
ये सुनकर रमिया बोली...
रमिया -- अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।
रमिया की बात सुनकर, अभय कुछ सोच में पड़ गया ...
रमिया -- क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?
अभय -- नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लाओगी?
रमिया -- जी बाबू जी।
अभय -- और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?
रमिया -- हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?
ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...
अभय -- वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।
अभय ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में 500 के नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...
रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?
अभय एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...
अभय -- ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना पीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।
रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...
रमिया -- तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?
अभय -- (मुस्कुराते हुए) मेरा नाम अभय है।
रमिया – क्या.....
रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभय बोला।
अभि -- अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?
रमिया -- अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का ही ठाकुराइन का इकलौता बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल उस लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।
अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया...और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।
अभय -- तो...तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।
रमिया -- सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।
ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...
अभय -- अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?
रमिया -- अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो डर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूब कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला (हस्ते हुए) और बाबू जी वो अमन तो मजनू की तरह घूमता रहता है पायल के पीछे कोई मौका नहीं छोड़ता पायल को पटाने का लेकिन उसकी किस्मत कभी उसका साथ नहीं देती है इसमें
रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के आखरी शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......
गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया
अभय -- ये अमन कौन है? जो उस लड़की के पीछे हाथ धो कर पड़ा है?
रमिया -- अमन वही तो ठाकुर साहब का बेटा है। ठकुराइन का दुलारा है सच कहूं तो ठाकुराइन के लाड - प्यार ने बहुत बिगाड़ दिया है छोटे मालिक को।
अभय --ओह...तो ये बात है। ठाकुराइन का दुलारा है वो?
रमिया -- जी बाबू साहब
अभय को शायद पता था , की यूं ही गुस्से की आग में जलना खुद को परेशान करने जैसा है, इसलिए वो खुद को शांत करते हुए प्यार से बोला...
अभय -- वैसे ...वो लड़की, क्या नाम बताया तुमने उसका?
रमिया -- पायल...
अभय -- हां... पायल, दिखने में कैसी है वो?
अभय की बात सुनकर, रमिया हल्के से मुस्कुराई...और फिर बोली..
रमिया -- क्या बात है बाबू साहब? कही आप भी तो उसके दीवाने तो नही होते जा रहे है
रमिया की बात सुनकर, अभि भी हल्की मुस्कान की चादर ओढ़ लेता है, फिर बोला...
अभय -- मैं तो हर तरह की औरत का दीवाना हूं, फिर चाहे वो गोरी हो या काली, खूबसूरत हो या बदसूरत, बस उसकी सीरत सही हो।
अभय की बात सुनकर, रमिया अभि को अपनी सांवली निगाहों से देखती रह जाति है, और ये बात अभि को पता चल जाति है। तभी अभि एक दफा फिर से बोला...
अभय -- वैसे तुम्हारी सीरत भी काफी अच्छी मालूम पड़ रही है, जो मेरे लिए खाना बनाने चली आई।
अभय की बात सुनकर, रमिया थोड़ा शरमा गई और पलके झुकते हुए बोली...
रमिया -- उससे क्या होता है बाबू जी,ये तो मेरा काम है, ठाकुराइन ने भेजा तो मैं चली आई। सिर्फ इसकी वजह से ही आप मेरे बारे में इतना कैसे समझ सकते है?
अभय -- अच्छा तो तुम ये कहना चाहती हो की, तुम अच्छी सीरत वाली औरत नही हो?
अभय की बात सुनकर, रमिया की झुकी हुई पलके झट से ऊपर उठी और फट से बोल पड़ी...
रमिया -- नही, मैने ऐसा कब कहा? मैने आज तक कभी कोई गलत काम नही किया।
रमिया की चौकाने वाली हालत देख कर अभि मन ही मन मुस्कुराया और बोला...
अभय -- तो मै भी तो इसके लिए ही बोला था, की तुम मुझे एक अच्छी औरत लगी। पर अभी जो तुमने कहा उसका मतलब मैं नहीं समझा?
रमिया ये सुनकर मासूमियत से बोली...
रमिया -- मैने क्या कहा...?
अभय -- यही की तुमने आज तक कुछ गलत काम नही किया, किस काम के बारे में बात कर रही हो तुम?
कहते हुए अभय रमिया की आंखो में देखते हुए मुस्कुरा पड़ा, और अभय की ये हरकत देख कर...
रमिया -- धत्...तुंब्भी ना बाबू जी...(और दोनो मुस्कुराने लगते है)
अभय – ठीक है रमिया मैं जरा बाहर जा के टहल के आता हू
रमिया – अरे बाबू जी कहा आप बाहर जा रहे हो यहां गांव में सारी सुविधा हो गई है और हॉस्टल में भी बाथरूम है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी
अभय –(हस्ते हुए) अरे नही मेरी आदत है रोज सुबह सुबह दौड़ लगाने की इसको (exercise) व्यायाम बोलते है समझी
रमिया –(हस्ते हुए) बाबू जी हमे भी थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी आती है
अभय –ठीक है मिलता हू बाद में
बोल के अभय निकल गया एक्सरसाइज करने खेतो की तरफ दौड़ लगाता जा रहा था अभय और पहौच गया आम के बाग में चारो तरफ देखने लगा जहा हर तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी उसे मुस्कुराते हुए पलट के वापस जाने लगा चलते हुए अभय ने अपने सामने किसी को आते देखा नजदीक आते हुए शक्स को देख के अभय मुस्कुराने लगा
शक्स – अरे बाबू साहब आप यहां इतनी सुबह सुबह
अभय – हा वो exercise मेरा मतलब व्यायाम कर रहा था
शक्स –(मुस्कुराते हुए) हा समझ गया बाबू साहेब शहर में व्यायाम कोई नही बोलता इसे एक्सरसाइज बोलते है
अभय – बाबा आप इस वक्त कहा जा रहे है
शक्स – शहर जा रहा हू खेती का सामान लेने वैसे आपका बहुत बहुत धन्यवाद बाबू साहब आपने जो कल किया उसके चलते हमे हमारी जमीन वापस मिल गई
अभय – मैने एसा कुछ नही किया बाबा वो तो पेड़ काटने वालो को रोका था मैने बस और ये सब हो गया अपने आप
शक्स – आपका नाम क्या है बाबू साहब
अभय – जी मेरा नाम अभी है और आप
शक्स –(नाम सुनते ही गौर से देखने लगा अभय को) मेरा नाम सत्या शर्मा है
अभय –(मुस्कुराते हुए) अच्छा बाबा चलता हू फिर मिलूगा आपसे
अभय तो निकल गया लेकिन पीछे सत्या शर्मा अभय को जाते हुए देखते रहे जब तक अभय उनकी नजरो सो उझोल ना हो गया
सत्या शर्मा – (मन में बाते करने लगे) ये लड़का इतना जाना पहचाना सा क्यों लगता है मिलते ही बाबा बोलने लगा के ये नही नही लगता है आज कल ज्यादा ही सोचने लगा हू मै
इस तरफ अभय अपने हॉस्टल में आगया आते ही फ्रेश होके तयार हुआ तभी
रमिया – बाबू जी आईये नाश्ता कर लीजिए
अभय – तुमने नाश्ता बना भी दिया इतनी जल्दी
रमिया – यह पर अकेले आप ही हो हॉस्टल हो बाबू जी
अभय –(नाश्ता करने के बाद) बहुत अच्छा बनाया तुमने नाश्ता मजा आगया अच्छा सुनो मैं जरा गांव घूम के आता हू दिन भर क्या करूंगा यह पे घूम लेता हू
रमिया – ठीक है बाबू जी मैं भी जाति हू बाजार से खाने पीने का इंतजाम करने खाना...
अभय – रात में खाऊंगा खाना मैं अब तुम आराम कार्लो आज के लिए ठीक है
इतना बोल के अभय गांव की तरफ निकल गया घूमने उसके जाते ही रमिया भी निकल गई हवेली की तरफ जैसे ही रमिया हवेली में दाखिल हुई तभी सामने संध्या मिल गई उसे
संध्या – क...क्या हुआ रमिया? तू...तूने उस लड़के को खाना खिलाया की नही?
रमिया -- मालकिन अभी बाबू जी को नाश्ता करा के आ रही हू खाना बाबू जी सीधे रात में खाएगे बस समान लेने ही जा रही थी मालकिन खाने पीने का।
संध्या -- तू उसकी चिंता मत कर मैने बिरजू से कह दिया है सब सम्मान 1 घंटे में वहा पहुंच जाएगा
संध्या की बात सुनकर, रमिया थोड़ा चौंकते हुए बोली...
रमिया -- ये क्या कर दिया आपने मालकिन?
रमिया की बातो से अब संध्या भी हैरान थी....
संध्या -- क्या कर दिया मैने...मतलब?
रमिया -- अरे...मालकिन, वो बाबू साहेब बड़े खुद्दार है, मेरे जाते ही वो समझ गए की मुझे आपने ही भेजा है। इसलिए उन्होंने मुझे वो पैसे देते हुए बोले की...ठाकुराइन से जा कर बोल देना की उनकी हवेली के पंचभोग मुझे नही पचेंगे, तो तुम मेरे ही पैसे से सब कुछ खरीद कर लाना।
रमिया की बात सुनकर संध्या का दिल एक बार फिर कलथ कर रह गया। और मायूस होकर सोफे पर बैठते हुए अपना हाथ सिर पर रख लेती है...
संध्या को इस तरह से परेशान देख कर रमिया को अच्छा नहीं लगा और पूछा
रमिया – क्या हुआ मालकिन आप कुछ परेशान सी लग रही है। क्या सिर में दर्द हो रहा है आपके मैं अभी गरमा गर्म चाय लाती हो आपके लिए
संध्या – नही रमिया रहने दे तू जा बाजार से सामान लेले और अच्छा ही लेना और सुन मुझे बताती रहना उसके बारे में सब सिर्फ मुझे बताना किसी और को नही
रमिया –(अपनी मालकिन को ऐसी बात सुन के हैरान हो के बोली) जी मालकिन (बोल के जाने लगी थी की तभी पलट के बोली) वो मालकिन बाबू जी अभी गांव घूमने गए है
संध्या –अच्छा ठीक है तू जा कम निपटा के चली जाना वहा पे।
सोफे पे बैठे बैठे संध्या सोच ही रहे थी कुछ की तभी किसी ने पीछे से संध्या की आखों में हाथ रख दिया अचनक से ऐसा होने पे संध्या चौक गई
संध्या –(हल्का सा हस्ते हुए) हां पता है तू है, अब हटा ले हाथ।
ओ हो बड़ी मां, आप हर बार मुझे पहेचान लेती हो।
कहते हुए अमन , आगे आते हुए संध्या के बगल में बैठ जाता है और संध्या के गाल पर एक चुम्बन जड़ देता है। संध्या का मन तो ठीक नही था पर एक बनावटी हसीं चेहरे पर लाते हुए , वो भी अमन के माथे पर हाथ फेरते हुए बोली...
संध्या -- कैसे नही पहचानुगी , चल बता आज क्या चाहिए तुझे बिना वजह तू ऐसे मस्का नही मारता है
अमन -- (मुस्कुराते हुए) मेरी प्यारी अच्छा बड़ी मां मुझे ना एक नई बाइक पसंद आई है, वो लेना है मुझे।
अमन की बात सुनकर संध्या बोली...
संध्या -- ठीक है, कल चलकर ले लेना, अब खुश।
ये सुनकर अमन सच में बेहद खुश हुआ और उछलते हुए वो संध्या के गले लग जाता है और एक बार फिर से वो संध्या के गाल पर एक चुम्मी लेते हुए हवेली से बाहर निकल जाता है।
संध्या –(अमन को हवेली से बाहर जाते हुए देख खुद से बोली) आज अपने ही बेटे के सामने मेरी कोई हैसियत नही क्या कर दिया मैने ये भगवान इतनी बड़ी गलती कर दी मैने , क्या करू ऐसा मैं की बस एक बार अभय मुझे माफ कर दे , मेरी जान भी मांग ले तो उसके प्यार के चंद लम्हों के लिए अपनी जान देदू , शायद उसकी नज़रों में अब मेरी जान की भी कोई हैसियत नहीं , दिल में प्यार होकर भी उसको कभी प्यार ना जाता पाई , जब उसे मेरे प्यार की जरूरत थी , तब मैंने उसे सिर्फ मार पीट के अलावा कुछ नही दिया। आज उसे मेरी जरूरत नहीं, आखिर क्यों होगी उसे मेरी जरूरत? क्या दे सकती हूं उसे मैं? कुछ नही। दिल तड़पता है उसके पास जाने को, मगर हिम्मत नही होती अब तो मेरे पास सिर्फ शर्मिंदगी के अलावा और कुछ नही है। काश वो मुझे माफ कर दे, भूल जाए वो सब जो मैने अपने पागलपन में किया शायद नही ऐसा लगता है एक दिन इसी तड़प के साथ ही दुनिया से ना चली जाऊं।
कहते है ना, जब इंसान खुद को इतना बेबस पता है तो, इसी तरह के हजारों सवाल करता है, वही संध्या कर रही थी। वो ये समझ चुकी थी की उसके लिए अभय को मनाना मतलब भगवान के दर्शन होने के जैसा है।
संध्या अभि सोफे पर बैठी ये सब बाते सोच ही रही थी की, तभी वहा रमन आ जाता है संध्या को यूं इस तरह बैठा देख, रमन बोला......
रमन -- क्या हुआ भाभी, यूं इस तरह से क्यूं बैठी हो?
संध्या ने अपनी नज़रे उठाई तो सामने रमन को खड़ा पाया।
संध्या -- कुछ नही, बस अपनी किस्मत पर हंस रही हूं।
संध्या की बात सुनकर, रमन समझ गया की संध्या क्या कहना चाहती है...
रमन -- तो तुमने ये बात पक्की कर ही ली है की, वो छोकरा अभय ही है।
रमन की बात सुनकर, संध्या भाऊक्ता से बोली...
संध्या -- कुछ बातों को पक्का करने के लिए किसी की सहमति या इजाजत की जरूरत नहीं पड़ती है रमन
संध्या की बाते सुनकर रमन ने कहा...
रमन -- क्या बात है भाभी, तुम तो इस लड़के से इतना प्यार जताने की कोशिश कर रही हो, जितना प्यार तुमने अपने सगे बेटे से भी नही की थी।
बस रमन की इस बाते से संध्या के दिल पे जो चोट आई....
संध्या -- (जोर से चिल्ला) चुप होजा रमन वर्ना अंजाम अच्छा नही होगा अभी के लिए तू चला जा मेरे सामने से..
रमन --(संध्या की बात को बीच में काटते हुए) हा वो तो मैं चला ही जाऊंगा भाभी, जब तुमने मुझे अपने दिल से भगा दिया तो अपने पास से भगा दोगी भी तो क्या फर्क पड़ेगा। वैसे अपने अपने दिल से तुम्हारे लिए किसी को भी निकाला बड़ा आसान सा है।
संध्या –(गुस्से में बोली) तू मेरे साथ खेल रहा है तेरा दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया है रमन क्या मैने कभी बोला तुझसे के मैं प्यार करती हूं तुझे उस एक मनहूस रात जाने मै कैसे बहक गई जिसकी सजा मुझे आज तक मिल रही है और यहां तुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है जो हर बार अपने आशिकों जैसे डायलॉग मरता है यहां पर मेरी दुनिया उजड़ी पड़ी है और तुझे आशिकी की पड़ी है। मेरा बेटा मुझसे नाराज़ है, मुझे देखना भी नही पसंद करता, उसकी जिंदगी में मेरी अहमियत है भी या नहीं कुछ नही पता और तू यह आशिकी करने बैठा है समझा रहे हू तुझे खेलना बंद करदे मुझसे रमन
संध्या का ये रूप देख कर रमन कुछ देर शांत रहा और फिर बोला...
रमन -- हमारे और तुम्हारे बीच कभी प्यार था ही नही भाभी, प्यार तो सिर्फ मैने किया था तुमसे इसलिए मैं आशिकी वाली बात करता हूं। पर तुमने तो कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं।
इस बार संध्या का पारा कुछ ज्यादा ही गरम हो गया, गुस्से में चेहरा लाल हो गया दांत पीसते हुए...
संध्या -- (पागलों की तरह हस्ते हुए) प्यार और मैं अरे जब मैं अपने बेटे से प्यार नहीं कर पाई, तो तू , ललिता , मालती , अमन , निधि सब कौन से खेत की मूली हो तुमलोग (इतना बोल के संध्या अपने कमरे में चली गई
जबकि संध्या का ये भयानक रूप और बाते सुनकर, रमन की हवा निकल गई, शायद गांड़ भी जली होगी क्योंकि उसका धुआं नही उठता ना इसलिए पता नही चला
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जारी रहेगा