रज़िया अपने रूम में बैठी दुआ माँग रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बजती है और सोफिया दौड़ते हुई दरवाजा खोलती है तो सामने मुँह लटकाए जीशान खड़ा था।
अमन उसे अंदर ले आता है और आराम करने के लिए कहता है।
जीशान सीधा अपने रूम में चला जाता है और धड़ाम से दरवाजा बंद कर देता है। सभी उसके गुस्से की लिमिट उसके दरवाजा बंद करने के अंदाज से जान गये थे।
लुबना अपने रूम में लेटी हुई थी। जीशान के घर आने की खुशी में दो आँसू उसकी पलकों से होते हुये तकिये में जज़्ब हो जाते हैं। ये लुबना के लिये हमेशा की बात थी। वो बिल्कुल अपनी अम्मी अनुम पे गई थी। जिस तरह अनुम ये कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी कि अमन किसी और से बात करे, किसी और का हाथ पकड़े।
अमन अनुम की तरफ देखता है।
अनुम-“क्या बात है? जीशु इतना गुस्से में क्यूँ है? कुछ किया क्या उसने वहाँ पुलिस स्टेशन में?”
अमन-“नहीं , कुछ नहीं । तुम और तुम्हार बेटी दोनों एक जैसे हो। जाओ आराम करो रात बहुत हो गई है…”
अनुम शरारती अंदाज में-“नींद नहीं आ रही । कुछ काम बाकी है उसके बाद सो जाऊूँगी। आप जाओ, कल सुबह जल्द उठना भी है ना…”
अमन अपनी खूबसूरत बीवी अनुम के होंठों को चूमते हुये निच ले होंठ को काट लेता है। पिछले एक महीने से ये सभी शेर और शेरनियाँ भूखे थे।
रात 12:00 बजे-
सभी अपने-अपने कमरे में जा चुके थे। सभी के अपने अलग-अलग कमरे थे। अमन के रूम में अनुम और रज़िया के रूम का दरवाजा खुलता था। तीनों बेडरूम एक साथ जुड़े थे। अमन का जिस रूम में जाने को दिल करता, वो वहीं रात गुजारता था। ये बात घर के जवान नहीं जानते थे। अमन बीच के रूम में जाता है जहाँ वो और शीबा रहते थे।
शीबा बेड पे बैठी अमन का ही इंतजार कर रही थी। अमन शर्ट के दो बटन खोल कर वहीं बैठ जाता है। शीबा अपने शौहर की परेशानी जानती थी। वो अपनी बाहों का हार उसके गले में डालकर अमन के कान को चूमती हुई काटती है।
पर अमन उठकर पास वाले रज़िया के रूम में चला जाता है और शीबा अपनी किश्मत को कोसती हुई रह जाती है। अमन अपनी ज्यादातर रातें रज़िया या फिर अनुम या दोनों के साथ गुजारता था। यही चीज थी जो शीबा के तन-बदन में आग लगा देती थी।
शीबा दिल में सोचती है-“बस कुछ दिन और रज़िया, बस कुछ दिन और…”
जब अमन रज़िया के रूम में पहुँचता है तो रज़िया उससे लिपट के जीशान की खैर ख़ैरियत पूछती है।
अमन उसे सारा माजरा बताता है और ये भी बताता है की जीशु ठीक है। ये खबर सुनकर रज़िया के चेहरे पे सकून आ जाता है। रज़िया अमन की बाहों में सिमट जाती है। एक महीने की भूखी प्यासी रज़िया अपने अमन से लिपट के गर्दन को चूमने लगती है।
अमन-“अम्मी, आज सिर्फ़ मुझे प्यार करने दो…”
रज़िया-“हाँ अमन, कर लो जो करना है। आज भी रज़िया तुम्हें वैसे ही मिले गी जैसे 20 साल पहले मिलती थी…” दोनों एक दूसरे के होंठों को मुँह में लेकर खो जाते हैं।
प्यार की अजीम शिद्दत जोश का वो जज़्बा आज तक ठंडा नहीं पड़ा था, वो आग आज भी उसी तरह अपने पूरे शबाब पे थी। कुछ पलों में रज़िया अपने कपड़ों से निजात पा लेती है। आज अमन और रज़िया एक दूसरे से बातें नहीं कर रहे थे वो बस प्यार कर रहे थे।
अमन रज़िया के चूत से लेकर मुँह तक उसे चाटने लगता है और रज़िया अपनी साँसे रोके अमन की हर उस अदा पे मरती मिटती जाती है।
रज़िया-“अह्ह… बेटा अमन, चलो ना जल्द से आ जाओ ना ऊपर अपनी रज्जो के उम्ह्ह…”
ये शब्द नहीं रज़िया का हुकुम था, जिसे अमन हर हालत में पूरा करता था। वो अपनी जान, अपनी अम्मी रज़िया की चूत पे अपना लण्ड घिसते हुये अंदर डाल देता है।
रज़िया-“उम्ह्ह… मेरा बच्चा… मर जाऊूँ तेरी जवानी पे अमन। आज भी वही जोश है तुझमें, ऐसा लगता है मैं सुहागरात मना रही हूँ । मेरी चूत आज भी तेरे लौड़े से चिर जाती है उम्ह्ह… अमन बेटा…”
अमन-“अह्ह… अम्मी, आपकी चूत में जो बात है वो ना अनुम की चूत में है, और ना शीबा की… दिल तो करता है ऐसे ही तुझे हमेशा नीचे लेकर चोदता रहूं अह्ह…”
रज़िया अपनी चूत की दीवारों में अमन के धक्कों से सिहर उठती है और जोश के आलम में दोनों बस एक दूसरे को मसलते चले जाते हैं। मोहब्बत की ये पहली रात ऐसे ही रात भर रवाँ रहती है और देखते ही देखते सुबह का सूरज अपने साथ ईद की खुशियाँ लेकर अमन विला पे चमकता है।
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