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जंगल का इलाका। कोहरा इतना गहरा की दिन को भी सांझ में बदल दे। दिन के वक़्त का माहौल भी इतना शांत की एक छोटी सी आहट भयभीत कर दे। यदि दिल कमजोर हो तो इन जंगली इलाकों से अकेले ना गुजरे।
हिमालय की ऊंचाई पर बसा एक शहर गंगटोक, जहां प्रकृति सौंदर्य के साथ-साथ वहां के विभिन्न इलाकों में भय के ऐसे मंजर भी होते है, जिसके देखने मात्र से प्राण हलख में आ जाए। दूर तक फैले जंगलों में कोहरा घना ऐसे मानो कोई अनहोनी होने का संकेत दे रहा हो।
2 पक्के दोस्त, आर्यमणि और निशांत रोज के तरह जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। दोनो साथ-साथ चल रहे थे इसलिए एक दूसरे को देख भी पा रहे थे, अन्यथा कुछ मीटर की दूरी होती तो पहचान पाना भी मुश्किल होता। रोज की तरह बातें करते हुए घने जंगल से गुजर रहे थे।
"कथाएं, लोक कथाएं और परीकथाएं। कितने सच कितने झूट किसे पता। पहले प्रकृति आयी, फिर जीवन का सृजन हुआ। फिर ज्ञान हुआ और अंत में विज्ञान आया। प्रकृति रहस्य है तो विज्ञान उसकी कुंजी, और जिन रहस्यों को विज्ञान सुलझा नहीं पता उसे चमत्कार कहते हैं।"
"ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के खोज से पहले भी ये दोनो गैस यहां के वातावरण में उपलब्ध थे। किसी वैज्ञानिक ने इन रहस्यों को ढूंढा और हम ऑक्सीजन और कार्बन डाय ऑक्साइड के बारे में जानते है। कोई ना भी पता लगता तो भी हम शवांस द्वारा ऑक्सीजन ही लेते और यही कहते भगवान ने ऐसा ही बनाया है। सो जिन चीजों का अस्तित्व विज्ञान में नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि वो चीजें ना हो।"..
"सही है आर्य। जैसे कि नेगेटिव सेक्स अट्रैक्शन। हाय क्लास में आज अंजलि को देखा था। ऐसा लग रहा था साइज 32 हो गए है। साला उसके ऊपर कौन हाथ साफ कर रहा पता नहीं, लेकिन साइज बराबर बढ़ रहे है। और जितनी बढ़ रही है, वो दिन प्रतिदिन उतनी ही सेक्सी हुई जा रही है।"…
दोनो दोस्त बात करते हुए जंगल से गुजर रहे थे, तभी पुलिस रेडियो से आती आवाज ने उन्हे चौकाया…. "ऑल टीम अलर्ट, कंचनजंगा जाने वाले रास्ते से एक सैलानी गायब हो गई है। सभी फोर्स वहां के जंगल में छानबीन करें। रिपीट, एक सैलानी गायब है, तुरंत पूरी फोर्स जंगल में छानबीन करे।"… पुलिस कंट्रोल रूम से एक सूचना जारी किया जा रहा था।
निशांत, गंगटोक अस्सिटेंट कमिश्नर राकेश नाईक का बेटा था। अक्सर वो अपने साथ पुलिस की एक वाकी रखता था। वाकी पर अलर्ट जारी होते ही….
निशांत:— आर्य, हम तो 15 मिनट से इन्हीं रास्तों पर है, तुमने कोई हलचल देखी क्या?"..
आर्यमणि, अपनी साइकिल में ब्रेक लगाते… "हो सकता है पश्चिम में गए हो, लोपचे के इलाके में, और वहीं से गायब हो गए हो।"
निशांत:- हां लेकिन उस ओर जाना तो प्रतिबंधित है, फिर ये सैलानी क्यों गए?
आर्यमणि और निशांत दोनो एक दूसरे का चेहरा देखे, और तेजी से साइकिल को पश्चिम के ओर ले गए। दोनो 2 अलग-अलग रास्ते से उस सैलानी को ढूंढने लगे और 1 किलोमीटर की रेंज वाली वाकी से दोनो एक दूसरे से कनेक्ट थे। दोनो लोपचे के इलाके में प्रवेश करते ही अपने साइकिल किनारे लगाकर पैदल रस्तो की छानबीन करने लगे।
"रूट 3 पर किसी लड़की का स्काफ है आर्य"…. निशांत रास्ते में पड़ी एक स्काफ़ उठाकर देखते हुए आर्य को सूचना दिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। तभी निशांत को अपने आसपास कुछ आहट सुनाई दी। एक जानी पहचानी आहट और निशांत अपनी जगह खड़ा हो गया। वाकी के दूसरे ओर से आर्यमणि भी वो आहट सुन सकता था। आर्यमणि निशांत को आगाह करते.…. "निशांत, बिल्कुल हिलना मत। मै इन्हे डायवर्ट करता हूं।"…
निशांत बिलकुल शांत खड़ा आहटो के ओर देख रहा था। घने जंगल के इस हिस्से के खतरनाक शिकारी, लोमड़ी, गस्त लगाती निशांत के ओर बढ़ रही थी, शायद उसे भी अपने शिकार की गंध लग गई थी। तभी उन शांत फिजाओं में लोमड़ी कि आवाज़ गूंजने लगी। यह आवाज कहीं दूर से आ रही थी जो आर्यमणि ने निकाली थी। निशांत खुद से 5 फिट आगे लोमड़ियों के झुंड को वापस मुड़ते देख पा रहा था।
जैसे ही आर्यमणि ने लोमड़ी की आवाज निकाली पूरे झुंड के कान उसी दिशा में खड़े हो गए, और देखते ही देखते सभी लोमड़ियां आवाज की दिशा में दौड़ लगा दी।… जैसे ही लोमड़ियां हटी, आर्यमणि वाकी के दूसरे ओर से चिल्लाया.…. "निशांत, तेजी से लोपचे के खंडहर काॅटेज के ओर भागो... अभी।"
निशांत ने आंख मूंदकर दौड़ा। लोपचे के इलाके से होते हुए उसके खंडहर में पहुंचा। वहां पहुंचते ही वो बाहर के दरवाजे पर बैठ गया और वहीं अपनी श्वांस सामान्य करने लगा। तभी पीछे से कंधे पर हाथ परी और निशांत घबराकर पीछे मुड़ा…. "अरे यार मार ही डाला तूने। कितनी बार कहूं, जंगल में ऐसे पीछे से हाथ मत दिया कर।"
आर्यमणि ने उसे शांत रहने का इशारा करके सुनने के लिए कहा। कानो तक बहुत ही धीमी आवाज़ पहुंच रही थी, हवा मात्र चलने की आवाज।… दोनो दोस्तों के कानो तक किसी के मदद की पुकार पहुंच रही थी और इसी के साथ दोनो की फुर्ती भी देखने लायक थी... "रस्सी निकाल आर्य, आज इसकी किस्मत बुलंदियों पर है।"..
दोनो आवाज़ के ओर बढ़ते चले गए, जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे आवाज़ साफ होती जा रही थी।… "आर्य ये तो किसी लड़की की आवाज़ है, लगता है आज रात के मस्ती का इंतजाम हो गया।".. आर्यमणि, निशांत के सर पर एक हाथ मारते तेजी से आगे बढ़ गया। दोनो दोस्त जंगल के पश्चिमी छोड़ पर पहुंच गए थे, जिसके आगे गहरी खाई थी।
ऊंचाई पर बसा ये जंगल के छोड़ था, नीचे कई हजार फीट गहरी खाई बनाता था, और पुरे इलाके में केवल पेड़ ही पेड़। दोनो खाई के नजदीक पहुंचते ही अपना अपना बैग नीचे रखकर उसके अंदर से सामान निकालने लगे। इधर उस लड़की के लगातार चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी….. "सम बॉडी हेल्प, सम बॉडी हेल्प, हेल्प मी प्लीज।"…
निशांत, आर्यमणि के कान में धीमे से…. "ये तो अनुभवी है रे। मज़ा आएगा।"
आर्यमनी, बिना उसकी बातों पर ध्यान दिए हुए रस्सी के हुक को पेड़ से फसाने लगा। इधर जबतक निशांत ड्रोन कैमरा से दिव्य की वर्तमान परिस्थिति का जायजा लेने लगा। लगभग 12 फिट नीचे वो एक पेड़ की साखा पर बैठी हुई थी। निशांत ने फिर उसके आसपास का जायजा लिया।… "ओ ओ.… जल्दी कर आर्य, एक बड़ा शिकारी मैडम के ओर बढ़ रहा है।"..
आर्यमणि, निशांत की बात सुनकर मॉनिटर स्क्रीन को जैसे ही देखा, एक बड़ा अजगर दिव्या की ओर बढ़ रहा था। आर्यमणि रस्सी का दूसरा सिरा पकड़कर तुरंत ही खाई में उतरने के लिए आगे बढ़ गया। निशांत ड्रोन की सहायता से आर्यमणि को दिशा देते हुए दिव्या तक पहुंचा दिया। दिव्या यूं तो उस डाल पर सुरक्षित थी, लेकिन कितनी देर वहां और जीवित रहती ये तो उसे भी पता नहीं था।
किसी इंसान को अपने आसपास देखकर दिव्या के डर को भी थोड़ी राहत मिली। लेकिन अगले ही पल उसकी श्वांस फुल गई दम घुटने लगा, और मुंह ऐसे खुल गया मानो प्राण मुंह के रास्ते ही निकलने वाले हो। जबतक आर्यमणि दिव्या के पास पहुंचता, अजगर उसकी आखों के सामने ही दिव्या को कुंडली में जकड़ना शुरू कर चुका था। अजगर अपना फन दिव्या के चेहरे के ऊपर ले गया और एक ही बार में इतना बड़ा मुंह खोला, जिसमे दिव्या के सर से लेकर ऊपर का धर तक अजगर के मुंह में समा जाए।
आर्यमणि ने तुरंत उसके मुंह पर करंट गन (स्टन गन) फायर किया। लगभग 1200 वोल्ट का करंट उस अजगर के मुंह में गया और वो उसी क्षण बेहोश होकर दिव्या को अपने साथ लिए खाई में गिरने लगा। अर्यमानी तेजी दिखाते हुए वृक्ष के साख पर अपने पाऊं जमाया और दिव्या के कंधे को मजबूती से पकड़ा।
वाजनी अजगर दिव्या के साथ साथ आर्यमणि को भी नीचे ले जा रहा था। आर्यमणि तेजी के साथ नीचे जा रहा था। निशांत ने जैसे ही यह नजारा देखा ड्रोन को फिक्स किया और रस्सी के हुक को सेट करते हुए…. "आर्य, कुंडली खुलते ही बताना।"
आर्यमणि का कांधा पुरा खींचा जा रहा था, और तभी निशांत के कान में आवाज़ सुनाई दी… "अभी"… जैसे ही निशांत ने आवाज़ सुनी उसने हुक को लॉक किया। अजगर की कुंडली खुलते ही वो अजगर कई हजार फीट नीचे की खाई में था और आर्यमणि दिव्या का कांधा पकड़े झुल रहा था।
निशांत ने हुक को खींचकर दोनो को ऊपर किया। ऊपर आते ही आर्यमणि जमीन पर दोनो हाथ फैलाकर लेट गया और निशांत दिव्या के सीने को पुश करके उसकी धड़कन को सपोर्ट करने लगा।… "आर्य, शॉक के कारण श्वांस नहीं ले पा रही है।"..
आर्यमानी:- मुंह से हवा दो, मै सीने को पुश करता हूं।
निशांत ने मुंह से फूंककर हवा देना शुरू किया और आर्यमणि उसके सीने को पुश करके स्वांस बाहर छोड़ने में मदद करने लगा। चौंककर दिव्या उठकर बैठ गई और हैरानी से चारो ओर देखने लगी। निशांत उसके ओर थरमस बढ़ाते हुए… "ग्लूकोज पी लो एनर्जी मिलेगी।"..
दिव्या अब भी हैरानी से चारो ओर देख रही थी। उसकी धड़कने अब भी बढ़ी हुई थी। उसकी हालत को देखते हुए… "आर्य ये गहरे सदमे में है, इसे मेडिकल सपोर्ट चाहिए वरना कोलेप्स कर जाएगी।"
आर्यमणि:- हम्मम । मै कॉटेज के पास जाकर वायरलेस करता हूं, तुम इसे कुछ पिलाओ और शांत करने की कोशिश करो।
निशांत:- इसे सुला ही देते है आर्य, जितनी देर जागेगी उतना ही इसके लिए रिस्क हैं। सदमे से कहीं ब्रेन हम्मोरेज ना कर जाए।
आर्यमणि:- हम्मम। ठीक है तुम बेहोश करो मै वायरलेस भेजता हूं।
निशांत ने अपने बैग से क्लोरोफॉर्म निकाला और दिव्या के नाक से लगाकर उसे बेहोश कर दिया। कॉटेज के पास पहुंचकर आर्यमणि ने वायरलेस से संदेश भेज दिया, और वापस निशांत के पास आ गया।
निशांत:- आर्य ये मैडम तो बहुत ही सेक्सी है यार।
आर्यमणि:- मैंने शुहोत्र को देखा, लोपचे कॉटेज में। घर के पीछे किसी को दफनाया भी है शायद।
निशांत, चौंकते हुए… "शूहोत्र लोपचे, लेकिन वो यहां क्या कर रहा है। तू कन्फर्म कह रहा है ना, क्योंकि 6 साल से उसका परिवार का कोई भी गंगटोक नहीं आया है। और आते भी तो एम जी मार्केट में होते, यहां क्या लोमड़ी का शिकार करने आया है।"
"तुम दोनो को यहां आते डर नहीं लगता क्या?"… पुलिस के एक अधिकारी ने दोनो का ध्यान अपनी ओर खींचा।
निशांत:- अजगर का निवाला बन गई थी ये मैडम, बचा लिया हमने। आप सब अपना काम कीजिए हम जा रहे है। वैसे भी यहां हमारा 1 घंटा बर्बाद हो गया।
पुलिस की पूरी टीम पहुंचते ही आर्यमणि और निशांत वहां से निकल गए। रास्ते भर निशांत और आर्यमणि, सुहोत्र लोपचे और लोपचे का जला खंडहर के बारे में सोचते हुए ही घर पहुंचा। दिमाग में यही ख्याल चलता रहा की आखिर वहां दफनाया किसे है?
दोनो जबतक घर पहुंचते, दोनो के घर में उनके कारनामे की खबर पहुंच चुकी थी। सिविल लाइन सड़क पर बिल्कुल मध्य में डीएम आवास था जो कि आर्यमणि का घर था और उसके पापा केशव कुलकर्णी गंगटोक के डीएम। उसके ठीक बाजू में गंगटोक एसीपी राकेश नईक का आवास, जो की निशांत का घर था।
एसीपी और डीएम, दोनो ही अधिकारी लगभग 4 साल से यहां कार्यरत थे। इससे पहले दोनो एक साथ सिक्किम के अन्य इलाकों में भी थे। राकेश नाईक तब से केशव कुलकर्णी के पीछे था जब से वो एसपी था। 6 महीने के अंतर में दोनो का तबादला लगभग एक ही जगह पर हो जाता था। हां लेकिन एक बात जो जग जाहिर थी, कुलकर्णी जी की कभी भी नाईक के साथ नहीं बनी, जबकि उन दोनों को छोड़कर पूरे परिवार में बनती थी।
आर्यमणि और निशांत दोनो लगभग एक ही उम्र के थे और बचपन के साथी। ट्रांसफर और सुदूर इलाकों में जाने की वजह से दोनो दोस्तो के पढ़ाई पर थोड़ा असर तो पड़ा था, लेकिन घर के माहौल के कारण दोनो ही लड़के पढ़ाई में अच्छे थे। आर्यमणि जैसे ही साइकिल लगाकर अपने घर में घुसने लगा, उसकी मां जया कुलकर्णी दरवाजे पर ही उसका रास्ता रोके… "फिर आज जंगल के रास्ते वापस आए?"..
आर्यमणि, छोटी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते… "सही समय पर पहुंच गए इसलिए जान बच गई।"..
जया:- और मेरी जान अटक गई। कितनी बार बोली हूं कि मत ऐसे किया कर। पुलिस है, प्रशाशन है, इतने सारे लोग है, लेकिन तू है कि जबतक अपने पापा की डांट ना सुन ले, तबतक तेरा खाना नहीं पचता। मै तुझसे कुछ कह रही हूं आर्य। हद है जब कुछ कहो तो कमरे में जाकर पैक हो जाता है।
आर्यमणि अपनी मां की बात को सुनते-सुनते अपने कमरे में पहुंच गया था और आराम से दरवाजा लगा लिया। रात के वक़्त वो जैसे ही सबके साथ खाने के लिए बैठा…. "मै कल ही तुम्हे नागपुर भेज रहा हूं।".. केशव पहला निवाला लेते हुए आर्यमणि से कहा…
जया:- अभी तो 11th में गया है। हमने 12th के बाद इंजीनियरिंग के लिए प्लान किया था...
केशव:- नहीं अब वहीं पढ़ेगा। इंजिनियरिंग में एडमिशन हुआ तो ठीक, वरना नागपुर से डिग्री कंप्लीट करके अपनी आगे की जिंदगी देखेगा। और ये फाइनल है। सुना तुमने आर्य।
आर्यमणि:- 12th तक इंतजार कर लीजिए पापा, फिर नागपुर में ही एडमिशन लूंगा।
केशव:- क्यों अभी जाने में क्या हर्ज है?
आर्यमणि:- मै पहले 12th तो कर लूं...
केशव:- हां तो कल से तुम कार से जाओगे और कार से आओगे।
आर्यमणि:- पापा आप ओवर रिएक्ट कर रहे है। इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके है।
आर्यमणि अपनी बात कहकर खाने लगा और केशव गुस्से में लगातार बोले जा रहा था। उसे शांत करवाने के चक्कर में बेचारी जया पति और बेटे के बीच में पिसती जा रही थी। आर्यमणि अपनी छोटी सी बात समाप्त कर आराम से खाकर अपने कमरे में चला गया।
रात के तकरीबन 12 बजे आर्यमणि के खिकड़ी पर दस्तक हुआ। आर्यमणि अपना पीछे का दरवाजा खोला और निशांत अंदर…. "यार उस वक़्त तूने सस्पेंस में ही छोड़ दिया। बता ना क्या तूने सच में वहां शूहोत्र को देखा।".. आर्यमणि ने हां में सर हिलाकर उसे जवाब दिया।
निशांत:- सुन, कल सीएम ने एक छोटी सी पार्टी रखी है। लगता है शूहोत्र लोपचे उसी उसी पार्टी के लिए आया हो। कुछ दिन पहले आकर अपना पैतृक घर देखने चला गया हो, जहां कभी उसका बचपन बीता था।
आर्यमणि:- नहीं, उसकी आखें अजीब थी। वहां ताज़ा खुदाई हुई थी। वो 6 साल बाद जर्मनी से यहां क्या करने आया होगा?
निशांत:- मैत्री को फोन क्यों नहीं लगा लेता?
आर्यमणि:- कुछ तो अजीब है निशांत, मैत्री 6 महीने से कोई मेल नहीं की। जबकि आखरी बार जब उससे बात हुई थी तब वो अपने इंडिया आने के बारे में बता रही थी। वो तो नहीं आयी लेकिन शूहोत्र आ गया। कल सब सीएम की पार्टी में जाएंगे ना?
निशांत:- तू कहीं जंगल जाने के बारे में तो नहीं सोच रहा।
आर्यमणि:- हां ..
निशांत:- वो सब तो ठीक है लेकिन मेरी पागल दीदी का क्या करेंगे, वो तो कल घर पर ही रहेगी। मेरा बाप तो आज ही मुझे कालापानी भेजने वाला था, मम्मी और क्लासेज ने बचा लिया। कल कहीं मेरी दीदी को भनक भी लगी और मेरे बाप से जाकर चुगली कर दी, फिर तो अपना यहां से टिकट कट जाएगा।
आर्यमणि:- मैं शाम 7 बजे निकल जाऊंगा। साथ आना हो तो मुझे जंगल के रास्ते पर 7 बजे मिल जाना। चित्रा को वैसे बेहोश भी कर सकते हो।
निशांत:- कल लगता है तूने सुली पर चढाने का इंतजाम कर दिया है। अच्छा सुन उस दिव्या मैडम से मेहनताना नहीं लिया यार। कल दिन मे उसके होटल से भी हो आते है।
आर्यमणि:- हम्मम !
निशांत:- मै जा रहा हूं, सुबह मिलता हूं।
निशांत और चित्रा 2 मिनट के छोटे बड़े, और दोनो ही एक दूसरे से झगड़ते रहते। बस इन दोनों के शांत रहने की कड़ी आर्यमणि था, क्योंकि आर्यमणि दोनो का ही खास दोस्त था। अगली सुबह चित्रा सीधा आर्यमणि से मिलने पहुंची। हॉल में उसे ना देखकर सीधा उसके कमरे में घुस गई। आर्यमणि अपने बिस्तर पर लेटा फिजिक्स की किताब को खोले हुए था। चित्रा गुस्से में तमतमाती... "कल के तुम्हारे कारनामे की वीडियो देखी, तुम्हे जारा भी अक्ल है कि नहीं।"..
आर्यमणि:- सॉरी चित्रा, जरा सी देरी होती तो उस लेडी की जान चली गई होती...
चित्रा:- दोनो क्यों जंगल से आते हो? घर के लोग इतना मना करते हैं फिर भी नहीं सुनते?
आर्यमणि:- तुम कल रात छिपकर हमारी बातें सुन रही थी?
चित्रा:- हां सुनी भी और शख्त हिदायत भी दे रही हूं... आज जंगल मत जाना। देखो आर्य, अगर आज तुमने वहां जाने की सोची भी तो मै तुमसे कभी बात नही करूंगी।
आर्यमणि:- ज्यादा स्ट्रेस ना लो। मैंने मन बना लिया है और मै जाऊंगा ही।
चित्रा:- पागलपन की हद है ये तो, आज पूर्णिमा है और तुम जानते हो आज की रात लोमड़ी कितनी आक्रमक होती है।
आर्यमणि:- हां मै जानता हूं और उसकी पूरी तैयारी मैंने कर रखी है। अब तुम जाओ यहां से और मुझे परेशान नहीं करो।
चित्रा:- ठीक है फिर ऐसी बात है तो मै तुम्हारे आज जंगल जाने की बात सबको बता ही देती हूं।
आर्यमणि:- ठीक है नहीं जाऊंगा। अब जाओ यहां से।
चित्रा:- मुझे भरोसा नहीं, खाओ मेरी कसम।
आर्यमणि:- आज शाम 7 बजे मै तुम्हारे पास रहूंगा। खुश.. अब जाओ यहां से।
चित्रा, बाहर निकलती… "मै इंतजार करूंगी तुम्हारा आर्य।"..
सुबह के लगभग 11 बजे। दिन की हल्की खिली धूप में दोनो दोस्त अपने साइकिल उठाए, शहर के सड़कों से होते हुए होटल पहुंच गए, जहां दिव्या अपने हसबैंड के साथ ट्रिप पर आयी थी। कमरे की बेल बजी और दरवाजा खुलते ही... दिव्या उन दोनों को देखकर पहचान गई… "तुम वही हो ना जिसने कल मेरी जान बचाई थी।"…. दिव्या दोनो को अंदर लेती हुई दरवाजा बंद कि और बैठने के लिए कहने लगी।
निशांत:- आप तो कल काफी सदमे में थी, इसलिए मजबूरी में मुझे आपको बेहोश करना पड़ा। अभी कैसी है आप?
दिव्या:- कैसी लग रही हूं?
निशांत, खुश होते हुए…. "बिल्कुल मस्त लग रही है।"
आर्यमणि:- कल जंगल के उस इलाके में आप क्या करने गई थी? और वहां तक पहुंची कैसे?
दिव्या:- "हमारा पूरा ग्रुप टूर गाइड के साथ कंचनजंगा के ओर जा रहे थे। तभी सड़क पर कई सारे जंगली जानवर आ गए। उन्हें देखकर ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दिया और हम सबको बिल्कुल ख़ामोश रहने के लिए कहा। इतने में ही एक जानवर धराम से कार के बोनट पर कूद गया और मेरी चींख निकल गई।"
"जैसे ही मै चिंखी जानवर हमारी गाड़ी पर हमला कर दिए। मै डर के मारे सड़क पर भागने के बदले उल्टा जंगल के अंदर ही भाग गई। जब मै जंगल में थोड़ी दूर अंदर गई तभी एक लोमड़ी आकर मुझ से टकरा गई, और मै नीचे जमीन में गिर गई।"
"मेरे तो प्राण हलख में आ गए। जब मै हिम्मत करके नजर उठाई तो दूर 2 जानवर लड़ रहे थे। कोहरे के करण साफ तो नहीं दिख रहा था, लेकिन हो ना हो मुझे कौन खाएगा उसकी लड़ाई जारी थी। मेरे पास अच्छा मौका था और मैंने दौर लगा दिया। दौड़ती गई दौड़ती गई, ये भी नहीं पता था कि कहां दौर रही हूं। इतने हरा भरा जंगल था कि मै तो सीधा खाई में ही आगे पाऊं बढ़ा दी। वो तो अच्छा हुए की एक टाहनी में मेरा कॉलर फस गया और मै किसी तरह पेड़ की निचली साखा पर जाकर बैठ गई।"
आर्यमणि:- हम्मम!
निशांत:- तुम्हारे पति और वो टूर गाइड कहां है।
दिव्या:- मेरे हबी का हाथ फ्रैक्चर हो गया और वो अभी हॉस्पिटल में ही है। एक हफ्ते में डिस्चार्ज मिलेगा। घर संदेश भेज दिया है, उनके डिस्चार्ज होते ही हम लौट जाएंगे। तुम दोनो को दिल से आभार। यदि तुम ना होते तो वो अजगर मुझे निगल चुका होता। देखो मै भी ना.. तुम दोनो बैठो मै तुम्हारे लिए कॉफी बुलवाती हूं। और हां प्लीज तुम दोनो मेरे हब्बी से जरूर मिलने चलना, तुम्हे देखकर वो खुश हो जाएंगे।
निशांत:- मैडम, रुकिए मै यहां कॉफी पीने नहीं आया हूं। बल्कि कल की मेहनत का भुगतान लेने आया हूं।
दिव्या:- मतलब मै समझी नहीं। क्या तुम कहना चाह रहे हो, जान बचाने के बदले तुम्हे पैसे चाहिए?...
निशांत:- नहीं पैसे नहीं अपनी मेहनत का भुगतान। देखिए मैडम आप इतना जो धन्यवाद कह रही है उस से अच्छा है मेरे लिए कुछ करके अपने एहसान उतार दीजिए और यहां के वादियों लुफ्त उठाइए।
दिव्या, निशांत को खा जाने वाली नज़रों से घूरती हुई…. "कहना क्या चाहते हो, साफ साफ कहो।"
आर्यमणि:- वो कहना चाहता है, उसने आपकी जान बचाई बदले में आप कपड़े उतारकर उसे मज़े करने दीजिए और एहसान का बदला चुका दीजिए।
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या निशांत को एक थप्पड़ लगाती हुई…. "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की। खुद को देखो, शक्ल पर मूंछ तक ठीक से नहीं आयि है और अपनी से बड़ी औरत के साथ ऐसा करने का ख्याल, छी... कौन सी गंदगी मे पले हो। मैं तो तुम्हें अच्छा लड़का समझती थी, लेकिन तुम दोनो तो कमिने निकले।"
आर्यमणि:- दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता। हम आपके काम आए बदले में आपको हम अपना काम करने कह रहे हैं। आप नहीं कर सकती तो हंसकर माना कर दीजिए, हमे जज मत कीजिए।
दिव्या:- तुम दोनो पागल हो क्या? तुम समझ भी रहे हो तुम लोग क्या कह रहे हो? यदि मेरी जान नहीं बचाई होती तो अब तक धक्के मार कर बाहर निकाल चुकी होती।
आर्यमणि:- रुकिए !!! आराम से 2 मिनट जरा सही—गलत पर बात कर लेते है फिर हम चले जाएंगे। मुझे तुम में कोई इंट्रेस्ट नहीं इसलिए तुम मेरे सवालों का जवाब शांति से देना, तुम्हारी जान बचाने का मेंहतना।
दिव्या:- हम्मम। ठीक है..
आर्यमणि:- तुम्हारे जगह तुम्हारा पति होता और हमारी जगह कोई लड़की। और वो लड़की ये प्रस्ताव रखती तो क्या तुम्हारे पति का भी यही जवाब होता।
दिव्या, चिढ़कर… "पता नहीं।"..
आर्यमणि:- जिस पति के लिए तुम वफादार हो, यदि कल तुम मर जाती तो क्या वो दूसरी शादी नहीं करेगा या किसी दूसरी औरत के पास नहीं जायेगा?
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या कुछ सोच में पड़ गई। तभी उसने आखरी सवाल पूछ लिया… "क्या तुम्हे यकीन है, तुम्हारी गैर हाजरी में यदि तुम्हारे पति को यही ऑफर कोई लड़की देती, तो वो मना कर पाता?"..
आर्यमणि की बात सुनकर दिव्या ने कोई जवाब नहीं दिया। वो केवल अपने सोच में ही डूबी रही, इधर निशांत खड़ा होकर दिव्या को एक थप्पड़ मारते…
"थप्पड़ का बदला थप्पड़। कन्विंस करके हम किसी के साथ कुछ नहीं करते। ये हमारे वसूलों के खिलाफ है। बस तुमने हमे अच्छे और बुरे के तराजू में तौला इसलिए इतना आइना दिखाना पड़ा, वरना हंसकर केवल इतना कह देती सॉरी मुझेस नहीं हो पाएगा, मेरी अंतर आत्मा नहीं मानेगी। अपनी वफादारी खुद के लिए रखो, किसी दूसरे के लिए नहीं। बाय—बाय मैडम।"…
निशांत बाहर निकलते ही… "हमने कुछ ज्यादा तो नहीं सुना दिया आर्य।"..
आर्यमणि:- जाने भी दे शाम पर फोकस करते है।
शाम के लगभग 6 बजे सिविल लाइन से जैसे अधिकारियों का पूरा काफिला ही निकल रहा हो। उन लोगो के जाते ही आर्यमणि और निशांत भी अपनी तैयारियों में लग गए, साथ मे चित्रा पर भी नजर दिए हुए थे। 6.30 बजे के करीब आर्यमणि, चित्रा के कमरे में पहुंचा। चित्रा आराम से बिस्तर पर टेक लगाए अपना मोबाइल देख रही थी।
जैसे ही किसी के आने की आहट हुई, चित्रा मोबाइल के होम स्क्रीन बटन दबाई और हथेली को चेहरे पर फिरा कर अपने भाव छिपाने लगी…. "क्या मिलता है तुम्हे इरॉटिका पढ़कर, कितनी बार मना किया हूं।".. आर्यमणि भी चित्रा के हाव भाव समझते पूछने लगा...
चित्रा:- सॉरी वो घर पर कोई नहीं था तो.. मुझे ध्यान ही नहीं रहा तुम्हारा।
आर्यमणि:- हम्मम ! तुम्हारे चेहरे पर कुछ लगा है।
चित्रा:- कहां..
आर्यमणि:- लेफ्ट में थोड़ा ऊपर..
चित्रा:- कहां .. यहां..
"रुको मै ही साफ कर देता हूं।".. कहते हुए आर्यमणि ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और बड़ी सफाई से क्लोरोफॉर्म सुंघाकर चित्रा को बेहोश कर दिया। उसे बेहोश करने के बाद आर्यमणि, निशांत के साथ निकला। दोनो साइकिल लेकर जंगल वाले रास्ते पर चल दिए।
कुछ दूर आगे चलने के बाद दोनो एक मालवाहक टेंपो के पास रुक गए, जहां उस टेंपो का मालिक पिंटो खड़ा था… "तुम दोनो छोकड़ा लोग आज क्यूं रिस्क ले रहा है मैन। पूर्णिमा की रात जंगल जाना खतरनाक है। हमने तुमको गाड़ी दिया यदि तुम्हारे फादर को खबर लगी तो वो मेरी जान निकाल लेंगे।"
निशांत अपनी साइकिल टेंपो में रखते हुए… "पिंटो रात को यहां से अपनी ट्रक ले जाना, हम वापस लौटने से पहले कॉल कर देंगे।"..
आर्यमणि टेंपो चलाने लगा, और निशांत पीछे जाकर खड़ा हो गया। जंगल के थोड़ा अंदर घुसते ही… "आर्य रोक यहां।"… टेंपो जैसे ही रुकी निशांत ने पेड़ की डाल से ताजा मांस का एक टुकड़ा बांध दिया। ना ज्यादा ऊपर ना ज्यादा नीचे। ऐसे ही करते हुए निशांत ने लगभग 50 टुकड़े जंगल के अलग-अलग इलाकों मे बांधने के बाद सीधा लोपचे के पुराने कॉटेज के पास पहुंचे।
आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
आर्यमणि टार्च लेकर आगे बढ़ा और निशांत उसके पीछे-पीछे। दोनो कॉटेज के पीछे एक जगह पर खड़े हो गए और वहां की मिट्टी को खोदना शुरू किया।…. "हां यार ये तो ताजी खुदाई है।"… दोनो जल्दी-जल्दी खोदने लगे तभी आर्यमणि ने हाथ के इशारे से काम रोकने कहा… काम रोकते ही, वहां का पूरा माहोल शांत और किसी इंसान की बिलकुल धीमी आवाज सुनाई देने लगी। कॉटेज के खंडहर से बहुत ही धीमे किसी के दर्द भरी कर्रहट सुनाई दे रही थी। आवाज सुनकर दोनो एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे।
"आर्य तू खोद मैं खंडहर में देखता हूं।".. निशांत अपनी बात कहकर कॉटेज के ओर चल दिया, इधर बस 1 मिनट की खुदाई के बाद ही अंदर जो दफन था वो आंखों के सामने था... गहरा सदमा जैसे दफन था। गहरा आश्चर्य सा दफन था जैसे। आर्यमणि ने एक झलक मात्र तो देखा था और सदमे से वो चित गिड़ा। आर्यमणि को गहरा सदमा लगा। वह बेसुध होकर जमीन पर गिर गया और मुंह से बस मैत्री ही निकला.…
अंदर मैत्री की लाश थी, वो भी आधी। कमर के नीचे का पूरा हिस्सा गायब था और सीने पर वही लॉकेट रखा हुआ था जो मैत्री हमेशा पहना करती थी। आर्यमणि हैरानी से मैत्री को देखते हुए उसका चेहरे पर हाथ फेरने लगा। हाथ फेरने के क्रम में उसने वो लॉकेट जैसे ही अपने हाथ में लिया… कुछ अजीब सा नजारा आर्यमणि की आखों ने देखा। बिल्कुल सोच से परे। इससे पहले की आर्यमणि कुछ और सोचता, निशांत अंदर खंडहर से चिल्लाने लगा। आर्यमणि लॉकेट वापस रखकर गड्ढे को भड़ दिया और निशांत के पास पहुंचा।
आर्यमणि खंडहर में जैसे ही पहुंचा, वहां का नजारा भी बहुत अजीब था। एक बड़ा सा सरिया शूहोत्र के सीने में घुसा हुआ था। शूहोत्र की आंख हल्की खुली हुई और मुंह से दबी हुई दर्द भरी चींख निकल रही थी। शायद अपने दर्द पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था। आर्यमणि शूहोत्र के सर पर हाथ रखते हुए निशांत को देखने लगा… "यार, इसे कौन यहां सुलाकर चला गया।"
दूसरी ओर निशांत अपना पूरा बैग खोल चुका था। आर्यमणि ने तुरंत शूहोत्र का ब्लड प्रेशर चेक किया… "निशांत ब्लड प्रेशर बढ़ा है, टैबलेट निकाल।"… ब्लड प्रेशर कम करने की टैबलेट निकालकर.… शूहोत्र इसे अपने जीभ के नीचे रखो, हम ये सरिया निकालने वाले है।" ..
शूहोत्र सहमति में अपना सर हिला दिया। टैबलेट उसके जीभ के नीचे डालकर, दोनो कुछ देर रुके फिर निशांत सुहोत्र का सर अपने हाथ से पकड़कर… "हम सरिया निकालने वाले है, तुम तैयार हो।"
जैसे ही शूहोत्र ने सहमति में सिर हिलाया, आर्यमणि और निशांत की नजरे भी एक दूसरे से सहमति बना रही थी। आर्यमणि शूहोत्र के मुंह में कपड़े का टुकड़ा पुरा ठूंसकर, निशांत को इशारा किया। निशांत पुरा जोड़ लगाकर सरिया को खींचने लगा। सरिया नीचे से जमीन के अंदर घुसे होने के कारण धीरे–धीरे निकल रहा था और इसी के साथ शूहोत्र की पीड़ा भी अपने चरम पर थी। ऐसा लग रहा था दर्द से उसकी आंख बाहर निकल आएगी।
शूहोत्र चिंख़ने के लिए पुरा गला फाड़ रहा था लेकिन मुंह में कपड़ा और कपड़े के बीच में आर्यमणि के हाथ होने के कारण, उसकी चींख गले में ही अटकी हुई थी। तभी अचानक शूहोत्र की आखें बिल्कुल पीली हो गई, कपड़े के बीच में घुसा हुआ आर्यमणि का टेढ़ा किया हुआ हाथ में ऐसा लगा जैसे किसी ने काफी नुकीली कील घुसाकर हथेली फाड़ दी हो।
सरिया निकालने के साथ ही शूहोत्र बेहोश हो गया और आर्यमणि तेज चिंख्ते हुए अपनी कलाई झटका और अपना हाथ शूहोत्र के मुंह से बाहर निकाला। आर्यमणि ने जैसे ही हाथ झटका खून कि बूंद निशांत के चेहरे पर गई… "आर्य तुझे चोट कैसे लगी।"..
आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते हुए, टॉर्च की रौशनी को कलाई से ढक दिया…. "शूहोत्र को कोई मारने आया है, टॉर्च बंद कर।"…
तभी शूहोत्र आर्यमणि को खींचकर, उसका कान अपने होंठ के पास लाते…. "अभी समझने का वक़्त नहीं, यहां पुलिस बुलाओ, वरना तुम दोनो नहीं बचोगे। ये लोग प्रोफेशनल है, और अब तक पूरे जंगल में ट्रैप वायर बिछा चुके होंगे।"..
आर्यमणि:- निशांत ये लोग प्रोफेशनल है और जंगल में पुरा ट्रापवायर लगा है।
निशांत:- वायरलेस कर दे क्या?
आर्यमणि:- नहीं उन सबको खतरा हो सकता है। इसे लेकर हम छोटे रास्ते से जाएंगे। तुम बस शिकारी कुत्तों को भरमाने का इंतजाम करो।
निशांत:- समझो हो गया । तुम नीचे उतरने की व्यवस्था करो, मै इन शिकारी कुत्तों का इंतजाम करता हूं।
जंगल और यहां के शिकारियों से दोनो दोस्त काफी वाकिफ थे। इन्हे पता था कि जंगल के शिकारी, अपने शिकार के लिए शिकारी कुत्तों का इस्तमाल करते हैं जिसके सूंघने की क्षमता अद्भुत होती है।
इधर जबतक आर्यमणि ने छोटे रास्ते से जाने और 40 फिट नीचे खड़ी ढलान उतरने का इंतजाम किया, तबतक निशांत ने शिकारी कुत्तों के लिए जाल बुन दिया। कॉटेज से पीछे के ओर बढ़ने वाले पूरे रास्ते को, खून के अजीब गंध से भर दिया। जहां शूहोत्र को सरिया लगा था वहां पर भी खून को उड़ेल दिया, ताकि असली गंध शिकारी कुत्तों के नाक तक नहीं पहुंच पाए।
सब सेट हो गया था। जबतक ये दोनो शूहोत्र को लेकर निकलते, तबतक 20-25 टॉर्च की रौशनी उसी कॉटेज के ओर बढ़ रही थी। दोनो दोस्त ने उसे कंधे पर लादा और 40 फिट नीचे उतरकर, छोटे रास्ते से आगे बढ़ने लगे। खून की गंध ने उन छोटे रास्तों पर तो जैसे हलचल मचा रखा हो।
चारो ओर से आहट आने शुरू हो चुके थे। दोनो अपने साथ लाए छोटी सी मसाल जला लिए। वहां के जानवर आग और रौशनी देखकर कदम पीछे लेने लगे। लेकिन ये तो छोटे मोटे जानवर थे। रात का अंधेरा और इतना घने जंगल में जब खून कि बूंद गिरती हो तो भला शिकारी जानवरो को भनक क्यों ना लगे। देखते ही देखते तीनों को चारो ओर से लोमड़ीयां घेर चुकी थी। जैसे ही उनका पुरा झुंड ने तीनों को घेरा, लोमड़ियां तैयार हो चुकी थी हमला के लिए।
दर्द भरी आवाज़ में शूहोत्र कहने लगा…. "अंधेरा ही कर दो, और बढ़ते रहो। कोई जानवर हमला नहीं करेगा, ये मेरा वादा है। आगे एक किलोमीटर पर मेरी कार खड़ी है, जंगल से निकलकर सीधा एमजी हॉस्पिटल चलना।"
आर्यमणि ने विश्वास दिखाते हुए वहां अंधेरा कर दिया। निशांत और आर्यमणि दोनो को ऐसा लग रहा था मानो उसके साथ-साथ कई जानवर चल रहे है, लेकिन कोई हमला नहीं कर रहा।…. "कमाल है आर्य, पूर्णिमा की रात यहां की लोमड़ी आक्रमक नहीं है उल्टा हमारे साथ चल रही। ये ले एक और चमत्कार। कास कोहरे को छांटकर चांदनी की रौशनी आती तो मै देख पता कि यहां क्या हो रहा है?".. इधर शिकारियों का झुंड जैसे ही उस कॉटेज में पहुंचा, उनका मुखिया चिंखते हुए… "भाग गया वो कमीना। कैसे भी करके उसे ढूंढो। और खत्म कर दो।"
शिकारी कुत्तों को जैसे ही छोड़ा गया वो लोग दौड़ते हुए सीधा ट्रक पर पहुंच गए। वहां ट्रक को देखकर उनका मुखिया कहने लगा… "ओह तो हमारी जानकारी गलत थी, ये तो पूरी टीम के साथ आया है।"..
थोड़ी ही देर में वो लोग एमजी हॉस्पिटल में थे। शूहोत्र को इस हालत में देख तुरंत ही डॉक्टर इंड्रू गजमेर वहां पहुंची। शूहोत्र की हालत का जायजा लेकर उसे तुरंत ओटी में भेज दी और आर्यमणि के हाथ पर लगी पट्टी के नीचे बहते खून को देखती हुई कहने लगी…. "कव्या यहां आकर इस लड़के को अटेंड करो और इसकी चोट पर ड्रेसिंग करो।"… इंद्रू अपनी बात कहकर ओटी में निकल गई और काव्या, आर्यमणि को लेकर माइनर ओटी में चली आयी।
रात के तकरीबन 11.30 बज रहे थे। जैसे ही दोनो सिविल लाइन की सड़क से चलते हुए घर के ओर बढ़ रहे थे, सामने उनका रास्ता रोके चित्रा खड़ी थी…. "बाय आर्य, हम जा रहे हैं। यदि तुम मुझे बेहोश न करते तो शायद तुम्हे पता होता की पापा का ट्रांसफर हो चुका हैं। या फिर मेरे जाने का वैसे भी कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि जब हम दोस्त ही नही तो फिर मेरे यहां रहने या ना रहने से तुम्हे क्या फक्र पड़ेगा। अब फिर कभी मैं जंगल के लिए नहीं रोकूंगी। तुम अपने मन मर्जी की करते रहो।"
चित्रा अपनी बात कहकर, निशांत का हाथ पकड़ी और वहां से सीधा अपने घर में चली गई। आर्यमणि थोड़ा मायूस जरूर हुआ सुनकर, लेकिन वो चुपचाप अपने घर चला आया। सुबह का पूरा माहौल ही कौतुहल से भरा हुआ था, जब पुलिस फोर्स एक सूचना के आधार पर जंगल पहुंची और वहां उन्हें ट्रक लगी मिली।
गंगटोक की हॉट न्यूज बनी हुई थी क्योंकि 2 आदमी के मरने कि खबर थी और मौके पर ट्रक मिली। और ट्रक में मिली आर्यमणि और निशांत की साइकिल। मामला ये नहीं था कि इनपर किसी भी तरह का खून करने का इल्ज़ाम था, बस मामला ये था कि इतनी रात को आखरी किसकी सूचना पर ये दोनो जंगल गए थे और पुलिस को क्यों नहीं इनफॉर्म किया?
आर्यमणि पूरी कहानी बनाते हुए कहा दिया… "निशांत जाने वाला था और उसकी जिद की वजह से वो जंगल गया था। जंगल जाकर उसे सिकारियों के होने का अनुभव हुआ और साथ में ये भी आभाष हुआ कि ये शिकारी पूरे जंगल में ट्रैप लगाए है, इसलिए रात को पुलिस को सूचित नहीं किया। ताकि कोई केजुअल्टी ना हो और खुद छोटे सस्ते से वापस आ गया।"..
जब क्रॉस वेरिफिकेशन हुआ तब आर्यमणि की सारी बातें सच निकली, केवल उसने शुहोत्र की पूरी कहानी को गायब कर दिया। लेकिन एक आश्चर्य की बात और हो गई जो आर्यमणि को अंदर ही अंदर खाए जा रही थी… "पुलिस को कॉटेज के पास मैत्री की लाश क्यों नहीं मिली?"..
कुलकर्णी जी ने क्या क्लास लगाई आर्यमणि की। वो तो इतने आक्रोशित थे कि गुस्से में उन्होंने 4-5 चमेट भी लगा दिया। केशव और जया को तो सोचकर ही प्राण सूखे जा रहे थे कि कल रात कुछ भी उंच–नीच हो जाती तो आर्यमणि का क्या होता? दोनो ही दंपति अब तूल गए आर्यमणि को नागपुर भेजने।
आर्यमणि:- पापा, मम्मी, आप का गुस्सा सही लेकिन मै अभी गंगटोक छोड़कर नहीं जाऊंगा।
केशव, गुस्से में उसका गला पकड़कर दबाते हुए…. "क्यों नहीं जाएगा यहां से? या फिर हमे चिता पर लिटाने के बाद तुम्हे अक्ल आएगी, की हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते।"..
आर्यमणि:- हां मै जानता हूं आप मेरे बिना जी नहीं सकते और मै मैत्री के बिना। ये बात आप नहीं जानते थे क्या पापा? मैंने आपसे कहा भी था मुझे जर्मनी भेज दो, तब तो आपने मुझे नहीं भेजा। तब आपका स्वार्थ, आपका प्यार, आपका बेटे के प्रति जिम्मेदारी आ गई, फिर आज क्यों मुझे भेज रहे हो?
जया, एक थप्पड़ लगाती…. "अभी इतना बड़ा हो गया है तू.… अपने पापा से ऊंची आवाज में बातें कर रहा। एक लड़की के प्यार को हमारे भावनाओं से तुलना कर रहा। एक बात मै साफ-साफ कहे देती हूं आर्य, आज ही तू यहां से भूमि के पास जाएगा।
आर्यमणि:- एक थप्पड़ क्या 10 मार लो, लेकिन मै अभी यहां से कहीं नहीं जाऊंगा। आप दोनो को पता है मै कोई ज़िद्दी नहीं, और ना ही आप लोगों को दुखी देखना चाहता हूं। लेकिन कल रात जब मै जंगल गया तो पीछे कई सारे सवाल छूट गए। जबतक मै उन सवालों के जवाब नहीं ढूंढ लेता, मै कहीं नहीं जाऊंगा।
दोनो दंपत्ति बात कर ही रहे थे, तभी हॉस्पिटल से कॉल आ गया। आर्यमणि, के पास 2 गार्ड को तैनात करके केशव उनसे साफ कहता गया, "आर्य निकलने की कोशिश करे तो सीधा पाऊं मे गोली मार देना।"
अपनी बात कहकर केशव और जया सीधा हॉस्पिटल पहुंचे। डॉक्टर इंड्रू गजमेर केशव और जया को अपने साथ लिए गई, जहां सुहोत्र एडमिट था। शूहोत्र को देखकर दोनो दंपत्ति थोड़ा हैरान होते.… "तुम यहां क्या कर रहे हो"?
शूहोत्र:- कैसी बातें करते हो, तुम्हारे बेटे ने कुछ भी नहीं बताया क्या?
जया:- क्या नहीं बताया?
शूहोत्र:- मैत्री का कत्ल हो गया और कल रात जिन 2 की लाश मैंने गिराई वो शिकारी थे। बदले मे उसने मेरे सीने मे भी सरिया घुसा दिया था।
मैत्री के मरने की खबर से ही जया और केशव के होश उड़ गए। दोनो आर्यमणि की हालत का अब पूरा अंदाजा लगा सकते थे। उसके बदले व्यवहार के पीछे का कारण समझ में आ चुका था... जया, शुहोत्र को सवालिया नजरों से देखती... "भाग्यशाली रहे जो शिकारियों के हाथ से बच निकले.….
शूहोत्र:- हां लेकिन मैत्री उतनी भाग्यशाली नहीं थी। ओह हां, अभी तो तुम दोनो का बेटा पागल बना हुआ होगा ना, मैत्री के कातिलों को ढूंढने के लिए।
जया:- अपनी जुबान संभाल कर। मैत्री ना तो तुम लोगों जैसी थी और वो ना कभी हो सकती थी। उसके कत्ल का सुनकर हमारे अंदर भी वही चल रहा है जो तुम्हारे अंदर। लेकिन आर्य को दूर ही रखो.…
शूहोत्र:- दूर रखना है तो ध्यान से सुन लो, मुझे शिकारियों से बचाकर यहां से सुरक्षित निकालो। वरना मैं तो अब किसी विधि जर्मनी निकल ही जाऊंगा, लेकिन जाने से पहले आर्यमणि को वो ज्ञान देता चला जाऊंगा, जिसके शाये से तुम अपने बेटे को दूर रखना चाहते थे।
केशव:- तुम्हे कब निकालना है?
शूहोत्र:- काफी गहरा ज़ख्म मिला है मुझे भी, लेकिन 2 दिन बाद की फ्लाइट है और मैं निश्चित जाऊंगा।
जया:- जिसने भी मैत्री को मारा है, फिर चाहे जो कोई भी हो, मेरा वादा है उसे मैं देख लूंगी। हमारा पूरा परिवार जिन मामलों से दूर है, उसमे घसीटने की कोशिश भी मत करना।
शूहोत्र:- ऐसा होता तो तुम्हारे बेटे को कल ही सरी बातें पता चल जाती। मेरी बहन को मार डाला, मै यहां पड़ा हूं, लेकिन फिर भी तुम दोनो को मैंने बुलवाया। मैं जानता हूं मैं यहां कुछ नहीं कर सकता। इसलिए जो कर सकते हैं, उन तक अपनी आवाज पहुंचा रहा हूं। मैं यहां खुद नहीं आया, मैत्री के पीछे आया था। हां लेकिन यहां से जाने से पहले इतना ही कहूंगा, मैत्री की चाहत ने उसकी जान ली है। पिछले कई सालों से मैत्री भी अपने परिवार की नहीं थी।
केशव:- हम आर्य को लेकर बहुत परेशान थे शायद यही वजह थी कि तुम्हारा दर्द देख नहीं पाए। तुम हॉस्पिटल से निकलने से पहले मुझे एक बार बता देना।
शूहोत्र:- तुमने इतना कह दिया काफी है। जाओ आर्यमणि को संभालो।
भले ही आर्यमणि खुद को कितना भी सामान्य दिखाने की कोशिश कर ले, किंतु मैत्री की लाश देखने के बाद वह बिल्कुल भी सामान्य नहीं हो सकता। मैत्री की मौत की खबर सुनने के बाद दोनो दंपत्ति जैसे बेचैन हो गए हो। क्योंकि उन्हें पता था कि आर्यमणि को पता है कि मैत्री की लाश शिकारियों ने गिराई है और वो सुराग ढूंढ कर उसके पीछे जायेगा... आर्यमणि उन शिकारियों के पीछे, जिसके शाए से भी अब तक आर्यमणि को दूर रखा गया था।
दोनो दंपत्ति हड़बड़ी में घर पहुंचे, लेकिन पता चला आर्यमणि गायब है। दोनो भागते हुए जंगल पहुंचे। 400 पुलिसवालों ने लोपचे के पूरे खंडहर को छान मारा लेकिन वहां कुछ नहीं मिला।
इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…
इसके पूर्व आर्यमणि गार्ड्स की आंखों में धूल झोंककर सीधा जंगल पहुंचा। बहुत देर तक वो मैत्री के कत्ल की सुराग ढूंढने की कोशिश करता रहा। उसे बहुत ज्यादा जानकारी हाथ तो नहीं लगी, लेकिन मैत्री का बैग जरूर मिला, जिसमे उसकी कई सारे सामान के साथ एक डायरी थी, और हर पन्ने पर आर्यमणि के लिए कुछ ना कुछ था। और उसी बैग से आर्यमणि के हाथ कुछ ऐसा भी लगा जिसे वह नजरंदाज नहीं कर सकता था.…
पूरे गंगटोक में मैत्री और आर्यमणि के बीच के भावनात्मक जुड़ाव को सब जानते थे। यूं तो आर्यमणि बहुत ही सीमित बात करता था, लेकिन जिस दिन मैत्री यहां से जर्मनी गई थी, आर्यमणि ने 3 महीने बाद अपने माता-पिता से बात किया था, और सिर्फ एक ही बात… "उसे भी जर्मनी भेज दे।"..
मैत्री की वो डायरी पुराने दर्द को कुरेद गई। मैत्री ने जैसे पन्नो पर अरमान लिखे थे... "एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."
कुछ दिन बाद...
आर्यमणि श्रीलंका के एक बीच पर था। मैत्री के बैग पर श्रीलंका के होटल का टैग लगा था, जिसके पीछे आर्यमणि यहां तक पहुंचा था। दिल के दर्द अंदर से नासूर थे, बस एक सुराग की जरूरत थी। सुरागों की तलाश में आर्यमणि श्रीलंका पहुंच तो गया लेकिन यहां उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
3 दिन बेकार बिताने के बाद चौथे दिन आर्यमणि के होटल कमरे के बाहर शुहोत्र खड़ा था। आर्यमणि बिना कोई भाव दिए कमरे का दरवाजा पूरा खोल दिया और शूहोत्र अंदर। अंदर आते ही शुहोत्र कुछ–कुछ बोलने लगा। वह जो भी बात कर रहा था, उसमे आर्यमणि की रुचि एक जरा भी नहीं थी। बहुत देर तक उसकी बातें बर्दास्त करने के बाद, जब आर्यमणि से नही रहा गया, तब वह शुहोत्र का कॉलर पकड़कर.… "लंगड़ा लोपचे की कहानी यदि भूल गए हो तो मैं तुम्हारा दूसरा टांग तोड़कर उन यादों को फिर से ताजा कर दूं क्या?"…
शुहोत्र:– तुम्हारी उम्र और तुम्हारी बातें कभी मैच ही नहीं करती। और उस से भी ज्यादा तुम्हारी फाइट... इतनी छोटी उम्र में इतना सब कर कैसे लेते हो..
आर्यमणि:– सुनो लोपचे, यदि जान बचाने के बदले मेरे बाप की तरह तुम भी मेरे फिक्रमंद बनते रहे और मुझे घर लौटने की सलाह देते रहे, तो कसम से मैं ही तुम्हारी जान निकाल लूंगा। यदि मैत्री के कातिलों के बारे में कुछ पता है तो बताओ, वरना दरवाजे से बाहर हो जाओ..
शुहोत्र:– मैत्री के कातिलों की यदि तलाश होती फिर तुम यहां नही, बल्कि नागपुर में होते। क्यों उसके कातिलों को ढूंढने का ढोंग कर रहे?
आर्यमणि:– अब तेरा नया चुतियापा शुरू हो गया...
शुहोत्र:– क्यों खुद को बहला रहे हो आर्य। तुम्हारा दिल भी जनता है कि मैत्री को किसने मारा...
आर्यमणि:–शुहोत्र बेहतर होगा अब तुम मुझे अकेला छोड़ दो... इस से पहले की मैं अपना आपा खो दूं, भागो यहां से...
शुहोत्र:– तुम मुझसे नफरत कर सकते हो लेकिन मैत्री मेरी बहन थी और मैं उसका भाई, ये बात तुम मत भूलना। तुमसे बात करने की एक ही वजह है, और वो है मैत्री की कुछ इच्छाएं, जिस वजह से तुम्हे सुन रहा हूं, वरना जान तो मैं भी ले सकता हूं।
आर्यमणि बिना कुछ बोले पूरा दरवाजा खोल दिया और हाथ के इशारे से शुहोत्र को जाने के लिए कहने लगा। शुहोत्र दरवाजे से बाहर कदम रखते.… "मैत्री की डायरी में मैने ही श्रीलंका का टैग लगाया था। उसके अरमान उस डायरी के कई पन्ने पर लिखे है। यदि मैत्री की एक अधूरी इच्छा पूरी करनी हो तो कमरा संख्या २०२१ में चले आना।
शुहोत्र अपनी बात कह कर निकल गया। आर्यमणि झटके से दरवाजा बंद करके सोफे पर बैठा और मैत्री की डायरी को सीने से लगाकर, रोते हुए मैत्री, मैत्री चिल्लाने लगा। डायरी के कई ऐसे पन्ने थे, जिसपर मैत्री के मायूस अरमान लिखे थे... "तुम यहां क्यों नहीं... हम भारत में नही रह सकते, कम से कम तुम तो यहां आ सकते हो। अपने पलकों में सजा लूंगी, तुम सीने में कहीं छिपा लूंगी। यहां हम सुकून से एक दूसरे के साथ रहेंगे। एक बार आर्य को अपने परिवार के साथ देखना चाहती हूं। कितना हसीन वो पल होगा जब हर दूरी समाप्त होगी। आर्य हमारे साथ होगा। एक दिन... शायद कभी..."
डायरी में लिखे चंद लाइंस आर्यमणि को बार–बार याद आ रहे थे। अंत में आंसुओं को पोंछ कर आर्यमणि शुहोत्र के साथ सफर करने चल दिया। चल दिया मैत्री के उस घर, जहां मैत्री उसे अपने परिवार के साथ देखना चाहती थी।
सुहोत्र और आर्यमणि फ्लाइट में थे.... शूहोत्र आर्यमणि को देखकर… "एक भावनाहीन लड़के के अंदर की भावना को भी देख लिया आर्यमणि। जिस हिसाब से तुम्हारे बारे में लोगों ने बताया, मुझे लगा तुम मैत्री को भुल चुके होगे? लेकिन मैं गलत था।और वो लोग भी जो ये कहते थे कि तुम मैत्री को कबका भूल चुके होगे। इतनी छोटी उम्र में कितना प्यार करते थे उससे।"..
आर्यमणि:- अब इन बातों का क्या फायदा, बस वो जहां रहे हंसती रहे।
शूहोत्र:- उस रात तुम जंगल में क्यों आए थे?
आर्यमणि अपने आखों पर पर्दा डालकर बिना कोई जवाब दिए हुए सो गया। उसे देखकर शूहोत्र खुद से ही कहने लगा…. "जर्मनी में ये सरदर्द देने वाला है।"
जर्मनी का फ्रेबुर्ग शहर, जहां का ब्लैक फॉरेस्ट इलाका अपनी पर्वत श्रृंखला और बड़े–बड़े घने जंगलों के लिए मशहूर है। रोमन जब पहली बार यहां आए थे तब इन जंगलों में दिन के समय में भी सूरज की रौशनी नहीं पहुंचती थी और चारो ओर अंधेरा ही रहता था। तभी से यहां का नाम ब्लैक फॉरेस्ट पर गया।
शूहोत्र जब आर्यमणि को लेकर उस क्षेत्र की ओर बढ़ने लगा, वहां का चारो ओर का नजारा बिल्कुल जाना पहचाना सा लग रहा था। फ्रेबूर्ग शहर के सबसे शांत क्षेत्र में था शूहोत्र का निवास स्थान, जहां दूर-दूर तक कोई दूसरा मकान नहीं था। मकान से तकरीबन 100 मीटर की दूरी से शुरू हो जाता था जंगल का इलाका।
शूहोत्र के लौटने की खबर तो पहले से थी, लेकिन उस बंगलो में रहने वाले लोगों को जारा भी अंदाजा नहीं था कि वो अपने साथ एक मेहमान लेकर आएगा। अजीब सा वह बंगलो था, जिसका नाम वुल्फ हाउस था। दरवाजे से अंदर जाते ही एक बहुत बड़ा हाल था,लगभग 1000 फिट का। पूरे हॉल को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे यहां पर्याप्त रौशनी नहीं है। हल्का अंधेरा सा, जैसे कोई शैतान को पूजने की जगह हो। अजीब सी बू चारो ओर फैली थी। और एक बड़ा सा डायनिंग टेबल जिसपर बैठकर आराम से 80–90 लोग खाना खा सकते थे।
तकरीबन 60–70 लोग थे उस हॉल में जब आर्यमणि वहां पहुंचा। सभी मांस पर पागल कुत्ते की तरह झरप कर रहे थे। जैसे ही उन्होंने अजनबी को देखा सब सीधे होकर बैठ गए। वहां मौजूद हर कोई आर्यमणि को ही देख रहा था। उन्ही लोगों में से एक कमसिन, बला की खूबसूरत, नीले आंखों वालि लड़की आर्यमणि के नजदीक जाकर उसके गर्दन की खुशबू लेने लगी…. "उफ्फ ! ये तो दीवाना बना रहा है मुझे।"..
शूहोत्र उस लड़की को धक्का देकर पीछे धकेलते हुए… "रोज, जाकर अपनी जगह पर बैठ जाओ।"..
रोज, उसे घूरती हुई जाकर अपनी जगह पर बैठ गई…. शूहोत्र आर्य से.… "सॉरी आर्य वो मेरी कजिन रोज थी, बाद में तुम्हे मै सबसे परिचय करवाता हूं। अभी तुम थक गए होगे जाकर आराम करो।".. शूहोत्र, आर्य अपने साथ बाहर लेकर आया और गेस्ट रूम के अंदर उसे भेजकर खुद बंगलो में आ गया।
शूहोत्र के पिता जीतन लोपचे, सुहोत्र को अपनी आंखें दिखाते…. "किसे साथ लाना चाहिए किसे नहीं, ये बात भी मुझे सीखानी होगी क्या? पहले ही इस लड़के की वजह से हम बहुत कुछ झेल चुके है।"
शूहोत्र:- इस लड़के की वजह से हमने कुछ नहीं झेला है पापा। हम अपनी गलतियों का दोष किसी और पर नहीं दे सकते। आपकी जिद की वजह से लोपचे कॉटेज की घटना हुई थी और आपके बेवजह रुल की वजह से मैत्री मारी गई। मैं भी लगभग मरा ही हुआ था, यदि आर्य सही वक़्त पर नहीं आया होता।
उस घर की मुखिया और जीतन कि दूर की रिश्तेदार… ईडन, शूहोत्र की आखों में झांककर देखती हुई…. "वो लड़का तुम्हारा बिटा है।"..
शूहोत्र, अपनी नजरें चुराते…. "मुझे बचाने के क्रम में गलती से उसके हथेली पर पूरी बाइट दे दिया, और वो लड़का पूरी बाइट झेल गया, मरा नहीं।"..
रोज:- ओह तभी उससे मिश्रित खून की बू आ रही थी। बहुत आकर्षक खुशबू थी वैसे।
शूहोत्र:- क्या यहां किसी को मैत्री के जाने का गम नहीं है?
ईडन:- तुम नियम भुल रहे हो। मैत्री से पहले ही कही थी, अकेली वो जिंदा नहीं रह सकती, मारी जाएगी। उसी ने हमसे कहा था यहां रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार में ही मर जाऊं। उसने अपनी मौत खुद चुनी, और तुम खुशकिस्मत हो जो बिना अपने पैक के बच गए। आज रात जाने वाले के लिए जश्न होगा और हम अपने नए सदस्य का स्वागत करेंगे।
ईडन के को सुनने के बाद शूहोत्र की फिर हिम्मत नहीं हुई कुछ बोलने कि। शूहोत्र चुपचाप अपने कमरे में चला गया और अपनी बहन के साथ ली गई तस्वीरों को भींगे आंख देखने लगा।
रात का वक़्त होगा। हॉल में पार्टी जैसा माहौल था और कई घबराए से मासूम जानवर जैसे कि खरगोश, हिरण, जंगली सूअर बंधे हुए थे। मैत्री की बड़ी सी एक तस्वीर लगी थी और तस्वीर के नीचे टेबल पर एक बड़ा सा नाद रखा हुआ था। आर्यमणि जैसे ही हॉल में पहुंचा, वहां का अजीब माहौल देखकर वो अंदाज़ा लगा पा रहा था कि वो किन लोगों के बीच है।
एक लड़की आर्यमणि के करीब आकर खड़ी होती हुई… "तुम आर्य हो ना।"..
आर्यमणि उसे गौर से देखने लगा… लगभग न बताने लायक कमसिन उम्र। आकर्षक बदन जिसपर ना चाहते हुए भी ध्यान खींचा चला जाए। उसे देखने का अजीब ही कसिस थी। नीली आखें, ब्लोंड बाल, और चेहरा इतना चमकता हुआ कि रौशनी टकराकर वापस चली जाए। आर्यमणि खुद पर काबू पाकर गहरी श्वांस लिया… "तुम व्हाइट फॉक्स यानी कि ओशुन हो ना।"..
ओशुन, मुस्कुराकर अपने हाथ उसके ओर बढ़ती…. "पहचान गए मुझे। मैत्री ने तुम्हारे बारे में मुझे बताया था। उसकी चॉइस पर मुझे अब जलन हो रही है।"
आर्यमणि:- तुमने यहां सम्मोहन किया है क्या? मै खुद में बेबस सा मेहसूस कर रहा हूं। तुम्हे वासना भरी नजरो से देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा।
ओशुन:- अभी तो ठीक से मैत्री की अंतिम विदाई भी नहीं हुई और तुम अपने लवर के बेस्ट फ्रेंड के बारे में ऐसे विचार पाल रहे हो।
आर्यमणि उसकी बात सुनकर वहां से थोड़ा दूर किनारे में अलग आकर खड़ा हो गया और सामने के रश्मों को देखने लगा। जैसे ही ईडन वहां पहुंची माहौल में सरगर्मी बढ़ गई। जाम के गलास को टोस्ट करते हुए ईडन कहने लगी… "हमारे बीच हमारी एक साथी नहीं रही, जाने वाले को हम खुशी-खुशी अंतिम विदाई देंगे।" ईडन ने आन्नाउंसमेंट किया और सबसे पहले मैत्री के पिता उसकी तस्वीर के सामने खड़े हो गए। अपने हथेली को चीरकर कुछ देर तक खून को नादी में गिरने दिया उसके बाद अपनी हथेली ईडन के ओर बढ़ा दिया।..
उफ्फ ये मंजर। जिसे आज तक पौराणिक कथाओं में सुना था। जिसके अस्तित्व लगभग ना के बराबर आर्यमणि ने मान लिया था। शक तो उसे उस रात से था जबसे उसने मैत्री का वो लॉकेट हटाया और उसका शरीर भेड़िया जैसे दिखने लगा। सुहोत्र का मुंह बंद करने के क्रम में, नुकीले दांत अंदर हथेली फाड़ कर घुस जाना, और छोटे रास्ते से लौटते वक़्त शूहोत्र का उन लोमड़ी को कंट्रोल करके रखना, जो खून की प्यासी थी।
किन्तु अब तक जो भी हुआ उसे आर्यमणि एक दिमागी उपज मानकर ही खुद को समझता रहा था। उसे लग रहा था कि वो कुछ ज्यादा ही वेयरवुल्फ की कहानियों के बारे में सोच रहा है। लेकिन जितन का हाथ जैसे ही ईडन के चेहरे के पास गया, ईडन की आखें काली से लाल हो गई। उसके शरीर में बदलाव आने लगा और अपने हाइट से 4 फिट लंबी हो गई।
हाथ किसी भेड़िए के पंजे में तब्दील हो गए। दो बड़ी–बड़ी नुकीली दातों के के बीच में कई सारे छोटे–छोटे नुकीली दांत, अपना बड़ा सा मुंह फाड़कर हथेली का कटा हुआ हिस्सा उसने मुंह में लिया और जैसे ही चूसना शुरू कि, जीतन की तेज चिंख नकल गई। उसकी भी आंखे लाल हो गई, बड़े–बड़े नाखूनों वाले पंजे आ गए, और वो बड़ी ही बेचैनी के साथ चिल्ला रहा था।
थोड़ी देर खून चूसने के बाद जैसे ही ईडन ने जीतन का हाथ छोड़ा वो लड़खड़ाकर नीचे गिरने लगा। लोगो ने उसे सहारा देकर बिठाया। ऐसे ही एक-एक करके सबने किया, पहले नादी में खून गिराया फिर खून चूसने दिया। यहां का अजीब खूनी खेल देखकर आर्यमणि को अजीब लगने लगा, और वो समारोह को छोड़कर बाहर जाने लगा।
वह गेट के ओर 2 कदम बढ़ाया ही था कि तेजी के साथ ओशुन उसके करीब पहुंचती…. "समारोह छोड़कर जाने का अर्थ होगा ईडन का अपमान। मत जाओ यहां से।"
आर्यमणि:- क्या मै यहां एक कैदी हूं?
ओशुन:- नहीं, यहां कोई कैदी नहीं, बस नियम से बंधे एक सदस्य हो। तुम्हे यदि यहां का माहौल अच्छा नहीं लग रहा तो मूझपर कन्सन्ट्रेट करो। और हां मेरे स्किन से एक अरोमा निकलती है जो आकर्षित करती है, इसलिए खुद में गिल्ट फील मत करना।
आर्यमणि:- हम्मम ! यहां और कितनी देर तक रश्में होगी।
ओशुन:- तुम आखरी होगे, उसके बाद जश्न होगा।..
आर्यमणि:- क्या मै भी तुम लोगों में से एक हूं।
ओशुन, उसे देखकर मुस्कुराती हुई…. "तुम्हे पता है इस हॉल में बैठे हर सदस्य, यहां तक कि मैत्री के मां बाप भी उसके मरने का जश्न मना रहे है। यहां केवल 2 लोग हैं और तुम्हे शामिल कर लिया जाए तो 3, जिसे मैत्री के जाने का गहरा सदमा है। पहला शूहोत्र, दूसरी मै, और तीसरे तुम।"
आर्यमणि:- ऐसा क्यों?
ओशुन:- क्योंकि मैत्री यहां सबसे खास थी, और यही वजह थी कि तुम्हारा साथ होना उसके पापा को जरा भी पसंद नहीं था। लेकिन फिर भी मैत्री ने तुम्हे चुना था, इसका मतलब साफ है कि तुम हम जैसे नहीं हो, बल्कि कुछ खास हो। लेकिन क्या है ना, अकेला वुल्फ कितना भी खास क्यों ना हो, शिकार बन ही जाता है। जबतक अपने पैक के साथ हो तबतक ज़िन्दगी है।
आर्यमणि:- हम्मम !
तभी माहौल में ईडन कि आवाज़ गूंजी। वह तालियों से अपने दल में सामिल हुए नए सदस्य का स्वागत करने के लिए कहने लगी। ओशुन उसका हाथ थामकर खुद लेकर पहुंची। जैसे ही उसके हथेली से वो पट्टी हटाई गई, कमाल हो चुका था। जख्म ऐसे गायब थे जैसे वो पहले कभी थे ही नहीं।
ओशुन ने चाकू से हथेली का वो हिस्सा काट दिया जहां शूहोत्र ने उसे काटा था। कुछ बूंद खून नीचे टपकाने के बाद, आर्यमणि से कहने लगी…. "अपने कपड़े निकलो"..
आर्यमणि उसकी बात सुनकर अपने सारे कपड़े निकाल दिया। पीछे से वहां मौजूद कई लड़कियां उसे देखकर हूटिंग करने लगी। तरह-तरह के कमेंट पास होने लगे। ईडन अपने हाथ उठाकर सबको ख़ामोश रहने का इशारा की। फिर ईडन एक नजर ओशुन को देखी और ओशुन खून से भरी नाद आर्यमणि के ऊपर उरेल दी।
रक्त स्नान हो रहा हो जैसे। रक्त में सराबोर करने के बाद ऒशुन ने आर्य का हाथ ऊपर, ईडन के मुंह के ओर बढ़ा दी। जैसे ही ईडन ने खून चूसना शुरू किया, आर्यमणि को लगा उसकी नसें फट जायेगी और खून नशों के बाहर बहने लगेगा। काफी दर्द भरि चींख उसके मुंह से निकली और उसकी आखें बंद हो गई।