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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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Mahendra Baranwal

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भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


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आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Bahut hi shandaar update
 

Death Kiñg

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अध्याय 56 – 57 यानी की दो बेहद ही खतरनाक अध्याय और ढेरों सवाल जो ये पाठकों के बीच छोड़ गए...

सीक्रेट बॉडी बेहद ही रहस्मयी संगठन के रूप में उभरकर आया है कहानी में। जहां उन लोगों की साजिश सत्य में काफी गहरी थी वहीं भूमि, जया और आर्यमणि की नज़रों से वो सब अपना असली चेहरा छुपा ना सके। इसी से पता चलता है की बेशक वो सभी बुद्धिमान और कुटिल हैं परंतु साथ ही अपने समक्ष खड़े खतरे और शत्रु को भांपने और समझने में कमज़ोर भी हैं। अभी तो उन लोगों ये तक नहीं पता की भूमि और जया उनका अगला – पिछला सब जानती हैं, स्पष्ट है की बेहद चतुर होते हुए भी, लापरवाही करने की आदत, उन्हें खेल में पीछे धकेल रही है। रही बात उनकी शक्ति की, तो मेरे ख्याल से यदि सीक्रेट बॉडी पूरी तरह खुलकर सामने आ जाए, तब शायद आर्यमणि की मृत्यु भी सुनिश्चित की जा सकती है! :declare:

इसका सीधा कारण है वो भौकाल जो सीक्रेट बॉडी की थर्ड लाइन ऑफ सीक्रेट सुपीरियर शिकारी ने मचाया! यदि तीसरी पंक्ति के शिकारियों ने आर्यमणि को उसके घुटनों पर का दिया, तो सोचने लायक बात है की प्रथम और द्वितीय पंक्ति के शिकारी किस प्रकार के होंगे, खासकर तब, जब वो दोनों पंक्तियां मिलकर आर्यमणि का सामना करें! कोई संदेह नहीं है की तब आर्यमणि को या तो पलायन करना होगा, या अपनी मृत्यु को स्वीकार। एक ही स्थिति है जिसके कारण, आर्यमणि इन शिकारी और षड्यंत्रकारियों के विरुद्ध टिका हुआ है और वो है उसका प्योर वोल्फ होना, और उससे भी बड़ी बात, इस बड़े राज का छिपा होना। अन्यथा, समझा जा सकता है की किस मुसीबत में होता वो यदि ये राज़, राज़ ना रहता...:approve:

सरदार खान को जब कहा आर्यमणि ने को सीक्रेट बॉडी ने फन्ने खान को तैयार किया था सरदार की हत्या के लिए तब उसका जवाब भी चौंकाने वाला था। उसके मुताबिक “वो” अपेक्स सुपरनैचुरल हैं, समस्त प्राणियों में सबसे विशेष और ताकतवर। किसकी बात कर रहा था वो? सीक्रेट बॉडी की? उज्ज्वल, सुकेश, देवगिरी, तेजस अथवा जयदेव में से कोई इतना विशेष है? मुझे नहीं लगता! इसका सीधा सा मतलब एक ही है, की सीक्रेट बॉडी के सर पर भी उनका कोई रहनुमा बैठा हुआ है, जिसके इशारे पर ये षड्यंत्र का खेल रचा जा रहा है। शायद वही हो “अपेक्स सुपरनैचुरल”! देखने लायक चीज़ ये थी कि इस बात पर आर्यमणि ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी, अर्थात वो बिल्कुल भी हैरान नहीं हुआ इस नए शब्द को सुनकर, क्या वो जानता है इस बारे में..?:?:

खैर, अभी के लिए सरदार खान की बस्ती में आर्यमणि ने कई सारे कार्य पूर्ण कर लिए हैं। सर्वप्रथम, सरदार खान को उठा लिया गया है और साथ ही फन्ने खान को हत्या भी हो गई है। बस्ती में मौजूद सभी नीच और पापी वॉल्फ्स को भी मौत के घाट उतार दिया गया है अब बचे हैं तो नावेद और असद, जोकि अल्फा हैं और अब उनका कार्य है उस बस्ती का पुनर्निर्माण करना और उन सभी को एक नया जीवन देना, जिनकी ज़िंदगी सरदार खान के कारण पटरी से उतर गई थी। वहां जितने भी वॉल्फ्स मौजूद थे, उन सभी की एक निश्चितकालीन यादें भी आर्यमणि ने मिटा दी हैं, अर्थात अभी के लिए उसके प्योर अल्फा होने का राज़ सुरक्षित है!:declare:

वहीं ओजल और इवान भी अब अल्फा में परिवर्तित हो चुके हैं, कोई संदेह नहीं इस बात में को आर्यमणि का ये “अल्फा पैक” अग्रसर है उस राह पर जिसकी मंज़िल दुनिया के सभी वरवॉल्फ पैक्स में सर्वश्रेष्ठ बनना है। स्पष्ट है की जब पैक का हर सदस्य अल्फा होगा, और पैक का मुखिया प्योर अल्फा, तो उनकी शक्ति आसमान से भी ऊंची हो जाएगी। यहां, ज़रूरत है इन सभी को सही प्रशिक्षण देने की, और विषम परिस्थितियों से पार पाने का सही मार्ग बतलाने की। अलबेली को अभी भी लूथरिया वुलपिना की ज़रूरत पड़ती है खुद पर नियंत्रण रखने के लिए, वहीं ओजल और इवान तो अभी – अभी बाहर की इस दुनिया में निकले हैं, देखते हैं आर्यमणि अपने आने वाले अज्ञातवास में इन सभी को किस प्रकार प्रशिक्षण देगा!

इस बीच रूही की दिवंगत मां अर्थात एक अल्फा हीलर – फरहीन का भी ज़िक्र हुआ। फरहीन की ताकत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की वो पहली ऐसी थी जिसने जड़ों और जड़ों के रेशों तक से रिश्ता जोड़ लिया था। जो कारनामा उसके अलावा केवल एक प्योर वोल्फ ही कर पाया हो, वो कितना कठिन होगा, हम समझ सकते हैं। देखना ये है की क्या अपनी मां के कुछ विशेष गुण तथा शक्ति, रूही में भी आई है अथवा नहीं? साथ ही, ये देखना भी रोचक होगा की सरदार खान को ज़िंदा रखने के पीछे क्या औचित्य है? उसे जब मारना है ही, तो अभी क्यों नहीं, बेशक किसी योजना के तहत ही ऐसा कर रहा होगा आर्यमणि...

थर्ड लाइन ऑफ सीक्रेट सुपीरियर शिकारी... इनसे लड़ाई के दौरान हमें कई सारी शक्तियां और गुण देखने को मिले,आर्यमणि के! ना केवल वो अपनी दहाड़ मात्र से ही शत्रु – खेमे में भूचाल ला सकता है बल्कि हवा को नियंत्रित कर किए गए हमले से भी पार पा सकता है! आर्यमणि पेड़ – पौधों को हील करता है ये तो पहले ही सामने आ चुका है, और अब उस प्रक्रिया का प्रभाव भी हम देख ही सकते हैं। किसी विषम परिस्थिति में अत्यंत लाभदायक साबित हो सकती है आर्यमणि की धरा और वृक्षों से जुड़े होने की ये काबिलियत! खैर, यहां तो आर्यमणि किसी ना किसी तरीके से उन शिकारियों से पार पाने में कामयाब हो गया परंतु आगे क्या..?

हम जानते ही हैं की आर्यमणि का ये सफर आगे आसान नहीं होने वाला। है पल, महाजनिका का खतरा उसके और मानवजाति के सर पर मंडराता ही रहेगा। कब लौटेगी वो, कोई नहीं जानता, परंतु एक बात साफ है की जब वो लौटेगी तो इतनी शक्तिशाली होगी, जिसकी कोई सीमा नहीं। सीक्रेट बॉडी की प्रथम और द्वितीय पंक्ति का क्या? ऐसा तो है नहीं, की केवल यही दो चुनौतियां हैं उसके सामने, भविष्य के गर्भ में जाने कौन – कौन से संकट छुपे हों? ऐसे में आर्यमणि से यही उम्मीद रहेगी की अपने इस आने वाले अज्ञातवास का वो भरपूर लाभ उठाए और खुद को सशक्त और अपनी शक्तियों और भी विकसित करे। ताकि आने वाले समय में, उसके सामने मृत्यु का संकट तो ना उपजे, कम से कम...:declare:

अभी के लिए, आर्यमणि ने नागपुर को साफ कर दिया है, बस सरदार खान को ऑफिशियली मृत घोषित कर दिया जाए एक बार, फिर एक नया सफर शुरू होगा आर्यमणि का। बहरहाल, सीक्रेट बॉडी की कमर ही टूट गई है कुछ ही घंटों में। सरदार खान, फन्ने खान, सभी दूषित वरवॉल्फ्स और साथ ही तीसरी पंक्ति के शिकारी भी... बेशक उन सभी षड्यंत्रकारियों का पारा, आसमान को छू रहा होगा, और मेरे ख्याल से पलक के सर ही इस सारी घटना का ठीकरा फोड़ा जाने वाला है। देखते हैं उसके भाग्य में क्या लिखा है..?:dazed:एक सवाल ये है की बद्री मुले (आरती का पति?) के साथियों की याददाश्त मिटाते वक्त दो शिकारियों ने आर्यमणि को चौंका दिया, कारण..? :huh:

क्या ही खूबसूरत अध्याय थे दोनों ही भाई! खासकर अध्याय – 57, बेहद ही खूबसूरत तरीके से वर्णन किया आपने पूरे ही रोमांचकारी दृश्य का! सही मायनों में एक्शन – पैक्ड अपडेट्स थे दोनों ही। जितनी भी तारीफ की जाए, कम ही होगी!

प्रतीक्षा रहेगी अगले अध्याय की...
 

arish8299

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भाग:–57





रूही:- बॉस 11:00 बजने वाले है। हम शेड्यूल से देरी से चल रहे है।


आर्यमणि:- हां चलो निकलते है यहां से। ओजल, इवान और अलबेली तुम तीनों यहां से जंगली कुत्तों को दूर जंगल में ले जाओ और सबको खत्म करके हमसे मीटिंग प्वाइंट पर मिलो।


"ठीक है बॉस" कहते हुए तीनों, कुत्तों को लेकर जंगल के ओर चल दिये। आर्यमणि अपने बैग खोला, सिल्वर की 2 हथकड़ी सरदार के हाथ और पाऊं में लगा दिया और मुंह पर टेप मारकर उस किले से निकालने लगा। किले से निकलने से पहले उसने माउंटेन एश साफ कर दिया ताकि ये लोग अपनी जगह घूम सके और सरदार को लेकर शिकारियों के पास आ गये।


सभी शिकारी वहीं बंधे हुए थे। आर्यमणि ने सबको बेहोश किया। रूही ने सभी शिकारियों को वुल्फबेन का इंजेक्शन लगा दी और आर्यमणि अपना क्ला उनके भी गर्दन के पीछे लगाकर उनकी याद से ट्विन कि तस्वीर को मिटाने लगा।…..


"क्या हुआ इतने आश्चर्य में क्यों पड़ गए।".. रूही आर्यमणि का चेहरा देखकर पूछने लगी।


याद मिटाने के दौरान 2 शिकारियों को आर्यमणि बड़े आश्चर्य से देख रहा था। उसकी ऐसी प्रतिक्रिया पर रूही पूछने लगी। "कुछ नहीं" कहते हुए आर्यमणि ने उनके जख्म को हील कर दिया और सरदार को लेकर मीटिंग प्वाइंट पर चल दिया। जाने से पहले आर्यमणि ने रूही को, सभी शिकारियों को कहीं दूर छोड़कर मीटिंग पॉइंट पर पहुंचने बोला। मीटिंग पॉइंट यानी नागपुर–जबलपुर के नेशनल हाईवे की सड़क के पास का जंगल, जहां इनकी गाड़ी पहले से खड़ी थी। सबकुछ अपने शेड्यूल से चल रहा था। सरदार खान को पैक कर के वैन में लोड किया जा चुका था। लेकिन तभी वहां की हवा में विछोभ जैसे पैदा हो गया हो। विचित्र सी आंधी, जो चारों दिशाओं से बह रही थी और आर्यमणि जहां खड़ा था, वहां के 10 मीटर के दायरे में टकराकर विस्फोट पैदा कर रही थी।


धूल, मिट्टी और तरह–तरह के कण के साथ लड़की के बड़े–बड़े टुकड़े उड़ रहे थे। एक इंच, २ इंच के लकड़ी के टुकड़े किसी गोली की भांति शरीर में घुस रहे थे। आर्यमणि खतरा तो भांप रहा था, लेकिन एक साथ इतने खतरे थे कि किस–किस से बचे। पूरा शरीर ही लहू–लुहान हो गया था। आशानिय पीड़ा ऐसी थी की ब्लड पैक १० किलोमीटर की दूरी से पहचान चुके थे। आर्यमणि के पास हवा में विछोभ था, तो इधर पैक के दिल में विछोभ पैदा हो रहा था।


सभी पागलों की तरह अपने मुखिया के ओर भागे। तभी सभी के कानो में आर्यमणि की आवाज गूंजने लगी... "एक किलोमीटर के आस पास भी मत आना। अभी इनके तिलिस्मी हमले से मैं खुद जिंदा बचने की सोच रहा, तुम सब आये तो तुम्हे बचाने में कोई नही बचेगा। दिल की आग शांत करने का मौका मिलेगा। मेरे बुलावे का इंतजार करो।"


आर्यमणि ने उन्हें रुकने का आदेश तो दे दिया। रूही समझ भी गयि। लेकिन तीन टीन वुल्फ को कौन समझाए जो आर्यमणि के मना करने के बाद भी रुके ही नही। रूही 1 किलोमीटर के दायरे के बाहर किसी ऊंचे स्थान पर पहुंची और वहां से मीटिंग पॉइंट को देखने लगी। वहां कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था। हां बस उसे 4 पॉइंट दिख रहे थे जहां रेत में लिपटे किसी इंसान के खड़े होने जैसा प्रतीत हो रहा था, जिसके पूरे शरीर से धूल निकल रहा हो। इसी बीच तीनों टीन वुल्फ लगभग उनके करीब पहुंच रहे थे। तीनों ही काफी तेजी से बवंडर की दिशा में ही बढ़ रहे थे।


रूही:– बॉस आप सुन सकते हो क्या? तीनों टीन वुल्फ कुछ ही सेकंड में आपके नजदीक होंगे।


आर्यमणि, किसी तरह अपनी टूटती आवाज में... "तुम 1 किलोमीटर के दायरे से बाहर ही रहो।"


रूही, का कलेजा कांप गया.… "बॉस आप ठीक तो है न"


आर्यमणि:– अपना मुंह बंद करो और मुझे ध्यान लगाने दो.…


वक्त बहुत कम था। आर्यमणि न केवल घायल था बल्कि शरीर के अंग–अंग में इतने लड़की घुस चुके थे कि वह खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। वक्त था नही और शायद आर्यमणि आने वाले खतरे को भांप चुका था। फिर तो तेज दहाड़ उन फिजाओं में गूंजी। हवा यूं तो आवाज को गोल–गोल घूमाकर ऊपर के ओर उड़ाने के इरादे से थी, लेकिन उस तिलिस्मी बवंडर में इतना दम कहां था जो आर्यमणि की तेज दहाड़ को रोक सके। कलेजा थम जाये ऐसी दहाड़। आम इंसान सुनकर जिसके दिल की धड़कन रुक जाये ऐसी दहाड़। दहाड़ इतनी भयावह थी की बीच में विस्फोट करते दायरे से ही पूरी जगह बना चुकी थी।


गोल घूम रहे बवंडर के बीच से जैसे हवा का तेज बवंडर निकला हो। आर्यमणि की दहाड़ जैसे पूरे बवंडर को ही दिशा दे रही थी। २ किनारे पर खड़े शिकारी उस आंधी में बह गये। तीनों टीन वुल्फ और रूही जहां थे वहीं बैठ गये। उसके अगले ही पल जैसे जमीन से जड़ों के रेशे निकलने लगे थे और देखते ही देखते पूरा वुल्फ पैक उस जड़ के बड़े से गोल आवरण के बीच सुरक्षित थे। आर्यमणि ने ऐसा चमत्कार दिखाया था, जिसे देखकर सभी शिकारी बस शांत होकर कुछ पल के लिये आर्यमणि को ही देखने लगे।


पहली बार वह किसी के सामने अपने भव्य स्वरूप में आया था। पहली बार शिकारियों ने उसे पूर्ण वुल्फ के रूप में देखा था। लेकिन उन्हें तनिक भी अंदाजा नहीं था कि आर्यमणि किस तरह का वुल्फ था। आर्यमणि शेप शिफ्ट करने के साथ ही पहले तो अपनी दहाड़ से चौंका दिया उसके बाद जैसे ही अपने पंजे को भूमि में घुसाया, ठीक वैसे ही भूमि में हलचल हुयि, जिसका नतीजा तीनों टीन वुल्फ और रूही के पास देखने मिल रहा था। जड़ों के रेशे उन चारों को अपने आवरण के अंदर बड़ी तेजी से ढक रही थे।


प्रकृति की सेवा का नतीजा था। लागातार पेड़–पौधों को हिल करते हुये आर्यमणि अपने अंदर इतनी क्षमता उत्पन्न कर चुका था कि उसके पंजे भूमि में घुसते ही अंदर से जड़ों के रेशे तक को उगा कर अपनी दिमाग की शक्ति से उसे आकार दे सकता था। वुल्फ के शक्तियों की पहेली में एक ऐसी शक्ति जिसे सबसे पहले दुनिया की सबसे महान अल्फा हिलर फेहरिन (रूही की मां) ने अपने अंदर विकसित किया था। यह उन शिकारियों के साथ–साथ पूरे वुल्फ पैक के लिये भी अचंभित करने वाला कारनामा था।


लेकिन शिकारी तो यहां शिकार करने आये थे। पहले तो आर्यमणि को उलझाकर उसके पैक को नजदीक बुलाना था। फिर उसके बाद पहले आर्यमणि के पैक को खत्म करना था ताकि गुस्से में आर्यमणि का दिमाग ही काम करना बंद कर दे। उसके बाद बड़े ही आराम से मजे लेते हुये आर्यमणि को मारना था। किंतु उन्होंने थोड़ा कम आंका। बहरहाल आर्यमणि जो भी करिश्में दिखा रहा था शिकारियों को उसे सीखना में कोई रुचि नहीं थी। उनका शिकार तो इतनी बुरी तरह ऐसा घायल था की खुद को हिल तक नही कर पा रहा था। ऊपर से अभी एक जगह बैठकर अपना ध्यान केंद्रित किये था। भला इस से अच्छा मौका भी कोई हो सकता था क्या?


२ केंद्र से अब भी हवा का बहाव काफी तेज था। सामने के 2 केंद्र को तो आर्यमणि अपनी दहाड़ से उड़ा चुका था, लेकिन पीछे से २ शिकारी भी अपने अद्भुत कौशल का परिचय दे रहे थे। शिकारियों के आपसी नजरों का तालमेल हुआ और अगले ही पीछे से हवा के बहाव से कई सारे तेज, नुकीले, पूरी धातु के बने भाले निकलने लगे। एक तो लगातार बहते रक्त ने आर्यमणि को पूर्ण रूप से धीमा कर दिया था ऊपर से पंजा भूमि के अंदर था। आर्यमणि जबतक अपना हाथ निकालकर आने वाले खतरे से पूरा बचता तब तक पीछे से शरीर को चिड़ते हुये ३ भला आगे निकल आया।


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आर्यमणि के प्राण ही जैसे निकल गये हो। आर्यमणि लगभग मरा सा जमीन पर गिरा। जड़ों के बीच में फसे टीन वुल्फ और रूही छटपटा कर रह गये। आर्यमणि के मूर्छित होकर गिरने के साथ ही वो लोग भी जमीन पर आ चुके थे। 8 शिकारी, जिन्हे सीक्रेट बॉडी ने भेजा था। जिन्हे ये लोग अपने थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी भी कहते है। दिख तो इंसानों की तरह ही रहे थे लेकिन इनकी क्षमता इन्हे सैतन से कम दर्जा नहीं देती। वायु नियंत्रण करना। वायु के बवंडर के बीच से नुकीले भाले और तीर का निकलना, जो सीधा सामने वाले के प्राण ही ले ले।


8 शिकारी, चेहरे पर विजयी मुस्कान लिये अपने शिकार की स्थिति को जानने के लिये आगे बढ़े।…. कुछ दूर बढ़े ही थे कि पीछे से आवाज आयि.… "क्यों बे खजूर, मेरा दोस्त मरा या नही, सुनिश्चित करने जा रहा।"


आठों एक साथ मुड़े। पीछे संन्यासी शिवम और निशांत खड़ा था। उन सभी शिकारियों में से एक ने बोला... "हम तो केवल वुल्फ पैक को मारने आये थे। लेकिन क्या करे पीछे कोई सबूत भी तो नहीं छोड़ सकते। दोनो को मार दो।"…


जैसे ही मारने के आदेश हुये, 4 शिकारी बिलकुल हवा मे लहराते हुये चार दिशाओं में पहुंच गये। इधर सन्यासी शिवम और निशांत दोनो सामने खड़े दुश्मन का पूर्ण अवलोकन भी कर रहे थे, साथ ही साथ आर्यमणि का हैरतंगेज कारनामा भी देख रहे थे, कि कैसे उसने मिट्टी में अपने क्ला को डाला और उसे जड़ों ने जकड़ना शुरू कर दिया। इधर सभी शिकारी अपना पूर्ण ध्यान इन्ही दोनो पर केंद्रित किये थे। चार कोनो से घेरने के बाद जैसे ही शिकारियों ने अपने दोनो हाथ फैलाये, शिवम टेलीपैथी के जरिए निशांत को वायु विघ्न के मंत्र पढ़ने के लिये कहने लगा। दोनो ने एक साथ वायु विघ्न के मंत्र पढ़े, लेकिन उन सभी शिकारियों पर मंत्रों का कोई प्रभाव ही नही पड़ा।


निशांत और संन्यासी शिवम दोनो ही आने वाले खतरे को भांप चुके थे इसलिए सबसे पहले तो पूर्ण सुरक्षा का मंत्र खुद पर ही पढ़ा। खुद को पूरी तरह से सुरक्षित किये ही थे की तभी उन दोनो के ऊपर वायु का विस्फोट सा होने लगा। उनके सुरक्षा घेरे के बाहर हो रहे हवा के विस्फोट को दोनो अपनी आखों से देख रहे थे। हवा के साथ आते लकड़ी के टुकड़े भी उनकी आंखों के सामने थे। निशांत हैरानी से अपनी आंखें बड़ी किये.… "क्या भ्रमित अंगूठी यहां काम आती।"


संन्यासी शिवम:– अभी तुम जिस हवा से भ्रम पैदा कर रहे हो, जब वही हवा हमला करने लगे तब कहना मुश्किल होगा। सुरक्षा मंत्र खोल कर जांच लो।


संन्यासी शिवम की बात मानकर निशांत ने अपनी एक उंगली बाहर की और एक सेकंड पूरा होने से पहले उसकी उंगली लहूलुहान थी.… "जान बच गयि सीनियर। क्या इसी हवा के हमले से आर्यमणि को घायल किये होंगे।"


संन्यासी शिवम:– हमारे लिये इन हमलों से ज्यादा जरूरी इस बात का मूल्यांकन करना है कि हमारे मंत्र इनपर बेअसर क्यों हुये?


निशांत:– किसी एक को पकड़कर आचार्य जी के पास ले चलते है।


संन्यासी शिवम:– हम तो लड़ नही सकते। अब उम्मीद सिर्फ आर्यमणि से ही है। उसके बाद ही आगे का कुछ सोच सकते है।


"ये क्या हो रहा है"…. निशांत हड़बड़ाते हुये पूछा... "भ्रमित अंगूठी के भरोसे मत रहना। हो सकता है हमारे मंत्र इनपर बेअसर है तो ये लोग सुरक्षा मंत्र के अंदर भी हमला कर सकते है।"….. निशांत जबतक "कैसे" पूछा तब तक दोनो ही हवा में खींचते हुये २ शिकारियों के निकट पहुंच चुके थे और अगले ही पल दोनो को तेज–तेज २ मुक्के पर गये। दोनो का जबड़ा हिल गया।


निशांत, हवा में ही गुलाटी खाते.… "सालों ने जबड़ा तोड़ दिया लेकिन एक बात का सुकून है खुद पर मंत्र पढ़ो तो उनके मार का असर कम हो जाता है।"…


संन्यासी शिवम:– हां सही आकलन। बाहुबल में भी ये लोग कमजोर नही। हाथियों जितनी ताकत रखते है।


सुरक्षा मंत्र के घेरे में बंद दोनो पर हवा की मार का असर तो नही हो रहा था इसलिए शिकारियों ने भी उन्हें मारने का निंजा तकनीक तुरंत ही विकसित कर लिया था। दोनो को अपने पास खींचते और जबरदस्त मुक्का जड़ देते। दोनो जैसे कोई पंचिंग बॉल बन गये थे। हवा में ही ये दोनो शिकारी के पास खींचे चले जाते और वहां से मुक्का खाकर हवा में ही लहराते हुये दूसरे शिकारी के पास। हर मुक्का पड़ने से पहले खुद के ऊपर ही मंत्र पढ़ लेते लेकिन फिर भी मुक्के का जोड़ इतना था की असर साफ दिख रहा था। दोनो की ही हालत खराब हो चुकी थी। यदि कुछ देर और ऐसा ही चलता रहा फिर तो निशांत और संन्यासी शिवम दोनो मंत्र जपने की हालत में नहीं होते।


इसके पूर्व जैसे ही निशांत और संन्यासी शिवम यहां पहुंचे, शिकारियों का पूरा ध्यान दोनो पर ही रहा। इधर जड़ों का बड़ा सा आवरण बनाकर आर्यमणि किसी तरह खड़ा हुआ। एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।


आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।


पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।


आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।


खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।


फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।


शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।


गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।


जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।


छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।


बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।


दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।


"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।


जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।


साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।


अब मैदान में इकलौता शिकारी बचा था। आर्यमणि उसे भी मार ही चुका होता लेकिन बीच में निशांत आ गया और उसे जिंदा छोड़ने के लिये कह दिया। आर्यमणि निशांत की बात मानकर उसे छोड़ दिया और संन्यासी शिवम की अर्जी पर उसे जड़ों की रेशों में पैक करके गिफ्ट भी कर दिया। आर्यमणि जैसे ही फुर्सत हुआ, बेचैनी के साथ निशांत का हाथ थाम लिया। आर्यमणि जैसे एक साथ उसका दर्द पूरा खींच लेना चाहता हो। लेकिन तभी निशांत अपना हाथ झटकते.… "नही दोस्त, यही सब चीजें तो मुझे मजबूत बनाएगी। मुझे अपनी क्षमता से हिल होने दो"….


आर्यमणि, निशांत की बात पर मुस्कुराते.… "चल ठीक है। शादी का क्या माहोल था।"


निशांत:– मैं जब निकला तब तक तो सबका खाना पीना चल रहा था। ये ले अपनी अनंत कीर्ति की किताब। जैसा तूने कहा था।


आर्यमणि:– मुझे लगा मात्र इस किताब के कारण कहीं तुमलोग पोर्टल न करो।


संन्यासी शिवम:– किताब के प्रति तुम्हारी रुचि अतुलनीय है। यदि तुम्हे कुछ खास लगी ये किताब, फिर तो वाकई में कुछ खास ही होगी। इसलिए जैसे ही हमे निशांत ने बताया हम तैयार हो गये।


आर्यमणि:– किताब लाने में कोई दिक्कत तो नही हुई।


निशांत:– बिलकुल भी नहीं। हम पोर्टल के जरिए सीधा कमरे में पहुंचे और किताब उठाकर सीधा तुम्हारे पास। लेकिन यहां तो अलग ही खेल चल रहा था। कौन थे ये लोग और कहां से आये थे?


आर्यमणि:– मुझे भी पता नहीं। मेरा खुद पहली बार सामना हुआ है। वैसे तुम दोनो ने भी यहां सही वक्त पर एंट्री मारी है। वरना मेरे लिए मुश्किल हो जाता।


संन्यासी शिवम:– हम नही भी आते तो भी तुम प्रकृति की गोद में लपेटे जा चुके होते। उल्टा हम दोनो फंस गये थे।


निशांत:– अब कौन किसकी जान बचाया उसका क्रेडिट देना बंद करते है। अंत भला तो सब भला। वैसे क्या हैवानियत दिखाई तूने। मैने तो कई मौकों पर अपनी आंखें बंद कर ली।


अलबेली:– हां लेकिन हमने चटकारा मार कर मजा लिया।


आर्यमणि, निशांत से बात करने में इतना मशगूल हुआ कि उसे पैक के बारे में याद ही नहीं रहा। जैसे ही अलबेली की आवाज आयि, आर्यमणि थोड़ा अफसोस जाहिर करते.… "माफ करना निशांत की हालत देखकर तुम लोगों का ख्याल नही आया। तुम लोग ठीक तो हो न"


रूही:– बॉस आपने जो किया उसपर हम रास्ते में बहस करेंगे, फिलहाल अपनी ये वैन बुरी तरह डैमेज हो गयि है। इस से कहीं नहीं जा सकते।


आर्यमणि:– ठीक है तुम सभी सरदार खान के किले के पास वाला बैकअप वैन ले आओ। जब तक मैं इन दोनो से थोड़ी और चर्चा कर लेता हूं।


रूही:– ठीक है बॉस... वैसे एक बात तो मनना होगा, आपने क्या कमाल का चिड़ा है। फैन हो गई आपकी...


संन्यासी शिवम:– हां लेकिन आर्यमणि ने अपनी शक्ति का सही उपयोग किया, वरना इनका हवाई हमला वाकई खतरनाक था।


निशांत:– खतरनाक... ऐसा खतरनाक की भ्रमित अंगूठी के पूरे भ्रम हो ही उलझा दिया।


आर्यमणि:– क्या बात कर रहा है।


निशांत:– हां सही कह रहा हूं। मुझ पर तो हवा का ही हमला हो गया भाई... अब जिस चीज से भ्रमित अंगूठी भ्रम पैदा करती हो, उसी को कोई हथियार बना, ले फिर क्या कर सकते है?


आर्यमणि:– मुझे क्या पता... तू ही बता क्या कर सकते हैं?


निशांत:– मैं बताता हूं ना, क्या कर सकते है... मुझे अभी तरह–तरह के भ्रमित मंत्र पर सिद्धि हासिल करना होगा। वैसे तूने भी तो हवा को कंट्रोल किया था?


आर्यमणि:– नही... मैंने हवा को नियंत्रण नही किया बल्कि अपने अंदर की दहाड़ वाली ऊर्जा को हवा में बदलकर बस उल्टा प्रयोग किया था.…


संन्यासी शिवम:– फिर तो प्रयोग काफी सफल रहा। इस बिंदु पर यदि ढंग से अभ्यास करो तो अपने अंदर की और कई सारी ऊर्जा को उपयोग में ला सकते हो...




आर्यमणि:– हां आपने सही कहा। वैसे लंबी–लंबी श्वास लेना मैने उसी पुस्तक के योगा से सीखा है, जो आपने दी थी। मुझे लगता है अब हमे चलना चाहिए...


निशांत, आर्यमणि के गले लगते.… "हां बिलकुल आर्य। अपना ख्याल रखना और नए सफर के शुरवात की शुभकामनाएं।


आर्यमणि:– और तुम्हे भी अपने नए सफर की सुभकामना... पूरा सिद्धि हासिल करके ही हिमालय की चोटी से नीचे आना..


दोनो दोस्त मुस्कुराकर एक दूसरे से विदा लिये। संन्यासी शिवम ने पोर्टल खोल दिया और दोनो वहां से गायब। उन दोनो के जाते ही आर्यमणि, अपने पैक के पास पहुंचा। वो लोग दूसरी वैन लाकर सरदार खान को उसमे शिफ्ट कर चुके थे। आर्यमणि के आते ही सबको पहले चलने के लिये कहा, और बाकी के सवाल जवाब रास्ते में होते रहते। पांचों एक बड़ी वैन मे सवार होकर नागपुर– जबलपुर के रास्ते पर थे।
Bahut tagadi planing thi
Aryamani bhi nahi samajh
Paya secret body ke 8 takatvar
Yoddha to gaye ab age dekhna hoga
Kya hota hai
 

Tiger 786

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भाग:–51






शुक्रवार का दिन था, पलक और आर्यमणि एक पंडित से मिले मिलकर सही मूहरत का पता किये। मूहरत पता करने के बाद आर्यमणि आज से ही काम शुरू करता। शायद एक छोटी सी बात आर्यमणि के दिमाग से रह गई। पूर्णिमा के दिन ही राजदीप और नम्रता की शादी नाशिक में थी। इस दिन पुरा नागपुर प्रहरी शादी मे होता और पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के चरम कुरुरता की रात। कुछ लोगो की काफी लंबी प्लांनिंग थी उस रात को लेकर। जिसकी भनक किसी को नहीं थी। शायद स्वामी, प्रहरी समुदाय के दिल यानी नागपुर में उस रात कुछ तो इतना बड़ा करने वाला था कि नागपुर इकाई और यहां के बड़े-बड़े नाम का दबदबा मिट्टी मे मिल जाता।


एक पुख्ता योजना जहां सुकेश भारद्वाज के घर से अनंत कीर्ति की पुस्तक को चुरा लेना था। जिसके लिए धीरेन स्वामी पूरे सुरक्षा व्यवस्था में सेंध मारने के पुख्ता इंतजाम कर चुका था। इस बात से बेखबर की संतराम और पुराने सुरक्षाकर्मी एक साथ क्यों और कहां छुट्टी पर चले गये। जब कुछ दिनों के लिये नए सुरक्षाकर्मी की बहाल हुई, तब वहां स्वामी के लोग ही बहाल हुये। स्वामी अनंत कीर्ति पुस्तक की चोरी के जरिये सीधा भारद्वाज परिवार पर निशाना साधने वाले था। चूंकि अनंत कीर्ति की पुस्तक जो की प्रहरी मुख्यालय में होनी चाहिए थी, उसे उज्जवल भारद्वाज और देवगिरी पाठक के कहने पर ही सुकेश भारद्वाज के पास रखा गया था। यदि एक बार सुकेश भारद्वाज के घर से वह पुस्तक चोरी हो गयि, फिर प्रहरी से भारद्वाज और उसके सहयोगी को न सिर्फ बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता था, बल्कि उन्हें महाराष्ट्र की सीमा से भी बाहर फेंक देते। बेचारा स्वामी, जिस पुस्तक के इर्द–गिर्द अपनी पूरी चाल चल रहा था, उसे तो यह भी नही पता था कि वर्तमान समय में वह पुस्तक कहां है और किसकी देख रेख में है।


दूसरी प्लांनिंग सीक्रेट बॉडी की थी, जब उन्हे पता चलता की पुस्तक खुल चुकी है। उसी के बाद आर्यमणि और उसके पैक को खत्म किया जाना था। बहरहाल जिनकी जो भी प्लांनिंग थी, वो कहीं ना कहीं आर्यमणि के प्लांनिंग वाली रात की ही थी। क्योंकि आर्यमणि ने भी उसी रात को चुना था जब नागपुर प्रहरी अपने शहर मे ना हो।


फिलहाल इन सब बातों से एक किनारे रखकर अभी तो अनंत कीर्ति की किताब पर काम चल रहा था। पंडित जी से मुहरत के बारे में पूछकर, पलक और आर्यमणि दोनो भूमि के घर पहुंचे। दिन का वक़्त था घर में नौकरों के सिवा कोई नहीं। पलक के दिल के सुकून के लिये आर्यमणि ने किताब निकाली और पलक को बाहर खड़े होकर देखने के लिये कह दिया। उसने किताब पर जैसा ही सौम्य स्पर्श किया, वह किताब चमकने लगी। किताब में जैसे ही चमक दिखी, आर्यमणि ने एक दिखावटी अनुष्ठान शुरू किया, जो पलक के दिल को सुकून दे रहा था।


अनुष्ठान खत्म करके आर्यमणि अपने कमरे में आया। पलक भी उसके पीछे कमरे में आयी और दरवाजा बंद करते… "कल रात दर्द ना के बराबर हुआ और मज़ा ऐसा की दिमाग से उतर नहीं रहा है। आर्य, एक बार और करते है ना।"..


आर्यमणि आंख मारकर पलक को अपने करीब खींचा.. पलक उसे एक छोटी सी किस्स देती हुई कहने लगी… "तुमने मुझे बिगाड़ दिया आर्य।"..


आर्य:- मुझे भी तुम्हारे साथ बिगड़ने में बहुत मज़ा आता है। वरना मुझे बिगाड़ने के लिए बहुत सी लड़कियां आयी और मेरी बेरुखी झेलकर चली गई।


"मै हूं ना मेरे साथ जितना बिगड़ना है बिगड़ लिया करो।" कहती हुई पलक ने होंठ से होंठ लगा दिये। इस बार पलक अपने दहकते अरमान के साथ आर्यमणि के पैंट का बटन खोलकर अपने हाथ उसके अंडरवियर के अंदर डाल दी। सेमी इरेक्ट लिंग को वो अपनी मुट्ठी में पकड़ कर भींच रही थी और तेज चलती श्वांस के साथ आर्य का हाथ अपने स्तन और योनि में एक साथ मेहसूस कर रही थी।


अदभुद क्षण थें। लिंग की गर्मी को हाथ पर मेहसूस करना और मुट्ठी में भर कर खेलने का एहसास ही कुछ अलग था। आज आर्य और भी बिजली गिराते, कपड़े निकालकर उसे सीधा लिटाया और होंठ से उसके बदन को चूमते हुये, जैसे ही होंठ उसके योनि पर डाला, पलक बेचैनी से पागल हो गयि। पूरा मज़ा आज तो दिन के उजाले में था। ऐसा लग रहा था कि वो आर्य को छोड़े ही नहीं। दोनो जब कपड़े पहन कर वापस से तैयार हुये, पलक आर्यमणि के होंठ चूमती… "आज दिन बाना दिया।"..


आर्यमणि:- अभी रात बाकी है।


पलक:- नहीं रात में मत आना। दीदी मेरे साथ होगी। शादी की रस्में शुरू हो गयि है, हम दिन में मज़े करेंगे ना।


आर्यमणि:- मेरा तो अभी एक बार और मन हो रहा है।


पलक, एक हाथ मारते… "सब मेरी ही ढील का नतीजा है। अच्छा सुनो, कल से लेकर शादी तक कॉलेज ऑफ रखना। अब दोस्तो के साथ टिले पर जाकर बहुत बियर पी ली। सब बंद। शादी तक मेरी हेल्प करोगे। और ये तुम्हारी रानी का हुक्म है।


आर्यमणि:- अब रानी का हुक्म कैसे टाल सकतें है। चलिए…


शनिवार की सुबह… आर्यमणि ठीक से उठा भी नहीं था कि सुबह-सुबह पलक का कॉल आ गया।…. "माझा हीरो कसा आहे।"..


आर्यमणि:- जम्हाई और अंगड़ाई ले रहा हूं।


पलक:- वाशरूम जाओ और सीधा नहाकर ही निकालना, मै थोड़ी देर में तुम्हे पिकअप करने आ रही हूं। तैयार हो जाओ मेरी मॉर्निंग बनाने के लिए।


आर्यमणि:- जैसी आपकी इक्छा।


आर्यमणि फटा फटी तैयार होकर घर के दरवाजे पर इंतजार करने लगा। कार रुकी दोनो अंदर और पलक कार ड्राइव करने लगी।.... "सुबह-सुबह पोर्न देखकर आ रही हो क्या?"..


पलक:- तुम्हारे जिस्म को याद करते ही पूरे होश खो देती हूं, मुझे क्यूं पोर्न की जरूरत पड़ने लगी...


कार और भी रफ्तार से बढ़ी और कुछ दूर आगे जाने के बाद एक वीराने से जंगल में रुकी। कार का दरवाजा सेंट्रल लॉक। उजले सीसे पर काला सीसा चढ़ गया। सीट पीछे की ओर थोड़ा खिसकर नीचे झुका। इधर पलक अपने पाऊं से पैंटी निकालने लगी और आर्य अपने जीन्स को घुटने में नीचे करके नंगा हो गया।


आर्य ने कंधे से स्ट्रिप को खिसकाकर ड्रेस को पेट पर जाने दिया। ब्रा के कप को ऊपर करके दोनो स्तन जैसे ही हाथ में लिया… "साइज कुछ बढ़ गए है क्या".. "उफ्फ बातें तो रास्ते भर पूछ लेना, मज़ा मत खराब करो आर्य।".. पलक सीट के पीछे टिककर अपने दोनो पाऊं पूरा फैलाकर, आर्यमणि को अपने ऊपर लेकर उसके होंठ को चूसने लगी...


कुछ देर होटों का रसपान करने के बाद आर्यमणि स्तनों को अपने मुंह से लगाते उसके निप्पल को चूसने लगा और पलक अपने हाथ नीचे ले जाकर उसके लिंग पर हाथ फेरने लगी। पलक, आर्यमणि का शर्ट खींचकर उसका चेहरा अपने चेहरे के ठीक ऊपर लाकर, अपने उंगलियों पर जीभ फेर दी। अपनी गीली उंगली योनि से रगड़ती, लिंग को पकड़कर अपने योनि के ऊपर घिसने लगी।


आर्यमणि, पलक की आखों में देखते हुए, लंबा धक्का मारकर अपना पूरा लिंग एक बार में, योनि में घुसा दिया... "आह्हहहहह, ऊम्ममममम, उफ्फफफफफफफ अद्भुत सुबहहहहहहहहहहहह"… पलक अपने होटों को दातों तले दबाकर, अपने बड़े नाखून वाले हाथ आर्य के चूतड़ पर रखी और पूरी नाखून उसके चूतड़ में घुसाकर आर्यमणि के कमर का सपोर्ट लेती नीचे से अपनी कमर को ऊपर उछालती, लंबे और कड़ारे धक्कों का मज़ा लेने लगी। आर्यमणि की कमर नीचे धक्का लगा रही होती। पलक कमर ऊपर उछाल रही होती और दोनो खुलकर... "उफ्फफफफफफ.. आह्हहहहहहहह"


कुछ ही देर में दोनो चरम पर थे और आर्यमणि योनि में अपना सारा द्रव्य गिराकर, पास वाली सीट बैठकर हाफने लगा। पलक टिश्यू पेपर से साफ करती हुई कहने लगी… "आर्य, कंडोम इस्तमाल किया करो ना। ये क्या चिपचिप अंत में छोड़ जाते हो। स्वीपर बाना दिया है।"..


आर्य अपने कपड़े ठीक करते… "सॉरी"..


पलक:- अब मुझसे भी ऐसे ही रिएक्शन दोगे। अच्छा जो मर्जी वो करना लेकिन मुझसे प्लीज ये 1-2 शब्दो वाले रिएक्शन नहीं दिया करो।


आर्य:- हम्मम ! समझ गया..


पलक:- ऑफ ओ ये हम और तुम वाली जो मुंह बंद करके साउंड देते हो, वो भी बंद करो मेरे साथ।


आर्यमणि, पलटा और उसके होंठ से होंठ लगाकर चूमते हुए उसकी पैंटी कमर तक लाने में मदद करने लगा। आर्यमणि चूमकर अलग बैठते… "अब हैप्पी ना"


पलक:- हां ऐसे कोई शिकायत नहीं रहेगी।


दोनो की गाड़ी फिर से चल परी, प्यार भरी बातों के साथ दोनो आगे बढ़ते रहें। 8 बजे तक गांव पहुंचकर वहां सभी लोगो को शादी में आने का आमंत्रण दी और फिर दोनो वहां से वापस निकल लिये।


दिन के करीब 2 बजे आर्यमणि शादी के काम से फुरसत होकर घर पहुंचा। सभी लोग खाकर अपने-अपने कमरे में आराम कर रहे थे। केवल हाल में माते जया थी, जो जबरदस्ती भूमि को अपने हाथ से खाना खिला रही थी।


वहीं पास में आर्यमणि भी बैठ गया।.… "मां मुझे भी खिलाओ।"… "तू मेरे पास बैठ मै तुझे खिलाती हूं।".. भूमि अपने पास बुलाती कहने लगी। नजारा ही कुछ ऐसा था कि सभी घर के लोग और नौकर देखने में लग गये। जया, भूमि को अपने हाथ से खिला रही थी और भूमि आर्यमणि को।


"क्यों रे आज कल बड़ा ससुरारी बन रहा है। हमे भी तरह-तरह के फंक्शन्स अटेंड करने है, मां को शॉपिंग करवाये ये ख्याल नहीं।"…. जया, आंख दिखाती हुई पूछने लगी। पीछे से भूमि की भाभी वैदेही भी साथ देती... "खाली मां को ही क्यों, मासी है, भाभी है। फिर वो दोनो मयंक और शैली उसपर तो इसका ध्यान ही नहीं रहता।"


आर्यमणि क्या कहता, शाम के वक्त शॉपिंग के लिये हामी भर दिया। शाम के वक़्त पूरी भारद्वाज फैमिली, अपने दूसरे भारद्वाज फैमिली के यहां फंक्शन अटेंड करने जा चुके थे। भूमि और जया, आर्यमणि को लेकर शॉपिंग के लिये निकली।…


भूमि:- आर्य पीछे एक बैग में छोटा सा हार्ड डिस्क और लैपी है। संभाल कर अपने पास रख लेना।"


आर्यमणि:- उसमे क्या है दीदी?


भूमि:- प्रहरी में रहकर मेरा करप्शन का तेरा हिस्सा...


आर्यमणि:- हाहाहाहा.. कितना है।


भूमि:- मेरा करप्शन या तेरा हिस्सा।


आर्यमणि:- दोनो।


भूमि:- सॉरी भाई मेरा धन कितना है वो बताना वसूल के खिलाफ है। तुझे मैंने 2 मिलियन यूएसडी दी हूं, जिसकी अकाउंट डिटेल हार्ड डिस्क मे है। ट्विंस के पास पहले से अलग-अलग अकाउंट है, जिसपर 1 मिलियन यूएसडी है। रूही के पास 1 करोड़ कैश पड़ा हुआ है। इसके अलावा तेरे डिमांड के सारे आइटम तेरे पैक के पास पहुंच गया है। बस तू अपना ख्याल रखना और यहां से जाने के बाद कॉन्टैक्ट में बिल्कुल भी मत रहना।


जया:- बिल्कुल बिंदास होकर जीना, जैसे हमने जीना शुरू किया है। क्योंकि उन्होंने हमे प्रहरी के नाम पर कितनी अच्छी और प्यारी बातें सीखा दी थी। जीना प्रहरी के लिये, मारना प्रहरी के लिये, किन्तु जब इनके करतूत देखे तो पता चला हम इनके लिये मरते रहे और ये उसके पीछे अपना काला मकसद साधते रहे। अगर सरदार खान नहीं भी मरता है तो भी वैल एंड गुड। लेकिन यदि तू उसे मारकर निकला तो समझ हम यहां अंदर ही अंदर नाच रहे होंगे।


तीनों बात कर ही रहे थे कि तभी आर्यमणि के मोबाइल पर संदेश आया और ठीक उसके बाद कॉल… आर्यमणि सबको चुप कराते फोन स्पीकर पर डाला… "हेल्लो, जी कौन"..


देवगिरी पाठक:- तुम्हारा फैन बोल रहा हूं, देवगिरी पाठक।


आर्यमणि:- नमस्ते भाऊ..


देवगिरी:- "खुश रहो…. सुनो मै इधर-उधर की कहानी में ज्यादा विश्वास नहीं रखता, इसलिए पहले सीधा काम की बात करता हूं। मै अपने धंधे का 40% हिस्सा तुम्हे दे रहा हूं, सिर्फ इस विश्वास पर की तुम उनके लिए एक मेहफूज और अच्छा ठिकाना बना पाओ, जो है तो इंसान (वेयरवोल्फ) लेकिन इंसानों के साथ नहीं रह सकते।"

"कंपनी की अकाउंट डिटेल और जरूरी जानकारी तुम्हे मेल करवा दिया है। कंपनी के किस-किस हिस्सेदार के पास कितना प्रोफिट जा रहा है, वो फिगर मिलता रहेगा। बाकी इसपर विस्तार से मै शादी में मिलकर बताऊंगा। रखता हूं अभी।"


फोन कट होते ही…. "चालाक भाऊ, इस बार फंस गया।".. भूमि अपनी प्रतिक्रिया दी।


जया:- मांझे..


भूमि:- मासी वेडा आहे, बब्बोला आज अडकला (पागल है वो मासी, बड़बोला आज फंस गया)


आर्यमणि:- थोड़ा क्लियर बताओ।


भूमि:- मेरे सारे पैसे बच गये रे, वरना मै सोच रही थी तू कब लौटेगा और मै आते ही तुझे बिजनेस में लगाकर कितनी जल्दी अपने पैसे वसूल लूं। लेकिन देख भाऊ को अपनी वाह–वाही की ज्यादा पड़ी है। आम मेंबर के बीच कहता सदस्य ना होने के बावजूद मैंने आर्यमणि को उसके अच्छे काम के लिए 40% हिस्सेदारी दिया। सिर्फ उसके प्रहरी जैसे काम की वजह से.. ..


आर्यमणि:- अब मेरे पास कितने पैसे आएंगे।


भूमि:- अंदाजन 270 मिलियन यूएसडी तेरा हिस्सा। जा बेटा अब तो पूरे एश है तेरे। तू पूरी डिटेल मुझे एक हार्ड डिस्क में दे जरा।


आर्यमणि:- मेल फॉरवर्ड ही करता हूं ना।


भूमि:- भूलकर भी नहीं। पैसे की चोरी जब करने जाओ तो कोई ऑनलाइन बात चित नहीं। अच्छा हां और एक बात। तेरे आर्म्स एंड अम्युनेशन वाली फैक्टरी मै निशांत, चित्रा और माधव के हवाले करूंगी। इस बार इस साले स्वामी को भी आड़े हाथ लेना है। भूमि इमोशनल फूल नहीं है, स्वामी ये तुम भी समझ लो..


आर्यमणि:- तो मुझे क्या करना होगा दीदी...


भूमि:- एक सहमति पत्र और एक अधिग्रहण पत्र, उसके अलावा कुछ ब्लैंक स्टाम्प पेपर पर सिग्नेचर, इतना ही.. एक ही वक्त मे चारो ओर से मारेंगे इन कुत्तों को। ऐसा हाल करूंगी की नागपुर में प्रहरी और शिकारी घुसने से पहले 1000 बार सोचेंगे...

आर्यमणि:– और ये स्वामी कौन है...


भूमि:– एक धूर्त, जिसके प्यार में अंधी होकर पिछले बार इसके धोखे को नही पहचान पायि। खुद को बहुत शातिर समझता है। आर्म्स एंड एम्यूनेशन कम्पनी वाला झोल इस बार स्वामी को भीख मांगने पर मजबूर करवायेगा ..


आर्यमणि:– फिर तो इस काम को सबसे पहले करना है...


शादी में सिर्फ एक हफ्ता रह गये थे और इधर जोर शोर से काम चल रहा था। पलक शादी के साथ-साथ अपने जीवन के नए रोमांच में भी काफी व्यस्त थी और सब चीजों का लुफ्त बड़े मज़े से उठा रही थी। घर परिवार और पलक से फ्री होने के बाद आर्यमणि शाम के करीब 5 बजे अपने पैक के पास पहुंचा।…चारो आराम से बैठकर टीवी पर मूवी देख रहे थे।


आर्यमणि:- क्या चल रहा है यहां…

रूही:- बोर हो गए तो सोचे टीवी देख ले।

आर्यमणि:- ट्विंस यहां मेरे पास आ जाओ।

अलबेली:- भईया जल्दी इन्हे पैक में सामिल करो…

आर्यमणि रूही के ओर देखने लगा। रूही अलबेली से… "अलबेली तू इधर आ जा".

"आई ने तुम्हे हमारा नाम नहीं बताया क्या।"… दोनो एक साथ पुछने लगे।


आर्यमणि:- जी बताया है, खूबसूरत और प्यारी सी दिखने वाली लड़की है ओजल, और उसका खूबसूरत और ईश्वरीय बालक का नाम है इवान। सो तुम दोनो लगभग 2 महीनो से यहां हो। कैसा लगा हम सब के साथ रहकर।


ओजल:- कुछ मजबूरी थी जो आई हमे बाहर नहीं निकाल सकती थी, खुलकर जीना किसे पसंद नहीं।


इवान:- मुझे भी अच्छा लगा। आई अक्सर कहा करती थी, तेरे आर्य भईया आये है और उसके काम को देखकर ऐसा लगता है कि तुम्हे वो ज़िन्दगी मिलेगी जो तुम्हारा सपना है।


आर्यमणि, दोनो के सर पर हाथ फेरते…. "एक वुल्फ का पैक ही उसका परिवार होता है। बदकिस्मत वुल्फ होते है वो, जिनके पैक टूट जाते है और लोग अलग हो जाते है। क्या तुम हमारे साथ पैक में रहना पसंद करोगे।


दोनो भाई बहन एक साथ… "जी बिल्कुल"..


थोड़ी ही देर में रश्म शुरू हुई। पहले इवान को प्रक्रिया बताई गई और ओजल को देखने कहा गया। इवान भी रूही और अलबेली की तरह ही अपने अंदर कुछ मेहसूस कर रहा था और अपने हाथ को ऊपर से लेकर नीचे तक देख रहा था। उसके बाद बारी आयी ओजल की। उसने भी पूरी प्रक्रिया करके पैक में सामिल हो गयि। चूंकि रूही, अलबेली और आर्य को सभी लोग जानते थे इसलिए हवा में फूल को उड़ेलने वाला तकरीबन 1000 ड्रोन खरीदने की जिम्मेदारी ओजल और इवान पर सौंप दी गयि। आगे की तैयारी के लिए रूही को योग्य दिशा निर्देश मिले। रूही समझ गयि और तय समय तक तैयारी कि जिम्मेदारी ले ली।
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भाग:–52






मंगलवार की सुबह थी। सुबह-सुबह ही राजदीप का फोन आर्यमणि के मोबाइल पर बजने लगा। आर्यमणि फोन पिकअप करते… "सुबह-सुबह मेरी याद कैसे आ गयि भईया। आपको तो अभी किसी और के साथ व्यस्त होना था।"..


राजदीप:- बाकी सबसे तो बात होते रहेगी, लेकिन मै तुम्हे मेरी शादी के लिये खास आमन्त्रित करता हूं। बारात में रंग तुम्हे ही जमाना है।


आर्यमणि:- इसके लिये पहले ही पलक वार्निग दे चुकी है भईया। बोली मेरे राजदीप दादा और दीदी के लगन में तुमने रंग ना जमाया तो हम कोर्ट मैरिज करेंगे, भुल जाना कोई धूम–धाम वाली शादी होगी।


राजदीप:- हाहाहाहा… ज्यादा बातें नहीं करती वो मुझसे लेकिन बहुत चाहती है मुझे। अच्छा मेरा एक छोटा सा काम करोगे।


आर्यमणि:- कहिए ना भईया।


राजदीप:- पलक से साथ मुंबई चले जाओ वहां पर सबके डिज़ाइनर कपड़े बने हुए है उसे लेकर आना है।


आर्यमणि:- एक काम कीजिये आप डिटेल सेंड कर दीजिए मै वहां चला जाता हूं। घर में अभी बहुत से काम होंगे, पलक का वहां होना जरूरी है।


राजदीप:- वो बात नहीं है, दरसअल पलक तुम्हारे लिये वहां से कुछ अपनी पसंद का खरीदना चाहती है। वो तुमसे थोड़ी झिझक रही है बात करने में, और यहां मुंह फुलाए बैठी है, कि सबके लिए आया आर्य के लिए क्यों नहीं?


आर्यमणि:- बच्चो जैसी जिद है। मुझे अच्छा नहीं लगेगा यूं ऐसे अभी कुछ लेना। सॉरी भईया मै वो कपड़े तो ले आऊंगा लेकिन अपने लिये कुछ लेना, मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा।


"फोन स्पीकर पर ही है, और तू अपने दिल, जिगर, गुर्दे, कलेजे को अंदर डाल। ये मै कह रही हूं। जैसा राजदीप ने कहा है वो कर। कुछ कहना है क्या तुम्हे इसपर?"…… "नहीं कुछ नहीं आंटी। मैं जाता हूं।"


अक्षरा:- जाता हूं नहीं। यहां आ पलक को ले, और फिर दोनो एयरपोर्ट जाओ। आज तुम दोनों का काम सिर्फ मुंबई घूमना और कपड़े लेना है। आराम से शाम तक शॉपिंग करके सीधा नाशिक पहुंचना। और सुन.. नहीं छोड़ तू यहीं आ फिर बात करती हूं।


कुछ वक़्त बाद आर्यमणि, पलक के घर पर था। दोनो के मुंबई निकलने से पहले अक्षरा, पलक को शख्त हिदायत देकर भेजी, आर्य के पास कम से कम गले और हाथ में पहनने के लिए डायमंड और प्लैटिनम की ज्वेलरी तो होनी ही चाहिए। आर्यमणि गुस्से में चिढ़ते हुए कहता भी निकला..… "बप्पी लहरी ही बना दो।"…. (माफ कीजिएगा यह तब का लिखा था जब बप्पी दा इस दुनिया में थे। उनको भावनापूर्ण श्रद्धांजलि। ॐ शांति !!) उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे। जैसे ही कार में बैठकर दोनो कुछ दूर आगे निकले, अपनी सुबह को दुरुस्त करते एक दूसरे के होंठ को बड़ी बेकरारी में चूमे और एयरपोर्ट के लिये निकल गये।


तकरीबन 8.30 बजे सुबह दोनो मुंबई एयरपोर्ट पर थे जहां उनके लिये पहले से एक कार पार्क थी। देवगिरी की वो भेजी कार थी, दोनो उसमे सवार होकर पहले तो देवगिरी के घर पहुंचे जहां बहुत सी बातों पर चर्चा हुई। खासकर देवगिरी के अकूत संपत्ति में से 40% हिस्से को लेकर। दोनो फिर देवगिरी के ड्राइवर के साथ पहले एक बड़े से ज्वेलरी शॉप में गये, जहां पलक ने अपनी पसंद के 2 प्लैटिनम ब्रेसलेट और एक गले का हार खरीदी।


वहां से दोनो पहुंचे फैशन स्टोर। मुंबई की एक महंगी जगह जहां सेलेब्रिटी अपने कपड़ों के लिए आया करते थे। यूं तो ये शॉप 12 बजे खुलती थी, लेकिन देवगिरी का एक कॉल ही काफी था शॉप को 11.30 बजे ओपन करवाने के लिये। पलक ने अपने लिए 4-5 ड्रेस सेलेक्ट की और आर्यमणि के लिये भी उतने ही। दोनो अपने अपने कपड़े लेकर आखरी के ट्रायल रूम के ओर बढ़ रहे थे।


जैसे ही पलक ट्रायल रूम में घुसी, आर्य तेजी के साथ उसी ट्रायल रूम में घुसा और पलक को झटके से दीवार से चिपकाकर उसके गर्दन पर अपने होंठ लगाकर चूमने लगा। पलक भी आर्य के बदन को स्मूच करती उसके चेहरे को ऊपर लेकर आयि और होंठ से होंठ लगाकर किस्स करने लगे।


पलक मिडी ड्रेस पहनकर निकली थी। कूल और स्टाइलिश सिंगल ड्रेस जो नीचे घुटनों तक आती थी। आर्यमणि अपने हाथ नीचे ले जाकर, घुटनों तक लंबे ड्रेस को कमर के ऊपर चढ़ा दिया और पैंटी को किनारे करके योनि के साथ खेलने लगा.….. "आह्हहहहहहह, उफ्फफफ, आह्हहहहहहहह"


पलक पूरा मुंह खोलकर मादक सिसकारियां लेने लगी। आर्यमणि भी उसकी उत्तेजना बढाते, गर्दन पर लव बाइट देते, अपनी उंगली योनि के अंदर डालकर पलक के बदन में भूचाल मचा रहा था। पलक उत्तेजना मे पूरा मुंह खोलकर मादक सिसकारी लेती हुई, अपने हाथ नीचे ले जाकर आर्यमणि के पैंट का जीप खोल दी। लिंग को बाहर निकालकर अपने हाथ से उसे आगे-पीछे करके पूरा तैयार करती, अपने योनि के ऊपर घिसने लगी।


पलक ये उत्तेजना संभाल नहीं पायि और अपने दोनो पाऊं आर्यमणि के कमर मे डालकर उसके गोद में चढ़ गई। आर्यमणि अपनें बांह में उसका पूरा बदन जकर कर अपने ऊपर लिटा दिया और होंठ को पूरे मदहोशी से चूसने लगा। पलक भी उतनी ही मदहोश। अपने हाथ नीचे ले जाकर लिंग के सुपाड़े को अपने योनि के अंदर घुसाई और कमर को हल्का नीचे के ओर धक्का दी... "आह्हहहह.. आह्हहह ……. आह्हहहहहहह.. आर्य.. आह्हह.. और तेज… हां.. हिहिहिही... हां.. हां.. उफ्फफफ.. मज़ा आ गया आर्य.. ईशशशशशश.. धीमे नहीं आर्य.. पूरे जोश से.. यसससस... आह्हहहह"….


उफ्फ क्या मादक एहसास था। दोनो एक दूसरे के होंठ चूमते लगातार धक्के लगा रहे थे। बिल्कुल रोमांचित करने वाला एहसास था। थोड़ी देर में दोनो फारिग होकर श्वांस सामान्य करने लगे। सामान्य होकर दोनो की नजर एक दूसरे पर गयि और दोनो एक दूसरे को देखकर हसने लगे। पलक ने आर्यमणि का चेहरा अपने दोनो हाथ में थामकर उसे पूरा चूमा… "आर्य अब फुर्ती दिखाओ।"..


आर्यमणि अपने ट्रॉयल करने वाले कपड़े समेटकर गेट को हल्का खोला। नजर पहले दाएं, फिर बाएं और किसी को इस ओर आते ना देखकर वो सटाक से दूसरे ट्रायल रूम में पहुंच गया। दोनो अपने लिये वहां से 2 ड्रेस सेलेक्ट किये। पलक ने अपनी पसंद की एक शानदार टैक्सिडो जबरदस्ती आर्यमणि से लड़कर, आर्यमणि के लिए खरीदी, जो दिखने में वाकई कमाल का था। नए लिये ड्रेस का फीटिंग माप लेकर, ड्रेस डिजाइनर ने फिटिंग के लिए 2 घंटे का वक्त लिया। पलक वहां से आर्यमणि को लेकर एसेसरीज खरीदने निकली। मैचिंग फुट वेयर इयर रिंग इत्यादि।


तकरीब 4 बजे शाम तक दोनो पूरे शॉपिंग से फ्री हुए और रात के 8 बजे नाशिक के उस रिजॉर्ट में पहुंच चुके थे, जहां शादी से 5 दिन पहले सारे करीबी अतिथि के साथ, शादी वाले परिवार पहले से पहुंचे हुये थे। रंगारंग कार्यक्रम के बीच एक-एक दिन करके आखिर वो दिन भी आ ही गया जब जया और भूमि के कहे अनुसार आर्यमणि अपनी जिंदगी जीने निकलता।


कुल मिलाकर एक उत्कृष्ठ फैसला जहां पहले के कई महीने आर्यमणि के लिए काफी मुश्किल भरा गुजरा था। वो चीजों को जितना जल्दी हल करने की कोशिश कर रहा था, चीजें उतनी ही उलझती चली जा रही थी। वहीं जबसे मां और भूमि दीदी ने उम्मीद से भरा रास्ता दिखाया था, सब कुछ जैसे आसान सा हो गया था। आर्यमणि के मन में ना तो अब किसी भी प्रकार के सवाल को लेकर चिंता थी। और ना ही प्रहरी कौन है और कैसा समुदाय उसकी चिंता। उसे बस एक छोटा सा काम शौपा गया था, सरदार खान की हस्ती को खत्म करके यदि उससे कोई जानकारी निकले तो ठीक, वरना जिंदगी जीने और खुलकर जीने के लिये इन सब से कहीं दूर निकल जाये।


भविष्य क्या रंग लाती वो तो आने वाले वक़्त का सस्पेंस था, जिसे आज तक कोई भविष्य वक्ता भी ढंग से समझ नहीं पाये थे। फिर क्या इंसान और क्या सुपरनेचुरल आने वाले वक़्त में किसी काम को सुनिश्चित कर पाते। हां वो केवल वर्तमान समय में आने वाले वक़्त के लिए योजना बनाकर, भविष्य में किसी कार्य को संपन्न करने कि सोच सकते थे और वो कर रहे थे।


धीरेन स्वामी जो प्रहरी में ताकत की लालच से आया था, वो बहुत सी बातों से अनभिज्ञ अपनी पूर्ण योजना में लगभग सफल हो चुका था। जहां एक ओर उसने अतीत में हुये अपने साथ धोके का बदला ले लिया था, और 22 में से 20 मेंबर के खिलाफ उसने पूरे सबूत जुटा लिये थे। उन्हे पूर्ण रूप से बहिष्कार तथा महाराष्ट्र से बाहर निकालने की तैयारी चल रही थी। वहीं दूसरी ओर आज रात भारद्वाज के घर चोरी के बाद, वह भारद्वाज को भी बाहर का रास्ता दिखाने वाला था।


वहीं दूसरे ओर सरदार खान अपने लगभग 180 कूरूर समर्थक और 6 अल्फा के साथ पूर्ण चांद निकलने का इंतजार कर रहा था। इस बार वह भी आर्यमणि की ताकत को खुद से कहीं ज्यादा आंककर तैयारी कर रहा था, इस बात से अनजान की उसके मालिकों (प्रहरी सीक्रेट बॉडी) ने अभी उसकी किस्मत लिख डाली थी बस फने खान को उसके अंजाम तक पहुंचाना था।


इस शादी में प्रहरी के सिक्रेट बॉडी के सभी लोग मौजूद थे जिनके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता था। हर सीक्रेट बॉडी प्रहरी अपने कुछ करीबी प्रहरी को भी साथ रखते थे, ताकि उनका मकसद पूरा होते रहे, बिना किसी परेशानी के। शाम ढलते ही चांद दिख जाता। पूर्णिमा की देर रात सबसे पहली लाश रूही और उसके बाद अलबेली की गिड़नी थी। अलबेली के बाद उन 20 शिकारी का नंबर आता, जिसे भूमि ने सरदार खान और उसकी बस्ती पर, 20 अलग-अलग पोजीशन से नजर रखने बोली थी। इन प्रहरी का शिकार करने के बाद चिन्हित किये 200 आम लोग को 50 अलग-अलग सोसायटी में हैवानियत के साथ मारा जाता। पुलिस और प्रशासन को भरमाने के लिए इन सारी घटनाओं को अलग-अलग इलाकों में जंगली जानवर का प्रकोप दिखाया जाता। इसके लिए दूर जंगल से जंगली कुत्ते लाये गये थे और उन्हें इंसान के मांस का भक्षण करवाया जा रहा था।


इंसानी मांस एक एडिक्ट मांस होता है। यदि किसी मांसाहारी को इंसानी मांस और उसका खून मुंह में लग जाए, फिर वो कई दिनों तक भूखा रह लेगा, लेकिन खायेगा इंसानी मांस ही। इसका बेहतरीन उधारहण शेर है, जिसे एक बार इंसानी मांस और खून की लत लग जाए फिर वो कुछ और खाता ही नहीं। एक पूर्ण कैलकुलेट योजना जिसके अंजाम देने के बाद सरदार खान अपने कुछ साथियों के साथ गायब हो जाता। जैसा की सरदार खान को सीक्रेट बॉडी द्वारा करने कहा गया था। वहीं दूसरी ओर सीक्रेट बॉडी की आंतरिक योजना कुछ और ही थी। पूरे एक्शन के बाद सरदार खान और उसके साथियों को किले में मार देना, जिसके लिये उन्होंने फने खान को तैयार किया था। उसके बाद जब प्रहरी समुदाय सरदार खान पर एक्शन लेती तब सरदार खान को उसके साथियों समेत किले में मारने का श्रेय पलक को जाता। प्रहरी के इस एक्शन से पलक रातों रात वह ऊंचाई हासिल कर लेती जिसके लिए भूमि को न जाने कितने वर्ष लग गये।


ये सभी योजना सीक्रेट बॉडी द्वारा बनाई गयि थी, जिसके मुख्य सदस्यों में उज्जवल और सुकेश भारद्वाज थे, जो शायद सीक्रेट बॉडी के मुखिया भी थे। इनके ऊपर तो भूमि और जया को काफी सालों पहले शक हो चुका था, लेकिन दोनो में से कोई भी यह पता करने में असफल रही की आखिर ये सीक्रेट बॉडी प्रहरी इंसान ही है या कुछ और? नागपुर की घटना को अंजाम देने के बाद प्रहरी की सिक्रेट बॉडी कितने तरह के फैसले लेता, वो भी तय हो चुका था।…


1) नागपुर नरसंहार में सरदार खान का नाम बाहर आने के बाद उसे खत्म कर दिया जाना था। इसके लिये उसके बेटे और करीबी माना जाने वाले फने खान को तैयार किया गया था।


सरदार खान जब अपनी टीम के साथ भागने के लिये वापस किला आता, तो उसे एक पार्टी मे उलझाया जाता। जहां उस एक वेटनरी डॉक्टर द्वारा नया तैयार किया गया कैनिन मॉडिफाइड वायरस खाने में मिलाकर खिला दिया जाता। कैनिन वायरस कुत्तों में पाया जाना वाला एक वायरस होता है, जिसके मॉडिफाइड फॉर्म को एक वुल्फ पर ट्राय किया गया। परिणाम यह हुआ कि नाक और मुंह से काला खून निकलता। वो अपना शेप शिफ्ट नहीं कर पाता। सरदार खान को खाने में वही वायरस खिलाकर उसके इंसानी शरीर को फने खान अपने हाथो से फाड़कर, सरदार खान और उसके साथियों को लापता घोषित कर देता।


2) रात में नाशिक से लौटा हुआ आर्यमणि सीधा किताब के पास जाता इसलिए उसके किताब खुलने से पढ़ने तक आर्यमणि पर कड़ी नजर रखी जानी थी। फिर वो गार्ड जैसे ही संदेश भेजते की यहां हम सब भी किताब पढ़ सकते है। ये सूचना मिलते ही आर्यमणि के पास एक खबर पहुंचती जिसमे रूही और अलबेली सरदार खान के किले मे फंसी हुई नजर आती। गुस्से में बस आर्यमणि को किले में पहुंचना था फिर उसके जोश को दर्द भरी सिसकी में तब्दील करने कि पूरी व्यवस्था सरदार खान कर चुका था। जिसका पहला चरण भूमि के घर से देखने मिलता।


गुस्से में इंसान का दिमाग काम नहीं करता और इसी बात का फायदा उठाकर मंजे हुए स्निपर पहले आर्यमणि को ट्राकुलाइज से इतनी बेहोसी की दावा देते जिस से वह केवल गुस्से में सरदार खान के किले में केवल घुस पता। बाकी आगे की कहानी लिखने के लिए सरदार खान वहां इंतजार कर ही रहा था। कोई चूक न हो इसलिए भूमि के घर से लेकर सरदार खान के किले तक जगह–जगह पर 50 स्निपर को तैनात किया जाना था। आर्यमणि को कार से बाहर लाने और उसे एक स्थान पर रोकने के लिए रास्ते में 500 लोग अलग–अलग जगहों पर योजनाबद्ध तरीके से रखे गये थे। कहीं को बच्चा अचानक से गाड़ी के सामने आता तो कहीं रास्ते में पियक्कड़ झगड़ा करते हुये कार को रोकते।


3) एक सोची समझी योजना जिसमे अभी–अभी रिटायर हुई भूमि को पद छोड़ने से पहले जिम्मेदार लोगो की बहाल ना कर पाने के जुर्म में उसे और उसके तमाम बचे प्रहरी को 10 साल की सजा सुनाई जाती, और उन्हे महाराष्ट्र से निकाल दिया जाता।


4) अन्य इलाके जहां बीस्ट अल्फा है, जैसे की मुंबई, कोल्हापुर, पुणे, नाशिक इत्यादि जगह। वहां पूर्णिमा के रात ही इनकी चल रही पार्टी के दौरान बीस्ट अल्फा को मॉडिफाइड कानिन वायरस सेवन करवाया जाता और उसकी शक्ति को किसी और में स्थानांतरित किया जाता। जब प्रहरी वहां पहुंचते तब पता चलता सरदार खान की तरह यहां के बीस्ट अल्फा भी मारे गये है। जिसे प्रहरी का वन नाइट स्पेशल प्रोग्राम घोषित कर दिया जाता जहां सभी बीस्ट अल्फा को समाप्त कर प्रहरी नए सदस्यों के सामने अपनी नई छवि स्थापित करती।


5) जिसे बिलकुल भी नहीं जिंदा छोड़ा जा सकता था, आर्यमणि, उसके लिये विशेष शिकारियों का भी इंतजाम किया गया था। थर्ड लाइन सुपीरियर सीक्रेट शिकारी, सीक्रेट बॉडी के द्वारा तैयार किया हुआ खतरनाक शिकारियों का समूह।


एक बात तो इस योजना से साफ थी। सीक्रेट प्रहरी बॉडी जान बूझकर अच्छा और बुरा खेमा बनाये रखते थे, जहां प्रहरी सदस्य आपसे में भिड़ते रहे और एक दूसरे के खिलाफ साजिश रचते रहे। जिसे प्रहरी सीक्रेट बॉडी को कोई मतलब नहीं था। बस मकसद सिर्फ उन्हे आपस में उलझाए रखना था, ताकि कोई भी इनके ओर ध्यान न दे।
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भाग:–53





रविवार की सुबह … शादी के दिन…


मनिक्योर, पडिक्योर, स्पा, पार्लर, वैक्सिंग… पूरे रिजॉर्ट में तकरीबन 100 ब्यूटीशियन पहुंची थी, 200 लोगो को सुबह से तैयार करने। शादी की रशमें शाम को 5 बजे से शुरू हो जाती और 8 से 11 के बीच की शुभ मुहरत पर विवाह और 2 शानदार स्वीट में दोनो नए जोड़ों के सुहागरात कि पूरी व्यवस्था थी।


शादी मे पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा था, और यहां कोई अभिभावक खर्च नहीं कर रहे थे बल्कि रिजॉर्ट के खर्च से लेकर अतिथि का पूरा खर्च हर बार की तरह प्रहरी समुदाय ही उठा रहा था। देश के टॉप बिजनेस मैन, पॉलिटीशियन और कई उच्च आयुक्त के अलावा बहुत सारे सेलेब्रिटी शिरकत करने वाले थे। हर कोई सब कुछ भूलकर सजने संवरने में व्यस्त थे। वहीं आर्यमणि और निशांत रिजॉर्ट से थोड़ी दूर जंगली इलाके में पैदल पैदल चल रहे थे।..


आर्यमणि:- शादी काफी शानदार हो रही है ना।


निशांत:- आर्य जो बात बताने लाया है वो बात बता ना। मै तुझे समझ ना सकूं ऐसा हो सकता है क्या।


"तू क्या अकेला समझता है इसे। मै तो जानती ही नहीं।"… पीछे से चित्रा दौड़कर आयी और दोनो कंधे से लटकती हुई कहने लगी।


आर्यमणि:- चलकर बैठते है कहीं।


तीनों कुछ देर तक ख़ामोश बैठे रहे। फिर आर्यमणि चुप्पी तोड़ते हुए कहने लगा… "मैंने कुछ सालों के लिए गायब होने वाला हूं।"


निशांत को तो इस बात का पूरा अंदेशा था। यहां तक कि निशांत खुद भी अब काफी व्यस्त होने वाला था। पोर्टल के जरिए वह हर रात अलग–अलग जगहों पर होता और अब तो कुछ महीने ध्यान के लिये उसे हिमालय के किसी चोटी पर बिताना था। किंतु चित्रा को किसी भी बात की भनक नहीं थी। वह तो आम सी एक लड़की थी जिसकी अपनी ही एक छोटी सी दुनिया थी। जिसमे प्रहरी नाम या उसके काम ठीक वैसे ही थे जैसे अफ्रीकन देश में किसी एनजीओ के नाम या उसके काम होते है।


आर्यमणि की बात सुनकर चित्रा चौंकती हुई…. "क्या बकवास है ये।"


आर्यमणि:- शायद पिछली बार की गलती नहीं दोहराना चाहता इसलिए कुछ लोगो को बताकर जाना चाहता हूं। देखो मै जनता हूं जबसे लौटा हूं बहुत कुछ तुम दोनो से छिपा रहा हूं, लेकिन विश्वास मानो, उन चीजों से दूर रहना ही तुम दोनो के लिए सेफ है।


चित्रा, आर्यमणि के कंधे पर हाथ मारती… "पागल आज फिर रुला दिया ना।"..


निशांत अपनी बहन चित्रा का सर अपने कंधे से टिकाकर उसके आशु पूछते… "चुप हो जाओ चित्रा उसकी सुन तो लो।"..


आर्यमणि:- मै यहां रहा तो मुझे मार दिया जायेगा इसलिए मुझे चुपके से निकाला जा रहा है।


एक और आश्चर्य की बात जिसपर फिर से चित्रा चौंक गयि, और निशांत चौंकने का अभिनय करने लगा… दोनो सवालिया नज़रों से आर्यमणि को देख रहे थे। आर्यमणि अपनी बात आगे बढ़ाते हुये… "कॉलेज में तुम दोनो से दूर रहना मेरे सीने को जलाता था, लेकिन तुम्हे क्या लगता है कॉलेज में मात्र रैगिंग हो रही थी। मुझ पर तबतक कोशिश की जाती रहेगी जब तक मै मर नहीं जाता। मुझे फसाने के लिए वो मेरे अपनों में से किसी को भी मार सकते है। किसी ने तुम दोनों पर या मेरे मम्मी–पापा पर हमला करके उन्हें मार दिया तो मै उसी दिन अपना गला रेत लूंगा।"


चित्रा:- बस कर अब और मत रुला। मै समझ गयि। हमारे लिए तू जरूरी है। बस कहीं भी रहना अपनी खबर देते रहना।


आर्यमणि:- नहीं, कॉन्टैक्ट मे भी नहीं रहूंगा। मेरे लौटने का इंतजार करना, और तुम दोनो प्रहरी से जितनी दूर हो सके उतना दूर रहना। बिना यह एहसास करवाये की तुम जान बूझकर इसमें नहीं पड़ना चाहते।


निशांत:- हां समझ गया, ये प्रहरी ही जड़ हैं। तू लौट दोस्त जबतक हम खुद को इतना ऊंचा ले जाएंगे की फिर ये प्रहरी समुदाय हमे हाथ लगाने से पहले 100 बार सोचेंगे।


चित्रा:- मेरा वादा है आर्य जिसने भी तुझे हमसे दूर किया है, उनसे उनकी खुशियों को दूर ना कि तो मेरा नाम भी चित्रा नहीं। तू बेफिक्र होकर जा। हमे तो कुछ भी पता नहीं तू क्यों गया। यह हम दोनों मेंटेन कर लेंगे। क्यों निशांत?


निशांत:- हां चित्रा।


आर्यमणि, "आर्म्स एंड अम्यूनेशन डेवलपमेंट यूनिट" के सभी लीगल दस्तावेज उनके हाथ मे थामते.. "ऊंची उड़ान के पेपर रखो तुम दोनो। बाकी ये फैक्टरी क्या है? कैसे इसे आगे बढ़ना है? उसकि पूरी टेक्निकल और नॉन टेक्निकल डिटेल, मैंने तुम्हारे बैग मे डाल दिया है.."


निशांत और चित्रा थोड़ी हैरानी से... "आर्म्स एंड अमुनेशन डेवलपमेंट यूनिट का प्लान... ये सब तुमने कब बनाया। कहां से सीखा? या यूएस में जब थे तब ये सब प्लान किया था?


आर्यमणि:- हां, यूएस में मैंने किसी के कॉन्सेप्ट को पूरा उठा लिया। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि उन लोगों ने बताया, ये आर्म्स एंड वैपन डेवलपमेंट मे पूरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग काम आता है। मैंने सोचा 1 बेरोजगार (निशांत) तो पढ़ ही रहा होगा, उसी के साथ धंधा करूंगा। यहां तो मुझे 3 बेरोजगार मिल गये।


चित्रा और निशांत दोनो एक जोर का लगाते… "कमिना कहीं का..."


आर्यमणि:- मैं चाहता हूं बीटेक के बाद तुम दोनो और माधव, तीनो मैकेनिकल वेपन से एमटेक करो। आगे की पढ़ाई में कैसे क्या करना है, उसकी पूरी डिटेल माधव निकाल लेगा। और हां तुम्हारे बैग में पूरे 2000 पन्ने डाले हैं निशांत। उसमे आर्म्स एंड वैपन डेवलपमेंट की पूरी डिटेल है। एक बार तीनो जरूर पढ़ लेना। फैक्टरी की परमिशन ज्यादा से ज्यादा 3 महीने मे मिल जाएगी, लेकिन सवाल–जवाब के लिये जब बुलाये तो वो पूरा पेपर रट्टा मारा हुआ होना चाहिए..


निशांत, चित्रा के गाल खींचता... "मेरी बहन और मेरा अस्थिपंजर जीजा जायेगा। मैं तो कहीं और फोकस करूंगा.."


चित्रा:- कहां, उन प्रहरी के शिकारियों पर ना, जिसने हमारा दोस्त छीना… जया अंटी को रुलाया, भूमि दीदी से आर्य को दूर किया..


निशांत:- हां वो भी करेंगे। लेकिन उस से पहले स्टाफ की सारी बहाली मुझे ही देखनी होगी.. मस्त, मस्टरपीस, 3 तो मेरी पीए होंगी। 8 घंटे की शिफ्ट अनुसार।


तीनो लाइन से पाऊं लगाकर बैठे थे, चित्रा और आर्यमणि झुककर उसका चेहरा देखते, काफी जोर से... "अक्क थू.."


आर्यमणि:- स्टाफ की चिंता तू छोड़ दे मेरे भाई। वो सब गवर्नमेंट ही देखेगी और लगभग उन्हीं का पूरा स्टाफ होगा। खैर छोड़ो ये सब। आज आखरी रात है और माहौल भी झूमने वाला है.. कुछ हसीन लम्हा कुछ खास लोगो के साथ बटोर लूं।


चित्रा:- चल फिर पहले थोड़ा–थोड़ा टल्ली हुआ जाए। वैसे पलक को इस बारे में पता है।


आर्यमणि:- तुम्हे बस अपनी जानकारी होनी चाहिए। जिसके पास जो जानकारी है वो उनकी है। जिसका किसी और से कोई वास्ता नहीं, फिर चाहे भूमि दीदी हो या मेरी मां–पापा ही क्यों ना हो, लेकिन वो भी नहीं जानते कि तुम्हे पता है या नहीं।


चित्रा और निशांत एक साथ… "हम्मम समझ गये। चलो चलते है। और हां यहां हमारी कैजुअल मीटिंग हुयि ये जताना होगा।"..


"तो फिर यहीं से शुरू करते है"… तीनों ही हूटिंग करते हुए और चिल्लाते हुये बड़े से लॉन में पहुंचे… "सब 2 घंटे के दिखावे के लिए सजते रहो रे। हम तो चले एन्जॉय करने"..


माईक की आवाज पर हर किसी ने तीनो को सुना। तीनों को हंसते और एक दूसरे के साथ छेड़खानी करते लोग देख रहे थे। आते ही तीनों घुस गये राजदीप के कमरे में। राजदीप नंगे बदन केवल तौलिया मे था और कुछ लोग उसे संवार रहे थे…. "ये लो, ये तो सुहागरात कि तैयारी में है।"..


राजदीप, हड़बड़ा कर पूरे तौलिए से अपने बदन को ढकते… "यहां अंदर अचानक से तीनों कैसे घुस गये। किसी ने रोका नहीं।"..


चित्रा:- साफ कह दिया गार्ड को, मुझे रोक दिये तो मैं सीधा नागपुर।

निशांत:- मैंने भी यही कहा।

आर्यमणि:- मैंने भी यही कहा।


राजदीप, अपने हाथ जोड़ते… "क्या चाहिए तुम सब को।"..


निशांत:- ये काम की बात है।

चित्रा:- कॉकटेल काउंटर शुरू करवाओ, थोड़ा टल्ली होंगे।

आर्यमणि:- टल्ली होकर नाचेंगे.. जल्दी करो भईया।


राजदीप:- त्रिमूर्तियों जाओ मै फोन करवाता हूं, तुम्हारे पहुंचने से पहले सब वायवस्था हो जायेगा।


तीनों सीधा शादी के हॉल में पहुंचे जहां सब कुछ सजा हुआ था। 2-2 बियर मारने के बाद बड़ा ही झन्नाटेदार अनाउंसमेंट हुआ, जो चित्रा कर रही थी….


"मुझे जो भी सुन रहे है उनको नमस्कार। शादी की रश्मे शुरू होगी 5 बजे से। मै 4 बजे जाऊंगी तैयार होने। थोड़े कम मेकअप के साथ अपना चेहरा कम चमकाऊंगी और 5 बजे तक तैयार होकर शादी के हॉल में। वो क्या है ना मुझे किसी को दिखाने में इंट्रेस्ट नहीं। क्योंकि मुझे जिसे दिखाना है वो फिक्स है और उसे मै कॉलेज जाने वाले मेकअप में ही मिस वर्ल्ड दिखती हूं, इसलिए एडवांस और हाई-फाई मेकअप पोतना मुझे बकवास लगता है।"

"यहां मेरे साथ 2 क्यूट और हैंडसम लड़के खड़े है। एक मेरा भाई निशांत, उसे 1 रात में कोई गर्लफ्रेंड पटाकर, फोन रिलेशन मेंटेन करने का शौक नहीं, इसलिए वो भी लीपा-पोती में विश्वास नहीं रखता। दूसरा है हम दोनों भाई-बहन के बचपन का साथी आर्य। उसकी तो शादी ही तय हो गयि है। अब पलक जिस दिन उसे देखकर अपने लिए पसंद की थी। उससे कुछ दिन पहले आर्य के पेट में चाकू घुसा था। चेहरे पर 3-4 दिन की हल्की-हल्की दाढ़ी थी। अब वैसे रूप में जब वो पसंद आ सकता है तो थोड़े कम लीपा-पोती में भी आ ही जायेगा। बाकी दूसरी लड़कियां जरा दिल थाम के, ये दोनो इस वक्त भी तुम्हारे दिल में ज़हर बनकर उतर सकते है।"

"खैर, खैर, खैर.… इतना लंबा भाषण देने का मतलब है, जिन-जिन लोगो की शादी हो गयि है या फिर लाइफ पार्टनर फिक्स है। यहां आकर हमारे साथ 2 ठुमके लगाकर एन्जॉय कर सकते है। हां जो सिंगल है और यहां पार्टनर पटाने आये है, या ऊब चुके शादी सुदा लोग, या कमिटेड लोग, किसी और पर डोरे डालने की मनसा रखते हों, वो सजना संवारना जारी रखे। तू म्यूज़िक बजा रे।..


सबको हिलाने वाला भाषण देने के बाद चित्रा माईक फेकी और हाई वोल्टेज म्यूज़िक पर तीनों नाचने लगे। चित्रा का भाषण सुनकर वहां के बहुत से रोमांटिक कपल डांस फ्लोर पहुंच चुके थे।


आर्यमणि को निशांत और चित्रा की मां निलांजना दिख गयि.. उनका हाथ पकड़कर आर्यमणि डांस फ्लोर तक लेकर आया और कमर में हाथ डालकर नाचते हुए कहने लगा… "आंटी आप तो वैसे ही इतनी खूबसूरत हो, आपको मेकअप की क्या जरूरत।"..


निलांजना खुलकर हंसती हुई… "राकेश ने देख लिया ना तुम्हे ऐसे, तो खैर नहीं तुम्हारी।"..


आर्यमणि, चित्रा और निशांत को सुनाते हुये… "तुम दोनो को नहीं लगता तुम्हारि मम्मी के लिए हमे नया पापा ढूंढ़ना होगा। वो राकेश नाईक जम नहीं रहा। क्या कहते हो दोनो।"


चित्रा:- डाइवोर्स करवा देते है।


निशांत:- फिर मेट्रोमनी में डाल देंगे.. हॉट निलांजना के साथ शादी कर 2 जवान बच्चे दहेज में पाये।


तीनों ही कॉलर माईक लगाए थे। जो भी उनकी बात सुन रहे थे हंस-हंस कर लोटपोट हो रहे थे। इसी बीच जया भी आ गई.… जया को देखते हुए चित्रा कहने लगी..… "हमारे बीच आ गई है, गोल्डन एरा क्वीन के नाम से मशहूर जया कुलकर्णी। ओय जया जारा मेरे साथ 2 ठुमके तो लगा।"..


जया:- चित्रा 2 क्या 4 लगा लूंगी, बस मैदान छोड़कर मत भागना।


पीछे से जया का पति केशव… "चित्रा के ओर से मै मैदान में उतरता हूं, जया अब दिखाओ दम।"..


दोनो मिया-बीवी डांस फ्लोर पर नाचने लगे और उन्हें नाचता देख सभी ताली बजाने लगे। कुछ देर बाद और भी परिवार के लोग नाच रहे थे। तभी वहां पर ग्रैंड एंट्री हुई पहली दुल्हन की। मुक्ता आते ही माईक पर कहने लगी… "मेरा होने वाला फिक्स हो गया है। यहां के कॉर्डिनेटर जी (राजदीप), वो तो पता ना क्या-क्या करवा रहे होंगे ब्यूटीशियन से, कोई एक डांस पार्टनर मुझे भी दे दो।"..


आर्यमणि:- कोई एक क्यों पीछे से माणिक भाऊ आ रायले है, आप उनके साथ डांस करो। जबतक मै नम्रता दीदी से डांस के लिए पूछता हूं। वैसे मेरे साथ ही चोट हो गयि, पलक तो हुई सली, माणिक भाव के मज़े है। मेरे ससुराल वाले नीचे किसी को नहीं छोड़ गये, काश अपनी भी कोई साली होती।


अक्षरा:- तू नम्रता को छोड़ उसके साथ तो कोई भी डांस कर लेगा.. मेरे बारे में क्या ख्याल है।


निशांत सिटी बजाते हुए… "मासी आज भी कातिलाना दिखती हो। कहो तो मै अपने पापा के साथ एक मौसा भी ढूंढ लू।"..


नगाड़े बजते रहे और डांस चलता रहा। थोड़ी देर बाद भूमि दूर से ही माईक पर कहती… "मेरे 2 छोटू ब्वॉयफ्रैंड के साथ जिस-जिस ने डांस करना था कर लिया, अब दूर हो जाओ। दोनो सिर्फ मेरे है।"


माणिक:- भूमि मेरी बड़ी साली जी, अपने पुराने आशिक़ को भी मौका दो। एक बार आपके कमर में हाथ डालकर डांस कर लूं, फिर जीवन सफल हो जायेगा।


भूमि:- नम्रता सुन ले इसे, अभी से क्या कह रहा है?


नम्रता:- दीदी आज भर ही तो बेचारा बोलेगा, फिर तो इसका भी हाल जयदेव जीजू जैसा ही होना है। बिल्कुल चुप और पल्लू के पीछे रहने वाले।


नाचते-नाचते भूमि, जया, निशांत, चित्रा और आर्य ने एक गोला बाना लिया। चारो ही आर्यमणि को देखकर धीमे-धीमे डांस कर रहे थे। काफी खुशनुमा पल था ये। ये पल कहीं गुम ना हो जाए इसलिए एक पूरी क्लोज रिकॉर्डिंग आर्य, चित्रा और निशांत ने अपने ऊपर रखी हुई थी।


महफिल जम गया था और लोगों की हंसी पूरे हॉल में गूंज रही थी। अपने और परायों के साथ बिना भेद-भाव और झूमकर नाचने को ही ती शादी कहते है। और इसे जिसने एन्जॉय किया बाद में जाकर यही कहते है, फलाने के शादी में काफी एन्जॉय किया। शायद इसलिए हमारे यहां शादियों में इतने खर्च होते है, ताकि परिवार और रिश्तेदार जो काम में व्यस्त होकर एक दूसरे से जितने दूरियां बाना लिये हो, वो करीब आ सके।
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भाग:–54





दोपहर के 3 बजते-बजते सभी थक गये थे। शादी की रस्में भी 5 बजे से शुरू होती इसलिए ये तीनों भी सभा भंग करके निकल गये। तीनों सवा 5 बजे तक तैयार होकर आये। चित्रा और आर्यमणि लगभग एक ही वक़्त पर कमरे से निकले। चित्रा, आर्यमणि को देखकर पूछने लगी, "कैसी लग रही हूं".. आर्यमणि अपनी बाहें फैला कर उसे गले से लगाते, "सेक्सी लग रही है। लगता है पहली बार तुझे देखकर नीयत फिसल जायेगी।"


चित्रा उसके सर पर एक हाथ मारती, हंसती हुई कहने लगी… "पागल कहीं का। ये निशांत कहां रह गया।"..


इतने में निशांत भी बाहर आ गया.. चित्रा और आर्यमणि दोनो ने अपनी बाहें खोल ली, निशांत बीच में घुसकर दोनो के गले लगते… "साला शादी आज किसी की भी हो, ये पुरा फंक्शन तो हम तीनो के ही नाम होगा।"..


"तुम दोस्तो के बीच में हमे भी जगह मिलेगी क्या"… भूमि और जया साथ आती, भूमि ने पूछ लिया। चित्रा और निशांत ने आर्यमणि को छोड़ा। भूमि, आर्यमणि को गौर से देखने लगी। उसकि आंख डबडबा गयी। वो आर्यमणि को कसकर अपने गले लगाती, उसके गर्दन और चेहरे को चूमती हुई अलग हुयि।


जया जब अपने बच्चे के गले लगी, तब आर्यमणि को उससे अलग होने का दिल ही नहीं किया। कुछ देर तक गले लगे रहे फिर अलग होते.… "मै और मेरी बेटी अपने हिसाब से एन्जॉय कर लेंगे, ये वक़्त तुम तीनो का है। कोई कमी ना रहे।"..


तीनों हॉल में जाने से पहले फिर से 2 बियर चढ़ाए और इस बार कॉकटेल का मज़ा लेते, 1 पेग स्कॉच का भी लगा लिया। तीनों हल्का-हल्का झूम रहे थे। जैसे ही हॉल में पहुंचे स्टेज पर माला पहने कपल पुतले की तरह बैठे हुये थे। लोग आ रहे थे हाथ मिलाकर बधाई दे रहे थे। फोटो खींचाते और चले जाते।


जैसे ही तीनों अंदर आये... "लगता है ये सेल्फी आज कल लोग प्रूफ के लिये लेते है। हां भाई मै भी शादी में पहुंचा था। तुम भी मेरे घर के कार्यक्रम में आ जाना।".. आर्यमणि ने कहा..


चित्रा:- हां वही तो…. अरे दूल्हा-दुल्हन के दोस्त हो। थोड़े 2-4 पोल खोल दो, तो हमे भी पता चले कितनी मेहनत से दोनो घोड़ी चढ़े है।


निशांत:- या इन सब की ऐसी जवानी रही है, जिस जवानी में कोई कहानी ना है।


आर्यमणि:- अपने बच्चो को केवल क्या अपने शादी की वीडियो दिखाएंगे.. देख बेटा एक इकलौता कारनामे जो हमने तुम्हरे बगैर किया था।


चुपचाप गुमसुम से लोग जैसे हसने लगे हो। तभी स्टेज से पलक की आवाज आयी… "दूसरो के साथ तो बहुत नाचे। दूसरो की खूब तारीफ भी किये.. जारा एक नजर देख भी लेते मुझे, और यहां अपनी कोई कहानी बाना लेते, तो समझती। वरना हमारा भविष्य भी लगभग इनके जैसा ही समझो।"..


स्टेज पर माईक पहुंच चुका था। नये होने वाले जमाई, माणिक बोलने लगा… "आर्य, हम दोनों ही जमाई है। दोस्त ये तो इज्जत पर बात बन आयी।"..


चित्रा:- ऐसी बात है क्या.. कोई नहीं आज तो यहां फिर कहानी बनकर ही जायेगी, जो पलक और आर्य अपने बच्चो को नहीं सुनायेंगे। बल्कि यहां मौजूद हर कोई उनके बच्चे से कहेगा, फलाने की शादी में तुम्हारे मम्मी-पापा ने ऐसा हंगामा किया। पलक जी नीचे तो उतर आओ स्टेज से।


पलक जैसे ही नीचे उतरी निशांत ने सालसा बजवा दिया। इधर आर्यमणि सजावट के फूल से गुलाब को तोड़कर अपने दांत में फसाया और घुटने पर 20 फिट फिसलते हुए उसके पास पहुंचा। पलक के हाथो को थामकर वो खड़ा हुआ और उसकी आखों में देखकर इतना ही कहा…


"आज तो मार ही डालोगी।".. पलक हसी, आर्यमणि कमर पर बांधे लंहगे के ऊपर हाथ रखकर उसके कमर को जकड़ लिया और सालसा के इतने तेज मूव्स को करवाता गया कि पलक को यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो ऐसे भी डांस कर सकती है।


वो केवल अपने बदन को पूरा ढीला छोड़ चुकी थी। जैसे-जैसे आर्यमणि नचा रहा था, पलक ठीक वैसे-वैसे करती जा रही थी। लोग दोनो को देखकर अपने अंदर रोमांस फील कर रहे थे। तभी नाचते हुए आर्यमणि ने पलक को गोल घूमाकर अपने बाहों में लिया और अपने होंठ से गुलाब निकालकर उसके होंठ को छूते हुए खड़ा कर दिया। आर्यमणि अपने घुटने पर बैठकर, गुलाब बढ़ाते हुए.... "आई लव यू"..


इतनी भारी भीर के बीच पलक के होंठ जब आर्यमणि ने छुये, वो तो बुत्त बन गयि। उसकी नजरें चारो ओर घूम रही थी, और सभी लोग दोनो को देखकर मुस्कुरा रहे थे। पलक हिम्मत करती गुलाब आर्यमणि के हाथ से ली और "लव यू टू" कहकर वहां से भागी।


इसी बीच जया पहुंच गयि, आर्यमणि का कान पकड़कर… "इतनी बेशर्मी, ये अमेरिका नहीं इंडिया है।"..


भूमि:- मासी इंडिया के किसी कोन में इतना प्यार से प्यार का इजहार करने वाला मिलेगा क्या? मानती हूं भावनाओ में खो गया, लेकिन बेशर्म नहीं है।


लोग खड़े हो गये और तालियां बजाने लगे। तालियां बजाते हुए "वंस मोर, वोंस मोर" चिल्लाने लगे। तभी आर्यमणि अपनी मां के गले लगकर रोते हुए .. "सॉरी मां" कहा और माईक को निकालकर फेंक दिया।


जया अपने बच्चे के गाल को चूमती, धीमे से उसे अपना ख्याल रखने के लिए कहने लगी। पीछे से भूमि भी वहां पहुंची और आखें दिखाती… "ऐसे लिखेगा कहानी"… वो भूमि के भी गले लग गया। भूमि भी उसे कान में धीमे से ख्याल रखने का बोलकर उसके चहेरे को थाम ली और मुसकुराते हुए उसके माथे को चूम ली।


पीछे से चित्रा और निशांत भी पहुंच गए। दोनो भाई बहन ने अपने एक-एक बांह खोलकर… "आ जा तुम हमारे गले लग। सबको कोई बुराई नहीं भी दिख रही होगी तो भी तुझे रुला दिया।"..


आर्यमणि अपने नजरे चुराए दोनो के गले लग गया। दोनो उसे कुछ देर तक भींचे रहे फिर उसे छोड़ दिया। इतने में ही वो फॉर्मेलिटी के लिये अपनी मासी के पास पहुंचा और उसके गोद में अपना सर रखकर.. "सॉरी मासी" कहने लगा। मीनाक्षी उसके गाल पर धीमे से मारती… "ऐसे सबके सामने कोई करता है क्या?"..


आर्यमणि:- मै तो अकेले में भी नहीं करता लेकिन पता नहीं क्यों वो गलती से हो गया।


उसे सुनकर वहां बैठी सारी औरतें हसने लगी। सभी बस एक ही बात कहने लगी… "जारा भी छल नहीं है इसमें तो।"..


शाम के 6 बज चुके थे लड़के को लड़के के कमरे में और लड़की को लड़की के कमरे में भेज दिया गया था। आगे की विधि के लिए मंडप सज रहा था। लोग कुछ जा रहे थे, कुछ आ रहे थे। आर्यमणि भी नागपुर निकलने के लिए तैयार था। तभी जब वो दरवाजे पर अकेला हुआ, पलक उसका हाथ खींचकर अंधेरे में ले गयि और उसके होंठ को चूमती… "मुझे ना आज कुछ-कुछ हो रहा है और तुम भी हाथ नहीं लग रहे, सोच रही हूं, श्रवण को मौका दे दूं।"..


आर्यमणि:- ना ना.. ये गलत है। पहले मुझसे कह दो मेरे मुंह पर… तुमसे ऊब गई हूं, ब्रेकअप। फिर जिसके पास कहोगी मै खुद लेकर चला जाऊंगा।


पलक उसके सीने पर हाथ चलाती…. "बहुत गंदी बात थी ये।"


आर्यमणि:- मै जा रहा हूं तुम्हारे ड्रीम को पूरा करने, यहां सबको संभाल लेना। पहुंचकर कॉल करूंगा।


पलक, फिर से होंठ चूमती… "प्लीज़ अभी मत जाओ।"..


आर्यमणि:- मेरे साथ आओ..


पलक:- पागल हो क्या, मै शादी छोड़कर नागपुर नहीं जा सकती।


आर्यमणि:- भरोसा रखो.. और चलो।


पलक भी कार में बैठ गई और दोनो रिजॉर्ट के बाहर थे। आर्यमणि ने कार को घूमकर रिजॉर्ट के पीछे के ओर लिया और जंगल के हिस्से से कूदकर रिजॉर्ट में दाखिल हो गया। पलक को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी वो पीछे-पीछे चली जा रही थी। दोनो एक डिलक्स स्वीट के पीछे खड़े थे। आर्यमणि पीछे का दरवाजा खोलकर पलक को अंदर आने कहा, और जैसे ही उस कमरे की बत्ती जली.. पलक अपने मुंह पर हाथ रखती… "आर्य ये क्या है।"..


आर्यमणि, आंख मारते… "2 लोगो के सुहागरात के लिये सेज सज रही थी, मैंने हमारे लिए भी सजवा लिया"


सुनते ही पलक अपनी एरिया ऊंची करती आर्य के होंठ को चूमने लगी। आर्य उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया। ये फूलों की महल और मखमली बिस्तर। आर्य अपने हाथ से पलक के चुन्नी को उसके सीने से हटाकर उसके पेट पर होंठ लगाकर चूमने लगा।


सजी हुई सेज और फूलों कि खुशबू दोनो में गुदगुदा कसिस पैदा कर रही थी। पलक का मदमस्त बदन और लहंगा चुन्नी में पूरी तरह सजी हुई पलक कमाल की अप्सरा लग रही थी। धीमे से डोर को खिंचते हुये आर्यमणि ने लहंगे को खोल दिया। फिर पतली कमर से धीरे-धीरे सरकते हुए लहंगे को पैंटी समेत खींचकर निकाला और आराम से टांग कर रख दिया।


इधर पलक उठकर बैठ चुकी थी और आर्य अपने होंठ से उसके चोली के एक एक धागे के को खोलते उसके पीठ को चूमते नीचे के धागों को खोलने लगा। .. चारो ओर का ये माहौल उनके मिलन में चार चांद लगा रहे थे। अंदर बहुत धीमा सा नशा चढ़ रहा था जो बदन के अंदर मीठा–मीठा एहसास पैदा कर रहा था।


चोली के बदन से अलग होते ही पलक पूरी नंगी हो चुकी थी। उसका पूरा बदन चमक रहा था। छरहरे बदन पर उसके मस्त सुडोल स्तन अलग की आग लगा रहे थे। ऊपर से बदन को आज ऐसे चिकना करवाकर आयी थी कि हाथ फिसल रहे थे। आर्यमणि उसके पूरे बदन पर हाथ फेरते स्तन को अपने हाथों के गिरफ्त में लिया और उसके होंठ चूमने लगे। पलक झपट कर उसे बिस्तर पर उल्टा लिटाकर उसके ऊपर आ गई। अपनी होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगी। दोनो इस कदर एक दूसरे के होंठ चूम रहे थे कि पूरे होंठ से लेकर थुद्दी तक गीला हो चुका था। पलक थोड़ी ऊपर होकर अपने स्तन उसके मुंह के पास रख दी और बिस्तर का किनारा पकड़ कर मदहोशी में खोने को बेकरार होने लगी।


आर्य भी बिना देर किए उसके स्तन पर बारी-बारी से जीभ फिराते, उसके निप्पल को मुंह में लेकर चूसने लगा। स्तन को अपने दांतों तले दबाकर हल्का-हल्का काट रहा था। पलक के बदन में बिजली जैसी करंट दौड़ रही हो जैसे। वो अपने इस रोमांच को और आगे बढाते हुये, अपने पाऊं उसके चेहरे के दोनो ओर करती, अपनी योनि को उसके मुंह के ऊपर ले गयि। पीछे से उसका पतला शरीर और नीचे की मदमस्त कमर। योनि पर आर्य के होंठ लगते ही पूरा बदन ऐसे फाड़फड़या जैसे वो तड़प रही हो।


आर्य भी मस्ती में चूर अपने दोनो पंजे से उसके नितम्ब को इतनी मजबूती से पकड़े था, पंजों के लाल निशान पड़ गये थे। आर्यमणि अपने पुरा मुंह खोलकर योनि को मुंह में कैद कर लिया। कभी जीभ को अंदर घुसाकर तेजी में ऊपर नीचे कर रहा था। तो कभी पलक की जान निकालते क्लिट को दांतों तले दबाकर हल्का काटते हुये, चूसकर ऊपर खींच रहा था। पलक बिल्कुल पागल होकर उसके ऊपर से हटी। उसका पूरा बदन अकड़ गया और बिस्तर को ऐसे अपने मुट्ठी में भींचकर अकड़ी की हाथ में आए फूल मसल कर रह गये और बिस्तर पर सिलवटें पड़ गयि।


पलक की उत्तेजना जैसे ही कम हुई वो आर्यमणि के पैंट को खोलकर नीचे जाने दी। उसके लिंग को बाहर निकालकर मुठीयाने लगी। लिंग छूने में इतना गुदगुदा और मजेदार लग रहा था कि आज उसने भी पहली बार ओरल ट्राई कर लिया। जैसे ही उसने अपने जीभ से लिंग को ऊपर से लेकर नीचे तक चाटी, आर्यमणि ऐसा मचला, ऐसा तड़पा की उसकी तड़प देखकर पलक हसने लगी।


इधर पलक ने उसका लिंग चाटते हुए जैसे ही अपने मुंह में लिंग को ली। आर्य ने उसके बाल को मुट्ठी में भींचकर, सर पर दवाब डालकर मुंह को लिंग के जड़ तक जाने दिया। पलक का श्वांस लेना भी दूभर हो गया और वो छटपटाकर अपना सिर ऊपर ली। उसकी पूरी छाती अपनी ही थूक से गीली हो चुकी थी। एक बार फिर वो उसके ऊपर आकर आर्य के होंठ को चूमती अपने होंठ और जीभ फिरते नीचे आयी। उसके सीने पर अपनी जीभ चलती उसके निप्पल में दांत गड़ाकर चूसती हुई नीचे लिंग को मुठियाने लगी।


आर्य तेज-तेज श्वांस लेता इस अद्भुत क्षण का मज़ा ले रहा था। पलक फिर से उसके कमर तक आती उसके लिंग को दोबारा चूसने लगी और आर्य अपने हाथ उसके दरारों में घुसकर गुदा मार्ग के चारो ओर उंगली फिराने लगा। हाथ नीचे ले जाकर योनि को रगड़ने लगा। पलक पागल हो उठी। लिंग से अपना सर हटाकर अपने पाऊं आर्य के कमर के दोनों ओर करके, लिंग को अपने योनि से टीकई और पुरा लिंग एक बार में योनि के अंदर लेती, गप से बैठ गयि।


सजी हुई सेज। बिल्कुल नरम गद्दे और फूलों की आती भिनी-भीनी खुशबू, आज आग को और भी ज्यादा भड़का रही थी। ऊपर से पलक का चमकता बदन। पलक अपना सर झटकती, आर्यमणि के सीने पर अपने दोनो हाथ टिकाकर उछल रही थी। हर धक्के के साथ गद्दा 6 इंच तक नीचे घुस जाता। दोनो मस्ती की पूरी सिसकारी लेते, लिंग और योनि के अप्रतिम खेल को पूरे मस्ती और जोश के साथ खेल रहे थे। आर्यमणि नीचे से अपने कमर झटक रहा था और पलक ऊपर बैठकर अपनी कमर हिलाकर पूरे लिंग को जर तक ठोकर मरवा रही थी।


झटके मारते हुए आर्यमणि उठकर बैठ गया। पलक के स्तन आर्य के सीने में समा चुके थे और वो बिस्तर पर अपने दोनो हाथ टिकाकर, ऊपर कमर का ऐसा जोरदार झटके मार रहा था कि पलक का बदन 2 फिट तक हवा में उछलता। उसके स्तन आर्यमणि के सीने से चिपककर, घिसते हुये ऊपर–नीचे हो रहे थे। बाल बिखर कर पूरा फैले चुका था। और हर धक्के के साथ एक ऊंची लंबी "आह्हहहहहहहहह" की सिसकारी निकलती.. कामुकता पूरे माहौल में बिखर रही थी।


दोनो पूर्ण नंगे होकर पूरे बिस्तर पर ऐसे काम लीला में मस्त थे जिसकी गवाही बिस्तर के मसले हुए फूल दे रहे थे। योनि के अंदर, पर रहे हर धक्के पर दोनो का बदन थिरक रहा था। और फिर अंत में पलक का बदन पहले अकड़ गया और वो निढल पर गयि। आर्यमणि का लिंग जैसे ही योनि के बाहर निकला पलक उसे हाथ में लेकर तेजी से आगे पीछे करने लगी और कुछ देर बाद आर्य अपना पूरा वीर्य विस्तार पर गिराकर वहीं निढल सो गया।



पलक खुद उठी और आर्यमणि को भी उठाई। पलक अपना पूरा हुलिया बिल्कुल पहले जैसा की, और फटाफट कपड़े पहन कर तैयार भी हो चुकी थी। आर्यमणि भी मुंह पर पानी मारकर फ्रेश हुआ और खुद को ठीक करके दोनो जैसे आये थे वैसे ही बाहर निकल गये। रात के 8 बजे के करीब आर्यमणि को एयरपोर्ट पर ड्रॉप करके सवा 8 (8.15pm) बजे तक पलक वापस शादी में पहुंच चुकी थी। पलक आते ही सबसे पहले नहाने चली गई और उसके बाद वापस ब्यूटीशियन के पास आकर हल्का मेकअप करवाई।


पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..
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भाग:–55





पलक रात 8.45 तक वापस खुशबू बिखेरती हुयि इधर से उधर छम-छम करके घूमने लगी। अब शादी की रशमे 9 बजे से शुरू होनी थी इसलिए पलक अपनी बहन के कमरे में दाखिल हो गयि। नम्रता आराम से बैठकर आइने में खुद को देख रही थी, थोड़ी मायूस लग रही थी शायद.…. पलक पीछे से उसके गले लगती…. "ऐसे मायूस क्यों?"..


नम्रता:- कल से बहुत कुछ बदल जायेगा। मेरी पहचान और मेरा काम बदल जायेगा।


पलक:- भावना तो नहीं बदलेगी ना। मेरे लिए वहीं काफी है।


नम्रता:- 5 साल पहले जो 2 बहन थी पलक और नम्रता वो शायद आज ना हो। और शायद जो रिश्ता आज है वो 5 साल बाद ना होगा। परिवर्तन ही नियम है।


पलक:- हम्मम ! किसी से प्यार करती थी क्या?


नम्रता:- नहीं ऐसा कोई नहीं था, और जो था वो प्यार के काबिल नहीं था। मै तो आइने में बस अपने जीवन दर्शन को देख रही थी और सोच रही थी क्या इस जन्म में कुछ हासिल भी कर पाऊंगी।


"पागल, शादी के दिन ऐसा नहीं सोचते है। कुछ हासिल करने के लिए बस कर्म किए जाओ, माहौल बनता जायेगा, और तब तुम उस पल को भी मेहसूस करोगी जब तुम कहोगी की हां मैंने कर्म पथ पर चलकर ये मुकाम हासिल किया। जैसे कि आज।"…. भूमि अपनी उपस्थिति जाहिर करती हुई कहने लगी...


पलक, हसरत भरी नजरो से भूमि को देखती… "जैसे कि आज क्या दीदी।"..


भूमि:- जैसे कि हमे कोपचे वाले पथ पर चलकर होने वाले का चुम्मा मिला करता था। पलक ने मेहनत कि, कर्म किया और सबके बीच होंठ पर चुम्मी पायि।



नम्रता:- हीहीहीहीही… बेचारा आर्यमणि, लगता है शर्माकर भाग गया ।


पलक:- शर्माकर नहीं भगा है, एडवांस बता देती हूं, तैयार हो जाओ "फील द प्राउड मोमेंट" के लिए।


नम्रता और भूमि दोनो उत्सुकता से…. "ऐसा क्या करने वाला है। कहीं कोई बेवकूफी या उस से भी बढ़कर कोई पागलपन।"..


पलक:- नहीं दीदी वो कोई बेवकूफी नहीं करने गया है, बल्कि ऐसा काम करने गया है जिसे जानकर आप कहेंगी… "ये तो कमाल कर दिया आर्य।"..


नम्रता:- क्या बैंक में डाका डालकर सारा माल हमारे पास लायेगा।


पलक नहीं उससे भी बढ़कर… "वो अनंत कीर्ति की पुस्तक खोलने गया है।"..


नम्रता और भूमि दोनो साथ में चौंकते हुये…. "ये कैसे होगा। बाबा के गैर मौजूदगी में बुक तक कोई पहुंच नहीं सकता। उसे खोलना तो दूर कि बात है। एक मिनट तुमने कहा कि वो खोलने गया है। इस वक़्त आर्य कहां है?


पलक:- नागपुर के लिए उड़ चुका है।


भूमि:- दोघेही वेडे आहेत (दोनो पागल है)


नम्रता:- पलक इतना बड़ा फैसला तुम दोनों अकेले कैसे ले सकते हो।


पलक:- जब काम अच्छे भावना से कि जाती है तो उसमें रिस्क भी लेना पड़े तो कोई गम नहीं। हमे आज रात तक का वक़्त दो, कल सुबह तुम सब का होगा।


भूमि:- ना मै इसमें हूं और ना ही मुझे कुछ पता है। कल सुबह तक मै रुक जाती हूं, फिर तुम सुकेश और उज्जवल भारद्वाज को जवाब देती रहना।


नम्रता:- मेरी प्रार्थना है, तुम दोनो कामयाब हो। जब तुमने इतना बड़ा रिस्क ले ही लिया है तो हौसले से आगे बढ़ो। भूमि देसाई, ऐसे मुंह नहीं मोड़ सकती।


भूमि:- ठीक है बाबा समझ गई। भावना अच्छी है और हमे सामने से बता रही हो इसलिए अगर वो फेल भी होता है तो मै मैनेज कर लूंगी।


पलक दोनो के गले लगती… "आप दोनो बेस्ट है।"..


भूमि:- बेस्ट रात तो नम्रता की होने वाली है, इसे बेस्ट ऑफ लक तो बोल दो। पूरे मज़े करना और कोई जल्दबाजी नहीं।


पलक:- बेस्ट ऑफ लक दीदी अपना अनुभव साझा करना, मुझे भी कुछ सीखने मिलेगा।


भूमि:- क्यों तेरे पास मोबाइल नहीं है क्या?"..


भूमि की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगी। कुछ देर बाद वही पुराना फिल्मी डायलॉग सुनने को मिला… "दुल्हन को ले आइये, मुहरत का समय बिता जा रहा है।"


विधिवत दोनो शादी रात 10.30 तक संपन्न हो गयि। गेस्ट के साथ बातचीत और खाते पीते हुये रात के 12 बज गये थे। दोनो ही नव दंपत्ति के मन में लड्डू फुट रहे थे। अलग-अलग जगहों के 2 लग्जरियस स्वीट इनके सुहागरात के लिए अलग से सजाकर रखी गयि थी। जिसके सुहाग की सेज उनके आने का इंतजार कर रही थी।


पलक और भूमि, नम्रता को छोड़ने उसके स्वीट तक गये। नम्रता को वहां बिस्तर पर आराम से बिठाकर कुछ देर की बातें हुई। फिर सभी सखी सहेलियां और बहनों ने धक्का देकर माणिक को अंदर भेज दिया। माणिक जब अंदर जा रहा था तब पीछे से भूमि कहने लगी… "माणिक शिकायत नहीं आनी चाहिए मेरी उत्तराधिकारी की।"


दोनो बेचारे शर्मा गये और तेजी से दरवाजा बंद कर लिया। भूमि और पलक के साथ कयि लड़कियां वहां से निकलकर आ रही थी। किनारे से एक जगह पर रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी। भूमि और पलक भी उस ओर भिड़ को देखकर चल दी। जैसे ही पलक ने सामने का नजारा देखा उसका दिमाग चक्कर खा गया।


2 कदम पीछे हटकर उसने स्वीटी के ऊपर का बोर्ड देखा… "हैप्पी वेडिंग नाईट.. राजदीप एंड मुक्ता" और अंदर के सेज पर तो कोई और ही खेल खेलकर चला गया था। बिखरे बिस्तर, बिस्तर पर मसले फुल, चादर में पड़ी सिलवटें। कोनो पर सजे फूल की टूटी लड़ी, और बिस्तर पर ताजा वीर्य के धब्बे। जो मज़ा सुहाग की सेज पर भईया और भाभी को लेना था, वहां छोटी बहन और उसका ब्वॉयफ्रैंड मज़ा लूटकर बिखरे सेज को भईया और भाभी के लिए गिफ्ट कर दिया। पलक का दिमाग शॉक्ड। वो दबे पाऊं पीछे आयी और आकर आर्यमणि को कॉल लगाने लगी। 10 मिनट तक ट्राय करती रही लेकिन कोई नेटवर्क ही नहीं मिल रहा था।


पलक:- भूमि दीदी आर्यमणि को कॉल लगाओ, वो पहुंचा की नहीं।


भूमि:- कल तो इन नेटवर्क कंपनी वालो को डंडा कर दूंगी। अभी यहां के मैनेजर को कॉल लगा रही हूं, नेटवर्क ही नहीं मिल रहा। बेचारे दोनो (राजदीप और मुक्ता), जिसने भी ये किया है, अच्छा नहीं किया। खैर दूसरे स्वीट का इंतजाम कर दिया है।


तभी वहां एक छोटी उम्र का प्रहरी पहुंचा और चिढ़कर भूमि से कहने लगा… "दीदी किसने ये रिजॉर्ट बुक किया है। इन रिजॉर्ट वालो ने यहां सिग्नल जैमर लगा रखा था। मै 2 घंटे से परेशान हूं।"


भूमि:- क्या हुआ महा, सब ठीक तो है ना।


माही:- दीदी आज 8 से 10 के बीच बाबा का हर्निया ऑपरेशन था। आई से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश कर रहा हूं, लेकिन ये साले सिग्नल जैमर लगाये बैठे है।


ये सुनकर तो पलक का दिमाग पूरी तरह से घूम गया। अपने बाबा को वो अकेले में ले जाकर पूरी बात बताने लगी। उज्जवल भारद्वाज ने सुकेश भारद्वाज से कुछ बात की। उसने तुरंत अपना नेटवर्क चेक किया। ये लोग रिजॉर्ट के रिसेप्शन पर जा ही रहे थे कि सभी का नेटवर्क आ गया। सुकेश अपने कदम रोककर सरदार खान को कॉल लगाने लगा, लेकिन वहां का भी कॉल नहीं लगा।


भूमि को बुलाकर नागपुर में रुके प्रहरी से कॉन्टैक्ट करने कहा गया, लेकिन एक भी प्रहरी ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर उज्जवल और सुकेश ने अपने-अपने कॉन्टैक्ट के जरिये शहर के विभिन्न इलाकों की जानकारी ली। जब पूरी जानकारी आ गयि तब उन लोगो ने 4-5 लोगो को सरदार खान के इलाके में भेजा... उधर से जो जवाब मिला, उसे सुनकर पहले सुकेश झटके खाकर गिर गया, और जब उज्जवल ने सुना तो उसे भी सदमा सा लगा।


केशव, जया और भूमि तीनों दूर से बैठकर सबके चेहरे देख रहे थे।… इसी बीच पलक को बीच में बुलाया गया, उसे एक जोरदार थप्पड़ भी पड़ी… "आव बेचारी, इसका तो गाल लाल हो गया। चलो पैकिंग करने.. लगता है अभी ही सब नागपुर लौटेंगे।"


नाशिक एयरपोर्ट वक़्त लगभग 8 बजने वाले थे। आर्यमणि कार से उतरकर पलक के होटों को चूमा… "हे स्वीटहर्ट, लगता है तूफान आने वाला है, हम दोनों इस तूफान का मज़ा लेंगे। मेरा वादा है, आज की रात तुम्हारे जीवन की सबसे यादगार रात होगी।"…


पलक को हाथ हिलाकर अलविदा कहते आर्यमणि बढ़ चला। आखों में चस्मा लगाये विश्वास के साथ चलने लगा। चौड़ी छाती, चेहरे पर विजय की कुटिल मुस्कान और चलने में वो अंदाज की लोग पीछे मुड़कर देखने पर विवश हो जाए।


जैसे ही थोड़ी दूर वो आगे बढ़ा, 2 लोग उसे रिसीव करके छोटे रनवे के ओर ले गए, जहां एक छोटा प्राइवेट जेट पहले से उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। इसके पूर्व ही ढलते सांझ के साथ रूही अपनी टीम के साथ काम शुरू कर चुकी थी।


किले के अंदर जश्न जैसा माहौल। बस्ती का लगभग 500 मीटर का दायरा। चारो ओर से घिरी हुई बस्ती, बस्ती के बिचो-बीच लंबा चौड़ा एक चौपाल। कितने वेयरवुल्फ थे उस 500 मीटर के किले में थे वो तो किसी को पता नहीं। लेकिन किले के बिचबिच बने चौपाल में थे 200 आदमखोर जंगली कुत्ते, 180 कुरुर वेयरवुल्फ, 5 अल्फा और उन सबका बाप था एक बीस्ट वुल्फ।


पूर्णिमा यानी वेयरवुल्फ के लिये वरदान। आम दिनो से 10 गुना ज्यादा आक्रमकता। आम दिनों के मुकाबले 50 गुना ज्यादा ताकत मेहसूस करना। और आम दिनों की अपेक्षा जीत को निश्चित सुनिश्चित करना। ये थी पूर्णिमा कि रात एक वेयरवुल्फ का परिचय। फिर तो जितने वेयरवुल्फ साथ होंगे उनकी ताकत भी उसी मल्टीपल में बढ़ती है। किले के चौपाल से 6.30 बजे शाम की पहली वुल्फ साउंड। बहुत ही खतरनाक और दिल दहला देने वाला था वो। सभी प्रहरी एक साथ इतनी वुल्फ साउंड कभी नहीं सुने थे। उन्हें लग चुका था कि वो इनका मुकाबला नहीं कर सकते।


इधर रूही.... बॉयज एंड गर्ल्स हैव ए फन। और इवान तुम जारा अलबेली को बीच–बीच में शांत करवाते रहना। पूर्णिमा है और ये खुले में, कहीं भाग ना जाय..


इवान:- ये तो हथकड़ी में है मेरे साथ, चिंता नक्को रे।


रूही:- बेटा ओजल अपने 10 शिकारी मेहमान को जरा यहां तक ले आओ। कहना शहर खतरे में है और उनके बीच केवल हम ही उनकी उम्मीद है। इसलिए एक दूसरे पर भरोसा करने का वक़्त आ गया है। वरना पूर्णिमा है और 185 वेयरवुल्फ के साथ एक बीस्ट अल्फा शहर को बर्बाद कर देगा।


ओजल निकल गयी शिकारियों के पास, जो इतने सारे वुल्फ साउंड सुनकर घबराए थे और मदद के लिए कॉल तो लगा रहे थे लेकिन किसी की भी लाइन कनेक्ट नहीं हो रही थी। नाशिक का सिग्नल जैमर, जिसे आर्यमणि ने बरी ही सफाई से चारो ओर फिट करवाया था। लगभग 8 किलोमीटर के रेंज वाले 3 सिग्नल जैमर लगे थे। सभी जैमर को ओपन करने का वक़्त था रात के 12 बजकर 15 मिनट के बाद कभी भी।


ठीक वैसा ही सिग्नल जैमर सरदार खान के इलाके में भी लगा था। कुछ सरकारी कर्मचारियों की मदद से 8 किलोमीटर के क्षेत्र में जैमर को लगा दिया गया था। सिग्नल सरदार खान के किले का भी जाम हो चुका था जिसे खोलने का समय अगले आदेश तक। बेचारे शिकारी मदद के लिए फोन मिलाते रहे, लेकिन फोन मिला नहीं।


शिकारियों के पास तुरंत ही संदेश लेकर ओजल पहुंची। घबराए तो थे, ही इसलिए अब अपनी गाड़ी पर सवार होकर तुरंत उसके पीछे चल दिये। इधर चढ़ते चांद को देखकर रूही का दिल डोलने लगा। 12 लैपटॉप पहले से ऑन थे। कई सारे उड़न तस्तरी अर्थात ड्रोन तैयार थे जिनकी मदद गुलाल बरसाना था.. माउंटेन एश का गुलाल लिये सभी ड्रोन तैयार थे।


ये माउंटेन एश एक तरह का लक्ष्मण रेखा होता है जिसे कोई वेयरवुल्फ पार नहीं कर सकता। शिकारियों का झुंड वहां पहुंच चुका था। आर्यमणि के पैक को देखकर सुनिश्चित करने लगे… "तुमलोग आर्यमणि के पैक हो क्या?"..


रूही:- बातों का वक़्त नहीं है अभी शिकारी जी। कंप्यूटर कमांड दीजिए और ये ड्रोन पूरे इलाके में माउंटेन एश बरसा देगा। फिर आगे क्या करना है वो तो आप समझ ही गये होंगे।


शिकारी:- पहली बार एक वेयरवुल्फ को माउटेन एश का प्रयोग करते देख रहा हूं।


सभी शिकारी के साथ-साथ ओजल और रूही भी लग गई कंप्यूटर पर। तेजी के साथ ड्रोन 600 मीटर का दायरा कवर किया। बाजार के ओर से माउंटेन एश को उड़ेलते हुए सभी ड्रोन आगे बढ़ रहे थे। लगभग 15 मिनट में ही माउंटेन एश की गुलाल चारो ओर बिखरी पड़ी थी। एक शिकारी आगे बढकर रूही से कहने लगा… "तुम्हारा काम खत्म हो गया है। अब तुम लोग यहां से जा सकते हो।"..


"ऐसे कैसे हम यहां से चले जाए शिकारी जी, ये तो हमारे शिकार है और हमारी रणनीति। आप लोग इस पूर्णिमा की शाम का आनंद उठाइये और प्रहरी समुदाय से कहियेगा, उनका काम अल्फा पैक ने कर दिया।".. रूही उस शिकारी के करीब आकर कहने लगी जो अपना हाथ अभी-अभी चाबुक पर रखा था।
Mind-blowing update
 
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