एक तो शरीर से पहले ही खून बह रहा था उसके ऊपर भला किसी जहर में लिप्त था, जो अंदर घुसते ही प्राण बाहर लाने को आतुर था।
आर्यमणि एक हाथ को सीने पर रखकर पूरे बदन की पीड़ा और जहर अपने नब्ज में खींचने लगा वहीं दूसरे हाथ से भला निकलने की कोशिश करने लगा। शुरवात के कुछ मिनट में इतनी हिम्मत नही थी कि शरीर से भला खींचकर निकाल सके। लेकिन जैसे–जैसे दर्द और जहर खींचता जा रहा था हिम्मत वापस से आने लगी।अपने चिल्लाने के दायरे को केवल आवरण तक ही रखा और दर्द भरी चीख के बीच पहला भाला को निकाला।
पहला भाला निकालने के साथ ही आर्यमणि के आंखों के आगे जैसे अंधेरा छा गया हो। लगभग बेहोश होने ही वाला था, लेकिन किसी तरह हिम्मत जुटाया और भाला निकलने के बदले जड़ों के रेशों पर हाथ डाला। जड़ों के रेशे, सबसे पहले शरीर में घुसे दोनो भाला के सिरे से लिपट गये। उसके बाद शरीर के अंदर सुई जितने पतले आकार के लाखों रेशे घुस चुके थे। आर्यमणि दूसरे हाथ से लगातार अपने दर्द और जहर को खींचते हुये, पहला ध्यान अपने एक पाऊं पर लगाया और पाऊं के अंदर घुसे लकड़ी के छोटे से छोटे कण को निकाल लिया। एक पाऊं से लड़की के टुकड़े जैसे ही निकले पल भर में वह पाऊं हिल हो गया।
आर्यमणि अपने अंदर थोड़ी राहत महसूस किया। बड़े ही आराम से एक के बाद एक बदन के अलग–अलग हिस्सों से सभी लकड़ी के टुकड़े निकाल चुका था। सबसे आखरी में उसने एक–एक करके दोनो भाले भी निकाल लिये और थोड़ी देर तक खुद को हिल करता रहा। कुछ ही देर में आर्यमणि पूर्ण रूप से हिल होकर पूर्ण ऊर्जा और पूर्ण क्षमता अपने शरीर में समेट चुका था। पूरी क्षमता को अपने अंदर पुर्नस्थापित करने के बाद आर्यमणि ने अपने ऊपर से जड़ों के रेशों को हटाया। सभी 8 शिकारी घेरा बनाकर निशांत और संन्यासी शिवम पर अब भी अपने मुक्के से हमला कर रहे थे। दोनो के शरीर के अंदर हो रहे दर्द और उखड़ती श्वास को आर्यमणि मेहसूस कर सकता था।
खुद पर हुये हमले से तो आर्यमणि मात्र चौंका था। अपने पैक को मुसीबत में फसे देख आर्यमणि का मन बेचैन हो गया और अपने दुश्मन की ताकत को पहचानकर उसे हराने के बारे में सोचना छोड़कर, पहले अपने पैक को सुरक्षित किया। लेकिन निशांत की उखड़ी श्वास ने जैसे आर्यमणि को पागल बना दिया हो.… केवल शरीर के ऊपर आग नजर नही आ रहा था, वरना आर्यमणि के गुस्से की आग पूरे शरीर से ही बह रही थी।
फिर तो आर्यमणि की दिल दहला देने वाली तेज दहाड़ जिसे पूरे नागपुर में ही नही बल्कि 30–40 किलोमीटर दायरे में सबने सुना। और जिसने भी सुना उन्हे बस किसी भयानक घटना के होने की आशंका हुयि। उस दहाड़ में इतना गुस्सा था कि आर्यमणि का पूरा पैक भी अपने मुखिया के दहाड़ के पीछे इतना तेज दहाड़ लगाया की जड़ों का आवरण मात्र आवाज से उड़ गया।
शिकारियों का ध्यान टूटा, लेकिन इस बार वह आर्यमणि को छल नही पाये। किसी बड़े से टेनिस कोर्ट की तरह सजावट थी। जिसके बाहरी लाइन के 8 पॉइंट पर सभी शिकारी निश्चित दूरी पर खड़े उस कोर्ट को घेरे थे और बीच में फंसा था निशांत और संन्यासी शिवम। इसके पूर्व इसी बनावट को 4 शिकारी घेरे थे जिसमें आर्यमणि फसा था और बाकी के 4 शिकारी बाहर से बैठकर उसकी ताकत का पूर्ण अवलोकन कर रहे थे। लेकिन इस बार खेल में थोड़ा सा बदलाव था। शिकारी चार दिशाओं में फैले तो थे लेकिन आर्यमणि उनके दायरे के बाहर था। अब तो जो भी हवाई हमला होता वह तो सामने से ही होता।
गुस्सा ऐसा हावी की गाल के नशों का भी उभार देखा जा सकता था। हृदय इतनी तेज गति से धड़क रही थी कि मानो कोई ट्रेन चल रही हो। श्वास खींचकर आर्यमणि अपने अंदर भरा और पूरी क्षमता से दौड़ लगाया। हवा को चिड़ते, किनारे से धूल उड़ाते दौड़ा। सभी शिकारी भी अपना ध्यान आर्यमणि पर केंद्रित करते पूरा बवंडर को ही उसके ऊपर छोड़ दिया। इस बार बवंडर में न सिर्फ लकड़ी के टुकड़े थे बल्कि कई हजार भाले, कई हजार किलोमीटर की रफ्तार से बढ़े। लेकिन शिकारियों का सबसे बड़ा हथियार शायद अब किसी काम का न रहा।
जैसे सिशे पर पड़ी धूल को फूंकते वक्त उड़ाते है, आर्यमणि भी ठीक वैसे ही बीच से पूरे बवंडर को उड़ा रहा था। जैसे सीसे पर फूंकते समय अपने गर्दन को थोड़ा दाएं और बाएं घूमाने से धूल भी दोनो ओर बंटने लगती है, ठीक उसी प्रकार आर्यमणि भी अपनी तेज फूंक के साथ गर्दन को मात्र दिशा दे रहा था और बवंडर के साथ–साथ सभी हथियार भी दाएं और बाएं तीतर बितर हो रहा था। बवंडर के उस पार क्या हो रहा था यह किसी भी शिकारी को पता नही था, वह बस अपने हाथ के इशारे से बवंडर उठा रहे थे।
छणिक समय का तो मामला था। आर्यमणि दहाड़ कर दौड़ लगाया और शिकारियों ने अपने हाथ से बवंडर उठाकर आर्यमणि पर हमला किया। उसके अगले ही पल मानो बिजली सी रफ्तार किसी एक शिकारी के पास पहुंची। आर्यमणि उसके नजदीक पहुंचते ही अपना दोनो हाथ के क्ला उसके गर्दन में घुसाया और खींचकर उसके गर्दन को धर से अलग करके बवंडर के बीच फेंक दिया।
बेवकूफ शिकारी अब भी उसी दिशा में बवंडर उठा रहे थे जहां से आर्यमणि ने दौड़ लगाया और जब दूसरे शिकारी का गर्दन हवा में था, तब उन्हे पता चला की उनका बवंडर कहीं और ही उठ रहा है, और आर्यमणि तो उसके बनाये लाइन पर दौड़ रहा था। जब तक वो लोग अपना स्थान बदल कर आर्यमणि को घेरते उस से पहले ही आर्यमणि अपने पीछे जा रहे १ शिकारी पर लपका। जवाब में उस शिकारी ने भी अपना तेज हुनर दिखाते हुये अपने दाएं और बाएं कंधे के ऊपर से बुलेट की स्पीड में २ भाला चला दिया। आर्यमणि और उस शिकारी के बीच कोई ज्यादा दूरी थी नही। हमले का पूर्वानुमान होते ही आर्यमणि एक कदम आगे बढ़कर उस शिकारी के गले ही लग गया और अगले ही पल उसकी पूरी रीढ़ की हड्डी ही आर्यमणि के हाथ में थी और उसका पार्थिव शरीर जमीन पर।
दरअसल जितनी तेजी उस शिकारी ने अपने कंधे से २ भाला निकालने में दिखाई थी। आर्यमणि उस से भी ज्यादा तेजी से उसके गले लगने के साथ ही अपने दोनो पंजे के क्ला को उसकी पीठ में घुसकर चमरे को पूरा फाड़ दिया और रीढ़ की हड्डी को उतनी ही बेरहमी के साथ खींचकर निकाल दिया। अपने साथी का भयानक मौत देखकर दूसरा शिकारी जो आर्यमणि के पीछे जा रहा था वह अपने साथियों के पास लौट आया। सीक्रेट बॉडी के 5 थर्ड लाइन सुपीरियर शिकारी अब ठीक आर्यमणि के सामने थे और अंधाधुन उसपर हमले कर रहे थे।
"आज तुम्हे मेरे हाथों से स्वयं काल भी नही बचा सकता। समझ क्या रखा था, मेरे दोस्त की जान इतनी सस्ती है जो लेने की कोशिश कर रहे थे। तुम हरामजदे... दोबारा किसी को दिखोगे नही"…. आर्यमणि गुस्से में लबरेज होकर अपनी ताकतवर फूंक के साथ आगे बढ़ा। बवंडर का असर कारगर करने के लिये वो लोग भी इशारों में रणनीति बना चुके थे। आर्यमणि जैसे ही नजदीक पहुंचा ठीक उसी वक्त 4 शिकारी ने आर्यमणि को छोटे घेरे में कैद कर लिया। हवा का बवंडर उठाया। बवंडर विस्फोट की तरह फूटे भी और साथ में भाले भी चले लेकिन उन मूर्खों को आर्यमणि की गति का अंदाजा नहीं था।
जितने समय में उनलोगो ने अपना जौहर दिखाया उस से पहले ही आर्यमणि उनके घेरे से बाहर था और एक शिकारी के ठीक पीछे पहुंचकर अपने दोनो पंजे के बीच उसका सर रखकर जैसे किसी मच्छर को जोर से मारते हैं, ठीक वैसे ही सर को बीच में डालकर अपनी हथेली से जोडदार ताली बजा दिया। नतीजा भी ठीक वैसा ही था जैसा मच्छर के साथ होता है। आर्यमणि के दोनो हथेली के बीच केवल खून रिस रहा था, बाकी सर भी कभी था ऐसा कोई सबूत आर्यमणि की हथेली में नही मिला।
साक्षात काल ही जैसे सामने खड़ा हो। आर्यमणि बिलजी की तरह दौड़कर एक और शिकार पास पहुंचा। उसे पकड़ा और इस बार उस शिकारी के पेट में अपने दोनो पंजे घुसाकर उसका पेट बीच से चीड़ दिया। मौत से पहले का दर्द सुनकर ही बाकी के ३ शिकारी भय से थर–थर कांपने लगे। तीनों में इतनी हिम्मत नही बची की अलग रह कर हमला करे। और जब साथ में आये फिर तो आर्यमणि ने एक बार फिर उन्हे दर्द और हैवानियत से सामना करवा दिया। तेजी के साथ वह तीनों के पास पहुंचा और २ के सर के बाल को मुट्ठी में दबोचकर इस बेरहमी से दोनो का सर एक दूसरे से टकरा दिया की विस्फोट के साथ उसके सर के अंदर का लोथरा, चिथरे बनकर हवा में फैल गया। कुछ चिथरे तो निशांत और संन्यासी शिवम के ऊपर भी पड़े।