भाग:–11
आश्चर्य से उसकी आंखें फैल चुकी थी। चेहरे के भाव ऐसे थे मानो जिंदगी की कितनी बड़ी खुशी आंखों के सामने खड़ी हो। भूमि की नम आंखें एक टक आर्यमणि को ही देख रही थी और आर्यमणि अपनी प्यारी दीदी को देखकर, खड़ा बस मुस्कुरा रहा था।
भूमि, आर्यमणि को देखती ही उससे लिपट गई, कभी उसके गाल चूमती तो कभी, उसका चेहरा छूती। आखों से आंसू सराबोर थे। वो लगातार रोए ही जा रही थी।…. "दीदी चूमकर मेरा पूरा चेहरा गीला कर दी, ऊपर से आशु से भी भिगो रही। जीवन को तो बोल दो की तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो।
"हां वो समझ गया, तू चल अंदर।"..
भूमि उसे लेकर घर में पहुंची। जैसे ही भूमि अंदर आयी, एक लड़की उसके करीब पहुंचती… "मैम, 10 मिनट बाद.." इतना ही कही थी वो, तभी भूमि उसे हाथ दिखती… "छाया, तुम ऑफिस चली जाओ और जय से कहना सारे क्लाइंट के साथ ऑफिशियल मीटिंग कर लो। मैं एक वीक हॉलिडे पर हूं।"..
छाया:- लेकिन मैम वो कल तो टेंडर होने वाला है।
आर्यमणि:- ये पागल हो गई है। आज आप काम संभाल लीजिए। दीदी कल से सारे ऑफिशियल मीटिंग अटेंड करेगी।
भूमि:- छाया जो मै बोली वो करो। जरूरी काम के लिए मै आ जाऊंगी। अब तुम ऑफिस जाओ और जय से मिल लेना।
जैसे ही वो लड़की गई… "ये क्या नाटक किया आर्य। सबको कितना परेशान किया है। मै क्या रिएक्ट करूं, इतने साल बिना किसी से कॉन्टैक्ट किए तू गायब कैसे रह सकता है?"
आर्यमणि:- मासी के पास चलो ना। एक हफ्ते कि छुट्टी तो ले ही ली हो ना।
भूमि:- मै पागल हूं क्या जो इतनी देर से तुमसे कुछ कह रही हूं, उसपर जवाब ना देकर, इधर-उधर की बात कर रहा है।
आर्यमणि:- सॉरी दीदी, अब दोबारा नहीं होगा।
भूमि:- मुझे ये जानने में इंट्रेस्ट नहीं की क्या होगा, मुझे अभी जानना है कि ऐसा हुआ क्या था जो तुमने एक फोन करना, एक मेल करना, या छोटा सा भी संदेश देना जरूरी नहीं समझा। 2.5 महीने मैं यूरोप और अमेरिका के चक्कर काटती रही.. जनता है तू, जो दर्द तेरे जाने का पहले दिन था वो कभी घटा नहीं, उल्टा वक्त के साथ बढ़ता रहा है...
आर्यमणि, एक झूठी कहानी बनाते…. "दीदी यूएस में एक टूर कॉर्डिनेटर ने मुझे 2 दिन के एडवेंचर टूर का झांसा दिया और मुझे टोंगास नेशनल फॉरेस्ट, अलास्का लेकर गया। बहुत बड़ा टूर ग्रुप था। रात को मै पूरे ग्रुप के साथ सोया था और सुबह जागने जैसा कुछ भी नहीं था। बदन में बिल्कुल भी जान नहीं थी, ऐसा लग रहा था शरीर कटे-फटे थे और शरद हवा मुझे जमा रही थी। धुंधली सी आखें खुली, फिर बंद। फिर खुली, फिर बंद। मुझे जब होश आया तो मै जंगलों के बीच बसे कुछ आदिवासी के बीच था। जिसकी भाषा मुझे समझ में नहीं आती और उनको मेरी भाषा।"
"मैं उनके लिए लकी था। वो मुझे रोज चारे की तरह जंगल में बांध देते और छिपकर जंगली भालू का शिकार करते थे। काफी खौफनाक मंजर था। कभी–कभी तो ऐसा महसूस होता की आज ये भालू मुझे फाड़कर यहीं मेरी कहानी समाप्त कर देगा। हां लेकिन शुक्र है भगवान का हर बार मैं बच गया। मैं धीरे–धीरे ठीक हो रहा था, साथ ही साथ उनसे कैसे पिछा छूटे उस पर काम भी कर रहा था। मेरी चोट ठीक होने के बाद, जैसे ही मुझे पहला मौका मिला, वहां से भाग गया। दीदी एक गाड़ी नहीं, एक इंसान नहीं। ऐसा लग रहा था मै किसी दूसरे ग्रह पर हूं, बिल्कुल ठंडा और जंगल से घिरा।"
"चलते गया, चलते गया और जब पहली बार किसी कार को देखा तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। ऐसा लगा जैसे अब मै जिंदा बच जाऊंगा। ऐसा लगा जैसे अब मै सबसे मिल पाऊंगा। उस आदमी से मुझे पता चला कि मै रशिया के बोरियल जंगल में हूं और जब उसने तारीख बताई तो पता चला मै पिछले 8 महीने से केवल और केवल चल रहा हूं।"
"अच्छा आदमी था वो। उसने मुझे सरण दी। फिर मै कैसा पहुंचा उसके बारे में बताया। उसे भी हैरानी हुई मैं 8 महीनों से चल रहा था। फिर उसी ने मुझसे कहा कि मै जंगल के मध्य से पश्चिम दिशा में चला था, जो शहरी क्षेत्र से दूर ले जा रहा था। इसी वजह से कोई नहीं मिला। ना पासपोर्ट ना ही कोई लीगल डॉक्यूमेंट। और जानती हो दीदी, पैसा क्या चीज होती है ये भी मुझे एहसास हो गया। फिर उस आदमी बॉब के साथ मैं काम करके पैसे जमा करता रहा। जब फर्जी पासपोर्ट और टिकट के लिए पूरे पैसे जमा हो गए तब पहली फुरसत में वापस लौट आया।"
भूमि:- मै ज़िन्दगी में किसी के लिए इतना नहीं रोई, लेकिन तेरी लिए बहुत रोई। तुझे जहां जाना है, वहां जा। दुनिया का जो कोना घूमना है, घूम। नहीं आने का मन हो मत आ, पर अपनी खबर तो देते रह ताकि हम सब सुकून में रहे। अब जारा मुझे उस आदमी की डिटेल दे जो तुझे अलास्का ले गया था।
आर्यमणि:- दीदी उसका नाम एड्रू रॉबर्ट था, कोई "न्यू रेड फील्ड एडवेंचर ट्रिप" करके उसकी कंपनी थी।
भूमि:- तेरे साथ और कोई था क्या? या तू जिस फ्लाइट में था, वहां कोई ऐसा जो संदिग्ध लगे।
आर्यमणि:- याद नहीं दीदी। पता नहीं कैसे लेकिन जिंदा बच गया। और दीदी मुझे थैंक्स तो कह दो। मेरे बहाने कम से कम ढाई महीने आप यूरोप और अमेरिका तो घूमी।
भूमि:- कुता तू मुझसे चप्पल खाएगा, समझा। मेरी एरिया घिस गई तुझे ढूंढ़ते-ढूंढ़ते। लेकिन तू यूरोप या अमेरिका में होता तो ना मिलता। वैसे तेरी मेहनत का फल दिख रहा है । चल जारा कपड़े उतार के दिखा कैसी बॉडी बनी है तेरी।
आर्यमणि अपना शर्ट उतारकर दिखाने लगा। भूमि उसके बदन को देखती… "इसे कहते है ना मेहनत वाली एथलीट बॉडी। गधे जिम जाकर लड़कियों कि तरह छाती फुला लेते है और बैल की तरह पुरा बदन। ये बॉडी सबसे तंदरुस्त और एक्टिव लोगो की होती है, इसे मेंटेन करना।
आर्यमणि:- बिल्कुल दीदी। दीदी एक बात और है।
भूमि:- क्या ?
आर्यमणि:- दीदी मैंने कोई इंजिनियरिंग इंट्रेस एग्जाम नहीं दिया लेकिन मुझे नेशनल कॉलेज में एडमिशन लेना है।
भूमि:– बहरवी कब पास किए जो इंजीनियरिंग में तुझे एडमिशन चाहिए।
आर्यमणि:– मेरे पास बारहवी के समतुल्य सर्टिफिकेट है। हां लेकिन वो रसियन सर्टिफिकेट है, चलेगा न...
भूमि:- वो मासी (आर्य की मां जया) ने जब मुझे बताया कि तू आ गया है, तभी मैंने तेरे लिए उस कॉलेज में एडमिशन का बंदोबस्त कर दिया था, बस सर्टिफिकेट को लेकर ही रुकी थी। अभी चलकर बस एक आदमी से मिलेंगे और आराम से तू सोमवार से कॉलेज जाना।
"किसे कॉलेज भेज रही हो दीदी"… भूमि का चचेरा भाई एसपी राजदीप पीछे से आते हुए कहने लगा।
भूमि:- आर्य के एडमिशन की बात कह रही थी। अब चित्रा और निशांत नेशनल कॉलेज में है तो ये कहीं और कैसे पढ़ सकता है।
राजदीप ने जैसे ही आर्य सुना वो हैरानी से देखते हुए उसे गले से लगा लिया। काफी टाईट हग करने के बाद…. "इसका बदन तो सॉलिड है दीदी। सुनो आर्य वैसे मेरी आई जानेगी की मै तुम्हारे गले लगा हूं तो हो सकता है वो मेरा गला काट दे।"..
आर्य:- ओह आप अक्षरा आंटी के बेटे राजदीप है।
राजदीप:- तुम मुझे कैसे जानते हो।
आर्य:- नीलांजना आंटी आप सबके बारे में बात करते रहती थी।
राजदीप:- और राकेश मौसा वो कुछ नहीं कहते थे मेरे बारे में।
आर्य:- गुलाब के साथ कितने काटें है उन पर कौन ध्यान देता है सर। कभी अच्छा या बुरा आपके बारे में कहा भी हो, लेकिन मै नहीं जानता।
राजदीप:- दीदी ये आपका पुरा भक्त है और शागिर्द भी। अब ये आ गया है तो आप कुछ सुनने से रही। मै आराम से कुछ दिन बाद मिलता हूं।
भूमि:- हम्मम ! थैंक्स राजदीप। कुछ दिन इसके साथ वक़्त बिताने के बाद मै मिलती हूं। आर्य सुन नीचे का वो दूसरा कमरा तेरा है। मासी ने तुझे वहां नहीं बताया, कहीं तू हंगामा ना करे। यहां तू मेरे साथ रहेगा।
आर्यमणि:- नहीं, मै तो अपनी मासी के साथ ही रहूंगा।
भूमि:- लेकिन मेरे साथ रहने में क्या बुराई है?
आर्यमणि:- बहन के ससुराल में रहने से इज्जत कम हो जाती है। ऐसा मुझे किसी ने सिखाया था।
भूमि:- नालायक कहीं का, भुल गया जब मुझे फोन करता था.. दीदी ट्रैक रोप, दीदी ड्रोन, दीदी, चस्मा.. तब इज्जत कम नहीं हुई, अभी कम हो जाएगी। अच्छा सुन, तू यहां मेरे पास रह, मै तुझे बाइक दिलवा दूंगी।
आर्यमणि:- बाइक, हुंह ! जो बाइक आप दिलवाओगी वो तो मुझे कोई भी दिलवा सकता है, और मुझे फालतू बाइक नहीं चाहिए।
भूमि, मुस्कुराती हुई… "हां ठीक है तुझे जो बाइक चाहिए वही दिलवा दूंगी, जाकर फ्रेश हो जा.. दोनो साथ खाना खाते है, तब तक रिचा भी आ जाएगी, फिर हम सब साथ शॉपिंग के लिए चलेंगे।"
आर्यमणि:- नाह, मै सिर्फ आपके साथ शॉपिंग चलूंगा, और फिर रात को मासी के पास रुकेंगे।
भूमि:- मै इतना प्रेशर लेकर काम नहीं करती। आज हम दोनों शॉपिंग करते है। कल फिर तेरे बाइक पर सवार होकर चलेंगे आई के पास। मंजूर..
आर्यमणि:- हां लेकिन शॉपिंग में दादा को लूटेंगे।
भूमि:- हिहिहीही… हां ये अच्छा है। रुक मै जय को बता देती हूं।
दोनो लगभग 3 बजे के करीब निकले। सबसे पहले पहुंचे एमएलए कृपाशंकर के पास। भले ही वह एमएलए राजदीप को न जनता हो, लेकिन भूमि का नाम सुनकर ही वह खुद बाहर उसे लेने चला आया। आर्यमणि को बाहर बिठाकर दोनो ऑफिस में पहुंचे जहां भूमि, आर्यमणि के इंजीनियर दाखिले की बात करने लगी। छोटा सा पेपर वर्क फॉर्मुलिट हुई और मैनेजमेंट कोटा से एडमिशन। बस कुछ पेपर साइन करने थे जो 2 घंटे बाद आकार कभी भी कर सकते थे।
वहीं भूमि को यह भी पता चला कि राजदीप एमएलए से मिलने पहुंचा था। वहां का काम निपटाकर भूमि, आर्यमणि के साथ सीधा शॉपिंग पर निकल गई। दोनो पहुंचे बिग सिटी मॉल।… "अच्छा सुन आर्य, यहां एसेसरीज सेक्शन में बहुत सारी इलेक्ट्रॉनिक आइटम है, तू अपने काम का देख ले।
आर्यमणि:- दीदी यहां कौन सा जंगल है और जंगली जानवर, जो मुझे वो करंट वाली गन या फिर ड्रोन या अन्य सामानों की जरूरत होगी।
भूमि:- जरूरत वक़्त बताकर थोड़े ना आती है। वैसे भी दुनिया में इंसानों से बड़ा भी कोई जानवर है क्या? जाकर देख तो ले।
आर्यमणि:- दीदी वो दादा कहीं गुस्सा ना हो जाए।
भूमि:- दादा गुस्सा होगा तो पैसे लेगा, तू बस शॉपिंग कर। और सुन मै कुछ अपने पसंद से तेरे लिए ले रही हूं.. यहां से शॉपिंग खत्म करके सीधा कपड़ों के सेक्शन में आ जाना।
भूमि:- ठीक है दीदी।
आर्य एक्सेसरीज सेक्शन में गया और अपने काम की चीजें ढूंढने लगा। वह एक शेल्फ से दूसरे शेल्फ तक नजर दौरा ही रहा था, तभी मानो पीछे से कोई बिलकुल चिपक सा गया हो। वह अपने होंठ आर्यमणि के कान पास लाते.… "मेरी जेब में एक पिस्तौल है, जिसकी नली तुम पर है। बिना कोई होशियारी किए चलो"…
आर्यमणि चुपचाप उनके साथ निकला। वो लोग मॉल से बाहर निकलकर उसके पार्किंग में चले आए, जहां एक गाड़ी के बोनट पर एक आदमी बैठा था और उसके आस–पास 8–10 लोग थे। जैसे ही वह आदमी आर्यमणि को पार्किंग के उस जगह तक लेकर आया जहां गुंडे सरीखे लोग थे.… "इसे ले आया छपड़ी भाई"…
आर्यमणि को जो साथ लेकर आया था वह शायद बोनट पर बैठा उस बॉस से कह रहा था, जिसका नाम छापड़ी था.… छपड़ी हाथ के इशारे से अपने पास बुलाया और आर्यमणि को घुरकर देखते.… "हां यही लड़का है। जल्दी मार कर काम खत्म करो।"
छपड़ी ने हुकुम दिया और पीछे खड़ा आदमी ने तुरंत ही एक राउंड फायर कर दिया। आर्यमणि को कमर के ऊपर गोली लगी और वह दर्द से बिलबिला गया। लेकिन गोली लगने के बावजूद भी आर्यमणि खड़ा रहा। जिसे देख छपड़ी हंसते हुए.… "लड़के में दम है बे, जल्दी से गिरा"… इतना कहना था कि फिर सामने से 2 और राउंड फायर हो गए। आर्यमणि को दर्द तो बेहिसाब हो रहा था लेकिन फिर भी वह खड़ा था।
छपड़ी अपनी बड़ी सी आंखें फाड़े... "अबे ये किसकी सुपाड़ी उठा लिया। कहीं रजनीकांत का फैन तो नही"...
छपड़ी ने जैसे ही अपनी बातें पूर्ण किया तभी फिर से लोग फायरिंग करने को तैयार। लेकिन इस बार छपड़ी उन्हे रोकते.… "अबे 3 राउंड तो मार ही दिए। अब क्या बदन में पूरा छेद ही कर दोगे। रुको जरा इसके स्टेमिना का राज भी पूछ ले। क्यों बे चूजे तू है कौन और ये कैसे कर रहा है?"..
आर्यमणि एक नजर दौड़ाकर चारो ओर देखा और अगले ही पल सामने बोनट पर बैठे छपड़ी को बाल से पकड़ कर बोनट पर ऐसा मारा की उसका सिर ही बोनट को फाड़कर अंदर घुस गया। उसके अगले ही पल अपने पीछे खड़े उस आदमी को गर्दन से पकड़ा और कुछ फिट दूर खड़े किसी दूसरे आदमी के ओर फेंक दिया। ऐसा लगा जैसे काफी तेज गति से 2 तरबूज टकराए हो और टकराने के बाद बिखड़ गए। ठीक वैसा ही हाल उन दोनो के सिर का भी था।
महज चंद सेकेंड में तीन लोग की कुरूरता पूर्ण तरीके से हत्या देखकर, बाकी के लोग भय से मूत दिए। हलख से बचाओ, बचाओ की चीख निकल रही थी। और पार्किंग में जो भी लोग उनकी दर्दनाक चीख सुनते, वह पहले खुद अपनी जान बचाकर भागते। और इधर आर्यमणि उन सबको अपना परिचय देने में व्यस्त था। आखरी का एक लड़का बचा जो हाथ पाऊं जोड़े नीचे जमीन पर बैठा था.…
आर्यमणि:– नागपुर में पहले दिन ही मेरा बड़े ही गर्म जोशी के साथ स्वागत हुआ है। ऐसा स्वागत करने वाला कौन था..
वह लड़का अपने कांपते होटों से.… "अ.. क.. क.. छ.."
आर्यमणि:– ओह तो इन्होंने इतने गर्मजोशी से स्वागत किया गया है... खैर अब तू ध्यान से सुन, तुझे क्या करना है। यहां से जा और अपने मालिक से कहना की उनका पाला किसी भूत से पड़ा है, तैयारी उसी हिसाब से करे। हां लेकिन 2 बात बिलकुल भी नहीं होनी चाहिए...
लड़का:– क… क... कौन सी.. बा... त
आर्यमणि:– पहली मुझे यह बिलकुल भी नहीं पता की तुम लोगों को किसने भेजा और दुसरी पुलिस को मेरे खिलाफ एक भी सबूत न मिले... दोनो में से किसी एक में भी चूक हुई, तो मैं तुम्हे दिखाऊंगा कि कैसा लगता है अपने शरीर की चमड़ी को अपने आंखों से उतरते देखना। कैसा लगता है जब तुम दर्द से 10 दिन तक लगातार बिलबिलाते रहो और हर पल ये सोचो की तुम्हे मौत क्यों नही आती?
लड़का:– स.. समझ.. गया..
लड़का वहां से भाग गया। आर्यमणि अपने बड़े से नाखून से अपने शरीर में घुसी गोली को निकाला और वापस शॉपिंग मॉल चला आया। शाम 7 बजे तक आर्यमणि अपने सबसे बड़े भाई तेजस के शॉपिंग मॉल से लाखों का शॉपिंग कर चुका था। बिल देने कि जब बारी आयी तब भूमि जान बूझकर आर्यमणि को बिल काउंटर पर भेज दी, और खुद अपने बड़े भाई तेजस के चेंबर के ओर चल दी। बिल काउंटर पर 11 लाख 22 हजार का बिल बन गया। पेमेंट की जब बारी आयी तब आर्यमणि ने साफ कह दिया, बिल उसके दादा पेमेंट करेंगे। लोग पेमेंट के लिए कहते रहे लेकिन आर्यमणि जिद पर अड़ा रहा।
माहौल बिगड़ता देख मैनेजर, आर्यमणि को अपने साथ ले जाते हुए, केबिन में बिठाया…. "सर, आप अपने दादा की डिटेल दे दीजिए, मै उनसे ही बात कर लूंगा।"..
आर्यमणि एक बार फिर उस मैनेजर के सब्र का इम्तिहान लेते हुए कह दिया.… "मैं अपने दादा की डिटेल मैनेजर को क्यों दूं... मैं केवल यहां के मालिक को हो दूंगा।"
मैनेजर ने लाख मिन्नतें किए। जब बात न बनी तो पुलिस बुलाने अथवा सारा सामान छोड़कर जाने तक की बात भी कह डाली, लेकिन आर्यमणि शायद बड़े से फाइट के बाद थोड़े मस्ती के मूड में था और लगातार मैनेजर को चिढ़ाते हुए एक ही रट लगाए था.… "वह मैनेजर की एक कही बात न मानेगा। जो भी बात होगी अब तो मॉल के मालिक से ही बात होगी"…
Mera bill to dada hi bharenge se lekar जो भी बात होगी अब तो मॉल के मालिक से ही बात होगी"…
Pr pahuch gya arya, bechara manager bhi soch rha hoga kaha fas gya vo Aaj...
Vaise arya ne bhumi Di ko accha gol mol kahani sunai hai pr Vo bhi janta hai ki Uski didi kya hai vo uski kahani ko cross check jarur karengi, sach bta nhi sakta or jhuth pakda hi Jana hai ek na ek din, Dekhte hai kya hota hai aage...
Nagpur aate hi badi Jordar swagat hone vala tha pr arya ne 3 goliya khakr unki gend mar li OR apna paigam bhi bhej diya...
Bhumi Di jb arya ki masti dekhegi to has has ke lot pot ho jayegi...
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