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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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nain11ster

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पहले से ही आर्य को किसने ट्रेनिंग देकर खुद को नियंत्रण में रखना सीखा चुकी/चुका हैं। लेकिन वो है कौन क्योंकि जो भी वह जर्मन में हुआ था और जर्मन में आर्य का एक ही शुभचितक थी ओशुन तो जाहिर सी बात है ओशुन ने ही सभी कुछ किया था और आर्य के हृदय को अपने लिए एक छोटा सा जगह बना चुकी थीं जो अभी तक कायम हैं अगर ऐसा न होता तो रूही के साथ समागम करते वक्त जब आर्य अनियंत्रित हों गया था तब रूही की करुण आवाज उसे ओशुन की याद न दिला देता।

रूही अलबेली और आर्य के निरंतर प्रयास ने सभी को अपने पर नियंत्रण रखना सीखा दिया और रूही समागम के आवेश में बहकर आर्य को अनियंत्रित होने की बात न कहीं होती और रूही की बात मानकर निरंतर प्रयास आर्य ने न की होती तो रिचा के साथ आर्य बहकर अनियंत्रित हों जाता और उसकी पोल खुल चुका होता।

इस भाग में जन गए की रिचा के कंधे का सहरा लेकर कोई अन्य ही कांड कर रहा है जिसका अंदेशा मैं पहले ही जाता चुका था बस अब प्रतीक्षा हैं की वो बहरूपिया कौन है?
Haan sex traning jyada jaroori thi... Eklauta aisa loop jahan Aryamani ka jarra bhi control nahi tha .. khair ab to wolf pack bhi khada ho raha hai .. dekhiye kya hota hai ..
 

nain11ster

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कभी कभी रूही की दिमाग बहुत तेज चलती है l वाह क्या तरकीब आज़माया उसने सारे बॉक्स खोल दिए l उनके विषय में एक बात जान कर बहुत बुरा लगा l कपड़े सिर्फ तीन जोड़ियां ही क्यूँ होती थी l खैर कहानी करवट बदल रही है, आज जो पीड़ित है कल समय उसे पीड़ा देने के लिए भी तैयार कर देता है l कुछ भी कहो nain11ster भाई यह अंक रूही की रही
Bechari garib thi aur sardar khan ka hath jis par rahega wahi to wahan amir hoga na.... Kadwa tha par sach tha... Lekin ab waqt aur jajbaat dono hi badalne Wale hain... Dekhiye aage kala bhai ...
 

nain11ster

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Mujhe dekhkar kya mhsush ho raha hai dada 😁

ऐसा लग रहा है मेरा बिछड़ा हुआ भाई मिल गया। बहुत बहुत बढ़िया लग रहा है बिगुल भाई। :hug:

आपकी बाते में हृदय को अपर शांति का अनुभव दिला गया कितना शब्दों में बताना मुस्किल हैं बस महसूस कर सकता हूं दादा :hug:
Lagta hai yahan mera aana hi dukhad raha hai... Thread jab shuru kiya tab kisi ne bahut din ke baad Milne ka utsah na dikhaya... Sabhi selfish story ke ore hi dhyan diye rah gaye :(
 
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Lagta hai yahan mera aana hi dukhad raha hai... Thread jab shuru kiya tab kisi ne bahut din ke baad Milne ka utsah na dikhaya... Sabhi selfish story ke ore hi dhyan diye rah gaye :(
बहुत बहुत ज्यादा याद किया था आप को लेकिन आप ही हनीमून मनाने मे इतने व्यस्त रह गए कि अपने सभी रीडर्स को भुला बैठे।
अधुरी कहानी को गौर से देखिए। जबाव तो दूर कोई रिएक्शन तक नही दिया आप ने । याद कीजिए। :hehe:
 

andyking302

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भाग:–64





पहली समस्या उस छोटे से बॉक्स को खोले कैसे और दूसरी समस्या, किसी भी खुले बॉक्स को साथ नहीं ले जा सकते थे, इस से आर्यमणि की लोकेशन ट्रेस हो सकती थी। सो समस्या यह उत्पन्न हो गयी की इस अथाह सोने केे भंडार को ले कैसे जाये?


आर्यमणि गहन चिंतन में था और उसे कोई रास्ता मिल न रहा था। अपने मुखिया को गहरे सोच में डूबा देखकर सभी ने उसे घेर लिया। रूही, आर्यमणि के कंधे पर हाथ रखती.… "क्या सोच रहे हो बॉस?"


आर्यमणि, छोटा बॉक्स के ओर इशारा करते... "सोच रहा हूं इसे जो खोलने में कामयाब हुआ, उसे भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। कोई ये कारगर उपाय बताये की कैसे हम इतना सारा सोना बिना इन बड़े बक्सों के सुरक्षित ले जाये, तो उसे भी भर पेट नॉन–वेज खिलाऊंगा। और यदि किसी ने दोनो उपाय बता दिये फिर तो उसे हफ्ते भर तक नॉन–वेज खाने की आजादी।


तीनों टीन वुल्फ खुशी से पागल हो गये। पहले मैं, पहले मैं बोलकर, तीनों ही चाह रहे थे कैसे भी करके पहले उन्हें ही सुना जाये। आर्यमणि शांत रहने का इशारा करते... "हम चिट्ठी लुटायेंगे, जिसका नाम निकलेगा उसे मौका दिया जायेगा।"…


रूही:– बॉस मेरा नाम मत डालना...


अलबेली:– क्यों तुझे नॉन वेज नही खाना क्या?


रूही:– पहले तुम चूजों को मौका देती हूं। जब तुम में से किसी से नहीं होगा तब मैं सारा मैटर सॉल्व कर दूंगी..


अलबेली:– बड़ी आयी दादी... दादा आप पर्चे उड़ाओ...


इवान:– हम तीन ही है ना... तो पीठ पीछे नंबर पूछ लेते है।


अलबेली और ओजल दोनो ने भी हामी भर दी। इवान को पीछे घुमा दिया गया और पीठ के पीछे सबका नंबर पूछने लगे। पहला नंबर इवान का, दूसरा नंबर अलबेली और तीसरे पर ओजल रही। इवान सबसे पहले आगे आते.… "बॉस सोना जैसा चीज हम छिपाकर नही ले जा सकते इसलिए आधा सोना यहां के क्रू मेंबर को देकर उनसे एक खाली कंटेनर मांग लेंगे और उसी में सोना लादकर ले जायेंगे"…


आर्यमणि:– आइडिया बुरा नही है। चलो अब इस छोटे बॉक्स को खोलो।


बहुत देर तक कोशिश करने के बाद जब बॉक्स खुलने का कोई उपाय नहीं सूझा, तब इवान ने बॉक्स को एक टेबल पर रखा और अपने दोनो हाथ बॉक्स के सामने रख कर... "खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम.. खुल जा सिम सिम"..


3 बार बोलने के बाद भी जब बॉक्स नही खुला तब अलबेली, इवान को धक्के मारकर किनारे करती, अपने दोनो हाथ सामने लाकर... "आबरा का डबरा... आबरा का डबरा.. आबरा का डबरा... बीसी आबरा का डबरा खुल जा"


अब धक्का खाने की बारी अलबेली की थी। उसे हटाकर ओजल सामने आयी और उसने भी अपने दोनो हाथ आगे बढ़ाकर.… "ओम फट स्वाहा... ओम फट स्वाहा.. ओम फट स्वाहा"… ओजल ने तो कोशिश में जैसा चार चांद लगा दिये। हर बार "ओम फट स्वाहा" बोलने के बाद 4–5 सोने के सिक्के उस बक्से पर खींचकर मारती।


तीनों मुंह लटकाये कतार में खड़े थे। उनका चेहरा देखकर आर्यमणि हंसते हुये…. "रूही जी आप कोशिश नही करेंगी क्या?"


रूही:– एक बार तुम भी कोशिश कर लो बॉस..


आर्यमणि:– मैं कोशिश कर के थक गया..


"रुकिये जरा"… इतना कहकर रूही अपने बैग से दस्ताने का जोड़ा निकली। साथ में उसके हाथ में एक चिमटी भी थी। रूही चिमटी से दस्ताने के ऊपर लगे एक पतले प्लास्टिक के परत को बड़ी ही ऐतिहात से निकालकर उसे अपने दाएं हथेली पर लगायी। फिर दूसरे दस्ताने से पतले प्लास्टिक की परत को निकालकर उसे भी बड़े ऐतिहात से अपने बाएं पंजे पर लगायी। दोनो हाथ में प्लास्टिक की परत चढ़ाने के बाद रूही उस बॉक्स के पास आकर, उसके ऊपर अपना दायां हाथ रख दी।


दायां हाथ जैसे ही रखी बॉक्स के ऊपर हल्की सी रौशनी हुई और दोनो हाथ के पंजे का आकार बॉक्स के दोनो किनारे पर बन गया। रूही दोनो किनारे पर बने उस पंजे के ऊपर जैसे ही अपना पंजा रखी, वह बॉक्स अपने आप ही खुल गया। सभी की आंखें बड़ी हो गयी। हर कोई बॉक्स के अंदर रखी चीज को झांकने लगा। बॉक्स के अंदर 4 नायब किस्म के छोटे–छोटे पत्थर रखे थे।


रूही:– आंखें फाड़कर सब बाद में देख लेना, पहले सभी बॉक्स को यहां लेकर आओ...


सभी भागकर गये और बाकी के 9 बॉक्स को एक–एक करके रूही के सामने रखते गये और रूही हर बॉक्स को खोलती चली गयी। हर कोई अब बॉक्स को छोड़कर, रूही को टकटकी लगाये देख रहा था.… "क्या??? ऐसे क्या घूर रहे हो सब?


आर्यमणि:– तुमने ये खोला कैसे...


रूही:– सुकेश भारद्वाज के हथेली के निशान से...


सभी एक साथ.… "क्या?"


रूही:– क्या नही, पूछो कैसे खोली। तो जवाब बहुत आसान है किसी दिन सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था। हालाकि पहली बार तो मेरे साथ जबरदस्ती हुई नही थी और ना ही मैं वैसी जिल्लत की जिंदगी जीना चाहती थी, इसलिए मैं भी तैयार बैठी थी। पतले से प्लास्टिक पेपर पर ग्रेफाइट डालकर पूरे बिस्तर पर ही प्लास्टिक को बिछा रखी थी। सुकेश मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा और साथ में पूरे बिस्तर पर उसके हाथ के निशान छपते रहे।


आर्यमणि:– ये बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बतायी?


रूही:– क्योंकि मुझे भी नही पता था। जबरदस्ती करने वाला मास्क में रहता था और उसके पीछे सरदार खान अपनी दहाड़ से मुझे नियंत्रित कर रहा होता था।


आर्यमणि:– फिर तुम्हे कैसे पता चला की वह सुकेश है...


रूही:– कभी पता नही चलता। मैं तो वो हाथ के निशान लेकर भूमि दीदी के पास गयी थी। उन्होंने ही मुझे बताया की यह हाथ के निशान किसके है। वैसे हाथ के निशान भी उन्होंने ही लेने कहा था। खैर ये लंबी कहानी है जिसका छोटा सा सार इतना ही था कि मैं जिल्लत की जिंदगी जीना नही चाहती थी और भूमि दीदी उस दौरान सरदार खान और प्रहरी के बीच कितना गहरा संबंध है उसकी खोज में जुटी थी। उन्होंने वादा किया था कि यदि मैं निशान लाने में कामयाब हो गयी तो फिर कोई भी मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करेगा। और ठीक वैसा हुआ भी... हां लेकिन एक बात ये भी है कि तब तक तुम भी नागपुर पहुंच गये थे।


आर्यमणि:– फिर भी तुम्हे कैसे यकीन था कि ये बॉक्स उसके हाथ के निशान से खुल जायेगा और तुम्हे क्या सपना आया था, जो सुकेश भारद्वाज के हाथों के निशान साथ लिये घूम रही?


आर्यमणि:– बॉस क्या कभी आपने मेरे और अलबेली के कपड़ों पर ध्यान दिया। शायद नही... यदि दिये होते तो पता चला की हम 2–3 कपड़ो में ही बार–बार आपको नजर आते। नए कपड़े लेने के लिये भी हमारे कपड़े 4 लोगों के बीच फाड़कर उतार दिये जाते थे। आपने कहा नागपुर छोड़ना है तो अपना बैग सीधे उठाकर ले आयी। मैंने कोई अलग से पैकिंग नही की बल्कि बैग में ही ग्लोब्स पहले से रखे थे। और ऐसे 3 सेट ग्लोब्स उस बैग में और है, जिसमे सुकेश के हाथो के निशान है।


इवान:– बस करो दीदी अब रहने भी दो। मेरा खून खौल रहा है।


अलबेली:– रूही लेकिन तुम्हे कैसे पता की ये सुकेश के हाथ के निशान से खुलेंगे?


रूही:– सभी वेयरवॉल्फ गंवार होते है, जिन्हे टेक्नोलॉजी से कोई मतलब ही नहीं होता। अपने बॉस को ही ले लो। इसके मौसा के घर में खुफिया दरवाजा है, लेकिन उसकी सिक्योरिटी किस पर आश्रित है उसका ज्ञान नही। बॉस को ये डॉट है कि सोने के बक्से खुलते ही वो लोग हमारे लोकेशन जान चुके होंगे। लेकिन एक बार भी सोचा नहीं होगा की ये लोकेशन उन तक पहुंचता कैसे है? यदि कंप्यूटर टेक्नोलॉजी का ज्ञान बॉस के पास होता तो अभी सोना ले जाने की इतनी चिंता न होती। अब जिसके घर का माल है, निशान भी तो उसी के हाथों का लगेगा।


आर्यमणि:– अब बस भी करो... हर कोई हर चीज नहीं सिख सकता। अब ये बताओ की सोने का क्या करना है।


रूही:– "कप्तान को पैसे खिलाओ और एक हेलीकॉप्टर मगवाओ। हम में से कोई एक मैक्सिको जायेगा। वहां जाकर छोटे–छोटे 100 बॉक्स बनवाये और उसे कार्गो हेलीकॉप्टर से शिप पर डिलीवर कर दे। इसके अलावा जो बड़े–छोटे बॉक्स को हमने इस लोकेशन पर खोला है, यदि उन्हें पानी में भी फेंक देते है तो वो लोग लास्ट लोकेशन और हमारे शिप के रनिंग टाइम को मैच करके सीधा मैक्सिको पहुंच जायेंगे। ये काफी क्लोज लोकेशन होगा। फिर पीछे जो हम उन्हे भरमाने का इंतजाम कर आये हैं, वो सब चौपट हो जायेगा।"

"अपने साथ एक और कार्गो शिप अर्जेंटीना के लिये निकली थी। बाहर जाकर देखो तो वो दिख जायेगा। बॉस आप इन सभी शीट को बांधो और तैरते हुये पहुंचो उस शिप पर। बिना किसी की नजर में आये मेटल के इस शीट को उस शिप पर फेंककर वापस आ जाओ।"


आर्यमणि:– कुछ ज्यादा नही उम्मीद लगाये बैठी हो। दूसरी कार्गो शिप तो साथ में ही चल रही है, लेकिन खुली आंखों से देखने पर जब वो शिप छोटी नजर आती है तब तुम दूरी समझ रही हो। 3–4 किलोमीटर की दूरी बनाकर वो हमारे पेरलेल चल रही होगी। और मैं इतनी दूर तैर कर पहचूंगा कैसे...


रूही:– अपने योग अभ्यास और अंदर के हवा को जो तुम तूफान बनाकर बाहर निकाल सकते हो, उस तकनीक से। बॉस हवा के बवंडर को अपनी फूंक से चिर चुके हो। यदि उसके आधा तेज हवा भी निकालते हो, तब तैरने में मेहनत भी नही करनी पड़ेगी और बड़ी आसानी से ये दूरी तय कर लोगे बॉस।


आर्यमणि:– हम्मम !!! ठीक है सभी छोटे बॉक्स को मेटल की शीट में वापस घुसा दो और मेटल के सभी शीट को अच्छे से बांध दो। और रूही तुम मैक्सिको निकलने की तैयारी करो।


रूही:– जी ऐसा नहीं होगा बॉस। तुम पहले जाकर मेटल के शीट को दूसरे शिप पर फेंक आओ, उसके बाद खुद ही मैक्सिको जाना।


आर्यमणि:– मैं ही क्यों?


रूही:– क्योंकि हम में से इकलौते तुम ही हो जो अंदर के इमोशन को सही ढंग से पढ़ सकते हो और विदेश भी काफी ज्यादा घूमे हो। इतने सारे बॉक्स हम क्यों ले रहे कहीं इस बात से कोई पीछे न पड़ जाये।


आर्यमणि:– ठीक है फिर ऐसा ही करते है।


मेटल के शीट को बांध दिया गया। सबसे नजरे बचाकर आर्यमणि, शीट को साथ लिये कूद गया। चारो ही हाथ जोड़कर बस प्राथना में जुट गये। नीचे कूदने के बाद तो आर्यमणि जैसे डूब ही गया हो। नीचे न तो दिख ही रहा था और न ही कोई हलचल थी। इधर आर्यमणि मेटल के शीट के साथ जैसे ही कूदा बड़ी तेजी के साथ नीचे जाने लगा। नीचे जाते हुये आर्यमणि ऊपर आने की कोशिश करने से पहले, रस्सी के हुक को अपने बांह में फसाया। सब कुछ पूर्ण रूप से सेट हो जाने के बाद, जैसे ही आर्यमणि ने सर को ऊपर करके फूंक मारा, ऐसा लगा जैसे उसने कुआं बना दिया हो। ऊपर के हिस्से का पानी विस्फोट के साथ हटा। इतना तेज पानी उछला की ऊपर खड़े चारो भींग गये।


पानी का झोंका जब चारो के पास से हटा तब सबको आर्यमणि सतह पर दिखने लगा। चारो काफी खुश हो गये। इधर आर्यमणि भी रूही की सलाह अनुसार हवा की फूंक के साथ सामने रास्ता बनाया। फिर तो कुछ दूर तक पानी भी 2 हिस्सों में ऐसे बंट गया, मानो समुद्र में कोई रास्ता दिखने लगा हो और आर्यमणि उतनी ही तेजी से उन रास्तों पर तैर रहा था। आर्यमणि इतनी आसानी से तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था जैसे वह कोई समुद्री चिता हो।


महज चंद मिनट में वह दूसरे शिप के नजदीक था। शिप पर मौजूद लोगों के गंध को सूंघकर उसके पोजिशन का पता किया। रास्ता साफ देखकर आर्यमणि शिप की बॉडी पर बने सीढियों के सहारे चढ़ गया। पूरे ऐतिहात और सभी क्रू मेंबर को चकमा देकर आर्यमणि ने मेटल के शीट को कंटेनर के बीच छिपा दिया और गहरे महासागर में कूदकर वापस आ गया।


जैसे ही आर्यमणि अपने शिप पर चढ़ा तालियों से उसका स्वागत होने लगा। पूरा अल्फा पैक आर्यमणि के चारो ओर नाच–नाच कर उसे बधाई दे रहे थे। आर्यमणि उनका जोश और उत्साह देखकर खुलकर हंसने लगा। कुछ देर नाचने के बाद सभी रुक गये। रूही आर्यमणि को ध्यान दिलाने लगी की उसे अब अपने शिप के कप्तान के पास जाना है। आर्यमणि कप्तान के पास तो गया लेकिन कप्तान हंसते हुये आर्यमणि से कहा... "दोस्त जमीन की सतह से इतनी दूर केवल क्षमता वाले विमान ही आ सकते है, कोई मामूली हेलीकॉप्टर नही।


आर्यमणि:– फिर हेलीकॉप्टर कितनी दूरी तक आ सकता है।


कप्तान:– कोई आइडिया नही है दोस्त। कभी ऐसी जरूरत पड़ी ही नही। वैसे करने क्या वाले हो। तुम्हारा वो बड़ा–बड़ा बॉक्स वैसे ही संदेह पैदा करता है। कुछ स्मगलिंग तो नही कर रहे.…


आर्यमणि:– हां सोना स्मगलिंग कर रहा हूं।


कप्तान:– क्या, सोना?


आर्यमणि:– हां सही सुना... 5000 किलो सोना है जिसे मैं बॉक्स से निकाल चुका हूं और बॉक्स को मैने समुद्र में फेंक दिया।


कप्तान:– तुम्हे शिप पर लाकर मैने गलती की है। लेकिन कोई बात नही अभी तुम देखोगे की कैसे क्षमता वाले कयी विमान यहां तक पहुंचते है।


आर्यमणि:– तुम्हे इस से क्या फायदा होगा। इस सोने में मेरा प्रॉफिट 2 मिलियन यूएसडी का है। 1 मिलियन तुम रख लेना।


कप्तान:– मैं सोने का आधा हिस्सा लूंगा। बात यदि जमी तो बताओ वरना तुम्हे पकड़वाने के लिये २०% इनाम तो वैसे ही मिल जायेगा जो 1 मिलियन से कहीं ज्यादा होगा।


आर्यमणि:– मुझे मंजूर है। सोना निकालने का सुरक्षित तरीका बताओ और अपना आधा सोना ले लो।


कप्तान:– इस कार्गो के २ कंटेनर मेरे है, जिसमे मैंने अपने फायदा का कुछ सामान रखा है। एक कंटेनर में मेरा आधा सोना और दूसरे कंटेनर में तुम्हारा आधा सोना।


आर्यमणि:– हां लेकिन कंटेनर जब लोड होकर पोर्ट के स्क्यूरिटी से निकलेगी तब कौन सा पेपर दिखाएंगे और इंटरनेशनल बॉर्डर को कैसे क्रॉस करेंगे..


कप्तान:– कंटेनर के पेपर तो अभी तैयार हो जायेगा। पोर्ट से कंटेनर बाहर निकलने की जिम्मेदारी मेरी। आगे का तुम अपना देख लो। वैसे एक बात बता दूं, मैक्सिको के इंटरनेशनल बॉर्डर से यदि एक मूर्ति भी बाहर निकलती है तब भी उसे खोलकर चेक किया जाता है। ड्रग्स की तस्करी के कारण इंटरनेशनल तो क्या नेशनल चेकिंग भी कम नहीं होती।


आर्यमणि:– हम्मम ठीक है... तुम काम करवाओ...


कप्तान:– जरा मुझे और मेरे क्रू को सोने के दर्शन तो करवा दो।


आर्यमणि:– हां अभी दर्शन करवा देता हूं। ओह एक बात बताना भूल गया मैं। हम 5 लोग ये सोना बड़ी दूर से लूटकर ला रहे है। रास्ते में न जाने कितने की नजर पड़ी और हर नजर को हमने 2 गज जमीन के नीचे दफन कर दिया। यदि हमें डबल क्रॉस करने की सोच रहे फिर तैयारी थोड़ी तगड़ी रखना...


कप्तान फीकी सी मुस्कान देते.… "नही आपस में कोई झगड़ा नहीं। 2 बंदर के रोटी के झगड़े में अक्सर दोनो बंदर मर जाते है और फायदा बिल्ली को होता है।


आर्यमणि:– समझदार हो.. लग जाओ काम पर..


आर्यमणि गया तो था हेलीकॉप्टर लेने लेकिन वापस वो शिप के कप्तान और क्रू मेंबर के साथ आया। उन लोगों ने जब इतना सोना देखा फिर तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गयी। हर किसी के मन में बैईमानी थी, जिसे आर्यमणि साफ मेहसूस कर रहा था। इस से पहले की 40 क्रू मेंबर में से कोई एक्शन लेता, आर्यमणि तेजी दिखाते 5 सिक्योरिटी वालों का गन अपने कब्जे में ले चुका था।


यह इतनी जल्दी हुआ की कोई संभल भी नही पाया। आर्यमणि गन को उनके पाऊं में फेंकते... "किसी को यदि लगे की वह बंदूक के जोर पर हमसे जीत सकता है, वह एक कोशिश करके देख ले। उनकी लाश कब गिरेगी उन्हे पता भी नही चलेगा। इसलिए जितना मिल रहा उसमे खुश रहो। वरना तुम लोग जब तक सोचोगे की कुछ करना है, उस से पहले ही तुम्हारा काम ख़त्म हो चुका होगा।"


एक छोटे से करतब, और उसके बाद दिये गये भाषण के बाद सभी का दिमाग ठिकाने आ गया। तेजी से सारा काम हुआ। सारा सोना 2 कंटेनर में लोड था और दोनो कंटेनर के पेपर कप्तान के पास। कप्तान ही पोर्ट से सोना बाहर निकालता। उसके बाद दोनो अलग–अलग रास्ते पर। आर्यमणि राजी हो चुका था क्योंकि पेपर तो आर्यमणि के फर्जी पासपोर्ट के नाम पर ही बना था लेकिन कप्तान के मन की बईमानि भी आर्यमणि समझ रहा था।


गहरी काली रात थी। क्रू मेंबर आर्यमणि और उसके पैक के सोने का इंतजार कर रहे थे और आर्यमणि रात और गहरा होने का इंतजार। मध्य रात्रि के बाद आर्यमणि अपने हॉल से बाहर आया और ठीक उसी वक्त 6 सिक्योरिटी गार्ड आर्यमणि के हॉल के ओर बढ़ रहे थे। पहला सामना उन्ही 6 गार्ड से हुआ और कब उनकी यादास्त गयी उन्हे भी पता नही। सुबह तक तो आर्यमणि ने सबको लूथरिया वुलापिनी के इंजेक्शन और क्ला का मजा दे चुका था। कप्तान की यादों में बस यही था कि उसके दोनो कंटेनर में आर्यमणि ने भंगार लोड किया है और कंटेनर के अंदर जो उसका सामान था उसके बदले 20 हजार यूएसडी उसे मिलेंगे जो उसके समान की कीमत से 5 गुणा ज्यादा थी।


सोना ठिकाने लग चुका था। वुल्फ पैक अभी के लिये तो राहत की श्वांस लिया लेकिन सबको एक बात कहनी पर गयी की लूटना जितना आसान होता है, उस से कहीं ज्यादा लूट का माल सुरक्षित ले जाना। इस से उन्हें यह बात भी पता चला की प्रहरी का बॉक्स काफी सुरक्षित था जो 3–4 स्कैनर से गुजरा लेकिन अंदर क्या था पता नही चला।


रूही:– बॉस अब समझे टेक्नोलॉजी का महत्व। जहां हम इतने सारे सोने के लिये अभी से परेशान है, जब वही सोना किसी महफूज बॉक्स में बंद था, तब हमे तो क्या अच्छे–अच्छे सिक्योरिटी सिस्टम को पता न चला की अंदर क्या है।


आर्यमणि:– हां हम भी सबसे पहले टेक्नोलॉजी ही सीखेंगे... ये अपने आप में एक सुपरनेचुरल पावर है।


रूही:– बॉस उस पर तो बाद में ध्यान देंगे लेकिन अभी जरा उन पत्थरों के दर्शन कर ले। कुल 40 पत्थर है, 4 अलग–अलग रंग के।


आर्यमणि:– हां मैं उन पत्थरों के बारे में जानता हूं। 350 किताब जो मैंने जलाये थे। जिसमे लिखा हुआ था कि कैसे एक सिद्ध प्राप्त साधु को मारा गया, उनमें इन पत्थरों का जिक्र था। मेरी जानकारी और ये पत्थर, जल्द से जल्द संन्यासी शिवम के पास पहुंचाना होगा।


रूही:– कैसे?


आर्यमणि:– वो सब मैं देख लूंगा फिलहाल अब इस पर से ध्यान हटाकर हम अपने दिनचर्या में ध्यान देते हैं।


सभा खत्म और सभी लोग अपने–अपने दिनचर्या में लग गये। अगले कुछ दिनों में सभी मैक्सिको के पोर्ट पर थे। 20 हजार डॉलर कैश मिलने पर कप्तान तो इतना खुश था कि आर्यमणि के दोनो कंटेनर को खुद बाहर निकाला और स्क्रैप पिघलाने की जगह तक का बंदोबस्त कर चुका था। आर्यमणि तो जैसे सब कुछ पहले से सोच रखा हो।


वीराने में एक बड़ी भट्टी तैयार की गयी। ट्रक के व्हील रिम बनाने का सांचा मगवाया गया। एक रिम के वजन 50 किलो और कुल 100 रिम को तैयार किया गया। रिम तैयार करने के बाद स्टील के रंग की चमचमाता ग्राफिटी सभी रिम के ऊपर चढ़ा दिया गया। 200 रिम इन लोगों ने बाजार से उठा लिये। बाजार के 100 रिम को वहीं वीराने में ही छोड़ दिया और बचे 100 रिम के साथ अपने सोने के रिम भी लोड करवा दिया।

कुछ दिनों तक पूरा वुल्फ पैक दिन–रात सभी कामों को छोड़कर बस सोने को सुरक्षित बाहर निकलने के कारनामे को अंजाम देता रहा। बड़े से ट्रक में पूरा माल लोड था। बचे 100 व्हील रिम को आधे से भी कम दाम में बिना बिल के इन लोगों ने बेच दिया और व्हील वाले ट्रक के साथ अपने आगे के सफर पर निकल चले।
शानदार जबरदस्त भाई लाजवाब update bhai jann superree duperrere update

Mast planning kri hey team ne ab dekhna padega kya hota hey age
 

nain11ster

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बहुत बहुत ज्यादा याद किया था आप को लेकिन आप ही हनीमून मनाने मे इतने व्यस्त रह गए कि अपने सभी रीडर्स को भुला बैठे।
अधुरी कहानी को गौर से देखिए। जबाव तो दूर कोई रिएक्शन तक नही दिया आप ने । याद कीजिए। :hehe:
Aisa tha kya ... 😄😄😄😄... Mujhe yad nahi 😄😄😄😄... Aur adhuri kahani nahi thi... Ek part poora kar diya hai... :hehe:
 
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