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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।
जी बिलकुल रक्ष धातु से बना यह शब्द राक्षस
वाह nain11ster भाई बड़ी रिसर्च लगाए हो
पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
चलिए अब आर्य अपनी पूर्वजों का प्रतिशोध लेने वाला है
यह तथ्य सामने आया है
आपका अगला मेगा अपडेट बहुत ही ज़बर्दस्त होने वाला है
भाई प्रतीक्षा रहेगी
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
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भाग:–18





पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
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पलक:- ये जो प्रजाति थी वो अच्छी थी या बुरी?


आर्यमणि:- बुरे तो राक्षस भी नहीं थे। उन्हें पृथ्वी पर रक्षा करने के लिए भेजा गया था और रक्षा शब्द से ही राक्षस बना। अब क्या कहा जा सकता है। ये अच्छे प्रजाति की एक विकृति स्वभाव की रीछ थी, जिसे यहां कैद किया गया था। शायद वो सिद्धि प्राप्त थी इसलिए तो हिमालय से इतनी दूर लाकर इसे कैद किया गया था। मंत्र के वश में थी, जिसे कल रात आज़ाद कर दिया गया। 500 दिन का वक़्त है, उसके बाद वो क्या-क्या कर सकती है, ये तो वही बताएगी।


पलक:- तुम्हे इतना कैसे मालूम है आर्य?


आर्यमणि:- मेरे दादा, वर्धराज कुलकर्णी, विशिष्ठ प्रजातियों का अध्ययन और उनके जीवन के बारे में सोध करते थे। साथ में एक इतिहासकार भी रहे है। बचपन में उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठाकर बहुत सारी बातों का पुरा ज्ञान दिया था। वो मंत्र और उनकी शक्ति को भी एक साइंस ही मानते थे, जो पंचतत्व में बदलाव लाकर इक्छा अनुसार परिणाम देता था। जिसे चमत्कार कहते है, जो लोग केवल काल्पनिक मानते है।"

"घर जब पहुंचो तो एक बड़ा सा नाद लेना, उसमे पुरा पानी भरकर थोड़ा सा गंगा जल मिला देना और छाल सहित पोटली को उस नाद में डूबो देना। याद रहे बिना गंगा जाल वाले पानी में डुबोए उस कपड़े को छूने की कोशिश भी मत करना। यदि पानी का रंग लाल हुआ तो समझना रक्त मोक्ष श्राप से बंधी थी। और यदि रंग नीला हुआ तो समझना विश मोक्ष श्राप से बंधी थी।


पलक:- लेकिन तुम ये मुझसे क्यों कह रहे हो करने। तुम्हे इतनी जानकारी है तो तुम ही इस जीव को देखो ना।


आर्यमणि:- "मुझे जितना ज्ञान था मैंने बता दिया। प्रहरी के इतिहास की कई सारी पुस्तकें है। यधपी कभी किसी प्रहरी का पाला वकृत रीछ और उसके साथी किसी विकृत महाज्ञानी से नहीं हुआ हो, लेकिन किसी ना किसी के जानकारी में तो ये पुरा मामला जरूर होगा क्योंकि ऐसा तो है नहीं की वैधायाण भारद्वाज के बाद सुपरनेचुरल आए थे, और केवल उन्हें ही अलौकिक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।"

"वैधायाण भारद्वाज और उनके अनुयाई ने भी कहीं ना कहीं से तो ये सब सिखा ही था। तो इतिहास में कहीं ना कहीं तो इस बांधी हुई रीछ स्त्री का भी जिक्र मिल जाएगा। बिना उसके हम कुछ नहीं कर सकते।"


पलक:- और जब मुझसे पूछेंगे की मुझे ये सब कैसे पता चला तो मै क्या जवाब दूंगी। उनके होने वाले जमाई ने पुरा रिसर्च किया है।


आर्यमणि:- उनसे कहना तुम जिस लड़के के साथ घूमने गई थी वह जबरदस्ती प्रतिबंधित क्षेत्र ले गया। मुझे भी जानने की जिज्ञासा थी कि यहां ऐसा क्या हुआ था, जो यह क्षेत्र प्रतिबंधित है? फिर सबको बताना कि तुम्हे हवा में कुछ अजीब सा महसूस हुआ और तुमने आदिकाल बंधन पुस्तिका का स्मरण किया जिसका ज्ञान प्रहरी शिक्षण के दूसरे साल में दिया जाता है।


पलक:- हां समझ गई आगे याद आ गया। वहीं लिखा हुआ है हवा में छोटी सी अजीब बदलावा का पीछा किया जाए तो बड़े रहस्य के वो करीब पहुंचा देता है। मंत्र पुस्तिका के कारण ये पोटली बनाई और अनुसंधान भेजने के लिए ले आयी। रीछ के बारे में भी पढ़ी हूं और वो गड्ढे की कहानी से जोड़ दूंगी।


आर्यमणि:- ये हुई ना मेरी रानी जैसा सोच और दबदबा।


पलक:- आर्य तुम्हे अपने परिवार को लेकर काफी दुख होता होगा ना। तुम्हारे ज्ञानी दादा जी को कितना बेइज्जत करके महाराष्ट्र से निकलने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी मां..


आर्यमणि:- हूं..


पलक:- माफ करना... मेरी सासू मां प्यार में थी, जैसे मै हूं, गलती मेरे मामा से हुई क्योंकि उन्होंने आत्महत्या चुना, लेकिन सजा तुम्हारी मां को मिली।


आर्यमणि:- छोड़ो बीते वक़्त को, तैयार रहना जल्द ही मै तुम्हे चूमने वाला हूं। शायद सोमवार को ही मेरा मंगल हो जाए। और एक बात, हम इतने क्लोज हो गए है कि तुम्हरे हाव-भाव अब कहीं जाता ना दे, हमारे बीच कुछ है।


पलक:- क्यों ये रिश्ता सीक्रेट रखना है क्या?


आर्यमणि:- हमारा रिश्ता अरेंज होगा और सभी लोग हाथ पकड़कर हमारा रिश्ता करवाएंगे।


पलक:- क्यों तुमने सब पहले से प्लान कर रखा है क्या?


आर्यमणि:- लक्ष्य पता है, कर्म कर रहा हूं, बस दिमाग खुले रखने है और सही वक़्त पर सही नीति… फिर तो ठीक वैसा ही होगा जैसा सोचा है, बस तुम ये जाहिर नहीं होने देना की हम एक दूसरे में डूब चुके है।


पलक:- जो आज्ञा महाराज।


पलक, आर्यमणि को तेजस दादा के शॉपिंग मॉल, बिग सिटी मॉल के पास छोड़ दी और खुद घर लौट गई। पलक जिस अंदाज़ में गई थी और जिस अंदाज़ में लौटी उसे देखकर तो पूरे घरवाले हसने लगे।… "क्या हुआ पलकी, उस लड़के ने तुझे पानी में धकेल दिया क्या।"


पलक:- मै वाकी वुड्स के प्रतिबंधित क्षेत्र में गई थी।


उज्जवल और नम्रता हड़बड़ा कर उसके पास पहुंचे। उनके आखों में गुस्सा साफ देखा जा सकता था। पलक सारी बातें बताती हुई एक नाद मंगवाई और छाल में बंद उस पोटली को डूबो दी। पोटली का रंग नीला पड़ गया। नीला रंग देखकर पिता उज्जवल और पलक दोनो के मुंह से निकल गया… "विष मोक्ष श्राप"।


किसी असीम शक्ति को बांधने के लिए २ तरह के श्राप विख्यात थे। पहला बंधन श्राप था "रक्त मोक्ष श्राप"। इस बंधन को बांधने के लिए 5 अलग–अलग जीवों के साथ एक इंसान की बलि दी जाती थी। इंसानी बलि भी केवल तब मान्य थी, जब वह स्वेक्षा से दी जाए। यूं तो लोग उन असीम शक्तियों वालों से इतना सताए हुए होते थे कि उसे मिटाने की चाह में हंसी–खुशी तैयार हो जाते थे। परंतु असीम सिद्धि प्राप्त या शक्तियों वाले किसी भी ऐसे प्राणी को छुड़ाने वाले, उनके अनुयाई की भी कमी नही थी। सभी मंत्रो के सुरक्षित जाप के बाद बंधन बांधने वाले ज्ञानियों की बलि चढ़ाकर श्राप मुक्त किया जा सकता था।


वहीं दूसरी ओर "विष मोक्ष श्राप" में 5 ज्ञानी सुरक्षित मंत्र जाप करते थे और अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सभी विष पीकर अपने प्राण त्याग देते थे। वह विष इतना खास था की सेवन के कुछ क्षण बाद तो उनके हड्डियों तक के सबूत नहीं मिलते थे। इतिहास में विष मोक्ष श्राप की विधि तो बताई गई है, लेकिन कितनो को विष मोक्ष श्राप से बंधा गया, इसका कोई उल्लेख नहीं। क्यूंकि गुप्त रूप से विष मोक्ष श्राप की अनुष्ठान होता था और कहीं कोई प्रमाण ही नही बचता... साथ ही साथ इस बंधन को तोड़ तो खुद उन ज्ञानियों के पास भी नहीं था, जो हर तरह के श्राप का ज्ञान रखते थे। इसलिए यदि कोई विष मोक्ष श्राप से बंधा है, तब तो वह जरूर असीम शक्तियों का मालिक होगा। और यदि किसी ने विष मोक्ष श्राप को उलट कर, किसी विकृत को कैद से बाहर निकाला है, फिर तो वह साधक और भी ज्यादा खतरनाक होगा...


विष मोक्ष श्राप का नाम सुनकर पलक और उज्जवल एक दूसरे का मुंह देखने लगे। पलक मन ही मन रीछ स्त्री के शक्तियों की कल्पना कर अपने पिता से पूछने लगी… "बाबा ये रीछ स्त्री कितनी खतरनाक हो सकती है।"..


उज्जवल:- रीछ प्रजाति को इतिहास में श्रेष्ठ मानव माना गया था। कहा जाता है भालू के पूर्वज यही है। इनका क्षेत्र उस समय के तात्कालिक भारतवर्ष में से दक्षिण और हिमालय की तराई में था। दक्षिण में रीछ प्रजाति के बड़े–बड़े राज्य थे, जिसपर रावण ने अपना आधिपत्य जमा लिया था। ऐसे श्रेष्ठ जाती का कोई शापित विकृति है तो उसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा कि ये हम सब के लिए कितना ख़तरनाक हो सकती है। रिक्ष स्त्री को विष मोक्ष श्राप से मुक्त करने वाला भी कोई विकृति ज्ञानी होगा। घातक जोड़ी है जो समस्त पृथ्वी पर राज कर सकती है। हमे अपात कालीन बैठक बुलानी होगी और इतिहास के ज्ञानियों से हमे बात करनी होगी। पलक तुमने बहुत अच्छा काम किया है। मै तुम्हे प्रहरी की उच्च सदस्यता देते हुए, तुम्हे विशिष्ठ जीव खोजी साखा का अध्यक्ष नियुक्त करता हूं। प्रहरी उच्च सदस्यों के होने वाले बैठक में तुम्हारा आना अनिवार्य होगा।


पलक:- हम्मम ! ठीक है बाबा।


नम्रता:- 3 लाख खर्च तो नहीं कि ना.. चल अब पार्टी दे। उच्च सदस्य। मतलब कई साल का सफर तूने 4 घंटे में तय कर लिया।


पलक:- ठीक है ले लेना पार्टी। अब खुश ना।


नम्रता:- बेहद ही खुश हूं। और बाबा का चेहरा तो देख अंदर ही अंदर कितना खुश हो रहे है।


उज्जवल:- पलक के लिए तो खुश हूं, लेकिन आने वाले संकट को लेकर चिंतित। हमारा काम केवल पोस्ट बांटना नहीं बल्कि दो दुनिया के बीच दीवार की तरह खड़ा रहना है, ताकि कोई एक दूसरे को परेशान ना करे।


पलक से मिली जानकारी को उज्जवल ने प्रहरी के सभी उच्च सदस्यों से साझा कर दिया। विषय की गंभीरता को देखते हुए, अध्यक्ष विश्व देसाई ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिसमे तात्कालिक सभी सदस्य के साथ संन्यास लिए जीवित सदस्य भी सामिल होंगे। शुरवात मीटिंग की अध्यक्षता विश्व देसाई लेंगे, उसके बाद कमान संभालेंगे सुकेश भारद्वाज।


आपातकालीन बैठक की बात सुनकर भूमि भी वापस नागपुर लौट चुकी थी। भूमि के लौटते ही आर्यमणि को ना चाहते हुए भी अपनी मासी के घर से दीदी के घर वापस आना पड़ा। सोमवार को कॉलेज में फिर एक बार जिल्लत झेलने के बाद आर्यमणि भूमि के घर लौट आया था।


शाम का वक्त था जब भूमि लौटी। आर्यमणि अपने दीदी के गले लगते पूछने लगा कैसा रहा ट्रिप। भूमि मुस्कुराकर जर उसे कही अच्छा रहा। फिर वो थोड़ा आराम करने चली गई और रात के तकरीबन 10 बजे पूरे फुरसत के साथ, अपने भाई के साथ बैठी।


भूमि:- क्या मेरा बच्चा, अब बता क्या बात है?


आर्यमणि:- मेरी छोड़ो और अपनी परेशानी बताओ। मै जानता हूं आप जिस काम से गई थी, उसे अधूरा छोड़कर आयी हो। कोई न, मै फ्री ही बैठा हूं। आपका वो काम मैं कर दूंगा, भरोसा रखो मुझपर।


भूमि:- तू तो आएगा नहीं प्रहरी बनने। मै, जयदेव और रिचा बस प्रहरी के बीच पल रहे आस्तीन के सांप को ढूंढ रही हूं।


आर्यमणि:- आप भी वही सोच रही है ना जो मै सोच रहा हूं।


भूमि:- और मेरा भाई क्या सोच रहा है?


आर्यमणि:- यही की कैसे भारद्वाज खानदान गुमनामी में जाता रहा है? कैसे उसके करीबी ठीक उसी वक़्त परेशान कर दिए जाते है जब भारद्वाज अपनी जड़ें प्रहरी में मजबूत कर रहा होता है? क्यों शुरू से प्रहरी के नेक्स्ट जेनरेशन के बीच झगड़ा होता रहा है और इन्हीं झगड़ों को देखकर मौसा जी ने अपने दो पैदा हुए बेटो का गला घोंटा, ताकि जब ये बड़े हो तो तीनों भाई दुश्मन बनकर परिवार में शक्ल ना देखे और समुदाय मे एक दूसरे का विरोध करते रहे?


भूमि:- तुम्हारे दादा को प्रहरी से बेज्जत करके निकाला, इसलिए ऐसा सोच रहा है ना?


आर्यमणि:- केवल मेरे दादा के साथ ऐसा हुआ था। मेरी मां का मायका कितना सुदृढ़ था। उनके बाबा ने कितनी संपत्ति अर्जी थी मुंबई में। यदि बीते जेनरेशन के मनीष मिश्रा (अक्षरा भारद्वाज का छोटा भाई और पलक का छोटा मामा) की शादी जया जोशी से होती, तो भारद्वाज का करीबी इकलौता मिश्र परिवार और भी सुदृढ़ होता, ऊपर से सुना है मां उस समय की बेस्ट थी, जैसा कि आप आज है। यदि मनीष मिश्रा के साथ जया जोशी की शादी होती तो भारद्वाज के करीबी, इकलौता मिश्रा परिवार भी आज खड़ा होता।


भूमि:- हम्मम ! मतलब तू यहां आया है अपने परिवार के आशुओं का हिसाब लेने।


आर्यमणि:- इतने साल बाद जब लौटा तो लगा कि मैंने कितना बड़ा पाप किया है। लेकिन जब गौर किया तो मां ने अपना अस्तित्व खोया था। भारद्वाज परिवार के करीबी मेरे दादा को किसी की साजिश का शिकार होना पड़ा था। कोई एक कुल तो है जो भारद्वाज को शुरू से तोड़ने का काम करते आ रहा है और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार के पाठसाला में सबको यही सिक्षा से रहा है या रही है।


भूमि:- "हां मै भी बिल्कुल यही सोच रही थी। इसलिए 10 दिन के लिए बाहर गई थी ताकि उन्हें लग जाए कि तुम्हरे ऊपर मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं। जो लड़का पैदल एक पुरा देश के बराबर जंगल को लांघ गया है, उसका तो ये लोग कुछ नहीं बिगाड़ पाते लेकिन जबतक तू पुरा उलझता नहीं, तबतक उसे तुम्हारे पूरे ताकत का अंदाज़ा होता नहीं। जब तुम्हारे ताकत का अंदाजा होता तब वो जरूर किसी ना किसी शिकारी को ये काम देते। मै बस उसी के इंतजार में थी।


आर्यमणि:- खैर आपको पहले ये बात करनी थी। कल आपके बहुत से प्रहरी कम हो जाएंगे। क्योंकि जिसने मेरे परिवार के साथ जाने अंजाने में साजिश रची, उसका पता तो मुझे कबका चल चुका है।


भूमि:- सुन मेरे भाई, तुम कल जो भी पता करना है वो करो, लेकिन किसी प्रहरी को मारना मत। अभी हम बहुत बड़ी मुसीबत में है। कोई कमीना भी हुआ, तो क्या हुआ। हो सकता है उसकी जानकारी से हम उस जीव पर विजय प्राप्त ले।


आर्यमणि:- कौन सा जीव दीदी।


भूमि:- अभी जाकर सो जा, आराम से सब बता दूंगी। सुन मै यहां 3 दिन बाद आने वाली हूं, तो लोगों को पता नहीं चलना चाहिए। और एक बात, मै यहां नहीं हूं ये सोचकर तुझे उकसाने के लिए डायरेक्ट अटैक होंगे। हो सके तो 2-3 दिन कॉलेज ना जा। प्रहरी की मीटिंग से फ्री होकर मै कॉलेज को देखती हूं।


आर्यमणि:- दीदी जाकर सो जाओ और मेरी चिंता छोड़ दो। रही बात कॉलेज की तो वहां का लफड़ा मै खुद निपट लूंगा। हां मेरे एक्शन का इंपैक्ट देखना हो तो कल कॉलेज का सीसी टीवी कैमरा हैक कर लेना। मुख्य साजिशकर्ता का पता मिले या ना मिले लेकिन मैंने किसी को प्रोमिस किया है कि कल ही काम खत्म होगा।
Very Good Writing Bro.. This is my first Comment on this Platform Ever .... Waiting for college segment
 

Parthh123

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Barish hone wali thi but jaise hi fuhar pdi waise hi nain bhai ko nind a gyi ab bina unke jage ummid to na hi kr rhe hai kuki ye unke alawa koi aur kr na sakta. Hahaha
 
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