भाग:–104
आर्यमणि:– हम्मम…. किताब का एलियन तक पहुंचने का ये राज था। एक सवाल अब भी मन में है। आपकी ये छड़ी और वो चेन...
जादूगर:– "छड़ी एक नागमणि की बनी है। मैं इक्छाधारि नाग के समुदाय का काफी करीबी रहा था। उनकी हर समस्या में सबसे आगे रहकर उनकी मदद की थी। उसी से खुश होकर इक्छाधारी नाग के राजा त्रिनेत्रा ने मुझे यह विषेश छड़ी भेंट स्वरूप दिया था। हालांकि मैं भौतिक वस्तु पर ज्यादा यकीन नही करता था लेकिन राजा त्रिनेत्रा की ये छड़ी जैसे कोई एम्प्लीफायर हो। किसी भी मंत्र की शक्ति को चाहूं तो पृथ्वी सा विशाल बना दूं या चींटी के समान छोटी।"
"यह छड़ी पहली ऐसी भौतिक वस्तु थी जिसे मैं प्रयोग में लाता था। इसके अलावा मुझे कई अलौकिक पत्थर मिले लेकिन मैने एक भी अपने पास नही रखा। मुझे मिले ज्यादातर पत्थर मैने नष्ट कर दिये। कुछ पत्थर मैने अपने चेलों में बांट दिया। उसी दौड़ में मैने हिंद महासागर के गर्भ से यह शक्तिशाली चेन निकाला था। यह दूसरी ऐसी भौतिक वस्तु होती जिसका प्रयोग मैं करने वाला था, लेकिन ऐसा हो उस से पहले ही आश्रम वालों चेन के साथ कांड कर दिया।"
"एक बात सबसे आखिर में कहना चाहूंगा। मैं बुरा हूं लेकिन सिद्धातों वाला बुरा इंसान हूं जिसे अमर जीवन नही चाहिए था। जो भौतिक वस्तु पर आश्रित नहीं था और न ही मन में कभी यह ख्याल आया की अपने छड़ी के दम पर पूरे श्रृष्टि को घुटने पर लाया जाये। मैने कभी किसी स्त्री, ब्राह्मण, बच्चे, अथवा दुर्बलों का शिकर नही किया। मैं उन्ही को मरता अथवा कैद करता था जो या तो विकृत हो या लड़ना जिनका धर्म हो।"
आर्यमणि:– चलो कहानी पसंद आयी। ठीक है मुझे २ दिन का वक्त दो, मैं आपके प्रस्ताव पर विचार करके बताता हूं कि क्या करना है? आपके साथ एलियन का शिकर या फिर जो मैने सोच रखा है उसी हिसाब से आगे बढ़ा जाये।
जादूगर:– देखो जरा जल्दी सोचना। इंसानी शरीर के अंदर आत्मा ज्यादा धैर्यवान होती है, लेकिन उसके बाहर बिलकुल भी धैर्य नहीं रहता।
आर्यमणि:– आपने मुझे अयोग्य बताया था, ये बात भूलिए नही। पहले समझ तो लूं कि उन एलियन से लड़ना भी है या नही।
जादूगर:– क्यों एक ही बात को दिल से लगाये बैठे हो। तुम बहुत ज्यादा संतुलित इंसान हो, जिसकी क्षमता वह खुद नही जानता। तुम्हे मुझ जैसे ही एक एम्प्लीफायर की जरूरत है आर्यमणि, जो तुम्हे तुम्हारी सम्पूर्ण शिक्षा से अवगत करवा सके। तुम्हारे जन्म के समय नरसिम्हा योजन किया गया था, तुम पर उसी का पूरा प्रभाव है। ऊपर से विपरीत किंतु अलौकिक नक्षत्र का संपूर्ण प्रभाव। तुम चाहो तो ये समस्त ब्रह्माण्ड, फिर वह मूल दुनिया का ब्रह्मांड हो या विपरीत दुनिया का, ऐसे घूम सकते हो जैसे अपने घर–आंगन में घूम रहे हो।
आर्यमणि:– बातें बड़ी लुभावनी है, लेकिन फिर भी पहले मैं सोचूंगा... अब आप ऐसी जगह जाओ, जहां से हमे सुन न सको। और हां जाने से पहले ये बताते जाओ की मुझे कहा गया था किताब अपने आस–पास किसी विकृत को देखकर इशारे करेगी, लेकिन ये किताब इशारे नही कर रही?
जादूगर:– साथ काम भी नही करना और जानकारी भी पूरी चाहिए। सुनो भेड़िए, यह किताब ऑटोमेटिक और मैनुअल मोड पर चलती है। ऑटोमेटिक मोड पर किताब तुम्हे किसी खतरनाक विकृत के आस पास होने की मौजूदगी का एहसास करवाएगा, क्योंकि संसार में पग–पग पर चोर बईमान और भ्रष्ट लोगों की कमी नही। मैनुअल मोड से तुम्हे किसी का अलर्ट चाहिए तो मैनुअल मोड का मंत्र पढ़ो और जिसका अलर्ट चाहिए उसका स्मरण कर लेना। यदि जिसका स्मरण कर रहे उसे पहले कभी किताब ने मेहसूस किया होगा तब तुम सोच भी नही सकते की यह किताब क्या जानकारियां दे सकती है।
आर्यमणि:– और किताब जिसके संपर्क में नही आयी हो, उसका स्मरण कर रहे हो तब?
जादूगर:– स्मरण करके छोड़ दो। किताब के संपर्क में आते ही किताब तुम्हे उसका अलर्ट भेज देगी और एक बार वह किताब के संपर्क में आ गया, फिर वह कभी भी किताब के नेटवर्क एरिया से बाहर नहीं हो सकता। अब मैं चला, विचार जल्दी करके बताना... और हां.. साथ काम करने पर ही विचार करना...
आर्यमणि:– अरे कहां भागे जा रहे। किसी के अलर्ट का मैनुअल मोड कैसे ऑन होता है, उसका मंत्र दोबारा तो बताते जाओ...
जादूगर मंत्र बताकर उड़ गया और आर्यमणि किताब पर मंत्रों का जाप कर, जादूगर की निगरानी के लिये किताब को पहले प्रयोग में लाया। मंत्र के प्रयोग करते ही जो जानकारी पहले उभर कर सामने आयी उसे देखकर आर्यमणि दंग था। किताब न सिर्फ जादूगर से आर्यमणि की दूरी बता रहा था, बल्कि वह कहां–कहां विस्थापित हो रहा था, यह भी लगातार उस किताब मे अंकित होता। जादूगर, आर्यमणि को देख सकता है अथवा नहीं, या सुन सकता है या नही, यह भी किताब में अंकित था।
आर्यमणि को जैसे–जैसे किताब की विशेषता ज्ञात हो रही थी, उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था। लगातार २ रात सोच में निकल गयी। इधर तीनो टीन वुल्फ अपने टीम को जीत के रथ पर आगे बढ़ाते खेल का पूरा आनंद ले रहे थे। तीनो अक्सर हो सोचते थे, काश हर किसी को खेल से इतना प्रेम होता तो फिर सारे झगड़े खेल के मैदान पर ही सुलझा लिये जाते। खेल जोश है, जुनून है और इन सबसे से बढ़कर अलग–अलग मकसद से जी रहे लोग, एक लक्ष्य के लिये काम करते है। जीवन का प्यारा अनुभव था जो यह तीनो ले रहे थे।
तीसरे दिन आर्यमणि अकेले ही जादूगर के पास पहुंचा।दोनो जंगल में मिल रहे थे। आर्यमणि जादूगर की योजना पर सहमति जताते एलियन के पास जादूगर को ले जाने के लिये तैयार हो गया। आर्यमणि की केवल एक ही शर्त थी, 2 महीने बाद पलक से होने वाली मुलाकात के बाद जादूगर के शरीर को नष्ट करके, उसके आत्मा को मुक्त कर दिया जायेगा।
पहले तो जादूगर इस शर्त के लिये तैयार नहीं हुआ। उसे तो सबको मरते देखना था, खासकर सुकेश, उज्जवल और तेजस को। लेकिन आर्यमणि जादूगर के प्रस्ताव को ठुकराकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जादूगर और आर्यमणि के बीच थोड़ी सी बहस भी हो गयी लेकिन जैसे ही जादूगर को पता चला की पलक से मुलाकात के वक्त वहां नित्या भी होगी, वह झट से मान गया। जादूगर अट्टहास भरी हंसी हंसते हुये इतना ही कहा.….. "चलो सुकेश और उज्जवल न सही, लेकिन जाने से पहले अपने साथ तेजस को साथ लिये जाऊंगा।"…
जादूगर के इस बात पर आर्यमणि मजे लेते कहा भी... "तेजस क्या भारत से टेलीपोर्ट होकर आयेगा?"..
जादूगर:– नित्या जहां होगी, तेजस वहां मिलेगा ही। तुम चिंता न करो। मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। लेकिन एक बात बताओ एलियन के उच्च–सुरक्षा वाले साइंस लैब से मेरा शरीर निकलोगे कैसे और जलाओगे कैसे?
आर्यमणि:– अब जब काम ठान लिया है तो रास्ता भी निकल आयेगा, लेकिन सैकड़ों वर्ष पुरानी आत्मा को इस लोक में ज्यादा देर रोकना अच्छी बात नही। क्या समझे जादूगर महान जी।
जादूगर:– कर्म के पक्के और लक्ष्य से ना भटकने वाले। सामने इतने सशक्त दुश्मन (एलियन) होने के बावजूद उन दुश्मनों से टक्कर लेने वाले को पहले विदा कर रहे। कर्म का पहला अध्याय आत्मा की मोक्ष प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।
आर्यमणि:– आत्मा किसी की भी हो मायालोक में ज्यादा वक्त बिताने के बाद उस से बड़ा विकृत कोई नही।
जादूगर:– ओ भाई मैं मरी हुई लाश की आत्मा नही हूं, इसलिए मेरी विकृति को आत्मा की विकृति न मानो।
आर्यमणि:– क्या करे जादूगर जी। आत्मा तो आत्मा होती है। कर्म ने बुलावा दिया है तो पहले आपकी मुक्ति ही जरूरी है।
जादूगर:– हम्मम!!! तुम्हारे फैसले का स्वागत है। वैसे एक बात खाए जा रही है, मैं तुम्हे दुनिया भर का दुर्लभ ज्ञान देना चाहता हूं और मेरी मदद के बदले केवल तुमने मेरी ही मुक्ति की शर्त रखी?
आर्यमणि:– इसमें ज्यादा क्या दिमाग लगाना जादूगर जी। मैं आपसे कोई उम्मीद लगाये रखूंगा तो आपकी उम्मीद भी बढ़ेगी। फिर आपकी शर्त भी सुननी होगी। हो सकता है मोह वश मैं 500 साल पुराने शरीर में आपकी आत्मा को विस्थापित कर दूं। इसलिए मैं कोई उम्मीद नहीं लगाए बैठा। बिना किसी गलत तरीके के और बिना कोई गलत गुरु दक्षिणा लिये, जितना ज्ञान आप मुझे सिखाना चाहो सीखा दो। मैं और मेरा पैक कुछ नया सीखने के लिये हमेशा तत्पर रहते है।
जादूगर:– पहले ही कहा था, तुम बहुत संतुलित हो। कल सुबह से ही मैं ज्ञान बांटना शुरू करूंगा। किसी भी गलत विधि (गलत विधि अर्थात नर या पशु बलि लेकर सिद्धि प्राप्त करना) का ज्ञान नही होगा और गुरु दक्षिणा में सिर्फ इतना ही.… जिस वक्त किताब में मेरे अंत की जीवनी में मुझे एक शुद्ध आत्मा घोषित कर दे, मैं चाहता हूं तुम मुझे केवल उन्हीं अच्छे कर्मों के लिये याद करो जो मैं कल से तुम्हारे साथ शुरू करने वाला हूं।
आर्यमणि:– क्या आप यह कहना चाह रहे हो की आप सुधर गये?
जादूगर:– जब मुझे खुद यकीन नही की मैं सुधर सकता हूं फिर तुम कैसे सोच लिये की मैं सुधरना चाह रहा। बस शुद्ध रूप से, बिना किसी छल के मैं तुम्हे और तुम्हारे पैक को पूर्ण ज्ञान देना चाहता हूं। मेरे आत्मा की यह भावना किताब जरूर मेहसूस करेगी...
आर्यमणि:– कमाल है। इतनी कृपा बरसाने की वजह..
जादूगर:– "जिस वक्त मैं था, उस वक्त और कोई नही था। सात्विक आश्रम को हम जैसे विकृत लोग बर्बाद कर चुके थे। वैदिक और सनातनी आश्रम का तो उस से भी बुरा हाल था। आश्रम के जितने भी लड़ने वाले मिले, उनमें ऐसा लगा जैसे पूर्ण ज्ञान है ही नही। मैं तो आश्रम में महर्षि गुरु वशिष्ठ जैसे ज्ञानी को ढूंढता था, लेकिन कोई भी उनके बराबर तो क्या एक चौथाई भी नही था।"
"बराबर की टक्कर के दुश्मन से लड़ो तो बल और बुद्धि में वृद्धि होती है। वहीं अपने से दुर्बल से लड़ो तो केवल अहंकार में वृद्धि होती है। वही अहंकार जो एक महाबली और महाज्ञानी के अंदर आ गया और उसका सर्वनाश हो गया। मैं अपने आराध्य महाज्ञानि रावण की बात कर रहा। बस केवल उनकी गलती को अपने अंदर नही आने दिया बाकी अनुसरण मैं उन्ही का करता हूं।"
"अब मैं अपने जीवन के आखरी वक्त में बिना किसी लालच के आश्रम के एक नौसिखिए गुरु को ज्ञान के उस ऊंचाई पर देखना चाहता हूं, जिसे मैं अपने सम्पूर्ण जीवन काल में ढूढता रहा। मेरी मृत्यु यदि गुरु वशिष्ठ जैसे किसी महर्षि के हाथों होती तो ही वह एक सही मृत्यु होती। लेकिन मेरी बदकिश्मति थी जो आश्रम में उन जैसा कोई नहीं था। जाने से पहले अपने पूर्ण जीवन काल के एक अधूरी इच्छा को पूरी करके जाना चाहता हूं। मैं गुरु वशिष्ठ जैसा ज्ञानी तो नही क्योंकि उनकी ज्ञान की परिभाषा तो उनकी रचित यह पुस्तक देती है लेकिन जाने से पहले वह तरीका सीखा कर जाऊंगा जिसके मार्ग पर चकते हुये शायद किसी दिन तुम गुरु महर्षि वशिष्ठ के बराबर या उनसे आगे निकल जाओ"
आर्यमणि:– चलो आपकी इस बात पर यकीन करके देखता हूं। पता तो चल ही जायेगा की आपकी बातों में कितनी सच्चाई है। शाम ढलने वाली है, मेरा पूरा परिवार कॉटेज पहुंच चुका होगा, मैं जा रहा हूं।
जादूगर:– ठीक है फिर जाओ। अब तो बस तुम्हे सिखाते हुये 60 दिन निकालने है। उसके बाद दिल के नासूर जख्म को मलहम लगेगा, जब तेजस से मुलाकात होगी...
आर्यमणि:– अरे जख्मों पर धीरे–धीरे मलहम लगाते हुये हम जर्मनी पहुंचेंगे। यूं ही नही मैने 60 दिन का वक्त लिया है।
जादूगर:– मतलब?
आर्यमणि:– मैं इतना भी मूर्ख नहीं जो यह न समझ सकूं की वह एलियन जितना मेरे लिये पहेली है, उतना ही आपके लिये भी। यह तो आपको पता होगा की मैं सुकेश के संग्रहालय को लूटकर भागा हूं, तभी मेरे पास वह चेन और आपकी दंश है। लेकिन आपको ये पता नही की, उन एलियन को लगता है कि मैं केवल अनंत कीर्ति की किताब लेकर भागा हूं और कोई छिपा हुआ गैंग उनका खजाने में सेंध मार गया। भागते वक्त ऐसा जाल बुना था की वह एलियन अपने कीमती खजाने को जगह–जगह तलाश कर रहे। उनकी एक टुकड़ी मैक्सिको और दूसरी टुकड़ी अर्जेंटीना पहुंच चुकी है। इसके अलावा मुझे इनके 4 और टुकड़ी के बारे में पता है जो अलग–अलग जगहों पर अपने संग्रहालय से चोरी हुई समान की छानबीन करते हुये धीरे–धीरे मेरे ओर बढ़ रहे। 10 दिनो में तीनो टीन वुल्फ का स्कूल गेम समाप्त हो जायेगा उसके बाद हम शिकार पर निकलेंगे। दुश्मन की अलग–अलग टुकड़ी को नापते हुये सबसे आखरी में मैं पलक से मिलने पहुंचूंगा... क्या समझे जादूगर जी... 10 दिन बाद से जो एक्शन शुरू होगा वह सीधा 2 महीने बाद ही समाप्त होगा। उम्मीद है यह खबर सुनकर आप कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो चुके होंगे... अब मैं चलता हूं, आप अपना 10 दिन का काउंट डाउन शुरू कर दीजिए.…
जादूगर महान दंश के जरिए अपनी भावना नहीं दिखा सकता था वरना जादूगर अपने दोनो हाथ जोड़कर मुस्कुराते हुये नजर आता। जादूगर समझ चुका था कि कैसे योजनाबद्ध तरीके से आर्यमणि ने उन छिपे एलियन को न सिर्फ उनके छिपे बिल से निकाला, बल्कि एक जुट संगठन को कई टुकड़ी में विभाजित करके अलग–अलग जगहों पर जाने के लिये मजबूर कर दिया। अब होगा शिकार। एक अनजान दुश्मन को पूरी तरह से जानने की प्रक्रिया।
ह्म्म्म्म अब इस पर क्या कमेंट करूँ
ग़ज़ब
पलक से मुक्का लात होने वाली है
उतने समय में आर्य और उसका पैक जादूगर महान से ज्ञान प्राप्त करेंगे
अब जादूगर और आर्य के बीच डील फाइनल हो गया है
अब देखते हैं
क्या क्या होने वाला है