Ohoho bhatakte musafir Marne se pahle apni mahatvapurn khojo ko likh kr gye Jiski jankari hmare Nainu bhaya ko prapt Hui or unke jariye Aaj hame pta Chal rha hai or hame ek awesome kahani Padhne ko mil rhi hai Gajab
arya tum to bade heavy driver ke yha coaching karte rahe ho bhaya, Tabhi itne unche sanskar mile hai...
Arya or Nishant ne khoja tha aur tb unhone ek dusre ko bhi vha dobara na jane dene ka promise kiya tha lekin arya us potli ko yha le aaya, idhar Kon si anguthi kon pahnega Ispr Tu tu mai mai Chal rhi thi, mere ko sunne me bada maza aa rha tha ki richa madam ne potli utha li vo to Accha hua ki Sherni ki potty bta kr mamla samhal liya Varna gye the aaj, richa madam ko bhanak bhi nhi thi ki uske hath kya lga hai pr bhumi Di ke vha aa jane pr mamla nipat gya...
To ek ek anguthi dono ne pahan liya hai, idhar ye bhi dekhne mila ki arya ne Nishant ko Vahi anguthi di jo bhatakte musafir ki thi aur khud vo pahni jo chori ki thi, arya nishant ko dur rakhna chahta hai musibat se or dard se...
aapne ek jagah kaha tha arya lopche ke katne se werewolf nhi badla hai or idhar apne Nishant ne kaha ki Chal arya mujhe apna werewolf vala rup dikha
kya ye Vahi hai jo ham soch rhe hai
Arya or Nishant ko hathiyar chuj karne ka kaha or sath me majak bhi udaya udhar Nishant ka javab sun dil ko thandhak pad gyi...
Bhatakte musafir ne apne asthiyo ke dibbe ke upar Sanskrit me likha tha ek khoji ka dusre khoji ke liye uphar, gaur se dekhne pr isme kai saval mil sakte hai pr Apan ko itna andar nhi Jane ka hai bhaya...
Arya or Nishant ne apni shopping kr li hai or ab Sabhi apni taiyari kr nikal chuke hai, Dekhte hai kya kya or Kis Kis se samna hota hai inka...
Superb bhai lajvab amazing Jabardast update sandar Nainu bhaya
भाग:–39
50 दिन बीते होंगे। अब तो आर्यमणि और निशांत को यह तक पता था कि जब जगह का दृश्य बदलता है, तब कौन सा पेड़ कहां होता है। नतीजा नही आ रहा था और अब तो पहले की तरह कोशिश भी नही हो रही थी। हां लेकिन हर रोज २–३ बार कोशिश तो जरूर करते थे।
लगभग ६ महीने से ऊपर हो गए थे, एक दिन जांच के दौरान आर्यमणि को सुराग भी मिल गया। घाटी के ठीक नीचे जो इलाका पहाड़ के ओर से लगता था, वहां का भू–भाग दोनो ही सूरत में एक जैसा था। आर्यमणि ने पहले तो सुनिश्चित किया और एक बार जब सुनिश्चित हो गया फिर वह निशांत के साथ उस जगह तक पहुंचा। दोनो दोस्त थोड़े उत्सुक दिख रहे थे। वहां पहुंच कर कुछ देर छानबीन करने के बाद निशांत... "यहां बस एक ही चीज अलग है। यहां की घास थोड़ी बड़ी है। इस से ज्यादा कुछ नहीं।"... निशांत चिढ़ते हुए बोला..
आर्यमणि उसके गुस्से को समझ रहा था, फिर भी निशांत को शांत रहकर सुराग ढूंढने के लिए कहने लगा। बस १० कदम का तो वह इलाका था और १०० बार जांच कर चुके थे। निशांत से नही रहा गया और अंत में वह घास ही उखाड़ने लगा। आर्यमणि उसकी चिढ़ देखकर हंस भी रहा था और सुराग क्या हो सकता था, उसपर विचार भी कर रहा था। आधी जमीन की घास उखड़ चुकी थी। निशांत, आर्यमणि पर भड़कते हुए, इस तिलस्म का खोज को बंद करने के लिए लगातार कह रहा था।
निशांत के मुट्ठी में घास, चेहरे पर गुस्सा और चिढ़ते हुए वह जैसे ही दोनो हाथ से घास खींचा, भूमि ही पूरी हिलने लगी। जैसे ही भूमि डगमगाया, निशांत भूकंप–भूकंप चिल्लाते हुए आर्यमणि के पास पहुंच गया। जमीन की कंपन बस छणिक देर की थी। फिर तो उसके बाद जमीन फट गई और दोनो नीचे घुस गए... निशांत लगातार चिल्लाए जा रहा था, वहीं आर्यमणि खामोशी से सब देख रहा था। दोनो को ऐसा लगा जैसे किसी रेत पर गिरे हो। गिरते ही पूरी रेत शरीर में घुस गया।
अंदर पूरा अंधेरा था, रौशनी का नमो निशान तक नही... "आर्य हम कहां आ गए"..
आर्यमणि:– डरना बंद कर और प्रकाश कैसे आयेगा वह सोच...
निशांत:– अबे इतना अंधेरा है कि डर तो अपने आप ही लग जाता है... मेरे पास कुछ जलाने के लिए होता तो क्या अब तक जलाता नही। स्टन रॉड भी पास में नही।
आर्यमणि:– अब से एक लाइटर हमेशा रखेंगे..
निशांत:– वो तो जरूरी वस्तु की सूची में अब पहले स्थान पर होगा। आर्य कुछ कर.. ये अंधेरा मेरे दिल में घुसते जा रहा है। ज्यादा देर ऐसे रहा फिर मैं काला दिल वाला बन जाऊंगा।..
आर्यमणि:– बकवास छोड़ और २ पत्थर ढूंढ...
अब पत्थर भला कैसे मिले। पाऊं के नीचे तो रेत ही रेत थी। न जाने कितनी देर भटके हो। भटकते–भटकते उस जगह की किसी दीवार से टकराए हो। पत्थर की दीवार थी, और काफी कोशिश के बाद 2 छोटे–छोटे पत्थर हाथ लग गए। पत्थर से पत्थर टकराया। हल्की सी चिंगारी उठी। लेकिन उस हल्की चिंगारी में कुछ भी देख पाना मुश्किल था। फिर से पत्थर टकराए, और इस बार आर्यमणि बड़े ध्यान से चारो ओर देख रहा था। उस चिंगारी में आधा फिट भी नही देखा जा सकता था, लेकिन जितना दिखा उसमे पूरा उम्मीद दिख गया।
दीवार पर हाथ टटोलने से कुछ सूखे पौधे हाथ में आ गए। पत्थर घिसकर आग जलाई गई। आग की जब रौशनी हुई, तब पता चला कि दोनो एक खोह में है। नीचे रेत और चारो ओर पत्थर की दीवार। पत्थर की दीवार पर सूखे पौधे लटक रहे थे। आर्यमणि और निशांत उन पौधों को जलाते हुए आगे बढ़ने लगे। तकरीबन २०० मीटर आगे आए होंगे, फिर उस खोह में हल्की प्रकाश भी आने लगी। अंधेरा छंट चुका था और दोनो आगे बढ़ रहे थे। दोनो चलते–चलते एक जगह पर पहुंच गए जहां ऐसा लगा की वर्षों पहले यहां कोई रहता था।
सालों से पड़ी एक बिस्तर थी। बिस्तर के पास ही पत्थर को बिछाकर हल्का फ्लोर बनाया गया था, जिसपर बहुत सारे पांडुलिपि बिखरे हुए थे। वहीं एक किनारे पर एक बड़ा सा संदूक रखा हुआ था। दोनो दोस्त चारो ओर का मुआयना करने के बाद, निशांत संदूक के ओर बढ़ा और आर्यमणि नीचे बिखरे पांडुलिपि पर से धूल झाड़कर उन्हें समेटने लगा।
इधर निशांत ने भी संदूक के ऊपर से धूल हटाई। संदूक की लकड़ी पर संस्कृत में कुछ गुदा हुआ था। बड़े ध्यान से देखने पर वहां एक संदेश लिख था... "एक भटके मुसाफिर को दूसरे भटके मुसाफिर का सुस्वागतम। तुम्हारी अच्छाई या बुराई तुम्हे यहां तक नही लेकर आयि। बस तुम्हारा और मेरा जज्बा एक है, इसलिए तुम यहां हो। तुम्हारे आगे के सफर के लिए मेरी ढेर सारी सुभकाननाएं"
निशांत बड़े ध्यान से संदेश पढ़ रहा था। साथ में आर्यमणि भी खड़ा हो गया। दोनो ने एक साथ संदूक को खोला, और अंदर की हालत देखकर झटके में संदूक के दरवाजे को छोड़ दिया... "किसका कंकाल है ये".. निशांत ने पूछा...
"लोपचे का भटकता मुसाफिर पारीयान लोपचे का..." आर्यमणि निशांत को कुछ दस्तावेज दिखाते हुए बोला।
दोनो वहीं बैठकर पारीयान की लिखी पांडुलिपि पढ़ने लगे। उस दौड़ में, सतपुरा के जंगलों में हुई लड़ाई से पारीयान इकलौता जिंदा तो लौटा, लेकिन शापित होकर। महाकाश्वर अपनी अंतिम श्वास गिन रहा था। पारीयान मकबरे को खोल चुका था। इस एक वक्त में २ भारी भूल हो गई। पहली पारीयान बिना परिणाम जाने ऐडियाना को उसकी इच्छा से दूर कर रहा था। और दूसरा योगियों ने महाकाश्वर को पूरा नही मारा, बस मरता छोड़ दिया। महाकाश्वर जनता था ऐडियाना की इच्छा को उसके मकबरे से अलग किया गया तो क्या होगा, बस केवल पारीयान लोपचे को कुछ नही होगा।
महाकाश्वर आखरी वक्त में भी सही समय के इंतजार में था। जैसे ही पुर्नस्थापित पत्थर को पारीयान ने अपने हाथों में लिया, ठीक उसी वक्त महाकाश्वर बहरूपिया चोगा पहना और पारीयान का भेष लेकर खुद पर ही रुधिर–कण श्राप और मोक्ष–विछोभ श्राप का मंत्र पढ़ लिया। रुधिर–कण श्राप से खून की कोशिकाएं टूट कर बाहर आने लगती थी। वहीं मोक्ष–विछोभ श्राप शरीर के अंदरूनी अंग को तोड़कर अंतिम मोक्ष देता था।
जैसे शरीर से पसीना निकलता है ठीक वैसे ही महाकाश्वर के शरीर से खून बहने लगा। शरीर के हर अंग अंदर से सिकुरने लगे थे और महाकाश्वर प्राण त्यागने से पहले दर्द का खौफनाक मंजर को महसूस करते हुए मर गया। जो दर्द महाकाश्वर ने सहे वही दर्द पारीयान को भी हो रहा था। पारीयान के शरीर से भी खून पसीना के भांति निकल रहा था और अंदर के अंग सिकुड़ता हुआ महसूस होने लगा।
पारीयान असहनीय पीड़ा से बिलबिला गया। किंतु वह एक अल्फा वुल्फ था, इसलिए उतनी ही तेजी से हिल भी हो रहा था। पारीयान समझ चुका था कि महाकाश्वर चाहता तो उसे एक झटके में मार सकता था, लेकिन जान–बूझ कर उसने अंतहीन दर्द के सागर में पारीयान को डुबो दिया। प्राण तो जायेंगे लेकिन तील–तील करके। पारीयान अभी तक तो अपने दर्द से पीड़ित था लेकिन बिलबिला कर जब भागा तब उसने ऐडियाना का प्रकोप भी देखा। भ्रमित अंगूठी के कारण उसे तो मौत ने नही छुए, लेकिन वहां सबकी लाश बिछ रही थी। एक कली परछाई तेजी से अंदर घुसती और प्राण बाहर निकाल देती।
लोपचे का भटकता मुसाफिर अपने अंत के नजदीक था। सभी पत्राचार करने के बाद किसी तरह पारीयाने पूर्वी हिमालय क्षेत्र पहुंचा। वहां भ्रमित अंगूठी और पुर्नस्थापित अंगूठी को सुरक्षित करने के बाद खुद को संदूक में बंद कर लिया। पारीयान लगभग ६ महीने उस खोह में बिताया। इस दौरान उसने अपनी कई यात्राओं के बारे में लिखा। उस दौड़ का एक पूरा इतिहास आर्यमणि और निशांत पढ़ रहा था। फिर सबसे आखरी में दोनो के हाथ में एक पोटली थी, जिसके अंदर रखी थी लोपचे के भटकते मुसाफिर का खजाना।
तत्काल समय... निशांत और आर्य
आर्यमणि के हाथ में पोटली थी और निशांत की आंखें आश्चर्य से फैली... "आर्य हमने क्या फैसला किया था? तुम उस गुफा में दोबारा गए ही क्यों?"
आर्यमणि:– क्योंकि जब मैं अपने ४ साल की यात्रा में था, तब मुझे पता चला कि ऐडियाना का मकबरा और लोपचे का भटकता मुसाफिर को कौन नहीं तलाश कर रहा। यदि पोटली की दोनो अंगूठी किसी गलत हाथ में लग जाती तो तुम समझते हो क्या होता?
निशांत:– हम्मम.. तो अब क्या सोचा है...
आर्यमणि– संसार की सबसे रहस्यमयि और ताकतवर औरत के पास जा रहे। एक अंगूठी तुम्हारी एक अंगूठी मेरी।
निशांत:– मुझे दोनो चाहिए...
आर्यमणि:– ठीक है दोनो लेले...
निशांत:– हाहाहा... महादानी आर्यमणि। अच्छा चल तू बता तुझे कौन सी अंगूठी चाहिए...
आर्यमणि:– तुझसे जो बच जाए...
निशांत:– ठीक है फिर मुझे वो पुर्नस्थापित अंगूठी दे दे।
आर्यमणि:– वो अंगूठी मत ले। पुनर्स्थापित अंगूठी चुराई हुई है, उसके मालिक हम नही। शायद किसी दिन लौटानी पड़े। तू भ्रमित अंगूठी ले ले।
निशांत:– हां मैं ये बात जनता हूं। मेरे जंगल के दिन खत्म हो गए पर शायद तू बहुत से खतरों से घिरा है इसलिए तू ही भ्रमित अंगूठी रख।
आर्यमणि:– अब तू ले, तू ले का दौड़ शुरू मत कर... इस से अच्छा हम टॉस कर लेते है।
निशांत:– आज तक कभी ऐसा हुआ है, टॉस का नतीजा मेरे पक्ष में गया हो।
आर्यमणि:– तू चुतिया है...
निशांत:– तू भोसडी वाला है..
आर्यमणि:– तू हारामि है..
निशांत:– जा कुत्ते से पिछवाड़ा मरवा ले..
आर्यमणि:– तू जाकर मरवा ले। वैसे भी हर २ दिन पर कोई न लड़की तेरी मार कर ही जाती है।
निशांत, एक जोरदार मुक्का जबड़े पर मारते.…. "बीच में लड़की को न घुसेड़। वरना मैं गंभीर आर्य के रंगीन किस्से वायरल कर दूंगा..."
आर्यमणि, निशांत के गले में अपनी बांह फसाकर उसे दबाते.… "साले झूठे, एक बार झूठी अफवाह फैला चुका है। दूसरी बार ये किया न तो मैं तुझे बताता हूं।"
"लगता है २ लड़कों की रास लीला शुरू होने वाली है।"… कमरे में अचानक ही रिचा पहुंच गई। आर्यमणि और निशांत दोनो सीधे खड़े हो गए। अभी कुछ बोलते ही की उस से पहले भूमि पहुंच गई... "रिचा तुमने बता दिया"..
आर्यमणि:– क्या बताना था?
भूमि:– रिचा की टीम के साथ तुम कनेक्ट रहना। कोई खतरा लगे तब तुरंत सूचना देना...
निशांत:– ठीक है दीदी, अब हम अपनी तैयारी कर ले..
इतने में रिचा बंद पोटली अपने हाथ में उठाती... "तुम दोनो क्या कोई तंत्र–मंत्र करने वाले हो?"..
निशांत:– उस पोटली में शेरनी की पोट्टी है। जंगल के रास्ते में बिखेड़ते जायेंगे। इस से शेर भ्रमित होकर शेरनी की तलाश करने लगेंगे और हम सुरक्षित है। तुम भी एक पोटली ले आओ, तुम्हे भी दे देता हूं..
रिचा:– ईईयूयू… ऐसा कौन करता है...
आर्यमणि:– असली शिकारी...
रिचा:– तुम्हारे कहने का क्या मतलब है, हम नकली शिकारी है?
भूमि:– तुम लोगों को झगड़ने का बहुत मौका मिलेगा, अभी सब लोग जाने की तैयारी करो। रिचा तुम मेरे साथ घर चलो.. (भूमि अपने ससुराल की बात कर रही थी। इस वक्त वो अपने मायके में है)…
उन लोगों के जाते ही, आर्यमणि, निशांत को एक थप्पड़ लगाते... "तेरे बकवास के चक्कर में ये पोटली उनके सामने आ गई न"…
निशांत:– तो तू मेरी बात मान क्यों नही लेता...
आर्यमणि:– तू मेरी फिक्र छोड़ भाई... और भ्रमित अंगूठी पहन ले...
निशांत:– एक शर्त पर...
आर्यमणि:– क्या?
निशांत:– मुझे तेरा वुल्फ वाला रूप देखना है...
आर्यमणि:– तू अंगूठी पहन ज्यादा बकवास न कर...
आर्यमणि जबतक कह रहा था, निशांत अपनी उंगली में भ्रमित अंगूठी डाल चुका था और आर्यमणि के ओर पुर्नस्थापित अंगूठी को उछालते हुए... "पहन ले और चलकर शॉपिंग करते है।"…
आर्यमणि और निशांत दोनो तेजस के शॉपिंग मॉल पहुंचे। वहां से दोनो ने ढेर सारा ट्रैप वायर खरीदा। कुछ ड्रोन और नाना प्रकार के इत्यादि–इत्यादि चीजें। दोनो अपने शॉपिंग के बीच में ही थे जब भूमि ने आर्यमणि और निशांत को भी अपने घर बुला लिया। दोनो शॉपिंग के बाद सीधा भूमि के पास पहुंच गए। रिचा और उसकी टीम पहले से वहां थी। हथियारखाने से वो लोग अपने असला–बारूद अपने कार में भर रहे थे। भूमि, आर्यमणि और निशांत को भी हथियारखाने में बुलाती... "अपनी पसंद का हथियार उठा लो"…
रिचा का ब्वॉयफ्रेंड, मानस.… बच्चे हथियार चलाना भी आता है या नही"…
निशांत:– चिचा अब एक घंटे में हथियार चलाना तो नही सीखा सकते ना। और वैसे भी नौसिख्ये शिकारी को हथियार की जरूरत पड़ती है।
मानस:– तू तो अभी तक प्रहरी का अस्थाई सदस्य ही है, फिर भी खुद को बड़ा शिकारी समझता है।
निशांत:– पहली बात मैं प्रहरी समुदाय का हिस्सा नहीं। बस पलक के साथ चला गया था। दूसरी बात किसी का बड़ा शिकारी होने के लिए प्रहरी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं.…
मानस:– कभी वुल्फ से पाला पड़ा है...
निशांत:– लोपचे का पैक भूल गए क्या? वो तो उसी जंगल में रहते थे जहां हम ८ साल की उम्र में लघुसंका करने निकल जाया करते थे।
रिचा का एक साथी तेनु.… "इतनी बहसबाजी क्यूं? शिकार के लिए तो चल ही रहे है, वहीं फैसला हो जायेगा। लेकिन बच्चों को सबसे हैवी और ऑटोमेटिक राइफल देना। कल को ये न कहे की उनके मुकाबले हमारा बंदूक ज्यादा ताकतवर था।"
आर्यमणि, निशांत को अपने साथ बाहर ले जाते... "आर्मस लाइसेंस नही है हमारे पास और हम गैर कानूनी काम नही करते।"… पीछे से कुछ आवाज आई लेकिन आर्यमणि, निशांत के मुंह पर हाथ रख कर गराज चला आया.… "बता कौन सी गाड़ी से जंगल में चलेंगे"
निशांत:– रेंजर वाली जीप ही सही है... वैसे हम कितने लोग है..
आर्यमणि:– हम ५ लोग हैं। सबको उठाते हुए चलेंगे...
शाम के 5 बजे के करीब सभी टीम रवाना हो गई। तेजस की टीम ३ गाड़ियों में निकली। सुकेश की टीम भी २ गाड़ियों में निकली। वहीं इकलौती पलक की टीम थी जो १ गाड़ी में बैठी थी। सभी लोग नागपुर से छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) के रास्ते पचमढ़ी हिल स्टेशन पहुंच गए। जो होशंगाबाद जिले में पड़ती थी। इस हिल स्टेशन को सतपुरा की रानी भी कहा जाता है। रात के १ बजे के करीब सभी पचमढ़ी के एक रिसॉर्ट में पहुंच चुके थे।
सुबह सबका नाश्ता एक साथ हो रहा था। दल में २ वेयरवोल्फ रूही और अलबेली भी थी, जिन्हे सब बहुत ही ओछी नजरों से देख रहे थे। खैर सुबह के नाश्ते के बाद ही सुकेश से एक रेंजर मिलने पहुंचा, जिसने जंगल के मानचित्र पर उस जगह को घेर दिया जहां रीछ स्त्री के होने की संभावना थी। सतपुरा के उस पर्वत श्रृंखला के पास पहुंचने में लगभग १२ घंटे का वक्त लगता। सभी दल ने अपना बैग पैक किया और अपने–अपने टीम के साथ निकल गए।