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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

Prime
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Kyo nhi ho sakti hai shadi ...matalab palak Jo itna perfect hai aarya ke liye usse kyo nhi ho sakti ..Mana ki wo Apex supernatural hai lekin aarya ko bed par maje bhi to di na utni hi...aur ye aarya bhi to ek wolf hai na phir dono me kyo nhi ho sakti...pahale bhi jivisha ek prithviwasi ki shadi viggo se ho gayi ....yaha se ek dulahan alian ke pass gayi to ek ko Lana bhi hai na...
क्या भाई
मैंने कब बोला पलक से आर्य की शादी नहीं हो सकती हैं

होनी चाहिए परफेक्ट जोड़ी हैं दोनों की
 

Lib am

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हों सकता हैं राजदीप ने ऐसा बोला हों
लेकिन ना राजदीप ओर नाही उसकी फैमिली जानती हैं कि आर्य वोल्फ हैं
हां उन्हें शक था ओर हैं कि आर्य के पास विशेष शक्तियां हैं जो उसके दादा जी से मिलीं हों लेकिन आर्य एक वोल्फ हैं ऐसा जिक्र कहीं भी सिक्रेट प्रहरी के मुंह से सुनने को नहीं मिला हैं भाई

इसलिए आर्य ने बहुत सी परिक्षा भी दी थीं और पास भी की थीं ताकि भ्रम बना रहें भाई
भाई ये राजदीप वाला संवाद उस परीक्षा के बाद का ही है दूसरी बात कोई भी वोल्फ किसी आम इंसान को पैक लीडर नही बनाता है क्योंकि पैक का टैटू और ओथ दोनो वुल्फ्स के बीच ही हो सकती है पैक बनाने के लिए, फिर जब आर्य ने अपने पैक के साथ किले पर जा कर अपने पैक की घोषणा की और रूही और अलबेली के बदले के लिए अल्फा को मारा तब भी ये बात कुछ हद तक जाहिर हो गई थी।
 

Lib am

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भाग:–76





बॉब ने जैसे ही उस कवर के ऊपर का कपड़ा हटाया, अंदर बिल्कुल जमा हुआ चेहरा को देखकर आर्यमणि लड़खड़ा गया। जैसे ही आर्यमणि को उसके पैक ने दर्द में पाया चारो एक साथ वूल्फ साउंड निकालते दौड़े। वो लोग जैसे ही सीढ़ियों पर पहुंचे आर्यमणि अपना हाथ उनकी ओर करते उन्हें रोका… "मै ठीक हूं तुम लोग ऊपर के लोगों की मदद करो।"..


आर्यमणि:- बॉब ये क्या किया है इसके साथ?


बॉब:- ओशुन का ये हाल यहां के लोगो ने नहीं किया है। यहां के गैंग को इन सब के विषय में पता ही नहीं। तुम्हारे भारत जाने के 10-12 दिन के बाद की बात है, जब ओशुन का एक इमरजेंसी मैसेज आया, उसने क्या लिखा खुद ही देखो...


बॉब ने उसे एक संदेश दिखाया जिसमे लिखा था… "मेरे पीछे कौन पड़ा है पता नहीं, लेकिन उसे एक अल्फा वेयर केयोटी की तलाश थी, किसी खतरनाक काम के लिये। जानती हूं जीत नहीं पाऊंगी, लेकिन अपने परिवार को बचाने की कोशिश जरूर करूंगी। आर्य से कभी मिलो तो कहना मै उसे बहुत चाहती थी, उसका दिल तोड़ने कि वजह बता देना। शायद मुझे माफ़ कर दे। मैं रहूं किसी के भी साथ, उसके लिये कभी चाहत कम नहीं होगी।"


आर्यमणि पूरा मायूस दिख रहा था। संदेश पढ़ते–पढ़ते वहीं बैठ गया। एक-एक करके आर्यमणि का पूरा पैक उसके पास पहुंचा। सभी आर्यमणि के ऊपर अपना सर रखकर रो रहे थे।… "उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो, तुम लोग आओ मेरे साथ।".. बॉब, आर्यमणि के पैक को लेकर ऊपर आ गया।


वहां मौजूद वुल्फ, बंकर से निकलकर नीचे पड़े उन वुल्फ की मदद कर रहे थे जिनका खून निचोड़ लिया गया था। इसके पूर्व जबतक आर्यमणि नीचे जा रहा था, वहां मौजूद सारे वुल्फ शिकारी के खून और मांस पर ऐसे आकर्षित थे कि उन्हें जैसे खजाना मिल गया हो। अलबेली ने उन वुल्फ को कंट्रोल किया था, रूही और ट्विंस ने बिना कोई देर किये मानव के मांस और रक्त को तेजी से साफ कर दिया।



उस वक्त तो उन्हें रोक लिया, लेकिन वहां का हर वुल्फ बहुत ही कमजोर और उसे से भी कहीं ज्यादा भूखा था। इस जगह में अब भी 3 इंसान (डॉक्टर दंपत्ति और बॉब) मौजूद थे। रूही ने वुल्फ कंट्रोल साउंड दिया और सभी वुल्फ भागते हुए ऊपर आये।


रूही:- एक भी वुल्फ इस बंकर से बाहर नहीं निकलेगा, कमजोर और घायल पड़े साथी को भी यही बंकर में ले आओ। तुम तीनों इन सबके लिए पूरे खाने की वयवस्था करो।


लास्की:- कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। किचेन में सबके खाने का प्रयाप्त स्टॉक मिल जायेगा।


ट्विंस और लास्की की जिम्मेदारी थी पकाना और यहां रूही और अलबेली इन भूखे और कमजोर वुल्फ को किसी तरह रोक कर रखते। पहले आ रही ताजा कटे जानवर के रक्त की खुशबू जो सभी वेयरवुल्फ को बागी बनने पर मजबूर कर रहे थे। उसके बाद भुन मांस की खुशबू। जैसे ही उनको छोड़ा गया, खाने पर ऐसे टूटे मानो जन्मों के भूखे हो। देखते ही देखते पुरा खाना चाट गये और डाकर तक नहीं लिया। इधर ओजल ने अपने पैक के लिए भेज सूप, पनीर फ्राय और रोटियां पकाकर ले आयी थी। उन्हें ये सब खाते देख बाकी वूल्फ अचरज में पड़ गये। तीनों ने मिलकर, रूही को खाना लेकर नीचे आर्यमणि को खाना खिलाने के लिये भेज दिया। आर्यमणि, ओशुन के पास खड़ा बस उसी का चेहरा देख रहा था….

कभी-कभी दिल मजबूत रखना पड़ता है।
अपनो की हालत देखकर गम पीना पड़ता है।

वक़्त हर मरहम की दवा तो नहीं लेकिन,
वक़्त के साथ हर दर्द में जीना आ जाता है।
खुदा इतना खुदगर्ज नहीं जो रोता छोड़ दे।
जबतक दर्द की दावा ना मिले दर्द ही दवा बन जाता है।


"मेरी आई अक्सर ये कहा करती थी। अपनी जिल्लत भरी जिंदगी में बस यही उनके चंद शब्द थे जो किसी एंटीबायोटिक कि तरह काम करते थे। उनके कहे शब्दों पर विश्वास तब हो गया जब तुम मेरी जिंदगी में आये। आओ खाना खा लो, वो तुम्हारे साथ किसी कारण से भले ही नहीं रह पायी हो, लेकिन उठकर प्यार से तुम्हे ऐसे चूम लेगी की तुम्हारे हर गम को मरहम मिल जायेगा।"..


आर्यमणि, रूही की बात सुनकर उसके पास बैठा और खाने के ओर देखकर सोचने लगा। रूही रोटी का एक निवाला उसके मुंह के ओर बढ़ाई.. आर्यमणि कुछ देर तक निवाले को देखता रहा और फिर खाना शुरू किया…


"तुम्हारी आई बहुत अच्छी थी, शायद बहुत समझदार भी। बस वक़्त ने तुम्हारे साथ थोड़ी सी बेईमानी कर दी, वरना तुम भी उनकी ही परछाई हो।"..


रूही:- क्या दफन है सीने में आर्य, ये लड़की तुम्हारे उस दौड़ कि साथी है ना जब तुम अचानक से गायब हुये थे।…


आर्यमणि वक़्त की गहराइयों में कुछ दूर पीछे जाकर…


मै उस दौर में था जब मेरी भावना एक वेयरवुल्फ से जुड़ी थी, नाम था मैत्री। मै उसके परिवार की सच्चाई नहीं जानता था। लेकिन मेरे पापा और मम्मी उनकी सच्चाई जानते थे। बहुत छोटे थे हम इसलिए उस बात पर मेरे घर वाले ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। खासकर मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी के कारण। लेकिन मेरी भूमि दीदी जब भी मेरे पास होती तो उनकी खुशी के लिए मै मैत्री से 10-15 दिन नहीं मिलता था।


उफ्फ वो क्या गुस्सा हुआ करती थी और मै उसे मनाया करता था। तब उन लोगो का बड़ा सा परिवार जंगल के इलाके में, बड़े से कॉटेज में रहता था। तकरीबन 40 लोग थे वहां, सब के सब मुझसे नफरत करने वाले। लेकिन जिनको नफरत करनी है वो करते रहे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ उतना ही प्यारा था। स्कूल में हम हमेशा साथ रहा करते थे। साथ घुमा करते थे। मुझे इस बात का कभी उसने एहसास तक नहीं होने दिया कि उसके घरवाले मैत्री पर तरह-तरह का प्रेशर डालते थे। स्कूल में मुझसे दूर और अपने भाई बहन के साथ रहने के लिये रोज उसे टर्चर किया जाता था।


एक दिन की बात है शाम के वक़्त था, मै जंगल के ओर आया हुआ था। मैत्री पेड़ के नीचे बैठी थी और मै उसके गोद में सर रखकर लेटा हुए था। वो बड़े प्यार से मेरे बाल में हाथ फेर रही थी और मै आंख मूंद कर सोया था.. प्यारी सी आवाज उसकी मेरे कानो में पड़ रही थी…


"आर्य, बड़े होकर हम वो अवरुद्ध के पार चले जाएंगे जहां उस दुनिया में कोई नहीं आ सके।"… मैत्री मुझे उसी अवरुद्ध के बारे में बोल रही थी जिसका भस्म के घेरे से सुपरनैचुरल नहीं निकल पाते। कारण वही था, ये अवरुद्ध जहां है, वहां मतलब होगा कि 2 दुनिया के बीच की दीवार। आपको उसके पार जाना है तो आपको ट्रु होना होगा। यदि इंसानी दुनिया में ये अवरुद्ध है तो आपको ट्रू इंसान होना पड़ेगा या हिमालय के उस सीमा पार जाना चाहते है तो आपको ट्रु उन जैसा बनना पड़ेगा।


खैर उसकी प्यारी सी ख्वाइश थी, एक अलग दुनिया में जाने की। जहां हम दोनों हो, बस उस आवाज के पीछे छिपे दर्द और गहराई को नहीं समझ सका की उसके घरवाले उस पर कितना प्रेशर बनाये है। उसी वक़्त वहां उसका भाई शूहोत्र पहुंच गया। आते ही उसने मेरा कॉलर पकड़ कर उठाया और धराम ने नीचे पटक दिया। मै भी नहीं जानता मुझे कहां–कहां चोट आयी, बस नजरें मैत्री पर थी और वो काफी परेशान दिख रही थी। मै अपने दर्द को देखे बगैर उससे इतना ही कहा.. "शांत रहो।"..


मैत्री:- तुम्हे चोट लगी है आर्य..


उसकी इस बात पर शूहोत्र ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ लगा दिया। पता नहीं उस वक़्त मेरे अंदर क्या हो गया था। मै उठा.. खुद से आधे फिट लंबे और शारीरिक बल में कहीं ज्यादा आगे वाले लड़के को पीटना शुरू कर दिया। वो भी मुझे मार रहा था, लेकिन मै उसे ज्यादा मार रहा था।


तब मैंने पहली बार उसे देखा था.. वो पीली आखें, बड़े बड़े पंजे, दैत्य जैसे 2 बड़े बड़े दांत, उसका साढ़े 4 फिट का शरीर ऐसा लगा साढ़े 6 फिट का हो गया हो। लेकिन गुस्सा मुझ पे सवार था। मुझे मारा कोई बात नहीं पर मैत्री को मारा ये मै पचा नहीं पा रहा था।


उसके पंजे मुझे फाड़ने के लिए आतुर थे, वो मुझ से बहुत तेज था। वो जितनी तेजी से मुझे मार रहा था मै उतनी तेजी से बचते हुए उसपर हमले करता रहा। उसकी लम्बाई तक मेरे हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे इसलिए मैंने अपना पाऊं उठाया, घुटनों के नीचे उसे पूरी ताकत से मारा था और उसका पाऊं टूटकर लटक गया था।


उसी वक़्त मेरे दादा वर्धराज, भूमि दीदी, तेजस दादा, निशांत के पापा, मेरे मम्मी पापा सब वहां पहुंच गये थे। उधर से भी उनका पूरा खानदान पहुंचा था। मेरे दादा ने वहां का झगड़ा सुलझाया, दोनो पक्षों को शांत करवाया। लेकिन तेजस के मन में शायद कुछ और ही चल रहा था। हालांकि तब ये बात किसी को नहीं पता थी लेकिन बाद में मुझे पता चल गया। लोपचे कॉटेज को 2 दिन बाद आग लगा दिया गया था। उसके परिवार के बहुत से लोग अंदर जलकर मर गये। बस कुछ ही लोग बचे जो देश छोड़कर जर्मनी चले गये। एक लंबा अर्सा बिता होगा जब मुझे मैत्री का पहला ई–मेल आया। महीने में 2, 3 बार बात भी हो जाती।


वो अपना हर नया अनुभव साझा करती और साथ में ओशुन के बारे में भी बताया करती थी। वो मुझसे कहा करती थी, बस कुछ दिन रुक जाओ हम साथ होंगे। शायद मुझसे लगाव और प्यार रखने के कारण ही उसे अपनी जान गंवानी पड़ी। मेरे लिये वो अपने परिवार और पैक तोड़कर इंडिया आयी थी और उसे किसी शिकारी ने मार डाला था। मार तो शूहोत्र को भी दिया था, लेकिन शिकारियों से बचाकर मैंने उसे निकला था।


उसी दौरान एक घटना हो गई, एक बीटा सुहोत्र ने मुझे बाइट किया था। एक बीटा के बाइट से मैंने शेप शिफ्ट किया था, खैर आगे इसका बहुत जिक्र होने वाला है। मुझे झांसा देकर बहुत सारे रास्तों से होते हुये आखिर में समुद्र के रास्ते से जर्मनी लाया। दरसअल मुझे शूहोत्र ही लेकर आया था, सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि मैत्री मुझे अपनी जगह वुल्फ हाउस में देखना चाहती थी, जो कि एक छलावा था। हकीकत तो ये थी कि मैत्री की सोक सभा में मुझे नोचकर खाया जाना था।


वहां फिर लोगों ने चमत्कार देखा एक बीटा के बाइट से मै शेप शिफ्ट कर चुका था और मुझमें हील होने की एबिलिटी आ गयी थी। इसे शायद श्राप ही कह लो। क्योंकि ब्लैक फॉरेस्ट मेरा जेल था, जहां वो मुझे नंगा रखा करते और रोज खून चूसकर हालत ऐसी कर दी थी कि शरीर के नाम पर केवल हड्डी का ढांचा बचा था।


लगातार कुछ दिन के प्रताड़ना के बाद ओशुन ने मुझे वास्तविकता बताई कि मेरी क्षमता क्या है और मैंने गंगटोक के जंगल में क्या-क्या किया था। उसने मुझसे बताया था कि वो नियम से बंधी है, जितना हुआ उतना वो मुझे बता दी। ऐसा नहीं था कि उसके एहसास करवाने के बाद मुझे उस नर्क से मुक्ति मिल गयी थी, लेकिन मैंने अपने शरीर की फ़िक्र करना छोड़कर अपने दिमाग को संतुलित करना सीखा।


वो मुझे जलील करते, मेरे बदन को नोचते यहां तक कि मेरे पीछे कभी कटिला तार में लिपटा डंडा डालते तो कभी सरिया। बस रोजाना 2 घंटे ही मै जाग पता था, उस से ज्यादा हिम्मत नहीं बचती। लेकिन उन 2 घंटो में मै इनके पागलपन को भूलकर बस जंगल को गौर करता, पेड़ पर मार्किंग करता।


लगभग 1 महीना बीतने के बाद समझ में आया कि मै जहां से निकलने की कोशिश कर रहा हूं वहां से तो वो लोग आते है, तो क्यों ना जंगल के दूसरे ओर भागा जाये। अगला 10 दिन मैंने टेस्ट किया कि जंगल के दूसरे ओर जाने पर क्या प्रतिक्रिया होता है। और तब मुझे पता चला कि जंगल के दूसरे हिस्से में वो नहीं जाते थे। लेकिन मेरी किस्मत, मै हर रोज वहीं लाकर पटक दिया जाता था, जहां से मेरी आंखें खुला करती थी।


"आखें खोलो, उठो.. वेक अप"… मेरे कानो में आवाज़ आ रही थी। शरीर मेरा कुछ हरकत में था, मैं कुछ पी रहा था, लेकिन क्या पता नहीं। ये कोई और वक़्त था जब मै अपनी आखें खोल रहा था। आखें जब खुली तब मेरा सिर ओशुन की गोद में था और उसकी कलाई मेरे मुंह में। उस वक़्त मुझे पता चला कि ओशुन अपने हाथ की नब्ज काटकर मुझे खून पिला रही थी।


मै झटके से उठा। कुछ घृणा अंदर से मेहसूस हो रहा था। मुझे उल्टी आ गई और ओशुन से थोड़ी दूर हटकर उल्टियां करने लगा। ओशुन भी मेरे पीछे आयी। पीठ पर हाथ डालकर उसने मुझे शांत करवाया। शांत होने के बाद मै वहां से हटा और आकर वहीं अपनी जगह पर बैठ गया। वो भी मेरे पास आकर बैठी। मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं बची थी मै उसपर गुस्से में चिल्ला कर कह सकूं कि वो क्या कर रही थी। फिर भी जितना हो सकता था इतने गुस्से में… "ये तुम क्या कर रही थी, मुझे खून क्यों पिलाया।"


ओशुन, मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े ध्यान से देखी। मुझे मेरी वास्तविक स्थिति का ज्ञात हुआ, मैं पूर्णतः नंगा था और थोड़ी झिझक के साथ खुद में सिमट गया।… "तुम रोज बेहोश रहते हो, शरीर में तुम्हारे जब जान आता है तब तुम जागते हो और ठीक उसी वक़्त जान निकालने भेड़िए तुम्हारे पास पहुंच जाते है।"


इतना कहकर उसने मेरे गोद में कपड़े रख दिये और वहां से उठकर चली गई। मै पीछे से उसे आवाज लगाता रहा लेकिन वो बिजली कि गति से वहां से निकल गयी। उसके जाने के बाद भी मै अपनी जगह बैठा रहा और ओशुन के बारे में ही सोचता रहा। क्यों आयी, क्यों गयी और मुझे इस वक़्त क्यों जगाया, ये सब सवाल मेरे मन में उठ रहे थे। शायद वो मेरे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाती इसलिए बिना कुछ कहे वहां से चली गयी। लेकिन जाते–जाते मेरे लिए बहुत कुछ करके जा चुकी थी।


मै अपनी जगह से उठा और उसके लाये कपड़े पहनकर जंगल के दूसरे हिस्से के ओर बढ़ चला जहां ये लोग नहीं जाते थे। मै जितना तेज हो सकता था उतना तेज वहां से निकला। 24 घंटे के किस प्रहर में मैंने चलना शुरू किया पता नहीं, लेकिन मै जितना तेज हो सकता था, चलता गया। मार्किंग किए हुये पेड़ सब पीछे छूट चुके थे, और मै उनसे कोसों दूर, जंगल के दूसरे हिस्से में बढ़ता जा रहा था। चलते-चलते मै जंगल के मैदानी भाग में पहुंच गया। पीछे कौन सा वक़्त गुजरा था, मेरी जिंदगी कहां से शुरू हुई और मै कहां पहुंच गया, वो अभी कुछ याद नहीं था, केवल चेहरे पर खुशी थी और सामने मनमोहक सा झील था।


"तुम कौन हो अजनबी, और इस इलाके में क्या कर रहे हो।"… कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। उनमें से एक 40-41वर्षीय व्यक्ति ने मुझे ऊपर से नीचे घूरते हुये पूछने लगा।
nain11ster नैनू भाई की हर कहानी का हीरो शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाओं से गुजरता है और फिर युग पुरुष बनता है। आर्य ने भी वही सब झेला, प्यार खोने के गम और उस लोपचे के गंदे खून की वजह से वहां पहुंचा जहां एक जिंदा नरक उसका इंतजार कर रही थी क्योंकि उसके कष्टों का कोई अंत तो था नही।

ओशून उसके लिए एक उम्मीद की किरण थी जिसने उसको ना सिर्फ बचाया बल्कि जिंदा रहने की आस भी दी। मगर उसकी सजा ओशून को मिली सीन 7 में। उसके बाद की कहानी तो नैनू भाई बताएंगे ही। आखिर में जो आदमी आर्य को मिला वो बॉब था जिसने आर्य को निखारा संवारा और उसको आज वाला आर्य बनाया। सुपर से भी ऊपर वाला अपडेट।
 

Zoro x

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भाई ये राजदीप वाला संवाद उस परीक्षा के बाद का ही है दूसरी बात कोई भी वोल्फ किसी आम इंसान को पैक लीडर नही बनाता है क्योंकि पैक का टैटू और ओथ दोनो वुल्फ्स के बीच ही हो सकती है पैक बनाने के लिए, फिर जब आर्य ने अपने पैक के साथ किले पर जा कर अपने पैक की घोषणा की और रूही और अलबेली के बदले के लिए अल्फा को मारा तब भी ये बात कुछ हद तक जाहिर हो गई थी।
हां हों सकता हैं आपकी बात सही हों लेकिन मुझे नहीं लगता हैं कि ऐसा किसी ने सोचा होगा क्योंकि अभी हीं मैंने अपडेट में पढ़ा था कि जब आर्य ने गुस्से में जब लोपचे को मारा था तब उसकी टांग टूट गई थीं उस वक्त तेजस ओर भुमि दोनों वहीं थें अपनी आंखों से देखा था कैसे एक इंसान ने वोल्फ को अपाहिज बना दिया था
इसलिए प्रहरी के पास आर्य को वोल्फ मानने या समझने का कोई उपयुक्त कारण नहीं था भाई

लेकिन यहीं वो बात थीं जिसने सिक्रेट प्रहरी के अंदर डर ओर शंका पैदा कर दिया कि आगे चलकर यह बच्चा ओर ताकतवर बनेगा और उनका हीं नामोनिशान मिटा देगा क्यूंकि इन लोगों ने आर्य के दादाजी के साथ बहुत बुरा किया था तो डरना लाजमी हैं
यहीं डर आर्य का दुश्मन बना दिया प्रहरी को

बाकी वेयरवोल्फ का ख्याल तो इन लोगों को सपने में भी नहीं था
अगर होता तो जों 8 थर्ड लाइन शिकारी आर्य को मारने आए उनकी जगह सेकण्ड लाइन या फर्स्ट लाइन शिकारी आते और आर्य मारा जाता भाई
 

Lib am

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हां हों सकता हैं आपकी बात सही हों लेकिन मुझे नहीं लगता हैं कि ऐसा किसी ने सोचा होगा क्योंकि अभी हीं मैंने अपडेट में पढ़ा था कि जब आर्य ने गुस्से में जब लोपचे को मारा था तब उसकी टांग टूट गई थीं उस वक्त तेजस ओर भुमि दोनों वहीं थें अपनी आंखों से देखा था कैसे एक इंसान ने वोल्फ को अपाहिज बना दिया था
इसलिए प्रहरी के पास आर्य को वोल्फ मानने या समझने का कोई उपयुक्त कारण नहीं था भाई

लेकिन यहीं वो बात थीं जिसने सिक्रेट प्रहरी के अंदर डर ओर शंका पैदा कर दिया कि आगे चलकर यह बच्चा ओर ताकतवर बनेगा और उनका हीं नामोनिशान मिटा देगा क्यूंकि इन लोगों ने आर्य के दादाजी के साथ बहुत बुरा किया था तो डरना लाजमी हैं
यहीं डर आर्य का दुश्मन बना दिया प्रहरी को

बाकी वेयरवोल्फ का ख्याल तो इन लोगों को सपने में भी नहीं था
अगर होता तो जों 8 थर्ड लाइन शिकारी आर्य को मारने आए उनकी जगह सेकण्ड लाइन या फर्स्ट लाइन शिकारी आते और आर्य मारा जाता भाई
नैनू भाई है ना अपने आप ये बात साफ करनेगे।
 

Sk.

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हां हों सकता हैं आपकी बात सही हों लेकिन मुझे नहीं लगता हैं कि ऐसा किसी ने सोचा होगा क्योंकि अभी हीं मैंने अपडेट में पढ़ा था कि जब आर्य ने गुस्से में जब लोपचे को मारा था तब उसकी टांग टूट गई थीं उस वक्त तेजस ओर भुमि दोनों वहीं थें अपनी आंखों से देखा था कैसे एक इंसान ने वोल्फ को अपाहिज बना दिया था
इसलिए प्रहरी के पास आर्य को वोल्फ मानने या समझने का कोई उपयुक्त कारण नहीं था भाई

लेकिन यहीं वो बात थीं जिसने सिक्रेट प्रहरी के अंदर डर ओर शंका पैदा कर दिया कि आगे चलकर यह बच्चा ओर ताकतवर बनेगा और उनका हीं नामोनिशान मिटा देगा क्यूंकि इन लोगों ने आर्य के दादाजी के साथ बहुत बुरा किया था तो डरना लाजमी हैं
यहीं डर आर्य का दुश्मन बना दिया प्रहरी को

बाकी वेयरवोल्फ का ख्याल तो इन लोगों को सपने में भी नहीं था
अगर होता तो जों 8 थर्ड लाइन शिकारी आर्य को मारने आए उनकी जगह सेकण्ड लाइन या फर्स्ट लाइन शिकारी आते और आर्य मारा जाता भाई
अरे वाह मेरे डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी 🙏🙏
 

Tiger 786

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भाग:–76





बॉब ने जैसे ही उस कवर के ऊपर का कपड़ा हटाया, अंदर बिल्कुल जमा हुआ चेहरा को देखकर आर्यमणि लड़खड़ा गया। जैसे ही आर्यमणि को उसके पैक ने दर्द में पाया चारो एक साथ वूल्फ साउंड निकालते दौड़े। वो लोग जैसे ही सीढ़ियों पर पहुंचे आर्यमणि अपना हाथ उनकी ओर करते उन्हें रोका… "मै ठीक हूं तुम लोग ऊपर के लोगों की मदद करो।"..


आर्यमणि:- बॉब ये क्या किया है इसके साथ?


बॉब:- ओशुन का ये हाल यहां के लोगो ने नहीं किया है। यहां के गैंग को इन सब के विषय में पता ही नहीं। तुम्हारे भारत जाने के 10-12 दिन के बाद की बात है, जब ओशुन का एक इमरजेंसी मैसेज आया, उसने क्या लिखा खुद ही देखो...


बॉब ने उसे एक संदेश दिखाया जिसमे लिखा था… "मेरे पीछे कौन पड़ा है पता नहीं, लेकिन उसे एक अल्फा वेयर केयोटी की तलाश थी, किसी खतरनाक काम के लिये। जानती हूं जीत नहीं पाऊंगी, लेकिन अपने परिवार को बचाने की कोशिश जरूर करूंगी। आर्य से कभी मिलो तो कहना मै उसे बहुत चाहती थी, उसका दिल तोड़ने कि वजह बता देना। शायद मुझे माफ़ कर दे। मैं रहूं किसी के भी साथ, उसके लिये कभी चाहत कम नहीं होगी।"


आर्यमणि पूरा मायूस दिख रहा था। संदेश पढ़ते–पढ़ते वहीं बैठ गया। एक-एक करके आर्यमणि का पूरा पैक उसके पास पहुंचा। सभी आर्यमणि के ऊपर अपना सर रखकर रो रहे थे।… "उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो, तुम लोग आओ मेरे साथ।".. बॉब, आर्यमणि के पैक को लेकर ऊपर आ गया।


वहां मौजूद वुल्फ, बंकर से निकलकर नीचे पड़े उन वुल्फ की मदद कर रहे थे जिनका खून निचोड़ लिया गया था। इसके पूर्व जबतक आर्यमणि नीचे जा रहा था, वहां मौजूद सारे वुल्फ शिकारी के खून और मांस पर ऐसे आकर्षित थे कि उन्हें जैसे खजाना मिल गया हो। अलबेली ने उन वुल्फ को कंट्रोल किया था, रूही और ट्विंस ने बिना कोई देर किये मानव के मांस और रक्त को तेजी से साफ कर दिया।



उस वक्त तो उन्हें रोक लिया, लेकिन वहां का हर वुल्फ बहुत ही कमजोर और उसे से भी कहीं ज्यादा भूखा था। इस जगह में अब भी 3 इंसान (डॉक्टर दंपत्ति और बॉब) मौजूद थे। रूही ने वुल्फ कंट्रोल साउंड दिया और सभी वुल्फ भागते हुए ऊपर आये।


रूही:- एक भी वुल्फ इस बंकर से बाहर नहीं निकलेगा, कमजोर और घायल पड़े साथी को भी यही बंकर में ले आओ। तुम तीनों इन सबके लिए पूरे खाने की वयवस्था करो।


लास्की:- कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। किचेन में सबके खाने का प्रयाप्त स्टॉक मिल जायेगा।


ट्विंस और लास्की की जिम्मेदारी थी पकाना और यहां रूही और अलबेली इन भूखे और कमजोर वुल्फ को किसी तरह रोक कर रखते। पहले आ रही ताजा कटे जानवर के रक्त की खुशबू जो सभी वेयरवुल्फ को बागी बनने पर मजबूर कर रहे थे। उसके बाद भुन मांस की खुशबू। जैसे ही उनको छोड़ा गया, खाने पर ऐसे टूटे मानो जन्मों के भूखे हो। देखते ही देखते पुरा खाना चाट गये और डाकर तक नहीं लिया। इधर ओजल ने अपने पैक के लिए भेज सूप, पनीर फ्राय और रोटियां पकाकर ले आयी थी। उन्हें ये सब खाते देख बाकी वूल्फ अचरज में पड़ गये। तीनों ने मिलकर, रूही को खाना लेकर नीचे आर्यमणि को खाना खिलाने के लिये भेज दिया। आर्यमणि, ओशुन के पास खड़ा बस उसी का चेहरा देख रहा था….

कभी-कभी दिल मजबूत रखना पड़ता है।
अपनो की हालत देखकर गम पीना पड़ता है।

वक़्त हर मरहम की दवा तो नहीं लेकिन,
वक़्त के साथ हर दर्द में जीना आ जाता है।
खुदा इतना खुदगर्ज नहीं जो रोता छोड़ दे।
जबतक दर्द की दावा ना मिले दर्द ही दवा बन जाता है।


"मेरी आई अक्सर ये कहा करती थी। अपनी जिल्लत भरी जिंदगी में बस यही उनके चंद शब्द थे जो किसी एंटीबायोटिक कि तरह काम करते थे। उनके कहे शब्दों पर विश्वास तब हो गया जब तुम मेरी जिंदगी में आये। आओ खाना खा लो, वो तुम्हारे साथ किसी कारण से भले ही नहीं रह पायी हो, लेकिन उठकर प्यार से तुम्हे ऐसे चूम लेगी की तुम्हारे हर गम को मरहम मिल जायेगा।"..


आर्यमणि, रूही की बात सुनकर उसके पास बैठा और खाने के ओर देखकर सोचने लगा। रूही रोटी का एक निवाला उसके मुंह के ओर बढ़ाई.. आर्यमणि कुछ देर तक निवाले को देखता रहा और फिर खाना शुरू किया…


"तुम्हारी आई बहुत अच्छी थी, शायद बहुत समझदार भी। बस वक़्त ने तुम्हारे साथ थोड़ी सी बेईमानी कर दी, वरना तुम भी उनकी ही परछाई हो।"..


रूही:- क्या दफन है सीने में आर्य, ये लड़की तुम्हारे उस दौड़ कि साथी है ना जब तुम अचानक से गायब हुये थे।…


आर्यमणि वक़्त की गहराइयों में कुछ दूर पीछे जाकर…


मै उस दौर में था जब मेरी भावना एक वेयरवुल्फ से जुड़ी थी, नाम था मैत्री। मै उसके परिवार की सच्चाई नहीं जानता था। लेकिन मेरे पापा और मम्मी उनकी सच्चाई जानते थे। बहुत छोटे थे हम इसलिए उस बात पर मेरे घर वाले ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। खासकर मेरे दादा वर्धराज कुलकर्णी के कारण। लेकिन मेरी भूमि दीदी जब भी मेरे पास होती तो उनकी खुशी के लिए मै मैत्री से 10-15 दिन नहीं मिलता था।


उफ्फ वो क्या गुस्सा हुआ करती थी और मै उसे मनाया करता था। तब उन लोगो का बड़ा सा परिवार जंगल के इलाके में, बड़े से कॉटेज में रहता था। तकरीबन 40 लोग थे वहां, सब के सब मुझसे नफरत करने वाले। लेकिन जिनको नफरत करनी है वो करते रहे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ उतना ही प्यारा था। स्कूल में हम हमेशा साथ रहा करते थे। साथ घुमा करते थे। मुझे इस बात का कभी उसने एहसास तक नहीं होने दिया कि उसके घरवाले मैत्री पर तरह-तरह का प्रेशर डालते थे। स्कूल में मुझसे दूर और अपने भाई बहन के साथ रहने के लिये रोज उसे टर्चर किया जाता था।


एक दिन की बात है शाम के वक़्त था, मै जंगल के ओर आया हुआ था। मैत्री पेड़ के नीचे बैठी थी और मै उसके गोद में सर रखकर लेटा हुए था। वो बड़े प्यार से मेरे बाल में हाथ फेर रही थी और मै आंख मूंद कर सोया था.. प्यारी सी आवाज उसकी मेरे कानो में पड़ रही थी…


"आर्य, बड़े होकर हम वो अवरुद्ध के पार चले जाएंगे जहां उस दुनिया में कोई नहीं आ सके।"… मैत्री मुझे उसी अवरुद्ध के बारे में बोल रही थी जिसका भस्म के घेरे से सुपरनैचुरल नहीं निकल पाते। कारण वही था, ये अवरुद्ध जहां है, वहां मतलब होगा कि 2 दुनिया के बीच की दीवार। आपको उसके पार जाना है तो आपको ट्रु होना होगा। यदि इंसानी दुनिया में ये अवरुद्ध है तो आपको ट्रू इंसान होना पड़ेगा या हिमालय के उस सीमा पार जाना चाहते है तो आपको ट्रु उन जैसा बनना पड़ेगा।


खैर उसकी प्यारी सी ख्वाइश थी, एक अलग दुनिया में जाने की। जहां हम दोनों हो, बस उस आवाज के पीछे छिपे दर्द और गहराई को नहीं समझ सका की उसके घरवाले उस पर कितना प्रेशर बनाये है। उसी वक़्त वहां उसका भाई शूहोत्र पहुंच गया। आते ही उसने मेरा कॉलर पकड़ कर उठाया और धराम ने नीचे पटक दिया। मै भी नहीं जानता मुझे कहां–कहां चोट आयी, बस नजरें मैत्री पर थी और वो काफी परेशान दिख रही थी। मै अपने दर्द को देखे बगैर उससे इतना ही कहा.. "शांत रहो।"..


मैत्री:- तुम्हे चोट लगी है आर्य..


उसकी इस बात पर शूहोत्र ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ लगा दिया। पता नहीं उस वक़्त मेरे अंदर क्या हो गया था। मै उठा.. खुद से आधे फिट लंबे और शारीरिक बल में कहीं ज्यादा आगे वाले लड़के को पीटना शुरू कर दिया। वो भी मुझे मार रहा था, लेकिन मै उसे ज्यादा मार रहा था।


तब मैंने पहली बार उसे देखा था.. वो पीली आखें, बड़े बड़े पंजे, दैत्य जैसे 2 बड़े बड़े दांत, उसका साढ़े 4 फिट का शरीर ऐसा लगा साढ़े 6 फिट का हो गया हो। लेकिन गुस्सा मुझ पे सवार था। मुझे मारा कोई बात नहीं पर मैत्री को मारा ये मै पचा नहीं पा रहा था।


उसके पंजे मुझे फाड़ने के लिए आतुर थे, वो मुझ से बहुत तेज था। वो जितनी तेजी से मुझे मार रहा था मै उतनी तेजी से बचते हुए उसपर हमले करता रहा। उसकी लम्बाई तक मेरे हाथ नहीं पहुंच पा रहे थे इसलिए मैंने अपना पाऊं उठाया, घुटनों के नीचे उसे पूरी ताकत से मारा था और उसका पाऊं टूटकर लटक गया था।


उसी वक़्त मेरे दादा वर्धराज, भूमि दीदी, तेजस दादा, निशांत के पापा, मेरे मम्मी पापा सब वहां पहुंच गये थे। उधर से भी उनका पूरा खानदान पहुंचा था। मेरे दादा ने वहां का झगड़ा सुलझाया, दोनो पक्षों को शांत करवाया। लेकिन तेजस के मन में शायद कुछ और ही चल रहा था। हालांकि तब ये बात किसी को नहीं पता थी लेकिन बाद में मुझे पता चल गया। लोपचे कॉटेज को 2 दिन बाद आग लगा दिया गया था। उसके परिवार के बहुत से लोग अंदर जलकर मर गये। बस कुछ ही लोग बचे जो देश छोड़कर जर्मनी चले गये। एक लंबा अर्सा बिता होगा जब मुझे मैत्री का पहला ई–मेल आया। महीने में 2, 3 बार बात भी हो जाती।


वो अपना हर नया अनुभव साझा करती और साथ में ओशुन के बारे में भी बताया करती थी। वो मुझसे कहा करती थी, बस कुछ दिन रुक जाओ हम साथ होंगे। शायद मुझसे लगाव और प्यार रखने के कारण ही उसे अपनी जान गंवानी पड़ी। मेरे लिये वो अपने परिवार और पैक तोड़कर इंडिया आयी थी और उसे किसी शिकारी ने मार डाला था। मार तो शूहोत्र को भी दिया था, लेकिन शिकारियों से बचाकर मैंने उसे निकला था।


उसी दौरान एक घटना हो गई, एक बीटा सुहोत्र ने मुझे बाइट किया था। एक बीटा के बाइट से मैंने शेप शिफ्ट किया था, खैर आगे इसका बहुत जिक्र होने वाला है। मुझे झांसा देकर बहुत सारे रास्तों से होते हुये आखिर में समुद्र के रास्ते से जर्मनी लाया। दरसअल मुझे शूहोत्र ही लेकर आया था, सिर्फ और सिर्फ इसलिए ताकि मैत्री मुझे अपनी जगह वुल्फ हाउस में देखना चाहती थी, जो कि एक छलावा था। हकीकत तो ये थी कि मैत्री की सोक सभा में मुझे नोचकर खाया जाना था।


वहां फिर लोगों ने चमत्कार देखा एक बीटा के बाइट से मै शेप शिफ्ट कर चुका था और मुझमें हील होने की एबिलिटी आ गयी थी। इसे शायद श्राप ही कह लो। क्योंकि ब्लैक फॉरेस्ट मेरा जेल था, जहां वो मुझे नंगा रखा करते और रोज खून चूसकर हालत ऐसी कर दी थी कि शरीर के नाम पर केवल हड्डी का ढांचा बचा था।


लगातार कुछ दिन के प्रताड़ना के बाद ओशुन ने मुझे वास्तविकता बताई कि मेरी क्षमता क्या है और मैंने गंगटोक के जंगल में क्या-क्या किया था। उसने मुझसे बताया था कि वो नियम से बंधी है, जितना हुआ उतना वो मुझे बता दी। ऐसा नहीं था कि उसके एहसास करवाने के बाद मुझे उस नर्क से मुक्ति मिल गयी थी, लेकिन मैंने अपने शरीर की फ़िक्र करना छोड़कर अपने दिमाग को संतुलित करना सीखा।


वो मुझे जलील करते, मेरे बदन को नोचते यहां तक कि मेरे पीछे कभी कटिला तार में लिपटा डंडा डालते तो कभी सरिया। बस रोजाना 2 घंटे ही मै जाग पता था, उस से ज्यादा हिम्मत नहीं बचती। लेकिन उन 2 घंटो में मै इनके पागलपन को भूलकर बस जंगल को गौर करता, पेड़ पर मार्किंग करता।


लगभग 1 महीना बीतने के बाद समझ में आया कि मै जहां से निकलने की कोशिश कर रहा हूं वहां से तो वो लोग आते है, तो क्यों ना जंगल के दूसरे ओर भागा जाये। अगला 10 दिन मैंने टेस्ट किया कि जंगल के दूसरे ओर जाने पर क्या प्रतिक्रिया होता है। और तब मुझे पता चला कि जंगल के दूसरे हिस्से में वो नहीं जाते थे। लेकिन मेरी किस्मत, मै हर रोज वहीं लाकर पटक दिया जाता था, जहां से मेरी आंखें खुला करती थी।


"आखें खोलो, उठो.. वेक अप"… मेरे कानो में आवाज़ आ रही थी। शरीर मेरा कुछ हरकत में था, मैं कुछ पी रहा था, लेकिन क्या पता नहीं। ये कोई और वक़्त था जब मै अपनी आखें खोल रहा था। आखें जब खुली तब मेरा सिर ओशुन की गोद में था और उसकी कलाई मेरे मुंह में। उस वक़्त मुझे पता चला कि ओशुन अपने हाथ की नब्ज काटकर मुझे खून पिला रही थी।


मै झटके से उठा। कुछ घृणा अंदर से मेहसूस हो रहा था। मुझे उल्टी आ गई और ओशुन से थोड़ी दूर हटकर उल्टियां करने लगा। ओशुन भी मेरे पीछे आयी। पीठ पर हाथ डालकर उसने मुझे शांत करवाया। शांत होने के बाद मै वहां से हटा और आकर वहीं अपनी जगह पर बैठ गया। वो भी मेरे पास आकर बैठी। मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं बची थी मै उसपर गुस्से में चिल्ला कर कह सकूं कि वो क्या कर रही थी। फिर भी जितना हो सकता था इतने गुस्से में… "ये तुम क्या कर रही थी, मुझे खून क्यों पिलाया।"


ओशुन, मुझे ऊपर से लेकर नीचे तक बड़े ध्यान से देखी। मुझे मेरी वास्तविक स्थिति का ज्ञात हुआ, मैं पूर्णतः नंगा था और थोड़ी झिझक के साथ खुद में सिमट गया।… "तुम रोज बेहोश रहते हो, शरीर में तुम्हारे जब जान आता है तब तुम जागते हो और ठीक उसी वक़्त जान निकालने भेड़िए तुम्हारे पास पहुंच जाते है।"


इतना कहकर उसने मेरे गोद में कपड़े रख दिये और वहां से उठकर चली गई। मै पीछे से उसे आवाज लगाता रहा लेकिन वो बिजली कि गति से वहां से निकल गयी। उसके जाने के बाद भी मै अपनी जगह बैठा रहा और ओशुन के बारे में ही सोचता रहा। क्यों आयी, क्यों गयी और मुझे इस वक़्त क्यों जगाया, ये सब सवाल मेरे मन में उठ रहे थे। शायद वो मेरे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाती इसलिए बिना कुछ कहे वहां से चली गयी। लेकिन जाते–जाते मेरे लिए बहुत कुछ करके जा चुकी थी।


मै अपनी जगह से उठा और उसके लाये कपड़े पहनकर जंगल के दूसरे हिस्से के ओर बढ़ चला जहां ये लोग नहीं जाते थे। मै जितना तेज हो सकता था उतना तेज वहां से निकला। 24 घंटे के किस प्रहर में मैंने चलना शुरू किया पता नहीं, लेकिन मै जितना तेज हो सकता था, चलता गया। मार्किंग किए हुये पेड़ सब पीछे छूट चुके थे, और मै उनसे कोसों दूर, जंगल के दूसरे हिस्से में बढ़ता जा रहा था। चलते-चलते मै जंगल के मैदानी भाग में पहुंच गया। पीछे कौन सा वक़्त गुजरा था, मेरी जिंदगी कहां से शुरू हुई और मै कहां पहुंच गया, वो अभी कुछ याद नहीं था, केवल चेहरे पर खुशी थी और सामने मनमोहक सा झील था।


"तुम कौन हो अजनबी, और इस इलाके में क्या कर रहे हो।"… कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया। उनमें से एक 40-41वर्षीय व्यक्ति ने मुझे ऊपर से नीचे घूरते हुये पूछने लगा।
Aarya kaise bacha tha iska bi khulasa ho gaya par bechari oshun ko apni jaan gavani padi very sad
 
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