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Fantasy Aryamani:- A Pure Alfa Between Two World's

nain11ster

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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
ओशुन का प्यार भी एक दम निश्चल है आर्य के लिए, कुछ मैत्री से सुन कर, कुछ आर्य के ऊपर हुए अत्याचारों को देख कर, कुछ ईडन और उसके पैक की घटिया सोच और हरकतों की वजह से और कुछ आर्य को दिल से चाहने की वजह से। आर्य अभी भी गुस्से पर काबू नहीं पा रहा था और इसी चक्कर में ओशुन को जख्मी भी कर बैठा था मगर वो पागल इतनी दीवानी हो चुकी है आर्य के प्यार में कि उसको आत्मग्लानि में नही जाने दिया।

आखिर ओशुन ने धीरे धीरे आर्य को टू अल्फा शेप शिफ्ट करवा ही दिया वो भी एक दम शांत चित्त के साथ, ना कोई गुस्सा, ना कोई उत्तेजना, ना कोई रोमांच ठीक वैसे ही जैसे एक वस्त्र से दूसरे वस्त्र को पहनना। मगर ईडन के चमचे को पता चल गया और आर्य को बचाने और उसको यहां से जाने की वजह देने की सोच से ओशुन ने उसको मैत्री और लोपचे के गंदे खून की हरकतों के बारे में बता दिया और किस तरह उसको चारा बना कर लाया गया यहां। मगर ओशुन ये भूल गई कि अब उसने आर्य को जाने की नही रोकने की वजह दे दी है और अब ईडन और उसका पैक वो नजारा देखेंगे जो उन्होंने सपने में भी नही सोचा होगा। बहुत ही झकास ए धांसू अपडेट।
 

Tiger 786

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भाग:–81






ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?


मै अपनी उलझनों में खोया हुआ था और तभी ओशुन बिल्कुल मेरे गोद में चढ़कर अपने होंठ मेरे होंठ से लगाती हुई किस्स करना शुरू कर चुकी थी। मै असमंजस की स्तिथि में उसका साथ नहीं दे पाया। वो अपने होंठ मेरे होंठ से हटाकर… "क्या हुआ।"..


नज़रों में सवाल, चेहरे पर मुस्कान, मै उसकी ओर देखते हुये कहने लगा… "मैत्री दिल से गयी नहीं, इसका अर्थ ये नहीं की तुम दिल में नहीं हो ओशुन। बस तुम्हे यकीन कैसे दिलाऊं वो समझ में नहीं आ रहा। इस वक़्त मेरा दिल ना जाने कितने रफ्तार से धड़क रहा है। अपने ऊपर हुये हर जिल्लत का बदला लेने के लिये मेरा दिल कह रहा है उठो, अभी उठो.. उस ईडन और उसके तमाम लोगो को मार डालो। लेकिन दिल में उतरता ये तुम्हारा चेहरा कहीं मेरे नजरो से ओझल ना हो जाये इसलिए मै बदला को दबा कर अपने प्यार पर ध्यान दे रहा हूं।"..


"सीईईईईईईईईईईईईईईईई"…. बिल्कुल खामोश। जानते हो इस वक़्त मेरा दिल क्या कह रहा है।"… ओशुन अपनी बात कहती मुस्कान से भरे चेहरे पर थोड़ी शरारत लाती, मेरे दोनों हाथ अपने स्तन पर रख कर मुझे आंख मार दी, और वापस से मेरे होटों को चूमने लगी।


उसके होटों का स्पर्श ऐसा था कि मदहोशी के आलम में मै सब भुल सा गया। बेखयाली ऐसी थी कि मेरे हाथ उसके स्तनों को कभी मिज रहे थे तो कब उसे प्यार से सहला रहे थे और वो लगातार किस्स को बीच बीच में तोड़कर "आंह आंह" करती रही।


मेरे आंख व्याकुल हो चुके थे उसके जवान योबन को देखने के लिये। उसके स्तन भींचते हुये उसके नये कपड़े को खींचता रहा। तभी वो अपना किस्स तोड़ती मेरे आखों में देखकर मुकुराई। मेरे कान को दांत में दबाकर मेरे उपर से हटी और मुझे धक्के देकर लिटा दिया।


उत्तेजना में मै अपने पीठ को उठाकर ओशुन को देखने की कोशिश करता रहा और वो मुझे बार-बार लिटाकर ना जाने क्या कर रही थी। "आह्हहहहहहहहहहह" की आवाज अचानक से मेरे मुंह से निकली। मेरे उत्तेजना की आग पूरे चरम पर पहुंच गई। और जब मै उत्तेजना में उठकर ओशुन को देखने की कोशिश कर रहा था मुझे पता भी नहीं चला कब उसने मेरे नीचे के कपड़े निकालकर मुझे नंगा कर दिया था।


उत्तेजना में जलते मेरे लिंग पर उसके हाथ बिल्कुल बर्फ से ठंडे और मक्खन से मुलायम। लिंग पर ओशुन के नरम हाथ गहरा मादक लहर का सृजन कर रहा था। मै गहरी आवाज़ निकालने पर मजबूर हो गया और ओशुन.. "हिहि".. करती अपनी शरारत दिखाने लगी थी। उसके ठंडे मुलायम हाथ मेरे लिंग को पूरा शक्त बाना चुके थे, जान तो तब निकल गई जब उसने मेरे लिंग को अपने मुंह में लिया, और मुंह में लेकर वो चूसने लगी। लिंग का कुछ हिस्सा ओशुन के मुंह में था और नीचे उसका हाथ ऐसे सरसराते हुए रेंग रहा था कि मै पुरा छटपटा गया। मेरे कमर ख़ुद व खुद हिलने लगे।


मैं उठकर बैठ गया और उसके बाल को अपनी मुट्ठी में लेकर, अपने लिंग पर उसके सर को तेजी में आगे पीछे करता हुए पुरा अंदर तक डालकर कर रुक गया। उफ्फफफ क्या रोमांच था। मै उत्तेजना के पंख लगाए उड़ रहा था। "ऊम्मममममममम, ऊम्मममममममम" .. की दबी सी आवाज आने लगी, और ओशुन मेरे कमर के ऊपर तेज-तेज हाथ मारने लगी। "ईईईई .. ये क्या हो गया".. अपनी उत्तेजना में थोड़ा गुम हो गया और जब मैंने ओशुन के बाल छोड़े खांसती हुई वो किसी तरह अपने स्वांस को काबू करने लगी। उसके पुरा मुंह गीला हो गया था और मुंह से झाग निकल रहे थे।


ओशुन मेरे ऊपर कूदकर आयी और मेरा गला पकर कर गुस्से में… "जंगली पहली बार सेक्स कर रहा है क्या?"..


उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पूरे जोश से मैंने उसे उल्टा घुमा दिया। बिस्तर पर वो बाहें फैलाए लेटी हुई थी और मेरा शरीर ऊपर से उसे पुरा कवर किए हुए था। उसके दोनो हाथ मेरे हाथो के नीचे दबे थे और मै उसके नरम होंठ पर जीभ फेरते हुए उसकी आंखो में देखकर कहने लगा… "मेरा सेक्स करने का पहला अनुभव है और सेक्स देखने का जीरो।"..


मेरी बात सुनकर ओशुन खुलकर हसने लगी और मेरे कमर में अपने पाऊं फंसाकर अपने होंठ ऊपर करके मेरे होंठ छूने की कोशिश करने लगी। मुझे देख कर ये अच्छा लगा और मै अपने होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगा। हम दोनों पागलों कि तरह एक दूसरे को चूमे जा रहे थे। उत्तेजना में ओशुन अपने नाखून पुरा मेरे पीठ में घुसाए जा रही थी। तभी बीच से उसने अपना पाऊं मोड़कर अपने कपड़े को कमर तक चढ़ा ली और पाऊं से पैंटी को निकलकर मेरे लिंग को अपने योनि के थोड़ा अंदर घुसकर तेजी से घिसने लगी।


योनि पर लिंग घुसते वक़्त वो इतना तेज श्वांस ले रही थी कि उसका स्तन मेरे सीने को छूते हुए ऊपर तक दब जाते। एक लय में ये लगातार हो रहा था जो मुझे पागल बनाये जा रहा था। लिंग पर योनि का स्पर्श से मेरे शरीर में लहर दौरने लगा और मैंने पुरा झटका देकर लिंग को योनि के अंदर पुरा जड़ तक घुसाकर अपने कमर अटका दिया… ओशुन के हाथ बाहर थे जो मेरे चूतड़ को पूरी मुट्ठी में दबोचे थी और लिंग के अंदर जाते ही "ऊम्मममममममममम ऊम्ममममममममम".. की घुटती आवाज अंदर से आने लगी।


काफी मादक और मनमोहक आवाज़ थी जो मेरे अटके कमर में भूचाल लाने के लिए काफी थे। मेरे तेज-तेज झटको से पुरा पलंग "हूंच हुंच" की आवाज निकाल रहा था। "ऊम्ममममममममममम आह्हहहहहहहहहहह " की लगातार आवाज़ ओशुन के बंद मुंह से आ रही थी, जिसे मेरे होटों ने जकड़ रखा था। और मै धक्के पर धक्का मारते जा रहा था। हर धक्के में अपना अलग ही कसीस था और चरम सुख भोगने का अपना ही मजा।

वेयरवोल्फ बनने में पहले पूर्णिमा में मैं भी पूरे मज़े में अपना पहला सेक्स एन्जॉय कर रहा था। योनि के अंदर लिंग डालने का सुख ही कमाल का था और लगातार धक्के मार-मार कर वो सुख की प्राप्ति कर रहा था। फिर तो ऐसा लगा जैसे आखों के आगे अंधेरा छा गया हो। मेरे रोम-रोम से मस्ती की चिंगारी निकलने वाली हो। बदन पुरा अकड़ता जा रहा था श्वांस फुल सी गई और धक्के कि रफ्तार बिल्कुल चौगुनी। "आहहहहहहहहहहह" की तेज आवाज के साथ ही मैंने अपना सारा वीर्य निकालकर उसके पास ही निढल पर गया।


ऐसा लगा मानो पुरा शरीर हल्का हो गया हो। इतने आनंद में था कि अपना हाथ तक उठाने का मन नहीं कर रहा था। श्वांस धीरे-धीरे सामान्य होती चली गई और मै गहरी नींद में चला गया।


ऐसा लग रहा था मै कई दिनों बाद इतनी गहरी नींद में सोया था। जब जगा तो मीठी सी अंगड़ाई लेने लगा और हल्की सी रात की झलकियां मेरे दिमाग में चल रही थी। वो झलकियां याद आते ही जैसे अंग अंग में सुरसुरी दौड़ गयी हो। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और ओशुन से मिलने की चाहत बढ़ सी गई थी।


मैंने अपनी आंखें खोली और फटाफट उठ गया। दरवाजा खोला ही था कि झलकियों में एक बार देखे बिस्तर ने मेरा ध्यान खींच लिया। मै जितनी तेजी से बाहर जाने की सोच रहा था उतनी ही उदासीनता के साथ दरवाजे से अपना हाथ हटाया और बिस्तर के ओर देखने लगा।


आश्चर्य से मेरी आखें बड़ी हो गई। कलेजा बिल्कुल कांप गया। मै अपने सर को पकड़ कर वहां बिस्तर पर फैले खून, चिथरे हुये ओशुन के कपड़े और पास ही फैले तकिये के रूई को देखने लगा। मैंने आंख मूंद कर अपना कांपता हाथ बिस्तर के ऊपर रखा… "आह्हः ये हैवानियत थी।"…


तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही थी जिसमे मुझे साफ दिख रहा ओशुन के ऊपर मै किसी चादर की तरह था जिसके नीचे वो कहीं दिख ही नहीं रही। मेरे पंजे ने उसके पूरे जिस्म को नोचा, पुरा लहूलुहान शरीर। उसकी हालत पर मै कांप रहा था और खुद की दरिंदगी को मै मेहसूस कर सकता था।


एक जानवर का खून जब बहता है तो मेरी आह निकलती थी, आज मै खुद को ही खून बहाने वाला जानवर मेहसूस करने लगा था। एक ओर ओशुन का वो प्यारा मुस्कुराता सा चेहरे, जिसमें ना जाने कितनी हसरतें और अरमान नजर आती थी, एक ओर दर्द से बेचैन उसका चेहरा जिसके ऊपर मैंने दर्द की कहानी जब लिखनी शुरू की तो ना जाने कब तक दर्द देता रहा।


घृणा, और केवल घृणा। खुद के लिए इस से ज्यादा कुछ नहीं बचा था।.. मै पागलों कि तरह चिल्लाया, घर की दीवार पर पूरी रफ्तार से अपना सर दे मारा। सर फट चुका था, खून बहना शुरू हो गया। मुझे अच्छा लगा। बस बुरा जो लग रहा था वो ये कि अब तक खड़ा कैसे है ये हैवान, मरा क्यों नहीं।


फिर से एक और तेज रफ्तार से मैंने अपना सर दीवार से दे मारा। कहां कितना फटा वो तो कुछ भी याद नहीं लेकिन आखों के आगे अंधेरा छा गया। चेहरे पर पानी गिरने से मेरी आखें खुली। आखें जब खुली तो सामने बॉब था, और मेरा सर ओशुन के गोद में।


"आप जाओ बॉब, मै हूं यहां। उठना भी मत लेटे रहो।"… ओशुन बॉब को वापस जाने के लिए जब कह रही थी तब मै उठने कि कोशिश कर रहा था, जिसकी प्रतिक्रिया में ओशुन मुझे डांटती हुई कहने लगी।" मै बस बॉब के जाने के लिये कह रही थी।"


बॉब:- तुम्हे पक्का यकीन है तुम दोनो को मेरी जरूरत नहीं।


आगे पीछे से लगभग हम दोनों साथ ही कहने लगे… "हां, आप जाओ।"..


बॉब उठकर वहां से चला गया। हम दोनों ही उसे कुछ दूर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। जब लगा की वो दूर निकल गया होगा फिर मै तेजी से खड़ा हुआ और अपनी हैवानियत का नजारा देखने लगा। ओशुन के होंठ बीच से फटे थे जिस पर दांत के इस पार से उस पार निकलने का निशान थे। पूरा बदन फर वाले कपड़े से ढका हुआ था, समझते देर नहीं लगी कि अंदर खून अब भी रिश रहा होगा। उसके गुप्तांगों के भाग का ख्याल आया, जिसे सेक्स कि उत्तेजना में मैंने ना जाने कितने घंटो तक रौंदा था।


ख्याल विचलित करने वाले थे और इस वक़्त वहीं विचार दोबारा पूरे जोड़ से उफान पर था… "ये हैवान अब तक खड़ा क्यों है।".. तभी मेरे गालों पर लगातार थप्पड़ पड़ने लगे। इस थप्पड़ में ना तो कोई जोड़ था और ना ही कोई ताकत बस किसी तरह हाथ उठ रहा था और मेरे गाल से लग रहा था।


ओशुन खड़ी नहीं हो पा रही थी, लेकिन वो किसी तरह खड़ी थी। वो अपने फटे होंठ के दर्द से बोल नहीं पा रही थी, लेकिन फिर भी हिम्मत करके उसने बोलना शुरू किया। और सिर्फ बोली ही नहीं बल्कि चिल्लाती हुई बता रही थी….


"तुम्हे इतना बचाया है मरने के लिये। किसने कहा ये सब बेवकूफी करने, हां। तुम्हे यहां कुछ भी समझ में आता है या नहीं, या फिर सोच कर ही आये हो मेरी जिंदगी को तहस-नहस करके जाने की। तुम्हे समझ में नहीं आता की मै तुमसे कितना प्यार करती हूं बेवकूफ। या फिर अक्ल पर पर्दा पड़ा है।"…


ओशुन इतने दर्द में होने के बावजूद भी खुद के दर्द की परवाह किए बगैर मुझ पर चिल्ला रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे खुद में समेटकर उसके पीठ पर हाथ फेरने लगा। तभी हल्की सी उसकी दर्द भरी सिसकी निकला गयी। मै उसे खुद से अलग करते… "प्लीज मुझे माफ़ कर दो।".. इतना कहकर मैं उसके ऊपर से वो फर वाले कपड़े उतारने लगा।


ओशुन एक कदम पीछे हटती… "मुझे कोई हील नहीं होना। कल के अंजाने में दिये जख्म मुझे कहीं ज्यादे प्यारे है, तुम्हारे जान बूझकर कलेजा चिर देने वाले जख्म से। मै सभी परिणाम सोचकर ही आगे बढ़ी थी, वरना उत्तेजित तो तुम 2 रात पहले भी थे। लेकिन तुम्हे यह बात क्यों समझ में आयेगी।"..


मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, उसके दोनो कंधे पकड़कर… "बस मुझे गलती समझ में आ गयी है अब तुम ज्यादा नाटक मत करो। जितना गुस्सा करना हो या चिल्लाना हो वो मेरे काम खत्म होने के बाद कर लेना।"..


मेरी बात सुनकर वो भी हल्का मुस्कुराई। मुंह से "ही ही" की वहीं जानी पहचानी आवाज़ निकलने वाली लेकिन दर्द से केवल उसकी सिसकी निकल रही थी। मैंने उसके कपड़े उतारे और कल जिस ख्याल से वो मेरे साथ रहने का मन बनाकर आयी थी वो ख्याल भी देख लिया। शायद यह कहना ग़लत होगा रूही की ओशुन ने अपने शरीर पर होने वाले अत्याचार के बारे में नही सोचा होगा। क्योंकि पहली बार मैंने जिस तरह से उसके स्तन को निचोड़ था और जख्मी किया था, उस हिसाब से वो पूरी गणना करके आयी थी।


पूरा बदन पर गहरे नाखून के खरोच थे, जो 2–3 सेंटीमीटर अंदर घुसाकर खरोच था। उसके गुप्तांगों के पास खरोच थे जबकि अंदर की पिरा का ज्ञान मुझे तब हुआ जब मैंने अपना हाथ लगाया। ओशुन इतने दर्द में थी कि राहत से छटपटा गयी। उसका दर्द जैसे-जैसे मेरे रगों में दौड़ रहा था मेरे आंसू बाहर आने लगे।


"कोई कैसे किसी का इतना दिये दर्द के बावजूद उससे प्यार कर सकती है। एक हैवान के लिए अपनी भावनाएं जाता सकती है।" मै बस इन्हीं बातों पर सोच था। उधर ओशुन अपने बदन से दर्द को उतरता मेहसूस कर दबी सी आवाज में राहत भरी लंबी "आह्हहहह" भर रही थी। जब सब सामान्य हुआ तब ओशुन गहरी श्वास ले रही थी। आंनद के भाव उसके चेहरे पर थे जिसे वो आंख मूंदकर मेहसूस कर रही थी। उसे सुकून में आखें मूंदे देख मै भी राहत के श्वांस लेने लगा। वो पूर्णतः हील हो चुकी थी लेकिन उसके बदन पर गहरे पंजे के निशान रह गये थे।


मुझे अफ़सोस सा हो रहा था। इतने खूबसूरत और मखमली बदन पर इतने सारे खरोच के निशान मैंने बाना दिए। मै गौर से ओशुन का चेहरा देखने लगा, कहीं चेहरे पर कोई दाग तो नहीं दे दिया, लेकिन शुक्र है वहां कोई निशान नहीं थे। हां दो दांत के निशान जरूर पड़े थे होठों पर लेकिन वो अंदर के ओर से थे जो बाहर से बिल्कुल भी नजर नहीं आते।


"घन घन घन".. टैटू नीडल मशीन के चलने की आवाज जैसे ही आयी, ओशुन अपनी सुकून कि गहराइयों से बाहर आती, उठने की कोशिश करने लगी। मैंने उसे लेटे रहने के लिए कहने लगा। 6 घंटे तक उसे जबरदस्ती लिटाये रखा। मेरा काम जब खत्म हुआ तब मैंने वापस से स्किन को हील किया… "लो हो गया।"..


जैसे ही मैंने "हो गया" कहा वो भागकर गयी और सुकून भरी श्वांस खींचती वाशरूम से बाहर आयी.. "यूं मैड, जबरदस्ती फंसाकर रखा था। 6 बार मै पागल की तरह बोल रही हूं रुको मुझे आने दो, लेकिन एक ये है, एक साथ पूरे काम करके उठना है।"..


ओशुन अपनी भड़ास निकाल रही थी, तभी शायद उसकी नजर टैटू पर गई होगी… "वाउ आर्य, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड।"… वो खुशी से उछल रही थी। उसकी खुशी देखते बन रही थी।.. "कपड़े तो पहन लो कम से कम, और तुम्हे भूख नहीं लगी है क्या?"


ओशुन:- कपड़े पहन लिए तो टैटू कैसे दिखेंगे। मै तो अब कपड़े पहनने से ज्यादा उतारने में विश्वास रखुंगी।


मै:- हाहाहाहा… अरे अरे अरे.. मतलब ऐसे न्यूड होकर टैटू की नुमाइश।


ओशुन:- हां तो.. रुको तुम मेरी कुछ पिक्स ले लो, आज ही अपलोड करूंगी।


अपनी बात कहकर वो अपने एक हाथ से दोनो स्तन को लपेट कर छिपा ली, नीचे एक पतली सी पैंटी को केवल इतना ही हिस्सा कवर करे जो योनि का भाग हो, और तैयार हो गयी। मेरी हंसी निकल गई। हां ये भारत और जर्मनी का कल्चरल डिफरेंस था। भारत में जो अपवाद केस होते है, यहां के लिये सामान्य होता है।


बेमन, मै जला बुझा सा तस्वीर खींचने लगा… वो तरह तरह को मुद्रा (pose) में तस्वीर खींचवाने लगी। तकरीबन 100-150 तस्वीरें उसने खिंचवाई, और अपने लैपटॉप में हर तस्वीर को देखने लगी। हर तस्वीर को देखकर वो अपनी उत्साह से भरी प्रतिक्रिया देती, और मेरा दिल ये सोचकर जल रहा था कि अब सोशल मीडिया पर सब इसे घूरेंगे। शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।
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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
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Mahendra Baranwal

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भाग:–81






ओशुन की बात सुनकर मै बिल्कुल ख़ामोश हो गया। मेरे अंदर की बेचैनी और घुटन एक किनारे और ओशुन का वो मुस्कुराता चेहरा दूसरी ओर, जो मुझसे ये जानने को इक्कछूक़ थी कि क्या मै उससे भावनाओ के साथ जुड़ा हूं, या केवल मेरी उत्तेजना थी जो तालाब के ओर मुझे खींच ले गयी थी?


मै अपनी उलझनों में खोया हुआ था और तभी ओशुन बिल्कुल मेरे गोद में चढ़कर अपने होंठ मेरे होंठ से लगाती हुई किस्स करना शुरू कर चुकी थी। मै असमंजस की स्तिथि में उसका साथ नहीं दे पाया। वो अपने होंठ मेरे होंठ से हटाकर… "क्या हुआ।"..


नज़रों में सवाल, चेहरे पर मुस्कान, मै उसकी ओर देखते हुये कहने लगा… "मैत्री दिल से गयी नहीं, इसका अर्थ ये नहीं की तुम दिल में नहीं हो ओशुन। बस तुम्हे यकीन कैसे दिलाऊं वो समझ में नहीं आ रहा। इस वक़्त मेरा दिल ना जाने कितने रफ्तार से धड़क रहा है। अपने ऊपर हुये हर जिल्लत का बदला लेने के लिये मेरा दिल कह रहा है उठो, अभी उठो.. उस ईडन और उसके तमाम लोगो को मार डालो। लेकिन दिल में उतरता ये तुम्हारा चेहरा कहीं मेरे नजरो से ओझल ना हो जाये इसलिए मै बदला को दबा कर अपने प्यार पर ध्यान दे रहा हूं।"..


"सीईईईईईईईईईईईईईईईई"…. बिल्कुल खामोश। जानते हो इस वक़्त मेरा दिल क्या कह रहा है।"… ओशुन अपनी बात कहती मुस्कान से भरे चेहरे पर थोड़ी शरारत लाती, मेरे दोनों हाथ अपने स्तन पर रख कर मुझे आंख मार दी, और वापस से मेरे होटों को चूमने लगी।


उसके होटों का स्पर्श ऐसा था कि मदहोशी के आलम में मै सब भुल सा गया। बेखयाली ऐसी थी कि मेरे हाथ उसके स्तनों को कभी मिज रहे थे तो कब उसे प्यार से सहला रहे थे और वो लगातार किस्स को बीच बीच में तोड़कर "आंह आंह" करती रही।


मेरे आंख व्याकुल हो चुके थे उसके जवान योबन को देखने के लिये। उसके स्तन भींचते हुये उसके नये कपड़े को खींचता रहा। तभी वो अपना किस्स तोड़ती मेरे आखों में देखकर मुकुराई। मेरे कान को दांत में दबाकर मेरे उपर से हटी और मुझे धक्के देकर लिटा दिया।


उत्तेजना में मै अपने पीठ को उठाकर ओशुन को देखने की कोशिश करता रहा और वो मुझे बार-बार लिटाकर ना जाने क्या कर रही थी। "आह्हहहहहहहहहहह" की आवाज अचानक से मेरे मुंह से निकली। मेरे उत्तेजना की आग पूरे चरम पर पहुंच गई। और जब मै उत्तेजना में उठकर ओशुन को देखने की कोशिश कर रहा था मुझे पता भी नहीं चला कब उसने मेरे नीचे के कपड़े निकालकर मुझे नंगा कर दिया था।


उत्तेजना में जलते मेरे लिंग पर उसके हाथ बिल्कुल बर्फ से ठंडे और मक्खन से मुलायम। लिंग पर ओशुन के नरम हाथ गहरा मादक लहर का सृजन कर रहा था। मै गहरी आवाज़ निकालने पर मजबूर हो गया और ओशुन.. "हिहि".. करती अपनी शरारत दिखाने लगी थी। उसके ठंडे मुलायम हाथ मेरे लिंग को पूरा शक्त बाना चुके थे, जान तो तब निकल गई जब उसने मेरे लिंग को अपने मुंह में लिया, और मुंह में लेकर वो चूसने लगी। लिंग का कुछ हिस्सा ओशुन के मुंह में था और नीचे उसका हाथ ऐसे सरसराते हुए रेंग रहा था कि मै पुरा छटपटा गया। मेरे कमर ख़ुद व खुद हिलने लगे।


मैं उठकर बैठ गया और उसके बाल को अपनी मुट्ठी में लेकर, अपने लिंग पर उसके सर को तेजी में आगे पीछे करता हुए पुरा अंदर तक डालकर कर रुक गया। उफ्फफफ क्या रोमांच था। मै उत्तेजना के पंख लगाए उड़ रहा था। "ऊम्मममममममम, ऊम्मममममममम" .. की दबी सी आवाज आने लगी, और ओशुन मेरे कमर के ऊपर तेज-तेज हाथ मारने लगी। "ईईईई .. ये क्या हो गया".. अपनी उत्तेजना में थोड़ा गुम हो गया और जब मैंने ओशुन के बाल छोड़े खांसती हुई वो किसी तरह अपने स्वांस को काबू करने लगी। उसके पुरा मुंह गीला हो गया था और मुंह से झाग निकल रहे थे।


ओशुन मेरे ऊपर कूदकर आयी और मेरा गला पकर कर गुस्से में… "जंगली पहली बार सेक्स कर रहा है क्या?"..


उसकी बात सुनकर मुझे हंसी आ गई। पूरे जोश से मैंने उसे उल्टा घुमा दिया। बिस्तर पर वो बाहें फैलाए लेटी हुई थी और मेरा शरीर ऊपर से उसे पुरा कवर किए हुए था। उसके दोनो हाथ मेरे हाथो के नीचे दबे थे और मै उसके नरम होंठ पर जीभ फेरते हुए उसकी आंखो में देखकर कहने लगा… "मेरा सेक्स करने का पहला अनुभव है और सेक्स देखने का जीरो।"..


मेरी बात सुनकर ओशुन खुलकर हसने लगी और मेरे कमर में अपने पाऊं फंसाकर अपने होंठ ऊपर करके मेरे होंठ छूने की कोशिश करने लगी। मुझे देख कर ये अच्छा लगा और मै अपने होंठ उसके होंठ से लगाकर चूमने लगा। हम दोनों पागलों कि तरह एक दूसरे को चूमे जा रहे थे। उत्तेजना में ओशुन अपने नाखून पुरा मेरे पीठ में घुसाए जा रही थी। तभी बीच से उसने अपना पाऊं मोड़कर अपने कपड़े को कमर तक चढ़ा ली और पाऊं से पैंटी को निकलकर मेरे लिंग को अपने योनि के थोड़ा अंदर घुसकर तेजी से घिसने लगी।


योनि पर लिंग घुसते वक़्त वो इतना तेज श्वांस ले रही थी कि उसका स्तन मेरे सीने को छूते हुए ऊपर तक दब जाते। एक लय में ये लगातार हो रहा था जो मुझे पागल बनाये जा रहा था। लिंग पर योनि का स्पर्श से मेरे शरीर में लहर दौरने लगा और मैंने पुरा झटका देकर लिंग को योनि के अंदर पुरा जड़ तक घुसाकर अपने कमर अटका दिया… ओशुन के हाथ बाहर थे जो मेरे चूतड़ को पूरी मुट्ठी में दबोचे थी और लिंग के अंदर जाते ही "ऊम्मममममममममम ऊम्ममममममममम".. की घुटती आवाज अंदर से आने लगी।


काफी मादक और मनमोहक आवाज़ थी जो मेरे अटके कमर में भूचाल लाने के लिए काफी थे। मेरे तेज-तेज झटको से पुरा पलंग "हूंच हुंच" की आवाज निकाल रहा था। "ऊम्ममममममममममम आह्हहहहहहहहहहह " की लगातार आवाज़ ओशुन के बंद मुंह से आ रही थी, जिसे मेरे होटों ने जकड़ रखा था। और मै धक्के पर धक्का मारते जा रहा था। हर धक्के में अपना अलग ही कसीस था और चरम सुख भोगने का अपना ही मजा।

वेयरवोल्फ बनने में पहले पूर्णिमा में मैं भी पूरे मज़े में अपना पहला सेक्स एन्जॉय कर रहा था। योनि के अंदर लिंग डालने का सुख ही कमाल का था और लगातार धक्के मार-मार कर वो सुख की प्राप्ति कर रहा था। फिर तो ऐसा लगा जैसे आखों के आगे अंधेरा छा गया हो। मेरे रोम-रोम से मस्ती की चिंगारी निकलने वाली हो। बदन पुरा अकड़ता जा रहा था श्वांस फुल सी गई और धक्के कि रफ्तार बिल्कुल चौगुनी। "आहहहहहहहहहहह" की तेज आवाज के साथ ही मैंने अपना सारा वीर्य निकालकर उसके पास ही निढल पर गया।


ऐसा लगा मानो पुरा शरीर हल्का हो गया हो। इतने आनंद में था कि अपना हाथ तक उठाने का मन नहीं कर रहा था। श्वांस धीरे-धीरे सामान्य होती चली गई और मै गहरी नींद में चला गया।


ऐसा लग रहा था मै कई दिनों बाद इतनी गहरी नींद में सोया था। जब जगा तो मीठी सी अंगड़ाई लेने लगा और हल्की सी रात की झलकियां मेरे दिमाग में चल रही थी। वो झलकियां याद आते ही जैसे अंग अंग में सुरसुरी दौड़ गयी हो। चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी और ओशुन से मिलने की चाहत बढ़ सी गई थी।


मैंने अपनी आंखें खोली और फटाफट उठ गया। दरवाजा खोला ही था कि झलकियों में एक बार देखे बिस्तर ने मेरा ध्यान खींच लिया। मै जितनी तेजी से बाहर जाने की सोच रहा था उतनी ही उदासीनता के साथ दरवाजे से अपना हाथ हटाया और बिस्तर के ओर देखने लगा।


आश्चर्य से मेरी आखें बड़ी हो गई। कलेजा बिल्कुल कांप गया। मै अपने सर को पकड़ कर वहां बिस्तर पर फैले खून, चिथरे हुये ओशुन के कपड़े और पास ही फैले तकिये के रूई को देखने लगा। मैंने आंख मूंद कर अपना कांपता हाथ बिस्तर के ऊपर रखा… "आह्हः ये हैवानियत थी।"…


तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही थी जिसमे मुझे साफ दिख रहा ओशुन के ऊपर मै किसी चादर की तरह था जिसके नीचे वो कहीं दिख ही नहीं रही। मेरे पंजे ने उसके पूरे जिस्म को नोचा, पुरा लहूलुहान शरीर। उसकी हालत पर मै कांप रहा था और खुद की दरिंदगी को मै मेहसूस कर सकता था।


एक जानवर का खून जब बहता है तो मेरी आह निकलती थी, आज मै खुद को ही खून बहाने वाला जानवर मेहसूस करने लगा था। एक ओर ओशुन का वो प्यारा मुस्कुराता सा चेहरे, जिसमें ना जाने कितनी हसरतें और अरमान नजर आती थी, एक ओर दर्द से बेचैन उसका चेहरा जिसके ऊपर मैंने दर्द की कहानी जब लिखनी शुरू की तो ना जाने कब तक दर्द देता रहा।


घृणा, और केवल घृणा। खुद के लिए इस से ज्यादा कुछ नहीं बचा था।.. मै पागलों कि तरह चिल्लाया, घर की दीवार पर पूरी रफ्तार से अपना सर दे मारा। सर फट चुका था, खून बहना शुरू हो गया। मुझे अच्छा लगा। बस बुरा जो लग रहा था वो ये कि अब तक खड़ा कैसे है ये हैवान, मरा क्यों नहीं।


फिर से एक और तेज रफ्तार से मैंने अपना सर दीवार से दे मारा। कहां कितना फटा वो तो कुछ भी याद नहीं लेकिन आखों के आगे अंधेरा छा गया। चेहरे पर पानी गिरने से मेरी आखें खुली। आखें जब खुली तो सामने बॉब था, और मेरा सर ओशुन के गोद में।


"आप जाओ बॉब, मै हूं यहां। उठना भी मत लेटे रहो।"… ओशुन बॉब को वापस जाने के लिए जब कह रही थी तब मै उठने कि कोशिश कर रहा था, जिसकी प्रतिक्रिया में ओशुन मुझे डांटती हुई कहने लगी।" मै बस बॉब के जाने के लिये कह रही थी।"


बॉब:- तुम्हे पक्का यकीन है तुम दोनो को मेरी जरूरत नहीं।


आगे पीछे से लगभग हम दोनों साथ ही कहने लगे… "हां, आप जाओ।"..


बॉब उठकर वहां से चला गया। हम दोनों ही उसे कुछ दूर जाने की प्रतीक्षा करने लगे। जब लगा की वो दूर निकल गया होगा फिर मै तेजी से खड़ा हुआ और अपनी हैवानियत का नजारा देखने लगा। ओशुन के होंठ बीच से फटे थे जिस पर दांत के इस पार से उस पार निकलने का निशान थे। पूरा बदन फर वाले कपड़े से ढका हुआ था, समझते देर नहीं लगी कि अंदर खून अब भी रिश रहा होगा। उसके गुप्तांगों के भाग का ख्याल आया, जिसे सेक्स कि उत्तेजना में मैंने ना जाने कितने घंटो तक रौंदा था।


ख्याल विचलित करने वाले थे और इस वक़्त वहीं विचार दोबारा पूरे जोड़ से उफान पर था… "ये हैवान अब तक खड़ा क्यों है।".. तभी मेरे गालों पर लगातार थप्पड़ पड़ने लगे। इस थप्पड़ में ना तो कोई जोड़ था और ना ही कोई ताकत बस किसी तरह हाथ उठ रहा था और मेरे गाल से लग रहा था।


ओशुन खड़ी नहीं हो पा रही थी, लेकिन वो किसी तरह खड़ी थी। वो अपने फटे होंठ के दर्द से बोल नहीं पा रही थी, लेकिन फिर भी हिम्मत करके उसने बोलना शुरू किया। और सिर्फ बोली ही नहीं बल्कि चिल्लाती हुई बता रही थी….


"तुम्हे इतना बचाया है मरने के लिये। किसने कहा ये सब बेवकूफी करने, हां। तुम्हे यहां कुछ भी समझ में आता है या नहीं, या फिर सोच कर ही आये हो मेरी जिंदगी को तहस-नहस करके जाने की। तुम्हे समझ में नहीं आता की मै तुमसे कितना प्यार करती हूं बेवकूफ। या फिर अक्ल पर पर्दा पड़ा है।"…


ओशुन इतने दर्द में होने के बावजूद भी खुद के दर्द की परवाह किए बगैर मुझ पर चिल्ला रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे खुद में समेटकर उसके पीठ पर हाथ फेरने लगा। तभी हल्की सी उसकी दर्द भरी सिसकी निकला गयी। मै उसे खुद से अलग करते… "प्लीज मुझे माफ़ कर दो।".. इतना कहकर मैं उसके ऊपर से वो फर वाले कपड़े उतारने लगा।


ओशुन एक कदम पीछे हटती… "मुझे कोई हील नहीं होना। कल के अंजाने में दिये जख्म मुझे कहीं ज्यादे प्यारे है, तुम्हारे जान बूझकर कलेजा चिर देने वाले जख्म से। मै सभी परिणाम सोचकर ही आगे बढ़ी थी, वरना उत्तेजित तो तुम 2 रात पहले भी थे। लेकिन तुम्हे यह बात क्यों समझ में आयेगी।"..


मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुराया, उसके दोनो कंधे पकड़कर… "बस मुझे गलती समझ में आ गयी है अब तुम ज्यादा नाटक मत करो। जितना गुस्सा करना हो या चिल्लाना हो वो मेरे काम खत्म होने के बाद कर लेना।"..


मेरी बात सुनकर वो भी हल्का मुस्कुराई। मुंह से "ही ही" की वहीं जानी पहचानी आवाज़ निकलने वाली लेकिन दर्द से केवल उसकी सिसकी निकल रही थी। मैंने उसके कपड़े उतारे और कल जिस ख्याल से वो मेरे साथ रहने का मन बनाकर आयी थी वो ख्याल भी देख लिया। शायद यह कहना ग़लत होगा रूही की ओशुन ने अपने शरीर पर होने वाले अत्याचार के बारे में नही सोचा होगा। क्योंकि पहली बार मैंने जिस तरह से उसके स्तन को निचोड़ था और जख्मी किया था, उस हिसाब से वो पूरी गणना करके आयी थी।


पूरा बदन पर गहरे नाखून के खरोच थे, जो 2–3 सेंटीमीटर अंदर घुसाकर खरोच था। उसके गुप्तांगों के पास खरोच थे जबकि अंदर की पिरा का ज्ञान मुझे तब हुआ जब मैंने अपना हाथ लगाया। ओशुन इतने दर्द में थी कि राहत से छटपटा गयी। उसका दर्द जैसे-जैसे मेरे रगों में दौड़ रहा था मेरे आंसू बाहर आने लगे।


"कोई कैसे किसी का इतना दिये दर्द के बावजूद उससे प्यार कर सकती है। एक हैवान के लिए अपनी भावनाएं जाता सकती है।" मै बस इन्हीं बातों पर सोच था। उधर ओशुन अपने बदन से दर्द को उतरता मेहसूस कर दबी सी आवाज में राहत भरी लंबी "आह्हहहह" भर रही थी। जब सब सामान्य हुआ तब ओशुन गहरी श्वास ले रही थी। आंनद के भाव उसके चेहरे पर थे जिसे वो आंख मूंदकर मेहसूस कर रही थी। उसे सुकून में आखें मूंदे देख मै भी राहत के श्वांस लेने लगा। वो पूर्णतः हील हो चुकी थी लेकिन उसके बदन पर गहरे पंजे के निशान रह गये थे।


मुझे अफ़सोस सा हो रहा था। इतने खूबसूरत और मखमली बदन पर इतने सारे खरोच के निशान मैंने बाना दिए। मै गौर से ओशुन का चेहरा देखने लगा, कहीं चेहरे पर कोई दाग तो नहीं दे दिया, लेकिन शुक्र है वहां कोई निशान नहीं थे। हां दो दांत के निशान जरूर पड़े थे होठों पर लेकिन वो अंदर के ओर से थे जो बाहर से बिल्कुल भी नजर नहीं आते।


"घन घन घन".. टैटू नीडल मशीन के चलने की आवाज जैसे ही आयी, ओशुन अपनी सुकून कि गहराइयों से बाहर आती, उठने की कोशिश करने लगी। मैंने उसे लेटे रहने के लिए कहने लगा। 6 घंटे तक उसे जबरदस्ती लिटाये रखा। मेरा काम जब खत्म हुआ तब मैंने वापस से स्किन को हील किया… "लो हो गया।"..


जैसे ही मैंने "हो गया" कहा वो भागकर गयी और सुकून भरी श्वांस खींचती वाशरूम से बाहर आयी.. "यूं मैड, जबरदस्ती फंसाकर रखा था। 6 बार मै पागल की तरह बोल रही हूं रुको मुझे आने दो, लेकिन एक ये है, एक साथ पूरे काम करके उठना है।"..


ओशुन अपनी भड़ास निकाल रही थी, तभी शायद उसकी नजर टैटू पर गई होगी… "वाउ आर्य, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड, ओह माय गॉड।"… वो खुशी से उछल रही थी। उसकी खुशी देखते बन रही थी।.. "कपड़े तो पहन लो कम से कम, और तुम्हे भूख नहीं लगी है क्या?"


ओशुन:- कपड़े पहन लिए तो टैटू कैसे दिखेंगे। मै तो अब कपड़े पहनने से ज्यादा उतारने में विश्वास रखुंगी।


मै:- हाहाहाहा… अरे अरे अरे.. मतलब ऐसे न्यूड होकर टैटू की नुमाइश।


ओशुन:- हां तो.. रुको तुम मेरी कुछ पिक्स ले लो, आज ही अपलोड करूंगी।


अपनी बात कहकर वो अपने एक हाथ से दोनो स्तन को लपेट कर छिपा ली, नीचे एक पतली सी पैंटी को केवल इतना ही हिस्सा कवर करे जो योनि का भाग हो, और तैयार हो गयी। मेरी हंसी निकल गई। हां ये भारत और जर्मनी का कल्चरल डिफरेंस था। भारत में जो अपवाद केस होते है, यहां के लिये सामान्य होता है।


बेमन, मै जला बुझा सा तस्वीर खींचने लगा… वो तरह तरह को मुद्रा (pose) में तस्वीर खींचवाने लगी। तकरीबन 100-150 तस्वीरें उसने खिंचवाई, और अपने लैपटॉप में हर तस्वीर को देखने लगी। हर तस्वीर को देखकर वो अपनी उत्साह से भरी प्रतिक्रिया देती, और मेरा दिल ये सोचकर जल रहा था कि अब सोशल मीडिया पर सब इसे घूरेंगे। शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।
Outstanding
 

Mahendra Baranwal

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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
A great update & very emotional update
 

Battu

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भाग:–82






शुद्ध भाषा में कहा जाये तो मेरी झांटें सुलग रही थी और इस लड़की को अपने सोशल मीडिया पर बस सेक्सी, हॉट बेब और ना जाने किस किस तरह के कमेंट की भूख थी।


भूख से एक बात और याद आ गयी। 6 घंटे से मै टैटू बना रहा था। उसके पहले ना जाने कितनी देर से मेरे पास बैठी थी। इसे भूख ना लगी थी क्या? एक बात जो उस वक़्त पता चल गयी, लड़कियां सोशल मीडिया का ध्यान खींचने के चक्कर में कितने देर भी भूखे प्यासे रह सकती है। उसका तो पता नहीं लेकिन मुझे तो भूख लगी थी, इसलिए मैंने ही पूछ लिया… "ओशुन तुम्हे भूख नहीं लगी क्या?"..


मै उसके कंधे से लदा था और वो अपने होंठ मेरे होंठ से लगाकर छोटा सा किस्स करती… "हनी, आज तुम्हारे साथ ही खाना खा लूंगी, जल्दी से हम दोनों के लिये कुछ टेस्टी और गरमागरम पका दो ना।"..


शुक्र है उन कपल की तरह इसने नहीं कहा "मेरे लिये पका दो ना। ये मेरे मां के साथ रही तो मै पक्का ही पीस जाऊंगा। भगवान इसे भारत में रहने लायक कुछ सद्बुद्धि दो, वरना ये ब्लैक फॉरेस्ट के थ्रिल तो आज ना कल संभाल ही लूंगा, लेकिन ओशुन की चाहत में यदि इसे घर ले गया तो फैमिली थ्रिल नहीं संभलने वाला।"


जैसे ही घर की बात सोची, मुझे घर की याद आने लगी। मां की, पापा की, निशांत, चित्रा, भूमि दीदी सब मुझे याद आने लगे। कैसे होंगे वो? मुझे लेकर परेशान तो नहीं होंगे? मै इन्हीं सब बातो में खोया, चोरी से उनका सोशल प्रोफाइल देखने लगा। आखों में तब आशु आ गये जब चित्रा का वो पोस्ट देखा.. "घर वापस आ जा आर्य, अब कितना रूठा रहेगा।"..


"क्या हुआ आर्य, तुम ठीक तो हो ना।"… ओशुन मुझे टोकती हुई पूछने लगी।


मैं बस खामोशी से कहा कुछ नहीं, और किचेन के ओर जाने लगा। मेरे पीछे–पीछे वो भी आ गयी।… "तुम आराम से किचेन स्लैब पर बैठो, मै खाना पकाती हूं।"


मै:- नहीं रहने दो, मै पका लेता हूं।


ओशुन:- कही ना बैठ जाओ। सॉरी मुझे कुछ बातो का ध्यान बाद में आया।


मै:- कौन सी बात..


ओशुन:- मैत्री अक्सर यू ट्यूब से तरह-तरह के साकहारी डिशेज बनाना सीखती थी। जब मै पूछती की इन सब की क्या जरूरत है? तब वो कहती कि तुम नहीं समझोगी, किसी के लिये पकाना कितना अच्छा लगता है। जब भी आर्य अपनी मां के हाथ का बना खाना मुझे खिलाता, ऐसा लगता था दुनिया जहां के सारे लजीज खाने उसके आगे फिके है। अक्सर हम दोनों की बहस इस बात के लिये भी हो जाती, जब मै उसे कुछ सेक्सी पोज में तस्वीर पोस्ट करने कहती, वो हमेशा ना कह दिया करती थी। पूछने पर वही जवाब, आर्य को अच्छा नहीं लगेगा। मुझे ये नहीं समझ में आता की किसी की आज़ादी को छीनकर दूसरो को क्या मज़ा आता होगा? पता नहीं क्यों मै भी अपनी आज़ादी को खोते हुये मेहसूस कर रही हूं, लेकिन मुझे जारा भी बुरा नहीं लग रहा।


मै ओशुन की बात सुनकर क्या कहता, ऐसा लगा जैसे नारद जी ऊपर देव लोक में बैठकर किसी नए सॉफ्टवेर का आविष्कार कर चुके हैं। इधर फरियादी ने अर्जी डाली और उधर यदि भगवान ने अर्जी ना सुनी तो नारद जी ब्रेकिंग न्यूज तीनों लोकों में चला देते होंगे। ऐसा लग रहा था कहावत ही बदल दू, और नई कहावत बाना दूं, भगवान के घर ना तो देर है और अंधेर तो कभी रहा ही नहीं।


बहरहाल वो 10 दिन मेरे लिये काफी हसीन रहे रूही। ऐसा लगा मै किसी स्वपन नगरी में हूं। हसीन लम्हात और प्यारे-प्यारे ज़ज्बात थे। हम छोटी–बड़ी खुशियां समेटे बस एक दूसरे में खोकर ब्लैक फॉरेस्ट में अपनी जिंदगी के सबसे हसीन लम्हात को मेहसूस कर रहे थे, जो वर्षों पहले मैंने मैत्री के साथ किया था।


ओशुन के साथ रहकर मैंने अपने अंदर के बदलाव को हंसकर स्वीकार किया। मैंने ब्लैक फॉरेस्ट के लगभग 1200 पेड़ को हील किया था। लगातार पेड़ों के हील करने के कारण मेरे आखों का रंग बदल कर नीला हो गया था। बॉब के अनुसार यह एक स्वाभाविक बदलाव था, जो कि बहुत सारे टॉक्सिक अपने जिस्म में समेटने के कारण हुआ था।


इसी के साथ ओशुन मुझे इक्छा अनुसार शेप शिफ्ट करना भी सीखा रही थी। मुश्किल था ये, क्योंकि शेप या तो गुस्से के कारण शिफ्ट होता या एक्साइटमेंट के कारण। इसके अलावा खुद से कितनी भी कोशिश कर लो होता ही नहीं था। गुस्से की अब कोई वजह नहीं थी और मै अपनी हैवानियत से इतना डारा हुआ था कि एक्साइटमेंट को उस दिन के बाद फिर कभी बढ़ने ही नहीं दिया।


मुझे आये लगभग 8 दिन हो गये थे। इन 8 दिनों में ओशुन ने मुझे वुल्फ हाउस के लोगों से पुरा छिपा कर रखा था। मेरे जेहन में वुल्फ हाउस का किस्सा मात्र एक कड़वी याद बनकर रह गयी थी, जिसे मै याद नहीं करना चाहता था। दोनो झील किनारे बैठे एक दूसरे को देख रहे थे। यहां हम दोनों किसी रोमांटिक मोमेंट में नहीं थे बल्कि मै हंस रहा था और ओशुन काफी खफा थी… "पागलों की तरह तुम्हारा ये हंसना मुझे इरिटेट कर रहा है।".. ओशुन चिढ़ती हुई मुझपर चिल्ला रही थी।


मैंने ओशुन का चेहरा पकड़ कर अपने गोद में लिया और होंठ से होंठ लगाकर चूमने लगा। लेकिन वो काफी गुस्से में लग रही थी। मुझे धक्का देकर खड़ी हो गयी और घूरती हुई कहने लगी… "1-2 दिन बाद तो मुझे छोड़कर जा ही रहे हो, अभी चले जाओ ना।"


मै:- तुम अच्छी टीचर नहीं हो ओशुन, इसलिए मै अब तक शेप शिफ्ट करना नहीं सीख पाया हूं।


ओशुन:- सॉरी, मै थोड़ा ओवर रिएक्ट कर रही थी, लेकिन तुम भी कहां ध्यान दे रहे हो। शेप शिफ्ट करना ऐसा नहीं है कि तुम सोच लोगे और शेप शिफ्ट कर गया। किसी जिम्नास्टिक का अभ्यास करते लोगो को देखा है?


मै:- हां देखा है।


ओशुन:- आम इंसानों के मुकाबले उनका शरीर इतना लचीला कैसे हो जाता है?


मै:- वो रोजाना प्रैक्टिस करते है। और माफ करना उनका कोच भी उनके अभ्यास को सही दिशा में ले जाता है।


ओशुन:- यदि ऐसा होता तो दुनिया का हर इंसान जिम्नास्टिक सीखता। कोई किसी को तबतक कुछ सीखा नहीं सकता जबतक वो खुद में जुनून ना पैदा करे।


मै:- विश्वास करो मैंने स्वीकार कर लिया है कि मै क्या हूं, और मुझे जरा भी अफसोस नहीं।


ओशुन:- गुड, सुनो हनी जिम्नास्टिक सीखनेवाले जैसे बिल्कुल खोकर अपने अंदर वो लचीलापन मेहसूस करते है और फिर कई तरह को कलाएं दिखाते है। मै चाहती हूं तुम भी वैसे ही अपने अंदर की ताकत को बस खोकर मेहसूस करो। शेप शिफ्ट के बारे में ध्यान मत दो। तुम्हे खुद से एहसास हो जायेगा की तुम्हारा शेप शिफ्ट कर गया।


ओशुन की बात पर मै हां में अपना सर हिलाया और कुछ दूरी पर खड़ा होकर अपनी आखें मूंद ली। अपने अंदर हुये बदलाव को मुस्कुराकर मेहसूस करते हुये मै अपने शरीर को ढीला छोड़कर बस अंदर रक्त के संचार को मेहसूस कर रहा था। धड़कने बिल्कुल काबू में थी और सामान्य रूप से एक लय में धड़क रही थी। कानो में दूर तक की सरसराहट सुनाई पड़ रही थी। मेरी मांसपेशियों में अजीब सा खिंचाव होते मै मेहसूस कर रहा था और हर मांसपेशी से मुझे असीम ताकत की अनुभूति हो रही थी।


खिंचाव बढ़ता चला जा रहा था और उसी के साथ मै और भी ज्यादा बढ़ती ताकत को मेहसूस कर रहा था। यह पहला ऐसा अवसर था, जब इतने दिनों में मै अपने अंदर कभी ना खत्म होने वाली एक ऊर्जा को मेहसूस कर रहा था। तभी मेरे सीने पर एक नरम हाथ पड़ने का एहसास हुआ। मै समझ चुका था ये ओशुन का हाथ था जो मेरे सीने पर रखकर मेरी बढ़ी धड़कने चेक कर रही थी। मै अपनी आंख खोलकर उसे देखा, और देखकर मुसकुराते हुए… "क्या लगता है ओशुन मै गुस्से या उत्तेजना के कारण वुल्फ में बदला हूं।"


"जान निकाल दी तुमने।"… कहती हुई ओशुन मेरे पंजे अपने छाती पर रखकर अपनी बढ़ी धड़कन को महसूस करने के लिये कहने लगी।


मै वापस से अपना शेप शिफ्ट करके अपने वास्तविक रूप में आते हुये… "लगता है आज तुम काफी उत्तेजित हो गयी हो।"


ओशुन:- काफी नहीं काफी से भी ज्यादा आर्य। क्या तुम जानते हो अभी जब तुमने शेप शिफ्ट किया तो बीस्ट वुल्फ बिल्कुल भी नहीं लगे।


मै:- हां, वो मैंने भी अपना हाथ देखा। मेरा वुल्फ शरीर आज काला की जगह चमकता उजला क्यूं दिख रहा था?


ओशुन:- क्योंकि तुम एक श्वेत वुल्फ ही हो आर्य। इससे पहले का शेप शिफ्ट बस केवल विकृत मानसिकता की देन थी, जो तुम्हारे बस में नहीं था। ये तुम्हारा असली स्वरू है। जिस चरित्र के तुम हो, ठीक वैसा ही तुम्हारा शरीर। मै तो इस कदर आकर्षित थी कि क्या बताऊं। उत्तेजना से रौंगते खड़े हो गये। प्लीज एक बार और अपना शेप शिफ्ट करो ना बहुत ही मस्त फीलिंग थी। मै तो सोच रही हूं जिस वक़्त तुम अपना शेप शिफ्ट करोगे तब मदा वूल्फ की क्या हालत होगी...


मै:- मतलब..


ओशुन:- मतलब डफर वो तो एक्साइटमेंट से पागल हो जायेगी। तुम्हारे साथ सेक्स के लिए टूट पड़ेगी।


मै:- कोई परफ्यूम का एड चल रहा है जो छोड़िया मरी जायेगी मेरे लिये।


ओशुन:- अच्छा तुम भी तो मेरे बदन पर आकर्षित हुये थे। पहली बार वुल्फ हाउस में दूसरी बार झील में।


मै:- ओह हो तो झील वाला कांड तुम्हारा किया हुआ था।


ओशुन:- ही ही.. नहीं वो मैंने जान बूझकर नहीं किया था। बस यूं समझ लो कि कुछ लोगों के पास आकर्षित करने जैसी शक्ति होती है, जैसे कि हम दोनों में है। बातें बहुत हो गयी। चलो ना शेप शिफ्ट करो। मुझे वो एक्साइटमेंट फील करना है।


मै:- नाह मै नहीं करता। मुझे अभी पेड़ को हील करना है।


ओशुन:- मै भी तड़प रही हूं, प्लीज मुझे भी हील कर दो।


मै:- ना मतलब ना..


वहां उस वक़्त हम दोनों के बीच तीखी बहस चली। मै ओशुन को छेड़ रहा था और ओशुन चिढ़ रही थी, बड़ा मज़ा आ रहा था तड़पाने में। जब लगा ओशुन कुछ ज्यादा ही नाराज हो गयी है, तब मुस्कुराते हुये उसके कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया। "आउच" की आवाज उसके मुंह से निकली और वो मेरे सीने से आकर चिपक गयी।"..


"अरे देखो तो कौन है यहां। क्या ओशुन हमारे खिलौने के साथ अकेली मज़े ले रही हो।"… वुल्फ हाउस के किसी पैक के बीटा ने हमे कहा।


ओशुन, घबराकर मुझे अपने पिछे ली। मै उसकी घबराई धड़कन को मेहसूस कर सकता था। शायद चेहरे से वो जताना नहीं चाहती थी इसलिए, खुद की घबराहट को काबू करते हुये…. "अज़रा ये मेरे और ईडन कि बीच की बात है, मै उससे बात कर लुंगी। बेहतर होगा तुम यहां से चले जाओ।"..


अज़रा यालविक, यहां वुल्फ हाउस के यालविल पैक का एक बीटा था जो अपने 3 साथियों के साथ इस ओर भटकता हुआ चला आया। ओशुन की बात सुनकर तीनों ही हंसने लगे। मेरी नजरें उन तीनों को देख रही थी। मेरा गुस्सा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। शायद ओशुन ये बात समझ रही थी, इसलिए वो मेरी हथेली जोड़ से थामी, और मेरे ओर मुड़कर, मेरे होंठ से होंठ लगाकर, पूरे सुरूर में किस्स करती अलग हुई और अपना गर्दन थोड़ा पीछे मोड़कर उनसे कहने लगी… "मेरा प्यार है ये, अब निकलो यहां से। वरना मै भुल जाऊंगी की तुम तीनों मेरे फर्स्ट अल्फा के पैक से हो। और हां किसी को यहां आने की जरूरत नहीं है। हम दोनों ही जरा अपना ये मिलन का काम, जो तुम्हारी वजह से बीच मे रोकना पड़ा था, उसे पूरा करके आते है। अब भागो यहां से।"..


ओशुन के चिल्लाते ही वो लोग वहां से भाग गये। ओशुन मेरा हाथ पकड़कर तेजी से उस ओर भागने लगी, जिस गांव में मुझे वो पहले लेकर आयी थी… "आर्य तुम यहां से ठीक सीधे, पूर्वी दिशा की ओर भागो। कुछ दूर आगे वुल्फ की सीमा है, उसके आगे ये नहीं जा पायेंगे।"


मै:- और तुम ओशुन..


ओशुन:- मै चाहकर भी कहीं नहीं जा सकती आर्य। हम ब्लड पैक से जुड़े है, जबतक ब्लड पैक नहीं टूटता तब तक हम बंधे हुये है।


ओशुन की बात सुनकर मेरी आखें फ़ैल गयी। मै उसे हैरानी से देखने लगा। शायद वो मेरे अंदर के सवाल को भांप गई…. "हां मैत्री भी ब्लड पैक में थी। वो ब्लड पैक तोड़कर गयी थी और उसकी सजा खुद उसके भाई ने दी थी। ईडन चाहती तो मैत्री को यहीं खत्म कर देती। लेकिन मैत्री जिसके लिये बगावत करके गयी थी, ईडन उसे भी मरता हुये देखना चाह रही थी। इसलिए भारत में तुम्हें ट्रैप किया गया था। सुहोत्र तुम्हे मारने की योजना बना ही रहा था, उस से पहले ही वो शिकारियों के निशाने पर आ गया। तुम्हे पता न हो लेकिन मैत्री को मारने के बाद सुहोत्र ने अपनी बहन के गम से 4 इंसानों को नोचकर खाया था। पागलों की तरह हमें बता रहा था कि इन्ही इंसानों के वजह से मैत्री की जान गयी। न उसे एक इंसान (आर्यमणि) से प्यार होता और न ही वो मरती। शिकारियों ने उसे मार ही दिया होता लेकिन यहां आना शायद तुम्हारी किस्मत थी, इसलिए अनजाने में सुहोत्र की ही जान बचा लिये। ब्लड ओथ से बंधे होने के कारण, मै तुम्हे ये सच्चाई नहीं बता पायी। लेकिन अब कोई गिला नहीं। आर्य अब तुम जाओ यहां से।"


मै:- तुम्हे छोड़कर चला जाऊं। तुम्हे मुसीबत में फंसे देखकर।


ओशुन:- "ये गांव देख रहे हो। इस गांव को ईडन ने केवल इसलिए उजाड़ दिया था, क्योंकि ईडन के पैक का एक वुल्फ मेरी मां से पागलों कि तरह प्यार कर बैठा। ईडन को प्यार और बच्चे से कोई ऐतराज नहीं था, बस जो उसके कानों में नहीं जाना चाहिए वो है पैक तोड़कर जाने की इच्छा।"

"अब तुम समझ सकते हो कीन हालातों में मेरी मॉम को यहां से भागना पड़ा होगा। उसके हाथ से 2 दिन का जन्म लिया हुआ बच्चा छीन लिया गया था। इस पूरे गांव पर ईडन नाम का कहर बरस गया। मेरी मॉम और उसके कुछ लोग किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब हुये थे बाकी सब मारे गये।"

"ईडन यहां पर कहर बरसा कर जब लौटी फिर मेरे डैड को भी नहीं छोड़ा था। और मै 2 दिन के उम्र में ही ईडन से ब्लड ओथ से जुड़ गयी। मैंने किसी भी विधि से पैक तोड़ने की बात नहीं की है, इसलिए मै सेफ हूं आर्य। और यदि तुम मुझे पुरा सेफ देखना चाहते हो तो प्लीज लौटकर मत आना। नहीं तो वो ईडन हम दोनों को मार देगी। हनी लिस्टेन, मुझे यदि जिंदा देखना चाहते हो तो यहां फिर कभी लौटकर मत आना।"


उसकी बात सुनकर मै वहां से निराश होकर आगे बढ़ गया। मै जैसे ही आगे जाने के लिए मुड़ा, पीछे से मुझे तेज सरसराहट की आवाज सुनाई दी, जो करीब से दूर होते जा रही थी। ओशुन वहां से निकल गयी थी। मै भी अपने बोझिल क़दमों से चला जा रहा था।


जिस एक कत्ल (मैत्री) का दोषी मै किसी और को समझ रहा था, जिस सवाल ने मुझे भूमि दीदी को अपना दुश्मन बना रखा था। उसका जवाब मुझे मिल चुका था। शायद मेरा वुल्फ हाउस आना मैंने नहीं तय किया था, लेकिन वुल्फ हाउस से वापस जाना मै खुद तय कर सकता था। मैत्री के मौत का जवाब मिल तो गया था, लेकिन ब्लैक फॉरेस्ट की कहानी मै अधूरी छोड़कर जा रहा था।
Maitrey ki mout ka such aakhirkar aarymani k samne aahi gaya but black forest ko ese to chhod kar apna aary jane wala nahi. Wese usne shape shift karna sikh liya. Ab Bob k paas ja kar kuch aur sikhega tab shayad wapas aa kar Eden aur uske pack ka safaya kare. Vese bhai yah flashback jaldi se nipta kar kahani ko vartman me le kar aao yaha bhi usko abhi bahut kuch sikhna he taki wo secret body k logo se bhid sake.
 

ASR

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Divine
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nain11ster मित्र बहुत बहुत मजेदार अपडेट है. अखिरकार आर्य मणी ने अपनी मणी का ओसून के साथ समर्पण कर दिया..
अपने रूप को बदलने की कोशिश करते हुए केई बार मणि को अर्पण किया..
मैत्री की मृत्यु के सच ने आर्य को झिंझोड दिया
बॉब की पाठशाला का इंतजार है..
ईडन के साथ क्या होता है देखते हैं.. कई रहस्य है अब पर्दा उठेगा तो कई नए रहस्य भी बनेंगे... उनका उत्तर मिलेगा
बादिया है.. इन्तेज़ार मे..
 
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